#88
कमरे में मेरे बिस्तर पर लेटे हुए अंजू कोई किताब पढ़ रही थी . हमारी नजरे मिली
अंजू- तुम यहाँ इस वक्त
मैं- ये सवाल तो मुझे आपसे पूछना चाहिए वैसे ये कमरा मेरा ही है
अंजू- हाँ , मेरा मन था इधर आने का फिर घूमते घूमते रात ज्यादा हुई तो मैं यही रुक गयी.
न जाने क्यों मुझे उसकी बात झूठ लग रही थी.
मैं- बेशक मुझसे ज्यादा आप जंगल को जानती है पर इतनी रात को आपका यहाँ होना कारन कोई साधारण नहीं है.
अंजू- ये तो तुम पर निर्भर करता है की तुम कैसे समझते हो इस बात को.
उसने बिस्तर से उठने की जरा भी जहमत नहीं उठाई, जैसे उसे मेरे होने न होने से कोई फर्क पड़ा ही नहीं हो. मैं घास पर बैठ गया और कम्बल को थोडा और कस लिया.
मैं- जैसा मैंने कहा , इस जंगल में इन रातो में भटकने का हम सब का अपना अपना कारण है , ये जानते हुए भी की उस आदमखोर के रूप में मौत कभी भी सामने आकर खड़ी हो सकती है हम खुद को फिर भी रोक नहीं पा रहे . ये साधारण तो बिलकुल नहीं है . आप मुझसे बहुत ज्यादा जानती है , इस जगह को पहचानती है मैं आपके उसी ज्यादा में से थोडा कम जानना चाहता हूँ . मेरा पहला सवाल ये है की आपने मुझे ये लाकेट क्यों दिया, सिर्फ मुझे ही क्यों .
अंजू ने अपनी किताब साइड में रखी और बोली- पहली बार मैं तुमसे मिली थी कोई भेंट तो चाहिए थी न देने को .
मैं- खूबसूरत औरते झूठ बोलते हुए थोड़ी और निखर जाती है .
मेरी बात सुनकर अंजू मुस्कुरा पड़ी.
अंजू- इसे तारीफ समझे या ताना, ये लाकेट हमने तुम्हे क्यों दिया तुम जान जाओगे. दूसरी बात हम यहाँ क्यों है ,जैसा तुमने कहा हम सब के अपने अपने कारण है
मैं- रुडा की बेटी , रुडा के दुश्मन की जमीं पर रात को अकेली . सवाल तो उठेगा ही .
अंजू- जितना हक़ रुडा का है उतना ही मुझ पर राय साहब का भी है,दोनों से ही मुझे बेइंतिहा स्नेह मिला
मैं- तो फिर रुडा से क्यों नाराजगी है आपकी
अंजू- मैं आसमान में उड़ना चाहती हूँ , मेरे बाप को मेरी उड़ान पसंद नहीं वो मेरे कदमो में बेडिया चाहता है .
मैं- कैसी बेडिया
अंजू- वैसे हमें कोई जरुरत नहीं है तुम्हे ये किस्से बताने की पर चूँकि इस रात अब तुम हमारे साथ हो , बातो का सिलसिला है तो चलो बता ही देते है , तुम्हारी भाभी नंदिनी में हिम्मत थी वो आगे बढ़ गयी , हम कमजोर थे पीछे रह गए. और फिर पीछे रहते ही गए. हम अपनी पसंद से शादी करना चाहते थे हमारी पसंद हमारे बाप को मंजूर नहीं थी . करते तो क्या करते. हम चाहते तो घर से भाग जाते , पर इसमें नुकसान हमारा ही होता चौधरी साहब हमारे प्यार को मरवा देते. आज हम जिस भी हालात में है कम से कम तसल्ली तो है की हमारा प्यार हमारे साथ है .
मैं सोचता था की मैं ही आशिक हूँ पर इस जंगल में न जाने कितनी प्रेम कहानिया बिखरी पड़ी थी . अंजू ने लेटे हुए ही करवट ली और निचे रखे थर्मस से पानी का कप भरने लगी. उसकी चुडिया स्टील से थर्मस से टकराई और उस खनक ने मेरे कान हिला दिए. यही खनक तो मैंने सुनी थी , हाँ यही थी बिलकूल यही थी . मेरा तो सर ही घूम गया अभी मोहब्बत का किस्सा बताने वाली अंजू , ये अंजू ही तो चुद रही थी परकाश से.
मैं- एक बात पुछु
अंजू- हाँ
उसने पानी की घूँट भरी.
मैं- एक तरफ तो आप इतनी शिद्दत से अपनी मोहब्बत का जिक्र कर रही है और दूसरी तरफ कुछ घंटे पहले आप जंगल में वकील प्रकाश के साथ थी .
अंजू ने कप वापिस रखा और बोली- दुसरो के निजी पलो में ताका-झांकी बदतमीजी समझती जाती है .
मैं- मेरी नजर में उस नीच, गलीच प्रकाश के साथ चुदाई करना ज्यादा बड़ी बदतमीजी है .
मैंने जानबूझ कर चुदाई शब्द पर जोर दिया.
अंजू- इसे हम तुम्हारी पहली खता समझ कर माफ़ कर रहे है कबीर. दुबारा अपने शब्दों पर काबू रखना . खैर, जैसा हमने थोड़ी देर पहले कहा ये तुम पर निर्भर करता है की हम चीजो को कैसे समझते है . कभी तुमने इस बात पर गौर क्यों नहीं किया की प्रकाश ने कभी ब्याह क्यों नहीं किया . क्योंकि वो हमसे प्यार करता है . हम दोनों एक दुसरे से बेंतेहा प्यार करते है . ये एक ऐसा सच है जिसे हम छिपा भी नहीं सकते , बता भी नहीं सकते.
रुडा की बेटी वकील से प्यार करती थी , बहनचोद ये जिन्दगी मुझे न जाने क्या क्या दिखा रही थी .
मैं- बेशक प्रेम अँधा होता है पर इतना भी नहीं की दुष्ट इन्सान से ही इश्क कर बैठे.
अंजू- वो तुम्हे गलत लगता है क्योंकि तुम्हारा और उसका व्यवहार आपस में ठीक नहीं है. पर हमारे लिए क्या है वो हम जानते है उसकी नेकी , ईमानदारी इसलिए कम नहीं हो जाती की तुम्हे वो घटिया लगता है .
साले ने रुडा की बेटी से ही प्रेम किया था .
मैं- ये आपकी और उसकी बात है . न मुझे पहले कुछ लेना देना था न अब न आगे. मैं इस लाकेट के बारे में जानना चाहता हूँ .
अंजू- ये बस यूँ ही तो है , तुम्हे पसंद नहीं तो बेझिझक हमें वापिस दे सकते हो. हम बुरा नहीं मानेंगे.
मैं- ठीक है आप आराम करो मैं चलता हूँ .
अंजू- अरे इतनी रात कहाँ जाओगे.
मैं- ये जंगल मेरा भी घर है , कहीं न कहीं तो पनाह मिल ही जाएगी. वापसी में मैं मोहब्बत के बारे में सोचता रहा , ये दोनों लोग इसलिए अलग अलग रह रहे थे की मोहब्बत है , पर ये कैसी मोहब्बत थी जिसमे जुदाई थी . यहाँ मैंने महसूस किया की मैं मोहब्बत के बारे में कुछ नहीं जानता. चलते चलते मैं उस मोड़ पर आ गया जहाँ से एक रास्ता निशा के पास ले जाताथा दूसरा गाँव की तरफ.
बेशक बड़ी तममनना थी मुझे निशा का दीदार करने की पर न जाने क्यों मेरे कदम गाँव की तरफ बढ़ गए. जब मैं गाँव में पहुन्चा तो देखा की लोग घरो से बाहर निकले हुए थे. इतनी रात में लोगो का घर से बाहर होना किसी अनिष्ट की आशंका से दिल धाड़ धाड़ करने लगा. और जब मैं मोहल्ले में पहुंचा तो देखा की वैध की लाश उसके घर के बाहर पड़ी थी . ..................................