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Romance तेरी मेरी आशिक़ी (कॉलेज के दिनों का प्यार)

Mahi Maurya

Dil Se Dil Tak
Supreme
28,010
56,324
304
aap ki kahani mujhe bohot hi achhi lagi...

khas kar ushme emotions ko sahi me pakad diya gaya hai aur bhasha sayili bhi bahut majbut sundar aur pariskar hai...

Keep writing please....
बहुत बहुत धन्यवाद आपका सर जी।
ये सब आप जैसे पाठकों के मार्गदर्शन के कारण ही संभव हुआ है।

साथ बने रहिए।
 

Mahi Maurya

Dil Se Dil Tak
Supreme
28,010
56,324
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अगला भाग आज शाम तक लिखने की कोशिश करते हैं।
 
  • Wow
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Mahi Maurya

Dil Se Dil Tak
Supreme
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304
बत्तीसवाँ भाग


कुलपति महोदय की बात सुनकर देवांशु और देवांशु के पिता बाहर जाने लगे, लेकिन जाते जाते वो मुझे घूरकर देखना नहीं भूले। उनके जाने के बात कुलपति महोदय ने हम दोनों से कुछ बातें की फिर उन्होंने हम दोनों को भी जाने के लिए कह दिया।

वहाँ से निकलकर हम दोनों अपनी अपनी कक्षा की ओर चल दिए। अपनी कक्षा में पहुँचकर मैंने अपना लेक्चर अटेंड किया और कॉलेज खत्म होने के बाद मैं अपने घर को चला गया।

इसी तरह दिन गुजरते रहे। देवांशु से झगड़े को लगभग 40-42 दिन बीत चुके थे। मैं और दीपा रोज समय से कॉलेज जाते, अपने क्लास को पूरी सिद्दत से करते और घर चले आते। मैं विद्यार्थियों की छोटी मोटी समस्याओं का समाधान करता रहा। इसी तरह एक दिन मैं सुबह कॉलेज गया हुआ था। मैं अपनी क्लास अटेंड करने के बाद घर जाने के लिए निकला, तभी दीपा भी अपनी क्लास खत्म कर घर जाने के लिए आ गई। आशीष भैया जब तक उसे लेने नहीं आए। दीपा ने मुझे अपने साथ रुकने के लिए कहा। आशीष भैया के आने के बाद मैं घर के लिए निकल गया।

मैं सड़क पर अपनी साइड से जा रहा था। पूरा रास्ता लगभग खाली ही पड़ा हुआ था। तभी एक लॉरी सामने से आती हुई दिखाई दी। मैं अपनी धुन में व्यस्त अपनी साइट से चला जा रहा था कि तभी लॉरी मुझसे 20 मीटर पहले ही मेरी तरफ घूम गई। जब तक मैं कुछ समझ पाता तब तक मेरी चीख वातावरण में गूँज गई। लॉरी मुझे टक्कर मारती हुई निकल गई। मैं साधो जाकर फुटपाथ के डिवाइडर से टकराया। फुटपाथ से टकराने पर मेरा सिर फट गया था, हाथ घुटने छिल गए थे। मैं वहीं जख्मी पड़ा बेहोश हो गया। फिर जैसे हर दुर्घटनाग्रस्त इंसान के साथ होता है वो मेरे साथ भी हुआ। दुर्घटना होने के बाद वहां भी कई लोग जमा हो गए। कुछ बातें कर रहे थे कि देखो तो बहुत चोट आई है लड़के को। तो कोई तस्वीर निकाल रहा था मेरी। तो कोई वीडियो बना रहा था, लेकिन मुझे अस्पताल पहुँचाने के लिए कोई भी आगे नहीं आया। लोग आते, मुझे देखते और संवेदना जताकर चले जाते।

(शायद अपने देश का दुर्भाग्य भी यही है कि आधी से ज्यादा मौत दुर्घटना के बाद घायल इंसान की सही समय पर अस्पताल न पहुँच पाने से ही हो जाती है)

बहरहाल आशीष भैया चले तो मेरे साथ ही थे, लेकिन मेरी गति ज्यादा थी तो वो मुझसे पिछड़ गए थे। आशीष भैया दीपा को लेकर मेरे पीछे ही आ रहे थे। लॉरी की टक्कर लगने के लगभग 5-7 मिनट बाद आशीष भैया वहाँ से गुजरे। उन्होंने तुरंत मुझे अस्पताल पहुँचाया और अर्जुन भैया को फोन करके सारी बात बता दी। अर्जुन भैया माँ और भाभी के साथ हाँस्पिटल पहुँचे।

जब शाम को मेरी आँख खुली तो मैंने देखा कि मैं अस्पताल के बिस्तर पर लेटा हूँ और मेरे अगल-बगल दीपा, आशीष भैया, अर्जुन भैया, माँ और भाभी खड़े हुए थे। माँ, भाभी और दीपा की आँखों में आँसू थे। मेरे सिर, हाथ और पैर में पट्टियाँ बधी हुई हैं। मेरी आँख खुलने पर माँ मेरे पास आई और मुझसे लिपट गई।

ये सब कैसे हुआ निशांत, तुझे आराम से बाइक चलानी चाहिए न। तुझे पता है जब मैंने ये सुना तो मुझपर क्या बीती। माँ ने मेरे चेहरे को चूमते हुए कहा।

मैं ठीक हूँ माँ। मैंने कहा।

लेकिन ये सब हुआ कैसे। क्या तुम तेज़ गाड़ी चला रहे थे। अर्जुन भैया ने कहा।

नहीं भैया मैं तो अपनी तरफ से ही आ रहा था। तभी सामने से कोई लॉरी अपनी साइड बदलकर मेरी तरफ आने लगी जब तक मैं समझ पाता। वो लॉरी मुझे टक्कर मारकर चली गई। मैंने अर्जुन भैया को जो कुछ हुआ। सबकुछ विस्तार से बता दिया।

लगता है कि तुम्हें किसी ने जान बूझकर टक्कर मारी है। नहीं तो अगर वो लॉरी अनियंत्रित होकर तुम्हारी साइड में आई होती तो वो भी दुर्घटनाग्रस्त जरूर हुई होती, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मतलब किसी ने तुम्हें मारने के लिए ही ऐसा किया है आशीष भैया ने कहा।

हां सारी स्थिति तो इसी ओर इशारा कर रही है कि ये महज एक दुर्घटना नहीं है ये किसी की सोची समझी साजिश है। अर्जुन भैया ने कहा।

तभी डॉक्टर आ गए। उन्होंने सभी को बाहर भेजा और मुझे नींद का इंजेक्शन लगा दिया। कुछ ही देर में मैं गहरी नींद में सो गया। बाहर आकर मां रोने लगी अर्जुन भैया माँ को समझने लगे।

मैंने पहले ही कहा था कि चुनाव वगैरह के लफड़े में मत पड़ो। चुपचाप पढ़ाई करो, लेकिन तुमने भी मेरी बात नहीं मानी और उसका साथ देते रहे। देखों आज उसी का नतीजा है ये कि मेरा निशांत अस्पताल में पड़ा है। देखो कैसी दुश्मनी निकाली है मेरे बेटे के साथ। मां ने रोते हुए कहा।

आप कैसी बातें कर रही हैं माँ अपना निशांत कोई गलत काम तो कर नहीं रहा है। कॉलेज के सभी विद्यार्थी निशांत के काम और व्यवहार से बहुत खुश हैं। और जो अच्छा काम करता है उसे ऐसी परेशानियों से गुजरना पड़ता है। मुझे अपने भाई पर गर्व है। जो वो सबके बारे में इतना सोचता है। अर्जुन भैया ने माँ से कहा।

लेकिन मैं तो माँ हूँ न। इस दिल को कैसे समझाऊँ मैं। निशांत की ये हालात देखकर मुझपर क्या बीत रही है इसका अंदाज़ा तुम नहीं लगा सकते अर्जुन। मां ने कहा।

मैं समझ सकता हूँ माँ, लेकिन अभी वक्त इनसब बातों का नहीं है। कभी हमें निशांत के जल्दी ठीक हो जाने के बारे में सोचना चाहिए। अर्जुन भैया ने कहा।

तभी डॉक्टर ने आकर कहा।

देखिए अब रात बहुत हो चुकी है। कोई एक लोग मरीज़ के पास रुकें। बाकी लोग घर जाइये। कल सुबह आपलोग फिर आ सकते हैं।

डॉक्टर की बात सुनकर दीपा अस्पताल में रुकने की ज़िद करने लगी। तो मां ने उसे समझते हुए कहा।

देखो बेटी में तुम्हारी हालात समझ सकती हूँ, लेकिन तुम अभी घर जाकर थोड़ा आराम कर लो। अपनी हालत तो देखो। तुम्हारी आंखे लाल हो चुकी हैं रो रो कर। अपने आपको संभालो। यहां रात को में रुक जाती हूँ। तुम सुबह आ जाना। आशीष बेटा दीपा को घर ले जाओ।

बहुत कोशिश करने के बाद दीपा घर जाने के लिए राजी हुई। आशीष भैया दीपा को घर ले कर चले गए।

मां मैं यहां रुकता हूँ। आप अदिति के साथ घर चले जाइये। आप की भी हालत ठीक नहीं लग रही मुझे। मैं यहां रहूंगा तो अगर छोटे या डॉक्टर को किसी काम की जरूरत पड़ी तो आसानी हो जाएगी। अर्जुन भैया ने कहा।

बहुत समझने के बाद माँ और भाभी घर चले गए। अर्जुन भैया आकर मेरे बगल में बैठ गए। सुबह भोर में मेरी आँख खुली तो मैंने भैया को अपनी बगल में बैठे पाया। वो मेरे सिरहाने ही बैठे बैठे सो गए थे। अर्जुन भैया मुझे बहुत प्यार करते थे। वो रात में रोए भी थे, क्योंकि उनकी गालों पर उनकी आंखों से निकले आंसू सूख गए थे जो नज़र आ रहे थे। मैंने भैया को आवाज़ लगाई।

अरे निशांत तू उठ गया। रुक में डॉक्टर को बुलाता हूँ। अर्जुन भैया ने कहा।

नहीं भैया रहने दीजिए। अब ठीक हूँ मैं। आप रात भर ठीक से से नहीं हैं और आप रोए भी हैं रात को। मैंने भैया से कहा।

नहीं तो मैं नहीं रोया। वो तो बस आंख में कोई कीड़ा चला गया था इसलिए आंसू आ गए थे। अर्जुन भैया ने बहाना बना दिया।

मैंने भी इस बात को आगे बढ़ाना उचित नहीं समझा, क्योंकि जो हकीकत थी वो मैं भी जानता था और भैया भी। कुछ देर बाद दीपा और आशीष भैया भी आ गए। आशीष भैया के कहने पर अर्जुन भैया घर चले गए। कुछ घंटे बाद माँ और भाभी भी अस्पताल आ गई। मैंने नाश्ता किया दवा खाई और आराम करने लगा। दोपहर राहुल भैया, विक्रम भैया और उनके कुछ दोस्त और मेरे कुछ दोस्त मुझसे मिलने आए। दीपा ने सुबह राहुल भैया को फ़ोन करके मेरे स्वास्थ्य के बारे में जानकारी दी थी।

अब तबियत कैसी है तुम्हारी निशांत। राहुल भैया ने मुझसे पूछा।

बस ठीक ही है सब बाकी सब आपके सामने ही है। मैंने कहा।

तुमने लॉरी चालक को देखा था। तुम्हें किसी पर शक है। विक्रम भैया ने पूछा।

नहीं मैंने नहीं देखा और बिना देखे किसका नाम लूँ मैं। मैंने कहा।

मुझे तो लगता है इसके पीछे उस देवांशु का ही हाथ है। राहुल भैया ने कहा।

क्या देवांशु का। मैंने चौकते हुए कहा।

क्योंकि अभी तक मेरे दिमाग में ये बात आई ही नहीं थी।




साथ बने रहिए।
 

nain11ster

Prime
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80,681
259
दूसरा भाग

रात को हम पूरे परिवार के साथ भोजन के लिए डाइनिंग टेबल पर बैठे थे। मुझे, भैया और मां को मिलाकर ही हमारी पूरी फैमिली कंप्लीट थी । पापा की मृत्यु आज से 12 साल पहले कंपनी में हुए एक बड़े हादसे के कारण हो गई थी। पापा के मौत के बाद हमारी मां ही हम-दोनों भाइयों की परवरिश पापा बनकर की है। पापा की मृत्यु के बाद पारिवारिक परिस्थिति को देखते हुए भैया दसवीं पास करने के बाद ही मां के कामों में हाथ बढ़ाना शुरू कर दिए थे, जबकि 12वीं के बाद भैया कंपनी संभालने लगे थे।

“ अर्जुन चौटाला साहब को माल डिलीवर करना था। तूने माल भेजवा दिया है क्या ? ”

मां ने ब्रेड के टुकड़े को मुंह में डालते हुए भैया से पूछा।

“ जी .. मां। आज सुबह ही डिलीवर करवा दिया हूं। बस उनके तरफ़ से पेमेंट बाकी रह गयी है।”

भैया ने अपने हाथ से गोभी की सब्जी उठाते हुए जबाब दिया।

“ कोई बात नहीं है, चौटाला साहब अपने पुराने वितरक/वितरणकर्ता हैं। उनसे पैसा कहीं नहीं जाएगा ”

मां ने भैया को देखते हुए बोली।

भैया और मां के बीच का वार्तालाप सुनकर मैं खुश था। मेरा खुश होने का असली कारण यह था कि मां मुझसे कॉलेज के पहले दिन के बारे में कुछ नही पूछ रही थीं । वरना अगर मां कॉलेज के बारे में पूछी होती तो फिर उस पीले दुपट्टे वाली लड़की के बॉयफ्रेंड के चेहरा आंखों तैर जाता।

वैसे मेरी मां को मेरी पढ़ाई लिखाई से ज्यादा लेना-देना नहीं रहता था । वह हमेशा कहती थी जल्द से जल्द कंपनी ज्वाइन कर लो और अपने भाई की काम में किया करो। मगर भैया ने मुझे कॉलेज जाने की छूट दे रखी थी । उनका मानना था कि किसी भी इंसान को पहले अपनी पढ़ाई पूरी करनी चाहिए उसके बाद ही काम के बारे में सोचना चाहिए।

भैया को अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ने की आज भी मलाल है । अगर घर में इस तरह की विपत्ति नहीं आई होती तो शायद भैया अपनी पढ़ाई बीच में छोड़कर कंपनी ज्वाइन कभी नहीं करते, मगर किस्मत के होनी को कौन टाल सकता हैं। कभी कभी कुछ हालात भी हमें बहुत कुछ करने के लिए मजबूर कर देते हैं।

खाना खाकर हम सब अपने कमरे में सोने के लिए चले गए।

अगले दिन मैं जल्दी जल्दी तैयार होकर जब कॉलेज पहुंचा तो आज भी मेरी आंखें कॉलेज के कॉरिडोर में इधर-उधर उसे ही ढूंढ रही थी। मगर वह लड़की फिर से दोबारा नहीं दिखी। इस तरह से कॉलेज के कई दिन बीत गया मगर उस लड़की से फिर कभी दूसरी दफ़ा मुलाकात नहीं हुई।

अब तो भैया की शादी के दिन भी नजदीक आ चुका था और हम लोग शादी की तैयारियों में व्यस्त हो गये थे। अब उस पीले दुपट्टे वाली लड़की की याद भी धुंधली होकर दिमाग से लगभग उतर चुकी थी।

आखिर भैया की शादी का दिन आ ही गया। भैया की शादी शहर के सबसे बड़े मैरिज होटल द सम्राट मैरिज गार्डन में हो रही थी। हम लड़के वाले और लड़की वाले सभी लोग शादी के एक दिन पहले ही उस मैरिज होटल में आ चुके थे। तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी थी। बहुत सारे मेहमान आ चुके थे। मिठाइयों की खुशबू से पूरे होटल में महक रहा था। दरवाजे पर लदे गुलाब के फूलों की खुशबू वहां पर उपस्थित मेहमानों में जोश उड़ेल रहा था।

दोनों तरफ के लोग अपने-अपने रस्म-ओ-रिवाजों में व्यस्त थे । हम लड़के वाले होटल की दूसरी मंजिल पर ठहरे हुए थे, जबकि लड़की वाले भूमितल पर बने हुए कमरों में रुके हुए थे ।

उस दिन शाम में तिलक चढ़ाने की रस्म के लिए हम सभी लड़के एवं लड़की वाले एक साथ बैठे थे। लड़के को तिलक चढ़ाई जा रही थी। और हम लड़के अपने दोस्तों के साथ लड़कियों को ताड़ रहे थे। इसी बीच हमारा ध्यान एक ऊंची हील वाली लड़की पर पड़ी।

उसका चेहरा मुझे कुछ जाना पहचाना सा लगा।ऐसा लग रहा था कि इस खूबसूरत होंठों को, इसके रेशमी बालों को और इसके गुलाबी चिकने गालों को को मैंने कहीं देखा है। दिमाग के घोड़े दौड़ाने पर मेरी दिमाग की बत्ती जल गई।

"अरे यह तो वो ही लड़की है। कॉलेज की पीले दुपट्टे वाली लड़की । " मेरे मुंह से यह चंद शब्द अचानक निकल पड़ा।

उसे देखकर मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। मैं तो जैसे खुशी से पागल हुआ जा रहा था। मेरी आंखें जिस लड़की को कॉलेज में ढूंढती रही और ढूँढ ढूँढ कर थक गई । आज वो मेरे भाई की शादी में मिल रही थी । उस दिन इससे बड़ी ख़ुशी मुझे और किसी बात को लेकर नही हो रही थी । उससे बात करने के लिए मेरा दिल मचलने लगा।

मैं किसी तरह से उससे बात करने की कोशिश करने लगा। कभी मेहमानों से छुपकर जाता तो कभी मां से कुछ बहाने करके लड़की वाले के पास चले जाता। इस तरह से करते करते आखिर एक बार मुझे उस लड़की से बात करने का मौका मिल ही गया।

" हेल्लो " मैने बोला।

"हेल्लो , तुम !..." वह चौक कर बोली।

उसके चेहरे का इम्प्रेशन देखकर ही मैं समझ गया था कि उसे मेरा चेहरा अब तक याद है।

“ हां, मैं ... लेकिन तुम यहां ? ” मै थोड़ा असमंजस में बोला।

“ अरे मैं अपनी फ्रेंड की बहन की शादी में आई हूं।

वैसे तुम किसके तरफ से हो ? " उसने बहुत ही बिंदास स्वर में बोली।

“ यूं समझ लो तुम्हारी फ्रेंड की बहन मेरे ही घर जाने वाली है। ” मैंने मस्का लगाते हुए बोला।

“ क्या मतलब ? ” उसने आश्चर्यचकित होकर पूछा।

“ मतलब कि मैं लड़के का छोटा भाई हूं ।” मैं थोड़ा भाव खाते और नखरा दिखाते हुए बोला।

“ वाओ सच मे । ” वह आश्चर्यचकित होते हुए बोली।

मैं उससे मिलकर काफी खुश हो रहा था। वैसे वह भी काफी खुश दिख रही थी मगर अब तक हम दोनों ने एक दूसरे हालचाल या फिर नाम बैगरह तक नहीं पूछा था। फिर अचानक उसने बोली

“ बाय द वे ( by the way) तुम्हारा नाम क्या है?”

मैं उसे अपना नाम बताता उससे पहले ही वहां पर एक अंकल ने आकर बोला - " छोटे तुम्हारा भाई तुम्हे ढूंढ रहा है"

"जी अंकल मैं आ रहा हूँ" मैंने अंकल को बोला।

अंकल के जाने के बाद वह खिलखिला कर हंसने लगी। मैंने इशारा करके पूछा- “ क्या हुआ? ”

" ये छोटे कैसा नाम है ? इससे अच्छा तो नटवरलाल नाम ठीक-ठाक लग रहा है " वह बोल कर फिर खिलखिला कर हंस पड़ी।

अब मुझे समझ में आ गया था कि वह मेरे नाम को लेकर मेरा मजाक बना रही हैं ।

वैसे हँसते हुए वह और अधिक खूबसूरत लग रही थी। मन तो कर रहा था भाभी के साथ आज इसे भी दुल्हन बना कर अपने घर ले चलूं।

" अरे मेरा नाम छोटे नही ,बल्कि निशांत है। वो तो भैया प्यार से मुझे छोटे बोलते हैं।" मैंने कहा।



साथ बने रहिए।
तीसरा भाग

अच्छा ! तो इस छोटे को एक बड़ा नाम भी है ।" यह बोल कर वह फिर हँस पड़ी।

"वैसे आपका नाम क्या है ? मैंने पूछा।

" नाम की इतनी भी जल्द क्या है छोटे ? समय आएगा तब जान जाईयेगा ।" इतना बोल कर वह मुस्कुराती हुई चली गई।

उसकी मुस्कान ही हम पर सितम ढाह रही थी। उसके जाने के बाद मैं भी भैया के पास चला गया। पूरा होटल शादी के माहौल में डूब चुका था । सभी लोगों के चेहरे पर एक अलग ही तरह की उमंग देखने को मिल रही थी।

" भैया आपने मुझे बुलाया ?" मैंने बोला ।

"छोटे, शाम के 4 बजे वाली फलाइट से सुजाता मौसी आ रही हैं। तुम उन्हें एयरपोर्ट से रिसीव कर लेना" भैया ने बोलें।

" ठीक है भैया । मैं अभी निकलता हूँ। "

यह बोलने के बाद मैंने अपनी नजर स्मार्ट वाच पर टिकाई। शाम के साढ़े तीन बज रहें थे ।

मैं हाल से निकल का सीधा एयरपोर्ट चला गया। एयरपोर्ट पहुंचने में कुल 25 मिनट लग गये थे मगर फिर भी मैं सही समय पर पहुंच गया था। वहाँ कुछ मिनट इन्तजार करने के बाद मुझे सुजाता मौसी दिखी।
सुटकेस के साथ शिल्पा भी मौसी के साथ एयरपोर्ट से बाहर निकलती दिखी।

शिल्पा मेरी मौसी की देवर की इकलौती बेटी है। शिल्पा जब 1 वर्ष की थी तब ही उसके मां और पिता का देहांत एक कार एक्सीडेंट में हो गया था और तब से वह मेरी मौसी के साथ ही रहती है। मौसी ने ही उसका लालन-पालन किया है।

और अब मौसी चाहती थी कि शिल्पा की शादी मेरे अर्जुन भैया से हो। मौसी मेरी माँ से शिल्पा से रिश्ता के लिए कई बार बात कर चुकी थी मगर मेरी माँ हर बार इस रिश्ते को ठुकराती आई है।

मौसी के साथ शिल्पा को देख कर मुझे अजीब लगा । जब शिल्पा के रिश्ते कई बार ठुकराया जा चुका था तो शिल्पा को इस शादी में लाना क्या जरूरी था। मै ऐसा सोचने लगा।

" प्रणाम मौसी " मैं मौसी के पैर छु कर बोला।

" खुश रहो बेटा ... खुश रहो " मौसी थोड़ी ज्यादा ओवर एक्टींग करती हुई बोली।

मौसी हमारी गाड़ी सडक के दूसरी तरफ खड़ी है। हम गाड़ी में चले ? ” मैंने गाड़ी के ओर इशारा करते हुए मौसी से बोला।

" बेटा मेरे साथ शिल्पा भी आई हुई है " मौसी शिल्पा की ओर उंगली से इशारा करती हुई बोली।

" हेलो " मैंने शिल्पा से बोला।

" हाय ... I" शिल्पा चेहरे पर नकली मुस्कान के साथ बोली थी।

वैसे मैं शिल्पा को पहले ही देख चुका था मगर मैंने उससे कुछ बोलना उचित नहीं समझा था।

कुछ मिनट बाद हम लोग अपनी गाड़ी में बैठ चुके थे और गाड़ी सड़कों पर दौड़ रही थी। मैं गाड़ी चला रहा था , मेरी बगल में शिल्पा बैठी थी और पीछे वाली सीट पर सुजाता मौसी थी।

" बेटा हम कितने देर में होटल पहुंच जाएंगे ?" मौसी ने पूछा।

" बस अब हम पहुंचने ही वाले हैं " मैंने सड़क के सीधे में देखते हुए बोला।

" वैसे एक बात पूछूं बेटा? " सुजाता मौसी बोली।

" जी ..... जी मौसी पूछिए।" मैंने बोला।

" बेटा मैंने सुना है तुम्हारी कंपनी , घर और यहां तक की तुम्हारी सभी जायजात तुम्हारे भाई के नाम से रजिस्टर्ड है '' मौसी बोली।

" जी मौसी ... जब पापा की मृत्यु हुई थी तब मेरी उम्र 1 वर्ष से भी कम की थी जिसके कारण उस वक्त पापा के नाम की सारी जायजात को अर्जुन भैया के नाम से रजिस्टर्ड करवाना पड़ा था और वैसे भी इसमें हर्ज ही क्या है? " मैंने बहुत ही सरल शब्दों में जवाब दिया।

" बेटा इसमें तुम्हें कोई हर्ज नहीं दिखता है ? कहीं ऐसा ना हो शादी के बाद उसकी पत्नी तुम्हें जायजात से कुछ हिस्सा ही ना दें, क्योंकि हर लड़की मेरी शिल्पा जैसी तो नहीं ना हो सकती है । " मौसी मुझे बड़ी ही कुटिल नजरों से देखती हुई बोली।

मैं मौसी को कुछ बोलता उससे पहले ही हमारी गाड़ी होटल के पास पहुंच चुकी थी।

वैसे मेरी मौसी का यह स्वभाव हमेशा से रहा है। वह हमेशा से ही हर बातों को नकारात्मक रूप से देखती आई है। उन्हे हर चीजों में, हर रिश्तो में शक करने की बीमारी है। यही कारण था कि उस वक्त मैं गाड़ी में उनसे इन बातों पर ज्यादा बहस करना उचित नहीं समझा।

मैं गाड़ी को होटल के पार्किंग में पार्क कर गाड़ी से बाहर निकला ही था कि मेरी नजर फिर कॉलेज की उस पीले दुपट्टे वाली लड़की पर पड़ी। वह मुझे नहीं देख रही थी वह अपने दोस्तों के साथ अपने होठों की लम्बी चोंच बनाकर अपने मोबाइल से सेल्फी खींच रही थी।

" दीपा दीदी. .....सब लोग डांस प्रतियोगिता कर रहे हैं । चलो ना हम सब भी डांस करते हैं।'' एक 10- 12 साल की लड़की ने उस कॉलेज की पीले दुपट्टे वाली लड़की को आकर बोली।

" वाव! सच में ..... ! तो फिर हम लोग भी चलते हैं" कॉलेज की पीले दुपट्टे वाली लड़की खुश होते हुए बोली।

" दीपा दीदी ? .... ओहो.... तो पीले दुपट्टे वाली लड़की का नाम दीपा है।......निशांत - दीपा, वाह क्या जोड़ी जमेगी ! " मैंने मन ही मन सोचते हुए खुद से बोला।

मैंने देखा वो लोग होटल के डांस फ्लोर पर जा चुके थे।

दिल चोरी साड्डा हो गया है की करिए की करिए '' डांस फ्लोर पर हनी सिंह का यह गाना फुल बेस (Base) में बज रहा था।

मेरी नजर अचानक डांस करती लड़कियों के समूह पर टिक गई। कुछ लड़कियां इस गाने पर जबरदस्त डांस कर रही थी उन्हीं लड़कियों के बीच दीपा भी थी।

गजब का डांस परफॉर्म कर रही थी। वह खूबसूरत तो थी ही, वह डांस भी गजब का कर रही थी। मेरी नजर उसके चहरे से बिलकुल एक सेकण्ड के लिए भी नही हट रही थी तभी एक साथ सारे लोगों की तालियों की आवाज सुनाई पड़ी I जिसके कारण मेरा ध्यान लड़कियों से भंग हुआ ।

गाना खत्म हो चुका था सभी लोग इस डांस परफॉर्म के लिए तालियां बजा रहे थे। अब लड़के वालों के डांस करने की बारी थी। मेरे कुछ दोस्त डांस करने के लिए गए और साथ में डांस करने के लिए मुझे भी बुला रहे थे मगर मैंने मना कर दिया।

" छोटे... तुम्हारे अंदर पावर नहीं है क्या ? ऐसा तो नही मेरा डांस देखकर डर गए हो ? " दीपा ने मेरे कानों के पास आकर कहा।



साथ बने रहिए।

Mujhe lagta hai ye dono update ek jaise hone chahiye... Bhag 2 me to to kewal din bhag raha tha lekin apne Lalla ki lalli kahin dikhi hi nahi...

Aur jisko dhundh raha tha college ki gali wo ladki shadi me aakar mili bhai wahhhh ... Waise mera ek sawal hai writer sahibs se...

Ye ladka aur ladki hamesa shadi me milte hain to kisi na paksh se hote hain... Fir ladka Ho ya ladki.... Aisa kyun nahi hota ki ladke ki shadi ho aur hotel me ladki anda supply karne chali aaya...

Halwai ki team me uska kaam pyaj katne ka ho aur wahin hero se mulakat ho jaye... Bus jahan me aise sawal the ... Jawab ki pratiksha rahegi ...

To ladke ka naam Chhotu hai... Par chhotu nam ka mazak uddaya iss deepa ne very bad manner deepa... Saza me uski shadi main chahunga kisi chhote se ho jaye... Ye main kya bak raha hun... Issi puri shajis ko to Mahi ji bhi dikha rahi.... Waise I love Mahi name too... Agar heroin ka naam mahi hota aur hero ka naam nain parindey to aur bhi jyada maza aata padhne me...

Baharhaal ek chhoti sa suspence yahan par mausi ke entry ke entry ke sath ... 1 sal ki umr se ek bachi ko pali jise apne bahen ke ghar plot karna chahti hai masi... Mujhe to lagta hai masi ne dono hi ghar me kuchh jhol kiya hai... Khair Aane wale waqt me dekhte hain ki ye Masi kitni khatarnak ho sakti hai....

Baki manne to chala dance dekhne ... Ae ki ye kya kiya .. writer sahibs ji ... Chhote to dance challenge accept karega hi aur jitega bhi... kyonki apna hero rajni Anna ka fan hona ...

Lekin dil chori sada ho gaya par deepa ne kya dance kiya hoga... Usd gane ka video maine 4 baar dekha tha... Koi dance step hi na hai :dazed:... Idhar Shakira ke waka waka par dance hona chahiye tha :( ... Khair let's see aage kya chhipa hai...
 
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mashish

BHARAT
8,032
25,909
218
बत्तीसवाँ भाग


कुलपति महोदय की बात सुनकर देवांशु और देवांशु के पिता बाहर जाने लगे, लेकिन जाते जाते वो मुझे घूरकर देखना नहीं भूले। उनके जाने के बात कुलपति महोदय ने हम दोनों से कुछ बातें की फिर उन्होंने हम दोनों को भी जाने के लिए कह दिया।

वहाँ से निकलकर हम दोनों अपनी अपनी कक्षा की ओर चल दिए। अपनी कक्षा में पहुँचकर मैंने अपना लेक्चर अटेंड किया और कॉलेज खत्म होने के बाद मैं अपने घर को चला गया।

इसी तरह दिन गुजरते रहे। देवांशु से झगड़े को लगभग 40-42 दिन बीत चुके थे। मैं और दीपा रोज समय से कॉलेज जाते, अपने क्लास को पूरी सिद्दत से करते और घर चले आते। मैं विद्यार्थियों की छोटी मोटी समस्याओं का समाधान करता रहा। इसी तरह एक दिन मैं सुबह कॉलेज गया हुआ था। मैं अपनी क्लास अटेंड करने के बाद घर जाने के लिए निकला, तभी दीपा भी अपनी क्लास खत्म कर घर जाने के लिए आ गई। आशीष भैया जब तक उसे लेने नहीं आए। दीपा ने मुझे अपने साथ रुकने के लिए कहा। आशीष भैया के आने के बाद मैं घर के लिए निकल गया।

मैं सड़क पर अपनी साइड से जा रहा था। पूरा रास्ता लगभग खाली ही पड़ा हुआ था। तभी एक लॉरी सामने से आती हुई दिखाई दी। मैं अपनी धुन में व्यस्त अपनी साइट से चला जा रहा था कि तभी लॉरी मुझसे 20 मीटर पहले ही मेरी तरफ घूम गई। जब तक मैं कुछ समझ पाता तब तक मेरी चीख वातावरण में गूँज गई। लॉरी मुझे टक्कर मारती हुई निकल गई। मैं साधो जाकर फुटपाथ के डिवाइडर से टकराया। फुटपाथ से टकराने पर मेरा सिर फट गया था, हाथ घुटने छिल गए थे। मैं वहीं जख्मी पड़ा बेहोश हो गया। फिर जैसे हर दुर्घटनाग्रस्त इंसान के साथ होता है वो मेरे साथ भी हुआ। दुर्घटना होने के बाद वहां भी कई लोग जमा हो गए। कुछ बातें कर रहे थे कि देखो तो बहुत चोट आई है लड़के को। तो कोई तस्वीर निकाल रहा था मेरी। तो कोई वीडियो बना रहा था, लेकिन मुझे अस्पताल पहुँचाने के लिए कोई भी आगे नहीं आया। लोग आते, मुझे देखते और संवेदना जताकर चले जाते।

(शायद अपने देश का दुर्भाग्य भी यही है कि आधी से ज्यादा मौत दुर्घटना के बाद घायल इंसान की सही समय पर अस्पताल न पहुँच पाने से ही हो जाती है)

बहरहाल आशीष भैया चले तो मेरे साथ ही थे, लेकिन मेरी गति ज्यादा थी तो वो मुझसे पिछड़ गए थे। आशीष भैया दीपा को लेकर मेरे पीछे ही आ रहे थे। लॉरी की टक्कर लगने के लगभग 5-7 मिनट बाद आशीष भैया वहाँ से गुजरे। उन्होंने तुरंत मुझे अस्पताल पहुँचाया और अर्जुन भैया को फोन करके सारी बात बता दी। अर्जुन भैया माँ और भाभी के साथ हाँस्पिटल पहुँचे।

जब शाम को मेरी आँख खुली तो मैंने देखा कि मैं अस्पताल के बिस्तर पर लेटा हूँ और मेरे अगल-बगल दीपा, आशीष भैया, अर्जुन भैया, माँ और भाभी खड़े हुए थे। माँ, भाभी और दीपा की आँखों में आँसू थे। मेरे सिर, हाथ और पैर में पट्टियाँ बधी हुई हैं। मेरी आँख खुलने पर माँ मेरे पास आई और मुझसे लिपट गई।

ये सब कैसे हुआ निशांत, तुझे आराम से बाइक चलानी चाहिए न। तुझे पता है जब मैंने ये सुना तो मुझपर क्या बीती। माँ ने मेरे चेहरे को चूमते हुए कहा।

मैं ठीक हूँ माँ। मैंने कहा।

लेकिन ये सब हुआ कैसे। क्या तुम तेज़ गाड़ी चला रहे थे। अर्जुन भैया ने कहा।

नहीं भैया मैं तो अपनी तरफ से ही आ रहा था। तभी सामने से कोई लॉरी अपनी साइड बदलकर मेरी तरफ आने लगी जब तक मैं समझ पाता। वो लॉरी मुझे टक्कर मारकर चली गई। मैंने अर्जुन भैया को जो कुछ हुआ। सबकुछ विस्तार से बता दिया।

लगता है कि तुम्हें किसी ने जान बूझकर टक्कर मारी है। नहीं तो अगर वो लॉरी अनियंत्रित होकर तुम्हारी साइड में आई होती तो वो भी दुर्घटनाग्रस्त जरूर हुई होती, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मतलब किसी ने तुम्हें मारने के लिए ही ऐसा किया है आशीष भैया ने कहा।

हां सारी स्थिति तो इसी ओर इशारा कर रही है कि ये महज एक दुर्घटना नहीं है ये किसी की सोची समझी साजिश है। अर्जुन भैया ने कहा।

तभी डॉक्टर आ गए। उन्होंने सभी को बाहर भेजा और मुझे नींद का इंजेक्शन लगा दिया। कुछ ही देर में मैं गहरी नींद में सो गया। बाहर आकर मां रोने लगी अर्जुन भैया माँ को समझने लगे।

मैंने पहले ही कहा था कि चुनाव वगैरह के लफड़े में मत पड़ो। चुपचाप पढ़ाई करो, लेकिन तुमने भी मेरी बात नहीं मानी और उसका साथ देते रहे। देखों आज उसी का नतीजा है ये कि मेरा निशांत अस्पताल में पड़ा है। देखो कैसी दुश्मनी निकाली है मेरे बेटे के साथ। मां ने रोते हुए कहा।

आप कैसी बातें कर रही हैं माँ अपना निशांत कोई गलत काम तो कर नहीं रहा है। कॉलेज के सभी विद्यार्थी निशांत के काम और व्यवहार से बहुत खुश हैं। और जो अच्छा काम करता है उसे ऐसी परेशानियों से गुजरना पड़ता है। मुझे अपने भाई पर गर्व है। जो वो सबके बारे में इतना सोचता है। अर्जुन भैया ने माँ से कहा।

लेकिन मैं तो माँ हूँ न। इस दिल को कैसे समझाऊँ मैं। निशांत की ये हालात देखकर मुझपर क्या बीत रही है इसका अंदाज़ा तुम नहीं लगा सकते अर्जुन। मां ने कहा।

मैं समझ सकता हूँ माँ, लेकिन अभी वक्त इनसब बातों का नहीं है। कभी हमें निशांत के जल्दी ठीक हो जाने के बारे में सोचना चाहिए। अर्जुन भैया ने कहा।

तभी डॉक्टर ने आकर कहा।

देखिए अब रात बहुत हो चुकी है। कोई एक लोग मरीज़ के पास रुकें। बाकी लोग घर जाइये। कल सुबह आपलोग फिर आ सकते हैं।

डॉक्टर की बात सुनकर दीपा अस्पताल में रुकने की ज़िद करने लगी। तो मां ने उसे समझते हुए कहा।

देखो बेटी में तुम्हारी हालात समझ सकती हूँ, लेकिन तुम अभी घर जाकर थोड़ा आराम कर लो। अपनी हालत तो देखो। तुम्हारी आंखे लाल हो चुकी हैं रो रो कर। अपने आपको संभालो। यहां रात को में रुक जाती हूँ। तुम सुबह आ जाना। आशीष बेटा दीपा को घर ले जाओ।

बहुत कोशिश करने के बाद दीपा घर जाने के लिए राजी हुई। आशीष भैया दीपा को घर ले कर चले गए।

मां मैं यहां रुकता हूँ। आप अदिति के साथ घर चले जाइये। आप की भी हालत ठीक नहीं लग रही मुझे। मैं यहां रहूंगा तो अगर छोटे या डॉक्टर को किसी काम की जरूरत पड़ी तो आसानी हो जाएगी। अर्जुन भैया ने कहा।

बहुत समझने के बाद माँ और भाभी घर चले गए। अर्जुन भैया आकर मेरे बगल में बैठ गए। सुबह भोर में मेरी आँख खुली तो मैंने भैया को अपनी बगल में बैठे पाया। वो मेरे सिरहाने ही बैठे बैठे सो गए थे। अर्जुन भैया मुझे बहुत प्यार करते थे। वो रात में रोए भी थे, क्योंकि उनकी गालों पर उनकी आंखों से निकले आंसू सूख गए थे जो नज़र आ रहे थे। मैंने भैया को आवाज़ लगाई।

अरे निशांत तू उठ गया। रुक में डॉक्टर को बुलाता हूँ। अर्जुन भैया ने कहा।

नहीं भैया रहने दीजिए। अब ठीक हूँ मैं। आप रात भर ठीक से से नहीं हैं और आप रोए भी हैं रात को। मैंने भैया से कहा।

नहीं तो मैं नहीं रोया। वो तो बस आंख में कोई कीड़ा चला गया था इसलिए आंसू आ गए थे। अर्जुन भैया ने बहाना बना दिया।

मैंने भी इस बात को आगे बढ़ाना उचित नहीं समझा, क्योंकि जो हकीकत थी वो मैं भी जानता था और भैया भी। कुछ देर बाद दीपा और आशीष भैया भी आ गए। आशीष भैया के कहने पर अर्जुन भैया घर चले गए। कुछ घंटे बाद माँ और भाभी भी अस्पताल आ गई। मैंने नाश्ता किया दवा खाई और आराम करने लगा। दोपहर राहुल भैया, विक्रम भैया और उनके कुछ दोस्त और मेरे कुछ दोस्त मुझसे मिलने आए। दीपा ने सुबह राहुल भैया को फ़ोन करके मेरे स्वास्थ्य के बारे में जानकारी दी थी।

अब तबियत कैसी है तुम्हारी निशांत। राहुल भैया ने मुझसे पूछा।

बस ठीक ही है सब बाकी सब आपके सामने ही है। मैंने कहा।

तुमने लॉरी चालक को देखा था। तुम्हें किसी पर शक है। विक्रम भैया ने पूछा।

नहीं मैंने नहीं देखा और बिना देखे किसका नाम लूँ मैं। मैंने कहा।

मुझे तो लगता है इसके पीछे उस देवांशु का ही हाथ है। राहुल भैया ने कहा।

क्या देवांशु का। मैंने चौकते हुए कहा।

क्योंकि अभी तक मेरे दिमाग में ये बात आई ही नहीं थी।




साथ बने रहिए।
good update
 
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