छब्बीसवाँ भाग
दीपा की बात सुनकर मैं निरुत्तर हो गया। कुछ देर तक हम ऐसे ही बैठे रहे। उसके बाद दीपा मुझे बाय बोलकर घर के लिए निकल गई, क्योंकि उसके भैया उसे लेने आ गए थे। उसके जाने के बाद मैं भी घर के लिए निकल गया।
उधर घर मे कुछ दूसरा ही माहौल था।आज भाई और माँ पहले ही घर आ गए थे और बैठे हुए कुछ मंत्रणा कर रहे थे।
अर्जुन क्यों न कल आशीष के पास चलकर छोटे और दीपा के रिश्ते की बात कर ली जाए। माँ ने अर्जुन भैया से कहा।
आप ठीक कह रही हैं माँ, लेकिन अब छोटे को और परेशान न करो। मुझसे उसकी हालत देखी नहीं जाती माँ। अर्जुन भैया ने कहा।
मुझे भी लगता है कि बहुत हो चुका उसे परेशान करना। अब मैं तो मान जाऊँगी, लेकिन छोटे को आखिरी झटका दीपा देगी। माँ ने कहा।
मैं समझी नहीं माँ। आप करने क्या वाली हैं? अदिति भाभी ने माँ से पूछा।
मैंने कुछ सोच रखा है इसके लिए, बस तुम दोनों निशांत से कुछ मत बताना बाकी में संभाल लूँगी। माँ ने कहा।
ठीक है माँ जैसा आपको ठीक लगे। हम तो आपके ही साथ हैं। अर्जुन भैया ने कहा।
बहू जरा आशीष को फ़ोन लगाओ।मुझे बात करनी है उससे। माँ ने कहा।
माँ की बात सुनकर अदिति भाभी ने आशीष भैया को फ़ोन लगाया और माँ को दे दिया।
प्रणाम माँ जी। आशीष भैया ने कहा।
जीते रहो बेटा। माँ ने कहा।
और बताइये माँ जी। मुझे कैसे याद किया आपने। मेरे लायक कोई सेवा। आशीष भैया ने पूछा।
हाँ बेटा तुमसे दीपा के बारे में बहुत जरूरी बात करनी हैं इसलिए मुझे तुमसे मिलना है। माँ ने कहा।
दीपा के बारे में। क्या बात है माँ जी। उसने कोई गलती की है क्या? आप कहें तो मैं अभी आ जाऊँ आपके यहाँ। आशीष भैया फिक्रमंद लहजे में बोले।
नहीं बेटा ऐसी कोई बात नहीं है और तुमको आने की कोई जरूरत नहीं है। तुम कल किस समय खाली रहोगे। मैं खुद तुम्हारे घर आऊंगी। और इस बात का जिक्र दीपा से बिल्कुल मत करना। माँ ने कहा।
ठीक है माँ जी। कल 12 बजे के बाद जब आपको समय मिले आ जायेगा। आशीष भैया ने कहा।
आशीष भैया से बात करने के बाद माँ ने फ़ोन रख दिया। कुछ देर बाद मैं भी घर पहुंच गया।
खाना खाते समय मैंने माँ से कहा।
माँ मेरी बात मान लीजिए न। मैं सच में दीपा से बहुत प्यार करता हूँ। मेरी शादी उसी से करवा दीजिए। मैं उसके बिना नहीं रह सकता।
मेरी बात सुनकर माँ सोच में पड़ गई। थोड़ी देर तक सोचने के बाद माँ ने कहा।
ठीक है। मैं तेरी बात मान लेती हूँ, लेकिन मेरी एक शर्त है।
क्या शर्त है माँ। मैंने खुश होते हुए कहा।
मेरी शर्त ये है कि अगर दीपा या उसके भाई ने शादी के लिए मना कर दिया तो तुम मेरी पसंद की लड़की से ही शादी करोगे। माँ ने कहा।
मैं तो माँ की बात से बहुत खुश हो गया, क्योंकि मुझे लग रहा था कि दीपा के भैया इस शादी के लिए मना नहीं करेंगे।
ठीक है माँ जैसा आप बोल रही हैं वैसा ही होगा। मैंने माँ से कहा।
इसके बाद सबने खाना खत्म किया मैं और भैया अपने अपने कमरे में चले गए। अदिति भाभी और माँ रसोईघर का काम देखने लगी। मां की हाँ के बाद मैं बहुत खुश था, इसलिए कमरे में आने के बाद मैंने तुरंत दीपा को फ़ोन किया।
हेलो दीपा। मैंने फ़ोन उठाते ही दीपा से पूछा।
में ठीक हूँ। तुम कैसे हो। दीपा ने कहा।
मैं भी ठीक हूँ। एक खुशखबरी है। माँ हम दोनों की शादी के लिए मान गई हैं। मैंने खुशी से चहकते हुए कहा।
क्या सच में। ये तो बहुत अच्छी बात है छोटे बाबू। दीपा ने भी खुश होते हुए कहा।
लेकिन उन्होंने कहा है कि अगर तुम और भैया ने शादी के लिए इनकार कर दिया तो मुझे उनकी पसंद की लड़की से ही शादी करनी पड़ेगी। मैन दीपा से कहा।
तुम उसकी चिंता मत करो। मुझे पूरा भरोसा है कि भैया मेरी खुशी के लिए मना नहीं करेंगे। दीपा ने कहा।
इसके बाद हमने थोड़ी देर बात की। फिर सो गए।
सुबह उठकर नाश्ता करके मैं कॉलेज चला गया।
क्लास अटेंड करने के बाद मैं पार्क में जाकर बैठ गया। दीपा भी अपनी क्लास अटेंड कर के पार्क की तरफ आ रही थी तो उसे देवांशु मिल गया। दीपा देवांशु को नजरअंदाज करके आगे बढ़ने लगी तो देवांशु ने कहा।
हेलो दीपा कैसी हो, तुम तो मुझे भूल ही गई। क्या बात है तुम मुझसे नाराज़ लग रही हो।देवांशु बोला।
ऐसी कोई बात नहीं है। बस पढ़ाई का दबाव है इसलिए समय नहीं मिल पाता। दीपा ने कहा।
लेकिन उस निशांत के साथ समय बिताने के लिए तुम्हे तो बहुत समय मिलता है, और मेरे लिए तुम्हारे पास समय नहीं है। देवांशु ने कहा।
देखो देवांशु। मुझे किसके साथ समय बिताना है और किसके साथ नहीं। ये तुम्हे बताने की जरूरत नहीं है। बेहतर है तुम अपने काम से काम रखो। दीपा ने नाराज़ होते हुए कहा।
क्यों दीपा। बताने की जरूरत है तुम्हे, क्योंकि मैं तुमसे प्यार करता हूँ। तुमने मेरा साथ बीच में छोड़कर चुनाव में उस निशांत का साथ दिया, फिर भी मैंने तुम्हे माफ कर दिया, लेकिन अब बहुत ज्यादा कर रही हो तुम जो मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है। देवांशु ने दीपा पर अपना हक जताते हुए कहा।
तुम होते कौन हो मुझे माफ़ करने वाले और मैंने कब कहा कि मैं तुमसे प्यार करती हूँ। मैन सिर्फ निशांत की हूँ और उसी से प्यार करती हूँ। तो अपने दिमाग से ये घटिया ख्याल निकाल दो कि मैं तुमसे कभी प्यार करूँगी। दीपा ने गुस्सा होते हुए कहा।
लेकिन क्यों आखिर मुझमें कमी क्या है। तुम क्यों प्यार नहीं करती मुझको। पैसा है। रुतबा है। देखने में भी बढ़िया हूँ। आखिर तुम्हे और क्या चाहिए मुझसे प्यार करने के लिए। तुम्हे किस बार का गुरुर है। कॉलेज की सारी लड़कियाँ मुझपर मरती हैं, लेकिन मैं तुमसे प्यार करता हूँ। देवांशु खीझते हुए दीपा से बोला।
तुम्हारे पास भले ही पैसा हो। रुतबा हो। भले ही तुमपर कॉलेज की लड़कियां मरती हों। लेकिन दीपा उन लड़कियों जैसी नहीं है। जो चंद पैसों के लिए तुम जैसे घटिया इंसान से प्यार करे। जो लड़कियों को बस खिलौना समझकर उनके साथ खेलता है। दीपा ने गुस्से से कहा।
उन दोनों के बात करने की आवाज हर गुजरते क्षण के साथ तेज़ होती जा रही थी जिससे उन दोनों के आस पास बहुत से विद्यार्थी जमा हो गए थे।
क्या बोली तू साली। मुझे घटिया बोलती है तू। मैं तुझे छोडूंगा नहीं। तुझे मुझसे पंगा लेना बहुत महँगा पड़ेगा दीपा, क्योंकि मुझे जो चीज पसंद आ जाती है उसे में किसी भी कीमत पर हासिल करके ही रहता हूँ। मेरी बात याद रखना। देवांशु ने दांत पिस्टे हुए दीपा को उंगली दिखाते हुए कहा।
आ गया न तू अपनी असली औकात पर। अच्छा हुआ मैंने समय रहते तेरा साथ छोड़ दिया। अरे तू प्यार के तो क्या दोस्ती के लायक भी नहीं है। जो लड़कियों की इज़्ज़त करना न जानता हो। वो मर्द नहीं होता। तुझे जो करना है कर ले। मैं तुझसे डरने वाली नहीं हूँ। दीपा ने देवांशु को उसी के लहजे में जवाब देते हुए कहा।
उसके बाद दीपा वहां से निकल गयी और अपनी कक्षा में चली गई। मैं भी दीपा का इंतज़ार करने के बाद अपनी कक्षा में चल गया।
उधर माँ भैया और भाभी दीपा के यहाँ पहुँच चुके थे। एक दूसरे का हाल चाल पूछने के बाद मुख्य मुद्दे की बात शुरू हुई।
आपको दीपा के बारे में क्या बात करनी थी माँ जी। आशीष भैया ने कहा।
जो बात हम आपसे करने आए हैं वो दीपा से ही संबंधित है, लेकिन वो बाद कि बात हैं अभी हम आपसे कुछ बात मांगने आए हैं। अर्जुन भैया ने कहा।
मुझसे। मैं भला एक गरीब आदमी आपको क्या दे सकता हूँ, फिर भी आप कहिए अगर मेरी सामर्थ्य में हुआ तो मैं आप लोगों को निराश नहीं करूंगा।
आशीष भैया ने न समझने वाले अंदाज़ में कहा।
वो बेशकीमती है तुम्हारे लिए और तुम्हारी सामर्थ्य में भी है, उम्मीद है तुम निराश नहीं करोगे हमें। माँ ने कहा।
आप बताइए वो क्या है जो आप मुझसे मांगने आए हैं। आशीष भैया ने कहा।
बात ये हैं बेटा कि निशांत और दीपा एक दूसरे को बहुत प्यार करते हैं। मुझे अपने निशांत के लिए दीपा का हाथ चाहिए। मैं उसे अपने घर की बहू बनाना चाहती हूं। माँ ने कहा।
क्या। क्या कहा आपने। आशीष भैया आश्चर्यचकित होकर बोले।
उसके बाद उन्होंने अपना फ़ोन निकालकर दीपा को फ़ोन लगाया।
दीपा। जहां भी हो अभी के अभी घर पहुँचो और निशांत को भी साथ में लेकर आना। आशीष भैया ने गुस्से से कहा।
क्या हुआ भैया। कोई बात है। आप इतने गुस्से में क्यों हैं। दीपा ने पूछा।
जितना कह रहा हूँ। उठना ही करो। जल्दी घर पहुँचो।
इतना कहकर आशीष भैया ने फ़ोन काट दिया।
साथ बने रहिए।
दीपा की बात सुनकर मैं निरुत्तर हो गया। कुछ देर तक हम ऐसे ही बैठे रहे। उसके बाद दीपा मुझे बाय बोलकर घर के लिए निकल गई, क्योंकि उसके भैया उसे लेने आ गए थे। उसके जाने के बाद मैं भी घर के लिए निकल गया।
उधर घर मे कुछ दूसरा ही माहौल था।आज भाई और माँ पहले ही घर आ गए थे और बैठे हुए कुछ मंत्रणा कर रहे थे।
अर्जुन क्यों न कल आशीष के पास चलकर छोटे और दीपा के रिश्ते की बात कर ली जाए। माँ ने अर्जुन भैया से कहा।
आप ठीक कह रही हैं माँ, लेकिन अब छोटे को और परेशान न करो। मुझसे उसकी हालत देखी नहीं जाती माँ। अर्जुन भैया ने कहा।
मुझे भी लगता है कि बहुत हो चुका उसे परेशान करना। अब मैं तो मान जाऊँगी, लेकिन छोटे को आखिरी झटका दीपा देगी। माँ ने कहा।
मैं समझी नहीं माँ। आप करने क्या वाली हैं? अदिति भाभी ने माँ से पूछा।
मैंने कुछ सोच रखा है इसके लिए, बस तुम दोनों निशांत से कुछ मत बताना बाकी में संभाल लूँगी। माँ ने कहा।
ठीक है माँ जैसा आपको ठीक लगे। हम तो आपके ही साथ हैं। अर्जुन भैया ने कहा।
बहू जरा आशीष को फ़ोन लगाओ।मुझे बात करनी है उससे। माँ ने कहा।
माँ की बात सुनकर अदिति भाभी ने आशीष भैया को फ़ोन लगाया और माँ को दे दिया।
प्रणाम माँ जी। आशीष भैया ने कहा।
जीते रहो बेटा। माँ ने कहा।
और बताइये माँ जी। मुझे कैसे याद किया आपने। मेरे लायक कोई सेवा। आशीष भैया ने पूछा।
हाँ बेटा तुमसे दीपा के बारे में बहुत जरूरी बात करनी हैं इसलिए मुझे तुमसे मिलना है। माँ ने कहा।
दीपा के बारे में। क्या बात है माँ जी। उसने कोई गलती की है क्या? आप कहें तो मैं अभी आ जाऊँ आपके यहाँ। आशीष भैया फिक्रमंद लहजे में बोले।
नहीं बेटा ऐसी कोई बात नहीं है और तुमको आने की कोई जरूरत नहीं है। तुम कल किस समय खाली रहोगे। मैं खुद तुम्हारे घर आऊंगी। और इस बात का जिक्र दीपा से बिल्कुल मत करना। माँ ने कहा।
ठीक है माँ जी। कल 12 बजे के बाद जब आपको समय मिले आ जायेगा। आशीष भैया ने कहा।
आशीष भैया से बात करने के बाद माँ ने फ़ोन रख दिया। कुछ देर बाद मैं भी घर पहुंच गया।
खाना खाते समय मैंने माँ से कहा।
माँ मेरी बात मान लीजिए न। मैं सच में दीपा से बहुत प्यार करता हूँ। मेरी शादी उसी से करवा दीजिए। मैं उसके बिना नहीं रह सकता।
मेरी बात सुनकर माँ सोच में पड़ गई। थोड़ी देर तक सोचने के बाद माँ ने कहा।
ठीक है। मैं तेरी बात मान लेती हूँ, लेकिन मेरी एक शर्त है।
क्या शर्त है माँ। मैंने खुश होते हुए कहा।
मेरी शर्त ये है कि अगर दीपा या उसके भाई ने शादी के लिए मना कर दिया तो तुम मेरी पसंद की लड़की से ही शादी करोगे। माँ ने कहा।
मैं तो माँ की बात से बहुत खुश हो गया, क्योंकि मुझे लग रहा था कि दीपा के भैया इस शादी के लिए मना नहीं करेंगे।
ठीक है माँ जैसा आप बोल रही हैं वैसा ही होगा। मैंने माँ से कहा।
इसके बाद सबने खाना खत्म किया मैं और भैया अपने अपने कमरे में चले गए। अदिति भाभी और माँ रसोईघर का काम देखने लगी। मां की हाँ के बाद मैं बहुत खुश था, इसलिए कमरे में आने के बाद मैंने तुरंत दीपा को फ़ोन किया।
हेलो दीपा। मैंने फ़ोन उठाते ही दीपा से पूछा।
में ठीक हूँ। तुम कैसे हो। दीपा ने कहा।
मैं भी ठीक हूँ। एक खुशखबरी है। माँ हम दोनों की शादी के लिए मान गई हैं। मैंने खुशी से चहकते हुए कहा।
क्या सच में। ये तो बहुत अच्छी बात है छोटे बाबू। दीपा ने भी खुश होते हुए कहा।
लेकिन उन्होंने कहा है कि अगर तुम और भैया ने शादी के लिए इनकार कर दिया तो मुझे उनकी पसंद की लड़की से ही शादी करनी पड़ेगी। मैन दीपा से कहा।
तुम उसकी चिंता मत करो। मुझे पूरा भरोसा है कि भैया मेरी खुशी के लिए मना नहीं करेंगे। दीपा ने कहा।
इसके बाद हमने थोड़ी देर बात की। फिर सो गए।
सुबह उठकर नाश्ता करके मैं कॉलेज चला गया।
क्लास अटेंड करने के बाद मैं पार्क में जाकर बैठ गया। दीपा भी अपनी क्लास अटेंड कर के पार्क की तरफ आ रही थी तो उसे देवांशु मिल गया। दीपा देवांशु को नजरअंदाज करके आगे बढ़ने लगी तो देवांशु ने कहा।
हेलो दीपा कैसी हो, तुम तो मुझे भूल ही गई। क्या बात है तुम मुझसे नाराज़ लग रही हो।देवांशु बोला।
ऐसी कोई बात नहीं है। बस पढ़ाई का दबाव है इसलिए समय नहीं मिल पाता। दीपा ने कहा।
लेकिन उस निशांत के साथ समय बिताने के लिए तुम्हे तो बहुत समय मिलता है, और मेरे लिए तुम्हारे पास समय नहीं है। देवांशु ने कहा।
देखो देवांशु। मुझे किसके साथ समय बिताना है और किसके साथ नहीं। ये तुम्हे बताने की जरूरत नहीं है। बेहतर है तुम अपने काम से काम रखो। दीपा ने नाराज़ होते हुए कहा।
क्यों दीपा। बताने की जरूरत है तुम्हे, क्योंकि मैं तुमसे प्यार करता हूँ। तुमने मेरा साथ बीच में छोड़कर चुनाव में उस निशांत का साथ दिया, फिर भी मैंने तुम्हे माफ कर दिया, लेकिन अब बहुत ज्यादा कर रही हो तुम जो मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है। देवांशु ने दीपा पर अपना हक जताते हुए कहा।
तुम होते कौन हो मुझे माफ़ करने वाले और मैंने कब कहा कि मैं तुमसे प्यार करती हूँ। मैन सिर्फ निशांत की हूँ और उसी से प्यार करती हूँ। तो अपने दिमाग से ये घटिया ख्याल निकाल दो कि मैं तुमसे कभी प्यार करूँगी। दीपा ने गुस्सा होते हुए कहा।
लेकिन क्यों आखिर मुझमें कमी क्या है। तुम क्यों प्यार नहीं करती मुझको। पैसा है। रुतबा है। देखने में भी बढ़िया हूँ। आखिर तुम्हे और क्या चाहिए मुझसे प्यार करने के लिए। तुम्हे किस बार का गुरुर है। कॉलेज की सारी लड़कियाँ मुझपर मरती हैं, लेकिन मैं तुमसे प्यार करता हूँ। देवांशु खीझते हुए दीपा से बोला।
तुम्हारे पास भले ही पैसा हो। रुतबा हो। भले ही तुमपर कॉलेज की लड़कियां मरती हों। लेकिन दीपा उन लड़कियों जैसी नहीं है। जो चंद पैसों के लिए तुम जैसे घटिया इंसान से प्यार करे। जो लड़कियों को बस खिलौना समझकर उनके साथ खेलता है। दीपा ने गुस्से से कहा।
उन दोनों के बात करने की आवाज हर गुजरते क्षण के साथ तेज़ होती जा रही थी जिससे उन दोनों के आस पास बहुत से विद्यार्थी जमा हो गए थे।
क्या बोली तू साली। मुझे घटिया बोलती है तू। मैं तुझे छोडूंगा नहीं। तुझे मुझसे पंगा लेना बहुत महँगा पड़ेगा दीपा, क्योंकि मुझे जो चीज पसंद आ जाती है उसे में किसी भी कीमत पर हासिल करके ही रहता हूँ। मेरी बात याद रखना। देवांशु ने दांत पिस्टे हुए दीपा को उंगली दिखाते हुए कहा।
आ गया न तू अपनी असली औकात पर। अच्छा हुआ मैंने समय रहते तेरा साथ छोड़ दिया। अरे तू प्यार के तो क्या दोस्ती के लायक भी नहीं है। जो लड़कियों की इज़्ज़त करना न जानता हो। वो मर्द नहीं होता। तुझे जो करना है कर ले। मैं तुझसे डरने वाली नहीं हूँ। दीपा ने देवांशु को उसी के लहजे में जवाब देते हुए कहा।
उसके बाद दीपा वहां से निकल गयी और अपनी कक्षा में चली गई। मैं भी दीपा का इंतज़ार करने के बाद अपनी कक्षा में चल गया।
उधर माँ भैया और भाभी दीपा के यहाँ पहुँच चुके थे। एक दूसरे का हाल चाल पूछने के बाद मुख्य मुद्दे की बात शुरू हुई।
आपको दीपा के बारे में क्या बात करनी थी माँ जी। आशीष भैया ने कहा।
जो बात हम आपसे करने आए हैं वो दीपा से ही संबंधित है, लेकिन वो बाद कि बात हैं अभी हम आपसे कुछ बात मांगने आए हैं। अर्जुन भैया ने कहा।
मुझसे। मैं भला एक गरीब आदमी आपको क्या दे सकता हूँ, फिर भी आप कहिए अगर मेरी सामर्थ्य में हुआ तो मैं आप लोगों को निराश नहीं करूंगा।
आशीष भैया ने न समझने वाले अंदाज़ में कहा।
वो बेशकीमती है तुम्हारे लिए और तुम्हारी सामर्थ्य में भी है, उम्मीद है तुम निराश नहीं करोगे हमें। माँ ने कहा।
आप बताइए वो क्या है जो आप मुझसे मांगने आए हैं। आशीष भैया ने कहा।
बात ये हैं बेटा कि निशांत और दीपा एक दूसरे को बहुत प्यार करते हैं। मुझे अपने निशांत के लिए दीपा का हाथ चाहिए। मैं उसे अपने घर की बहू बनाना चाहती हूं। माँ ने कहा।
क्या। क्या कहा आपने। आशीष भैया आश्चर्यचकित होकर बोले।
उसके बाद उन्होंने अपना फ़ोन निकालकर दीपा को फ़ोन लगाया।
दीपा। जहां भी हो अभी के अभी घर पहुँचो और निशांत को भी साथ में लेकर आना। आशीष भैया ने गुस्से से कहा।
क्या हुआ भैया। कोई बात है। आप इतने गुस्से में क्यों हैं। दीपा ने पूछा।
जितना कह रहा हूँ। उठना ही करो। जल्दी घर पहुँचो।
इतना कहकर आशीष भैया ने फ़ोन काट दिया।
साथ बने रहिए।