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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

rangeen londa

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#5

दोनों जांघो के बीच हथेलियों को दबाये मैं जमीन पर पड़ा था . जिस्म जैसे सुन्न सा हो गया था . इतना तेज दर्द मुझे आज से पहले कभी नहीं हुआ था . मेरी चीख सुन कर चाची दौड़ते हुए मेरे पास आई.

“क्या हुआ ” चाची ने घबराते हुए पूछा

मैंने चाची को मुझे उठाने का इशारा किया . चाची मुझे कमरे के अन्दर ले आई. मेरे हाथ अब तक जांघो के बीच दबे थे .

“क्या, क्या हुआ ” चाची ने फिर पूछा

मैं- मूत रहा था की तभी ऐसा लगा की किसी ने काट लिया

ये सुनकर चाची के चेहरे पर पसीने टपक पड़े.

चाची ने मेरे हाथ हटाये और बैटरी की रौशनी में देखने लगी. मुझे बड़ी शर्म आ रही थी पर मैं और करता भी तो क्या चाची ने मेरी खुली पतलून को निचे सरकाया और मेरे लिंग को अपने हाथ में ले लिया. पहली बार किसी औरत ने उसे पकड़ा था , हालात चाहे जो भी थे पर मेरे बदन में सिरहन दौड़ गयी .

चाची के गाल लाल हो गये थे . उन्होंने ऊपर से निचे तक अच्छी तरह से लिंग का अवलोकन किया और बोली- निशान तो है , हे राम, कही सांप ने तो नहीं काट लिया

चाची की बात सुनकर मेरी गांड फट गयी . सांप को भी ये ही जगह मिली थी , क्या वो जहरीला था , जहर सुन कर मैं कांपने लगा.

मैं- चाची क्या मैं मरने वाला हूँ .

चाची - कोई कीड़ा,-मकोड़ा भी हो सकता है नाजुक जगह है इसलिए तकलीफ जायदा है

चाची धीरे धीरे मेरे लिंग को सहला रही थी जिस से मुझे थोडा आराम तो मिला पर जलन उतनी ही थी . दूसरी बात ये थी की औरत के स्पर्श से वो हल्का हल्का उत्तेजित होने लगा था . हम दोनों के लिए ये बड़ी विचित्र स्तिथि थी . तभी चाची ने बैटरी बंद कर दी . शायद ये ही सही था .

कमरे में हम दोनों की भारी सांसे गूँज रही थी .

“कैसा लग रहा है ” चाची ने मेरे अन्डकोशो पर उंगलिया फेरते हुए कहा

मैं- अच्छा

चाची- कब तक ऐसे ही खड़े रहेंगे एक काम कर मेरे पास ही आजा

चाची ने मुझे अपने बिस्तर पर साथ ले लिया और रजाई ओढ़ ली. चाची के सहलाने से मुझे आराम तो मिल रहा था पर मेरे दिल में सांप वाली बात भी थी .

मैं- सच में सांप ने काट लिया होगा तो

चाची- पागल है क्या तू वो पैरो पर काटता , फिर भी तुझे ऐसा लगता है तो थोड़ी देर देख लेते है लक्षण दिखे तो तुरंत वैध जी के पास चल देंगे पर मुझे लगता है ऐसी नौबत नहीं आयेगी.

मैं- यकीन है आपको

चाची- मुझे नहीं तेरे इसको यकीन है देख कैसे तन गया है .

शुक्र है चाची ने ये बात अँधेरे में बोली थी वर्ना मैं तो पानी पानी ही हो जाता .

मैं- माफ़ी चाहूँगा चाची , मेरी वजह से आपको ये सब करना पड़ा . न जाने कैसे मिलेगी मुझे ये माफ़ी

चाची- तू मेरे लिए सबसे बढ़कर है . बस इतना ध्यान रहे ये किसी से जिक्र मत करना .

चूँकि चाची मुझसे द्विअर्थी बाते करती थी तो थोडा सहज लग रहा था वैसे मैं खुश भी था की इतनी मादक औरत मेरे लंड से खेल रही थी . पर मैं ये नहीं जानता था की इस हरकत ने चाची की टांगो के बीच में भी हलचल मचा दी थी . .

चाची का सर मेरे मुह के पास हो गया था , चाची की गर्म सांसे मेरे कानो पर पड़ रही थी .

मैं- चाची मैं अपने बिस्तर पर जाता हूँ

चाची- यहाँ कोई परेशानी है

मैं- छोटी चारपाई पर आपको मेरी वजह से परेशां होना पड़ रहा है

चाची- क्या मैंने कहा तुझसे ऐसा

चाची थोड़ी सी टेढ़ी हुई जिस से अब उसके होंठ मेरे गालों के पास आ गए थे . चाची ने बाहं आगे करके मुझे अपने से चिपका लिया . ठण्ड के इस मौसम में उस कमरे में मुझे ऐसी गर्मी मिली की फिर सुबह ही मेरी आँख खुली.

मैंने सबसे पहले मेरे लिंग को देखा जो सूज कर किसी खीरे जैसा हो गया था . उस पर जो नीली नसे उभर आई थी मेरे मन में पका शक हो गया था की कोई जहरीला तत्व ही रहा होगा. खैर मैं बाहर आया तो देखा की चाची नहीं थी. मैं थोड़ी देर अलाव के पास ही बैठा रहा. थोड़ी देर में चाची आ गयी .

अलसाई भोर में ओस से भीगी किसी फूल सी लग रही थी वो .

“ठीक हो ” चाची ने पूछा

मैंने हाँ में गर्दन हिला दी जबकि मेरी फटी पड़ी थी की ये क्या हो गया . घर आने के बाद मैं सोचता रहा की वैध को दिखाने जाऊ या नहीं. सूज कर वो इतना फूल गया था की कच्छे में उसका उभार छिपाए नहीं छिप रहा था .दोपहर में भैया ने मुझे बुलाया

भैया- सुनो, कुछ लोगो ने समय से अपना कर्जा वापिस नहीं किया है . मुझे किसी जरुरी काम से शहर जाना है तो तो तुम आज ही उनके पास जाना और बकाया ले आना

मैं- भैया मेरे बस का नहीं है ये सब करना

भैया- आज नहीं तो कल जिम्मेदारी संभालनी पड़ेगी न , थोडा थोडा काम सीखेगा

मैं- जो लोग हमसे पैसे लेते है कभी वो मज़बूरी के तहत समय पर नहीं दे पाते. उनकी मजबूर आँखे शर्मिंदगी से भरी होती है मेरा मन विचलित होता है

भैया- ये दुनिया का दस्तूर है भाई. खैर, तेरी मर्जी है तो मेरी जगह तू शहर चले जा . रात वाली गाड़ी से पिताजी आ रहे है उनको भी साथ ले आना . और हाँ मेरी गाड़ी ले जाना

मैंने हाँ में सर हिलाया . बहुत कम अवसर होते थे जब भैया अपनी गाडी को खुद से दूर करते थे . खैर मैं शाम को शहर के लिए निकल गया . ट्रेन आने में समय था तो मैं हॉस्पिटल चला गया .

मैं- डॉक्टर साहब कुछ सुधार हुआ क्या हरिया में

डॉक्टर- तीन बार इसे खून की बोतले चढ़ा चूका हूँ पर मालूम नहीं क्या बात है खून इसके शरीर में जाते ही गायब हो जाता है . पीलिया टूट नहीं रहा इसका.

मैं- आप तो बड़े डॉक्टर है आप ही समाधान कीजिये

डॉक्टर- कुछ समझ आये तो मैं करू. ऐसा ही चलता रहा तो मुश्किल होगी खून का इंतजाम भी एक तय मात्रा में ही हो सकता है .

तभी वहां पर हरिया की जोरू आ गयी और बोली- कुंवर, आप इसे छुट्टी दिला दो हम हरिया को ओझा के पास ले जायेंगे .

मैं उसकी बात सुनकर हैरान हो गया .

मैं- ओझा क्या करेगा भला

पर हरिया के घर वालो ने जिद ही पकड़ ली तो मेरे पास भी और कोई चारा नहीं था . मुझे बहुत बुरा लग रहा था पर क्या किया जाये. मैं वहां से रेलवे स्टेशन चला गया . जहाँ पर इक्का दुक्का लोग ही थे. मैंने चाय का कुल्हड़ लिया और अपनी जैकेट को ऊपर तक कर लिया . लैंप के निचे बेंच पर बैठे मैं चुसकिया लेते हुए सोच रहा था की हरिया कुछ तो कहना चाह रहा था इशारो से पर क्या........ उसने क्या देखा था . इस सवाल ने मेरे मन में इतनी हलचल मचा दी थी की मैं क्या बताऊ.


सोचते सोचते दो पल के लिए मेरी आँखे बंद हो गयी . शायद वो हलकी सी नींद का झोंका था . मेरी आँखों के सामने वो द्रश्य था जब मैं और मंगू दावत से आ रहे थे . हम दोनों ठीक उसी जगह पर पहुचे जहाँ पर हमें कोचवान की गाडी मिली थी . मैंने देखा की धुंध ने चाँद से नाता तोड़ लिया था और चांदनी रात में मैंने अलाव के पार.............................. .
Intresting update
 

rangeen londa

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धम्म से मैं बेंच से निचे गिर पड़ा था . खुमारी आँखों में चढ़ी थी जेहन में वो ही सपना था . उठ कर कपड़ो को झाड़ते हुए मैंने आस पास देखा . चाय की दुकान पर अकेला चाय वाला बैठा था , इक्का-दुक्की कुली थे और मैं. जैकेट की जेब में हाथ घुसाए मैं स्टेशन की उस बड़ी सी घडी में समय देखने गया मालूम हुआ की रेल आने में थोडा समय और था . मैंने थोडा पानी पिया और सर्दी में ऊपर से पानी पीते ही निचे से मूत का जोर हो गया .

पेशाबघर में मूतते हुए मैंने अपने लिंग को देखा जो उसी तरह सुजा हुआ था . ये एक और अजीब समस्या हो गयी थी जिसे किसी को बता न सके और छुपा भी न सके. वो मादरचोद क्या जानवर था जिसने अपना जहर इधर ही उतार दिया था .पूरा शरीर एकदम सही था पर एक ये अंग ही साला परेशां किये हुए था .

मैं वापिस से उसी बेंच पर जाकर बैठ गया और रेल का इंतजार करने लगा. सर्दी की रात भी साली इतनी लम्बी हो जाती है की क्या ही कहे. खैर जब रेल आई तो मैं डिब्बो की तरफ भागा और जल्दी ही मैंने पिताजी को उतरते देखा.

आँखों पर सुनहरी ऐनक लगाये. चेहरे पर बड़ी बड़ी मूंछे . लम्बा शरीर . गले तक का बंद कोट पहने राय बहादुर विशम्बर दयाल जंच रहे थे . मैं दौड़ कर उनके पास गया और चरणों को हाथ लगाया. संदूक उठा लिया मैंने .

जल्दी ही हम लोग गाँव के रस्ते में थे , पिताजी हमेशा की तरह खामोश थे . बस बीच बीच में हाँ-हूँ कर देते थे मेरी बातो पर . एक बार फिर हम उसी रस्ते से गुजरे जहाँ पर हमें हरिया मिला था . न जाने क्यों मेरे बदन में सिरहन सी दौड़ गयी और मैंने गाड़ी की रफ़्तार बढ़ा दी. वापिस आते आते रात आधी बीत गयी थी . पिताजी ने सबसे दुआ सलाम की और अपने कमरे में चले गए.

भाभी- खाना खाकर तुम भी आराम करो

मैं- बाकि सब लोग का खाना हुआ .

भाभी- तुम्हारे भैया अभी तक लौटे नहीं है और चाची खेतो पर गयी है .

मैं- क्या , किसके साथ

भाभी- अकेली.

मैं- पर क्यों . मजदूरो को भेज देती खुद अकेली वहां जाने की क्या जरुरत थी

भाभी- अरे इतनी फ़िक्र मत करो. तुम्हे क्या लगता है की मैं उन्हें अकेले जाने देती , चंपा साथ गयी है उनके . मैं तो बस देख रही थी की तुम्हे परिवार की चिंता है भी या बस यूँ ही करते फिरते हो .

मैं- भाभी, आज के बाद ऐसा मत कहना परिवार है तो मैं हूँ .

भाभी- अच्छा बाबा. अब कहो तो खाना परोस दू या फिर सोने ही जाना है

मैं- नहीं, मैं खेतो पर जा रहा हूँ . वहां उनको मेरी जरूरत पड़ेगी. सुबह अगर पिताजी को मालूम हुआ की वो दोनों अकेली थी तो सबसे पहले मेरी खाल ही उधेद्नी है उनको.

मैंने तुरंत साइकिल उठाई और अपना रास्ता पकड़ लिया. गुनगुनाते हुए मैं तेजी से खेतो की तरफ जा रहा था . लगता था की मुझे छोड़ कर पूरा जहाँ ही सोया हुआ था और होता भी क्यों न रात आधी से ज्यादा जो बीत गयी थी . कुछ दूर बाद बस्ती पीछे रह गयी , पथरीली कच्ची सड़क ही मेरी साथी थी पर इस घने अँधेरे में मुझसे एक गलती हो गयी थी मैं बैटरी लाना भूल गया था . वैसे तो कोई खास बात नहीं थी बस अचानक से कोई नीलगाय या जंगली सूअर सामने आ गया तो चोट लगने का खतरा था .

खैर मैं कुवे पर पहुंचा तो देखा पानी अपनी लाइन से खेत की प्यासबुझा रहा था पर चंपा और चाची दोनों नहीं थी .

“शायद कमर सीढ़ी कर रही होंगी, एक बार बता देता हूँ की मैं आ गया हूँ अगर सोयी भी होंगी तो सोने दूंगा .मैं ही लगा दूंगा पानी ” अपने आप से कहते हुए मैं कमरे के पास पंहुचा ही था की अन्दर से आती हंसी सुन कर मेरे कान चोकन्ना हो गए. इतनी रात को क्या हंसी-ठिठोली हो रही है . मैंने दरवाजा खडकाने की जगह पल्ले की झिर्री से अन्दर देखा और देखता ही रह गया .

कमरे में जलते लट्टू की पीली रौशनी में क्या गजब नजारा था चाची अपनी गदराई जांघो को खोले पड़ी थी और पूर्ण रूप से नग्न चंपा ने अपना मुह चाची की जांघो के बीच दिया हुआ था . चाची के चेहरे को मैं देख नहीं पा रहा था क्योंकि चंपा का बदन उसके ऊपर था .

पर जो चीज मैं देख पा रहा था वो भी बड़ी गजब थी . चंपा ने चुतड ऊपर को उठे हुए थे जिस से की काले बालो के बीच घिरी उसकी हलकी गुलाबी चूत मुझे अपना जलवा दिखा रही थी वो भी पूरी उत्तेजित थी क्योंकि चंपा की चूत के बाल लिस्लिसे द्रव में सने हुए थे.

“आह , धीरे कुतिया . इतना जोर से क्यों काटती है ” चाची ने चंपा को गाली दी .

चंपा- इसी में तो मजा है मेरी प्यारी .

सामने चंपा की खूबसूरत चूत होने के बावजूद मेरे मन का चोर चाची की चूत भी देखना चाहता था पर अभी उसे देखना किस्मत में नहीं था शायद.

“चंपा कहती तो सही ही है की एक बार लेकर तो देखूं उसकी ” मैंने उसके हुस्न से प्रभावित होकर मन ही मन कहा .

मेरा हाथ मेर लिंग पर चला गया जो की की फूल कर कुप्पा हो गया था . मैंने पेंट खोल कर उसे ताजी हवा का अहसास करवाया . अन्दर का बेहंद गर्म नजारा देख कर मैं बाहर की ठण्ड भूल गया था तभी चाची ने अपने पैरो में चंपा की गर्दन जकड ली और अपने कुल्हे ऊपर उठा लिए. कुछ पल बाद वो धम्म से निचे गिरी और लम्बी- लम्बी सांसे भरने लगी.

चंपा भी उठ पर चाची के पास बैठ गयी . मैंने चंपा के उन्नत उभारो को देखा जो पर्वतो की चोटियों जैसे तने हुए थे.

“”मजा आया मेरी प्यारी चंपा ने चाची से कहा

चाची- एक तू ही तो मेरा सहारा है चंपा.

चंपा- चाची तू इतनी मस्त औरत है तेरी प्यास मेरी उंगलिया और जीभ नहीं बुझा सकती तुझे तगड़े लंड की जरुरत है जो दिन रात तेरी भोसड़ी में घुसा रहे.

चाची- तुझे तो सब पता ही है चंपा. जो चल रहा है ये भी ठीक ही है,मेरी छोड़ तू बता कुंवर संग तेरा प्यार आगे बढ़ा क्या .

चंपा- कहाँ प्यारी, उसके सामने तो घाघरा खोल दू तब भी वो मेरी नहीं लेगा. कितनी ही कोशिश की है मैंने पर क्या मजाल जो वो मेरी तरफ देखे. कहता है मंगू की बहन है इसलिए नहीं करेगा.तू ही बता मंगू की बहन हूँ तो क्या चुदु नहीं . गाँव के लोंडे आगे पीछे है मेरे पर मेरी भी जिद है चुदना तो उस से ही है वर्ना भाग्य में जो है उसको तो देनी ही हैं.

चाची- वो अनोखा है .

चंपा- सो तो है .

चाची- एक बार पाने को देख आते है फिर तेरी भी आग बुझती हूँ


वो दोनों कपडे पहनने लगी. मैं वहां से हट गया और साइकिल लेकर वापिस मुड गया क्योंकि मैं उन्हें शर्मिंदा नहीं करना चाहता था पर अब घर जा नहीं सकते , यहाँ रुक नहीं सकते रात बाकी तो जाये तो कहाँ जाये. और तभी मैंने कुछ सोचा और साइकिल को पथरीली सड़क पर मोड़ दिया.... दो मोड़ मुड़ने के बाद मैंने कच्ची सड़क ले ली थोड़ी ही दूर गया था की तभी अचानक से मैंने अपने सामने .........................
Superb update
 

rangeen londa

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#7

मेरे सामने एक बड़ा सा जानवर खड़ा था जिसकी बिल्लोरी आँखे मुझे घूर रही थी . कड़ाके की ठण्ड में ऊपर से लेकर निचे तक मैंने पसीने को बहते हुए महसूस किया. सियार नहीं सियार तो नहीं था ये . उसकी ऊंचाई किसी भैंस के पाडे जितनी थी , हे भगवान् ये तो भेड़िया था . हूकते हुए वो मुझे देखे जा रहा था और मैं उसे .

एक एक पल बड़ी मुश्किल से बीत रहा था . किसी भी पल वो हमला कर सकता था मैंने अपनी साइकिल हाथो में उठा ली ताकि वो लपके तो तुरंत उस पर दे मारू. पर ऐसा करने की नौबत नहीं आई . वो मुड़ा और जंगल की तरफ भाग गया. मैंने चैन की सांस ली.

सांसो को दुरुस्त करने के बाद मैं उस स्थान पर पहुँच गया जहाँ हमें हरिया मिला था . धरती पर पड़े पत्ते मेरे जूतों के निचे आकर चुर्र चुर्र कर रहे थे . चाँद की रौशनी में मैं घूम घूम कर कुछ ऐसा तलाश रहा था जिस से मालूम हो की हरिया के साथ हुआ क्या था . घूमते घूमते मैं वन देवता के पत्थर के पास तक पहुँच गया . ये एक बड़ा सा पत्थर था जिसे वन देवता के रूप में गाँव वाले पूजते थे, ये एक तरह की हद थी इंसानों के , इसके आगे गाँव वाले कभी भी जंगल में नहीं जाते थे . क्योंकि अन्दर के जंगल में जानवरों का राज था , एक तरह की सीमा थी ये इंसानों और जानवरों की .



कच्ची सड़क से मैं करीब तीन कोस अंदर आ गया था पर कुछ भी ऐसा नहीं मिला. हार कर मैंने ये सोचा की शायद हरिया ने भी उसी भेडिये या वैसे ही किसी जानवर का खौफ खाया हो .दिल को बस इसी ख्याल से तसल्ली दी जा सकती थी .



“देवर जी , देवर जी उठो जल्दी ” भाभी ने लगभग मुझे बिस्तर से घसीट ही लिया था .

“आन्ह क्या हुआ भाभी सोने दो न ” मैंने बिना आँखों को खोले ही प्रतिकार किया

भाभी- हरिया की मौत हो गयी है

ये सुनते ही मेरी नींद तुरंत गायब हो गयी .

“कब कैसे ” मैंने एक ही सांस में पूछ डाला

भाभी- कल रात , प्राण त्याग दिए उसने

जब तक मैं हरिया के घर पहुंचा लगभग गाँव जमा हो चूका था . रोना पीटना मचा था . मेरा मन द्रवित हो गया . मुझे देख कर मंगू मेरे पास आया.

मैं- मंगू इसके कातिल को मैं सजा दूंगा जरुर

मंगू- दिल पर मत ले भाई, ये तो किस्मत थी ये हमें मिल गया वर्ना जंगल में लाश कितने दिन पड़ी रहती कब जानवर खा जाते किसे मालूम होता.

मैं- एक इन्सान की जान गयी है मंगू और तू ऐसी बाते कर रहा है

मंगू- ऐसा पहली बार तो नहीं हुआ है भाई. गाय-बैल. बकरिया और कभी कभी इन्सान भी जंगल में गायब होते रहते है . कभी गाँव वाले जानवरों का शिकार करते है कभी जानवर गाँव वालो का .

एक हद तक मंगू की बात सही थी पर मुझे बस एक बात खटक रही थी , नजाकत देखते हुए मैंने चुप रहना मुनासिब समझा.दोपहर तक उसको चिता दे दी गयी थी . नहा धोकर मैं मंगू के घर गया तो एक बार फिर से चंपा से मुलाकात हो गयी . गहरे गुलाबी रंग के सूट में ताजा गुलाब लग रही थी वो . मुझे देख कर वो भी मुस्कुराई . अचानक से कल रात की बात मुझे याद आ गयी .

चंपा- सही समय पर आये हो . मैं चाय बना ही रही थी .

मैं- चाय के साथ कुछ खाने को भी ले आ और मंगू कहा है

चंपा- चक्की पे गया है आता ही होगा.

मैं चारपाई पर लेट गया . आँखों में नींद की खुमारी थी . तुरंत ही चंपा चाय और मट्ठी ले आई.

चंपा- लगता है रात को नींद नहीं आई.

मैं- लगता है की किसी ने मेरी नींद चुरा ली है

चंपा- किसकी इतनी हिम्मत हो गई जो मेरे होते हुए ये कर सके , नाम बता उसका , खबर लेती हूँ

मैं- अरे तू भी न क्या से क्या सोच लेती है . मैं बस सो नहीं पाया था टेंशन के मारे

चंपा- कहो तो टेंशन दूर कर दू, मौका भी है

मैं- तुझे बस ये सब ही सूझता है क्या

चंपा- देख कबीर, बचपन से तू साथ रहा है तू चाहे मेरे बारे में कुछ भी सोच मैंने तुझे अपना माना है . तू चाहे तो मुझसे अपनी परेशानी बता सकता है

मैंने चाय की चुस्की ली . उसे देखते हुए मुझे नंगी चंपा ही दिख रही थी .उसने भी मेरी नजरो को ताड़ लिया.

चंपा- आजत तेरी नजरे कुछ और देख रही है मुझमे.

मैं- छोड़, ये बता कल खेत में पानी पूरा हो गया .

चंपा-लगभग. एक खेत बचा है बस . आज हो जायेगा

मैं- तू आराम करना आज मैं देख लूँगा वैसे भी कल थक गयी होगी तू.

चंपा- हाँ थक तो गयी ऊपर से कड़ाके की ठण्ड पर काम भी जरुरी है .

मैं- सुन चंपा तू आज भी चाची के साथ खेत पर जाना मुझे कुछ जरुरी काम है मैं घर से ये कहके निकलूंगा की मैं जा रहा हूँ चाची के साथ पर जाएगी तू. समझी न

चंपा - पर तू कहाँ जायेगा.

मैं- भरोसा है मुझ पर

चंपा- खुदसे ज्यादा

मैं- तो फिर इतना काम करना मेरा और हाँ याद से कमरे का बल्ब बुझा लेना ...

जैसे ही मैंने ये बात कही चंपा के चेहरे पर हवाइया उड़ने लगी. मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा और बोला- मुझे भरोसा है तुझ पर . पर कल जो मैंने देखा कोई और नहीं देखे . तुम दोनों मान हो मेरा.

चंपा- तू कल था वहां पर फिर आवाज क्यों नहीं दी.

मैं- फिर वो जरुरी काम कैसे करती तुम . वैसे एक बात कहूँ हद से ज्यादा खूब सूरत है तू . तेरा पति किस्मत वाला ही होगा.

बुरी तरह से शमाते हुए चंपा मेरे सीने से लग गयी . काफी देर तक मंगू नहीं लौटा तो मैं वापिस घर चला गया . वहां जाकर देखा की पिताजी कुछ गाँव वालो के साथ बाते कर रहे थे . मैं सीधा भाभी के पास चला गया .

भाभी- कुछ पता चला

मैं- अभी नहीं पर जल्दी ही मालूम कर लूँगा.

भाभी- आराम कर लो थोडा .

हम बाते कर ही रहे थे की तभी चाची आ गयी मुझे देखते ही बोली- कल कहाँ थे तुम .

“इसको भाभी के सामने ही पूछनी थी ये बात ” मैंने मन ही मन कहा

मैं- पिताजी को लाने के बाद खेत पर पहुँच तो गया था चाची

चाची- तो फिर मुझे याद क्यों नहीं है

मैं- उम्र हो गयी है तुम्हारी चाची , भाभी चाची के बादाम बढ़ा दो अरे चाची जब तुम और चंपा आराम कर रही थी तभी तो आया था मैं .

मेरा इतना कहते ही चाची की गांड फट गयी और भाभी शंकित निगाहों से मुझे देखने लगी.
Bahut hi mast update
 

rangeen londa

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#8

चाची ने तुरंत ही बात को संभाल लिया और बोली- मैं भी ना, आजकल इस सर दर्द के मारे कुछ ध्यान रहता ही नहीं .

भाभी- आपको सर दर्द है आपने बताया भी नहीं . मैं अभी डॉक्टर को बुलवा देती हूँ

चाची- नहीं बहु, तू ही सर दबा देना तेरे हाथो से ही आराम आ जायेगा मुझे .

भाभी- जी चाची . फ़िलहाल मैं चाय बनाने जा रही हूँ कहो तो आपके लिए भी बना लाऊ

चाची- ये भी कोई पूछने की बात है

भाभी रसोई में चली गे रह गए हम दोनों. चाची की नजरे झुकी थी . मैं उठ कर अपने चोबारे में चला गया कुछ देर बाद चाय लेकर चाची भी आ गयी . मैंने कप लिया और खिड़की खोल दी. इस खिड़की से डूबते सूरज को देखने का भी अपना ही सुख था .

चाची की नजरे मुझ पर जमी हुई थी वो बात तो करना चाहती थी पर शायद संकोच कर रही थी .

प्रेम रोग का भँवरे ने खिलाया फूल गाना धीमी आवाज में मेरे रेडियो पर बज रहा था.

चाची- आज चलोगे कुवे पर

मैं- नहीं , मैंने चंपा को बोल दिया है मुझे एक जरुरी काम है

चाची- ऐसे क्या जरुरी काम है तुम्हारे जो रातो को ही होते है . मैं जानना चाहती हूँ .

मैंने एक पल चाची को देखा और बोला- मुझे हरिया के कातिल को तलाश है

चाचीने अपना कप टेबल पर रखा और बोली- तुझे कोई जरुरत नहीं है , उसके घरवाले अपने आप तलाश लेंगे . तेरे सिवा इस गाँव में किसी को भी उसकी परवाह नहीं है . जितना तेरे बस में था तूने उसकी मदद की पर किसी भी बात को दिल पर लेना ठीक नहीं है. मैंने कह दिया है तो कह दिया है .

मैं- जंगल में क्या है , क्या सच में भूत-प्रेत है वहां पर

चाची- तो तू कल रात को जंगल में गया था . देख कबीर ये ठीक नहीं है . तू वादा कर मुझसे ऐसे रातो में तू जंगल में नहीं भटकेगा

मैं - ठीक है आप कहती है तो नहीं जाता .

हम बाते कर ही रहे थे की तभी निचे से मंगू की आवाज आई तो मैं उठ पर निचे चला गया .

मैं- चूतिये, कितनी राह देखि तेरी चक्की का नाम लेकर कहाँ गया था तू .

मंगू- ऐसी खबर लाया हूँ की दिल खुश हो जायेगा

मैं- जल्दी बता फिर .

मंगू- पड़ोस के गाँव में नाचने वाले आये है . तगड़ा प्रोग्राम होगा आज .अपन भी चलेंगे आज रात

मैं- प्रोग्राम तो ठीक है पर पिताजी को मालूम हो गया की मुजरा देखने गए है तो हमें ही मोर बना देंगे.

मंगू- कोई बहाना बना लेना भाई . कितने दिनों में तो वो लोग आये है याद है न पिछली बार कितना मजा आया था .

मैं- ठीक है ,घंटे भर बाद तू गाँव के अड्डे पर मिलना .

कुछ देर बाद भैया आ गए तो मैं उनके पास गया.

भाई- कैसा है छोटे

मैं- बढ़िया भाई .

भैया - चाची के खेतो का काम पूरा हुआ

मैं- थोडा सा बाकी है आज रह जायेगा.

भाई- तु सोचता होगा भाई ने इस कड़ाके की ठण्ड में मजदुर बनाया हुआ है पर छोटे चाची का हमारे सिवा और कौन है . ये अपनापन ही परिवार की खुशहाली की चाबी है भाई. चाची के हम दोनों सगे बेटे ही है

मैं- जी भैया.

भाई- काफी दिन हो गए जोर आजमाइश किये . क्या बोलता है करे दो दो हाथ

मैं- रहने दो भाई पिछली बार के जैसे फिर हार जाओगे.

भाई- अरे वो तो तेरा दिल रखने के लिए मैं हार गया था की छोटे का दिल न टूट जाये.

मैं- वाह भाई गजब बात कही . देखते है फिर किसका जोर बढ़ा है किसका कम हुआ है .

मैं वहां से उठ कर चला ही था की भाई ने मुझे रोका- छोटे रुक जरा .

मैं- जी भाई.

भैया ने जेब से नोटों की गद्दी निकाली और मुझे देते हुए बोले- पडोसी गाँव में नाचने वाले आये है . देख आना प्रोग्राम और हाँ पिताजी से छुप कर जाना उन्हें मालूम होगा तो तेरे साथ साथ मुझे भी डांट लगायेंगे

न जाने कैसे भैया को हमेशा मेरे मन की बात मालूम हो जाती थी .

मैं- मिलते है फिर अखाड़े में

भैया - बिलकुल

जैसे ही पिताजी सोये मैं तुरंत निकल लिया अड्डे की तरफ जहाँ मंगू तैयार था .आधे घंटे बाद मैं और मंगू टेंट में बैठे रंगारंग प्रस्तुति का आनंद उठा रहे थे . रंगीले गानों पर मचलते हुस्न ने समां बाँधा हुआ था , क्या बूढ़े क्या जवान सब लोग आँखों से गर्म मांस का सेवन कर रहे थे . जब वो नाचने वाली अपनी छाती को लहराती तो जो सीटी पे सीटी बजती कसम से मजा ही तो आ जाता.

मंगू- ताड़ी का गिलास लाऊ

मैं- अरे नहीं यार. किसी को मालूम हुआ तो बेइज्जती सी हो जाएगी.

मंगू- किसी को कैसे मालूम होगा एक एक गिलास बस

मैं- ठीक है भाई आने दे फिर.

बात एक की हुई थी पर मैंने और मंगू ने दो दो गिलास टिका लिए .जोश जोश में मैंने दो चार नोट स्टेज पर उड़ा दिए. नाचने वाली ने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींच लिया . सेब से लाल गाल उसके होंठो पर गहराई तक उतरी हुई लिपस्टिक और ठंडी में ताड़ी की गर्मी . कुछ देर उसके साथ नाचने के बाद मैंने उसके बलाउज में दो नोट लगाये और बोला- मेरे दोस्त के साथ नाच ले थोड़ी देर.

मैंने मंगू की तरफ इशारा किया . नाचने वाली मंगू के पास गयी और उसके संग लहराने लगी. फिर हम वापिस टेंट में बैठ गए. दुसरे गाँव में ज्यादा भोकाल मचाना भी ठीक नहीं रहता. मेरा दिल तो कर रहा था की इनको न्योता देकर हमारे गावं में इनका प्रोग्राम करवाया जाये पर पिताजी को इन चुतियापो से नफरत थी तो विचार त्याग देना ही उचित था .

वापसी में चलने से पहले हमने एक एक गिलास और खींच मारा ताड़ी का . अपनी मस्ती में हम लोग वापिस चले आ रहे थे . जैसे ही हम कच्चे रस्ते पर आये ठंडी हवा के झोंको ने ताड़ी का सुरूर बनाना शुरू कर दिया .

मैं- मंगू भोसड़ी के साइकिल ठीक से चला गिरा मत देना .

मंगू जो की झूम गया था .- हम क्या भाई ये दुनिया ही भोसड़ी की है , सब लोग भोसड़े से ही तो निकलते है.

“”वाह, मंगू मेरे दोस्त बड़ी गहरी बात कही तूने . ये दुनिया ही भोसड़ी की है ” मैंने कहा.

अपनी तारीफ सुन कर मंगू हंसने लगा. दिल साला अजीब ही था उस रात में. हम दोनों अपने किस्से याद करते हुए हंस रहे थे कैसे हमने शहद चुराते समय लकडियो को आग लगा दी थी . कैसे जोहड़ में नहाते थे .और भी ऐसे ही छोटे मोटे किस्से. हंसी ठिठोली करते हुए हम दोनों उसी जगह पर पहुँच गए जहाँ हमें हरिया कोचवान की गाडी मिली थी .

मैं- मंगू साइकिल रोक

मंगू- क्या हुआ भाई. मूतना है क्या एक काम कर चलती साइकिल से ही मूत भाई आज .

मैं- साइकिल रोक मंगू.

नसे में लडखडाते हुए मैं उसी जगह पर पंहुचा जहाँ उस अलाव के पास हरिया मंगू से आकर लिपट गया था .

“कितना मुतेगा भाई अभी , क्या तालाब बनाएगा ” ऐसा कह कर मंगू जोर जोर से हंसने लगा.

“मैं जानता हूँ तुम यही कहीं हो . मैं जानता हूँ की उस रात भी तुम यही कहीं थे. हरिया तुम्हारी वजह से ही मारा गया . ” मैंने हवाओ से कहा

“भाई आ भी जा अब तालाब को समुदंर बनाएगा क्या ” मंगू ने फिर से मुझे आवाज दी.

मैं मंगू की तरफ चल दिया . हमारी साइकिल थोड़ी सी ही आगे चली थी की एक चीख ने हमारी पतलूने गीली कर दी.

“aahhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhh ” जंगल की ख़ामोशी को वो चीख चीर रही थी .
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rangeen londa

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#9

ताड़ी के नशे में मेरे पैर डगमगा रहे थे फिर भी मैं उस आवाज की तरफ भागा. कभी लगता की आवाज पास से आ रही थी कभी लगता की कराहे दूर है. और जब मैं गंतव्य तक पहुंचा तो मेरी रूह तक कांप गयी .जमीन पर एक बुजुर्ग पड़ा था खून से लथपथ जिसका पेट फटा हुआ था उसकी अंतड़िया बाहर को निकली हुई थी .

“किसने, किसने किया बाबा ये ” मैंने उसे सँभालते हुए पूछा

“वो, वो ”.उसने सामने की दिशा में उंगलियों से इशारा किया और उबकाई लेते हुए प्राण त्याग दिए. आँखों में बसा सुरूर एक झटके में गायब हो गया . ये दूसरी बार था जब जंगल में किसी पर हमला हुआ था और दोनों बार मैं वहां पर मोजूद था . ये कैसा इत्तेफाक था .



ये लाश मेरे पल्ले पड़ गयी थी . मैं तो जानता भी नहीं था ये कौन था . मैं कहाँ जाता किस से कहता की भाई, तुम्हारा बुजुर्ग जंगल में मर गया है . मेरा दिल तो नहीं मान रहा था पर हालात देखते हुए मैंने उस लाश को वहीँ पर छोड़ दिया . और वापिस उस तरफ को चल दिया जो मेरे गाँव का रास्ता था .

मैंने पाया की मंगू साइकिल के पास बैठे बैठे ऊंघ रहा था . मैंने उसे जगाया और हम गाँव आ गए. प्रोग्राम देखने का सारा उत्साह ख़ाक हो चूका था . पर मैंने सोच लिया की जंगल में क्या है ये हर हाल में मालूम करके ही रहूँगा.



“कबीर उठ, कितना सोयेगा तू ”

बोझिल आँखों ने खुलते ही देखा की चाची के ब्लाउज से झांकती चुचिया मेरे चेहरे पर लटक रही है . एक पल को लगा की ये सब सपना है . पर तभी चाची ने मुझे हिला कर जगा दिया .

मैं- उठ तो रहा हूँ

चाची-तू यहाँ सोया पड़ा है गाँव में गजब हो गया .

मैं एक दम से उठ खड़ा हुआ .

मैं- कौन सी आग लग गयी गाँव में . कल तक तो सब ठीक ही था न

चाची- लखेरो की जो औरत भाग गयी थी न उसे वापिस ले आये है जिसके साथ गयी थी उसे भी . परस में पंचायत बैठने वाली है .

मैं- इसमें पंचायत की क्या जरुरत उस औरत की मर्जी जिसके साथ भी रहे .

चाची- मुझे नहीं मालूम पुरे गाँव को वहां पर बुलाया गया है तू भी चल

मैं भी पंचायत में पहुँच गया . मैंने देखा की जो औरत घर से भागी थी उसे और उसके साथी को एक खम्बे से बांधा हुआ था . दोनों की हालत देख कर साफ पता चल रहा था की खूब मार-पिटाई की गयी थी उनके साथ . कुछ देर में गाँव के मोजिजलोग अपनी अपनी कुर्सियों पर बैठ गए गाँव वाले धरती पर बैठ गए. मैंने पिताजी को देखा जो अपनी सुनहरी ऐनक लगाये इधर उधर देख रहे थे .

“गाँव वालो जैसा की आप सब जानते है ये औरत लाली कुछ दिनों पहले अपने प्रेमी के साथ भाग गयी थी , ये जानते हुए भी की ये शादी-शुदा है इसका मर्द है फिर भी इसने दुसरे आदमी संग रिश्ता किया. गलत काम किया . गाँव-समाज अपने परिवार की बेइज्जती की .बहुत कोशिश करने के बाद आखिर हमने इनको पकड़ लिया और यहाँ ले आये है ताकि इंसाफ किया जा सके. पंचायत ने निर्णय लिया है की इनको इसी नीम के निचे फांसी दी जाये ताकि गाँव में फिर को भी ऐसा करने की सोचे भी न. आप सबको पंचायत का फैसला मंजूर है न , जिसको कुछ कहना है वो अपना हाथ उठाये ” पंच ने कहा.

मैंने सर हिला कर चारो तरफ देखा पुरे गाँव में एक भी आदमी ने अपना हाथ नहीं उठाया जबकि दो लोगो को फांसी देने की बात कही जा रही थी . मुझे न जाने क्या हुआ मैंने अपना हाथ उठाया और पुरे गाँव की नजरे मुझ पर जम गयी .

“मुझे कुछ कहना है ” मैंने कहा की चाची ने मेरा हाथ पकड़ लिया और चुपचाप बैठने का इशारा किया पर मैंने उसका हाथ झटक दिया और उठ कर पंचायत के पास गया .

मैं- मुझे आपत्ति है इस निर्णय पर

पंच- तुम अभी छोटे हो , दुनियादारी का ज्ञान नहीं है तुम्हे. ये गंभीर मुद्दे है .

मैं- दो लोगो को मारने की बात हो रही है ये क्या कम गंभीरता की बात है . पंचायत को किसी के प्राण लेने का कोई हक़ नहीं है, जन्म मृत्य इश्वर के हाथ में है . बेशक इस लाली ने घर से भागने की गलती की है पर इसकी सजा मौत नहीं हो सकती.

पंच- और इसके कारण रामू की इतनी बेइज्जती हुई. इसको कितने ताने सुनने पड़े की नामर्द है इसलिए भाग गयी. जब भी ये घर से बाहर निकलता लोग हँसते इसे देख कर . इसका जीना दुश्वार हो गया की लुगाई भाग गयी .

मैं- किस बेइज्जती की बात करते है आप पंच साहब, और कौन कर रहा था ये बेइज्जती . किसके ताने थे वो . आपके मेरे हम सब के , ये तमाम गाँव वाले जो आज चुपचाप बैठे है ये लोग ही तो रहे होंगे न ये सब ताने मारने वाले. इसके दोस्त, इसके पडोसी. हमारा ये समाज. तो फिर इन सब को भी कोई न कोई सजा तो मिलनी ही चाहिए न .



पंच- कबीर. मर्यादा की लकीर के किनारे पर खड़े हो तुम पंचायत का अपमान करने की जुर्रत न करो.

मैं- पंचायत ने इस निर्णय के खिलाफ आपत्ति मांगी थी , अब अप्त्त्ती सुनने में पंचायत को संकोच क्यों हो रहा है. क्या पंचायत में मन में कोई चोर है .

पंच- पंचायत यहाँ समाज के हित में निर्णय लेने को है .

मैं- तो मैं इस पंचायत और गाँव से कहना चाहता हूँ की लाली को इस लिए फांसी नहीं दी जा सकती की उसके भागने पर रामू को नामर्दी और बेइज्जती के ताने सुनने पड़े. असल में रामू नामर्द है .

उन्ह उन्ह पिताजी ने अपना गला खंखारा और ऐनक को उतार लिया ये उनका इशारा था की मैं चुप रहूँ पर अगर उस दिन चुप रहता तो फिर अपनी नजरो से गिर जाता.

मैं- मर्दानगी ये नहीं होती की औरत को जब दिल किया अपने निचे ले लिया . मर्दानगी होती है औरत का सम्मान करना. औरत जो अपना सब कुछ छोड़ कर आती है ताकि हमारे घर को घर बना सके,क्या नहीं करती वो परिवार के लिए. ये रामू जब देखो दारू पिए पड़ा रहता है . कमाई करता नहीं . घर-गुजारा कैसे होगा. तीसरे दिन ये लाली को पीटता . तब कोई पंचायत का सदस्य लाली के लिए निर्णय करने नहीं आया.

पंच- रामू की लुगाई है वो चाहे जैसे रखे उसका हक़ है .

मैं- लुगाई है गुलाम नहीं . एक सम्मानजनक जीवन जीने का लाली का हक़ भी उतना ही है जितना की आप सब का . मैं मानता हूँ की घर से भागना अनुचित है उसके लिए लाली को सजा दी जाये पर किसीको भी झूठी शान के लिए मार देना अन्याय है .



पंच- पंचायत ने निर्णय कर दिया है समाज के हितो की रक्षा के लिए ये फैसला ऐतिहासिक होगा. आने वाली पीढियों के लिए मिसाल होगी.

मैं-मैं नहीं मानता इस निर्णय को

पंच- राय साहब आपका बेटा पंचायत का अपमान कर रहा है आप समझिए इसे.

पिताजी अपनी कुर्सी से उठे और मुझसे बोले- घर जाओ अभी के अभी

मैं- जब तक मेरी आपत्ति मानी नहीं जाती मैं हिलूंगा भी नहीं यहाँ से .

जिन्दगी में पहली बार ऐसा हुआ था की राय साहब की बात किसी ने काटी हो. पुरे गाँव के सामने खुद राय साहब ने भी नहीं सोचा होगा की उनका खुद का बेटा उनके सामने ऐसे खड़ा होगा. ..........
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ये भोसड़ी वाला मंगू ५०० पेज तक हमारी छाती पर बैठ कर मुंग की दाल का हलवा बनाता रहा और हम दर्द व् जलन से चीखते चिल्लाते रहे पर फौजी भाई जी ने बहुत जल्दी ही इसका अंत कर दिया हमारे ज़ख्मो की मरहम पट्टी तो रह ही गयी
 

rangeen londa

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#10

“इस गाँव का हर घर मेरा है , हर आदमी मेरा भाई-बेटा है . हर औरत मेरी बहन-बेटी है . इस गाँव की खुशहाली के लिए हम सब ने मिलकर कुछ नियम बनाये है ताकि भाई-चारा बना रहे. इस गाँव में बहुत सी जाती के लोग बसे हुए है पर आज तक ऐसा कुछ नहीं हुआ जिससे किसी भी गाँव वाले का सर झुका हो. इस प्रेम प्यार का एकमात्र कारण है हमारे उसूल जिन पर हम सब चलते आ रहे है . लाली हम में से एक थी पर उसने पर पुरुष का साथ किया जो की अनुचित है . चूँकि पंचायत के माननीय सदस्यों ने निर्णय कर ही लिया तो हम सब को निर्णय का उच्चित सम्मान करना चाहिए ” पिताजी ने कहा .

पिताजी की बात सुनकर मुझ बहुत गहरा धक्का लगा राय चंद जी एक अनुचित काम को समर्थन दे रहे थे .

“पंचायत के निर्णय को मैं अपनी जुती की नोक पर रखता हूँ , मैं देखता हूँ कौन हाथ लगाता है मेरे होते हुए इन दोनों को ” मैंने गुस्से से कहा .

“तुम अपनी सीमा लांघ रहे हो कबीर ” पिताजी की आवाज में तल्खी थी.

“कुंवर, आपको हमारे लिए इन लोगो से झगडा करने की जरुरत नहीं है . आपने हमें समझा यही बड़ी बात है , ये झूठी शान में जीने वाले लोग कभी प्रेम को नहीं समझ सकते. हमारी नियति में जो है वो हमें मिलेगा.” लाली ने अपने हाथ मेरे सामने जोड़ते हुए कहा .

मैं- जीवन इश्वर का अनमोल तोहफा है और किसी को भी हक़ नहीं उसे नष्ट करने का सिवाय इश्वर के.

इस से पहले की मेरी बात ख़तम होती पिताजी का थप्पड़ मेरे गाल पर पड़ चूका था . जिस पिता ने कभी ऊँगली तक मेरी तरफ नहीं की थी उसने पुरे गाँव के सामने मुझे थप्पड़ मारा था .

“हमने कहा था न की अपनी सीमा मत लाँघो कबीर. इस दुनिया में किसी की भी हिम्मत नहीं की हमारी बात काट सके.पंचायत की निर्णय की तुरंत तामिल की जाए ” पिताजी की गरजती आवाज चौपाल में गूँज रही थी .

तुंरत ही कुछ लोग लाली की तरफ लपके .

मैं- खबरदार जो इन दोनों को किसी ने भी हाथ लगाया जो हाथ लाली की तरफ बढेगा उस हाथ को उखाड़ दूंगा मैं.

पिताजी- निर्णय की पालना में यदि कोई भी अडचन डालता है तो खुली छूट है उसे सबक सिखाने की .

पिताजी का निर्णय गाँव वालो के लिए पत्थर की लकीर थी पर मेरी रगों में भी राय साहब का खून था. जिन गाँव वालो के साथ मैं बचपन से खेलता आ रहा था जिनके साथ हंसी खुशी में मैं शामिल था उनसे भीड़ गया था मैं. दो चार को तो धर लिया था मैंने पर मैं कोई बलशाली भीम नहीं था भीड़ मुझ पर हावी होने वाली थी . मेरी पूरी कोशिश थी की लाली को कोई हाथ भी नहीं लगा पाए.

मैंने एक पंच की कुर्सी उठा ली और उसे अपना हथियार बना लिया. जो भी जहाँ भी जिसे भी लगे मुझे परवाह नहीं थी . पंचायत की जिद थी तो मेरी भी जिद थी मेरे रहते वो लोग लाली को फांसी नहीं दे सकते थे . पर तभी अचानक से सब कुछ बदल गया . मेरी आँखों के आगे अँधेरा छा गया . पीछे से किसी ने मेरे सर पर मारा था . वार जोरदार था . मैंने खुद को गिरते हुए देखा और फिर मुझे कुछ याद नहीं रहा.

आँख खुली तो मैंने खुद को अपने चौबारे में पाया . चाची, भाभी, मंगू, चंपा सब लोग आस पास बैठे हुए थे . मैं तुरंत बिस्तर से उठ बैठा .

“लाली , ” मैंने बस इतना कहा

भाभी- शांत हो जाओ देवर जी, चोट लगी है तुम्हे

भाभी ने एक गिलास पानी का मुझे दिया कुछ घूँट भरे मैंने पाया की सर पर पट्टी बंधी थी और दर्द बेशुमार था .

“लाली के साथ क्या किया उन्होंने ” मैंने कहा

चंपा- भाड़ में गयी लाली, हमारे लिए तुम महत्वपूर्ण हो कबीर. क्या जरुरत थी तुम्हे फसाद करने की मालूम है कितनी चोट लगी है तुम्हे.

चाची की आँखों में आंसू थे पर मेरा दिल जोर से धडक रहा था .मैं बिस्तर से उतरा और एक शाल लपेट पर चोबारे से बाहर निकल गया .

“कहाँ जा रहे हो भाई ” मंगू ने कहा पर मैंने कोई जवाब नहीं दिया. साइकिल उठा कर मैं चौपाल पर पहुंचा जहाँ पर पेड़ से दो लाशे लटक रही थी . मेरी आँखों से झर झर आंसू गिरने लगे. बेशक लाली और उसका प्रेमी मेरे कुछ नहीं लगते थे पर मुझे दुःख था .

“माफ़ करना मुझे , मैं तुम्हे बचा नहीं पाया ” मैंने लाली के पांवो को हाथ लगा कर माफ़ी मांगी. मेरा दिल बहुत दुखी था . . मन कच्चा हो गया था मेरा. बहुत देर तक मैं उधर ही बैठा रहा .सोचता रहा की कैसा सितमगर जमाना है ये . क्या दस्तूर है इसके.

जब सहन नहीं हुआ तो मैं गाँव से बाहर निकल गया . ब्यथित मन में बहुत कुछ था कहने को. बेखुदी में भटकते हुए न जाने कब मैं जंगल में उधर ही पहुच गया जहाँ दो बार मैं इत्तेफाक से था. दुखी मन थोडा और विद्रोही हो गया . मैंने साइकिल उधर ही पटकी और पैदल ही भटकने लगा जंगल में.

वन देव की मूर्ति के पास बैठे बैठे कब मेरा सर भारी हो गया मालूम ही नहीं हुआ. पर जब तन्द्रा टूटी तो मैंने खुद को अन्धकार में पाया. गहरी धुंध मेरे चारो तरफ छाई हुई थी और मैं ठण्ड से कांप रहा था . रात न जाने कितनी बीती कितनी बाकि थी. सर के दर्द के बीच थोडा समय जरुर लगा समझने में की मैं कहाँ पर हूँ. आँखों के सामने बार बार लाली, हरिया और वो बुजुर्ग जिसे मैं नहीं जानता था के चेहरे आ रहे थे .मैंने उसी पल जंगल में अन्दर जाने का निर्णय लिया.

दूर कहीं झींगुरो की आवाज आ रही थी . कभी सियारों और जंगली कुत्तो की आवाजे आती पर मैं चले जा रहा था . कंटीली झाडिया उलझी कभी कांटे चुभे पर फिर मैंने एक ऐसी जगह देखि जो यहाँ थी कम से कम मैं तो नहीं जानता था .

वो एक तालाब था . जंगल की न जाने किस हिस्से में वो तालाब जिसमे लहरे हिलोरे मार रही थी . वो पक्का तालाब जिसकी एक दिवार मेरे सामने खड़ी थी किसी हदबंदी की तरह और तालाब के पार वो काली ईमारत जिसका वहां अपने आप में अजूबा था . चाँद की रौशनी में तालाब का पानी बहुत काला लग रहा था .

तालाब के पास से होते हुए मैं उस ईमारत की तरफ लगभग आधी दुरी तय कर चूका था की पानी में जोर से छापक की आवाज हुई . मैंने मुड कर देखा पानी में कोई नहीं था बस लहरे उठ रही थी . शायद मछलिय होंगी इसमें मैंने खुद को तसल्ली दी और इमारत की सीढिया चढ़ते हुए ऊपर चला गया .

प्रांगन में जाते ही मैं समझ गया की ये कोई प्राचीन मंदिर रहा होगा जिसे वक्त ने और हम जैसो ने भुला दिया . हर तरफ जाले ही जाले लगे थे . सिल के पत्थरों की नक्काशी चांदनी में चमक रही थी . खम्बो से चुना झड़ रहा था . मैं थोडा और आगे बढ़ा . मैंने देखा की चार छोटे खम्बो पर टिकी छत के निचे कोई मेरी तरफ पीठ किये बैठा था . मेरी आँखे जो देख रही थी वो यकीन करना मुश्किल था . कड़कती ठण्ड की रात में जब धुंध ने हर किसी को अपने आगोश में लिए हुए था. इस सुनसान जगह पर कोई शांति से बैठा था . पर किसलिए. मेरे दिल में हजारो सवाल एक साथ उठ गए थे .

“रातो को यूँ भटकना ठीक नहीं होता ” उसने बिना मेरी तरफ देखे कहा. न जाने कैसे उसे मेरी उपस्तिथि का भान हो गया था .

उसकी आवाज इतनी सर्द थी की ठण्ड मेरी रीढ़ की हड्डी में उतर गयी .

“कौन हो तुम ” मैंने पूछा

वो साया उठा और मेरी तरफ. मेरे पास आया. मैंने देखा की वो एक लड़की थी .काली साडी में माथे पर गोल बिंदी लगाये. कुलहो तक आते उसके काले बाल. चांदनी रात किसी आबनूस सी चमकती वो लड़की एक पल को मैं उसमे खो सा गया पर फिर मैंने पूछा- कौन हो तुम

वो मेरे पास आई और बोली- डायन ............................
भाई शानदार अपडेट

वो मेरे पास आई और बोली- डायन :hukka::hukka::hukka:
 

rangeen londa

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#11



काली साडी में लिपटी हुई एक बेहद खूबसूरत लड़की. जिसकी आभा उस चाँद की रौशनी में खिली हुई थी. विपरीत हालातो में मैं उस से इस सर्द रात में ऐसी जगह मिला जहाँ किसी को भी उसके होने की भनक तक नहीं थी . उसने जो कहा था मेरे कानो में पिघले शीशे सा उतर गया था . सर्द रात में माथे से बहते पसीने को मैंने गर्दन तक महसूस किया.

मैं- कैसे मान लू तुम डायन हो

वो मेरी तरफ देख कर हंसी और बोली- इस बियाबान में , इस तनहा रात में , इस उजड़े खंडहर में डायन नहीं तो किसके मिलने की उम्मीद कर रहे थे तुम.

मैं- सच कहूँ तो मुझे मालूम भी नहीं था की इस जंगल में ऐसी भी कोई जगह है आजतक वनदेव के मंदिर से आगे कभी कदम बढे ही नहीं थे . मेरी तन्हाई मेरा व्यथित मन न जाने किस तरह मुझे यहाँ ले आया.

पसीजी हथेलियों को आपस में रगड़ते हुए मैंने उस से कहा.

“यूँ इन अंधेरो में भटकना ठीक नहीं है . लोग तो उजालो में भी इस तरफ नहीं आते. मुझे उम्मीद भी नहीं थी बहुत समय से किसी को देखा जो नहीं यहाँ. देखो, कितनी दिलचस्प रात है एक डायन और एक इन्सान बाते कर रहे है . अजीब है ” उसने अपनी उंगलियों को चटकाते हुए कहा.

मेरी धडकनों की रफ़्तार अचानक से ही तेज हो गयी थी . नजरे उस शोख हसीना का ऊपर से निचे अवलोकन कर रही थी . न वो कुछ कह रही थी न मैं . दोनों के बीच अजीब सी कशमकश हो रही थी आखिर मैंने चुप्पी तोड़ी.

“तो अब क्या , एक इन्सान एक डायन आमने सामने है . क्या तुम मुझे मारने वाली हो “ मैंने कहा

डायन- तुम्हे ऐसा क्यों लगा की मैं तुम्हे मारूंगी.

मैं- मुझे लगा तुम्हारा यही प्रयोजन होगा. डायने तो मारती ही है न इंसानों को

डायन- क्या तुम्हे डर लग रहा है .

मैं- नहीं , नहीं तो

डायन दो कदम आगे बढ़ी. मेरे पास आई. इतना पास की उसके स्तन मेरे सीने से रगड़ खाने लगे.

“तुम्हारी बढ़ी हुई धड़कने, बेकाबू पसीना तो कहता है की तुम डरे हुए हो ” ऐसा कह कर वो फिर से वापिस हो गयी.

मैंने उसके व्यंग को महसूस किया.

“मुझे नहीं लगता की तुम डायन हो ” मैंने कहा

वो- क्यों भला

उसने त्योरिया चढ़ाई .

मैं- तुम वैसी नहीं हो.

वो- कैसी .

मैं- जैसा मुझे मालूम है डायन इतनी सुन्दर नहीं हो सकती . वो वीभत्स होती है उसके दांत हाथो के नाखून नुकीले होते है . शरीर सडा हुआ होता है रक्त की बदबू आती है उस से .उसके पाँव उलटे होते है .

मेरी बात सुन कर वो जोर जोर से हंसने लगी. इतना जोर से की उसकी आवाज दूर दूर तक गूंजने लगी. कुछ देर बाद वो रुकी.

“मुझसे पहले किसी और डायन से मिले हो तुम , किसी और डायन को देखा है तुमने ” उसने प्रशन किया.

मैं- नहीं

वो- तो तुम्हे कैसे मालूम की डायन का हुलिया वैसा होता है जैसा तुमने बताया.

मैं- मैंने सुना है . गाँव में लोगो ने अपनी बातो में बताया की कैसे उन्होंने डायन को देखा था .

वो- उन लोगो ने तुम्हे ये तो बताया ही होगा की डायन से मुलाकात के बाद क्या हुआ.

मैं- ये तो नहीं बताया

वो- क्या तुमने कभी ईश्वर को देखा है क्या तुम बता सकते हो वो कैसा दीखता है .

मैं- देखा है उसे. कितनी ही तस्वीरे मुर्तिया है इश्वर की

वो- क्या तुम्हे पक्का विश्वास है इश्वर वैसा ही दीखता है जैसा की वो मूर्तियों तस्वीरों में है

उसकी बात ने मुझे उलझन में डाल दिया.

वो- वो तस्वीरे, वो मुर्तिया एक माध्यम है बस ये दर्शाने का की इश्वर ऐसा होगा. ऐसे ही किस्से-कहानियो में डायनो का वैसा वर्णन है जो तुमने सुना है .

मैं- मैं कैसे मान लू तुम सच में डायन हो.

वो फिर हंसी जैसे मैंने कोई मूर्खतापूर्ण बात पूछ ली हो .

डायन- उफ्फ्फ ये इंसानी जिज्ञासा, बताओ मैं क्या करू तुम्हे विश्वास दिलाने के लिए . अपने पैरो को उल्टा मोड़ कर हवा में लटक जाऊ. या फिर उंगलियों के नाखून लम्बे कर के तुम्हारे पेट से अंतड़ी निकाल लू.

ये सुनते ही मेरी आँखों के सामने वो बुजुर्ग आ गया. उस मंजर की याद आते ही मेरी रीढ़ में सिरहन दौड़ गयी.

“तुम्हे ठण्ड लग रही है चाहो तो अन्दर दिवार की ओट में बैठ सकते हो ” उसने कहा .

मैं- वहां ले जाकर तुमने मेरा अहित कर दिया तो

डायन- अगर मेरा वैसा इरादा है तो फिर क्या दिवार और क्या ये खुला आसमान सब कुछ मेरा ही तो है.

मैं उसके पीछे पीछे जाकर दिवार की ओट में बैठ गया . उसने एक छोटा अलाव जला दिया. सच कहूँ तो बड़ी राहत मिली मुझे. सिंदूरी आंच की रौशनी में उसके गोरी आभा बड़ी खूबसूरत लग रही थी . ये रात न जाने मेरी किस्मत में क्या लिखने वाली थी .

“तुम्हारा नाम क्या है ” उसने पूछा मुझसे

मैं- कबीर.

एक बात मैंने देखि की जबसे वो मुझसे मिली थी वो बार बार चाँद की तरफ देखती थी .

मैं- क्या मैंने तुम्हारे किसी कार्य में बाधा डाली है यहाँ आकर

वो- नहीं . इतने बरस बाद किसी इन्सान के कदम इधर पड़े है तो अजीब लग रहा है .

मैं- कदम कैसे पड़ेंगे. तुम्हारे डर से लोग इधर आने की हिम्मत कर ही नहीं पाते होंगे.

वो-डरना भी चाहिए . एक दुसरे की हद का सम्मान बना रहे तो बेहतर है सबके लिए.

मैं- पर मैंने यहा आकर उस हद को पार कर दिया है. मेरी सजा क्या होगी.

वो-इतनी बेबाकी. बताओ तुम ही क्या सजा हो तुम्हारी.

मैं- जो करना है तुम्हे ही करना है मैं भला क्या ही कर लूँगा एक डायन के सामने.

मेरी बात सुनकर वो मुस्कुराई और बोली- ठीक है तो मैं तुम्हे जाने देती हूँ

मैं- और ये मेहरबानी किसलिए

वो- आज बरसों बाद कोई ऐसा मिला है जिस से दिल खोल कर बात हुई मेरी. तुमने मेरे अस्तित्व पर सवाल नहीं किया . ऐसा व्यवहार दुर्लभ है . दूसरी बात आज मुझे रक्त तृष्णा नहीं है . पर जब मुझे ये तृष्णा होगी तो मैं आउंगी तुम्हारे पास , तुम्हारा रक्त पीने.

जैसे ही उसने अपनी बात समाप्त की . अचानक से जंगल में सियारों का रुदन शुरू हो गया. ऐसा शोर मैंने पहले नहीं सुना था .

होऊ हूँ की आवाज दूर दूर तक गूँज रही थी . डायन ने मेरी तरफ देखा और बोली- तुम्हे जाना होगा अभी . मैं तुम्हे सुरक्षित हद तक छोड़ देती हूँ.

उसने मेरा हाथ पकड़ा बर्फ सा अहसास मुझे अन्दर तक भिगो गया. सियारों के रुदन के बीच उसकी पायल की आवाज मुझे रोमांचित कर रही थी . मैं बिलकुल नहीं जानता था की जंगल में वो मुझे कहाँ किस तरफ ले जा रही थी पर बहुत जल्दी मैं वनदेव के पत्थर के पास था की उसने मेरा हाथ छोड़ दिया और बोली- अंधेरो से दूर रहना ये किसी एक सगे नहीं होते. जाओ.

मैंने मुड कर देखा. अंधेरो में कोई नहीं था न किसी पायल की आवाज गूँज रही थी .
Fantastic update bro...
 

Tiger 786

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#132

मेरी आँखों के सामने मंगू के साथ बिस्तर पर कोई और नहीं बल्कि सरला थी . वो सरला जिस पर भरोसा किया था मैंने. वैसे तो आदत सी हो चली थी अपर कभी सोचा नहीं था की सरला भी मुझे धोखा देने वालो की लिस्ट में खड़ी होगी बड़ी तल्लीनता से दोनों एक दुसरे की बाहों में खोये हुए थे . कायदे से मुझे इंतज़ार करना चाहिए था की दोनों क्या बाते करते है पर मेरे गुस्से का बाँध शायद टूट ही गया था . मैंने अपनी चमड़े की बेल्ट निकाली और सीधा सरला की पीठ पर मारी जो मंगू के ऊपर चढ़ कर चुद रही थी .

“आईईईईईई ” अचानक से पड़ी बेल्ट ने सरला के पुरे बदन में दर्द की लहर दौड़ा दी . सरला जो एक सेकंड पहले चुदाई का मजा ले रही थी अब दर्द से दोहरी हो गयी. पर मैं रुका नहीं . दना दन उसकी पीठ पर बेल्ट मारता ही रहा उसे सँभालने का जरा भी मौका नहीं दिया .

मुझे वहां देख कर दोनों की आँखे हैरत से फट ही गयी . मैंने अगला नम्बर मंगू का लगाया और ये भूलते हुए की वो मेरा दोस्त है उसे पीटना शुरू किया . पर मंगू ने पर्तिकार किया .

मंगू- बस कबीर बस बहुत हुआ .

मैं- अभी तो शुरू ही नहीं किया मैंने . तूने क्या सोचा मेरी पीठ पीछे तू जो गुल खिला रहा है मुझे तो मालूम ही नहीं होगा.

मंगू-तू यहाँ से जा कबीर

मैं- जाऊंगा पर पहले मुझे बता की ये सब क्या कर रहा है तू क्यों कर रहा है . अपनी ही बहन के मंडप को क्यों बर्बाद किया तूने.

मंगू- तुझे क्या लेना देना उस से

मैं- पूछता है मेरा क्या लेना देना . अगर मेरा नहीं तो किसका है . चंपा पर क्या बीतेगी जब उसे मालूम होगा की उसके ही भाई ने उसकी खुशियों में आग लगा दी. बात सिर्फ चंपा की ही नहीं शुरू से शुरू कर मंगू . कविता को क्यों मारा तूने, वैध को क्यों मारा तूने परकाश को क्यों मारा तूने . रोहताश को क्यों मारा तूने

मंगू- मेरे मन में आया मार दिया

मैं- कल को तेरे मन में आएगा की कबीर को मार दे तो क्या मार देगा .

मंगू- मार दूंगा

कितनी आसानी से उसने कह दी थी इए बात साले ने बरसो की दोस्ती की जरा भी परवाह नहीं की .

मंगू- तुझे किस बात की तकलीफ है कबीर, सरला को मैं नहीं चोद सकता क्या , ये तो ना इंसाफी हुई न साले तुम लोग पुरे गाँव की इज्जत से खिलवाड़ करते रहो , दुनिया तुम्हारी मर्जी से चलेगी क्या हमारी भी कोई जिन्दगी है के नहीं. मेरा गलत है इसे चोदना तो तेरा इसे चोदना सही कैसे हुआ.

मैं- मैं सिर्फ इतना जानना चाहता हूँ की मंडप क्यों उजाड़ा तूने

मंगू- क्योंकि मैं नहीं चाहता था की चंपा यहाँ से और कही जाये.

मैं- बहुत बढ़िया . मतलब सारी जिन्दगी तू ही रगड़ता रहे उसे .

मंगू- वो मेरा निजी मामला है

मैं- भोसड़ी के तेरे निजी मामले ने मेरी जिन्दगी की लेनी कर रखी है . कविता को क्यों मारा .

मंगू- वो बहन की लौड़ी किसी की भी सगी नहीं थी . मैं उस से प्यार करता था क्या नहीं किया मैंने उसके लिए पर साली बेवफा निकली , उस परकाश से भी गांड मरवा रही थी साली. परकाश इतना मादरचोद था की अगर तू उसके बारे में जानता तो तुझे भी साले से घिन्न हो जाती मुझसे पहले तू मार देता उस को.

मैं- ऐसा क्या किया था उसने .

मंगू- ये पूछ क्या नहीं किया था उसने. परकाश ने कविता को पटा लिया था जंगल में पेलता था उसको . एक दिन मैंने उन दोनों को देख लिया . चुदाई के बाद बाते कर रहे थे . मुझे मालूम हुआ की कविता का पति रोहतास उस पर दबाव बनाये हुए था उसे शहर ले जाने के लिए वो जाना नहीं चाहती थी , परकाश ने कहा की वो रोहतास का इलाज करवा देगा. याद है तुझे वो रात जब मैंने बहुत ज्यादा पि ली थी उस रात नशे में चूर मैं कुवे पर जा रहा था की मुझे मोड़ पर कविता और प्रकाश मिले. मेरा तो दिल ही जल गया . दोनों को साथ देख कर आगबबुला हो गया था मैं. मेरा और दिमाग ख़राब तब हो गया जब परकाश ने कविता से कहा की कबीर को कैसे भी करके अपने हुस्न के जाल में फंसा ले.कविता ने उसे बताया की उसी शाम कैसे उसने तुझे उलझा ही दिया था अपने जाल में .



मुझे याद आया की वैध के घर में कैसे लगभग उसने मेरा लंड चूस ही लिया था .

मंगू- मैंने उसको दिल से चाह था पर वो साली उसको मरना ही था .

मैं- चूतिये काश तू समझ पाता वो तेरा इस्तेमाल कर रही थी . रमा भी तेरा इस्तेमाल कर रही है और ये हरामजादी भी .

मंगू- अब फर्क नहीं पड़ता मुझे .

मैं- खेल तो बढ़िया खेला अब बता परकाश का नुम्बर कैसे लगाया तूने .

मगु- वो बहन का लंड भी साला पक्का हरामी था . उसने राय साहब की न जाने कौन सी नस दबा ली थी . रमा को भी तंग कर रहा था वो . पर जब उसने राय साहब से चंपा की मांग की तो वो अपनी औकात से जायदा आगे बढ़ गया था . मैंने और रमा ने मिल कर उसे मारने की योजना बनाई . रमा ने उसे चुदाई के बहाने बुलाया और मैंने उसे मार दिया.

मैं- क्या तू जानता था की परकाश अंजू से प्यार करता था

मंगू- किसी से प्यार नहीं करता था वो , उसे अंजू से किसी चीज की तलाश थी बस . उस को लगता था की अंजू सोने के बारे में जानती है पर चुतिया के बच्चे को कभी सोने के बारे में नहीं मालूम हो सका . जानता है क्यों , क्योंकि मैंने होने ही नहीं दिया. सो सोचता ही रह गया की सोना कहाँ होगा .

मैं- उसे कैसे पता चला की सोना है .

मंगू- राय साब का सारा हिसाब किताब वो और उसका बाप ही देखते थे किसी तरह से उसने मालूम कर लिया होगा.

मुझे मंगू की इस बात में दम नहीं लगा . प्रकाश की दिलचस्पी थी तो बस अपने हिस्से में . वसीयत का चौथा टुकड़ा. रमा को भी उसने राय साहब पर दबाव बनाने में इस्तेमाल किया था और रमा उसके तो कहने ही क्या , चाचा, महावीर, पिताजी और प्रकाश आखिर इनमे से किसके साथ थी वो शायद किसी के साथ भी नहीं.

मैं- चंपा के साथ क्यों सम्बन्ध बनाये तूने .

मंगू- वो कुतिया इसी लायक है , साली की गांड में हमेशा आग लगी रहती थी , जब तेरे बाप को दे सकती है वो तू मैं तो फिर भी उसका अपना हूँ मैंने भी ले ली.

मुझे भैया की याद आई कैसे महावीर ठाकुर ने कहा था की घर की औरतो पर सबसे पहला हक़ घर वालो का ही होता है .

मंगू- जानता है मैंने तुझे ये सब क्यों बता दिया.

मैं- मुझे नहीं बताएगा तो किसे बताएगा.

मंगू- तू सोच रहा होगा इस बारे में पर मैंने सोचा की मरने से पहले तुझे सच जानने का हक़ तो है ही . बरसो से तेरे बाप ने मेरी माँ को चोदा फिर चंपा पर हाथ डाला अब मेरी बारी है . राय साहब का पालतू बन कर मैंने इस सोने की खान का पता लगा लिया इस पर मैं कब्ज़ा करूँगा तुमको मारने के बाद ये सब कुछ मेरा हो जायेगा.

मैं तो ये है तेरी असलियत . साले तुझे अपने भाई जैसा समझा मैंने और तूने जिस थाली में खाया उसी में छेद किया.


मंगू- कोई अहसान नहीं किया तुमने, बरसो तक मेरे बाप ने फिर मैंने तुम्हारी चाकरी की है . पर अब नहीं करेंगे.
Mangu bi khul ke samne aa hi gaya

Superb update
 

rangeen londa

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#12



“अरे यहाँ चबूतरे पर क्यों सोया पड़ा है ” चाची ने मुझसे कहा .

मैंने आँखे खोली खुद को चाची के चबूतरे पर पाया. ठन्डे फर्श पर पड़े मेरी कमर अकड़ गयी थी.

“”उठ अन्दर आ, दरवाजा खडका भी सकता था न , जाने कबसे ठण्ड पर पड़ा है “चाची ने मुझे उठाया और अन्दर ले आई. अन्दर जाते ही मैंने अपने सीले कपडे उतारे और रजाई में घुस गया. चाची ने थोड़ी देर पहले ही बिस्तर छोड़ा होगा रजाई में गर्मी बाकी थी .

“चाय बना लाऊ तुम्हारे लिए ” चाची ने कहा.

मैंने चाची का हाथ पकड़ा और कहा- सोना चाहता हूँ . चाची ने घडी में देखा सुबह के पांच बज रहे थे . उन्होंने दरवाजा बंद किया और फिर मेरे साथ ही बिस्तर में घुस गयी मैंने चाची के ऊपर अपना हाथ डाला और उस से चिपक गया . गर्म जिस्म की तपिश ने बहुत राहत दी. चाची ने अपना मुह मेरी तरफ कर लिया इस तरह उसका सर मेरे कान के पास आ गया. चाची की गर्म सांसे जब मेरे चेहरे पर पड़ती तो किसी अलाव की आंच सा लगता.

“कहाँ थे रात भर ” चाची ने मेरी पीठ को सहलाते हुए पूछा.

मैं- नहीं मालूम.

चाची- मुझसे भी अब बाते छिपाने लगे हो. मंगू बेचारा बहुत देर तक तलाशता रहा तुम्हे.

मैं- बस इधर उधर ही भटक रहा था .

चाची- मुझे कहना तो बहुत कुछ है तुमसे पर अभी नहीं कहूँगी.

मैंने चाची की उंगलियों में अपनी उंगलिया उलझाई और बोला- आपका भी उलाहना सुन लूँगा.

चाची- जेठ जी बहुत नाराज हुए थे घर आकार

मैं- मैं क्या करू फिर

चाची- किसी दुसरे के लिए अपने घर में कलेश करना कहाँ जायज है बेटा.

मैं- दो लोगो को मारना भी तो गलत है न

चाची- ये दुनिया तेरे मेरे हिसाब से नहीं चलती , यहाँ जिसकी लाठी उसकी भैंस . जो हुआ उसे अब कोई वापिस नहीं कर सकता एक बुरा सपना समझ कर भूल जा उसे.

मैंने चाची के स्तनों पर अपना सर टिकाया और आँखों को बंद कर लिया.

जब नींद पूरी हुई तो दोपहर बाद का समय था . मैंने देखा की चंपा आई हुई थी . मैं बिस्तर से उतरा .

“तू कब आई ” मैंने पूछा

चंपा- थोड़ी देर पहले ही . आज खीर पूरी बनाई थी . तेरे लिए ले आई.

मैं- ये बढ़िया किया

मैंने देखा की चंपा की नजर मेरे शरीर के निचले हिस्से जमी हुई है मैंने गौर किया तो पाया की पेशाब के जोर की बजह से मेरा लिंग तना हुआ था. चूँकि वो सुजा हुआ था तो और बड़ा लग रहा था . मैंने ये गौर ही नहीं किया था की मैं सिर्फ कच्छे-बनियान में ही हूँ. मैंने तुरंत अपने कपडे पहने और बाथरूम में घुस गया. कुछ देर बाद मैं आया तो चंपा मुझे देख कर हंस रही थी.

मैं- पागल हुई है क्या जो अकेले दांत निपोर रही है .

चंपा उठ कर मेरे पास आई और बोली-- सच बता मुझे देख कर ही तेरा ऐसा हाल हुआ न.

मैं- पागल हुई है या तू. वो तो मैं नींद से उठा था इसलिए वैसा था .

चंपा- मेरे सिवा और कौन आ रहा है तेरे सपनो में

मैं- कोई और बात कर.

चंपा ने अचानक से मेरे लिंग को पायजामे के ऊपर से पकड़ लिया और बोली- ये तो कह रहा है की मैं बस ये बात ही करता रहूँ. उफ्फ्फ कितना बड़ा है मेरी तो जान ही ले जायेगा तेरा ये केला.

हद से जायदा बेशर्म थी ये लड़की .

मैं- पागल मत बन . ये ठीक नहीं है छोड़ इसे .

मैंने चंपा को खुद से परे किया. पर वो भी पक्की वाली थी. मेरे गालो पर एक पप्पी ले ही ली उस मरजानी ने

चंपा- खीर पूरी खा ले फिर मैं जाउंगी घर.

मैं- परोस दे.

चंपा के घर जब भी खीर बनती थी वो या मंगू हमेशा मेरे लिए लेकर आते थे. सब कुछ भूल कर मैं खाने पर ध्यान देने लगा.

चंपा- उस रात कुवे पर तूने सब कुछ देख लिया था न .

मैं- हाँ.

चंपा- फिर अन्दर क्यों नहीं आया तू.

मैं- मेरी अपनी हदे है चंपा .

चंपा- नुकसान तो तेरा ही हुआ न , दो दो रसीले जाम चख सकता था तू उस रात.

मैं- तुम दोनों तो मेरी ही हो न . मुझसे कहाँ दूर हुई तुम.

चंपा- तेरी इसी अदा पर तो मैं मरती हु . सच बताना उस रात तुझे कैसी लगी मैं. तेरे मन में मुझे नंगी देख कर क्या आया.

मैं- मेरा मन , मेरे मन की कौन जाने चंपा

चंपा- तू बेगाना नहीं है कबीर हम सब हमेशा तेरे साथ है . साथ रहेंगे. कल पंचायत में तूने जो किया रात भर मैं तेरे बारे में ही सोचती रही .

मैं- ठीक है अब तू जा . मुझे भी वैध जी के घर जाना है पट्टी बदलवाने .

चंपा ने बर्तन समेटे और बोली-साथ चलते है मैं घर जाउंगी तू आगे चले जाना. हम घर की दहलीज पर पहुंचे ही थे की अचानक से चंपा मुझसे लिपट गयी और अपने होंठो को मेरे होंठो पर टिका दिया.

“श्ह्हह्श , इतना तो हक़ दे मुझे ” उसने कहा और मुझे चूमने लगी. एक मीठा सा स्वाद मेरे होंठो से होते हुए मुह में घुलने लगा मेरी आँखे बंद होने लगे. नशा सा छाने लगा. जब वो अलग हुई तो उसकी छातिया धौंकनी सी ऊपर निचे हो रही थी . पट्टी करवाने के बाद मैं सोचने लगा की कहाँ जाऊंगा . सर का दर्द भी ताजी चोट की वजह से ज्यादा था .

घर आने के बाद मैं सीधा अपने चोबारे में गया और कुर्सी पर बैठ गया. थोड़े देर बाद भाभी गर्म दूध का गिलास लेकर आ गयी .

भाभी- पियो इसे , अच्छा लगेगा तुम्हे.

मैंने कुछ घूँट भरी.

भाभी- कल पूरी रात तुम गायब थे, जानते हो तुम्हारे भैया और मुझे कितनी फ़िक्र हुई.

मैं- माफ़ी चाहूँगा. मुझे जरुरी काम था .

भाभी- ऐसे कौन से काम है तुम्हारे जो रातो में ही होते है . काम ही करना है तो भैया के साथ करो. कारोबार सीखो .

मैं- कोशिश कर रहा हूँ भाभी.

भाभी-देवर जी , मुझे बहुत चिंता है . इस घर में सबसे छोटे हो तुम. नटखट हो . जानती हूँ की तुम कभी कुछ ऐसा वैसा नहीं करोगे जिस से परिवार की प्रतिष्ठा पर आंच आये. अपने से ज्यादा मुझे तुम पर मान है . बस इतना ही कहूँगी की यूँ रातो को भटकना उचित नहीं है.

मैं- ध्यान रखूँगा भाभी.

भाभी- ये कुछ दवाए है समय से खाते रहना . घाव जल्दी ही भर जायेगा.

करने को कुछ खास था नहीं तो मैंने फिर से बिस्तर पकड़ लिया. कुछ असर शायद दवाओ का था मेरी आँख लग गयी. पर जब आँख खुली तो घडी में पोने एक बज रहा था . प्यास के मारे गला सूख रहा था . टेबल पर रखा जग खाली था. मैं पानी के लिए निचे आया तो देखा की हमारा दरवाजा खुला था . वैसे तो ये कोई नयी बात नहीं थी पर फिर भी मैंने सोचा की इस बंद कर देता हु. वहां पहुंचा तो गली में कुछ आवाज सी आई. कम्बल को सही करते हुए मैं गली में देखा .और जो देखा मैंने अपनी पेंट को मूत से गीला होते हुए महसूस किया. गली में एक उबलती हुई चीख गूंजने लगी जिसने गाँव की नींदे उड़ा दी.
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग एंड ब्रिलिएंट ।
 
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