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Incest तीन सगी बेटियां (Completed)

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आशा (थोडा मुस्कुराते): नहीं…वह तो काम कर रहा है…इंजीनियर है…उसकी पढाई सब हो गयी।।

जगदीश राय: मतलब।।वह स्टूडेंट नहीं है…और तुम उसके साथ…कहाँ मिला तुम्हे…बताओ…

सवाल पूछते हुए जगदीश राय आशा की नंगे शरीर को निहार भी रहा था। और धीरे धीरे उसके लंड पर प्रभाव पडने लगा।

आशा भी खूब जानती थी। इसलिए उसने भी जान बुझकर कपडे नहीं पहने।

और वैसे ही नंगी रहकर जावब दे रही थी। वह जान चुकी थी की पापा की नज़रे कहाँ कहाँ घूम रही है।

आशा: एक कॉमन फ्रेंड की ओर से…मेरी एक सहेली है…उसका कजिन भाई है वह…

जगदीश राय: पर तुझे शर्म नहीं आयी…यह सब करते हुए तेरी।।उमर ही क्या है…अगर इस उम्र में कुछ उच-नीच हो गया तो क्या होगा इस घर की इज़्ज़त का…सोचा कभी तूने…

आशा: पापा…मैंने ऐसा कुछ नहीं किया जिससे घर की इज़्ज़त को धक्का लग सके…बस थोड़ा सा मजा कर रही थी।

आशा ने यह कहते अपने हाथो से टीशर्ट ठीक किया और इसी बहाने अपने हाथो से अपने चूचे मसल दिए।

जगदीश राय यह देखकर हिल गया।

चूचे इतने मस्त आकार के थे की उसके मुह में पानी आ गया और लंड खड़ा होने लगा।

जगदीश राय (संभालते हुए):मम्म।।मज़ा…क्या यह मजा है…इसे मजा कहते है…

आशा (थोडा मुस्कुराते): और फिर क्या कहते है…जो आप और निशा दीदी करते है वह मजा नहीं तो और क्या है…

जगदीश राय , एक मिनट समझा नहीं की जो उसने सुना वह ठीक सुना या नही। वह दंग रह गया।
Bhout hi chalo londiya hai bhai
 

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आशा ने ऐसे पूछा जैसे वह नंगी खडी अपने पापा पे मेहरबानी कर रही हो।

जगदीश राय (भूखे नज़र मारते हुए): हाँ…पहन लो…

जगदीश राय को समझ नहीं आया की वह वहां से जाये या नही।

उसने आधे मन से दरवाज़े की तरफ कदम बढाया, पर आशा ने उसकी दिल की सुन ली।

आंसा: आप इतनी जल्दी कैसे आये…आप तो 5 बजे आते है न…

आशा ने टीशर्ट पहनते हुए पूछा।

जगदीश राय मुडा। और सामने आशा बिना कुछ शरम, अपने पापा के सामने चूचे और चूत दीखाते हुए टीशर्ट पहन रही थी।

जहां निशा की चूचे बहुत बड़े और मुलायम थे, आशा के कड़क और गोलदार। निप्पल भी भूरे थे। आशा सांवली होने के बावजुद, उसके सभी अंगो में सही पैमाने पर चर्बी थी।

जगदीश राय चूचो को देखता रहा , और जैसे ही चूचो और पेट का भ्रमण करके चूत की तरफ उसकी ऑंखें पहुंची, आशा ने तुरंत अपने हाथ से चूत को ढ़क लिया।

जगदीश राय के मुह से सिसकी निकल गयी। आशा मन ही मन अपने पापा पर हँस रही थी।

आशा: बताइये ना पापा…।जल्दी कैसे आ गए…

जगदीश राय: क्यों…अच्छा हुआ जल्द आ गया…वरना तुम्हारी यह करतूत देखने को कैसे मिलता।

जगदीश राय , झूठ का ग़ुस्सा दिखाने का असफल अखरी कोशिश करते हुये।

आशा: सो तो है…पर मेरा प्रोग्राम तो चौपट कर दिया न आपने

जगदीश राय, को आशा की बेशरमी और बदतमीज़ी पर चीढ आने लगा।

आशा (मुडते हुए): मेरा।।शरट्स…हम्म्म…हाँ यहाँ है…।

आशा के गोलदार, उभरी हुई गांड जगदीश राय के सामने थी।

और गांड के बीच में कुछ था जो जगदीश राय देखकर समझ नहीं पा रहा था।

आशा , शॉर्ट्स पहनने के लिए थोड़ा झुकी पर वह सफ़ेद चीज वहां से हिल नहीं रहा था। गौर से देखने पर , उस पर ख़रगोश का मखमल का बाल लगा हुआ था।

जगदीश राय: अरे…यह क्या है।।तुम्हारे पीछे…

आशा, ने तुरंत अपना शॉर्ट्स चढा लिया। अब वह टी शर्ट और एक बहुत छोटी शॉर्ट्स पहने खड़ी थी, और शॉर्ट्स के बटन डाल रही थी।

आशा: क्या पिताजी…

जगदीश राय: यह तुम्हारे पिछवाड़े पर…सफ़ेद सा…फर का…

आशा: अच्छा वह…वह मेरी …पूँछ है…
Bhout hi mast update👍👍
 

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जगदीश राय (चौकते हुए): क्या…क्या है वह…पूछ? क्या पुंछ।

आशा,अपने बुक्स उठाते हुए…

आशा: पूँछ मतलब…पूँछ…टेल है मेरी…

जगदीश राय: टेल…टेल तो जानवारो का होता है…इंसानो को कहाँ…।

आशा: मैं भी तो जानवर हु…रैबिट हु मैं…खरगोश ।

जगदीश राय: क्या…क्या पागलपन है यह…

आशा: पापा…आप समझेंगे नहीं…इसलिए आप रहने दीजिये…मुझे अब पढाई करनी है।।

जगदीश राय: अरे…क्या समझना है…तुम कुछ चिपका रखी हो…अपने गाँड में।।मेरा मतलब…पिछवाड़े पर…और कहती हो की तुम रैबिट हो…

आशा: हाँ बिलकुल…मैं ख़ुद को रैबिट की तरह महसूस करती हु…उछलती कूदती खरगोश…हे हे।।

जगदीश राय: अच्छा…

आशा: और मैंने उसे चिपका नहीं रखी है…घुसा रखी है अपने अंदर…

जगदीश राय (चौकते हुए): क्या…।तुमने कहाँ घूसा रखी है…?

आशा: अपनी गांड में…और कहाँ…

जगदीश राय , आशा की मुह से गांड शब्द सुनकर भी अनसुन्हा कर दिया, क्युकी वह जो यह सुन रहा था वह यकींन नहीं कर पा रहा था।

जगदीश राय, चौक कर, वही चेयर पर बैठ गया।

जगदीश राय: तो…।क्या…तुम…उसे बाहर निकालो…क्या उस लड़के ने तुम्हारे अंदर घुसाया…

आशा: अरे नहि।।यह बाहर नहीं आता…पुरे दिन मेरे अंदर ही रहता है।।यह मेरे शरीर का एक भाग है…जैसे मेरी हाथ पैर वैसे ही…

जगदीश राय: पुरे दिन।।तुम।।इसे अपने अंदर रखती हो…कभी बाहर नहीं निकालति।।???

आशा: बस सिर्फ नहाते वक़्त और ओफ़्कोर्स लैट्रिन जाते वक़्त।

जगदीश राय: मतलब स्कूल…टयुशन…सोते समय…हर वक़्त अंदर रहता है…

आशा (मुस्कुराते हुए): हाँ…हर वक़्त…मेरी गांड को सहलाते रहता है…

जगदीश राय , कुछ वक़्त के लिए चूप हो जाता है।

सभी जानते थे की आशा थोड़ी विचित्र है, पर इतनी सनकी हुई है आज जगदीश राय को मालुम हुआ।

और वह जानता था की अब मामला हाथ से निकल चूका है।

आशा, अपने पापा की यह हालत, बड़ी ही शीतल स्वाभाव से देखते रहती है।

जगदीश राय: यह…कब से…

आशा: यहि कोई 4 महीने से…पहले थोड़े समय के लिए रखती थी…पर अब तो हर वक़्त मेरे शरीर का हिस्सा बन चूका है।।

जगदीश राय के मन में हज़ार सवाल आ रहे थे, पर उसे पता नहीं चल रहा था की कहाँ से शुरू करे।

जगदीश राय: तुम स्कूल मैं बैठती कैसे हो…

आशा: आराम से…टेल का बाहर का हिस्सा मुलायम रैबिट के खाल से बना हुआ है। तो स्कर्ट से बाहर भी नहीं आती और आराम से बैठ पाती हूँ। शुरू शुरू में तो तक्लीक होती थी। हर घन्टे में टॉइलेट जाकर ठीक करना पड़ता था।।हे हे।।पर अब कोई प्रॉब्लम नहीं होती।।

जगदीश राय: पर…पर…तुम्हे यह मिला कहाँ से…किसने बताया…और क्यों…

आशा: मेरी एक फ्रेंड है लवीना, वह अपने दीदी को मिलने अमेरिका गयी थी। वहां से ले आयी। हम दोनों रैब्बिटस है।
Sahi hai bhai👍👍
 

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जगदीश राय: तुम्हारी उस ब्यॉफ्रेंड लड़के को भी पता है…उससे कोई प्रॉब्लम नहीं है इसमें…

आशा (हँस्ती हुए): प्रॉब्लम…हा ह।।वह तो मरा पडा रहता है।।टेल को देखने के लिए…एक बार अपनी गांड दिखा दूँ तो पागल हो जाता है। कभी कभी उससे खेलने देति हूँ उसे।

आशा की यह बेशरमी बात सुनकर अब जगदीश राय कुछ गरम होने लगा था और लंड पर प्रभाव पड रहा था।

आशा , अपने पापा को बोतल में उतार चुकी थी।

जगदीश राय (गरम होकर): ठीक है…वैसे मुझे यह सब पसंद नही।।बंद कर दो यह सब…अच्छा नहीं है यह…

आशा: क्या अच्छा नहीं है…आपने कहाँ देखा मेरे टेल को…देखेंगे?

जगदीश राय: अब…।नही…।हा…ठीक है…।दिखाओ…अगर।।तुम…

इसके पहले जगदीश राय अपनी बात ख़तम करता आशा पापा के सामने खड़ी हो गयी। और पीछे मुडी

और अपने गाण्ड पर से शॉर्ट्स निचे सरका दिया।

ईद के चाँद की तरह, अपने पापा के सामने आशा की गोलदार गांड खिलकर आ गई।

आशा: यह देखिये…

गांड के बिचो बीच, गालो को चिरते हुई, ख़रगोश के पूँछ के जैसे एक पूँछ , निकल कर बाहर आ रहा था।

इतनी चिपककर घूसा हुआ था की गांड का छेद दिखाई नहीं दे रहा था।

जगदीश राय का लंड पुरे कगार में खड़ा हुआ था।

आशा , बड़ी ही नज़ाकत से चेहरा घूमाकर, अपने पापा के ऑंखों में देखी। उसे पापा के पेंट में से खड़ा लंड साफ़ दिखाई दे रहा था।

निशा को चोदते हुए पापा का लंड वो कई बार देख चुकी थी। और वह उसका आकर जानती थी।

आशा: कैसी है …पापा…कुछ बोलो तो…बस यूही ताक़ते रहोगे।।?

जगदीश राय , अपने गले से थूक निगलती हुयी।
Mast tail hai beti.
 

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जगदीश राय: अच्छी है…।ठीक है…

आशा: आप चाहे हो पूँछ को छु सकते हो।

काँपते हाथो से जगदीश राय, आशा के गांड के तरफ ले गया।

जगदीश राय (मन में): नहीं जगदीश…क्या।।कर रहा है तू…नहीं…रुक ज।।आशा नासमझ है…

पर लंड के सामने न दिल न दिमाग की बात न सुनी।

आशा को तुरंत अपने गाण्ड पर प्रभाव महसूस हुआ। और वह समझ गई की पापा अपने हाथो से उसके पूँछ को सहला रहे है।

जगदीश राय , को आश्चर्य हुआ की , पूँछ कितनी टाइट गांड में फँसी है। क्युकी बिच में, उसने पूँछ को धीरे से खीचा पर , पूँछ अपनी जगह से हिली भी नही।

आशा: बाहर नहीं निकलेगी।।ऐसे…अंदर 2 इंच का मोटा गोलदार भाग उसे अंदर ही रखता है।

आशा की गांड इतनी मादक और कोमल लग रही थी, की जगदीश राय से रहा नहीं जा रहा था। और उस मादक गांड से निकलती हुई पूँछ , उसे और मादक बना रही थी।

जगदीश राय ने तुरंत अपना हाथ पूँछ से निकालकर गांड पर रख दिया , और गाण्ड को दबा दिया।

आशा ने तुरंत , अपनी शॉर्ट्स ऊपर कर ली।

आशा (लंड की तरफ इशारा करते हुए): पापा…अब आप नॉटी बॉय बन रहे है…निशा दीदी की बहुत याद आ रही है क्या…हे हे।

जगदीश राय अपने इस करतूत से थोड़ा शर्माया ।

जगदीश राय: सोर्री।।।वह बस…नहीं…ठीक है तूम पढाई करो…मैं…

आशा: अरे सॉरी क्यों…मैं जानती हूँ।।ऐसे टेल से सजा हुआ गांड तो किसी को भी पागल कर सकता है।

जगदीश राय, अपने लंड को हाथो से सम्भालते हुये, मुस्कुराते हुये, रूम से निकल जाता है।

कमरे से निकल कर , अपने रूम में घूसने से पहले ही जगदीश राय अपना लंड हाथ में लिए हिलाना शुरू कर दिया।

दिमाग पर आशा की गांड और उसमे घूसि हुई पूँछ
और निशा की यादें, लंड को झडने से रोकने वाले नहीं थे।

निशा की चूत और आशा की गांड दोनों सोच सोचकर, जगदीश राय ने ऐसा जोरदार मुठ निकाला की झरते वक़्त वह चीख़ पडा।

कुछ 2 घन्टे बाद जब जगदीश राय निचे हॉल में आया, आशा वही किचन में चाय बना रही थी।

उसने अपने कपडे चेंज कर लिए थे। एक टाइटस और सलवार पहनी थी।

जगदीश राय की नज़र उसकी गांड पर गयी, और आंखें ख़रगोश वाली पूँछ को ढून्ढने लगी।

आशा: क्या देख रहो हो पापा।।

जगदीश राय: नही।।कही।।बाहर जा रही हो।।

आशा: हाँ यही बुकशॉप तक…कुछ बुक्स लेने हैं…पैसे चाहिये होंगे…यह लिजीये चाय…

जगदीश राय और आशा दोनों एक दूसरे के सामने बैठकर चाय पीने लगे।

कमरे में एक अजीब सा सन्नाटा छा गया था।

जगदीश राय , दोपहर की घटनाओ के बारे में सोच रहा था। और खास कर आशा की पूँछ और गांड के बारे में।

आशा के चेहरे पर कोई भाव नज़र नहीं आ रहा था। वह बस एक ही भाव से अपने पापा को देखे जा रही थी।

आशा की यह दिल चीरने वाली नज़र से जगदीश राय सोफे में करवटें लेने लगा।

जगदीश राय( मन में): क्या वह अभी भी गांड में घुसायी रखी होगी…नही।।देखो कितनी आराम से बैठी है…आराम से कोई ऐसे बैठ सकता है…गांड में लिये।

पर वह आशा से पुछने की हिम्मत नहीं जूटा पा रहा था।
Mast update👍👍
 

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आशा (बिना मुस्कुराये और शर्माए): पापा…पैसे? जा कर आती हूँ…

जगदीश राय: हाँ हाँ…टीवी के निचे ही 100 रूपये पड़े हैं…ले लो…

आशा उठि और मटकती गांड से चल दी और शूज पहनने लगी।

जगदीश राय , अपनी थूक निगलते हुयी, हिम्मत जुटा रहा था। उसे यह जानना ज़रुरी हो गया था।

जगदीश राय: बेटी…क्या तुम …मेरा मतलब है…तुम अभी भी अंदर घूसा…रखी हो…उसे…मेरा मतलब है…उस टेल को…खरगोश वाली…

आश , पीछे मुड़कर बड़े ही आराम से , सहज तरीके से जवाब देती है।

आशा: हा, है अंदर …क्यू।।?

जगदीश राय (शर्माते हुए): अच्छा…।नही…यही…पूछ रहा था…टाइटस से भी दिख नहीं रहा था…इसलिये…

आशा: ओह क्युकी पूँछ की पार्ट को में ने चूत की तरफ , पैरो के बीच समा रही है।।इस्लिये…टाइटस पहनो तो करना पड़ता है यह सब, पर इससे गांड थोड़ी खीच जाती है और मजा भी आता है चलती वक़्त।।इस्लिये।…चलो बाय मैं जा कर आती हूँ…

जगदीश राय , आशा का यह जवाब सुनकर दंग रह गया। उसकी बेटी पुरे मोहल्ले के सामने , अपनी गांड में पूँछ घुसाकर चल रही है और लोगो को पता भी नही, इस सोच से ही वह पागल हो रहा था।

आशा की मुह से चूत और गांड ऐसे निकल रहे थे जैसे वह कोई बाज़ारू रांड हो।

अपनी छोटी बेटी के मुह से गंदे शब्द उसे मदहोश कर चला था। और न जाने कब उसका हाथ उसके लंड पर चला गया।

कोई दो दिनों तक , जगदीश राय और आशा के बीच , जब भी बाते होती, पूँछ का ज़िक्र छूटता नही।

अगर उसके पापा शर्मा कर नहीं पूछ्ते , तो आशा खुद अपने पापा को पूँछ के बारे में बताती, की आज उसने कैसे अपने पूँछ को सम्भाला स्कूल जाते वक़्त , सहेलियो के साथ इत्यादि।

जगदीश राय को भी बहुत मजा आ रहा था और अब उसे भी आशा की पूँछ से अजीब सा लगाव हो चूका था। हालाकी उसने उस दिन के बाद से पूँछ को देखा नहीं था , सिर्फ ज़िक्र ही सुना था।

और बातो से ही वह पागल हो चला था। और यह सब सशा से छुपके होती थी।

एक दिन, जगदीश राय के एक ऑफिस जवान कर्मचारी की शादी के रिसेप्शन का कार्ड आया। आशा और सशा दोनों पापा से ज़ोर देने लगे।

सशा: चलिये न पापा, रिसेप्शन में चलते है…बड़ा मजा आयेगा।

आशा: हाँ…वहां तो चाट वगेरा भी होंगा।

जगदीश राय: अरे।।वह बहुत दूर है यहाँ से…बस भी नही जाती।

आशा: तो यह गाडी किसलिए है…खतरा ही सही।।।कार में चलते है।

आशा की बात आज कल जगदीश राय टालने के हालत में नहीं था।

जगदीश राय: ठीक है…चलो…रेडी हो जाओ।।चलते है…।पर जल्दी ही आ जायेंगे…

सशा: हाँ हा।।खाना खाने के बाद तुरंत…

रिशेप्शन पर बहुत भीड़ थी। हर क्लास के लोग आये थे। आशा और सशा जम गए थे चाट के स्टाल पर। आशा ने टॉप और स्कर्ट पहनी थी, सशा ने जिन्स।

जगदीश राय अपने ऑफिस के कुछ कर्मचारी के साथ ऑफिस की बाते कर रहा था।

जगदीश राय: अरे।। चलो…स्टेज पर हो आते है।।गिफ्ट पैकेट देते है।।कॉनगरेट्स भी बोल आते है।

आशा और सशा भी चल दिए पापा के साथ। स्टेज की सीडियों चढ़कर आशा जगदीश राय के पास आकर खड़ी हुई।

जगदीश राय ने, दुल्हा, दुल्हन और बाकि सब लोगों से बात की।

दुल्हे का बाप: अरे राय साब, हमारा बेटा आपकी बहुत तारीफ़ करता है…आईये एक फोटो हो जाए।

और सभी लाइन में खड़े होने लगे।आशा तुरंत अपने पापा के पास आकर खड़ी हुई।

आंसा(धीमी आवज़ में): पप।।पापा।।सुनो…

जगदीश राय(धीमी आवज़ में): हाँ हाँ बोलो

आशा(धीमी आवाज़ मैं): मेरी पूँछ ।।निकल रही है गांड से…स्टेज पर चढ़ते वक़्त।।लूज हो गयी…मैं अंदर धक्का नहीं घूसा पाऊँगी…क्या आप प्लीज स्कर्ट के ऊपर से घूसा देंगे…प्लीज जल्दी।

जगदीश राय(धीमी आवज़ में): क्या।।यहाँ…स्टेज पर…।

आशा(धीमी आवाज़ में): हाँ अभी…आपका हाथ मेरे पीछे ले जाईये…कोई नहीं देखेंगा।।अगर मैं ले गयी तो अजीब लगेगा …प्लीज जल्दी कीजिये…कहीं यही न गिर जाये…मैंने पेंटी भी नहीं पहनी…

फोटोग्राफर: चलिए…आंटी जी।।थोड़ा आगे…हाँ थोड़ा पीछे…बस सही।।हाँ स्माईल।

जगदीश राय(धीमी आवज़ में): क्या तुम पागल हो…ओह गॉड।।मरवाओगी…ठीक है…आ जाओ।

और जगदीश राय, फोटो के लिए स्माइल देते हुये, माथे से पसीना छुटते हुए अपना कांपता हाथ आशा की गांड पर ले गया।

हाथ गांड पर लगते ही , उसे आशा की बात पर यकीन हो गया की उसने पेंटी नहीं पहनी थी।
Aaj hi set karlo.
 

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लोगो के पीछे से, स्टेज पर खडे, जगदीश राय ने पूँछ को हाथो से पकड़ लिया।

फोटोग्राफर फोटो ले चूका था। अब वीडियो वाला वीडियो कैमरा घूमा रहा था।

जगदीश राय पूँछ के पिछले हिस्से को पकड़ कर, गांड में घुसाने का प्रयत्न करने लगा। पर घुस नहीं पा रहा था।

जगदीश राय (धीमे आवाज़ में): घूस नहीं रहा है…क्या करुं…

आशा ने तुरंत अपन गांड पीछे कर दिया। वीडियो कैमरा तभी आशा के सामने से गुज़र रहा था। आशा की गांड पीछे ठुकाई पोज़ में देखकर वीडियो वाला हैरान हो गया, और उसने जान बुझ कर वीडियो आशा पर टीकाये रखा।

आशा((धीमी आवज़ में): हा।।अभी ट्राई करो…उफ़ यह विडियो।।इसी वक़्त…

जगदीश राय ने अपना पूरा ज़ोर देते हुए, एक ज़ोरदार धक्का लगाया। आशा की गांड से 'पलोप' सा एक आवाज़ सुनाई दिया और पूरा का पूरा पूँछ अंदर घूस गया।

आशा (धीमे आवज़ में): आह…इस्सश

आशा के मुह से सिसकी निकली और दर्द और कामभाव चेहरे पर से छुपा नहीं पायी।

पुरी समय वीडियो आशा पर टीका रहा।

स्टेज से आशा और जगदीश राय धीरे से उतरे। आशा बिना कुछ कहे टॉयलेट की ओर चल दी।

थोड़ी देर बाद, आशा पापा के पास आयी।

जगदीश राय: यह सब क्या था बेटी…मैं तो डर गया…

आशा (मुस्कुराते हुए): सॉरी पापा।।वह आज मैं ने नयी क्रीम यूज किया था, जो ज़रा चिकनाई देने लगी…मैं नहीं जानती थी…और स्टेज की स्टेप्स चढ़ते वक़्त…पूँछ निकल गयी…पर थैंक यू आपने संभाल लिया।

जगदीश राय:शुक्र करो।।स्टेज पर नहीं गिर पड़ा…और तुमने पेंटी क्यों नहीं पहनी।

आशा: वह तो मैं अक्सर पेंटी नहीं पहनती…पूँछ पेंटी के बिना ज्यादा मजा देता है…

जगदीश राय:तुम और तुम्हारा मजा मुझे ले डूबेगा एक दिन।

आशा (हस्ती हुए): क्यों…आपको मजा नहीं आया।।मेरे गांड में पूँछ पेलते वक़्त।

जगदीश राय (थोडा मुस्कुराते हुये, शरमाते हुए): वह…हा।।मज़ा तो आया…

आशा : तो बस…और क्या चाहीये…मज़ा ही ना।।

और आशा सशा के पास चल दी। तभी एक लडका, आशा के पास आया।

लडका (मुस्कुराते हुए): मिस, अगर आपको वीडियो की कॉपी चाहीये तो हमे बोल देना…हमने आपकी अच्छी वीडियो ली है…

आशा (ग़ुस्से से): नो थैंक यु…
Majedaar update👍👍
 

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अगले 2 दिन जगदीश राय का बुरा हाल था। आशा की गांड और पुंछ उसके दिमाग से निकल ही नहीं रहा था।

जब भी आशा सामने से गुज़रती, जगदीश राय उसके गांड को ताकता रहता। इस उम्मीद में की पुंछ दिख जाये।

आशा भी यह सब समझती थी और अपने आदत से मजबूर, अपने गांड को और मटका कर चल देती।

आज का दिन भी कुछ ऐसा ही था। आशा, एक छोटी स्कर्ट पहनी, किचन में खड़ी , सब्जी काट रही थी।

सशा अपने कमरे में गाना सुन रही थी।

और जगदीश राय हॉल मैं बैठे , पेपर पढ़ रहा था, या यु कहे, पढने की कोशिश कर रहा था।

वह हॉल में बैठे , अपने बेटी की गांड को निहार रहा था। सामने उसकी बेटी, एक टाइट टॉप और छोटी स्कर्ट पहनी हुई थी।

टाइट टॉप में से निप्पल साफ़ दिख रही थी। और स्कर्ट उसके गांड को और भी मादक बना रहा था।

और अपने पापा के सामने , गांड में २ इंच का पुंछ घुसाए उसकी बेटी खड़ी सब्जियां काट रही थी।

जगदीश राय (मन में): क्या उसने पुंछ घुसायी होगी आज भी…।खडे रहने से लगता तो नहीं…।उसने कहा तो था की कभी कभार वह पुंछ को नहाती वक़्त धोती और सुखती है। और तब नही पहनती…।और अभी वह नहाकर खड़ी है…

जगदीश राय , को यह जानने की उत्सुक्ता , पागल कर रही थी।

और वह अपने सोफे पर करवटें बदल रहा था। वह उठकर, डाइनिंग टेबल पर बैठ गया।

थोड़ी देर बाद आशा , थोड़ी मूली लेकर आई

आशा: पापा…।आप इन्हे काट देंगे प्लीज…

और डाइनिंग टेबल पर टेकते हुयी, मूली की प्लेट रख दी।

उसने अपने गांड को इस तरह पीछे धकेला , मानो अपने पापा को दावत दे रही हो।

जगदीश राय से रहा नहीं गया , और उसने तुरंत गांड पर हाथ रख दिया। और पुंछ टटोलने लगा। आशा हँस पडी।

आशा : हे हे

जगदीश राय पूँछ को अपने हाथो में पाते ही , चौक भी गया और ख़ुशी भी हुई। उसने ज़ोर से पूँछ को पकड़ कर, बाहर की तरफ खींच दिया।


आशा: अअअअअ…पापा…क्या…

और अगले ही मिनट में ज़ोर से उसे अंदर ढकेल दिया।

आशा: ओहः।।।।मम…आज कल आप बहोत नॉटी हो रहे हो… चलिये मूली पे ध्यान दीजिये…

जगदीश राय पूरा गरम होकर लाल हो गया था। और आशा को अपने पापा का यह उतावला पन बहोत भा गया।
Mast update
 

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उसी वक़्त सशा , सीडिया उतर कमरे में चली आयी।

जगदीश राय , उसे मन ही मन कोसते , मूलियों पे अपना टूटा हुआ ध्यान देने लगा।

सशा: आशा , देख तो बाहर , यह लोग दही कला (दही हंडी) लगा रहे है। बहुत मजा आयेगा शाम को।

आशा: हाँ।पापा…हम सब देखेगे। और पानी फेकेंगे उन पर…

जगदीश राय: हाँ…ठीक है।।।

शाम हो गयी थी। पूरा दोपहर , जगदीश राय का हाल बुरा था। निशा की याद और आशा की पूँछ ने उसके लंड पूरा टाइम खड़ा रखा था।

जगदीश राय , अपने कमरे मैं , लंड हाथ में लिए , हिलाना शुरू किया। पर मुठ निकल नहीं रही थी। जो लंड चूत की आदि हो जाये उससे हाथ से मजा आना मुमकिन नहीं था, यह बात जगदीश राय भी जानता था।

अचानक से दरवाज़ा खुल गया। जगदीश राय , हाथ में 9 इंच लंड पकडे, चौंक कर देखता रहा।

आशा: पापा…चलिए…।दहीकला स्टार्ट हुआ…चलिये

आशा की नज़र, तभी पापा के खड़े 9 इंच लंड पर पडी जो शाम के उजाले पर चमक रहा था।

इसके पहले जगदीश राय कुछ बोले, आशा बोल दी।

आशा: उफ़ पापा…अच्छा…आप जल्दी से यह निपटाकर…।आईए…ज्यादा देर मत लगाना…मैं और सशा निचे है…।ठीक है…

और आशा से दरवाज़ा बंद कर चल दिया।

जगदीश राय हक्का बक्का रह गया।

जगदीश राय (मन में): यह क्या हो गया अभी।।कही मेरा सपना तो नहीं था…आशा आयी…और मेरे लंड… को मुझे मुठ मारते देख…बोलकर चल दी…मानो यह उसके लिए नई बात न हो…।

जगदीश राय यह सोचकर और गरम हो गया। और ज़ोर ज़ोर से हिलाने लगा। पर मुठ कगार पर आकर मुठ रुक जाता। १५ मिनट तक जगदीश राय हिलाता रहा पर स्खलित न हो पाया।

अचानक फिर से दरवाज़ा खुल गया। इस बार जगदीश राय चौंका नाहि, क्यूंकि वह आँखें बंद, गहरी सोच के साथ्, मुठ मार रहा था।

पर आशा के आवाज़ ने उसकी आँखें खोल दी।

आशा:यह लो…आप अभी भी…इसी पर है…और मैं समझी थी…आप तैयार हो चुके होंगे…।

जगदीश राय : ओह बेटी…
आशा (और पास आकर): क्या बात है…मूठ नहीं निकल रहा पापा…।

आशा के ऐसे सीधे सवाल की, जगदीश राय को उम्मीद नहीं थी

जगदीश राय: नहीं बेटी…निकल नहीं रहा।

आशा: लाओ…मैं कोशिश करती हूँ।

और आशा ने तुरंत जगदीश राय के हाथ पर मार दिया और लंड को थाम लिया। आशा के हाथ इतने छोटे थे की लंड पूरी तरह समां नहीं पा रही थी।

जगदीश राय : बेटी तुम ।तुमसे नही…ओह्ह…।आहः

आशा: दही कला ख़तम होने से पहले आपको झाड दूँगी…वादा…

और आशा तेज़ी से पापा के विशाल लंड को हिलने लगी।
Mast aur garmagaram update👍👍
 

ranveer888

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निशा के पैर सीढी चढने के क़ाबिल नहीं थे, कांप रहे थे। थोडा तो ओर्गास्म का असर था और थोड़ा गुज़रे हुये पल का।
फिर भी वह अपने कमरे तक तेज़ी से चली गयी और अंदर जाकर दरवाज़ा बंद कर दिया।

दरवज़ा बंद करते ही वह अपने बेड पर लेट गयी। ऑंखे मूंदकर अपने सासों को काबू में लाने का प्रयत्न करने लगी।
पर उसके ऑंखों के सामने अपना पापा का तेल से लथपथ शरीर और उनकी काम वासना की नज़र लगतार झलक रहा था। वह चाहते हुए भी उसे दूर नहीं कर पा रही थी।वह बेड से उठी और अपनी चिपचिपी पेंटी में हाथ डालकर उसे खीच कर बाहर निकाल फेका।पेंटी की हालत देखकर वह हैरान रह गयी।

निशा (मन ही मन में): क्या इतना सारा पानी निकला मेरा। ओह गॉड़। पेंटी पूरी गिली हो गयी।

वह अपना हाथ चूत में ले गयी और अपने दाए हाथ की बड़ी ऊँगली चूत में घुसा दी।

निशा: आहहः।।।

मुह से एक ख़ुशी की आह निकली। फिर उसने धीरे से ऊँगली बहार खीच लिया। ऊँगली पूरी गिली थी और उसपर लगा हुआ पानी बल्ब की रौशनी में चमक रहा था।

निशा बहुत बार मुठ मार चुकी थी, पर इतना पानी और मज़ा उसे कभी नहीं मिला था।

वह उठी और बाथरूम जाकर पिशाब करने के बाद, वह थोड़ा बेहतर महसूस कर पायी। और झूक कर वॉशबेसिन में अपने चेहरे पर बहुत सारा पानी मारा।
अपना पानी लगा चेहरा , मिरर में देखने लगी। और सोचने लगी।।।।

निशा: यह क्या हो गया था मुझे। अपने पापा को कैसे मैं ऐसा देखने लगी। और पापा मुझे ऐसा क्यों घूर रहे थे। क्या उनका भी हाल मेरे जैसा हुआ होगा? नहीं , बिलकुल नही। पर उनका चेहरे का भाव में तो वासना भरी हुई थी। और वह मेरी चूत को क्यों घूर रहे थे?

यह सवाल वह अपने आप से कर रही थी। वह अपना मुह पोंछ कर एक दूसरी टीशर्ट पहन ली और शॉर्ट्स पहन ली। इस बार उसने एक मोटी पेंटी पहन लिया जो वह अपने पीरियड्स के वक़्त पहनती है।
उसे अब अपने चूत पर भरोसा नहीं रहा या यु कहिये अपने आप पर भरोसा नहीं था।

अब उसे बाहर जाकर खाना बनाना था। रात होने वाली थी, आशा सशा आती ही होंगी। पर वह पापा को फेस नहीं करना चाहती थी। दरवाज़ा के पास आकर वह सोचने लगी की क्या करे।

निशा मन में: शायद मैं पापा के नहाने जाने तक वेट करती हूँ, फिर चली जाऊंगी।
Bahut hi kamuk update s 💕💕💕
 
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