threshlegend
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Super hot hot and erotic update diya haiमैंने आगे कुछ और सवाल नहीं पूछे, और उन्हें अपना घर दिखाने लगी। हमारा बंगला बहुत बड़ा है। कुल मिला कर 8 कमरे है। 2 नीचे, 4 उपर, और 2 दूसरी मंज़िल पर, और उसके उपर टेरेस है। मैंने पंडित जी को पूरे घर के दर्शन करा दिए, और आखिर में हम टेरेस पर पहुंच गए।
मैं: ये है हमारा घर।
पंडित जी: अच्छा घर है।
फिर हम नीचे जाने लगे, लेकिन पंडित जी ने मुझे रोक लिया।
पंडित जी: रेनू तुम्हें कोई तकलीफ है?
मैं: नहीं पंडित जी, मेरा तो सब अच्छा ही चल रहा है।
पंडित जी: विवाह को कितने वर्ष हो गए हैं? कोई बालक या बालिका नहीं दिख रहे।
मैं: पंडित जी काफी समय से प्रयास कर रहे हैं लेकिन शायद भगवान की कुछ और ही इच्छा है।
तभी मेरी नज़र पंडित जी की धोती पर गई और देखा कि उनका लंड पूरा खड़ा हो चुका था और तड़प रहा था। मैं पंडित जी के धोती को इशारा करते हुए बोली
मैं: वैसे तो आप भी तो बहुत तकलीफ में हो।
पंडित जी ने जल्दी से अपना हाथ धोती पर रखा और बोले
पंडित जी: माफ कर दो रेनू, वैसे तो मैं ब्रम्हचर्य का पालन करता हूँ पर तुम्हारे रूप और वेशभूषा से ये थोडा बहक गया।
मैं: अगर आप चाहें तो में आपकी तकलीफ दूर कर सकती हूं।
पंडित जी: नहीं-नहीं रेनू, ऐसा मत कहो नहीं तो पाप हो जाएगा!
मैं: मतलब?
पंडित जी: मैंने शपथ ली है कि मैं आजीवन ब्रम्हचारी रहूँगा और कभी किसी स्त्री से शारिरीक संभोग नहीं करूंगा।
मैं: मैंने कब कहा कि मैं आपके साथ शारिरीक संभोग करूंगी? आप हस्तमैथुन तो करते होंगे न?
पंडित जी ने हां में सर हिलाया।
मैं: तो मेरे पास भी ऐसा तरीका है कि जिससे आपकी शपथ भी नहीं टूटेगी और आपको तृप्ति भी होगी।
पंडित जी: कैसा तरीका?
मैं: आप कुर्सी पर बैठ जाईये और धोती उतारिये।
पंडित जी बहुत शर्मा गए, और उनका चेहरा भी एक-दम लाल हो गया था। इतना सब होने के बाद भी पंडित जी का लंड खड़ा ही था।
पंडित जी: रेनू क्या कह रही हो?
मैं: आप चिंता मत कीजिये। आप बताओ स्त्री और पुरुष के बीच शारीरीक संभोग का मतलब क्या है?
पंडित जी: शारीरिक संभोग मतलब जब स्त्री और पुरुष आपस में प्रजनन की क्रिया करते है उसे कहते है।
मैं: और अगर में आपके साथ वो क्रिया ना करूं तो?
पंडित जी: तो फिर उसे संभोग नहीं कहा जा सकता।
मैं: यहीं बात तो मैं आप से कब से कह रही थी, कि मैं आपके साथ संभोग नहीं करूंगी!
पंडित जी धोती उतार कर कुर्सी पर बैठ गए, और मैंने जल्दी से जा कर टेरेस का दरवाजा बंद कर दिया। मैं उनकी तरफ मुड़ी, तो देखा कि उनका लंड 7 इंच बड़ा और काफी चौड़ा था। मैं उनके सामने खड़ी हो गई, और उनके लंड को घूर रही थी।
पंडित जी: वैसे तुम ये सब क्यूं कर रही हो?
मैं: तांकि आपकी तकलीफ दूर हो जाए और आप मेरा एक काम कर दें।
पंडित जी: कैसा काम?
मैं: बताती हूँ जल्दी क्या है।
मैं घुटनों के बल बैठ गई और उनके लंड को हाथ में लेकर हिलाने लगी। उन्हें भी अच्छा लग रहा था। वो आंखें बंद करके बैठे हुए थे।
फिर मैं धीरे से उनके लंड पर अपनी जुबान हल्के से फेरने लगी और उनके टट्टों को एक हाथ से सहलाने लगी। फिर उनका लंड मैंने धीरे-धीरे अपने मुंह में लिया और चूसना शुरु कर दिया।
पंडित जी मेरे सामने 5 मिनट भी नहीं टिके, और वो मेरे मुंह में ही अपना पानी छोड़ने लगे। वो इतना वीर्य छोड़ रहे थे कि मेरा पूरा मुंह उनके वीर्य से भर गया।
उनका रस बहुत गरम था और दूध के समान सफेद था। उसका स्वाद बहुत अच्छा था। मैंने आज तक इतना स्वादिष्ट वीर्य नहीं पिया था। मैंने उनका सारा वीर्य निगल लिया, एक बूंद भी नहीं गिरने दी।
मैं: वाह पंडित जी, आपका प्रसाद तो बहुत स्वादिष्ट है, और आप प्रसाद भी बहुत सारा देते हो।
पंडित जी समझ गए कि मैं किस प्रसाद की बात कर रही थी।
पंडित जी (शर्माते हुए): ध… धन्यवाद रेनू।
मैं: आपने आखरी बार हस्तमैथुन कब किया था?
पंडित जी: बहुत दिन हो गए, लगभग सात महीने पहले।
मैं: बाप रे! इतने दिन तक आपने कुछ नहीं किया?
पंडीत जी: हां। मेरे मन में वैसे कुछ भावना आई ही नहीं।
मैं: लेकिन आप इतनी जल्दी क्यों झड़ गए? मुझे लंड चूसने का मजा भी नहीं मिला।
पंडित जी: ये मेरा पहली बार था।
मैंने देखा कि पंडित जी का लंड अब तक बैठा नहीं था। बल्कि अब भी हल्का सा कडापन था।
मैं: आपका लंड अब भी पूरा नहीं बैठा?
पंडित जी: नहीं थोडा समय लगेगा फिर बैठेगा।
मैं: शायद आपके लंड को पूरा निचोड़ना होगा और सारा वीर्य बाहर निकालना पड़ेगा।
मैंने अब ठान ली थी कि मैं अब पंडित जी का लंड शांत करके ही मानूंगी। मैंने अपने कपड़े जल्दी से उतर दिये और सिर्फ पैंटी में खड़ी थी।
पंडित जी: अपने कपड़े क्यूं उतर रही हो?
मैं: आप चलिये मेरे साथ।
मैंने पंडित जी का हाथ पकड़ा, और नंगे बदन ही उन्हें टेरेस के नीचे वाले कमरे में ले गई।
मैं: आप अपने भी कपड़े उतार दीजिये।
पंडित जी: नहीं-नहीं… रेनू।
मैं: आप मेरी बात मानो पंडित जी।
पंडित जी ने अपना थैला बाजू में रखा, और अपने कपड़े उतार दिये। अब हम दोनों एक-दम नंगे थे।
उस कमरे में एक छोटा सोफा रखा था। मैंने पंडित जी को सोफे पर लिटा दिया, और तेल की बॉटल जो कि कमरे में पहले से ही थी, उसे लेकर आ गई, और पंडित जी के लंड को बहुत सारा तेल लगा दिया। पंडित जी का लंड एक दम लोहे के खम्भे जैसा तन गया।
मैंने पंडित जी के लंड को हिलाना शुरु कर दिया और साथ ही साथ मुंह में लेकर चूसना शुरु कर दिया। लंड चूसने की आवाज पूरे कमरे में गूंज रही थी। मैं पूरे जोश में लंड चूसे जा रही थी और फिर दस मिनट बाद उनका लंड मेरे मुंह में फिरसे झड़ने लगा।
हैरानी की बात यह थी कि पंडित जी ने अब भी बहुत सारा वीर्य मेरे मुंह में छोड़ दिया, पहले जैसा ही गाढ़ा, सफेद और स्वाद में भी उतना ही बढ़िया। पंडित जी को बहुत ही अच्छा महसूस हुआ। मुझे लगा कि अब खेल खतम हो गया था, लेकिन नहीं। कुछ मिनट बाद ही उनका लंड फिरसे खड़ा हो गया। मैं ये देख कर बहुत हैरान थी।
मैं: अरे बाप रे! अपका लंड फिर खड़ा हो गया।
पंडित जी: हां… पहली बार पूरी नंगी औरत देखी है न और वो भी इतनी सुन्दर।
पंडित जी अब थोड़े खुल चुके थे, और मेरे साथ बिना शर्माए बात कर रहे थे, और मुझे भी बहुत अछा लग रहा था। पंडित जी मेरे मुंह में अपना लंड डालने ही वाले थे कि मैंने उन्हें रोक दिया।
पंडित जी: क्या हुआ रेनू?
मैं: इस बार सिर्फ मुंह में नहीं लूंगी।
पंडित जी: फिर?
मैंने उनका लंड मेरे मम्मों के बीच में रखा, और उसे ऊपर-नीचे करने लगी। पंडित जी अब मानो सातवें आसमान पर थे। वो अपने आप अपनी कमर हिला कर मेरे मम्मों के बीच लंड रख कर चोदने लगे। 15 मिनट बाद उनका लंड फिर पानी छोड़ने वाला था।
पंडित जी: रेनू मेरा फिर निकलने वाला है। कहां छोडूं?
मैं: जहां आपका मन करें।
पंडित जी ने अपना सारा पानी मेरे चेहरे पर और मेरे मम्मों पर छोड़ दिया। मेरा चेहरा और मेरे बूब्स उनके वीर्य से कवर थे।
मैं (हस्ते हुए): अरे वाह, अपका वीर्य तो कम होने का नाम ही नहीं लेता। अब भी उतना ही वीर्य छोड़ा आपने। मेरे चेहरे और बूब्स को पूरा भिगो दिया।
पंडित जी शर्मा गए। मुझे लगा कि पंडित जी के लंड में अब भी बहुत दम बचा था। तो मैंने उनके लंड को पकड़ कर हिलाना शुरु कर दिया।
पंडित: ये क्या कर रही हो… बस हो गया।
मैं: आप चुप रहिये, मैं जानती हूं आपके लंड में अब भी दम है।
कुछ देर में मुझे जो लग रहा था वहीं हुआ। उनका लंड फिर खड़ा हो गया।
मैं: पहली बर ऐसा मर्द देखा है जिसका लंड तीन बार लगातार झड़ने के बाद भी खड़ा रहता है।
पंडित जी: शुक्रिया रेनू।
मैंने उन्हें सोफे पर से उठाया, और खुद सोफे पर लेट गई।
मैं: देख क्या रहे है, आप आईये और मेरा मुंह चोदिये।
बस कहने की देरी थी। पंडित जी जल्दी से अपना लंड मेरे मुंह में डाल कर मेरा मुंह दना-दन चोदने लगे। वो इतने जोर-जोर से मेरा मुंह चोद रहे थे कि मुझे सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी। ऐसे ही मेरा मुंह चोदते-चोदते वो झड़ गए। उन्होने अपना लंड मेरे मुंह में ही जमाए रखा जिसके कारन मुझे उनका वीर्य फिरसे पीना पड़ा। पंडित जी ने मुझे सांस लेने का भी मौका नहीं दिया, और मेरा मुंह फिर चोदना शुरु कर दिया।
हमारा ये खेल पूरे एक घंटे तक चला। पंडित जी लगातार 7 बार मेरे मुंह में झड़ गए। आखिरकार पंडित जी का लंड शांत हो गया।
मैं सोफे से उठ गई, और अपना चेहरा आईने में देखा। मेरे पूरे चेहरे पर वीर्य लगा हुआ था, और मेरे बाल पूरे बिखरे हुए थे। ना-जाने क्यों मुझे मेरा यह रुप देख कर बहुत अच्छा लगा। मुझे ऐसा लग रहा था कि मानों मैं कोई रंडी हूं।
मैं अपना मुंह धोने के लिए जाने ही वाली थी कि राजेश जी वापस आ गए। मैं मेनडोर लॉक करना भूल गयी थी लेकिन उन्होंने नीचे से ही आवाज दी “रेनू! कहाँ हो? पंडित जी चले गए क्या?”
राजेश जी की आवाज से हम दोनों डर गए। मैंने जैसे-तैसे अपने आप को शांत किया और उन्हें उपर से ही आवाज दी।
मैं: पांच मिनट में आ रहीं हूँ राजेश जी।
राजेश जी (नीचे से): जल्दी आओ।
मैंने चैन की सांस ली और सोचा “अच्छा हुआ वो उपर नहीं आए”। मैंने पंडित जी की ओर देखा तो उनके पसीने छूट रहे थे। मैंने उन्हें गले लगाया और शांत कर दिया।
फिर मैं बाथरुम में चली गई और अपना चेहरा अच्छे से धो लिया, और अपने बाल फिर ठीक कर दिये। मैं बाहर आई तो पंडित जी मुझे देख रहे थे।
मैं: क्या हुआ, अब भी मन नहीं भरा क्या?
पंडित जी: नहीं रेनू, बस तुम्हारी खुबसूरती देख रहा था।
मैं शर्मा गई, और अपने कपड़े पहनने लगी। मैं कपड़े पहन ही रही थी कि पंडित जी ने मुझे रोक दिया।
मैं: क्या हुआ पंडित जी? कपड़े तो पहन लेने दो मुझे।
पंडित जी: रेनू रेनू तुम मेरे सामने ऐसे ही नंगी कुछ और देर खड़ी रहो।
मैंने उनकी बात मान ली, और उनके सामने ऐसे ही नंगी खड़ी हो गई। पंडित जी मुझे देखे जा रहे थे और मेरी खुबसूरती निहार रहे थे। मैं तो पूरी शर्म से लाल हो गई थी।
पंडित जी (मुझे देखते हुए): सच में तुम्हें भगवान ने अप्सरा का रूप दिया है।
मैं शर्मा गई और बोली-
मैं: आपको भी भगवान ने लगातार झड़ने का वरदान दिया है। सच में अपका वीर्य पीकर मेरा तोह पेट भर गया।
पंडित जी ने मुझे शुक्रिया कहा और अपने झोले में से एक माला निकाली। उन्होंने उस माला को पकड़ कर कुछ मंत्र बोला, और वो माला मुझे पहना दी।
मैं: ये क्या है?
पंडित जी: ये माला पहनने से तुम्हें शारिरीक सुख की कमी नहीं होगी और तुम जल्द ही गर्भवती भी होगी।
मैं: शुक्रिया पंडित जी।
मैंने नंगे बदन ही पंडित जी के पैर छू लिए और उन्होनें मुझे आशीर्वाद दिया। मैंने उन्हे माला के लिये शुक्रिया कहा।
Shaandar super hot Kamuk Updateमैंने आगे कुछ और सवाल नहीं पूछे, और उन्हें अपना घर दिखाने लगी। हमारा बंगला बहुत बड़ा है। कुल मिला कर 8 कमरे है। 2 नीचे, 4 उपर, और 2 दूसरी मंज़िल पर, और उसके उपर टेरेस है। मैंने पंडित जी को पूरे घर के दर्शन करा दिए, और आखिर में हम टेरेस पर पहुंच गए।
मैं: ये है हमारा घर।
पंडित जी: अच्छा घर है।
फिर हम नीचे जाने लगे, लेकिन पंडित जी ने मुझे रोक लिया।
पंडित जी: रेनू तुम्हें कोई तकलीफ है?
मैं: नहीं पंडित जी, मेरा तो सब अच्छा ही चल रहा है।
पंडित जी: विवाह को कितने वर्ष हो गए हैं? कोई बालक या बालिका नहीं दिख रहे।
मैं: पंडित जी काफी समय से प्रयास कर रहे हैं लेकिन शायद भगवान की कुछ और ही इच्छा है।
तभी मेरी नज़र पंडित जी की धोती पर गई और देखा कि उनका लंड पूरा खड़ा हो चुका था और तड़प रहा था। मैं पंडित जी के धोती को इशारा करते हुए बोली
मैं: वैसे तो आप भी तो बहुत तकलीफ में हो।
पंडित जी ने जल्दी से अपना हाथ धोती पर रखा और बोले
पंडित जी: माफ कर दो रेनू, वैसे तो मैं ब्रम्हचर्य का पालन करता हूँ पर तुम्हारे रूप और वेशभूषा से ये थोडा बहक गया।
मैं: अगर आप चाहें तो में आपकी तकलीफ दूर कर सकती हूं।
पंडित जी: नहीं-नहीं रेनू, ऐसा मत कहो नहीं तो पाप हो जाएगा!
मैं: मतलब?
पंडित जी: मैंने शपथ ली है कि मैं आजीवन ब्रम्हचारी रहूँगा और कभी किसी स्त्री से शारिरीक संभोग नहीं करूंगा।
मैं: मैंने कब कहा कि मैं आपके साथ शारिरीक संभोग करूंगी? आप हस्तमैथुन तो करते होंगे न?
पंडित जी ने हां में सर हिलाया।
मैं: तो मेरे पास भी ऐसा तरीका है कि जिससे आपकी शपथ भी नहीं टूटेगी और आपको तृप्ति भी होगी।
पंडित जी: कैसा तरीका?
मैं: आप कुर्सी पर बैठ जाईये और धोती उतारिये।
पंडित जी बहुत शर्मा गए, और उनका चेहरा भी एक-दम लाल हो गया था। इतना सब होने के बाद भी पंडित जी का लंड खड़ा ही था।
पंडित जी: रेनू क्या कह रही हो?
मैं: आप चिंता मत कीजिये। आप बताओ स्त्री और पुरुष के बीच शारीरीक संभोग का मतलब क्या है?
पंडित जी: शारीरिक संभोग मतलब जब स्त्री और पुरुष आपस में प्रजनन की क्रिया करते है उसे कहते है।
मैं: और अगर में आपके साथ वो क्रिया ना करूं तो?
पंडित जी: तो फिर उसे संभोग नहीं कहा जा सकता।
मैं: यहीं बात तो मैं आप से कब से कह रही थी, कि मैं आपके साथ संभोग नहीं करूंगी!
पंडित जी धोती उतार कर कुर्सी पर बैठ गए, और मैंने जल्दी से जा कर टेरेस का दरवाजा बंद कर दिया। मैं उनकी तरफ मुड़ी, तो देखा कि उनका लंड 7 इंच बड़ा और काफी चौड़ा था। मैं उनके सामने खड़ी हो गई, और उनके लंड को घूर रही थी।
पंडित जी: वैसे तुम ये सब क्यूं कर रही हो?
मैं: तांकि आपकी तकलीफ दूर हो जाए और आप मेरा एक काम कर दें।
पंडित जी: कैसा काम?
मैं: बताती हूँ जल्दी क्या है।
मैं घुटनों के बल बैठ गई और उनके लंड को हाथ में लेकर हिलाने लगी। उन्हें भी अच्छा लग रहा था। वो आंखें बंद करके बैठे हुए थे।
फिर मैं धीरे से उनके लंड पर अपनी जुबान हल्के से फेरने लगी और उनके टट्टों को एक हाथ से सहलाने लगी। फिर उनका लंड मैंने धीरे-धीरे अपने मुंह में लिया और चूसना शुरु कर दिया।
पंडित जी मेरे सामने 5 मिनट भी नहीं टिके, और वो मेरे मुंह में ही अपना पानी छोड़ने लगे। वो इतना वीर्य छोड़ रहे थे कि मेरा पूरा मुंह उनके वीर्य से भर गया।
उनका रस बहुत गरम था और दूध के समान सफेद था। उसका स्वाद बहुत अच्छा था। मैंने आज तक इतना स्वादिष्ट वीर्य नहीं पिया था। मैंने उनका सारा वीर्य निगल लिया, एक बूंद भी नहीं गिरने दी।
मैं: वाह पंडित जी, आपका प्रसाद तो बहुत स्वादिष्ट है, और आप प्रसाद भी बहुत सारा देते हो।
पंडित जी समझ गए कि मैं किस प्रसाद की बात कर रही थी।
पंडित जी (शर्माते हुए): ध… धन्यवाद रेनू।
मैं: आपने आखरी बार हस्तमैथुन कब किया था?
पंडित जी: बहुत दिन हो गए, लगभग सात महीने पहले।
मैं: बाप रे! इतने दिन तक आपने कुछ नहीं किया?
पंडीत जी: हां। मेरे मन में वैसे कुछ भावना आई ही नहीं।
मैं: लेकिन आप इतनी जल्दी क्यों झड़ गए? मुझे लंड चूसने का मजा भी नहीं मिला।
पंडित जी: ये मेरा पहली बार था।
मैंने देखा कि पंडित जी का लंड अब तक बैठा नहीं था। बल्कि अब भी हल्का सा कडापन था।
मैं: आपका लंड अब भी पूरा नहीं बैठा?
पंडित जी: नहीं थोडा समय लगेगा फिर बैठेगा।
मैं: शायद आपके लंड को पूरा निचोड़ना होगा और सारा वीर्य बाहर निकालना पड़ेगा।
मैंने अब ठान ली थी कि मैं अब पंडित जी का लंड शांत करके ही मानूंगी। मैंने अपने कपड़े जल्दी से उतर दिये और सिर्फ पैंटी में खड़ी थी।
पंडित जी: अपने कपड़े क्यूं उतर रही हो?
मैं: आप चलिये मेरे साथ।
मैंने पंडित जी का हाथ पकड़ा, और नंगे बदन ही उन्हें टेरेस के नीचे वाले कमरे में ले गई।
मैं: आप अपने भी कपड़े उतार दीजिये।
पंडित जी: नहीं-नहीं… रेनू।
मैं: आप मेरी बात मानो पंडित जी।
पंडित जी ने अपना थैला बाजू में रखा, और अपने कपड़े उतार दिये। अब हम दोनों एक-दम नंगे थे।
उस कमरे में एक छोटा सोफा रखा था। मैंने पंडित जी को सोफे पर लिटा दिया, और तेल की बॉटल जो कि कमरे में पहले से ही थी, उसे लेकर आ गई, और पंडित जी के लंड को बहुत सारा तेल लगा दिया। पंडित जी का लंड एक दम लोहे के खम्भे जैसा तन गया।
मैंने पंडित जी के लंड को हिलाना शुरु कर दिया और साथ ही साथ मुंह में लेकर चूसना शुरु कर दिया। लंड चूसने की आवाज पूरे कमरे में गूंज रही थी। मैं पूरे जोश में लंड चूसे जा रही थी और फिर दस मिनट बाद उनका लंड मेरे मुंह में फिरसे झड़ने लगा।
हैरानी की बात यह थी कि पंडित जी ने अब भी बहुत सारा वीर्य मेरे मुंह में छोड़ दिया, पहले जैसा ही गाढ़ा, सफेद और स्वाद में भी उतना ही बढ़िया। पंडित जी को बहुत ही अच्छा महसूस हुआ। मुझे लगा कि अब खेल खतम हो गया था, लेकिन नहीं। कुछ मिनट बाद ही उनका लंड फिरसे खड़ा हो गया। मैं ये देख कर बहुत हैरान थी।
मैं: अरे बाप रे! अपका लंड फिर खड़ा हो गया।
पंडित जी: हां… पहली बार पूरी नंगी औरत देखी है न और वो भी इतनी सुन्दर।
पंडित जी अब थोड़े खुल चुके थे, और मेरे साथ बिना शर्माए बात कर रहे थे, और मुझे भी बहुत अछा लग रहा था। पंडित जी मेरे मुंह में अपना लंड डालने ही वाले थे कि मैंने उन्हें रोक दिया।
पंडित जी: क्या हुआ रेनू?
मैं: इस बार सिर्फ मुंह में नहीं लूंगी।
पंडित जी: फिर?
मैंने उनका लंड मेरे मम्मों के बीच में रखा, और उसे ऊपर-नीचे करने लगी। पंडित जी अब मानो सातवें आसमान पर थे। वो अपने आप अपनी कमर हिला कर मेरे मम्मों के बीच लंड रख कर चोदने लगे। 15 मिनट बाद उनका लंड फिर पानी छोड़ने वाला था।
पंडित जी: रेनू मेरा फिर निकलने वाला है। कहां छोडूं?
मैं: जहां आपका मन करें।
पंडित जी ने अपना सारा पानी मेरे चेहरे पर और मेरे मम्मों पर छोड़ दिया। मेरा चेहरा और मेरे बूब्स उनके वीर्य से कवर थे।
मैं (हस्ते हुए): अरे वाह, अपका वीर्य तो कम होने का नाम ही नहीं लेता। अब भी उतना ही वीर्य छोड़ा आपने। मेरे चेहरे और बूब्स को पूरा भिगो दिया।
पंडित जी शर्मा गए। मुझे लगा कि पंडित जी के लंड में अब भी बहुत दम बचा था। तो मैंने उनके लंड को पकड़ कर हिलाना शुरु कर दिया।
पंडित: ये क्या कर रही हो… बस हो गया।
मैं: आप चुप रहिये, मैं जानती हूं आपके लंड में अब भी दम है।
कुछ देर में मुझे जो लग रहा था वहीं हुआ। उनका लंड फिर खड़ा हो गया।
मैं: पहली बर ऐसा मर्द देखा है जिसका लंड तीन बार लगातार झड़ने के बाद भी खड़ा रहता है।
पंडित जी: शुक्रिया रेनू।
मैंने उन्हें सोफे पर से उठाया, और खुद सोफे पर लेट गई।
मैं: देख क्या रहे है, आप आईये और मेरा मुंह चोदिये।
बस कहने की देरी थी। पंडित जी जल्दी से अपना लंड मेरे मुंह में डाल कर मेरा मुंह दना-दन चोदने लगे। वो इतने जोर-जोर से मेरा मुंह चोद रहे थे कि मुझे सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी। ऐसे ही मेरा मुंह चोदते-चोदते वो झड़ गए। उन्होने अपना लंड मेरे मुंह में ही जमाए रखा जिसके कारन मुझे उनका वीर्य फिरसे पीना पड़ा। पंडित जी ने मुझे सांस लेने का भी मौका नहीं दिया, और मेरा मुंह फिर चोदना शुरु कर दिया।
हमारा ये खेल पूरे एक घंटे तक चला। पंडित जी लगातार 7 बार मेरे मुंह में झड़ गए। आखिरकार पंडित जी का लंड शांत हो गया।
मैं सोफे से उठ गई, और अपना चेहरा आईने में देखा। मेरे पूरे चेहरे पर वीर्य लगा हुआ था, और मेरे बाल पूरे बिखरे हुए थे। ना-जाने क्यों मुझे मेरा यह रुप देख कर बहुत अच्छा लगा। मुझे ऐसा लग रहा था कि मानों मैं कोई रंडी हूं।
मैं अपना मुंह धोने के लिए जाने ही वाली थी कि राजेश जी वापस आ गए। मैं मेनडोर लॉक करना भूल गयी थी लेकिन उन्होंने नीचे से ही आवाज दी “रेनू! कहाँ हो? पंडित जी चले गए क्या?”
राजेश जी की आवाज से हम दोनों डर गए। मैंने जैसे-तैसे अपने आप को शांत किया और उन्हें उपर से ही आवाज दी।
मैं: पांच मिनट में आ रहीं हूँ राजेश जी।
राजेश जी (नीचे से): जल्दी आओ।
मैंने चैन की सांस ली और सोचा “अच्छा हुआ वो उपर नहीं आए”। मैंने पंडित जी की ओर देखा तो उनके पसीने छूट रहे थे। मैंने उन्हें गले लगाया और शांत कर दिया।
फिर मैं बाथरुम में चली गई और अपना चेहरा अच्छे से धो लिया, और अपने बाल फिर ठीक कर दिये। मैं बाहर आई तो पंडित जी मुझे देख रहे थे।
मैं: क्या हुआ, अब भी मन नहीं भरा क्या?
पंडित जी: नहीं रेनू, बस तुम्हारी खुबसूरती देख रहा था।
मैं शर्मा गई, और अपने कपड़े पहनने लगी। मैं कपड़े पहन ही रही थी कि पंडित जी ने मुझे रोक दिया।
मैं: क्या हुआ पंडित जी? कपड़े तो पहन लेने दो मुझे।
पंडित जी: रेनू रेनू तुम मेरे सामने ऐसे ही नंगी कुछ और देर खड़ी रहो।
मैंने उनकी बात मान ली, और उनके सामने ऐसे ही नंगी खड़ी हो गई। पंडित जी मुझे देखे जा रहे थे और मेरी खुबसूरती निहार रहे थे। मैं तो पूरी शर्म से लाल हो गई थी।
पंडित जी (मुझे देखते हुए): सच में तुम्हें भगवान ने अप्सरा का रूप दिया है।
मैं शर्मा गई और बोली-
मैं: आपको भी भगवान ने लगातार झड़ने का वरदान दिया है। सच में अपका वीर्य पीकर मेरा तोह पेट भर गया।
पंडित जी ने मुझे शुक्रिया कहा और अपने झोले में से एक माला निकाली। उन्होंने उस माला को पकड़ कर कुछ मंत्र बोला, और वो माला मुझे पहना दी।
मैं: ये क्या है?
पंडित जी: ये माला पहनने से तुम्हें शारिरीक सुख की कमी नहीं होगी और तुम जल्द ही गर्भवती भी होगी।
मैं: शुक्रिया पंडित जी।
मैंने नंगे बदन ही पंडित जी के पैर छू लिए और उन्होनें मुझे आशीर्वाद दिया। मैंने उन्हे माला के लिये शुक्रिया कहा।
Shaandar Updateमैं: वैसे पंडित जी, पूजा का मुहूर्त निकला कि नहीं।
पंडित जी: हां रेनू, परसों का दिन बहुत अच्छा है, शुभ मुहूर्त है तो पूजा हो सकती है।
मैं: पंडित जी, मेरी एक इच्छा है, जो आप ही पूरी कर सकते है।
पंडित जी: हां रेनू बोलो। कौन सी इच्छा है?
मैं: मुझे एक और शादी करनी है।
पंडित जी ये सुनते ही चौंक गए और बोले...
पंडित जी: ये क्या कह रही हो? ये तो गलत है।
मैं: किस शास्त्र में लिखा है की ये गलत है? पहले भी तो लोग एक से अधिक विवाह करते थे।
पंडित जी: भले ही पहले लोग एक से ज्यादा शादी करते थे लेकिन अब तो ये गैरकानूनी है। और तुमको किससे शादी करनी है।
मैं: ये शादी बस मैं अपने लिए करना चाहती हूँ, कानूनी तौर पर नहीं, इसीलिए आपको बोल रही हूँ।
पंडित जी: लेकिन फिर भी दूसरी शादी?
मैं: मेरी बात तो सुनिए आप, मेरे पति हमेशा काम से बाहर रहते है तो मुझे शारिरीक सुख की कमी थी और उस कमी को राजेश जी ने पूरा किया।
पंडित जी: क्या? कौन मेरे यजमान राजेश जी जो नीचे बैठे हुए है, वो?
मैं: हां। लेकिन आप यह मत सोचिये कि मेरा मेरे असली पति पर प्यार नहीं है।
पंडित जी: तो फिर राजेश जी से शादी क्यूं करनी है? और उनकी देवी सामान पत्नी दिव्या का क्या होगा?
मैं: अरे वो तो उनकी बीवी ही रहेंगी लेकिन मेरा मेरे असली पति पर जितना प्यार है, अब उतना ही मेरा राजेश जी पर भी प्यार है। इसलिये मुझे उनको भी अपना पति बनाना है। अब आपको इसमें मेरी मदद करनी है बस। देखिये मैंने भी आपकी मदद की है।
पंडित जी: अच्छा अगर राजेश जी तैयार हैं तो फिर ठीक है। लेकिन कब करनी है शादी?
मैं: परसो ही करवा दीजिये।
पंडित जी: इतनी जल्दी? मैं परसो पूजा के लिए तो आ ही जाऊंगा। तुमको सामान भी बता दूंगा तो बस वो सारा सामान लाकर रख देना।
फिर हम दोनों नीचे आ गए। राजेश जी ने मुझे देखते ही पूछा
राजेश जी: अरे ऊपर क्या कर रहे थे पंडित जी?
मैं: वो पंडित जी को घर दिखा रही थी की कहाँ पूजा ठीक रहेगी तो पंडित जी ऊपर वास्तु शांति के मंत्र पढ़ने लगे तो मैं उनके साथ रुक गई।
राजेश जी: ठीक है लेकिन पूजा कहाँ होगी?
मैं: वो मैं बाद में बताती हूं, और हां, मुझे पंडित जी ने प्रसाद भी दिया।
यह कह कर मैंने पंडित जी की तरफ देख कर हल्की सी मुस्कान दी। फिर राजेश जी ने पंडित जी से पूजा के मुहूर्त के बारे में पूछा, तो पंडित जी ने उन्हें बता दिया कि शुभ मुहूर्त परसों का है।
कुछ देर बाद पंडित जी सामान की लिस्ट देकर चले गए और फिर राजेश जी भी बाहर चले गए पूजा का सामान लाने के लिए ।
मैं फिर एक बार घर में अकेली थी। मैंने अपने पति को कॉल किया, और उन्हें पूजा के मुहूर्त के बारे में बता दिया और फ़ोन रख दिया।
मैं भी अब घर में अकेले-अकेले बोर हो रही थी। मैंने सोचा “परसों मेरी राजेश जी के साथ शादी थी, तो क्यों ना मेरी शादी की शॉपिंग की जाए”। और मैं तैयार होकर मेरी शादी की शॉपिंग करने बाहर निकल गई।
मैंने अपना क्रेडिट कार्ड साथ ले लिया, और बहुत सारी कैश लेली। लगभग 80 हज़ार रुपए थे, और क्रेडिट कार्ड की तोह लाखों में लिमिट थी। अमीर घर का होने का यही फायदा है, पैसों की कभी चिंता नहीं रहती। मैं अपनी कार में बैठ कर सोनार की दुकान में गई। वहां मैंने अपने लिये एक बढ़िया सा मंगल सूत्र और हार खरीद लिया। दोनों की कीमत मिला कर लगभग 2 लाख तक होगी।
फिर मैं साड़ी की दुकान में गई, और वहां मैंने अपने लिये दुल्हन का जोड़ा खरीद लिया जो पचास हजार का था। चप्पल, अंगूठियां, चैन और बाकी सब खरीद लिया। आखिर में मैंने राजेश जी के लिये शेरवानी खरीद ली। मैंने अपने लिये बहुत सारे गहने भी खरीद लिये थे, और आखिर में मैंने फूलों की दुकान में जाकर शादी का हार परसों मेरे घर भेजने बोला।
शाम के 7 बजे मैं घर वापस आ गई, और सारा हिसाब-किताब करने लगी। मैंने कुल मिला कर 6 लाख की शॉपिंग की। मैंने ज्यादातर गहने ही खरीदे थे। मैंने ये सब सामान मेरी अलमारी में सजा कर रख दिया।
कुछ ही देर बाद राजेश जी घर आ गए उनके साथ कुछ और लोग भी थे, जिनके हाथ में पूजा का सामान था। उन्होंने वो सामान स्टोर रूम में रखा, और वहां से चले गए।
वो लोग जाते ही राजेश जी ने मुझे अपनी ओर खींच लिया और मुझे जोर से किस्स करने लगे। मैं भी उनका पूरा साथ दे रही थी।
राजेश जी: चलो रेनू, मुझसे रहा नहीं जाता। मुझे तुम्हें अभी चोदना है।
मैं: नहीं। आप दो दिन मुझे छू भी नहीं सकते।
राजेश जी थोड़े चिंतित हो गए और बोले।
राजेश जी: क्या हुआ रेनू? तुम्हारी तबियत तो ठीक है?
मैं: मुझे कुछ नहीं हुआ है।
राजेश जी: तो फिर क्या हुआ?
मैं: जी वो, मुझे आपसे कुछ कहना है।
राजेश जी: क्या कहना है, बोलो?
मैं: मैंने हम दोनों की शादी फिक्स कर दी है।
राजेश जी चौंक गए।
राजेश जी: क्या? देखो रेनू मैंने तुमसे मना किया था न। इसकी कोई जरूरत नहीं है। मनीष तुमसे बहुत प्यार करता है और मैं भी दिव्या को नहीं छोड़ सकता।
मैं: सुनिए तो मैंने कब कहा की आप अपनी बीवी को छोड़ दीजिये या मैं मनीष को तलाक दूँगी। ये शादी समाज के लिए नहीं बस हम दोनों के लिए है। हमको किसी को कुछ बताने की जरूरत नहीं है। आप चिंता मत कीजिये, मेरी पंडित से बात हो गयी है।
राजेश: अरे लेकिन अगर किसी को पता चल गया तो? पंडित ने दिव्या को बोल दिया तो?
मैं: किसी को कुछ पता नहीं चलेगा। पंडित को मैंने मुंह मांगी कीमत दे दी है तो परसों हमारी शादी है, और मैंने सारी शॉपिंग भी कर ली है।
राजेश जी: लेकिन...
मैं: लेकिन वेकिन कुछ नहीं, अगर मुझे चोदना है तो वो तो अब हमारी शादी के बाद ही होगा। आप सोच लीजिये।
फिर भी राजेश जी थोड़ा हिचकिचा रहे थे। लेकिन मेरी चूत का चस्का उनको लग गया तो आखिर में राजेश जी मुझसे शादी करने के लिए राजी हो गए। मैं बहुत खुश हो गई, और और उन्हें कस कर गले लगा लिया। राजेश जी मेरी गांड दबाने लगे, तो मैं झट से उनसे अलग हो गई और बोली-
मैं: नहीं शादी से पहले कोई बदमाशी नहीं।
राजेश जी: अरे यार मैंने तुझे चोदने के कितने प्लान बनाए थे।
मैं: थोड़ा सब्र रखिये, बस दो दिन की बात है।
राजेश जी थोड़े नाराज होकर सोफे पर बैठ गए। कुछ देर बाद हम दोनों ने डिनर कर लिया, और हम अलग-अलग कमरे में जा कर सो गए। मुझे भी राजेश जी के चुदाई की आदत पड़ गई थी, जिसके कारण मुझे नींद नहीं आ रही थी। मेरी चूत उनके विचार से ही गीली होने लगी। ऐसा लग रहा था कि अभी उनके कमरे में जाकर उनसे चुदवा लूं।
लेकिन मैंने ठान लिया था कि शादी से पहले मैं चुदाई नहीं करूंगी। मैं अपने आप को शांत करने के लिए चूत में उंगली करने लगी और झड़ने के बाद सो गई। अगले दिन की सुबह कुछ खास नहीं थी। हम दोनों ने एक-दूसरे को छुआ भी नहीं। लेकिन अन्दर ही अन्दर हम दोनों चुदाई के लिये तड़प रहे थे। वो पूरा दिन बहुत बोरियत भरा था, लेकिन अगले ही दिन हमारी शादी थी, इसलिए यह एक दिन सहना पड़ा।
मैं उस दिन ब्यूटी पार्लर गई और अपना फेशियल और वेक्सिंग करा लिया। मेरी त्वचा एक-दम कोमल हो गई थी। अगला दिन हम दोनों के लिये खास था। मैं सुबह जल्दी उठ गई, और तैयार हो गई।
फिर थोड़ी देर बाद राजेश जी भी उठ गए, और अपने कपड़े पहन कर वो भी तैयार हो गए। 8:30 बजे पंडित जी आ गए, और हमारी शादी की विधि शुरू हो गई। राजेश जी ने मेरे गले में मंगल सूत्र पहनाया, और मेरी मांग भर दी। साथ फेरों के सात वचनों के बाद हम सात जनम के लिये एक-दूसरे के हो गए।
फिर हम दोनों ने पंडित जी के पैर छू लिए, और उनका आशीर्वाद ले लिया। मैंने पंडित के पास अपना फ़ोन दिया, और उन्हें हमारी तस्वीर लेने के लिए कहा। हम दोनों ने अलग-अलग पोज दे कर कई फोटोज ले लिये। आखिर में हमने पंडित जी को उनकी दक्षिणा दे दी, और वो चले गए। पंडित जी के जाने के बाद-
राजेश जी: अब तो खुश हो ना तुम रेनू?
मैं: हां मेरी जान, अब तो में बहुत खुश हूं। आपकी बीवी जो बन गई हूं।
ये कह कर मैंने राजेश जी के गाल पर किस्स दे दी।
राजेश जी: हां रेनू, लेकिन फिर भी मुझे ये कुछ ठीक नहीं लग रहा है।
मैं: अरे बाबा… आप क्यूं इतना टेंशन ले रहें है? ये शादी बस हमारे प्यार की निशानी है, और कुछ नहीं।
राजेश जी: ठीक है रेनू। अगर तुम मुझे अपना पति मानती हो, तो मेरा सारा कहना मानना होगा।
मैं: जी मुझे मंजूर है आप कहिये आपकी ये नई-नवेली पत्नी आपके क्या काम आ सकती है?
राजेश जी: मुझे तुम्हें अभी के अभी चोदना है। तुम्हारी चूत के बिना एक दिन भी एक साल जैसा लगता है।
मैं: बस इतनी सी बात। अरे मैं तो आपकी पत्नी हूं। आपका जब मन करे तब मुझे चोद डालो। और मैं भी आपके लंड के लिए प्यासी हूं।
राजेश जी: तो चलो अपने कपड़े उतारो। आज तो तुझे पूरे दिन चोदूंगा। देख तुझे अपने लंड के लिए पागल कैसे बनाता हूं।
मैं मुस्कुराई और बोली: अरे मैं तो आपको और आपके लंड को देखते ही पागल हो गई थी।
मैंने ऊपर के कपड़ो को उतार दिया, और राजेश जी का इंतज़ार करने लगी।
राजेश जी किचन में जा कर दो ग्लास पानी लेकर आए, और तेल की बोतल लेकर आए। उन्होनें पानी और तेल टेबल पर रख दिया फिर उन्होंने मेरे बाकी के कपडे और गहने भी उतार दिए।
अब मैं उनके सामने बिल्कुल नंगी खड़ी थी। मेरे शरीर पर बस शादी के गहने थे। राजेश जी मुझे उपर से नीचे तक अच्छे से देख रहे थे।
राजेश जी: अरे वाह रेनू, बिल्कुल कमाल लग रही हो।
मैं: शुक्रिया।
राजेश जी: हम्म… चलो फिर आज और अभी से तुम को मेरी एक बात और माननी पड़ेगी।
मैं: अब और क्या बाबा?
राजेश जी: जब-जब हम दोनों घर में अकेले होंगे, तब-तब तुम्हें इस तरह से नंगी ही रहना पड़ेगा। अगर कपड़े पहनने होंगे तो मेरी परमिशन लेनी पड़ेगी।
शादी के बाद राजेश जी मुझ पर अपना हक जमा रहे थे। मैं उनका ये रुप देख कर थोड़ी हैरान थी, मगर मुझे यहीं तो चाहिये था, कि राजेश जी मुझे अपनी समझे, और मुझ पर हक जमा ले।