[०८] १३.०३.२०२१
उस दिन मै एक अलग दुनिया में जी रहा था, मेरे सपनो की दुनिया, जो सच हुई थी. दोपहर में मै खाना खाने भाभी के यहाँ गया, खाना खाने के बाद भाभी ने मुझे फिर लिंगपान कराने को कहा. बच्चे सो गए थे, भाभी काफी देर तक मेरे लिंग से खेलती रही, उस वक्त मै लगातार २ बार झडा. भाभी खुश थी पर उसने मुझे दूध बोहोत थोड़ी देर पिलाया.
"भाभी ये ठीक नहीं, एक तो आप मुझे सम्भोग के लिए मन करती है ऊपर से मुझे अच्छे से स्तनपान भी नहीं कराती!" मैंने रोते स्वर में कहा,
"विश्वास मेरे निप्पल दर्द देते है मै क्या करू, उसपे तुम पूरा निप्पल .areola. के साथ मुँह में लेके जोरोसे चूसते हो, ऐसी बात नहीं की मुझे अच्छा नहीं लगता, बोहोत अच्छा लगता है लेकिन फिर बाद में मेरे निप्पल में दर्द होने लगता है, please. समझो" भाभी ने मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा.
"ठीक है भाभी, तो क्या अब आप मुझे स्तनपान भी नहीं कराओगी ?
"नहीं विश्वास मैंने ऐसा तो नहीं कहा ...बस मै बोहोत ज़्यादा देर नहीं पीला पाऊँगी प्लीज बात को समझो, मुझे तुम्हारी स्तिति का अंदाज़ा है, पर तुम भी मुझे बताओ क्या तुम्हे अच्छा नहीं लगता जब मै तुम्हारा लिंग चुस्ती हु? ...क्या तुम उतनेमें संतुष्ट नहीं हो ?" भाभी बड़े कातर स्वर में बोली,
"बोहोत संतुष्ट हु भाभी, मुझे कोई शिकायत नहीं. sorry. "
मैंने भाभी को गले लगा लिया और फिर मै दफ्तर चला गया.
अगले ही दिन मुझे रमेश बाबू का फ़ोन आया, और उन्होंने जो मुझे फ़ोन पे कहा उस से मेरे होश उड़ गए. साहब कह रहे थे की मै उनकी पत्नी को अपना लिंग चूसने दू, और ऐसा करने से मेरा साहब के ऊपर बोहोत बड़ा एहसान होगा, मैंने भी ना नुकुर कर इस तरह प्रदर्शित किया की ये गलत है और सलाना फलाना...उन्होंने कहा की अगर मैंने उनकी मदत नहीं की तो उनकी पत्नी किसी aire. गैरे का लिंग चूसेगी, जो उनकी इज़्ज़त के लिए बोहोत घातक सिद्ध होगा. फिर मै मान गया.
मुझे याद आया की भाभी ने मुझे कुछ दिनों पहले ही कहा था की तुम्हे रमेश बाबू का फ़ोन आएगा और वे तुम्हे मुझे लिंगपान करने कहेंगे, पहले तुम मन करना, फिर थोड़ी आना कानि के बाद मान जाना. ऑफिस में बैठे बैठे मैंने इस घटना पर सोचा...फिर मुझे पता चल गया की भाभी ने क्या खेल खेला है. मै खुश हो गया की अब मेरा और भाभी का ये दुग्धानुबन्ध अब पूरी तरह जायज़ है और अब मुझे किसी तरह का संकोच करने की कोई ज़रूरत नहीं. मैंने मन ही मन भाभी का लोहा मान लिया.
उस दिन शाम को जब मै घर लौटा तो आपने quarter. में फ्रेश हो के रात के खाने के लिए भाभी के घर चला गया. भाभी बिलकुल तैयार हो के कही जाने के हिसाब से बैठी थी,
"आओ विश्वास, कैसा रहा आज का दिन ऑफिस में?" भाभी की आंखोमें एक हल्का सा नटखट अंदाज़ था और ओठो पे मुस्कराहट.
"भाभी आप कमाल हो...क्या कह दिया आपने साहब को?" कहते हुए मै सोफेपे बैठ गया बच्चे मुझे देख मेरे पास आये और सई (साहब की बेटी) ने मुझे कहा,
"विश्वास चाचा हम कितने बजे फिलिम देखने जायेंगे?" मै तो कुछ समझ ही नहीं पाया, आश्चर्य की मुद्रा से मैंने भाभी की और देखा.
" हां हां बच्चो, चाचा अभी अभी तो आये है, हम जायेंगे लेकिन अभी चाचा को नाश्ता तो कर लेने दो!" भाभी ने सई की और देखते हुए कहा. मैंने इशारे में भाभी से पूछा की ये सब क्या है, तो भाभी ने चुप रहने को कहा.
फिर भाभी ने मुझे किचन में बात बताई की बच्चोने आपने पापा से फ़ोन पे ज़िद की के उन्हें फिलम देखनी है तो उनके पापा ने मतलब के रमेश बाबू ने कहा की विश्वास चाचा सब को फिलम दिखाने ले जायेंगे, तब जा के बच्चे मने. भाभी ने बाद में ये भी बताया की कैसे उन्होंने साहब से ज़िद की के या तो वे जल्दी से मुलशी आये वरना उनसे रहा नहीं जा रहा और फिर भाभी गजु नमक एक सरकारी वॉचमन से लिंगपान करवाने कहेगी. और ये सुन रमेश बाबू ने खुद ही मेरा नाम सुझाया और बोले की मै विश्वास से कह उसे मनाता हु. मैंने भाभी की गाल पे एक चुम्मी ली और भाभी के स्तन दबाते हुए कहा,
"तभी तो भाभी...मै आपको कह रहा था की आप कमाल हो"