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Romance दरमियां (Completed)

Sona

Smiling can make u and others happy
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Ashish Jain

कलम के सिपाही
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भाग 2


आपने पढ़ा:–
आसमान में बिखरे अनगिनत तारें निकटता का एहसास दे रहे थे और अंधेरे में दूर तक जगमगाती रोशनी भी तारों का ही भ्रम दे रही थी। ख़ामोशी से बैठ यह नजारा देख बड़ा सुकून मिल रहा था लेकिन अगर अकेली होती तो इस विशालता का आनंद लें पाती। न चाहते हुए भी मुंह से निकल गया," कैसे हों?"
अब आगे
नील आसमान ताक रहा था , मेरे प्रश्न पर सिर घुमाकर मुझे देखने लगा , एकटक कुछ पल देखने के बाद बोला ," बहुत सुंदर लग रही हो इस ड्रेस में।"
नील ने दिलाई थी जन्मदिन पर कुछ महीनों से पैसे जोड़ रहा था," इस बार तुझे महंगी सी पार्टी वियर ड्रेस दिलाऊंगा कहीं भी जाना हो बहुत साधारण कपड़े पहन कर जाना पड़ता है तुझे।"
सारा दिन बाजार घूमते रहे लेकिन नील को कोई पसंद ही नहीं आ रही थी । फिर यह कढ़ाई वाली चटक मैरून रंग की कुर्ती और सुनहरी प्लाजो देखते ही बोला था यह पहन कर देख रानी लगेगी। शीशे में देखने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी उसकी आंखों ने बता दिया ड्रेस मुझ पर कितनी फब रही थी ‌। कितना समय हो गया इस बात को , मौके का इंतजार करती रही किसी खास पार्टी में पहनूंगी इतनी महंगी है कहीं गंदी न हो जाए ‌। आज आफिस में फंक्शन में पहनने के लिए निकाली थी लेकिन न जाने क्यो इतनी भीड़ में शामिल होने का मन नहीं कर रहा था। लगा सबको हंसता बोलता देख कहीं दहाड़े मारकर रोने न लग जाऊं ।कुछ सामान इकट्ठा किया और यहां आ गई इससे पहले कि मेरा बाॅस हिरेन मुझे लेने आ जाता। नील अभी भी मुझे देख रहा था बोला ," इसके साथ झुमके भी लिये थे वो नहीं पहनें।" दो सौ रुपए के झुमके भी खरीदें थे ,बड़े चाव से । कैसे एक एक वस्तु दिलाकर खुश होता था , मैं हंस कर कहती ," ऐसे खुश हैं रहे हो जैसे स्वयं पहन कर बैठोगे।"
वह मुस्करा कर कहता," मैं अगर यह सब पहनता होता तो भी मुझे इतनी खुशी नहीं मिलती जितनी तुझे पहना देख कर मिलती है।"
कितना प्रेम था हम दोनों के बीच , लेकिन सुरक्षित भविष्य की चाहत में ऐसे दौड़ पड़े कि वर्तमान असुरक्षित कर लिया ,एक दूसरे से ही दूर हो गये।
मैंने लम्बी सांस लेते हुए कहा ," हिरेन के साथ पार्टी में जाने के लिए तैयार हो रही थी लेकिन मन नहीं कर रहा था इसलिए उसके आने से पहले ही जल्दी से निकल गई।"
हिरेन का नाम सुनते ही नील का चेहरा उतर गया ,न जाने क्या ग़लत फहमी पालें बैठा है दिमाग में। रात बहुत हो गई थी मैं उठ खड़ी हुई ,जिस कमरे में मैं ने सामान रखा था वहां चली गई।रात के कपड़े बदल कर लेटने के लिए दरी बिछाई तो ध्यान आया नील कैसे सोएगा, बिना कुछ बिछाएं। ऐसे कैसे बिना कुछ सामान के रात बिताने यहां आ गया , कितना लापरवाह हो गया है। बाहर आकर देखा तो नील अभी भी पहले की तरह बालकनी में दिवार के सहारे बैठा आसमान को टकटकी लगाए देख रहा था । कितना कमजोर लग रहा था , पहले जरा सा भी दुबला लगता था तो आधी रोटी अधिक खिलाएं बिना छोड़ती नहीं थी।
अब मुझे क्या? क्या रिश्तो के मतलब इस तरह बदल जाते हैं। मैंने उसकी तरफ चादर बढ़ाते हुए कहा," यह लो चादर ले लो , बिछाकर लेटना फर्श ठंडा लगेगा।" नील मेरी तरफ देखे बिना बोला," नहीं रहने दो इसकी आवश्यकता नहीं है।"
मैं," मेरे पास दो हैं,ले लो।"
नील बैठे बैठे ही एकदम से मेरी तरफ मुड़ा,उसका मुख तना हुआ था और दबे हुए आक्रोश के साथ बोला," जाओ यहां से फिर बोलोगी मुझे केवल तुम्हारी देह की पड़ी रहती है , तुम्हारे शरीर के अलावा मुझे कुछ नजर नहीं आता।"
जब से यह वाक्या हुआ था हमारे बीच की दरार खाई बन गई थी।वह ताने मारकर बात करता और मैं शांति बनाए रखने के लिए खामोश रहती। अब भाड़ में जाए शांति।
मैं," तो क्या ग़लत बोला था ,थकी हारी आफिस से छः बजे आती और तुम बस वो सब करना चाहते थे।" वैसे तो मुझे उसके छूने से, उसके करीब आने से एक नैसर्गिक प्रसन्नता और तृप्ति मिलती थी लेकिन उन दिनों आफिस के माहौल से बहुत परेशान थी।मन करता था घर आते ही नील के कंधे पर सिर रखकर आफिस की भड़ास निकालकर थोड़ा रोने का । लेकिन उसे आधे घंटे में ट्यूशन देने निकलना होता था, मेरे आते ही वह मुझे बांहों में खींचकर चूमने लगता। उस दिन कुछ तबीयत ठीक नहीं थी और आफिस में कुछ अधिक ही कहा सुनी हो गई ।भरी बैठी थी उसके करीब आते ही सारा आक्रोश उस पर निकल गया, धक्का देते हुए बोली," इस तन के अलावा और कुछ नहीं सूझता क्या?"
वह ठिठक गया, फिर एकदम से पलट कर बाहर चला गया।
रात को बारह बजे तक आता था और मेरी नींद न खुलें , ड्राइंगरुम में ही सो जाता था।उस रात भी उसने ऐसा ही किया,सुबह जब मेरी आंख खुली वह तैयार हो कर आफिस जा रहा था। बिना कुछ खाए और बोले वह चला गया।शाम को मेरे आने से एक घंटे पहले घर आ जाता था और मेरे आते ही हम आधे घंटे अपनी तन मन की सब बातें करते थे। इसके अलावा हमारे पास एक दूसरे के लिए समय नहीं होता था लेकिन अब मेरे आने से पहले वह निकल जाता था। रोना तो बहुत आता था ,पर मैं सही थी उसके पास मुझसे बात करने के लिए दो पल भी नहीं होते थे।
वो खड़ा हो गया मेरे कंधों को जोर से पकड़ते हुए चीखते हुए बोला," तुमने उस दिन मेरे प्रेम को गाली दी,जीवन में अगर अपने से अधिक किसी को प्यार किया तो वह तुम हो।अगर केवल तुम्हारे तन का भूखा होता तो कालेज में तीन साल तक बिना हाथ लगाये नहीं रहता। मन तो तब बहुत मचलता था लेकिन कसम खायी थी तुम्हारी इज्जत से कभी खिलवाड़ नहीं करूंगा। वही तो आधा घंटा मिलता था करीब आने का ,सारा दिन बीत जाता तुम्हारे बारे में सोचते-सोचते और तुम्हारे साथ की इच्छा में। तुम्हारे नजदीक आकर पूर्णता का एहसास होता,स्फूर्ति आ जाती, दुनिया का सामना करने की ताकत मिल जाती। मेरे प्रेम की अभिव्यक्ति थी वह, तुम में समा कर इतने करीब हो जाने का अहसास था कि लगता हम एक हैं। "
उसने मेरे कंधे छोड़ दिये , आवाज थरथरा रही थी , आंखों में दर्द था और वह लड़खड़ाते हुए बाथरूम में चला गया। मेरा मन भारी हो गया , उसकी दृष्टि से कभी सोचने की कोशिश नहीं की। दोनों एक दूसरे का साथ चाहते थे , लेकिन अलग-अलग तरीके से।जीवन की भागदौड़ में समय इतना कम जरूरतें इतनी अधिक सब बिखर गया।बात केवल इन गलतफहमियों के कारण बिगड़ी होती तो शायद संभल जाती, लेकिन हमारे रिश्ते में धोखा और झूठ भी शामिल हो गए थे। कमरे में जाकर लेट गई और रोते रोते कब सो गई पता नहीं चला।
 

Ashish Jain

कलम के सिपाही
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Nice update sir
Nice update
Wonderful update. today's real world story in perspective.


धन्यवाद दोस्तों इंतेज़ार करने के लिए... द्वितीय भाग में ने दे दिया है... पढ़ कर सुझाव दें....
 
Last edited:

Chinturocky

Well-Known Member
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Bahut hi behtareen,
Pata nahi kya kahu,
Dhokha aur jhut wali baat ne to dil tod diya,
Dekhate hai Shayad wo bhi galat fahami ho,
Kai baar hum apni khushi se jyada dusare ki khushi ki parwah karne ke chakkar me khud hi tay karne lagte hai ki usake liye kya sahi hai kya galat. Ye nahi sochate ki use kya chahiye wo kya chahti/chahta hai.
 
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