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Incest पहाडी मौसम

Napster

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रात पूरी तरह से गहरा चुकी थी चारों तरफ अंधेरा अंधेरा नजर आ रहा था,,, आपके बड़े-बड़े पेड़ होने की वजह से यह अंधेरा कुछ ज्यादा ही डरावना लग रहा था लेकिन इस समय ना तो मुखिया की बीवी के मन में किसी प्रकार का डर था और ना ही सूरज के मन में क्योंकि दोनों को एक दूसरे का साथ अच्छा लग रहा था और मुखिया की बीवी तो अपने मां के इरादों को पूरा करने के लिए सूरज को साथ में लेकर आई थी,,,, और जिस तरह का नजारा उसने कुछ देर पहले सूरज को दिखाई थी उसे देखने के बाद तो सूरज चारों खाने चित हो गया था वह पूरी तरह से मुखिया की बीवी की जवानी का गुलाम हो चुका था,,, इतने करीब से,,,, जिंदगी में पहली मर्तबा हुआ किसी औरत को पेशाब करते हुए देख रहा था जिसकी नंगी चिकनी गांड उसके इरादों को फिसलने पर मजबूर कर रही थी पहली बार वह औरत की बुर में से निकल रही सिटी की आवाज को एकदम साफ-साफ सुना था जिसे सुनने के बाद दुनिया का हर मधुर संगीत उसके लिए फीका नजर आ रहा था,,,,, वैसे तो सूरज इस बात को अच्छी तरह से जानता था कि औरत से पेशाब करती है तो उनके बुर से सिटी की आवाज निकलती है लेकिन यह उसके लिए पहली बार था जब वह उस आवाज को सुना था,,, इसीलिए तो अभी भी उसके पजामे में उसका लंड तना हुआ था,,,।

मुखिया की बीवी के लिए खाई औरत थी इसीलिए जबरदस्ती उसे वहीं पर पेशाब करवाने के बहाने उसके लंड के दर्शन कर ली थी और आंखों ही आंखों में उसकी लंबाई और मोटी को नाप चुकी थी और मन ही मन प्रसन्न हो रही थी क्योंकि वह जानती थी कि जिस तरह का हथियार सूरज के पास है उसकी जवानी का रस पूरी तरह से निचोड़ देगा,,,,, सूरज के मुसल को वह अपनी ओखली में लेने के लिए तड़प रही थी,,,। दोनों छोटी सी घास फूस की झोपड़ी के पास पहुंच चुके थे,,,, लकड़ी के दरवाजे को खोलकर सबसे पहले मुखिया की बीवी उसे झोपड़ी में प्रवेश की ओर पीछे-पीछे सूरज,,,, सूरज का दिल बड़े जोरों से धड़क रहा था क्योंकि वह पहली बार रात के एकांत में किसी खूबसूरत जवान औरत के साथ रात गुजारने वाला था उसे नहीं मालूम था कि आज की रात उसके साथ क्या होने वाला है,,, लेकिन मुखिया की बीवी की हरकत को देखकर इतना तो वह समझ ही गया था कि मजा बहुत आने वाला है,,,,,,।

थोड़ी ही देर में पुरी झोपड़ी में लालटेन के पीली रोशनी फैल गई झोपड़ी के अंदर सब कुछ साफ-साफ नजर आने लगा,,,, झोपड़ी के अंदर एक टेबल रखा हुआ था जिस पर गिलास और थाली रखी हुई थी पास में चारपाई बिछी हुई थी लेकिन बिस्तर मोड कर रखा गया था क्योंकि जब झोपड़ी के अंदर रुकना होता था तभी बिस्तर को चारपाई पर बिछाया जाता था,,,,, सूरज झोपड़ी के अंदर खड़ा होकर पुरी झोपड़ी में नजर घुमा कर देख रहा था घास फूस की झोपड़ी में भी छोटी सी खिड़की बनी हुई थी जिसमें से ठंडी हवा अंदर आती थी ताकि गर्मी ना लगे और इस समय भी ठंडी हवा खिड़की से झोपड़ी के अंदर बड़े आराम से आ रही थी और बदन में ठंडक का एहसास दिला रही थी,,,,। मुखिया की बीवी भी मुस्कुरा कर कभी सूरज की तरफ तो कभी अपनी झोपड़ी की तरफ देख रही थी ईस झोपड़ी में उसके जीवन के बहुत ही रंगीन रातें बीती थी यह वही चारपाई थी जिस पर उसने अपनी जवानी लुटाई थी,,, और आज अपनी ही चारपाई पर वहां सूरज का बिस्तर गर्म करने के इरादे से उसे लेकर आई थी,,,,।


अरे सूरज दरवाजा तो बंद कर दे नहीं तो जंगली जानवर अंदर घुस जाएंगे,,,,।

जी मालकिन,,,(इतना कहने के साथ ही वह दरवाजे की तरफ बढ़ गया,,, दरवाजे पर खड़े होकर वहां बाहर की तरफ नजर घुमाई तो बाहर का अंधेरा देखकर उसे थोड़ी बहुत घबराहट महसूस हो रही थी क्योंकि चारों तरफ उसे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था बस केवल चारों ओर से झींगुर की आवाज आ रही थी जिससे वातावरण और भी भयानक नजर आ रहा था,,, वह तो उसके साथ मुखिया की बीवी थी जिसकी जवानी के दर्शन वह कर चुका था और इसी लालच में हो उसके साथ इस आम के बगीचे की रखवाली करने के लिए इतनी रात को आया था वह जल्दी से दरवाजा बंद कर दिया छोटी सी झोपड़ी को भी मुखिया की बीवी ने बहुत अच्छे तरीके से बनवा कर एक छोटा सा घर की तरह उसे सकल दे दी थी और इस झोपड़ी में रात रुकने लायक सभी साधन मौजूद थे,,,, दरवाजा बंद करने के बाद जैसे ही हो मुखिया की बीवी की तरफ घुमा मुखिया की बीवी उसे फिर से बोली,,,,।

लालटेन को टेबल पर रख दे,,,, ताकि पूरे झोपड़ी में रोशनी बनी रहे,,,, तुझे रोशनी में नींद तो आती है ना,,,

की मालकिन कोई दिक्कत नहीं होती,,,,,(सूरज सो रहा था की मुखिया की बीवी सहज रूप से यह सवाल पूछ रही थी,,, लेकिन हकीकत यही था कि वह लालटेन की पीली रोशनी में सब कुछ साफ-साफ देखना चाहती थी वरना उसे भी रोशनी में नींद नहीं आती थी,,,,)

ठीक है मुझे भी रोशनी पसंद है,,,


अब तुम्हारी कमर का दर्द कैसा है,,,(लालटेन को टेबल पर रखते हुए सूरज बोला)

कैसा क्या है इसका इलाज ही कहां हुआ है जो आराम मिल जाएगा,,,, हाय दइया बहुत दर्द कर रही है,,,(मुखिया की बीवी को जैसे एकदम से याद आ गया हो कि उसकी कमर में तो दर्द हो रहा था और तुरंत अपनी कमर पर हाथ रखते हुए बोली,,,)

लगता है मालिस से ही इसका दर्द ठीक होगा,,,,

मुझे भी ऐसा ही लग रहा है,,,,


लेकिन मालकिन यहां तेल मिलेगा कहां,,,(सूरज थोड़ा निराश होते हुए बोला)

अरे बुद्धू सब कुछ मिल जाएगा वह टेबल पर जो संदूक रखी है ना उसके अंदर देख सरसों के तेल की सीसी रखी होगी,,, मुखिया की बीवी के कहते हैं सूरज टेबल पर रखे हुए संदूक को खोलकर अंदर देखा तो अंदर वाकई में सरसों के तेल की शीशी दिया सलाई और थोड़ी बहुत काम के साधन पड़े हुए थे सरसों के तेल की शीशी को देखकर सूरज मन ही मन प्रसन्न होने लगा क्योंकि वह जानता था की मालिश के बहाने वह आज औरत के अंगों को स्पर्श कर पाएगा,,, वह जल्दी से सब दुख में से सरसों के तेल की शीशी को निकाल लिया और संदूक को बंद कर दिया,,,, मुखिया की बीवी सूरज की तरफ देख रही थी सूरज के चेहरे पर उत्सुकता और प्रसन्नता के भाव साफ नजर आ रहे थे और मुखिया की बीवी सूरज को देखकर प्रसन्न हो रही थी उसके अरमान मचल रहे थे क्योंकि वह अच्छी तरह से जानते थे कि बस थोड़ी देर की बात है उसके बाद तो सूरज उसकी पूरी तरह से गुलाम हो जाएगा और वह जो कहेगी वही करेगा ,,,,, क्योंकि मुखिया की बीवी को पूरा अनुभव था कि मर्द किस तरीके से औरत के काबू में आते हैं पहली मर्तबा तो वह सूरज को नहाने के बहाने अपनी खूबसूरत अंग के दर्शन करा कर उसे ऐसा मोह जाल में फंसा ही थी कि आज वह खुद आम के घने बगीचे में रात रुकने के लिए तैयार हो गया था,,,

सूरज तू मालिश कर तो लेगा ना,,,,,,,(मुखिया की बीवी जानबूझकर आश्चर्य से सूरज की तरफ देखते हुए बोली,,,, लेकिन औरतों से हमेशा कन्नी काटने वाला सूरज कुछ भी दिनों में औरतों के बेहद करीब रहने का शौकीन बन चुका था इसलिए पूरे आत्मविश्वास के साथ वह बोला,,,,)

जी मालकिन चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है ऐसी मालिश करूंगा कि तुम जिंदगी भर याद रखोगी,,,,(हाथ में सीसी लिए हुए वह हल्की मुस्कान अपने चेहरे पर लाते हुए बोला,,,,,,, सूरज को मुस्कुराता हुआ देखकर मुखिया की बीवी के मन में भी संतुष्टि हो रही थी वह भी मुस्कुरा कर सूरज की तरफ अच्छी और हल्के से लंगड़ा कर चलने का बहाना करते हुए वहां बिस्तर के करीब जाने लगी और बोली,,,)

रुक पहले में बिस्तर लगा लूं,,,,,(इतना कहने के साथ ही वह चारपाई पर रखे हुए बिस्तर को खोलने लगी बिस्तर लगाने से सूरज मुखिया की बीवी को इनकार करना चाहता था लेकिन जिस तरह से वह बिस्तर लगाने के लिए झुकी हुई थी उसकी भारी भरकम गांड एकदम उभर कर सामने नजर आ रही थी साड़ी में कई होने के बावजूद भी उसकी रूपरेखा लालटेन की पीली रोशनी में एकदम साफ नजर आ रही थी सूरज तो एकदम मतवाला हो चुका था उसका मन कर रहा था कि पीछे से जाकर मुखिया की बीवी को पकड़ ले और उसकी बड़ी-बड़ी गांड पर अपना लंड रगड़ रगड़ कर अपने तन की गर्मी को शांत करें,,, सूरज ठीक उसके पीछे खड़ा होकर मुखिया की बीवी को देख रहा था वह झुक कर बिस्तर लगा रही थी उसके इस तरह से झुकने में भी बड़ा आनंद था सूरज नजर भरकर उसके पिछवाड़े को देख रहा था,,,, की तभी उसे याद आया की झोपड़ी में तो एक ही कर पाई है वह कहां सोएगा क्योंकि यह तो निश्चित ही था कि मुखिया की बीवी चारपाई पर ही लेटने वाली है लेकिन उसके लेटने की कोई व्यवस्था नहीं थी और ना ही कोई चादर थी जिसे वह जमीन पर बिछाकर सो सके या चटाई पर आराम कर सके,,, इसलिए अपने मन में उमड़ रहे इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए वह मुखिया की बीवी से बोला,,,)


मालकिन यहां तो सिर्फ एक ही कर पाई है और कोई चटाई भी नहीं है मैं कहां सोऊंगा,,,,।
(उसके इस मासूमियत भरे सवाल पर मुखिया की बीवी मन ही मन प्रसन्न होने लगी और उसकी प्रसन्नता के भाव उसके होठों पर आ गए और मुस्कुराने लगी और मुस्कुराते हुए बोली,,,)

अरे बुद्धू एक ही चारपाई का मतलब है कि हम दोनों इसी पर सोएंगे तुझे कोई दिक्कत है क्या मेरे साथ सोने में,,,,।
(मुखिया की बीवी के मुंह से इतना सुनते ही सूरज के तन बदन में उत्तेजना की लहर उठने लगी उसके मन की तरंगे उछाल मारने लगी,,,,,, वह एकदम से मदहोश हो गया और मुखिया की बीवी की तरफ आश्चर्य से देखने लगा,,, क्योंकि एक औरत के मुंह से इस तरह के जवाब कि उसे उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी वह सच में पड़ गया था कि यह खूबसूरत जवान औरत एक जवान लड़के के साथ एक ही चारपाई पर कैसे सो सकती है लेकिन यहां पर वही हो रहा था जिसके बारे में उसने कभी कल्पना भी नहीं किया था,,,, मुखिया की बीवी भी सूरज के चेहरे पर उठ रहे भाव को देख रही थी और समझ रही थी और मन ही मन प्रसन्न हो रही थी वह समझ गई थी कि एक ही चारपाई पर सोने के नाम पर सूरज की हालत खराब हो गई थी और वह‌ चोर नजरों से उसके पजामे की तरफ भी देखी तो उसके होश उड़ गए,,, उसके पजामे में अच्छा खासा तंबू बना हुआ था और उसके तंबू की शक्ल देखकर,,,, उसकी बुर पानी छोड़ने लगी और वह अपने मन में ही अपने आप से ही बोली,,,, बाप रे ये तो तेरी बुर का भोसड़ा बना देगा,,,,। सूरज के चेहरे पर अभी भी आश्चर्य के भाव साफ नजर आ रहे थे उसके मन में यही चल रहा था कि वह एक खूबसूरत जवान औरत के साथ एक ही बिस्तर पर कैसे सोएगा यह सोचकर वह हैरान भी था और उसे उत्सुकता भी हो रही थी क्योंकि वह इस अनुभव को पूरी तरह से जी लेना चाहता था,,,।

जो हाल इस समय सूरज का था वही हाल मुखिया की बीवी का भी था,,, ऐसा नहीं था कि यह मुखिया की बीवी के लिए पहली बार था जिंदगी में न जाने वह कितनी बार अनजान जवान मर्दों के सामने अपने कपड़ों को उतार कर नंगी हो चुकी थी और उनके साथ जवानी का मजा लूट चुकी थी लेकिन फिर भी सूरज के सामने न जाने क्यों उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे वह पहली बार यह सब करने जा रही थी और सूरज के लिए तो यह सब बिल्कुल नया सा था एक नई दुनिया नया सुख नहीं अनुभूति इसलिए उसके मन में उत्सुकता बहुत ज्यादा थी,,,,।

मुखिया की बीवी बिस्तर लगा चुकी थी सिरहाने दो तकिया भी था दो तकिया को देखकर सूरज मन ही मन बहुत प्रसन्न हो रहा था क्योंकि जिंदगी में पहली बार वह खूबसूरत औरत के पास सोने जा रहा था और वह भी एक ही चारपाई पर,,, सूरज के हाथ में सरसों के तेल की सीसी थी सीसी की तरफ देखते हुए मुखिया की बीवी बोली,,,,।

तू तैयार है ना मालिश करने के लिए,,,,।

जी मालकिन,, ,,

(सूरज के इतना कहते ही मुखिया की बीवी मुस्कुराते हुए,,,, अपनी साड़ी का पल्लू कंधे पर से पकड़ कर नीचे गिरा दी और उसकी छातिया एकदम से उजागर हो गई ब्लाउज में कैद उसकी दोनों चूचियां जाल में फंसे हुए कबूतर की तरह पंख फड़फड़ा रहे थे सूरज तो मुखिया की बीवी का यह रूप देखता ही रह गया उसकी भरी फूली छाती देखकर उसके होश उड़ गए,,।)
बहुत ही सुंदर लाजवाब और मदमस्त अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

Ajju Landwalia

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रात पूरी तरह से गहरा चुकी थी चारों तरफ अंधेरा अंधेरा नजर आ रहा था,,, आपके बड़े-बड़े पेड़ होने की वजह से यह अंधेरा कुछ ज्यादा ही डरावना लग रहा था लेकिन इस समय ना तो मुखिया की बीवी के मन में किसी प्रकार का डर था और ना ही सूरज के मन में क्योंकि दोनों को एक दूसरे का साथ अच्छा लग रहा था और मुखिया की बीवी तो अपने मां के इरादों को पूरा करने के लिए सूरज को साथ में लेकर आई थी,,,, और जिस तरह का नजारा उसने कुछ देर पहले सूरज को दिखाई थी उसे देखने के बाद तो सूरज चारों खाने चित हो गया था वह पूरी तरह से मुखिया की बीवी की जवानी का गुलाम हो चुका था,,, इतने करीब से,,,, जिंदगी में पहली मर्तबा हुआ किसी औरत को पेशाब करते हुए देख रहा था जिसकी नंगी चिकनी गांड उसके इरादों को फिसलने पर मजबूर कर रही थी पहली बार वह औरत की बुर में से निकल रही सिटी की आवाज को एकदम साफ-साफ सुना था जिसे सुनने के बाद दुनिया का हर मधुर संगीत उसके लिए फीका नजर आ रहा था,,,,, वैसे तो सूरज इस बात को अच्छी तरह से जानता था कि औरत से पेशाब करती है तो उनके बुर से सिटी की आवाज निकलती है लेकिन यह उसके लिए पहली बार था जब वह उस आवाज को सुना था,,, इसीलिए तो अभी भी उसके पजामे में उसका लंड तना हुआ था,,,।

मुखिया की बीवी के लिए खाई औरत थी इसीलिए जबरदस्ती उसे वहीं पर पेशाब करवाने के बहाने उसके लंड के दर्शन कर ली थी और आंखों ही आंखों में उसकी लंबाई और मोटी को नाप चुकी थी और मन ही मन प्रसन्न हो रही थी क्योंकि वह जानती थी कि जिस तरह का हथियार सूरज के पास है उसकी जवानी का रस पूरी तरह से निचोड़ देगा,,,,, सूरज के मुसल को वह अपनी ओखली में लेने के लिए तड़प रही थी,,,। दोनों छोटी सी घास फूस की झोपड़ी के पास पहुंच चुके थे,,,, लकड़ी के दरवाजे को खोलकर सबसे पहले मुखिया की बीवी उसे झोपड़ी में प्रवेश की ओर पीछे-पीछे सूरज,,,, सूरज का दिल बड़े जोरों से धड़क रहा था क्योंकि वह पहली बार रात के एकांत में किसी खूबसूरत जवान औरत के साथ रात गुजारने वाला था उसे नहीं मालूम था कि आज की रात उसके साथ क्या होने वाला है,,, लेकिन मुखिया की बीवी की हरकत को देखकर इतना तो वह समझ ही गया था कि मजा बहुत आने वाला है,,,,,,।

थोड़ी ही देर में पुरी झोपड़ी में लालटेन के पीली रोशनी फैल गई झोपड़ी के अंदर सब कुछ साफ-साफ नजर आने लगा,,,, झोपड़ी के अंदर एक टेबल रखा हुआ था जिस पर गिलास और थाली रखी हुई थी पास में चारपाई बिछी हुई थी लेकिन बिस्तर मोड कर रखा गया था क्योंकि जब झोपड़ी के अंदर रुकना होता था तभी बिस्तर को चारपाई पर बिछाया जाता था,,,,, सूरज झोपड़ी के अंदर खड़ा होकर पुरी झोपड़ी में नजर घुमा कर देख रहा था घास फूस की झोपड़ी में भी छोटी सी खिड़की बनी हुई थी जिसमें से ठंडी हवा अंदर आती थी ताकि गर्मी ना लगे और इस समय भी ठंडी हवा खिड़की से झोपड़ी के अंदर बड़े आराम से आ रही थी और बदन में ठंडक का एहसास दिला रही थी,,,,। मुखिया की बीवी भी मुस्कुरा कर कभी सूरज की तरफ तो कभी अपनी झोपड़ी की तरफ देख रही थी ईस झोपड़ी में उसके जीवन के बहुत ही रंगीन रातें बीती थी यह वही चारपाई थी जिस पर उसने अपनी जवानी लुटाई थी,,, और आज अपनी ही चारपाई पर वहां सूरज का बिस्तर गर्म करने के इरादे से उसे लेकर आई थी,,,,।


अरे सूरज दरवाजा तो बंद कर दे नहीं तो जंगली जानवर अंदर घुस जाएंगे,,,,।

जी मालकिन,,,(इतना कहने के साथ ही वह दरवाजे की तरफ बढ़ गया,,, दरवाजे पर खड़े होकर वहां बाहर की तरफ नजर घुमाई तो बाहर का अंधेरा देखकर उसे थोड़ी बहुत घबराहट महसूस हो रही थी क्योंकि चारों तरफ उसे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था बस केवल चारों ओर से झींगुर की आवाज आ रही थी जिससे वातावरण और भी भयानक नजर आ रहा था,,, वह तो उसके साथ मुखिया की बीवी थी जिसकी जवानी के दर्शन वह कर चुका था और इसी लालच में हो उसके साथ इस आम के बगीचे की रखवाली करने के लिए इतनी रात को आया था वह जल्दी से दरवाजा बंद कर दिया छोटी सी झोपड़ी को भी मुखिया की बीवी ने बहुत अच्छे तरीके से बनवा कर एक छोटा सा घर की तरह उसे सकल दे दी थी और इस झोपड़ी में रात रुकने लायक सभी साधन मौजूद थे,,,, दरवाजा बंद करने के बाद जैसे ही हो मुखिया की बीवी की तरफ घुमा मुखिया की बीवी उसे फिर से बोली,,,,।

लालटेन को टेबल पर रख दे,,,, ताकि पूरे झोपड़ी में रोशनी बनी रहे,,,, तुझे रोशनी में नींद तो आती है ना,,,

की मालकिन कोई दिक्कत नहीं होती,,,,,(सूरज सो रहा था की मुखिया की बीवी सहज रूप से यह सवाल पूछ रही थी,,, लेकिन हकीकत यही था कि वह लालटेन की पीली रोशनी में सब कुछ साफ-साफ देखना चाहती थी वरना उसे भी रोशनी में नींद नहीं आती थी,,,,)

ठीक है मुझे भी रोशनी पसंद है,,,


अब तुम्हारी कमर का दर्द कैसा है,,,(लालटेन को टेबल पर रखते हुए सूरज बोला)

कैसा क्या है इसका इलाज ही कहां हुआ है जो आराम मिल जाएगा,,,, हाय दइया बहुत दर्द कर रही है,,,(मुखिया की बीवी को जैसे एकदम से याद आ गया हो कि उसकी कमर में तो दर्द हो रहा था और तुरंत अपनी कमर पर हाथ रखते हुए बोली,,,)

लगता है मालिस से ही इसका दर्द ठीक होगा,,,,

मुझे भी ऐसा ही लग रहा है,,,,


लेकिन मालकिन यहां तेल मिलेगा कहां,,,(सूरज थोड़ा निराश होते हुए बोला)

अरे बुद्धू सब कुछ मिल जाएगा वह टेबल पर जो संदूक रखी है ना उसके अंदर देख सरसों के तेल की सीसी रखी होगी,,, मुखिया की बीवी के कहते हैं सूरज टेबल पर रखे हुए संदूक को खोलकर अंदर देखा तो अंदर वाकई में सरसों के तेल की शीशी दिया सलाई और थोड़ी बहुत काम के साधन पड़े हुए थे सरसों के तेल की शीशी को देखकर सूरज मन ही मन प्रसन्न होने लगा क्योंकि वह जानता था की मालिश के बहाने वह आज औरत के अंगों को स्पर्श कर पाएगा,,, वह जल्दी से सब दुख में से सरसों के तेल की शीशी को निकाल लिया और संदूक को बंद कर दिया,,,, मुखिया की बीवी सूरज की तरफ देख रही थी सूरज के चेहरे पर उत्सुकता और प्रसन्नता के भाव साफ नजर आ रहे थे और मुखिया की बीवी सूरज को देखकर प्रसन्न हो रही थी उसके अरमान मचल रहे थे क्योंकि वह अच्छी तरह से जानते थे कि बस थोड़ी देर की बात है उसके बाद तो सूरज उसकी पूरी तरह से गुलाम हो जाएगा और वह जो कहेगी वही करेगा ,,,,, क्योंकि मुखिया की बीवी को पूरा अनुभव था कि मर्द किस तरीके से औरत के काबू में आते हैं पहली मर्तबा तो वह सूरज को नहाने के बहाने अपनी खूबसूरत अंग के दर्शन करा कर उसे ऐसा मोह जाल में फंसा ही थी कि आज वह खुद आम के घने बगीचे में रात रुकने के लिए तैयार हो गया था,,,

सूरज तू मालिश कर तो लेगा ना,,,,,,,(मुखिया की बीवी जानबूझकर आश्चर्य से सूरज की तरफ देखते हुए बोली,,,, लेकिन औरतों से हमेशा कन्नी काटने वाला सूरज कुछ भी दिनों में औरतों के बेहद करीब रहने का शौकीन बन चुका था इसलिए पूरे आत्मविश्वास के साथ वह बोला,,,,)

जी मालकिन चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है ऐसी मालिश करूंगा कि तुम जिंदगी भर याद रखोगी,,,,(हाथ में सीसी लिए हुए वह हल्की मुस्कान अपने चेहरे पर लाते हुए बोला,,,,,,, सूरज को मुस्कुराता हुआ देखकर मुखिया की बीवी के मन में भी संतुष्टि हो रही थी वह भी मुस्कुरा कर सूरज की तरफ अच्छी और हल्के से लंगड़ा कर चलने का बहाना करते हुए वहां बिस्तर के करीब जाने लगी और बोली,,,)

रुक पहले में बिस्तर लगा लूं,,,,,(इतना कहने के साथ ही वह चारपाई पर रखे हुए बिस्तर को खोलने लगी बिस्तर लगाने से सूरज मुखिया की बीवी को इनकार करना चाहता था लेकिन जिस तरह से वह बिस्तर लगाने के लिए झुकी हुई थी उसकी भारी भरकम गांड एकदम उभर कर सामने नजर आ रही थी साड़ी में कई होने के बावजूद भी उसकी रूपरेखा लालटेन की पीली रोशनी में एकदम साफ नजर आ रही थी सूरज तो एकदम मतवाला हो चुका था उसका मन कर रहा था कि पीछे से जाकर मुखिया की बीवी को पकड़ ले और उसकी बड़ी-बड़ी गांड पर अपना लंड रगड़ रगड़ कर अपने तन की गर्मी को शांत करें,,, सूरज ठीक उसके पीछे खड़ा होकर मुखिया की बीवी को देख रहा था वह झुक कर बिस्तर लगा रही थी उसके इस तरह से झुकने में भी बड़ा आनंद था सूरज नजर भरकर उसके पिछवाड़े को देख रहा था,,,, की तभी उसे याद आया की झोपड़ी में तो एक ही कर पाई है वह कहां सोएगा क्योंकि यह तो निश्चित ही था कि मुखिया की बीवी चारपाई पर ही लेटने वाली है लेकिन उसके लेटने की कोई व्यवस्था नहीं थी और ना ही कोई चादर थी जिसे वह जमीन पर बिछाकर सो सके या चटाई पर आराम कर सके,,, इसलिए अपने मन में उमड़ रहे इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए वह मुखिया की बीवी से बोला,,,)


मालकिन यहां तो सिर्फ एक ही कर पाई है और कोई चटाई भी नहीं है मैं कहां सोऊंगा,,,,।
(उसके इस मासूमियत भरे सवाल पर मुखिया की बीवी मन ही मन प्रसन्न होने लगी और उसकी प्रसन्नता के भाव उसके होठों पर आ गए और मुस्कुराने लगी और मुस्कुराते हुए बोली,,,)

अरे बुद्धू एक ही चारपाई का मतलब है कि हम दोनों इसी पर सोएंगे तुझे कोई दिक्कत है क्या मेरे साथ सोने में,,,,।
(मुखिया की बीवी के मुंह से इतना सुनते ही सूरज के तन बदन में उत्तेजना की लहर उठने लगी उसके मन की तरंगे उछाल मारने लगी,,,,,, वह एकदम से मदहोश हो गया और मुखिया की बीवी की तरफ आश्चर्य से देखने लगा,,, क्योंकि एक औरत के मुंह से इस तरह के जवाब कि उसे उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी वह सच में पड़ गया था कि यह खूबसूरत जवान औरत एक जवान लड़के के साथ एक ही चारपाई पर कैसे सो सकती है लेकिन यहां पर वही हो रहा था जिसके बारे में उसने कभी कल्पना भी नहीं किया था,,,, मुखिया की बीवी भी सूरज के चेहरे पर उठ रहे भाव को देख रही थी और समझ रही थी और मन ही मन प्रसन्न हो रही थी वह समझ गई थी कि एक ही चारपाई पर सोने के नाम पर सूरज की हालत खराब हो गई थी और वह‌ चोर नजरों से उसके पजामे की तरफ भी देखी तो उसके होश उड़ गए,,, उसके पजामे में अच्छा खासा तंबू बना हुआ था और उसके तंबू की शक्ल देखकर,,,, उसकी बुर पानी छोड़ने लगी और वह अपने मन में ही अपने आप से ही बोली,,,, बाप रे ये तो तेरी बुर का भोसड़ा बना देगा,,,,। सूरज के चेहरे पर अभी भी आश्चर्य के भाव साफ नजर आ रहे थे उसके मन में यही चल रहा था कि वह एक खूबसूरत जवान औरत के साथ एक ही बिस्तर पर कैसे सोएगा यह सोचकर वह हैरान भी था और उसे उत्सुकता भी हो रही थी क्योंकि वह इस अनुभव को पूरी तरह से जी लेना चाहता था,,,।

जो हाल इस समय सूरज का था वही हाल मुखिया की बीवी का भी था,,, ऐसा नहीं था कि यह मुखिया की बीवी के लिए पहली बार था जिंदगी में न जाने वह कितनी बार अनजान जवान मर्दों के सामने अपने कपड़ों को उतार कर नंगी हो चुकी थी और उनके साथ जवानी का मजा लूट चुकी थी लेकिन फिर भी सूरज के सामने न जाने क्यों उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे वह पहली बार यह सब करने जा रही थी और सूरज के लिए तो यह सब बिल्कुल नया सा था एक नई दुनिया नया सुख नहीं अनुभूति इसलिए उसके मन में उत्सुकता बहुत ज्यादा थी,,,,।

मुखिया की बीवी बिस्तर लगा चुकी थी सिरहाने दो तकिया भी था दो तकिया को देखकर सूरज मन ही मन बहुत प्रसन्न हो रहा था क्योंकि जिंदगी में पहली बार वह खूबसूरत औरत के पास सोने जा रहा था और वह भी एक ही चारपाई पर,,, सूरज के हाथ में सरसों के तेल की सीसी थी सीसी की तरफ देखते हुए मुखिया की बीवी बोली,,,,।

तू तैयार है ना मालिश करने के लिए,,,,।

जी मालकिन,, ,,

(सूरज के इतना कहते ही मुखिया की बीवी मुस्कुराते हुए,,,, अपनी साड़ी का पल्लू कंधे पर से पकड़ कर नीचे गिरा दी और उसकी छातिया एकदम से उजागर हो गई ब्लाउज में कैद उसकी दोनों चूचियां जाल में फंसे हुए कबूतर की तरह पंख फड़फड़ा रहे थे सूरज तो मुखिया की बीवी का यह रूप देखता ही रह गया उसकी भरी फूली छाती देखकर उसके होश उड़ गए,,।)

Bahut hi shandar update he rohnny4545 Bhai,

Ab suraj mukhiya ki biwi ke badan ki aisi malish karega ki vo roj roj sirf suraj se hi karwana chahegi............

Agli update ki pratiksha rahegi Bhai
 

rohnny4545

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मुखिया की बीवी धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए सूरज को अपनी जवानी के जाल में पूरी तरह से फंसा रही थी,,, घनघोर रात में मुखिया की बीवी सूरज को लेकर अपने आम वाले बगीचे पर बगीचे की रखवाली करने के बहाने पहुंच चुकी थी और उसे झोपड़ी में मालिश के बहाने अपने वस्त्र उतारना शुरू कर दी थी मुखिया की बीवी इस बात को अच्छी तरह से जानती थी कि दुनिया का कोई मर्द औरत के उत्तेजक बदन को देखकर मुंह नहीं मोडता,,, बल्कि खूबसूरत औरत के मादक रूप को देखकर वह उसका गुलाम बन जाता है और यही सूरज के साथ भी हो रहा था धीरे-धीरे सूरज मुखिया की बीवी के हर एक बात को मानते हुए आज उसके बेहद करीब पहुंच गया था,,,, सूरज को यह नहीं मालूम था कि आज की रात क्या होने वाला है लेकिन इतना जरुर जानता था कि मजा बहुत आने वाला है जिसकी शुरुआत हो चुकी थी,,।

मुखिया की बीवी अपने साड़ी के पल्लू को अपने कंधे पर से पकड़ कर नीचे गिरा दी थी जिसकी वजह से उसकी भारी भरकम चूचियां ब्लाउज में कैद एकदम से उजागर हो गई थी,, जिसे देखते ही सूरज की आंखें फटी की फटी रह गई थी सूरज की आंखों के सामने मुखिया की बीवी की खरबूजे जैसी चूचियां कबूतर की तरह उसके ब्लाउज की कैद में फड़फड़ा रही थी ऐसा लग रहा था कि जैसे उसकी चूचियां खुद ब्लाउज फाड़कर बाहर आने को उतारू हो चुकी है,,,, सूरज की तो सांसे ऊपर नीचे होने लगी क्योंकि मुखिया की बीवी की चूची हो कि बीच की पतली तरह एकदम साफ नजर आ रही थी और बहुत ही ऊपर और गहरी लकीर छोड़ रही थी,,,। सूरज आंख फाड़े मुखिया की बीवी की छातियो की तरफ देख रहा था और यह देखकर मुखिया की बीवी मन ही मन प्रसन्न हो रही थी जवानी की पहली सीढ़ी सफलतापूर्वक मुखिया की बीवी ने सूरज को पार करा दी थी,,,, मुखिया की बीवी अच्छी तरह से जानती थी कि जब सूरज का यह हाल सिर्फ ब्लाउज के ऊपर से देखने से है अगर वह ब्लाउज उतार कर अपनी नंगी चूचियां दिखाई की तब सूरज का क्या हाल होगा यह सोचकर वह मन ही मन प्रसन्न हो रही थी,,, ।


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रुक जरा मैं साड़ी उतार दूं तब तू आराम से मालिश कर सकेगा नहीं तो मालिश करने में भी दिक्कत आएगी,,,,,(साड़ी को अपनी कमर से खोलते हुए मुखिया की बीवी बोली और उसकी यह बात सुनकर सूरज कुछ बोल नहीं पाया बस वह हैरान होकर मुखिया की बीवी की तरफ देखता रह गया और मुखिया की बीवी उसकी आंखों के सामने ही अपने वस्त्र को उतार रही थी अपनी साड़ी को अपने कमर से खोलकर उसे धीरे-धीरे अपनी कमर से अलग कर रही थी यह देखकर तो सूरज का तंबू एकदम बंबू बन चुका था,,, वह पसीने से तरबतर होने लगा था,,,.।,,, सूरज के सामने अपने वस्त्र उतारने में मुखिया की बीवी के भी तन बदन में हलचल हो रही थी खास करके जब-जब उसकी नजर सूरज के तंबू की तरफ जाती तब तब उसकी दोनों टांगों की पतली दरार में हलचल सी होने लगती थी उसकी बुर कुल बुलाने लगती थी,,, क्योंकि उसकी पारखी नजरे अच्छी तरह से जानती थी कि सूरज के पजामे में कौन सा हथियार छुपा हुआ है और वैसे भी वह पेशाब करते हुए उसके लंड के दर्शन को कर चुकी थी और जिस तरह के हालात उसकी दोनों टांगों के बीच नजर आ रहे थे उसे देखते हुए वह अंदर ही अंदर थोड़ा घबरा भी रही थी,,,। क्योंकि नजर भर में ही उसने सूरज के लंड की मोटाई और लंबाई को अपनी आंखों से ही नाप ली थी उसके लंड कैसे पानी को देखते ही उसकी आंखों के सामने आलू बुखारा नजर आ रहा था जो कि उसके लंड का सुपाड़ा एकदम आलू बुखारे की तरह था,,, और यही सोचकर वह घबरा रही थी कि सूरज का आलू बुखारा जैसा सुपाड़ा उसकी गुलाबी बुर में कैसे घुसेगा,,, आज तक जितने मर्दों के साथ उसने संबंध बनाई थी यह सवाल उसके मन में कभी नहीं उभरा था लेकिन सूरज के मामले में कुछ अलग ही हलचल उसके मन में हो रही थी और इस हाल-चाल को लेकर वह‌ बेहद उत्सुक भी थी,,,, वह जल्द से जल्द सूरज के संड के मोटे सुपाड़े को अपनी गुलाबी छेद पर महसूस करना चाहती थी वह देखना चाहती थी कि एक जवान मर्द का मोटा तगड़ा लंड जब एक औरत की बुर पर स्पर्श होता है तो औरत को कैसा महसूस होता है हालांकि इस अनुभव से वह कई बार गुजर चुकी थी लेकिन आज नए अनुभव की तलाश उसे थी,,,, जिसके लिए वह धीरे-धीरे करके अपने कमर पर से अपनी साड़ी को खोलकर अपने बदन से अलग कर चुकी थी और उसे नीचे जमीन पर गिरा दी थी सूरज की आंखों के सामने अब वह केवल पेटिकोट और ब्लाउज में थी जो की पीली रोशनी में सबको साफ नजर आ रहा था सूरज हक्का-बक्का होकर मुखिया की बीवी की मदहोश कर देने वाली जवानी को अपनी आंखों को देख रहा था या यूं कह लो की मुखिया की बीवी की मदहोश जवानी का रस वह अपनी आंखों से पी रहा था,,,।


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एक तरह से सूरज इस खेल में पूरी तरह से अनाड़ी ही था क्योंकि अगर उसकी जगह कोई और अनुभव से भरा हुआ जवान मर्द होता तो मुखिया की बीवी को अपने हाथों से अपने वस्त्र उतारने की जरूरत ही नहीं पड़ती वह खुद अपने हाथों से अब तक तो मुखिया की बीवी के वस्त्र को उतार कर उसे संपूर्णता नग्न कर चुका होता,,, लेकिन इसमें सूरज का भी कोई दोस्त नहीं था उसमें अनुभव की कमी थी वह इस खेल में पूरी तरह से नया था इस खेल के नियम के बारे में उसे बिल्कुल भी ज्ञान नहीं था वह नहीं जानता था कि औरत रूपी किताबों के पन्नों को किस तरह से खोला जाता है किस तरह से उसके अंगों के शब्दों को पढ़ा जाता है वह तो नादान की तरह बस आंखें फाड़े देखे जा रहा था और इतने से ही उसे अत्यधिक उत्तेजना का अनुभव हो रहा था उसकी उत्तेजना इतनी चरम पर थी कि उसे लग रहा था कि उसका लंड फट जाएगा और उसे इस बात का डर था कि कहीं उसका लंड पजामा फाड़ कर बाहर न जाए,,,।

मुखिया की बीवी साड़ी को उतारकर जमीन पर फेंकने के बाद सूरज की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए चारपाई पर बैठ गई उसके पैर नीचे जमीन पर थे और वह सूरज की तरफ देखकर मुस्कुरा रही थी सूरज के होठों से एक भी शब्द फुट नहीं रहे थे ऐसा लग रहा था कि जैसे वह कोई मूर्ति बन गया हो वह मुस्कुराते हुए बोली,,,।

देख सूरज,,, आज मजबूरी वश किसी जवान लड़के के सामने अपने कपड़े उतार रही हूं तुझ पर भरोसा करके लेकिन इस बात की खबर अपने मालिक को बिल्कुल भी नहीं होने देना नहीं तो मेरी सामत आ जाएगी और साथ में तेरी भी,,, मैं क्या कह रही हूं समझ रहा है ना,,,, इस बात को राज ही रखना है कि आज की रात झोपड़ी में क्या हो रहा है,,,।

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बिल्कुल मालकिन मैं इस बात को किसी से नहीं कहूंगा मैं अच्छी तरह से जानता हूं एक औरत की इज्जत क्या होती है और वैसे भी कोई औरत अनजान मर्द के सामने इस तरह से कपड़े नहीं उतरती वह तो तुम्हारी मजबूरी है मैं सब समझता हूं आज की रात जो कुछ भी हो रहा है वह राज ही रहेगा तुम निशचिंत रहो,,,,
(सूरज का जवाब सुनकर मुखिया की बीवी मुस्कुराने लगी और मुस्कुराते हुए बोली,,,)

तू बहुत समझदार है इसीलिए तो तुझ पर भरोसा कर रही हूं,,,, अब अच्छे से मालिश करना ताकि मेरा दर्द एकदम से दूर हो जाए,,,।

तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो नमकीन ऐसी मालिश करूंगा कि तुम खुश हो जाओगी,,,।

ठीक है,,,(इतना कहकर मुस्कुराते हुए मुखिया की बीवी चारपाई पर पेट के बल लेट गई और पेट के बल लेटने से जो नजर सूरज की आंखों के सामने नजर आ रहा था उसे देखकर सूरज के तन बदन में आग लगने लगी उसके होश उड़ाने लगे और मदहोशी उसके नसों में घुलने लगी,,,, पेट के बल लेटने की वजह से,,, मुखिया की बीवी की भारी भरकम गांड और भी ज्यादा उभरी हुई नजर आने लगी क्योंकि उसने साड़ी उतारती थी और पेटिकोट का पतला कपड़ा उसके कसे हुए नितंबों से एकदम चिपक सा गया था,,ं और उसकी गांड की रूपरेखा एकदम साफ तौर पर नजर आ रही थी जिसे देखकर सूरज के तन बदन में आग लग रही थी उसके पीठ की नीचे कमर के इर्द-गिर्द जो हल्का सा दोनों तरफ गड्ढा पड़ा हुआ था उसे देखकर तो सूरज की जवानी मुखिया की बीवी की जवानी के आगे घुटने टेक रही थी सूरज मदहोश होकर मुखिया की बीवी के खूबसूरत बदन की रूपरेखा को देख रहा था और मुखिया की बीवी नजर को तिरछी करके सूरज की तरफ देखकर मन ही मन प्रसन्न हो रही थी क्योंकि वह इतना तो समझ ही गई थी कि ‌,, सूरज उसकी गांड देखकर ही मंत्र मुग्ध हुआ जा रहा है,,,, सूरज को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें और कुछ देर तक इसी तरह से खड़े होकर केवल मुखिया की बीवी की जवानी को रह गया वह तो यह भी भूल गया था की मदहोशी के आलम में उत्तेजित अवस्था में उसका लंड पूरी तरह से अपनी औकात में आकर खड़ा था और पजामे में तंबू बनाया हुआ था,,,,।

अरे खड़ा होकर देखता ही रहेगा या मालिश भी करेगा,,,(मुखिया की बीवी की आवाज से सूरज की तंद्रा भंग हुई और एकदम से हड़बड़ा गयाऔर बोला,,,)

जजजज,,,,जी मालकिन मै शीशी का ढक्कन खोल रहा था,,,,(और इतना कहने के साथ ही वहां जल्दी-जल्दी सीसी का ढक्कन खोलने लगा सीसी का ढक्कन खुलते ही वह,, हाथ में सरसों के तेल की सीसी लिए हुए ठीक उसके बगल में चारपाई के पाटी पर बैठ गया,,,,,, इससे पहले उसने कभी भी किसी औरत की मालिश नहीं किया था हां अपने पिताजी की मालिश जरूर किया था जब उनकी कमर दुखती थी लेकिन एक औरत के अंगों की मालिश करने की लालच को वह रोक नहीं पाया था इसलिए हामी भर दिया था लेकिन फिर भी अनुभव न होने के बावजूद भी अपने पिताजी की पीठ और कमर की मालिश का अनुभव उसे जरूर था,,,।

दोनों तरफ से उत्सुकता बढ़ती जा रही थी मुखिया की बीवी जल्द से जल्द सूरज के हाथों को अपनी चिकनी नंगी पीठ पर महसूस करना चाहती थी उसका बस चलता है तो इसी समय अपने सारे वस्त्र उतार कर नंगी होकर सूरज से मालिश करवाती ,,,लेकिन धीरे-धीरे आगे बढ़ने में उसे भी मजा आ रहा था,,,
सूरज चारपाई की पाटी पर बैठा हुआ था,,, उसकी नज़रें मुखिया की बीवी के गोलाकार उभरे हुए नितंबों और उसकी चिकनी कमर पर ही टिकी हुई थी,,,। सूरज सरसों के तेल की सीसी में से तेल की धार को अपनी हथेली में गिराने लगा और फिर उसे सीसी को चारपाई के नीचे रख कर धीरे से अपनी हथेली को मुखिया की बीवी की कमर पर रख दिया और जैसे ही सूरज ने अपनी हथेली को मुखिया की बीवी की चिकनी कमर पर रखा मुखिया की बीवी एकदम से मदहोश हो गई उसके चेहरे के भाव एकदम से बदल गए ऐसा लग रहा था कि जैसे पहली बार यह सब हो रहा है और सूरज भी एक खूबसूरत जवान औरत की चिकनी कमर पर अपनी हथेली रखते ही उसके नरम नरम चिकनी कमर का एहसास हथेली पर होते ही मदहोश होने लगा,,,,, और धीरे-धीरे वह अपनी हथेली को मुखिया की बीवी की कमर पर घुमाना शुरू कर दिया,,,, सूरज का यह पहला मौका था जब वह किसी जवान खूबसूरत औरत की कमर की मालिश कर रहा था और पल भर में ही वह आनंद के परम सागर में गोते लगाने लगा उसे बहुत अच्छा लग रहा था उसकी नज़रें लगातार उसके नितंबों पर टिकी हुई थी वह मनी मनी यही चाह रहा था की मुखिया की बीवी अपनी पेटीकोट भी उतार देती तो उसकी नंगी गांड़ की मालिश करने में और ज्यादा मजा आता,, कुछ ही देर में सूरज की दोनों हथेलियां सरसों के तेल की चिकनाहट और मुखिया की बीवी की चिकनी कमर की चिकनाहट पाकर फिसलने लगी,,,, देखते ही देखते सूरज पेटिकोट के किनारे और ऊपर ब्लाउज के किनारे के बीचों बीच चिकनी पीठ पर तेल की मालिश करना शुरू कर दिया था और उसकी चिकनी पीठ सरसों के तेल की वजह से लालटेन की पीली रोशनी में एकदम चमक रही थी,,,, मुखिया की बीवी को सुखद अनुभव हो रहा था,,,ं एक तरफ उसे मालिश की वजह से आराम की अनुभूति हो रही थी वहीं दूसरी तरफ सूरज की हथेली से मदहोशी का एहसास भी हो रहा था जिसके चलते उसकी बुर से नमकीन रस टपक रहा था,,,। कुछ देर मालिश करने के बाद मालिश करते हुए सूरज बोला,,,‌

अब कैसा लग रहा है मालकिन,,,

बहुत मजा आ रहा है सूरज मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा है कि तू मालिश करने में इतना माहिर है इतना तो औरतें भी अच्छी तरह से मालिश नहीं कर पाती तुझे मालूम है गांव में एक औरत है जिसे मालिश करने के लिए मैं बुलाती हूं वह अक्सर महीने में एक दो बार मेरी मालिश कर देती है लेकिन जितना अच्छा तू कर रहा है उतना वह नहीं कर पाती,,,,।

यह तो तुम्हारा बड़प्पन है मालकिन वरना में मालिश करने में माहिर तो नहीं हूं लेकिन अच्छी खासी कर लेता हूं,,,,(इतना कहने के साथ ही सरसों के तेल की चिकनाहट पाकर सूरज की उंगली एकदम से मुखिया की बीवी के ब्लाउज के किनारी में हल्के से प्रवेश कर गई,,,, और इसका एहसास मुखिया की बीवी को होते ही वह एकदम से मदहोश हो गई उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे जानबूझकर सूरज ने अपनी उंगली को उसके ब्लाउज में घुसाने की कोशिश किया हो,,, वह अंदर ही अंदर प्रसन्न होने लगी लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं था तेल की चिकनाहट पाकर सूरज की उंगली अपने आप फिसल कर ब्लाउज में सरक गई थी,,,, लेकिन अनजाने में हुए इस हरकत से सूरज को भी बहुत अच्छा महसूस हो रहा था और उसकी हरकत पर मुखिया की बीवी की तरफ से कोई प्रतिक्रिया होता ना देखकर सूरज की हिम्मत बढ़ने लगी थी और वह मालिश करते हुए अपनी उंगली को रह रहा कर मुखिया की बीवी के ब्लाउज में प्रवेश करा दे रहा था,, , सूरज की हरकत पर मुखिया की बीवी का दिल जोरो से धड़क रहा था उम्मीद की किरण उसे नजर आ रही थी उसे लग रहा था कि आगे का काम सूरज को बताना नहीं पड़ेगा वह खुद ही कर लेगा लेकिन कुछ देर तक सूरज की तरफ से इसी तरह की हरकत होती रही लेकिन इससे आगे वह बढ़ नहीं पा रहा था,,, इसलिए मुखिया की बीवी को लगने लगा कि उसे ही कुछ करना होगा वरना रात यूं ही मालिश में ही गुजर जाएगी,,,।

रात पूरी तरह से गहरा चुकी थी,,, एक अजीब सा सन्नाटा पूरे वातावरण में घुला हुआ था,,, रह रहकर कुत्तों के भौंकने की आवाज आती थी और झींगुर के शोर से वातावरण थोड़ा और भी ज्यादा डरावना हो जाता था लेकिन इन सब के बावजूद भी घनघोर रात में आम के बगीचे में बस्ती से दूर मुखिया की बीवी और सूरज एक दूसरे के संगत में आनंद प्रमोद में डूबे हुए थे इसलिए बाहर के वातावरण से उन दोनों को कुछ भी लेना-देना नहीं था,,,, मुखिया की बीवी जानती थी कि अब दूसरे वस्त्र को उतारने का समय आ गया है,,,, इसलिए वह बोली,.।

सूरज थोड़ा ऊपर भी दर्द कर रहा है,,,, ऊपर भी थोड़ी मालिश कर देता तो आराम मिल जाता,,,।
(इतना सुनकर सूरज के हाथ वहीं के वहीं रुक गए वह कुछ पल खामोश रहने के बाद बोला,,)

लेकिन मालकिन ब्लाउज में,,,,, मालिश कैसे होगी,,,
(सूरज थोड़ा रुक रुक कर बोला वैसे भी एक औरत के सामने ब्लाउज शब्द बोलते हुए उसके लंड की अकड़ बढ़ गई थी और उसके मुंह से इतना सुनकर मुखिया की बीवी मन ही मन प्रसन्न हो रही थी और वह बोली).

अरे हां मैं जानती हूं इस तरह से मालिश नहीं हो पाएगी इसके लिए मुझे ब्लाउज को उतारना होगा,,,।
(मुखिया की बीवी के मुंह से इतना सुनते ही ,,, सूरज का दिमाग एकदम सन्न हो गया,,, पहली बार हो किसी औरत के मुंह से अपने ब्लाउस उतारने की बात को सुन रहा था,,, इसलिए उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी थी ,, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह सच में मुखिया की बीवी के मुंह से ब्लाउज उतारने वाली बात सुना था या उसके कान बज रहे थे इसलिए अपने मन की तसल्ली के लिए वह बोला,,,)

क्या सच में उतारना पड़ेगा मालकिन,, !

हां रे सच में उतारना पड़ेगा क्या बिना उतारे मालिश कर पाएगा तु ,


नहीं ऐसे तो बिल्कुल भी मालिश नहीं हो पाएगी,,,

हां तो इसीलिए तो कह रही हूं कि ब्लाउज उतारना पड़ेगा,,, तेरे हाथों में तो जादू है,,,, रुक मैं अपना ब्लाउज उतार देती हूं,,,,,,,(इतना कहने के साथ ही मुखिया की बीवी धीरे से चारपाई पर उठकर बैठ गई उसका मुंह दूसरी तरफ था वह जानबूझकर सूरज की तरफ पी५ किए हुए बैठी थी क्योंकि वह सूरज के तन-बदन में और ज्यादा आग लगाना चाहती थी,,,, सूरज ठीक उसके पीछे चारपाई की पाटी पर बैठा हुआ था,,, और मुखिया की बीवी की हर क्रियाकलाप को देख रहा था,, ,। वह मन ही मन बहुत प्रसन्न हो रहा था क्योंकि धीरे-धीरे मुखिया की बीवी अपने बदन पर से एक-एक वस्त्र उतरती जा रही थी साड़ी के बाद अब उसके ब्लाउज की बारी थी और ब्लाउज के उतरते ही सूरज जैसा जवान लड़का इतना तो जानता ही था कि ब्लाउज के अंदर औरतें अपने कौन से अंग को छुपा कर रखती हैं और ब्लाउज के उतरते ही उसका खूबसूरत अंग उजागर होने वाला था जिसे देखने के लिए सूरज का मन ललाईत हुआ जा रहा था,,, और दूसरी तरफ मुखिया की बीवी के भी तन-बदन में आग लग रहा था वह जानती थी कि सूरज के सामने वह धीरे-धीरे करके अपने सारे वस्त्र उतार कर एकदम नंगी हो जाएगी और एक खूबसूरत जवान औरत को आधी रात के वक्त कोई भी मर्द है संपूर्ण रूप से नंगी देखने के बाद अपने आप पर काबू नहीं कर पाएगा और यही सोचकर मुखिया की बीवी के तन बदन में भी हलचल मची हुई थी वैसे तो वह न जाने कितनी मर्दों के सामने अपने वस्त्र उतार कर नंगी हो चुकी थी लेकिन आज सूरज के सामने अपनी वस्तु उतारने में उसे कुछ ज्यादा ही मजा और आनंद की प्राप्ति हो रही थी,,,,।

रात का सन्नाटा झींगुर के आवाज और कुत्तों के भोगने की आवाज से थोड़ा बहुत भंग हो रहा था लेकिन इन सब की परवाह ना तो मुखिया की बीवी को था और ना ही सूरज को और ना ही दोनों की आंखों में थकान और नींद नजर आ रही थी दोनों की आंखों से नींद कोसों दूर जा चुकी थी आज की रात दोनों जाग कर ही बिताने वाले थे,,,,

मुखिया की बीवी चारपाई पर उठ कर बैठ गई थी उसकी पीठ सूरज की तरफ थी लालटेन की रोशनी पूरे झोपड़ी में अपना प्रकाश फैला रही थी,,,। मुखिया की बीवी अपने दोनों हाथों की नाजुक उंगलियों को हरकत देते हुए अपने ब्लाउज का बटन खोलने लगी और तिरछी नजर से सूरज की तरफ भी देख रही थी कि सूरज कहां देख रहा है और इस बात से उसका मन और ज्यादा प्रसन्न हो गया क्योंकि सूरज उसकी तरफ ही ललचाई आंखों से देख रहा था ,, धीरे-धीरे मुखिया की बीवी अपने ब्लाउज के ऊपर वाले बटन को खोल दी और दूसरे बटन को खोलने शुरू कर दी और दूसरे बटन को खोलते हुए वह सूरज से बोली,,,।

अच्छा सूरज यह बात कभी किसी औरत ने तेरे सामने इस तरह से अपने कपड़े उतारी है,,,(खेली खाई मुखिया की बीवी अपने इस सवाल से सूरज के चरित्र के बारे में जानना चाहती थी वह यह देखना चाहती थी कि सूरज वाकई में एकदम सीधा-साधा लड़का है या वह पहले भी औरतों की संगत में आ चुका है जिसका जवाब इस सवाल से उसे मिल जाने वाला था और मुखिया की बीवी की यह बात सुनकर सूरज बोला,,,)

नननन,,, नहीं मालकिन ऐसा कभी नहीं होगा कभी किसी औरत ने मेरी आंखों के सामने इस तरह से कपड़े नहीं उतारे हैं जैसा कि आप उतार रही हैं,,,,।
(सूरज का जवाब सुनकर मुखिया की बीवी को संतुष्टि हुई और मन ही मन प्रसन्न होने लगी और उसकी बात सुनकर वह अपना दूसरा बटन खोल चुकी थी और तीसरे बटन को खोलते हुए वह बोली,,,,)

देख सूरज तु अच्छा लड़का है,,, मुझे तेरे पर पूरा भरोसा है इसलिए तेरे सामने अपने कपड़े उतार रही हूं लेकिन तू यह बात बाहर किसी से भी मत बताना वरना तू ही मुश्किल में पड़ जाएगा,,,(इतना कहते हुए वह अपने ब्लाउज के सारे बटन खोल चुकी थी उसके ब्लाउज के दोनों पार्ट एकदम से अलग हो चुके थे और पीछे बैठा सूरज यह सब देख रहा था भले ही उसे मुखिया की बीवी की चूची इस समय नजर ना आती हो लेकिन इस समय उसे पूरा अहसास हो रहा था की मुखिया की बीवी ने अपने ब्लाउज के सारे बटन खोल चुकी थी और उसकी बात सुनकर वह बोला,,,)


बिल्कुल भी नहीं मालकिन भला मैं क्यों दूसरों को यह सब बताने लगा वैसे भी मैं यहां आम की रखवाली करने आया हूं मेरी मां को यह सब पता चलेगा तो मुझे ही भला बुरा कहेंगी इसलिए तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो यह सब मैं किसी से नहीं कहूंगा,,,,

(इतना सुनते ही मुखिया की बीवी के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव नजर आने लगे और वह अपने दोनों हाथों को पीछे की तरफ ले जाकर अपने ब्लाउस को दोनों हाथों से उतारने के लिए सूरज से बोली,,,)

अच्छी बात है ले जरा मेरा ब्लाउज पीछे से खींचना तो,,,,(इतना सुनते ही सूरज का दिल जोरो से धड़कने लगा उसकी हालत खराब होने लगी क्योंकि मुखिया की बीवी सीधे-सीधे उससे अपने ब्लाउज को उतरवा रही थी,,,।)
 
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Motaland2468

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मुखिया की बीवी धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए सूरज को अपनी जवानी के जाल में पूरी तरह से फंसा रही थी,,, घनघोर रात में मुखिया की बीवी सूरज को लेकर अपने आम वाले बगीचे पर बगीचे की रखवाली करने के बहाने पहुंच चुकी थी और उसे झोपड़ी में मालिश के बहाने अपने वस्त्र उतारना शुरू कर दी थी मुखिया की बीवी इस बात को अच्छी तरह से जानती थी कि दुनिया का कोई मर्द औरत के उत्तेजक बदन को देखकर मुंह नहीं मोडता,,, बल्कि खूबसूरत औरत के मादक रूप को देखकर वह उसका गुलाम बन जाता है और यही सूरज के साथ भी हो रहा था धीरे-धीरे सूरज मुखिया की बीवी के हर एक बात को मानते हुए आज उसके बेहद करीब पहुंच गया था,,,, सूरज को यह नहीं मालूम था कि आज की रात क्या होने वाला है लेकिन इतना जरुर जानता था कि मजा बहुत आने वाला है जिसकी शुरुआत हो चुकी थी,,।

मुखिया की बीवी अपने साड़ी के पल्लू को अपने कंधे पर से पकड़ कर नीचे गिरा दी थी जिसकी वजह से उसकी भारी भरकम चूचियां ब्लाउज में कैद एकदम से उजागर हो गई थी,, जिसे देखते ही सूरज की आंखें फटी की फटी रह गई थी सूरज की आंखों के सामने मुखिया की बीवी की खरबूजे जैसी चूचियां कबूतर की तरह उसके ब्लाउज की कैद में फड़फड़ा रही थी ऐसा लग रहा था कि जैसे उसकी चूचियां खुद ब्लाउज फाड़कर बाहर आने को उतारू हो चुकी है,,,, सूरज की तो सांसे ऊपर नीचे होने लगी क्योंकि मुखिया की बीवी की चूची हो कि बीच की पतली तरह एकदम साफ नजर आ रही थी और बहुत ही ऊपर और गहरी लकीर छोड़ रही थी,,,। सूरज आंख फाड़े मुखिया की बीवी की छातियो की तरफ देख रहा था और यह देखकर मुखिया की बीवी मन ही मन प्रसन्न हो रही थी जवानी की पहली सीढ़ी सफलतापूर्वक मुखिया की बीवी ने सूरज को पार करा दी थी,,,, मुखिया की बीवी अच्छी तरह से जानती थी कि जब सूरज का यह हाल सिर्फ ब्लाउज के ऊपर से देखने से है अगर वह ब्लाउज उतार कर अपनी नंगी चूचियां दिखाई की तब सूरज का क्या हाल होगा यह सोचकर वह मन ही मन प्रसन्न हो रही थी,,, ।

रुक जरा मैं साड़ी उतार दूं तब तू आराम से मालिश कर सकेगा नहीं तो मालिश करने में भी दिक्कत आएगी,,,,,(साड़ी को अपनी कमर से खोलते हुए मुखिया की बीवी बोली और उसकी यह बात सुनकर सूरज कुछ बोल नहीं पाया बस वह हैरान होकर मुखिया की बीवी की तरफ देखता रह गया और मुखिया की बीवी उसकी आंखों के सामने ही अपने वस्त्र को उतार रही थी अपनी साड़ी को अपने कमर से खोलकर उसे धीरे-धीरे अपनी कमर से अलग कर रही थी यह देखकर तो सूरज का तंबू एकदम बंबू बन चुका था,,, वह पसीने से तरबतर होने लगा था,,,.।,,, सूरज के सामने अपने वस्त्र उतारने में मुखिया की बीवी के भी तन बदन में हलचल हो रही थी खास करके जब-जब उसकी नजर सूरज के तंबू की तरफ जाती तब तब उसकी दोनों टांगों की पतली दरार में हलचल सी होने लगती थी उसकी बुर कुल बुलाने लगती थी,,, क्योंकि उसकी पारखी नजरे अच्छी तरह से जानती थी कि सूरज के पजामे में कौन सा हथियार छुपा हुआ है और वैसे भी वह पेशाब करते हुए उसके लंड के दर्शन को कर चुकी थी और जिस तरह के हालात उसकी दोनों टांगों के बीच नजर आ रहे थे उसे देखते हुए वह अंदर ही अंदर थोड़ा घबरा भी रही थी,,,। क्योंकि नजर भर में ही उसने सूरज के लंड की मोटाई और लंबाई को अपनी आंखों से ही नाप ली थी उसके लंड कैसे पानी को देखते ही उसकी आंखों के सामने आलू बुखारा नजर आ रहा था जो कि उसके लंड का सुपाड़ा एकदम आलू बुखारे की तरह था,,, और यही सोचकर वह घबरा रही थी कि सूरज का आलू बुखारा जैसा सुपाड़ा उसकी गुलाबी बुर में कैसे घुसेगा,,, आज तक जितने मर्दों के साथ उसने संबंध बनाई थी यह सवाल उसके मन में कभी नहीं उभरा था लेकिन सूरज के मामले में कुछ अलग ही हलचल उसके मन में हो रही थी और इस हाल-चाल को लेकर वह‌ बेहद उत्सुक भी थी,,,, वह जल्द से जल्द सूरज के संड के मोटे सुपाड़े को अपनी गुलाबी छेद पर महसूस करना चाहती थी वह देखना चाहती थी कि एक जवान मर्द का मोटा तगड़ा लंड जब एक औरत की बुर पर स्पर्श होता है तो औरत को कैसा महसूस होता है हालांकि इस अनुभव से वह कई बार गुजर चुकी थी लेकिन आज नए अनुभव की तलाश उसे थी,,,, जिसके लिए वह धीरे-धीरे करके अपने कमर पर से अपनी साड़ी को खोलकर अपने बदन से अलग कर चुकी थी और उसे नीचे जमीन पर गिरा दी थी सूरज की आंखों के सामने अब वह केवल पेटिकोट और ब्लाउज में थी जो की पीली रोशनी में सबको साफ नजर आ रहा था सूरज हक्का-बक्का होकर मुखिया की बीवी की मदहोश कर देने वाली जवानी को अपनी आंखों को देख रहा था या यूं कह लो की मुखिया की बीवी की मदहोश जवानी का रस वह अपनी आंखों से पी रहा था,,,।

एक तरह से सूरज इस खेल में पूरी तरह से अनाड़ी ही था क्योंकि अगर उसकी जगह कोई और अनुभव से भरा हुआ जवान मर्द होता तो मुखिया की बीवी को अपने हाथों से अपने वस्त्र उतारने की जरूरत ही नहीं पड़ती वह खुद अपने हाथों से अब तक तो मुखिया की बीवी के वस्त्र को उतार कर उसे संपूर्णता नग्न कर चुका होता,,, लेकिन इसमें सूरज का भी कोई दोस्त नहीं था उसमें अनुभव की कमी थी वह इस खेल में पूरी तरह से नया था इस खेल के नियम के बारे में उसे बिल्कुल भी ज्ञान नहीं था वह नहीं जानता था कि औरत रूपी किताबों के पन्नों को किस तरह से खोला जाता है किस तरह से उसके अंगों के शब्दों को पढ़ा जाता है वह तो नादान की तरह बस आंखें फाड़े देखे जा रहा था और इतने से ही उसे अत्यधिक उत्तेजना का अनुभव हो रहा था उसकी उत्तेजना इतनी चरम पर थी कि उसे लग रहा था कि उसका लंड फट जाएगा और उसे इस बात का डर था कि कहीं उसका लंड पजामा फाड़ कर बाहर न जाए,,,।

मुखिया की बीवी साड़ी को उतारकर जमीन पर फेंकने के बाद सूरज की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए चारपाई पर बैठ गई उसके पैर नीचे जमीन पर थे और वह सूरज की तरफ देखकर मुस्कुरा रही थी सूरज के होठों से एक भी शब्द फुट नहीं रहे थे ऐसा लग रहा था कि जैसे वह कोई मूर्ति बन गया हो वह मुस्कुराते हुए बोली,,,।

देख सूरज,,, आज मजबूरी वश किसी जवान लड़के के सामने अपने कपड़े उतार रही हूं तुझ पर भरोसा करके लेकिन इस बात की खबर अपने मालिक को बिल्कुल भी नहीं होने देना नहीं तो मेरी सामत आ जाएगी और साथ में तेरी भी,,, मैं क्या कह रही हूं समझ रहा है ना,,,, इस बात को राज ही रखना है कि आज की रात झोपड़ी में क्या हो रहा है,,,।

बिल्कुल मालकिन मैं इस बात को किसी से नहीं कहूंगा मैं अच्छी तरह से जानता हूं एक औरत की इज्जत क्या होती है और वैसे भी कोई औरत अनजान मर्द के सामने इस तरह से कपड़े नहीं उतरती वह तो तुम्हारी मजबूरी है मैं सब समझता हूं आज की रात जो कुछ भी हो रहा है वह राज ही रहेगा तुम निशचिंत रहो,,,,
(सूरज का जवाब सुनकर मुखिया की बीवी मुस्कुराने लगी और मुस्कुराते हुए बोली,,,)

तू बहुत समझदार है इसीलिए तो तुझ पर भरोसा कर रही हूं,,,, अब अच्छे से मालिश करना ताकि मेरा दर्द एकदम से दूर हो जाए,,,।

तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो नमकीन ऐसी मालिश करूंगा कि तुम खुश हो जाओगी,,,।

ठीक है,,,(इतना कहकर मुस्कुराते हुए मुखिया की बीवी चारपाई पर पेट के बल लेट गई और पेट के बल लेटने से जो नजर सूरज की आंखों के सामने नजर आ रहा था उसे देखकर सूरज के तन बदन में आग लगने लगी उसके होश उड़ाने लगे और मदहोशी उसके नसों में घुलने लगी,,,, पेट के बल लेटने की वजह से,,, मुखिया की बीवी की भारी भरकम गांड और भी ज्यादा उभरी हुई नजर आने लगी क्योंकि उसने साड़ी उतारती थी और पेटिकोट का पतला कपड़ा उसके कसे हुए नितंबों से एकदम चिपक सा गया था,,ं और उसकी गांड की रूपरेखा एकदम साफ तौर पर नजर आ रही थी जिसे देखकर सूरज के तन बदन में आग लग रही थी उसके पीठ की नीचे कमर के इर्द-गिर्द जो हल्का सा दोनों तरफ गड्ढा पड़ा हुआ था उसे देखकर तो सूरज की जवानी मुखिया की बीवी की जवानी के आगे घुटने टेक रही थी सूरज मदहोश होकर मुखिया की बीवी के खूबसूरत बदन की रूपरेखा को देख रहा था और मुखिया की बीवी नजर को तिरछी करके सूरज की तरफ देखकर मन ही मन प्रसन्न हो रही थी क्योंकि वह इतना तो समझ ही गई थी कि ‌,, सूरज उसकी गांड देखकर ही मंत्र मुग्ध हुआ जा रहा है,,,, सूरज को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें और कुछ देर तक इसी तरह से खड़े होकर केवल मुखिया की बीवी की जवानी को रह गया वह तो यह भी भूल गया था की मदहोशी के आलम में उत्तेजित अवस्था में उसका लंड पूरी तरह से अपनी औकात में आकर खड़ा था और पजामे में तंबू बनाया हुआ था,,,,।

अरे खड़ा होकर देखता ही रहेगा या मालिश भी करेगा,,,(मुखिया की बीवी की आवाज से सूरज की तंद्रा भंग हुई और एकदम से हड़बड़ा गयाऔर बोला,,,)

जजजज,,,,जी मालकिन मै शीशी का ढक्कन खोल रहा था,,,,(और इतना कहने के साथ ही वहां जल्दी-जल्दी सीसी का ढक्कन खोलने लगा सीसी का ढक्कन खुलते ही वह,, हाथ में सरसों के तेल की सीसी लिए हुए ठीक उसके बगल में चारपाई के पाटी पर बैठ गया,,,,,, इससे पहले उसने कभी भी किसी औरत की मालिश नहीं किया था हां अपने पिताजी की मालिश जरूर किया था जब उनकी कमर दुखती थी लेकिन एक औरत के अंगों की मालिश करने की लालच को वह रोक नहीं पाया था इसलिए हामी भर दिया था लेकिन फिर भी अनुभव न होने के बावजूद भी अपने पिताजी की पीठ और कमर की मालिश का अनुभव उसे जरूर था,,,।

दोनों तरफ से उत्सुकता बढ़ती जा रही थी मुखिया की बीवी जल्द से जल्द सूरज के हाथों को अपनी चिकनी नंगी पीठ पर महसूस करना चाहती थी उसका बस चलता है तो इसी समय अपने सारे वस्त्र उतार कर नंगी होकर सूरज से मालिश करवाती ,,,लेकिन धीरे-धीरे आगे बढ़ने में उसे भी मजा आ रहा था,,,
सूरज चारपाई की पाटी पर बैठा हुआ था,,, उसकी नज़रें मुखिया की बीवी के गोलाकार उभरे हुए नितंबों और उसकी चिकनी कमर पर ही टिकी हुई थी,,,। सूरज सरसों के तेल की सीसी में से तेल की धार को अपनी हथेली में गिराने लगा और फिर उसे सीसी को चारपाई के नीचे रख कर धीरे से अपनी हथेली को मुखिया की बीवी की कमर पर रख दिया और जैसे ही सूरज ने अपनी हथेली को मुखिया की बीवी की चिकनी कमर पर रखा मुखिया की बीवी एकदम से मदहोश हो गई उसके चेहरे के भाव एकदम से बदल गए ऐसा लग रहा था कि जैसे पहली बार यह सब हो रहा है और सूरज भी एक खूबसूरत जवान औरत की चिकनी कमर पर अपनी हथेली रखते ही उसके नरम नरम चिकनी कमर का एहसास हथेली पर होते ही मदहोश होने लगा,,,,, और धीरे-धीरे वह अपनी हथेली को मुखिया की बीवी की कमर पर घुमाना शुरू कर दिया,,,, सूरज का यह पहला मौका था जब वह किसी जवान खूबसूरत औरत की कमर की मालिश कर रहा था और पल भर में ही वह आनंद के परम सागर में गोते लगाने लगा उसे बहुत अच्छा लग रहा था उसकी नज़रें लगातार उसके नितंबों पर टिकी हुई थी वह मनी मनी यही चाह रहा था की मुखिया की बीवी अपनी पेटीकोट भी उतार देती तो उसकी नंगी गांड़ की मालिश करने में और ज्यादा मजा आता,, कुछ ही देर में सूरज की दोनों हथेलियां सरसों के तेल की चिकनाहट और मुखिया की बीवी की चिकनी कमर की चिकनाहट पाकर फिसलने लगी,,,, देखते ही देखते सूरज पेटिकोट के किनारे और ऊपर ब्लाउज के किनारे के बीचों बीच चिकनी पीठ पर तेल की मालिश करना शुरू कर दिया था और उसकी चिकनी पीठ सरसों के तेल की वजह से लालटेन की पीली रोशनी में एकदम चमक रही थी,,,, मुखिया की बीवी को सुखद अनुभव हो रहा था,,,ं एक तरफ उसे मालिश की वजह से आराम की अनुभूति हो रही थी वहीं दूसरी तरफ सूरज की हथेली से मदहोशी का एहसास भी हो रहा था जिसके चलते उसकी बुर से नमकीन रस टपक रहा था,,,। कुछ देर मालिश करने के बाद मालिश करते हुए सूरज बोला,,,‌

अब कैसा लग रहा है मालकिन,,,

बहुत मजा आ रहा है सूरज मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा है कि तू मालिश करने में इतना माहिर है इतना तो औरतें भी अच्छी तरह से मालिश नहीं कर पाती तुझे मालूम है गांव में एक औरत है जिसे मालिश करने के लिए मैं बुलाती हूं वह अक्सर महीने में एक दो बार मेरी मालिश कर देती है लेकिन जितना अच्छा तू कर रहा है उतना वह नहीं कर पाती,,,,।

यह तो तुम्हारा बड़प्पन है मालकिन वरना में मालिश करने में माहिर तो नहीं हूं लेकिन अच्छी खासी कर लेता हूं,,,,(इतना कहने के साथ ही सरसों के तेल की चिकनाहट पाकर सूरज की उंगली एकदम से मुखिया की बीवी के ब्लाउज के किनारी में हल्के से प्रवेश कर गई,,,, और इसका एहसास मुखिया की बीवी को होते ही वह एकदम से मदहोश हो गई उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे जानबूझकर सूरज ने अपनी उंगली को उसके ब्लाउज में घुसाने की कोशिश किया हो,,, वह अंदर ही अंदर प्रसन्न होने लगी लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं था तेल की चिकनाहट पाकर सूरज की उंगली अपने आप फिसल कर ब्लाउज में सरक गई थी,,,, लेकिन अनजाने में हुए इस हरकत से सूरज को भी बहुत अच्छा महसूस हो रहा था और उसकी हरकत पर मुखिया की बीवी की तरफ से कोई प्रतिक्रिया होता ना देखकर सूरज की हिम्मत बढ़ने लगी थी और वह मालिश करते हुए अपनी उंगली को रह रहा कर मुखिया की बीवी के ब्लाउज में प्रवेश करा दे रहा था,, , सूरज की हरकत पर मुखिया की बीवी का दिल जोरो से धड़क रहा था उम्मीद की किरण उसे नजर आ रही थी उसे लग रहा था कि आगे का काम सूरज को बताना नहीं पड़ेगा वह खुद ही कर लेगा लेकिन कुछ देर तक सूरज की तरफ से इसी तरह की हरकत होती रही लेकिन इससे आगे वह बढ़ नहीं पा रहा था,,, इसलिए मुखिया की बीवी को लगने लगा कि उसे ही कुछ करना होगा वरना रात यूं ही मालिश में ही गुजर जाएगी,,,।

रात पूरी तरह से गहरा चुकी थी,,, एक अजीब सा सन्नाटा पूरे वातावरण में घुला हुआ था,,, रह रहकर कुत्तों के भौंकने की आवाज आती थी और झींगुर के शोर से वातावरण थोड़ा और भी ज्यादा डरावना हो जाता था लेकिन इन सब के बावजूद भी घनघोर रात में आम के बगीचे में बस्ती से दूर मुखिया की बीवी और सूरज एक दूसरे के संगत में आनंद प्रमोद में डूबे हुए थे इसलिए बाहर के वातावरण से उन दोनों को कुछ भी लेना-देना नहीं था,,,, मुखिया की बीवी जानती थी कि अब दूसरे वस्त्र को उतारने का समय आ गया है,,,, इसलिए वह बोली,.।

सूरज थोड़ा ऊपर भी दर्द कर रहा है,,,, ऊपर भी थोड़ी मालिश कर देता तो आराम मिल जाता,,,।
(इतना सुनकर सूरज के हाथ वहीं के वहीं रुक गए वह कुछ पल खामोश रहने के बाद बोला,,)

लेकिन मालकिन ब्लाउज में,,,,, मालिश कैसे होगी,,,
(सूरज थोड़ा रुक रुक कर बोला वैसे भी एक औरत के सामने ब्लाउज शब्द बोलते हुए उसके लंड की अकड़ बढ़ गई थी और उसके मुंह से इतना सुनकर मुखिया की बीवी मन ही मन प्रसन्न हो रही थी और वह बोली).

अरे हां मैं जानती हूं इस तरह से मालिश नहीं हो पाएगी इसके लिए मुझे ब्लाउज को उतारना होगा,,,।
(मुखिया की बीवी के मुंह से इतना सुनते ही ,,, सूरज का दिमाग एकदम सन्न हो गया,,, पहली बार हो किसी औरत के मुंह से अपने ब्लाउस उतारने की बात को सुन रहा था,,, इसलिए उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी थी ,, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह सच में मुखिया की बीवी के मुंह से ब्लाउज उतारने वाली बात सुना था या उसके कान बज रहे थे इसलिए अपने मन की तसल्ली के लिए वह बोला,,,)

क्या सच में उतारना पड़ेगा मालकिन,, !

हां रे सच में उतारना पड़ेगा क्या बिना उतारे मालिश कर पाएगा तु ,


नहीं ऐसे तो बिल्कुल भी मालिश नहीं हो पाएगी,,,

हां तो इसीलिए तो कह रही हूं कि ब्लाउज उतारना पड़ेगा,,, तेरे हाथों में तो जादू है,,,, रुक मैं अपना ब्लाउज उतार देती हूं,,,,,,,(इतना कहने के साथ ही मुखिया की बीवी धीरे से चारपाई पर उठकर बैठ गई उसका मुंह दूसरी तरफ था वह जानबूझकर सूरज की तरफ पी५ किए हुए बैठी थी क्योंकि वह सूरज के तन-बदन में और ज्यादा आग लगाना चाहती थी,,,, सूरज ठीक उसके पीछे चारपाई की पाटी पर बैठा हुआ था,,, और मुखिया की बीवी की हर क्रियाकलाप को देख रहा था,, ,। वह मन ही मन बहुत प्रसन्न हो रहा था क्योंकि धीरे-धीरे मुखिया की बीवी अपने बदन पर से एक-एक वस्त्र उतरती जा रही थी साड़ी के बाद अब उसके ब्लाउज की बारी थी और ब्लाउज के उतरते ही सूरज जैसा जवान लड़का इतना तो जानता ही था कि ब्लाउज के अंदर औरतें अपने कौन से अंग को छुपा कर रखती हैं और ब्लाउज के उतरते ही उसका खूबसूरत अंग उजागर होने वाला था जिसे देखने के लिए सूरज का मन ललाईत हुआ जा रहा था,,, और दूसरी तरफ मुखिया की बीवी के भी तन-बदन में आग लग रहा था वह जानती थी कि सूरज के सामने वह धीरे-धीरे करके अपने सारे वस्त्र उतार कर एकदम नंगी हो जाएगी और एक खूबसूरत जवान औरत को आधी रात के वक्त कोई भी मर्द है संपूर्ण रूप से नंगी देखने के बाद अपने आप पर काबू नहीं कर पाएगा और यही सोचकर मुखिया की बीवी के तन बदन में भी हलचल मची हुई थी वैसे तो वह न जाने कितनी मर्दों के सामने अपने वस्त्र उतार कर नंगी हो चुकी थी लेकिन आज सूरज के सामने अपनी वस्तु उतारने में उसे कुछ ज्यादा ही मजा और आनंद की प्राप्ति हो रही थी,,,,।

रात का सन्नाटा झींगुर के आवाज और कुत्तों के भोगने की आवाज से थोड़ा बहुत भंग हो रहा था लेकिन इन सब की परवाह ना तो मुखिया की बीवी को था और ना ही सूरज को और ना ही दोनों की आंखों में थकान और नींद नजर आ रही थी दोनों की आंखों से नींद कोसों दूर जा चुकी थी आज की रात दोनों जाग कर ही बिताने वाले थे,,,,

मुखिया की बीवी चारपाई पर उठ कर बैठ गई थी उसकी पीठ सूरज की तरफ थी लालटेन की रोशनी पूरे झोपड़ी में अपना प्रकाश फैला रही थी,,,। मुखिया की बीवी अपने दोनों हाथों की नाजुक उंगलियों को हरकत देते हुए अपने ब्लाउज का बटन खोलने लगी और तिरछी नजर से सूरज की तरफ भी देख रही थी कि सूरज कहां देख रहा है और इस बात से उसका मन और ज्यादा प्रसन्न हो गया क्योंकि सूरज उसकी तरफ ही ललचाई आंखों से देख रहा था ,, धीरे-धीरे मुखिया की बीवी अपने ब्लाउज के ऊपर वाले बटन को खोल दी और दूसरे बटन को खोलने शुरू कर दी और दूसरे बटन को खोलते हुए वह सूरज से बोली,,,।

अच्छा सूरज यह बात कभी किसी औरत ने तेरे सामने इस तरह से अपने कपड़े उतारी है,,,(खेली खाई मुखिया की बीवी अपने इस सवाल से सूरज के चरित्र के बारे में जानना चाहती थी वह यह देखना चाहती थी कि सूरज वाकई में एकदम सीधा-साधा लड़का है या वह पहले भी औरतों की संगत में आ चुका है जिसका जवाब इस सवाल से उसे मिल जाने वाला था और मुखिया की बीवी की यह बात सुनकर सूरज बोला,,,)

नननन,,, नहीं मालकिन ऐसा कभी नहीं होगा कभी किसी औरत ने मेरी आंखों के सामने इस तरह से कपड़े नहीं उतारे हैं जैसा कि आप उतार रही हैं,,,,।
(सूरज का जवाब सुनकर मुखिया की बीवी को संतुष्टि हुई और मन ही मन प्रसन्न होने लगी और उसकी बात सुनकर वह अपना दूसरा बटन खोल चुकी थी और तीसरे बटन को खोलते हुए वह बोली,,,,)

देख सूरज तु अच्छा लड़का है,,, मुझे तेरे पर पूरा भरोसा है इसलिए तेरे सामने अपने कपड़े उतार रही हूं लेकिन तू यह बात बाहर किसी से भी मत बताना वरना तू ही मुश्किल में पड़ जाएगा,,,(इतना कहते हुए वह अपने ब्लाउज के सारे बटन खोल चुकी थी उसके ब्लाउज के दोनों पार्ट एकदम से अलग हो चुके थे और पीछे बैठा सूरज यह सब देख रहा था भले ही उसे मुखिया की बीवी की चूची इस समय नजर ना आती हो लेकिन इस समय उसे पूरा अहसास हो रहा था की मुखिया की बीवी ने अपने ब्लाउज के सारे बटन खोल चुकी थी और उसकी बात सुनकर वह बोला,,,)


बिल्कुल भी नहीं मालकिन भला मैं क्यों दूसरों को यह सब बताने लगा वैसे भी मैं यहां आम की रखवाली करने आया हूं मेरी मां को यह सब पता चलेगा तो मुझे ही भला बुरा कहेंगी इसलिए तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो यह सब मैं किसी से नहीं कहूंगा,,,,

(इतना सुनते ही मुखिया की बीवी के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव नजर आने लगे और वह अपने दोनों हाथों को पीछे की तरफ ले जाकर अपने ब्लाउस को दोनों हाथों से उतारने के लिए सूरज से बोली,,,)

अच्छी बात है ले जरा मेरा ब्लाउज पीछे से खींचना तो,,,,(इतना सुनते ही सूरज का दिल जोरो से धड़कने लगा उसकी हालत खराब होने लगी क्योंकि मुखिया की बीवी सीधे-सीधे उससे अपने ब्लाउज को उतरवा रही थी,,,।)
Jhakaas
 

Ajju Landwalia

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मुखिया की बीवी धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए सूरज को अपनी जवानी के जाल में पूरी तरह से फंसा रही थी,,, घनघोर रात में मुखिया की बीवी सूरज को लेकर अपने आम वाले बगीचे पर बगीचे की रखवाली करने के बहाने पहुंच चुकी थी और उसे झोपड़ी में मालिश के बहाने अपने वस्त्र उतारना शुरू कर दी थी मुखिया की बीवी इस बात को अच्छी तरह से जानती थी कि दुनिया का कोई मर्द औरत के उत्तेजक बदन को देखकर मुंह नहीं मोडता,,, बल्कि खूबसूरत औरत के मादक रूप को देखकर वह उसका गुलाम बन जाता है और यही सूरज के साथ भी हो रहा था धीरे-धीरे सूरज मुखिया की बीवी के हर एक बात को मानते हुए आज उसके बेहद करीब पहुंच गया था,,,, सूरज को यह नहीं मालूम था कि आज की रात क्या होने वाला है लेकिन इतना जरुर जानता था कि मजा बहुत आने वाला है जिसकी शुरुआत हो चुकी थी,,।

मुखिया की बीवी अपने साड़ी के पल्लू को अपने कंधे पर से पकड़ कर नीचे गिरा दी थी जिसकी वजह से उसकी भारी भरकम चूचियां ब्लाउज में कैद एकदम से उजागर हो गई थी,, जिसे देखते ही सूरज की आंखें फटी की फटी रह गई थी सूरज की आंखों के सामने मुखिया की बीवी की खरबूजे जैसी चूचियां कबूतर की तरह उसके ब्लाउज की कैद में फड़फड़ा रही थी ऐसा लग रहा था कि जैसे उसकी चूचियां खुद ब्लाउज फाड़कर बाहर आने को उतारू हो चुकी है,,,, सूरज की तो सांसे ऊपर नीचे होने लगी क्योंकि मुखिया की बीवी की चूची हो कि बीच की पतली तरह एकदम साफ नजर आ रही थी और बहुत ही ऊपर और गहरी लकीर छोड़ रही थी,,,। सूरज आंख फाड़े मुखिया की बीवी की छातियो की तरफ देख रहा था और यह देखकर मुखिया की बीवी मन ही मन प्रसन्न हो रही थी जवानी की पहली सीढ़ी सफलतापूर्वक मुखिया की बीवी ने सूरज को पार करा दी थी,,,, मुखिया की बीवी अच्छी तरह से जानती थी कि जब सूरज का यह हाल सिर्फ ब्लाउज के ऊपर से देखने से है अगर वह ब्लाउज उतार कर अपनी नंगी चूचियां दिखाई की तब सूरज का क्या हाल होगा यह सोचकर वह मन ही मन प्रसन्न हो रही थी,,, ।

रुक जरा मैं साड़ी उतार दूं तब तू आराम से मालिश कर सकेगा नहीं तो मालिश करने में भी दिक्कत आएगी,,,,,(साड़ी को अपनी कमर से खोलते हुए मुखिया की बीवी बोली और उसकी यह बात सुनकर सूरज कुछ बोल नहीं पाया बस वह हैरान होकर मुखिया की बीवी की तरफ देखता रह गया और मुखिया की बीवी उसकी आंखों के सामने ही अपने वस्त्र को उतार रही थी अपनी साड़ी को अपने कमर से खोलकर उसे धीरे-धीरे अपनी कमर से अलग कर रही थी यह देखकर तो सूरज का तंबू एकदम बंबू बन चुका था,,, वह पसीने से तरबतर होने लगा था,,,.।,,, सूरज के सामने अपने वस्त्र उतारने में मुखिया की बीवी के भी तन बदन में हलचल हो रही थी खास करके जब-जब उसकी नजर सूरज के तंबू की तरफ जाती तब तब उसकी दोनों टांगों की पतली दरार में हलचल सी होने लगती थी उसकी बुर कुल बुलाने लगती थी,,, क्योंकि उसकी पारखी नजरे अच्छी तरह से जानती थी कि सूरज के पजामे में कौन सा हथियार छुपा हुआ है और वैसे भी वह पेशाब करते हुए उसके लंड के दर्शन को कर चुकी थी और जिस तरह के हालात उसकी दोनों टांगों के बीच नजर आ रहे थे उसे देखते हुए वह अंदर ही अंदर थोड़ा घबरा भी रही थी,,,। क्योंकि नजर भर में ही उसने सूरज के लंड की मोटाई और लंबाई को अपनी आंखों से ही नाप ली थी उसके लंड कैसे पानी को देखते ही उसकी आंखों के सामने आलू बुखारा नजर आ रहा था जो कि उसके लंड का सुपाड़ा एकदम आलू बुखारे की तरह था,,, और यही सोचकर वह घबरा रही थी कि सूरज का आलू बुखारा जैसा सुपाड़ा उसकी गुलाबी बुर में कैसे घुसेगा,,, आज तक जितने मर्दों के साथ उसने संबंध बनाई थी यह सवाल उसके मन में कभी नहीं उभरा था लेकिन सूरज के मामले में कुछ अलग ही हलचल उसके मन में हो रही थी और इस हाल-चाल को लेकर वह‌ बेहद उत्सुक भी थी,,,, वह जल्द से जल्द सूरज के संड के मोटे सुपाड़े को अपनी गुलाबी छेद पर महसूस करना चाहती थी वह देखना चाहती थी कि एक जवान मर्द का मोटा तगड़ा लंड जब एक औरत की बुर पर स्पर्श होता है तो औरत को कैसा महसूस होता है हालांकि इस अनुभव से वह कई बार गुजर चुकी थी लेकिन आज नए अनुभव की तलाश उसे थी,,,, जिसके लिए वह धीरे-धीरे करके अपने कमर पर से अपनी साड़ी को खोलकर अपने बदन से अलग कर चुकी थी और उसे नीचे जमीन पर गिरा दी थी सूरज की आंखों के सामने अब वह केवल पेटिकोट और ब्लाउज में थी जो की पीली रोशनी में सबको साफ नजर आ रहा था सूरज हक्का-बक्का होकर मुखिया की बीवी की मदहोश कर देने वाली जवानी को अपनी आंखों को देख रहा था या यूं कह लो की मुखिया की बीवी की मदहोश जवानी का रस वह अपनी आंखों से पी रहा था,,,।

एक तरह से सूरज इस खेल में पूरी तरह से अनाड़ी ही था क्योंकि अगर उसकी जगह कोई और अनुभव से भरा हुआ जवान मर्द होता तो मुखिया की बीवी को अपने हाथों से अपने वस्त्र उतारने की जरूरत ही नहीं पड़ती वह खुद अपने हाथों से अब तक तो मुखिया की बीवी के वस्त्र को उतार कर उसे संपूर्णता नग्न कर चुका होता,,, लेकिन इसमें सूरज का भी कोई दोस्त नहीं था उसमें अनुभव की कमी थी वह इस खेल में पूरी तरह से नया था इस खेल के नियम के बारे में उसे बिल्कुल भी ज्ञान नहीं था वह नहीं जानता था कि औरत रूपी किताबों के पन्नों को किस तरह से खोला जाता है किस तरह से उसके अंगों के शब्दों को पढ़ा जाता है वह तो नादान की तरह बस आंखें फाड़े देखे जा रहा था और इतने से ही उसे अत्यधिक उत्तेजना का अनुभव हो रहा था उसकी उत्तेजना इतनी चरम पर थी कि उसे लग रहा था कि उसका लंड फट जाएगा और उसे इस बात का डर था कि कहीं उसका लंड पजामा फाड़ कर बाहर न जाए,,,।

मुखिया की बीवी साड़ी को उतारकर जमीन पर फेंकने के बाद सूरज की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए चारपाई पर बैठ गई उसके पैर नीचे जमीन पर थे और वह सूरज की तरफ देखकर मुस्कुरा रही थी सूरज के होठों से एक भी शब्द फुट नहीं रहे थे ऐसा लग रहा था कि जैसे वह कोई मूर्ति बन गया हो वह मुस्कुराते हुए बोली,,,।

देख सूरज,,, आज मजबूरी वश किसी जवान लड़के के सामने अपने कपड़े उतार रही हूं तुझ पर भरोसा करके लेकिन इस बात की खबर अपने मालिक को बिल्कुल भी नहीं होने देना नहीं तो मेरी सामत आ जाएगी और साथ में तेरी भी,,, मैं क्या कह रही हूं समझ रहा है ना,,,, इस बात को राज ही रखना है कि आज की रात झोपड़ी में क्या हो रहा है,,,।

बिल्कुल मालकिन मैं इस बात को किसी से नहीं कहूंगा मैं अच्छी तरह से जानता हूं एक औरत की इज्जत क्या होती है और वैसे भी कोई औरत अनजान मर्द के सामने इस तरह से कपड़े नहीं उतरती वह तो तुम्हारी मजबूरी है मैं सब समझता हूं आज की रात जो कुछ भी हो रहा है वह राज ही रहेगा तुम निशचिंत रहो,,,,
(सूरज का जवाब सुनकर मुखिया की बीवी मुस्कुराने लगी और मुस्कुराते हुए बोली,,,)

तू बहुत समझदार है इसीलिए तो तुझ पर भरोसा कर रही हूं,,,, अब अच्छे से मालिश करना ताकि मेरा दर्द एकदम से दूर हो जाए,,,।

तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो नमकीन ऐसी मालिश करूंगा कि तुम खुश हो जाओगी,,,।

ठीक है,,,(इतना कहकर मुस्कुराते हुए मुखिया की बीवी चारपाई पर पेट के बल लेट गई और पेट के बल लेटने से जो नजर सूरज की आंखों के सामने नजर आ रहा था उसे देखकर सूरज के तन बदन में आग लगने लगी उसके होश उड़ाने लगे और मदहोशी उसके नसों में घुलने लगी,,,, पेट के बल लेटने की वजह से,,, मुखिया की बीवी की भारी भरकम गांड और भी ज्यादा उभरी हुई नजर आने लगी क्योंकि उसने साड़ी उतारती थी और पेटिकोट का पतला कपड़ा उसके कसे हुए नितंबों से एकदम चिपक सा गया था,,ं और उसकी गांड की रूपरेखा एकदम साफ तौर पर नजर आ रही थी जिसे देखकर सूरज के तन बदन में आग लग रही थी उसके पीठ की नीचे कमर के इर्द-गिर्द जो हल्का सा दोनों तरफ गड्ढा पड़ा हुआ था उसे देखकर तो सूरज की जवानी मुखिया की बीवी की जवानी के आगे घुटने टेक रही थी सूरज मदहोश होकर मुखिया की बीवी के खूबसूरत बदन की रूपरेखा को देख रहा था और मुखिया की बीवी नजर को तिरछी करके सूरज की तरफ देखकर मन ही मन प्रसन्न हो रही थी क्योंकि वह इतना तो समझ ही गई थी कि ‌,, सूरज उसकी गांड देखकर ही मंत्र मुग्ध हुआ जा रहा है,,,, सूरज को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें और कुछ देर तक इसी तरह से खड़े होकर केवल मुखिया की बीवी की जवानी को रह गया वह तो यह भी भूल गया था की मदहोशी के आलम में उत्तेजित अवस्था में उसका लंड पूरी तरह से अपनी औकात में आकर खड़ा था और पजामे में तंबू बनाया हुआ था,,,,।

अरे खड़ा होकर देखता ही रहेगा या मालिश भी करेगा,,,(मुखिया की बीवी की आवाज से सूरज की तंद्रा भंग हुई और एकदम से हड़बड़ा गयाऔर बोला,,,)

जजजज,,,,जी मालकिन मै शीशी का ढक्कन खोल रहा था,,,,(और इतना कहने के साथ ही वहां जल्दी-जल्दी सीसी का ढक्कन खोलने लगा सीसी का ढक्कन खुलते ही वह,, हाथ में सरसों के तेल की सीसी लिए हुए ठीक उसके बगल में चारपाई के पाटी पर बैठ गया,,,,,, इससे पहले उसने कभी भी किसी औरत की मालिश नहीं किया था हां अपने पिताजी की मालिश जरूर किया था जब उनकी कमर दुखती थी लेकिन एक औरत के अंगों की मालिश करने की लालच को वह रोक नहीं पाया था इसलिए हामी भर दिया था लेकिन फिर भी अनुभव न होने के बावजूद भी अपने पिताजी की पीठ और कमर की मालिश का अनुभव उसे जरूर था,,,।

दोनों तरफ से उत्सुकता बढ़ती जा रही थी मुखिया की बीवी जल्द से जल्द सूरज के हाथों को अपनी चिकनी नंगी पीठ पर महसूस करना चाहती थी उसका बस चलता है तो इसी समय अपने सारे वस्त्र उतार कर नंगी होकर सूरज से मालिश करवाती ,,,लेकिन धीरे-धीरे आगे बढ़ने में उसे भी मजा आ रहा था,,,
सूरज चारपाई की पाटी पर बैठा हुआ था,,, उसकी नज़रें मुखिया की बीवी के गोलाकार उभरे हुए नितंबों और उसकी चिकनी कमर पर ही टिकी हुई थी,,,। सूरज सरसों के तेल की सीसी में से तेल की धार को अपनी हथेली में गिराने लगा और फिर उसे सीसी को चारपाई के नीचे रख कर धीरे से अपनी हथेली को मुखिया की बीवी की कमर पर रख दिया और जैसे ही सूरज ने अपनी हथेली को मुखिया की बीवी की चिकनी कमर पर रखा मुखिया की बीवी एकदम से मदहोश हो गई उसके चेहरे के भाव एकदम से बदल गए ऐसा लग रहा था कि जैसे पहली बार यह सब हो रहा है और सूरज भी एक खूबसूरत जवान औरत की चिकनी कमर पर अपनी हथेली रखते ही उसके नरम नरम चिकनी कमर का एहसास हथेली पर होते ही मदहोश होने लगा,,,,, और धीरे-धीरे वह अपनी हथेली को मुखिया की बीवी की कमर पर घुमाना शुरू कर दिया,,,, सूरज का यह पहला मौका था जब वह किसी जवान खूबसूरत औरत की कमर की मालिश कर रहा था और पल भर में ही वह आनंद के परम सागर में गोते लगाने लगा उसे बहुत अच्छा लग रहा था उसकी नज़रें लगातार उसके नितंबों पर टिकी हुई थी वह मनी मनी यही चाह रहा था की मुखिया की बीवी अपनी पेटीकोट भी उतार देती तो उसकी नंगी गांड़ की मालिश करने में और ज्यादा मजा आता,, कुछ ही देर में सूरज की दोनों हथेलियां सरसों के तेल की चिकनाहट और मुखिया की बीवी की चिकनी कमर की चिकनाहट पाकर फिसलने लगी,,,, देखते ही देखते सूरज पेटिकोट के किनारे और ऊपर ब्लाउज के किनारे के बीचों बीच चिकनी पीठ पर तेल की मालिश करना शुरू कर दिया था और उसकी चिकनी पीठ सरसों के तेल की वजह से लालटेन की पीली रोशनी में एकदम चमक रही थी,,,, मुखिया की बीवी को सुखद अनुभव हो रहा था,,,ं एक तरफ उसे मालिश की वजह से आराम की अनुभूति हो रही थी वहीं दूसरी तरफ सूरज की हथेली से मदहोशी का एहसास भी हो रहा था जिसके चलते उसकी बुर से नमकीन रस टपक रहा था,,,। कुछ देर मालिश करने के बाद मालिश करते हुए सूरज बोला,,,‌

अब कैसा लग रहा है मालकिन,,,

बहुत मजा आ रहा है सूरज मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा है कि तू मालिश करने में इतना माहिर है इतना तो औरतें भी अच्छी तरह से मालिश नहीं कर पाती तुझे मालूम है गांव में एक औरत है जिसे मालिश करने के लिए मैं बुलाती हूं वह अक्सर महीने में एक दो बार मेरी मालिश कर देती है लेकिन जितना अच्छा तू कर रहा है उतना वह नहीं कर पाती,,,,।

यह तो तुम्हारा बड़प्पन है मालकिन वरना में मालिश करने में माहिर तो नहीं हूं लेकिन अच्छी खासी कर लेता हूं,,,,(इतना कहने के साथ ही सरसों के तेल की चिकनाहट पाकर सूरज की उंगली एकदम से मुखिया की बीवी के ब्लाउज के किनारी में हल्के से प्रवेश कर गई,,,, और इसका एहसास मुखिया की बीवी को होते ही वह एकदम से मदहोश हो गई उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे जानबूझकर सूरज ने अपनी उंगली को उसके ब्लाउज में घुसाने की कोशिश किया हो,,, वह अंदर ही अंदर प्रसन्न होने लगी लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं था तेल की चिकनाहट पाकर सूरज की उंगली अपने आप फिसल कर ब्लाउज में सरक गई थी,,,, लेकिन अनजाने में हुए इस हरकत से सूरज को भी बहुत अच्छा महसूस हो रहा था और उसकी हरकत पर मुखिया की बीवी की तरफ से कोई प्रतिक्रिया होता ना देखकर सूरज की हिम्मत बढ़ने लगी थी और वह मालिश करते हुए अपनी उंगली को रह रहा कर मुखिया की बीवी के ब्लाउज में प्रवेश करा दे रहा था,, , सूरज की हरकत पर मुखिया की बीवी का दिल जोरो से धड़क रहा था उम्मीद की किरण उसे नजर आ रही थी उसे लग रहा था कि आगे का काम सूरज को बताना नहीं पड़ेगा वह खुद ही कर लेगा लेकिन कुछ देर तक सूरज की तरफ से इसी तरह की हरकत होती रही लेकिन इससे आगे वह बढ़ नहीं पा रहा था,,, इसलिए मुखिया की बीवी को लगने लगा कि उसे ही कुछ करना होगा वरना रात यूं ही मालिश में ही गुजर जाएगी,,,।

रात पूरी तरह से गहरा चुकी थी,,, एक अजीब सा सन्नाटा पूरे वातावरण में घुला हुआ था,,, रह रहकर कुत्तों के भौंकने की आवाज आती थी और झींगुर के शोर से वातावरण थोड़ा और भी ज्यादा डरावना हो जाता था लेकिन इन सब के बावजूद भी घनघोर रात में आम के बगीचे में बस्ती से दूर मुखिया की बीवी और सूरज एक दूसरे के संगत में आनंद प्रमोद में डूबे हुए थे इसलिए बाहर के वातावरण से उन दोनों को कुछ भी लेना-देना नहीं था,,,, मुखिया की बीवी जानती थी कि अब दूसरे वस्त्र को उतारने का समय आ गया है,,,, इसलिए वह बोली,.।

सूरज थोड़ा ऊपर भी दर्द कर रहा है,,,, ऊपर भी थोड़ी मालिश कर देता तो आराम मिल जाता,,,।
(इतना सुनकर सूरज के हाथ वहीं के वहीं रुक गए वह कुछ पल खामोश रहने के बाद बोला,,)

लेकिन मालकिन ब्लाउज में,,,,, मालिश कैसे होगी,,,
(सूरज थोड़ा रुक रुक कर बोला वैसे भी एक औरत के सामने ब्लाउज शब्द बोलते हुए उसके लंड की अकड़ बढ़ गई थी और उसके मुंह से इतना सुनकर मुखिया की बीवी मन ही मन प्रसन्न हो रही थी और वह बोली).

अरे हां मैं जानती हूं इस तरह से मालिश नहीं हो पाएगी इसके लिए मुझे ब्लाउज को उतारना होगा,,,।
(मुखिया की बीवी के मुंह से इतना सुनते ही ,,, सूरज का दिमाग एकदम सन्न हो गया,,, पहली बार हो किसी औरत के मुंह से अपने ब्लाउस उतारने की बात को सुन रहा था,,, इसलिए उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी थी ,, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह सच में मुखिया की बीवी के मुंह से ब्लाउज उतारने वाली बात सुना था या उसके कान बज रहे थे इसलिए अपने मन की तसल्ली के लिए वह बोला,,,)

क्या सच में उतारना पड़ेगा मालकिन,, !

हां रे सच में उतारना पड़ेगा क्या बिना उतारे मालिश कर पाएगा तु ,


नहीं ऐसे तो बिल्कुल भी मालिश नहीं हो पाएगी,,,

हां तो इसीलिए तो कह रही हूं कि ब्लाउज उतारना पड़ेगा,,, तेरे हाथों में तो जादू है,,,, रुक मैं अपना ब्लाउज उतार देती हूं,,,,,,,(इतना कहने के साथ ही मुखिया की बीवी धीरे से चारपाई पर उठकर बैठ गई उसका मुंह दूसरी तरफ था वह जानबूझकर सूरज की तरफ पी५ किए हुए बैठी थी क्योंकि वह सूरज के तन-बदन में और ज्यादा आग लगाना चाहती थी,,,, सूरज ठीक उसके पीछे चारपाई की पाटी पर बैठा हुआ था,,, और मुखिया की बीवी की हर क्रियाकलाप को देख रहा था,, ,। वह मन ही मन बहुत प्रसन्न हो रहा था क्योंकि धीरे-धीरे मुखिया की बीवी अपने बदन पर से एक-एक वस्त्र उतरती जा रही थी साड़ी के बाद अब उसके ब्लाउज की बारी थी और ब्लाउज के उतरते ही सूरज जैसा जवान लड़का इतना तो जानता ही था कि ब्लाउज के अंदर औरतें अपने कौन से अंग को छुपा कर रखती हैं और ब्लाउज के उतरते ही उसका खूबसूरत अंग उजागर होने वाला था जिसे देखने के लिए सूरज का मन ललाईत हुआ जा रहा था,,, और दूसरी तरफ मुखिया की बीवी के भी तन-बदन में आग लग रहा था वह जानती थी कि सूरज के सामने वह धीरे-धीरे करके अपने सारे वस्त्र उतार कर एकदम नंगी हो जाएगी और एक खूबसूरत जवान औरत को आधी रात के वक्त कोई भी मर्द है संपूर्ण रूप से नंगी देखने के बाद अपने आप पर काबू नहीं कर पाएगा और यही सोचकर मुखिया की बीवी के तन बदन में भी हलचल मची हुई थी वैसे तो वह न जाने कितनी मर्दों के सामने अपने वस्त्र उतार कर नंगी हो चुकी थी लेकिन आज सूरज के सामने अपनी वस्तु उतारने में उसे कुछ ज्यादा ही मजा और आनंद की प्राप्ति हो रही थी,,,,।

रात का सन्नाटा झींगुर के आवाज और कुत्तों के भोगने की आवाज से थोड़ा बहुत भंग हो रहा था लेकिन इन सब की परवाह ना तो मुखिया की बीवी को था और ना ही सूरज को और ना ही दोनों की आंखों में थकान और नींद नजर आ रही थी दोनों की आंखों से नींद कोसों दूर जा चुकी थी आज की रात दोनों जाग कर ही बिताने वाले थे,,,,

मुखिया की बीवी चारपाई पर उठ कर बैठ गई थी उसकी पीठ सूरज की तरफ थी लालटेन की रोशनी पूरे झोपड़ी में अपना प्रकाश फैला रही थी,,,। मुखिया की बीवी अपने दोनों हाथों की नाजुक उंगलियों को हरकत देते हुए अपने ब्लाउज का बटन खोलने लगी और तिरछी नजर से सूरज की तरफ भी देख रही थी कि सूरज कहां देख रहा है और इस बात से उसका मन और ज्यादा प्रसन्न हो गया क्योंकि सूरज उसकी तरफ ही ललचाई आंखों से देख रहा था ,, धीरे-धीरे मुखिया की बीवी अपने ब्लाउज के ऊपर वाले बटन को खोल दी और दूसरे बटन को खोलने शुरू कर दी और दूसरे बटन को खोलते हुए वह सूरज से बोली,,,।

अच्छा सूरज यह बात कभी किसी औरत ने तेरे सामने इस तरह से अपने कपड़े उतारी है,,,(खेली खाई मुखिया की बीवी अपने इस सवाल से सूरज के चरित्र के बारे में जानना चाहती थी वह यह देखना चाहती थी कि सूरज वाकई में एकदम सीधा-साधा लड़का है या वह पहले भी औरतों की संगत में आ चुका है जिसका जवाब इस सवाल से उसे मिल जाने वाला था और मुखिया की बीवी की यह बात सुनकर सूरज बोला,,,)

नननन,,, नहीं मालकिन ऐसा कभी नहीं होगा कभी किसी औरत ने मेरी आंखों के सामने इस तरह से कपड़े नहीं उतारे हैं जैसा कि आप उतार रही हैं,,,,।
(सूरज का जवाब सुनकर मुखिया की बीवी को संतुष्टि हुई और मन ही मन प्रसन्न होने लगी और उसकी बात सुनकर वह अपना दूसरा बटन खोल चुकी थी और तीसरे बटन को खोलते हुए वह बोली,,,,)

देख सूरज तु अच्छा लड़का है,,, मुझे तेरे पर पूरा भरोसा है इसलिए तेरे सामने अपने कपड़े उतार रही हूं लेकिन तू यह बात बाहर किसी से भी मत बताना वरना तू ही मुश्किल में पड़ जाएगा,,,(इतना कहते हुए वह अपने ब्लाउज के सारे बटन खोल चुकी थी उसके ब्लाउज के दोनों पार्ट एकदम से अलग हो चुके थे और पीछे बैठा सूरज यह सब देख रहा था भले ही उसे मुखिया की बीवी की चूची इस समय नजर ना आती हो लेकिन इस समय उसे पूरा अहसास हो रहा था की मुखिया की बीवी ने अपने ब्लाउज के सारे बटन खोल चुकी थी और उसकी बात सुनकर वह बोला,,,)


बिल्कुल भी नहीं मालकिन भला मैं क्यों दूसरों को यह सब बताने लगा वैसे भी मैं यहां आम की रखवाली करने आया हूं मेरी मां को यह सब पता चलेगा तो मुझे ही भला बुरा कहेंगी इसलिए तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो यह सब मैं किसी से नहीं कहूंगा,,,,

(इतना सुनते ही मुखिया की बीवी के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव नजर आने लगे और वह अपने दोनों हाथों को पीछे की तरफ ले जाकर अपने ब्लाउस को दोनों हाथों से उतारने के लिए सूरज से बोली,,,)

अच्छी बात है ले जरा मेरा ब्लाउज पीछे से खींचना तो,,,,(इतना सुनते ही सूरज का दिल जोरो से धड़कने लगा उसकी हालत खराब होने लगी क्योंकि मुखिया की बीवी सीधे-सीधे उससे अपने ब्लाउज को उतरवा रही थी,,,।)

Gazab ki kamukta aur utejna se bharpur update he rohnny4545 Bhai,

Amazing outstanding...............Keep posting Bro
 
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