#161
धीमे कदमो से चलते हुए वो मेरे पास आई .
मैं- क्यों
“क्या करे , तुम हो की मानते ही नहीं . कितने इशारे दिए तुमको की मत पड़ो इस चक्कर में जितना तुमको दूर करने का प्रयास किया उतना ही तुम्हे जूनून चढ़ा सच जानने का वो सच जिसे ज़माने से छिपाते हुए मैं आज तक आई थी . वो सच जिसने मुझे भी भुला दिया था की मैं कौन हूँ तुमने बेचैन कर दिया मुझे. आज खंडहर को नष्ट करके तुमने मजबूर कर दिया मुझे ये सब करने को सच कहूँ तो कबीर मेरा जरा भी मन नहीं था तुम्हे यु मारने का पर क्या करू ” चाची ने मुझसे कहा और अंजू के पास पहुँच गयी .
चाची- और तू मुर्ख लड़की , अच्छी भली जिन्दगी चल रही थी न तेरी तुझे क्या जरुरत थी इन विरानो में भटकने की , इस जवानी को तूने जाया किया किसी का बिस्तर गर्म करती पर नहीं तुझे भी तेरी माँ की तरह चुल लगी है. तुम लोगो ने जंगल को पता नहीं क्या समझ रखा है . मुह उठा कर जब देखो चले आते हो दिन हो या रात . ये नहीं सोचते की दुनिया में और भी लोग है जिनको शांति चाहिए . हर जगह तुम बस घुसते ही चले आ रहे हो . और लोग जाये तो कहाँ जाये. इन विरानो को तुमने अपनी अय्याशियों को अड्डा ही बना लिया .
खंडहर की शांति पहले तू तुम्हारे माँ बापों ने भंग की फिर तुम लोग खड़े हो गए. करे तो क्या करे .
चाची ने हाथ पकड कर अंजू को उठाया और अपने लबो को अंजू के लबो पर रख दिए. एक जोरदार चुम्बन लेने के बाद चाची ने अंजू को छोड़ा और बोली-एक बातबताओ , खंडहर के सच को जान कर क्या करोगे तुम .
मैं क्या कहता भाले ने मेरी शक्ति कम कर दी थी .
अंजू- मैं सोने के मालिक को देखना चाहती थी . मैं देखना चाहती थी उस आग को जिसने सब कुछ झुलसा दिया .
चाची- झूठ मत बोल . तेरे मन को पढ़ रही हूँ मैं . तुझे लालच था सोने से ज्यादा पाने का पर तू ये नहीं जानती की तू क्या पाना चाहती थी . और तू कबीर रिश्तो का बोझ इतना भी ना उठाना चाहिए की रिश्ते बोझ बन जाये . परिवार को थाम कर रखने की हसरत ने तुझे इतना झुका दिया की फिर तू कुछ भी देख नहीं पाया कुछ भी समझ नहीं पाया. कितने इशारे दिए तुझे की शांति से रह ले जी अपनी जिन्दगी पर तू नहीं माना तुझ को भी वही बिमारी की खंडहर का सच क्या है , ले देख ले खंडहर का सच क्या है . मैं हूँ खंडहर का सच , मैं हूँ वो जो तुम सब के सामने तो था पर कोई देख नहीं पाया . मैं हूँ सोने की मालिक , नहीं ये ठीक नहीं होगा मैं हूँ सोने की कैदी जिसने तुम्हारे माँ-बापों के चुतियापे की वजह से अपनी कैद से मुक्ति पाई. लालच इंसानी फितरत का गुण . एकांत बरसो से आदत थी उस एकांत की . कभी सोचा नहीं था की कैद से आजादी मिलेगी पर फिर तीन दोस्त उस खंडहर में आने लगे. जोश से भरे . घंटो फिर दिन रात वही पर डेरा डाले रहते वो लोग. उनकी दखलंदाजी खास पसंद नहीं थी पर फिर सुनैना ने उस चीज को पहचान लिया जो छिपी थी सोना. लालच ने आकर्षित कर लिया उनको . सुनैना जान गयी की वहां पर कोई चौथा भी है . उसे जूनून था किवंदिती को सच करने का . मुझे आजादी चाहिए थी . हमने एक सौदा किया सारा सोना उसका और बदले में मैं यहाँ से आजाद हो जाउंगी. उसने हाँ भर ली मैंने कायदे से सब कुछ उसे सौंप दिया पर जब शर्त उसके सामने आई तो उसके कदम डगमगा गए. इंसानों की थूक कर चाटने की आदत जो ठहरी. पर वो अकेली नहीं थी उसके साथ था बिशम्भर जो सोने के लिए कुछ भी करने को तैयार था मैंने उसे लालच दिया उसने लालच लिया . आदमखोर मेरी कैद का प्रथम रक्षक था जो छिपा हुआ था बरसो से जंगल में पर बिशम्भर ने उसका शिकार किया पर बदले में उसे क्या मिला वो खुद संक्रमित हो गया . और फिर सिलसिला शुरू हुआ . महावीर ने मेरा सच जान लिया था . वो उत्सुक था वो जानता था की एक आदमखोर ही मेरा सामना कर सकता था सुनैना के लाकेट ने उसे राह दिखाए महावीर ने सब जानते हुए भी मेरा आह्वान किया पर वो नहीं जानता था की मेरा असली रूप क्या है . वो ये नहीं जानता था की मैं आजाद थी . पर संगती का असर , रमा को चुदते देख उसके मन में भी हिलोरे जाग गयी . उसने रेणुका पर नजर डाली पर वो ये नहीं जानता था की रेणुका तो रेणुका है ही नहीं वो मैं थी जिसने रेणुका का रूप ले लिया था . रेणुका को तो एक रात नशे में चूर रमा के पति ने ही मार दिया था . खैर मैं गलत नहीं मानती उस बात को , जब छोटा ठाकुर रमा को चोद सकता था तो रमा का पति क्यों नही चोद सकता था ठाकुर की पत्नी को .
ये मेरे लिए और एक नया खुलासा था , मेरे सामने रेणुका चाची की जगह जो थी वो रेणुका थी ही नहीं .
“कौन , कौन हो फिर तू ” मैंने बड़ी मुशकिल से कहा.
चाची- मैं ही तो हूँ वो जिसका जिक्र तुम मुझसे ही किया करते थे कबीर . मैं ही हूँ इस जंगल का सच मैं , मैं हूँ वो जिसका जिक्र कोई नहीं करता मैं हूँ जंगल की रानी. मैं हूँ वो जो तुझे चाहने लगी थी .मैं हूँ वो जो रोएगी तेरे जाने के बाद.