Naina
Nain11ster creation... a monter in me
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मैडम ?Bahut badhiya hai madam,
Maza aa gaya, shuruwat bahut achchhi hai.
धन्यवाद नैना जी…....Brilliant update writer sahab.... Great going
Nice update sirभाग 1
दिवाली में अभी दो दिन थे और चारों तरफ की जगमगाहट और शोर-शराबा दिल को कचोट रहा था। मन कर रहा था किसी खामोश अंधेरे कोने में दुबक कर दो तीन दिन पड़ी रहूं। इसलिए मैंने निर्णय लिया था शहर से थोड़ा दूर इस पंद्रहवीं मंजिल पर स्थित फ्लैट में समय व्यतीत करूंगी। दो हफ़्ते पहले पजेशन मिला था , बिल्कुल खाली ,बस बिजली पानी की सुविधा थी,पेंट और वार्निश की गंध अभी भी थी।
मैं कुछ खाने पीने का सामान , पहनने के कपड़े और एक दरी ,दो चादर लायी थी। शहर से थोड़ा दूर
था, रिहायशी कुछ कम थी ,बिल्डर ने मकान आवंटित कर दिए थे धीरे धीरे लोग आने लगेंगे। पांच साल पहले देखना आरंभ किया था अपने मकान का सपना । दोनों परिवारों के विरोध के बावजूद नील और मैंने विवाह किया था। अपने लिए किराए का घर ढूंढते हुए बौरा गए थे,तब अवचेतन मन में अपने आशियाने की कामना घर कर गई। आज यह सपना कुछ हद तक पूरा हो गया है लेकिन अब हमारी राहें जुदा हो गई है। यहां आने से पहले मैं वकील से मिलने गईं थीं कह रहा था बस दिवाली निकल जाने दो फिर कागज तैयार करवाता हूं।
मन अभी भी इस बात को स्वीकारने को तैयार नहीं था कि आगे की जिंदगी नील से प्रथक होकर बितानी है लेकिन ठीक है जब रिश्तो में गर्माहट ही खत्म हो गई तो ढोने से क्या फायदा।इतनी ऊंचाई से नीचे सब बहुत दूर और नगण्य लग रहा था, अकेला पन और अधिक महसूस हो रहा था। शाम के पांच बज रहे थे , आफिस में पार्टी थी ,उस हंगामे से बचने के लिए यहां सन्नाटे की शरण में आयी थी| आसमान में डूबते सूर्य की छटा निराली थी,पर सुहा नहीं रही थी। बहुत रोशनी थी अभी,एक कमरे में दरी बिछाकर एक कोने में लेट गई। न जाने कितनी देर सोती रही ,कुछ खटपट की आवाज से आंखें खुल गईं।
घुप अंधेरा था,जब आंख लगी थी इतनी रोशनी थी कि बिजली जलाने की आवश्यकता नहीं लगी। किसी ने दरवाजा खोलकर घर में प्रवेश किया , मेरी डर के मारे जन निकल गयी ,केयर टेकर ने कहा था वह चाबी केवल मालिक को देता है। लगता है झूठ बोल रहा था, चाबी किसी शराबी को न दे दी हो ,सोचा होगा खाली फ्लैट में आराम से पिएंगे या उसकी स्वयं की नियत में खोट न आ गया हो।
अकेली औरत इतनी ऊंचाई पर फ्लैट में, फायदा उठाने का अच्छा मौका था।।डर के मारे मेरी जान निकल रही थी , आसपास कोई डंडा भी नहीं होगा जिसे अपनी सुरक्षा के लिए इस्तेमाल करती , डंडा होगा भी तो अंधेरे में दिखेगा कैसे। सांस रोके बैठी थी ,अब तो जो करेगा आगंतुक ही करेगा,हो सकता है अंधेरे में कुछ समझ नहीं आये और वापस चला जाएं। तभी कमरा रोशनी से जगमगा उठा और सामने नील खड़ा था। नील को देखकर ऐसी राहत मिली कि अगला पिछला सब भूल कर उठी और उससे लिपट गई। वह उतना ही हतप्रभ था जितनी मैं सहमी हुई। कुछ पल हम ऐसे ही गले लगे खड़े रहे फिर हमारे रिश्ते की हकीकत हमें याद आ गयी। मैं झटके से अलग होते हुए बोली:" तुम यहां क्या कर रहे हो?"
नील संभलते हुए बोला,"वही जो तुम कर रही हो।"
मैं," मैं तो यहां शांति से तीन दिन रहने आयी हूं। तुम नहीं रह सकते यहां, तुम जाओं यहां से।"
नील जिद्दी बच्चे की तरह अकड़ते हुए बोला," क्यों जाऊं? मैं भी बराबर की किश्त भरता हूं इस फ्लैट की। मेरा भी हक है इस फ्लैट पर जितना तुम्हारा। मैं तो यहीं रहूंगा जब तक मेरा मन करेगा। तुम जाओ अगर तुम्हें मेरे रहने से एतराज़ है "
मैंने भी अपने दोनों हाथ कमर पर रखते हुए झांसी की रानी वाली मुद्रा में सीना चौड़ा करके कहा," मैं क्यों जाऊं?" मन में सोच रही थी अब तो मर भी जाऊं तो भी नहीं खिसकूंगी इस जगह से।
हम दोनों को ही अड़ जाने की आदत है।
नील झटके से एक सौ अस्सी डिग्री के कोण पर पलटा और दूसरे कमरे में चला गया। मैं ने कुछ सेंडविच बने रखें थे घर में वह डिब्बे में रख लिए थे और कुछ कोल्डड्रिंक रास्ते से खरीद ली थी। सोच रही थी पहले खां लेती हूं लेकिन नील भी भूखा होगा, उससे पूछ लेती हूं। बाहर जिस कमरे को वह ध्यान से देख रहा था वह ड्राइंगरुम था , बड़ी सुंदर लाइट लगाई है । इसमें अपनी पसंद के परदे और फर्नीचर लगाने में कितना आनन्द आता। खैर मैंने नील की तरफ खाने का डिब्बा बढ़ा दिया । उसके पास कोई सामान नहीं था
, आफिस से निकलते हुए मन में आया होगा चल कर फ्लैट में रहा जाए और मुंह उठा कर आ गया। कैसे रहेगा क्या खाएगा सोचने इसके फरिश्ते आएंगे। कहीं ऐसा तो नहीं यह केवल फ्लैट देखने आया था मुझे देख कर स्वयं भी यहां टिकने का मन बना लिया। इसे मुझे चिढ़ाने में बहुत मज़ा आता है। नील हक से डिब्बा लेकर बाहर बालकनी में जाकर दिवार का सहारा लेकर फर्श पर बैठ गया। डिब्बा उसके हाथ में था मजबूरन मुझे उसके पास जमीन पर बैठना पड़ा। आसमान में बिखरे अनगिनत तारें निकटता का एहसास दे रहे थे और अंधेरे में दूर तक जगमगाती रोशनी भी तारों का ही भ्रम दे रही थी। ख़ामोशी से बैठ यह नजारा देख बड़ा सुकून मिल रहा था लेकिन अगर अकेली होती तो इस विशालता का आनंद लें पाती। न चाहते हुए भी मुंह से निकल गया," कैसे हों?
Congratulations to New thread !!भाग 1
दिवाली में अभी दो दिन थे और चारों तरफ की जगमगाहट और शोर-शराबा दिल को कचोट रहा था। मन कर रहा था किसी खामोश अंधेरे कोने में दुबक कर दो तीन दिन पड़ी रहूं। इसलिए मैंने निर्णय लिया था शहर से थोड़ा दूर इस पंद्रहवीं मंजिल पर स्थित फ्लैट में समय व्यतीत करूंगी। दो हफ़्ते पहले पजेशन मिला था , बिल्कुल खाली ,बस बिजली पानी की सुविधा थी,पेंट और वार्निश की गंध अभी भी थी।
मैं कुछ खाने पीने का सामान , पहनने के कपड़े और एक दरी ,दो चादर लायी थी। शहर से थोड़ा दूर
था, रिहायशी कुछ कम थी ,बिल्डर ने मकान आवंटित कर दिए थे धीरे धीरे लोग आने लगेंगे। पांच साल पहले देखना आरंभ किया था अपने मकान का सपना । दोनों परिवारों के विरोध के बावजूद नील और मैंने विवाह किया था। अपने लिए किराए का घर ढूंढते हुए बौरा गए थे,तब अवचेतन मन में अपने आशियाने की कामना घर कर गई। आज यह सपना कुछ हद तक पूरा हो गया है लेकिन अब हमारी राहें जुदा हो गई है। यहां आने से पहले मैं वकील से मिलने गईं थीं कह रहा था बस दिवाली निकल जाने दो फिर कागज तैयार करवाता हूं।
मन अभी भी इस बात को स्वीकारने को तैयार नहीं था कि आगे की जिंदगी नील से प्रथक होकर बितानी है लेकिन ठीक है जब रिश्तो में गर्माहट ही खत्म हो गई तो ढोने से क्या फायदा।इतनी ऊंचाई से नीचे सब बहुत दूर और नगण्य लग रहा था, अकेला पन और अधिक महसूस हो रहा था। शाम के पांच बज रहे थे , आफिस में पार्टी थी ,उस हंगामे से बचने के लिए यहां सन्नाटे की शरण में आयी थी| आसमान में डूबते सूर्य की छटा निराली थी,पर सुहा नहीं रही थी। बहुत रोशनी थी अभी,एक कमरे में दरी बिछाकर एक कोने में लेट गई। न जाने कितनी देर सोती रही ,कुछ खटपट की आवाज से आंखें खुल गईं।
घुप अंधेरा था,जब आंख लगी थी इतनी रोशनी थी कि बिजली जलाने की आवश्यकता नहीं लगी। किसी ने दरवाजा खोलकर घर में प्रवेश किया , मेरी डर के मारे जन निकल गयी ,केयर टेकर ने कहा था वह चाबी केवल मालिक को देता है। लगता है झूठ बोल रहा था, चाबी किसी शराबी को न दे दी हो ,सोचा होगा खाली फ्लैट में आराम से पिएंगे या उसकी स्वयं की नियत में खोट न आ गया हो।
अकेली औरत इतनी ऊंचाई पर फ्लैट में, फायदा उठाने का अच्छा मौका था।।डर के मारे मेरी जान निकल रही थी , आसपास कोई डंडा भी नहीं होगा जिसे अपनी सुरक्षा के लिए इस्तेमाल करती , डंडा होगा भी तो अंधेरे में दिखेगा कैसे। सांस रोके बैठी थी ,अब तो जो करेगा आगंतुक ही करेगा,हो सकता है अंधेरे में कुछ समझ नहीं आये और वापस चला जाएं। तभी कमरा रोशनी से जगमगा उठा और सामने नील खड़ा था। नील को देखकर ऐसी राहत मिली कि अगला पिछला सब भूल कर उठी और उससे लिपट गई। वह उतना ही हतप्रभ था जितनी मैं सहमी हुई। कुछ पल हम ऐसे ही गले लगे खड़े रहे फिर हमारे रिश्ते की हकीकत हमें याद आ गयी। मैं झटके से अलग होते हुए बोली:" तुम यहां क्या कर रहे हो?"
नील संभलते हुए बोला,"वही जो तुम कर रही हो।"
मैं," मैं तो यहां शांति से तीन दिन रहने आयी हूं। तुम नहीं रह सकते यहां, तुम जाओं यहां से।"
नील जिद्दी बच्चे की तरह अकड़ते हुए बोला," क्यों जाऊं? मैं भी बराबर की किश्त भरता हूं इस फ्लैट की। मेरा भी हक है इस फ्लैट पर जितना तुम्हारा। मैं तो यहीं रहूंगा जब तक मेरा मन करेगा। तुम जाओ अगर तुम्हें मेरे रहने से एतराज़ है "
मैंने भी अपने दोनों हाथ कमर पर रखते हुए झांसी की रानी वाली मुद्रा में सीना चौड़ा करके कहा," मैं क्यों जाऊं?" मन में सोच रही थी अब तो मर भी जाऊं तो भी नहीं खिसकूंगी इस जगह से।
हम दोनों को ही अड़ जाने की आदत है।
नील झटके से एक सौ अस्सी डिग्री के कोण पर पलटा और दूसरे कमरे में चला गया। मैं ने कुछ सेंडविच बने रखें थे घर में वह डिब्बे में रख लिए थे और कुछ कोल्डड्रिंक रास्ते से खरीद ली थी। सोच रही थी पहले खां लेती हूं लेकिन नील भी भूखा होगा, उससे पूछ लेती हूं। बाहर जिस कमरे को वह ध्यान से देख रहा था वह ड्राइंगरुम था , बड़ी सुंदर लाइट लगाई है । इसमें अपनी पसंद के परदे और फर्नीचर लगाने में कितना आनन्द आता। खैर मैंने नील की तरफ खाने का डिब्बा बढ़ा दिया । उसके पास कोई सामान नहीं था
, आफिस से निकलते हुए मन में आया होगा चल कर फ्लैट में रहा जाए और मुंह उठा कर आ गया। कैसे रहेगा क्या खाएगा सोचने इसके फरिश्ते आएंगे। कहीं ऐसा तो नहीं यह केवल फ्लैट देखने आया था मुझे देख कर स्वयं भी यहां टिकने का मन बना लिया। इसे मुझे चिढ़ाने में बहुत मज़ा आता है। नील हक से डिब्बा लेकर बाहर बालकनी में जाकर दिवार का सहारा लेकर फर्श पर बैठ गया। डिब्बा उसके हाथ में था मजबूरन मुझे उसके पास जमीन पर बैठना पड़ा। आसमान में बिखरे अनगिनत तारें निकटता का एहसास दे रहे थे और अंधेरे में दूर तक जगमगाती रोशनी भी तारों का ही भ्रम दे रही थी। ख़ामोशी से बैठ यह नजारा देख बड़ा सुकून मिल रहा था लेकिन अगर अकेली होती तो इस विशालता का आनंद लें पाती। न चाहते हुए भी मुंह से निकल गया," कैसे हों?