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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

SKYESH

Well-Known Member
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मुझे ये अब बिल्कुल पसंद नहीं आ रहा है,
इतने झमेले 😒
बाकी राइटर साहेब का मर्ज़ी वो क्या लिखते हैं
कहानी ख़तम हो जाए तब बता देना 🥱
aap to trikalgyani the ..... aap ko to sab pata tha .....

ab ye kya ho gaya aap ko ....
 
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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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मुझे ये अब बिल्कुल पसंद नहीं आ रहा है,
इतने झमेले 😒
बाकी राइटर साहेब का मर्ज़ी वो क्या लिखते हैं
कहानी ख़तम हो जाए तब बता देना 🥱
इस कहानी का कोई अंत नहीं...

मोक्ष प्राप्त कर चुके हैं सब इसमें
 

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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बेशक मेरे पास मौका था निशा कबीर के ब्याह के साथ ही कहानी का अंत हो जाता पर मैंने रिस्क लिया मेरे पास वज़ह थी. रमा के प्रत्येक शब्द का मतलब है. कहानी आदम खोर से शुरू हुई थी उस पर ही खत्म होगी. कबीर अतीत की गहराई मे नही उतरेगा तो आने वाले कल को कैसे जी पाएगा. माना कि अभी उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पा रहे है भाई पर कोशिश रहेगी के अंत बढ़िया हो. इस कहानी मे बस एक ही कमी है कि ज्यादा लंबी हो गई है
भाई कहानी लंबी होना कमी नहीं है.......... शायद कोई भी पाठक कहानी लंबी होने की शिकायत नहीं कर रहा...................
कमी सिर्फ इतनी है कि उन्हीं के धोखे, झूठ, फरेब को बार बार नए रूप, नयी परिस्थितियों और नए शब्दों में नायक के सामने लाया जा रहा है.........
और नायक की प्रतिक्रिया हर बार उलझन, उत्सुकता और अनिर्णय की रहती है...........
बार-बार उसी व्यक्ति से जानने की उत्सुकता, उसके पिछले झूठ/अधूरे सच/छुपाव को भूलकर नए झूठ में उलझ जाना, उस व्यक्ति पर विश्वास करना है या अविश्वास ये निर्णय ना ले पाना

वास्तव में अपने नायक को एक साधारण बालक से भी ज्यादा अबोध, यहाँ तक कि मानसिक विकलांगता की श्रेणी में ला दिया है......
एक नवजात शिशु भी कुछ ही समय में उसे गोद लेने वालों को पहचानने लगता है, किस के पास जाकर रोना है और किसके चुप कराने पर चुप होना है ..........
लेकिन हमारा नायक कबीर उतना भी समझदार नहीं दिखता।

कहानी को आप जितना चाहे लंबी खींच लो......... बस बार-बार नायक के मूर्खतापूर्ण व्यक्तित्व को मत दोहराओ ..................
पाठक जो भी कहानी पढ़ता है उसमें स्वयं को नायक के स्थान पर मानकर सोचता है
और संसार का कोई भी व्यक्ति खुद को मूर्ख यहाँ तक कि बार-बार उन्हीं व्यक्तियों द्वारा मूर्ख बनता हुआ नहीं देख सकता और ना ही बनता है।
 
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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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भाई कहानी लंबी होना कमी नहीं है.......... शायद कोई भी पाठक कहानी लंबी होने की शिकायत नहीं कर रहा...................
कमी सिर्फ इतनी है कि उन्हीं के धोखे, झूठ, फरेब को बार बार नए रूप, नयी परिस्थितियों और नए शब्दों में नायक के सामने लाया जा रहा है.........
और नायक की प्रतिक्रिया हर बार उलझन, उत्सुकता और अनिर्णय की रहती है...........
बार-बार उसी व्यक्ति से जानने की उत्सुकता, उसके पिछले झूठ/अधूरे सच/छुपाव को भूलकर नए झूठ में उलझ जाना, उस व्यक्ति पर विश्वास करना है या अविश्वास ये निर्णय ना ले पाना

वास्तव में अपने नायक को एक साधारण बालक से भी ज्यादा अबोध, यहाँ तक कि मानसिक विकलांगता की श्रेणी में ला दिया है......
एक नवजात शिशु भी कुछ ही समय में उसे गोद लेने वालों को पहचानने लगता है, किस के पास जाकर रोना है और किसके चुप कराने पर चुप होना है ..........
लेकिन हमारा नायक कबीर उतना भी समझदार नहीं दिखता।

कहानी को आप जितना चाहे लंबी खींच लो......... बस बार-बार नायक के मूर्खतापूर्ण व्यक्तित्व को मत दोहराओ ..................
पाठक जो भी कहानी पढ़ता है उसमें स्वयं को नायक के स्थान पर मानकर सोचता है
और संसार का कोई भी व्यक्ति खुद को मूर्ख यहाँ तक कि बार-बार उन्हीं व्यक्तियों द्वारा मूर्ख बनता हुआ नहीं देख सकता और ना ही बनता है।
वैसे सच बोलूं तो ये फौजी भाई का फोर्ट है कि आखिरी तक लोगों को उनकी लगभग हर कहानी बोझिल सी लगने लगती है।

और शायद यही इनकी खूबी भी है। दिलवाले में हीरो एसपी तक बन जाता है पर एक सिंपल से केस जो बस ओपन एंड शट था को सॉल्व नही कर पाता, कारण विश्वास।

साधारण रूप से मनुष्य हर किसी पर विश्वास कर लेता है, और अपने पर तो क्या ही कहना। शायद लेखक का खुद का किरदार झलकता है उनके नायकों में।
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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भाई कहानी लंबी होना कमी नहीं है.......... शायद कोई भी पाठक कहानी लंबी होने की शिकायत नहीं कर रहा...................
कमी सिर्फ इतनी है कि उन्हीं के धोखे, झूठ, फरेब को बार बार नए रूप, नयी परिस्थितियों और नए शब्दों में नायक के सामने लाया जा रहा है.........
और नायक की प्रतिक्रिया हर बार उलझन, उत्सुकता और अनिर्णय की रहती है...........
बार-बार उसी व्यक्ति से जानने की उत्सुकता, उसके पिछले झूठ/अधूरे सच/छुपाव को भूलकर नए झूठ में उलझ जाना, उस व्यक्ति पर विश्वास करना है या अविश्वास ये निर्णय ना ले पाना

वास्तव में अपने नायक को एक साधारण बालक से भी ज्यादा अबोध, यहाँ तक कि मानसिक विकलांगता की श्रेणी में ला दिया है......
एक नवजात शिशु भी कुछ ही समय में उसे गोद लेने वालों को पहचानने लगता है, किस के पास जाकर रोना है और किसके चुप कराने पर चुप होना है ..........
लेकिन हमारा नायक कबीर उतना भी समझदार नहीं दिखता।

कहानी को आप जितना चाहे लंबी खींच लो......... बस बार-बार नायक के मूर्खतापूर्ण व्यक्तित्व को मत दोहराओ ..................
पाठक जो भी कहानी पढ़ता है उसमें स्वयं को नायक के स्थान पर मानकर सोचता है
और संसार का कोई भी व्यक्ति खुद को मूर्ख यहाँ तक कि बार-बार उन्हीं व्यक्तियों द्वारा मूर्ख बनता हुआ नहीं देख सकता और ना ही बनता है।

मैं बहुत गहराई से समझता हूं बात को. अपनों के छल से बड़ा कोई गुनाह नहीं. परिवार को साथ लेकर चलने की लालसा क्या ही कहे. मैंने हमेशा से माना है कि कहानिया हमारे आसपास ही बनतीं है. किरदारों का छल मैं इसके बारे मे सोचता हूं कि परिवार कितना गिर सकता है. मैं ऐसा क्यों सोचता हूं ये आगामी कहानी के लिए एक प्रयोग है.
कबीर के किरदार को आम रखने की मेरे पास वज़ह है. आम आदमी पर सिनेमा का इतना प्रभाव है उसे एक्शन हीरो पसंद है मैं ये धारणा बदलना चाहता हूं. इस कहानी मे दो सच अभी बाकी है
 
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