चैप्टर -4 कामवती का पुनः जन्म अपडेट -56
वर्तमान समय
पुलिस चौकी विष रूप
सर.सर....मुख्यालय से जवाब आ गया है.
दरोगा :- हम जानते है रामलखन क्या जवाब होगा,दरोगा पूरी तरह टूट चूका था निराश था...कल तक लम्बा चौड़ा जवान मर्द दरोगा आज एकदम बूढा लग रहा था चेहरे को रौनक ख़त्म हो गई थी,शरीर झुक गया था
दिल मे ग्लानि और पछतावा था,
हमेशा अपने फर्ज़ के साथ खड़ा रहा परन्तु आज एक गलती ने सब बर्बाद कर दिया
रामलखन :- आप को तत्कालीन सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है.
दरोगा के आँखों से आँसू बहे जा रहे थे... ईमानदार दरोगा कर्तव्यनिष्ठ दरोगा सब कुछ गवा चूका था.
कहाँ उसकी तररकी होनी थी और कहाँ नौकरी भी गई.
दरोगा पश्चाताप के आँसू लिए थाने से बाहर निकल गया उसने वर्दी पे कालिख पोत दी थी.
गांव कामगंज
रतिवती ना जाने क्यों खूब रच के तैयार हुए जा रही थी,एक पल को कामवती की खबर से घबरा गई थी लेकिन बिल्लू के आश्वासन ने उसे हिम्मत बंधाई थी उस वजह से रतिवती तनाव मुक्त सजने मे लगी थी.
लाल चटक साड़ी,माथे पे सिंदूर,हाथो मे चूड़ी
आईने मे अपने अक्स को देख खुद ही शर्मा गई,क्युकी उसकी आधे से ज्यादा स्तन बाहर को झाँक रहे थे.शर्माहत मे अपने स्तनों को हाथ से धक् लेती है जैसे तो कोई आईने के पीछे बैठा उसे देख रहा हो.
रतिवती तैयार हुई बाहर को आ जाती है...
बिल्लू उसे देखता ही रह जाता है "कौन कहेगा की ये एक जवान लड़की की माँ है "
रतिवती :- चले बिल्लू...?
बिल्लू तो खोया हुआ था,उस हसीन लाल परी को एकटक देखे जा रहा था कभी उभर देखता कभी हल्का भरा पेट कभी सुन्दर चेहरा.
क्या देखे क्या ना देखे सब कुछ ही तो सुन्दर था..
"आरी भाग्यवान कहाँ जा रही हो?" पीछे से लड़खड़ता रामनिवास आ पंहुचा था
उसे देखते है रतिवती आगबबूला हो गई बिल्लू का ध्यान भी रामनिवास पे गया.
एक मैला कुचला सा आदमी दारू के नशे मे चूर लड़खड़ता दरवाजे पे पहुंच गया था
रतिवती ने उसे खूब खरी खोटी सुनाई.
और तांगे पे चढ़ने लगी तांगा ऊँचा था रतिवती का पैर फिसल गया "हाय दइया....चोट लग गई "
तुम क्या खड़े देख रहे हो मदद नहीं कर सकते कभी तो कोई काम आ जाओ
रतिवती गुस्से मे भरी रामनिवास पे बरस पडी.
"अरी भाग्यवान संभाल के" रामनिवास लड़खड़ाता रतिवती को सहारा देने लगा अब भला रतिवती जैसा कामुक भरा बदन उस से कहाँ सम्भलाता ऊपर से शराब के नशे मे चूर.
खूब कोशिश की रतिवती को सहारा दे परन्तु सब बेकार
बिल्लू चुपचाप ये नजारा देख रहा था उसकी नजर तो सिर्फ गद्देदार भारी रतिवती पे ही टिकी हुई थी की तभी रतिवती की नजर बिल्लू से टकरा गई उस नजर मे एक विनती थी जैसे कह रही हो बिल्लू तुम ही कर दो इस नकारे से तो कुछ होने से रहा.
ना जाने क्यों बिल्लू भी उस नजर को समझ गया अनपढ़ जाहिल गधे बिल्लू मे ना जाने ये नजरिया कहाँ से आ गया की वो एक औरत की आँखों को समझने लगा था.
तुरंत तांगे से उतर गया और रतिवती के बिलकुल पीछे खड़ा हो गया, रतिवति के बदन से निकलती खुसबू उसे झकझोर रही थी उसका हाथ खुद बा खुद रतिवती की गांड के पीछे लग गया
हाय क्या मुलायम अहसास था...एक दम मखमली
जैसे ही बिल्लू ने जोर लगाया उसे ऐसा लगा की किसी गद्दे मे हाथ दे दिया हो बिल्लू के जोर से रतिवती की गांड और ज्यादा फ़ैल गई....रतिवती अपनी गांड पे एक कठोर मर्द के हाथ पा के सिहर उठी उम्मम्मम....उसके मुँह से सिटी सी निकली जिसे कोई ना सुन पाया उसने जानबूझ के अपना वजन बिल्लू के हाथ पे डाल दिया जैसे परखना चाह रही हो की कितनी ताकत है बिल्लू मे..
बिल्लू भी कहाँ काम था पक्का देहाती था,लथेट था...एक दम पूरी ताकत से गांड के दोनों हिस्सों को दबोच के ऊपर को धक्का दे दिया... लो मालकिन चढ़ा दिया आपको.
बिल्लू ऐसे बोला जैसे अपनी मर्दानगी झाड़ दी हो रतिवती पे...
रतिवती भी प्रभावित थी बिल्लू के बाहुबल से...."देखा जी आपने ये होती है मर्द की ताकत "
रतिवती ने लगभग रामनिवास को झाड़ते हुए बोला परन्तु उसका कथन ऐसा था जिसे सुन बिल्लू को अपनी मर्दानगी पे घमंड होने लगा.
पता नहीं यहाँ किस ताकत की बात हो रही थी?
बिल्लू :- चले मालकिन?
रतिवती :- चलो बिल्लू...वैसे भी तुमने बहुत मदद की.
बिल्लू :- खिसयानी हसीं हस देता है....मालकिन जैसा आप कहे.
तांगा धूल उडाता चल देता है पीछे बचता है उल्लू का चरखा रामनिवास....
"अब जम के शराब पिऊंगा "हाहाहाहा....मुझे मर्दानगी सिखाती है हिच...हिच....
रामनिवास वापस शराब के ठेके की और बढ़ चला
कथा जारी है.....