Update- 68
नीलम ने शर्त कही- मैं शर्त जीतने की वजह से आपसे ये मांगती हूँ कि जब भी मेरी कोख भरे तो होने वाले बच्चे की सीरत मेरे बाबू जैसी हो, मैं चाहती हूं कि मेरा बच्चा, मेरा पुत्र बिल्कुल मेरे बाबू की सीरत का हो, सूरत भले ही उनसे न मिले पर सीरत उन्ही की हो।
महेन्द्र- क्या?...क्या बोल रही हो तुम।
महेन्द्र को एक बार तो अपने कानों पर विश्वास नही हुआ।
नीलम- हाँ, बोलो करोगे मेरी शर्त पूरी।
महेन्द्र- पर ये कैसी शर्त है जो है ही असम्भव।
नीलम- असंभव तो कुछ भी नही दुनियां में।
महेंद्र- पर तुम कह क्या रही हो, कहने से पहले सोच तो लो, तुम्हारी शर्त के अनुसार बच्चे की सीरत तुम्हारे बाबू जैसी हो, और वो भी मैं ये इच्छा कैसे पूरी कर सकता हूँ, पहली बात तो बच्चा हो ही नही रहा और मान लो हो भी तो उसकी सीरत बाबू जैसी मतलब उसका स्वभाव, बोलचाल का तरीका, उसकी सोच सब बाबू जैसी, और वो भी मैं तुम्हे दूंगा....पर कैसे....ये तो है ही असंभव।
नीलम- तुम्हारे लिए तो असंभव तुम्हारी बहन सुनीता भी थी, पर हो गया न संभव।
महेन्द्र का मुँह बंद, पर कुछ सोच कर बोला- हाँ वो बात ठीक है पर ये तो बिल्कुल हो नही सकता, मेरे और तुम्हारे सम्भोग से बाबू के जैसी सीरत वाला बच्चा कैसे हो जाएगा, और पहली बात तो मेरे और तुम्हारे प्रयास करने से तो बच्चा हो ही नही रहा, कितने सालों से तो इंतज़ार कर रहे हैं न।
नीलम- झूठ न बोलो, इंतज़ार तुम नही केवल मैं कर रही हूं, तुम्हे वाकई में इस बात की चिंता होती तो तुम अपना इलाज...... खैर इस बात को अब नही बोलूंगी वचन जो दे चुकी हूं, मैं बस इतना चाहती हूं कि भविष्य में कभी भी मेरी कोख से जो मेरा बच्चा हो उसमे मेरे बाबू की सीरत हो।
महेन्द्र- लेकिन ऐसा क्यों....क्या मैं जान सकता हूँ।
नीलम- क्योंकि मैं बाबू से बेहद प्यार करती हूं.......अब गलत मत समझना......मैं सिर्फ पिता पुत्री के प्यार की बात कर रही हूं......एक बेटी अपने पति से पहले अपने पिता की होती है, उसको इस दुनियां में वही लाता है, पलता है पोषता है, सारी दुनियां से उनकी रक्षा करता है फिर उसे ब्याह के अपने घर से बिदा कर देता है, क्या एक बेटी का मन नही हो सकता कि वो अपने प्यारे पिता की एक निशानी पुत्र के रूप में अपनी कोख से पैदा कर सके। मैं बस अपने बाबू के जैसा पुत्र चाहती हूं बस इतना कहना है मुझे, अपनी जीती हुई शर्त में मुझे यही चाहिए, और रही बात संभव असंभव की तो संभव सब कुछ है।
महेन्द्र- हे भगवान, मैंने कब मना किया कि कोई बेटी ये कल्पना नही कर सकती कि उसके बच्चे की सीरत उसके पिता जैसी हो , पर सोच के देखो ये होगा कैसे? ये तो ईश्वर के हाथ में है इसमें पति पत्नी क्या कर सकते हैं, कुछ असंभव चीजों को तुम संभव करने पर तुली हो।
नीलम- संभव है
महेन्द्र- संभव है.... (चौंकते हुए)
नीलम- हां, संभव तो सबकुछ है।
महेन्द्र- कैसे........अगर सभव है तो बताओ मैं तुम्हारी इच्छा पूरी करने को तैयार हूं।
नीलम- करोगे क्यों नही, वचन दिया है तुमने, करना तो पड़ेगा ही, जब मैं अपना वचन पूरा करूँगी तो तुम्हे भी अपना दिया वचन पूरा करना पड़ेगा।
महेन्द्र- हाँ बताओ किस तरह संभव है ये, की हम दोनों के संभोग से बाबू जी के सीरत वाला बच्चा पैदा होगा।
(नीलम ने मन में सोचा कि अगर केवल हम दोनों के संभोग से बच्चा पैदा होना होता तो अबतक हो नही जाता, ये भी न...समझ नही पाते बिल्कुल, पर नीलम ने ये बात कही नही)
नीलम- होगा....बाबू जी के सीरत वाला बच्चा जरूर होगा।
महेन्द्र- कैसे?
नीलम- इसके दो तरीके हैं।
महेन्द्र- दो तरीके।
नीलम- हाँ दो तरीके
महेन्द्र- मुझे तो ये होना ही असंभव लग रहा है और तुम्हारे पास दो तरीके भी है.....वाह
नीलम- स्त्री हूँ न...इसलिए.... जहां पुरुष की सीमा खत्म हो जाती है कभी कभी स्त्री उसके आगे से भी रास्ता निकाल लेती है....समझे जी
(नीलम ने थोड़ा गर्व से कहा)
महेन्द्र- किसी का तो पता नही पर तुम जरूर निकाल लोगी, इतना तो यकीन हो गया है अब मुझे।
नीलम मुस्कुराने लगी फिर बोली- मैंने सुना है कि पति के द्वारा संभोग में चरम पर पहुँच कर स्त्री जब स्लखित (झड़कर) होकर अपनी आंखें असीम सुख में बंद कर लेती है और कुछ पल के बाद जब वो आंखें खोलती है तो उसकी नज़रों के सामने जो पुरुष या स्त्री पड़ता है उसके गर्भ में होने वाले बच्चे की सीरत उसी की होती है, अब ज्यादातर तो उस वक्त उसका पति ही वहां होता है पर अगर उसकी जगह जो भी हो, स्त्री की नज़र खुलते ही उस पर पड़े तो ऐसा होता है, मैंने ऐसा सुना है।
महेन्द्र- क्या कह रही हो, ऐसा कैसे हो सकता है?
नीलम- होता है ऐसा, मेरी नानी के यहां एक बूढ़ी तपस्वी स्त्री है उसी ने ये बात बताई थी, पर उसने ये भी कहा था कि ये पहला तरीका है जो कि पूरी तरह कारगर हो भी सकता है और नही भी, इसमें गुंजाइश कम है।
महेन्द्र- पहली बात तो यही संभव नही की उस वक्त पति पत्नी के अलावा वहां कोई हो, ये सब काम तो एकांत में अपने कमरे में किया जाता है तो कोई और होगा ही कैसे?
नीलम- कोई कमरे में होता नही है, ये बात मुझे भी पता है, पति पत्नी अकेले में ही संभोग करते है नुमाइश करके नही, ये बात मुझे भी पता है, पर इस उपाय के लिए, उस इच्छा को परिपूर्ण करने के लिए हम अपने उस प्यारे व्यक्ति को अपने कमरे में सुला तो सकते हैं।
(महेन्द्र फिर से ये सुनकर चौंक गया)
महेन्द्र- क्या बोल रही हो तुम, मतलब बाबू जी मैं और तुम एक ही कमरे में, और मैं और तुम उनके सामने संभोग, ये हो भी पायेगा या बस जो मुँह में आया बोले जा रही हो, पहली बात तो अभी सबेरे तुमने ही बोला की तुम अंदर कमरे में सोती हो, बाबू जी बाहर सोते हैं और मैं भी बाबू जी के साथ बाहर सोऊंगा, और अब इतना सब कुछ, और दूसरी बात बाबू जी के बारे में भी सोचा है, वो सुनेंगे तो क्या सोचेंगे, और वो ऐसा करेंगे भी ये तुमने सोच भी कैसे लिया, की जैसा जैसा तुम सोचे और कहे जा रही हो वो वैसा वैसा करेंगे, उनकी अपनी भी तो कोई इज़्ज़त और मान मर्यादा है, कोई पिता अपनी पुत्री और दामाद के कमरे में सोएगा और उनको संभोग करते हुए देखेगा....हे भगवान तुम भी न। सनक गयी हो तुम पक्का।
नीलम- बस हो गया तुम्हारा अब मैं बोलूं। बैठो यहां नीचे पहले।
दोनों नीचे बैठ गए
महेंद्र- बोलो अब
नीलम- मैंने ऐसा कब कहा कि बाबू मान ही जायेंगे, पर जब हम ये बात उनके सामने रखेंगे तो वो कुछ तो सोचेंगे, वो बड़े हैं हमसे ज्यादा समझदार हैं, कुछ तो निर्णय लेंगे।
महेन्द्र- और उनसे ये बात कहेगा कौन.....मैं......न बाबा न......ये तो मुझसे नही होगा।
नीलम- तुमसे होगा क्या? वैसे तुमने वचन दिया है, सोच लो करना तो पड़ेगा ही, अब स्त्री होकर मैं तो उनसे बोलूंगी नही और एक बेटी तो कदापि अपने पिता को ऐसी बात नही बोलेगी।
महेन्द्र- तो क्या दामाद बोलेगा? की ससुर जी आओ हमारे साथ लेटो और हमे वो सब करते हुए देखो।
नीलम हंसने लगी फिर बोली- मैंने कब कहा कि हम उन्हें दिखा कर करेंगे, वो सो जाएंगे तब।
महेन्द्र- अच्छा.....और वो जग गए तब?
नीलम- यही तो संभाल के करना है, और मैं चाहूं तो बोलना तो तुम्हे पड़ सकता है पर मैं तुम्हे मजबूर नही करूँगी मेरे पास इसका भी रास्ता है।
महेन्द्र- कितने रास्ते हैं यार तुम्हारे पास, इतने रास्ते तो पूरे मिला कर हमारे गांव भर में नही है जितना तुम्हारे पास है, मेरा तो सर घूम गया है।
नीलम जोर से हंस पड़ी फिर बोली- भैया ओ भैया.....सुनीता को याद करो घुमा हुआ सर सही जगह पर आ जायेगा।
महेन्द्र- यार देखो मजाक की बात नही है, अब जो संभव नही है वो मेरे समझ में तो आ नही रहा, आखिर बाबू जी कैसे राजी होंगे, ये कितने शर्म की बात है।
नीलम- माना कि शर्म की बात है पर उपाय तो करना ही पड़ेगा, देखो बाबू जी राजी होंगे एक बेटी की इच्छापूर्ति के मोह से, कोई भी पिता अपनी बेटी की मनोकामना पूर्ण करने की पूरी कोशिश करता है बशर्ते उसमे बदनामी न हो, सब कुछ छुपाकर हो जाये तो, और मेरा दिल कहता है कि बाबू जी जरूर इस बात को समझेंगे।
महेन्द्र- और इस बात को उनसे कहेगा कौन।
नीलम- उसका रास्ता ये है कि मैं सारी बात एक कागज पर लिखकर तुम्हे दे दूंगी तुम अपने हाँथ से बाबू जी को दे देना।
महेन्द्र- मैं
नीलम- हाँ भई तुम...... और कौन? तुम अपने हाँथ से दोगे तो बाबू जी को ये पता चल जाएगा कि तुम राजी हो.......समझे बुद्धू
महेन्द्र- क्या दिमाग लगाती हो तुम...सच में। पर न जाने क्यों मुझे बहुत अटपटा सा लग रहा है। कैसे होगा ये सब?
नीलम ने धीरे से कहा- क्यों तुम्हारा खड़ा नही हो पायेगा क्या उनकी मौजूदगी में।
महेंद्र- ऐसी कोई बात नही है, अब अगर ऐसी बात है तो देख लेना मैं क्या हाल करूँगा तुम्हारा....पानी पिला दूंगा पानी।
(नीलम ने जानबूझ कर ये बात बोली ताकि महेन्द्र थोड़ा ताव में आ जाये)
महेन्द्र- पर एक बात बताओ अगर बाबू जी ने उल्टा हम दोनों को ही डांट लगाई तो, आखिर ये कितना गलत है।
नीलम- ऐसा हो नही सकता मेरा दिल कहता है, मैं अपने बाबू को बहुत अच्छे से जानती हूं, वो मेरे लिए जान भी दे देंगे पर मेरा दिल नही तोड़ेंगे और रही बात सही गलत की तो बहन के ख्वाब देखना भी तो गलत है....क्यों...बोलो?
महेन्द्र अब चुप हो गया फिर थोड़ी देर बाद बोला- अच्छा एक बात बताओ अभी तो तुमने बोला यह एक पहला तरीका है और ये पूरी तरह कारगर होगा भी या नही इसपर भी संदेह है तो दूसरा ऐसा कौन सा तरीका है जो अचूक है।
नीलम महेन्द्र को गंभीरता से देखने लगी फिर बोली- वो अचूक तो है पर वो गलत है, वो रास्ता गलत है, वैसा मैं नही कर पाऊंगी।
(नीलम ने जानबूझ कर बेमन से दूसरे रास्ते को गलत ठहराया क्योंकि वो महेन्द्र के सामने अपनी छवि को बिगड़ने नही देना चाहती थी)
महेन्द्र- है क्या वो रास्ता....बताओ तो सही...
नीलम कुछ देर चुप रही महेंद्र उसका मुँह ताकता रहा
नीलम ने एक लंबी सांस ली फिर बोली- जब कोई स्त्री अपने पति द्वारा संभोग क्रिया में चरम पर पहुंचने ही वाली हो तभी उसकी......
(नीलम बोलते बोलते चुप हो गयी)
महेन्द्र- उसकी क्या?
नीलम- तभी उसकी योनि में उस पुरुष का लिंग दाखिल हो जाये जिसकी छवि का बच्चा वह अपने गर्भ में चाहती है और फिर वो स्त्री उस नए लिंग को स्वीकारते हुए अपने दोनों हांथों से
उस पुरुष के नितंब को योनि की तरफ दबाकर उसके लिंग को स्वयं अपनी योनि में स्वागत कराते हुए उस पुरुष के अंडकोषों को प्यार से सहलाकर यह इशारा करे की उसका लिंग उसके पति के लिंग से ज्यादा आनंददायक है, यहां पर एक बात ध्यान देने की होती है कि स्त्री को अपने पति के लिंग की तुलना में उस पुरुष के लिंग में ज्यादा आनंद आना चाहिए, उसे दूसरा लिंग ज्यादा अच्छा लगना चाहिए, क्योंकि तभी उसके दिमाग में से उसके पति की छवि हटकर उस नए पुरुष की छवि बनेगी और वही बच्चे में जाएगी, इसलिए ही स्त्री की योनि में उसके मनचाहे पुरुष का लिंग दाखिल होने के बाद वो उस पुरुष के नितंब को अपनी योनि की ओर दबाकर और उसके अंडकोषों को सहलाकर ये इशारा करती है कि उसका लिंग उसके पति की तुलना में अत्यधिक आनंददायक और लज़्ज़त भरा है और फिर उसकी लज़्ज़त को महसूस करके उसे चोदने का इशारा करती है और फिर अच्छे से नए लिंग से चुदने के बाद असीम आनंद लेते हुए स्लखित होती है।
पर इसके लिए उसके पति का पहले स्लखित होना जरूरी है, स्लखित होने के बाद भी पति थोड़ी देर तक लिंग योनि में रगड़ता रहे और जैसे ही स्त्री स्लखित होने के करीब हो उसका पति लिंग बाहर निकाल ले और उसका मनचाहा पुरुष जिसकी छवि वो अपने पुत्र में चाहती है वो अपना दहकता लिंग उसकी योनि में जड़ तक डाल दे, इससे उस स्त्री के तन और मन दोनों पर नए लिंग की खुमारी चढ़ जाएगी और वो उस नए लिंग को महसूस करते हुए अपने जेहन में बसा लेगी, फिर उसके बाद वो नया लिंग योनि को चोदकर उसे तृप्त करेगा फिर उसके अंदर अपना वीर्य छोड़ देगा, इसे वीर्य पर वीर्य की क्रिया भी बोलते है, मतलब उस स्त्री के पति के वीर्य के ऊपर नए लिंग का वीर्य पड़ना, यही अचूक उपाय है।
इतना कहकर नीलम ने शर्म के मारे दोनों हांथों से अपना मुँह छुपा लिया, शर्म से उसका चेहरा सच में लाल हो गया था, इतना ही नही महेंद्र के कान भी लाल हो गए ये सुनकर।
काफी देर तक सन्नाटा रहा कमरे में फिर महेंद्र बोला- ये सब तुम्हे अम्मा ने बताया है।
नीलम- नही जी, एक दिन अम्मा किसी पड़ोसन से धीरे धीरे ये सब बता रही थी कि उनके मायके में एक बूढ़ी तपस्वी स्त्री है वही ये सब उपाय जानती है, मेरी अम्मा उस पड़ोसन को बता रही थी तो मैंने चुपके से सुना था, परंतु यह उपाय अचूक असर करता है ये साबित हो भी चुका है।
महेन्द्र- क्या मतलब कैसे? कैसे ये पता तुम्हे की ये साबित हो चुका है।
नीलम- अरे उस पड़ोसन से अपने मायके में किसी को बताया होगा फिर उसने आजमाया और वैसा ही हुआ, एक दिन वो मिठाई लेकर आई थी मुँह मीठा कराने अम्मा का, मैं समझ गयी थी कि बात वही है।
महेन्द्र- तो इसका मतलब तो यही हुआ कि अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए ऐसा उपाय न अपनाकर ऐसा उपाय ही अपनाया जाय जो अचूक हो, और तुम बाबू जी के साथ.....
नीलम- छि: छि: ये कैसी बातें कर रहे हो तुम, मैं ऐसा कभी सपने में भी नही सोच सकती, वो पिता हैं मेरे, और मैं उनकी बेटी, पहले उपाय तक तो ठीक था, उसमे तो खाली मुझे उनका चेहरा देखना था बस, सुबह आंख खुलने के बाद मैं सबसे पहले उन्ही को देख लेती बस, पर ये दूसरा उपाय, ये महापाप तो मैं कभी नही करूँगी, तुमने ये सोचा भी कैसे?
महेन्द्र - क्योंकि पहला उपाय तो कारगर है ही नही उसका कोई भरोसा है ही नही सफल हो या न हो, इसलिए सोचा, और मैंने अब तुम्हे ये वचन दे दिया है कि तुम्हारी शर्त के हिसाब से जो भी तुम्हारी इच्छा होगी उसको मैं पूरा करूँगा ही, और तुम्हारी इच्छा है कि तुम्हे बाबू जी की सीरत वाला बच्चा चाहिए, और अगर मैं अपना वचन पूरा नही करता हूँ तो पहली बात तो तुम हमेशा हमेशा के लिए अपने मायके में रहोगी और दूसरी बात तुम भी अपना दिया हुआ वचन पूरा नही करोगी, तो ये सब तो एक जंजीर की तरह, एक कड़ी की तरह बंध गया है, मैं तो अब खुद ही इस चक्रव्यूह में उलझ गया हूँ, बोलो क्या करूँ मैं....इसलिए मैंने ये बोला। या तो तुम अपनी ये इच्छा छोड़ दो।
नीलम जानबूझकर थोड़ा सुबकते हुए- मैं अपनी ये इच्छा नही छोड़ सकती। पर मैं ये पाप भी नही कर सकती। ये महापाप है, एक बेटी अपने ही पिता के सामने निवस्त्र..... सोचकर ही मैं शर्म से गड़ी जा रही हूं।
महेन्द्र- अच्छा एक बात बताओ...... क्या बाबू जी ये सब कर पाएंगे?.....करेंगे, क्या वो मान जाएंगे?
नीलम जानबूझकर काफी गंभीर बनते हुए- दुनियां के और पिताओं का तो मुझे पता नही पर मैं अपने पिता को तो अच्छे से जानती हूं, वो मुझसे बेहद प्यार करते है, वो मेरी इच्छा पूर्ति के लिए इस काम को दिल से तो नही पर फ़र्ज़ के तौर पर अंजाम जरूर देंगे, उनके लिए मैं और मेरी इच्छा सर्वोपरि हैं। पर मैं ये महापाप नही कर सकती। कभी नही।
(इतना कहकर नीलम फिर सुबकने लगी, महेंद्र नीलम को गले से लगाकर चुप कराने लगा)
महेन्द्र- और तुम अपनी इच्छा का जिसको तुमने कई सालों से मन में पाल रखा है उसका गला घोंट सकती हो, और दूसरी बात फिर मेरा वचन भी टूट जाएगा और फिर वचन के मुताबिक तुम यही मायके में रहोगी, उम्र भर....ये भी तो सोचो।
नीलम काफी देर तक चुप रही।
महेन्द्र- तुम्हे ये करना ही होगा, क्योंकि कई वचन एक दूसरे की कड़ी बन चुके हैं एक भी टूटा तो बहुत कुछ बदल जायेगा।
नीलम- चुप रहो अब.....कितना गलत है ये.....माना की मैंने उपाय बताया पर मैं अनर्थ नही कर पाऊंगी, ये पाप ही नही महापाप है।
महेन्द्र- कभी कभी हमे कुछ अच्छे के लिए और कुछ पाने के लिए मन मजबूत करके वो काम भी करने पड़ जाते हैं जिनको करने का हमारा बिल्कुल मन नही होता, और ये तो तुम्हे करना ही पड़ेगा और मुझे तुम्हारी इच्छा की पूर्ति वचन के मुताबिक पूरी करनी ही पड़ेगी। ये कहाँ ला के खड़ा कर दिया तुमने बातों बातों में मुझे।
नीलम- मैंने कुछ नही किया, शायद ये नियति यही चाहती है, तभी ये सब होता चला गया।
महेन्द्र- खैर जो भी है अब वचन तो पूरा करना ही है मुझे, पर मेरे पास एक सुझाव है।
नीलम ने बड़ी मुश्किल से नज़रें उठा कर महेन्द्र को देखा- क्या.....क्या सुझाव
महेन्द्र- तुम कमर से ऊपर अपने चेहरे और मुँह को अच्छे से ढक लेना, जब तुम ये कह ही रही हो कि पिताजी अगर ये स्वीकार करेंगे भी तो केवल फ़र्ज़ के तौर पर तो ये पाप तो नही होगा, क्योंकि पाप तो तब होगा न जब मन में जेहन में वासना का संचार हो, जब पिताजी तुम्हे उस नज़र से देखेंगे ही नही और तुम्हारे मन में भी ऐसा कुछ नही होगा तो ये पाप तो नही हुआ...मेरे ख्याल से।
(नीलम ये समझ गयी कि महेन्द्र को अब कोई दिक्कत नही है, और महेंद्र ये बोलते हुए शायद यह भूल गया था कि दूसरे उपाय में स्त्री दूसरे पुरुष की छुवन की लज़्ज़त को महसूस कर अपने जेहन में उतारेगी तभी वह उपाय सफल होगा और बिना वासना जागे ये हो ही नही सकता था, बिना वासना के जागे सफल संभोग हो ही नही सकता, उस अंग को देखकर वासना न जागे ये हो ही नही सकता)