Dharmendra Kumar Patel
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Faadu update dostचैप्टर -4 कामवती का पुनः जन्म अपडेट -58
भूतकाल
समय बीतता गया मनुष्यों का प्रभाव बढ़ने लगा,आस पास हर जगह मानव बस्ती बसने लगी.
विष रूप मे ठाकुर जलन सिंह का दब दबा बढ़ने लगा,मै संसार से विरक्त जीवन जी रहा था,कुछ नहीं बचा था इस नीरस जीवन मे.मेरा राजमहल किसी खंडर मे तब्दील हो गया था.
मैंने सभी खजाना हिरे जवाहरत सब गुप्त तहखाने मे रख दिए थे,हवेली मे अब ठाकुर जलन सिंह रहने लगा था.
हवेली मे रौनक आ गई थी लेकिन मेरी जिंदगी मे कोई रौनक नहीं थी मै मणिधारी सांप हूँ मर भी नहीं सकता था.
उस भयानक युद्ध के 100 साल बीत गए थे.
एक दिन अपनी जिंदगी से लाचार निराश मै जंगल की खांक छानते छानते कामगंज पहुंच गया,
पास के ही तालाब मे कुछ स्त्रिया अठखेलिया कर रही थी
मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी.....
कामवती....कामवती अंदर मत जाओ.रुक जाओ
मैंने पलट के देखा तो देखता ही रह गया. एक कन्या पानी मे अंदर उतरती जा रही थी हसती हुई खिलखिलाती पानी से बदन भीगा हुआ.
मैंने ऐसा सौंदर्य पहले कभी नहीं देखा था. जैसे कोई स्वर्ग की अप्सरा नदी मे नहा रही हो.
की तभी....बचाओ.....बचाओ... स्त्रिओ का शोर सुनाई देने लगा.
कामवती डूब रही है बचाओ कोई...
नागेंद्र ना जाने किस आवेश मे खुद पानी मे छलांग लगा बैठा...
पानी मे गोते लगाती कामवती के करीब पहुंचने ही वाला था की....छापककककक....
एक शख्स और कूद पडा पानी मे अब कामवती दो जोड़ी मजबूत बाहों मे थी,
नागेंद्र और वो शख्स कामवती को बाहर खिंच लाये....
नागेंद्र जैसे ही नजर उठता है घृणा से दाँत पीस लेता है..वीरा तुम?
यहाँ क्या कर रहे हो?
वीरा :- क्यों तेरे बाप का इलाका है क्या.?
नागेंद्र कुछ जवाब देता की....उम्म्म्म...कामवती होश मे आने लगी.
मै...मै...
वीरा :- हे कन्या तुम सलामत हो
कामवती उठ बैठी उसके सामने गोरा सुडोल सा नागेंद्र और हट्टा कट्टा लम्बा,चौड़ी छाती का मालिक वीरा था.
कामवती दोनों को देखती ही रह गई...और दोनों कामवती को एकटक देखते रह गए.
क्या कमल का यौवन था गीले कपड़ो से साफ छलक रहा था,बड़े स्तन सपाट पेट,गोरी रंगत.
कामवती...कामवती...तीनो एक दूसरे मे खोये थे की...दूर से ही कामवती की सहेलिया अति नजर आई,
दोनों ही किसी की नजर मे नहीं आना चाहते थे.
हम चलते है सुंदरी...नाम क्या है तुम्हारा?
कामवती:- कामवती...वो अभी भी खोई हुई थी ना जाने उन दोनों के स्पर्श मे क्या जादू था.
कामवती कामवती....तुम ठीक तो हो ना? सखी ने पूछा.
दूसरी सखी :- वो दो लड़के कौन थे? कहाँ गए?
कामवती :- होश मे अति हुई...प..प...पता नहीं कहाँ से आये कहाँ चले गए
कामवती अपनी सखियों के साथ गांव की और चलती चली गई पीछे वीरा और नागेंद्र उस मस्तानी गदराई चाल को देखते ही रह गए.
शायद दोनों को जीने का उद्देश्य मिल गया था!
वर्तमान मे
रतिवती जंगल मे अकेली रह गई थी.
"ये बिल्लू कहाँ भाग गया वापस अभी तक नहीं आया?कही कोई गड़बड़ तो नहीं"
हज़ारो ख्याल आ रहे थे उसके दिमाग़ मे
धीरे धीरे अंधेरा छाने लगा था, डर से रतिवती को पेशाब का तनाव भी होने लगा था,
"मुझे बिल्लू के पीछे जाना चाहिए कोई अनहोनी ना हुई हो?
गहनो से लदी रतिवती को चोर डाकू का डर भी सताने लगा था.
रतिवती तांगे से उतर जाती है और जिस रास्ते बिल्लू गया था उसी रास्ते पे अपनी साड़ी संभालती चल पड़ती है.
बिल्लू...बिल्लू कहाँ हो तुम?
रतिवती काफ़ी आगे चली आई थी...उसे अब जोर से पेशाब लगा था.
चलना भी मुश्किल हो रहा था
रतिवती अपनी साड़ी उठा के बैठने ही वाली होती है की..उसकी नजर सामने झड़ी मे पड़ती है उस मे से रौशनी फुट रही थी.
"ये क्या है इसमें? रतिवती डरती हुई हाथ आगे बढ़ा उसे उठा लेती है...
हे भगवान....ये...ये...इतना बड़ा हिरा? कही ये सपना तो नहीं?
भूरी को हाथो से छुटी नागमणि रतिवती के हाथ आ गई थी.
रतिवती खूब लालची औरत थी लालचवस ही उसने अपनी जवान बेटी की शादी बूढ़े ठाकुर से कर दी थी.
लालच और हवस रतिवती मे कूट कूट के भरी थी.
इसी लालच मे बिना सोचे समझें ही रतिवती ने नागमणि को हिरा समझ उठा लिया था...
उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था.दिल धाड़ धाड़ कर के बज रहा था.
रतिवती तुरंत साड़ी के पल्लू मे मणि को बाँध लेती है.
"मालिकन आप यहाँ क्या कर रही है"
ब...बबब...बिल्लू वो वो...मै तुम्हे ही ढूंढने आई थी रतिवती एकदम चौक जाती है परन्तु संभाल लेती है.
नागमणि की चमक साड़ी के पल्लू से ढक गई थी.
बिल्लू :- आपको यूँ अकेला नहीं आना चाहिए था जंगल मे.
रतिवती :- मुझे अकेले डर लग रहा था बिल्लू...अब रतिवती के शब्दों मे डर नहीं था ना कोई चिंता था बल्कि खुशी का पुट था
उसे खजाना जो मिल गया था.अनजाने मे बिल्लू के वजह से ही हुआ था.
रतिवती आगे आगे अपनी बड़ी सी गांड मटकाती चल रही थी उसकी गांड खुशी के मारे ज्यादा ही मटक रही थी.
बिल्लू सिर्फ रतिवती की बड़ी सी गांड ही देखे जा रहा था
"बिल्लू तुम किसके पीछे भागे थे?"
Billu:- मालिकन वो मेरा भ्रम था, मुझे लगा हवेली मे काम करने वाली भूरी काकी है?
बिल्लू को अब वो भ्रम ही लग रहा था क्युकी उसके सामने तो एक गद्दाराई कामुक गांड जो थी.
दोनों ही तांगे के पास पहुंच जाते है.
बिल्लू :- आइये मालकिन आपको तांगे पे चढ़ा दू,बिल्लू उसकी कमर और गांड को महसूस करने का मौका नहीं गवाना चाहता था
बिल्लू के ऐसा बोलते ही रतिवती को बिल्लू का सख्त हाथ याद आ जाता है जो तांगे पे चढ़ाते वक़्त महसूस हुआ था.
रतिवती:- बिल्लू....वो...वो मुझे पेशाब लगी है जोर से.
नागमणि मिलने की खुशी मे रतिवती पेशाब करना ही भूल गई थी परन्तु अब सामान्य होने पे उसे पेशाब करने की सूझी.
बिल्लू :- तो कर लीजिये ना मालकिन?
रतिवती :- लेकिन अंधेरा हो चूका है कोई जीव जंतु ना काट ले.
बिल्लू लालटेन जाला चूका था "तो यही कर लीजिये ना "
रतिवती :- हट बेशर्म तुम्हारे सामने कैसे कर लू? रतिवती के चेहरे पे शरारत भरी मुस्कान थी.
या यूँ कहिये रतिवती का स्वभाव ही ऐसा था की मर्दो को लालचती ही रहती थी,उसके बदन मे छोटी सी बात पे ही हवस जोर मार दिया करती थी.
बिल्लू जो उसकी मुस्कान को भाँप चूका था "तो क्या हुआ मालकिन यहाँ देखने वाला है ही कौन? और मुझसे क्या शर्माना मै तो पहले ही देख चूका हूँ "
रतिवती ये सुन झेम्प जाती है लेकिन कुछ बोलती नहीं है.सिर्फ मुस्कुरा देती है.
ये बिल्लू के लिए अमौखिक स्वीकृति थी.
रतिवती :- तुम बहुत शैतान हो बिल्लू, मै यही करती हूँ लेकिन तुम देखना मत.
बिल्लू :- तो फिर लालटेन कैसे दिखाऊंगा?
रतिवती :- हाथ इधर करना और मुँह पीछे
ऐसा बोल रतिवती अपनी साड़ी ऊपर उठाने लगती है जो की जाँघ तक खिंच गई थी.
बिल्लू का लालटेन पकड़ा हाथ कंपने लगा...लालटेन की पिली रौशनी मे चमकती तो मोटी सुडोल गोरी जाँघे उसके सामने थी.
हिलती रौशनी देख रतिवती को बिल्लू की हालत ले तरस आ रहा था,उसे एक अलग ही आनंद की अनुभूति हो रही थी बिल्लू को परेशान कर के.
रतिवती :- गर्दन घुमा लो बिल्लू.... रतिवती के बोलने से ऐसा लगा जैसे बताना चाहा रही हो की अब वो क्या करने जा रही है.
इधर बिल्लू ने तो जैसे सुना ही नहीं.
उसकी नजर बस किसी खजाने को तलाश रही थी की कब निकल के बाहर आये.
तभी एक लाल चड्डी रतिवती की जांघो पे प्रकट होती है..
कब रतिवती ने चड्डी नीचे की पता ही ना चला...अब साड़ी उठती चली गई ऐसे उठी जैसे किसी नाटक से पर्दा उठा हो धीरे से..बिलकुल कमर तक.
दो बड़े बड़े गांड रुपी चट्टान बिल्लू के सामने थी जिसके बीच एक लकीर जो दोनों के अलग होने का सबूत थी.
बिल्लू का हलक ही सुख गया....रतिवती गांड पूरी तरह पीछे किये धड़ाम से बैठ जाती है..
बिल्लू को जिस खजाने का इंतज़ार था वो खुल के बाहर आ चूका था.
आअह्ह्ह....बिल्लू के हलक से सिसकारी फुट पड़ती है जो की रतिवती ने इस सुनसान जंगल मे भली भांति सुनी थी.
रतिवती के चेहरे पे आनद की लकीर दौड़ जाती है,ना जाने उसे क्या आनंद मिल रहा था.
पिस्स्स्स......फुर्ररर.....करती एक मधुर संगीत की लहर गूंज उठती है.
ये मधुर संगीत बिल्लू के रोम रोम को खड़ा कर देता है,लंड तो कबका अपनी औकात मे आ गया था. ऐसा कामुक दृश्य देख लंड फटने पे आमदा था.
रतिवती लगातार तेज़ वेग से अपनी चुत से पानी की बौछार छोड़े जा रही थी...
तभी वो अपनी गर्दन पीछे घुमा देती है...एक अदा और मुस्कुराहट से बिल्लू की और देखती है.
बिल्लू ने तो ऐसा अदाकारी ऐसा सौंदर्य ऐसी गांड कभी देखि ही नहीं थी...उसके हाथ पैर कापने लगे. उसके लंड ने वीर्य की बौछार छोड़ दी. रतिवती के मादक बदन की गर्मी बिल्लू सहन ना कर पाया.
आआहहहह..... बिल्लू ऐसा चरम पे पंहुचा की उसके हाथ से धड़ाम से लालटेन छूट जाती है,
घुप अंधेरा छा जाता है... थोड़ी देर मे मधुर संगीत बंद हो गया था,
आंखे अँधेरे मे देखने की अभ्यस्त हो गई थी.
बिल्लू :- मालकिन मालकिन...माफ़ कीजियेगा वो लालटेन नहीं संभाल पाया.
रतिवती बिल्लू के नजदीक आ चुकी थी "क्या बिल्लू मै तो तुम्हे मजबूत मर्द समझी थी लेकिन तुम तो..."
बिल्लू:- वो....मालकिन..वो....आप हे ही इतनी सुन्दर की क्या करता.
बिल्लू शर्मिंदा हो गया.
चलिए मालकिन रात होने को आई हमें निकलना चाहिए.
रतिवती का बदन रोमांच और जीत से मचल रहा था.
बिल्लू भी उसके हुस्न का दीवाना हो चूका था,असलम तो था ही विष रूप मे.
ऊपर से नागमणि मिलने की खुशी.
इस वक़्त सबसे खुसनसीब रतिवती ही थी.
लेकिन हवस और लालच अच्छो अच्छो को ले डूबता है.
बने रहिये....कथा जारी है....
Awesome update dostअपडेट -59
भूतकाल
कामवती जब से नदी से लौटी थी तभी से कुछ खोई खोई थी बार बार उसके सामने नागेंद्र का सुन्दर चेहरा और वीरा का बलशाली शरीर आ जा रहा था.
उसकी आँखों से नींद ओझल थी, "कौन थे वो दोनों? कभी इस गांव मे देखा नहीं उन्हें.
कामवती नयी नयी जवान हुई थी उसके अंग मदकता बिखेरने लगे थे क्या बूढ़ा क्या जवान सबकी नजर ही उसके बदन पे टिकी रहती थी,झूम के जवानी आई थी कामवती की.
किशोर अवस्था से ही उसने काई बार आपने माँ बाप को सम्भोग करते देखा था,तब से ही उसकी इच्छाएं अंगड़ाईया लेने लगी थी,बाकि लड़कियों के मुकाबले किशोर अवस्था मे ही उसके स्तन निकल आये थे वो भी बड़े बड़े.
जब भी अपनी सखियों से सम्भोग के किस्से सुनती तो उसकी चुत पानी छोड़ देती, ऐसे ही किस्से सुनते देखते कामवती जवान हुई थी..नाम के मुताबिक वाकई मे काम देवी थी.
बदन ऐसा कैसा हुआ जैसे किसी सांचे मे ढला हो स्तन बड़े और भारी जैसी कोई दूध से लेबरेज़ हो.
गांड बाहर को निकली हुई जब चलती तो भूकंप पैदा कर देती.उस पर पतली इठलाती कमर.
गांव म जवान लड़के तो उसे देखने भर से झड़ जाया करते थे.
कामवती हमेशा हवस से ही भरी रहती थी फिर भी कोई ऐसा ना मिला जो उसके कोमार्य को भंग करता बल्कि यूँ कहे की कभी कामवती ने किसी को आपने लायक समझा ही नहीं.
परन्तु आज वीरा और नागेंद्र दो ऐसे मर्द थे जिन्होंने उसकी नींद उड़ा दी थी.
कामवती की पानी छोड़ती चुत इस बात का सबूत रही की उसे वीरा और नागेंद्र मे दिलचस्पी थी कब वचुत रागढ़ते नींद आ गई पता ही नहीं चला.
वही दूसरी तरफ नागेंद्र और वीरा दोनों ही बेचैन थे कामवती का भीगा जिस्म उन्हें सोने नहीं दे रहा था इतनी लम्बी और नीरस जिंदगी मे पहली बार उनको जीने का कोई मकसद दिखा था.
इसी के लिए जीना है....उस स्त्री को पाना ही है.
वर्तमान
सुबह हो चली थी.
बिल्लू और रतिवती विष रूप पहुंच गए थे.
माँ...माँ....कामवती भागती हुई रतिवती के गले लग गई.
"मेरी बच्ची कैसी है "? रतिवती ने उसे गले से लगा लिया.
असलम ने कामवती की जान बचा ली थी ये सुन रतिवती असलम की अहसान मंद हो गई.
और ये अहसान कैसे उतरना है वो अच्छे से जानती थी.
मेल मिलाप चलता रहा..
माँ बेटी दुनिया भर के बातो मे लगे रहे.
इधर ठाकुर भूरी काकी के लिए चिंतित था.
बिल्लू :- मालिक कल रात मैंने भूरी काकी को देखा था?
ठाकुर :- कहाँ देखा था? रो साथ क्यों नहीं लाया?
बिल्लू ने सारा किस्सा कह सुनाया.
ठाकुर :- हरामखोर कल दारू तो नहीं पी थी ना तूने?
भूरी काकी जंगल मे क्या करेगी?
बिल्लू :- मालिक सच कह रहा हूँ वो औरत भूरी काकी ही थी.
ठाकुर :- ऐसा है तो चलो... असलम आप घर पे ही रहे
मै जंगल हो के आता हूँ.
बिल्लू कालू रामु और ठाकुर चारो घोड़ा गाड़ी पे सवार हो के जंगल की तरफ चल दिए.
पीछे हवेली मे सिर्फ रतिवती,कामवती और डॉ.असलम ही बचे थे.
धुप तेज़ पढ़ रही थी....
आअह्ह्ह.....ये धुप किसी को बेचैन कर रही थी, उम्म्म्म.....भूरी सर पे हाथ लगाए बैठने की कोशिश करने लगी.
की तभी उसके कानो मे कुछ आवाज़ सुनाई पड़ती है.
सुम्भा सुम्भा...भुजंग...मम्बा..
भूरी ने सर उठा के देखा तो डर के मारे उसकी सांसे रुक गई...उसे ध्यान आया वो सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट मे है.
उसकी साड़ी एक काले कलूटे जंगली आदमी के हाथो मे है जिसे वो सूंघ रहा था...
भूरी को कल रात की घटना याद आई उसे नागमणि का ध्यान आता है जो की उसके हाथ मे नहीं थी.
भागते वक़्त उसकी साड़ी खुल गई थी और जब गिरी तो उसके हाथ से मणि छूट गई थी.
हे भगवान ये क्या हुआ?
तभी उस जंगली की नजर भूरी पे पड़ जाती है.
सरदार....मादा मादा....सिंबाला.
भूरी उसकी आवाज़ सुनते ही चीख पड़ती है हे भगवान....ये तो नरभक्षी काबिले मुर्दाबाड़ा के लोग है.
भूरी पूरी ताकत लगा के भाग खड़ी होती है.
उसकी मौत उसके पीछे पड़ी रही....
पांच आदमी उसकी पीछे भाग रहे थे उनका सरदार वही हाथ मे साड़ी लिए उसे सूंघ रहा था.
ओहहज....मादा..भुजंग खुसा.
अपनी भाषा मे वो भूरी की मादक खुसबू को सूंघ आनंदित अवस्था मे बोल रहा था.
ये है सरदार भुजंग
नरभक्षी काबिले मुर्दाबाड़ा का सरदार
इस काबिले मे कोई औरत नहीं है सिर्फ मर्द है,क्यूंकि इस काबिले के लोग औरतों का मांस खाना ही पसंद करते है.
पहले जी भर के स्त्री को चोदते इतना चोदते की चोद चोद के ही मार देते उसके बाद उस स्त्री का मांस को चाव से खाते.
इस काबिले के खास बात ही यही थी की सबके लंड हद से ज्यादा लम्बे मोटे और काले होते है, जिनमे से अजीब सी मादक गंध निकलती थी जो किसी स्त्री के नाक मे पड़ गई तो तो उसका बदन चुदने को मचल उठता था, वो स्त्री चुदे बिना जा नहीं सकती थी,उसे सिर्फ लंड ही दिखता था,और जो स्त्री एक बार चुद गई वो जिन्दा नहीं बचती थी..
जब तक स्त्री सख्तीलित ना होती ये उसे मारना पाप समझते थे, जहाँ स्त्री सख्तीलित हुई समझो वहा उसकी मौत आई...तड़पती मौत...
और आज इसी तड़पती मौत से बच के भूरी भाग रही थी जीतना हो सकता था उतना तेज़ भाग रही थी.
आअह्ह्ह....हम्म्म्म. हममममम....बचाओ बचाओ.
अब भला मौत से कौन बच पाया है.
मौत से बचने के लिए तो शहर मे सुलेमान भी भाग रहा था.
"रुक जा साले आज तेरी मौत आई है "
लेकिन सुलेमान भागे जा रहा था भागे जा रहा था...
की तभी धड़ाम...एक घुसा उसके मुँह पे पड़ता है.
शाबाश बिल्ला....साला हाथ ही नहीं आ रहा था.
बिल्ला :- हाथ कैसे नहीं आता रंगा ये चूहा, आखिर यही तो दरोगा और उसके परिवार की जानकारी देगा. हाहाहाहाहा....
रंगा चाकू निकल सुलेमान की छाती पे बैठ गया..
सुलेमान :-मम्मममममम...मै...मै ..कुछ नहीं जनता मै तो मालकिन के कहने पे सब्जी लेने आया था.
रंगा :- अभी हमने पूछा ही कहाँ है?
बिल्ला ने पैर उठा के सुलेमान के टांगो के बीच दे मारा... साले जो पूछा जाये सब कुछ बता वरना हिजड़ा बना दूंगा.
सुलेमान दर्द से कराह उठा उसकी घिघी बंध गई थी,डर साफ उसके चेहरे आवाज झलक रहा था.
सुलेमान :.-.मै...मै....बताता हूँ बताता हूँ.
रंगा :- तो बता दरोगा घर कब आएगा? उसकी औरत कैसे है? दिखती कैसी है?
सुलेमान तोते की तरह सब बताता चला गया. ये भी बता दिया की दरोगा शाम तक आ जायेगा.
बिल्ला :- हाहाहाहाहा...... साला हमें तो उम्मीद ही नहीं थी इस बात की ये दरोगा का नौकर उसकी बीवी को पेलता होगा.
रंगा :- बड़ी आग लगती है दरोगा की बीवी मे?
बिल्ला :- आज रात दरोगा के सामने ही उसकी बीवी की आग को ठंडा करेंगे.
हाहाहाबाबा.....भयानक हसीं गूंज उठती है.
रंगा :- चल बे चूजे ये थेला पकड़ और घर निकल
और अपनी रांड मालकिन या दरोगा को कुछ बोला तो जान से जायेगा.
समझा..... तैयारी कर रात को हमारे स्वागत की.
तो अब क्या होगा भूरी उर्फ़ कामरूपा का?
क्या उलजुलूल कोई मदद करेगा?
तैयार रहे रंगा बिल्ला के स्वागत के लिए.
बने रहिये.....कथा जारी है
Laajwaab update mitrअपडेट -60
सूरज सर पे आ गया था
विष रूप हवेली मे असलम सुबह से ही बैचैन था जबसे उसने रतिवती को देखा था उसका लंड उठ उठ के गिर रहा था परन्तु अकेले मौका नहीं मिल रहा था उसे.
रतिवती अपनी बेटी कामवती के साथ व्यस्त थी.
असलम पे तो खुमारी छाई हुई थी एक तो कल जो उसने कामवती की गांड चूसी थी उसका ही खुमार नहीं उतरा था और आज सुबह सुबह रतिवती के कामुक बदन के दर्शन कर उसके जी को चैन नहीं मिल रहा था.
काफ़ी इंतज़ार करने के बाद असलम आपने कमरे मे चल देता है और जाते ही पूर्ण नंगा हो जाता है उस से लंड की गर्मी झेली नहीं जा रही थी.
वो तुरंत अपना बड़ा लंड हाथ मे पकड़ हिलाने लगता है उसे कुछ राहत मिलती है...
फच फच फच....करता असलम लंड मसले जा रहा था.
"क्या असलम जी क्यों खुद को तकलीफ देते है " असलम आवाज़ सुन के चौंक गया पीछे मूड के देखा तो कामसुंदरी रतिवती दरवाजे पे अपना पल्लू गिराए खड़ी थी,सुन्दर गोल स्तन पुरे बाहर को छलक रहे थे.
दोनों हाथ सर के पीछे किये आपने स्तन को और ज्यादा बाहर को निकाल लेती है, साक्षात् काम देवी असलम के दरवाजे खड़ी थी.
रतिवती :- असलम जी आपने इतने अहसान किये है हम पे, मेरा फर्ज़ बनता है की इस अहसान को उतार दू..
ऐसा बोल रतिवती आगे बढ़ जाती है और ठीक असलम के सामने घुटने टिका देती है असलम का भयानक लंड बिलकुल रतिवती के होंठो के सामने झटके मार रहा था.
रतिवती की यही अदा जो जान ले लेती थी मर्दो की ऊपर से असलम प्यासा मर्द था.
रतिवती अपनी जीभ निकल पुरे लंड को सुपडे से ले कर टट्टो तक एक बार मे ही चाट के गिला कर देती है.
आआहहहहह.....रतिवती तुम कमाल की औरत हो हमेशा गरम ही रहती हो.
रतिवती :- ऐसा लंड हो तो कौन गरम नहीं होगा डॉ.असलम ऊपर से आपके अहसान है मुझपे आपने मेरी बेटी की जान बचाई है...
असलम बेटी सुनते ही उसके सामने कामवती की मोटी गद्दाराई खूबसूरत गांड आ जाती है,वो एक झटके मे ही अपना पूरा लंड रतिवती के हलक मे डाल देता है,जबकि उसके ख्यालो मे वो अपना लंड कामवती की गांड मे डाल चूका था.
उम्म्म......उम्म्म्म....आअह्ह्ह....असलम जी आराम से भागी थोड़ी जा रही हूँ.
लेकिन असलम पे कोई फर्क नहीं पड़ता वो अब तक धचा धच धचा धच..रतिवती का मुँह चोदे जा रहा था.
हमेशा रतिवती ही असलम पे हावी रहती थी परन्तु कामवती के मादक जिस्म ने उसके अंदर का हैवान जगा दिया था
रतिवती :- आज असलम को हो क्या गया है? कहाँ से सिख गया ये?
खेर जहाँ से सीखा मुझे जल्द ही करना होगा.
कामवती को पेशाब का बहाना कर के आई थी मै...
रतिवती खूब मन लगा के जीतना हो सकता था उतना लंड अंदर ले रही थी आखिर काफ़ी दिनों बाद उसे लंड मिला था.
थूक की धार होंठो से लग लग के नीचे गिर रही थी.
असलम :- आहहहह...रतिवती कितना अच्छा चूसती हो तुम जान ही निकाल लेती हो.
रतिवती बिना बोले चपा चप लंड निगले जा रही थी कमरा पच पच....गऊऊऊऊऊ....उफ्फ्फ्फ़...की आवाज़ से गूंज रहा था.
रतिवती को गए काफ़ी वक़्त हो गया था कामवती बैठे बैठे बोर हो रही थी
"माँ को गए काफ़ी टाइम हो चला है, देखती हूँ चल के "
कामवती आपने कमरे से निकल बाहर को आ जाती है, अभी गुसालखाने की और जा ही रही थी की उसे कुछ आहट सुनाई देती है,सिसकने के आवाज़ जैसा था कुछ.
"ये कैसी आवाज़ है "?
कामवती आवाज़ की दिशा मे चल देती है और असलम के कमरे के बाहर ठिठक जाती है.
"ये आवाज़ तो अंदर से आ रही है कही डॉ.असलम को कोई तकलीफ तो नहीं "
कामवती दरवाजा ठेल के अंदर जाने को ही थी की उसकी नजर दरवाजे की दरार से अंदर पड़ती है
वो देखते ही दंग रह जाती है, उसकी माँ रतिवती साड़ी उठाये घोड़ी बानी हुई थी पीछे असलम गांड मे मुँह धसाये मुँह हिला रहा था.
"हे भगवान ये डॉ.असलम क्या कर रहे है?" कही मम्मी को भी तो सांप ने नहीं काट लिया.
बेचारी भोली भली कामवती
वो काफ़ी डर गई थी अंदर जाने को ही थी की.
रतिवती :- असलम अब देर मत करो वक़्त नहीं है जल्दी से मेरी प्यास बुझा दो,फाड़ दो मेरी चुत,चोदो मुझे असलम
कामवती ये शब्द सुन के दंग रह जाती है उसने होने गांव मे लड़को को गली देते सुना था की जैसे लंड चोदो...
"तो...तो...क्या मेरी माँ असलम से चुदवा रही है"
कामवती बदहवास थी वो तो चुदाई से परिचित ही नहीं थी फिर एकदम से उसके सामने ऐसा दृश्य आ गया उसकी सांसे उखाड़ने लगी..
अंदर असलम गांड से मुँह हटा लेता है पूरा मुँह थूक और चुत रस से सना हुआ था.जैसे जी असलम खड़ा होता है कामवती की नजर सीधा असलम के हाहाकारी लंड पे पड़ती है.
उसके मुँह से चीख सी निकल जाती
है.....
आआहहहह..माँ मममम...... मुँह पे हाथ रखे कामवती आपने कमरे की और भागती है.उसके आँखों के सामने असलम का लंड झूल रहा था
"हे भगवान ये सपना है ऐसा नहीं हो सकता ठाकुर साहेब का तो नहीं है "
अंदर कामवती के चिल्लाने की आवाज़ सुन असलम और रतिवती की सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती है.
असलम :- ये कैसे आवाज़ थी?
रतिवती तुरंत साड़ी नीचे किये बाहर की और दौड़ लगा देती है.
क्या हुआ? क्या हुआ बेटी तुम चिल्लाई क्यों?
कामवती कही खोई हुई थी
रतिवती को डर लगने लगा कही कामवती ने कामक्रीड़ा तो नहीं देख ली?
"नहीं माँ...वो..वो...चूहा देख लिया था भयंकर चूहा"
ना जाने किस कसमकास ने कामवती को सच्चाई बयान करने से रोक लिया था.
रतिवती कामवती को गले लगा लेती है.
कामवती के जहान मे हज़ारो सवाल थे.उसके मन मे कुछ तो पनप रहा था...वो लगातार कुछ सिख रही थी जैसे कुछ याद आ रहा हो.
रतिवती अभी भी प्यासी थी,उसकी चुत रो रही थी लंड पास हो के भी ना मिला.
जंगल मे
ठाकुर और कालू बिल्लू रामु जंगल का चप्पा चप्पा छान रहे थे भूरी कही नहीं थी.
मालिक...मालिक.....ये देखिये रामु को एक लहंगा मिलता है.
जिसे वो खूब पहचानता था की भूरी काकी का है.
मालिक ये देखिये भूरी काकी का लेहंगा.?
ठाकुर :- हरामखोर तुझे कैसे पता की ये काकी का लहंगा है.
रामु की घिघी बंध गई थी उसे लगा की फस गया अब, तभी
"मालिक घर मे एक ही तो औरत है उनके हि कपड़े आंगन मे सुखते है तो रंग याद है" बिल्लू बात को संभाल लेता है.
ठाकुर :- अच्छा ढूंढो आस पास.
ठाकुर की दौड़ जारी थी..
परन्तु..भूरी अपनी दौड़ हार रही थी उसकी सांसे फूल रही थी "अब और नहीं अब नहीं....भाग सकती हमफ़्फ़्फ़...हमफ़्फ़्फ़...
धड़ाम.....एक हाथ भूरी के पीठ पे पड़ता है और भूरी लुढ़क जाती है उसकी आंखे थकान और ठोंकर से बोझिल होती चली जाती है.
वही शहर मे आज कालावती खुब रच के तैयार हुई थी बिंदी,चूड़ी,मंगलसूत्र,सिंदूर सब कुछ बिलकुल अप्सरा लग रही थी
ठक ठक ठक.....कलावती की खुशी का ठिकाना नहीं रहता,
लगता है दरोगा साहेब आ गए.
कलावती भागती हुई स्तन उछालती दरवाजा खोलने दौड़ती है...
और धड़कते दिल के साथ दरवाजा खोल देती है आखिर सालो बाद आपने पति को देखने वाली थी.
ढाड़ से दरवाजा खुलता है " आइये दरोगा सा.....सा....कौन हो तुम?
कलावती के होश उड़ जाते है दरवाजे पे दो भयानक किस्म के आदमी खड़े थे,घनी मुछे चौड़ी छाती,कंधे पे राइफल.
हाहाहाहा.....तू तो वाकई सुन्दर है रे क्यों बिल्ला?
हाँ भाई रंगा..
क्या दरोगा खुद को और कलावती को बचा लेगा?
भूरी का क्या होगा?
कामवती अपना पिछला जन्म याद कर पायेगी?
बने रहिये कथा जारी है...
Jabardast update dostअपडेट 61
बचाओ....बचाओ...मदद करो हुम्म्मफ्फफ्फ्फ़....हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़..
ठाकुर :- अरे ये कौन चिल्ला रहा है कोई स्त्री लगती है...
बिल्लू तांगा रोको
बचाओ बचाओ.....करती एक लड़की धड़ाम से ठाकुर के तांगे के आगे रास्ते पे बेदम सी गिर पडी.
ठाकुर जो को भूरी को खूब ढूंढने के बाद हवेली वापस लौट रहे थे.
परन्तु जैसे ही थोड़ा आगे बड़े ही थे की..."बिल्लू जा के देखो कौन है?"
बिल्लू और रामु अपना लठ संभाले नीचे उतरते है और उस स्त्री के पास पहुंचते है जो की नीचे गिरी हांफ रही थी सांसे तेज़ चल रही थी..
मालिक जवान लड़की है लगता है गिरने से बेहोश हो गई है
"अच्छा " बोल ठाकुर पानी का केन लिए नीचे उतरता है.
लड़की का मुँह पल्लू से नाक तक ढाका हुआ था सिर्फ सुर्ख लाल होंठ ही नजर आ रहे थे.होंठो के नीचे सुराहीदार पतली गर्दन.
गर्दन के नीचे बढ़ते ही उन्नत छातिया,जैसे कोई पहाड़ रख दिया हो,स्त्री के लेटे होने की वजह से उसके आधे से ज्यादा स्तन ब्लाउज से बाहर को आ रहे थे जिसे बिल्लू और रामु ललचाई नजरों से देख रहे थे.
लालच तो ठाकुर के मन मे भी उत्पन्न होने लगा ऐसा हुस्न देख के.
ब्लाउज निहायती छोटा जान पड़ता था रंग बिरंगा सा.
ब्लाउज से नीचे गोरा सपाट पेट जिसपे नाभि किसी हिरे की तरह चमक रही थी.
नाभि के नीचे जाते जाते रास्ता चौड़ा होने लगा गांड के आस पास का इलाका फैला हुआ था जान पड़ता था लड़की बड़ी गांड की मालकिन है.
जाँघ ऐसी की हाथ रखो तो हाथ फिसल जाये.
लड़की ने एक रंगबिरंगा लहंगा पहना था जो सिर्फ घुटनो तक ही था परन्तु उसे नीचे गिरे होने से लहंगा जाँघ तक चढ़ा हुआ था.
ठाकुर साहेब तो गोरी मासल जाँघे देख जडवत हो गए.
"मालिक...पानी दीजिये "
मालिक....मालिक....बिल्लू ने वापस आवाज़ लगाई.
ठाकुर :- आ....हाँ हैं...हाँ...ये लो पानी.
बिल्लू ने उसके होंठो को जैसे ही पानी से छुवाया..
मममम...आम्म.....लड़की की आंखे खुल जाती है.
उसके सामने तीन आदमी खड़े थे,लड़की डर जाती है
तुरंत उठ बैठती है खुद को समेटने लगती है.
ठाकुर :- डरिये मत आप..मै यहाँ का ठाकुर हूँ.
आप बताये इस कदर क्यों भाग रही थी कौन हो तुम?
स्त्री :- मै...मै....विष रूप के आगे वाले गांव रूप गंज जा रही थी
मेरे पति वही काम करते है.
लेकिन जंगल पार करते करते शाम हो गई और पीछे जंगली कुत्ते पड़ गए थे उनसे बचने के लिए भागी थी की यहाँ गिर पडी
आपका सुक्रिया ठाकुर साहेब आपने बचाया,उस स्त्री के होंठो पे एक प्यारी से मुस्कान तैर गई.
ये मुस्कान सीधा ठाकुर के कलेजे पे लगी.
ठाकुर :- रात होने वाली है जंगल मे खतरा है ऐसा करे आप तांगे पे आ जाये हम विष रूप ही जा रहे है आपको आगे रूपगंज छुड़वा देंगे
लड़की शर्माती लाजती तांगे की और बढ़ गई..पीछे ठाकुर बिल्लू और रामु उस मादक चाल को ही देखते रह गए.
बड़ी मोटी गांड छोटे से लहंगे मे हिचकोले खा रही थी.
ठाकुर :- कभी लड़की नहीं देखि क्या हरामखोरो
रात होने को आई है जल्दी चलो हवेली...
सवारी निकल पड़ती है.
पीछे खड़ा शख्श धूल उड़ाते तांगे को देखता रह जाता है
"अल्लाह का शुक्र है रुखसाना की पहली योजना सफल हुई"
आगे भी अल्लाह करम करे बोलता मौलवी भी पलट के चल पड़ता है.
हर जगह बिसात बिछ चुकी है,हर खिलाडी अपना खेल खेल रहा है.
देखते है कौन हारेगा,कौन जीतेगा...
कथा जारी है.....
Behtreen update dostचैप्टर -4 कामवती का पुनः जन्म अपडेट -62
शाम हो चुकी थी
दरोगा वीर प्रताप की खूबसूरत बीवी कलावती दो हैवानो के बीच बैठी कसमसा रही थी.
रंगा :- अरे यार बिल्ला ये दरोगा तो अभी तक आया ही नहीं? मुझसे तो रहा ही नहीं जा रहा इसकी खूबसूरती देख के
ऐसा बोल रंगा कालावती की जांघो पर साड़ी के ऊपर से ही हाथ फेर देता है.
बिल्ला :- सब्र कर ले भाई सब्र का फल मीठा होता है बिल्ला भी भरपूर निगाह से कलावती के कामुक बदन को घूरता है.
कालावती बेचारी डरी साहमी सी दोनो के बीच मुरझाई सी बैठी थी.कहाँ वो आपने पति के लिए खूब रच के तैयार हुई थी और कहाँ ये दी शैतान आ धमके थे.
कलावती :- आप लोग कौन है?कि दुश्मनी है मुझसे?
ऐसे मत करो वो रंगा का हाथ दूर छटक देती है.
रंगा :- देखो तो छिनाल को कीटंक संस्कारी बन रही है.
बिल्ला :- हम कौन है वो तो तेरा पति है बताएगा? आने दे उसे फिर तेरे संस्कार भी देखते है.
कालावती का बदन किसी अनजाने डर से कांप उठा.
की तभी......
ठक ठक ठक......."लगता है आ गया हमारा शिकार "
बिल्ला :- जा रंडी जा के दरवाजा खोल और कोई भी चालाकी दिखाई तो ये देख...
बिल्ला पीछे से उसकी पीठ पे बन्दुक सटा देता है
"तू मेरे निशाने पे ही रहेगी चुपचाप दरवाजा खोल और दरोगा को अंदर आने दे.
मरती क्या ना करती कालावती चुपचाप अपनी गांड मटकाती दरवाजे की और बढ़ चली.
चरररर...की आवाज़ के साथ दरवाज़ा खुलता चला गया
सामने दरोगा ही खड़ा था उसके सर पे मुसीबत का पहाड़ रहा फिर भी अपनी खूबसूरत बीवी का चेहरा देखते ही उसकी सारी परेशानी दूर हो जाती है "कितनी सुंदर है मेरी बीवी "
कलावती :- आइये अंदर....किसी मशीन की तरह बोल देती है.
अंदर आने ही आया हूँ मेरी जान, कमाल की सुन्दर लग रही हो क्या बात है?
दरोगा अंदर आ जाता है और पीछे कलावती दरवाजा बंद कर देती है.
दरोगा जैसे ही आगे बढ़ता है उसके होश उड़ जाते है
"तुम...तुम...तुम दोनों यहाँ? दरोगा और कुछ बोल पाने की स्थति ने नहीं था उसको पुलिस की नौकरी से निकाल दिया गया था तो ना उसके साथ हवलदार था ना कोई हथियार
वो पलट के अपनी बीवी की तरफ देखता है कलावती अपना सर झुकाये खड़ी थी.
रंगा :- तेरी छिनाल बीवी हमारे लिए इतनी सज धज के तैयार हुई है बे पॉलिसीये.
दरोगा :- जबान संभाल के बात कर हरामी तेरा गला दबा दूंगा मै.
दरोगा रंगा को मरने आगे बढ़ता है की धड़ाम....बिल्ला का प्रचण्ड घुसा दरोगा के होंठ से खून की धार निकाल देता है...
दरोगा चित जमीन पे फ़ैल जाता है "देखा दरोगा इसी हाथ पे गोली मारी थी ना तूने,देख इस हाथ की ताकत वो अपना हाथ उठता ही है की....नाहीईई....कलावती भाग के नीचे पडे दरोगा पे छा जाती है.
कालावती के नीचे झुकने से उसका पल्लू पूरा हट जाता है और दो बड़े बड़े दूध से भरे गुब्बारे बाहर को छलक पड़ते है.
कलावती के बड़े स्तन उसकी ब्लाउज मे समय ही नहीं पा रहे थे ऊपर से उसके स्तन दरोगा की छाती से लग के सम्पूर्ण रूप से रंगा बिल्ला के सामने उजागर हो रहे थे.
बिल्ला का हाथ वही रूक जाता है...वो कलावती की सुंदरता मे ही डूब जाता है.
बिल्ला :- बड़ी सुन्दर माल है रे तेरी बीवी दरोगा?
दरोगा :- ज़...ज़....जबान संभाल......के...
कलावती असहज हो जाती है उसके पति के सामने ही कोई उसकी गंदे तरीके से तारीफ कर रहा था. तुरंत आपने पल्लू को संभाल खड़ी हो जाती है किसी अनहोनी की आशंका से उसका दिल धाड़ धाड़ कर रहा था.
रंगा :- याद है दरोगा तूने इसी गाल पे थप्पड़ मारा था, और मैंने कहाँ था मेरे गाल पे पड़ा हर थप्पड़ तेरी बीवी की गांड पे पड़ेगा.
हाहाहाहाहा.....
दरोगा का बदन रंगा की धमकी से सिहर उठता है.
दरोगा :- कमीनो मुझे मारो मुझसे बदला लो मेरी बीवी को जाने दो उसकी कोई गलती नहीं है.
बिल्ला :- जाने देंगे जल्दी क्या है...
सुलेमान...ओह सुलेमान...इधर आ देख तेरे साहेब आये है.
सुलेमान बाहर आ गर्दन झुकाये खड़ा था.
बिल्ला :- क्यों बे पिल्लै आज मालकिन की सेवा नहीं करेगा?
कलावती बिल्ला के मुँह से ऐसी बात सुन चौंक के बिल्ला रंगा की ओर देखने लगती है उसकी आशंका गलत नहीं थी उसका राज उसके पति के सामने खुलने जा रहा था.
आंखे डबडबा आई थी...गर्दन हलके इशारे मे ना मे हिल गई.
रंगा :- क्यों छिनाल आज डर लग रहा है, हमें सुलेमान ने सब बता दिया है
तू बहुत गरम औरत है आज तेरी और दरोगा की गर्मी भरपूर उतरेगी.
यहाँ तो गर्मी उतरने का इंतेज़ाम हो गया था
परन्तु विष रूप हवेली मे रतिवती आपने बदन की गर्मी से परेशान हो रही थी.
असलम लंड डालता उस से पहले ही कामवती आ गई थी.
ठाकुर और बिल्लू रामु कालू हवेली आ गए थे.
कामवती सो चुकी थी, रात गहराने लगी थी.
ठाकुर :- समधन जी ये ये ये....अरे हमने तो तुम्हारा नाम ही नहीं पूछा.
ठाकुर के पीछे घूंघट मे खड़ी स्त्री की और मुख़ातिब हुए.
रुखसाना :- जी...वो मेरा नाम चमेली है पास के ही जंगल से लगे गांव मे रहते है.
ठाकुर उसकी मधुर आवाज़ से प्रभावित था.
रुखसाना की नजर रतिवती पे पड़ती है "अरे ये तो रतिवती चाची है "
मुझे सावधान रहना होगा की मेरी शक्ल कोई ना देख ले.
रतिवती :- तुमने ये पल्लू क्यों डाला हुआ है? यहाँ किस से शर्म?
रुखसाना :- वो वो...मालकिन मेरी नयी नयी शादी हुई है और हमारे यहाँ रीवाज के की शादी के एक साल तक पति के अलावा किसी को शक्ल नहीं दिखाते.
ठाकुर :- बड़ा ही अजीब रिवाज़ है. खेर कोई बात नहीं तुम खाना खो लो फिर आराम कर लो मेरे आदमी कल तुम्हे रूप गंज छोड़ देंगे.
रतिवती :- ठाकुर साहेब आप भी थक गए होंगे खाना कहाँ ले,कामवती मेरे कमरे मे ही सो गई है.
ठाकुर :- ठीक है आज आप माँ बेटी बात करे हम अकेले ही सो लेंगे.
रुखसाना को भूरी काकी का कमरा दे दिया गया.
रतिवती कमरे मे तो आ गई परन्तु दिन से ही उसके बदन की आग चैन लेने नहीं दे रही थी.
"असलम ये क्या किया तुमने अधूरा ही छोड़ दिया,अब क्या करू मै कामवती भी यही सो रही है वरना चुत रगड़ ही लेती थोड़ा.
जैसे जैसे रात बढ़ रही थी रतिवती की चुत उतना ही कुलबुला रही थी,एक अजीब सी खुजली उसकी चुत मे चल रही थी रह रह के वो अपनी जांघो को भींच ले रही थी.
"क्या करू मै अब बर्दास्त नहीं हो रहा "
रतिवती बाहर को चल देती है की कम से कम सुनसान जगह देख ऊँगली से ही गर्मी शांत कर लेगी.
जब बदन मे हवस की गर्माहट हो तो इंसान वक़्त जगह नहीं देखता.
दिखती है तो सिर्फ हवस.
यही हाल आज ठाकुर ज़ालिम सिंह का भी था उसकी आँखों मे नींद नहीं थी बार बार उसके सामने चमेली का कसा हुआ गोरा कामुक बदन आ जा रहा था.
आज दिनभर की थकान से चूर ठाकुर शराब की बोत्तल गटक रहा था.
परन्तु शराब का नशा उसकी हवास को नयी ऊर्जा दे रहा था,चमेली का कामुक बदन उसके नशे को दुगना कर दे रहा था.
आज कामवती भी नहीं दी उनका छोटा सा लंड उछल कूद कर रहा था.
पाजामे के ऊपर से ही वो आपने लंड को मसले का रहे थे
की तभी.. ठाक ठक ठक....ठाकुर साहेब
ठाकुर चौंक जाता है की कौन आया इतनी रात?
ठाकुर अपना कुर्ता नीचे किये दरवाजा खोल देते है सामने ही चमेली थी.
आज ठाकुर की किस्मत जोरदार थी जिसको सोच रहे थे वही कामुक बदन सामने था.
चमेली :- ठाकुर साहेब....वो..वो..हमें डर लग रहा है बार बार जंगली कुत्ते सामने आ जा रहे है.
रुखसाना बोलते वक़्त हांफ रही थी उसकी छाती फूल पिचक रही थी पेट और सीने पे पसीने की बुँदे थी.जैसे वाकई डर गई हो.
ठाकुर तो उसके कामुक पसीने से चमकते बदन को घूरता ही रहा जाता है
उसके मन मे चोर पनपने लगता है.
कामवती जैसी सुन्दर बीवी के होते हुए भी उसके मन मे लालच घर करने लगा.
चाहता तो चमेली को रतिवती के कमरे मे भी भेज देता,परन्तु हाय रे हवस
"अंदर आ जाओ चमेली हम है तो कैसा डरना "
रुखसाना अंदर आ जाती है घूँघट के अंदर उसके चेहरे पे कातिल मुस्कान थी.
"योजना का दूसरा पड़ाव भी पार "
धड़ाम...ठाकुर दरवाजा बंद कर देता है उसकी आँखों मे लाल डोरे साफ दिख रहे थे.
रात जवान हो रही थी. हवा मे हवस घुल रही थी.
देखना है की कालावती का क्या होगा?
शायद ही दरोगा जिन्दा बचे?
रतिवती अपनी हवास मिटाने के लिए क्या कदम उठाती है.
बने रहिये.... कथा जारी है...
Hasheen update bhaiअपडेट -63
कामरूपा की हवस
काबिला मुर्दाबाड़ा
भूरी काकी को होश आ रहा था...उसका सर अभी भी चकरा रहा था,सर पे हाथ रखे वो धीरे धीरे आंखे खोलती है.
उम्मम्मम.....उसकी आंखे चारो और जलती मसाल से चकमका रही थी वो किसी ऊँचे आसान पे बैठी थी.
20-25 काले लम्बे चौड़े राक्षस जैसे दिखने वाले आदमी अर्धनग्न अवस्था मे उसके सामने बैठे हो..
भुजंगा....भुजंगा...सब एक साथ चिल्लाने लगते है जैसे की इसी के उठने का इंतज़ार हो रहा था.भूरी सिर्फ ब्लाउज पेटीकोट मे बैठी थी उसे अपने कंधे पे कुछ भारी भारी सा अहसास होता है जैसे किसो ने कोई भारी सामान रख दिया हो.
भूरी हिम्मत कर अपने कंधे पे रखी वस्तु को महसूस करने की कोशिश करती है.
उसके हाथ मे कुछ लम्बा सा था,पीलपीला सा,भूरी हाथ और आगे बढ़ाती है तो वो चीज उसे कुछ लम्बी होती महसूस होती है जो की उसके हाथ मे नहीं समा रहा था.
जिज्ञासावस भूरी अपनी गर्दन घुमाती है और देखते ही चीख पड़ती है..
आआआहहहहह..........हे माआआआआआ....
पूरा काबिला ठहकों से गूंज उठता है, भूरी जोर से आंखे भींच लेती है.
सरदार भुजंग :- आंखे खोलो स्त्री ये डरने की चीज नहीं है.
भूरी डरती हुई आंखे खोलती है वो सरदार भुजंग के पैरो के बीच बैठी थी और भुजंग का महाकाय काला लम्बा मोटा लंड भूरी के कंधे पे झूल रहा था.
भूरी ने अपने 1000 वर्ष के जीवनकाल मे ऐसा भयानक लंड नहीं देखा था.उसकी आँखों मे डर साफ देखा जा सकता था.
भूरी मे उठने की हिम्मत नहीं थी उसे डर भी लग रहा था परन्तु भुजंग का लिंग उसे संसार की सबसे खूबसूरत चीज मालूम पड़ रहा था,उसके लंड से एक अजीब भीनी भीनी गंध आ रही थी,
इस गंध मे कुछ खास था,ये गंध उसे संमोहीत कर रही थी.
"नहीं नहीं....ये मुझे क्या हो रहा है मैंने सुना है इस काबिले के बारे मे ये लोग बिना मुझे सख्तलित किये मेरा भोजन नहीं कर सकते,परन्तु इनके लिंग से निकलती महक कुछ अलग अहसास करा रही है"
भूरी गहरी सोच मे थी की एक भारी आवाज़ से उसका ध्यान भंग होता है
भुजंग :- क्या नाम है रे तेरा?
भूरी:-भ....भ....भू....कामरूपा
भुजंग :- नाम भी तेरे बदन जैसा ही कामुक है तुझे चोद के खाने का मजा ही आ जायेगा
तेरे गद्दाराये बदन से पूरा काबिला मौज करेगा.
सेनापति मरखप
मरखप :- जी सरदार
भुजंग :- ले जा इसे डाल कैद खाने मे,कल पुरे विधि विधान से इसकी बोटी बोटी नोची जाएगी.
भूरी बुरी तरह बोखला गई थी उसे बचने की कोई सूरत नहीं दिख रही थी, जवान होने के लालच ने उसे आज मौत के कगार पे खड़ा कर दिया था.
आज पहले जितनी शक्तिशाली होती तो ऐसी नौबत नहीं आती.
आअह्ह्हम....भूरी के मुँह से चीख निकाल गई मरखप ने उसके बाल पकड़ उठा लिया था और लगभग घसीटता हुआ ले चला.
कल का दिन भूरी काकी उर्फ़ कामरूपा का आखिरी दिन साबित होने वाला था,उसके जैसी कामुक हवस से भरी औरत आखिर कब तक खुद को झड़ने से रोक सकती थी.
एक बार चुत ने पानी छोड़ा नहीं की इधर बोटी बोटी कटी समझो...
भूरी की आँखों मे आँसू थे,मौत साफ दिख रही थी..
भूरी खुद को कैसे बचा पायेगी?
वक़्त ही बताएगा
बने रहिये...कथा जारी है..
Kadak update dostअपडेट -64
दिल्ली रेलवे स्टेशन
अबे जल्दी चल ना बे बहादुर....पीछे क्या मेरी गांड देख रहा है क्या साले.
ट्रैन छुटी ना तो तेरे टट्टे फोड़ दूंगी समझा..
इंस्पेक्टर काम्या ऐसी ही थी दबंग बिंदास बोल बोलने वाली स्त्री थी आम पुलिस की तरह उसकी जबान पे भी हमेशा गाली और अश्लीलता भरी रहती थी.
और वैसे भी इंस्पेक्टर काम्या थी ही हवस से भरी औरत परन्तु उसने कभी भी अपनी हवस को अपने फर्ज़ के आड़े नहीं आने दिया था उल्टा वो अपने जिस्म का फायदा केस सुलझाने मे जरूर उठाती थी.
आज दिल्ली स्टेशन से उसकी ट्रैन थी विष रूप के लिए.
काम्या ने टाइट जीन्स,शार्ट टॉप और आँखों पे काला चश्मा पहना हुआ था जो उन दिनों मे बहुत दुर्लभ दृश्य था हर कोई चाहे मर्द हो या औरत उसकी निगाहेँ उछाल भरते स्तन और बाहर निकल के मटकती गांड पे ही थी.
टॉप छोटा होने की वजह से रह रह के उसकी नाभि दिख जा रही थी जो किसी भी पुरुष का वीर्यपात करवा सकती थी.
क्या बूढ़ा क्या जवान जिसकी नजर पड़ती वो अपना लंड ही संभालता.
तेज़ चलने की वजह से उसकी गांड बुरी तरह थरक रही थी,गांड का एक हिस्सा उठता तो दूसरा गिरता इस उठाव चढ़ाव को पीछे आता हवलदार बहादुर देख रहा था उसकी हालत तो वैसे ही ख़राब थी ऊपर से काम्या की रोबदार आवाज़ से सहम गया था.
बहादुर:- मैडम...मैडम...वो.वो...मै..हाँ सामान भारी है ना इसलिए धीरे चल रहा हूँ.
इस्पेक्टर काम्या :- साले तू किस काम का बहादुर है सच भी नहीं बोल सकता,अब मेरी गांड है ही ऐसी की मर्द भी क्या करे? तू मर्द ही है ना हाहाहाहा....
बहादुर:- जी जी....मैडम हूँ
बहादुर की घिघी बंध गई थी काम्या के ऐसे दबंग और बेशर्म व्यहार से.
बहदुर जल्दी जल्दी चलने लगा, की तभी ट्रैन ने हॉर्न दे दिया और चलने लगी.कूऊऊऊऊऊ.....
काम्या :- करा दिया ना बहादुर के बच्चे लेट अब भाग जल्दी.
बहादुर के दोनों हाथ मे भारी बेग थे जिस वजह से भाग नहीं पा रहा था ट्रैन आगे निकलती जा रही थी की तभी काम्या को ट्रैन की जनरल बोगी दिखती है वो जल्दी से उसी मे चढ़ जाती है
"बहादुर बैग पकड़ा जल्दी "
बहादुर बैग पकड़ा के खुद भी चढ़ जाता है.
ह्म्म्मफ़्फ़्फ़.... साले हरामखोर बहादुर तू किसी काम का नहीं है ट्रैन छूट जाती तो.
बहदुर :- मैडम मै काम का नहीं लेकिन किस्मत का जरूर हूँ देखो ट्रैन छुटी तो नहीं.
काम्या :- साले अपने ऑफिसर से मज़ाक करता है, चल जगह ढूंढते है अभी अगले स्टेशन पे अपनी बोगी मे चलेंगे.
काम्या आगे बढ़ जाती है और बहादुर पीछे बड़बड़ता हुआ चल देता है "देखना आप एक दिन मेरी किस्मत को मान जाओगी ऐसे ही थोड़ी ना पुलिस मे आ गया मै "
ट्रैन खाली पडी थी लगभग सभी लोग बैठे हुए थे.
बहादुर :- भाईसाहब जरा खसक जाइये मै और मैडम भी बैठ जाये.
"क्यों बे साले तेरे बाप की ट्रैन है क्या जो खसक जाऊ.
बहादुर :- भैया पूरी सीट खाली है आप सिर्फ 4 आदमी है बाकि सीट पे हम दो जाने बैठ जायेंगे.
"साले पिद्दी तुझे समझ नहीं आता क्या भाग यहाँ से मजा ख़राब कर दिया,
कालिया एक पैग और बना साले ने दिमाग़ की माँ बहन कर दी.
ये जो चार शख्स बैठे थे वो दिल्ली के मशहूर जबकतरे,लुटेरे थे
कालिया,पीलिया,धनिया और हरिया
भैया प्लीज थोड़ा सरक जाइये ना लम्बा सफर है
एक मीठी सी कोमल आवाज़ चारो के कानो मे पड़ती है,चारो पलट के देखते है तो देखते ही रह जाते है.
सामने जान्नत की हूर आँखों पे चश्मा लगाए ऊँची सैंडल पहले बिलकुल टाइट जीन्स मे खड़ी थी.
जीन्स इतनी टाइट की आगे से उसकी चुत का आकर भी दिखाई दे रहा था,जीन्स और टॉप के बीच सपाट पेट और उसकी नाभि चारो पे कहर ढा रही थी.
गांड के तो क्या कहने.
"भैया प्लीज "
आवाज़ से चारो का ध्यान भंग होता है,
उन चारो ने ऐसी लड़की सपने मे भी नहीं देखि थी.
"शहरी मालूम होती हो"? धनिया बोलता है.
काम्या :- जी भैया गांव जा रहे है ये मेरे पति है वो बहादुर की और इशारा करती है.
चारो बहादुर की और देखते है फिर काम्या की और
"अबे ये क्या चक्कर है इस मरियल चूजे को ये पठाखा कहाँ मिल गया?
हरिया :- पहले क्यों नहीं बताया जी बैठिये आप की ही ट्रैन है.
पीलिया :- आज रात का सफर तो हसीन होने वाला है.
ये बात उन लोगो ने फुफुसाते हुए बोली थी परन्तु काम्या के तेज़ कानो ने ये सब सुन लोया था.
काम्या धीरे से उनके सामने से अपनी गांड को जानबूझ के मटकाती हुई गुजारती है और खिड़की के पास बैठ जाती है.
काम्या उनके इतनी पास से निकली थी की चारो के नाथूने उसकी मादक महक से भर गए थे.
काम्या :- सुक्रिया आपका, आप भी बैठिये ना जी
काम्या ने बहादुर का हाथ पकड़ के बोला
बहदुर हक्का बक्का हो गया था की मैडम को क्या हो गया है जो लड़की बात बात पे गोली चला देती है वो इतनी नरमी से कैसे पेश आ रही है.
हक्के बक्के तो रामु और कालू भी थे जो बिल्लू की बात सुन रहे थे.
कालू :- चल बे साले हम नहीं मानते
रामु :- तुझे रतिवती मालकिन अपनी गांड क्यों दिखाएगी?
बिल्लू कल रात की घटना रामु और कालू को सुना रहा था की कैसे उसने रतिवती का कामुक बदन और उसकी नंगी गांड के दर्शन किये.
तीनो जाम पे जाम छलका रहे थे.
बिल्लू :- सही बोल रहा हूँ सालो वो बिलकुल गरम और हवस से भरी औरत है.
हमें थोड़ी कोशिश करनी चाहिए हो सकता है हाथ लग ही जाये.
रामु :- साले तू मरवाएगा तूने ज्यादा पी ली है तेरी बात पे कैसे यकीन कर ले हम. वो ठाकुर साहेब की समधन है.
अंदर तीनो इसी बहस मे उलझें थे बाहर रतिवती अपनी बदन की आग मे जलती हुई इस कमरे की लाइट जलती देख इधर ही आ गई थी.
परन्तु जैसे ही वो कुछ करती उस से पहले ही उसके कान मे अपने बदन और गांड की तारीफ भरे शब्द पड़ गए.
"अच्छा तो यहाँ मेरी ही बात हो रही है कल रात जब उसने पेशाब करते वक़्त बिल्लू को अपनी बड़ी गांड के दर्शन कराये थे उसे याद करते ही रतिवती की चुत झरना बहा देती है.
उसके दिमाग़ मे कुछ विचार चल रहे थे. वो सिर्फ अपने बदन की सुन रही थी उसे कैसे भी अपनी चुत मे लंड चाहिए था,एक की तमन्ना मे उसे तीन तीन लंड लेने का मौका मिल रहा था.
वो योजना बना चुकी थी.
अंदर "कसम खिला लो किसी की भी "
तभी बाहर से रतिवती अंदर आती है.
"किसकी कसम कहाँ रहे हो बिल्लू?"
तीनो के होश उड़ जाते है
बिल्लू:- वो...वो....मै...मै...मालिकन आप?
कालू :- मरवा दिया साले ने आज
रामु दारू छुपाने की कोशिश कर रहा था
रतिवती :- बिल्लू मेरे लिए ये हवेली नयी है मुझे पेशाब लगा था बाहर आई तो कही गुसलखाना दिखा नहीं
ऐसा बोल रतिवती अंदर आ जाती है.
रामु और कालू के होश अभी भी उड़े हुए थे परन्तु बिल्लू चालक था वो कुछ कुछ समझ रहा था.
बिल्लू :- जी...जी...मालिकन मै दिखाता हूँ
परन्तु रतिवती बाहर जाने के बदले अंदर लगे बिस्तर पे बैठ जाती है "तुम लोग ये नीचे क्या छुपा रहे हो?
ऐसा बोल वो बिस्तर के नीचे हाथ डाल देती है उसकी पकड़ मे दारू की बोत्तल आ जाती है.
रतिवती :- अच्छा तो ऐसे करते ही तुम हवेली की सुरक्षा?
तीनों की सांसे फूलने लगती है उनके कुछ समझ नहीं आ रहा था तीनो बुरी तरह डर गए थे.
रतिवती :- यदि ठाकुर साहेब को ये बात मालूम पडी तो जानते हो क्या होगा?
कालू और रामु दोनों रतिवती के पैरो पे गिर पड़ते है.
मालकिन...मालकिन ठाकुर साहेब से कुछ ना कहना वो हमें जिन्दा गाड़ देंगे.आप जो बोले हम करेंगे जो सजा देनी है दे दो.
रतिवती के चेहरे पे विजयी मुस्कान तैर रही थी.
रतिवती :- अच्छा जो सजा दू मंजूर है?
तीनो एक सुर मे गर्दन हिला देते है "हाँ मालकिन "
अच्छा तो बैठो सामने पहले,पैर छोडो मेरे
तीनो डरते डरते बैठ जाते है.
रतिवती को मर्दो को अपनी ऊँगली पे नचाने मे खूब मजा आता था,और आज वो इन तीनो के डर को भली भांति भुना रही थी.
रतिवती शारब की बोत्तल से तीन ग्लास मे शराब डालती है.
तीनो आश्चर्य से उसे ही देख रहे थे की क्या करना चाहती है.
बिल्लू :- मालकिन क्या आप हमें दारू पिलायेंगी?
रतिवती :- हाँ बिल्लू लेकिन ऐसी दारू जो तुम लोगो ने आज तक ना पी हो,उसकी आवाज़ मे एक नशा था एक मदहोशी थी.
तीनो के पल्ले कुछ नहीं पड़ रहा था ना जाने क्या था रतिवती के दिमाग़ मे.
रतिवती तीन ग्लास आधे शराब से भर चुकी थी,तीनो अभी हक्के बक्के ही थी की
रतिवती अपनी साड़ी हलकी सी उठा के तीनो गिलास के ऊपर टांग फैला के बैठ जाती है.
तीनो ऐसे चौके जैसे भूत देख लिया हो उनकी समझ से सब कुछ परे था.
रतिवती अपनी टांगे थोड़ी फैला देती है तभी सुररर......ससससररर....करती सिटी बजने लगती है
थोड़ी देर मे सिटी की आवाज़ बंद होती है और रतिवती तीनो गिलास के ऊपर से उठ जाती है.
गिलास पूरा भरा हुआ था गिलास के ऊपर झाग तैर रहा था.
उसके चेहरे पे सुकून था.
उसने अपना पूरा पेशाब तीनो ग्लास मे भर दिया था.
रतिवती :- लो ये शराब पी के देखो सब भूल जाओगे.
अभी तक जहाँ तीनो डर रहे थे वही अब तीनो के चेहरे पे हवस और नशा साफ दिख रहा था सजा मे मजा दिखने लगा था.
तीनो ही फटाक से गिलास उठाते है और एक ही घूंट मे गट गटा जाते है गरम ताज़ा पेशाब मे मिली दारू हलक से नीचे उतरती चली जाती है.
आअह्ह्ह.....मालकिन मजा आ गया बिल्लू के मुँह से झाग अभी भी बाहर आ रहा था.
कालू :- मालकिन पूरा बदन गरम हो गया.
रामु :- मालकिन और मिलेगी ये शराब
रतिवती सिर्फ मुस्कुरा देती है!और चाहिए तो तुम्हे निकालनी पड़ेगी,अब भला बिना मेहनत के क्या मिलता है.?
तीनो जमुरे समझ चुके थे की क्या करना है.
बने रहिये....कथा जारी है..