खंड ७
मुक्ति
लायो भाग रहा था उस ठंडी रात में,
अपने पिता के पीछे,
उस जग्गा की दुकान की तरफ,
और लायो के साथ थे कुछ गाव वाले !
लायो को शुरू से लगता था की गाव के मंदिर का जो खजाना था,
उसको उसके दादा ने कही छिपा दिया,
और
सिर्फ कामरू ही जानता था की वो कहा है !
लायो को लगता था की उसके पिता उसको उस खजाने के बारे में नहीं बताना चाहता है,
इसी कारण,
वह कामरू को बहुत सताता था,
बहुत बुरा व्यवहार करता था अपने पिता के साथ,
लेकिन उसको क्या पता था की
जिस खजाने की तलाश में वो अपने पिता पर शक करता था
उसके बारे में खुद कामरू को भी नहीं पता था,
खजाने के लालच में बहुत दुःख दिया था उसने अपने पिता,
बहुत तडपाया था उसने कामरू को,
लालच बहुत ही मझेदार वस्तु है – जब यह दुसरो के पास होती है तब यह सभी को दिखाई देती है, लेकिन जब यह स्वयं के पास होती है तो आखे बंद कर लेता है, किसी भी नहीं नहीं सुनता है
लायो भाग रहा था जग्गा की दुकान की तरफ,
भाग रहा था,
बहुत देर से भाग रहा था,
लेकिन आज ऐसा लग रहा था की वो अनन्त की ओर भाग रहा है,
ऐसा लग रहा था की आज यह रास्ता कभी ख़त्म ही नहीं होगा,
गाव वाले भी हैरान थे की इतनी दूर तो नहीं थी जग्गा की दूकान !
लेकिन लायो ये सब नहीं सोंच रहा था,
उसका मस्तिष्क काम नहीं कर रहा था,
वो तो बस उस लालच के सहारे भागा ही जा रहा था लेकिन उसको नहीं पता था की आज उसका लालच उसको कही नहीं पहुचने वाला है !
उस ठन्डे वातावरण में जग्गा की दुकान का वातावरण बहुत ही गर्म अहसास कराने वाला था ! जग्गा का छोटा-सा मस्तिष्क ये सब बाते सोचने की हालात में नहीं था, वो तो बस अभी क्या हो रहा है वो सुन रहा था, कामरू शांत था उसे अपने सारे प्रश्नों का उत्तर मिल चूका था लेकिन अब वो बुड्ढा यात्री उत्सुक था कुछ जानने के लिए, इवान का पता जानने के लिए !
उस बुड्ढे यात्री ने उस वचन का हल निकलने के बाद बहुत ढूंढा इवान को,
बहुत खोजा उस को,
बहुत जतन किये उसने,
लेकिन कही पर उसका कोई सुराख़ नहीं मिला,
ऐसा लग रहा था,
कि जैसे शुन्य ने निगल लिया हो उसे !
फिर उसने कुछ सोचा,
याद आया उसे,
हा,
हा,
उस घटना के बाद इवान गया था उस रात कमरू से मिलने,
कुछ बताया होगा उसने कामरू को,
बस,
इसीलिए,
इसीलिए आया था वो बुड्ढा यात्री कामरू के पास,
इवान का पता लगाने,
क्योकि कृतिका की निर्जीव काया की सुरक्षा की जिम्मेदारी उसकी थी और अब जरुरत थी उसकी,
इसीलिए जरुरी था इवान का मिलना,
कृतिका का मिलना,
अब वचन के पूर्ण होने का समय हो चूका था !
“अब बता भी दे कामरू, कहा है इवान, कहा है तेरा पिता” अब वो यात्री उतावला वो रहा था इवान का पता जानने के लिए
कामरू रूखे स्वर में बोलने लगता है “उस रात आये थे पिताजी, बहुत रोया में, बहुत दुखी था में, सब लोग मेरे पिता को चौर बोल रहे थे, लेकिन पिताजी बहुत ही जल्दी में थे उस दिन, कुछ कहा मेरे पिता ने मुझे, मेने शांति से सुना सब कुछ, फिर वो चले गए वहा से”
“क्या कहा इवान ने ?, कहा गया वो ?, किस तरफ गया वो ?”
“माफ़ करना बाबा, लेकिन पिताजी ने ये बात सिर्फ धुरिक्ष को ही बताने को कहा था, की एक दिन आएगा धुरिक्ष, उसी को कहना की में कहा जा रहा हु”
कुछ देर शांति रही वहा पर,
अब सामान्य हो चूका था वो बाबा,
वापस चिलम पर अपना मुह लगाये
और इस बार
जोर से एक कश खीचा,
इसी के साथ चिलम को पूरा किया उसने,
साफ किया
और फिर
अपने झोले में रख दी उसको,
अब उठा वो अपनी जगह से,
गया अलाव के पास,
एक बाल तोडा उसने अपनी जटा से,
अलाव से हल्का सा जलाया,
और
एक हल्की सी आवाज के साथ उसको उड़ा दिया हवा में –“धुरिक्ष”
अब चौका जग्गा और कामरू,
एक भीनी-सी खुशबु भरी उनके नथुनों में,
केसर की भीनी-सी खुशबु,
एक मदहोशी भरी खुशबु,
और इसी की साथ,
एक बलिष्ठ शरीरधारी प्रकट हुआ,
शुन्य में से,
एक अलौकिक रौशनी फुट पड़ी वहा पर,
सब नहा गए उस रौशनी में,
जग्गा और केशव,
दोनों ने पहली बार देख था कुछ अलौकिक,
उनकी आखे खुली की खुली रह गयी,
धुरिक्ष,
धुरिक्ष खड़ा था उन तीनो के सामने अब,
“समय आ गया धुरिक्ष” वो बाबा धुरिक्ष को देखते हुए बोलता है “अब तुम मुक्त हुए”
मुक्त,
हा,
मुक्त हुआ धुरिक्ष,
बाबा की कैद से,
बाबा ने उसको कैद कर लिया था अपनी जटाओं में,
बाबा ने कैद कर लिया था उसको स्वयं धुरिक्ष के कहने पर,
उस घटना के बाद धुरिक्ष टूट चूका था,
अथाह शक्ति होने बावजूद भी अशक्त हो गया था वो,
फिर उसने निर्णय लिया,
कैद होने का निर्णय,
ताकि समय शक्ति का बोध ना हो उसको,
शारीरिक पीड़ा तो सहन कर सकता था वो,
लेकिन,
लेकिन ह्रदय की पीड़ा अब उसके लिए मृत्यू से भी दुष्कर थी
अपने को बाबा के सामने देख बैठ गया धुरिक्ष,
अपने घुटनों पर आ गया धुरिक्ष,
“देख कामरू, आ गया धुरिक्ष, अब बता कहा है इवान” अब बाबा थोडा कठोर हुआ “जल्दी बता, अब समय नहीं है हमारे पास”
लेकिन कामरू और जग्गा तो जैसे भूल ही गए थे अपने आप को,
पहली बार किसी अलौकिक शक्ति को देख रहे थे,
गान्धर्व को देख रहे थे,
यद्यपि वो गान्धर्व अपने घुटनों के बल बैठा था,
फिर भी जग्गा को उसके चेहरे को देखने के लिए अपना सर ऊचा करना पड़ रहा था
समझ गया वो बाबा उनकी इस हालात को,
जब कोई पहली बार एसी किसी महा शक्ति के संपर्क में आता है तो,
वो,
विक्षुप्त हो जाता है,
विक्षुप्त हो जाती है उसकी चेतना,
उसका चेतन मस्तिष्क काम करना बंद कर देता है,
कई लोग पागल तक हो जाते है,
वो इस उर्जा के दबाव को सहन नहीं कर पाते है,
कई तो इस अलौकिक उर्जा के दबाव के कारण लकवाग्रस्त तक हो जाते है,
अब यही हालात कामरू और जग्गा की थी,
वे भी सहन ना कर सके इस उर्जा को,
अब बाबा को उनके शरीर को पुष्ट करना था,
ताकि उसकी चेतना वापस खड़ी हो जाये,
अपने सामान्य होश में आ जाये
अब बाबा ने इशारा किया धुरिक्ष को,
समझ गया धुरिक्ष और ले लिया मनुष्य का रूप,
और ख़त्म किया उसने उर्जा के प्रवाह को कामरू और जग्गा के शरीर से,
अब संयत हुए वो दोनों वापस
और
वही गिर पड़े वही पर और अचेत हो गए,
कुछ समय लगना था उनके शरीर की उर्जा को सामान्य होने में,
समय लगना था अब उसको होश में आने के लिए,
कुछ समय और,
कुछ समय
बहुत ही शानदार और रोचक अपडेट।
बस एक बात कहना चाहता हु कि, भाई अपडेट बहुत ही छोटे है पढ़ना शुरू किया नही कि खत्म।
अनुरोध है कि अपडेट की साइज थोड़ी बड़ी कीजिये भाई