बत्तीसवाँ भाग
कुलपति महोदय की बात सुनकर देवांशु और देवांशु के पिता बाहर जाने लगे, लेकिन जाते जाते वो मुझे घूरकर देखना नहीं भूले। उनके जाने के बात कुलपति महोदय ने हम दोनों से कुछ बातें की फिर उन्होंने हम दोनों को भी जाने के लिए कह दिया।
वहाँ से निकलकर हम दोनों अपनी अपनी कक्षा की ओर चल दिए। अपनी कक्षा में पहुँचकर मैंने अपना लेक्चर अटेंड किया और कॉलेज खत्म होने के बाद मैं अपने घर को चला गया।
इसी तरह दिन गुजरते रहे। देवांशु से झगड़े को लगभग 40-42 दिन बीत चुके थे। मैं और दीपा रोज समय से कॉलेज जाते, अपने क्लास को पूरी सिद्दत से करते और घर चले आते। मैं विद्यार्थियों की छोटी मोटी समस्याओं का समाधान करता रहा। इसी तरह एक दिन मैं सुबह कॉलेज गया हुआ था। मैं अपनी क्लास अटेंड करने के बाद घर जाने के लिए निकला, तभी दीपा भी अपनी क्लास खत्म कर घर जाने के लिए आ गई। आशीष भैया जब तक उसे लेने नहीं आए। दीपा ने मुझे अपने साथ रुकने के लिए कहा। आशीष भैया के आने के बाद मैं घर के लिए निकल गया।
मैं सड़क पर अपनी साइड से जा रहा था। पूरा रास्ता लगभग खाली ही पड़ा हुआ था। तभी एक लॉरी सामने से आती हुई दिखाई दी। मैं अपनी धुन में व्यस्त अपनी साइट से चला जा रहा था कि तभी लॉरी मुझसे 20 मीटर पहले ही मेरी तरफ घूम गई। जब तक मैं कुछ समझ पाता तब तक मेरी चीख वातावरण में गूँज गई। लॉरी मुझे टक्कर मारती हुई निकल गई। मैं साधो जाकर फुटपाथ के डिवाइडर से टकराया। फुटपाथ से टकराने पर मेरा सिर फट गया था, हाथ घुटने छिल गए थे। मैं वहीं जख्मी पड़ा बेहोश हो गया। फिर जैसे हर दुर्घटनाग्रस्त इंसान के साथ होता है वो मेरे साथ भी हुआ। दुर्घटना होने के बाद वहां भी कई लोग जमा हो गए। कुछ बातें कर रहे थे कि देखो तो बहुत चोट आई है लड़के को। तो कोई तस्वीर निकाल रहा था मेरी। तो कोई वीडियो बना रहा था, लेकिन मुझे अस्पताल पहुँचाने के लिए कोई भी आगे नहीं आया। लोग आते, मुझे देखते और संवेदना जताकर चले जाते।
(शायद अपने देश का दुर्भाग्य भी यही है कि आधी से ज्यादा मौत दुर्घटना के बाद घायल इंसान की सही समय पर अस्पताल न पहुँच पाने से ही हो जाती है)
बहरहाल आशीष भैया चले तो मेरे साथ ही थे, लेकिन मेरी गति ज्यादा थी तो वो मुझसे पिछड़ गए थे। आशीष भैया दीपा को लेकर मेरे पीछे ही आ रहे थे। लॉरी की टक्कर लगने के लगभग 5-7 मिनट बाद आशीष भैया वहाँ से गुजरे। उन्होंने तुरंत मुझे अस्पताल पहुँचाया और अर्जुन भैया को फोन करके सारी बात बता दी। अर्जुन भैया माँ और भाभी के साथ हाँस्पिटल पहुँचे।
जब शाम को मेरी आँख खुली तो मैंने देखा कि मैं अस्पताल के बिस्तर पर लेटा हूँ और मेरे अगल-बगल दीपा, आशीष भैया, अर्जुन भैया, माँ और भाभी खड़े हुए थे। माँ, भाभी और दीपा की आँखों में आँसू थे। मेरे सिर, हाथ और पैर में पट्टियाँ बधी हुई हैं। मेरी आँख खुलने पर माँ मेरे पास आई और मुझसे लिपट गई।
ये सब कैसे हुआ निशांत, तुझे आराम से बाइक चलानी चाहिए न। तुझे पता है जब मैंने ये सुना तो मुझपर क्या बीती। माँ ने मेरे चेहरे को चूमते हुए कहा।
मैं ठीक हूँ माँ। मैंने कहा।
लेकिन ये सब हुआ कैसे। क्या तुम तेज़ गाड़ी चला रहे थे। अर्जुन भैया ने कहा।
नहीं भैया मैं तो अपनी तरफ से ही आ रहा था। तभी सामने से कोई लॉरी अपनी साइड बदलकर मेरी तरफ आने लगी जब तक मैं समझ पाता। वो लॉरी मुझे टक्कर मारकर चली गई। मैंने अर्जुन भैया को जो कुछ हुआ। सबकुछ विस्तार से बता दिया।
लगता है कि तुम्हें किसी ने जान बूझकर टक्कर मारी है। नहीं तो अगर वो लॉरी अनियंत्रित होकर तुम्हारी साइड में आई होती तो वो भी दुर्घटनाग्रस्त जरूर हुई होती, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मतलब किसी ने तुम्हें मारने के लिए ही ऐसा किया है आशीष भैया ने कहा।
हां सारी स्थिति तो इसी ओर इशारा कर रही है कि ये महज एक दुर्घटना नहीं है ये किसी की सोची समझी साजिश है। अर्जुन भैया ने कहा।
तभी डॉक्टर आ गए। उन्होंने सभी को बाहर भेजा और मुझे नींद का इंजेक्शन लगा दिया। कुछ ही देर में मैं गहरी नींद में सो गया। बाहर आकर मां रोने लगी अर्जुन भैया माँ को समझने लगे।
मैंने पहले ही कहा था कि चुनाव वगैरह के लफड़े में मत पड़ो। चुपचाप पढ़ाई करो, लेकिन तुमने भी मेरी बात नहीं मानी और उसका साथ देते रहे। देखों आज उसी का नतीजा है ये कि मेरा निशांत अस्पताल में पड़ा है। देखो कैसी दुश्मनी निकाली है मेरे बेटे के साथ। मां ने रोते हुए कहा।
आप कैसी बातें कर रही हैं माँ अपना निशांत कोई गलत काम तो कर नहीं रहा है। कॉलेज के सभी विद्यार्थी निशांत के काम और व्यवहार से बहुत खुश हैं। और जो अच्छा काम करता है उसे ऐसी परेशानियों से गुजरना पड़ता है। मुझे अपने भाई पर गर्व है। जो वो सबके बारे में इतना सोचता है। अर्जुन भैया ने माँ से कहा।
लेकिन मैं तो माँ हूँ न। इस दिल को कैसे समझाऊँ मैं। निशांत की ये हालात देखकर मुझपर क्या बीत रही है इसका अंदाज़ा तुम नहीं लगा सकते अर्जुन। मां ने कहा।
मैं समझ सकता हूँ माँ, लेकिन अभी वक्त इनसब बातों का नहीं है। कभी हमें निशांत के जल्दी ठीक हो जाने के बारे में सोचना चाहिए। अर्जुन भैया ने कहा।
तभी डॉक्टर ने आकर कहा।
देखिए अब रात बहुत हो चुकी है। कोई एक लोग मरीज़ के पास रुकें। बाकी लोग घर जाइये। कल सुबह आपलोग फिर आ सकते हैं।
डॉक्टर की बात सुनकर दीपा अस्पताल में रुकने की ज़िद करने लगी। तो मां ने उसे समझते हुए कहा।
देखो बेटी में तुम्हारी हालात समझ सकती हूँ, लेकिन तुम अभी घर जाकर थोड़ा आराम कर लो। अपनी हालत तो देखो। तुम्हारी आंखे लाल हो चुकी हैं रो रो कर। अपने आपको संभालो। यहां रात को में रुक जाती हूँ। तुम सुबह आ जाना। आशीष बेटा दीपा को घर ले जाओ।
बहुत कोशिश करने के बाद दीपा घर जाने के लिए राजी हुई। आशीष भैया दीपा को घर ले कर चले गए।
मां मैं यहां रुकता हूँ। आप अदिति के साथ घर चले जाइये। आप की भी हालत ठीक नहीं लग रही मुझे। मैं यहां रहूंगा तो अगर छोटे या डॉक्टर को किसी काम की जरूरत पड़ी तो आसानी हो जाएगी। अर्जुन भैया ने कहा।
बहुत समझने के बाद माँ और भाभी घर चले गए। अर्जुन भैया आकर मेरे बगल में बैठ गए। सुबह भोर में मेरी आँख खुली तो मैंने भैया को अपनी बगल में बैठे पाया। वो मेरे सिरहाने ही बैठे बैठे सो गए थे। अर्जुन भैया मुझे बहुत प्यार करते थे। वो रात में रोए भी थे, क्योंकि उनकी गालों पर उनकी आंखों से निकले आंसू सूख गए थे जो नज़र आ रहे थे। मैंने भैया को आवाज़ लगाई।
अरे निशांत तू उठ गया। रुक में डॉक्टर को बुलाता हूँ। अर्जुन भैया ने कहा।
नहीं भैया रहने दीजिए। अब ठीक हूँ मैं। आप रात भर ठीक से से नहीं हैं और आप रोए भी हैं रात को। मैंने भैया से कहा।
नहीं तो मैं नहीं रोया। वो तो बस आंख में कोई कीड़ा चला गया था इसलिए आंसू आ गए थे। अर्जुन भैया ने बहाना बना दिया।
मैंने भी इस बात को आगे बढ़ाना उचित नहीं समझा, क्योंकि जो हकीकत थी वो मैं भी जानता था और भैया भी। कुछ देर बाद दीपा और आशीष भैया भी आ गए। आशीष भैया के कहने पर अर्जुन भैया घर चले गए। कुछ घंटे बाद माँ और भाभी भी अस्पताल आ गई। मैंने नाश्ता किया दवा खाई और आराम करने लगा। दोपहर राहुल भैया, विक्रम भैया और उनके कुछ दोस्त और मेरे कुछ दोस्त मुझसे मिलने आए। दीपा ने सुबह राहुल भैया को फ़ोन करके मेरे स्वास्थ्य के बारे में जानकारी दी थी।
अब तबियत कैसी है तुम्हारी निशांत। राहुल भैया ने मुझसे पूछा।
बस ठीक ही है सब बाकी सब आपके सामने ही है। मैंने कहा।
तुमने लॉरी चालक को देखा था। तुम्हें किसी पर शक है। विक्रम भैया ने पूछा।
नहीं मैंने नहीं देखा और बिना देखे किसका नाम लूँ मैं। मैंने कहा।
मुझे तो लगता है इसके पीछे उस देवांशु का ही हाथ है। राहुल भैया ने कहा।
क्या देवांशु का। मैंने चौकते हुए कहा।
क्योंकि अभी तक मेरे दिमाग में ये बात आई ही नहीं थी।
साथ बने रहिए।