Naik
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Mast update bhai bahot shaandaarधुरिक्ष
संध्या का समय था, पूरी पहाड़ी पर उत्सव का माहौल हो रखा था, सभी लोग मंदिर के बाहर उस छोटे से मैदान में इक्कट्ठा हो रहे थे, मंदिर को बहुत ही अच्छी तरह से सजाया गया था, मैदान में रात्रि के भोग की तैयारी चल रही रही थी, कई लोग रोशनी कर रहे थे, तो कई अलाव जलाने की तैयारी कर रहे थे, तो कई लोग अभी-अभी आ ही रहे थे, बड़े-बुजुर्ग अपने भावी पीढ़ी को दिशा-निर्देश दे रहे थे, चारो तरफ वाद्ययंत्रो की हल्की-हल्की ध्वनि गूंज रही थी, और बच्चे की मस्ती और खेल-कूद की भरी आवाजो से मानो जैसे की पुरा जश्न जीवंत हो रहा हो
उत्सव की तैयारी लगभग-लगभग पूरी हो ही चुकी थी, अब बस मुखिया के आने की ही देर थी, जो की उस मंदिर के देवता को प्रथम भोग चढाते और उत्सव की शुरुआत करते ! लेकिन ऐसा लग रहा था की इस बार मुखिया को आने में कुछ ज्यादा ही देर हो रही थी
कुछ समय बाद इवान आ गया,
मुखिया आ गया !
हा,
इवान ही गाव का मुखिया था !
इवान के आते ही नगाड़ो की आवाजो ने पूरी पहाड़ी को गूंजा दिया,
अलाव जला दिए गए,
पूरा माहौल ख़ुशी से झूम गया,
बस एक को छोड़ कर,
इवान को छोड़ कर !
सुबह से उसे अपनी बहन की फिक्र हो रही थी,
हर रोज तो संध्या होते ही आ जाती थी,
लेकिन,
आज नहीं लौटी वो !
उसी की चिंता हो रही थी इवान को !
आज उसका मन,
कुछ ज्यादा ही बैचैन हो रहा था,
लेकिन,
मुखिया होने की जिम्मेदारी ने बांध दिया था आज उसको !
नगाड़ो की आवाज कुछ ज्यादा ही तेज हो चुकी थी,
भोग लगाने का समय हो चूका था,
सभी बढ़ चले मंदिर की तरफ,
और सबसे आगे था इवान !
आ गए सभी मंदिर के सम्मुख,
लेकिन,
जैसे ही मंदिर के अन्दर कदम रखने ही वाला था इवान,
तभी,
एक आवाज गूंजी,
बहुत थी भयानक,
पूरा पहाड़ हिल पड़ा,
जैसे भूकंप आ पड़ा हो,
दियो को रोशनी और अलाव,
सभी बुझ गए एक ही पल में,
अँधेरा हो गया पूरी पहाड़ी पर,
अब,
आशंका उठी इवान के मन में,
घोर आशंका,
किसी अनिष्ट की,
अब,
मन नहीं रहा उसका,
भाग चला वो,
उस मंदिर से दूर,
उस उत्सव से दूर,
उन घने जंगलो की तरफ,
जिस तरफ से कृतिका आया करती थी,
हलचल हुई गाव के लोगो में,
अँधेरे की वजह से कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था,
कुछ समय बाद लोग शांत हुए,
वापस रोशनी की गयी,
लेकिन अब गाव वालो को चिंता हुई,
मुखिया वहा से गायब था,
और उस से भी बड़ी चिंता का विषय था उनके लिया वो मंदिर,
उस मंदिर के देवता के आभूषण,
सब गायब थे वहा से,
सब कुछ,
मंदिर सुना हो चूका था
सब कुछ
मै....
इतना कहते ही वो बुड्ढा यात्री छुप गया, जैसे कही शुन्य में खो सा गया वो ! थोड़ी देर बाद कुछ ना बोलने पर जग्गा ने आवाज दी उनको “बाबा ओ बाबा” लेकिन जैसे की बाबा ने कुछ सुना ही ना हो, थोडा समय बीता, लेकिन बाबा तो जैसे बोलने का नाम भी नहीं ले रहे थे जैसे किसी समयपाश में बंध गए हो !
अब कामरू अधीर हो उठा,
बैचेन हो उठा,
आगे क्या हुआ,
कुछ प्रश्न उठे उसके मन में,
क्या बाबा इसी गाव की बात कर रहे है,
क्या बाबा मेरे ही बचपन की बात कर रहे है,
क्या मेरे पिता की,
की क्या हुआ था उस दिन,
क्या हुआ था उन आभूषणों के साथ,
जिनकी चौरी का आरोप लगा था उन पर,
ये सारे प्रश्न अब उसके चित में घुमने लगे,
अब भारी हुआ उसका सीना,
उठा वो अपनी जगह से,
हिलाया उसने उन बुड्ढे बाबा को
“बाबा, क्या हुआ था उस दिन ?, क्या हुआ था मेने पिता के साथ, उन आभूषणों के साथ ?”
उस बुड्ढे यात्री ने देखा उसकी तरफ अब,
देखा उसकी अधीरता को,
और वापस एक लम्बा सा कश लेकर बोल पड़ता है
.
.
उस दिन मै वही था,
सब कुछ मेरे आखो में सामने ही हुआ था,
गवाह था मै उस निर्मम कृत्य का,
उस दुराचारी के पाप का,
लेकिन,
कर भी क्या सकता था मै,
बंधा था मै,
उस वचन से बंधा था मै,
जिसको चोलोमूंगमा ने दिया था सबको,
उसके वचन के पूर्ण होने में अब कुछ ही समय बचा था,
लेकिन जैसे की होनी को कुछ और ही मंजूर था,
लगता है उसके प्रेमी को विधाता की परीक्षा में पास होना अभी शेष था,
जैसे विधाता भी उसके सब्र के साथ खेल रहा हो,
आ गया उसका प्रेमी वहा पर,
एक भी पल की देरी किये बिना,
जैसे की शुन्य से प्रकट हुआ वो,
गान्धर्व कुमार,
“धुरिक्ष”,
सुनहरा वर्ण,
अलौकिक देहधारी,
बलशाली,
लेकिन,
बहुत देर हो चुकी थी अब,
देखा उसने अपने प्रेमीका को,
निष्प्राण,
देह पड़ी थी उस तालाब के किनारे,
यह देख धुरिक्ष का सीना जैसे फट पड़ा,
दहाडा वो,
हुंकार भरी उसने,
जैसे पूरा पर्वत कांप गया उस हुंकार से,
वहा का ठंडा वातावरण उसके क्रोध से गर्म होने लगा,
अब उसका क्रोध उसके सीमा से बाहर हो गया,
जैसे की अब पुरे पर्वत को ही भस्म कर देगा वो,
पहली बार,
जीवन में पहली बार भय लगा मुझे,
कितनो ही यक्षो और ब्रह्मराक्षसो को धुल चटाई थी मेने,
कितने ही गन्धर्वो को नचाया था मेने,
लेकिन,
उस दिन,
उस गान्धर्वकुमार का विशुद्ध प्रेम देख डर गया में भी,
उस दिन लगा मुझको,
अनुभव किया मैंने,
प्रेम की अथाह शक्ति को,
प्रेम के स्वरुप को स्वीकारा मेने,
अब,
चिंता हुई मुझको,
उस पहाड़ी पर बसे लोगो की,
पहाड़ी के नष्ट होते ही,
वे भी,
बिना किसी अपराध के,
इस पहाड़ी के साथ,
काल का ग्रास बनते,
अब उतरा में उस प्रेमी के क्रोध के बीच,
याद दिलाया मेने उस वचन को उसको,
ललकारा उसके प्रेमिका की आन को,
उसके प्रेम की आन की खातिर,
शांत होना पड़ा,
उसके प्रेम की पूर्णता की प्राप्ति के खातिर,
शांत होना पड़ा उसको,
धन्यवाद दिया उसके इस बलिदान को,
क्योकि वो सक्षम था सब कुछ भस्म करने में,
सब कुछ तबाह करने में,
अब कुछ करना था मुझे,
उस वचन की काट करनी जरुरी थी,
क्योकि शक्ति अब गलत हाथो में लग चुकी थी,
किसी नश्वर के हाथो में अनश्वर शक्ति थी,
उस अमान के हाथो में,
मै निकाल पड़ा वहा से,
उस वचन का हल खोजने में,
.
.
अब शांत हुआ वो बुड्ढा यात्री,
कह दिया उसने सब कुछ, जो कहना था
“क्या रास्ता निकाल लिया आपने ?” पूछा जग्गा ने
“हा, मिल गया, जो खोजने निकला था मै” कामरू की तरफ देखते हुए “पूछ कामरू, अब पूछ, क्या प्रश्न है तुम्हारे मन में ?”
“क्या हुआ मेरे पिता का ?, कहा गए वो ?” आखो में आसू लिए वो वृद्ध कामरू बोलता है
“उस दिन इवान आखिर आ पंहुचा, कृतिका को खोजते खोजते उस तालाब के किनारे, वह सब देख बहुत रोया वो, आखिर कर भी क्या सकता था वो, जो होनी थी वो हो चुकी थी, लेकिन उस दिन एक काम सौपा उस गान्धर्व कुमार ने उसे, कृतिका की काया को सुरक्षित रखने का, उस पार्थिव काया को सबसे दूर रखने का, वचन के पूर्ण होने में आवश्यकता थी उसकी, कुछ भेद बताये उस गन्धर्व ने उसको, समय की सीमा को रोकने के और चल पड़े वो दोनों, सब कुछ मेरे भरोसे छोड़ कर”
“और उन मंदिर के आभुषणों का ?”
“वो तो उस गान्धर्व कुमार की अमानत थी, जिसके फलस्वरूप ही इस पहाड़ी पर केसर हुआ करती थी, बहुत ही प्रिय थी केसर चोलोमूंगमा को, उसके जाते ही सब कुछ चला गया यहाँ से, सब कुछ”
अब मन हल्का हुआ वृद्ध कामरू का, जीवन भर के प्रश्नों का उत्तर अब मिला उसको, लेकिन इस प्रश्नों के उत्तर के साथ अब कुछ जिज्ञासा हुई उसको, की कौन थी चोलोमूंगमा, और क्या है वो वचन, जिसकी खातिर वो गन्धर्व कुमार भी कुछ ना कर सका, और सबसे अहम् बात की अब ये बाबा वापस क्यों आये है यहाँ पर ?
“सुन कामरू” वो बुड्ढा यात्री बोल पड़ता है
“हा बाबा” अपने मन के खयालो से बाहर आते ही अचानक से बोलता है
“अब वो उत्तर जिसकी तलाश में मै यहाँ पर आया हु” वो बुड्ढा यात्री अपनी जगह से उठते हुए बोलता है
“वो क्या है बाबा ?”
“कहा पर है इवान, तुम्हारे पिता”
इतना सुनते ही जग्गा चौक जाता हैं और कामरू की तरफ देखने लगता है
क्रमशः