अपडेट -65
सुलेमान और कलावती दोनों सर झुकाये खड़े थे.
बिल्ला दरोगा को पकड़ पास लगी कुर्सी से बांध देता है.
दरोगा :- रंगा बिल्ला यदि मेरी बीवी को कुछ हुआ तो तुम्हे जिन्दा नहीं छोडूंगा.
रंगा :- हा हाहाहाहा.... तू नामर्द है दरोगा अपनी भूखी बीवी की नजरें भी नहीं पहचानता, हम कुछ क्यों करेंगे तेरी बीवी के साथ वो तो खुद करेगी. क्यों भाई सुलेमान?
सुलेमान चुपचाप मुँह गिराए खड़ा था.
बिल्ला कालावती की और बढ़ता है, उसे दरोगा को तड़पाना था जलील करना था.
कालावती पीछे हट जाती है.
रंगा :- अरे छिनाल पीछे क्यों हट रही है कल रात तो सुलेमान के लंड पे कूद रही थी.
दरोगा :- रंगा जबान खिंच लूंगा तेरी.
रंगा :- हाहाहा..नामर्द तू है और चिल्ला मुझ पे रहा है तेरे लंड मे जान होती तो तेरी बीवी सुलेमान का लंड से ना चुदाती.
दरोगा का मन कह रहा था की ये सब झूठ है उसे जलील करने के लिए बोला जा रहा है,वो प्रश्न भरी निगाह से कलावती की तरफ देखता है तो कालावती नजरें नहीं मिला पाती अपना मुँह फेर लेती है.
दरोगा :- कालावती कह दो की झूठ है ये...
कलावती बिलकुल चुप..मुँह झुकाये.
बिल्ला :- अरे ये क्या बोलेगी इसकी चुत बोलेगी अब तो क्यों कालावती भाभी?
कालावती लाज शर्म से दोहरी होती जा रही थी उअके जीवन मे ऐसा पल भी आएगा उसने सोचा ही नहीं था.
वो बेहद ही उत्सुक,कामुक और हमेशा हवस से भरी रहने वाली औरत थी परन्तु अपने पति के सामने कैसे कबूल कर ले?
जैसे ही बिल्ला नजदीक आता है कलावती उसके पैरो मे गिर जाती है, कृपया ऐसा ना बोले मुझे जलील ना करे मै पतीव्रता नारी हूँ.
रंगा :- हाहाहाबाबा......तू और पतीव्रता नारी? अभी देख लेंगे
बिल्ला कालावती के बाल पकड़ के उठा देता है और घसीटता हुआ दरोगा के सामने रखे सोफे पे बैठा देता है.
रंगा बिल्ला कालावती के अजु बाजु बैठ जाते है.
उनके सामने असहाय सा दरोगा बंधा हुआ था उसके पीछे सुलेमान खड़ा था,सुलेमान इतना डरा हुआ था की वो दरोगा को खोलने तक का नहीं सोच रहा था.
बिल्ला :- दरोगा तेरी बीवी तो वाकई खूबसूरत गद्दाराई औरत है और एक तू है जो इसे छोड़ के अपना फर्ज़ संभाल रहा था.
दरोगा बेचारा कर क्या सकता था उसकी हिम्मत जवाब दे रही थी वो सिर्फ सुन और देख ही सकता था.
परन्तु कालावती पूरा विरोध कर रही थी "छोड़ दो मुझे मै ऐसी औरत नहीं हूँ"
रंगा उसकी साड़ी के पल्लू को गिरा देता है,कालावती की सफ़ेद चमकते हुए स्तन सबके सामने उजागर हो जाते है,
आज वैसे भी कालावती खूब सजी थी अपने पति के लिए ब्लाउज भी ऐसा था की आधी से ज्यादा चूची बाहर ही आ रही थी.
पीछे खड़ा सुलेमान भी आँखों मे चमक लिए उस नज़ारे को देखने लगा.
दरोगा भी अपनी बीवी को बहुत साल बाद देख रहा था एक दम से उसके आँखों के सामने ये नजारा आ जाने से हक्का बक्का रह गया "वाकई मेरी बीवी खूबसूरत है "
दरोगा खुद के मन से लड़ने लगा था
दरोगा :- छोड़ दो कमीनो उसे भले मुझे मार लो, बिल्ला तू मुझे गोली मार दे मैंने भी तुझे गोली मारी थी ना? रंगा तू मुझे थप्पड़ मार ले मैंने भी तुझे मारा था ना?
मेरे किये का बदला मेरी बीवी से मत लो
रंगा :- दरोगा मैंने तो तुझे बोला ही था की मेरे गाल पे पड़ा एक एक चाटा तेरी बीवी की गांड पे पड़ेगा.
ऐसा बोल रंगा कालावती के मुलायम स्तन पे हाथ रख देता है और हल्का सा सहला देता है.
कालावती थोड़ा कसमसा जाती है,रंगा का कठोर हाथ उसके बदन को हिला देता है.उम्म्म्म....करती हलकी सी हिल जाती है.
बिल्ला :- देख दरोगा तेरी रंडी बीवी कैसे इठला रही है.
कालावती ये सुनते ही सकते मे आ जाती है "नहीं मुझे खुद पे नियंत्रण रखना होगा "
वो सोच तो रही थी परन्तु उसे इस बेज़्ज़ती मे अलग ही अहसास मिल रहा था इस तरह से फसना कही ना कही उसे अच्छा भी लग रहा था किन्तु घबराहट मे वो इसे स्वीकारना नहीं चाह रही थी.
वो रंगा का हाथ पकड़ के दूर झटक देती है.
रंगा बिल्ला समझ रहे थे की ये रांड अपने पति के सामने संस्कारी बन रही है इसके विरोध को हटाना पड़ेगा.
बिल्ला :- साले तुम दोनों पति पत्नी एक दूसरे के सामने संस्कारी बन रहे हो.
रंगा :- क्यों बे दरोगा जो लड़की तेरे थाने मे आई थी उसे चोद के कैसा लगा था तुझे?
दरोगा की तो हवा ही निकाल जाती है ये सुन के.
दरोगा :- कौन...कौन...लड़की.
रंगा :- साले डरता क्यों है तेरी बीवी भी कोई कम नहीं है इसे भी लंड का शौक है.
बिल्ला :- रंडी तेरा दरोगा पति अब दरोगा नहीं रहा इसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया है उस रात एक लड़की इसके पास छेड छाड़ की रिपोर्ट लिखने आई थी आपके ईमानदार कर्तव्य निष्ट पति ने उसकी मज़बूरी का फायदा उठाया और उसका बलात्कार किया.
कालावती ये सुन गुस्से मे आगबबूला हो चली,गुस्से मे जलती आंखे दरोगा को देख रही थी, दरोगा कालावती से आंखे नहीं मिला पा रहा था.
रंगा बिल्ला का प्लान कामयाब हो चला था. उन्होंने कालावती के मन मे नफरत बो दी थी.
स्त्री खुद कितनी बड़ी छिनाल हो लेकिन अपने पति के सामने हमेशा शरीफ ही बनती है.
कालावती भी यही दिखा रही थी भले हवस मे डूब के हज़ारो बार उसने सुलेमान से सम्भोग किया था परन्तु आज दरोगा की एक गलती पे उसे कहाँ जाने वाली नजर से देख रही थी.
रंगा :- देखा रांड तेरा पति तुझे जैसे कामदेवी को चोद नहीं पता और बाहर मुँह मारता फिरता है.
दरोगा बुरी तरह जलालत महसूस कर रहा था उसके आँखों से आँसू बह रहे थे.
"मुझे माफ़ कर दो कालावती मै बहक गया था "
कालावती :- छी कितने घटिया इंसान ही तुम मै तुम्हारे बिना तड़पती रही और तुम वहा गुलछर्रे उड़ा रहे थे.
कालावती खुद हवस के हाथो मजबूर हो के लंड पे उछली थी परन्तु खुद को सही साबित करने का मौका कैसे गवा देती.
दूसरे को गलत साबित कर दो तो आप अपने आप सही साबित हो जाते है इसका ताज़ा उदाहरण रंगा बिल्ला के सामने था.
दोनों ही स्त्री के चरित्र से हैरान थे की कब कौनसा रंग देखने को मिल जाये पता ही नहीं था खेर अब रंगा बिल्ला का रास्ता साफ था.
रंगा वापस से कालावती के स्तन पे हाथ रख देता है,और धीरे से दबा देता है इस बार कालावती का कोई विरोध नहीं था,वो सिर्फ एक कसमसाती सी नजर रंगा पे डाल देरी है और उसके होंठ हलकी सी मुस्कान मे खुल जाते है. कालावती के मन मे हवस जन्म ले रही थी.
और ना ही दरोगा कुछ बोलने लायक था वो सिर्फ पश्चाताप के आँसू बहा रहा था.
एक गलती की सजा इतनी बड़ी होंगी उसे अंदाजा भी नहीं था.
इधर विष रूप मे रुखसाना को अंदाजा हो चला था की वो अपनी योजना मे कामयाब हो जाएगी.
रुखसाना :- ठाकुर साहेब वो खिड़की भी बंद कर दीजिये ना ठंडी हवा आ रही है देखिये मेरे रोये खड़े हो गए है ऐसा बोल वो अपने गोरे पैर आगे को कर देती है.
ठाकुर के सामने रुखसाना के गोरे पैर थे जहाँ पे छोटा सा लहंगा घुटने के ऊपर था जांघो के रोये खड़े थे.
ठाकुर :- हाँ चमेली तुम्हे तो ठण्ड लग रही है. जी भर के गोरी मोटी जाँघ देखता ठाकुर खिड़की का दरवाजा लगा देता है अब अंदर सिर्फ चिमनी की हलकी रौशनी थी.
रुखसाना :- आप सो जाइये ठाकुर साहेब मज़ाक यहाँ नीचे जमीन पे सो जाती हूँ.
ठाकुर :- अरे चमेली कैसी बात करती हो तुम हमारी मेहमान हो ऊपर सो जाओ पलंग बड़ा है.
रुखसाना :- शरमाती हुई लेकिन....लेकिन...मै कैसे...
तभी भड़ाक से खिड़की खुल जाती है और हवा का तेज़ झोंका अंदर आता है और रुखसाना के चुनरी को नीचे गिरा देता है.
उसका सुन्दर मुखड़ा हलकी रौशनी मे चमक उठता है, रुखसाना सिर्फ छोटी सी चोली और छोटे से लहंगे मे ठाकुर के सामने खड़ी थी..
ठाकुर तो इस अद्भुत खूबसूरती को देखता ही रह गया उसके होश उड़ गए थे गोरा चेहरा माथे पे हिंदी,चोली से बाहर निकले हुए मोटे मोटे स्तन,नीचे बिलकुल सपाट पेट.
चमेली शरमाती हुई भागती हुई खिड़की बंद कर देती है और अपना दुपट्टा उठाने को झुकती है, जैसे ही झुकती है उसका लहंगा पीछे से ऊँचा हो जाता है जो की सिर्फ गांड के उभार को ही ढक पा रहा था.
ठाकुर की आत्मा ही निकलने को थी...फिर भी हिम्मत कर के बोल ही गया.
"रहने दो चमेली अब तो हमने तुम्हारा चेहरा देख ही लिया "
ठाकुर की आवाज़ मे नशा था,हवस थी आंखे काम उत्तेजना मे लाल हो चुकी थी
पाजामे मे छोटा सा लंड फटने को आतुर था.
हालांकि उसकी बीवी कही ज्यादा सुन्दर थी परन्तु उसने कभी ऐसा नजारा ऐसी उत्तेजना का अहसास नहीं हुआ था जो आज हो रहा था.
रुखसाना तब तक खड़ी हो चुकी थी,"आप दूसरे व्यक्ति है जिसने मुझे बिना घूँघट के देखा है ठाकुर साहेब " ऐसा बोल मुस्कुरा देती है
ठाकुर रुखसाना को हर एक अदा के साथ पिघलता जा रहा था.
ठाकुर :- तुम तो बहुत सुन्दर हो चमेली
रुखसाना :- आप भी ना ठाकुर साहेब,हस देती है
"आप बदमाश है बहुत "
ठाकुर :- ऐसा हुस्न हो तो कौन बदमाश नहीं होगा चमेली.ऐसा बोल शराब और शबाब के नशे मे चूर ठाकुर चमेली के पास आ जाता है.
चमेली :- इससससस...आप भी ना मेरा पति तो नहीं बोलता ऐसा?
ठाकुर :- चमेली का हाथ पकड़ लेता है "गधा ही होगा जो इस हुस्न की कद्र ना करे "
विडंबना देखो प्रकृति की कौन आदमी बोल रहा है जिसके पास खुद कामवती जैसे अप्सरा है.
यही तो होता है नशा और लालच.
जिसका फायदा रुखसाना उठा रही थी.
"आओ यहाँ बैठो " ठाकुर चमेली का हाथ पकड़ उसे अपने साथ बिस्तर पे बैठा देता है.
अब ठाकुर को कोई होश नहीं था वो सिर्फ हवस मे डूबा था.
रुखसाना भी खूब शर्माने का नाटक कर रही थी "छोड़िये ना ठाकुर साहेब कोई देखेगा तो क्या सोचेगा?"
ठाकुर मन ही मन ख़ुश हो रहा था की चमेली विरोध नहीं कर रही है सिर्फ थोड़ा डर रही है.
जबकि रुखसाना अपनी अदाओ से पल पल ठाकुर का शिकार कर रही थी.
बने रहिये....कथा जारी है...