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Romance तेरी मेरी आशिक़ी (कॉलेज के दिनों का प्यार)

Mbindas

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चौंतीसवाँ भाग


देवांशु की ऊटपटांग बात सुनकर दीपा उसे नजरअंदाज करते हुए बाहर जाने लगी। तभी देवांशु ने कुछ ऐसी बात कह दी कि दीपा के बढ़ते हुए कदम वहीं रुक गए।

तुम्हें क्या लगता है दीपा कि मैं निशांत को ऐसे ही छोड़ दूँगा। इससे भी बुरी हालत करूँगा मैं उसकी। मैं कुछ ऐसा करने वाला हूँ कि तुम्हारे साथ-साथ निशांत भी सारी जिंदगी पछताएगा कि उसने मुझसे पंगा क्यों लिया? देवांशु ने पीछे से कहा।

उसकी बात सुनकर दीपा उसकी तरफ वापस चल दी और उसके पास जाकर खड़ी हो गई।

इसके मतलब मेरा शक सही निकला। निशांत की दुर्घटना के पीछे तुम्हारा ही हाथ है। मैं तुम्हें छोड़ूँगी नहीं। दीपा ने कहा।

इतना कहकर दीपा के देवांशु को एक थप्पड़ रसीद कर दिया।
जिसकी गूँज पूरे कॉरिडोर में गूँज गई। देवांशु अपने गाल पर हाथ रखकर मुस्कुराने लगा।

तुम्हें क्या लगता है कि तुम्हारे इस थप्पड़ से मुझे कोई फर्क पड़ेगा। अभी तो मैंने सिर्फ निशांत को थोड़ी सी चोट पहुँचाई है। लेकिन लगता है कि तुम दोनों को अभी तक मेरी बात समझ में नहीं आई है, लगता है इस मामले में मारपीट से कुछ नहीं होने वाला। मुझे कुछ और करना पड़ेगा। देवांशु मुस्कुराते हुए बोला।

क्या? क्या करना चाहते हो तुम? इतना सब करके भी तुम्हारा मन नहीं भरा अभी तक। तुम बहुत कमीने इंसान हो। मुझे तो शर्म आती है खुद से कि मैंने तुम्हें कभी अपना सबसे अच्छा दोस्त माना था। दीपा ने कहा।

मैं जो भी करूँगा वो तुम्हें क्यों बताऊँ। बहुत जल्द तुम्हें खुद ही पता चल जाएगा। तुम दोनो खून के आँसू रोओगे। मेरा मन तभी भरेगा जब मैं तुमसे शादी करूँगा और निशांत कुछ नहीं कर पाएगा। तब जाकर मेरे मन को शांति मिलेगी। मैंने तुमसे सच्चे दिल से प्यार किया था, लेकिन तुमने मेरे प्यार को ठुकराकर निशांत से प्यार किया। अब मैं तुम्हें बताऊँगा कि एक जख्मी प्रेमी क्या कर सकता है अपना प्यार पाने के लिए। देवांशु ने कहा।

तुम इसे प्यार कहते हो। तुम मुझसे प्यार नहीं करते थे देवांशु, तुम बस मेरे जिस्म से प्यार करते थे। अगर तुम सचमुच मुझसे प्यार करते तो कभी मुझसे अभद्रता नहीं करते। जो प्यार करता है वो अपने प्यार की खुशी के लिए उसके साथ खड़ा रहता है न कि तुम्हारी तरह उसकी खुशी उजाड़ना चाहता है। तुम्हें प्यार का मतलब क्या पता। तुम्हें तो सिर्फ लड़कियों के जिस्म से खेलना आता है। दीपा ने कहा।

वो बेवकूफ होते हैं जो अपने प्यार को हासिल नहीं कर पाते, लेकिन मैं बेवकूफ नहीं हूँ और मुझे अच्छी तरह से पता है कि तुम्हें कैसे हासिल करना है। मैं किसी भी कीमत पर तुम्हें निशांत की होने नहीं दूँगा। चाहे उसके लिए मुझे कुछ भी क्यों न करना पड़े। देवांशु ने कहा।

अभी देवांशु और दीपा में बात हो ही रही थी कि वहाँ पर राहुल भैया और विक्रम भैया अपने कुछ दोस्तों के साथ आ गए। किसी ने उन्हें इस बात की खबर दे दी थी कि देवांशु दीपा को रोककर उससे बात कर रहा है।

क्या हो रहा है यहाँ। और देवांशु तुम। क्या कर रहे हो तुम। क्यों परेशान कर रहे हो दीपा को। राहुल भैया ने कहा।

मैं कहाँ परेशान कर रहा हूँ इसे। मैं तो बस दीपा से निशांत का हालचाल पूछ रहा था। मैंने भी उसकी दुर्घटना के बारे में सुना था, इसलिए दीपा से वही पूछ रहा था। देवांशु ने कहा।

नहीं भैया ये और बहुत कुछ कह रहा था। दीपा ने कहा।

अच्छा तुम घर जाओ अभी। सब इंतजार कर रहे होंगे। राहुल भैया ने कहा।

राहुल भैया के कहने के बाद दीपा वहाँ से निकल गई उसके जाने के बाद राहुल भैया ने देवांशु से कहा।

देख देवांशु। हमें शक है। अरे शक क्या पूरा यकीन है कि इस घटना के पीछे तुम्हारा ही हाथ है। इसलिए तुम्हें आखिरी बार कह रहा हूँ। अभी भी समय है सुधर जाओ। हम सब बेमतलब का लड़ाई-झगड़ा नहीं चाहते। अगर इसके बाद भी तुम नहीं सुधरे और कुछ भी उलटा-सीधा करने की कोशिश भी की। तो इस बार निशांत का तो पता नहीं, लेकिन मैं तुझे नहीं छोड़ूँगा। ये बात जितनी जल्दी तुम समझ जाओ उतना ही अच्छा होगा तुम्हारे लिए। राहुल भैया ने कहा।

ठीक है जो कर सकते हो कर लेना। वरिष्ठ विद्यार्थी हो तो कुछ भी बोलोगे। मेरी तुमसे कोई अदावत नहीं है। जो भी है वह निशांत के साथ है। फिर तुम अपनी टांग क्यों अड़ा रहे हो मेरे मामले में। मैं तुम्हें आगाह कर रहा हूँ। मेरे मामले से दूर रहना नहीं तो तुम्हारा हाल भी निशांत की तरह ही होगा। देवांशु ने धमकी देते हुए कहा।

देवांशु की बात सुनकर राहुल भैया, विक्रम भैया और उनके दोस्तों को गुस्सा आ गया। राहुल भैया ने आगे बढ़कर देवांशु के दोनों गालों को लाल कर दिया। दोनो में हाथापाई शुरू हो गई। देवांशु के दोस्त जब उसे बचाने के लिए आए तो विक्रम भैया और उनके दोस्तों ने देवांशु के दोस्तों की धुनाई शुरू कर दी।

राहुल भैया ने देवांशु को जमीन पर गिराकर लातों से उसकी सेवा करनी शुरू कर दी। राहुल भैया की देखा-देखी विक्रम भैया ने भी उसके ऊपर अपना पैर साफ करना शुरू कर दिया। देवांशु और उसके दोस्तों को जीभर कर पीटने के बाद राहुल भैया और उनके दोस्तों ने उन्हें छोड़ दिया।

ये तो बस एक ट्रेलर था देवांशु। मैं तुझे आखिरी बार समझा रहा हूँ कि अपनी हरकतों से तुम बाज आ जाओ। नहीं तो इससे भी बुरा हश्र करूँगा तुम्हारा मैं। तुमने निशांत की तरह सबको सीधा-सादा समझ रखा है क्या। मैं सीधे के लिए सीधा और टेढ़े के लिए टेढ़ा हूँ। राहुल भैया ने देवांशु को पीटने के बाद कहा।

इसके बाद राहुल भैया और उनके दोस्त वहाँ से चले गए, लेकिन देवांशु के मन में बदले की भावना ने ज्वलंत रूप ले लिया। वो अब बस सही मौके की तलाश करने लगा। उधर दीपा कॉलेज से घर वापस आ गई और जो भी देवांशु ने उससे कहा था उसने मुझे सब बताया। मैंने शाम को इस बारे में अर्जुन भैया से बात की तो उन्होंने पुलिस के पास जाकर उन्हें सब बताने के लिए कहा। खाना खाकर सब अपने कमरे में जाकर सो गए।

सुबह उठकर मैं भी कॉलेज जाने के लिए तैयार हो गया। क्योंकि अब मैं अपने आपको स्वस्थ महसूस कर रहा था। माँ ने मुझे रोकते हुए कहा।

कुछ दिन और आराम कर लेता उसके बाद कॉलेज जाता।

नहीं माँ मैं अब एकदम ठीक हूँ। 15 दिन से पढ़ाई का बहुत नुकसान हो गया है। अब मुझे कॉलेज जाना चाहिए। मैंने माँ से कहा।

ठीक है, लेकिन आराम से जाना और हाँ किसी से लड़ाई झगड़ा करने से खुद को बचाना। माँ ने कहा।

ठीक है माँ अब मैं चलता हूँ। और वापसी में दीपा को उसके घर छोड़ता हुआ आऊँगा। मैंने माँ से कहा।

उसके बाद मैं और दीपा थाने चले गए और उसी इंस्पेक्टर से मिले जो अस्पताल में मेरे बयान लेने आया था। उससे मिलने के बाद इंस्पेक्टर ने कहा।

हाँ बताइए कैसे आना हुआ।

सर निशांत के साथ जो दुर्घटना हुई थी उसमें देवांशु का ही हाथ है। और उसने मुझे कल कॉलेज में खुद इस बात को बताया था। और वो मुझे धमकी भी दे रहा था। दीपा ने इंस्पेक्टर से कहा।

देखिए मिस दीपा। अभी उस दुर्घटना के बारे में तो मैं कुछ नहीं कर सकता, क्योंकि उसको कोई चश्मदीद गवाह नहीं है और आपकी बात मानी नहीं जाएगी। हाँ देवांशु के इकबाले जुर्म के आधार पर उसको गिरफ्तार किया जा सकता है, लेकिन वो पुलिस के सामने अपनी बात से मुकर जाएगा। इसलिए उसकी गिरफ्तारी नहीं की जा सकती। हाँ आप बता रही थी कि उसने कुछ धमकी दी है आपको। इंस्पेक्टर ने कहा।

सर वह कह रहा था कि अगर मैंने उससे शादी नहीं की और निशांत ने मुझसे रिश्ता नहीं तोड़ा तो इस बार वो कोई दुर्घटना नहीं करवाएगा, बल्कि कुछ ऐसा करेगा कि हम दोनो को सारी उम्र रोना पड़ेगा। वो ऐसा बोल रहा था। दीपा ने कहा।

अच्छा। तुम्हारी बात से लग रहा है कि वो तुम्हें लेकर बहुत संजीदा है। एक काम करिए आप दोनो। मेरा नं. लिख लीजिए। जब कभी भी आपको लगे कि वो कुछ ऐसा वैसा करने वाला है तो मुझे फोन कर देना। मैं हर संभव मदद करने की कोशिश करूँगा। इंस्पेक्टर ने कहा।

उसके बाद मैंने और दीपा ने इंस्पेक्टर का फोन नं. लिख लिया और उनसे इजाजत लेकर थाने से बाहर आ गए और अपने कॉलेज की तरफ चल पड़े।



साथ बने रहिए।
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Mbindas

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पैंतीसवाँ भाग


मैंने और दीपा ने इंस्पेक्टर का फोन नं. लिख लिया और अपने कॉलेज की तरफ चल पड़े। कॉलेज पहुँचकर हम दोनों अपनी अपनी कक्षा में चले गए। मेरे सभी मित्र मुझे कॉलेज में देखकर बहुत खुश हुए और मेरा हाल चाल पूछा। मुझे अपने दोस्तों से कल देवांशु की पिटाई के बारे में भी पता चला। कुछ देर बाद प्रोफेसर अपना लेक्चर लेने के लिए कक्षा में आए।

उन्होने मुझे देखकर मेरे स्वास्थ्य के बारे में जानकरी ली और अपना लेक्चर देने लगे। लेक्चर अटेंड करके भोजनावकास के समय मैं और दीपा कॉलेज परिसर में छाँव में बैठे हुए कुछ बातें कर रहे थे।

अब तो मैं ठीक भी हो गया हूँ तो क्यों न कहीं घूमने चला जाए बाहर। मैंने दीपा से कहा।

हाँ कह तो तुम ठीक रहे हो, लेकिन पहले से ही तुम्हारी पढ़ाई 15 दिन छूट चुकी है। बाहर जाने पर पढ़ाई का और नुकसान होगा। ऐसे में माँ बाहर जाने की अनुमति नहीं देंगी। दीपा ने अपना संदेह व्यक्त करते हुए कहा।

तुम ठीक कह रही हो। माँ तो मानेंगी नहीं। फिर भी रात में इस बारे में बात करता हूँ माँ से देखता हूँ क्या कहती हैं माँ। मैंने दीपा से कहा।

ठीक है कर लेना बात, लेकिन क्या मेरा तुम्हारे साथ जाना उचित होगा। मुझे नहीं लगता माँ और भैया हमें एक साथ अकेले कहीं बाहर घूमने जाने देंगे।

इतने कहकर दीपा मेरी गोद में लेट गई। मैं दीपा की आँखों में देखते हुए कहा।

क्यों नहीं जाने देंगी। आखिर हम दोनों की शादी होने वाली है हो हमें एक साथ वक्त बिताने का मौका तो मिलना ही चाहिए।

बड़े आए मौके की बात करने वाले। पिछले 15 दिन से मैं लगातार तुम्हारे साथ ही रही हूँ। अब तुम्हें और कितना मौका चाहिए साथ रहने के लिए। दीपा ने अपनी आँख नचाते हुए कहा।

अरे वो तो मैं बीमार था तो कुछ कर नहीं सकता था, अब मैं ठीक हो गया हूँ। तो तुम्हारे साथ एकांत में वक्त गुजारने के लिए मौका तो मिलना चाहिए मुझे। मैंने कहा।

कुछ कर नहीं सकता था का क्या मतलब है तुम्हारा। तुम कहना क्या चाहते हो। दीपा ने कहा।

अरे मेरा मतलब था कुछ प्यार मोहब्बत की बातें नहीं कर पाया तुम्हारे साथ। मैंने कहा।

तुम दिन-ब-दिन शरारती होते जा रहे हो छोटे। मुझे तुम्हारी नियत कुछ ठीक नहीं लग रही है। अगर ऐसा है तो पहले बता दो मैं तुम्हारे साथ बाहर घूमने नहीं जाऊँगी। दीपा ने कहा।

हाँ मेरी नीयत सच में तुम्हें देखकर खराब हो जाती है। मेरा मन करता है कि तुम्हें मैं..............

इतना कहकर मैं दीपा की आँखों में देखने लगा। दीपा भी मेरी आँखों में ही देख रही थी। मैं दीपा को देखते हुए उसके चेहरे पर झुकता चला गया। कुछ ही पलों में मेरे होंठ दीपा के नर्मोनाजुक होंठों पर रख दिए। दीपा ने भी मेरा साथ दिया और मेरे होठों को चूमने लगी।

हम दोनों अपनी मस्ती में एक दूसरे को चूम रहे थे। लगभग 5 मिनट तक हम दोनों एक-दूसरे का होठ चूसते रहे। जब हम दोनों की साँस उखड़ने लगी तो हम दोनों अलग हुए।

जब मैंने अपनी नजर उठाई तो सामने राहुल भैया और विक्रम भैया खड़े मुस्कुरा रहे थे। उन्हें देखते ही दीपा झट से मेरी गोद से उठकर बैठ गई। दीपा दोनों को देखकर बहुत शरमा रही थी। इसलिए वो उठी और अपनी कक्षा की तरफ चल पड़ी। उसके जाने के बाद मैंने राहुल भैया से पूछा।

आप दोनों कब आए।

जब तुम दोनों दूसरी दुनिया में खोए थे तभी हम लोग आए। विक्रम भैया ने हँसते हुए कहा।

क्या भैया आप भी न। वो तो बस ऐसे ही। मैंने भी शरमाते हुए कहा।

अच्छा ऐसे ही। चलो कोई बात नहीं। लेकिन कुछ तो ध्यान दिया करो ये कॉलेज है और तुम दोनों कॉलेज में ही शुरू हो गए। राहुल भैया ने कहा।

उनकी बात सुनकर मैंने कोई जवाब नहीं दिया कुछ देर बाद मैंने राहुल भैया से कहा।

भैया मैं आज थाने गया था, देवांशु ने जो धमकी दीपा को दी थी उसी बारे में बात करने के लिए। तो इंस्पेक्टर साहब ने अपना नं. दिया है किसी भी आकस्मिक दुर्घटना की स्थिति में उनसे संपर्क करने के लिए। मैंने राहुल भैया से कहा।

वैसे फिलहाल उसकी जरूरत तो नहीं पड़नी चाहिए क्योंकि कल हम लोगों ने देवांशु की अच्छी खासी खातिरदारी कर दी है। वो अब कम से कम 10-12 दिन कॉलेज नहीं आ पाएगा, लेकिन फिर भी सावधानी तो बरतनी ही पड़ेगी। लाओ उनका नं. हम लोग भी लिख लेते हैं। कभी जरूरत पड़ सकती है। राहुल भैया ने कहा।

आपकी बात सही है। वो कुछ भी कर सकता है। मैंने राहुल भैया से कहा।

उसके बाद मैंने उन्हें इंस्पेक्टर का नं. दिया और कुछ और बातचीत करने के बाद अपनी कक्षा में चले गए। मैंने अपनी क्लास अटेंड की और दीपा को उसके घर छोड़ते हुए अपने घर आ गया।

रात में खाना खाते समय मैंने माँ से कहा।

माँ मैं सोच रहा हूँ कि अब तो मैं ठीक भी हो गया हूँ तो कुछ दिन मैं और दीपा कहीं बाहर घूम आएँ।

अच्छा। बात तो ऐसे कर रहा है जैसे वो तुम्हारी पत्नी हो और उसके साथ घूमने जाना हो। अभी तुम दोनों की शादी नहीं हुई है। और वैसे भी तुम्हारी पढ़ाई का बहुत नुकसान हो गया है। पहले तुम उसे पूरा करो। माँ ने कहा।

हाँ मैं मानता हूँ कि दीपा मेरी पत्नी नहीं है, लेकिन होने वाली पत्नी तो है और अब तो हम दोनों की सगाई भी हो चुकी है। तो फिर साथ जाने में हर्ज क्या है। वैसे भी मेरी पढ़ाई अच्छी चल रही है। मैं अपने सारे चैप्टर पूरा कर लूँगा। मैंने माँ से कहा।

मैंने कह दिया न कि अभी तुम दोनों कहीं नहीं जाओगे साथ में। माना कि तुम्हारी सगाई हुई है और शादी भी हो जाएगी। लेकिन हम सबको समाज के हिसाब से ही चलना होता है। और मैं नहीं चाहती कि मेरे बच्चों पर कोई उँगली उठाए। पहले शादी हो जाने दो उसके बाद जहाँ मच चाहे वहाँ जाने कोई मना नहीं करेगा तुम दोनों को। माँ ने कहा।

लेकिन माँ........... मैँ अभी इतना ही बोला था कि अर्जुन भैया ने मेरी बात बीच में काटकर कहा।

माँ बिलकुल सही कह रही हैं छोटे। जब तक शादी नहीं हो जाती तब तक साथ में बाहर घूमने जाना सही नहीं है। कॉलेज की बात अलग है।

इसके बाद मेरे पास कहने के लिए कुछ बचा ही नहीं था तो मैं चुपचाप खाना खाने लगा। खाना खाने के बाद मैं अपने कमरे में आ गया। इसी तरह आज की रात भी बीत गई।

सुबह मैं उठकर स्नान करने के बाद खाना खाकर कॉलेज के लिए निकल गया। कॉलेज पहुँचकर मैंने अपना लेक्चर अटेंड किया और भोजनावकाश के समय दीपा और मैं कैंटीन में चले गए।

मैंने माँ से कल बाहर घूमने जाने के लिए बात की थी, लेकिन माँ ने मना कर दिया। वो कहती हैं कि जब तक शादी नहीं हो जाती तब तक तुम दोनों साथ में बाहर घूमने के लिए नहीं जा करते। मैंने दीपा से कहा।

माँ ठीक ही तो कह रही हैं, बिना शादी के अच्छा थोड़ी ही लगेगा बाहर घूमने जाना। लोग तरह-तरह की बातें करेंगे वो अलग। दीपा ने कहा।

अभी हम लोग बातचीत कर ही रहे थे कि राहुल भैया भी वहाँ आ गए और मेरी बगल में बैठ गए।

क्या बातें हो रही हैं दोनो प्रेमियों में। राहुल भैया मुस्कुराते हुए बोले।

कुछ नहीं भैया। वो हम दोनों ने बाहर घूमने का प्लान बनाया था लेकिन माँ ने बाहर जाने से मना कर दिया। कह रही हैं जब तक शादी नहीं हो जाती तब तक दोनों साथ में कहीं बाहर नहीं जा सकते। मैंने राहुल भैया से कहा।

माँ ने बिलकुल ठीक कहा है निशांत, जब तुम दोनों कॉलेज में ही शुरू हो जाते हो इतने विद्यार्थियों के होते हुए भी। तो तुम दोनों को अकेला बाहर भेजना बिलकुल सही नहीं होगा। पता नहीं वहाँ तुम दोनों अकेले में क्या क्या करोगे। राहुल भैया ने हम दोनों को छेड़ते हुए कहा।

क्या भैया अब आप भी हम लोगों का मजाक उड़ा रहे हैं। दीपा ने शरमाते हुए कहा।

अरे यार मैं तो मजाक कर रहा था। राहुल भैया हँसते हुए बोले।

उसके बाद हम तीनों ने कुछ खाया पिया और अपनी कक्षा में चले गए। इसी तरह दिन बीतते रहे। देवांशु इस बीच कॉलेज में मुझे कभी भी नजर नहीं आया। उसके न आने से मुझे एक सुकून सा मिल रहा था, लेकिन मुझे नहीं पता था कि ये किसी तूफान के आने के पहले की शांति है।

राहुल भैया से देवांशु को मार खाए लगभग महीना भर बीतने वाला था। हम लोगों की वार्षिक परीक्षा का दिन भी नजदीक आ रहा था। एक दिन मैं कॉलेज गया तो मुझे देवांशु गेट के पास अपने दोस्तों के साथ खड़ा मिल गया। मुझे देखते ही वह मेरे पास आया।

अरे नेता जी। कैसे तो भाई, अब तबीयत कैसी ही तुम्हारी। सुना था कि तुम 1 हफ्ते अस्पताल में रहे। मुझे ये सुनकर बहुत बुरा लगा। देवांशु ने एक एक बात चबा चबा कर मुझसे कही।

सब तुम्हारा ही किया धरा है। उसके बाद भी तुम्हें मेरे स्वास्थ्य की चिंता है। मुझे विश्वास नहीं होता कि तुम इतने सभ्य और अच्छे कैसे हो गए। मुझे तो तुम्हारी इस चिंता में भी तुम्हारा स्वार्थ नजर आ रहा है। मैंने देवांशु को दो टूक जवाब दिया।

अरे नहीं नेता जी। तुम्हें कोई गलतफहमी हुई है। मैं सुधरने वालों में से नहीं हूँ। वो तो बस तुम्हें सही सलामत देखकर मेरे हाथों में फिर से खुजलाहट होने लगी है। तो सोचा कुछ और करने से पहले एक बार तुम्हारा हाल-चाल पूछ लूँ। ताकि तुम्हें ऐसा न लगे कि मैं बहुत बेरहम और निर्दयी हूँ। देवांशु ने कहा।

इसमें लगना क्या है। तुम इससे भी गए गुजरे हो। अगर तुझे मुझसे अपनी दुश्मनी निभानी है तो सामने से आ। यूँ पीठ पीछे वार करने वाले को बुजदिल कहते हैं। अगर तुझमें दम है तो मुझसे दो दो हाथ कर, फिर तुझे पता चलेगा मेरी तबीयत के बारे में। मैंने भी उसे दो टूक जवाब दिया।

मैं इतना बेवकूफ नहीं हूँ कि मेरे उकसाने से अपना आपा खो दूँ। वो तो तुझे बहुत जल्द पता चल जाएगा कि बुजदिल कौन है और बहादुर कौन है। देवांशु मुझे उँगली दिखाते हुए कहा।

मैं उसके मुँह और नहीं लगना चाहता था इसलिए में उसे नजरअंदाज करते हुए अपनी कक्षा की तरफ चल पड़ा।



साथ बने रहिए।
Superb update
 
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छत्तीसवाँ भाग


मैं देवांशु से लड़ाई झगड़ा फिलहाल अभी नहीं करना चाहता था, इसलिए मैं अपने कक्षा की तरफ चल पड़ा, लेकिन देवांशु ठहरा ढीढ़ उसने आगे से आकर मेरा रास्ता रोक लिया।

अरे नेता जी थोड़ी देर रुको तो सही। तुम्हारे लिए मेरे पास एक मस्त डील है जो तुम्हारे फायदे के लिए ही है। देवांशु ने कहा।

मेरा रास्ता छोड़ मुझको तेरे साथ कोई डील नहीं करनी है। मैंने कहा।

ठीक है नेता जी। जैसे तुम्हारी मर्जी। मैं तो तुम्हारे भले के लिए ही बोल रहा था। पर तुम अपना भला चाहते ही नहीं। बाद में मुझे मत कहना कि मैंने तुम्हें कोई मौका नहीं दिया। देवांशु ने कहा।

मैंने देवांशु की बात का कोई जवाब नहीं दिया और अपनी कक्षा में चला गया। मैंने अपनी क्लास अटेंड की और दीपा को लेकर उसके घर चला गया। दीपा को घर छोड़ने के बाद वापस अपने घर आ गया।

इसी तरह लगभग एक हफ्ते बीत गए। इस एक हफ्ते में एक बात जो मुझे खटकती रही वो ये अभी तक देवांशु ने न दीपा से कोई बदतमीजी और अभद्रता की थी और न ही मुझसे कोई बात की थी, लेकिन कॉलेज में वह जितनी बार मुझसे मिलता था। उसके चेहरे पर हमेशा एक रहस्यमयी मुस्कान होती थी। जिसकों मैं अभी तक समझ नहीं पाया था।

ऐसे ही एक दिन मैं कॉलेज गया आज फिर से देवांशु मुझे देखकर रहस्यमय ढंग से मुस्कुराने लगा। मैंने उसे नजरअंदाज किया और अपनी कक्षा में चल गया और अपनी क्लास अटेंड की। क्लास खत्म होने के बाद मैं और दीपा घर जाने के लिए निकले। मेरा एक दोस्त भी मेरे साथ निकला। मैंने दीपा को बाइक पर पीछे बैठाया और घर की तरफ निकल पड़ा। मेरा दोस्त भी मेरे साथ चल रहा था। हम दोनों बातचीत करते हुए जा रहे थे।

अभी हम कॉलेज से कुछ ही दूर गए थे कि तभी एक अपहरण वाली गाड़ी(सटर जैसे दरवाज़े वाली वैन जो फिल्मों में अपहरण के समय इस्तेमाल की जाती है) ने हम लोगों को ओवरटेक करके सामने आकर रुक गई। हमारी गति थोड़ी तेज़ थी इसलिए मेरे दोस्त की बाइक वैन से टकरा गई और वो बाइक समेत जमीन पर गिर पड़ा।

मेरी भी बाइक टकराई वैन से, लेकिन मैंने किसी तरह खुद को संभाल लिया। मैंने वैन में देखा तो मुझे देवांशु दिखा। जब तक मैं कुछ समझ पाता, वैन से 2 लड़के बाहर निकले और मेरी आँख में कोई स्प्रे मार दिया जिससे मेरी आँख जलन होने लगी। वो लड़के दीपा को पकड़कर वैन में डाल लिया। तबतक मेरा दोस्त उन लड़कों को पकड़ने के लिए आगे बढ़ा लेकिन एक लड़के ने उसे धक्का देकर गिरा दिया और वैन में बैठकर भाग गए। मेरा दोस्त मेरी मदद के लिए मेरे पास आया।

तुम मेरी फिक्र मत करो। उस वैन का पीछा करो और मुझे पल पल की खबर देते रहना। जल्दी जाओ इससे पहले की कोई अनहोनी हो जाए। मैंने अपने दोस्त से कहा।

मेरी बात सुनकर मेरा दोस्त उस वैन के पीछे लग गया। मैंने अपनी आँखें मलते हुए मीचकर किसी तरह खोली और अधखुली बन्द होती आंखों से राहुल भैया को फ़ोन लगा दिया, पूरी घण्टी जाने के बाद भी उन्होंने फ़ोन नहीं उठाया तो मैंने इंस्पेक्टर को फ़ोन लगाया।
हेलो, कौन। इंस्पेक्टर ने फ़ोन उठाते हुए कहा।

सर मैं निशान्त, दीपा का देवांशु ने अपहरण कर लिया है। मैंने घबराए हुए स्वर में कहा।

पहले शुरू से लेकर पूरी बात बताओ। फिर में देखता हूँ।

मैन इंस्पेक्टर को सारी बात बता दी। मेरी बात सुनने के बाद इंस्पेक्टर ने कहा।

तुम पहले उसका पीछा करते रहो और मुझे उसकी लोकेशन भेजो। मैं आता हूँ वहां।

इंस्पेक्टर की बात सुनकर मैंने फोन रख दिया। तब तक राहुल भैया और विक्रम भैया भी वहां आ गए। वो शायद मुझसे बाद में कॉलेज से चले थे। मेरी हालत देखकर उन्होंने मेरे पास अपनी बाइक रोक दी।

क्या हुआ निशान्त। तुम्हारी आंख क्यों बन्द हैं और तुम्हारी बाइक कैसे नीचे गिरी हुई है। कहीं उस देवांशु ने फिर से दुर्घटना करने की कोशिश तो नहीं की। राहुल भैया ने कहा।

भैया। देवांशु ने दीपा का अपहरण कर लिया है और मेरी आँख में एक स्प्रे डाल दिया। जिससे मेरी आँख जलने लगी। मैं रुंआसा होकर बोला।

क्या दीपा का अपहरण। इस बार उसको नहीं छोडूंगा मैं, लेकिन उसके पहले दीपा को बचाना है उसके चंगुल से। लेकिन उसे ढूंढेंगे कैसे। राहुल भैया ने कहा।

मेरा दोस्त उसके पीछे गया है। उसे फ़ोन करके पता करता हूँ कि देवांशु दीपा को लेकर किधर गया है। मैंने कहा।

उसके बाद मैंने अपने दोस्त को फ़ोन किया तो उसने बताया कि वो लोग सीकर (काल्पनिक नाम) की तरफ जा रहे हैं। हम तीनों तुरंत बताई हुई दिशा में निकल पड़े। मैंने तुरंत इंस्पेक्टर सर को फ़ोन करके उन्हें उसके वर्तमान पते के बारे में बताया। राहुल भैया ने अपने कुछ दोस्त जो होस्टल में रहते थे, को फ़ोन करके हाँकी, बैट और डंडा लेकर सीकर की तरफ तुरन्त आने के लिए बोल दिया।

थोड़ा बाइक और तेज़ चलाओ, आज देवांशु की अच्छे से बैंड बजाते हैं। राहुल भैया ने कहा।

उधर देवांशु ने वैन एक पुराने मंदिर के पास रोकी। मंदिर चारों तरफ से खुला हुआ था। यहां किसी खास मौके पर ही श्रद्धालुओं की भीड़ होती थी बाकी समय लगभग सुनसान ही रहता था। उसने दीपा को वैन से खींचकर बाहर निकाला। दीपा ने देखा कि मंदिर को फूलों से सजाया गया है। मंदिर में एक पंडित बैठा हवनकुंड जलाने की तैयारी कर रहा था। दीपा ने ये देखते ही पूरा माजरा समझ लिया।

ये तुम क्या करने लाये हो मुझे यहां और ये सब क्या है। दीपा ने उससे पूछा।

दीपा मेरी जान। आज हम दोनों की शादी है। ये सब उसी की तैयारी हो रही है। देवांशु हंसते हुए बोला।

तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है देवांशु। तुम ऐसा कैसे कर सकते हो। मेरी शादी सिर्फ निशान्त से होगी और किसी से नहीं। मैं मर जाना पसंद करूँगी, लेकिन तुमसे शादी कभी नहीं करूंगी। दीपा ने उसे घूरते हुए कहा।

देखो तो। अभी भी तुझमें बहुत अकड़ है। लेकिन आज मैं तेरी सारी अकड़ तोड़ दूंगा। और जिसके भरोसे तू इतना अकड़ रही है। उसे तो पता ही नहीं होगा कि तुझे मैं कहाँ पर ले आया हूँ। और तुझसे शादी तो मैं करूँगा ही। और इसी मंदिर में सुहागरात भी मनाऊंगा उसके बाद बेशक तू मर जाना। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। मुझे बस तेरा गुरुर तोड़ना है। और उस निशान्त को सबक सिखाना है। देवांशु दहाड़ते हुए दीपा से बोला।

तुम्हारी ये इच्छा कभी पूरी नहीं होगी। निशान्त जरूर आएगा। और तू मेरे जिस्म को हाथ भी नहीं लगा सकता। मैं तेरा हांथ तोड़ दूंगी। दीपा ने कहा।

अगर मैं चाहूं तो अभी ही तेरे साथ बहुत कुछ कर सकता हूँ, लेकिन फिर वो मज़ा नहीं आएगा। जिसके लिए मैंने इतनी अपमान सहे, इतनी मार खाई। देवांशु ने कहा।

उधर वैन मंदिर में जाकर रुकी तो मेरे दोस्त ने मुझे फ़ोन के दिया और मंदिर के बारे में बताया। मैंने तुरंत फ़ोन करके उस मंदिर बारे में इंस्पेक्टर सर को बता दिया। राहुल भैया ने अपने दोस्तों को मंदिर के पास बुला लिया। थोड़ी देर बाद हम सब मंदिर के पास पहुंच गए। अभी इंस्पेक्टर सर नहीं आए थे। हमने वहां पर देखा कि देवांशु के 10-12 लड़के मंदिर के आसपास हैं।

थोड़ी देर इंतज़ार के बाद राहुल भैया के दोस्तों सहित 15 विद्यार्थी वहां पर डंडा, बैट, हॉकी के साथ आ गए। उसके बाद हम मंदिर की तरफ चल दिए और उन लोगों के सामने आ कर खड़े हो गए।

देवांशु तुमने ये हरकत करके बहुत बड़ी गलती कर दी। आज मेरे हाथों से तुझे कोई नहीं बचा सकता। मैन देवांशु को ललकारते हुए कहा।

तो तुम आ गए। बड़े ढीठ हो तुम। तुमको मैंने कम आंका था, लेकिन तुम तो मेरी उम्मीद से ज्यादा निकले। कोई बात नहीं। आज यहां से तुम सब बचकर नहीं जा सकते। मारो रे सबको।देवांशु ने कहा।

इसके बाद दोनों पक्षों में मारपीट शुरू को गई। डंडे हाँकी और बैट की टक टक की आवाज़ आने लगी। देवांशु मुझे देखकर मेरी तरफ आया और मुझसे भिड़ गया। कुछ ही देर में देवांशु के दोस्त बुरी तरह पीटे जाने लगे। कुछ चोटें मेरे साथ आए हुए लोगों को भी लगी।



साथ बने रहिए
Fantastic update
Hero sach me hero nikla itna to dimag laga liya ki apne dost ko devanshu ke piche laga diya. Ab action dekhte hai.
 
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Mbindas

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सैंतीसवाँ भाग

कुछ ही देर में देवांशु के दोस्त बुरी तरह पीटे जाने लगे। कुछ चोटें मेरे साथ आए हुए लोगों को भी लगी।

थोड़ी देर में देवांशु के दोस्त जमीन पर लेटे हुए मार खा रहे थे। इधर मैं भी देवांशु की धुनाई कर रहा था। फिर राहुल भैया ने भी आकर देवांशु को धोना शुरू कर दिया। दो तरफा मार से देवांशु ज्यादा देर टिक नहीं पाया और जमीन पर गिर गया। उसके बाद तो उसपर कितनी लातें पड़ी वो तो मुझे भी याद नहीं।

तभी वहां इंस्पेक्टर सर आ गए और हम लोगों को अलग किया, लेकिन तब तक देवांशु लहूलुहान हो गया था। उसका शरीर जगह जगह फट गया था। इंस्पेक्टर सर फ़ोन करके एम्बुलेंस मंगवाई और उसे और उसके दोस्तों को लेकर अस्पताल चले गए।

दीपा दौड़कर मेरे पास आई और मेरे गले लगकर सिसकने लगी।

अगर आज तुम वक्त पर नहीं आते तो पता नहीं क्या होता। दीपा ने कहा।

अरे आता कैसे नहीं मैने प्यार किया है तुमसे तो तुम्हें मुसीबत में कैसे छोड़ सकता हूँ। मुझे तो आना ही था। मैंने कहा।

अरे ओ लैला मजनू। अगर तुम लोगों का मिलाप हो गया हो तो अस्पताल चलें कुछ मरहन पट्टी हम भी करा लेते हैं। विक्रम भैया ने कहा।

उसके बाद हम सब अस्पताल चले गए और अपनी मरहम पट्टी करवाई उसके बाद मैंने विक्रम भैया, राहुल भैया और उनके दोस्तों का आभार प्रकट किया और सभी अपने अपने गंतव्य की तरफ निकल गए। घर पहुँच कर मैंने माँ को सब कुछ बता दिया।

ये लड़का तो हाथ धोकर मेरे बच्चों के पीछे पड़ा हुआ है। अच्छा हुआ कि कोई अनहोनी होने से पहले तुम सब वहां पहुँच गए और दीपा को सुरक्षित बचा लिया नहीं तो आज अनर्थ हो जाता। माँ ने कहा।

उसके बाद माँ ने आशीष भैया को फ़ोन करके सबकुछ बता दिया और अर्जुन भैया को फ़ोन करके जल्दी घर आने के लिए कहा। आशीष भैया और अर्जुन भैया जल्दी घर आ गए। सभी लोगों ने निर्णय लिया कि देवांशु को सख्त से सख्त सजा मिले। इसके लिए वो इंस्पेक्टर से मिले और देवांशु के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करने के लिए कहा।

देवांशु को हमने बहुत मारा था, इसलिए वो कमसे कम हफ्ते 10 दिन अस्पताल में ही रहने वाला था। दीपा और मैं 3 दिन कॉलेज नहीं गए। चौथे दिन मैं मां भैया और भाभी के साथ बैठा हुआ था तभी मुझे कुलपति महोदय का फ़ोन आया।

नमस्कार सर। मैंने कहा।

जीते रहो निशान्त। कैसे हो तुम अभी और कहां पर हो। कुलपति महोदय ने कहा।

मैं ठीक हूँ सर और अभी घर पर हूँ। मैंने कहा।

क्या तुम और दीपा अभी कॉलेज आ सकते हो। कुलपति महोदय ने कहा।

क्या हुआ सर कोई जरूरी काम है क्या। मैंने कहा।

हाँ जरूरी न होता तो मैं तुम्हें बुलाता ही क्यों। कुलपति महोदय ने कहा।

ठीक है सर मैं पहुँच रहा हूँ कुछ समय में। मैंने कहा।

क्या हुआ निशान्त। किसका फ़ोन था। अर्जुन भैया ने पूछा।

कॉलेज से फ़ोन था कुलपति महोदय का। उन्होंने किसी आवश्यक कार्य के लिए दीपा और मुझे तुरंत बुलाया है। मैंने कहा।

लेकिन ऐसा क्या काम है जो उन्होंने तुरंत बुलाया है। माँ ने कहा।

अब ये तो वहां जाने के बाद ही पता चलेगा। मैंने कहा।

ठीक है बेटा पर संभल कर जाना। मां ने कहा।

उसके बाद मैंने दीपा को फ़ोन करके बात दिया और तैयार होने के लिए बोल कर अपने कमरे में चला गया। मैं तैयार होकर दीपा के यहां गया और उसे लेकर कॉलेज पहुँच गया वहां मैं राहुल भैया और विक्रम भैया से मिलकर सारी बात बताई और उनको लेकर सीधे कुलपति महोदय के कार्यालय में चल गया। जब मैं वहां पहुंचा तो मैंने देखा कि देवांशु के पापा और एक महिला वहां बैठे हुए हैं। मैंने अंदाज़ा लगा लिया कि ये देवांशु की माँ हो सकती हैं। मैंने उनको नजरअंदाज कर कुलपति महोदय से मुखातिब होते हुए बोला।

मुझे थोड़ा बहुत अंदाज़ा तो हो गया है कि आपने इनके कहने पर मुझे कॉलेज बुलाया है। फिर भी मैं आपसे जानना चाहता हूँ सर।

तुम सही समझ रहे हो निशान्त। ये तुमसे कुछ बात करना चाहते हैं। कुलपति महोदय ने कहा।

उस दिन इन्होंने जिस तरीके से बात की थी। उसके बाद मैं इनसे कोई बात नहीं करना चाहता सर। मैंने कुलपति महोदय से कहा।

एक मिनट सर। ये महाशय और ये महिला कौन हैं जिसके लिए आपने निशान्त को घर से बुलवा लिया। विक्रम भैया ने कहा।

ये देवांशु के मम्मी पापा हैं और निशान्त से कुछ बात करना चाहते हैं। कुलपति महोदय ने कहा।

ये सुनकर राहुल भैया और विक्रम भैया उनकी तरफ देखने लगे।

चलो यहां से निशान्त कोई बात नहीं करनी है इनसे। राहुल भैया ने कहा।

इतना कहकर राहुल भैया और विक्रम भैया मुझे और दीपा को बाहर लेकर जाने लगे तभी कुलपति महोदय ने कहा।

मैंने बड़ी उम्मीद के साथ तुमको बुलाया था निशान्त और मुझे विश्वास था कि तुम मेरी बात जरूर मानोगे। कुलपति महोदय ने कहा।

उनकी बात सुनकर मैं रुक गया और वापस आकर उनके पास खड़ा हो गया।

ठीक है सर जी। आपके कहने पर ही मैं इनकी बात सुन रहा हूँ। कहिए क्या कहना है आपको मुझसे। मैंने कुलपति महोदय के बाद देवांशु के पापा से मुखातिब होते हुए कहा।

बेटा तुम अपनी शिकायत वापस ले लो। देवांशु के पापा ने हाथ जोड़कर मुझसे कहा।

अच्छा। और आपको ऐसा लगता है कि मैं अपनी शिकायत वापस लूंगा। मैं बिल्कुल भी ऐसा नहीं करूंगा। मैंने गुस्से से कहा।

ऐसा मत कहो बेटा। देवांशु मेरा इकलौता बेटा है। उसकी मां का रो रो कर बुरा हाल हो गया है। अगर उसे जेल हो गई तो हम दोनों किसके सहारे जिएंगे। उसकी मां तो रोते रोते मर जाएगी। कृपा करो मुझपर। अपनी शिकायत वापस ले लो देवांशु के पापा गिड़गिड़ाते हुए बोले।

आज आपको उसकी बड़ी फिक्र हो रही है। उस दिन तो बड़े शान से कह रहे थे कि जवान खून है। जवानी में मौज मस्ती नहीं करेगा तो क्या बुढ़ापे में करेगा। तो ये उसी मौज मस्ती का फल है। आपके बेटे ने मुझे जान से मारने की कोशिश की। मुझे लॉरी से मारना चाहा। दीपा के साथ जबरदस्ती करनी चाही और उसका अपहरण कर लिया। इतना सब करने के बाद भी आप कह रहे हैं कि मैं उसके खिलाफ अपनी शिकायत वापस ले लूँ। मैंने उनसे कहा।

मानती हूं मैं कि हमारे ज्यादा लाड प्यार की वजह से देवांशु बिगड़ गया है। और उसकी गलत हरकतों को भी हमने नजरअंदाज किया है। जिसकी वजह से वो इतना बिगड़ गया है। लेकिन हमारी स्थिति को समझो उसे माफ कर दो। मैं तुम्हारे पांव पड़ती हूँ।

इतना कहकर देवांशु के मम्मी पापा मेरे पैरों में गिर पड़े, लेकिन उस समय मेरा दिल पत्थर का हो चुका था। इसलिए मैं पिघला नहीं। मैंने देवांशु के मम्मी पापा को अपने पैरों से उठाकर कुर्सी पर बैठाया और उनसे कहा।

आप दोनों बड़े हैं मुझसे। इसलिए मेरे पांव पकड़कर मुझे आप लोग शर्मिंदा मत करिए। और माफ करना आप मुझे, लेकिन मैं अपनी शिकायत वापस नहीं लूंगा। मैंने कहा।

इतना कहकर मैं बाहर जाने लगा। अभी मैं दरवाज़े तक ही पहुंचा था कि दीपा की आवाज़ सुनाई पड़ी

ठीक है हम अपनी शिकायत थाने से वापस ले लेंगे और उसे माफ़ भी कर देंगे, लेकिन मेरी कुछ शर्तें हैं जिन्हें आपको पूरी करनी होंगी उसके बाद ही हम शिकायत वापस लेंगे। दीपा ने कहा।

ये क्या बात कर रही ही दीपा। उसने तुम्हारे साथ इतना गलत व्यवहार किया है। तुम्हारी इज़्ज़त के साथ खेलना चाहा। उसके बाद भी तुम उसे माफ करना चाहती हो। मैंने दीपा से कहा।

मैं सही कह रही हूँ निशान्त। हमें देवांशु को माफ कर देना चाहिए। मैं जानती हूँ कि उसने मेरे साथ बहुत बुरा किया है, लेकिन इंसानियत नाम की भी कोई चीज़ होती है। हमें उसे माफ कर देना चाहिए निशान्त। दीपा ने कहा।

तुम इंसानियत की बात कर रही हो दीपा। देवांशु ने कब इंसानियत दिखाई तुम्हारे साथ। हमेशा तुमसे अभद्रता की। यहां तक कि तुम्हारा अपहरण करके तुमसे जबरन शादी भी करनी चाही। जब उसने इंसानियत नहीं दिखाई तो हम क्यों इंसानियत दिखाएँ। उसने अपना बदला लेने के लिए मुझे मारना चाहा और तुम कह रही हो कि उसे माफ कर दूं। मैंने दीपा से कहा।

मेरी बात समझने की कोशिश करो निशान्त। वह बदले की आग में इतना नीचे गिर गया तो क्या हम भी उसी की तरह करें उसके मम्मी पापा के साथ। फिर देवांशु में और हममें क्या फर्क रह जाएगा। किसी से बदला लेना इंसानियत नहीं होती छोटे। किसी को माफ़ करके सारे गिले शिकवे भुला देना ही सच्ची इंसानियत है। क्या तुम्हें मुझपर भरोसा नहीं है। कि मैं जो कुछ कर रही हूँ वो सही नहीं है। दीपा ने कहा।

दीपा बिल्कुल सही कह रही है निशान्त। इंसानियत बदला लेने में नहीं माफ करने में है। इस बार कुलपति महोदय ने कहा।

हां निशान्त दीपा की बात मान लो। एक बार और दिल बड़ा करके माफ कर दो देवांशु को। इस बार राहुल भैया ने कहा।

ठीक है दीपा। तुम सही कह रही हो। मैं देवांशु को माफ कर रहा हूँ। मैंने कहा।

हमने आपके बेटे को माफ कर दिया, और अपनी शिकायत भी वापस ले लेंगे। लेकिन उसके लिए मेरी कुछ शर्तें हैं। दीपा ने देवांशु के मम्मी पापा से कहा।

मुझे तुम्हारी सारी शर्तें मंजूर हैं। बस तुम अपनी शिकायत वापस ले लो। देवांशु की मम्मी ने एक उम्मीद के साथ कहा।

मेरी पहली शर्त ये है कि आप देवांशु को इस कॉलेज से निकलवाकर किसी और कॉलेज में पढ़ाएंगे। दूसरी शर्त ये है कि अगर भविष्य में कभी देवांशु हम लोगों से टकरा गया तो बिना कोई तमाशा किये अपने रास्ते चला जाएगा। और तीसरी शर्त ये है कि आप अपने बेटे को एक अच्छा बेटा बनाने की कोशिश करें। उसे दूसरों का सम्मान करना और लड़कियों की इज़्ज़त करना सिखाएँ। दीपा ने कहा।

इतना बोलकर दीपा कुछ देर शांत रही फिर उसने बोलना शुरू किया।

मैंने अपने माँ को बचपन में ही खो दिया था। मां के जाने के बाद पापा शराब के नशे में डूब गए। मुझे माँ बाप का प्यार बहुत कम नसीब हुआ। ऐसा नहीं है कि मेरे भैया ने मेरी परवरिश और मुझे प्यार देने में कोई कमी रखी हो, लेकिन माँ और पापा की कमीं मुझे हमेशा महसूस हुई। तो इस दर्द को मुझसे बेहतर कोई नहीं समझ सकता। और मैं नहीं चाहती कि मेरे बदले की वजह से किसी बेटे को अपने माँ बाप से और किसी माँ बाप को अपने बेटे से दूर रहना पड़े। दीपा ने भावुक स्वर में कहा।

उसकी बात सुनकर सभी की आंखें नम हो गई थी।

देखिए मान्यवर। इसे कहते हैं संस्कार। आपके बेटे की इतनी घटिया हरकत को इस बच्ची ने इसलिए माफ़ कर दिया क्योंकि ये आपके बेटे को आपसे दूर नहीं करना चाहती है। तो हो सके तो आप खुद सुधर जाइये और अपने बेटे को भी एक अच्छा इंसान बनाइये। जिससे आपका भी सिर ऊंचा हो सके। और हां। आपके बेटे की इस वाहियात हरकत के लिए मैं उसे अपने कॉलेज से बर्खास्त करता हूँ। अगर दीपा बिटिया ये शर्त आपके सामने न भी रखती तो भी मैं उसे बर्खास्त करता। अब आप जा सकते हैं। कुछ देर बाद ये लोग अपनी शिकायत वापस ले लेंगे। कुलपति महोदय ने देवांशु के पापा से ये बात कही।

उसके बाद देवांशु के पापा और मम्मी दीपा को आशीर्वाद देते हुए आभार भारी नजरों से देखते हुए चले गए। उनके जाने के बाद कुलपति महोदय ने दीपा से कहा।

तुमने बहुत अच्छा काम किया है दीपा। किसी को माफ़ करना वो भी तब जब उसने आपकी इज़्ज़त पर हाथ डाला हो। सबके बस की बात नहीं। तुम्हारे भाई ने सचमुच तुम्हें बहुत अच्छे और महान संस्कार दिए है। ईश्वर तुम जैसी औलाद हर मां बाप को दे। अब तुम दोनों जाओ। देवांशु के मम्मी पापा थाने में तुम्हारा इंतज़ार कर रहे होंगे।

उसके बाद हम कुलपति महोदय के कार्यालय से बाहर निकल गए। मैं, दीपा, राहुल भैया और विक्रम भैया थाने पहुँचे। वहां इंस्पेक्टर से मिलकर हमने अपनी शिकायत वापस लेने के लिए बात की।

वैसे पुलिस होने के नाते मैं इसके लिए सहमत नहीं हूँ, लेकिन एक आम नागरिक और पिता होने के नाते मैं तुम्हारे इस निर्णय का समर्थन करता हूँ। मैं ये नहीं कहूंगा कि तुम लोग अपनी शिकायत वापस लेकर ठीक कर रहे हो, लेकिन मेरे हिसाब से सबको सुधरने का एक मौका देना चाहिए, हो सकता है तुम्हारे इस फैसले से देवांशु को अपने किये का पछतावा हो और वो सुधर जाए। इंस्पेक्टर सर ने कहा।

उसके बाद हमने अपनी शिकायत वापस ले ली देवांशु के माता पिता हम दोनों का आभार व्यक्त करते हुए वहां से चले गए। हम दोनों ने भी इंस्पेक्टर से इजाजत लेकर अपने घर की तरफ निकल पड़े। कुछ देर में हम घर पहुंच गए।

क्या बात थी निशान्त। कुलपति ने तुम्हें क्यों बुलाया था। माँ ने कहा।

मैंने माँ को सारी बात बता दी और दीपा के फैसले के बारे में सुनकर पहले तो माँ हैरान हुई, लेकिन जब माँ ने इस फैसले के पीछे छुपा कारण जाना तो उन्होंने दीपा के माथे को प्यार से चूमते हुए कहा।

सच में हम कितने भाग्यशाली हैं जो भगवान ने तुम जैसी बेटी को बहू के रूप में हमको दिया।

मां की बात सुनकर दीपा शरमाने लगी। धीरे धीरे दिन बीतने लगे। हम लोगों की परीक्षा भी शुरू हो गई। परीक्षा के परिणाम भी बहुत अच्छे आए थे हम दोनों के। मैं अपने छात्रनेता का दायित्व भी पूरी निष्ठा और ईमानदारी से निभा रहा था जिसमे राहुल भैया और उनके दोस्त मेरी मदद करते थे। दिवांशु के पापा ने दीपा द्वारा रखी गई शर्त को पूरा किया और दिवांशु को दूसरे शहर पढ़ने को भेज दिया

इसी तरह हम दोनों की पढ़ाई पूरी हो गई और वादे के मुताबिक मेरी और दीपा की शादी भी हो गई। दीपा को अपनी पत्नी के रूप में पाकर मैं बहुत खुश था तो मेरी माँ दीपा को बेटी के रूप में पाकर खुश थी।


तो मित्रों और पाठकों। मैं इस प्रेम कहानी को यहीं समाप्त करती हूँ और उम्मीद करती हूँ कि आप सबको ये कहानी पसंद आई होगी। हर रचनाकार की कहानी में कहीं न कहीं गलतियां और कमी रहती है। मेरी इस कहानी में भी होगी। तो आप सब पाठक मुझे उससे अवगत कराएं और अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया से इस कहानी को सुशोभित करें।

धन्यवाद पाठकों और मित्रों।


समाप्त/पूर्ण/खत्म

Bohot hi shandar story thi ye aur ise bohot hi achchhe tarike se prastut kiya hai. Aapne dusre writer ki story ko complete kiya hai ye thoda mushkil hota hai kyo ki dusre ke dimag me kesa plot set tha aur apne dimag me kesa set hoga ye pata nahi hota hai fir bhi ise bohot hi ache se mod diya aur bohot hi sahajta se ise prastut kiya. Brilliant story.
 
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Mbindas

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धन्यवाद आपका मान्यवर।
हमारी कहानी पढ़ने के लिए।।

हमारी एक कहानी अभी चल रही है। अगर समय मिलेगा तो उसे भी जरूर पढ़िएगा।।
Jii zaroor
 

Mahi Maurya

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Nice update
Inki to sagai ho gai zyada drama nahi hua. Aage dekhte h ki kya hota hai
धन्यवाद आपका मान्यवर।

जो भी ड्रामा करना था वो देवांशु को करना था। लेकिन उसकी तो पहले से ही लगी पड़ी थी।।
 

Mahi Maurya

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Lo bhai ab hero ko bed rest bhi kara diya aur kya kya din dekhne honge apne hero ko :DD:
अभी लड़ाई करनी है तो थोड़ा मजबूती भी जरूरी है।
इसलिए आराम करवा दिए।।🤣🤣🤣
 

Mahi Maurya

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Hero sach me hero nikla itna to dimag laga liya ki apne dost ko devanshu ke piche laga diya. Ab action dekhte hai.
धन्यवाद आपका मान्यवर।

अगर दिमाग न लगाता तो दीपा को कैसे ढूंढ पाता,
क्योंकि मंदिर बहुत पुराना था और उस जगह देवांशु दीपा को ले जाता, इसका दूर दूर तक अनुमान न लगा पाता छोटे।।
 
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