Update- 67
महेन्द्र ने हाँथ पीछे ले जाकर नीलम की साड़ी को ऊपर उठाया और अपने दोनों हांथों को नीलम के घुटने के पीछे वाले हिस्से पर से धीरे धीरे सहलाते हुए ऊपर को आने लगा तो नीलम ने मस्ती में आंखें बंद कर ली फिर एकदम से महेंद्र के हांथों को संबोधित करते हुए बोली- ये दोनों मित्र ऊपर की तरफ कहाँ जा रहे है, सैर करने?
महेंद्र- नही, ये दोनों मित्र तो मलाई खाने के लिए निकले हैं।
नीलम- मलाई....कहाँ है मलाई?, कहाँ मिलेगी इनको मलाई?
महेन्द्र- मलाई तो दो पहाड़ों के उस पार घाटी के रास्ते से जाने पर एक जगह हैं वहां मिलेगी।उस जगह पर बहुत ही कोमल और मुलायम दो परत हैं जो आपस में एक दूसरे से लिपटी रहती हैं, उन्ही परत को रगड़ने पर वो मलाई निकलती है, बस आज ये दोनों मित्र वही मलाई लेने जा रहे हैं।
ऐसा कहकर महेंद्र ने अपने दोनों हाँथ नीलम की 36 साइज की चौड़ी सपंज जैसी गाँड़ पर पहुँचा दिए और सहलाते हुए बोला- देखो चढ़ गए न ये दोनों मित्र पहाड़ पर।
नीलम की आंखें तो मस्ती में बंद ही थी, महेंद्र के हाँथ को अपनी गाँड़ पर बहुत अच्छे से वो महसूस कर रही थी, कुछ देर महेंद्र ने नीलम की गाँड़ का अच्छे से मुआयना किया, फिर अपने हाँथ को नीलम की गाँड़ की गहरी दरार के अंदर डालते हुए महकती बूर की ओर ले जाते हुए बोला- अब देखो ये दोनों मित्र कैसे मलाई खाने के लिए उस जगह की तरफ जा रहे हैं।
नीलम- आआआआहहहह.......देखना घाटी में ही एक सुरंग भी मिलेगी रास्ते में, उसमे मत अटक जाना।
महेन्द्र ने झट से नीलम की गाँड़ के छेद को प्यार से दोनों हाँथ की उंगलियों के हल्का सा सहलाते हुए बोला- ये वाली सुरंग
नीलम- हाय......आआआआहहहह......हां यही वाली।
महेन्द्र- न.....हरगिज़ नही.....आज ये दोनों मलाई की तलाश में निकले हैं तो सीधा वहीं जायेगे।
और महेन्द्र का हाँथ धीरे धीरे बूर की तरफ बढ़ने लगा। नीलम की बूर मादक बातों से और महेंद्र की बहन सुनीता की कल्पना करके काफी पनिया गयी थी, जोश के मारे थरथरा तो खुद महेन्द्र भी रहा था।
नीलम- बहन की मलाई खाओगे।
महेंद्र- ह्म्म्म।
इतना कहकर महेंद्र ने जैसे ही अपना हाँथ नीलम की दहकती बूर पर रखा नीलम ने सिसकते हुए आगे की तरफ से साड़ी के ऊपर से ही महेंद्र का हाँथ पकड़ लिया, महेंद्र ने नीलम की आंखों में देखा और बोला- मलाई तो चाटने दो न मेरी जान, बहुत मन कर रहा है।
नीलम- ये मलाई तो शर्त मनाने पर मिलेगी।
महेंद्र- तो शर्त तुम बता कहाँ रही हो, बताओ शर्त मैंने कब मना किया कि नही मानूंगा, पर जब ये दोनों मित्र मलाई की दुकान तक पहुंच ही गए हैं तो पहरेदारों ने क्यों पकड़ लिया इनको...हम्म्म्म
नीलम- चलो ठीक है एक बार मलाई खा लो, पहरेदार छोड़ देते हैं तुम्हारे इन मित्रों को, पर एक बार मलाई खाने के बाद शर्त सुनना ठीक.....तभी और मलाई मिलेगी।
महेन्द्र- जो हुकुम मेरे आका
नीलम ने अपना हाँथ हटा लिया और अपना बायां पैर उठा कर बगल में रखी सरसों की खली की बोरी के ऊपर रख दिया जिससे उसकी मोटी मोटी सुडौल जांघें खुलने से बूर की मखमली फांके हल्का सा फैल गयी, बूर काफी पनियायी होने की वजह से महेन्द्र की उंगलियों में नीलम की बूर का प्यारा महकता रस लग चुका था, महेन्द्र ने अपना हाँथ खींचा और उस रस को पहले आंखे बंद करके हल्का सा सूँघा फिर जीभ निकाल के प्यार से चाटने लगा तो नीलम बोली- गंदे.....पहले तो कभी ऐसे मलाई नही खाई आज कैसे? बहन को याद करके, है न.....इतना तरसते हो तुम सुनीता की मलाई के लिए, हाय सगी बहन की चाहत।
महेन्द्र- हाँ तरसता तो हूँ.....पर यही सोचता था कि सगी बहन की कभी मिल नही सकती संभव ही नही........रिश्ता ही ऐसा है तो कैसे मिलेगी........पर तुमने तो सब संभव कर दिया........मैं जीवन भर तुम्हारा गुलाम मेरी जान।
नीलम- तुम भी मेरी कुछ चीज़ संभव करो, मेरी शर्त मानकर।
महेन्द्र- तो बताओ मेरे आका क्या शर्त है तुम्हारी।