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Adultery ठाकुर ज़ालिम और इच्छाधारी नाग

आपका सबसे पसंदीदा चरित्र कौनसा है?

  • कामवती

  • रतिवती

  • रुखसाना

  • भूरी काकी

  • रूपवती

  • इस्पेक्टर काम्या

  • चोर मंगूस

  • ठाकुर ज़ालिम सिंह /जलन सिंह

  • नागेंद्र

  • वीरा

  • रंगा बिल्ला


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Nevil singh

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अपडेट -65

सुलेमान और कलावती दोनों सर झुकाये खड़े थे.
बिल्ला दरोगा को पकड़ पास लगी कुर्सी से बांध देता है.
दरोगा :- रंगा बिल्ला यदि मेरी बीवी को कुछ हुआ तो तुम्हे जिन्दा नहीं छोडूंगा.
रंगा :- हा हाहाहाहा.... तू नामर्द है दरोगा अपनी भूखी बीवी की नजरें भी नहीं पहचानता, हम कुछ क्यों करेंगे तेरी बीवी के साथ वो तो खुद करेगी. क्यों भाई सुलेमान?
सुलेमान चुपचाप मुँह गिराए खड़ा था.
बिल्ला कालावती की और बढ़ता है, उसे दरोगा को तड़पाना था जलील करना था.
कालावती पीछे हट जाती है.
रंगा :- अरे छिनाल पीछे क्यों हट रही है कल रात तो सुलेमान के लंड पे कूद रही थी.
दरोगा :- रंगा जबान खिंच लूंगा तेरी.
रंगा :- हाहाहा..नामर्द तू है और चिल्ला मुझ पे रहा है तेरे लंड मे जान होती तो तेरी बीवी सुलेमान का लंड से ना चुदाती.
दरोगा का मन कह रहा था की ये सब झूठ है उसे जलील करने के लिए बोला जा रहा है,वो प्रश्न भरी निगाह से कलावती की तरफ देखता है तो कालावती नजरें नहीं मिला पाती अपना मुँह फेर लेती है.
दरोगा :- कालावती कह दो की झूठ है ये...
कलावती बिलकुल चुप..मुँह झुकाये.
बिल्ला :- अरे ये क्या बोलेगी इसकी चुत बोलेगी अब तो क्यों कालावती भाभी?
कालावती लाज शर्म से दोहरी होती जा रही थी उअके जीवन मे ऐसा पल भी आएगा उसने सोचा ही नहीं था.
वो बेहद ही उत्सुक,कामुक और हमेशा हवस से भरी रहने वाली औरत थी परन्तु अपने पति के सामने कैसे कबूल कर ले?
जैसे ही बिल्ला नजदीक आता है कलावती उसके पैरो मे गिर जाती है, कृपया ऐसा ना बोले मुझे जलील ना करे मै पतीव्रता नारी हूँ.
रंगा :- हाहाहाबाबा......तू और पतीव्रता नारी? अभी देख लेंगे
बिल्ला कालावती के बाल पकड़ के उठा देता है और घसीटता हुआ दरोगा के सामने रखे सोफे पे बैठा देता है.
रंगा बिल्ला कालावती के अजु बाजु बैठ जाते है.
उनके सामने असहाय सा दरोगा बंधा हुआ था उसके पीछे सुलेमान खड़ा था,सुलेमान इतना डरा हुआ था की वो दरोगा को खोलने तक का नहीं सोच रहा था.
बिल्ला :- दरोगा तेरी बीवी तो वाकई खूबसूरत गद्दाराई औरत है और एक तू है जो इसे छोड़ के अपना फर्ज़ संभाल रहा था.
दरोगा बेचारा कर क्या सकता था उसकी हिम्मत जवाब दे रही थी वो सिर्फ सुन और देख ही सकता था.
परन्तु कालावती पूरा विरोध कर रही थी "छोड़ दो मुझे मै ऐसी औरत नहीं हूँ"
रंगा उसकी साड़ी के पल्लू को गिरा देता है,कालावती की सफ़ेद चमकते हुए स्तन सबके सामने उजागर हो जाते है,
आज वैसे भी कालावती खूब सजी थी अपने पति के लिए ब्लाउज भी ऐसा था की आधी से ज्यादा चूची बाहर ही आ रही थी.
पीछे खड़ा सुलेमान भी आँखों मे चमक लिए उस नज़ारे को देखने लगा.
दरोगा भी अपनी बीवी को बहुत साल बाद देख रहा था एक दम से उसके आँखों के सामने ये नजारा आ जाने से हक्का बक्का रह गया "वाकई मेरी बीवी खूबसूरत है "
दरोगा खुद के मन से लड़ने लगा था
दरोगा :- छोड़ दो कमीनो उसे भले मुझे मार लो, बिल्ला तू मुझे गोली मार दे मैंने भी तुझे गोली मारी थी ना? रंगा तू मुझे थप्पड़ मार ले मैंने भी तुझे मारा था ना?
मेरे किये का बदला मेरी बीवी से मत लो

रंगा :- दरोगा मैंने तो तुझे बोला ही था की मेरे गाल पे पड़ा एक एक चाटा तेरी बीवी की गांड पे पड़ेगा.
ऐसा बोल रंगा कालावती के मुलायम स्तन पे हाथ रख देता है और हल्का सा सहला देता है.
कालावती थोड़ा कसमसा जाती है,रंगा का कठोर हाथ उसके बदन को हिला देता है.उम्म्म्म....करती हलकी सी हिल जाती है.
बिल्ला :- देख दरोगा तेरी रंडी बीवी कैसे इठला रही है.
कालावती ये सुनते ही सकते मे आ जाती है "नहीं मुझे खुद पे नियंत्रण रखना होगा "
वो सोच तो रही थी परन्तु उसे इस बेज़्ज़ती मे अलग ही अहसास मिल रहा था इस तरह से फसना कही ना कही उसे अच्छा भी लग रहा था किन्तु घबराहट मे वो इसे स्वीकारना नहीं चाह रही थी.
वो रंगा का हाथ पकड़ के दूर झटक देती है.
रंगा बिल्ला समझ रहे थे की ये रांड अपने पति के सामने संस्कारी बन रही है इसके विरोध को हटाना पड़ेगा.
बिल्ला :- साले तुम दोनों पति पत्नी एक दूसरे के सामने संस्कारी बन रहे हो.
रंगा :- क्यों बे दरोगा जो लड़की तेरे थाने मे आई थी उसे चोद के कैसा लगा था तुझे?
दरोगा की तो हवा ही निकाल जाती है ये सुन के.
दरोगा :- कौन...कौन...लड़की.
रंगा :- साले डरता क्यों है तेरी बीवी भी कोई कम नहीं है इसे भी लंड का शौक है.
बिल्ला :- रंडी तेरा दरोगा पति अब दरोगा नहीं रहा इसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया है उस रात एक लड़की इसके पास छेड छाड़ की रिपोर्ट लिखने आई थी आपके ईमानदार कर्तव्य निष्ट पति ने उसकी मज़बूरी का फायदा उठाया और उसका बलात्कार किया.
कालावती ये सुन गुस्से मे आगबबूला हो चली,गुस्से मे जलती आंखे दरोगा को देख रही थी, दरोगा कालावती से आंखे नहीं मिला पा रहा था.
रंगा बिल्ला का प्लान कामयाब हो चला था. उन्होंने कालावती के मन मे नफरत बो दी थी.
स्त्री खुद कितनी बड़ी छिनाल हो लेकिन अपने पति के सामने हमेशा शरीफ ही बनती है.
कालावती भी यही दिखा रही थी भले हवस मे डूब के हज़ारो बार उसने सुलेमान से सम्भोग किया था परन्तु आज दरोगा की एक गलती पे उसे कहाँ जाने वाली नजर से देख रही थी.
रंगा :- देखा रांड तेरा पति तुझे जैसे कामदेवी को चोद नहीं पता और बाहर मुँह मारता फिरता है.
दरोगा बुरी तरह जलालत महसूस कर रहा था उसके आँखों से आँसू बह रहे थे.
"मुझे माफ़ कर दो कालावती मै बहक गया था "
कालावती :- छी कितने घटिया इंसान ही तुम मै तुम्हारे बिना तड़पती रही और तुम वहा गुलछर्रे उड़ा रहे थे.
कालावती खुद हवस के हाथो मजबूर हो के लंड पे उछली थी परन्तु खुद को सही साबित करने का मौका कैसे गवा देती.
दूसरे को गलत साबित कर दो तो आप अपने आप सही साबित हो जाते है इसका ताज़ा उदाहरण रंगा बिल्ला के सामने था.
दोनों ही स्त्री के चरित्र से हैरान थे की कब कौनसा रंग देखने को मिल जाये पता ही नहीं था खेर अब रंगा बिल्ला का रास्ता साफ था.
रंगा वापस से कालावती के स्तन पे हाथ रख देता है,और धीरे से दबा देता है इस बार कालावती का कोई विरोध नहीं था,वो सिर्फ एक कसमसाती सी नजर रंगा पे डाल देरी है और उसके होंठ हलकी सी मुस्कान मे खुल जाते है. कालावती के मन मे हवस जन्म ले रही थी.
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और ना ही दरोगा कुछ बोलने लायक था वो सिर्फ पश्चाताप के आँसू बहा रहा था.
एक गलती की सजा इतनी बड़ी होंगी उसे अंदाजा भी नहीं था.

इधर विष रूप मे रुखसाना को अंदाजा हो चला था की वो अपनी योजना मे कामयाब हो जाएगी.
रुखसाना :- ठाकुर साहेब वो खिड़की भी बंद कर दीजिये ना ठंडी हवा आ रही है देखिये मेरे रोये खड़े हो गए है ऐसा बोल वो अपने गोरे पैर आगे को कर देती है.
ठाकुर के सामने रुखसाना के गोरे पैर थे जहाँ पे छोटा सा लहंगा घुटने के ऊपर था जांघो के रोये खड़े थे.
ठाकुर :- हाँ चमेली तुम्हे तो ठण्ड लग रही है. जी भर के गोरी मोटी जाँघ देखता ठाकुर खिड़की का दरवाजा लगा देता है अब अंदर सिर्फ चिमनी की हलकी रौशनी थी.
रुखसाना :- आप सो जाइये ठाकुर साहेब मज़ाक यहाँ नीचे जमीन पे सो जाती हूँ.
ठाकुर :- अरे चमेली कैसी बात करती हो तुम हमारी मेहमान हो ऊपर सो जाओ पलंग बड़ा है.
रुखसाना :- शरमाती हुई लेकिन....लेकिन...मै कैसे...
तभी भड़ाक से खिड़की खुल जाती है और हवा का तेज़ झोंका अंदर आता है और रुखसाना के चुनरी को नीचे गिरा देता है.
उसका सुन्दर मुखड़ा हलकी रौशनी मे चमक उठता है, रुखसाना सिर्फ छोटी सी चोली और छोटे से लहंगे मे ठाकुर के सामने खड़ी थी..
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ठाकुर तो इस अद्भुत खूबसूरती को देखता ही रह गया उसके होश उड़ गए थे गोरा चेहरा माथे पे हिंदी,चोली से बाहर निकले हुए मोटे मोटे स्तन,नीचे बिलकुल सपाट पेट.
चमेली शरमाती हुई भागती हुई खिड़की बंद कर देती है और अपना दुपट्टा उठाने को झुकती है, जैसे ही झुकती है उसका लहंगा पीछे से ऊँचा हो जाता है जो की सिर्फ गांड के उभार को ही ढक पा रहा था.
ठाकुर की आत्मा ही निकलने को थी...फिर भी हिम्मत कर के बोल ही गया.
"रहने दो चमेली अब तो हमने तुम्हारा चेहरा देख ही लिया "
ठाकुर की आवाज़ मे नशा था,हवस थी आंखे काम उत्तेजना मे लाल हो चुकी थी
पाजामे मे छोटा सा लंड फटने को आतुर था.
हालांकि उसकी बीवी कही ज्यादा सुन्दर थी परन्तु उसने कभी ऐसा नजारा ऐसी उत्तेजना का अहसास नहीं हुआ था जो आज हो रहा था.
रुखसाना तब तक खड़ी हो चुकी थी,"आप दूसरे व्यक्ति है जिसने मुझे बिना घूँघट के देखा है ठाकुर साहेब " ऐसा बोल मुस्कुरा देती है
ठाकुर रुखसाना को हर एक अदा के साथ पिघलता जा रहा था.
ठाकुर :- तुम तो बहुत सुन्दर हो चमेली
रुखसाना :- आप भी ना ठाकुर साहेब,हस देती है
"आप बदमाश है बहुत "
ठाकुर :- ऐसा हुस्न हो तो कौन बदमाश नहीं होगा चमेली.ऐसा बोल शराब और शबाब के नशे मे चूर ठाकुर चमेली के पास आ जाता है.
चमेली :- इससससस...आप भी ना मेरा पति तो नहीं बोलता ऐसा?
ठाकुर :- चमेली का हाथ पकड़ लेता है "गधा ही होगा जो इस हुस्न की कद्र ना करे "
विडंबना देखो प्रकृति की कौन आदमी बोल रहा है जिसके पास खुद कामवती जैसे अप्सरा है.
यही तो होता है नशा और लालच.
जिसका फायदा रुखसाना उठा रही थी.
"आओ यहाँ बैठो " ठाकुर चमेली का हाथ पकड़ उसे अपने साथ बिस्तर पे बैठा देता है.
अब ठाकुर को कोई होश नहीं था वो सिर्फ हवस मे डूबा था.
रुखसाना भी खूब शर्माने का नाटक कर रही थी "छोड़िये ना ठाकुर साहेब कोई देखेगा तो क्या सोचेगा?"
ठाकुर मन ही मन ख़ुश हो रहा था की चमेली विरोध नहीं कर रही है सिर्फ थोड़ा डर रही है.
जबकि रुखसाना अपनी अदाओ से पल पल ठाकुर का शिकार कर रही थी.

बने रहिये....कथा जारी है...
Nice update dost
 

Nevil singh

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ट्रैन दिल्ली स्टेशन छोड़ चली थी
चारो जेबकतरो की नजर काम्या पे ही थी,वो उसके हुस्न का लुत्फ़ उठा रहे थे टॉप और जीन्स के बीच से झाँकती नाभि पे बराबर नजर थी.
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बहादुर सामान को इधर उधर ज़माने मे लगा था.
धनिया :- मैडम कहाँ जाएगी आप? धनिया ने अपने पिले दाँत दिखाते हुए पूछा.
उसका मुँह खुलना था की तम्बाकू और दारू की मिली जुली गंध ने भभका मार दिया.
काम्या :- जी...जी...मै विष रूप जा रही हूँ.
ना जाने काम्या घबरा रही थी या उसे धनिया के पास से आती अजीब गंध परेशान कर रही थी.
कालिया :- लो भाई लोगो एक पैग और लो सफर मे ऐसा हुस्न हो तो मजा आ जाता है.
बहादुर :- सालो तमीज़ से बात करो,तुम्हे पता नहीं है ये कौन है?
कालिया बहादुर की गिरेबान पकड़ लेता है "साले चूहें तेरी ये औकात हमें टोकता है,जानते है ये तेरे जैसे नामर्द की हसीन बीवी है " ज्यादा बोला तो ट्रैन से बाहर फेंक दूंगा.
नहीं....नहीं....भाईसाहब मेरे पति को छोड़ दीजिये उन्हें पता नहीं है की आप से कैसे बात करनी है. काम्या घबराती हुई बीच मे बोल पडी

"साली....समझा अपने पति को और हाँ मै तेरा भाईसाहब नहीं हूँ कालिया नाम है मेरा और ये धनिया,हरिया और पीलिया है"
कालिया ने उन तीनो की तरफ ऊँगली दिखा के वाहियात परिचय दिया.
"और सुन पे चूहें हम दिल्ली के पहुचे हुए गुंडे है समझा ना"
काम्या :- जी...जी....भाई...मतलब कालिया जी मै समझ गई मै समझा दूंगी
ऐसा बोल कालिया के काले गंदे हाथ पे हाथ रख देती है.
कालिया उस गोरे हाथ का स्पर्श पा के आंनदित हो जाता है उसका गुस्सा कुछ कम होता है.
पीलिया :- साले चूहें देख तेरी बीवी कितनी समझदार है और माल भी.
चारो एक बार फिर एक भरपूर नजर काम्या को ऊपर से नीचे तक घूर लेते है.
काम्या बहादुर का हाथ पकड़े बाहर ले जाती है "क्या कर रहे हो बेवकूफ तुम?"
बहादुर :- मैडम आप... ऐसी बात कर रही है आप? अब तक तो इनकी लाश गिरा देती आप!
काम्या के चेहरे पे मुस्कान फ़ैल जाती है...उस मुस्कान मे हैवानियत भी थी और एक कामुक अदा भी थी,बहादुर पहली बार काम्या जैसी पुलिसवाली के साथ काम कर रहा था उसे कोई अंदाजा नहीं था काम्या के तौर तरीके का.
बहादुर क्या जाने एक हसीन लड़की क्या कर सकती है ऊपर से काम्या जैसी कटीली गद्दराई हवस से भरी औरत.
बहादुर सिर्फ बेबकुफ़ सा मुँह बनाये काम्या के पीछे चल देता है.
काम्या :- जी आप लोग हमें माफ़ कर दे ये अब कुछ नहीं कहेँगे. "ऐ जी आप ऊपर जा के सो जाइये ना जगह कम है तो मै यही बैठ जाती हूँ.
चारो की बांन्छे खिल जाती है उन्हें लगता है लड़की डर गई है हमारी धमकी से
काम्या और बहादुर उन खूंखार अपराधियों के बीच फस गए थे.
क्या वाकई...?

इधर फसा तो दरोगा वीरप्रताप भी था.
बेचारा अपनी ही पत्नी के सामने शर्मिंदा रस्सी से बंधा हुआ पड़ा था.
सामने उसकी बीवी का पल्लू गिराए रंगा गोरे स्तन का आनंद ले रहा था,कालावती कसमसा जरूर रही थी परन्तु विरोध ना के बराबर था बस अभी भी थोड़ी शर्म बच्ची थी अपने पति के सामने वरना तो उसे ये बेज़्ज़ती,दुत्कार कही ना कही अच्छी लग रही थी
सुलेमान से चुदते वक़्त भी कालावती उसके जानवर को जगाने के लिए अपशब्द बोलती थी ताकि सुलेमान उसे गालिया दे,जिल्लाते दे के चोदे,कुतिया बना दे.
और आज सच मे ऐसी परिस्थिति आई तो डर के साथ एक उमंग भी उसके बदन को गुदगुदा रही थी ऊपर से दरोगा के धोखे ने उसके संस्कार के बंधन को खोल दिया था.
"मम्ममममम....मुझे प्यास लगी है " कालावती का गला सुख रहा था इतने सारे उठती भावनाओं से उन्माद मे उसका बदन पसीने पसीने हो गया था.
मुझे पानी दो.
सुलेमान रसोई की और जाने लगता है.
रंगा:- साले..हरामी तुझे किसने कहा जाने को?
आज सिर्फ हम मालिक है.
इस रांड को पानी हम पिलायेंगे क्यों बिल्ला....
बिल्ला तुरंत रंगा का इशारा समझ जाता है.
रंगा बिल्ला तुरंत खड़े हो गए और एक झटके मे अपनी मैली धोती निकाल फ़ेंकी.
कालावती के सामने दो मस्त लम्बे काले मोटे लंड झूल रहे थे,कालावती का मुँह आश्चर्य से खुल गया "हे भगवान ये क्या है?
उसने आज तक सिर्फ अपने पति का मरियल लुल्ली ही देखि थी उसके बाद सुलेमान के लंड को ही वो दुनिया का आखिरी अजूबा मानती थी परन्तु ये क्या ये तो भयानक था.
मर्द के पास ऐसा लंड भी हो सकता है ये तो कालावती के कल्पना मे ही नहीं था ऊपर से रंगा बिल्ला के द्वारा एक दम से की गई हरकत से कालावती सकपका गई थी उसकी आंखे और मुँह फटा का फटा ही रह गया था.
अभी वो कुछ समझ पाती की उसके खुले मुँह मे नमकीन पानी की तेज़ धार पड़ने लगी.
इस से अच्छा मौका क्या मिलता रंगा बिल्ला को ठाकुर को जलील करने का.
कामवती अभी सदमे से बाहर निकली ही थी की उसके खुले मुँह मे रंगा बिल्ला ने एक साथ पेशाब की धार मार दी.
कालावती मारे लज्जात और बेज़्ज़ती से सरोबर हो गई.
बिल्ला :- पी रांड हमारा गर्म पानी
कालावती के मुँह पे पड़ती तेज़ पेशाब के गरम धार से वो एक दम होश गवा बैठी उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था,अचानक हुए हमले से वो सहम गई थी,जब तक मुँह बंद करती तब तक काफ़ी मात्र मे उसके हलक ने नमकीन गरम पेशाब उतर चूका था.
रंगा :- देख दरोगा तेरी रांड बीवी कैसे अपनी प्यास बुझा रही है..
कालावती मुँह बंद कर चुकी थी,दोनों का पेशाब उसके मुँह से लगता हुआ नीचे बहता जा रहा था गले से होता हुआ सीधा ब्लाउज मे दोनों स्तनों की घाटी मे समाता जा रहा था,उसके बाद सीधा नाभि को भीगाते हुए ना जाने कहाँ गायब हो जा रहा था.
कालावती मारे शर्म और बेइज़्ज़ती के अपना मुँह इधर उधर मार रही थी, हालांकि उसके लिए ये सब कुछ नया था आज तक इतनी घिनौनी हरकत सुलेमान ने भी उसके साथ नहीं की थी.
परन्तु कालावती को घिनोने पन मे ही मजा आता था उसे बदन उसका साथ छोड़ रहा था,दोनों के पेशाब का गर्मपन उसे उकसा रहा था,
नाभि से होता गर्म पेशाब सीधा चुत के दाने को छूता हुआ पैरो मे जा रहा था,इस गरम छुवन से उसकी चुत बगावत पे उतार आई थी,बगावत का नतीजा उसका मुँह खुद ही खुलता चला गया..
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अब वो खुद पेशाब की दिशा मे मुँह खोले गटा गट दोनों के पेशाब को पिए जा रही थी उसके दिल और गले को अभूतपूर्व संतुष्टि मिल रही थी,प्यासी कालावती अपना गला तर कर रही थी.
उसे अब फर्क नहीं पड़ रहा था की सामने उसका पति और प्रेमी बैठा है.उसे ये बेइज़्ज़ती लज्जात लताड़ अच्छी लग रही थी.
उसका ब्लाउज भूरी तरह गिला हो चूका था स्तन किसी हिरे की तरह चमक बिखेर रहे थे..
रंगा :- देख दरोगा तेरी गरम बीवी कैसे अपनी प्यास बुझा रही है.
बेबस दरोगा और सुलेमान अपनी बीवी और प्रेमिका का रंडीपना देख रहे थे..
ऐसा नजारा उन दोनों के लिए भी अनोखा था,ना चाहते हुए भी उनके बदन मे हलचल होने लगी थी,उनका लंड ऐसा कामुक नज़ारे को देख अंगड़ाई लेने लगा था.
दिमाग़ शर्मिंदा था परन्तु लंड बेकाबू था,चारो और हवस फैलने लगी थी.

इस हवस का अंजाम क्या होगा...
ये हवस किसकी मौत लाएगी? कालावती,दरोगा,काम्या, या फिर वो चार लफंगे?
बने रहिये...कथा जारी है....
Khubsurat update mitr
 

Nevil singh

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अपडेट -66

हवस का परचम तो ठाकुर की हवेली मे भी फैला हुआ था
रतिवती अपनी टांगे फैलाये बिल्लू,कालू,रामु को आमंत्रण दे रही थी की आओ और जीतना रस पी सकते हो पियो.
तीनो के लंड रतिवती की चुत से निकले पेशाब मिली दारू पी के तन टना गए थे,लंड ऐसा नजारा देख के फटने को आतुर थे.
रतिवती अपनी साड़ी को कमर तक उठा चुकी थी रस टपकाती चुत,चिकनी बाल रहित मुँह बाये तीनो का इंतज़ार कर रही रही.
तीनो का सब्र करना मुश्किल था बिल्लू सीधा घुटनो के बल बैठ मुँह रतिवती की जांघो के बीच घुसा देता है रतिवती इस हमले से दोहरी हो जाती है पीछे बिस्तर पे कोहनी टिका के सर पीछे कर लेती है.
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आअह्ह्हह्ह्ह्ह.....उम्म्म्म....बिल्लू
बिल्लू जीभ निकाले चुत से टपकते रस को पी रहा था कुरेद रहा था,
इस मादक छत्ते से शहद निकलना बिल्लु के अकेले के बस की बात नहीं थी, रामु और कालू भी सब्र छोड़ टूट पड़ते है.
कालू रामु रतिवती को एक एक जाँघ को चाटने लगते है.
रतिवती को ऐसा सुख ऐसा आनन्द कभी नहीं मिला था हालांकि उसने खूब चुत चाटवाई थी परन्तु आज तीन तीन तगड़े मर्द उसकी चुत चाटने की कोशिश मे थे.
बिल्लू लगातार अपनी खुर्दरी जबान से चुत के महीन रास्ते के अंदर प्रहार कर रहा था.
वही कालू रामु उसकी जाँघ को चाट चाट के गिला कर चुके थे.
रतिवती उत्तेजना के मारे कभी सर उठा के तीनो को देखती तो कभी सर पीछे पटक लेती.
बिल्लू तो सुख भोग रहा था,परन्तु कालू रामु अछूते थे उनसे रहा नहीं जा रहा था ऊपर से बिल्ला हटने नाम ही नहीं ले रहा था.
तभी रामु गुस्से मे आ के रतिवती को पकड़ के आगे की और धक्का दे देता है.
रतिवती पलंग से आगे को गिरती हुई सीधा फर्श पे पेट के बल गिर पड़ती है उसके साथ ही बिल्लू भी पीछे को पलट जाता है,
परन्तु वो इस कदर दीवाना था ऐसा मगन था चुत चाटने मे की अभी तक मुँह नहीं हटाया था.
उसका सर रतिवती की चुत के नीचे था साड़ी पूरी तरह कमर तक चढ़ गई थी.
रतिवती के पेट के बल होने से उसकी उन्नत फूली हुई बड़ी गांड खुल्ले मे आ गई.
रामु कालू को खजाना मिल गया था फिर होना क्या था दोनों एक साथ गांड के एक एक हिस्से पे टूट पडे.
रतिवती इस आक्रमण से बिकाबू हो के किसी कुतिया की तरह ऊपर मुँह उठाये चीख पडी...
आअह्ह्हह्म....उम्म्म्म.....हरामियों धीरे.
कालू :- साली रांड हमें हरामी बोलती है चाटकककक.... चाटककक...दो थप्पड़ उसकी गांड पे पड़ते है.
थप्पड़ पड़ते ही गोरी गांड लाल पड़ गई.गांड के दोनों हिस्से आपस मे कदम ताल करने लगे.
कभी गांड एक दूसरे से दूर होती तो कभी आपस मे चिपक जाती.
इस बढ़ चालू के खेल मे गांड का कामुक छिद्र कभी दिखता कभी छुपता.
ये लुका छुपी दोनों को आनंदित कर दे रही रही थी.
कालू से रहा नहीं गया वो अपनी नाक गांड के छेद मे घुसा देता है और शनिफ्फ्फ्फफ्फ्फ़....जोर दार सांस खींचता हुआ मुँह उठता है.
आअह्ह्ह....रामु क्या महक है....नीचे बिल्लू को कोई मतलब नहीं था की ऊपर क्या ही रहा है वो लगातार चुत रुपी कुए खोदे जा रहा था.
इस बार रामु भी रतिवती की गांड के दोनों पहाड़ो के बिछे सर घुसा देता है.....
आआहहहह.....कालू सच कहाँ तूने कमाल की औरत है ये.
इसी के साथ रामु अपना मुँह खोले एक बार मे ही गुदा छिद्र को मुँह मे भर छुबलाने लगता है.
रतिवती तो पागल हुए जा रही उसके आनंद की कोई सीमा ही नहीं थी.
आअह्ह्हममममममम......उम्म्म्म... चाटो खाओ घुस जाओ अंदर, फाड़ो इसे और अंदर से चाटो.
रतिवती अतिउन्माद मे ना जाने क्या क्या बड़बड़ाए जा रही थी.
रामु जब गांड से मुँह हटाता है दो देखता है की गांड का छेद गोलाई मे बाहर को आ गया है.
अब कालू भी उस छेद को अपने होंठो मे कैद कर लेता है.और जबरजस्त तरीके से अंदर ही अंदर जबान चलाने लगता है.
रतिवती की चुत ये हमला सहन ना कर सकी उसका बदन जलने लगा, शरीर कंपने लगा.
आअह्ह्ह......बिल्लू....कालू....रामु...पियो
रतिवती फट से उठ बैठी,टांगे पूरी खुली हुई थी, आअह्ह्ह...
मै गई..इतना बोलते है उसकी चुत ने फववारा छोड़ दिया फच फचम्..की आवाज़ के आठ तेज़ धार मे चुत का रस निकलने लगा पहली कुछ धार सीधा सामने बैठे तीनो के मुँह पे पड़ती..बाकि नीचे जमीन पे गिरने लगी.
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इस से भी रतिवती की गर्मी शांत ना हुई तो उसने अपना चूडियो से भरा हाथ अपनी चुत मे हथेली तक दे मारा...और जोर जोर से अन्दर बाहर करने लगी..तीनो मर्द स्त्री का ये ये रूप देख के हैरान थे.
की तभी....आअह्ह्ह.....एक तेज़ धार फिर से उन तीनो के चेहरे से टकरा जाती है,लगता था जैसे रतिवती हाथ से पकड़ पकड़ के कामरस को बाहर निकाल रही है.
चाटो इसे सालो....चाटो....
ये आदेश सुनना था की तीनो जमीन पे फैले कामरस को पिने लगे,चाटने लगे अपनी लम्बी जबान निकाल निकाल के जैसे कोई कुत्ता चाट रहा हो...
तीनो कुत्ते चूतरस को चाटते चाटते झरने के मुख्य स्त्रोत तक जा पहुचे.
वापस से तीनो एक साथ चुत पे टूट पडे आअह्ह्ह........रतिवती धम..से फर्श पे बेदम गिर पडी उसका रस ख़त्म हो गया था.
वही बिल्लू कालू रामु को इस से फर्क नहीं पड़ता था,तीनो अमृत को चाटने मे लगे थे कुछ ही वक़्त पे सब तरफ फैले अमूल्य चुत शहद बिलकुल साफ हो गया था.
रतिवती की साड़ी कमर मे फांसी थी,उसकी सांसे तेज़ तेज़ चल रही थी
उसके बड़े भरी स्तन उठ गिर रहे थे...ये नजारा देख तीनो का जोश और हवस आसमान मे पहुंच गई.
अब उन्हें भी अपना कामरस निकलना था.
तीनो के हाथ नीचे लेती रतिवती के स्तनों की एयर बढ़ जाते है....

हाथ तो ठाकुर ज़ालिम सिंह भी बड़ा चूका था हवस का हाथ.
रुखसाना का हाथ थामे उसे अपने करीब बिस्तर पे बैठा देता है.
रुखसाना :- ये आप क्या कर रहे है ठाकुर साहेब?
ठाकुर :- तुम्हारी खूबसूरती की कद्र कर रहा हूँ.
ऐसा बोल ठाकुर रुखसाना के चेहरे को ऊपर कर जी भर के देखता है.
लेकिन रुखसाना इतनी आसानी से कैसे फस जाती.वो ठाकुर का हाथ झटक देती है.
रुखसाना :- ये गलत है ठाकुर साहेब हमें जाने दे. वो उठ खड़ी होती है और अपनी चुन्नी लेने के बहाने झुक जाती है
जैसे ही झुकती है उसका छोटा सा लहंगा पीछे से ऊँचा हो जाता है जिस से उसकी चुत और गांड की दरार ठाकुर को दिख जाती है,यही तो चाहती थी रुखसाना..
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नशे मे मदहोश ठाकुर ऐसा कामुक ललचाया नजारा देख बेकाबू हो गया उसके ईमान और लंड दोनों ने बगावत कर दी अब भले आसमान टूटे या जमीन फटे इस हुस्न को तो पाना ही है.
रुखसाना के खूबसूरती के जान मे ठाकुर बुरी तरह फंस चूका था.
आव देखा ना ताव ठाकुर उठा खड़ा होता है और झुकी हुई रुखसाना को पीछे से पकड़ के अपनी छोटी से लुल्ली को पाजामे के ऊपर से ही उसकी बड़ी गांड ने फ़साने लगता है और आगे पीछे होने लगता..
रुखसाना चौंक जाती है....और आगे को भागती है "ये मुर्ख तो अतिउत्तेजित हो गया ऐसे तो ये पजामे मे ही झड जायेगा फिर कहाँ से मिलेगा वीर्य? कुछ सोचना होगा.
ठाकुर की आंखे गुस्से और हवस मे लाल थी उसे बस कैसे भी अपनी आग बुझानी थी ठाकुर था ही नीरा बेवकूफ सम्भोग करना भी नहीं जनता था.
रुखसाना :- क्या कर रहे है ठाकुर साहेब
ठाकुर :- देखो चमेली तुम हमें पसंद आ गई ही जो कर रहा हूँ करने दो वरना वापस नहीं जा पाओगी इस हवेली से.
रुखसाना:-..मै...मैम.....ठाकुर साहेब...वो...वो.....ठीक है जैसे आप चाहे लेकिन मेरी एक शर्त है?
रुखसाना खूब डरने का नाटक कर रही थी,लेकिन वो जानती थी ये उल्लू का चरखा उसमे काबू मे है सम्भोग सुख के लिए मारा जा रहा है.
वैसे भी इस भाग दौड़ मे रुखसाना का दिल भी मचल उठा था उसे भी कामसुःख चाहिए था
ठाकुर :- बोलो चमेली क्या शर्त है तुम्हारी?
रुखसाना :- शर्त ये है की जैसा मै चाहु आप वैसे ही करेंगे मेरे साथ अपनी मर्ज़ी नहीं चलाएंगे.
ठाकुर :- इस मे क्या दिक्कत है जैसा तुम कहो, ठाकुर को तो सिर्फ अपनी लुल्ली को चमेली की चुत मे डालने से मतलब था अब जैसे चाहे वैसे जाये.
"हमें मंजूर है "
Dhaanshu update dost
 

andypndy

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आज रात अपडेट आ जायेगा
 

sunoanuj

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Kapil Bajaj

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