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Adultery तेरे प्यार मे.... (Completed)

Sanju@

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#121

बिजली गए मुश्किल से दो चार लम्हे बीते होंगे की बाहर से चीख-पुकार मचनी शुरू हो गयी. आवाजे टेंट से आ रही थी . मेरे दिल ने उस पल जो महसूस किया काश वो बताया जा सकता . तुरंत मैं टेंट की तरफ भागा. अँधेरे में कुछ सुझाई नहीं दे रहा था , कुछ दिखाई नहीं दे रहा था .सिवाय लोगो की चीखो के .

“रौशनी जलाओ कोई , ” मैंने जोर से चिल्लाया पर किसे परवाह थी मेरी आवाज सुनने की. मैं जरनेटर की तरफ भागा , तभी अँधेरे में मैं किसी से टकराया, टक्कर ऐसी थी की जैसे किसी शिला से टकरा गया हूँ मैं. पर तभी एक ऐसी गन्ध मेरे नाक में समाती चली गयी , जिसे मैं बिलकुल नहीं सूंघना चाहता था , वो महक थी रक्त की ताजा रक्त की. इस पूनम की रात बस यही नहीं चाहता था मैं. मेरा खुद पर काबू रखना मुश्किल हो गया.

मैं तुरंत टेंट से बाहर भागा . खुली हवा में जो साँस मिली , राहत सी मिली. मैंने जरनेटर का हेंडल घुमाया और रौशनी से आखे चुंधिया गयी .मैंने आँखे बंद कर ली, इसलिए नहीं की रौशनी हो गयी थी बल्कि इसलिए की सामने को देखा, फिर देखा ही नहीं गया. टेंट तार तार हो चूका था . इधर उधर जहाँ देखो इंसानों के टुकड़े पड़े थे कुछ मारे गए थे कुछ घायल तडप रहे थे .

दौड़ते हुए मैं मंडप की तरफ पहुंचा तो जो मेरा कलेजा बाहर आ गया . बेशक मैं धरा पर खड़ा था पर पैरो की जान निकल चुकी थी . जिस डोली को मैंने उठा कर चंपा को विदा करने का वादा किया था वो डोली रक्त रंजित थी , पास में ही शेखर बाबु की लाश पड़ी थी . जिस मंडप में कुछ देर पहले चंपा अपने जीवन की नयी दिशा के सपने संजो रही थी , उसी मंडप में चंपा दुल्हन के लिबास में अर्ध-मुर्छित सी बैठी थी . घर घर न होकर शमशान बन चूका था .

इधर उधर दौड़ते हुए मैं परिवार के लोगो को तलाश करने लगा. मुझे निशा मिली जो बेहोश पड़ी थी . उसके सीने और कंधो पर घाव थे. मैंने उसे होश में लाया. खांसते हुए वो उठ बैठी और अपनी हालात देखने लगी. निशा के पास ही सरला थी जिसके सर पर चोट लगी थी पर ठीक थी वो भी .

निशा और सरला अपनी चोटों की फ़िक्र किये बिना घायलों को संभालने लगी पर जो बात मुझे हैरान किये हुई थी की बाकि के घर वाले कहाँ थे. मुझे मंगू तो मिला पर रमा गायब थी . साला ये हो क्या रहा था . मैं वापिस से चंपा के पास आया. सबसे पाहे शेखर बाबु के शव को वहां से हटाया और फिर चंपा को देखा, वो कुछ नहीं बोल रही थी . काठ मार गया था जैसे उसे.

मैं- कुछ तो बोल चंपा , कुछ तो बोल

पर वो गूंगी बनी बैठी रही . मुझे लगा की कहीं गम न बैठ जाये इसके सीने में . मैंने खींच कर थप्पड़ मारा उसे तो रुलाई छूट पड़ी उसकी . दहाड़े मार कर रोटी चंपा मेरे आगोश में थी, उसके आंसुओ ने मेरा कलेजा चीर दिया था . निशा दौड़ कर मेरे पास आई पर मैंने हाथ के इशारे से उसे रोक दिया. चंपा का दर्द बह जाना जरुरी था. एक सपना मेरी आँखों के आगे टूट गया था .



जिस डोली को मैंने राजी खुसी विदा करने का वादा किया था वो डोली खामोश खड़ी हजारो सवाल पूछ रही थी और मेरे हाथ खाली थे.

“मैं कसम खाता हूँ चंपा, तेरी खुशियों के कातिल को इसी आँगन में मारूंगा ” मैंने कहा.

रोते रोते चंपा बेहोश सी हो गयी थी मैंने उसे बाँहों में उठाया और कमरे में लेजाकर बिस्तर पर सुला दिया.

निशा- बहुत गलत हो गया कबीर , बहुत गलत हो गया

मै- मेरे घर की खुशिया खाई है उसने, बदला जरुर लूँगा. और ऐसा बदला लूँगा की क़यामत तक याद रखेगी दुनिया.

तभी बदहवास सी चाची घर में दाखिल हुई.

मैं- कहाँ थी तुम

चाची-मंदिर में थी , प्रथा के अनुसार मुझे फेरो के बाद ही लौटना था और जब लोटी तो . ये क्या हो गया कबीर



चाची भी रो पड़ी. रो तो हम सब ही रहे थे न . पर मैंने निर्णय कर लिया था उस आदमखोर को कहीं से भी तलाश कर के यही लाना था मुझे . चाहे जंगल को जला देना पड़ता मुझे. रक्त की प्यास उस आदमखोर ने हमारी खुशियों से बुझाई थी ,कीमत तो उसे चुकानी ही थी . बदन प्रतिशोध की अग्नि में इतना धधक रहा था की आदमखोर सामने होता तो आज या तो वो नहीं तो मैं रहता .

“कबीर मैं तेरे साथ चलूंगी ” निशा ने मेरी तरफ आते हुए कहा .

हम दोनों गाँव से बाहर की तरफ चल दिए. लाशो की दुर्गन्ध पीछा ही नहीं छोड़ रही थी .

“तुझे लौट जाना चाहिए , तुझे खतरे में नहीं डाल सकता वैसे भी चोटिल है तू ” मैंने निशा से कहा

निशा- आज तेरा साथ छोड़ दिया तो फिर क्या जवाब दूंगी कल तुझे मैं . छोड़ने के लिए नहीं थामा तुझे मैंने

कुवे की तरफ जाने वाले रस्ते पर खड़ी दोनों गाडियों को मैंने दूर से ही पहचान लिया था , एक गाड़ी राय साहब की थी और दूसरी गाडी भैया की , दोनों गाडियों का साथ होना अजीब था . घर पर मातम मचा था और ये दोनों यहाँ कुवे पर क्या कर रहे थे . सोचने की बात थी .

निशा- खान में चले क्या

मैं- खान में कुछ नहीं मिलेगा निशा, ये गाडिया भरम है और कुछ नहीं. खान में जाना होता तो पैदल आते गाड़िया लेकर नहीं. खान को गुमनाम रखने के लिए इतना कुछ किया गया है

निशा- समझती हूँ पर गाडिया यहाँ मोजूद है तो इनके मालिक भी होने चाहिए ना.

इस से पहले की निशा अपनी बात पूरी कर पाती उसने मुझे झाड़ियो में खींच लिया. हमने देखा की मंगू कुवे की तरफ से आया और राय साहब वाली गाड़ी को स्टार्ट करके वहां से चलता बना .

निशा- ये क्या कर रहा था यहाँ पर

मैं- देखते है , और चोकन्ना रहना . न जाने इनका कौन सा खेल चल रहा है .



हम दोनों कुवे के पास पहुंचे, कमरे को देखा सब कुछ वैसा ही था जो मैं छोड़ कर गया था . पर मंगू का इस परिस्तिथि में यहाँ होना संदेह पैदा कर गया था . निशा से मैंने लालटेन मंगवाई और हम कमरे के चारो तरफ देखने लगे. और जल्दी ही हमें कुछ ऐसा मिला जिसने सोचने समझने की शक्ति को समाप्त कर दिया गया. जहाँ से चले थे घूम कर हम एक बार फिर उसी मोड़ पर खड़े थे ........................
हमने जो सोचा था वही हुआ जिसका अंदेशा था पल भर में सब कुछ बरबाद हो गया खुशियां मातम में बदल गई इतना भयानक दृश्य है कि रोगटे खड़े हो जाए बेचारी चंपा ने आगे आने वाले खूबसूरत पल के बारे में सोचा होगा लेकिन ऐसा होगा नहीं सोचा था जो हुआ है वह अच्छा नहीं हुआ है एक नही कई जाने गई है
भैया और राय साहब की गाड़ी यहां क्या कर रही है वही ये मांगू कहा जा रहा है इसका कुएं पर होना संदेह पैदा कर रहा है
 

Ag Mahan

:dazed:
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Ek baar bola tha Haveli aur Rupali pe horror story likh tab likha nahi aur ab yahan Horror pe horror pele ja raha hai
Is bande ki khasiyat ye hai ki kuch naya nahi hai is kahani mein wahi Bhabhi maa ke liye pyaar wahi main hero ka character wahi Chachi ka character, wahi ganw ki mitti har ek story mein same flow same twist, same suspence pe update chhodna ekdum badla nahi, lekin fir bhi baar baar padhne ka man karta hai, flow itna jabardast hai ki 4hr beet chuke hai abhi 39th No Update pe hu regular to nahi reh paunga par kabhi time mila to tumhaare alawa koi story hai bhi nahi padhne ko to jaroor complete karunga :love:
 
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इसके आगे मैं नहीं पढ़ूँगा ये स्टोरी क्योंकि मैंने पढ़ी है ये कहानी, दिमाग़ ख़राब हो गया मेरा
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जब भाभी का दिल भर गया तो उन्होंने बेल्ट फेक दी और मुझे अपने सीने से लगा कर रोने लगी. रोती ही रही. जिन्दगी में पहली बार मैंने भाभी की आँखों में आंसू देखे.

भाभी- किस मिटटी का बना है तू

मैं- तुम जानो तुम्हारी ही परवरिश है

भाभी- इसलिए तो मैं डरती हूँ . तेरी नेकी ही तेरे जी का जंजाल बनेगी

मैं- जब जानती हो तो फिर क्यों करती हो ये सब

भाभी- क्योंकि तू झूठ पे झूठ बोलता है . तू ही कहता है न की मैं भाभी नहीं माँ हु तेरी और तू उसी माँ से झूठ बोलता है . तू नहीं जानता तू किस चक्रव्यूह में उलझता जा रहा है . तू सोचता है की तू जो कर रहा है भाभी को क्या ही खबर होगी. मैं तुझे समझाते हुए थक गयी की नेकी अपनी जगह होती है और चुतियापा अपनी जगह .

मैं-काश आप मुझे समझ सकती

भाभी- मैं तुझसे समझ सकती . अरे गधे , होश कर . खुली आँखों से देख दुनिया को. तुझे क्या लगता है भाभी पागल है जो तेरे पीछे पड़ी है . तू जो भी कर रहा है सब कुछ जानती हूँ मैं . सब कुछ . जो राह तूने चुनी है उस पर तुझे कुछ नहीं मिलेगा धोखे के सिवाय. जो भी रिस्तो के दामन तू थाम रहा है सब झूठे है . मक्कारी का चोला है सब के चेहरे पर यही तो तुझे समझाने की कोशिश कर रही हु मैं.

मैं- मैं बस अपनी दोस्ती का फर्ज निभा रहा हूँ

भाभी- फर्ज निभाने का मतलब ये नहीं की आँखों पर पट्टी बाँध ली जाये.

मैं- मतलब

भाभी- जिसके लिए तूने इतना बड़ा कदम उठा लिया. मुझसे तक तू झूठ बोला जिसके पाप का बोझ अपने सर पर तूने उठा लिया उस से जाकर एक बार ये तो पूछ की किसका है वो .

मैं- मुझे जरूरत नहीं मैं उसे और शर्मिंदा नहीं करना चाहता

भाभी- य क्यों नहीं कहता की तुझमे हिम्मत नहीं है तू उस सच का हिस्सा तो बनना चाहता है पर जानना नहीं चाहता उस सच को .

मैं- तुम जानती हो न सब कुछ बता दो फिर.

भाभी- जानता है पीठ पीछे ये दुनिया मुझे बाँझ कहती है . पर मैंने कभी बुरा नहीं माना क्योंकि अभिमानु कहता है कबीर इस आँगन में है तो हमें औलाद की क्या जरूरत . तू कभी नहीं समझ पायेगा मुझे कितनी फ़िक्र है तेरी. पराई लाली के लिए जब तुझे गाँव से लड़ते देखा तो तेरे मन के बिद्रोह को मैंने पहचान लिया था . उसी पल से मैं हर रोज डरती हूँ , मैं जानती हूँ तुझे . तुझ पर बंदिशे इसलिए ही लगाई क्योंकि मुझे डर है की तू किसी का हाथ अगर थाम लेगा तो छोड़ेगा नहीं और फिर वो घडी आएगी जो मैंने उस दिन देखि थी . अपने बच्चे को उस हाल में कौन देख पायेगी तू ही बता.

मैं खामोश रहा

भाभी- तूने एक बार भी चंपा से नहीं पूछा की उसके बच्चे का बाप कौन है . ये तेरी महानता है पर तुझे मालूम होना चाहिए . तू हिम्मत नहीं करेगा उस से पूछने की , उसे रुसवा करने की पर इतना तो समझ की दोस्ती का मान तभी होता है जब वो दोनों तरफ से निभाई जाए.

मैं- तुम तो सब जानती हो तो फिर तुम ही बता दो न कौन है वो सक्श

भाभी ने एक गहरी साँस ली और बोली- राय साहब

भाभी ने जब ये कहा तो हम दोनों के बीच गहरी ख़ामोशी छा गयी . ये एक ऐसा नाम था जिस पर इतना बड़ा इल्जाम लगाने के लिए लोहे का कलेजा चाहिए था .और इल्जाम भी ऐसा था की कोई और सुन ले तो कहने वाले का मुह नोच ले.

मैं- होश में तो हो न भाभी

भाभी- समय आ गया है की तू होश में आ कबीर और आँखे खोल कर देख इस दुनिया को. जानती हु परम पूजनीय पिताजी पर इस आरोप को सुन कर तुझे गुस्सा आएगा पर मैं तुझे वो काला सच बता रही हूँ जो इस घर के उजालो में दबा पड़ा है .

मैं- मैं नहीं मानता . तुम झूठ कह रही हो .

भाभी- ठीक है फिर तुम्हारे और चाची के बीच जो रिश्ता आगे बढ़ गया है कहो की वो भी झूठ है .

भाभी ने एक पल में मुझे नंगा कर दिया . भाभी मेरे और चाची के अवैध संबंधो के बारे में जानती थी .

मै चुप रहा . कुछ कहने का फायदा नहीं था .

भाभी- कहो की जो मैं कह रही हूँ झूठ है .

मैं सामने खिड़की से बाहर देखने लगा.

भाभी- मैंने तुमसे इस बारे में कोई सवाल नहीं किया क्योंकि चाची की परवाह है तुम्हे पर वकत है की तुम्हे अब फर्क करना सीखना होगा.

मैं- राय साहब बेटी समझते है चंपा को

भाभी- तू जाकर पूछ चंपा से तेरी दोस्ती की कसम दे उसे . तुझे जवाब मिल जायेगा

मैं- क्या चाची के भी पिताजी से ऐसे सम्बन्ध है

भाभी- ये चाची से क्यों नहीं पूछते तुम

मैं- मेरे सर पर हाथ रख कर कहो ये बात तुम भाभी

भाभी मेरे पास आई और बोली- तू रातो के अंधेरो में भटकता है एक बार इस घर के अंधेरो में देख तुझे उजालो से नफरत हो जाएगी.

मैं- और निशा, उसका क्या तुम्हारी वजह से वो छोड़ गयी मुझे

भाभी- उसे जाना था . वो जानती है एक डाकन और तेरा कोई मेल नहीं

मैं- जी नहीं पाऊंगा उसके बिना

भाभी- तो फिर मरने की आदत डाल ले.

मैं- मोहब्बत की है मैंने निशा से उसे भूल जाऊ ये हो नहीं सकता .

भाभी- दुनिया में कितनी हसीना है . एक से बढ़ कर एक तू किसी पर भी ऊँगली रख मैं सुबह से पहले तेरे फेरे करवा दूंगी.

मैं- तुम समझ नहीं रही हो भाभी . तुम समझ सकती ही नहीं भाभी

भाभी- मैं समझना चाहती ही नहीं क्योंकि मुझमे इतनी शक्ति नहीं है की अपने बच्चे को ज़माने से लड़ते देखू.

भाभी उठ कर चली गयी मेरे मन में ऐसा तूफान छोड़ गयी जो आने वाले समय में सब कुछ बर्बाद करने वाला था . सारी दुनिया के लिए पूजनीय, सम्मानीय मेरा बाप अपनी बेटी की उम्र की लड़की को पेल रहा था . पर सवाल ये था की अगर चंपा को राय साहब ने गर्भवती किया था तो फिर वो पिताजी से मदद क्यों नहीं मांगी .....................कुछ तो गड़बड़ थी .
 

Ben Tennyson

Its Hero Time !!
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एक ऐसी कड़ी जो इन सबको जोड़ सकती थी मुझसे छूट रही थी . प्रकाश की माँ ने जो खुलासा किया उसने कहानी को अलग ही दिशा दे दी थी . चाचा को मरे एक जमाना हो गया था तो फिर कविता जंगल में किससे मिलने जाती थी अगर ये जवाब मिल जाता तो काफी हद तक मामला सुलझ जाता . राय साहब के बिस्तर से मिली चुडिया और कविता के घर से मिली चुडिया कहीं न कहीं इशारा कर रही थी की हो न हो कविता को राय साहब भी चोदते थे.

चलो मान लिया की राय साहब ने कविता को भी चोदा क्योंकि रमा की चुदाई प्रमाण थी पर यहाँ से एक सवाल और खड़ा हो जाता था की हवस के पुजारी ने फिर नंदिनी भाभी और चाची पर डोरे क्यों नहीं डाले.मामला बेहद संगीन था , चुदाई के साथ साथ रक्त की सड़ांध भी फैली हुई थी इस अतीत में . कल का दिन बहुत खास था व्यस्त रहने वाला था पर ये रात, ये रात , इसकी ख़ामोशी मुझे बेचैन किये हुए थी. ब्याह की सब तैयारिया पूरी हो चुकी थी, कल चंपा की डोली उठ जानी थी . जिसे कभी अपनी माना था वो पराई हो जानी थी.



पराई, अपने आप में बहुत भारी था ये शब्द,. पराई तो चंपा तभी हो गयी थी जब उसने मेरे बाप के साथ उस दलदल में उतरने का सोचा. बाप चुतिया को रंगे हाथ चुदाई करते पकड़ भी लेता तो कुछ हासिल नहीं होना था . मुझे तलाश थी उस वजह की , आखिर क्या थी वो वजह जिसकी वजह से ये सब हो रहा था .चाची ने मेरी कसम खाकर कहा था की राय शाब ने कभी भी उसे गन्दी नजरो से नहीं देखा. पर जिस तरह से चाची ने इतना बड़ा राज छिपाया था , क्या मैं पूर्ण विस्वास कर सकता था उस पर.



दो पेग लगाने के बाद भी मुझे चैन नहीं था , मेरी नजर सरला की गांड पर थी जिसे शाल ओढने के बाद भी वो छिपा नहीं पा रही थी .पर खचाखच भरे घर में मौका मिलना था ही नहीं उसे चोदने का. सुबह बड़ी खूबसूरत थी , वैसे तो मैं रोज जल्दी ही उठता था पर आज सुबह की बात ही कुछ और थी. भोर के उजाले में केसरिया रंगत लिए सूरज को देखना सकून था . सुबह सबसे पहले मैंने चंपा को ही देखा जो चाय देने आई थी मुझे.



खूबसूरत तो पहले भी थी वो पर ब्याह का रंग चढ़ा था उस पर उबटन ने उसे और निखार दिया था .

चंपा- क्या देख रहा है कबीर

मैं- देख लेना चाहता हूँ तुझे आज , कल तो परायी हो जाएगी तू

चंपा- एक न एक दिन तो हर लड़की पराई हो ही जाती है किसी न किसी के लिए.

मैं- वक्त कितना जल्दी बीत जाता है न

चंपा- वक्त तो आज भी वही है , बस हम दोनों थोडा आगे बढ़ गए है .ये गलिया, ये घर , ये चौबारे. कल तक यही जी मैं, यही पर बड़ी हुई, कल यही सब छोड़ कर जाना होगा.

मैं- नियति यही है .लडकिया एक घर छोडती है तो एक घर पाती भी है .

चंपा- डोली को सबसे पहले तू हाथ लगाना , इतना हक़ तो देगा न मुझे.



चंपा की बात ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया. आज की रात भारी पड़ने वाली थी मुझ पर , मैंने पहले ही सोच लिया था की रात होते ही मैं कुवे पर चला जाऊंगा. मैं हरगिज नहीं चाहता था की ब्याह में मेरी वजह से रंग में भंग पड़े.

चंपा- कुछ कह रही हूँ तुझसे

मैं- ये भी कोई कहने की बात है .

मैंने चंपा से कह तो दिया था पर कैसे संभाल पाउँगा खुद को ये नहीं जानता था .

“तू वो नहीं बनेगा, क्योंकि तू वो नहीं है तू बस कबीर है ये याद रखना ” निशा के शब्द मुझे याद आने लगे. दिन ऐसे बीत रहा था की जैसे पंख लग गए हो उसके. भाभी, अंजू, चाची और तमाम औरते ऐसे सजी-धजी थी की जैसे आसमान से अप्सराये उतर आई हो पर मेरा दिल जब काबू से बाहर हो गया जब मैंने अपनी जान को आते देखा, या जान जाते देखा.

मैं जनवासे में चाय पानी की वयवस्था देख कर घर आया ही था की मैंने भाभी के साथ निशा को खड़ी देखा, और देखता ही रह गया. जैसे ही हमारी नजरे मिली काबू नहीं रहा खुद पर . दिल किया की बस आगोश में भर लू उसे और उसके गाल चूम लू.

इठलाते हुए निशा मेरे पास आई और बोली- तैयार नहीं हुए अभी तक तुम .

मैं- आओ मेरे साथ

मैं उसे चाची के घर ले पंहुचा और हम दोनों छत पर आ गए . एकांत मिलते ही मैं उस से लिपट गया

निशा- किस बात की बेसब्री है ये

मैं- बहुत अच्छा किया तुमने जो आ गयी .

निशा- मुझे तो आना ही था .

मैं- दिल बहुत घबरा रहा था, रात का सोच कर

निशा- रात ही तो है बीत जाएगी . सोचना ही नहीं उस बारे में .

मैं- और इस खूबसूरत चेहरे के बारे में सोचु या नहीं

निशा- डायन से इश्क किया है तुमने, इस चेहरे के बारे में नहीं सोचोगे तो फिर किसका ख्याल होगा.

निशा ने मेरा माथा चूमा और बोली- निचे जा रही हूँ मेरे आगे-पीछे मत घूमना. नजरो से देखना मुझे, नजरो से छेड़ना मुझे .

मैंने उसका हाथ पकड़ा और कहा- इश्क किया है तुमसे कोई चोरी नहीं की है.

निशा- इसीलिए तो सारे बंधन तोड़ कर आ गयी. तेरा बंधन बाँध लिया पिया .

मैंने उसे फिर से अपने आगोश में खींच लिया . उसकी सांसे मेरे गालो पर पड़ने लगी.

निशा- जाने दो न

मैं- अब कही नहीं जाना तुमको

निशा-जिस दिन ज़माने की छाती पर पैर रख कर आउंगी फिर एक पल दूर ना जाउंगी तुमसे.

बड़ी नफासत से उसने अपनी छातिया मेरे सीने पर रगड़ी और बाँहों से निकल कर निचे चली गयी. नहा-धोकर नए कपडे पहन कर मैं निचे गया तो भाभी और भैया किसी गहरी चर्चा में डूबे थे . मुझे अपनी तरफ आते देख दोनों चुप हो गए. जिन्दगी में पहली बार मैंने भैया के माथे पर बल पड़े देखे.

भाभी- देवर जी, हमे थोडा समय दो

भाभी ने मुझे वहां से जाने को कहा. मैं और काम देखने लगा पर मन में सवाल था की क्या बात कर रहे थे दोनों. जैसे जैसे अँधेरा घिर रहा था मुझ पर अनजाना डर छाता जा रहा था . कुछ ही देर में सुचना आई की बारात जनवासे में पहुँच चुकी है. हम लोग रस्मो के लिए वहां पहुँच गए. बारात को चाय पानी करवाने के बाद गोरवे की रस्म की और शेखर बाबू घोड़ी पर बैठ गए .बैंड बाजा बजने लगा. बाराती नाचने लगे. मेरी नजर आसमान में चमकते चाँद पर पड़ी और छाती में आग सी लग गयी................................
अद्भुत अपडेट भाई धन्यवाद की आपने ये अपडेट दिया मैंने थोड़ा देर से पढ़ा पर तसल्ली हो गई पढ़के !!!!
 
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