चंदा का बाप रोज सवेरे अपना ठेला ले कर निकलता और कई जगहों से काम उठता जिसमे ज्यादातर किराने का सामान होता था जिसको वो एक थोक दुकानदार से खुदरा दुकानदार तक पहुंचाता और कभी कभी वो बालू गिट्टी या सीमेंट भी ढोता था....कुल मिला कर चंदा के बाबा का मूलतः काम था ठेले से माल ढुलाई का...
और दिन भर की कमर तोड़ कमाई का एक बड़ा हिस्सा वो जा के देशी शराब के ठेके पे बहा आता सिर्फ और सिर्फ सुकून भरी नींद के लिए क्युकी पहले बीवी के जाने का दुख था और उसके बाद गोपी के मूंह मोड़ लेने से उसके जीवन का खालीपन अब उसके गले की फांस बन गया था....इसलिए वो शराब पे अब ज्यादा निर्भर रहने लगा था और देशी शराब का तो आप सब को पता है जितना गहरा उसका नशा होता है उससे कही ज्यादा घातक उसका नुकसान होता है जो धीरे धीरे उसको मौत की तरफ धकेल रहा था.....पर चंदा का चेहरा उसको एक अदृश्य डोर से बांधे हुआ था जिस कारण वो बूढ़ा आदमी चाह कर भी मौत की आगोश में नही जा सकता था क्युकी इन सब से ऊपर जो वहा आसमान में बैठा है उसके हाथ में सब का लेखा जोखा तय रहता है....
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चंदा का बाबा जिस ठेके पे शराब पीने जाता था वहा पे कई और लोग शराब पीते थे जिसमे से एक था नौरंगी सिंह उर्फ नारंगी चाचा....
ठेके पे बैठे तमाम लोगों में से ये एक ऐसा शख्स था जो चंदा के बापू से दोस्ती का रिश्ता रखता था....
हालांकि नारंगी चाचा की हालत भी लगभग लगभग चंदा के बापू जैसी ही थी....ना घर परिवार का साथ और न ही आगे पीछे किसी की जिम्मेदारी...अपने वैवाहिक जीवन के शुरू शुरू के समय में नारंगी का पूरा भरा पूरा परिवार था पत्नी एक बेटा और एक मां....
बाप से विरासत में मिले पैसों को व्यापार में लगाने के बजाय इसने राजनीति का रास्ता अख्तियार किया पर राजनीति हर किसी के किस्मत में हो ये कोई मामूली बात तो है नही....
लगातार कई सालो तक जनता के लिए काम करने के बावजूद ये गांव के मुखिया के चुनाव में कभी नही जीता अब इसमें बहुत से कारण हो सकते है पर असलियत यही थी की अपना सब कुछ दाव पे लगा कर नारंगी को हर बार हार का ही सामना करना पड़ा.....
परिवार वालो के लाख समझाने के बावजूद नारंगी अपने धुन में मस्त रहा और उसी मस्ती में धीरे धीरे अपने परिवार से दूर होता चला गया....ले दे कर अब उसके पास ना तो धन बचा था और ना ही ताकत जिससे वो अपना लुटाया हुआ धन वापिस से अर्ज कर सके.....नतीजा साफ था जीवन का अंतिम समय फटेहाली में गुजरने लगा ये तो गांव के कुछ पुराने लोग जो उसको उसके समय से जानते थे वो उसकी मदद कर दिया करते थे पर कब तक....
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थोड़ा फ्लैशबैक में चलते है...
नौरंगी का एक बड़ा भाई था सरयुग प्रसाद जो गोरखपुर में रहता था और ये वहा के एक समृद्ध कारोबारी था कपड़ो का.......इनके परिवार में इनकी पत्नी और एक बेटा था प्रमोद......एकलैता बेटा होने के कारण हर समय सर पे चढ़ाए रखा जो आगे चल कर उनके लिए जी का जंजाल बन गया...
ये प्रमोद साला एक नंबर का जुआरी, शराबी और रंडीबाज किस्म का व्यक्ति था....ना बात करने का लहजा ना बड़े छोटो का फर्क उसको मालूम था....जुबान पे गाली हर वक्त रहती थी....
सरयुग जी ने जो कुछ भी अर्ज कर रखा था उसका रसूख जितना वो खुद नही रखते थे उतना प्रमोद रखता था....
आए दिन जुए के अड्डे से गिरफ्तार होना तो उसके लिए आम बात थी और अपने मुहल्ले में लफड़ा करना उसके हर दूसरे दिन की रूटीन में शामिल था....
इसलिए तंग आ कर उन्होंने गोरखपुर के ही एक जाने माने महाजन जो की सरयुग जी के मित्र थे उनकी बेटी से इसका विवाह करवा दिया जिसका नाम था रेणु....
कुछ दिन तो सब कुछ सही रहा और सरयुग जी को लगा की बेटा अब रास्ते पे आ गया है पर प्रमोद अपने कमीनेपन से ज्यादा दिन दूर नही रह पाया....शादी के दो साल में ही उसको रेणु से दो बेटे पैदा हुए एक प्रेम और दूसरा प्रवीण....समय अपनी रफ्तार से चलता रहा और धीरे धीरे प्रमोद का असली चेहरा रेणु के सामने आने लगा.....
रोज रात को शराब के नशे में आना और बेफिजूल की बातो पे रेणु से झगड़ा करना उसकी रोज की आदत बन चुकी थी.....
धीरे धीरे रेणु और प्रमोद के बीच लगाव खतम होने लग गया अब हालात यहां तक आ पहुंचे की प्रमोद फिर से रंडीबाजी और जुए में उतरने लगा....
नतीजा ये हुआ की शराब के नशे में जो अनबन केवल बहसबाजी तक थी अब वो मारपीट में बदल गई....
रेणु बेचारी प्रमोद के हाथो कई बार बुरी तरह पिट जाती और बीच बचाव करते थे सरयुग जी और उनकी पत्नी....प्रेम और प्रवीण भी कई बार प्रमोद के गुस्से के लपेटे में आ जाते थे....
एक रात यूंहि प्रमोद और रेणु में मार पीट हो रही थी और गुस्से में प्रमोद ने रेणु के सीने पे इतने जोर से मारा की उसके प्राण पखेड़ू उड़ गए....
प्रमोद ने जब रेणु को देखा की वो मुंह के बल जो गिरी सो गिरी ही रह गई तो उसके होश फाख्ता हो गए.....उसने उसे उठा कर होश में लाने की बहुत कोशिश की पर अब कुछ नही हो सकता था रेणु की मौत हो चुकी थी और प्रमोद ने अपने बचने का कोई रास्ता ना देख वहा से फरार हो गया....
सरयुग जी की हस्ती खेलती दुनिया पल भर में बरबाद हो गई....
रेणु के बाप ने अपने हत्यारे दामाद पर हत्या का केस दर्ज करा दिया और मामला बुरी तरह फस गया...
इधर पुलिस ने सरयुग जी को हत्यारे के बाप के रूप में हर तरह से प्रताड़ित किया की वो प्रमोद का ठिकाना बता दे पर उन्हें तो खुद कुछ मालूम नही था तो वो पुलिस को कुछ कहा से बताते....उनकी बनी बनाई इज्जत मिट्टी में मिल रही थी पर वो अभी लाचार थे....
व्यापार का नुकसान तो हो ही रहा था पर पुलिस और थाने के चक्कर काट काट के सरयुग जी मानसिक और शारीरिक रूप से बीमार हो चले थे....
इधर प्रमोद जिसको नशे से दूर रहने की आदत नही थी वो आखिर कब तक खुद को रोकता इसलिए रेणु की हत्या के डेढ़ महीने बाद उसने कोर्ट में सरेंडर कर दिया...
मुकदमा चला और उसे दस साल की सजा हो गई......बेटे की ऐसी दुर्गति देख कर प्रमोद की मां सदमा सहन नही कर पाई और वो परलोक सिधार गई....सरयुग जी पे अब दुखो का पहाड़ टूट पड़ा था पर जब नौरंगी को ये सब के बारे में पता चला तो वो सरयुग के साथ हो लिया और उसने अपने भाई को इस दुख की घड़ी में एक मजबूत सहारे के रूप में साथ दिया ताकि वो अपने बिखर चुके संसार को वापिस से पटरी पर ला सके......नारंगी चाचा का परिवार अभी नया नया छूटा था कई बार मान मनौवाल के बावजूद उनकी पत्नी उनके साथ वापिस नही आई थी.......
इसलिए वो अपनी भाभी के जाने के बाद अपने बड़े भाई के साथ ही रहे कुछ दिन और इसी बीच रेणु के पिता ने उनके दोनो नातियो के कानूनी हक के लिए न्यायालय में याचिका दायर कर दी....अभी तक प्रमोद की मां इन दोनो को संभालती आ रही थी पर अब तो इनको देखने वाला कोई नहीं था और सरयुग जी किधर किधर दौड़ लगाते....
व्यापार की तरफ, बेटे की रिहाई की तरफ की अपने दोनो पोतो को संभालने के तरफ.....
खैर पोतो के लिए सरयुग जी ने भी अपना पक्ष न्यायालय में जज के सामने रखा और न्यायालय ने प्रवीण को रेणु के पिता के पास और प्रेम को सरयुग जी के साथ रहने का फैसला सुना दिया....
प्रेम अब अपने दादा के साथ उनके घर में रह रहा था उसकी उम्र अभी सात साल थी....
अपने दादा के साथ रहते रहते उसने अपनी छूट चुकी पढ़ाई दुबारा से शुरू की और इधर सरयुग जी से अब उनके लगभग लगभग डूब चुके व्यापार को दुबारा खड़ा पाना बहुत ही मुश्किल था पर फिर भी नारंगी के साथ मिल कर जो बचा था उसी को सही से चलाने लगे पर जो ठाट बाट पहले हुआ करती थी अब वो नाम मात्र रह गया था......
दूसरी तरफ प्रमोद अपनी सजा काट रहा था पर जब भी सरयुग जी उससे मिलने जेल आते वो उनको उसकी जमानत करवाने को कहता और सरयुग जी इस काम में लगे भी हुए थे पर हत्या के केस में जमानत मिलना इतना आसान तो था नहीं.....
अपने किए पर प्रमोद को जरा भी पछतावा नहीं था बल्कि उस नीच को ये लगता था की उसके किए की सजा के रूप में उसको ये जेल की कोठरी मिल गई बस उसका पाप धुल गया पर अभी उसको अपने अंजाम का अंदाजा नहीं था की उसके साथ आगे चल कर क्या क्या होने वाला है.....
खैर सजा होने के पांच साल बाद सरयुग जी और नारंगी चाचा के अथक प्रयासों और एक मोटी रकम घुस में देने के बाद प्रमोद को जमानत मिल गई और वो बाहर आ गया.....
बाहर आने के बाद से प्रमोद सही से रहने लगा जेल में काटे हुए पांच साल के लंबे समय के कारण उसकी आदत कुछ हद तक सुधर गई थी पर देखना ये है की कब तक वो इस आचरण को निभा पाता है.....
प्रमोद बाहर आने के बाद से अपने बाप के व्यापार में पूरी तरह लीन हो गया और अपने बाप और चाचा की छत्रछाया में धीरे धीरे उसने फिर से सब कुछ पहले के जैसे वापिस से कमा लिया और जीवन को सही से बिताने लगा पर पैसों की चमक धमक उसपे पड़ते ही वो फिर से उसी तरफ रुख करने लगा जहा से वो एक बार बरबाद हो कर लौटा था....
इधर सरयुग जी की उमर हो चली थी सो एक रात जो वो सोए फिर सदा के लिए सो गए......सरयुग जी की मृत्यु के बाद प्रमोद फिर से अपने असली रंग में रंग गया और फिर से वही सब शुरू कर दिया.....
नौरंगी ने चाचा होने के नाते प्रमोद को बहुत हद तक संभाला पर ये साला संभाले ना संभले और प्रमोद दुबारा से शराब और जुए में डब गया और खुद की मेहनत से संजोए हुए कारोबार और अर्ज किए हुए धन समृद्धि की माँ चोद दिया और कुछ ही समय मे उसका बाल बाल कर्जे मे डूब गया.....
नतीजतन अपने बाप और खुद का सारा अर्ज किया हुआ धन घर जमीन सब गंवा दिया....
नौरंगी ना चाहते हुए भी अपने भाई की आखिरी निशानी उसके बेटे यानी की प्रमोद से मुंह नही फेर पाया और जो कुछ भी नौरंगी ने अपने भाई के साथ रहते हुए कमाया था उसमे से थोड़े पैसे निकाल कर प्रमोद के लिए गोरखपुर में ही एक नाश्ते की दुकान चालू करवा दी और इस बार उसने प्रमोद को साफ साफ शब्दों में धमकी दी की अगर तूने इस बार भी शराब या जुए की तरफ आंख उठा कर देखा तो वो भूल जायेगा की तू उनका भतीजा है.....
हर महीने के अंत में हिसाब लेने आया करूंगा इसलिए गड़बड़ी करने की सोचना भी मत और प्रेम का भी खयाल उसे ही रखना है.....
नौरंगी प्रमोद को छोड़ कर बेगूसराय इसलिए चला आया ताकि वो यहां अपने घर को भी देख सके क्युकी भाई के चक्कर ने काफी दिनों से उसने अपने घर की सुध नहीं ली थी और प्रमोद को भी अपनी जिम्मेदारियों का बोझ खुद ही उठाना होगा जो गलती उसके बड़े भाई ने की थी प्रमोद को सर पे चढ़ा कर उसको सही करने का जिम्मा अब नौरंगी के कंधो पे था.....
इसलिए वो हर महीने के अंत में प्रमोद के पास पहुंच जाता और महीने भर का हिसाब लेने के बाद थोड़े पैसे अपने पास रख कर बाकी प्रमोद के हवाले कर देता और अब प्रमोद भी अपने बेटे के साथ सही से रह रहा था.....शहर के दूसरी तरफ एक कमरा किराए पे ले रखा था जिसमे वो प्रेम के साथ रहता था.....
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अब आज के वर्तमान समय में....
नौरंगी और दयानंद यानि की चंदा के बाबा साथ में शराब पीते थे और नौरंगी दयानंद की हालात भी बखूबी जानता था और उसे ये भी पता था की दयानंद को उसकी बेटी चंदा के लिए एक लड़के की तलाश है....
प्रमोद और प्रेम को भी किसी संभालने वाले की जरूरत थी और प्रेम बड़ा तो हो ही गया था पर वो पढ़ाई के साथ साथ अपने घर का हर काम करता था खाना पकाने से ले कर झाड़ू बर्तन सब कुछ और फिर अपने बाप का भी हाथ बटाटा था दुकान पर....
लेकिन प्रेम ने कभी भी इस बात को ले कर ना प्रमोद को टोका था नाही नौरंगी को....
और प्रमोद को तो वैसे भी इन बातो से फर्क नही पड़ता था....पर नौरंगी को पड़ता था और इसी कशमकश में भगवान ने एक अजीब खेल रच दिया था जिसमे नौरंगी ने चंदा का हाथ प्रमोद के लिए दयानंद से मांगने का सोचा था.....