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Fantasy दलक्ष

Naik

Well-Known Member
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धुरिक्ष

संध्या का समय था, पूरी पहाड़ी पर उत्सव का माहौल हो रखा था, सभी लोग मंदिर के बाहर उस छोटे से मैदान में इक्कट्ठा हो रहे थे, मंदिर को बहुत ही अच्छी तरह से सजाया गया था, मैदान में रात्रि के भोग की तैयारी चल रही रही थी, कई लोग रोशनी कर रहे थे, तो कई अलाव जलाने की तैयारी कर रहे थे, तो कई लोग अभी-अभी आ ही रहे थे, बड़े-बुजुर्ग अपने भावी पीढ़ी को दिशा-निर्देश दे रहे थे, चारो तरफ वाद्ययंत्रो की हल्की-हल्की ध्वनि गूंज रही थी, और बच्चे की मस्ती और खेल-कूद की भरी आवाजो से मानो जैसे की पुरा जश्न जीवंत हो रहा हो

उत्सव की तैयारी लगभग-लगभग पूरी हो ही चुकी थी, अब बस मुखिया के आने की ही देर थी, जो की उस मंदिर के देवता को प्रथम भोग चढाते और उत्सव की शुरुआत करते ! लेकिन ऐसा लग रहा था की इस बार मुखिया को आने में कुछ ज्यादा ही देर हो रही थी

कुछ समय बाद इवान आ गया,

मुखिया आ गया !

हा,

इवान ही गाव का मुखिया था !

इवान के आते ही नगाड़ो की आवाजो ने पूरी पहाड़ी को गूंजा दिया,

अलाव जला दिए गए,

पूरा माहौल ख़ुशी से झूम गया,

बस एक को छोड़ कर,

इवान को छोड़ कर !

सुबह से उसे अपनी बहन की फिक्र हो रही थी,

हर रोज तो संध्या होते ही आ जाती थी,

लेकिन,

आज नहीं लौटी वो !

उसी की चिंता हो रही थी इवान को !

आज उसका मन,

कुछ ज्यादा ही बैचैन हो रहा था,

लेकिन,

मुखिया होने की जिम्मेदारी ने बांध दिया था आज उसको !

नगाड़ो की आवाज कुछ ज्यादा ही तेज हो चुकी थी,

भोग लगाने का समय हो चूका था,

सभी बढ़ चले मंदिर की तरफ,

और सबसे आगे था इवान !

आ गए सभी मंदिर के सम्मुख,

लेकिन,

जैसे ही मंदिर के अन्दर कदम रखने ही वाला था इवान,

तभी,

एक आवाज गूंजी,

बहुत थी भयानक,

पूरा पहाड़ हिल पड़ा,

जैसे भूकंप आ पड़ा हो,

दियो को रोशनी और अलाव,

सभी बुझ गए एक ही पल में,

अँधेरा हो गया पूरी पहाड़ी पर,

अब,

आशंका उठी इवान के मन में,

घोर आशंका,

किसी अनिष्ट की,

अब,

मन नहीं रहा उसका,

भाग चला वो,

उस मंदिर से दूर,

उस उत्सव से दूर,

उन घने जंगलो की तरफ,

जिस तरफ से कृतिका आया करती थी,

हलचल हुई गाव के लोगो में,

अँधेरे की वजह से कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था,

कुछ समय बाद लोग शांत हुए,

वापस रोशनी की गयी,

लेकिन अब गाव वालो को चिंता हुई,

मुखिया वहा से गायब था,

और उस से भी बड़ी चिंता का विषय था उनके लिया वो मंदिर,

उस मंदिर के देवता के आभूषण,

सब गायब थे वहा से,

सब कुछ,

मंदिर सुना हो चूका था

सब कुछ

मै....

इतना कहते ही वो बुड्ढा यात्री छुप गया, जैसे कही शुन्य में खो सा गया वो ! थोड़ी देर बाद कुछ ना बोलने पर जग्गा ने आवाज दी उनको “बाबा ओ बाबा” लेकिन जैसे की बाबा ने कुछ सुना ही ना हो, थोडा समय बीता, लेकिन बाबा तो जैसे बोलने का नाम भी नहीं ले रहे थे जैसे किसी समयपाश में बंध गए हो !

अब कामरू अधीर हो उठा,

बैचेन हो उठा,

आगे क्या हुआ,

कुछ प्रश्न उठे उसके मन में,

क्या बाबा इसी गाव की बात कर रहे है,

क्या बाबा मेरे ही बचपन की बात कर रहे है,

क्या मेरे पिता की,

की क्या हुआ था उस दिन,

क्या हुआ था उन आभूषणों के साथ,

जिनकी चौरी का आरोप लगा था उन पर,

ये सारे प्रश्न अब उसके चित में घुमने लगे,

अब भारी हुआ उसका सीना,

उठा वो अपनी जगह से,

हिलाया उसने उन बुड्ढे बाबा को

“बाबा, क्या हुआ था उस दिन ?, क्या हुआ था मेने पिता के साथ, उन आभूषणों के साथ ?”

उस बुड्ढे यात्री ने देखा उसकी तरफ अब,

देखा उसकी अधीरता को,

और वापस एक लम्बा सा कश लेकर बोल पड़ता है

.

.

उस दिन मै वही था,

सब कुछ मेरे आखो में सामने ही हुआ था,

गवाह था मै उस निर्मम कृत्य का,

उस दुराचारी के पाप का,

लेकिन,

कर भी क्या सकता था मै,

बंधा था मै,

उस वचन से बंधा था मै,

जिसको चोलोमूंगमा ने दिया था सबको,

उसके वचन के पूर्ण होने में अब कुछ ही समय बचा था,

लेकिन जैसे की होनी को कुछ और ही मंजूर था,

लगता है उसके प्रेमी को विधाता की परीक्षा में पास होना अभी शेष था,

जैसे विधाता भी उसके सब्र के साथ खेल रहा हो,

आ गया उसका प्रेमी वहा पर,

एक भी पल की देरी किये बिना,

जैसे की शुन्य से प्रकट हुआ वो,

गान्धर्व कुमार,

“धुरिक्ष”,

सुनहरा वर्ण,

अलौकिक देहधारी,

बलशाली,

लेकिन,

बहुत देर हो चुकी थी अब,

देखा उसने अपने प्रेमीका को,

निष्प्राण,

देह पड़ी थी उस तालाब के किनारे,

यह देख धुरिक्ष का सीना जैसे फट पड़ा,

दहाडा वो,

हुंकार भरी उसने,

जैसे पूरा पर्वत कांप गया उस हुंकार से,

वहा का ठंडा वातावरण उसके क्रोध से गर्म होने लगा,

अब उसका क्रोध उसके सीमा से बाहर हो गया,

जैसे की अब पुरे पर्वत को ही भस्म कर देगा वो,

पहली बार,

जीवन में पहली बार भय लगा मुझे,

कितनो ही यक्षो और ब्रह्मराक्षसो को धुल चटाई थी मेने,

कितने ही गन्धर्वो को नचाया था मेने,

लेकिन,

उस दिन,

उस गान्धर्वकुमार का विशुद्ध प्रेम देख डर गया में भी,

उस दिन लगा मुझको,

अनुभव किया मैंने,

प्रेम की अथाह शक्ति को,

प्रेम के स्वरुप को स्वीकारा मेने,

अब,

चिंता हुई मुझको,

उस पहाड़ी पर बसे लोगो की,

पहाड़ी के नष्ट होते ही,

वे भी,

बिना किसी अपराध के,

इस पहाड़ी के साथ,

काल का ग्रास बनते,

अब उतरा में उस प्रेमी के क्रोध के बीच,

याद दिलाया मेने उस वचन को उसको,

ललकारा उसके प्रेमिका की आन को,

उसके प्रेम की आन की खातिर,

शांत होना पड़ा,

उसके प्रेम की पूर्णता की प्राप्ति के खातिर,

शांत होना पड़ा उसको,

धन्यवाद दिया उसके इस बलिदान को,

क्योकि वो सक्षम था सब कुछ भस्म करने में,

सब कुछ तबाह करने में,

अब कुछ करना था मुझे,

उस वचन की काट करनी जरुरी थी,

क्योकि शक्ति अब गलत हाथो में लग चुकी थी,

किसी नश्वर के हाथो में अनश्वर शक्ति थी,

उस अमान के हाथो में,

मै निकाल पड़ा वहा से,

उस वचन का हल खोजने में,

.

.

अब शांत हुआ वो बुड्ढा यात्री,

कह दिया उसने सब कुछ, जो कहना था

“क्या रास्ता निकाल लिया आपने ?” पूछा जग्गा ने

“हा, मिल गया, जो खोजने निकला था मै” कामरू की तरफ देखते हुए “पूछ कामरू, अब पूछ, क्या प्रश्न है तुम्हारे मन में ?”

“क्या हुआ मेरे पिता का ?, कहा गए वो ?” आखो में आसू लिए वो वृद्ध कामरू बोलता है

“उस दिन इवान आखिर आ पंहुचा, कृतिका को खोजते खोजते उस तालाब के किनारे, वह सब देख बहुत रोया वो, आखिर कर भी क्या सकता था वो, जो होनी थी वो हो चुकी थी, लेकिन उस दिन एक काम सौपा उस गान्धर्व कुमार ने उसे, कृतिका की काया को सुरक्षित रखने का, उस पार्थिव काया को सबसे दूर रखने का, वचन के पूर्ण होने में आवश्यकता थी उसकी, कुछ भेद बताये उस गन्धर्व ने उसको, समय की सीमा को रोकने के और चल पड़े वो दोनों, सब कुछ मेरे भरोसे छोड़ कर”

“और उन मंदिर के आभुषणों का ?”

“वो तो उस गान्धर्व कुमार की अमानत थी, जिसके फलस्वरूप ही इस पहाड़ी पर केसर हुआ करती थी, बहुत ही प्रिय थी केसर चोलोमूंगमा को, उसके जाते ही सब कुछ चला गया यहाँ से, सब कुछ”

अब मन हल्का हुआ वृद्ध कामरू का, जीवन भर के प्रश्नों का उत्तर अब मिला उसको, लेकिन इस प्रश्नों के उत्तर के साथ अब कुछ जिज्ञासा हुई उसको, की कौन थी चोलोमूंगमा, और क्या है वो वचन, जिसकी खातिर वो गन्धर्व कुमार भी कुछ ना कर सका, और सबसे अहम् बात की अब ये बाबा वापस क्यों आये है यहाँ पर ?

“सुन कामरू” वो बुड्ढा यात्री बोल पड़ता है

“हा बाबा” अपने मन के खयालो से बाहर आते ही अचानक से बोलता है

“अब वो उत्तर जिसकी तलाश में मै यहाँ पर आया हु” वो बुड्ढा यात्री अपनी जगह से उठते हुए बोलता है

“वो क्या है बाबा ?”

“कहा पर है इवान, तुम्हारे पिता”

इतना सुनते ही जग्गा चौक जाता हैं और कामरू की तरफ देखने लगता है




क्रमशः
Mast update bhai bahot shaandaar
 

Chutiyadr

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हेल्लो दोस्तों
कैसे हो ?
बहुत दिनों के बाद वापस आया हु,
बहुत से लोग नाराज भी होंगे, की कहानी को अधूरी छोड़ गए, लेकिन क्या करू समय ही ऐसा आ गया था,

हो सके तो माफ़ कर देना दोस्तों



ये मेरी कहानी का दूसरा भाग है "दलक्ष"
इस कहानी का पहला भाग है "वो कौन था" इसको पहले पढ़ लेना नहीं तो ये कहानी "दलक्ष" शुरू शुरू में तो सही लगेगी लेकिन जब आगे बढ़ेगी और character आयेंगे तब कुछ पता नहीं चलेगा
इसी के साथ अगले अपडेट में कहानी को शुरू करता हु
welcome back manoj bhai bahut intjaar karwaya aapne ..
wo koun tha ka kya hoga ye bhi bata do use aage padhna hai ya fir yahi se aage ki story shuru samjhe ...
 

manojmn37

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welcome back manoj bhai bahut intjaar karwaya aapne ..
wo koun tha ka kya hoga ye bhi bata do use aage padhna hai ya fir yahi se aage ki story shuru samjhe ...

इन्तेजार की माफ़ी चाहता हु भाई,

कहानी "वो कौन था" का अगला पार्ट "दलक्ष" है
जहा से वो कहानी ख़त्म हुई थी वही से ये कहानी शुरू होती है
 

Chutiyadr

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खंड ३

अतीत

उसकी आखे फटी की फटी रह गयी,

आखो पर जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था,

उस बूढ़े बाबा को देखकर जैसे कमरू की नसों में गर्म खून बह चला हो,

अपने बचपन का चित्र जैसे उसके सामने चल रहा हो

‘वही चेहरा, वही चिलम पीने का अंदाज, वही चेहरे पर तेज और वही हुलिया’

कुछ भी नहीं बदला था उन बूढ़े बाबा में, जैसे अतीत से निकलकर अभी सामने आ गए हो

“आ गया कामरू” चिलम से मुह हटा एक नजरभर उसने कामरू की ओर दौड़ाई और सामने जल रहे अलाव के पास इशारा करते हुए कहा “आ बैठ जा यहाँ पर”

बिना कुछ बोले कामरू वही नीचे जमीन पर उस जल रहे अलाव के पास बैठ जाता है, और उन बूढ़े बाबा को देखता रहता है, उनके चेहरे को देख कर वापस उसकी पुरानी यादे सामने आ रही थी जैसे कल की ही बात हो-



आज पिताजी कुछ परेशान से लग रहे थे,

पर मुझे तो बस आज शाम का ही इंतेजार था,

हो भी क्यों ना ?,

वो बाबा कितनी अच्छी और मजेदार कहानिया सुनाते है,

तभी तो,

गाव का हर बच्चा रात का खाना खाया हो या ना हो,

समय होते ही सभी पहुच जाते है उस झील के पास,

उनकी आवाज कानो में पड़ते ही जैसे वहा का वातावरण गर्म सा होने लगता है,

एक अलग ही आनंद की अनुभूति सी होने लगती है,

झील का पानी जैसे गर्म होकर उस ठन्डे मौसम में भाप छोड़ रहा हो,

पता नहीं कब शाम होगी, कब कहानी सुनने को मिलेगी,

कल तो बाबा कह रहे थे की आज की रात तुम कभी नहीं भूल पाऔगे,

में अपने ही खयालो में खोया हुआ था,

की पता नहीं शायद पिताजी ने कुछ कहा मुझको, लेकिन मेने कोई ध्यान नहीं दिया,

मुझे तो बस रात का ही इन्तेजार था,

आखिरकार,

जैसे-तैसे दिन गुजर गया,

और में दौड़ पड़ा झील की ओर,

सभी बच्चे बेसबरी से कहानी वाले बाबा का इंतेजार कर रहे थे,

मुझे भी बड़ी उत्सुकता थी, जैसे हर दिन रहती है,

लेकिन लगता है आज बाबा को कुछ ज्यादा ही देरी हो रही थी,

बहुत समय हो चूका था,

अभी तक बाबा नहीं आये थे,

हमारे पास इंतेजार करने के अलावा कुछ चारा ही नहीं था, क्योकि किसी को भी नहीं पता था की बाबा का घर किस तरफ था, और किस तरफ से आते थे वो,

आखिरकार बहुत देर होने पर सभी बच्चे धीरे-धीरे वापस जा रहे थे

रात बहुत हो चुकी थी और सारे बच्चे घर जा चुके थे

आख़िरकार थक हार कर कामरू भी अपने घर की ओर चल देता है

आज कामरू बहुत ही गुस्सा था, आज तो घर जाकर बहुत ही गुस्सा करेगा वो, लेकिन जैसे आज उन बाबा की बात जैसे कामरू के लिए सही साबित होने वाली थी की आज की रात कभी नहीं भूल पाओंगे, उसने देखा की उसके घर के सामने बहुत से लोग इकट्टा हुए थे, और बहुत ही शोर हो रहा था, उसको पता चला की उसके पिताजी ने गाव के पुराने मंदिर से सारे अमूल्य सम्पदा को चुरा कर गाव से भाग गए



“अभी तक सब याद है कामरू” वो बुड्ढा थोडा खासते हुए बोलता है ‘इस आवाज ने जैसे कामरू को वापस उसको उसके अतीत से खीच लिया हो’

“आप कहा चले गए थे बाबा ?” कामरू बोल पड़ता है

“और चाय होगी क्या तेरे पास ?” कामरू के सवाल का जवाब देने के बजाय वो जग्गा की ओर मुह करके पूछता है

जग्गा का ध्यान भंग हुआ, जो वो अभी इन दोनों को देख रहा था “जी अभी देता हु”

लेकिन उसको हैरत हुयी, जैसे ही वो उस चाय को वापस गर्म करने के लिए रख ही रहा था की उसने देखा की चाय बिल्कुल गर्म थी, जैसे की अभी-अभी बनी हो, और उसमे से बहुत ही अच्छी सुगंध आ रही थी, उसने एसी चाय कभी नहीं बनायीं थी, इस बार उसने तीन प्याले भरे चाय के, एक उसने कामरू को दिया और दूसरा उसने बुड्ढे बाबा की ओर किया लेकिन उसकी तरफ से कुछ भी प्रतिक्रिया ना पाकर वो बाकि बचे दोनों प्याले लेकर वही अलाव के किनारे नीचे जमीन पर बैठ जाता है

उस बुड्ढे यात्री ने एक लम्बा सा कश खीचा चिलम से और एक बड़ा सा धुएं का गुबार छोड़ दिया ऊपर आसमान की ओर मुह करके !

अचानक जग्गा ने पाया की वहा का वातावरण कुछ गर्म सा हो गया है और आसमान से हिमकण गिरने के बजाये कुछ सुनहरा सा गिर रहा है, जग्गा को समझ नहीं आ रहा था की क्या हो रहा है लेकिन उसको यह अहसास बहुत ही अच्छा लग रहा था

इस तरह के वातावरण को पहचान गया कामरू, अचानक उसके चेहरे पर ख़ुशी झलक पड़ी और वो सामने उस बुड्ढे बाबा की ओर देख पर हल्का सा मुस्कुरा पड़ा

उस बुड्ढे बाबा के चेहरे पर भी एक हल्की सी मुस्कराहट दौड़ पड़ी और एक आकर्षक गर्म आवाज में कहता है

“चलो तुमको में एक कहानी सुनाता हु” कहते हुए वो बुड्ढा जग्गा के हाथ से चाय लेकर एक चुस्की लेता है
कहानी वाले बाबा



जलते हुए अंगारों को बुझा ही रहा था की एक परछाई दूर से आती हुयी दिखी, केशव ने हाथ से इशारा करते हुए जग्गा को कहा जो अपने चाय की दुकान का सामान समेट ही रहा था “रुक जाते है थोड़ी देर और, लगता है कोई आ रहा है”

ये सुनते ही जग्गा के हाथ जैसे वही जम गए हो, उसकी भी नजर सामने के रास्ते की ओर जा पड़ी ‘हा, कोई तो आ रहा है’ अचानक जग्गा की उन उदासीन आखो में हल्की सी चमक आ गयी ‘लगता है आज थोडा-बहुत पेट भर जायेगा’ ये सोचते हुए जग्गा चाय का सामान वापस सामने रखे तख्ते पर जमाने लगा

यह एक छोटी सी झोपड़ीनुमा चाय की दुकान थी, जो की गाव के एकदम किनारे पर थी ! वैसे तो इस गाव में ३-४ चाय की दुकाने और भी थी लेकिन जग्गा की दुकान गाव के किनारे होने की वजह से बहुत ही कम चलती थी ! यह गाव एक पहाड़ी की चोटी पर आया हुआ था, ऊचाई और ठंडी जगह होने के कारण यहाँ पर बहुत कम ही लोग आ-जा पाते थे, ये भी एक बड़ा कारण था जग्गा की दुकान के ना चलने का !

रात हो चुकी थी, आज भी जग्गा को यही लग रहा था की ये रात भी जैसे-तैसे गुजारनी पड़ेगी, लेकिन आज उसकी नियति को कुछ और ही मंजूर था ! सामने से आ रही परछाई अब धीरे-धीरे बड़ी हो रही थी, अँधेरे में अभी भी स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहा था फिर भी जग्गा को एक बात का तो पूर्णतया यकीन था की आने वाला यात्री उसके यहाँ चाय जरुर पियेगा, क्योकि वातावरण बहुत ही ठंडा था और इस पहाड़ी ठण्ड में चाय का आनंद......आहा

केशव, जो अभी उन अंगारों को वापस सही कर अलाव जलाने की कोशिश कर ही रहा था, तभी उस ठण्ड को चीरती हुयी उसके कानो में एक ध्वनि गूंजी –“दलक्ष”

उच्चारण एकदम साफ़ था, आवाज तीखी तो थी लेकिन कठोर नहीं थी, मृदु थी जैसे कि किसी ने शहद को अपनी अंगुली से चीर दिया हो !

“क्या ?” – दोनों एक साथ बोल पड़ते है

“दलक्ष, यही नाम है न इस गाव का ?”

अब तक वो यात्री अलाव की रोशनी में आ चूका था, केशव और जग्गा दोनों उसकी तरफ देखते है, ये एक बुढा व्यक्ति था जिसने एक काला कम्बल ओढ रखा था और चेहरा उसका दाढ़ी-मुछो से ढका रखा था, सर पर बड़ी-बड़ी जटाये सलीके से बांध रखी थी, ललाट पर एक सफ़ेद तिलक लगा रखा था

“हा, हा यही गाव है” कहते हुए जग्गा जल्दी से एक पुरानी चारपाई को उस अलाव के किनारे बिछा देता है और अपने गमछे से साफ़ कहते हए कहता है “आइये, बैठिये थोडा ताप लीजिये”

आम बोलचाल में सभी इस गाव को ‘दलख’ ही बोलते है, इसी कारण दोनों को थोडा अचुम्भा हुआ लेकिन इस गाव का असल नाम ‘दलक्ष’ ही था – पहाड़ी की चोटी पर बसा हुआ एक छोटा-सा सुन्दर गाव !

वो बुड्ढा यात्री उस चारपाई पर बैठ जाता है, और अपने कम्बल में हाथ डालकर एक मिट्टी की छोटी सी चिलम निकालकर उसे सही करने लगता है

उस ठंडी शांति को तोड़ते हुए जग्गा बोल पड़ता है “थोड़ी चाय बना दू बाबूजी आपके लिए ?”

बिना उसकी ओर देखते हुए अपनी चिलम को ठीक करते हुए वो बुड्ढा यात्री ‘हां’ में सिर हिला देता है, इशारा पाकर जग्गा जल्दी से वापस चाय के लिए चूल्हा तैयार करने लगता है

थोड़ी देर तक चिलम को सही करने के बाद वो उसके सामने जल रहे अलाव से चिलम को जलाने लगता है, अभी तक किसी के कुछ ना बोलते हुए केशव चुप्पी तोड़ते हुए कहता है “इतनी रात किसके घर आये हो बाबूजी ?”

“किसी के भी घर नहीं जाना” चिलम का एक कश खीचते हुए आराम से वो बोलता है !

“तो फिर बाबूजी” केशव पूछ पड़ता है “आप यहाँ के तो नहीं लगते”

“यहाँ पर कोई रहता है जिससे मिलना था” गाव की तरफ़ देखते हुए वो बुड्ढा यात्री बोलता है !

“किस-से मिलना था बाबूजी ?” इस बार जग्गा पूछ पड़ता है

वो बुड्ढा यात्री अभी भी गाव की तरफ़ ही देख रहा था, जैसे उसने जग्गा की बात सुनी ही ना हो !

इस बार सामने बैठे केशव ने थोड़ी ऊची आवाज में पूछा “बाबूजी, ओ बाबूजी किस से मिलना था ?”

ध्यान भंग हुआ उस बुड्ढे यात्री का, चिलम से एक और कश खीचा और बोला “कामरू अभी भी यही रहता है क्या ?”

“कौन कामरू ?”

“अरे वही, जिसका बाप गायब हो गया था” वो बुड्ढा यात्री बिना किसी हिचक के बोल पड़ता है !

केशव को अभी-भी समझ नहीं आ रहा था की वो बुड्ढा किसके बारे में बात है, तभी वो जग्गा को इशारे से उसके बारे में पूछता है

“क्या आप मुखियाजी के पिता के बारे में बात कर रहे है” जग्गा बोलता है

इस बार वो बुड्ढा यात्री जग्गा की तरफ मुह करके पूछता है “क्या उसी का नाम कामरू है ?”

“हा, जब में छोटा था तब मेरे पिता उन्ही को कामरू चाचा कहकर पुकारते थे” जग्गा फिर से बोलता है

“क्या तुम उसे यहाँ बुला सकते हो” बुड्ढा यात्री पूछता है

“माफ़ करना बाबूजी, अब वो बहुत बीमार रहते है मुझे नहीं लगता की वो चलकर यहाँ तक आ सकते है” जग्गा बोलता है

“आप उन्ही के घर क्यों नहीं चले जाते है” बीच में ही केशव उन दोनों की बात को बीच में ही काटते हुए बोलता है !

अचानक वो बुड्ढा यात्री जैसे क्रोधित हो गया हो, उसकी आखे मानो बड़ी हो गयी और एक आदेशपूर्ण, प्रबल आवाज के साथ बोल पड़ता है

“तुम जाओ अभी, इसी वक्त और कहना की ‘कहानी वाले बाबा’ बुला रहे है”

ये आवाज इतनी प्रबल थी की जग्गा और केशव की आत्मा तक काप गयी, सामने जल रहे अलाव का ताप मानो एक क्षण के लिए ठंडा हो गया था, इस बुड्ढे यात्री के अचानक इस प्रकार के व्यव्हार को देख कर केशव मना नहीं कर सका और गाव की और मुड पड़ा !

उस बुड्ढे यात्री ने वापस अपनी चिलम सही की और वापस कश लेने लगा, इस तरह के बर्ताव के कारण जग्गा और उससे कुछ पूछने की हिम्मत भी नहीं कर सका और जल्दी से अपने कांपते हाथो से एक छोटी गिलास में चाय भरकर उसको दे दी !
खंड २

जिजीविषा



उसके कदम तेज थे, लेकिन वो दौड़ नहीं रहा था ! उसकी धड़कन अभी भी तेज गति से चल रही थी, पता नहीं क्यों वो उस बुड्ढे यात्री की बात मान गया और मुखिया के घर की ओर चल पड़ा !

आज मौसम कुछ ज्यादा ही ठंडा था, हवा के साथ हिमकण भी गिर रहे थे लेकिन केशव को मानो इनका कुछ असर नहीं हो रहा था, वो तो जैसे किसी गुलाम की भांति उस बुड्ढे यात्री के आदेश का पालन कर रहा था उसके दिमाग और मुह में बस एक ही बात चल रही थी ‘कहानी वाले बाबा ने बुलाया है’

केशव, जग्गा का मित्र था ! जो हर शाम को जग्गा की दुकान पर दिन भर की थकान उतारने के लिए आ जाता था, थोड़ी देर तक वो दोनों गाव भर की बाते किया करते थे और अंत में दोनों साथ में अपने अपने घर चले जाते थे !

अचानक केशव के कदम धीरे हो गए, सामने कुछ दुरी पर मुखिया का घर था ! आज इस समय मुखिया के घर में आगे कुछ भीड़ थी, लोग दरवाजे के सामने खड़े हो कर बुदबुदा रहे थे !

केशव के मन में शंका जाग उठी ‘क्या मुखिया के पिता नहीं रहे ?’ वो रुकना तो चाह रहा था लेकिन उसके कदम रुक नहीं रहे थे ! वो दरवाजे के सामने जाकर खड़ा हो गया और दरवाजा खोलकर अन्दर प्रवेश कर गया !

अन्दर का नजारा बहुत ही चिंताग्रस्त था, गाव का मुखिया ‘लायो’ बहुत ही बौखलाया हुआ था ! जैसे ही उसने केशव को देखा बोल पड़ा

“कौन हो तुम ?” आवाज बहुत भारी और गुस्से से भरी थी

अब जैसे केशव की तन्द्रा टूटी, जैसे अब वह किसी मोहपाश से स्वतंत्र हुआ हो, कमजोरी और थकान के कारण अपने घुटनों के बल गिर पड़ा, ऐसा लगा उसको की जैसे उसने अपने अन्दर किसी बड़े युद्ध को जीत लिया हो

कोई जवाब ना पाकर लायो वापस उस वैद्य की ओर घूम जाता है जो उसके बूढ़े बाप का इलाज कर रहा था

“क्या हुआ मकर, कुछ फायदा हुआ” लायो कुछ हडबडाहट में पूछता है

“नहीं, कुछ नहीं” मकर बेरस से बोलता है “अब इनके अन्दर जीने के लिए बिल्कुल भी उर्जा पर्याप्त नहीं है”

इतना सुनते ही लायो गुस्से से फुट पड़ता है ‘सारी जिंदगी मेने इस बुड्ढे के पीछे बर्बाद की और ये बिना बोले ही जा रहा है’ गुस्से से बोलते हुए वह इधर-उधर की वस्तुए तोड़ने लगता है, अंत में थक हार कर वह थोड़े क्षण बाद जमीन पर बैठ जाता है अब लावा शांत हो चूका था, घर में पूरी शांति थी जैसे वहा पर कोई नहीं हो – बस एक ही ध्वनि सुनाई दे रही थी और वो थी उस बुड्ढे की उखड़ी हुए सासों की ! लग रहा था जैसे मानो नदी की पूरा पानी सुख चूका हो और एक छोटी सी धार बड़ी मुश्किल से उस नदी की रेत में अपने लिए रास्ता बना रही हो और जैसे किसी भी क्षण रेत उस धार को अपने अन्दर समां लेगी

अब कुछ शेष ना पा कर मकर उठकर जाने ही वाला था की केशव, जो की अभी तक अपने घुटनों के बल बैठा हुआ था वो अपने ने संयत हुआ और थोड़ी शक्ति झुटाकर धीरे से खड़ा होकर बोलता है

“वो.....वो....क ..कहाS नी वा...ले बाबा”

“वो कहानी वाले बाबा बुला रहे है”

इतना सुनते ही जैसे की नदी में बाढ़ आ गयी हो, उस बुड्ढे ने अचानक से अपनी आखे खोली, ऐसा लगा जैसे की केशव की ध्वनि तरंगो ने बादलो का सीना चीर दिया और उस सूखी हुई नदी में अथाह उर्जा का प्रवाह हो गया हो

वो बुड्ढा तुरंत उठ बैठा हुआ और केशव के पास जाकर बहुत ही अधीरता से पूछता है

“वो बाबा ... कहानी वाले बाबा ने मुझे बुलाया है ?” उत्सुकता और हैरत भरे भाव में वो कहता है “कहा है वो ...कहा पर है वो अभी”

मकर ने तो जैसे भुत देख लिया हो,

अभी उसके सामने क्या हुआ,

वो किसी चमत्कार तो क्या सपने में भी कभी नहीं सोंच सकता था, वो जडवत हो गया था

“वो अभी गाव के किनारे जग्गा के यहाँ..”

इतना सुनते ही वो घर के बाहर दौड़ पड़ता है, और बाहर जाते ही चिल्लाते हुए बोल पड़ता है “अरे, सुनो गाव वालो, वो .. कहानी वाले बाबा लौट आये है...बाबा वापस आये है “ चिल्लाते हुए वो बुड्ढा, जग्गा के दुकान की और दौड़ पड़ता है

बाहर सभी गाव वाले आचर्यचाकित थे की अभी-अभी क्या हुआ, और क्या बोल गए मुखिया के पिता

इतने में मकर, लायो और केशव दौड़ते हुए घर से बाहर आ जाते है और लायो जोर से बोलता है “कहा गया ?, कहा गया मेरा बाप ?”

और वो केशव को दबोच लेता है “बता...बता ..क्या किया तूने मेरे बाप के साथ” और साथ में केशव को मारने लगता है, लायो का इतना भयानक रूप देख कोई भी बीच में आने को तैयार नहीं था, फिर भी हिम्मत कर ३-४ लोग लायो को पकड़ लेते है और बचाव करने की कोशिश करते है !

वो.....

वो.....

जग्गाSS

इतना कहते ही केशव बेहोश हो नीचे गिर पड़ता है

सुनते ही लायो, जग्गा की दुकान की ओर भाग पड़ता है, उसको देख वहा खड़े सभी लोग भी उसी दिशा में भागने लगते है

पीछे सिर्फ दो ही व्यक्ति बचे थे, एक तो था केशव, वो की बेहोश पड़ा था और उसके नाक व मुह से खून निकल रहा था !

और दूसरा था मकर जो की केशव की हालत देख वही रुक कर उसको घर के अन्दर ले गया

Bahut hi badiya
 
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आज रविवार है, अपडेट कब तक आएगा?
 
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