पंजाब दियाँ मस्त रंगीन पंजाबना–पार्ट–18
इन्ही सवालो से झूँझता मैं दुबारा एक पार्क के नाम पर तयार हो रहे एक कमरे में जाकर रुक गया। उस वक़्त मैं पूरी तरह से भीग चूका था और ठण्डी चलती हवा की वज़ह से कपकपी भी उठ रही थी। थोड़ी देर इंतज़ार करने के बाद एक कार मेरी तरफ़ आती दिखाई दी तो मैंने सोचा पूछता हूँ ड्राईवर से शायद शहर तक जायेगी तो इसपे ही चला जाउगा। मैं इन्हीं सोचो में खोया था के तभी वह कार मेरे पास आकर ही रुक गयी। मैं कपकपाता उस कार को देख रहा था। उसमे रेनकोट पहने एक सख्श जिसका चेहरा कोट के साथ लगी टोपी से ढका हुआ था, बाहर आया और हाथ में बैटरी जलाये मेरी तरफ़ ही आ रहा था।
वह साया एक दम मेरे पास आकर उसने अपने सर से वह टोपिनुमा नकाब निकाला और मेरी तरफ़ देखा।
एक दम मुझे याद आया, अरे यार ये तो वही लड़की है जिसने 20 मिनट पहले मेरा प्रस्ताव ठुकराया था।
मैं— (थोडा नराजगी से) —हाजी कहिये, अब क्या दिक्कत है आपको?
यहाँ खडना भी ज़ुर्म है क्या?
वो—मुझे माफ़ कर दीजिये, मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गयी। दरअसल उस वक़्त मेरा मूड थोड़ा खराब था। बस ऐसे ही किसी का गुस्सा आप पर निकाल दिया। आइये अब घर चलते है। अब चाहे एक रात रुक भी जाना। मुझे कोई आपत्ति नहीं है।
मैं—नहीं धन्यवाद मैडम, पहले ही आप मेरी बहुत सेवा कर चुकी है। आप जाइये मैं अब अपने ही घर जाऊँगा। चाहे देरी से ही जाऊ लेकिन अब आपके साथ तो बिल्कुल भी नहीं आउगा।
वो—अब गुस्सा थूक भी दीजिये न कह तो दिया बस मूड खराब की वज़ह से गलती हो गयी। मुझे माफ़ कर दीजिए। मैं अपने किये पर बहुत शर्मिंदा हूँ। प्लीज़ मुझसे माफ़ करदो।
मैं— (गुस्से से) —क्यों अब क्या हो गया। अब कोनसी फ़ौज़ आपके पास होगी और वैसे भी आप मेरी वज़ह से डिस्टर्ब ही होंगी। सो कृपया आप मुझे भी माफ़ करे और अपने घर जाइये। मैं चला जाउगा अपने घर। साली इंसानियत नाम की चीज़ ही ख़त्म हो गयी है आप जैसे लोगों की वज़ह से, अब खडी क्यों हो जाइये न, क्यों अपना वक़्त खराब कर रही हो। सो जाओ जाकर घर अपने।
गुस्से में मुझे पता ही नहीं चला उसे न जाने कितनी ही उलटी सीधी बाते बोल गया।
वो—मान भी जाइये न प्लीज़, एक बार घर तो चलिए न वहाँ जाकर जितना मर्ज़ी डांट लेना।
वैसे भी यहाँ कब तक खड़े रहोगे। ऊपर से ठंडी रात है। यहाँ आपकी कुल्फी जम जायेगी।
वो मुझे ऐसे मना रही थी के जैसे मेरी बीवी या गर्ल फ्रेंड हो।
उसकी आवाज़ में निवेेदन, मायूसी, पछताचाप साफ़ साफ दिखाई दे रहा था।
उसकी बात मानते हुए मैं उसकी गाडी में बैठ गया और उसके साथ उसके घर तक पहुँच गया।
अंदर जाकर उसने मुझे सोफे की तरफ़ इशारा करके बैठने को कहा।
परन्तु भीगा होने की वज़ह से मैंने खड़ा रहना ही उचित समझा।
मैं अभी भी इसी कशमश में था के इसको ऐसा क्या सूझा के पहले धक्के मार रही थी और अब मिन्नते कर रही है। इसी उलझनतानी में पता ही नहीं चला के कब वह मेरे लिए एक जेंट्स कुर्ता पायजामा और तौलिया लेकर मेरे सामने खड़ी थी।
वो—बाक़ी की बाते बाद में पहले ये लो कपड़े बदल लो, वरना सर्दी लग जायेगी और बीमार पड जाओगे।
मेरे ना-ना करने के बावजूद भी उसने मुझे कपड़े दे दिये और बाथरूम की तरफ़ इशारा करके जल्दी वापिस आने को बोला।
मैं बाथरूम में भी यही सोचता रहा के एक अजनबी लड़की इतना अपनापण क्यों दिखा रही है।
उस वक़्त बड़े अजीब-अजीब ख़्याल मेरे दिमाग़ में आ रहे थे।
कई बार ख़ुद ही अपने सवाल का जवाब देने लग जाता के यार फेर क्या हुआ उसने गुस्से में बोल दिया, इंसानियत भी एक चीज़ होती है और अब माफ़ी भी तो मांग रही है। मैं अपने कपड़े बदल कर वही अपने भीगे कपड़े सुखा कर उसके पास बाहर सोफे पर जाकर बैठ गया। तब तक वह टेबल पर गर्म चाय के दो कप, गरमा गर्म पकोड़े ट्रे में लेकर वही मेरा इंतज़ार कर रही थी।
मेरे सोफे पर बैठते ही उसने प्लेट, कप मेरी तरफ़ उठाकर आगे बढ़ाया और ख़ुद दूसरा कप अपने होठो से लगा लिया। दो तीन मिनट तक चुपी छाई रही। जब हमने चाय पीली तब वह बोली हांजी अब दिल में जितनी भी भड़ास है निकाल लीजिये।
सबसे पहले एक बार फेर आपसे माफ़ी चाहती हूँ के शाम को जो भी हुआ। आज रात आप यहा रुक सकते हो। जब सुबह बारिश बन्द हो जाये अपने घर चले जाना।
वो-दरअसल उस वक़्त मैं अपने पति से फ़ोन पर झगड़ा करके हटी थी। जो के किसी कम्पनी में मैनेजर की पोस्ट पर तैनात है। एक हफ्ते से घर नहीं आये है। ऊपर से मेरी सासु माँ, मेरी नन्द के यहाँ चली गयी है। आप तो समझदार हो बिना परिवार के अकेली पत्नी कैसे रह सकती है?
इसे मेरी मज़बूरी समझो या कुछ और मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला। हाँ अकेली का दिल नहीं लग रहा था। सो सोचा आपको रात गुजारने के लिए छत मिल जायेगी और मुझे एक पार्टनर।
उसकी दोगली बातो के अर्थ को मैं अच्छी तरह से समझ रहा था।
करीब आधा घण्टा बाते करने के बाद वह उठी और रसोई में खाना बनाने चली गई। बाद में हमने साथ में खाना खाया और बातो में पता चला के उसका नाम कामिनी पंजाबन है और वह यहाँ अपने पति और सासु माँ के साथ रहती है। उसकी शादी को डेढ़ साल हो गया है और अभी तक माँ नहीं बनी है और वह एक हफ्ते से सेक्स की भूखी है। अब पूरी बात मेरी समझ में आ चुकी थी के उसे अपनी काम अग्नि शांत करने के लिये मेरा शिकार किया है।
सारा काम निपटाने के बाद उसने मुझे मेरा कमरा दिखाया, बातो-बातो में मुझे याद आया के मेरे घर वाले मेरा रास्ता देख रहे होंगे। मैंने ऐसे ही उसे ऐसे बोल दिया खाना खा लिया अब मुझे जाना चाहिए घर वाले मेरी चिंता कर रहे होंगे। मेरी इस प्रतिकिर्या से जैसे उसके सारे अरमानो पर पानी फिर गया हो।
उसने अपना मोबाइल मेरी तरफ़ बढ़ाते हुए कहा, " ये लो फ़ोन अपने घर पर फ़ोन लगाकर बोल दो के बारिश की वज़ह से आज नहीं आ पाउँगा! आज की रात किसी दोस्त के यहाँ रुका हुआ हूँ। सुबह बारिश के बन्द होते ही आ जाऊंगा। एक बात तो पक्की हो गयी थी के वह मुझे जाने नहीं देना चाहती। मैंने उसके मोबाइल से घर पर चाचा को फ़ोन कर दिया के किसी दोस्त के घर पर रुका हूँ सुबह बारिश रुकते ही घर आ जाउगा।
मेरे फ़ोन बंद करते ही उसने मुझे थॆकस बोला ऒर पास ही बेठते हुए कहा, " हान जी ये हुइ ना बात, अब बताओ कहा से आ रहे हो?
में—वह दरअसल आपके शहर के पास के गाँव का हूँ। मैं कालज में पढता हूँ। अभी पेपर ख़त्म हुए हैं और छुट्टीयो में घर जा रहा हूँ ओर आते वकत बारिश की वज़ह सॆ आपसे सामना हो गया।
इसपे वह थोडा-सा मुसकुरायी ऒर एक बार फिर अपने किए बर्ताव के लिये एक बार फिर माफ़ी मांगी।
वो—आपका नाम और आपके परिवार में और कौन-कौन है?
मैं—जी मेरा नाम गौरव कुमार है और मेरी फैमली में बस मैं और मेरे चाचा हैं।
वो—आपके मम्मी पापा?
मैं-जी उनकी बहुत पहले एक रोड एक्सीडेंट में डेथ हो गयी थी ।
कामिनी-फेर तो आप मेरी मज़बूरी अच्छी तरह से समझ सकोगे?
मैं—कैसी मज़बूरी? मैं समझा नहीं मैडम?
वो—पहले तो आप मुझे मैडम नहीं कामिनी कहकर पुकारे। मुझे अच्छा लगेगा। मेरे पति ने ही मुझे कामिनी नाम दिया है पहले मेरे नाम कुछ और थी।
मैं—अच्छा जी, अब आपको कामिनी कहूंगा।
वो—आप मुझे जो आपका दिल करे कह बुला सकते हो। आज की रात आपकी मर्ज़ी चलेगी।
मैं इतना तो पक्का समझ गया था वह चुदवाने की खातिर पापड़ बेल रही है।
परन्तू मैं अपनी तरफ़ से पहल नहीं करना चाहता था। वह बार-बार ग्रीन सिग्नल के तौर पर बात करते-करते आँख मारना, होंठो पर जीभ फेरना, अपनी चूत को खुजलाना आदि कामुक इशारे कर रही थी।
आग के पास घी कब तक ठोस रहता। सो एक तो ठण्ड, ऊपर से कई दिनों तक पपरो के दौरान पढ़ाई के लिए अकेले और गिर्ल्फ्रेंड्स से दूर रहना पड़ा। जिसकी वज़ह से कई दिनों से सोये अरमानो को उसकी अदाओं ने रोम-रोम में काम जग दिया। मन में सोचने लगा, सच में ही इसका नाम कुछ और ही है ये कामनी नाम इसने ख़ुद बड़ा सोच समझ कर चुना है और ये खुला न्योता है। मेरा आधे घण्टे में ये हाल है। उसका तो इस से भी बुरा हाल होता होगा। जब रोज़ाना इसकी कातिलाना अदाओ के तीर उसके पति के दिल पर लगते होंगे।
मैं-आप भी मुझे चाहे तो मदन कह कर बुला सकती हैं या जानू या जो भी आप चाहे मुझे कह सकती हैं।
मैने उसके नज़दीक् होकर उसको बाँहो की ग्रिफत में ले लिये। उसने जरा-सा भी विरोध नहीं किया। जिससे साफ़ साबित होता था के वह भी कब से ऐसा ही चाहती थी। मैंने उसका चेहरा पकड़कर उसके नरम होंठो में अपने गर्म होंठ रख दिए। उसने आँखे बन्द करके ख़ुद को मुझे समरपित्त कर दिया।
उसने मेरे गले में अपनी बाँहो का हार डाला और मेरी छाती से अपने नरम-नरम मुम्मे रगड़ने लगी। मैंने उसका इशारा समझ गया और उसको गोद में उठाकर उसके बैडरूम में ले गया। वहाँ लिजाकर उसको बेड पर लिटा दिया। फेर उसके ऊपर लेटकर उसके माथे, होंठ, गाल, ठोड़ी, गर्दन आदि पर चुम्बनो की बोछार करदी। उसके मुंह से आह्ह्ह्ह...अाह्ह्ह्ह् की कामुक सिसकिया निकल रही थी।
लेकिन मुझे उसे चूमने में दिक्कत हो रही थी। इस लिये मैंने उसे कपड़े उतरने को कहा। इसने शरमाते शर्माते अपना लम्बा नाईट सूट उतार दिया। अब वह एकदम नंगी हो चुकी थी मैंने उसे बड़ी ग़ौर से देखा। उसे बदन का रोम-रोम खड़ा हो चूका था। सेक्स की भूख में वह इतना पागल हो चुकी थी के उसका शरीर गर्म भट्ठी की तरह धहक रहा था। उसकी आँखे काम उतेज़ना से भर गयी थी और ज़ुबान भी लड़खड़ाने लग गई थी।
वो—गौरव जल्दी दे डाल दो न पलीज़ अब और सब्र नहीं हो रहा। मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूँ। मुझे और न तड़पाओ, मेरे सब्र की और परीक्षा न लो, एक हफ्ते से चुदी नहीं हूँ। जिसकी वज़ह से न तो अच्छी तरह से नींद आती है और न ही कही दिल लगता है।
मैं उसकी व्याकुलता को समझते हुए उसे पहले अपना लण्ड चूसने को कहा। उसने एक पल भी व्यर्थ न गंवाते हुये, उठकर मेरा इलास्टिक वाला पयज़ामा घुटनो तक निचे करके, मेरा तना हुआ 9' 3″ के लण्ड को जो अब पूरा खड़ा हो चूका उसे देख बोली "हाय इतना बड़ा, ये उनके से तो दुगना ही है!" और फिर मुंह में लेकर बेसब्री से चूसे जा रही थी।
मैं—ज़रा धीरे करलो, हमे कोनसी जल्दी है। यहा सुबह तक हम दोनों ही तो है। आराम से करो तुम्हे भी मज़ा आएगा और मुझे भी, इतनी तेज़ी से तुम्हे भी खांसी लग जायेगी और मेरा भी काम जल्दी हो जायेगा।
वो—क्या करू मेरे कामदेव, सब्र ही तो नहीं हो रहा, चूत में आग ही इतनी लगी है के बस पूछो मत। इस से पहले भी कई बार पति कई-कई दिन बाहर रहते थे। लेकिन आज जितनी तड़प कभी नहीं दिल में उठी।
मैं—ओह्ह... अब समझ आया तुम मुझे क्यों लेकर आई।
वो— (लण्ड चूसना एक पल के छोड़कर) —हाँ सही कहा आपने, आज से पहले के 5-6 दिन तो जैसे तैसे ऊँगली, वाइब्रेटर की मदद से निकाल लिए थे। आज उनके आने का प्रोग्राम था इसलिए आज सुबह से ही मोटा तगड़ा लण्ड लेने की चाह हो रही थी और मैं हफ्ते भर से उनका इन्तजार कर रही थी। फिर पति को फ़ोन किया के कब आओगे। उसने ये कहकर डाँट दिया के मीटिंग में बिज़ी हूँ, शाम को बात करेंगे। जिसकी वज़ह से मुझे गुस्सा आ गया के अब इनको कभी भी फ़ोन नहीं करूगी और अपनी काम अग्नि को ठंडी करने का ख़ुद इंतज़ाम करूंगी।
इस लिऐ आज सारा दिन बाज़ार घूमती रही। वहाँ मुझे कोई मेरी पसन्द का नहीं मिला। फेर शाम को घर आकर बैठी ही थी के आप आ गए। मैं बुरी तरह से चिड़ी हुई थी जिसकी वज़ह से आपसे मैने बुरा बर्ताव किया। लेकिन बाद में ख़्याल आया के पागल, यही तो वह है, जिसे सारा दिन बाज़ार में ढूँढती रही। फेर मैं आपके पीछे गाड़ी लेकर आ गयी और आपको लेकर अपने घर आ गयी। अब बताओ मैंने कुछ ग़लत किया?
मैं—नहीं नही मैडम, अपने कुछ ग़लत नहीं किया, आपकी कहानी सुनकर आप पर बेपनाह प्यार आ रहा है। चलो अब लेट जाओ ताकि आपकी भी कुछ सेवा कर सकु।
वो मेरा लण्ड चूसना छोड़कर बेड पे टांगे खिलकर लेट गई। मैंने अपने बचे खुचे कपड़े भी उतार दिए , क्या गजब की सुंदरी थी कामिनी , साक्षात काम देवी . एक सुन्दर, गोरी, दुबली-पतली सुंदर पंजाबी लड़की थी। केवल 5.5-फीट लंबा, गोरी दूधिया त्वचा, सेक्सी लेकिन उसका फिगर अद्भुत रूप से कामुक था, माप - 34सी-26-36। वह 21 साल की थी, उसके गोल मुलायम स्तन थे जिन पर छोटे और मोटे गुलाबी निप्पल थे। उसकी काफी पतली कमर किनारों पर प्यारे चौड़े कूल्हों में बदल गई थी और उसके पीछे बड़े झूलते हुए बुलबुले जैसे नितंब थे। उसके पास सेक्सी सुडौल टाँगे थे, मोटी चिकनी जांघें, अच्छी तरह से - सुडौल पिंडलियाँ और छोटे पैर। हालाँकि, उसने अपने बड़े सामने के दाँतों को सीधा करने के लिए ब्रेसिज़ लगाए थे, और आँखों पर चश्मा पहना था, जिससे वह एक चिकनी ताज़ा मुंडा चूत के साथ काफी सेक्सी लग रही थी।
मैंने उसके बूब्स पकड़े और उसके ऊपर जाकर लेट गया। फिर मैंने धीरे से उन्हें अपनी बाहों में लिया और उनके होंठो पर चूमना और अपनी जीभ से गीली चटाई शुरू कर दी। अब कामिनी सिहरकर मुझसे लिपट गयी थी और उसकी 36 साईज की चूचीयां मेरे सीने से दब गयी थी। फिर मैंने उत्तेजना में उन्हें जकड़कर अपनी बाहों में मसल डाला। तो कामिनी ने कहा कि गौरव करो मसल दो बहुत तड़पाती है । फिर मैंने उनके गालों पर अपनी जीभ फैरनी चालू कर दी और फिर उनके ऊपर के होठों को चूमता हुआ, उनके नाक पर अपनी जीभ से चाट लिया। अब कामिनी सिसकारियां भरती हुई मुझसे लिपटी जा रही थी। अब में उनके चेहरे के मीठे स्वाद को चूसते हुए उनकी गर्दन को चूमने, चाटने लगा था और मेरे ऐसा करते ही वो सिसकारी लेती हुई मुझसे लिपटी जा रही थी। अब में कामिनी के बूब्स को दबाने लगा था। अब उनके मांसल बूब्स दबाने से वो सिहरने, सिकुड़ने और छटपटाने लगी थी।
अब उसके होंठो को किस करते हुए उनके मुँह का स्वाद और उनके थूक का मीठा और सॉल्टी टेस्ट मुझे मदधहोश कर रहा था। अब उनकी आहें भरने की सेक्सी आवाज़ और नंगे जिस्म का नजारा और स्पर्श मेरे लिए बहुत ज्यादा था । फिर वो उत्तेजना से सिसकारी भरते हुए बोली कि ओह राजा ये मुझे क्या हुआ है ? मुझे मसल दो, मुझ पर छा जाओ, में मदहोश हूँ, मुझे अब और मत तड़पाओ, आओ मेरे राजा मेरी प्यास बुझा दो। अब चूमना चाटना छोडो पलीज़ अब लण्ड डाल्दो।
मैंने उसकी बात मानते हुए थोड़ा पीछे हटके उसकी चुत का जायजा लिया। बिलकुल चिकनी , जो लबालब पानी छोड रही थी। मैंने अपना लण्ड उसकी चूत के मुंह पे सेट करके उसकी एक टांग आपने कंधे पे रखकर हल्का सा झटका फिया। लण्ड चूत की चिकनाहट की वजह से गहरायी में फिसलता हुआ उसके गर्भाश्य से जा टकराया। जिसकी वजह से इसकी हलकी सी चीख निकल गयी और थोडा मुझे भी दर्द हुआ। मैंने कुछ पल रुककर एक बार फेर हल्का सा धक्का दिया। तो उसकी सीसीसी…आह…अहह्ह…आआह्ह की हल्की हल्की सिसकिया निकलने लगी।
उसकी आँखे बन्द थी और उसने अपने हाथ पीछे की और मोड़कर तकिया को जकड़ रखे थे। उसके चेहरे के हाव भाव से पता चल रहा था के उसे बहुत मज़ा आ रहा था। उसकी एक टांग उठाये रहने की वजह से मैंने थोडा थक गया। तो मैंने अपनी कमर हिलानी बन्द करदी। जिसकी वजह से उसकी बन्द आँखे खुल गयी और उसने लेटे ही मेरी तरफ देखके पूछा, क्यों जी आपने हिलना बन्द क्यों कर दिया कोई दिक्कत है क्या ?
मैंने उसे अपने थक जाने का कारण बताया तो उसने कहा,” बस इतनी सी बात एक मिनट पीछे हटो, मैं हट गया। मेरा लण्ड उसकी चूत में से निकल गया। अब वो तकिये को ठीक करके उसपे डौगी स्टाइल में हो गई। मुझे उसकी बात पे हंसी भी आई के औरते अपने मज़े के लिए कुछ भी कर सकती है। अब मैं अपने घुटनो को मोड़कर उसकी गांड के पीछे खड़ा हो गया और उसे अपनी गांड थोड़ी ऊँची उठाने को कहा। वो आज्ञाकारी बच्चे की तरह मेरा हर हुकम माने जा रही थी।
मैंने एक बार फेर अपना तना हुआ लण्ड उसकी टाँगो के पीछे से उसकी चूत पे डाला तो उसकी तो जैसे मन की मुराद पूरी हो गयी हो। उसने पीछे की और मुंह करके मुझे कहा आप ऐसे ही खड़े रहो अब मैं हिलती हूँ और अगले ही पल वो डॉगी स्टाइल में अपनी गांड हिला हिलाकर चुदने लगी। पहले धीरे धीरे और बाद में उसकी स्पीड तेज़ हो गयी और करीब 10 मिनट बाद एक लम्बी आह्ह्ह्ह लेकर झड़ गयी और कुछ पल के लिए तकिये पे ही लेट गयी।
उसका काम तो हो गया ता लेकिन मेरा अभी होना बाकी था। कुछ पल आराम करने के बाद उसने मुझे कहा अब आप नीचे आ जाओ मैं ऊपर आती हूँ। अगले ही पल मैं बैड पे पीठ के बल लेट गया और वो मेरे लण्ड को हाथ में लेकर हिलाने लगी और चूसने लगी। थोड़ी देर तक ऐसे ही करने के बाद वो मेरे ऊपर आकर लण्ड को अपनी चूत पे सेट करके धीरे धीरे निचे की और वजन देने लगी ताजो मेरे फूले हुए लण्ड का सुपाड़ा उसकी गीली चूत में आसानी से जा सके।
थोड़ी जद्दो जेहद के बाद लण्ड उसकी चूत में घुस गया और वो मेरे उपर लेटी ही उठक बैठक करने लगी। वो कभी झुक कर अपने मम्मे मेरे मुंह में देती तो कभी मेरे होंठो को चूमने लगती। जब मुझे लगा के मेरा काम भी होने वाला है तो मैंने भी उसकी कमर को हाथो में लेकर नीचे से अपनी कमर हिलाकर उसकी चूत में लण्ड अंदर बाहर करने लगा और अगले 5 मिन्ट तक मैं भी एक लम्बी आःह्ह्हह लकेर उसकी चूत में पिचकरियां छोडता ही झड़ गया।
फिर मैंने उसे कहा रानी अब तुम ऊपर आ जाओ और नीचे लेट गया । वो लंड पकड़ मेरे ऊपर बैठी लंड, लंड सर्र से अंदर , मेरे तनकर खड़े लंड पर धीरे धीरे अपनी चूत दबाकर लंड को अंदर घुसा रही थी। पहली बार में उसकी चूत की चमड़ी को अपने लंड की चमड़ी पर रगड़ते हुए देख रहा था और में बता नहीं सकता कि मुझे उस समय कितना मज़ा आ रहा था। वो मेरे लंड पर धीरे से उठती और फिर नीचे बैठ जाती जिसकी वजह से लंड अंदर बाहर हो रहा था और वो खुद अपनी चुदाई मेरे लंड से कर रही थी और बहुत मज़े कर रही थी । सच कामिनी बहुत मादक लग रही थे उनके रेशमी सुनहरी बाल चारो तरफ फ़ैल गए थे आपा उन्हें पीछे करते हुए मेरी छाती पर अपने हाथ रख देती थी।
मैंने भी अपने चूतड़ उठा कर उनका साथ दिया.. मेरा लंड उनकी चूत के अंदर पूरा समां जाता था तो दोनों के आह निकलती थी .फिर मेरे हाथ उनके बूब्स को मसलने लगे फिर मैं उनकी चूचियों को खींचने लगता था तो कामिनी सिहर जाती थी और सिसकने लगती थी .. उसके बाद वो मेरे ऊपर झुक गयी और हम लिप किस करते हुए लय से चोदने में लग गए.. मैं उसे बेकरारी से चूमने लगा। और चूमते चूमते हमारें मुंह खुले हुये थे जिसके कारण हम दोनों की जीभ आपस में टकरा रही थी फिर मैंने ज़ीनत आपा की जम कर चुदाई की और उनको जन्नत की सैर कराइ । फिर थोड़ी देर के बाद वो फिर झड़ गयी ।
वो मेरे ऊपर मैं उसके निचे, बरसात की रात होने की वजह से भी पसीने से भीगे लेटे हुए थे के इतने में उसके पति का फोन आ गया । उसने मेरी छाती पे बैठे ही बैड के दराज से फोन उठाया और हलो कहा।
उसका पति — इतनी देर से फोन कर रहा हूँ उठाया क्यों नही ?
वो — वो मैं काम कर रही थी सो ध्यान नही आया।
उसका पति रुमांटिक होकर बात करने लगा। इधर कामिनी ने ये कहकर फोन काट दिया के बारिश की वजह से आवाज़ साफ नही आ रही।
फोन काटने के बाद वो हंस पड़ी और बोली आज इसे सबक सिखाया मैंने, सुबह बड़ा डाँट रहा था, अब प्यार से बोला तो मैंने बात नही की ।
फोन रखने के बाद वो बोली,” चलो गौरव बहुत रात हो गयी है, अब इकठे साथ में नहाकर सोते है।
मैंने कहा,” नहाना न बाबा न, अब नहाकर मरना है क्या, भीगने के बाद वाली सर्दी अब तक शरीर से नही निकली।
वो — अरे ! डरते क्यों हो गर्म पानी है गीज़र वाला और फिर अपने बदन पर हाट फेरते हुए बोली राजा ये हीटर भी तुम्हारे लिए ही है ।
मैं उसके साथ बाथरूम चला गया और उसने गीज़र चालू कर दिया। करीब 5-7 मिनट में पानी हमारे नहाने लायक हो गया इस बीच मैं उसे देखता रहा , सपाट पेट, लहराती हुई कमर, गहरी नाभि और बूब्स पर तनी हुई निपल्स, आँखे अधमुंदी चेहरा और गला मेरे चाटने के कारण गीला और शेव्ड हल्के ब्राउन कलर की चूत, केले के खंभे जैसी चिकनी जांघे और गोरा बदन और फिर हम दोनों शावर के निचे खड़े होकर एक दसरे को मल मल कर नहलाने लगे। उसने बैठकर मेरे लण्ड पर साबुन लगाया। जिस से उसके हाथ का स्पर्श पाकर एक बार फेर से खड़ा हो गया। उसने मेरी तरफ देखा और मुस्करकर कहा,” अब इसका कया करू ?
मैं — (हँसते हुए) — मुझे क्या पता तुमने जगाया है तुम ही सुलाओ !
वो मेरे इशारे को समझ गयी और मुंह में लेकर चूसने लगी। ऊपर से गर्म पानी और निचे से उसकी गर्म सांसे गर्माहट का एहसास दिला रहे थे। जब लण्ड पूरा तन गया तो खुद ही घोड़ी वाली पोज़िशन में आ गयी।
मैंने तना हुआ लण्ड फेर उसकी चूत में डाल दिया और अपनी कमर हिलानी चालू कर दिया। वो आँखे बन्द किये इस चुदाई का मज़े लेने लगी। करीब 10 मिनट के बाद हम दोनों इकठे रस्खलित हुए। बाद में हम नहा कर इकठे ही सो गए। सुबह उसने करीब 7 बजे मुझे उठाकर चाय पिलाई और मैंने उसे वही दबोच लिया।
वो — थोड़ा सब्र करलो जी, खाना खाकर फेर मौज़ मस्ती करेंगे। उस वकत उसे मैंने लिप किस करके छोड़ दिया। इतने में चाचा का फोन आ गया के कब तक आओगे। मैंने उनकी दीवार घड़ी की तरफ देखा तो सुबह के सवा 7 बज रहे थे। मैंने उन्हें 12 बज़े तक आ जाने का कहके फोन काट दिया।
वो — क्या हुआ किसका फोन था ?
मैं — चचा , पूछ रहे थे कब तक आओगे ?
वो — तो क्या कहा आपने ?
मैं — 12 बजे तक का कह दिया।
मेरी बात सुनकरर वो उदास हो गयी और उसकी आँखों में आसु आ गए।
मैं — क्या हुआ, रो क्यों रही हो ?
वो — एक रात में ही आपसे इतना गहरा रिश्ता जुड़ गया जो शयद मेरे पति से पिछले डेढ़ साल से भी नही जुड़ा। आपको अपने से दूर करने को दिल नही मान रहा। इस लिए मन भर आया और वो मेरे गले लगकर फक फक रोने लगी।
मैं — हट पगली, ऐसे ही मन हल्का कर रही है। ये समझ लो के हमारा साथ एक ही रात का लिखा था। मेरा तो इधर से घर आना जाना लगा ही रहता है यदि भगवान ने चाहा तो फेर कभी भी मिलेंगे।
उसने मेरी बात में हाँ मिलायी और उसके बार बार रोने की वजह से थोडा मेरा मन भी भर आया। मैने उसे अपना मोबाईल नम्बर ये कहके दे दिया के जब दिल करे मुझेे काल कर लेना। जिस से उसे थोडा इसको तसल्ली हो गयी के मैं दूर जाकर भी दूर नही हूँ।
उसने अपने मोबाईल से मेरा नम्बर डायल करके मुझे अपना नम्बर दे दिया। जो मैंने वहीँ सेव कर लिया।
वो — जाते जाते एक बार मुझे बहुत सारा प्यार करलो। मेरा दिल आपके स्पर्श के लिए तड़प रहा है। मैेने उसे गोद में उठाकर उसे बैड पे लिटा दिया और एक एक करके उसके और अपने सारे कपड़ेे निकाल दिए। उसने मेरा लण्ड सहलाना शुरू किया और अपने होंठो के स्पर्श से सोये हुए लण्ड को जगाया और 5-7 मिनट चूस्ती रही।
जब मेरा लण्ड कडक हो गया तो उसने अपनी टाँगे उठाकर उसमे पेलने का इशारा किया। मैंने उसका इशारा पाकर अपनी कमान सम्भाल ली और अपनी कमर हिलाने लगा। इस बार हमने यादगार बनाने के लिए 10 मिनट वाला काम आधे पौने घण्टे तक किया। जब हमारा दोनों का रस्खलन हुआ तो इकठे ही नहाये। दिन के 10 बजे मैंने उसके साथ ढेर सारी सैलफिया ली और उससे विदा ली।
वो अपनी गाड़ी से मुझे शहर से गांव जाने वाली बस में बिठाकर आई। बस में बिठाते वक्त भी गले लगकर खूब रोई और पहुंचकर फोन करने का कहा। इस तरह मैं उसे रोती बिलखती छोड़ अपने गांव वापिस चला आया। घर आकर मैंने इसे फोन पे अपने पहुँच जाने का सन्देस दिया।
अब कई बार उसका फोन आ जाता है। और फिर जब भी मौका मिलता है हम मिल लेते हैं ।
पंजाब दियां मस्त रंगीन पंजाबना जारी रहेगी