Mr. Perfect
"Perfect Man"
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- 143
Behad hi shandar start hai story ka bhai______
Story to jabardast lag rahi hai aur aapke likhne ka style bhi majhe huye writer ki tarah hai______
Story ke main character Dileep aur naina hain hi shayad. Ek taraf jaha Dileep auto driver aur sharabi hai aur darpok bhi hai to dusri taraf naina hai jo diler aur nidar hai lekin is Dileep ke sath naina ki jodi filhaal jami nahi. Aage shayad jam hi jaye______
Sharab ke adde par Dileep ki kutaai hone wali thi lekin naina ne bacha liya use. Usne dharam Sheth ke muh par uske paise de mare aur Dileep ko ghar le aai. Ghar me naina ke sath bahas hui jisme Dileep uske paise chukane ka bol kar gusse se raat me hi auto le kar nikal jata hai lekin futi kismat uski ki ek aise aadmi ke chakkar me fas jata hai jo shayad apradhi tha aur police ke dwara use goli lagi thi. Dileep ne police ko chakma de kar us aadmi ko bacha liya lekin ab wo aadmi us Dileep ke ghar par rahne ki baat kar raha hai jisse Dileep ki haalat kharab ho chuki hai. Ab dekhte hain aage kya hota hai________
Story to jabardast lag rahi hai aur aapke likhne ka style bhi majhe huye writer ki tarah hai______
Story ke main character Dileep aur naina hain hi shayad. Ek taraf jaha Dileep auto driver aur sharabi hai aur darpok bhi hai to dusri taraf naina hai jo diler aur nidar hai lekin is Dileep ke sath naina ki jodi filhaal jami nahi. Aage shayad jam hi jaye______
Sharab ke adde par Dileep ki kutaai hone wali thi lekin naina ne bacha liya use. Usne dharam Sheth ke muh par uske paise de mare aur Dileep ko ghar le aai. Ghar me naina ke sath bahas hui jisme Dileep uske paise chukane ka bol kar gusse se raat me hi auto le kar nikal jata hai lekin futi kismat uski ki ek aise aadmi ke chakkar me fas jata hai jo shayad apradhi tha aur police ke dwara use goli lagi thi. Dileep ne police ko chakma de kar us aadmi ko bacha liya lekin ab wo aadmi us Dileep ke ghar par rahne ki baat kar raha hai jisse Dileep ki haalat kharab ho chuki hai. Ab dekhte hain aage kya hota hai________
मैं कहीं से भी लाकर दूं, लेकिन तुझे तेरे रुपये लाकर दे दूंगा ।”
और तब नैना ने वो ‘शब्द’ बोल दिये, जो दिलीप की बर्बादी का सबब बन गये ।
जिनकी वजह से एक खतरनाक सिलसिले की शुरुआत हुई । ऐसे सिलसिले की, जिसके कारण दिलीप त्राहि-त्राहि कर उठा ।
अब आगे....
“ठीक है ।” नैना बोली- “अगर अपने आपको इतना ही धुरंधर समझता है- तो जा, मुझे मेरे रुपये वापस लाकर दे दे ।”
दिलीप फौरन बाहर गली में खड़ी अपनी ऑटो रिक्शा की तरफ बढ़ गया ।
नैना चौंकी । रात के दस बजने जा रहे थे ।
“ल...लेकिन इतनी रात को कहाँ जा रहा है तू ?”
“तेरे वास्ते रुपये कमाने जा रहा हूँ ।” दिलीप ने ऑटो में बैठकर धड़ाक से उसे स्टार्ट किया- “और कान खोलकर सुन नैना अब मैं तेरे रुपये कमाकर ही वापस लौटूंगा ।”
अगले ही पल दिलीप की ऑटो सोनपुर की उबड़-खाबड़ सड़क पर तीर की तरह भागी जा रही थी ।
पीछे नैना दंग खड़ी रह गयी । भौंचक्की !
यह बात तो नैना की कल्पना में भी न थी कि दिलीप इस तरह इतनी रात को रुपये कमाने निकल पड़ेगा ।
तभी एकाएक काले सितारों भरे आसमान पर बादल घिरते चले गये । काले घनघोर बादल।
पलक झपकते ही उन्होंने स्याह आसमान के विलक्षण रूप को अपने दानव जैसे आवरण में ढांप लिया ।
तेज बिजली कौंधी और फिर मूसलाधार बारिश होने लगी । नैना का दिल कांप गया ।
दैत्याकार काली घटाओं से घिरे आसमान की तरफ मुँह उठाकर बोली वह “मेरे दिलीप की रक्षा करना भगवान, मेरे दिलीप की रक्षा करना ।” लेकिन नहीं ।
उसका दिलीप तो पल-प्रतिपल अपनी बर्बादी की तरफ बढ़ता जा रहा था । अपनी मुकम्मल बर्बादी की तरफ ।
दिलीप ने अपनी ऑटो रिक्शा कनॉट प्लेस के रीगल सिनेमा के सामने ले जाकर खड़ी की ।
जिस हिस्से में उसने ऑटो रिक्शा खड़ी की, वहाँ घुप्प अँधेरा था ।
सिनेमा पर ‘सलमान खान ki सुल्तान’ चल रही थी ।
दिलीप ने सोचा कि वह नाइट शो छूटने पर वहाँ से सवारियाँ ले जायेगा ।
लेकिन अभी तो सिर्फ सवा दस बजे थे ।शो छूटने में काफी टाइम बाकी था ।
दिलीप ने सीट की पुश्त से पीठ लगाकर इत्मीनान से आंखें बंद कर ली ।मूसलाधार बारिश लगातार हो रही थी ।
मस्त बर्फीली हवा ने दिलीप पर चढ़े दारू के नशे को दो गुना कर दिया ।
परन्तु एक बात चौंकाने वाली थी, इतनी तेज मूसलाधार बारिश में भी फ्लाइंग स्क्वाड की एक मोटरसाइकिल लगातार उस इलाके का चक्कर काट रही थी ।
मोटरसाइकिल पर दो पुलिसकर्मी सवार थे ।
जरूर कुछ चक्कर था ?
जरूर कोई गहरा चक्कर था ?
“होगा कुछ ?” फिर दिलीप ने जोर से अपने दिमाग को झटका दिया- “उसकी बला से ।”
फिर कब मस्त बर्फानी हवा के नरम-नरम रेशमी झौंकों ने दिलीप को सुला दिया, उसे पता न चला ।
धांय-धांय !
थोड़ी देर बाद ही बराबर वाली गली में दो तेज धमाके हुए ।
साथ ही किसी के हलक फाड़कर चिल्लाने की आवाज भी आधे से ज्यादा कनॉट प्लेस में गूंजी ।
मोटरसाइकिल पर सवार दोनों पुलिसकर्मी चौंके ।
तुरन्त उनकी बुलेट सड़क पार ‘यू’ का आकार बनाती हुई तेजी से उसी गली में जा घुसी ।
लेकिन दिलीप सोता रहा ।
उसके इतने नजदीक गोलियां चलीं । कोई हलक फाड़कर चिल्लाया- मोटरसाइकिल धड़धड़ाती हुई गली में घुसी । इतनी हाय-तौबा मची, परन्तु दिलीप के कान पर जूं तक न रेंगी । उसकी नींद तो तब टूटी, जब आफत बिल्कुल उसके सिर पर आकर खड़ी हो गयी।
ऑटो रिक्शा को भूकम्प की तरह लरजते देख उसने चौंककर आंखें खोली ।
उसने हड़बड़ाकर पीछे देखा ।
ऑटो रिक्शा की यात्री सीट पर उस समय एक काले रंग का कद्दावर-सा आदमी बैठा बुरी तरह हाँफ रहा था । उसने अपने शरीर पर नीले रंग की प्लास्टिक की बरसाती पहन रखी थी, सिर पर प्लास्टिक का ही फेल्ट हैट था ।
कद्दावर आदमी के हाथ में एक काले रंग का ब्रीफकेस भी था, जिसे वो अपनी जान से भी ज्यादा संभालकर सीने से चिपटाये हुए था ।
“क...कौन हो तुम ?”
“जल्दी ऑटो भगा ।” उस आदमी ने लम्बे-लम्बे सांस लेते हुए कहा ।
वह बेहद खौफजदा था ।
“ल...लेकिन... ।”
“सुना नहीं ।” वह आदमी चिंघाड़ उठा और उसने बरसाती की जेब से रिवॉल्वर निकालकर एकदम दिलीप की तरफ तान दी
“जल्दी ऑटो स्टार्ट कर, वरना एक ही गोली में तेरी खोपड़ी के परखच्चे उड़ जायेंगे ।”
दिलीप के होश फना हो गये ।
पलक झपकते ही उसका सारा नशा हिरन हो चुका था । फिर उसके हाथ बड़ी तेजी से चले, उसने ऑटो स्टार्ट की और गियर बदला ।
फौरन ऑटो रिक्शा सड़क पर बिजली जैसी रफ़्तार से भागने लगी ।
दिलीप ऑटो रिक्शा चला जरूर रहा था, लेकिन उसके दिल-दिमाग में नगाड़े बज रहे थे, ढ़ेरों नगाड़े ।
चेहरे पर आतंक-ही-आतंक था ।
तभी दिलीप को अपने पीछे किसी वाहन की घरघराहट सुनाई दी- उसने उत्सुकतापूर्वक शीशे में देखा ।
फौरन दिलीप के छक्के छूट गये । उसके मुँह से चीख-सी खारिज हुई- “प...पुलिस !”
“पुलिस ।” कद्दावर आदमी भी हड़बड़ाया ।
“हाँ, पीछे पुलिस लगी है ।”
“क्या बकवास कर रहा है ।” वह चीखा और फिर उसने एकदम झटके से पीछे मुड़कर देखा ।
अगले क्षण वो सन्न रह गया ।
ऐसा लगा, जैसे किसी ने मिक्सी में डालकर उसके चेहरे का सारा खून निचोड़ लिया हो ।
वाकई एक बुलेट मोटरसाइकिल उनके पीछे दौड़ी चली आ रही थी, जिस पर फ्लाइंग स्क्वाड दस्ते के वही दोनों पुलिसकर्मी सवार थे ।
वह बार-बार विसल बजाकर ऑटो रिक्शा रोकने का आदेश भी दे रहे थे ।
अजनबी ने जल्दी से अपने चेहरे का पसीना साफ किया ।
“ऑटो की स्पीड और बढ़ा ।” फिर वह बोला ।
“ल...लेकिन... ।”
“बहस मत कर ।” अजनबी दहाड़ा- “यह बहस का वक्त नहीं है । इस समय मेरी जान पर बनी है ।”
“ल...लेकिन अगर मैंने ऑटो रिक्शा न रोकी, तो पुलिस मेरी बाद में ऐसी-तैसी कर देगी साहब ।”
“पुलिस तो तेरी बाद में ऐसी तैसी करेगी ।” अजनबी ने फौरन रिवॉल्वर दिलीप की कनपटी पर रख दी- “लेकिन उससे पहले मैं तेरी अभी, इसी वक्त ऐसी तैसी फेर दूंगा । रिवॉल्वर का घोड़ा दबेगा और तू ऊपर होगा, हमेशा के लिये ऊपर ।”
अजनबी ने रिवॉल्वर का सैफ्टी-कैच हटाया, तो दिलीप के प्राण हलक में आ फंसे ।
“न...नहीं ।”दिलीप की आवाज कंपकंपायी- “न...नहीं ।”
“तो फिर स्पीड बढ़ा ।”
“बढ़ाता हूँ- अ...अभी बढ़ाता हूँ ।”
उसके बाद दिलीप ने सचमुच ऑटो की स्पीड बढ़ा दी ।
फौरन ऑटो बुलेट को पछाड़कर सडक पर भागी ।
“अ...आह...आह ।”
यही वो पल था, जब उस अजनबी के मुँह से पहली बार कराह निकली ।
दिलीप ने पीछे मुड़कर देखा, उस समय वह अजनबी अपना सीना भींचे किसी दर्द को दबाने की कोशिश कर रहा था ।
दिलीप ने स्पीड और तेज कर दी ।
एक ऑटो रिक्शा ड्राइवर होने के नाते उसे यूं तो सभी रास्तों की जानकारी बड़े अच्छे ढंग से थी, लेकिन कहाँ बुलेट और कहाँ उसकी ऑटो ?
खरगोश और कछुए जैसी उस दौड़ में जो बात दिलीप के लिये सबसे ज्यादा फायदेमंद साबित हुई, वह था कनॉट प्लेस में बिछा सड़कों का जाल ।
दिलीप अपनी ऑटो रिक्शा को स्टेट्समैन तथा सुपर बाजार की पेंचदार गलियों में घुमाता हुआ जल्द ही फ्लाइंग स्क्वाड की मोटरसाइकिल को धोखा देने में कामयाब हो गया ।
दस मिनट बाद ही ऑटो रिक्शा दरियागंज के इलाके में दौड़ रही थी ।
“श...शाबाश !” अजनबी उसकी सफलता से खुश हुआ- “श...शाबास ।”
दिलीप ने फिर पीछे मुड़कर देखा ।
अजनबी अब सीट पर अधलेटा-सा हो गया था और उसने अपना सिर पीछे टिका लिया था ।
दिलीप को उसकी हालत ठीक न दिखाई दी ।
जरूर वह कोई खतरनाक अपराधी था । “एक सवाल पूछूं ?” दिलीप थोड़ी हिम्मत करके बोला ।
“प...पूछो ।”
“तुम्हारे पीछे पुलिस क्यों लगी थी ?”
“प...पुलिस !”
“हाँ ।”
“त..तुम अभी यह बात नहीं समझोगे ।” अजनबी पुनः पीड़ा से कराहता हुआ बोला- “य...यह एक लम्बी कहानी है ।”
“तुम कराह क्यों रहे हो ?”
“म...मुझे गोली लगी है ।”
“गोली ।”
बम सा फट गया दिलीप के दिमाग में, उसके कण्ठ से चीख-सी खारिज हुई ।
हाथ ऑटो रिक्शा के हैंडल पर बुरी तरह कांपें, जिसके कारण पूरी ऑटो को भूकम्प जैसा झटका लगा ।
“ल...लेकिन किसने मारी तुम्हें गोली- प...पुलिस ने ?”
अजनबी कुछ न बोला ।
ऑटो रिक्शा अभी भी तूफानी गति से सड़क पर दौड़ी जा रही थी ।
“त...तुम्हें जाना कहाँ है ?”
अजनबी फिर चुप ।
वह कराहता हुआ सीट पर कुछ और पसर गया । और पूछा तुम कहाँ रहते हो?
इस बार दिलीप चुप था।
“जवाब क्यों नहीं देते ?”
“त...तुम कहाँ रहते हो ?”
“म...मैं !” दिलीप सकपकाया- “ल...लेकिन तुम्हें इससे क्या मतलब है ?”
“बताओ तो सही, शायद कुछ मतलब निकल आये ।” अजनबी की आवाज में अब थोड़ी नरमी आ गयी थी ।
वह नरमी का ही असर था जो दिलीप ने बता दिया- “मैं सोनपुर में रहता हूँ ।”
“अ...और कौन-कौन रहता है तुम्हारे साथ?” अजनबी ने कराहते हुए पूछा ।
“अकेला रहता हूँ ।”
“अ...अभी शादी नहीं हुई ?”
“नहीं ।”
“म...मां-बाप ?”
“वह भी नहीं हैं ।”
“ओह !”
“ठ...ठीक है ।”
अजनबी ने बेचैनीपूर्वक पहलू बदला- “अगर तुम अकेले रहते हो, त...तो तुम मुझे अपने ही घर ले चलो । इ...इस समय वही जगह सबसे ठीक रहेगी ।”
“य...यह क्या कह रहे हो ?” दिलीप के कंठ से सिसकारी छूट गयी ।
उसके दिल दिमाग पर बिजली-सी गड़गड़ाकर गिरी ।
ऑटो रिक्शा को झटका लगा, इतना तेज झटका कि उस झटके से उभरने के लिये दिलीप को ऑटो फुटपाथ के किनारे सड़क पर रोक देनी पड़ी ।
“क्या कहा तुमने अभी ?” दिलीप तेजी से अजनबी की तरफ पलटकर बोला- “क्या कहा ? तुम सोनपुर जाओगे ?”
“ह...हाँ ।” अजनबी ने संजीदगी से कहा- “सोचता हूँ, आज रात तुम्हारे ही घर आराम कर लूं ।”
“लेकिन क्यों करोगे मेरे घर पर आराम ? तुम अपना पता बोलो, तुम जहाँ रहते हो, मैं तुम्हें वहीं लेकर जाऊंगा । दिल्ली के आखिरी कोने में भी तुम्हारा घर होगा, तो मैं तुम्हें वहीं ले जाकर छोडूंगा ।”
“म...मगर मैं इस वक्त अपने घर नहीं जाना चाहता ।” अजनबी इस समय भी काला ब्रीफकेस कसकर अपने सीने से चिपकाये हुए था ।
“क्यों नहीं जाना चाहते अपने घर ?”
“तुम नहीं जानते बेवकूफ आदमी ।” अजनबी थोड़ा खीझ उठा- “पुलिस मेरे पीछे लगी है, मुमकिन है कि पुलिस ने मुझे गिरफ्तार करने के लिये मेरे घर पर भी पहरा बिठा रखा हो, अगर ऐसी हालत में मैं अपने घर गया, तो क्या फौरन पकड़ा न जाऊंगा ?”
दिलीप सन्न रह गया ।
एकदम सन्न !
उसे अब महसूस हो रहा था, एकाएक कितनी बड़ी आफत में वो फंस चुका है ।
एक लगभग मरा हुआ सांप उसके गले में आ पड़ा था ।