Update- 69
नीलम चुप बैठी रही महेंद्र ने फिर बोला- हमे दूसरे उपाय को ही अपनाना चाहिए।
नीलम- मुझसे ये नही होगा, वो पिता हैं मेरे अभी तक मैं उनकी छुअन को एक पिता के स्नेह के रूप में ही महसूस करती आई हूं, मेरा मन उन्हें एक आनंदित पुरुष के रूप में कैसे स्वीकार कर पायेगा और जब मन इसे स्वीकार नही कर रहा तो तन उन्हें कैसे सौंप पाऊंगी। एक सगे पिता और बेटी के बीच यौनानंद तो एक व्यभिचार है।
महेंद्र- तुम इसे एक फ़र्ज़ की तरह क्यों नही ले रही हो, मुझे पूरा विश्वास है कि बाबू जी इस बात को अवश्य समझेंगे और वो पहले तुम्हारा मन जीतेंगे और फिर बाद में इसे बस एक कर्तव्य की तरह निभायेंगे। तुम्हे तुम्हारी इच्छा की सौगंध है तुम्हे ये अचूक उपाय करना ही होगा, तभी मेरा भी वचन पूरा होगा।
नीलम- तुमने मुझे सौगंध क्यों दी?
(नीलम ने एक बनावटी बेबसी दिखाते हुए कहा)
महेन्द्र- क्योंकि तुम समझ नही रही की बस यही एक रास्ता है, बस अब मुझे कुछ नही सुनना, तुम भी अब कुछ नही सोचोगी, अब सोचना नही करना है। करने लगो तो सब होने लगता है, चलो अब इस प्यारे से चेहरे पर मुस्कुराहट लाओ, ये राज सिर्फ मेरे और तुम्हारे बीच ही रहेगा हमेशा, ये वचन तो मैं दे ही चुका हूं। बस तुम अपना वचन निभाना मत भूलना।
नीलम ये सुनते ही मुस्कुरा दी, फिर महेन्द्र की आंखों में देखते हुए बोली- भैया....ओ मेरे भैया जी, लो मैं तुम्हे भैया बोल रही हूं नही भूलूंगी मैं भी अपना वचन।
महेन्द्र ये सुनते ही गनगना गया और मुस्कुराने लगा।
नीलम बोली- तुम बेफिक्र रहो तुम्हे तो मैं जन्नत की सैर कराऊँगी।
महेन्द्र- तो फिर तुम कागज पर सब कुछ लिख के रखो, शाम को बाबू की के आते ही उन्हें दे देना।
नीलम- क्यों तुम नही दोगे, मैं ही दूँ।
महेन्द्र- हाँ तुम ही किसी तरह उन्हें दे देना ये मैं नही कर पाऊंगा।
नीलम- चलो ठीक है ये भी मैं ही करूँगी।
तभी कुछ बच्चे बाहर आवाज लगाने लगते हैं- दीदी....ओ नीलम दीदी
नीलम महेन्द्र से हाँथ छुड़ा कर बाहर आई- हाँ..... कंचन, मंचन, राखी, सुलेखा क्या हुआ?
बच्चे- दीदी हम जामुन तोड़ लें!
नीलम मुस्कुराते हुए- हाँ जाओ तोड़ लो पर संभलकर तोड़ना, हल्ला मत करना ज्यादा।
बच्चे- ठीक है दीदी....नही करेंगे हल्ला......हमारी दीदी की जय हो......हमारी दीदी सबसे अच्छी........हमारी दीदी सबसे अच्छी (ऐसा नारा लगाते हुए काफी बच्चे जामुन के पेड़ के नीचे जाकर जामुन तोड़ने लगे)
नीलम मुस्कुरा उठी, महेन्द्र भी नीलम का जलवा देखकर हैरान था। महेन्द्र बाहर आकर लेट गया दोपहर के तीन बज चुके थे, क्योंकि अब बच्चे आ गए तो नीलम से इस वक्त कुछ मिलेगा इसकी उम्मीद अब उसे थी नही, नीलम भी घर में चली गयी।
उधर बिरजू शाम 4 बजे तक अपने मित्र के यहां पहुँचा तो देखा कि उसकी कुटिया में तो ताला लगा हुआ है उसने पड़ोस में पूछा तो पता लगा कि वो कुछ जड़ीबूटियों की खोज में हिमालय की यात्रा पर पिछले महीने ही चला गया है, न जाने अब कबतक आये, बिरजू को काफी निराशा हुई, उदास मन से वो घर की तरफ चल दिया, रास्ते में वो सोचे जा रहा था कि कितने उम्मीद से वो आया था सब पर पानी फिर गया, अब वो सब कैसे हो पायेगा, कैसे वो अपनी बेटी को नए रोमांच का मजा दे पाएगा, आखिर कैसे होगा वो सब जो नीलम चाहती है, उसे क्या पता था कि नीलम पहले ही सब चाल चलकर मामला सेट कर चुकी है, नीलम ने दूसरी तरफ ये सब करना इसलिए जरूरी समझा क्योंकि उसे लगा था कि अगर बाबू सफल नही हुए तो? इसलिए उसे अपनी तरफ से भी कुछ करके रख लेना चाहिये।
जैसे ही बिरजु शाम 6 बजे घर पहुंचा हल्का अंधेरा शुरू हो गया था, महेन्द्र खाट पर लेटा था, बच्चे जामुन तोड़कर जा चुके थे नीलम पशुओं को चारा डाल रही थी, अपने बाबू को दूर आता देखकर उसके चेहरे पर लालिमा छा गयी, महेन्द्र बिरजू को आता देख खाट से उठकर थोड़ा दूर हटकर अपने को छुपाता हुआ टहलने लगा, क्योंकि वो जनता था कि आज जो जो हुआ है उसकी वजह से उसके मन में बहुत बेचैनी थी और बिरजू के सामने अपने चेहरे के हावभाव वो सामान्य नही रख सकता था उसे संभलने के लिए कुछ वक्त चाहिए था।
बिरजू घर पर आ गया नीलम बिरजू के पास आई और बोली- बाबू आ गए आप, बैठो मैं पानी लाती हूँ।
बिरजू- हाँ बेटी ले आ, चल मैं घर में ही आ रहा हूँ।
नीलम ने बायीं तरफ मुड़कर देखा तो महेन्द्र टहलते टहलते पशुशाला की तरफ चला गया था, वो घर में चली गयी, बिरजू भी उसके पीछे पीछे घर में आ गया, नीलम ने देखा कि बिरजू कुछ उदास है।
नीलम- क्या हुआ बाबू? आप थोड़ा उदास हैं।
बिरजू- हाँ बेटी अब जिस काम के लिए जाओ वो न हो पाए तो मन उदास तो हो ही जाता है।
नीलम- ओहो....बस इत्ती सी बात के लिए मेरे बाबू उदास हो गए।
बिरजू- ये इत्ती सी बात नही है बेटी, बहुत बड़ी बात है, कैसे होगा वो सब जो तुम्हे सोचा था, मुझे तो लगा था कि मेरा वो मित्र कुछ जड़ीबूटियां देगा और वो दामाद जी को खिलाकर उनको सम्मोहित करके, उनके सामने प्यार कर सकेंगे, अब उनकी चेतन अवस्था में तो ये सम्भव हो नही पायेगा, और वो मित्र मिला नही, इसलिए मन उदास है।
नीलम- लेकिन मन उदास कीजिये मत बाबू, आखिर नीलम कोई चीज़ है कि नही।
बिरजू ने झट से नीलम को खींचकर बाहों में भर लिया और बोला- नीलम तो बहुत मीठी चीज़ है...बहुत मीठी और रसीली।
नीलम अपने मनपसंद पुरुष की बाहों में आकर सिरह उठी।
बिरजू ने ध्यान से अपनी बेटी को देखा, आंखें बंद करली नीलम ने, क्या सुंदरता थी नीलम की, एक पल ठहरकर बिरजू ने नीलम की सिंदूर भरी मांग को देखा, माथे पर दोनों तरफ झूलते बालों के लटों को देखा, फिर माथे पर लगी छोटी सी बिंदिया को निहारा, नही रहा गया तो एक गीला चुम्बन बेटी के माथे पर लिया, नीलम गदगद हो गयी, फिर बिरजू नीचे देखते हुए नीलम की आंखों पर पहुंचा शंखरूपी बड़ी बड़ी आंखें बंद थी, नीलम अपने बाबू की हरकत को अच्छे से महसूस कर रही थी तभी तो वो मंद मंद मुस्कुरा रही थी, पलकें उसकी हल्का हल्का हिल जा रही थी, बिरजू ने दोनों बंद आँखों को प्यार से चूमा और बोला- आंखें खोल न मेरी प्यारी बेटी।
नीलम मस्ती में- ओफ्फो....फिर बेटी.....वो बोलो न जो सिखाया था आपको और जो मुझे गनगना देता है।
बिरजू- अच्छा बाबा.....मेरी रंडी
नीलम का चेहरा शर्म से भर गया वो मस्ती में बोली- ये हुई न मेरे दिल की बात....अब दुबारा बोलो...मैं आँखें बंद करती हूं।
नीलम ने आंखें बंद कर ली
बिरजू- आंखे खोल न.....मेरी रांड
नीलम ने प्यार से मुस्कुराते हुए आंखे खोल कर बिरजू को निहारने लगी और बिरजू से रहा है नही गया उसने नीलम की कमर में हाँथ डाल के अपने से कस के चिपकाते हुए उसके रसीले होंठों को अपने होंठों में लेकर काट खाने की हद तक चूसने लगा, सिसकते हुए नीलम भी अपने बाबू से चिपक गयी, अपने होंठ तो वो खुद भी अपने मनपसंद मर्द से कटवाना चाहती थी पर थोड़ा डर रही थी कि कहीं महेन्द्र टहलता टहलता घर में न आ जाये, पर वो नही आएंगे ये भी विश्वास था फिर भी वो बोली- बाबू बस करो नही तो यहीँ सब कुछ हो जाएगा, क्या पानी नही पियोगे, बस मुझे ही खाओगे आते ही, मुझे रात में खाना अभी सब्र करो।
बिरजू- रात में बेटी का रस कैसे पियूँगा, दामाद जी जो हैं घर में।
नीलम- उसका इंतज़ाम भी मैंने कर दिया हैं, अपनी बेटी को क्या कच्चा खिलाड़ी समझा है, सब व्यवस्थित कर दिया है मैंने।
बिरजू चौंक गया- व्यवस्थित .......क्या व्यवस्थित......कैसे?......क्या किया तुमने?
नीलम - अभी बैठो पानी पियो, मैं एक कागज में सब लिखकर आपको दूंगी, आपके तकिए के नीचे रख दूंगी, सब पढ़ लेना और दिखावे के लिए उसका जवाब भी दूसरे कागज पर लिखकर मुझे देना, वो कागज पढ़ोगे तो सब पता चल जाएगा, सारी खीर पका दी है मैंने बस सिर्फ खाना खाना रह गया है। दिखावे के लिए अभी आपको मुझे चूड़ी पहनानी होगी, वो तो पहना नही पाए शर्त हार गए, और इस चूड़ी के खेल में मैंने ऐसा जाल बुना की अपने रोमांच का खेल खेलने का अखाड़ा तैयार कर दिया, समझे मेरे बाबू, अभी आप बाहर बैठो मैं खाना बनाने के साथ साथ वो सब कुछ जो आज दिन में मैंने किया एक कागज पर लिखकर आप तक पहुंचा दूंगी, आप उसे पढ़कर उत्तर देना और प्रतिउत्तर का कागज अपने दामाद जी के हांथों मुझे दिलवाना, फिर हम चूड़ी का खेल खेलेंगे और फिर खाना खाकर हम आज की इस हसीन रात को मिलकर रसीला बनाएंगे।
बिरजू ने नीलम के दोनों गालों पर बड़े प्यार से कामुक अंदाज में चुम्मा लिया और बोला- तू मुझे कितना खुश रखती है, तुझे ये अंदाज़ा था कि अगर मैं असफल हुआ तो क्या होगा, इसलिए खीर बना ही डाली।
नीलम- अपने मनपसंद मर्द से रसीला सुख पाने के लिए औरत को चाल चलना पड़े तो वो पीछे नही हटती, समझे मेरे बाबू। चलो अब बाहर बैठो।
ऐसा कहते हुए नीलम ने एक जोर का रसीला चुम्मा बिरजू के होंठों पर लिया और बिरजू तरसता हुआ बाहर आ गया, महेन्द्र अभी भी चूतियाओं की तरह दूर दूर ही घूम रहा था।
बिरजू- दामाद जी आओ इधर बैठो....क्या हुआ, ऊबन हो रही है क्या?
महेंद्र झिझकते हुए पास आ गया और दूसरी खाट पर बैठ गया फिर बोला- अरे नही बाबू जी ऊबन कैसी, अपने घर में कैसी ऊबन, आप कहीं गए थे किसी काम से? क्या हुआ हो गया वो काम?
बिरजू- नही बेटा काम तो नही हुआ जिससे मिलना था वो मिला नही।
महेन्द्र और बिरजू ऐसे ही काफी देर बातें करते रहे महेन्द्र की झिझक कुछ कम हुई पर बार बार आज जो दिन में हुआ और अब आगे आज रात क्या होगा यही उसके दिमाग में आ जा रहा था, की अगर बाबू जी मान गए तो कैसे होगा वो खुद कैसे इसको ग्रहण करेगा और नही माने तो क्या होगा। खैर ये तो अब आने वाला वक्त ही बताएगा कि क्या कैसे होगा?
वक्त बीता नीलम ने खाना बनाते बनाते दिन भर का सारा वृतांत ज्यौं का त्यौं कागज पर उतार दिया और महेंद्र और बिरजू के सामने, उस कागज को एक चाय की प्लेट में चाय के साथ लेकर बाहर आई।
बिरजू- अरे बेटी चाय ले आयी, अच्छा ही किया मैं बोलने ही वाला था।
तभी पशुशाला में बंधी भैंस आवाज करने लगी।
बिरजू- भैंस चिल्ला रही है शायद प्यासी है ऐर्क बाल्टी पानी दिखा दे उसको बिटिया, तेरी अम्मा भी न जाने कब आएगी, वो रहती है तो ये सब चिंता हम बाप बेटी को नही करनी पड़ती।
नीलम ने हंसते हुए चाय की प्लेट जिसमे घर की बनी नमकीन और वो कागज रखा था नीचे टेबल पर रखा और वो कागज उठाकर महेंद्र को दिखाते हुए अपने बाबू को देते हुए बोली- बाबू ये लो।
बिरजू- इसमें क्या है बेटी।
नीलम- बाबू इसमें मेरी इच्छा कैद है।
महेन्द्र ने सर नीचे कर लिया।
बिरजू- कैसी इच्छा बेटी।
नीलम- है एक इच्छा बाबू, पढ़ लेना और अगर आप इससे विचलित हो जाये या सहमत न हो तो माफ कर देना अपनी इस अभागन बिटिया को और अगर आपको जरा भी लगे कि मेरी खुशी में आपकी खुशी है तो इसका जवाब किसी कागज पर लिखकर दे देना।
(नीलम ने जानबूझकर महेन्द्र के सामने ये सब कहा)
बिरजू ने दिखावे का असमंजस भरा हावभाव चेहरे पर लाते हुए कहा- तू निश्चिन्त रह बेटी, मेरी बेटी की खुशी में ही मेरी खुशी है।
नीलम- नही बाबू.....पहले आप इसको पढ़ लेना......बिना सोचे समझे इंसान को भावनाओं में बहकर हमेशा निर्णय नही लेना चाहिए, पहले आप पढ़ लेना तब ही अपना जवाब देना....चाय पीजिए और मैं जाती हूँ भैंस को पानी पिला के आती हूँ और हाँ एक बात तो कहना ही भूल गयी।
बिरजू- बोल
नीलम- आप मुझे हमेशा की तरह चूड़ियां पहनाइए इन्हें भी देखना है, विश्वास नही हो रहा है इनको की आप इतनी अच्छी चूड़ियां पहना देते हो मुझे, दिन में चूड़ी वाली आयी थी तो मैंने नई चूड़ियां ली अपने लिए, कुछ अम्मा के लिए और रजनी दीदी के लिए भी ली थी।
बिरजू हंसता हुआ- अच्छा तो तुमने दामाद जी को ये बता दिया, की चूड़ियां अक्सर मैं पहना देता हूँ तुम्हे।
नीलम- हाँ तो क्या हो गया इसमें कोई बुराई है क्या।
बिरजू- अरे नही बाबा बुराई किस बात की ये तो प्यार है बाप बेटी का, चलो ठीक है ले आओ चूड़ियां पहना देता हूँ।
महेन्द्र भी बिरजू और नीलम को देखकर मुस्कुराने लगा।
नीलम पहले तो गयी कुएं से एक बाल्टी पानी निकाल कर दोनों भैंसों को पिला आयी फिर घर में गयी, रसोई में जाकर चूल्हे पर रखी परवल की सब्ज़ी को चलाकर चूल्हे में लगी आग को मद्धिम करके आंगन में खाट पर रखी अपनी चूड़ियां लेकर बाहर आ गयी।
बिरजू ने नीलम का हाँथ अपने हांथों में लिया, मन ही मन नीलम सिरह रही थी, अपनी बेटी के नरम हांथों को छूकर सब्र तो बिरजू से भी नही हो रहा था पर महेन्द्र वहीं बैठा दोनों को देख रहा था और ये सब स्वीकार करते हुए हज़म करने की कोशिश में लगा था।
बिरजू ने एक एक करके बड़े प्यार से नीलम को देखते हुए दोनों हांथों में 23 चूड़ियां पहना दी फिर बोला- अरे ये तो 23 ही हैं 24 होनी चाहिए न, 12 एक हाँथ की और 12 दूसरे हाँथ की।
नीलम- एक चूड़ी तो टूट गयी न, तो 23 ही बची।
बिरजू- फिर ये तो विषम है, सम होना चाहिए न।
नीलम ने कुछ चूड़ियां अतिरिक्त ले ली थी उनको देते हुए बोली- लो बाबू इसमें से एक पहना दो और बिरजू ने वो भी पहना कर दोनों हांथों में दोनों चूड़ियां पूरी कर दी।
नीलम ने महेन्द्र की तरफ देखते हुए बोला- देखा आपने कैसे पहनाई सारी चूड़ियां एक भी नही टूटी और तेल भी नही लगाया था हाँथ में।
महेन्द्र भी मान गया और बोला- वाकई बाबू ने कितनी सरलता से सारी चूड़ियां पहना दी, जबकि उनके हाँथ मेरे हाँथ से सख्त हैं।
नीलम, महेन्द्र और बिरजू सब हंस दिए, नीलम बोली- अच्छा चलो मैं खाना निकालती हूँ, आप लोग आओ घर में वहीं आंगन में खाना खाएंगे सब।
सबने खाना खाया, बिरजू और महेन्द्र दोबारा बाहर आ गए नीलम ने पीछे वाले कमरे में जहां से सिसकारियों की आवाज बाहर न जाये एक चौड़ी पलंग बिछा दी, जिसपर आज तीन लोग सोने वाले थे।
बिरजू बाहर आके बाहर बने एक दालान में गया जिसमें लालटेन जल रही थी, महेन्द्र बाहर ही लेटा रहा वो समझ गया कि बाबू दालान में वो कागज पढ़ने जा रहे हैं, वो दालान थोड़ी दूर पर ही था।
बिरजू ने वो कागज खोला और पढ़ने लगा, सबकुछ पढ़ने के बाद एक बार तो उसे विश्वास नही हुआ कि नीलम ने इतना कुछ कर डाला, पर उसकी सूझबूझ और रास्ता निकालने की कला पर खुश हो गया और गर्व महसूस करने लगा, उसे ये बात जानकर हैरानी हुई कि उसका दामाद अपनी सगी बहन को भोगना चाहता है पर उसने इसे सामान्य तौर पर लिया और कभी भी अपने चेहरे पर ऐसा कोई भी भाव न लाने का वचन खुद से ही लिया जिससे उसके दामाद को शर्मिंदगी न हो, सब पढ़ने के बाद वो पूरी कहानी समझ गया, नीलम ने उस कागज में यहां तक लिख दिया था कि मैं पीछे वाले कमरे में पलंग बिछाऊंगी और हम तीनो उसपर एक साथ सोएंगे, मैं और आपके दामाद जी पहले उस कमरे में चले जायेंगे और जब लालटेन बुझा देंगे तब आप आना।
बिरजू ने बगल में रखी किताबों के बीच में से एक पन्ना उठाया और उसमे अपना विचार अपना निर्णय लिख कर बाहर आ गया, उसने देखा महेन्द्र घर में जा चुका था, वह वहीं खाट पर बैठ गया, कुछ ही देर में नीलम बाहर आई और दरवाजे पर ही खड़ी होकर बिरजू को देखने लगी, बिरजू ने वो कागज नीलम को थमाया और धीरे से बोला- मैं कुछ देर बाद आता हूँ, नीलम मुस्कुराई और बोली- ज्यादा देर मत लगाना और अपने बाबू के हाँथ से वो कागज लेकर अंदर चली गयी, अंदर जाकर उसने महेन्द्र के सामने पलंग पर लेटकर वो कागज जल्दी से खोला और पढ़ने लगी।