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"वीजू सच बताना पढाई करते वक्त तुम मेरी चुचियों को देख रहे थे न?", कंचन ने विजय की आँखों में देखते हुए कहा।
"जी दीदी" विजय शरमाते हुए सिर्फ इतना कह पाया।
"वीजू अब मैं तुम्हारी गर्ल फ्रेंड हैं हम से शर्माओ मत।क्या तुम्हें मेरी चुचियां अच्छी लगती है", कंचन ने फिर से अपने भाई से पूछा।
"जी दीदी आपकी चुचियां मुझे बुहत अच्छी लगती है" विजय ने इस बार कुछ शर्म छोडकर कहा।
"वीजू एक और बात तुम बाथरूम में मेरी पेंटी के साथ क्या कर रहे थे?, सच बताना में किसि से नहीं कहूँगी। कंचन ने अपने भाई को खुलता हुआ देखकर कहा।
"दीदी आपकी पेंटी को देखकर मुझे न जाने क्या हो गया था। मैं आपकी पेंटी की खुशबु सूंघ रहा था की आप आ गयी", विजय ने भी सीधा जवाब देते हुए कहा।
"मेरी पेंटी की खुश्बु उस में कौन सी परफ्यूम लगी थी जो तुम सूंघ रहे थे" कंचन ने फिर से अपने भाई से पूछा।
"दीदी मैंने लड़कों से सुना था की लड़की की पेंटी में उसकी चूत की खुशबु होती है", विजय बिलकुल बेशरम बनते हुए अपनी दीदी से कहा।
"हाय राम तो तुम अपनी दीदी की चूत की खुशबु सूंघ रहे थे। नालायक बता तुम्हें उसकी खुशबु कैसी लगी" कंचन ने बनावटी गुस्सा करते हुए कहा।
"दीदी उसकी खुशबु बुहत अच्छी थी" विजय ने फिर से उसी बेशरमी से कहा।
"दीदी एक बात कहां बुरा तो नहीं मानोंगी", विजय ने अपनी दीदी की चुचियों की तरफ देखते हुए कहा।
"हा पूछो बुरा नहीं मानूँगी", कंचन ने अपने भाई को इतना जल्दी अपने से फ्री होता देखकर हैरान होते हुए कहा।
"दीदी टॉवल देते वक्त मैं आपकी चुचियों को नंगा देख लिया था। मैंने आज तक किसी लड़की को नंगा नहीं देखा । क्या आप एक बार मुझे नंगी होकर अपना जिस्म दिखा सकती हो" विजय ने एक ही साँस में अपनी दीदी को कह दिया ।
"वीजू मैं तो तुझे शरीफ समझती थी, मगर तुम तो एक नंबर के बदमाश निकले । अगर तुम अपनी गर्लफ्रेंड को नंगा देखना चाहो तो मैं दिखा सकती हूं, मगर तुम्हारी बहन होने के नाते मैं नंगी नहीं हो सकती", कंचन ने भी अपनी दिल की हसरत पूरी होते देखकर विजय से कहा।
"जी दीदी" विजय शरमाते हुए सिर्फ इतना कह पाया।
"वीजू अब मैं तुम्हारी गर्ल फ्रेंड हैं हम से शर्माओ मत।क्या तुम्हें मेरी चुचियां अच्छी लगती है", कंचन ने फिर से अपने भाई से पूछा।
"जी दीदी आपकी चुचियां मुझे बुहत अच्छी लगती है" विजय ने इस बार कुछ शर्म छोडकर कहा।
"वीजू एक और बात तुम बाथरूम में मेरी पेंटी के साथ क्या कर रहे थे?, सच बताना में किसि से नहीं कहूँगी। कंचन ने अपने भाई को खुलता हुआ देखकर कहा।
"दीदी आपकी पेंटी को देखकर मुझे न जाने क्या हो गया था। मैं आपकी पेंटी की खुशबु सूंघ रहा था की आप आ गयी", विजय ने भी सीधा जवाब देते हुए कहा।
"मेरी पेंटी की खुश्बु उस में कौन सी परफ्यूम लगी थी जो तुम सूंघ रहे थे" कंचन ने फिर से अपने भाई से पूछा।
"दीदी मैंने लड़कों से सुना था की लड़की की पेंटी में उसकी चूत की खुशबु होती है", विजय बिलकुल बेशरम बनते हुए अपनी दीदी से कहा।
"हाय राम तो तुम अपनी दीदी की चूत की खुशबु सूंघ रहे थे। नालायक बता तुम्हें उसकी खुशबु कैसी लगी" कंचन ने बनावटी गुस्सा करते हुए कहा।
"दीदी उसकी खुशबु बुहत अच्छी थी" विजय ने फिर से उसी बेशरमी से कहा।
"दीदी एक बात कहां बुरा तो नहीं मानोंगी", विजय ने अपनी दीदी की चुचियों की तरफ देखते हुए कहा।
"हा पूछो बुरा नहीं मानूँगी", कंचन ने अपने भाई को इतना जल्दी अपने से फ्री होता देखकर हैरान होते हुए कहा।
"दीदी टॉवल देते वक्त मैं आपकी चुचियों को नंगा देख लिया था। मैंने आज तक किसी लड़की को नंगा नहीं देखा । क्या आप एक बार मुझे नंगी होकर अपना जिस्म दिखा सकती हो" विजय ने एक ही साँस में अपनी दीदी को कह दिया ।
"वीजू मैं तो तुझे शरीफ समझती थी, मगर तुम तो एक नंबर के बदमाश निकले । अगर तुम अपनी गर्लफ्रेंड को नंगा देखना चाहो तो मैं दिखा सकती हूं, मगर तुम्हारी बहन होने के नाते मैं नंगी नहीं हो सकती", कंचन ने भी अपनी दिल की हसरत पूरी होते देखकर विजय से कहा।