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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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वैसे किसी ने ध्यान नहीं दिया, कबीर ने मंगू की लाश नही देखी।
 

ASR

I don't just read books, wanna to climb & live in
Divine
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950 तक जाएंगे आज
मुसाफिर लगता है 😍 आज जनता बहुत बहुत मंगल मे है, चंद्रग्रहण व गुरु पर्व की खुशियो के साथ 950 पृष्ठों को पार लगा देगी.. प्रशंसकों पाठकों पे विश्वास है 😍..
 
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#133

तभी अचानक से सरला ने अपना लहंगा मेरे मुह पर फेंक दिया दो पल के लिए मैं उसमे उलझ गया और मंगू ने मुझ पर वार किया. ताकत में मंगू लगभग मेरे बराबर ही था . ऊपर से सरला के धोखा दिया था . मैं सकते में था पर मुझे साथ ही समझ आ रहा था की भैया कितने मजबूर रहे होंगे जब अपने दोस्त महावीर से लड़ना पड़ा था उन्हें पर मैं कमजोर नहीं था . मैंने मंगू को उठा कर पटका और एक लात सरला के पेट में मारी.

मंगू- सरला बचना नहीं चाहिए ये , अगर ये बचा तो फिर हमारे लिए मुसीबत हो जाएगी.

मैं- मुसीबत तो तुम्हरे लिए हो ही गयी है धोखेबाजो.

सरला उछल कर मेरी पीठ पर बैठ गयी और मेरे गले में अपने दोनों हाथ डाल कर गला दबाने लगी. आगे से मंगू ने भी अपने हाथ मेरी गर्दन पर कस दिए. मैं दोहरी गिरफ्त में था . मैंने मंगू के पैर पर लात मारी और खुद को बिस्तर पर गिरा लिया . सरला मेरे निचे आ गयी. मैंने उसकी पकड़ से छूटते ही दो तीन थप्पड़ दिए उसे और मंगू को धर लिया.

मैं पहले मंगू से निपटना चाहता था , सरला से मुझे दो सवालों के जवाब चाहिए थे .

एक पल मेरे दिमाग में ये ख़याल आया और इसी में मामला हाथ से निकल गया मंगू ने एक फावड़े से मेरे सर पर वार कर दिया. चोट जोरदार लगी थी आँखों के आगे तारे नाच गए . मंगू का अगला वार मेरी बाह पर हुआ फावड़े का नुकीला हिस्सा मेरी बांह में धंस गया था .

“आह ” मैं अपनी चीख नहीं रोक पाया .

मंगू- ये तो शुरुआत है कबीर. अपने बड़ो के कर्मो का फल छोटो को चुकाना पड़ता है तू खुशकिस्मत है जो तेरी तक़दीर में ये मुकाम आया.

मेरा सर भनभना रहा था , मंगू के लगातार वार मुझे कमजोर कर रहे थे . फावड़े की चोट मुझे बेहाल कर रही थी . हाथ पैर मारते हुए मेरे हाथ में मेरी बेल्ट आ गयी जो पास में ही पड़ी थी . मैंने उसे पकड़ा और मंगू के हाथ पर मारी . फावड़ा गिर गया. मैंने जोर लगाते हुए मंगू को धकेला और फावड़ा उठा लिया. अचानक से ही ये सब हुआ तन्न्न की जोरदार आवाज हुई और मंगू का सर फट गया.

नहीईईई “” सरला चीख पड़ी .

मैं- तेरा हिसाब बाद में करूँगा रुक जरा

पर सरला घाघ औरत थी , जितना मैं समझ रहा था वो उस से कहीं ज्यादा शातिर थी. उसने फुर्ती करते हुए मशाल बुझा दी . अचानक से हुए अँधेरे ने थोड़ी देर के लिए मुसीबत बढ़ा दी मेरी. मंगू ने मेरे पैरो पर वार किया .

मैं- मंगू ख़त्म करते है इस खेल को .

मैंने मंगू के अन्डकोशो पर जोरदार लात मारी वो जमीं पर गिर गया .मैं उसकी छाती पर बैठा और उसके गले पर अपनी गिरफ्त बढ़ा दी . वो हाथ पैर मारने लगा पर मुझ पर इतना उन्माद छा गया था की अब रुकने वाला था मैं



मैं- बस सब शांत हो जायेगा मंगू सब शांत हो जायेगा. भाई माना था तुझे पर तूने दगा किया कभी तुझे नौकर नहीं समझा पर न जाने क्यों तेरी आँखों पर लालच की पट्टी पड़ गयी देख आज तेरे आस पास कितना लालच है पर तू खाली हाथ जायेगा इस दुनिया से

इतना कह कर मैंने मंगू के गले पर और दवाब बढ़ा दिया . जब तक की वो हाथ पैर पटकता रहा धीरे धीरे उसका बदन शांत हो गया . मेरा दिल जल रहा था पर मैं रोया नहीं . उसकी लाश को एक बार भी नहीं देखा मैंने . इस बीच सरला वहां से भाग चुकी थी और मैं जानता था की वो कहाँ जाएगी.



पूरा गाँव अँधेरे में डूबा था . बिजली नहीं थी . पर मेरे कदम जानते थे की कहाँ जाना है. मैंने कविता के कमरे की खिड़की को हल्का सा धक्का दिया और अन्दर घुस गया . घर में सन्नाटा था पर मैं इस धोखे को जानता था . वैध के कमरे में जाते ही मैंने सरला को दबोच लिया .

“छोड़ कबीर मुझे ” सरला घुटी आवाज में बोली.

मैं- छुपने के लिए सबसे कमजोर जगह चुनी तूने. कहा था न तुझ पर भरोसा कर रहा हूँ भरोसा मत तोडना मेरा. तुझे क्या माना था मैंने और तू क्या निकली. पर फ़िक्र कर तुझे नहीं मारूंगा . तेरे खून से अपने हाथ गंदे नहीं करूँगा. मेरे सवाल है जवाब दे और सच बोलेगी तू वर्ना पूरा गाँव तेरा तमाशा देखेगा. उस रात कोचवान ने ऐसा क्या देख लिया था जो वो पागल हो गया था

सरला-उसने मुझे परकाश से चुदवाते हुए देख लिया था .

इस नए खुलासे ने मुझे हैरान कर दिया था. परकाश मादरचोद तीनो रंडियों को पेल रहा था.

सरला- सबसे पहले हम तीनो को छोटे ठाकुर ने चोदा था . पर फिर रमा का मोह टूट गया उसने महावीर ठाकुर से यारी कर ली . महावीर ठाकुर सहर से लौटे थे . रमा उनके किस्से बताती हमको. कविता को भी चोद चुके थे वो और फिर मैं भी उनके साथ सो ली. महावीर ठाकुर शहर से काफी चीजे लाते हमारे लिए. तरह तरह की रंगीन किताबे दिखाते और वैसे ही चोदते हमको. अलग तरह के कपडे लाते खुद सजाते हमको . पर फिर एक रात खबर आई की महावीर ठाकुर मर गए. छोटे ठाकुर उसी दौरान गायब हो गए थे .

वक्त बड़ा नाजुक हो गया था . रमा गाँव छोड़ कर मलिकपुर में पहले ही बस चुकी थी . मैंने और कविता ने निर्णय लिया की अब ये अब बंद करेंगे . और ऐसा हमने किया भी . कुछ साल ऐसे ही बीत गये पर मुसीबत फिर से लौट आई. इस बार परकाश था न जाने कैसे उसके पास हम तीनो की नंगी तस्वीरे थी जिसमे हम महावीर के साथ सम्भोग में लिप्त थी . वो भी हमसे जिस्म ही चाहता था . बेशक हम को उन तस्वीरों से फर्क नहीं पड़ना था गाँव में तो बदनाम थे ही पर फिर रमा के कहने पर हम ने उस से भी नाता जोड़ लिया. पर उसको कविता सबसे ज्यादा पसंद थी . उस रात जब मेरे पति के साथ वो घटना हुई तब मैं और परकाश जंगल में मोजूद थे. परकास के शौक भी निराले थे वो अपने साथ जानवरों की पोशाके लाता था वो पहन कर हम लोग जंगल में चुदाई करते थे .

उस रात बदकिस्मती से मेरा पति उस तरफ निकल आया. जंगल में अफवाहे तो फैली हुई ही थी , मेरे पति ने हम दोनों को आदमखोर या डाकन समझ लिया और उसे दौरा पड़ गया . परकाश के पास कोई दवाई थी जो उसने मेरे पति को दी जिस से उसकी हालात और ख़राब हो गयी. प्रकाश ने गाँव में नकली ओझा भी बुलाया था जिसने अफवाहों को गर्म कर दिया हर कोई ये समझने लगा की जंगल में डायन है पञ्च के लड़के को भी प्रकाश ने ही वो दवाई पिलाई थी .

अब मुझे परकास के घर में मिली उन पोशाको का राज समझ आ गया था दवाई उसे कविता देती होगी.

मैं- अपने पति को मौत का रास्ता दिखा दिया तूने .

सरला कुछ नहीं बोली.

मैं- वैध को क्यों जान देनी पड़ी.

सरला- वैध जंगल में बहुत दखल दे रहा था हर रात ही पता नहीं क्या करने जाता था वो हम लोगो को उसकी वजह से परेशानी हो रही थी इसलिए उसे रस्ते से हटाना पड़ा.

मैं- परकाश ने ही कहा हो गा की कबीर से सम्बन्ध बना ले

सरला ने हाँ में सर हिलाया

मैं- परकाश क्या चाहता था .


सरला- वो महावीर के कातिल को तलाश रहा था ..
Bhai aapki story ke 2 update padh kar hi hum to aapki stroy ke deewane hogaye the😌

Par bhai kabhi ye nhi socha tha ki is kahani
mein aise-aise mod aayenge bhai kabhi
aisa time aaya ki Kushi ka thikana nhi tha

Phir suru hua Ateet ka khel phir jo mere dimag ke laude lagne start hue akalpaniye bhai ..🔥

Bhai aisi kahani shayad hi kabhi koi likh paaye jis din aapne ye bataya tha ki ab kahani apne last face mein hai bada dukh hua....💔💔


Bhai aapne is kahani mein itne jhatke diye hai ki agr meri girlfriend
chhod kar chali jaaye to bhi koi gum
nhi hoga ...😂😂
 
Last edited:

rangeen londa

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#1

“तेज और तेज ” घोड़ो की पीठ पर चाबुक मारते हुए कोचवान के जबड़े भींचे हुए था. नवम्बर की पड़ती ठण्ड में बेशक उसने कम्बल ओढा हुआ था पर उसकी बढ़ी धडकने , माथे से टपकता पसीना बता रहा था की कोचवान घबराया हुआ था . चांदनी रात में धुंध से लिपटा हसीं चांद बेहद खूबसूरत लग रहा था . जंगल के बीच से होते हुए घोड़ागाड़ी अपनी रफ़्तार से दौड़े जा रही थी . लालटेन की रौशनी में कोचवान बार बार पीछे मुड कर देख रहा था .



“न जाने कब ख़त्म होगा ये सफ़र ” कोचवान ने अपने आप से कहा . ऐसा नहीं था की इस रस्ते से वो पहले कभी नहीं गुजरा था हफ्ते में दो बार तो वो इसी रस्ते से शहर की दुरी तय करता था पर आज से पहले वो हमेशा दिन ढलने तक ही गाँव पहुँच जाता था , आज उसे देर, थोड़ी देर हो गयी थी .

असमान में चमकता चाँद और धुंध दो प्रेमियों की तरह आँख मिचोली खेल रहे थे . कोई कवी शायर होता तो उस रात और चाँद को देख कर न जाने क्या लिख देता .कोचवान ने सरसरी नजर उस बड़े से बरगद पर डाली जो इतना ऊँचा था की उसका छोर दिन में भी दिखाई नहीं देता था .

“बस थोड़ी देर की बात और है ” कहते हुए उसने फिर से घोड़ो की पीठ पर चाबुक मारी. पर तभी घोड़ो ने जैसे बगावत कर दी . कोचवान को झटका सा लगा गाड़ी अचानक रुकने पर. उसने फिर से चाबुक मार कर घोड़ो को आगे बढ़ाना चाहा पर हालात जस के तस.

“अब तुमको क्या हुआ ” कोचवान ने झुंझलाते हुए कहा . उसने लालटेन की रौशनी थोड़ी और तेज की तो मालूम हुआ की सामने सड़क पर एक पेड़ का लट्ठा पड़ा था .

“क्या मुसीबत है ” कहते हुए कोचवान घोड़ागाड़ी से निचे उतरा और लट्ठे को परे सरकाने लगा. सर्दी के मौसम में ठण्ड से कापते उसके हाथ पूरा जोर लगा कर लट्ठे को इतना सरका देना चाहते थे की गाड़ी आगे निकल सके. उफनती सांसो को सँभालते हुए कोचवान ने अपनी पीठ लट्ठे पर ही टिका दी.

“आगे से चाहे कुछ भी हो जाये, पैसो के लालच में देर नहीं करूँगा ” अपने आप से बाते करते हुए उसने घोड़ो की लगाम पकड़ी और उन्हें लट्ठे से पार करवाने लगा. वो गाड़ी पर चढ़ ही रहा था की एक आवाज ने उसका ध्यान अपनी तरफ खींच लिया.

“सियार ” उसके होंठो बुदबुदाये . वो तुरंत ही गाड़ी पर चढ़ा और एक बार फिर से घोड़े पूरी शक्ति से दौड़ने लगे.

“जरा तेज तेज चला साइकिल को ” मैंने अपने दोस्त मंगू की पीठ पर धौल जमाते हुए कहा.

मंगू- और क्या इसे जहाज बना दू, एक तो वैसे ही ठण्ड के मारे सब कुछ जमा हुआ है ऊपर से तुमने ये जंगल वाला रास्ता ले लिया.

मैं- यार तुम लोग जंगल के नाम से इतना घबराते क्यों हो , ये कोई पहली बार ही तो नहीं है की हम इस रस्ते से गुजर रहे है . और फिर ये तेरी ही तो जिद थी न की दो चार पूरी ठूंसनी है

मंगू- वो तो स्वाद स्वाद में थोड़ी ज्यादा हो गयी भाई पर आज देर भी कुछ ज्यादा ही हो गयी .

मैं- इसीलिए तो जंगल का रास्ता लिया है घूम कर सड़क से आते तो और देर होती

दरसल मैं और मंगू एक न्योते पर थे .

इधर कोचवान सियारों की हद से आगे निकल आया था पर उसके जी को चैन नहीं था . होता भी तो कैसे पेड़ो के बीच से उस चमकती आभा ने उसका रस्ता रोक दिया था . कोचवान अपनी मंजिल भूल कर बस उस रौशनी को देख रहा था जो चांदनी में मिल कर सिंदूरी सी हो गयी थी .



“इतनी रात को जंगल में आग, देखता हूँ क्या मालूम कोई राही हो. अपनी तरफ का हुआ तो ले चलूँगा साथ ” कोचवान ने नेक नियत से कहा और उस आग की तरफ चल दिया. अलाव के पास जाने पर कोचवान ने देखा की वहां पर कोई नहीं था

“कोई है ” कोचवान ने आवाज दी .

“कोई है , ” उसने फिर पुकारा पर जंगल में ख़ामोशी थी .

“क्या पता कोई पहले रुका हो और जाने से पहले अलाव बुझाना भूल गया हो ” उसने अपने आप से कहा और वापिस मुड़ने लगा की तभी एक मधुर आवाज ने उसका ध्यान खींच लिया . वो कुछ गुनगुनाने की आवाज थी . हलकी हलकी सी वो आवाज कोचवान के सीने में उतरने लगी थी .

“ये जंगली लोग भी न इतनी रात को भी चैन नहीं मिलता इनको बताओ ये भी कोई समय हुआ गाने का ” उसने अपने आप से कहा और घोड़ागाड़ी की तरफ बढ़ने लगा. एक बार फिर से गुनगुनाने की आवाज आने लगी पर इस बार वो आवाज कोचवान के बिलकुल पास से आई थी . इतना पास से की उसे न चाहते हुए भी पीछे मुड कर देखना पड़ा. और जब उसने पीछे मुड कर देखा तो वो देखता ही रह गया . उसकी आँखे बाहर आने को बेताब सी हो गयी .

चांदनी रात में खौफ के मारे कोचवान थर थर कांप रहा था . उसकी धोती मूत से सनी हुई थी . वो चीखना चाहता था , जोर जोर से कुछ कहना चाहता था पर उसकी आवाज जैसे गले में कैद होकर ही रह गयी थी .

“मंगू, साइकिल रोक जरा, ” मैंने कहा

मंगू- अब तो सीधा घर ही रुकेगी ये

मैं- रोक यार मुताई लगी है

मंगू ने साइकिल रोकी मैं वही खड़ा होकर मूतने लगा. की अचानक से मेरे कानो में हिनहिनाने की आवाजे पड़ी.

मैं- मंगू, घोड़ो की आवाज आ रही है

मंगू- जंगल में जानवर की आवाज नहीं आएगी तो क्या किसी बैंड बाजे की आवाज आएगी .

मैं- देखते है जरा

मंगू- न भाई , मैं सीधा रास्ता नहीं छोड़ने वाला वैसे भी देर बहुत हो रही है .

मैं- अरे आ न जब देखो फट्टू बना रहता है .

मंगू ने साइकिल को वही पर खड़ा किया और हम दोनों उस तरफ चल दिए जहाँ से वो आवाज आ रही थी . हम जब गाड़ी के पास पहुचे तो एक पल को तो हम भी घबरा से ही गए. सड़क के बीचो बीच घोड़ागाड़ी खड़ी थी . पर कोचवान नहीं

तभी मंगू ने उस जलते अलाव की तरफ इशारा किया

मैं- लगता है कोचवान उधर है , इतनी सर्दी में भी इसको घर जाने की जगह जंगल में बैठ कर दारू पीनी है.

मंगू- माँ चुदाये , अपने को क्या मतलब भाई वैसे ही देर हो रही है चल चलते है

मैं- हाँ तूने सही कहा अपने को क्या मतलब

मैं और मंगू साइकिल की तरफ जाने को मुड़े ही थे की ठीक तभी पीछे से कोई भागते हुए आया और मंगू से लिपट गया .


“आईईईईईईईईईईईइ ”जंगल में मंगू की चीख गूँज पड़ी.............
nice start start to read
 

rangeen londa

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#2

मंगू इतनी जोर से चीखा था की एक पल के लिए मेरी भी फट गयी . मैंने तुरंत उस आदमी को मंगू के ऊपर से हटाया तो मालूम हुआ की वो हमारे गाँव का ही हरिया कोचवान था .

“रे बहनचोद हरिया , गांड ही मार ली थी तूने तो मेरी ” अपनी सांसो को दुरुस्त करते हुए मंगू ने हरिया को गाली दी .

पर हरिया को कोई फर्क नहीं पड़ा. वो अपने हाथो से हमें इशारा कर रहा था .

मैं- हरिया क्या चुतियापा मचाये हुए है तू मुह से बोल कुछ

पर कोचवान अपने हाथो को हिला हिला कर अजीबो गरीब इशारे कर रहा था . तभी मेरी नजर हरिया उंगलियों पर पड़ी जो टूट कर विपरीत दिशाओ में घूमी हुई थी ,अब मेरी गांड फटी . कुछ तो हुआ था कोचवान के साथ जो वो हमें समझाने की कोशिश कर रहा था .

“बैठ ” मैंने उसे शांत करने की कोशिश की , उसकी घबराहट कम होती तभी तो वो कुछ बताता हमें.

मंगू- भाई इसका शरीर पीला पड़ता जा रहा है

मैं- मंगू इसे तुरंत वैध जी के पास ले जाते है

मंगू- हाँ भाई

मैंने और मंगू ने हरिया को गाड़ी में पटका . अपनी साइकिल लादी और करीब आधे घंटे बाद उसे गाँव में ले आये. रात आधी से ज्यादा बीत चुकी थी पर हमें भला कहाँ चैन मिलता . ये कोचवान जो पल्ले पड़ गया था .

“बैध जी बैध जी ” मंगू गला फाड़े चिल्ला रहा था पर मजाल क्या उस रात कोई अपने गरम बिस्तरों से उठ कर दरवाजा खोल दे. जब कई देर तक इंतज़ार करने के बाद भी बैध का दरवाजा नहीं खुला तो मैंने एक पत्थर उठा कर उसकी खिड़की पर दे मारा .

“कौन है कौन है ” चिल्लाते हुए बैध ने दरवाजा खोला .

“तुम , तुम दोनों इस वक्त यहाँ पर क्या कर रहे हो और मेरी खिड़की का कांच क्यों तोडा तुमने, क्या चोरी करने आये हो .” बैध ने अपना चस्मा पकड़ते हुए कहा

मैं- आँखों को खोल कर देखो बैध जी

बैध ने चश्मा लगाया और मुझे देखते हुए बोला- अरे बेटा तुम इतनी रात को , सब राजी तो है न

तब तक मंगू हरिया को उतार कर ला चूका था .

मैं- ये हमें जंगल में मिला.

जल्दी ही हम वैध जी के घर में वैध को हरिया की पड़ताल करते हुए देख रहे थे .

मैं- मार पीट के निशान है क्या

वैध- नहीं बिलकुल नहीं

मैं- तो इसकी उंगलिया कैसे मुड़ी और ये बोल क्यों नहीं पा रहा

वैध- जीभ तालू से चिपक गयी है .

मैं- हुआ क्या है इसे

वैध- समझ नही आ रहा

मंगू- तो क्या घंटा के बैध हो तुम

वैध- कुंवर, तुम्हारी वजह से मैं इसे बर्दाश्त कर रहा हूँ वर्ना इसके चूतडो पर लात मारके भगा देता इसे.

मैं- माफ़ करो वैध जी, इसे भी हरिया की फ़िक्र है इसलिए ऐसा बोल गया . पर वैध जी आप तो हर बीमारी के ज्ञाता हो , न जाने कितने लोगो की बीमारी ठीक की है आपने , आप ही इसका मर्म नहीं पकड़ पा रहे तो क्या होगा इसका.

वैध - फ़िलहाल इसे कुछ औषधि दे देता हूँ किसी तरह रात कट जाये फिर सुबह देखते है



मंगू- चल भाई घर चलते है

मैं- इस घोडा गाड़ी का क्या करे , हरिया के घर इस समय छोड़ेंगे तो उसके परिवार को बताना पड़ेगा वो लोग परेशां हो जायेंगे

मंगू- परेशां तो कल भी हो जाना ही है

मैं- कम से कम रात को तो चैन से सो लेंगे.

घोड़ो की व्यवस्था करने के बाद मैंने मंगू को उसके घर छोड़ा और फिर दबे पाँव अपने चोबारे में घुस ही रहा था की .....

“आ गए बरखुरदार ”

मैंने पलट कर देखा भाभी खड़ी थी .

मैं- आप सोये नहीं अभी तक .

भाभी- जिस घर के लड़के देर रात तक घर से बाहर रहे वहां पर जिम्मेदार लोगो को भला नींद कैसे आ सकती है

मैं- क्या भाभी आप भी

भाभी- इतनी रात तक बाहर रहना ठीक नहीं है , रातो को दो तरह के लोग ही बाहर घूमते है एक तो चोर दूसरा आशिक

मैं- यकीन मानिये भाभी , मैं उन दोनों में से कोई भी नहीं हूँ . सो जाइये रात बहुत हुई. कोई आपको ऐसे जागते देखेगा तो हैरान होगा.

भाभी- अच्छा जी, रातो को बाहर घुमो तुम और हैरानी हमसे वाह जी वाह

मैं बस मुस्कुरा दिया और चोबारे में घुस गया . गर्म लिहाफ ओढ़े हुए मैं बस हरिया कोचवान के बारे में सोचता रहा .



सुबह जब आँख खुली तो सर में हल्का हल्का दर्द था , निचे आया तो देखा की भैया कुर्सी पर बैठे थे . मैंने उनको परनाम किया और हाथ मुह धोने लगा .

भैया- कुंवर तुमसे कुछ बात करनी थी

मैं - जी भैया

भैया- हमने तुमसे कहा था की छोटी मोटी जिमीदारिया निभाना सीखो . कल तुम फिर से न जाने कहाँ गायब थे , चाची के खेत बिना पानी के रह गए. तुमसे कहा था की वो काम तुमको करना है . फसल बर्बाद होगी तो नुकसान होगा.

मैं- भैया, आज रात पानी दे दूंगा आइन्दा से आपको शिकायत नहीं होगी.

तभी भाभी चाय के कप लिए हुए हमारी तरफ आई

भाभी- मजदूरो को क्यों नहीं भेज देते , वैसे भी मजदुर खेतो पर काम करते तो हैं

भैया- तुम्हारे लाड ने ही इसे इतना बिगाड़ दिया है की ये हमारी भी नहीं सुनता. इसे भी अपनी जमीन से उतना ही प्यार होना चाहिए जितना हमें है . माना की ये सब इसका ही है पर हमारा ये मानना है की पसीने का दाम चुकाए बिना कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता .

मैंने भाभी के हाथ से चाय का कप लिया और घूँट भरी. कड़क ठंडी की सुबह में गजब करार आ गया . भाभी मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा पड़ी.

हम बात कर ही रहे थे की तभी वैध जी का आना हुआ

वैध- मुझे तुमसे कुछ जरुरी बात करनी है

मैं- कहिये

वैध- तुमसे नहीं कुंवर, बड़े साहब से .


सुबह सुबह मेरा दिमाग घूम गया कायदे से वैध को मुझे हरिया के बारे में बताना चाहिए था पर वो भैया से कोई बात करने आया था . उत्सुकता से मैंने अपने कान लगा दिए पर भैया उसे लेकर घर से बाहर चले गए. मैं उनके पीछे पीछे दरवाजे पर पहुंचा ही था की तभी धाड़ से मैं टकरा गया . “हाय राम ” दर्द से मैं बोला . अपने आप को सँभालते हुए मैं जब तक उठा वो दोनों भैया की गाड़ी में बैठ कर जा चुके थे ... पर कहाँ ...........
Awesome update
 

rangeen londa

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“हाय रे , तोड़ दी मेरी कमरिया आज तो ऊपर से देखो नालायक कैसे खड़ा है , मुझे तो उठा जरा ” चाची ने कराहते हुए कहा तो मेरा ध्यान गया की मैं चाची से टकरा गया था . चाची का लहंगा घुटनों तक उठ गया था जिस से सुबह की रौशनी में उनकी दुधिया जांघे चमक उठी थी . पांवो में पिंडियो पर मोटे चांदी के कड़े क्या खूब सज रहे थे . मैंने देखा की चाची के सीने से शाल हट गया था तंग चोली में से बाहर निकलने को बेताब चाची की चुचियो पर मेरी नजर पड़ी तो उठ नहीं पायी.

“रे हरामखोर मैं इधर पड़ी हूँ और तुझे परवाह ही नहीं है एक बार मुझे खड़ी कर जरा हाय रे मेरी कमर . हाथ दे जरा ” चाची ने फिर से कहा तो मैं होश में आया .

मैंने सहारा देकर चाची को खड़ी किया चाची ने एक धौल मेरी पीठ पर मारी .

चाची- जब देखो अफरा तफरी में रहता है , किसी दिन एक आधे की जान जरुर लेगा तू

मैं- चाची तुम को तो देख लेना चाहिए था न

चाची- हाँ गलती तो मेरी ही हैं न .

मैं- मेरी प्यारी चाची , तुम्हारी गलती कैसे हो सकती है . मैं आगे से ध्यान रखूँगा अभी गुस्सा न करो. इतने खूबसूरत चेहरे पर गुस्से की लाली अच्छी नहीं लगती .

मैंने चाची को मस्का मारा तो चाची हंस पड़ी .

चाची- बाते बनाना कोई तुझसे सीखे . दो दिन से कहा गायब था तू .

मैं- बस यूँ ही

चाची- कोई न बच्चू ये दिन है तेरे

मैं- चाची मैं बाद में मिलता हूँ आपसे

मैं सीधा मंगू के घर गया और दरवाजे पर ही उसकी बहन चंपा मिल गयी .

मैं- मंगू कहा है

चंपा- जब देखो मंगू, मंगू करते रहते हो इस घर में और कोई भी रहता है

मैं- तुझसे कितनी बार कहा है की मेरे साथ ये बाते मत किया कर .

चंपा- तो कैसी बाते करू तुम ही बताओ फिर.

मैं- चंपा. मंगू कहा है

चंपा- अन्दर है मिल लो

मैं सीधा मंगू के कमरे में गया पर वो वहां नहीं था मैं पलट ही रहा था की तभी चंपा आकर मुझसे लिपट गयी. तो ये इसकी चाल थी मंगू घर पर था ही नहीं . मैंने झटके से उसे दूर किया

मैं- चंपा हम दोनों को अपनी अपनी हदों में रहना चाहिए. आखिर तू समझती क्यों नहीं .

चंपा- आधा गाँव मेरी जवानी पर फ़िदा है पर मैं तुझ पर फ़िदा हूँ और तू है की मेरी तरफ देखता भी नहीं . ये मेरे रसीले होंठ तड़प रहे है की कब तू इनका रस निचोड़ ले. ये मेरा हुस्न बेताब है तेरे आगोश में पिघलने को .

मैं- खुद पर काबू रख , थोड़े दिन में तेरा ब्याह हो ही जायेगा फिर अपने पति को जी भर कर इस जवानी का रस पिलाना

चंपा- तू बस एक बार कह अभी तुझे अपना पति मान कर सब कुछ अर्पण कर दूंगी.

चंपा मेरे पास आई और मेरे गालो को चूम लिया .

मैं- तू समझती क्यों नहीं . मंगू भाई जैसा है मेरा. मैं तुझे हमेशा पवित्र नजरो से देखता हूँ . तेरे साथ सोकर मंगू की पीठ में छुरा मारा तो दोस्ती बदनाम होगी. मैं तेरी बहुत इज्जत करता हूँ चंपा क्योंकि तेरा मन साफ़ है पर तू मुझे मजबूर मत कर .

चंपा- और मेरे मन का क्या . इस दिल का क्या कसूर है जो ये तेरे लिए ही पागल है .

मैं-दिल तो पागल ही होता है .तू तो पागल मत बन . जल्दी ही तेरा ब्याह होगा , हंसी-खुशी तेरी डोली उठेगी. एक बार तेरा घर बस जायेगा तो फिर ये सब बेमानी तेरा पति तुझे इतना सुख देगा की तू सुख की बारिश में भीग जाएगी. मैं जानता हूँ की तेरे मन में ये हवस नहीं है वर्ना गाँव में और भी लड़के है . इसलिए ही तेरा इतना मान है मुझे .

मैंने चंपा के माथे को चूमा और उसे गले से लगा लिया.

मैं- अब तो बता दे कहा है मंगू

चंपा- खेत में गया है माँ बाबा संग.

खेत में जाने से पहले मैं वैध जी के घर गया हरिया को देखने . उसकी हालत में कोई खास सुधार नहीं था , बदन पीला पड़ा था जिससे की खून की कमी हो गई हो उसे. बार बार गर्दन को झटक रहा था , हाथो से अजीब अजीब इशारे कर रहा था .मैंने हरिया के परिवार वालो को देखा जो बस रोये जा रहे थे उसकी हालत को देख कर.

मैं- वैध जी क्या लगता है आपको

वैध- शहर में बड़े डॉक्टर को दिखाना चाहिए , खून की कमी लगातार हो रही है , आँखे तक पीली पड़ गयी है.

मैं- तो देर किस बात की ले चलते है इसे शहर

वैध- इसके परिवार के पास इतने पैसे नहीं है

मैं- तो क्या पैसो के पीछे इसे मरने देंगे. आप इसे लेकर अभी के अभी शहर पहुँचिये . मैं पैसे लेकर आता हूँ .

मैंने घर जाकर भाभी को बताया की हरिया को एडमिट करवाना है और पैसे चाहिए . भाभी ने तुरंत मेरी मदद की. शाम तक मैं और मंगू शहर के हॉस्पिटल में पहुँच गए. मालूम हुआ की हरिया को खून चढ़ाया गया है . बुखार भी थोडा काबू में है . पर बड़े डॉक्टर भी बता नहीं पा रहे थे की उसे हुआ क्या है .

चाय की टापरी पर बैठे हुए मैं गहरी सोच में डूबा था .

मैं- यार मंगू, जंगल में क्या हुआ इसके साथ . अगर किसी ने लूट खसूट की होती तो घोड़े भी ले जाता . बहनचोद मामला समझ नहीं आ रहा .

मंगू- भूत-प्रेत देख लिया हो हरिया ने शायद

मैं मंगू की बात को झुठला नहीं सकता था बचपन से हम सुनते आये थे की जंगल में ये है वो है एक तय समय के बाद गाँव वाले जंगल की तरफ रुख करते भी नहीं थे.

मंगू- देख भाई, अपन इसके लिए जितना कर रहे है कोई नहीं करता. ये तो इसकी किस्मत थी की हम को मिला ये वर्ना क्या मालूम इसकी लाश ही मिलती

मैं- यही तो बात है की ये हम को मिला मंगू. अब इसको बचाने की जिम्मेदारी अपनी है

तभी मुझे जिम्मेदारी से याद आया की आज रात चाची के साथ खेतो पर जाना है

मैं- मंगू साइकिल उठा , अभी वापिस चलना होगा हमें

मैं हरिया की पत्नी से मिलकर आया उसे आश्वश्त किया की हम आते रहेंगे उसे कुछ पैसे दिए और फिर सांझ ढलते गाँव के लिए चल पड़े. गाँव हमारा कोई बारह कोस पड़ता है शहर से. और सर्दी के मौसम में अँधेरा तो पूछो ही मत कब हो जाता है फिर भी हम दोनों चल दिए.


सीटी बजाते हुए, गाने गाते हुए हम अपनी मस्ती में चले जा रहे थे पर हमें कहाँ मालूम था की मंजिल कितनी दूर है ............
Awesome update
 
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rangeen londa

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वापसी में मैं जंगल में रुक कर उस जगह की छानबीन करना चाहता था पर मंगू साथ था तो ये विचार त्याग दिया और घर आ गया .मैंने जल्दी से कपडे बदले और बाहर जा ही रहा था की भाभी की आवाज ने मेरे कदम रोक लिए.

भाभी- खाना खाए बिना ही जा रहे हो .

मैं- देर हो रही है भाभी , आज खेतो पर नहीं गया तो भैया की डांट खानी पड़ेगी.

भाभी- इसलिए कह रही हूँ की खाना खाकर जाओ. डांट से भला पेट थोड़ी भरता है .

भाभी ने खाना परोसा और मेरे सामने ही बैठ गयी.

भाभी- कुछ परेशान लगते हो

मैं- नहीं भाभी सब ठीक है

मैंने निवाला मुह में डालते हुए कहा . भाभी की नजरे मेरे चेहरे पर ही जमी थी .

मैं- अब यूँ न देखो सरकार

भाभी- तुम भी हमसे न छिपाओ दिल के राज

मैं- सब्जी अच्छी बनी है आज

भाभी- खाना तो रोज ही ऐसा बनता है , तुम बात न बदलो

मैं- कोई बात हो तो बताओ

इस से पहले की भाभी कुछ और कहती चाची अन्दर आ गयी .

भाभी- चाची आपको भी खाना परोस दू

चाची- नहीं बहुरानी, मैंने शाम को ही खा लिया था अब भूख नहीं है . वैसे मुझे उम्मीद नहीं थी की ये समय पर मिल जायेगा.

मैं- क्या चाची . आप भी ऐसा कह रही हो

चाची- जल्दी से खाना खा ले. खेतो पर समय से पहुँच जाए तो ठीक रहेगा.

खाने के बाद मैंने गर्म कम्बल लपेटा और अपनी साइकिल उठा ली .

चाची- न बाबा न बिलकुल नहीं मैं इस पर नै बैठूंगी पिछली बार तूने मुझे गिरा दिया कितने दिन कमर में दर्द रहा था .

भाभी- गाड़ी ले जाओ देवर जी .

मैं- अपने लिए तो यही ठीक है भाभी , और चाची वो मेरी गलती से नहीं गिरी थी तुम, इतनी मोटी जो हो गयी हो मेरा क्या दोष है .

मेरी बात सुन कर भाभी हंस पड़ी .

चाची- अच्छा बच्चू, मैं तुझे मोटी लगती हूँ , इधर आ अभी बताती हूँ तुझे.

चाची ने मेरा कान खींचा. भाभी हंसती रही .

मैं- माफ़ करो चाची , और जल्दी से आओ देर हो रही है .

भाभी ने मुझे थर्मस और बैटरी दी . घर से बाहर आते हुए हम गली में मुड गए.

मैं- चाची, तुम कहाँ मेरे साथ ठण्ड में मरोगी यही रुक जाओ पानी ही तो देना है मैं दे देता हूँ .

चाची- अरे नहीं कुंवर, काम करना जरुरी है बेशक तुम सब हमेशा मेरे लिए खड़े हो पर मेरा भी कुछ फ़र्ज़ है और इसी बहाने काम में मन भी लगा रहेगा.

“आराम से बैठना ” मैंने बस इतना ही कहा

चाची के बैठने के बाद मैंने साइकिल खेतो की तरफ मोड़ दी. करीब आधा घंटा तो आराम से लग जाना ही था . मेरे दिमाग में बस हरिया ही घूम रहा था .

चाची- क्या बात है गुमसुम क्यों हो क्या हुआ है

मैं- नहीं तो चाची , ऐसी कोई बात नहीं

कुछ देर बाद गाँव पीछे रह गया . कच्ची सड़क पर झुंडो के बीच से होते हुए साइकिल चली जा रही थी . ठण्ड के मारे कभी कभी चाची मेरी पीठ को सहला देती तो बड़ी राहत मिलती . ऐसे ही हम खेतो पर पहुँच गए . मैंने साइकिल रोकी , थोड़ी दूर हमें पगडण्डी से होते हुए पैदल ही जाना था .

मैंने फटाफट से कमरा खोला . गर्मी का अहसास मेरे रोम रोम में उतर गया पर कुछ पल के लिए ही. मैंने जूते उतारे और पानी की मोटर को चालु कर दिया .

मैं- चाची तुम यही रुको . ठण्ड जयादा है

चाची - नहीं मैं भी साथ चलूंगी.

मैंने बाहर आकर लाइन बदली और खेतो में पानी छोड़ दिया सरसों की फसल में ये हमारा पहला पानी था तो पूरा लबालब करना था . ठण्ड में हाड जमा देने वाला बर्फीला पानी जब बदन पैरो पर गिरा तो कसम से जान निकली ही समझो. चाची ने अपने लहंगे को थोडा ऊँचा कर लिया जिस से उसके मांसल घुटने दिखने लगे.

घंटे भर में हमने पाला भर दिया था . लाइन बदली अभी इस तरफ पानी भरने में समय लग्न था तो मैंने कहा- थोड़ी देर आराम करते है चाची ,

चाची ने भी हां कहा और हम कुवे पर बने कमरे की तरफ चल दिए. पगडण्डी पर चलते हुए चाची के नितम्ब बड़े मादक लग रहे थे. उपर से ठण्ड का जबर मौसम .

बेशक मेरे मन में चाची के प्रति अगाध सम्मान था पर कभी कभी मैं सोचता था की मेरे नसीब में कहीं चाची के हुस्न का प्यार तो नहीं लिखा. चाची का हमेशा से ही मेरे प्रति गहरा लगाव रहा था , मुझसे खूब हंसी-मजाक करती थी कभी कभी तो वो खुल कर दोहरी बाते भी कहती थी . मैं अपनी सीमाए जानता था पर मेरे कच्छे में सर उठाता वो हथियार कहाँ इतनी समझ रखता था .

चाची- तू चल अन्दर मैं अभी आई .

मैं- कोई काम है तो मैं कर देता हूँ

चाची- ये काम मुझे ही करना होगा

मैं- कहो तो सही मुझसे

चाची- अरे पेशाब करने जा रही हूँ

चाची की हंसी मेरे दिल पर लगी .

मैंने अलाव सुलगाया और बैठ गया . कुछ देर बाद वो आई और हम चाय की चुस्किया लेने लगे.

तपती आंच में बाला की खूबसूरत लग रही थी वो .

चाची- वो हरिया को क्या हुआ है

मैं- तुम्हे किसने बताया हरिया के बारे में

चाची- मंगू की माँ मिली थी वो ही कह रही थी

मैं- शायद किसी जानवर ने काट लिया उसे

चाची- बेटा रात बेरात तुम भी मत घुमा करो, जंगल खतरनाक है . मेरा दिल घबरा गया था कहीं वो जानवर हरिया की जगह तुम पर हमला कर देता तो क्या होता.

मैं- मुझे भला क्या होगा चाची.

मैं चाची से कुछ पूछना चाहता था पर फिर नहीं पूछा. चाय पीने के बाद हम फिर से पाले को देखने लगे. ठण्ड में नंगे पाँव गीली मिटटी और ठन्डे पानी ने मेरी ले रखी थी ऐसा ही हाल चाची का था .

“आज रात में तो काम पूरा नहीं हो पायेगा.” मैंने कहा

चाची- कल फिर आना पड़ेगा फिर तो क्योंकि इधर बिजली दिन में नहीं आती .

बिजली का जैसे ही जिक्र हुआ बिजली चली गयी .

मैं- हो गया सत्यानाश

अब करने को और कुछ था नहीं . हाथ पैर धोने के बाद चाची अपनी रजाई में घुस चुकी थी. मैंने अलाव की आंच थोड़ी सी तेज की और मूतने चला गया. ठंडी में गर्म मूत की धारा अभी बड़ा सुख दे रही थी पर तभी वो हुआ जो न जाने क्यों किसलिए हुआ.

“aahhhhhhhhhhhh ” मैं बस चीखते हुए धरती पर गिर पड़ा.
लाज़वाब प्रस्तुतीकरण। बेहद उत्तेजक, रोमांचक एवं धड़कने बढ़ाने वाला अपडेट।
 
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