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Romance तेरी मेरी आशिक़ी (कॉलेज के दिनों का प्यार)

Mahi Maurya

Dil Se Dil Tak
Supreme
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304
Superb update
Lo bhai dudh ka dudh aur pani ka pani ho gaya
धन्यवाद आपका मान्यवर।।

आखिर हीरो के रहते ऐसे कैसे दीपा पर इल्ज़ाम साबित होता।।
 

Mahi Maurya

Dil Se Dil Tak
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Hero ko to sabhi taraf se jhatke dene ki teyari ki jaa rahi hai :D:
Superb update
आखिर शादी करनी है तो कुछ तो पापड़ बेलने पड़ेंगे ना।।
 

Mbindas

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उन्तीसवाँ भाग


माँ के बुलाने पर मैं बुझे मन से घर की तरफ चल पड़ा। मैंने निश्चय कर लिया था कि मैं उस लड़की से अपने और दीपा के रिश्ते के बारे में साफ साफ बता दूंगा।

थोड़ी देर बाद मैं घर पर पहुँचा तो माँ, भैया और भाभी हॉल में बैठे मेरा इंतज़ार कर रहे थे। मेरे घर मे घुसने के बाद माँ ने कहा।

जल्दी से जाकर फ्रेश हो जाओ लड़की बहू के कमरे में बैठी हुई है। जाकर उससे मिलो। उसे देखो और एक दूसरे को समझने की कोशिश करो।

लेकिन माँ मैं दीपा से शादी करना चाहता हूँ। फिर आप लोग क्यों मेरे साथ जबरदस्ती कर रहे हैं। मैंने कहा।

देखो तुम्हारे कहने पर ही हमने आशीष से दीपा के रिश्ते की बात की थी, परंतु आशीष ने मना कर दिया। तो अब किसी न किसी से तो तुम्हे शादी करनी ही है। अब ज्यादा बहस नहीं करो और जाकर फ्रेश होकर उस लड़की से मिलो। माँ ने कहा।

माँ की बात सुनकर मैं बुझे मन से अपने कमरे में चल गया और फ्रेश होकर अपने बिस्तर पर बैठ गया। थोड़ी देर बाद मैं अपने कमरे से निकलकर भाभी के कमरे की तरफ चल पड़ा। आज मेरे पांव मेरा साथ ही नहीं दे रहे थे। मैं भगवान से कामना कर रहा था कि कुछ ऐसा हो जाए कि मैं भाभी के कमरे तक पहुँच ही न पाऊँ।

लेकिन उस समय भगवान भी मेरे साथ नहीं थे। जब मैं भाभी के कमरे में पहुँच गया तो देखा कि एक लड़की मेरी तरफ पीठ करके बैठी हुई है। मैंने उसको देखना नहीं चाहता था इसलिए मैंने भी उसकी तरफ अपनी पीठ कर ली और उससे कहा।

सुनिए मुझे तुमसे कुछ कहना है।

हां मुझे पता है कि आप क्या कहना चाहते हैं। उसने मेरी तरफ पलटते हुए कहा।

तुम्हें कैसे पता कि मुझे क्या कहना है। मैंने उससे कहा।

मुझे आपकी मम्मी ने सब बताया है। उसने कहा।

क्या बताया है मेरी माँ ने तुमको। मैंने कहा।

आपकी माँ ने बताया है कि आप मुझसे शादी करने के लिए तैयार हैं। उस लड़की ने कहा।

बिल्कुल नहीं। मैं तुमसे शादी नहीं कर सकता। मैं किसी और से प्यार करता हूँ कर उसी से शादी करूँगा। तुम इस रिश्ते के लिए माँ को मना कर दो। मैंने उससे कहा।

लेकिन आपकी मम्मी ने तो बताया था कि उसके भाई को ये रिश्ता पसंद नहीं है। इसलिए उन्होंने आज मुझे तुमसे मिलवाने के लिए बुलाया है। उस लड़की ने कहा।

मैं उन्हें इस शादी के लिए मना लूंगा। बस तुम इस शादी से मना कर दो। बोल दो कि मैं तुम्हें पसंद नहीं। मैंने कहा।

लेकिन मुझे तो आप बहुत पसंद हैं। मैं मना क्यों करूँ। वैसे मैं भी उस लड़की से कम सुंदर नहीं हूँ। एक बार देखो मुझे। तुम उसे भूल जाओगे। उस लड़की ने कहा।

मैंने कहा न मुझे तुमसे शादी नहीं करनी। और मेरे लिए मेरी दीपा से ज्यादा सुंदर लड़की और कोई नहीं है। तुम भी नहीं। मैंने उस लड़की से कहा।

ऐसे कैसे। अभी तक तुमने मुझे देखा ही नहीं। जब से आए हो मुंह घुमाकर खड़े हुए हो। उस लड़की ने कहा।

जब मुझे तुमसे शादी करनी ही नहीं है तो तुम्हें देखने का कोई मतलब ही नहीं है। वैसे भी दीपा तुमसे हर मामले में अच्छी है। सूरत में भी और सीरत में भी समझी। मैंने तुमसे शादी नहीं करनी। मैंने कहा।

उसके बाद मैं भाभी के कमरे से वापस आने लगा, तभी उसकी बात सुनकर मेरे पैर वहीं रुक गए।

वो कैसी है मुझे पता है। ना सूरत से है न सीरत से है। सुना है उसका कॉलेज के किसी लड़के के साथ चक्कर चल रहा है, वो तुम्हें धोखा दे रही है और तुम उसके पीछे पागल हो। उस लड़की ने कहा।

उसकी बात सुनकर मुझे गुस्सा आ गया मैंने अपनी मुट्ठी भींज ली और उसकी तरफ पलट कर बोला।

तेरी तो मैं….………

इसके आगे के शब्द मेरे मुंह में ही रह गए। कारण, सामने दीपा खड़ी हुई मुस्कुरा रही थी। मैं उसे देख कर हक्का बक्का राह गया। मेरी तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि ये सब हो क्या रहा है और दीपा यहां क्या कर रही है।

तभी पीछे से मुझे तालियों की आवाज़ सुनाई दी। मैंने पीछे मुड़कर देखा तो माँ, अर्जुन भैया और अदिति भाभी के साथ आशीष भैया भी खड़े थे और सभी मेरी हालत का मज़ा लेते हुए मुस्कुरा रहे थे।

क्यों निशांत क्या हुआ। अर्जुन भैया ने कहा।

ये सब क्या है भैया। मतलब दीपा यहां क्या, कैसे। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है।

दीपा यहां का क्या मतलब है तेरा। दीपा ही तो वो लड़की है जिससे मैंने तुम्हारे लिए पसंद किया है। माँ ने कहा।

मां की बात सुनकर मैं बहुत खुश हुआ। लेकिन मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आशीष भैया कैसे मान गए।

लेकिन आशीष भैया तो तैयार नहीं हैं मेरी और दीपा की शादी के लिए। मैंने मां से कहा।

किसने कहा कि मुझे इस रिश्ते से ऐतराज़ है। अरे मैं तो बहुत ज्यादा खुश हूं कि तुम दोनों की शादी हो रही है। आशीष भैया ने कहा।

और नहीं तो क्या। तुम्हारे लिए कोई लड़की वड़की माँ जी ने नहीं देखी है। तुम्हारे लिए दीपा से अच्छी लड़की कोई हो ही नहीं सकती। अदिति भाभी ने कहा।

तो फिर वो सब क्या था जो इतने दिन से हो रहा था। मैंने आश्चर्य से पूछा।

वो सब मेरा प्लान था तुझे परेशान करने का। क्योंकि तू मेरी बात नहीं मानता था, इसलिये मुझे ये करना पड़ा, आखिर तुझे भी तो पता चलना चाहिए की मां से पंगा लेने का क्या नतीजा होता है। माँ ने इस बार हंसते हुए कहा।

मतलब आप सब ने मिलकर मुझे परेशान किया इतने दिन और दीपा तुम भी इन सब लोगों के साथ मिली हुई हो और आवाज़ बदलकर मुझे गुमराह कर रही थी। मैंने कहा।

दीपा को ये सब करने के लिए मैंने ही कहा था। माँ ने कहा।

मां की बात सुनकर मुझे इस बात का सुकून हो गया कि दीपा के साथ मेरी शादी में अब कोई रुकावट नहीं है। मैंने दौड़कर मां को गले लगा लिया।

आप सब बहुत खराब हो, आपको पता है इन दिनों मुझपर क्या गुजरी है। मैंने मां के गले लगे हुए शिकायती लहज़े में कहा।

चलो जो भी हुआ अच्छा ही हुआ। कम से कम इसी बहाने हमें तुम दोनों की प्यार की गहराई और सच्चाई का आभास तो हुआ। आशीष भैया ने कहा।

इसके बाद कुछ देर रहने के बाद दीपा अपने भाई के साथ अपने घर चली गई। मेरे लिए आज का दिन दोपहर बाद बहुत खुशनुमा रहा और इसी खुशी में आज का सारा दिन बीत गया।

सुबह मैं फ्रेश होकर नाश्ता किया और कॉलेज चला गया। सारी क्लास अटेंड करने के बाद मैं घर वापस आ गया। इसी तरह दिन गुजरते रहे। मैं रोज कॉलेज जाता। दीपा से मिलता। बहुत सारी बातें होती और मैं घर वापस आ जाता। सब कुछ अच्छे से चल रहा था।

फिर माँ ने आशीष भैया से मिलकर 3 दिन बाद मेरी और दीपा की सगाई का दिन निर्धारित कर दिया। मैं और दीपा बहुत खुश हुए। मैंने राहुल भैया, विक्रम भैया और अपने कुछ सहपाठियों को सगाई में आमंत्रित किया। दीपा ने भी अपनी कुछ सहेलियों को सगाई में बुलाया। राहुल भैया और विक्रम भैया मेरी और दीपा की सगाई की बात सुनकर बहुत खुश हुए।

तीसरे दिन सगाई का एक छोटा सा कार्यक्रम आयोजित हुआ। जिसमें मेरे कुछ रिश्तेदार और दोस्त शामिल हुए। दीपा की तरफ से भी उसके कुछ रिश्तेदार और उसकी कुछ सहेलियां शामिल हुई।।

सगाई बहुत अच्छी और धूमधाम से हुई। मेरे और दीपा के सभी दोस्तों ने हम दोनों को शुभकामनाएं दी। सगाई खत्म हो जाने के बाद मेरे और दीपा के सभी दोस्त अपने अपने घर चले गए।

मैं और दीपा बहुत खुश थे, क्योंकि हम दोनों ने जो सपना देखा था वो पूरा होने जा रहा था। मैंने देखा था कि प्यार करने वाले बहुत से प्रेमियों को अपनी मंज़िल नहीं मिलती। लेकिन मेरे और दीपा के घरवालों ने हैम दोनों को अपनी मंज़िल तक पहुचाया था।

अगले दिन हम दोनों कॉलेज नहीं गए, बल्कि मैं दीपा को लेकर एक लवर पॉइंट पर गया। वहाँ पहुचकर हम दोनों एक पेड़ के नीचे बैठ गए।

मैं बहुत खुश हूं छोटे। दीपा ने कहा।

मैं भी बहुत खुश हूं दीपा। तुम्हे पता है जब आशीष भैया ने इनकार किया था तो मैं कितना ज्यादा परेशान हो गया था और उनको मनाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वो मां ही नहीं रहे थे। वो तो बाद में पता चला कि वो नाटक कर रहे थे और तुम भी उन सब के साथ मिली हुई थी। मैंने कहा।

मैं क्या करती निशांत। माँ ने मुझे ऐसा करने के लिए कहा था। तो मुझे करना पड़ा। दीपा ने कहा।

उसके बाद मैं और दीपा एक दूसरे की आंखों में देखने लगे। हम दोनों की आंखों में एक दूसरे के लिए प्यार था। मैं दीपा की आंखों में देखते देखते उसमे डूब गया और अपना होंठ उसके चेहरे की तरफ बढाने लगा। दीपा ने भी मुझे रोकने की कोशिश नहीं की। कुछ पल बाद मेरे होंठ दीपा के होंठों पर चिपक गए। मैं और दीपा पूरी सिद्दक्त से एक दूसरे के होंठ चूस रहे थे।

लगभग 10 मिनट तक एक दूसरे के होंठ चूसने के बाद हम एक दूसरे से अलग हुए। हम दोनों के चेहरे पर मुस्कान थी और दिल मे एक सुकून था। थोड़ी देर बैठने के बाद हम दोनों वहां से निकल गए। मैंने दीपा को उनके घर छोड़कर अपने घर चला गया।



साथ बने रहिए।
Nice update
Inki to sagai ho gai zyada drama nahi hua. Aage dekhte h ki kya hota hai
 
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Mbindas

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तीसवाँ भाग


सगाई हो जाने के बाद मैं और दीपा बहुत खुश थे और हमेशा साथ साथ रहने लगे। अगले दिन जब मैं कॉलेज पहुँचा तो बधाई देने वालों का तांता लग गया। चूंकि विद्याथियों के लिए अब मैं कोई आम विद्यार्थी तो था नहीं। उनका छात्रनेता था, और मेरे काम और मेरे व्यवहार ने सभी विद्यार्थी और प्रोफेसर के दिल में मेरे लिए एक खास छाप छोड़ी थी। तो हम दोनों की सगाई की खबर कॉलेज में जैसे जंगल मे आग फैलती है उसी तरह फैल चुकी थी। विद्यार्थी खुशी से मुझे बधाई दे रहे थे।

इस पूरे प्रक्रम के दौरान मुझे देवांशु कहीं दिखाई नही पड़ा था। मैं अपनी कक्षा में जाकर बैठ गया। थोड़ी देर बाद क्लास शुरू हो गई। क्लास अटेंड करने के बाद भोजनावकाश के समय मैं राहुल भैया के पास चला गया। वो अपने दोस्तों के साथ बैठे हुए थे। मुझे देखकर उनके चेहरे पर एक मुस्कान आ गई।

अरे निशांत आओ आओ। और बताओ क्या चल रहा है। राहुल भैया ने कहा।

मैं ठीक हूँ भैया और सब ठीक चल रहा है। मैंने कहा।

तुमको बहुत बहुत बधाई सगाई के लिए। बहुत खुशनशीब हो तुम कि तुम जिस लड़की से प्यार करते हो उसी लड़की से तुम्हारी शादी हो रही है। राहुल भैया ने कहा।

ये सब मेरे घरवालों ने किया है भैया। उनकी वजह से ही मुझे मेरी दीपा मिल रही है। मैंने कहा।

अभी हमारी बात चीत चल ही रही थी कि तभी दीपा मुझे ढूंढते हुए वहां पर आ गयी।

तुम यहाँ पर बैठे हुए हो और मैंने तुम्हें पूरे कॉलेज में ढूंढ लिया। दीपा ने कहा।

अरे हम भी यहां बैठे हुए हैं, लेकिन लगता है तुम्हारा पूरा ध्यान अपने होने वाले पति पर ही लगा हुआ है। हम लोग तो जैसे यहां हैं ही नहीं। राहुल भैया ने कहा।

राहुल भैया की बात सुनकर दीपा शरमाने लगी।

नहीं भैया ऐसी कोई बात नहीं है ये तो बस दीपा को ध्यान नहीं रहा होगा। मैंने राहुल भैया से कहा।

ओए होए। क्या बात है। अभी से इतनी तरफ़दारी। पता नहीं शादी के बाद क्या होगा तुम दोनों का। चलो भाई चलो। अब इन दोनों प्रेमियों के बीच हम सब का क्या काम, खामखाह कबाब में हड्डी बन रहे हैं हम। राहुल भैया ने हम दोनों की चुटकी लेते हुए कहा।

राहुल भैया की बात सुनक़र विक्रम भैया और उनके दोस्त जाने लगे। दीपा ने उन्हें रोकते हुए कहा।

नहीं भैया ऐसी कोई बात नहीं है आप लोग बैठिए न। हम दोनों को कोई दिक्कत थोड़े न है।

नहीं दीपा हम तो मज़ाक कर रहे थे। अभी क्लास का समय हो रहा है तो हम लोगों को जाना होगा। तुम दोनों बैठो और बातें करो। राहुल भैया जाते हुए बोले।

राहुल भैया के जाने के बाद दीपा मेरे बगल में बैठ गई और मेरे कंधे पर अपना सिर रख दिया। मैंने अपना हाथ उठाकर उसके सिर पर रख दिया और उसके बालों में उंगलियां घुमाने लगा। हम दोनों खामोशी से बैठे हुए थे। थोड़ी देर बाद दीपा ने मेरे कंधे से सिर उठाते हुए कहा।

छोटे क्यों न आज हम दोनों फ़िल्म देखने चलें।

हाँ क्यों नहीं। चलो चलते हैं। मैंने कहा।

उसके बाद मैंने अपनी बाइक निकली और दीपा को पीछे बैठने के लिए कहा। दीपा एक तरफ दोनों पैर करके बैठने लगी तो मैंने कहा।

ये क्या दीपा। अब तो हमारी सगाई भी हो चुकी है। फिर भी तुम ऐसे बैठ रही हो। दोनों तरफ पैर करके मुझसे चिपक कर बैठो न। मैंने दीपा से कहा।

मेरी बात सुनकर दीपा मुस्कुराते हुए अपने पैर दोनों तरफ करके मुझसे चिपक कर बैठते हुए बोली।

क्या बात है छोटे बाबू। आज बड़ा रोमांस सूझ रहा है तुम्हे।

ये रोमांस नहीं है डार्लिंग। ये तो अब मेरा हक है जो मैं तुमपर जता रहा हूँ।

उसके बाद हम दोनों सिनेमाहाल पहुच गए फ़िल्म देखने के लिए। उस समय सिनेमाहाल में सनम तेरी कसम फ़िल्म चल रही थी। हम दोनों टिकट लेकर फ़िल्म देखने अंदर चले गए। अब ये फ़िल्म कैसी है ये तो सभी को पता है। फ़िल्म खत्म होते होते दीपा की आंखों से गंगा जमुना बहने लगी। फ़िल्म खत्म होने के बाद दीपा बाथरूम चली गई और अपने चेहरे को धोकर बाहर आई। उसके बाद हम दोनों घर के लिए निकल पड़े।

ये फ़िल्म कितनी दर्दभरी है न। मेरी आंखों में तो आंसू आ गए। दीपा ने कहा।

बात तो सही कही तुमने दीपा। लगता है पूरी फिल्म के दौरान तुमने अपने आपको ही उस लड़की की जगह महसूस किया। मैंने दीपा से कहा।

तुम सही कह रहे हो निशांत। दीपा ने कहा।

हम दोनों बात करते हुए घर आ रहे थे। रास्ते में एक ठेले पर छोला भटूरा बन रहा था तो दीपा ने बाइक रोकने के लिए कहा। मैंने बाइक रोकी तो दीपा उतरकर उस ठेले के पास चली गई। मैंने भी अपनी गाड़ी ठेले के पास लगाई और दीपा के पास चला गया।

भैया एक थाली छोले भटूरे देना। दीपा ने उस ठेले वाले से कहा।

ठेले वाले ने गरमा गरम छोला भटूरा निकल कर दिया। हम दोनों एक ही थाली में खाने लगे।

अभी हमने आधी थाली छोले भटूरे खत्म किये थे कि एक 8-9 साल का लड़का वहां पर आया और हमे खाते हुए देखने लगा। तभी दीपा की नज़र उस लड़के पर पड़ी। दीपा ने मुझे इशारा करके बताया। मैंने उस लड़के को देखा। वो बहुत ललचाई नजरों से हमारी खाने की थाली को देख रहा था। वो जिस तरह से थाली को देख रहा था हमें लग रहा था कि वो भूखा है। दीपा ने उससे पूछा।

छोले भटूरे खाओगे।

उस लड़के ने हां में गर्दन हिलाई। दीपा ने ठेले वाले से एक थाली छोले भटूरे देने के लिए कहा।

अरे मैडम आप नहीं जानती इन लोगों को। ये रोज़ का काम है। कुछ करते नहीं हैं बस दिन भर घूमते रहते हैं। आप लोग इन सब के चक्कर में मत पढ़िए। ठेले वाले ने कहा।

अरे भैया कैसी बात कर रहे हैं आप। देखो तो कितना भूखा लग रहा है। आप एक थाली इसे दे दीजिए। पैसे तो हम दे ही रहे हैं आपको। दीपा ने कहा।

दीपा के कहने के बाद ठेले वाले ने एक थाली छोला भटूरा बच्चे को खाने के लिए दिया। बच्चे ने जल्दी से उसे खत्म किया और हमें आभार भारी नज़रों से देखता हुआ चला गया। मैंने ठेले वाले को दो थाली के पैसे दिए और घर की ओर निकल लिए। सबसे पहले मैंने दीपा को उसके घर छोड़ा और फिर अपने घर आ गया।

घर आकर मैं अपने कमरे में चल गया। इसी तरह दिन गुजरते रहे और हम दोनों का प्यार परवान चढ़ता रहा। मेरी सगाई को अब 20 दिन से ज्यादा हो गए थे।

मैं सुबह स्नान करके नाश्ता करने के बाद कॉलेज चला गया। कॉलेज गेट पर ही मेरी मुलाकात दीपा से हो गई। हम दोनों साथ साथ कॉलेज के अंदर चले गए और कॉरिडोर से होते हुए अपनी कक्षा में चले गए।

भोजनावकाश के समय मैं और दीपा कैंटीन में चले गए और साथ मे खाना खाया। कुछ देर बैठे रहने के बाद दीपा की सहेली आ गई और उसने दीपा को साथ चलने के लिए कहा। दीपा उसके साथ चली गई। मैं कैंटीन से जाने वाला ही था कि राहुल भैया और उनके दोस्त आ गए तो मैं उन लोगों के साथ बैठ गया और बातचीत करने लगा।

उधर दीपा अपनी सहेली के साथ जा रही थी कि कॉरिडोर के पास उसकी मुलाकात देवांशु से हो गई। दीपा उसे नजरअंदाज करके आगे बढ़ने लगी।

क्या बात है दीपा। इतनी नाराजगी। मुझे माफ़ कर दो। उस दिन जो भी मैंने तुमसे अभद्र भाषा मे बात किया उसके लिए माफ़ी मांगता हूं। देवांशु ने माफी भी अकड़ के साथ मांगी।

दीपा ने उसको कोई जवाब नहीं दिया और अपनी सहेली के साथ आगे बढ़ गई। देवांशु जाकर दीपा के आगे खड़ा हो गया।

अरे यार दीपा। मुझे माफ़ कर दो। में सचमुच् तुमसे दिल से माफी मांग रहा हूँ। उस जिन मैंने तुमसे जिस तरह से बात की मुझे वैसे बात नहीं करना चाहिए था। देवांशु ने कहा।

ठीक है मैंने तुम्हें माफ किया। अब मेरा रास्ता छोड़ो। दीपा ने कहा।

नहीं दीपा पहले तुम मुझे माफ़ करो उसके बाद ही मैं तुम्हे जाने दूंगा। अभी तुमने मुझे माफ़ नहीं किया। ये तुम ऊपरी मन से बोल रही हो। देवांशु ने दीपा का हाथ पकड़ते हुए कहा।

मैंने तुम्हें सच में माफ कर दिया देवांशु। दीपा ने अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा।

एक बात बताओ दीपा। उस निशांत में ऐसा क्या है जो मुझमें नहीं है। तो तुमने मेरे बजाय उस निशांत से क्यों सगाई कर ली। देवांशु ने फिर से दीपा का हाथ पकड़ते हुए कहा।

मेरा हाथ छोड़ो देवांशु। तुम्हारे पास ऐसा कुछ भी नहीं है। न लड़की से बात करने की तमीज़, न ही लड़की का सम्मान और इज़्ज़त करने के गुण। तुम बहुत ही बदतमीज़ और बिगड़े हुए लड़के हो। मैं तो तुझे देखना भी पसंद न करूँ। सगाई तो बहुत दूर की बात है। दीपा ने अपना हाथ झटकते हुए कहा।

दीपा की बात सुनकर देवांशु आग बबूला हो गया और उसने दीपा का हाथ कसकर पकड़ते हुए कहा।

तू क्या समझती है अपने आपको। तेरे जैसी लड़कियाँ मेरे आगे पीछे घूमती हैं। और तू मुझे बदतमीज़ बोल रही है। बदतमीज़ी क्या होती है लगता है तुझे बताना पड़ेगा।

इतना कहकर देवांशु अपना हाथ दीपा के दुपट्टे के तरफ बढ़ने लगा। दीपा ने पूरा जोर लगाकर अपना हाथ उसके हाथ से छुड़ाया और पूरी ताकत से एक जोरदार तमाचा देवांशु के गालों पर रसीद कर दिया जिसकी आवाज़ पूरे कॉरिडोर में गूंज गई।

...च...टा...क...।।



साथ बने रहिए।।
Superb update
Naari shakti bata hi di Dipa ne. Aage dekhte hai kya hota hai
 
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Mbindas

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इकत्तीसवाँ भाग


देवांशु की गंदी हरकत से दीपा को गुस्सा आ गया और उसने अपने हाथ उससे छुड़ाकर पूरी ताकत से एक झन्नाटेदार थप्पड़ उसके गालों पर रसीद कर दिया। पूरा कॉरिडोर में थप्पड़ की आवाज गूँज उठी।

च....टा.....क......क....ककककककककककक

दीपा ने थप्पड़ इतनी जोर से मारा था कि देवांशु अपने गाल पर हाथ रखकर सहला रहा था। कॉलेज के बहुत सारे विद्यार्थी कॉरिडोर में जमा हो गए थे और तमाशा देख रहे थे। दीपा का चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ था। वो बहुत गुस्से से देवांशु को देख रही थी।

तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे हाथ लगाने की। मैं और लड़कियों जैसी नहीं हूँ जो तेरी हरकतों से डरकर तुझसे रहम की भीख मागूँगी। मैं डरने वालों में से नहीं जवाब देने वालों में से हूँ। तेरे जैसे मजनुओं को सबक सिखाना मुझे अच्छी तरह से आते है। तुझे शर्म आनी चाहिए मेरे साथ ऐसी हरकत करते हुए। मैं तो तुझे अपना अच्छा दोस्त मानती थी तुझे, लेकिन मुझे नहीं पता था कि तेरे इस चेहरे के पीछे इतना घिनौना चरित्र छिपा हुआ है। तुमने इस बार गलत लड़की से पंगा ले लिया है देवांशु। आइंदा से मेरे साथ बात करने की कोशिश भी मत करना नहीं तो इससे भी बुरा हश्र करूँगी तुम्हारा मैं। दीपा ने देवांशु से गुस्से से कहा।

इधर जब देवांशु दीपा से अभद्रता करने लगा तो उसके साथ पढ़ने वाला एक लड़का मुझे ढूढते हुए आया, क्योंकि अब तो सारे कॉलेज को मेरे और दीपा के रिश्ते के बारे में पता था। मैं अभी भी राहुल भैया और उनके दोस्तों के साथ कैंटीन में बैठा हुआ था।

सर, कॉलेज के कॉरिडोर में देवांशु दीपा मैडम के साथ अभद्रता कर रहा है। जल्दी चलिए। उस लड़के ने कहा।

उसकी बात सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आया। मैं बिना कुछ सोचे समझे उस लड़के के साथ कॉरिडोर की तरफ दौड़ लगा दी। जब मैं वहाँ पहुँचा तो देवांशु दीपा का हाथ पकड़कर मरोड़कर कर उसकी पीठ पर लगा दिया था। मैंने पहुँचते ही उसकी पीठ में एक जोर का घूँसा मारा। फिर उसके कॉलर पकड़कर 5-6 थप्पड़ उसके गालों पर जड़ दिया। जिससे उसका पूरा गाल लाल हो गया।

तुझे मैंने कितनी बार समझाया है कि अपनी हद में रहा कर, लेकिन तुझे मेरी बात समझ में नहीं आती। एक बार अगर तू मेरे साथ अभद्रता करता तो शायद मैं तुझे छोड़ भी देता, लेकिन तूने मेरी दीपा के साथ अभद्रता की है। तू सच में लातों का भूत है तुझे बातों से नहीं समझाया जा सकता। तुझे अच्छे से सबक सिखाना पड़ेगा।

इतने कहकर मैंने देवांशु को उठाकर जमीन में पटक दिया उसे मारने लगा। दोनों गुथमगुत्था थे। कभी मैं उसके ऊपर तो कभी वो मेरे ऊपर। देवांशु भी अपने बचाव में मुझे मारने लगा। तब तक देवांशु के दोस्त और राहुल भैया आपने दोस्तों के साथ वहाँ आ गए। उन्होंने हम दोनों को एक दूसरे से अगल किया, लेकिन तब तक मैंने देवांशु की अच्छी खासी पिटाई कर दी थी। मार तो मुझे भी पड़ी थी, लेकिन देवांशु मुझे ज्यादा नहीं मार पाया था।

तुमने ये ठीक नहीं किया निशांत। तुमने मुझपर हाथ उठाकर अपने लिए मुसीबत खड़ी कर ली है। देखना मैं तेरे साथ क्या करता हूँ। देवांशु मुझे उँगली दिखाता हुआ बोला।

अगर तुमने इस बार कोई ओंछी हरकत की तो मैं तुझे तेरी क्लास में घुसकर मारूँगा और इस बार मुझे कोई रोक नहीं पाएगा। इसलिए अगली बार ऐसा कुछ करने से पहले सौ बार सोच लेना। मैंने भी देवांशु को उसी की भाषा में जवाब देते हुए कहा।

देवांशु को उसके दोस्त अपने साथ ले गए। मैं दीपा के पास गया और उससे पूछा।

तुम ठीक तो हो न दीपा।

हाँ मैं बिलकुल ठीक हूँ। दीपा ने कहा।

तुमने बहुत अच्छा किया निशांत। ये देवांशु कुछ ज्यादा ही उड़ रहा था। इसे सबक सिखाना जरूरी हो गया था, लेकिन आगे से संभलकर रहना। जहाँ तक मैं उसे जानता हूँ वो चुप बैठने वालों में से नहीं है। इसीलिए मैं तुम्हें हमेशा उसे नजरअंदाज करने के लिए कहता था। लेकिन आज उसने जो हरकत की। उसके लिए उसे मारना जरूरी था। राहुल भैया ने मुझसे कहा।

लड़ाई करने के कारण मुझे भी जगह जगह खरोच और लाल निशान आ गए थे। मेरे कपड़े भी छीना झपटी में फट गए थे। मैंने घर जाना ही उचित समझा। मैं दीपा और राहुल भैया को बोलकर घर जाने लगा तो दीपा भी मेरे साथ हो ली। मैं दीपा को लेकर घर चला गया। घर पर माँ और भाभी थी। अर्जुन भैया अभी तक घर नहीं आए थे। दीपा को देखकर माँ बहुत खुश हुई। थोड़ी देर मैं भी घर में घुसा तो मेरी हालत देखकर माँ और भाभी परेशान हो गए।

क्या हुआ तुझे निशांत। ये कैसे हो गया। माँ ने चिंतित स्वर में कहा।

कुछ नहीं माँ वो बस कॉलेज में थोड़ी लड़ाई हो गई थी। मैंने माँ से कहा।

तू कॉलेज लड़ाई करने के लिए जाता है कि पढ़ाई करने के लिए। मैंने तुझसे पहले ही कहा था कि अगर तुझे पढ़ाई नहीं करनी है तो व्यवसाय में अपने भाई का हाथ बटाया कर। माँ ने थोड़े गुस्से से कहा।

ऐसी बात नहीं है माँ। कॉलेज का एक लड़का है देवांशु वो मेरे साथ बदतमीजी कर रहा था, इसीलिए निशांत और उस लड़के के बीच लड़ाई हो गई। जिसके कारण निशांत को भी चोटें आ गई। दीपा ने माँ से कहा।

क्या कहा। तुम्हारे साथ बदतमीजी की किसी ने। कल उसकी शिकायत करना आपने कॉलेज में। ऐसे कैसे कोई तुम्हारे साथ बदतमीजी कर सकता है। माँ ने दीपा से कहा।

ठीक है माँ जैसा आप कह रही हैं हम वैसा ही करेंगे। दीपा ने कहा।

उसके बाद मैं अपने कमरे में चला गया और अपने कपड़े बदले। फिर दीपा मेरे लिए पानी लेकर आई और मेरे मेज के ड्रायर से दवा निकाल कर मेरी चोंटो पर लगाने लगी। दीपा की मेरे लिए इतनी फिक्र देखकर मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। थोड़ी देर बाद दीपा मेरे कमरे से बाहर चली गई। अदिति भाभी ने आशीष भैया को फोन करके बता दिया कि दीपा आज रात यही रुकने वाली है। आशीष भैया को कोई ऐतराज नहीं था।

अर्जुन भैया के आने के बाद भाभी ने सारी बात भैया को बता दी। भैया मेरे कमरे में मेरा हालचाल जानने के लिए आए। खाना खाने के समय सभी ने खाना खाया और अपने अपने कमरे में सोने के लिए चले गए।

सुबह उठकर मैंने और दीपा ने फेश होकर नाश्ता किया और कॉलेज के लिए निकल गए। कॉलेज पहुँचकर मैं और दीपा अपनी अपनी कक्षा में चले गए। मैं अपनी क्लास मैं बैठा अपना लेक्चल ले रहा था तभी चपरासी ने आकर बताया कि कुलपति महोदय ने मुझे बुलाया है। मैं जब कुलपति महोदय के कार्यालय में पहुँचा तो वहाँ पर देवांशु और एक सज्जन और बैठे हुए थे। मैंने कुलपति महोदय को नमस्कार किया। उन्होंने मुझे बैठने के लिए कहा। मैं उनके सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया। थोड़ी देर बाद दीपा भी वहाँ आ गई। तब मुझे समझ आ गया कि सामने बैठे सज्जन शायद देवांशु के अभिभावक हैं। जो मेरी शिकायत लगाने आए हुए हैं।

क्या बात है सर आपने मुझे बुलाया। मैंने कुलपति महोदय से कहा।

सुना है कि कल तुमने कॉलेज में मारपीट की। तुम छात्रों के नेता होकर अगर ऐसे गुंडों की तरह मारपीट करते रहोगे तो इससे विद्यार्थियों पर बुरा असर पड़ेगा। कुलपति महोदय ने कहा।

सर आपको ये तो बताया गया कि मैंने मारपीट की हो, लेकिन ये नहीं बताया गया कि मैंने मारपीट क्यों की। मैंने कहा।

अच्छा जरा मुझे भी तो पता चले कि तुमने मेरे बेटे को क्यों मारा। पास बैठे सज्जन ने मुझसे कहा।

ये बात आप अपने बेटे से ही पूछते तो ज्यादा अच्छा रहता। फिर भी मैं आपको बता देता हूँ कि आपका बेटा कॉलेज में पढ़ने नहीं लड़कियाँ छेड़ने आता है। कल इसने मेरी मंगेतर के साथ बदतमीजी की। जिसके कारण मैंने इसे मारा। और अगर अब भी ये नहीं सुधरा और मेरी मंगेतर के साथ या कॉलेज के किसी भी लड़की के साथ बदतमीजी की तो फिर इसे मेरे हाथों से कोई नहीं बचा सकता। मैंने अपना दाँत पीसते हुए कहा।

यही तो दिन होते हैं मौज मस्ती करने का, अगर जवानी में मेरा बेटा मौज मस्ती नहीं करेगा तो क्या बुढ़ापे में करेगा। अगर इसने तुम्हारी मंगेतर के साथ बदतमीजी कर भी दी थी तो इसे मारने की क्या जरूरत थी। तुम शायद अभी मुझे ठीक से जानते नहीं हो। मैं चाहूँ तो तुम्हारा बहुत बुरा कर सकता हूँ। वो सज्जन अपनी सज्जनता का नमूना पेश करते हुए बोले।

मैं तो समझता था कि देवांशु बड़े बाप की बिगड़ी हुई औलाद है, लेकिन अब समझ में आया कि जब कंपनी ही इतनी घटिया है तो प्रोडक्ट तो महाघटिया ही निकलेगा न उससे। मैंने उस व्यक्ति से कहा।

क्या बोला तू, तेरी तो मैं। अभी उस व्यक्ति ने इतना ही कहा था कि कुलपति महोदय बोल पड़े।

देखिए मान्यवर, निशांत छात्रनेता होने के साथ साथ एक होनहार और विद्यार्थियों के बारे में सोचने वाला लड़का है। आपकी बात मानकर मैंने इसे बुलाया। लेकिन निशांत की बातों और आपकी हरकतों से ऐसा लग रहा है कि निशांत बिलकुल ठीक कह रहा है, और अगर निशांत ने आपके बेटे को पीटा है तो कुछ गलत नहीं किया। और मेरे कॉलेज में ऐसा कुछ हो ये मैं बरदास्त भी नहीं करूँगा। तो बेहतर है कि आप यहाँ से तसरीफ ले जाइए और अपने बेटे को समझा दीजिए कि अगर ये अपनी हरकतों से बाज नहीं आया तो इसके खिलाफ सख्त कार्रवाई करने में मैं तनिक भी पीछे नहीं हटूँगा। कुलपति महोदय ने उस व्यक्ति से कहा।

कुलपति महोदय की बात सुनकर देवांशु और उसके पापा बाहर जाने लगे, लेकिन जाते हुए भी दोनो मुझे घूरकर देख रहे थे। उनके जाने के बाद कुलपति महोदय ने हम दोनों को भी जाने के लिए कहा।



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बत्तीसवाँ भाग


कुलपति महोदय की बात सुनकर देवांशु और देवांशु के पिता बाहर जाने लगे, लेकिन जाते जाते वो मुझे घूरकर देखना नहीं भूले। उनके जाने के बात कुलपति महोदय ने हम दोनों से कुछ बातें की फिर उन्होंने हम दोनों को भी जाने के लिए कह दिया।

वहाँ से निकलकर हम दोनों अपनी अपनी कक्षा की ओर चल दिए। अपनी कक्षा में पहुँचकर मैंने अपना लेक्चर अटेंड किया और कॉलेज खत्म होने के बाद मैं अपने घर को चला गया।

इसी तरह दिन गुजरते रहे। देवांशु से झगड़े को लगभग 40-42 दिन बीत चुके थे। मैं और दीपा रोज समय से कॉलेज जाते, अपने क्लास को पूरी सिद्दत से करते और घर चले आते। मैं विद्यार्थियों की छोटी मोटी समस्याओं का समाधान करता रहा। इसी तरह एक दिन मैं सुबह कॉलेज गया हुआ था। मैं अपनी क्लास अटेंड करने के बाद घर जाने के लिए निकला, तभी दीपा भी अपनी क्लास खत्म कर घर जाने के लिए आ गई। आशीष भैया जब तक उसे लेने नहीं आए। दीपा ने मुझे अपने साथ रुकने के लिए कहा। आशीष भैया के आने के बाद मैं घर के लिए निकल गया।

मैं सड़क पर अपनी साइड से जा रहा था। पूरा रास्ता लगभग खाली ही पड़ा हुआ था। तभी एक लॉरी सामने से आती हुई दिखाई दी। मैं अपनी धुन में व्यस्त अपनी साइट से चला जा रहा था कि तभी लॉरी मुझसे 20 मीटर पहले ही मेरी तरफ घूम गई। जब तक मैं कुछ समझ पाता तब तक मेरी चीख वातावरण में गूँज गई। लॉरी मुझे टक्कर मारती हुई निकल गई। मैं साधो जाकर फुटपाथ के डिवाइडर से टकराया। फुटपाथ से टकराने पर मेरा सिर फट गया था, हाथ घुटने छिल गए थे। मैं वहीं जख्मी पड़ा बेहोश हो गया। फिर जैसे हर दुर्घटनाग्रस्त इंसान के साथ होता है वो मेरे साथ भी हुआ। दुर्घटना होने के बाद वहां भी कई लोग जमा हो गए। कुछ बातें कर रहे थे कि देखो तो बहुत चोट आई है लड़के को। तो कोई तस्वीर निकाल रहा था मेरी। तो कोई वीडियो बना रहा था, लेकिन मुझे अस्पताल पहुँचाने के लिए कोई भी आगे नहीं आया। लोग आते, मुझे देखते और संवेदना जताकर चले जाते।

(शायद अपने देश का दुर्भाग्य भी यही है कि आधी से ज्यादा मौत दुर्घटना के बाद घायल इंसान की सही समय पर अस्पताल न पहुँच पाने से ही हो जाती है)

बहरहाल आशीष भैया चले तो मेरे साथ ही थे, लेकिन मेरी गति ज्यादा थी तो वो मुझसे पिछड़ गए थे। आशीष भैया दीपा को लेकर मेरे पीछे ही आ रहे थे। लॉरी की टक्कर लगने के लगभग 5-7 मिनट बाद आशीष भैया वहाँ से गुजरे। उन्होंने तुरंत मुझे अस्पताल पहुँचाया और अर्जुन भैया को फोन करके सारी बात बता दी। अर्जुन भैया माँ और भाभी के साथ हाँस्पिटल पहुँचे।

जब शाम को मेरी आँख खुली तो मैंने देखा कि मैं अस्पताल के बिस्तर पर लेटा हूँ और मेरे अगल-बगल दीपा, आशीष भैया, अर्जुन भैया, माँ और भाभी खड़े हुए थे। माँ, भाभी और दीपा की आँखों में आँसू थे। मेरे सिर, हाथ और पैर में पट्टियाँ बधी हुई हैं। मेरी आँख खुलने पर माँ मेरे पास आई और मुझसे लिपट गई।

ये सब कैसे हुआ निशांत, तुझे आराम से बाइक चलानी चाहिए न। तुझे पता है जब मैंने ये सुना तो मुझपर क्या बीती। माँ ने मेरे चेहरे को चूमते हुए कहा।

मैं ठीक हूँ माँ। मैंने कहा।

लेकिन ये सब हुआ कैसे। क्या तुम तेज़ गाड़ी चला रहे थे। अर्जुन भैया ने कहा।

नहीं भैया मैं तो अपनी तरफ से ही आ रहा था। तभी सामने से कोई लॉरी अपनी साइड बदलकर मेरी तरफ आने लगी जब तक मैं समझ पाता। वो लॉरी मुझे टक्कर मारकर चली गई। मैंने अर्जुन भैया को जो कुछ हुआ। सबकुछ विस्तार से बता दिया।

लगता है कि तुम्हें किसी ने जान बूझकर टक्कर मारी है। नहीं तो अगर वो लॉरी अनियंत्रित होकर तुम्हारी साइड में आई होती तो वो भी दुर्घटनाग्रस्त जरूर हुई होती, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मतलब किसी ने तुम्हें मारने के लिए ही ऐसा किया है आशीष भैया ने कहा।

हां सारी स्थिति तो इसी ओर इशारा कर रही है कि ये महज एक दुर्घटना नहीं है ये किसी की सोची समझी साजिश है। अर्जुन भैया ने कहा।

तभी डॉक्टर आ गए। उन्होंने सभी को बाहर भेजा और मुझे नींद का इंजेक्शन लगा दिया। कुछ ही देर में मैं गहरी नींद में सो गया। बाहर आकर मां रोने लगी अर्जुन भैया माँ को समझने लगे।

मैंने पहले ही कहा था कि चुनाव वगैरह के लफड़े में मत पड़ो। चुपचाप पढ़ाई करो, लेकिन तुमने भी मेरी बात नहीं मानी और उसका साथ देते रहे। देखों आज उसी का नतीजा है ये कि मेरा निशांत अस्पताल में पड़ा है। देखो कैसी दुश्मनी निकाली है मेरे बेटे के साथ। मां ने रोते हुए कहा।

आप कैसी बातें कर रही हैं माँ अपना निशांत कोई गलत काम तो कर नहीं रहा है। कॉलेज के सभी विद्यार्थी निशांत के काम और व्यवहार से बहुत खुश हैं। और जो अच्छा काम करता है उसे ऐसी परेशानियों से गुजरना पड़ता है। मुझे अपने भाई पर गर्व है। जो वो सबके बारे में इतना सोचता है। अर्जुन भैया ने माँ से कहा।

लेकिन मैं तो माँ हूँ न। इस दिल को कैसे समझाऊँ मैं। निशांत की ये हालात देखकर मुझपर क्या बीत रही है इसका अंदाज़ा तुम नहीं लगा सकते अर्जुन। मां ने कहा।

मैं समझ सकता हूँ माँ, लेकिन अभी वक्त इनसब बातों का नहीं है। कभी हमें निशांत के जल्दी ठीक हो जाने के बारे में सोचना चाहिए। अर्जुन भैया ने कहा।

तभी डॉक्टर ने आकर कहा।

देखिए अब रात बहुत हो चुकी है। कोई एक लोग मरीज़ के पास रुकें। बाकी लोग घर जाइये। कल सुबह आपलोग फिर आ सकते हैं।

डॉक्टर की बात सुनकर दीपा अस्पताल में रुकने की ज़िद करने लगी। तो मां ने उसे समझते हुए कहा।

देखो बेटी में तुम्हारी हालात समझ सकती हूँ, लेकिन तुम अभी घर जाकर थोड़ा आराम कर लो। अपनी हालत तो देखो। तुम्हारी आंखे लाल हो चुकी हैं रो रो कर। अपने आपको संभालो। यहां रात को में रुक जाती हूँ। तुम सुबह आ जाना। आशीष बेटा दीपा को घर ले जाओ।

बहुत कोशिश करने के बाद दीपा घर जाने के लिए राजी हुई। आशीष भैया दीपा को घर ले कर चले गए।

मां मैं यहां रुकता हूँ। आप अदिति के साथ घर चले जाइये। आप की भी हालत ठीक नहीं लग रही मुझे। मैं यहां रहूंगा तो अगर छोटे या डॉक्टर को किसी काम की जरूरत पड़ी तो आसानी हो जाएगी। अर्जुन भैया ने कहा।

बहुत समझने के बाद माँ और भाभी घर चले गए। अर्जुन भैया आकर मेरे बगल में बैठ गए। सुबह भोर में मेरी आँख खुली तो मैंने भैया को अपनी बगल में बैठे पाया। वो मेरे सिरहाने ही बैठे बैठे सो गए थे। अर्जुन भैया मुझे बहुत प्यार करते थे। वो रात में रोए भी थे, क्योंकि उनकी गालों पर उनकी आंखों से निकले आंसू सूख गए थे जो नज़र आ रहे थे। मैंने भैया को आवाज़ लगाई।

अरे निशांत तू उठ गया। रुक में डॉक्टर को बुलाता हूँ। अर्जुन भैया ने कहा।

नहीं भैया रहने दीजिए। अब ठीक हूँ मैं। आप रात भर ठीक से से नहीं हैं और आप रोए भी हैं रात को। मैंने भैया से कहा।

नहीं तो मैं नहीं रोया। वो तो बस आंख में कोई कीड़ा चला गया था इसलिए आंसू आ गए थे। अर्जुन भैया ने बहाना बना दिया।

मैंने भी इस बात को आगे बढ़ाना उचित नहीं समझा, क्योंकि जो हकीकत थी वो मैं भी जानता था और भैया भी। कुछ देर बाद दीपा और आशीष भैया भी आ गए। आशीष भैया के कहने पर अर्जुन भैया घर चले गए। कुछ घंटे बाद माँ और भाभी भी अस्पताल आ गई। मैंने नाश्ता किया दवा खाई और आराम करने लगा। दोपहर राहुल भैया, विक्रम भैया और उनके कुछ दोस्त और मेरे कुछ दोस्त मुझसे मिलने आए। दीपा ने सुबह राहुल भैया को फ़ोन करके मेरे स्वास्थ्य के बारे में जानकारी दी थी।

अब तबियत कैसी है तुम्हारी निशांत। राहुल भैया ने मुझसे पूछा।

बस ठीक ही है सब बाकी सब आपके सामने ही है। मैंने कहा।

तुमने लॉरी चालक को देखा था। तुम्हें किसी पर शक है। विक्रम भैया ने पूछा।

नहीं मैंने नहीं देखा और बिना देखे किसका नाम लूँ मैं। मैंने कहा।

मुझे तो लगता है इसके पीछे उस देवांशु का ही हाथ है। राहुल भैया ने कहा।

क्या देवांशु का। मैंने चौकते हुए कहा।

क्योंकि अभी तक मेरे दिमाग में ये बात आई ही नहीं थी।




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Lo bhai ab hero ko bed rest bhi kara diya aur kya kya din dekhne honge apne hero ko :DD:
 
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तैंतीसवाँ भाग


राहुल भैया के मुंह से देवांशु का नाम सुनकर मैं चौंक गया। मैंने तो इस बारे में अभी तक सोचा ही नहीं था कि वो इतना बड़ा खतरनाक कदम उठा सकता है।

नहीं भैया मुझे नहीं लगता कि इनमें उस देवांशु का हाथ हो सकता है। मैंने राहुल भैया से कहा।

तुम्हें क्या लगता है मैं ऐसे ही कह रहा हूँ। मैंने बहुत से मामले ऐसे देखे हुए हैं। वो तुमसे चुनाव में हार गया। वो दीपा एकतरफा प्यार करता है, लेकिन दीपा तुमसे प्यार करती है। उसे लगता है कि तुम्हारे कारण ही दीपा उसे प्यार नहीं करती। और ऊपर से तुम दोनों की लड़ाई। इतना काफी है उसे ऐसा खतरनाक कदम उठाने को मजबूर करने के लिए। राहुल भैया ने कहा।

तब तो उसके खिलाफ थाने में रिपोर्ट लिखवानी चाहिए फिर। अर्जुन भैया ने कहा।

लेकिन मैंने न तो लॉरी चालक को देखा है और न ही गाड़ी का नम्बर ही देखा है, फिर कैसे उसके खिलाफ रिपोर्ट लिखा सकते हैं। मैंने कहा।

देवांशु सही कह रहा है। पुलिस सबसे पहले यही सवाल करेगी कि लॉरी चालक को देखा है तुमने क्या गाड़ी का नम्बर नोट किया है तुमने। राहुल भैया ने कहा।

अभी हम बातचीत कर ही रहे थे कि डॉक्टर एक पुलिस इंस्पेक्टर के साथ वहां आया।

यहीं हैं सर जिनके साथ कल दुर्घटना घटी थी। डॉक्टर ने इंस्पेक्टर से कहा।

अच्छा। क्या नाम है आपका। इंस्पेक्टर ने मुझसे पूछा।

निशांत। मैंने जवाब दिया।

मुझे कल ही डॉक्टर साहब ने बता दिया था, लेकिन कुछ बहुत जरूरी केस के सिलसिले में व्यस्त था। इसलिए कल आना नहीं हुआ, खैर ये बताइये की ये दुर्घटना हुई कैसे। इंस्पेक्टर ने मुझसे पूछा।

मैंने पूरी घटना सिलसिलेवार इंस्पेक्टर को बता दी। पूरी बात सुनने के बाद इंस्पेक्टर ने कहा।

मुझे लगता है ये दुर्घटना जानबूझ कर कराई गई है। क्या तुमने लॉरी चालक या उसका नम्बर देखा था। इंस्पेक्टर ने मुझसे पूछा।

नहीं सर दुर्घटना के बाद में तो बेहोश हो गया था। मैंने इंस्पेक्टर से कहा।

क्या तुम्हारी किसी से दुश्मनी है। या तुमको किसी पर शक है। इंस्पेक्टर ने कहा।

नहीं सर ऐसा कुछ भी नहीं है। मैंने जवाब दिया।

झूठ क्यों बोल रहे हो निशांत। सच क्यों नहीं बता रहे हो। दीपा ने बीच में बोलते हुए कहा।

आप कौन हैं और किस सच की बात कर रही हैं। इंस्पेक्टर ने दीपा से पूछा।

मैं इनकी मंगेतर हूँ। बहुत जल्द हम दोनों शादी करने वाले हैं। मेरे साथ एक लड़का पढ़ता है। नाम है देवांशु। कॉलेज के छात्रसंघ चुनाव में वो भी उम्मीदवार था। मैं उसके साथ चुनाव में प्रचार करती थी, लेकिन उसकी नियत मेरे लिए ठीक नहीं थी। इसलिए निशांत के चुनाव में खड़े होने के बाद मैंने उसका साथ छोड़ दिया और निशांत के लिए प्रचार करने लगी।

चुनाव में वो निशांत से हार गया। जिसकी बौखलाहट में उसने मेरे साथ बदतमीज़ी करने की कोशिश की। तो निशांत की उससे मारपीट हो गई। हो सकता है उसी का बदला लेने के लिए उसने ये दुर्घटना करवाई हो। दीपा ने कहा।

हां ये हो सकता है, लेकिन बिना किसी ठोस आधार के हम किसी के खिलाफ कार्रवाई भी नहीं कर सकते। अगर इन्होंने लोरी का नम्बर भी देखा होता तो उसकी जानकारी निकालकर कुछ पता किया जा सकता था। इंस्पेक्टर ने कहा।

लेकिन देवांशु के खिलाफ रिपोर्ट तो दर्ज कराई जा सकती है ना सर। राहुल भैया ने कहा।

आप रिपोर्ट लिखवा दीजिए। देखते हैं क्या हो सकता है इस बारे में। अच्छा अब हम चलते हैं। अगर कुछ पता लगा तो आपसे संपर्क करेंगे। इतना कहकर इंस्पेक्टर साहब चले गए।

उनके जाने के बाद राहुल भैया और कॉलेज के अन्य विद्यार्थी भी थोड़ी देर बाद अस्पताल से चले गए। अब अस्पताल में दीपा और मेरे घरवाले ही बचे थे।

दीपा बेटी। अब तुम जब तक निशांत ठीक नहीं हो जाता तब तक कॉलेज मत जाना। माँ ने कहा।

क्यों माँ। मेरी खातिर दीपा अपनी पढ़ाई का नुकसान क्यों करे। मैंने माँ से कहा।

अगर इस दुर्घटना में देवांशु का हाथ है तो वो अब बेखौफ हो गया होगा। तो वो दोबारा से दीपा से बदतमीज़ी कर सकता है और इस बार तो तू भी वहां नहीं होगा। इसलिए मैं नहीं चाहती कि दीपा को किसी तरह की परेशानी हो। मां ने कहा।

कैसी बात कर रही हैं आप माँ। अब क्या किसी से डर कर हम कॉलेज जाना बंद कर देंगे क्या। इससे तो उसका हौसला और भी बढ़ जाएगा। अर्जुन भैया ने मां को समझाते हुए कहा।

जीजा जी ठीक बोल रहे हैं मां। मुझे कुछ नहीं होगा मैं अपनी हिफाजत खुद कर सकती हूँ। और कॉलेज में राहुल भैया भी तो रहेंगे ही। दीपा ने कहा।

इसके बाद डॉक्टर ने आकर सभी को बाहर जाने के लिए कहा। इसी तरह आज का दिन पूरा बीत गया। शाम को सुजाता मौसी भी मुझसे मिलने के लिए आई। रात में दीपा ज़िद करके अस्पताल में रुक गई। उसके रुकने के कारण अदिति भाभी को भी अस्पताल में रुकना पड़ा, क्योंकि घर वाले दीपा को अकेले अस्पताल में नहीं रहने देना चाहते थे। सभी घर वाले चले गए। अदिति भाभी और दीपा मेरे पास आ गए। पहले हमने खाना खाया उनके बाद हम सोने की तैयारी करने लगे।

दीदी आप इस टेबल(5 फिट लंबा और 1.5 फिट चौड़ा जो अस्पताल में मरीज के कमरे में लेटने के लिए होता है) पर सो जाइये। मैं स्टूल पर बैठती हूँ निशांत के पास। दीपा ने अदिति भाभी से कहा।

दीपा की बात सुनकर अदिति भाभी उसके टेबल पर लेट गई। दीपा मेंरे सिरहाने स्टूल पर बैठ गई। और मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया। हम दोनों एक दूसरे की आंखों में देखने लगे। दीपा की आंखे डबडबा गई थी। हम दोनों पता नहीं कितनी देर ऐसे ही एक दूसरे का हाथ थामे बैठे रहे। फिर मुझको नींद आ गई।

दीपा ने मेरे माथे और गाल को चूम लिया और मेरे सीने पर सिर रखकर बैठी रही। सुबह मेरी आँख खुली तो मैंने दीपा को अपने सिनेपर सिर रखकर सोते हुए पाया। मेरे हिलने से दीपा की नींद खुल गई। थोड़ी देर बाद घरवाले भी आ गए। मैंने ब्रस करके नाश्ता किया और अपनी दवा खा ली।

मैं पूरे 6 दिन अस्पताल में रहा। दीपा रोज़ रात को घरवालों से ज़िद करके मेरे पास रुक जाती। दो दिन तक अदिति भाभी उसके साथ रुकी, उसके बाद दीपा अकेले ही रुकती मेरे पास। इन 6 दिनों में राहुल भैया, विक्रम भैया और मेरे के दोस्त 2 बार मुझसे मिलने आए। सातवें दिन मुझे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। अर्जुन भैया मुझे घर ले आए।

मेरे घर आने के बाद दीपा कॉलेज जाने लगी, लेकिन कॉलेज से आने के बाद वो मेरे यहाँ ही रुकती। इस बात से किसी को ऐतराज़ नहीं था। दीपा खूब मन लगाकर मेरी सेवा करती थी। मैं अपने लिए उसका ढेर सारा प्यार देखकर बहुत फक्र महसूस करता था। दीपा कॉलेज जाती तो देवांशु रोज उसे मिलता और मुस्कुराते हुए आगे बढ़ जाता। दीपा ने एक दिन मुझे ये बात बताई।

निशांत ये देवांशु रोज मुझे मिलता है और रोज मुस्कुराकर आगे बढ़ जाता है मुझे लगता है कि कुछ न कुछ तो गड़बड़ है। मुझे उसके ऊपर यकीन होता जा रहा है कि ये सब उसी ने किया है।

तुम उस पर ज्यादा ध्यान मत दो दीपा। वैसे भी इंस्पेक्टर ने कहा था कि बिना ठोस सबूत के वो कुछ भी नहीं कर सकते। और तुम्हारे बोलने से इनपेक्टर तो विश्वास करेंगे नहीं, इसलिए उसे पूरे तरह नजरअंदाज करो। मैन दीपा से कहा।

दीपा को ये बात बताए 2 दिन हो चुके थे । एक दिन दीपा कॉलेज गई हुई थी और अपनी क्लास अटेंड करके वापस घर आने के लिए निकली थी कि देवांशु ने उसे कॉरिडोर में रोक लिया।

हाय दीपा। कैसी हो तुम। देवांशु ने कहा।

तुमको इससे मतलब। दीपा ने कहा।

अरे यार दीपा। तुम तो अभी भी गुस्सा ही मुझसे। अरे मैंने सुना है कि निशांत के साथ कोई दुर्घटना घट गई है इसलिए उसका हाल चाल जानना चाहता था तुमसे। देवांशु ने कहा।

क्यों तुम्हें नहीं पता कि उसकी हालत कैसी है। दीपा ने कहा।

लो अब मैं उसके साथ थोड़े ही रहता हूँ जो मुझे उसकी हालत पता होगी। उसके साथ तो दिन रात तुम रहती हो। और पता नहीं क्या क्या करती होगी। देवांशु ने हंसते हुए दीपा से कहा।

अपनी बकवास बन्द कर तू, तेरी जैसी घटिया सोच है तू उसी तरह घटिया सोचता है। तू अपनी तरह समझता है क्या सबको। तू कभी नहीं सुधर सकता। मैं तुझसे बात ही क्यों कर रही हूँ। इतना कहकर दीपा वहां से चल दी।

अभी दीपा कुछ ही कदम आगे बढ़ी थी की देवांशु ने जो बात कही उसे सुनकर दीपा के कदम वहीं पर रुक गए।



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