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Incest परिवार (दि फैमिली) (Completed)

Rakesh1999

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कंचन के ऐसे करने से अनिल के मूह से उत्तेजना के मारे बुहत ज़ोर की सिस्कियाँ निकलने लगी और उसके लंड के छेद से प्रिकम की बूँदे निकलने लगी । कंचन ने अपने दादा के लंड से निकलते हुए प्रिकम को देखते ही अपनी जीभ को वहां ले जाकर अपने दादा के लंड से निकलता हुआ प्रिकम चाटने लगी।
"उईई आहहहह बेटी ज़ोर से चाटो अपने मुँह में लो इसे" अनिल ने मज़े के मारे बुहत ज़ोर से सिसकते हुए कहा । कंचन अपनी जीभ को कड़ा करते हुए बुहत ज़ोर से अपने दादा के लंड के छेद में घुमा रही थी जिस वजह से अनिल का पूरा शरीर मज़े से कांप रहा था।

कंचन कुछ देर तक ऐसा ही करने के बाद अपना मुँह खोलते हुए अपने दादा के लंड के सुपाडे को अपने मुँह में भर लिया । अनिल के लंड का सुपाडा बुहत मोटा था जिस वजह से कंचन को उसे मुँह में लेने के लिए अपना मुँह पूरी तरह खोलना पड़ गया, कंचन ने अपने दादा के लंड का सुपाडा अपने मुँह में ले लिया था और वह अनिल के लंड के सुपाडे को अपने होंठो और जीभ से चाटते हुए ही अपने हाथ से भी उसके लंड के नीचे वाले हिस्से को सहलाने लगी।
"आहहहहह इसशहहहहह बेटी ओह्ह्ह्हह" अनिल तो मज़े के मारे जैसे जन्नत की सैर कर रहा था उसका पूरा शरीर मज़े के मारे कांप रहा था और वह बुहत ज़ोर से सिसकते हुए कंचन को बालों से पकडते हुए अपने लंड पर दबा रहा था।

अनिल को लग रहा था की अब वह कभी भी झड सकता है इसीलिए वह बुहत ज़ोर से कंचन को सर से पकडकर अपने लंड पर दबा रहा था। अपना लंड अपनी पोती के मुँह में डाले हुए उसे ऐसे महसूस हो रहा था जैसे उसका लंड किसी गरम भट्टी में डाल दिया गया हो जिस वजह से वह अपना कण्ट्रोल खोता जा रहा था। कंचन भी अपने दादा की हरक़तों से समझ चुकी थी की अब वह झरने के बिलकुल क़रीब है इसीलिए वह भी अब अपने मुँह को बुहत तेज़ी के साथ अपने दादा के लंड पर आगे पीछे कर रही थी।

अचानक अनिल को जाने क्या हुआ उसने कंचन के बालों को अपने दोनों हाथों से पकडते हुए अपने लंड पर बुहत ज़ोर से दबा दिया और उसे बालों से पकडे हुए ही उसका मुँह बुहत तेज़ी के साथ अपने लंड पर ऊपर नीचे करने लगा । अनिल के इस अचानक किये हुए हमले से उसका लंड ४ इंच तक कंचन के मूह को चीरता हुआ अंदर घुस चूका था और अनिल जैसे ही अपने लंड को कंचन के मुँह में अंदर बाहर करता उसके मूह से गुं गुं की आवाज़ें निकलने लगती।
"आह्ह्ह्हह्ह ओहहहहहह बेटीई ओफ्फफ्फ्फ्फफ" अनिल के मुँह से अचानक बुहत ज़ोर की सिसकियाँ निकलने लगी और उसके लंड से वीर्य की गरम पिचकारियां निकलते हुए कंचन के मुँह में गिरने लगी ।अनिल के लंड से वीर्य की पिचकारियां इतनी तेज़ी से निकल रही थी की कुछ पिचकारी सीधे कंचन के गले से उतरकर उसके पेट में जाने लगी।
 

Rakesh1999

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अनिल मज़े से अपनी आँखें बंद किये हुए झड़ रहा था और मदहोशी में अपना लंड अपनी पोती के मुँह में अंदर बाहर किये जा रहा था । इधर तकलीफ के मारे कंचन की आँखों से आंसू निकल रहे थे क्योंकी अनिल अपना लंड इतनी ज़ोर से उसके मुँह में पेल रहा था की उसके मुँह में बुहत ज़ोर का दर्द हो रहा था और ऊपर से उसके लंड से इतना वीर्य निकला था की कंचन का पूरा मुँह अपने दादा के वीर्य से भर चूका था, कंचन जाने कितना वीर्य तो गटकते हुए अपने पेट में उतार चुकी थी मगर अनिल का वीर्य ख़तम होने का नाम ही नहीं ले रहा था। जिस वजह से अब उसकी साँसें भी बंद होनी शुरू हो गई थी।

अनिल ने जैसे ही अपनी आँखें खोली और कंचन की आँखों में आंसू देखे वह समझ गया की झडने के नशे में वह यह भूल गया की कंचन को तकलीफ हो रही होगी। इसीलिए उसने जल्दी से कंचन के मुँह से अपना लंड खींचकर निकाल लिया । लंड के निकलते ही कंचन ज़ोर से खाँसने लगी।
"दादा जी आप बड़े ज़ालिम है" कुछ देर तक खाँसने के बाद कंचन ने अनिल को डाँटते हुए कहा।
"सॉरी बेटी मुझसे गलती हो गई आइसक्रीम कैसी लगी?" अनिल ने छोटे बच्चे की तरह सर झुकाते हुए कहा।
"दादा जी आप खुद ही चखकर देख लें की आपकी आइसक्रीम कितनी टेस्टी है" कंचन ने अपने दादा को देखते हुए कहा और उन्हें अपनी बाहों में भरते हुए उनके होंठो से अपने होंठो को मिला दिया।

कंचन बुहत ज़ोर से अपने दादा के मुँह को खोलते हुए उसमें अपनी जीभ घुसा दी और तब तक वह अपने दादा से अपने होंठ और जीभ चुसवाती रही जब तक उसकी साँसें उखड़ने न लगी।
"बताइये कैसी थी आपकी आइसक्रीम्" कंचन ने अपने दादा के होंठो से अपने लबों को जुदा करके ज़ोर से हाँफते हुए कहा।
"आह्ह्ह्ह बेटी मुझे तो आइसक्रीम से ज्यादा तुम्हारे लब और जीभ ज्यादा टेस्टी लगी" अनिल ने भी हाँफते हुए कहा।
"दादा जी" कंचन ने अपने दादा की बात को सुनकर हँसते हुए कहा।
"बेटी मुझे कब खिला रही हो अपनी मलाई" अनिल ने कुछ देर तक अपनी साँसों को ठीक करने के बाद अपने हाथ को अपनी पोती की सलवार के ऊपर से ही उसकी चूत पर रखते हुए कहा।
 

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कंचन इस पहले कोई जवाब देती बाहर का दरवाज़ा खुलने की आवज़ आई जिसे सुनते ही कंचन ने डर के मारे जल्दी से अपनी कमीज को उठाकर पहनने लगी। ।अनिल ने भी जल्दी से अपनी धोती को उठाकर पहन लिया और खुद बाथरूम में घुस गया। कंचन ने अपनी कमीज पहनने के बाद अपने आप को ठीक किया और अपने दादा के कमरे से निकलकर अपने कमरे में आ गयी।

रेखा अपने सामान को अपने कमरे में रखने के बाद फ्रेश होकर अपने ससुर के कमरे में आ गयी।
"बेटी कब आई तुम?" अनिल को बेड पर धोती पहनकर लेटा हुआ था अपनी बहु को देखकर बेड से उठते हुए बोला।
"अभी आई हूँ पिता जी आप सूनाइये कहाँ तक बात बढ़ी आपकी अपनी पोती के साथ?" रेखा ने आगे बढ़ते हुए धोती के ऊपर से ही अपने ससुर के लंड को पकडते हुए कहा।
"हाहहह बेटी बस वह मेरे जाल में फँस ही चुकी है बस आज रात को ही उसके कमरे में चला जाऊँगा" अनिल ने भी अपनी बहु की साड़ी के अंदर उसके नंगे चिकने पेट पर अपना हाथ रखते हुए कहा।
"ठीक है पिता जी आजके लिए आपको अपनी पोती की सेवा का मौका देती हूँ" रेखा अपने ससुर की बात सुनकर उससे अलग होकर कहा और वहां से निकलकर घर के कामों में लग गई।

ऐसे ही सारा दिन घर के काम काज में ख़तम हो गया और घर के सभी लोग रात का खाना खाने के बाद अपने अपने कमरों में जाकर सोने की तैयारी करने लगे । कोमल अपने कमरे में ही लेटी हुयी अपने भैया के पास जाने की सोच ही रही थी की उसके कमरे का दरवाज़ा खुला और विजय ने अंदर दाखिल होते हुए कमरे का दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया।
"भइया आप इधर?" कोमल ने हैंरान होते हुए अपना भैया से कहा।
"क्यों जब तुम वहां आ सकती हो तो मैं यहाँ क्यों नहीं आ सकता" विजय ने आगे बढ़ते हुए कहा और कोमल को अपनी बाहों में भरते हुए उसको गालों से चूमते हुए उसके काँधे को चूमने लगा।
"आहहह भैया" कोमल की आँखें अपने भाई की हरक़तों से बंद होने लगी और वह मज़े से सिसकने लगी।
 

Rakesh1999

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विजय ने अपनी छोटी बहन के काँधे को चूमते हुए अपना मुँह उसके कान की तरफ ले जाते हुए अपनी जीभ को उसके कान के छेद में घुसाने लगा।
"उफ्फ्फ्फफ्फ्फ़ भईया" कोमल का पूरा शरीर अपने भाई की इस हरकत से कांप उठा और उसने मज़े से अपने भाई को ज़ोर से अपनी बाहों में दबा दिया । विजय ने कुछ देर तक ऐसे ही करने के बाद अपनी बहन के कान के नीचे वाले हिस्से को अपने मुँह में लेते हुए अपने दांतों से हल्का काट दिया।
"उईईई भैया क्या कर रहे हो" कोमल ने ज़ोर से चीखते हुए कहा । विजय ने कोमल को अपनी बाहों में उठाया और बेड पर ले जाकर लिटा दिया और खुद अपने कपड़ों को उतारता हुआ बेड पर चढ़ गया।

कंचन अपने कमरे में नाइटी पहनकर लेटी हुयी थी। उसे अपने पूरे जिस्म में बुहत ज़ोर की सिहरन हो रही थी क्योंकी आज उसे चुदवाये हुए तीसरा दिन था वह अपने हाथों से ही अपनी चूत को अपनी पेंटी के ऊपर से सहला रही थी की अचानक उसका दरवाज़ा खटखटाने की आवज़ आई । कंचन बेड से उठते हुए अपने आप को ठीक करते हुए दरवाज़े तक आ गयी और उसने जैसे ही दरवाज़ा खोला उसका मुँह खुला का खुला रह गया उसके सामने उसका दादा खडे थे।
"दादा जी आप इस वक्त" कंचन ने हैंरानी से अपने दादा को देखते हुए कहा।
"अरे क्यों बेटी क्या मैं तुम्हारे कमरे में नहीं आ सकता" अनिल ने मुस्कराते हुए कहा।
"हाँ क्यों नहीं मगर इस वक्त" कंचन ने अपने दादा को देखते हुए कहा।
"अरे अंदर भी आने दोगी या इधर ही सब कुछ पूछोगी" अनिल ने मुस्कुराते हुए कहा और कमरे के अंदर घुस गया।
 

Rakesh1999

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अपडेट 118



"दादा जी क्या बात है?" कंचन समझ तो गयी थी की उसके दादा यहाँ पर किस काम के लिए आये हैं मगर फिर भी उसने हिम्मत करके अनिल से पुछा।
"बेटी इधर आओ बैठो बताता हूँ इतनी जल्दी क्या है" अनिल ने अपनी पोती के बेड पर लेटते हुए कहा।
कंचन की साँसें तेज़ चलने लगी थी क्योंकी वह जानती थी की आगे क्या होने वाला है वैसे तो उसके मन की मुराद पूरी होने वाली थी फिर भी वह शर्माने का नाटक करते हुए धीरे धीरे आगे बढ़ने लगी।

"ओहहहह बेटी तुम शरमाती बुहत हो" अनिल ने कंचन के नज़दीक आते हुए उसे कलाई से खींचकर अपने ऊपर गिराते हुए कहा।
"आह्ह्ह्ह दादा जी छोड़ीये न क्या कर रहे हैं" कंचन सीधा अपने दादा के ऊपर गिरी थी और उसके दादा का लंड सीधा उसकी नाइटी के ऊपर से ही उसकी चूत पर दब गया था जिस वजह से उसने सिसकते हुए कहा।
"बेटी क्या करुं। इस बदमाश ने जब से तुम्हारे मख़मली बदन को देखा है हरामखोर सोने ही नहीं देता" अनिल ने कंचन के चूतडों को अपने दोनों हाथों में पकडते हुए अपने लंड को ज़ोर से उसकी चूत पर दबाते हुए कहा।

"आहहह दादा जी यह आप को क्या हो गया है?" कंचन ने जानबूझकर ज़ोर से सिसकते हुए कहा ताकी उसके दादा ज्यादा उत्तेजित हो सके।
"आह्ह्ह्ह बेटी बस आज कुछ मत बोलो और मुझे अपने प्यारे जिस्म से खेलने दो" अनिल ने कंचन को अपनी बाहों में भरते हुए बेड पर सीधा लिटा दिया और उसकी नाइटी को आगे से खोलते हुए खुद भी उसके ऊपर चढ़ गया।
"दादा जी नीचे कुछ चूभ रहा है" कंचन ने सिसकते हुए कहा।
"ओहहहह बेटी क्या चूभ रहा है तुम्हें?" अनिल अपनी पोती की बात सुनकर उत्तेजना के मारे उसकी ब्रा को उसकी चुचियों से हटाकर अपने हाथों से सहलाते हुए बोला।

"दादा जी आपका वह चूभ रहा है" कंचन ने शर्म के मारे अपनी आँखों को नीचे झुकाते हुए कहा।
"बेटी वही तो पूछ रहा हूँ मेरा क्या चुभ रहा है तुम्हे" अनिल ने इस बार अपने हाथों से कंचन की दोनों नरम गोरी चुचियों को ज़ोर से मीसते हुए कहा।
"उईईई दादा जीईई आराम से दर्द हो रहा है" कंचन ने इस बार ज़ोर से चिल्लाते हुए कहा।
"बताओ न बेटी तुम्हें क्या चुभ रहा है" अनिल ने कंचन की चुचियों पर अपने दबाव कम करते हुए अपने लंड को ज़ोर से उसकी चूत पर दबाते हुए कहा।
"दादा जी वह आपका लं ...... ड" कंचन ने सिर्फ इतना कहा और शरमाकर चुप हो गयी।

"ओहहहहह बेटी सही नाम लो ना" अनिल अपनी पोती के मुँह से लंड लफ़्ज़ सुनकर एक्साईटमेंट से पागल होते हुए कहा।
"दादा जी हटिये न हमारे ऊपर से आपका लंड चुभ रहा है" कंचन ने इस बार सीधे बोल दिया मगर उसने शर्म से अपनी नज़रें झुकायी हुई थी।
"आह्ह्ह्ह बेटी अब तो तुम्हें यह लंड अपनी प्यारी छोटी सी चूत में लेना पडेगा" अनिल ने कंचन की बात सुनकर एक्साईंटमेंट से ज़ोर से उसकी चुचियों को दबाते हुए कहा।
"ओहहहहहह दादा जी हटिये आप बड़े वो है" कंचन जानबूझकर अपने दादा को जोश दिला रही थी क्योंकी उसकी चूत भी 2 दिन से प्यासी थी।
 

Rakesh1999

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अनिल ने अपने होंठो को अपनी पोती के गुलाबी लबों पर रख दिया और बुहत ज़ोर से उसके होंठो को चूसने लगा । कंचन भी बुहत ज्यादा गरम हो चुकी थी। उसने भी जल्दी से अपनी जीभ को अपने दादा के मुँह में घुसा दिया और दोनों दुनिया से बेखबर एक दुसरे के होंठो और जीभों से खेलने लगे, कुछ देर बाद दोनों हाँफते हुए के दुसरे से अलग हुए। अनिल नीचे होते हुए कंचन की टांगों के बीच आ गया और वह अपने दोनों हाथों से कंचन की चूत को उसकी पेंटी के ऊपर से ही अपने हाथों में लेकर मसलने लगा।

"आहहह दादा जी" कंचन अपने दादा के मरदाना हाथों से अपनी चूत के मसलने से सिसकते हुए बोली।
"बेटी तुम्हें मजा आ रहा है?" अनिल ने इस बार ज़ोर से कंचन की चूत को दबाते हुए कहा।
"उईई हाँ दादा जी ओहहहह बुहत मजा आ रहा है" कंचन ने ज़ोर से सिसकते हुए कहा।
"ओहहहह बेटी आज तुम्हें ऐसा मजा दूंगा के सारी ज़िंदगी याद रखोगी" अनिल ने कंचन की बात सुनकर उसकी पेंटी को अपने दोनों हाथों से पकडकर उसके जिस्म से जुदा करते हुए कहा।
"ओहहहह दादा जी आपने तो हमें पूरा नंगा ही कर दिया" अपनी पेंटी के हटते ही कंचन ने शरमाते हुए कहा।
"बेटी बस अब देखती जाओ की तुम्हें कितना मजा आता है" अनिल ने कंचन की हलके बालों से ढकी गुलाबी चूत को देखते हुए कहा।

अनिल अपनी पोती की चूत पर झुकते हुए उसे अपने हाथों से सहलाने लगा। कंचन का पूरा शरीर अपनी नंगी चूत पर अपने दादा का हाथ लगते ही सिहर उठा और उसकी चूत से उत्तेजना के मारे पानी टपकने लगा जिससे अनिल के हाथ भी गीले होने लगे । अनिल कंचन को इतना गरम देखकर नीचे झुकते हुए अपने होंठो से उसकी चूत को चूमने लगा।
"आह्ह्ह्ह दादा जीईईई" कंचन अपनी चूत पर अपने दादा के होंठ लगते ही तडपते हुए ज़ोर से सिसकने लगी, अनिल कंचन की चूत को चूमते हुए अपनी जीभ को निकालकर उसकी चूत को ऊपर से नीचे तक चाटने लगा।


ओह्ह्ह्हह्हह आहहहह दादा जी" कंचन को इतना मजा आ रहा था की वह ज़ोर से सिसकते हुए अपने चूतडों को अपने दादा के मुँह पर उछाल रही थी । अनिल ने ऐसे ही अपनी पोती के नमकीन चूत को चाटते हुए अपनी जीभ को कडा करते हुए उसकी चूत के छेद में घुसा दिया और बुहत ज़ोर से अंदर बाहर करने लगा।
 

Rakesh1999

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"आह्ह्ह्ह ओहहह दादा जीईई ओहहहहहहः" कंचन जो इतनी देर से अपने आप को रोके हुए थी अपने दादा की इस हरकत से खुद को रोक नहीं पायी और ज़ोर से सिसकते हुए झडने लगी । कंचन ने झडते हुए मज़े से अपनी आँखों को बंद कर लिया और अपने दोनों हाथों से अनिल के सर को पकडकर अपनी चूत पर दबा दिया।

"बेटी तुम्हें मजा आया?" कंचन ने जैसे ही झडने के बाद अपनी आँखें खोली अनिल ने उसे देखते हुए कहा।
"जी दादा जी बुहत मजा आया" कंचन ने शर्म से अपनी आँखों को झुकाते हुए कहा । अनिल ने कंचन की टांगों को उठाकर उसके घुटनों तक मोड़ दिया और अपना फफनाता हुआ लंड अपनी पोती की गीली चूत पर घीसने लगा।
"आह्ह्ह्हह दादा जी छोड़िये न यह ठीक नहीं है" कंचन ने अपने दादा के खड़े सख्त लंड को अपनी चूत पर महसूस करते ही ज़ोर से सिसकते हुए कहा।
"क्यों बेटी तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा?" अनिल ने अपने लंड के मोटे सुपाडे को कंचन की चूत के छेद पर रखकर ज़ोर से घिसते हुए कहा।

"ओहहहहहहह दादा जीईई बुहत मजा आ रहा है" कंचन ने इस बार ज़ोर से सिसकते हुए कहा।
"तो बेटी मैं अपना लंड पेल दूँ तुम्हारी प्यारी सी छोटी चूत में?" अनिल ने कंचन को देखते हुए कहा । कंचन ने इस बार शर्म के मारे कुछ नहीं कहा।
"बोलो न बेटी अगर तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा तो मैं नहीं डालूँगा" अनिल ने इस बार अपने लंड का मोटा सुपाडे को थोडा सा कंचन की चूत के छेद में घुसाकर वापस निकालते हुए कहा।
"उईई आहहहह दादा जीईई बुहत अच्छा लग रहा है डालिए ना" कंचन ने अपने चूतडों को उछालते हुए ज़ोर से सिसकते हुए कहा । उसका उत्तेजना के मारे बुरा हाल था उससे अब बर्दाशत नहीं हो रहा था इसीलिए वह जल्द से जल्द अपने दादा के लंड को अपनी चूत में घुसवाना चाहती थी।

"आह्ह्ह्ह बेटी तो बोलो न क्या घुसाऊँ" अनिल ने अपनी पोती के मुँह से यह सुनकर उत्तेजना के मारे सिसकते हुए अपने लंड के मोटे सुपाडे को फिर से कंचन की चूत के छेद पर रखते हुए कहा।
"आह्ह्ह्ह दादा जीईई अपना ओह्ह्ह अपना मोटा लंड पेल दो हमारी छूट में" कंचन ने इस बार मज़े के मारे ज़ोर से चीखते हुए कहा । कंचन के मुँह से लंड और चूत का सुनकर अनिल का लंड भी एक्साईटमेंट में ज्यादा ही झटके मारने लगा।
"ओहहहह बेटी यह लो अपने दादा के लंड को अपनी चूत में महसूस करो" अनिल ने इस बार अपने लंड के मोटे सुपाडे को कंचन की चूत के छेद पर रखकर एक ज़ोर का धक्का मारते हुए कहा।
 

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"आह्ह्ह्ह दादा जी आपका बुहत मोटा है उफ्फ्फ्फ़" कंचन ने एक बार में ही अपने दादा का मोटा लंड अपनी चूत में घूसने से ज़ोर से चिल्लाते हुए कहा।
"ओहहहह बेटी तुम्हारी चूत तो बुहत कसी हुई है और आग जैसी गरम है आज तक मैंने इतनी टाइट और गरम चूत को नहीं चोदा" अनिल ने कंचन की चूत में हलके धक्के मारते हुए कहा।
"उईईईई आहहह दादा जीईई तो आज जमकर अपनी पोती की चूत का मजा ले लो और अपनी पोती की चूत को चोद चोदकर चौडा कर दो" कंचन ने भी अपने दादा के धक्कों के साथ अपने चूतडों को ज़ोर से उछालते हुए बड़ी बेशरमी से चिल्लाते हुए बोली । कंचन का एक्साईटमेंट के मारे बुरा हाल था उसे खुद हैंरानी हो रही थी की वह अपने दादा से ऐसी गन्दी बातें कैसे कर रही है।

अनिल कंचन के मुँह से यह सब सुनकर उसकी चूत में बुहत ज़ोर से धक्के मारने लगा। वह अपने लंड को पूरा बाहर खींचकर फिर से कंचन की चूत में ज़ोर से घूसा रहा था और कंचन भी अपने दादा के हर धक्के के साथ ज़ोर से सिसकते हुए अपने चूतडों को उठा उठाकर अपने दादा के लंड को अपनी चूत में जड़ तक ले रही थी।
"आह्ह्ह्हह दादा जीईई ज़ोर से ओहहहहहह आहहहहः" कंचन का बदन अचानक अकडकर झटके खाने लगा और वह अपने चूतडों को ज़ोर से उछालते हुए झडने लगी । अनिल अपनी पोती को झडता हुआ देखकर बुहत तेज़ी के साथ उसे पेलने लगा और कंचन भी अपनी आँखें बंद करके झडने का पूरा मजा लेने लगी।

"बेटी कैसा लगा" कंचन ने जैसे ही पूरी तरह झडने के बाद आँखें खोली अनिल ने उसे मुस्कराते हुए पूछा।
"बुहत अच्छा लगा दादा जी" कंचन ने शर्म के मारे अपनी आँखों को नीचे करते हुए कहा । अनिल अपनी पोती के ऊपर झुकते हुए उसके होंठो को चूसते हुए उसकी चूत में धक्के मारने लगा, कुछ ही देर में कंचन फिर से गरम होकर अपने दादा का साथ देने लगी और अनिल १० मिनट तक लगातार अपनी पोती को चोदने के बाद ज़ोर से हाँफते हुए उसकी चूत में झडने लगा।
"ओहहहहह दादा जीईई आपका वीर्य कितना गरम है आहहह आअह्ह्ह्ह मैं भी आईई" कंचन भी अपने दादा के गरम वीर्य को अपनी चूत में गिरने से ज़ोर से चिल्लाते हुए झडने लगी । दोनों दादा पोती झडने के बाद हाँफते हुए एक दूसरी की बाहों में गिरकर लेट गये।
 

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बेटी कैसा लगा अपने दादा का लंड" अनिल ने कुछ देर तक यों ही लेटने के बाद कंचन को देखते हुए कहा।
"दादा जी बुहत अच्छा आपको अपनी पोती का जिस्म कैसा लगा" कंचन ने भी अपने दादा से पूछा।
"बेटी अब तुम्हारे जिस्म की क्या तारीफ करुं। इतना कमसीन जवान और ख़ूबसूरत जिस्म मैंने आज तक नहीं देखा" अनिल ने कंचन को देखते हुए कहा । उस रात अनिल ने अपनी पोती को एक बार और चोदा और उसके बाद वह अपने कमरे में जाकर लेट गया, आज अनिल बुहत थका हुआ था इसीलिए उसे बुहत जल्दी नींद आ गयी।

कंचन की जवान जिस्म को भी आज 2 दिन बाद किसी ने बुरी तरह मसला था इसीलिए वह भी थोड़ी देर में नींद के आग़ोश में चलि गयी । इधर विजय ने भी अपनी छोटी बहन कोमल को आज फिर से 2 बार जमकर चोदा था और वह भी अब अपने कमरे में जाकर लेट गया, रेखा अपने कमरे में लेटी हुई कुछ सोच रही थी उसकी चूत 2 दिन से नहीं चूदी थी और आज भी मुकेश उसे बिना चोदे सो गया था। रेखा जानती थी की उसके ससुर और बेटा तो फ़िलहाल उसे नहीं चोदेगे क्योंकी वह दोनों नए मालों का मजा ले रहे हैं । अचानक रेखा के दिमाग में एक ख़याल आया और उस ख्याल के आते ही रेखा मुस्कराते हुए सोने की कोशिश करने लगी कुछ देर में ही वह नींद के आग़ोश में चलि गई।

रेखा ने डेली रूटीन के मुताबिक नाश्ता तैयार करके अपने पति और बच्चों को ऑफिस और कॉलेज के लिए भेज दिया । अनिल को भी आज किसी काम से बाहर जाना था और उसने रेखा से कह दिया था की दोपहर से पहले वह नहीं आएगा । अब रेखा अकेली घर में रह गयी थी, रेखा ने फ़ोन उठाया और डॉ रवि का नंबर डायल किया।
"हल्लो" उस तरफ से आवज़ आई।
"हल्लो मैं मिसेस मुकेश बोल रही हू" रेखा ने फ़ोन पर बात करते हुए कहा।
"हाँ भाभी जी क्या हाल है बुहत दिनों बाद याद किया। हमें बताइये क्या प्रॉब्लम है" रवि ने रेखा को पहचानते ही एक ही साँस में बोलते हुए कहा।

"आह्ह्ह डॉ साहब सुबह से मेरी तबीयत बुहत ख़राब है और घर में कोई भी नहीं है तो प्लीज अगर आप यहाँ आकर मेरा चेकअप कर ले" रेखा ने सेक्सी अंदाज़ में बात करते हुए कहा।
"अरे भाभी आप कोई चिंता मत करो मैं अभी आपके घर पुहंचता हू" रवि को कब से इस मौके की तलाश में था। रेखा की बात सुनकर उसने ख़ुशी से उछलते हुए कहा।
"ओहहहह थैंक्स डॉ जी मैं आपका इंतजार कर रही हू" रेखा ने डॉ रवि से कहा और फ़ोन को काट दिया । रेखा फ़ोन काटने के बाद मुस्कुराते हुए अपने कमरे में चलि गयी और फ्रेश होकर एक नयी सूंदर सी साड़ी पहन ली। रेखा ने फुल मेकअप किया और बेड पर जाकर लेट गई।
 

Rakesh1999

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थोड़ी ही देर बाद बाहर का दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ आई।
"दरवाज़ा खुला है आप कौन हैं अंदर आ जाइये" रेखा जानती थी की वह रवि ही होगा इसीलिए उसने लेटे हुए ही कहा।
"भाभी आप कहाँ हो?" रवि ने अंदर से आवज़ सुनकर घर में दाखिल होते हुए कहा।
"डा जी इधर हूँ मैं" रेखा ने रवि को देखकर चिल्लाते हुए कहा क्योंकी उसके कमरे का दरवाज़ा खुला हुआ था इसीलिए उसे रवि सामने ही दिखाई दे रहा था।
"भाभी जी क्या हुआ अचानक आपको" रवि ने रेखा को देख लिया और उसके कमरे में दाखिल होकर उसके बेड पर बैठते हुए कहा।
"हाहहह डॉ जी क्या बाताऊँ मेरा अंग अंग दर्द कर रहा है आप ही चेक कर लें न की क्या हुआ है मुझे" रेखा ने सेक्सी अन्दाज़ से रवि को देखकर अपने चिकने गोरे पेट को सहलाते हुए कहा।

"भाभी जी अभी देखता हूँ क्या इधर भी आपको दर्द है" रवि ने रेखा के क़रीब होते हुए अपना हाथ उसके नंगे चिकने पेट पर रखते हुए कहा।
"ओहहहहह हाँ डॉ जी यहाँ भी है बस सारा बदन दर्द कर रहा है" रेखा ने रवि का हाथ अपने पेट पर लगते ही मज़े से सिसककर अपनी आँखों को बंद करते हुए कहा।
"भाभी क्या अब आपको कुछ आराम मिल रहा है" रवि ने अपने हाथ से रेखा के पेट की मालिश करते हुए कहा।
"आह्ह्ह्ह हाँ बुहत सुकून मिल रहा है ओह्ह्ह्हह थोड़ा नीचे भी मालिश करिये" रेखा ने फिर से सेक्सी अंदाज़ में सिसकते हुए कहा।
"भाभी यहाँ पर" रवि ने अपने हाथ को थोड़ा नीचे करते हुए कहा अब रवि का हाथ रेखा की चूत से थोड़ा ही ऊपर था और उसका हाथ मालिश करते हुए बार बार रेखा की साड़ी में फँस रहा था।

"ओहहहह हाँ थोड़ा और नीचे करिये ना" रेखा ने इस बार मज़े के मारे ज़ोर से सिसकते हुए कहा।
"भाभी आपकी साड़ी है इधर" रवि ने रेखा के पेट की मालिश करते हुए ही कहा।
"हाहहह डॉ जी एक मिनट में साड़ी को निकाल देती हूँ वैसे भी यहाँ पर आप के अलावा और कोई भी नहीं है" रेखा ने बेड पर बैठते हुए कहा और अगले ही पल रेखा ने अपनी साड़ी को अपने जिस्म से अलग कर दिया । रवि यह देखकर हैंरान रह गया की रेखा ने साड़ी के नीचे पेटिकोट और ब्लाउज भी नहीं पहना था। अब वह सिर्फ एक पेंटी और छोटी सी ब्रा में ही बेड पर लेट गई। रवि का लंड उसकी पेण्ट में ज़ोर की उछल कूद करने लगा क्योंकी रेखा की आधे से ज्यादा चुचियां नंगी ही उसकी ब्रा से बाहर दिख रही थी और छोटी सी पेंटी भी रेखा के भारी भरकम चूतडों को पूरा ढक नहीं पा रही थी।
 
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