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Adultery ठाकुर ज़ालिम और इच्छाधारी नाग

आपका सबसे पसंदीदा चरित्र कौनसा है?

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Raja maurya

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अपडेट -9 contd....

पहली बार तो विषरूप मे ठाकुर कि हवेली पे भी हो रहा था.
कालू, रामु, बिल्लू तीनो भूरी को घेरे खड़े थे.तीनो एक एक पैग और ले चुके थे तीनो के लंड तनतनाये हुए रहे
होते भी क्यों ना जिस्म था ही कुछ ऐसा.
कालू :- मित्रो भूरी काकी अर्धनग्न अवस्था मे बाहर आई थी, कही इसका कोई यार तो नहीं जिस से मिलने जा रही हो और अपना लंड मसलने लगा.
बिल्लू :-अरे अपने को क्या मेरा तो भूरी के दूध देख के लंड बैठने का नाम ही नहीं ले रहा, बिल्लू अपना लंड धोती से बाहर निकाल के मसलने लगता है,
रामु कालू का हाल भी कुछ ऐसा हि था,
कालू उत्तेजना के जोश मे भूरी के स्तन कि और हाथ बढ़ा देता है उस से रुका नहीं जा रहा था.
रामु :- क्या कर रहा है उसको होश आ गया तो?
कालू :- कुछ नही होगा वो खुद नंगी बाहर आई थी, सोच इतनी रात को ये नंगी हवेली से बाहर क्या कर रही थी...
इन तीनो उल्लू के चरखो को कौन बताये कि भूरी तो तब ही होश मे आ गई थी जब बिल्लू ने उसे गोंद मे उठाया था, वो थोड़ा सा करहि थी.
लेकिन क्या जवाब देती कि वो अर्धनग्न बारिश मे क्या करने आई थी?
अपनी बरसो कि इज़्ज़त उसे तार तार होती दिखाई दे रही थी,
भूरी काकी चुपचाप आंख बंद किये बिल्लू कि गोंद मे पड़ी रही थी.
परन्तु अब उसकी हालात ख़राब थी, उन तीनो कि बाते सुन के जो उसके कड़क कसे हुए बदन को घूरे जा रहे थे, उसके स्तन से खेलने पे आतुर थे.
भूरी तो पहले से ही गरम थी, बिल्लू का लंड धोती से बाहर झूल रहा था इस बात का अहसास होते ही उसकी चुत चुपचाप टपक पड़ती है,वो आंख बंद किये पड़ी रहती है दिल कि धड़कन धाड़ धाड़ कर के चल रही थी.
कालू :- पहले थोड़ी दारू पी लेते है, कालू के दिमाग़ मे कुछ तो चल रहा था वो कुछ भाँप चूका था.
रामु :- लेकिन.... पर....
कालू :- लेकिन वेकीन कुछ नहीं आओ तुम्हे आज नये तरीके से पिलाता हूँ.
कालू तीन कांच के गिलास भूरी के सपाट पेट पे रख देता है.
ठंडे गिलास पड़ते ही भूरी का दिल बाहर निकलने को होता है.वो हल्का सा कसमसती है परन्तु आंख नहीं खोलती.
पेट से होती हुई ठंडाई सीधा चुत कि लकीर मे स्थित दाने को छेड़ रही थी.
पहले से गरम भूरी का बदन तपने लगता है.
जिसे कालू भाँप लेता है.
पेट पे रखे ठन्डे गिलासो मे कालू दारू डालता है और तिनों भूरी के इर्द गिर्द बैठ जाते है तीनो ही भगवान कि बनाई इस नक्कासी किये जिस्म को घूर रहे थे.
बिल्लू दारू पिता हुआ एक हाथ भूरी के स्तन पे हलके से रखता है, आह्हःम... कितना मखमली अहसास था ये अहसास कभी महसूस ही नहीं हुआ था.
अंदर भूरी भी सिहर उठती है आज पुरे 30 साल बाद किसी मर्द का कड़क हाथ उसके स्तन पे लगा था, लेकिन विडंबना देखिये वो खुल के कुछ बोल भी नहीं सकती थी सिसकारी भी नहीं ले सकती थी.
होंठो के अंदर ही उसकी सिसकारी घुटी रह जाती है.
भूरी की कोई भी हरकत ना पाकर बिल्लू जोर से एक स्तन को दबा देता है.
बिल्लू :- यार क्या दूध है देख कैसे उछल रहे है, जैसे कोई गेंद हो.
मजा आ गया.
रामु भी बिल्लू कि बात सुन के अपना हाथ दूसरे स्तन पे रख देता है
रामु :- आअह्ह्ह.... हाँ यार रामु क्या मुलायम है.
अब हमला दो तरफ़ा हो गया था कहाँ एक मर्द को तरसती थी भूरी आज दो अलग अलग मर्दो के हाथो ने दोनों स्तनों को दबोच रखा था.
दारू का शुरूर सर चढ़ रहा था, रामु कालू कि हिम्मत बढ़ने लगी थी.
जबकि कालू चुपचाप शराब चूसक चूसक के पी रहा था.
रामु कालू अब भूरी के स्तनों को रगड़ने लगते है, भूरी के निप्पल टाइट हो के दर्द करने लगे थे, उसके निप्पल बार बार दोनों के सख्त हाथो से रगड़ खा रहे थे,
भूरी को सहन से बाहर हो रहा था, उसकी चुत छलछला के पानी बहा रही थी.
उत्तेजना के मारे उसकी चुत फुले जा रही थी जो कि भीगे हुए पेटीकोट से साफ दिख रही थी,पेटीकोट चुत कि दरार मे घुसा हुआ था,चुत दो हिस्सों मे बटी हुई थी, अब कहना मुश्किल था कि पेटीकोट का वो हिस्सा चुत के पानी से गिला हो के चिपका था या पहले से ही गिला था.
कालू रस बहती चुत को एकटक देखे जा रहा था, तभी वो अपनी उत्तेजना मे सर नीचे झुका के अपनी नाक चुत के उभार के ऊपर रख देता है.
भूरी को अपनी चुत पे गरम हवा का झोका सा महुसूस होता है, ऊपर से स्तन मर्दन, रगड़ाई चालू ही थी. भूरी अब मर जाएगी यदि वो जल्दी ना उठी तो अब सहन नहीं कर पायेगी.
30 साल कि गर्मी मार ही डालेगी, उसके मन मे आता है आंखे खोल दे उठ जाये और बोल ही दे कि चोदो मुझे गांड चुत सब फाड़ दो, परन्तु कैसे कहे बरसो कि इज़्ज़त दाव पे थी.
परन्तु आज ये तीनो जमुरे ठान के ही बैठे थे कि रगड़ के रख देंगे.
कालू चुत को सुंघे जा रहा था, वाह क्या खुशबू है साली दारू भी फ़ैल है इसके सामने, फिर गहरी सांस लेता है और अंदर तक़ तृप्त हो जाता है.
बिल्लू रामु कि नजर भी जैसे ही कालू कि सिसकारी सुन के नीचे कि और जाती है तो दोनों ही स्तन रगड़ना भूल जाते है नशा दिमाग़ मे चढ़ जाता है.
क्या उभार था चुत का, इतनी मोटी चुत.... गीले कपड़े मे साफ झलक रही थी.
अब तीनो के बर्दाश्त के बाहर कि बात हो चली थी बिल्लू हाथ आगे बढ़ा के पेटीकोट का नाड़ा एक झटके मे खोल देता है, जैसे ही पेटीकोट के नाड़े का खुलने का अहसास भूरी को होता है वो अंदर तक़ सिहर जाती है दिल का दौरा पड़ना अब लाजमी था इनती मदहोसी इतनी उत्तेजना क्या करू क्या करू? मै मर ना जाऊ?
इस उत्तेजना के मारे भूरी कि चुत पानी कि जोरदार उलटी कर देती है.
अब उठना ही होगा... भूरी मन बना ही लेती है.
परन्तु देर हो चुकी थी बिल्लू पेटीकोट को घुटने तक सरका चूका था लेकिन सामने जो नजारा था उसे देख के तीनो पलंग से गिर पड़ते है, धड़द्दाम्म्म..... हे भगवान ऐसी चुत इस उम्र मे ऐसी मोटी फूली हुई चुत इतनी छोटी सी.चुत पे एक भी बाल का नामोनिशान नहीं था, एकदम चिकनी चुत...
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तीनो को कोई होश नहीं था नीचे पड़े पड़े लम्बी सांस ले रहे थे...
तभी नह्ह्ह्हईई कि चीख के साथ भूरी उठ बैठती है अपने दोनों हाथो से अपने स्तन और चुत को ढक लेती है बिल्कुल नंगी तीनो के सामने खड़ी थी अपने हाथो का सहारा था सिर्फ....
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उधर गांव कामगंज मे भी सिर्फ हाथो का ही सहारा था... रतीवती अपने हाथो मे डॉ. असलम का लंड पकड़े हैरानी से आगे पीछे कर रही थी उसके लिए तो आश्चर्य कि बात यही थी कि लंड इतना भयानक भी होता है, वो नजर ही नहीं हटा पा रही थी पागलो कि तरह अलट पलट के लंड देखे जा रही थी.
कभी सुघती, कभी जीभ से चाट लेती,
डॉ. असलम आंख बंद किये इस सपने जैसी हक़ीक़त का मजा ले रहे थे.
उनका हाथ रतीवती के सर के पीछे था जैसे वो कुछ बोल रहे हो.
दोनों मुँह से कुछ नहीं बोल रहे थे बस उनका बदन बोल रहा था उनकी उत्तेजना काम कर रही थी.
तभी रतीवती कमावेश उत्तेजना से भर के पूरी जीभ निकाल के नीचे से ऊपर कि तरफ पूरा लंड चाट लेती है.
मदहोश कर देने वाला स्वाद महसूस होता है रतीवती को, वो अब पागल हो चुकी थी, स्थति ऐसी थी कि कोई आ भी जाता तो वो लंड ना छोड़ती.
डॉ. असलम थोड़ी सी आंखे खोलते है और देख के दंग रह जाते है कि इनका लंड पूरा गिला था रतीवती के थूक से.
अब वो भी इस नज़ारे को देखना चाहते थे नजर नीची किये रतीवती के सुन्दर होंठ से निकली लपलपाति जीभ देख रहे थे जो लगातार उनका लंड ऊपर नीचे चाटी जा रही थी जैसे किसी बच्चे को सालो बाद उसकी फेवरेट मिठाई मिली हो.
डॉ. असलम अपने हाँथ से रतीवती के सर के पीछे थोड़ा दबाव बढ़ाते है.
रतीवती स्वतः ही अपना सुन्दर मुँह खोल देती है और पुरे सुपाडे को अपने गरम मुँह मे भर लेती है
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उसे इतना पसंद आ रहा था कि वो सुपडे को मुँह मे लिए अंदर से सुपाडे के चारो तरफ जीभ चलाने लगती है
असलम का हाल बहुत बुरा था उनके मुँह से जोरदार आअह्ह्ह... हुंकार निकल जाती है जो बादल कि गरजना मे कही दब जाती है.
हुंकार सुन के रतीवती लंड मुँह मे पकडे ही ऊपर देखती है असलम तो नीचे ही देख रहे थे दोनों कि नजर टकरा जाती है ये पहला मौका था जब दोनों कि नजरें एक दूसरे से मिली थी, इस मिलन मे सिर्फ हवस थी, प्यास थी.
वो प्यास जो दोनों को एक दूसरे कि आँखों मे नजर आ रही थी, असलम के लंड के आगे उनकी कुरूपता खो गई थी असली सौंदर्य उनका काला भसंड लंड ही था.
दोनों ही नजरों नजरों मे एक दूसरे को स्वस्कृति दे चुके थे, बोल चुके थे कि ये लंड तुम्हारा है रतीवती मेरी प्यास बुझाओ.

और रतीवती पूरा मुँह खोल के लंड अंदर धकेल लेती है.
आहाहाहा म.क्या आनंद था, जितनी गरम रतीवती थी उस से कही ज्यादा उसका मुँह गरम था बिल्कुल कोई भट्टी जिसमे असलम का लंड आज पिघलने का था.
ऊपर से ये मौसम कि मार.... पानी के छींटे जमीन से टकरा के वापस रतीवती कि गांड और चुत पे लग रहे थे. रतीवती अपनी ऐड़ी के बल पूरी गांड फैलाये बैठी थी.
छींटे किसी छोटे छोटे तीर कि तरह चुत और गांड के छेद पे हमला कर रहे थे.
उत्तेजना से भरी रतीवती का एक हाँथ नीचे अपनी चुत के करीब पहुंच जाता है. और लकीर के बीच मौजूद दाने को सहलाने लगता है. उफ्फ्फ्फ़ .. करती रतीवती असलम के लंड को जड़तक़ मुँह मे भर लेती है उसके होंठ असलम के भारी टट्टो से टकरा जाते है, उसकी नजर टट्टो पे पड़ती है तो दंग रह जाती है इतने बड़े टट्टे?
अब हो भी क्यों ना बरसो का माल जमा कर रखा था इन टट्टो मे डॉ. असलम ने.
रतीवती कि सांस थामती महसूस होती है तो वो अपना सर पीछे कि और खिंचती है परन्तु लंड मुँह से बाहर नहीं निकालती.
अब एक हाथ चुत पे चल रहा था, दूसरे हाथ से वो असलम के बड़े भारी टट्टो को पकड़ के जोर दार झटके से वापस लंड गले तक़ उतार लेती है,
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डॉ. असलम हौरान थे कि ऐसा भी हो सकता है कोई औरत इस कदर कामुक हो सकती है.
उन्हें क्या पता कि औरत नंगेपन पे आ जाये तो क्या नहीं करती, वो इन मामलो मे बिल्कुल अनाड़ी थे. उनको तो ये सब बर्दाश्त के बाहर लग रहा था....
वो सिर्फ एकटक रतीवती कि काम क्रीड़ा को देखे जा रहे थे,
अब रतीवती इतनी गरम हो चुकी थी कि जोर जोर से धचा धच अपनी दो ऊँगली चुत मे चला रही थी वो अब रुकना नहीं चाहती थी उसे कैसे भी स्सखलित होना था.
नीचे चुत मे चलता हाथ, ऊपर मुँह मे सटासट जाता लंड और दूसरा हाथ टट्टो को मसल रहा था.
ऐसा कारनामा, ऐसी कामुक औरत नसीब वालो को ही मिलती है लेकिन जिसके नसीब मे थी वो दारू पी के लुड़का पड़ा था कमरे मे..
जिसको ऐसे खजाने कि कद्र नहीं वो खजाना कोई और लूट लेता है, जबकि यहाँ तो डॉ. असलम पे खुद रतीवती अपना यौवन का खजाना लूटा रही थी... जी भर के लूटा रही थी.
अब लंड पूरी रफ़्तार से मुँह मे जा रहा था, डॉ. असलम ने अपने दोनों हांथो से रतीवती का सर पकड़ के अपने लंड पे धकेले जा रहे थे, रतीवती भी क्या कम थी वो भी असलम के टट्टे पकडे धचा धच मुँह जड़ तक़ मारे जा रही थी.
एक बार मे लंड गले तक अंदर जाता एक बार मे बाहर.
रतीवती का थूक से लंड लिसलिसा गया था थूक टपक टपक के स्तन के रास्ते चुत तक पहुंच रहा था जहाँ रतीवती कि उंगलियां उस थूक का फायदा उठा के फचा फच चुत मे ऊँगली मारे जा रही थी...
फच फच फच.... आअह्ह्हह्ह्ह्ह....
अब वो छड़ आ चूका था जब इस गर्मी का अंत हो, असलम और रतीवती ही इस रगड़ाई को बर्दाश्त नहीं कर पाते और एक साथ भलभला के झड़ने लगते है. रतीवती कि चुत से सफ़ेद पानी का जोरदार फाव्वारा निकल के सीधा असलम के पैर पे चोट करता है.
अह्ह्ह्ह...... मै मरी पहली बार रतीवती के मुँह से शब्द फूटे थे.
असलम भी गर्मी बर्दास्त नहीं कर पाता पीच पीच पीछाक.... के साथ पहली धार वो रतीवती के मुँह के अंदर ही मार देता है परन्तु रतीवती के स्सखालन कि वजह से वो धम्म से गांड के बल बैठ जाती है... असलम कि पिचकारी एक के बाद एक रतीवती का बदन भिगोने लगती है..
रतीवती ने अभी भी असलम का लंड पकडे हुई थी, उसका हाथ और असलम का काला भयानक लंड वीर्य से भीगा हुआ था
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इतना वीर्य था कि पूरा शरीर नहा जाता है... रतीवती जैसे ही गरम वीर्य का स्पर्श अपने जलते बदन पे महसूस करते ही एक लम्बी धार अपनी चुत से छोड़ देती है रतीवती का वीर्य असलम के पैरो को भिगो रहा था.
रतीवती आजतक ऐसा कभी नहीं झड़ी थी उसकी तो जान ही निकल गई थी वो दिवार के सहरे निढाल बैठी अपनी टांग फैलाये लम्बी लम्बी सांसे ले रही थी, वीर्य जो मुँह मे था वो गले से नीचे जा चूका था.
असलम भी ढेर हो गया था उसका तो पहली बार ही था ऊपर से ऐसी कामुक औरत के साथ जो सिर्फ लंड चूस के ही किसी कि जान लेे ले.
असलम पीछे दिवार के साहरे खड़ा हांफ रहा था.
दोनों मे से अभी भी कोई कुछ नहीं बोल रहा था बस एक दूसरे को लम्बी लम्बी सांस लिए देखे जा रहे थे.
रतीवती कि जीभ अपने होंठो के चारो तरफ चल रही थी उसे वीर्य का स्वाद पसंद आया था. सारा चाट जाना चाहती थी..
तभी जोरदार बिजली कड़कती है दोनों के जिस्म रौशनी मे नहा जाते है, रतीवती का वीर्य से भरा जिस्म और असलम का थूक से भरा लंड ऐसा नजारा अच्छो अच्छो कि जान ले लेता.
दोनों को किसी से कोई शिकायत नहीं थी, तभी कमरे से कुछ गिरने कि आवाज़ आति है. रतीवती तुरंत खुद को संभालती है और जल्दी से खड़ी हो के अपनी मस्तानी गांड हिलाती गली से बाहर अपने कमरे कि और निकल पड़ती है.
जाते जाते वो मुड़ के असलम को देख मुस्कुरा देती है जैसे धन्यवाद कह रही हो...
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असलम तो मूर्ति बना एकटक उस बला कि खूबसूरत कामुक स्त्री को जाता देखता रह जाता है.
कथा जारी है.....
Mast update Bhai
 

Raja maurya

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चैप्टर -1, ठाकुर कि शादी, अपडेट -10

गांव विषरूप, ठाकुर कि हवेली मे
भूरी काकी मदहोशी,उत्तेजना, डरी हुई अपने स्तन और चुत पे हाथ रखे तीन मर्दो के बीच खड़ी थी,
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सभी भावनाये मिक्स हो रही थी, उत्तेजना से चुत टपक रही थी, निप्पल रगड़े जाने कि वजह से खड़े थे. और अब क्या होगा, बरसो कि इज़्ज़त मिट्टी मे मिल जायगी ये सोच के दिल धाड़ धाड़ कर धड़क रहा था सीना फट जाने पे आमादा था.
बिल्लू और रामु भूरी को अपने सामने नंगा खड़ा देख डर जाते है कि अब क्या होगा कही ठाकुर साहेब को ना कह दे,
भूरी :- ये क्या कर रहे हो तुम लोग? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? मुझे काकी बोलते हो तुम लोग.
जैसे तैसे खुद को संभाले अपनी इज़्ज़त बचाने के संघर्ष मे बोल गई भूरी.
कालू अभी तक शांत खड़ा था और आराम से दारू चूसक रह था, वही बिल्लू और रामु के चेहरे पे हवाईया उडी हुई थी.
कालू:- काकी आपको जो भी काकी बोलता है वो नीरा बेवकूफ है, कपडे के बाहर से कभी आपको देखने का मौका ही नहीं मिला.लेकिन अंदर से तो आप किसी जवान लड़की को भी मात दे दे...
भूरी कालू के मुँह से ऐसी तारीफ सुन सिसकरती है जो कि बहुत धीमी थी उसने अभी तक अपना पेटीकोट उठाने कि कोई जहामात नहीं उठाई थी
बिल्लू, कालू कि ऐसी हिम्मत देख के दंग रह जाता है, और थोड़ा हौसला रख के बोल देता है
" वैसे काकी आप इतनी रात गये अँधेरी तूफानी रात मे अर्धनग्न अवस्था मे क्या कर रही थी "
जिस बात का डर था वही हुआ भूरी बिल्लू कि बात सुन के शर्म से मरी जाती है उत्तेजना दबने लगती है.
कोई जवाब नहीं था...
भूरी :- वो वो .... मै मै..... वो मै.. हाँ... मै
कालू :- रहने दो काकी आपके पास कोई जवाब नहीं है शायद आप इस चीज कि तलाश मे थी?
ऐसा बोल के कालू अपनी धोती खोल फेंकता है. उसका नाग कि तरह फनफ़नाता लंड भूरी कि आँखों के सामने झलक पड़ता है.
भूरी पुरे 30 साल बाद लंड देख रही थी, वो भी बड़ा भारी मोटा 8इंच का लंड.
वो इसी के लिए तो तरसती थी यही तो वो खजाना था जिसे पा लेने कि चाह लिए ही लोकी तोड़ने चली थी.
भूरी कि चुत रुपी सुखी नदी मे बरसाती मौसम मे बाढ़ आ गई थी....
वो कुछ भी बोलने सुनने कि शक्ति खो चुकी थी.
कालू कि हिम्मत देख रामु बिल्लू दंग रह जाते है, वो भूरी कि तरफ देखते है तो पाते है कि भूरी एकटक कालू के झुलते इठलाते लंड को घूरे जा रही थी, उसकी छाती मारे हवस के ऊपर नीचे हो रही थी.
भूरी कि उत्तेजना और इज़्ज़त मे संघर्ष का अंत हो चूका था, इज़्ज़त शर्म पे हवस, कामवासना कि विजय हुई थी.
कालू :- क्यों काकी कैसा लगा? हम भी प्यासे है काकी
ऐसा बोल के कालू भूरी के नजदीक पहुंच के ठीक सामने खड़ा हो जाता है.
इतना पास कि जिस हाथ से भूरी ने चुत छुपा रखी थी उस हाथ पे कालू का लंड टकरा रहा था, जैसे मकान का मालिक अपने घर मे घुसने के लिए दरवाज़ा पिट रहा हो...
कालू कि सांसे दारू भरी सांसे सीधा भूरी के नाथूनो पे हमला कर रही थी.
भूरी इतना कुछ एक साथ होने से सिहर जाती है उसके हाथ पे लंड कि चुभन महसूस ही रही थी लगता था जैसे हथेली को पिघला के चुत मे घुस जायेगा.
शराब भरी सांसे भूरी को मदहोशी के कुएँ मे धकेल रही थी.
वो ये सब सहन नहीं कर सकती थी... आअह्ह्ह.... करती गर्म सांस छोड़ के आंखे बंद कर लेती है.
गर्म साँसो का भभका कालू अपने काले भद्दे होंठो पे पड़ते ही उसका लंड जोर जोर से चुत का दरवाजा खटखटाने लगता है.
बिल्लू रामु बैठे बैठे ये दुर्लभ दृश्य देख रहे थे उनके लोडे वापस बगावत पे उतर आये थे.
दोनों ही एक साथ खड़े हो जाते है और अपनी धोती निकाल फेंकते है.. अब हमाम मे सब नंगे थे.

भूरी अभी भी आंखे बंद किये आने वाले पल कि प्रतीक्षा कर रही थी.
तभी कोई गीली लपलापती चीज उसे अपने सूखे होंठो पे महुसूस होती है वो अपनी आंखे खोल देखती है कि कालू अपनी जबान से उसकी फड़फड़ाते होंठो को चाट रहा था, जैसे कोई सांप अपने शिकार से खेलना चाहता हो.
भूरीअब शर्म और इज़्ज़त का टोकरा पूरी तरह उतार फेंक देना चाहती थी, जिस चीज का 30 साल से इंतज़ार था वो आज कर लेना चाहती थी उसका बदन तो कबका शर्म छोड़ चूका था.
कालू धीरे धीरे भूरी के होंठ चाट रहा था उसे कामुक रस पिने कि अनुभूति हो रही थी, कालू थोड़ा पीछे हटता है तो भूरी कि नजर कालू के पीछे खड़े बिल्लू और रामु पे पड़ती है दोनों ही पूर्णतया नंगे खड़े थे अपना मोटा काला लंड पकड़े, भूरी को बता देना चाहते थे कि हम किसी से कम नहीं.
ऐसा विहंगम नजारा देख के भूरी कि चुत छल छला जाती है उसे महुसूस होता है कि हज़ारो चीटिया उसकी चुत मे चल रही हो.
अब हवस ऐसी सवार हुई कि भूरी कुछ भी कर सकती थी उत्तेजना इतनी बढ़ गई थी कि बदन जलने लगा था, बिल्लू रामु भी आगे बढ़ के भूरी का हाथ पकड़ उसके स्तन से हटा देते है और अपने लंड पे रख देते है.
एक बार को तो भूरी हाथ पीछे खींच लेती है परन्तु वो भी ये मौका नहीं गवाना चाहती थी वो अब अपने होश मे नहीं थी स्वतः ही उसके हाथ बिल्लू रामु के लंड पे चले जाते है....
आअह्ह्हम... कितना गरम अहसास था ऐसा सुकून कभी नहीं मिला उत्तेजना से प्रेरित हो कर दोनों हाथ दोनों के लंड पे आगे पीछे होने लगते है
रामु बिल्लू भी मदहोशी मे अपने हाथ भूरी के स्तन पे रख सहलाने लगते है.
भूरी कि तो हालात ही ख़राब थी दोनों उसके निप्पल को नोच रहे थे कभी पुरे स्तन को जोर से दबा देते थे.
भूरी के मुँह से रह रह के सिसकारी निकले जा रही थी....
इतने मे कालू अपने घुटने के बल बैठ जाता है और सीधा फूली हुई चुत के सामनेबैठा घूरे जा रहा था.
अब कालू अपनी जीभ निकाल के भूरी कि साफ चिकनी मादकता से भीगी चुत पे रख देता है.... आअह्ह्ह..... भूरी सिहर उठती है पसीना छूट पड़ता है दोनों हाथ से रामु बिल्लू के लंड जोर से कस लेती है सिसकारी के साथ ही तीनो नीचे कालू कि तरफ देखते है, कालू लपा लप जीभ से चुत चाटे जा रहा था उसकी पूरी कोशिश थी कि वो लकीर के अंदर जीभ घुसा सके परन्तु भूरी के खड़े होने के कारण ऐसा संभव नहीं था.
रामु बिल्लू चुत चटाई देख कर उत्तेजना मे जोर जोर से भूरी के स्तन को मसलने लगते है
हमला तीन तरफा था भूरी अपना सर दिवार के सहारे पटक लेती है.
उसकी चुत कालू के थूक से भर गई थी, कालू लगातार जीभ को लकीर मे चलाये जा रहा था मानो कोई सुखी नदी है जिसे खोद खोद के पानी निकाल देगा उसकी मेहनत रंग भी ला रही थी भूरी कि चुत लबालब कामरस से भर गई थी नदी कभी भी अपना बांध तोड़ के बह सकती थी....
थोड़ी खुदाई और करनी थी कालू को...
इतने मे बिल्लू अपना होंठ भूरी के निप्पल पे रख उसे दाँत से पकड़ के खींच देता है, नीचे लगातर होती चुत चटाई से भूरी बेहाल थी अब नहीं अब नहीं...... कालऊऊऊ.....
आह्हःम्म.. आआहहहह.... मै गई
इसी के साथ सब्र का बांध टूट पड़ा भूरी कि छोटी सी फूली हुई चुत से पानी छलछला उठा, ऐसे भरभरा के झड़ी जैसे उसकी आत्मा ही चुत से बाहर निकल गई हो.
कालू का पूरा मुँह चिपचिपे पानी से गिला हो गया जो कि उसके लिए अमृत सामान था वो अभी भी चुत चाटे जा रहा था पूरी नदी का पानी एक बार मे ही पी जाना चाहता था...
आअह्ह्ह..... कर के एक धार और सीधा कालू के मुँह मे मार देती है और वही बिल्लू रामु का लंड पकड़े पकड़े ही झूल जाती है उसके प्राण चुत के रास्ते निकल गये प्रतीत होते थे.
ये स्सखलन 30 सालो से जमा था भूरी कि चुत मे.
तेज़ तेज़ सांस लेती भूरी निढाल पड़ी थी..
बिल्लू :- अबे कालू कही मर तो नहीं गई ये.
कालू :- साले उल्लू का पट्ठा कभी लड़की नहीं चोदी क्या, काकी जैसी कामुक औरत ने आज अपना अमृत बहाया है.
ऐसी औरते मर्दो को मारा करती है मरा नहीं करती.
भूरी कालू के मुँह से अपनी कामुकता कि तारीफ सुन मुस्कुरा पड़ती है.
वो भी अब इस खेल मे शामिल हो जाना चाहती थी.
भूरी :- सही कहाँ कालू तुमने ये कामरस मे पिछले 30 सालो से ले के घूम रही हूँ, कभी शर्म से बोल ही ना सकी.
लेकिन मुझे पता नहीं था कि बेशर्मी मे ज्यादा मजा है.
ऐसा बोल के भूरी पास खड़े बिल्लू के लंड को पकड़ के सहलाने लगती है.... बिल्लू कराह उठता है क्या कोमल हाथ है, रामु भी अपना नंगा लंड भूरी के मुँह के नजदीक ले आता है. भूरी झड़ने के बाद भी गरम थी रामु के लंड से आती खुशबू उसे वापस से मदहोश करने लगी.
भूरी अपना मुँह मे रामु का मोटा लंड भर लेती है, ऐसा करने से भूरी थोड़ा आगे को झुक जाती है जिस कारण उसकी गांड ऊपर को उठ जाती है
तीनो पहली बार भूरी कि गांड देख रहे थे, क्या गांड थी बिल्कुल गोरी चिकनी फैली हुई.
गांड के बीच रास्ते पे एक महीन सा छेद था
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जो गांड कि खूबसूरती मे चार चाँद लगा रहा था. तीनो ही ऐसे दुर्लभ दर्शन पा के हैरान रह जाते है.
रामु :- वाह काकी क्या गांड है आपकी इतनी गोरी गांड हमने कभी नहीं देखि.
भूरी सिर्फ मुस्कुरा देती है अपनी तारीफ पे.. शर्माहाट उत्तेजना मे गांड का छेद खुल बंद होने लगता है.
ये देख के तीनो घनघना जाते है, कालू से अब सब्र नहीं होता वो तुरंत भूरी के पीछे जा के गांड के पास बैठ जाता है और किसी भूखे कुत्ते कि तरह जीभ लप लपाता भूरी कि गांड पे टूट पड़ता है.
लप लप कर के चाटने लगता है, उसके अंदर का जानवर बाहर आ रहा था.
भूति इस आक्रमण से चौक जाती है और आवेश मे आ के बिल्लू के लंड को जोर से मुँह मे पकडे दबा देती है...
बिल्लू :-आहहहह..... काकी मार दिया.
भूरी जो इतने सालो बाद मर्दो के स्पर्श का आनंद ले रही थी उसके अंदर कि कुतिया जाग चुकी थी वो सिर्फ चुदना चाहती थी, पीछे लगातार कालू गांड मे मुँह मारे जा रहा था.
भूरी अतिउत्तेजना मे आ के रामु का लंड भी मुँह के करीब ले आती है वो साथ मे दोनों लंडो को मुँह मे ठूस लेने कि कोशिश करती है.
ऐसा रंडिपन, ऐसी कामुकता देख के तीनो हक्के बक्के थे. इतनी उम्र मे भी ऐसी गर्मी... लपालप दोनों के लंड को भूरी चाटे जा रही थी पीछे अपनी गांड हिला हिला के कालू के मुँह पे मार रही थी.
वासना पूरी तरह हावी हो चुकी थी, कालू कभी जीभ से चाटता तो कभी अपने होंठो मे भर के छेद को अंदर ही अपनी जबान से चुभलाता,
कालू के ऐसे कामुक अंदाज़ से भूरी घनघना जाती है फिर भी नहीं बोल पाती कि मुझे चोदो जबकि तीनो सिर्फ उसके बदन से खेल रहे थे.
उन्हें इसमें ही आनंद आ रहा था, बहुत दिन बाद कोई औरत मिली थी वो भी भूरी जैसी कामुक हवस से भरी औरत पुरे आनंद से खेलना था सम्भोग का पूरा आनंद उठाना था.
भूरी कि गांड थूक से बिल्कुल गीली हो चुकी थी कालू का थूक गांड कि लकीर से रिसता हुआ नीचे झरने बहती चुत से जा के मिलन कर रहा था.... कामरस और थूक दोनों नीचे टपक टपक कर जाँघ के रास्ते रिस रहे थे.
भूरी से अब रहा नहीं जाता वो अपना एक हाथ पीछे ले जाती है और चुत को बेरहमी से मसलाने लगति है, उसे अपनी चुत से दुश्मनी थी वो उसे नोच के निकाल फेंक देना चाहती थी. घुटी घुटी सी सिसकारी उसके मुँह मे गु गु गुम... कि आवाज़ के साथ निकाल रही थी...
रामु भूरी को चुत सहलाते देख उसका हाथ पकड़ लेता है " काकी हमारे रहते खुद आपको ही रगड़नी पड़े तो हमारा जीना व्यर्थ है.
चाटक के साथ एक हाथ उसकी बहती चुत पे मार देता है, भूरी उछल पड़ती है.
आअह्ह्ह.... रामु क्या कर रहे हो.
एक और चटाक.... पड़ती है चुत पे...
आह्हः.... रामु..... आहहहह.... लेकिन इस बार सिसकारी के अलावा कुछ नहीं निकलता उसके मुँह से.
दो चार और थप्पड़ चुत पे पढ़ने से भूरी मदमस्त हाथनि कि तरह हो जाती है जिसे काबू करना तीनो के लिए मुश्किल होने वाला था.
अभी इस हथनि पे अंकुश नहीं लगाया तो बात हाथ से निकल जाएगी.
कालू भी भूरी कि गर्मी, बैचैनी से इधर उधर गांड हिलाती भूरी कि हालत समझ रहा था.
अब उसे आगे बढ़ना ही था....कालू अपना सूखा लंड एक बार मे ही थूक से गीली गांड मे एक ही बार मे जड़ तक डाल देता है...
आआहहहह...... चिहुक पड़ती है भूरी. जैसे किसी ने गर्म मोटी सलाख गांड मे जड़ तक उतार दि हो. हवस और दर्द से आंखे बंद कर आगे कि और गिरने लगती है.
ये पहला मौका था कि गांड मे कुछ गया था, चुत मे तो खुद ही कुछ ना कुछ डालती ही रहती थी. दर्द बर्दाश्त के बाहर था.... निढाल हो वो सर आगे जमीन पे रख देती है परन्तु कालू पीछे से गांड मजबूती से पकडे रखता है..
धचा धच धचा धच... बिना रहम के कालू गांड मारे जा रहा था, भूरी सिसकती जा रही थी अभी भी जोर से बिल्लू का लंड पकडे हुई थी.
रामु बिलकुल हैरानी से इस कामुक चुदाई को देख रहे थे, क्या गांड थी.... हर धक्के के साथ हिल जाती थी. हिल हिल के रामु बिल्लू को बुला रही थी कि तुम क्यों खाली बैठे हो? आओ तुम भी चोदो मुझे.
रामु एक हाथ भूरी के जलते बदन के नीचे दबे बड़े बड़े गोल स्तन पे रख देता है और तेज़ी से मसलने लगता है.
इस मर्दन से भूरी वापस से उत्तेजना हवास के आगोश मे जाने लगी और वापस से कुतिया बन जाती है, बिल्लू उसे सहारा दे के वापस उसके मुँह मे लंड डाल के धचा धच पेलने लगता है.
मुँह गांड दोनों भरे हुए थे, भूरी मादकता के चरम पे थी, यही मौका था रामु भूरी के जलते बदन के नीचे सरक जाता है और स्तन को पकड़ अपने मुँह मे ठूस लेता है, चाटता है, काटता है उत्तेजना मे भरा रामु बेरहमी से रगड़ाई चुसाई कर रहा था.निप्पल बिल्कुल सुर्ख लाल हो चुके थे. लगता था जैसे कोई गाय का बछड़ा बहुत बरसो बाद दूध पी रहा है चूस चूस के नोच ही डालेगा.
आअह्ह्ह..... आह्हब..... नोच रामु नोच खा जा इसे... तेरे लिए ही है.
कालू तू गांड फाड़ मेरी और तेज़ कर अंदर ही घुस जा.
बोल के वापस से बिल्लू का लंड गले तक ठूस लेती है
अब रुकना मुश्किल था..... कालू गचा गच लंड मारे जा रहा था
....उसे अब स्सखलित होना था गर्मी बहुत हो गई थी.
आअह्ह्ह... के साथ.... गांड मे वीर्य कि बौछार हो जाती है, पच पीच.... गांड मे गर्मी पाते ही भूरी कि रस बाहती चुत फट पड़ती है..

आहहहह..... उत्तेजना वंश बिल्लू का लंड टट्टो सहित पूरा मुँह मे डाल लेती है बिल्लू ऐसी लंड चुसाई सहन नहीं कर पाता वो भी फट पड़ता है भूरी के मुँह मे ही....
तीनो झाड रहे थे... कालू का वीर्य गांड से निकल के चुत के रास्ते नीचे गिर रहा था. रामु अभी भी दूध पीने मे बिजी था भूरी उस के ऊपर धम से गिर पड़ती है.
जिस वजह से बिल्लू का लंड बाहर निकल जाता है बिल्लू का लंड टट्टो तक पूरा वीर्य और थूक से भरा झूल रहा था.
भूरी लंड को देख के मुस्कुरा रही थी और अपनी सांसे दुरुस्त करने का प्रयास कर रही थी. कालू नाम का गांडफाड़ तूफान भी शांत हो चूका था, कालू कि नजर भूरी कि गांड पे पड़ती है वहाँ अब वो छोटा छेद नहीं था वहाँ गड्डा बन गया था ऐसा गड्डा कोई मेहनती मजदूर ही कर सकता था.
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रामु भी भूरी के नीचे पड़ा स्तन चूस रहा था उसका लंड भी अब चरम पे था, भूरी कि चुत रामु के लंड से स्पर्श हो रही थी, भूरी अभी पूरी तरह सम्भली भी नहीं थी कि उसकी कामरस वीर्य से भीगी चुत गर्म सख्त मोटे लंड का स्पर्श पा के फिर कुलबुलाने लगी.... रामु का लंड भूरी के हिलने से फचाक से भूरी कि छोटी सी चुत मे उतर जाता है. भूरी सिर्फ कसमसा के रह जाती है क्युकी उसे रामु ने अपनी मजबूत भुजाओं मे जकड रखा था....
आआ..... हहह.... असीम संतोष कि प्राप्ति हुई थी, भूरी को समझ आ चूका था असली लंड और लोकी बैगन मे कितना अंतर होता है..
पुरे 30 साल बाद चुत ने लंड का अहसाह पाया था, लज्जत से भूरी कि आंखे पलट गई थी, वो विक्षिप्तो कि तरह अपने बाल पकडे सर इधर उधर किये रामु के लंड पे कूद रही थीउसे ये मौका मजा नहीं खोना था.
धपा धप करती भूरी अपनी गांड पटक रही थी एक बार मे पूरा लंड बाहर निकालती और दुगनी रफ़्तार से वापस लंड पे टट्टो के ऊपर कूद पड़ती.
तीनो ही भूरी काकी के इस रूप को देख के दंग रह गये थे.... एक हाथ से सर पकड़े दूसरे हाथ से अपने स्तन नोचती भूरी साक्षात् काम देवी लग रही थी....
बिल्लू जो अभी तक गांड चुत के सुख से अछूता था उसके दिल मे हुक सी मचने लगती है उसका लंड वापस से तन तनाने लगता है. उसका लंड अभी भी वीर्य और थूक से बिल्कुल गिला था.
बिल्लू उछलती भूरी के पीछे आ जाता है और जैसे ही गांड के छेद पे नजर पड़ती है उसका लंड बगावत पे उतर आता है, वहाँ गांड का छेद उसे बुला रहा था, खुल बंद हो रहा था ठीक उसके नीचे रामु का लंड सटा सट अंदर बाहर हो रहा था.
आव देखा ना ताव सीधा अपना मुसल लंड भूरी कि गांड मे धसा देता है.
आअह्ह्ह..... भूरी चीख पड़ती है, लेकिन अब इस चीख मे संतोष, हवस कामवासना शामिल थी दर्द का कोई नामोनिशान नहीं था.
अब भूरी को अपनी मुराद से ज्यादा मिल रहा था कहाँ एक लंड भी नहीं था आज दो दो लंड एक साथ घुसे पड़े थे.
भूरी चीख मारती सिसकारी लेती धचा धच पेली जा रही थी, कमरे पे फच फच.... फचाक का मधुर संगीत गूँजता रहा.
बिल्लू रामु दोनों ही एक साथ लंड बाहर निकालते और एक साथ अंदर जड़ तक़ समा जाते.
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दोनों के टट्टे चुत और गांड पे चोट कर रहे थे जिस से मजा दुगना हो चला था भूरी का.....
ये हवस ये कामुकता आज रात रुकने वाली नहीं थी, कब किसने किस छेद मे कितनी देर तक मारा पता नहीं था.
प्रतियोगिता शुरू हो चुकी थी जिसमे भूरी नहीं हारने कि थी आज उसे पुरे 30 साल बाद जीत मिली थी.
इस जीत का उत्साह उसने ना जाने कितनी बार स्सखलित हो के मनाया.....
बाहर बारिश जारी थी और अंदर चुदाई कि प्रतियोगिता.

सुबह हो चुकी थी.

कथा जारी है..
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Raja maurya

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अपडेट -10 contd...


भूरी पूरी तरह वीर्य मे लथपथ कमरे मे तीनो मर्दो के बीच पड़ी थी. उसके बदन के हर छेद से वीर्य टपक रहा था, शरीर का ऐसा कोई भी हिस्सा नहीं बचा था जहाँ भूरी वीर्य रुपी अमृत से अछूती रह गई हो.
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बारिश बंद हो चुकी थी हवस का तूफान भी खत्म हो चूका था. सूरज कि पहली किरण भूरी के बदन को नहला रही थी,
उसका पूरा बदन चमक रहा था... नई सुबह के साथ हवस कि भी नई सुबह कि शुरुआत हो चुकी थी 30 साल का वनवास खत्म हो चूका था.
भूरी नंगी ही कमरे से बाहर निकल पड़ती है जाती हुई बस एक बार पलट के देखती है तीनो जमुरे पस्त पड़े हुए थे.
भूरी हवेली कि तरफ निकल पड़ती है.

सुबह कि किरण गांव कामगंज, रामनिवास के घर पे भी नया अध्याय लिख रही थी.
रात भर असलम सो ही नहीं पाए थे, उनके लंड पे रह रह के रतीवती के होंठ का कसाव महुसूस हो रहा था. उनके पैर पे लगे रतीवती के वीर्य को ऊँगली मे लपेट कर रह रह के चाट रहा था.
रतीवती भी असलम के वीर्य का स्वाद पा के फूली नहीं समा पा रही थी एक नई ऊर्जा नये जीवन का संचार हो चूका था. रतीवती नंगी ही सो चुकी थी.
इसी कसमाकस मे सुबह हो चली थी
ठाकुर साहेब भी उठ चूके थे, रामनिवास ठाकुर साहेब के उठने कि ही प्रतीक्षा कर रहा था,
ठाकुर साहेब और असलम ने नाश्ता कर लिया था वो जाने कि तैयारी मे थे... परन्तु असलम और रतीवती के चेहरे उतरे हुए थे. रतीवती इतना कुछ होने के बाद कुछ और पा लेना चाहती थी लगता था उसे इंतज़ार करना पड़ेगा.
असलम भी नये नये अहसास से बाहर निकला भी नहीं था कि उसके वापस जाने कि घड़ी आ गई थी.
रतीवती और रामनिवास ठाकुर साहेब और असलम को छोड़ने दरवाजे पे खड़े थे.
रामनिवास काफ़ी तनाव और चिंता मे खड़ा था.
ठाकुर :- क्या हुआ रामनिवास तुम उदास दिख रहे हो? लगता है तुम इस रिश्ते से ख़ुश नहीं हो
रामनिवास :- नहीं नहीं.... नहीं तो ठाकुर साहेब हम लोग तो बहुत ख़ुश है बस मे ये नहीं समझ पा रहा हूँ कि इतनी सारी तैयारी इतने कम समय मे कैसे हो पायेगी? इतनी जल्दी पैसे का इंतज़ाम कैसे कर पाउँगा मै?
ठाकुर :- हाहाहाहाहा.... रामनिवास बस इतनी सी बात कल ही बता देते ऐसी समस्या थी तो.
ऐसा बोल के वो अपनी जेब से 1000rs निकालते है और रामनिवास के हाथ ने थमा देते है (1857 मे 1000rs लाखो रूपए के बराबर थे)
रामनिवास :- ठाकुर साहेब ये... ये... क्या है? इतने सारे रूपये? रतीवती कि तो आंखे ही चमक उठती है इतना पैसा एक साथ सपने मे भी नहीं देखे थे मियां बीवी ने.
ठाकुर :- रखिये रामनिवास रखिये... अब आप हमारे समधी है, कामवती होने वाली ठकुराइन है ये मामूली रकम है.
और रही तैयारी कि बात तो मै ऐसा करता हूँ डॉ. असलम को 2दिन के लिए यही छोड़ जाता हूँ वो सब प्रबंध कर के वापस विषरूप चले आएंगे. क्यों डॉ. असलम आप कर देंगे ना?
डॉ. असलम कि ये बात सुन के ही फ्यूज उड़ गये थे... रतीवती भी स्तम्भ खड़ी ठाकुर साहेब को देख रही थी जैसे ठाकुर ने रतीवती के मन कि बात सुन ली हो.
डॉ. असल:- मै म.... मै..... ठाकुर साहेब मै.... जैसा आप कहे मै रुक के सारी तैयारी कर दूंगा आखिर आपकी शादी है लगना चाहिए कि इस घर मे ठाकुर ज़ालिम सिंह कि बारात आई है.
खुद को समय रहते असलम संभल चूका था.
इतना सुन ना था कि रतीवती काँप जाती है चुत से पानी छलक जाता है, वो शर्म से मुस्कुरा के सर नीचे कर लेती है.
इस बात का अहसास सिर्फ डॉ. असलम को ही हो पाया था.
फिर ठाकुर साहेब अपने गाड़िवान के साथ विष रूप के लिए निकल जाते है.
पीछे 2 दिन के लिए असलम रामनिवास के घर ही रह जाता है...


कैसी होंगी शादी कि तैयारी?
तैयार रहिएगा ठाकुर कि बारात मे चलने के लिए?
जल्द ही मिलेगा आपका दोस्त andy pndy 👍😀
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Raja maurya

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चैप्टर -1 ठाकुर कि शादी, अपडेट -11

डॉ. असलम और रतीवती कि बांन्छे खिल जाती है, रात कि खुमारी उतरी ही कहाँ थी के असलम के रुकने का इंतेज़ाम हो गया था. बिन बोले ही आँखों आँखों मे ही एक दूसरे के प्रीति जो हवस थी वो साफ झलक रही थी.
इधर उल्लू का चरखा रामनिवास ख़ुश था कि उसे कुछ नहीं करना पड़ेगा आराम से बैठ के शराब पी के मौज करूंगा असलम तैयारी देख लेगा.
रामनिवास :- अरी भाग्यवन ये लो पैसा और डॉ. असलम के साथ मिल के सामान कि लिस्ट बना ले ना देखना कोई कमी ना रह जाये.
मै अभी आता हूँ.... ऐसा कह के वो घर से बाहर निकल जाता है और सीधा शराब कि दुकान पे ही रुकता है.
आज पहली बार रतीवती उसके दारू पिने कि आदत से ख़ुश थी वो अब तो यही चाहती थी कि वो पड़ा रहे दारू के नशे मे असलम है ना सब संभाल लेगें....
वो भी मंद मंद मुस्कुरा के नहाने कमरे मे चली जाती है. असलम बलखाती रतीवती को देखते ही रह जाता है उसे कल रात नंगी अपनी गांड मटकाती रतीवती का नंगा गोरा कामुक बदन याद आ जाता है.
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असलम अपना लंड मसलता कमरे मे चला जाता है,
तभी कमरे मे किसी के आने कि आहट होती है असलम चौक के ऊपर देखता है तो कामवती थी क्या सुंदर थी बला कि खूबसूरत.... उसकी माँ का जवानी वाला रूप थी कामवती.
कामवती :- काका नाश्ता कर लीजिये आगे बहुत काम है.
डॉ. असलम :- अरे कामवती तुम मेरी होने वाली भाभी हो इस हिसाब से तो मै तुम्हारा देवर हुआ ना. असलम मजाकिया लहजे मे बोलते है.
कामवती :- काका आप तो मेरे पिता के उम्र के है, आप को मै काका ही बोलूंगी.
और मुस्कुरा देती है.आप भी मुझे कामवती या कम्मो ही बुलाइये अच्छा लगेगा मुझे.
कितनी भोली मासूम मुस्कुराहट थी कामवती कि.

डॉ. असलम :- hahahaha.... ठीक है भाभी ज़ी... म.. मम... मेरेमतलब कामवती.
असलम के मन मे कामवती के लिए रत्तीभार भी कोई गलत भावना नहीं थी, थी ही इतनी मासूम कामवती
मै मस्जिद हो के आता हूँ फिर नाश्ता करता हूँ.
डॉ. असलम अपनी मुसलमानी टोपी पहने मस्जिद कि और निकल जाते है.
जहाँ रास्ते मे असलम मौलवी साहब से टकरा जाते है.
मौलवी :-अरे बरखुरदार देख के जरा, इस गांव मे नये लगते हो कभी देखा नहीं आपको?
डॉ. असलम :- ज़ी मौलवी साहेब मै कल ही ठाकुर साहेब के साथ रामनिवास के घर आया था, तैयारी के लिए 2 दिन रुक गया. सोचा अल्लाह का शुक्रिया अदा कर दू मेरी मुराद पूरी करने के लिए.
और अपने बारे मे बताते है.
मौलवी :- अच्छा अच्छा तो आप ही है डॉ. असलम भई काफ़ी नाम सुना है आपका और ठाकुर ज़ालिम सिंह ज़ी का.
आप आस पास के गांव मे एकलौते डॉक्टर है.
डॉ. असलम :- अरे मौलवी साहेब अब इतनी भी तारीफ के काबिल नहीं है हम. झेम्प जाते है थोड़ा तारीफ सुन के.
मौलवी और डॉ. असलम बात करते करते गांव कि और लौट रहे थे.
बातचीत करते हुए असलम को मालूम पड़ता है कि उनकी एक विधवा बेटी है जिसकी पति को डाकुओ ने मार डाला था.
असलम ये जान के दुखी होते है...
बात करते करते गांव आ जाता है.
असलम रामनिवास के घर आ जाते है और नाश्ते केिये कामवती को आवाज़ देते है..
कामवती कामवती....लाओ नाश्ता ले आओ भूख लगी है.
इधर मौलवी साहेब भी अपने घर पहुंचते है जहाँ रुखसाना खाना बना रही थी.
अपने बापू को आता देख उनके लिए नाश्ता निकलती है....
मौलवी :- अरी ये नाश्ता छोड़ और मेरी बात सुन, अपने गांव कि कामवती का रिश्ता पक्का हो गया है. अगले मंगलवार को उसकी शादी है. यहाँ पे ठाकुर ज़ालिम सिंह कादोस्त दो दिन के लिए रुझान हुआ है.
डॉ. असलम ज्ञानी पुरुष है हमें इसका भी वीर्य चाहिए होगा काम पूरा करने के लिए.
रुखसाना :- बापू पिछली बार ही तो मै रंगा बिल्ला का ताज़ा वीर्य लाइ थी.
मौलवी :- हाँ बेटा लेकिन जो हमें करना है उसके लिए ताकत के साथ अक्ल भी चाहिए, ताकत तो रंगा बिल्ला और अन्य पुरुषो से मिल जाएगी परन्तु दिमाग़ डॉ. असलम के पास से ही मिलेगा.
पिछला मंगलवार....
रुखसाना रंगा बिल्ला से चुद कर वापस घर आई थी तो उसकी गांड मे दोनों का ढेर सारा वीर्य भरा था, वोअपने बापू के कमरे मे घुसते ही जल्दी से एक कटोरा ढूंढती है और अपनी सलवार तुरंत नीचे खिसका के कटोरे पे बैठ जाती है.
वो अपनी गांड के छेद को थोड़ा ढीला छोड़ती है उतने मे ही पुररर.... पुररर.... फस फस... कर के वीर्य कि धार निकल पड़ती है. कटोरे मे वीर्य जमा होने लगता है.
मौलवी :- वाह बेटी आज तो बहुत सारा वीर्य लाइ है.
रुखसाना :- हाँ बापू आज दोनों का खेल सुबह तक चला. ऐसा कह मुस्कुरा देती है.
वीर्य ख़त्म हो चूका था बचाखुचा वीर्य वो अपनी गांड मे एक ऊँगली डाल के बाहर निकलती है और कटोरे के किनारे पे ऊँगली रगड़ के एक एक बून्द कटोरे मे गिरा देती है
रुखसाना :- लीजिये बापू भर दिया है कटोरा मैंने, अपना सलवार ऊपर कर नाड़ा बांधती हुई बोलती है.
मौलवी तुरंत उस कटोरे को उठा उसमे कुछ मन्त्र पढ़ने लगता है, और कटोरे पे फूंकता है
ऐसा दो तीन बार करता है और कटोरा रुखसाना कि तरफ बड़ा देता है ले बेटी इसे एक सांस मे पूरा पी जा.
इस से तुझे वो ताकत मिलेगी जो तुझे चाहिए....तुझे तेरे मकसद मे सफल होने के लिए ताकत कि जरुरत है.
रुखसाना बिना कुछ कहे कटोरा उठा अपने होंठो से लगा लेती है और गाटागट एक ही सांस मे हलक के नीचे उतार लेती है.
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आअह्ह्ह.... मजा आगया बापू मुझे शक्ति ताकत का संचार होता लग रहा है. वैसे भी रुखसाना को वीर्य पसंद था.

वर्तमान मे आज के दिन
मौलवी :- समझी मेरी बच्ची हमें ताकत के साथ अक्ल भी चाहिए जो कि असलम से मिलेगा.
रुखसाना :- ठीक है बापू मै उसका वीर्य भी हासिल कर लुंगी....
ये किस ताकत, किस मकसद कि बात हो रही थी?
रुखसाना को अलग अलग मर्दो का वीर्य क्यों चाहिए था?
सब वक़्त ही जनता था...

रामनिवास के घर पे असलम कि आवाज़ का कोई उत्तर नहीं आता तो वो रसोई घर कि और चल पड़ता है.
रसोई घर मे भी कोई नहीं था.
डॉ. असलम :- कहाँ गई ये कामवती? वो रतीवती को आवाज़ देने का सोचता है.. रतीवती का ख्याल आते ही उसे क रात कि घटना याद आ जाती है... जो हुआ कैसे हुआ? कुछ नहीं पता.
लेकिन सुबह रतीवती के चेहरे पे कोई शिकायत नहीं थी. लगता है जिस आग मे मै तड़प रहा हूँ रतीवती भी उसी मे तड़प रही है.
असलम का सोचना ठीक ही था.
रतीवती अपनेबाथरूम मे पुरे कपडे उतार पूर्ण रूप से नंगी बैठी कल रात कि घटना याद कर रही थी, फचा फच अपनी चुत मे ऊँगली मार रही थी..... क्या लंड है असलम ज़ी का.
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चूसने मे इतना मजा आया था, चुत मे कैसा मजा आएगा. फच फच... ऊँगली लगातार चुत चोदे जा रही थी.... रतीवती गांड उठा उठा के कल्पना मे खोई हुई थी..
इधर असलम रतीवती के कमरे कि और चल पड़ता है, दरवाजे के बाहर आ के आवाज़ देता है लेकिन कोई उत्तर नहीं मिलता वो दरवाजा खटखटाने का सोच के जैसे ही दरवाजे को हाथ लगाता है वो चरररर.... कि आवाज़ के साथ खुल जाता है.
अंदर बाथरूम मे रतीवती काम उत्तेजना, हवस मे इस कदर खोई थी कि उसे कोई आहट सुनाई नहीं देती.
कमरे से लगे बाथरूम मे दरवाजे कि जगह सिर्फ पर्दा था, वैसे भी दरवाजे कि जरुरत ही क्या थी कमरा रतीवती का था चाहे जैसे रहे कौन देखने वाला है..
असलम को बाथरूम से फच फच.... सिसकारी कि आवाज़ आ रही थी... आअह्ह्ह..... फच फच.... असलम
डॉ. असलम :- ये तो रतीवती को आवाज़ है और ये मेरा नाम क्यों ले रही है? कही कुछ तकलीफ तो नहीं?
अब असलम क्या जाने गरम और कामुक औरत कि आवाज़.
असलम उत्सुकता वंश बाथरूम कि ओर बढ़ चलता है.
तभी कही से हवा का झोका आता है ओर पर्दा हल्का सा नीचे से हट जाता है.
अंदर का नजारा देख असलम के तोते उड़ जाते है, एक झटके मे ही लंड फनफना जाता है, असलम का लंड इतनी तेज़ झटका देता है कि वो गिरतर गिरते बचते है..
अंदर का नजारा ही ऐसा था... काम रस मे भीगी गोरी चिकनी चुत... जिस पे बालो का एक भी कटरा नहीं था...
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या.... अल्लाह चुत ऐसी भी होती है.
असलम को दिल का दौरा पड़ जाना तय था जीवन मे वो पहली बार चुत देख रहे थे.
कल रात सिर्फ मुख चोदन हुआ था परन्तु अँधेरे मे कुछ दिखा नहीं था... लेकिन आज असलम ने वो देख लिया था जो शायद उसकी किस्मत मे ही नहीं था.
अंदर रतीवती फचा फच चुत मे ऊँगली मार रही थी.

ऐसा कामुक ऐसा मादक नजारा देख असलम के मुँह से जोरदार चीख रुपी हवस कि चिंगारी निकल जाती है... उनका लंड फटने पे आतुर था.... वो लुंगी उतार फेंकते है
अंदर रतीवती भी मर्दना सिसकारी सुन के चौक जाती है
तभी पर्दा उड़ता है.... ओर दोनों एक दूसरे के सामने पेपर्दा हो जाते है.
कथा जारी है...
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andypndy

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चैप्टर :-4 कामवती का पुनः जन्म अपडेट -54

गांव घुड़पुर
"हमें अपने भाई विचित्र सिंह की चिंता हो रही है वीरा, बहुत दिन बीत गए उसकी कोई खबर ही नहीं है "
रूपवती अपने घोड़े वीरा के साथ चिंतित अवस्था मे हवेली के पास ही जंगल मे घूम रही थी.
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जब से वीरा ने उसकी चुदाई की है वो वीरा की दीवानी हो गई है उस दिन के बाद से वीरा रोज़ रात को इंसानी रूप मे रूपवती को खूब भोगता था,खूब निचोड़ता था.
रूपवती भी इस चुदाई से खिलतीं जा रही थी उसके अंग अंग मे मदकता आ गई थी.
वीरा की खास बात ही यही थी की वो भले इंसानी रूप मे हो लेकिन लंड घोड़े का ही रहता था, अपने भयानक लंड से वो रूपवती की चुत गांड को पूरी तरह फाड़ चूका था इतने दिनों मे, क्या चुत और क्या गांड अब कोई फर्क नहीं था उसकी जगह एक बड़ा सा गड्डा भर था.

सिर्फ बदकिस्मती से उलजुलूल के श्राप से वो सिर्फ रात मे ही इंसानी रूप ले सकता था दिनभर उसे घुड़रूप मे ही रहना होता था.
अभी भी घुड़रूप मे ही रूपवती के साथ टहल रहा था.
वीरा :- आप व्यर्थ ही चिंता करती है रूपवती,मत भूलिए वो ठाकुर विचित्र सिंह के अलावा महान चोर मंगूस भी है वो चोर जो कभी नाकामयाब नहीं हुआ.
रूपवाती :- जानते है हम की वो कभी हारता नहीं है फिर भी मेरा छोटा भाई है...कोई समाचार नहीं है उसका
कही कोई अनहोनी तो नहीं हो गई उसके साथ.
वीरा :- आप व्यर्थ ही चिंता कर रही है नागमणि जल्दी है ले आएंगे ठाकुर विचित्र सिंह.
ऐसा बोल रूपवती के कंधे पे सर टिका देता है.
रूपवती :- अच्छा वीरा तुमने कभी बताया नहीं की कामवती कौन है? उस से प्यार कैसे हुआ?
रूपवती की बात सुन वीरा चिंता मे डूबता गया...
कभी उसकी आँखों मे प्यार दीखता तो कभी ज्वाला.
"कामवती मेरा प्यार थी, मै उस से बहुत प्यार करता था परन्तु उस दुष्ट नाग नागेंद्र ने जलन और बदले की भावना से मेरी कामवती को मार डाला.....मार डाला उसने

रूपवती :- सकपकाती हुई क्या कह रहे हो ये तुम वीरा? पूरी बात बताओ
वीरा :- सच कह रहा हूँ रूपवती....तो सुइये की क्या हुआ था....
वीरा और रूपवती वही पेड़ के नीचे बैठ जाते है.

वही चोर मंगूस सफल हो भी असफल जमीन की धूल चाट रहा था,
चाटककककक..... उठ साले हरामी.
कहाँ है मेरी मणि? तू यहाँ क्या कर रहा है?
चाटककककम.....फुसससस...
आअह्ह्ह.... चोर मंगूस होश मे आ रहा था,तभी चाटकककम.....
उसकी आंखे पूरी तरह खुल जाती है,सर मे भयानक पीड़ा हो रही थी..परन्तु जैसे ही उसकी नजर सामने पड़ती है हवा टाइट हो जाती है.
उसके सीने पे भयानक काला सांप बैठा था,सांप ने मंगूस के गले मे फंदा बना कुंडली मे जकड़ा हुआ था.
नागेंद्र :- बोल कहाँ है मेरी नागमणि? बोल वरना गला दबा दूंगा
मंगूस : बताता हूँ बताता हूँ...गला तो छोड़.
मंगूस,रूपवती के द्वारा सुनी पूरी बात बता देता है.
नागेंद्र :- ओह तो ये बात है...तुझे वीरा ने भेजा है?
बोल कहाँ है मेरी मणि?
मंगूस :- मुझे किसी ने नहीं भेजा है मै चोर हूँ चोर मंगूस नायब हिरे जवाहरत चुराना मेरा शौक है.
और तेरी मणि भूरी काकी ले गई...और वही कामरूपा है.
नागेंद्र ये बात सुन के चौक जाता है "क्या...क्या..क्या कहाँ तूने भूरी काकी ही कामरूपा है?
हाँ भाई हाँ...सब मेरी आँखों के सामने ही हुआ, और तेरा बाप सर्पटा भी जिन्दा है उसी के लिए वो नागमणि ले गई है.
सारा किस्सा कह सुनाता है मंगूस.
नागेंद्र की कुंडली ढीली होती चली जाती है,मंगूस के सीने से उतर बाजु मे गिर पड़ता है उसके लिए यकीन कर पाना मुश्किल था.
"मतलब वो कामिनी कामरूपा इतने बरसो से मेरी आँखों के सामने रही और मै पहचान भी ना सका "
मंगूस भी उठ के बैठ गया था.
नागेंद्र :- ये तूने क्या किया अब बिना मणि के कामवती को कैसे हासिल कर पाउँगा मै?
मंगूस :- कामवती? वो ठाकुर की नयी बीवी? उस से तेरा क्या लेना देना?
नागेंद्र दुख मे डूबा हुआ था "कामवती मेरा प्यार है मंगूस और ये उसका दूसरा जन्म है इस जन्म मे उसे पाने के लिए ही मै शाप ग्रस्त जीवन जीने पे मजबूर हूँ,एक नागमणि ही थी जो मेरी ताकत थी वो भी तूने गवा दी.
मंगूस को अफ़सोस होने लगा "नागेंद्र,मंगूस कभी नाकामयाब नहीं होता मणि मै वापस ले आऊंगा.
तुम मुझे पूरी बात बताओ....

तो सुनो मंगूस.....
नागेंद्र अब अपने और कामवती के प्यार की कहानी कहने जा रहा है.
जो की बड़ा ही अजीब प्यार होने वाला है.
ये चक्कर क्या है जिसमे वीरा भी कामवती से प्यार का दावा करता है और नागेंद्र भी कामवती का प्यार है?
क्या एक ही समय दो लोगो से प्यार संभव है?
बने रहिये इस प्यार की बाहर मे....कथा जारी है.
दोस्तों इस अपडेट मे थोड़ा चेंज है एक बार वापस पढ़ ले.
वीरा और नागेंद्र अपनी प्यार की दास्तान सुनाने जा रहे है देखना है है की किसकी कहानी सच है और किसकी झूटी.
कही ऐसा ना हो को इन दोनों के चक्कर मे विचित्र सिंह और रूपवती के रिश्तो मे दरार आ जाये.
बने रहिये कथा जारी है...
 
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andypndy

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चैप्टर -4 कामवती का पुनः जन्म अपडेट -55

गांव काम गंज

"मालकिन....मालकिन....माफ़ कीजियेगा मै चोर डाकू नहीं हूँ " बिल्लू पीछे से अपनी सफाई पेश कर रहा था
परन्तु डरी साहमी रतिवती भगति हुई कमरे मे दाखिल हो गई और धड़ाम से दरवाजा बंद कर दरवाजे से पीठ टिका दी.
उसकी सांसे तेज़ चल रही थी दिल धाड़ धाड़ करता सीने से बाहर निकलने को था.
कामुक बदन पसीने से नहा गया था "कितनी बार कहा था हरामी रामनिवास को पैसा ना दिखाए,फालतू ना उठाये.लेकिन बूढा किसी काम का नहीं,आ गए अब डाकू,हे भगवान क्या होगा अब.
रतिवती भय से बड़बड़ये जा रही थी उसे कोई सुध नहीं थी किस अवस्था मे है वो.
ठक....ठक....थकककक.... दरवाजे पे दस्तक होने लगी
बिल्लू :- मालकिन आप घबराये नहीं मै डाकू नहीं हूँ मेरी बात सुनिए.
मै ठाकुर ज़ालिम सिंह के यहाँ से आया हूँ जरुरी सन्देशा लाया हूँ.
रतिवती ये सुन के राहत महसूस करती है फिर भी उसके दिल मे शंका थी क्युकी रामनिवास तो दरवाजे पे ताला लगा गया था.
"बाहर तो ताला लगा था तुम अंदर कैसे आये?"
बिल्लू :- कैसा ताला दरवाजा तो पूरा खुला था मैंने दस्तक भी दी,आवाज़ भी लगाई परन्तु कोई उत्तर ना पा के अंदर को आ गया परन्तु आप मुझे देख के डर गई.
रतिवती गुस्से से भर गई आज अगर रामनिवास उसके सामने होता तो वो उसकी जान ले लेटी कैसा नाकारा पति था उसका.
तभी उसे अपनी हालत का आभास होता है "हे भगवान मकान ऐसे ही अंग वस्त्रों मे भागी चली आई ठाकुर के आदमी ने मेरे बदन को देख लिया होगा.क्या करू मै अब? क्या सोच रहा होगा वो मेरे बारे मे.
अंदर से खोज जवाब ना आता देख बिल्लू वापस से आवाज़ देता है "मालकिन यकीन करे मेरा.. जरुरी सन्देश है.
रतिवती :- रुकिए थोड़ा.
रतिवती जल्दी जल्दी एक साड़ी लपेट लेती है जल्दी मे ब्लाउज ना पहन मे लाल अंगिया पे ही साड़ी का पल्लू डाल लेती है.
दरवाजा खुल जाता है....
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बाहर बिल्लू के नाथूनो मे एक ताज़ा मादक खुसबू घुस जाती है सामने ताजी ताजी नहाई सुन्दर गोरी,गीले बालो मे अप्सरा खड़ी थी.गीली होने की वजह से उसके सुडोल स्तन का पूरा आभास साड़ी के ऊपर से हो रहा था.
बिल्लू उस सुंदरता मे खोता चला जाता है उसे अभी थोड़ी देर का दृश्य याद आ जाता है कैसे रतिवती सिर्फ अंगवस्त्र मे खड़ी थी फिर अपने भारी चूतड़ों को हिलती भागी थी.
रतिवती सामने बिल्लू पे नजर डालती है दानव अकार का आदमी था बिल्लू हाथ ने लठ लिए.
सच्चा मर्द था आखिर बिल्लू..
जी जी....मालकिन ठाकुर ज़ालिम सिंह के यहाँ से आपको लिवा लाने का बुलावा है.
रतिवती चौकती हुई "ऐसे आनन फानन मे? क्या बात है बिल्लू?
बिल्लू :- साँप द्वारा कटे जाने की खबर लह सुनाता है.
"हे भगवान....ये क्या जो गया मेरी बच्ची कामवती " रतिवती सर पे हाथ रखे वही दरवाजे पे धम से बैठ जाती है बैठने से उसका पल्लू नीचे गिर जाता है वो सिर्फ लाल अंगिया मे थी जिसमे से उसके सुडोल बड़े स्तन आधे से ज्यादा बाहर आ गए थे, बिल्लू ये नजारा ऊपर से देख रहा था उसे तो पुरे पहाड़ और उसकी गहरी घाटी नजर आ रही थी.
बिल्लू ये नजारा देख सन सना जाता है
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हिम्मत कर अपने हाथ बढ़ाते हुए रतिवती के कंधे पे रख उसे उठता है "मालकिन चिंता मत कीजिये ठकुराइन को कुछ नहीं हुआ है डॉ.असलम है वो इलाज कर रहे है वैसे मैंने खुद देखा था की जहर फैलने का कोई नामोनिशान नहीं था उनके शरीर पे "
रतिवती उठती हुई खड़ी हो जाती है "क्या सच बिल्लू...मेरी बच्ची ठीक है?
बिल्लू जो की अभी भी रतिवती की बड़ी सुडोल छतियों को घूरे जा रहा था रतिवती ठीक उसके सामने खड़ी थी पल्लू अभी भी धाराशाई था..
जैसे ही रतिवती उसकी नजर भाँपती है जल्दी से अपना पल्लू ठीक कर वापस कमरे मे दाखिल ही जाती है
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"हे भगवान ये क्या हो रहा है मेरे साथ,मेरे अंग बार बार बिल्लू के सामने खुल क्यों जा रहे है"
बिल्लू :- मालकिन मै आपका बाहर इंतज़ार कर रहा हूँ जल्दी आइये? बिल्लू अपने बड़े लंड को मसलता अपनी आँखों मे रतिवती का अर्ध नग्न बदन लिए बाहर को चल देता है.
रतिवती जल्दी जल्दी तैयार होने लगती है


गांव विष रूप
भूतकाल
वो बहुत भयानक युद्ध था मंगूस,मै अपने बड़े भाई की सर कटी लाश देख के बोखला गया था, मेरे बाप का कोई आता पता नहीं था,मेरे पिताजी के दो विश्वास पात्र नीचे लाश मे तब्दील हो चुके थे,
मै ये दृश्य ना देख सका जार जार रोता चीखता रहा.... तभज मुझे वहा चट्टान मे गाड़ी एक तलवार दिखी जिसके ऊपर घोड़े का निशान था.
नाग पुरोहित :- शांत हो जाओ नागेंद्र तुम्हारे खानदान की बर्बादी का बदला लेना है तुम्हे.
ये तलवार इस पे घोड़े का निशान बतलाता है की घुडवांश की तलवार है...
मै चित्कार उठा...सेनापति नागसेन सेना तैयार करो.
क्रोध से मेरी नागमणि ज्वाला फेंक रही थी.

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गांव घुड़पुर
वीरा :- मै जब अपनी बहन का नंगा खून से लथ पथ जिस्म ले के इस महल मे पंहुचा तो सभी लोग खून के आंसू रो रहे थे मेरे पिताजी ये सदमा सहन ही ना कर पाए उन्होंने तत्काल दाम तोड़ दिया.
मै गुस्से की जवाला मे जल रहा था नागवंश का नामोनिशान मिटा देना था.
"घुड़सेन सेना तैयार करो सम्पूर्ण नागवंश आज खत्म होगा"
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दोनों तरफ बदले की आग थी,परन्तु जिस की वजह से आग लगी थी वो सर्पटा तो गायब था
उसका कोई आता पता नहीं था.

जंग जारी है.... एक प्रजाति का खत्म होना तय है
 
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