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Adultery पापी परिवार की बेटी बहन और बहू बेशर्म रंडियां

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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सुबह के 6 बज रहें है. गुंज़न गैस पर चाय चढ़ा के रोज की तरह रसोई का दूसरा काम कर रही है. तभी शालु वहां आती है. वही गुलाबी टॉप पहने, कन्धों पर दुपट्टा और निचे टाइट फिटिंग वाला पजामा.


शालु- गुड मोर्निंग भाभी...

गुंज़न- गुड मोर्निंग .. (ऊपर से निचे देखती है) कमाल की लग रही है शालु... लेकिन ये दुपट्टा क्यूँ डाल रखा है... निकाल इसे...शालु दुपट्टा निकाल देती है और पास के टेबल पर रख देती है. उसकी नज़रे यहाँ वहां घूम रही है जैसे किसी को तलाश रहीं हो.

गुंज़न : पापा को ढूंड रही है?

शालु : (मुस्कुराते हुए बेहद धीमी आवाज़ में) हाँ...!! कहाँ है पापा...?

गुंज़न : आ जायेंगे...इतनी उतावली क्यूँ हो रही है...

तभी शालु और गुंज़न को कदमो आहट सुनाई देती है. दोनों सतर्क हो जाती है. धर्मवीर अपने सर को गर्दन से गोल गोल घुमाते, गर्दन की अकडन ठीक करते हुए रसोई में आते है.

धर्मवीर : बहू.... (इतना कहते ही बाबूजी जी नज़र शालु पर पड़ती है और उनका घूमता सर वैसे ही थम जाता है.शालु का बेहद टाइट टॉप उसके बड़े बड़े खरबूजों पर कसी हुई है. टॉप के बड़े गले से चुचियों के बीच की गहरी गली साफ़ दिखाई दे रही है. धर्मवीर की नज़रे शालु के सीने के बीच की गहरी खाई पर आ कर रुक जाती है)

गुंज़न-क्या हुआ बाबूजी...??

धर्मवीर : (गुंज़नकी आवाज़ सुन के अपने आप को संभालता है) अ...कुछ नहीं बहु...ये..ये...शालु आज फिर से इतनी जल्दी उठ गई...? बेटी...आज तू फिर से इतनी सुबह ?

शालु : हाँ पापा... मैंने कहा था ना की अब से मैं रोज जल्दी उठ जाया करुँगी और भाभी का काम में हाथ बटाया करुँगी...तो बस...उठ गई जल्दी...

धर्मवीर : शाबाश बिटिया....!! बहुत अच्छा कर रही हो तुम... (एक नज़र टाइट टॉप में उठी हुई शालु की बड़ी बड़ी चुचियों पर डालने के बाद गुंज़न को बोला ) अच्छा बहु....वो ..चाय बन गई क्या?

गुंज़न : बस बाबूजी बनने ही वाली है. आप छत पर जाइये, मैं आपकी चाय ले कर ऊपर ही आ जाउंगी.


धर्मवीर: (थोडा हिचकिचाते हुए) अरे नहीं नहीं बहु ..दिन में दस बार ऊपर निचे करती है, थक जाती होगी. अभी
शालु तो ऊपर आएगी ही ना...(शालु की तरफ घूम कर) क्यूँ शालु ? तू तो कपडे डालने आएगी ना छत पर?

शालु- हाँ पापा...अभी वाशिंग मशीन से कपड़े निकाल के बाल्टी में डालूंगी उसके बाद आउंगी....

धर्मवीर- हाँ तो बहु...शालु मेरी चाय लेते आ जाएगी...अब ये उठी ही है तेरी मदद करने तो फिर करने दे इसे...

गुंज़न- हाँ बाबूजी...सही कहा आपने....येही आपकी चाय ले कर छत पर आ जाएगी. और जब ये काम ही करने के लिए जल्दी उठी है तो छत वाले सारे काम मैं शालु को ही दे देती हूँ....

धर्मवीर : (अपनी ख़ुशी को किसी तरह से छुपाते हुए) हाँ हाँ बहु....!! छत के सारे काम करवाओ इस से....और मैं तो कहता हूँ की अभी सुबह सुबह ही सारे काम करवालो शालु से...

गुंज़न : हाँ बाबूजी आपने बिलकुल सही कहा...छत के सारे काम मैं इस से अभी ही करवा लेती हूँ...

धर्मवीर : हाँ बहू...छत के सारे काम करवा लो पायल से अभी...अच्छा अब मैं चलता हूँ...कसरत की तैयारी कर लूँ छत पर....

धर्मवीर छत की सीढ़ियों की तरफ जाने लगते है. रसोई में
शालु और गुंज़न एक दुसरे की तरफ देख के मुस्कुरा रहीं है.

गुंज़न -..! तेरा काम तो बन गया....

शालु - हाँ भाभी...! (फिर चेहरे पर डर का भाव लाते हुए) लेकिन भाभी...अगर कोई छत पर अचानक से आ गया तो?

गुंज़न आँखे गोल गोल घुमाते हुए कुछ क्षण सोचती है फिर अचानक बाबूजी को आवाज़ देती है.

गुंज़न : बाबूजी...!!!!

धर्मवीर चलते चलते गुंज़न की आवाज़ सुन कर रुक जाता हैं और पीछे मुड़ के गुंज़न को देखते है.

धर्मवीर क्या बात है बहु?

गुंज़न : (मुस्कुराते हुए) देखिये बाबूजी अब ये आपकी जिम्मेदारी है की शालु ठीक तरह से छत के सारे काम करे. फिर बाद में मुझे ही करना पड़े तो क्या फायदा.


धर्मवीर : अ..अ..हाँ बहु.. मैं ऊपर से दरवाज़ा बंद कर लूँगा. और तुम चिंता मत करो. मैं खुद खड़े हो कर इस से सारे काम करवाऊंगा....(फिर कुछ सोच कर) लेकिन बहु...अगर घर में किसी को छत पर कोई काम हुआ तो? मेरा मतलब है की मैं अपनी कसरत कर रहा हूँ और शालु अपने काम में वैस्थ है तो पता नहीं चल पायेगा ना की दरवाज़ा खोलना है.

गुंज़न : कोई नहीं आएगा बाबूजी...सोनू तो 9 बजे से पहले उठेगा नही. आप छत का दरवाज़ा लगा लीजियेगा, कोई नहीं आएगा..

धर्मवीर : (अपनी ख़ुशी को छुपाते हुए) अच्छा..अच्छा ठीक है बहु...मैं ऊपर का दरवाज़ा लगा लूँगा...अब मैं चलता हूँ...

बाबूजी के जाते ही शालु ख़ुशी से भाभी से चिपक जाती है.

शालु वाह भाभी...!! आपने तो कमाल कर दिया...

गुंज़न - तो तू क्या मुझे ऐसा-वैसा समझती है? अब ध्यान से सुन मेरी बात...बाबूजी के सामने झुक झुक के काम करना. जरुरत पड़े तो अपना सीना थोड़ा उठा भी देना. अगर बाबूजी कोई काम करने कहें तो चुप चाप कर देना. समझ गई ना?

गुंज़न : (ख़ुशी के साथ) जी भाभी...समझ गई...

गुंज़न : अब ये चाय का प्याला ले और वो रही सामने बाल्टी, उठा और सीधा छत पर चली जा...

शालु : जी भाभी...

शालु अच्छा भाभी अब मैं चलती हूँ....

शालु कपड़ों की बाल्टी उठाये दुसरे हाथ में चाय का प्याला लिए, सीढ़ियों पर धीरे धीरे चड़ने लगती है. पीछे से गुंज़न उसकी हिलती हुई चौड़ी चूतड़ों को देखती है. "लगता है आज शालु रानी बाबूजी की बड़ी पिचकारी से होली खेल के ही दम लेगी". और गुंज़न भी रसोई में अपने काम पर लग जाती है.

छत पर
धर्मवीर तेज़ क़दमों से यहाँ वहां घूमते हुए टहल रहें है. उनकी नज़रें बार बार छत के दरवाज़े की तरफ जा रहीं है. थोड़ी सी भी आहट होती तो उन्हें लगता की शालु आ रही है. शालु के बारें में सोच कर ही उनका लंड बेचैन हो रहा है. तभी सीढ़ियों पर क़दमों की आहट सुनाई देती है.धर्मवीर दरवाज़े पर नज़रे गड़ाये खड़े हो जाता है. तभी शालु एक हाथ में चाय का प्याला और दुसरे हाथ में कपड़ो से भरी बाल्टी ले कर दरवाज़े से छत पर आती है. धर्मवीर की नज़र सीधे शालु की बड़ी बड़ी चुचियों पर जाती है जो टाइट टॉप में कसी हुई है. शालु पापा की नज़र को भांप लेती है और अपना सीने हल्का सा उठा देती है. ये देखकर धर्मवीर का लंड धोती में एक झटका खाता है.

धर्मवीर : आ गई मेरी गुड़िया रानी....

शालु : जी पापा...!!

धर्मवीर : ला ये बाल्टी मुझे दे...(शालु के हाथ से बाल्टी लेते हुए) कहाँ रखूँ इसे बेटी?

शालु : (शालु जानती है की पापा खटिया के पास हे कसरत करते है. वो झट से कहती है) यहाँ रख दीजिये पापा...खटिया के पास. मैं येही से कपडे निचोड़ के सूखने डाल दूंगी.

शालु : ठीक है बेटी...

धर्मवीर बाल्टी उठा के खटिया के पास रख देता है. शालु चाय का प्याला लिए खड़ी है. धर्मवीर उसे देखते है और मुस्कुराते हुए खटिये पर बैठ जाते है.

धर्मवीर : ला ...चाय दे दे....

शालु धीरे धीरे चल के पापा के पास आती है. हाथ बढ़ा के चाय का प्याला देते हुए वो आगे झुक जाती है.

शालु : लीजिये पापा....आपकी चाय...

शालु के झुकते ही धर्मवीर की आँखों के सामने टॉप के बड़े गले से उसकी आधी चूचियां दिखने लगती है. बड़ी बड़ी चुचियों के बीच की गहराई देख कर धर्मवीर हालात ख़राब हो जाती है.वो एक तक उस गहराई को घूरे जा रहा है. तभी उसके कानों में शालु की आवाज़ पड़ती है.

शालु : कहाँ खो गए पापा? चाय लीजिये....

धर्मवीर : (हडबडाते हुए) अ..आ.. कहीं नहीं बिटिया....ला चाय दे मुझे...

चाय दे कर शालु खड़ी हो जाती है.
धर्मवीर -...!! चाय भले ही बहु ने बनाई हो, पर तेरे हाथ लगते ही इसका स्वाद और उम्दा हो गया...

शालु : (शालु अपने हाथ के रुमाल को नखरे के साथ घुमाते हुए कहती है) थैंक्यू पापा... अगली बार मैं आपको अपने हाथों से बनी चाय पिलाउंगी

धर्मवीर : हाँ ..मेरा भी दिल करता है की कभी मैं तेरे हाथ की चाय पियूं....

तभी शालु जान बुझ के अपने हाथ का रुमाल गिरा देती है.

शालु : मैं आपको स्पेशल चाय पिलाउंगी पापा... (रुमाल उठाने के लिए झुकती है. उसकी आधी नंगी चूचियां पापा की आँखों के सामने आ जाती है)...डबल दूध वाली....

सामने का नज़ारा देख के धर्मवीर लंड धोती के अन्दर झटके लेते हुए लार की २-३ बूंदें टपका देता है. धर्मवीर की आधी नंगी चूचियां और उसके मुहँ से डबल दूध वाली चाय की बात सुन कर धर्मवीर के होश उड़ जाते है. वो कुछ सोच कर कहते है.

धर्मवीर : ...तुझे तो पता है बेटी...मैं बाज़ार के पैकेट वाला दूध नहीं पीता हूँ. मुझे तो घर की गाय का दूध ही पसंद है.

धर्मवीर की बात सुन के शालु मन हे मन मुस्कुरा देती है फिर कुछ सोच के कहती है.

शालु लेकिन पापा...घर की गाय तो अभी दूध नहीं देती है ना....

धर्मवीर खड़े होते है और शालु के सर पर हाथ फेरते हुए कहते है.

धर्मवीर : (शालु के सर पर हाथ फेरते हुए) जानता हूँ बेटी...घर की गाय अभी दूध नहीं देती, लेकिन वो दूध देने लायक तो हो गई हैं ना ?...तुझे तो पता है की पापा ने उसकी कितनी देख-भाल की है. कुछ दिन पापा के हाथ का चारा खाएगी तो हो सकता है की दूध भी देने लग जाए.

धर्मवीर की बातें सुन के शालु के जिस्म के आग लग जाती है. उसका रोम रोम उस आग में जलने लगता है. अब शालु पापा के सामने एक ऐसी लड़की की तरह थी जो कपड़े पहन के भी पूरी नंगी हो.

शालु और धर्मवीर की नज़रें आपस में मिलती है. दोनों कुछ क्षण एक दुसरे की आँखों में देखते रहते है मानो एक दुसरे का हाल समझने की कोशिश कर रहे हो. तभी शालु अपने ओठ काटते हुए कहती है.

शालु : अच्छा पापा...अब मैं कपडे डालने जाती हूँ.

धर्मवीर : हाँ बेटी..ठीक है...

शालु घूम कर अपनी चौड़ी चुतड हिलाते हुए जाने लगती है. रमेश हिलती चूतड़ों को देखते हुए अपने लंड को धोती के ऊपर से एक बार जोर से मसल देता है. शालु कपड़ो की बाल्टी के पास पेशाब करने के अंदाज़ में बैठ जाती है.
धर्मवीर ठीक उसके सामने खटिये पर बैठ जाता है. शालु बाल्टी से एक कपड़ा निकालती है और दोनों हाथों से जोर जोर से रगड़ने लगती है. शालु की बड़ी बड़ी चूचियां हिलने लगती है. चुचियों के बीच की खाई, चुचियों के हिलने से कभी छोटी तो कभी लम्बी होने लगती है. बीच बीच में शालु और धर्मवीर की नज़रे मिलती है तो दोनों कुछ क्षण एक दुसरे की आँखों में घूरते ही रह जाते है. नज़रें हटते ही शालु की चुचियों का हिलना और तेज़ हो जाता है. शालु 3-4 कपड़ों को रगड़ के बाल्टी की दूसरी तरफ रख देती है. अब धर्मवीर उठ चलते हुए वो शालु के पास आता है और अपनी धोती को हाथों से जांघो तक चढ़ा के शालु के सामने पेशाब करने के अंदाज़ में बैठ जाता है. धर्मवीर के निचे बैठते ही उसकी नज़रे शालु की नज़रों से मिलती है. धर्मवीर की आँखों में देखते हुएधर्मवीर अपने ओठो को दाँतों से काट लेती है. शालु के हाथ में एक कपड़ा है. उस कपड़े की और ऊँगली से इशारा करते हुए कहता है.

धर्मवीर : बिटिया...लगता है इस कपड़े पर चाय गिर गई थी. ठीक से साफ़ नहीं हुआ....

शालु : (कपड़े पर उस धब्बे को देखती है) हाँ पापा....ये तो वाशिंग मशीन में भी साफ़ नहीं हुआ. लगता है मुझे ही इसे अच्छे से इसे साफ़ करना पड़ेगा.

ये कह कर शालु उस कपडे को ज़मीन पर फैला देती है और घोड़ी के अंदाज़ में एक हाथ से कपडे के एक कोने को दबा देती है. वो घोड़ी बन के सामने झुकती है तो शालु ड़ी बड़ी चूचियां धर्मवीर की नजरो के ठीक सामने आ जाती है. घोड़ी बन के झुकने से अब टॉप के बड़े गले से चूचियां आधे से ज्यादा दिखने लगी है. चुचियों के बीच की गहराई अब सीध में दिखने लगी है.शालु एक बार पापा की आँखों में देखती है और फिर नज़रे कपडे पर डाले जोर जोर से रगड़ने लगती है.
धर्मवीर शालु की जोर जोर से हिलती चूचियां दखते है.
धर्मवीर गौर करते है तो देखते है की शालु के हाथों की गति धीमी है और चुचियों के हिलने की गति ज्यादा. ये देख कर
धर्मवीर के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है. वो कुछ देर वैसे ही शालु की हिलती बड़ी बड़ी चुचियों का मज़ा लेते है फिर शालु को देख कर कहते है.

धर्मवीर : बेटी..लगता है ये दाग नहीं निकलेगा. देखो तो तुम्हें कितना पसीना आ गया है. पूरी टॉप भीग गई है.

धर्मवीर : अच्छा शालु तेरा काम हो गया हो तो अब तू जा.

शालु : हाँ पापा मैं चलती हूँ...

दोनों एक बार एक दुसरे को देख के मुस्कुरा देते है और शालु बाल्टी उठा के जाने लगती है. धर्मवीर पीछे से उसकी चुतड को देखते हुए लंड मसलने लगता है.

चहरे पर मुस्कराहट लिए शालु उच्चलती हुई सीढ़ियों से निचे उतर रही है. पापा के साथ हुई हर एक घटना को याद करके उसका दिल धड़क रहा है और एक मीठा सा दर्द उसके तन-बदन में एक अजीब सी प्यास जगा रहा है. कभी शर्माती तो कभी हँसती हुई वो निचे आती है. अपने कमरे में चली जाती है. रसोई में बचा हुआ काम जल्दी जल्दी खत्म करके
गुंज़न शालु के रूम में जाती है. दरवाज़े से अन्दर देखती है तो शालु आईने के सामने खड़ी हो कर टॉप पर से अपनी बड़ी बड़ी चूचियां पकडे हुए है. गुंज़न झट से दरवाज़ा अन्दर से बंद कर के शालु के पास पहुँच जाती है

गुंज़न : (पीछे से उसकी बड़ी बड़ी चूचियां पकड़ के) और मेरी रानी..!! बड़ी खुश लग रही है...पापा का लंड अपनी बूर में ठूंसवा के आ रही है क्या?

शालु : (मस्ती में) भाभी काश...!! पापा मेरी बूर में अपना मोटा लंड ठूँस देते...

गुंज़न :तो नहीं ठूँसा क्या?

शालु : नहीं भाभी....

गुंज़न : (शालु को सीने से लगाते हुए) कोई बात नहीं मेरी बन्नो...!! सब्र कर...फल जल्द ही मिलेगा...अच्छा ये तो बता क्या क्या हुआ छत पर..?

शालु की आँखों में चमक आ जाती है. वो भाभी का हाथ पकड़ कर बिस्तर पर ले जाती है और दोनों बैठ जाते है.

शालु : (उत्सुकता के साथ) क्या बताऊँ भाभी....आज मैंने पापा को अपनी आधी चूचियां दिखा दी...

गुंज़न : सच..!! फिर तो पापा का बुरा हाल हो गया होगा ना?

शालु : हाँ भाभी... इधर मैं अपनी चूचियां जोर जोर से हिला रही थी और उधर पापा का लंड धोती में झटके ले ले कर उच्छल रहा था...

गुंज़न : हाय...!! बाबूजी तेरी चुचियों को घुर रहे थे क्या?

शालु : हाँ भाभी...खा जाने वाली नज़रों से....मेरा तो दिल किया की अभी पापा के पास जाऊं और टॉप उठा के अपनी बड़ी बड़ी चूचियां उनके मुहँ में दे दूँ...

गुंज़न : तो दे देती ना...किसने रोका था....

शालु : हाँ भाभी...अगली बार पापा ऐसे देखेंगे तो सच में दे दूंगी....

गुंज़n. : अच्छा अब आगे का कुछ सोचा है?

शालु : पता नहीं भाभी...आप ही कुछ बताइए ना...

गुंज़न: अच्छा...करती हूँ मैं कुछ....(कुछ सोच कर) अच्छा शालु एक बात तो बता...

शालु : जी भाभी..

गुंज़न: सोनू से तेरी कभी क्यूँ नहीं बनती? हमेशा दोनों झगड़ते रहते हो?

सोनू का नाम सुनते ही शालु को गुस्सा आ जाता है.

शालु : मेरे सामने उसका नाम भी मत लीजिये भाभी... एक नंबर का गधा है वो...

गुंज़न- (हँसते हुए) हाँ बाबा ठीक है...गधा है वो लेकिन फिर भी तेरा सगा भाई है...

शालु : भाई है तो क्या हुआ? उस गधे से तो मैं बात भी ना करूँ...

गुंज़न : पगली...भाई बहन में तो नोक-झोंक चलती ही रहती है...अब जैसे देख, मैं और मेरा चचेरा भाई....

शालु मुस्कुराते हुए बीच में गुंज़न की बात काट देती है.

शालु : वही ना भाभी...जिसने आपकी सबसे पहले चुत खोली थी..

गुंज़न : (हँसते हुए) हाँ बाबा...वही...!! तो हम दोनों भी पहले बहुत झगडा करते थे लेकिन सबसे पहले मेरी बूर में उसी का लंड गया ना?

शालु : लेकिन भाभी...मैं और सोनू तो एक दुसरे को फूटीं आँख नहीं भाते...

गुंज़न : तुझे कैसे पता? हो सकता है की सोनू तेरे लिए अपना लंड थामने खड़ा हो?

शालु : धत्त भाभी...वो तो मुझसे हमेशा लड़ते रहता है...

गुंज़न : इसी लड़ाई के पीछे तो भाई का असली प्यार छुपा होता है

शालु : (कुछ सोचती है फिर कहती है) अच्छा भाभी...एक बात बताइए....आप अपने भाई के साथ बहुत चुदाई करती होगी ना?

गुंज़न : पूछ मत ...! स्कूल में, स्कूल से घर आते वक़्त पास के जंगल में, घर की छत पर और ना जाने कहाँ कहाँ ... जब भी जहाँ भी मौका मिलता वो मुझ पर चढ़ाई कर देता था...

शालु : उफ़ भाभी...!! (वो फिर से कुछ सोचती है) पर भाभी..! रक्षाबंधन के दिन जब आप उसकी कलाई पर राखी बांधती होगी तब तो आपको थोडा अजीब लगता होगा ना?

गुंज़न : (मुस्कुराते हुए) अजीब? पगली...!! असली मज़ा तो उसी दिन आता था...

ये सुन कर शालु की आँखे बड़ी बड़ी हो जाती है.

शालु- हाय राम भाभी..!! रक्षाबंधन के दिन भी, आप दोनों...

गुंज़न : हाँ ..रक्षाबंधन के दिन भी...और उस दिन का तो हम दोनों बेसब्री से इंतज़ार करते थे...उस दिन मैं राखी की थाली ले कर आती थी. वो निचे बैठा रहता था. घरवालों के सामने मैं उसके माथे पर टिका लगाती थी, उसकी आरती उतरती थी. फिर हम एक दुसरे को मिठाई खिलाते. मैं उसकी कलाई पर राखी बांधती और वो मेरे हाथ में 50/- रूपए का नोट थमा देता.

ये सब शालु बड़े गौर से सुन रही थी. उसकी आँखे बड़ी और मुहँ खुला हुआ था. साँसे धीरे धीरे तेज़ हो रही थी.

शालु : और फिर भाभी....?

गुंज़न : फिर क्या ?... हम दोनों किसी बहाने से घर से निकलते. वो मुझे अपनी साइकल पर बिठा के पास के जंगल ले जाता. जंगल में वो अपनी पैंट उतरता और मैं उसके मोटे लंड पर राखी बाँध देती. फिर वो मुझ पर चढ़ाई कर देता. वो 'बहना' 'बहना' कहते हुए मेरी बूर में लंड पेलता और मैं 'भैया' भैया' कहते हुए उसका लंड बूर में लेती.

ब शालु की हालत बुरी तरह से खराब हो चुकी थी. उसकी साँसे मानो किसी तूफ़ान सी आवाजें करती हुई बाहर आ रही थी. गुंज़न उसे गौर से देखती है. उसके मन में हो रही उथल पुथल को वो अच्छी तरह से समझ रही है.

गुंज़न : क्या हुआ शालु? कहाँ खो गई?

शालु : (झेंपते हुए) कु..कु..कुछ नहीं भाभी....पर क्या सच में रक्षाबंधन के दिन भाई का लंड लेने में इतना मज़ा आता है?

गुंज़न : हाँ शालु.!! बहुत मज़ा आता है. रक्षाबंधन के दिन तो बहुत से भाई-बहन चुदाई का मज़ा लेते है. और उस दिन उनके लंड और बुरे सबसे ज्यादा पानी छोड़ते है. वैसे शालु...रक्षाबंधन तो अभी आने ही वाला है ना?

शालु : (थोड़ी शर्माते हुए) हाँ भाभी... क्यूँ ?? आपको भाई की याद आ रही है क्या?

गुंज़न : अरे उसे तो मैं रोज ही याद करती हूँ. मैं तो ये सोच रही थी की अपने भाई से एक बार मिल ही आऊ. इसी बहाने रक्षाबंधन भी मना लुंगी.

गुंज़न :बोल शालु...!!तू भी सोनू के साथ रक्षाबंधन मनाएगी?

शालु: (धीरे से ) हाँ...मनाउंगी...

गुंज़न : और राखी कहाँ बांधेगी ?

शालु : (अपने ओंठ काट लेती है).... उसके लंड पर...!!

ये कहते ही पायल दौड़ के बाथरूम में घुस जाती है और दरवाज़ा बंद कर लेती है. गुंज़न हंसने लगती है. "उस बेहनचोद सोनू का भी काम बन गया. साला चूतिया कहीं रक्षाबंधन के दिन अपनी दीदी को देखते ही पानी ना छोड़ दे". मन में सोचते हुए गुंज़न वहां से चली जाती है.
Wah bhai gunjan to apna rasta saaf karte huye sabko line pr la rhi hai, subah shalu ko samjha kr apne sasur ke liye chay dene upar bheja or vha pr shalu ne apne husn ke jalve dikhaye jisse ghayal ho gye uske babu ji...

Gunjan ne shan ki taraf bhi shalu ka dhyan akarshit kr diya, apne bhai ka Kaise leti rhi hai or kab jyada maza aata hai sab bta kr or garam kr diya shalu ko, ab Raksha Bandhan aane wala hai aur shalu apne bhai shan ko rakhi bandhne vali hai, dekhe hai kaha rakhi bandhti hai...

Superb erotic update bhai jabarjast sandar hot update Lajvab
 

Rinkp219

DO NOT use any nude pictures in your Avatar
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Wow ... fantastic update bro....bapbeta milkar aage pichhe se eksath shalu ko.... waiting more

2957320-07
 
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prasha_tam

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Superb
:superb:
👌

Please continue
👍


Waiting for next update
 
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Nasn

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Copy paste kar rhe he
Bhai likhne do...
plzzz...

Jaisa bhi Achchaa hai.....

Maza hi lena hai...
padkar muth maarni hai..

Koi National award thode hi mil raha hai....
Jo bhi likhta hai...
samay to barbad hota hi...

Plzzz Encourage karo..
not Discourage......
 
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