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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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Soniya7784

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बिरजू जैसे ही दरवाजा खोलकर कमरे में दाखिल हुआ और पलटकर दरवाजे की सिटकनी लगाई महेन्द्र जो नीलम के ऊपर चढ़ा हुआ था धीरे से अंधेरे में नीचे उतरकर बायीं तरफ लेट गया, नीलम मंद मंद हंसने लगी। बिरजू अंदाजे से पलंग तक आया और धीरे से बिस्तर पर लेट गया पलंग पर लेटते ही हल्की चरमराहट की आवाज हुई, ये पलंग बिरजू की शादी की थी जो उसके ससुर ने दी थी उपहार में, काफी पुरानी हो गयी थी पर अब भी मजबूत थी, इसी कमरे में हमेशा रखी रहती थी, काफी लंबी चौड़ी और भारी होने की वजह से कोई इस पलंग को जल्दी अपनी जगह से इधर उधर नही करता था।

कमरे में गुप्प अंधेरा था, सब सोने की कोशिश करने लगे, नीलम बीच में थी महेंद्र बायीं तरफ और बिरजू नीलम से थोड़ा सा दूर दाईं तरफ, नींद किसको आ रही थी, बिरजू ने पैर के पास रखा हल्का चादर उठाया और सर से लेकर पैर तक ओढ़कर लेट गया, कमरे में गुप्प अंधेरा होने के बावजूद भी आंखें अभ्यस्त होने के बाद हल्का हल्का दिख ही रह था।

सब चुपचाप लेटे थे, नीलम का भी आखिरी वक्त पर वाकई में शर्म से बुरा हाल था माना कि सब उसी की इच्छा थी, सब उसने ही किया था पर अब आखिरी वक्त पर उसे भी लज़्ज़ा आ रही थी, महेन्द्र तो बकरी बनकर बायीं तरफ लेटा हुआ था हालांकि वो नीलम से लिपटा हुआ था पर अभी तक वो जितना भी उत्तेजित हुआ था सब मानो छूमंतर सा हो गया था, बिरजू तो दायीं तरफ थोड़ा दूर ही लेटा था। नीलम समझ गयी कि मुझे ही कुछ करना पड़ेगा, नीलम ने अपना सीधा हाँथ अंधेरे में सरकाकर अपने बाबू की ओर बढ़ाया और उनकी धोती को पकड़कर हल्का सा खींचकर चुपचाप अपनी तड़प का इशारा किया, बिरजु ने अपनी बेटी के हाँथ को अंधेरे में अपने हाँथ में लिया और हल्का सा दबाकर थोड़ा सा सब्र रखने का इशारा किया। नीलम ने फिर हाँथ वापिस खींच लिया और महेन्द्र के कान में धीरे से बोला- भैया

ये सुनते ही महेन्द्र को अजीब सी सनसनाहट हुई, लन्ड में उसके हल्का सा कंपन हुआ, नीलम सीधी पीठ के बल लेटी थी और महेंद्र दायीं तरफ करवट लेकर नीलम के बायीं तरफ लेटा था, नीलम ने बहुत धीरे से महेन्द्र को भैया बोला था पर फिर भी बिरजू तक आवाज गयी, बिरजू जो अब सबकुछ जान चुका था उसको ज्यादा कुछ खास अचंभा नही हुआ, वो जनता था कि नीलम शरारती है कुछ न कुछ वो करेगी ही, सब कुछ बिरजू के सामने खुल ही गया था बस दिखावे की एक लज़्ज़ा की दीवार थी पर इस दीवार को तोड़कर निर्लज्ज कोई नही होना चाहता था क्योंकि असली मजा तो शर्म में ही है।

महेन्द्र ने भी धीरे से नीलम के कान में सकुचाते हुए बोला- दीदी......मेरी प्यारी बहना

इतना कहकर महेन्द्र नीलम को चूमने लगा, धीरे धीरे वो नीलम के ऊपर चढ़ने लगा नीलम भी बड़े आराम से शर्माते हुए महेन्द्र के नीचे आने लगी, शर्म झिझक और असीम वासना का मिला जुला अहसाह देखते ही बन रहा था, जीवन में आज पहली बार महेन्द्र अपनी पत्नी के ऊपर चढ़ रहा था और बगल में उसका ससुर लेटा था जो कि जग रहा था, यही हाल नीलम का भी हो चला था किसी ने सच कहा है सोचने और वास्तविक रूप में करने में काफी फर्क होता है, कितना अजीब लग रहा था कि उसके बाबू की मौजूदगी में महेन्द्र उसके ऊपर चढ़ रहा था, और बहन भाई की कल्पना की उमंग ने अलग ही रोमांच बदन में भर दिया था, देखते ही देखते महेन्द्र का उत्तेजना के मारे बुरा हाल हो गया क्योंकि नीलम उसके कान में धीरे धीरे भैया.....मेरा भाई...बोले ही जा रही थी, वो संकोच की वजह से बहन कम ही बोल रहा था पर व्यभिचार के इस लज़्ज़त को महसूस कर अतिउत्तेजित होता जा रहा था, धीरे धीरे नीलम और महेन्द्र की झिझक कम होती गयी और वो दोनों एक दूसरे के होंठों को चूसने लगे, महेन्द्र नीलम के ऊपर पूरा चढ़ चुका था वो उसके बदन को बेतहाशा सहला रहा था, नीलम ने भी शर्माते शर्माते महेन्द्र को अपनी बाहों में भर ही लिया और प्रतिउत्तर में उसके होठों को चूसने लगी, एकाएक महेन्द्र का हाँथ नीलम की 34 साइज की सख्त हो चुकी चूची से जा टकराया तो उसने तुरंत ब्लॉउज में कैद नीलम की नरम मोटी चूची को जिसके निप्पल अब सख्त हो चुके थे अपनी हथेली में भरकर दबा दिया, नीलम हल्का सा सिसक गयी, महेन्द्र दोनों हांथों से नीलम की दोनों चुचियों को दबाने लगा, नीलम घुटी घुटी आवाज में हल्का हल्का कसमसाने लगी, उत्तेजना बदन में हिलोरें मारने लगी, नीलम को उत्तेजना इस बात से ज्यादा हो रही थी कि बाबू उसके बगल में ही लेटे अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे हैं और ये अब कितना रोमांचक होने लगा है, कमरे में गुप्प अंधेरा था अगर उजाला होता तो शायद ये सम्भव न हो पाता, लज़्ज़ा की चादर ओढ़े अब धीरे धीरे काम वासना तन और मन पर कब्ज़ा करने लगी थी, नीलम अब खुलने लगी, महेंद्र लगातार उसकी नरम नरम गुदाज चूचीयों को दोनों हांथों से मसले जा रहा था, नीलम के खड़े हो चुके निप्पल को पकड़कर वो मसलने लगा, ऐसा करने से एक सनसनी नीलम के बदन में ऊपर से नीचे तक दौड़ गयी, कराह कर वो दबी आवाज में बोली- आआआआहहहह...भैय्या.....धीरे से

बूर नीलम की गरम तो पहले से ही थी पर अब मारे जोश के पिघलने सी लगी, नीलम का आधे से ज्यादा ध्यान अपने बाबू पर था, उसने अपनी मांसल जाँघों को फैलाकर पैर को उठाया और महेन्द्र की कमर में कैंची की तरह लपेट दिया, नीलम का महेन्द्र को इस तरह स्वीकारना बहुत अच्छा लगा, महेन्द्र नीलम के चेहरे को बेताहाशा चूमते हुए गर्दन पर आ गया नीलम बड़े प्यार से अपना बदन महेन्द्र को सौंपे जा रही थी, महेन्द्र ने नीलम की गर्दन पर गीले गीले चुम्बन देना शुरू कर दिया तो मस्ती में नीलम ने भी अपनी आंखें बंद करते हुए सर को ऊपर की तरफ पीछे करते हुए अपनी गर्दन को उभारकर महेन्द्र को परोस दिया, दोनों लाख कोशिश कर रहे थे कि आवाज न हो पर फिर भी चूमने सिसकने की हल्की हल्की आवाज हो ही रही थी।

चूमते चूमते महेन्द्र नीचे आया और नीलम के ब्लॉउज का बटन खोलने लगा अब नीलम मारे उत्तेजना के सिसक उठी क्योंकि अब वो निवस्त्र होने वाली थी, बगल में उसके बाबू लेटे थे, दोनों दुग्धकलश अब उसके बेपर्दा होने वाले थे, नीलम ने खुद ही अपने दोनों हाँथ को उठाकर सर के ऊपर रख लिया जिससे ब्लाउज में कसी उसकी दोनों चूचीयाँ और ऊपर को उठ गई, महेंद्र ने पहले तो झुककर नीलम की काँख में मुँह लगाकर उसके पसीने को अच्छे से सुंघा फिर ब्लॉउज के ऊपर से ही काँख में लगे पसीने को चाटने लगा, थोड़ी गर्मी की वजह से, थोड़ा उमस की वजह से और ज्यादा वासना और उत्तेजना की वजह से तीनों पसीने से तर भी हो रहे थे, नीलम का पसीना अच्छे से चाटने के बाद महेन्द्र ने एक ही झटके में नीलम के ब्लॉउज के सारे बटन खोलकर ब्लॉउज के दोनों पल्लों को अगल बगल पलट दिया और ब्रा में कैद नीलम की उत्तेजना से ऊपर नीचे होती हुई दोनों मोटी मोटी 34 साइज की चुचियों के बीच की घाटी में सिसकते हुए मुँह डालकर ताबड़तोड़ चूमते हुए धीरे से बोला- ओह बहना.....और एक हाँथ से दायीं चूची को हथेली में भरकर मीजने लगा, नीलम ने कराहते हुए हाथ बढ़ा कर थोड़ा दूर लेटे अपने बाबू का हाँथ पकड़ लिया और जोश में उनकी उंगलियों में अपनी उंगलियां फंसा कर दबाने लगी। इधर महेंद्र मानो नीलम की चूचीयों को अपनी बहन सुनीता की चूची समझते हुए उनपर टूट ही पड़ा जिससे नीलम थोड़ा जोर जोर सिसकने लगी और अपने दोनों पैर के अंगूठों को उत्तेजना में तेज तेज आपस में रगड़ने लगी।

बिरजू सर तक पूरा चादर ओढ़े अभी तक सन्न पड़ा हुआ उत्तेजना में लाल हो चुका था उसका 8 इंच का तगड़ा काला लन्ड फुंकार मारने लगा। वो बस नीलम के नरम नरम हांथों को मारे उत्तेजना के हौले हौले दबा रहा था लेकिन अपने बाबू की केवल इतनी सी छुवन नीलम को उत्तेजना से भर दे रही थी, अंधेरे में एक तरफ उसका पति उसके ऊपर चढ़कर उसकी चूचीयाँ खोले मसल रहा था और दूसरी तरफ उसके बाबू सिर्फ उसके नरम हाथ को प्यार से सहलाकर काम चला रहे थे।

महेन्द्र ने हाथ पीछे ले जाकर नीलम की ब्रा का हुक भी खोल दिया और उसकी ब्रा को निकालकर पलंग से नीचे ही गिरा दिया, नीलम ने हल्का सा उठकर खुद ही अपना ब्लॉउज भी अंधेरे में निकाल दिया अब वो सिर्फ साड़ी में रह गयी थी कमर से ऊपर का हिस्सा उसका पूरा निवस्त्र हो चुका था, झट से वो लेट गयी और इन सभी क्रिया में उसके माध्यम आकर के खरबूजे समान उन्नत दोनों चूचीयाँ इधर उधर स्वच्छंद हिलकर महेंद्र को पागल कर गयी, जैसे ही वो लेटी उसकी दोनों चूचीयाँ किसी विशाल गुब्बारे की तरह उसकी छाती पर इधर उधर हिलने लगे, महेंद्र से अब सब्र कहाँ होने वाला था झट से वो उन सपंज जैसी उछलती मचलती चूचीयों पर टूट पड़ा और बेसब्रों की तरह चूचीयों पर पहले तो जहां तहां चूमने लगा फिर एकाएक बारी बारी से दोनों निप्पल को पीने लगा, नीलम के निप्पल तो फूलकर किसी जामुन की तरह बड़े हो गए थे और वासना में कड़क होकर खड़े हो चुके थे, कुछ देर तक वो नीलम की चूचीयाँ पीता और मसलता दबाता रहा फिर नाभी को चूमने लगा नीलम मस्ती में एक हाँथ से उसका सर सहलाने लगी और दूसरा हाँथ जो उसके बाबू के हाँथ में था उससे वो अपने बाबू के हाँथ को सहला रही थी, अब उससे रहा नही जा रहा था वो अब बस खुद को दो मर्दों के बीच मस्ती में डूबी एक औरत समझ रही थी जिसको सिर्फ और सिर्फ अब लन्ड चाहिए था, एक के बाद एक लन्ड।

उसकी शर्म और झिझक अब काफी हद तक गायब हो चुकी थी, उसने जानबूझ कर धीरे से कई बार महेन्द्र को भैया बोला ताकि महेन्द्र ज्यादा उत्तेजित होकर जल्दी अपना काम करके हटे और फिर आज की रात असली पाप हो।

इधर बिरजू भी चादर में से अपना मुँह निकालकर नीलम को देखने लगा नीलम ने सर घुमाकर अपने बाबू को देखा तो वो उसकी तरफ ही देख रहे थे नीलम ने उनके हाँथ से अपना हाथ छुड़ाकर उनके होंठों पर अपनी उंगलियां रख दी और अंधेरे में बड़े प्यार से उनके होंठों पर अपनी उंगलियां रगड़ने लगी मानो कह रही हो कि मुझे अपने बदन पर एक एक अंग पर इन होंठों से चुम्बन चाहिए।

इधर बिरजू ने चादर के अंदर ही दूसरे हाँथ से अपनी धोती खोल कर काला विशाल लन्ड बाहर ही निकाल लिया था।

महेन्द्र के सब्र का बांध अब टूट चुका था तो उसने नीलम की साड़ी को नीचे से ऊपर की ओर उठाना शुरू कर दिया शर्म और झिझक तो अब भी उसके मन में थी पर वासना भी भरपूर थी, नीलम अब और भी मचल उठी क्योंकि अब उसकी जाँघों के बीच की जन्नत उजागर होने वाली थी, महेंद्र ने साड़ी को आखिर कुछ ही पलों में उठाकर कमर तक कर दिया और अपने हांथों से नीलम की दोनों मांसल जाँघों और उसमे कसी कच्छी को ऊपर से ही सहलाने लगा जैसे ही उसने नीलम की कच्छी के ऊपर से ही उसकी बूर पर हाँथ रखा तो वह वहां भरपूर गीलापन महसूस कर मदहोश हो गया और झुककर कच्छी के ऊपर से ही बूर के रस को चाटने लगा, अंधेरे में इस अचानक हमले से नीलम सिसकते हुए चिहुँक पड़ी और ओह मेरे भैया कहते हुए उसके सर को सहलाने लगी, कुछ देर महेन्द्र झुककर ऐसे ही नीलम की जाँघों और कच्छी के ऊपर से महकती रसीली बूर को चाटता रहा जब नीलम ने नही बर्दास्त हुआ तो उसने बिरजू के होंठों के अंदर अपनी एक उंगली घुसेड़ते हुए महेंद्र से धीरे से बोला- भैया खोलो न कच्छी अपनी बहना की कब तक हम ऐसे ही शर्माते रहेंगे अब बर्दास्त नही होता।

ये सुनते ही बिरजु धीरे से पलंग से उठा और जल्दी से अंधेरे में खुली धोती दुबारा लपेटी और जानबूझकर धीरे से कमरे से बाहर जाने लगा वो जनता था कि जबतक वो यहां रहेगा महेन्द्र खुलकर नीलम को नही चोद पायेगा, बस थोड़ी देर के लिए वो बाहर जाना चाहता था हालांकि नीलम पहले तो चुपचाप उनके हाँथ को पकड़कर रोकना चाही पर फिर वो भी समझ गयी और हाँथ छोड़ दिया, बिरजू धीरे से कमरे से बाहर निकल गया और बाहर आकर खिड़की के पास खड़ा हो गया।

महेंद्र भी ये जान गया कि बाबू जी बाहर क्यों चले गए, आखिर उनके अंदर एक मर्यादा थी, महेंद्र तो मानो अब गरज उठा और नीलम को ताबड़तोड़ चूमने लगा नीलम भी उसका साथ देने लगी धीरे से बोली- भैया कच्छी खोलो न।

महेन्द्र- कच्छी खोलूं दीदी, देख लूं आपकी वो

नीलम सिसकते हुए- हाँ मेरे भाई खोल के देख न जल्दी अपनी बहन की बूर

नीलम के मुँह से बूर शब्द सुनकर महेंद्र बौरा गया

महेन्द्र- पर दीदी मेरे पास रोशनी नही है कैसे देखुंगा।

नीलम- रुक मेरे भाई रुक बाबू की छोटी टॉर्च यहीं होगी

नीलम ने थोड़ा उठकर बिस्तर पे टटोला तो टोर्च हाँथ लग गयी उसने टॉर्च को जला कर अपनी जाँघों के बीच दिखाया और बोली- लो भैया अब उतारो मेरी कच्छी, और देखी मेरी बूर

महेंद्र छोटी टॉर्च की हल्की नीली रोशनी में नीलम की मोटी मोटी जांघे और उसमे कसी छोटी सी कच्छी और उसपर बूर की जगह पर गीलापन देखकर मदहोश हो गया उसने झट से नीलम की कच्छी को पकड़ा और जाँघों से नीचे तक खींच कर उतार दिया, हल्के काले काले बालों से भरी नीलम की रस बहाती वासना में फूलकर हुई पावरोटी की तरह महकती बूर को देखकर महेन्द्र मंत्रमुग्ध सा कुछ देर बूर की आभा को देखता ही रहा।

नीलम- भैया कैसी है बहन की बूर?

महेंद्र- मत पूछ मेरी बहन तेरी बूर तो जन्नत है।
बनावट इसकी कितनी प्यारी है......कितनी मादक है तेरी बूर....दीदी।

बस फिर सिसकते हुए महेंद्र बूर पर टूट पड़ा नीलम ने झट से कच्छी को पैरों से निकाल फेंका और दोनों पैर फैलाकर मखमली बूर महेन्द्र के आगे परोस दी महेन्द्र "ओह मेरी बहना क्या बूर है तेरी" कहता हुआ नीलम की बूर पर टूट पड़ा, नीलम भी एक मादक सिसकारी लेते हुए "आह मेरे भैया चाटो न फिर अपनी बहना की बूर, बहुत प्यासी है आपके लिए", महेन्द्र के बालों को अपनी बूर चटवाते हुए सहलाने लगी।
Waaaah Waaah Maza Aa Gaya Ji.... Bht Khoob
 

Naik

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Update- 57

नगमा खेत में जाने के लिए घर से निकल गयी उसके हाँथ में एक छोटी लालटेन, माचिस, और दूसरे हाँथ में डिब्बे में जामुन था जो कि एक छोटे थैले में रखा था, पहले तो उसने पानी भी ले जाने की सोची तो नीलम की मामी ने ये कहकर मना कर दिया कि पिताजी पानी वहां मचान पर रखते हैं इतना सारा सामान एक साथ तुम कैसे ले जाओगी, पानी रहने दो, बस ये जामुन ले जाओ।

उधर चंद्रभान बड़ी बेचैनी से बार बार करवट बदलते हुए उस रास्ते की तरफ एक टक लगाए अपनी बेटी की राह देख रहा था जो उसके घर की ओर से आता था, नगमा भी बेचैनी में जल्द से जल्द पहुचने की कोशिश में तेज कदमों से अपने खेत की तरफ बढ़ रही थी।

चंद्रभान को एकाएक खेत में दूर लालटेन की हल्की रोशनी दिखाई दी तो उसका मोटा लंड फ़नफना गया। आंखों में उसके चमक आ गयी। वो झट से मचान से उतरकर नीचे आया और अपनी बेटी की तरफ बढ़ने लगा, बहुत बेचैन था वो।

जैसे ही नगमा ने अपने खेत में कदम रखा, देखा तो उसके बाबू चंद्रभान उसी की ओर आ रहे थे उसने लालटेन और बाकी समान खेत की जमीन पर जैसे ही रखा चंद्रभान ने आके उसे अपनी बाहों में भर लिया वो भी बड़ी बेचैनी से अपने बाबू से लिपट गयी, दोनों एक दूसरे को बेताहाशा चूमने और सहलाने लगे, चंद्रभान ने तो ताबड़तोड़ नगमा के गालों और होठों पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी।

नगमा में धीरे से कहा- इतने बेचैन है मेरे बाबू, की दौड़कर खुद ही आ गए और मुझे बाहों में भर लिया।

चंद्रभान- बहुत मेरी बेटी, बहुत तड़प रहा हूँ तेरे लिए, तू चीज़ ही वो है जो दुनियां में मुझे सबसे ज्यादा प्यारी है। तुझे खाये बिना मैं रह नही पता।

नगमा- अच्छा जी, मैं खाने की चीज़ हूँ।

चंद्रभान- हाँ, बिल्कुल

नगमा- तो अपनी इस चीज़ को आराम से मचान पर ले चलकर खाइए बाबू, यहाँ कोई देख न ले।

चंद्रभान ने अपनी बेटी को बाहों में उठा लिया तो नगमा बोली- रुको बाबू लालटेन और जामुन तो जमीन पर ही रह गया, उसे तो उठा लूं।

नगमा ने दोनों चीज़ उठा ली और चंद्रभान अपनी बेटी को लेकर मचान तक आया और फिर नगमा मचान पर लगी छोटी सीढ़ी से ऊपर चढ़ गई, उसके बाद चंद्रभान भी सारा सामान लेकर मचान पर चढ़ गया, मचान के ऊपर एक छोटी झोपड़ी बनी थी।

लालटेन को उसने एक कोने में बिल्कुल मध्यम करके रख दिया, नगमा ने लालटेन की हल्की रोशनी में झोपड़ी के अंदर एक नजर दौड़ाईं तो देखा कि नीचे घास फूस की फर्श बनाई हुई थी उसपर बिस्तर लगा हुआ था, बांस की बनी दीवारों पर कहीं कहीं खूंटी बनी हुई थी जिनपर छोटे छोटे समान टंगे हुए थे जैसे, उसके बाबू का कुर्ता, पानी का कमण्डलनुमा लोटा, पगड़ी, नगमा नजर घुमा के ये सब देख रही थी और चंद्रभान उसको निहार रहा था, जैसे कि आज पहली बार देख रहा था, अचानक दोनों की नजरें मिली तो नगमा मुस्कुरा उठी, चंद्रभान ने एकाएक अपनी बेटी को बाहों में भर लिया और बिस्तर पर लिटा कर उसके ऊपर चढ़ गया, नगमा की अपने बाबू की इस तरह जल्दबाजी और बेसब्री को देखकर हंसी छूट गयी, पर दोनों ही मस्ती में कराह भी उठे, नगमा ने अपनी बाहें अपने बाबू की पीठ पर लपेट दी, चंद्रभान नगमा के गालों पर गीले गीले चुम्बन जड़ने लगा, मस्ती में नगमा की आंखें अपने सगे बाबू के बेताब होंठों की छुवन से बंद हो गयी।

चंद्रभान अपनी बेटी नगमा को चूम ही रहा था कि नगमा ने उसके कान में सिसकते हुए कहा- बाबू पहले जामुन तो खा लो मुझे बाद में खा लेना।

चंद्रभान- पहले मुझे खोलकर अपनी फूली हुई महकती बूर दिखा।

चंद्रभान ने अपना सीधा हाँथ अपनी बेटी की बूर पर रखते हुए कहा।

नगमा मस्ती में मचलते हुए बोली- मेरी फूली हुई बूर? इस बार पहले सीधे बूर ही देखोगे बाबू?

चंद्रभान- हाँ, दिखा न, बहुत दिन हो गए, तेरी फूली फूली बूर मुझे बहुत पसंद है? खोल न जल्दी साड़ी।

नगमा अपने बाबू से मस्ती करने लगी- बिटिया की बूर देखोगे।

चंद्रभान- हाँ, देखुंगा, दिखा न, कैसी है?

नगमा- गलत बात है ये बाबू, पाप है ये।

चंद्रभान- कोई बात नही मेरी बिटिया, पाप है तो मुझे ये पाप करना है।

नगमा- अपनी बेटी को नंगी करोगे? उसके नंगे बदन को देखोगे? उसकी बूर देखोगे?

चंद्रभान- हाँ देखुंगा, दिखा न

नगमा- मुझे लज़्ज़ा आएगी बाबू? आपके सामने मैं अपनी बूर कैसे खोलूं?

चंद्रभान भी मस्ती के मूड में आ गया- एक बार खोल के दिखा दे बस मेरी बिटिया, देखूं तो सही कैसी है मेरी सगी बिटिया की बूर, कैसी है उसकी बनावट।

नगमा- जैसी सबकी होती है वैसी ही आपकी बिटिया की भी है।

चंद्रभान- दिखा न, मैं कैसे मान लूं। मुझे पता है बेटी की बूर की महक और बनावट अलग होती है, क्योंकि वो बेटी की होती है....दिखा न, तेरी फूली फूली बूर।

नगमा- ऐसा क्यों बाबू की बेटी की बूर अलग होती है, बूर तो सबकी एक जैसी ही होती है न।

चंद्रभान- नही मेरी बिटिया, बेटी की बूर का नशा अलग होता है, उसकी लज़्ज़त अलग ही होती है, ये रिश्ते की वजह से होता है।

नगमा- बेटी की बूर में ज्यादा लज़्ज़त होती है।

चंद्रभान- बहुत....बहुत ज्यादा

चंद्रभान के ये बोलते ही दोनों कस के एक दूसरे से सिसकते हुए और तेज से लिपट जाते हैं।

चंद्रभान- दिखा न, साड़ी खोल के बूर अपनी।

नगमा- तो उठो, उठ के बैठो मेरी टांगों के बीच में

चंद्रभान उठकर अपनी बेटी की दोनों जाँघों के बीच बैठ जाता है और लालटेन को थोड़ा तेज कर लेता है, ऐसा करते हुए जब नगमा उसे देखती है तो मुस्कुरा देती है, चंद्रभान एक टक लगाए दोनों जाँघों के बीच देखने लगता है।

नगमा ने अपने दोनों पैर फैला ही रखे थे, नगमा ने बगल में रखा एक चादर अपने ऊपर डालकर कमर तक ओढ़ लिया तो चंद्रभान उसे सवालिया निगाहों से देखने लगा, नगमा के मुस्कुराते हुए आंखों के इशारे से थोड़ा सब्र रखने का आश्वासन दिया और चादर के अंदर अपने दोनों हाँथ ले जाकर धीरे से उसने अपनी साड़ी को ऊपर उठना शुरू कर दिया और फिर एक ही पल में पूरी साड़ी को अपनी कमर तक जल्दी से उठाकर अपनी कच्छी को खोलकर बगल में रखा फिर अपनी दोनों जाँघों को अच्छे से फैलाकर एकाएक चादर को हटा कर बगल रख दिया और एक पल में अपनी रिसती महकती मोटे मोटे फाँकों वाली बूर को अपने सगे बाबू के सामने खोल दिया और बोली- लो बाबू देखो, अपनी बेटी की फूली फूली बूर।

ऐसा कहते हुए नगमा ने अपने दोनों हांथों से अपनी बूर की फांकों को हल्का सा खोलकर उसका गुलाबी छेद अपने बाबू को दिखाया फिर बोली- तीन महीने हो गए न बाबू इस छेद को देखे।

चंद्रभान ललचाई नज़रों से अपनी बेटी की बूर को घूरता हुआ- हाँ बिटिया ये तीन महीने तो जैसे तीन बरस हो, बहुत तरस गया था मैं इस बूर को देखने के लिए, देखो कितना महक रही है ये तेरी बूर, पूरी झोपड़ी में इसकी महक फैल गयी है, कितना मदहोश कर देने वाली महक आ रही है मेरी बेटी की बूर से।

नगमा मुस्कुराते हुए- ये बहुत चुदासी है न बाबू.....इसलिए

चंद्रभान अपनी बेटी की चुदासी बूर को मंत्रमुग्द होकर निहारता रहा, नगमा कभी अपने हांथों को अपनी जाँघों पर चलाने लगती कभी बूर को सहलाने लगती तो कभी दोनों फांकों को चीर देती। नगमा की बूर वाकई में बड़ी और फूली हुई पावरोटी जैसी थी, और जब वो चुदासी होती थी तब तो उसकी मस्त बूर और मनमोहक लगने लगती थी।

नगमा- बाबू मुझे भी अपना लंड दिखाओ न।

नगमा ने हाथ बढ़ा कर अपनी बूर को निहारते हुए चंद्रभान के खड़े लन्ड को धोती के ऊपर से ही टटोलते हुए कहा। चंद्रभान ने झट से धोती बगल कर अपना मोटा काला लंड बाहर निकाल लिया, नगमा के मुँह से अपने बाबू का तन्नाया हुआ विशाल लंड देखकर सिसकी फूट पड़ी, वो लेटे लेटे सर उठाये अपने बाबू का दहकता मोटा लंड देखने लगी, जैसे ही चंद्रभान ने अपने लंड की चमड़ी को खोलकर सुपाड़ा बाहर लाने की कोशिश की, नगमा ने कहा- बाबू रुको।

और नगमा ने सिसकते हुए खुद अपने हाँथ से अपने बाबू के लंड की चमड़ी को पीछे खींचा, लंड का मोटा सुपाड़ा निकलकर बाहर आ गया।

नगमा- तड़प तड़प कर कितना मोटा हो गया है बाबू आपका ये लंड, और कितना प्यासा है ये।

चंद्रभान- अपनी बेटी की बूर की याद में इसकी ये हालत हो गयी है।

दोनों बाप बेटी एक दूसरे के यौनांग को देखकर वासना से भर गए।

अपनी बेटी की फूली फूली बूर देखकर चंद्रभान से रहा नही गया और उसने झट से अपने लन्ड का दहकता सुपाड़ा नगमा की बूर को फाँकों के बीच लगा दिया, दोनों के मुँह से मस्ती की सिसकारियां फुट पड़ी।

नगमा ने आंखें बंद करके मस्ती में कराहते हुए
अपने हाथों को आगे बढ़ा के चंद्रभान के चूतड़ पर रखा और पूरा लन्ड बूर में घुसेड़ने का इशारा किया, बेटी की तड़प देख चंद्रभान से भी रहा नही गया और उसने अपनी सगी बेटी की बूर में पूरा जड़ तक अपना लन्ड घुसेड़ दिया, नगमा को अपने बच्चेदानी तक अपने सगे पिता का लंड सरसरा कर घुसता हुआ महसूस हुआ तो वो मस्ती में सीत्कार उठी।

नगमा- आआआआहहहहह.......बाबू......एक बार पहले मुझे जरा चोद दीजिए.......आपके लंड के लिए बहुत प्यासी है ये मेरी बूर।

चंद्रभान अपनी बेटी नगमा की ये बात सुनकर दनादन उसकी बूर में लन्ड पेलने लगा, नगमा अपनी टांगें उठाये घचा घच्च अपने सगे पिता से चुदवाने लगी।

चंद्रभान नगमा को चोदते हुए- एक बात पूछूँ मेरी बिटिया रानी।

नगमा- पूछो न बाबू, चोदते भी रहो और पूछते भी रहो......आह...ह..ह....हाँ ऐसे ही पेलो मेरी बूर......पूछो बाबू?

चंद्रभान- बिरजू का लन्ड कैसा है, क्या मेरे लन्ड से कमजोर है? बेटियों को सगे पिता के साथ इतना मजा क्यों आता है?

ताबड़तोड़ धक्के लगाते हुए चंद्रभान ने पूछा

नगमा जोर से सिसकते हुए बोली- नही बाबू ऐसा नही है कि उनका लन्ड कमजोर है उनका लन्ड भी आपके लन्ड की तरह बलशाली है पर जो मजा सगे पिता के साथ है वो किसी और के साथ कहाँ बाबू......आहहहहहहहहहह......ऐसे ही अंदर तक डाल डाल के अपनी बेटी की बूर चोदिये........हाय

चंद्रभान- ऐसा क्यों, पिता के साथ ही ऐसा मजा क्यों? अच्छा तुम स्त्रियों को पिता के साथ चुदवाने में इतना कामवेग क्यों चढ़ता है?

नगमा ये बात सुनकर मचल उठी और बोली- जैसे पिता को अपनी सगी बेटी की बूर चोदते वक्त अतुलनीय कामवेग चढ़ता है वैसे ही बाबू बेटियों को भी कामवेग सताता है और भरपूर जोश चढ़ता है। सगे पिता से यौन संबंध बनाने का मन करता है बहुत।

चंद्रभान- पर क्यों?... कुछ तो बताओ....आज मेरा मन है तुम्हारे मुँह से सुनने का.......बताओ न

नगमा नीचे से अपनी चौड़ी गुदाज गांड उछाल उछाल के चुदवाते हुए- बाबू....बेटी के बदन में काम तरंगे ये सोचकर जोर मारने लगती हैं कि एक दिन वो जिस लन्ड से पैदा हुई वही लन्ड उसकी बूर को कैसे कुचल कुचल कर चोद रहा है, सगे पिता का लंड जब बेटी की कमसिन
बूर को छूता है तो कैसा लगता है बाबू....कैसा महसूस होता है वह बताने के लिए मेरे पास शब्द ही नही है, कितना आनंद मिलता है ये सोचकर कि जिस लंड से वो पैदा हुई
वही लंड आज उसकी बूर मैं कैसे गोते लगा रहा है, कैसे उसकी बूर में डूब रहा है। ये बात तन बदन को रोमांच से भर देती है की ये लंड मेरे सगे पिता का लंड है।

ये सुनकर चंद्रभान मानो बावला सा हो गया हुमच हुमच कर नगमा को चोदने लगा, नगमा ने प्यार से कराहते हुए चंद्रभान को अपनी बाहों में भर लिया और जोर जोर सिसियाने लगी, फिर कुछ देर बाद ही नगमा ने अपना ब्लॉउज खोलकर दायीं चूची को बाहर निकाल दिया, चंद्रभान मस्त 34 साइज की चूची देख जोश से भर गया, नगमा ने बड़े प्यार से अपनी चूची को हांथों में लिया और चंद्रभान के मुंह में भरते हुए सिसककर बोली- अपनी बिटिया की चूची पियों न बाबू, बस मेरी बूर ही चोदे जा रहे हो, चूची को भी प्यार करो न, ये भी तो प्यासी हैं तीन महीने से।

चंद्रभान जोर जोर से चोदते हुए- मेरी लाडली बिटिया रानी ने ही तो बोला था पहले मुझे चोद दो, अपनी जान का का हुक्म तो मानना पड़ेगा न।

नगमा- अरे बाबू मैं तो पागल दीवानी हूँ आपकी कुछ भी बोलूंगी, आप अपने मन का कीजिये, जो जी में आये वो खाइए पीजिए।

एक पल के लिए दोनों मुस्कुरा उठे।

चंद्रभान नगमा की दोनों चूचीयों को खोलकर तेज तेज धक्के बूर में लगाते हुए, चूचीयों को दबाने और पीने लगा, नगमा को अब मानो किसी का होश नही था, जल बिन मछली की तरह तड़प तड़प कर वो अपने सगे पिता से चुदवाने लगी जोर जोर से कराहने लगी।

चंद्रभान थोड़ा सा रुक तो नगमा आंखों खोल अपने बाबू को देखने लगी और बोली- क्या हुआ बाबू चोदो न, रुक क्यों गए?

चंद्रभान- थोड़ा ठीक से लेट बेटी...मेरा लंड पूरा गहराई तक नही जा पा रहा है तेरी बूर में।

नगमा अपने बाबू की बात सुनकर मुस्कुराई और बोली- हाँ बाबू, मुझे भी कुछ कम कम सा महसूस हो रहा है...रुको जरा

ऐसा कहकर नगमा बिल्कुल अच्छे से अपने बाबू के नीचे अपनी दोनों जाँघों को फैला कर लेट गयी और चंद्रभान ने अपने दोनों हांथों से अपनी बेटी की 38 साइज की चौड़ी गांड को थामकर एक भरपूर धक्का मारा जिससे उसका लन्ड नगमा की बूर में अत्यंत गहराई तक उतर गया। मस्ती में नगमा मचल उठी, एक जोर की सीत्कार उसके मुँह से निकल गयी।

चन्द्रभान अब अपनी सगी बिटिया के गालों को चूम चूम कर चोदने लगा, नगमा कभी मस्ती में मुस्कुरा उठती तो कभी जोर जोर सिसकारने लगती, बड़े प्यार से कराहते हुए वो चंद्रभान की पीठ को सहलाने लगी, उसके हाँथ अपने बाबू की पीठ, कमर, गर्दन और सिर पर रेंगने लगे, अपने बाबू के लन्ड के जोरदार धक्कों की ताल से ताल मिला कर वो भी अपनी गांड ऊपर को उछाल उछाल कर अपने बाबू का लंड जितना अंदर तक जा सके अपनी प्यासी बूर में लेने लगी। काफी देर चंद्रभान तेज तेज धक्के लगा कर नगमा को चोदता रहा फिर एकाएक दोनों एक साथ झड़ने लगे, चंद्रभान का तीन महीने से रुक हुआ मोटा गाढ़ा गरम गरम वीर्य पिचकारी की धार की तरह छूटकर बूर की गहराई में गिरता हुआ नगमा को महसूस हुआ तो मानो नगमा की बूर की प्यास बुझने लगी, वो अति आनंद में बावली होकर झड़ते हुए अपने बाबू से लिपट गयी। रात के अभी 12 ही बजे थे, काफी देर झड़ने के बाद दोनों एक दूसरे को उखड़ती सांसों से देखने लगे, दोनों मुस्कुरा दिए।

चंद्रभान- मजा आया

नगमा ये सुनकर मुस्कुराते हुए लज़ा गयी।

नगमा- बाबू अपना वीर्य कितना गरम और गाढ़ा है, मेरी बूर की गहराई में गिरकर भर गया है, बूर की गहराई में कितना गरम गरम महसूस हो रहा है।

चंद्रभान- तुझे अच्छा लग रहा है।

नगमा- बहुत...बहुत बाबू बहुत।

चंद्रभान- चाटेगी.....अपने बाबू का वीर्य।

नगमा- चटाओ न......हर बार चटाते हो....तो पूछना कैसा......उसे चाटने के लिए तड़प रही हूं मैं। (नगमा ने थोड़ा लजाते हुए कहा)

चंद्रभान ने अपनी कमर को थोड़ा ऊपर उठा कर अपना सीधा हाँथ नगमा की बूर के निचले हिस्से पर ले गया, चंद्रभान का मोटा लन्ड अभी भी नगमा की बूर में घुसा हुआ था, चंद्रभान ने नीचे बह रहे वीर्य को उंगलियों से उठाया और नगमा के होंठों के पास लाकर बोला- ले मेरी बिटिया रानी, ये है तेरा और मेरा कामरस।

नगमा ने झट से मस्ती में जीभ बाहर निकाल कर गरम महकते वीर्य को मचलकर चाटने के लिए जैसे ही जीभ लगाया, चंद्रभान ने सारा वीर्य नगमा की जीभ पर लगा कर उसकी जीभ को अपने मुँह में भर लिया और दोनों मस्ती में काम रस चाटने हुए एक दूसरे की जीभ से खेलने लगे।

कुछ देर बाद नगमा बोली- और चटाओ न बाबू....कितना मक्ख़न जैसा है अपना वीर्य.....मुझे बहुत पसंद है....और चटाओ।

चन्द्रभान ने कुछ देर और अपनी बेटी को अपना वीर्य चटाया, नगमा अपने बाबू का गरम वीर्य चाटकर मस्त हो गयी।
Bahot shaandaar garma garam update bhai
 
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Naik

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Update- 58

नगमा और चंद्रभान एक दूसरे की आंखों में देखने लगे तो नगमा मुस्कुरा उठी।

चंद्रभान- मजा आया

नगमा- आया तो बाबू पर अभी मन कहाँ भरा।

चंद्रभान- अच्छा, मेरी बेटी का मन नही भरा अभी।

(ऐसा कहते हुए चंद्रभान ने एक करारा धक्का नगमा की बूर में मारा)

नगमा- आआआआआहहहहह......दैय्या...... ऐसे कैसे भर जाएगा बाबू मन?

चंद्रभान- तो कैसे भरेगा मेरी बेटी?

नगमा अपने बाबू की आंखों में देखते हुए- अभी तो पूरी रात अपनी बिटिया की प्यासी बूर को अपने वीर्य से सींचिये, तब जाके इसकी प्यास बुझेगी।

चंद्रभान ने नगमा के मुँह से ये सुनकर उसके होंठों को चूम लिया- जरूर मेरी प्यारी बिटिया, जरूर।

नगमा ने चंद्रभान को अपनी बाहों में भरते हुए बोला- बाबू एक बात सुनिए।

चंद्रभान- बोल न मेरी रानी

नगमा- भौजी अपने मायके कब गयी थी आखिरी बार?

चंद्रभान- क्यों, तुम ऐसे क्यों पूछ रही हो?

नगमा- अरे बाबू बताओ तो सही पहले।

चंद्रभान- गयी थी यही छः महीने पहले करीब, उसके मायके में उसकी चाची के यहां ग्रह प्रवेश था तब गयी थी दो तीन दिन के लिए। पर बात क्या है तुम ऐसे क्यों पूछ रही हो? कोई बात है क्या?

(चंद्रभान नगमा की आंखों में सवालिया निगाहों से देखने लगा तो नगमा ने एक कातिल मुस्कान ली)

नगमा- हाँ बात है तभी तो पूछ रही हूं। बाबू आप भौजी को जल्दी जल्दी उसके मायके भेज दिया कीजिये।

चंद्रभान- पर क्यों? बता तो सही।

नगमा- है कुछ बात बाबू, मैं बता नही सकती क्योंकि मैंने भौजी को वचन दिया है इसलिए, पर मैं आपसे छुपा भी नही सकती, तो इतना समझ जाइये की तड़प रही है वो भी.....अपने....

(नगमा ये बोलते हुए थोड़ा चुप हो गयी और वासना में अपनी आंखें बंद करके अपने बाबू को अपनी बाहों में कसके उनकी पीठ सहलाने लगी)

चंद्रभान- बता न किसके लिए तड़प रही है वो, कुछ है क्या उसका किसी के साथ?

नगमा ने मदहोशी में आंखें बंद किये हुए चंद्रभान के कान में धीरे से बोला- बाबू किसी से कहना मत, वैसे मैंने भौजी को वचन दिया है पर मैं आपको बताने से खुद को रोक नही सकती, मैं आपकी हूँ और आप मेरे, हम दोनों एक ही हैं बस इसलिए ये राज मैं आपको बता रही हूं।

चंद्रभान- तू मेरी सबकुछ है मेरी जान, तुझे मुझपर विश्वास है न।

नगमा- अपने से भी ज्यादा है बाबू...अपने से भी ज्यादा, तभी तो आपसे छुपा नही सकती, पर बाबू भौजी के सामने सामान्य ही रहना उन्हें कभी ये न लगे कि आपको पता है ये बात।

चंद्रभान- तू चिंता न कर बेटी, मैं उसे इसका अहसाह नही होने दूंगा, वो मेरी बहू है, अब बता की वो किसके लिए तड़पती है।

नगमा ने चंद्रभान की आंखों में एक बार मुस्कुराते हुए देखा फिर कस के दुबारा गले से लगा लिया और कान में सिसकते हुए बोली- अपने पिता के लिए।

चंद्रभान- क्या?

नगमा- हां बाबू..... वो भी अपने सगे पिता के साथ चुदाई का मजा ले चुकी है, उनके पिता ने भी उन्हें चोदा रखा है।

(चंद्रभान ने ये सुनते ही अपनी बेटी नगमा की बूर में घुसे हुए अपने फौलादी लन्ड जो कि पूरी तरह अब खड़ा हो चुका था, बाहर निकाल कर बूर की गहराई में जड़ तक एक तेज धक्का मारा तो नगमा मस्ती में सीत्कार उठी)

चंद्रभान- कब....कैसे.....कब से चल रहा है ये, मेरे समधी भी अपनी सगी बिटिया की बूर का मजा ले रहे हैं.... ह्म्म्म

नगमा जोर से कराहते हुए- हां बाबू......इसी में तो असली मजा है। भौजी भी अपने सगे बाप से चुदाई का मजा ले चुकी है और ये सब अभी जब भौजी अपने मायके गयी थी तब ही शुरू हुआ, तब से वो तड़प रही है और मुझे उसकी तड़प देखी नही जाती, जाना चाहती है वो मायके, भेज दीजिए, यहां मैं संभाल लुंगी एक दो दिन।

चंद्रभान- ये तो तूने मुझे गज़ब का राज बता दिया, मेरी बहु अपने पिता से चुदती है.....

(चंद्रभान बहुत आश्चर्यचकित था सुनकर, नगमा मुस्कुराते हुए उनको देखे जा रही थी)

नगमा- क्या हुआ बाबू?

(नगमा ने चंद्रभान की पीठ पर हल्की सी चिकोटी काटते हुए बोला)

चंद्रभान- कुछ नही...पर बेटी वो मेरी बहू है, इस घर की लष्मी है, उसका राज ही है इस घर पर, जब उसका मन करे तब जाए, मैंने उसे कभी रोका कहाँ, वो जब जाना चाहे जाए, तुम कहो तो उसके बाबू को ही यहां बुला दूँ।

(ऐसा कहकर चंद्रभान हंसने लगा)

नगमा भी हंसते हुए- अरे नही बाबू, भौजी को ही भेज दो, फिर कभी उनको यहीं बुला लेना जब मैं अगली बार आऊंगी तब।

चंद्रभान हंसते हुए- फिर एक ही घर में वो अपनी बेटी को चोदेंगे और मैं अपनी बिटिया को।

नगमा- धत्त......उनकी मौजूदगी में ही, ये सब छुप छुप के किया जाता है चोरी चोरी बाबू.....चोरी चोरी.....तब ही तो और मजा आता है।

चंद्रभान- अरे उनकी मौजूदगी में नही.....मतलब अब वो यहां आएंगे तो अपनी बेटी को चोदने का मन तो करेगा ही उनका, तो कुछ न कुछ जुगाड़ तो बैठाएंगे ही वो और दूसरी तरफ मैं भी कहाँ तुझे छोड़ने वाला हूँ।

नगमा मुस्कुराते हुए- बदमाश......अच्छा बाबा मत छोड़ना........चोद लेना अपनी बेटी को...जहां मन करे जैसे मन करे, अब खुश।


चंद्रभान- चलो ये तो बाद कि बात है, कल तुम अपनी भौजी को बोल देना की मैंने बोला है कि वो एक दो दिन अपने मायके घूम आये, जब तक तुम यहाँ हो, पर बेटी उसको शक तो होगा न, की मैं उसको अचानक मायके क्यों भेज रहा हूँ।

नगमा- नही होगा बाबू, मैंने भौजी को बोला था कि मैं बाबू से तुम्हे मायके भेजने के लिए बोल दूंगी, लेकिन भौजी को ये थोड़ी बोला था कि उनका राज मैं आपको बताऊंगी।

चंद्रभान- पर तुमने तो बता दिया मुझे।

नगमा- हाँ तो क्या करती, मैं और आप तो एक ही है और आपसे मैं छुपा नही सकती थी, पर भौजी की शर्म को बरकरार रखना बाबू, उन्हें कभी ये जाहिर मत होने देना की आपको पता है।

चंद्रभान- भौजी की शर्म......ह्म्म्म

नगमा कातिल मुस्कान लेते हुए- हाँ.....शर्म

चंद्रभान- क्या होती है शर्म?

नगमा- शर्म......उउउउमममम......शर्म का मतलब

(नगमा थोड़ा सोचने लगी जानबूझ कर)

चंद्रभान- भौजी की शर्म का मतलब....क्या?

(नगमा कुछ देर अपने बाबू की आंखों में देखती रही कि वो क्या सुनना चाहते हैं, फिर वो उनकी मन की मंशा समझ गयी, और वासना से भरकर बोली)

नगमा- मतलब..........बूर.....बूर बाबू.....बूर......शर्म का मतलब.......बूर

(नगमा अपने बाबू की मंशा समझ कर वासना से भर गई)

चंद्रभान- किसकी बूर बेटी

(चंद्रभान नगमा के मुँह से सुनना चाहता था)

नगमा- भौजी की बूर बाबू भौजी की.......भौजी की बूर की लाज रखना बाबू......वो भी तो आपकी बेटी जैसी हैं न

(नगमा ने खुलकर बोल दिया, वो समझ चुकी थी कि उसके बाबू के मन में क्या है, उसको इस बात से न कोई तकलीफ हुई न जलन, उल्टा न जाने क्यों उसे असीम आनंद सा मिला और वो और भी ज्यादा वासना से भर गई, चंद्रभान अपनी बेटी की इस स्वीकृति से गदगद हो उठा)

चंद्रभान ने नीचे झुककर नगमा के कान में धीरे से अपना लन्ड उनकी बूर में और गहराई तक घुसाते हुए कहा- बहू.....मेरी बहू

नगमा वासना भरी निगाहों से अपने बाबू को कुछ देर देखती रही, चंद्रभान भी नगमा की आंखों में देखता रहा, फिर नगमा ने एकएक चंद्रभान को अपनी बाहों में भर लिया और उनके कान में बोली- पिता जी......भौजी यही बोलती है न आपको बाबू जी

चंद्रभान- हाँ बेटी

नगमा- तो आप मुझे भौजी समझ लीजिए बाबू.......मैं आपको भौजी बनकर पिताजी या ससुरजी बोलूंगी........आप अपनी बहू को आज चोद दीजिए, मेरी बूर को आप भौजी की बूर समझ कर बहू का सुख ले लीजिए, न जाने क्यों मुझे बहुत मजा आ रहा है ये सोचकर।

(चंद्रभान अपनी बेटी के मुंह से ये सुनते ही खुश हो गया)

नगमा फिर बोली- पिता जी

चंद्रभान- आआआहहहह......मेरी बहू

(नगमा समझ चुकी थी कि उसके बाबू क्या चाहते हैं)

नगमा- बाबू

चंद्रभान- ह्म्म्म बेटी

नगमा- आप भौजी को चोदना चाहते हैं

चंद्रभान उठकर नगमा की आंखों में देखने लगता है, नगमा मुस्कुरा रही थी

नगमा- बोलो न

चंद्रभान- हाँ

नगमा ने बहुत ही मस्ती भरे अंदाज में दुबारा बोला- पिताजी.......मेरे ससुर जी

चंद्रभान- बहू...... हाय मेरी बहू

नगमा- पिताजी.......चोदिये अपनी बहू को......बहुत प्यासी हूँ मैं.....आपके लंड के लिए.......चोद दीजिए अपनी बहू को..........हाय

चंद्रभान- पैर को उठा के मेरी कमर पर लपेट न बहू

नगमा ने वैसा ही किया और चंद्रभान धीरे धीरे धक्कों की रफ्तार बढ़ाते हुए अपनी बेटी को बहू समझ कर फिर से चोदने लगा, नगमा आंखें बंद कर फिर से सिसकते हुए अपने बाबू से बहु बनकर चुदवाने लगी। चोदते चोदते नशे में चंद्रभान ने नगमा की 36 साइज की चूची को देखा जो हर धक्के के साथ हिल रही थी, गुलाबी निप्पल तन कर खड़े हो चुके थे, लप्प से चंद्रभान ने चोदते हुए गुलाबी निप्पल को मुँह में भर लिया और चूची पीते हुए अपनी बहू रूपी बिटिया को जोर जोर धक्के लगा कर चोदने लगा, मदमस्त होकर नगमा भी अपने बाबू के बदन को जहां तक उसका हाँथ उनके बदन पर पहुंचता, सहलाने लगी, जैसे ही नगमा एक बार फिर से झड़ने को हुई अपने बाबू के चेहरे को थामकर उनके होंठों पर टूट पड़ी और जोर से सिसकारते हुए चंद्रभान के होंठों को अपने होंठों में भरते हुए झड़ने लगी, अपनी चौड़ी गुदाज गांड को ऊपर उठाकर अपने बाबू का मोटा लंड जितना हो सके नगमा ने अपनी बूर में लील लिया और इस तरह झड़ी मानो बरसों की प्यासी हो.....आआआआहहहहहह.......ससुर जी....मजा ही आ गया......आपसे चुदकर मैं निहाल हो गयी..........हाय......ससुर जी से चुदाई में जो शर्म के साथ साथ मजा है उसकी कोई तुलना नही पिताजी......देखो मेरी बूर कैसे झड़ रही है आपका लंड खाकर......... कितना मजा है इसमें......आआआआहहहहहह.......पिताजी

चन्द्रभान भी आज पहली बार अपनी बेटी में बहू का अहसास पाकर बहुत जल्दी दहाड़ते हुए झड़ गया, नगमा ने ये बखूबी महसूस किया, वो समझ गयी कि बाबू भौजी को सोचकर जल्दी झड़ गए, चोदना चाहते हैं वो भौजी को।

नगमा अपने बाबू के मोटे मोटे आंड को हाँथ पीछे ले जाकर सहलाने लगी, साथ ही साथ वो लंड और बूर को छूकर देखने लगी कि कैसे एक ससुर का लंड उसी की सगी बहू की बूर में घुसा हुआ है, ये मिलन कितना आनंद देने वाला है।

चंद्रभान कुछ देर रुका रहा तो नगमा ने आंखें खोलकर उनको देखा और अपने हाँथ से अपने बाबू की गांड को इशारे से दबाकर फिर बूर चोदने का इशारा किया, पर चंद्रभान के मन में अब कुछ और पाने की लालसा थी।

नगमा- पिताजी और चोदो न अपनी बहू को।

चंद्रभान नगमा को मुस्कुराते हुए देखने लगा तो नगमा भी मुस्कुरा दी और बोली- कुछ और चल रहा है क्या मन में?, कुछ और चाहिए मेरे ससुर जी को?

(नगमा लगभग समझ ही गयी थी कि उसके बाबू को क्या चाहिए पर वो उनके मुँह से सुनना चाहती थी)

चंद्रभान- हाँ..... कुछ और चाहिए

नगमा इतरा कर- क्या चाहिए बोलो.....जो चाहिए वो मिलेगा.....बोलो.....बोलो....जल्दी बोलो

चंद्रभान ने नगमा के कान के निचले हिस्से को अपने होंठों से हल्का सा काटते हुए कहा- अपनी बहु की गांड........ मुझे अपनी बहू की गांड मारनी है......चौड़ी चौड़ी गुदाज गांड की छेद में अपना लंड डालना है।

(ऐसा कहते हुए चंद्रभान नगमा की 38 साइज की चौडी गांड को अपनी दोनों हथेली में थामकर कराहते हुए सहलाने लगा, नगमा ने भी अपनी गांड को हल्का सा ऊपर उठा लिया ताकि उसके बाबू के दोनों हाँथ पूरी तरह गांड के नीचे आ जाएं)

अपने बाबू द्वारा हल्का सा कान काटने और चूमने से नगमा गनगना गयी और जानबूझ कर बोली- धत्त....बदमाश.....गांड भी कोई मारने की चीज़ है....मरना है तो बहू की चूत मारिये.....चूत

चंद्रभान- तेरे मुँह से चूत शब्द सुनकर बहुत मजा आ गया.......दुबारा बोल न

नगमा शर्माते हुए- चू....... त.......बहू बेटी की चूत.......अब खुश

चंद्रभान- लेकिन हमेशा चूत ही मारूंगा तो गांड नाराज़ नही हो जाएगी.........आखिर वो भी तो कितनी सुंदर.....मनमोहक और प्यार की हकदार है.......ये तो तुम उसके ऊपर जुल्म कर रही हो..........मरवा लो न गांड अपने ससुर से।

नगमा पूरी तरह शर्मा गयी अपने बाबू का ये आग्रह सुनकर फिर बोली- अच्छा पिताजी मार लीजिए मेरी गांड.....पर धीरे धीरे मारना......दर्द होता है।

चंद्रभान- तुम हर बार ऐसे ही बोलती हो पर फिर बाद में अच्छे से मरवाती हो अपनी गांड।

नगमा- क्या करूँ पिताजी आपका लन्ड इतना मोटा है कि जब घुसने लगता है तो जैसे लगता है कि कोई मोटी कील गांड में जा रही है पर बाद में जब लंड की रगड़ मिलने लगती है तो बहुत अच्छा लगने लगता है।

चंद्रभान ने अपनी तर्जनी उंगली से नगमा की फैली हुई चौड़ी गांड के छेद को हौले हौले सहलाना शुरू कर दिया, नगमा अपने बाबू की इस हरकत से कराहते हुए शर्म से लाल हो गयी।
Bahot shaandaar mazedaar lajawab update dost
 
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Naik

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Update- 59

चंद्रभान हौले हौले अपनी बेटी में बहू की कल्पना कर उसकी गांड के छेद को सहलाते हुए बोला- बहू

नगमा- हाँ......बाबू जी.......मेरा मतलब मेरे ससुर जी

चंद्रभान और नगमा दोनों मुस्कुराने लगे

चंद्रभान- गांड खोल न.......अब रहा नही जा रहा.......तेरी गांड मारने को बेताब है लंड।

नगमा- भौजी की गांड मारके रहोगे आप.......बदमाश!........थोड़ा ऊपर उठो, मुझे पलटने के लिए जगह तो दो मेरे ससुर जी।

चन्द्रभान नगमा के ऊपर से उठ गया, नगमा पेट के बल घूमकर लेट गयी, लेटते वक्त पहले तो उसने साड़ी को पूरा पैर तक ढक लिया पर जब पेट के बल लेटी तो बड़ी अदा से अपनी साड़ी दोनों हांथों से पकड़कर अपने बाबू को कातिल मुस्कान के साथ देखते हुए ऊपर उठाने लगी, चंद्रभान आंखें फाड़े अपनी बेटी का निवस्त्र होता शरीर देखने लगा और देखते ही देखते नगमा ने अपनी 38 साइज की चौड़ी मखमली गोरी गोरी गांड अपने बाबू के सामने खोलकर रख दी।

ऐसा नही था कि चंद्रभान पहली बार नगमा की गांड देख रहा था इससे पहले भी न जाने कितनी बार उसने अपनी बेटी की गांड देखी, सहलाई और मारी थी पर हर बार जब नगमा अपनी गांड खोलती थी तो अपनी सगी बेटी की मनमोहक चौड़ी गुदाज गांड देखकर वो पगला ही जाता था और उसका मन करता था कि गप्प से अपना मूसल जैसा लन्ड अपनी सगी बेटी की गाँड़ में पेल दे।

मंत्रमुग्ध सा अभी चंद्रभान नगमा की गाँड़ को देख ही रहा था कि नगमा ने कुछ ऐसा कर दिया कि चंद्रभान के मुँह से आह निकल गयी, नगमा ने ये बोलते हुए "बाबू भौजी की गाँड़ ऐसी ही होगी न" अपने दोनों हांथों से अपनी गाँड़ के दोनों पाट को फाड़ कर उसका छोटा सा गुलाबी छेद दिखाया और अपने बाबू को देखकर खुद भी आहें भरने लगी।

चंद्रभान- वाह मेरी बिटिया आज तो तूने मुझे मेरी बहू का भी मजा दे दिया, तेरी जैसी बिटिया पाकर मैं धन्य हो गया।

चंद्रभान ने नीचे झुककर बड़े प्यार से अपनी बेटी के गाल को चूमकर मानो उसका शुक्रिया किया।

नगमा- बाबू.....मैं आपकी हूँ और आप मेरे, आपका सुख मेरा सुख है, जो आपको चाहिए जैसा चाहिए मैं वैसी ही बन जाउंगी, वही सुख दूंगी आपको, आप निश्चिन्त रहिये, आपको मजा आना चाहिए बस।

चंद्रभान नगमा के बगल में लेटकर उसको बाहों में भर लेता है और भावुक होकर दुलारने लगता है, नगमा भी थोड़ा भावुक होकर अपने बाबू से लिपट जाती है।

नगमा फिर धीरे से चंद्रभान के कान में- बाबू भौजी की गाँड़ मारिये न, मेरी गाँड़ को भौजी की गाँड़ समझ कर मार के देखिए कि कितना मजा आता है।

(ऐसा कहकर नगमा अपने बाबू के फौलाद हो चुके लंड को अपनी हथेली में भरकर एक कातिल मुस्कान के साथ सहलाने लगती है)

चंद्रभान मस्ती में भरकर फिर से नगमा के ऊपर आ जाता है और नगमा फिर से पेट के बल लेटकर अपनी गाँड़ को दोनों हांथों से फाड़कर, थोड़ा ऊपर उठाते हुए उसके गुलाबी छेद को अपने बाबू के सामने परोसते हुए बोलती है- लो पिताजी अपनी बहू की गाँड़।

चंद्रभान नीचे झुककर पहले तो गाँड़ के छेद को जीभ से चाटता है, जीभ की छुअन गाँड़ के छेद पर पाकर नगमा का बदन थरथरा जाता है, एक मीठी सिसकारी उसके मुँह से फूट पड़ती है, अपनी गाँड़ को वो अपने दोनों हांथों से वैसे ही चीरे रहती है।

थोड़ी देर गाँड़ के छेद को सूंघने और चाटने के बाद चंद्रभान नगमा की पूरी गाँड़ को अपनी दोनों हथेली में जितना हो सके भर भरकर मीजता, सहलाता और दबाता है, नगमा जोर जोर से सिसकारने लगती है, काफी देर गाँड़ का अच्छे से मुआयना करने के बाद चंद्रभान बोलता है- बहू

नगमा मस्ती में आंखें बंद किये हुए- हाँ पिताजी

चंद्रभान- मार लूं अब तेरी गाँड़

नगमा- हाँ मारिये न पिता जी, पूछना कैसा....जल्दी मारिये....डालिये अपना लंड अपनी बहू की गाँड़ में।

ये सुनते ही चंद्रभान अपने दहाड़ते लंड को हांथों में लेकर अपनी बेटी की गाँड़ के गुलाबी छेद पर सेट करता है और एक तेज धक्का मरता है।

नगमा जोर से कराह उठती है- पिताजी धीरे से....मैं सच में भौजी नही हूँ......बेटी हूँ आपकी....थोड़ा धीरे से.....बाबू

लन्ड सरसराता हुआ आधा नगमा की गाँड़ में समा जाता है, नगमा का बदन अकड़ जाता है, चंद्रभान उसके ऊपर लेटकर उसे दबोच लेता है और एकएक तुरंत एक जोरदार दूसरा धक्का इतनी तेज मरता है कि उसका समूचा लंड नगमा की गाँड़ में उतर जाता है

दर्द से नगमा तेजी से सीत्कार उठती है, चंद्रभान जल्दी से झुककर नगमा को "ओह मेरी बहू.... मेरी प्यारी बहू" कहकर चूमने लगता है, दर्द से कराहते हुए भी नगमा की हंसी छूट पड़ती है और फिर वो जल्दी से दिखावा गुस्सा करते हुए हाँथ घुमा कर चंद्रभान की गाँड़ पर एक मुक्का मारते हुए बोली- पहले गच्च से एक ही बार में पूरा लंड घुसा दो फिर प्यार से दुलारो....बहुत बदमाश हो पिताजी आप.....कितना दर्द हो रहा है मुझे.......आपको पता भी है.......थोड़ी देर रुके रहना अभी धक्का मत लगाना।

चंद्रभान- क्या करूँ बेटी तेरी गाँड़ देखकर तो मैं पहले ही बेकाबू हो जाता हूँ ऊपर से तूने जो बहू का अलग से तड़का लगाया है उससे तो मैं पगला ही गया हूँ।

नगमा- अच्छा जी, तो कैसा लग रहा है भौजी की गाँड़ में पूरा लंड डाल के, नरम नरम है न

चंद्रभान- मत पूछ मेरी बेटी.....बहू की कल्पना करके ही इतना मजा आ रहा है कि क्या बताऊँ।

नगमा- अच्छा मेरे प्यारे बाबू, बहू के चक्कर में बेटी को न भूल जाना।

चंद्रभान- कैसी बातें करती है मेरी रानी, तू पहले है, बाकी सब बाद में।

नगमा- मेरे बाबू...मेरा सैयां...अब मारो न भौजी की मखमली गाँड़.....मारो

चंद्रभान- मैं तुझे बेटी बोलकर गाँड़ मारूं, या बहू

नगमा- जो आपका मन कर रहा है, वो बोलिये

चंद्रभान- मेरा तो दोनों कर रहा है

नगमा- तो एक एक करके दोनों बोलिये, और जल्दी मारिये मेरी गाँड़...अब रहा नही जाता।

चंद्रभान- तो तू आग्रह कर न...और मजा आएगा।

नगमा- अच्छा जी....

चंद्रभान- हाँ.... बोल न...आग्रह कर

नगमा- बाबू जी......गाँड़ मारिये न अपनी बिटिया की......….....................पिताजी....ओ मेरे ससुर जी.....गाँड़ मारिये न अपनी बहू की

(कहने के बाद नगमा मस्ती में हंस पड़ी)

चंद्रभान "आह मेरी बेटी.....ओह मेरी बहू" " आह क्या गाँड़ है तेरी" कह कहकर नगमा की गाँड़ मारने लगा, जब चंद्रभान बेटी बोलता तो नगमा बाबू जी बोलती और जब चंद्रभान बहू बोलता तो नगमा मस्ती में सिसकारते हुए पिताजी या ससुर जी बोलती, शुरू में धीरे धक्कों से शुरू हुई चुदाई धीरे धीरे तेज धक्कों के साथ आगे बढ़ने लगी, नगमा अब अपनी गाँड़ को पूरा उठा उठा कर ताल से ताल मिला रही थी, पूरी झोपड़ी में आह बहू... आह बेटी और हाय बाबू....उफ्फ पिताजी, हाय पिताजी की आवाज गूंजने लगी।

चंद्रभान पूरी ताकत से नगमा की गाँड़ में दनादन धक्के लगाने लगा, नगमा ने अपने दोनों हांथों से बिस्तर को पकड़ कर मानो भींच सा रखा था, दोनों को इतना मजा आज पहली बार आ रहा था, इसका कारण साफ था कि इस चुदाई में काल्पनिक तौर पर उस घर की बहू भी शामिल थी।

चंद्रभान से ज्यादा देर टिका नही गया और वह एक मोटी वीर्य की धार छोड़ते हुए " ओह मेरी बहू, मेरे बेटे की पत्नी, क्या गाँड़ है तेरी" कहते हुए झड़ने लगा, नगमा अपने बाबू की मस्ती भरी सिसकारी और बातें सुनकर मस्ती से भर गई और मुस्कुराने लगी। नगमा की गाँड़ चंद्रभान के गरम वीर्य से भर गई, चंद्रभान नगमा के ऊपर ढेर हो गया और काफी देर तक लेटा रहा फिर अपना सुस्त लंड नगमा की गाँड़ से निकाला और बगल में लेट गया, नगमा ने अपने बाबू को सहलाते हुए बाहों में ले लिया।
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(आइए अब चलते हैं जरा नीलम के पास उसके बाद देखेंगे हमारी नायिका रजनी क्या कर रही हैं)

नीलम ने नाश्ता तैयार किया और लेकर अपने बाबू बिरजू के पास द्वारा पर गयी जहां बिरजू नहा धोकर बैठा था, बारिश अब बंद हो चुकी थी पर बादल छाए हुए थे।

अभी दोनों बाप बेटी नाश्ता करने बैठे ही थे कि इत्तेफ़ाक़ देखो एक तांगा घर के सामने रोड पर आकर रुका, उसमे से नीलम का पति उतरा, उसको देखकर बिरजू नीलम से बोला- लो दामाद जी की उम्र तो बहुत लंबी है, अभी इनको बुलाने के बारे में सोच ही रहे थे पर ये तो खुद ही आ गए।

नीलम- हाँ बाबू, बात तो अपने ठीक कही, ईश्वर जब देता है तो ऐसे ही छप्पर फाड़ के देता है, पर ये अचानक अपने आप कैसे आ धमके, जरूर कोई बात है।

बिरजू दामाद के स्वागत के लिए आगे बढ़ा- अरे दामाद जी अचानक कैसे आना हुआ?

(यहां मैं बता दूं कि नीलम के पति का नाम महेंद्र है)

नीलम के पति ने बिरजू के पैर छूकर प्रणाम किया और बोला- बाबू जी मैं किसी काम से भैरवपुर गया था वहां से वापिस आ रहा था रास्ते में आपके ही गांव का एक मेरा मित्र मिला उसी ने बताया कि आप पेड़ से गिर गए थे और हाँथ में चोट लगी है तो वही मैंने सोचा कि जब अपनी ससुराल के नजदीक से गुजर ही रहा हूँ तो आपका हाल चाल लेता चलूं।

(बिरजू ये सुनकर काफी खुश हुआ)

बिरजू- आओ दामाद जी बैठो, अच्छा ही किये चले आये, मैं और नीलम अभी कुछ देर पहले तुम्हारा ही जिक्र कर रहे थे, बड़ी लंबी उम्र है तुम्हारी, दरअसल मैं पेड़ से नही गिरा था, बस क्या है कि नीलम जामुन तोड़ने के लिए पेड़ पर चढ़ी हुई थी और मैं नीचे जमीन पर खड़ा था, पता नही कैसे डाल टूट गयी और वो सीधा मेरे ऊपर गिरी, बस उसी वजह से थोड़ा मोच आ गयी थी पर अब तो बिल्कुल ठीक हो गया है।

ये सुनकर महेंद्र ने नीलम की तरफ देखा तो वो मुस्कुरा रही थी।

महेन्द्र- मायके में आ के बचपना छा ही जाता है तुम्हे भी, इत्तेफ़ाक़ है तुम तो बच गयी पर बाबू जी को तो चोट लग गयी न।

नीलम- अब क्या करूँ, अम्मा ननिहाल जा रही थी तो सोचा कुछ पके हुए जामुन तोड़कर दे दूं मामा लोगों के लिए, उसी के लिए चढ़ी थी पेड़ पर, अब ये हादसा हो गया तो क्या करूँ।

बिरजू- अरे बेटा कोई बात नही ये तो होता जाता रहता है, जिंदगी है, तुम बताओ कैसे हो?, नीलम जा के पानी तो ले आ दामाद जी के लिए।

(बिरजू ने नीलम की तरह देखकर मुस्कुरा कर कहा)

नीलम- हाँ बाबू अभी लायी।

और नीलम महेन्द्र को देखते हुए घर के अंदर चली गयी

महेन्द्र- मैं ठीक हूँ बाबू जी, आप बताइए, कैसा चल रहा है, खेती बाड़ी सब ठीक चल रही है न।

बिरजू- हाँ बेटा सब ठीक है, धान की रोपाई करनी है, बरसात अच्छे से होने लगे तो करूँ, धान की छोटी पौध तो तैयार है, आज देखो मौसम अच्छा है, रात भर बारिश हुई है, अभी तो खैर बंद हो गयी, पर बदल छाए ही हैं, बरसात शुरू होने में अब ज्यादा दिन नही, मानसून आने वाला है।

महेन्द्र- हाँ पिताजी मानसून अब आने वाला है, वैसे आप नहर के पानी से खेत भरकर धान की रोपाई कर ही लीजिए, ज्यादा देर करना ठीक नही, बाद में पैदावार होने में देरी हो जाती है अगर फसल देर से लगाओ तो, बरसात तो देखो बाबूजी होगी ही, उसका ज्यादा इंतज़ार करना ठीक नही।

बिरजू- हाँ बेटा बात तो तुम ठीक कह रहे हो, करता हूँ जल्द ही, नीलम की माँ भी अभी अपने मायके गयी हुई हैं न, बस वो आ जाय तो धान की रोपाई शुरू करता हूँ, खैर तुम बताओ वहां पर कैसे हैं सब, नीलम के बगैर वहां कोई दिक्कत या परेशानी तो नही हो रही।

महेन्द्र- नही बाबू ऐसी कोई बात नही, हैं घर में और सब लोग संभाल लेते हैं, वैसे नीलम जब तक चाहे रह सकती है यहाँ आराम से, मुझे कोई दिक्कत नही है पर अब अम्मा-बाबू नीलम को ससुराल बुलाना चाहें तो वही जाने, बाकी मेरी पूछो तो मुझे कोई दिक्कत नही, वैसे अम्मा बाबू को भी कोई परेशानी नही है, क्योंकि वहां तो हैं ही और लोग घर संभालने के लिए, अम्मा बाबू भी समझते हैं कि आपलोग अकेले हैं इसलिए भी नीलम पर ससुराल में रहने के लिए ज्यादा कोई दबाव नही डालते हैं।

बिरजू- हाँ बेटा बात तो तुम ठीक कह रहे हो, नीलम को अच्छा घर मिला है अच्छे लोग मिले हैं तभी तो नीलम ज्यादार हमारे साथ रह लेती है, वैसे भी शादी के बाद लड़की को मायके में ज्यादा दिन कौन रहने देता है, वैसे जब भी जरूरत लगे लिवा जाना, नीलम तो पहले उस घर की है इस घर की तो बाद में है।

(बिरजू ने दबे मन से जानबूझकर कहा)

महेन्द्र- अरे बाबू जी कैसी बातें कर रहे हैं, ऐसा कुछ नही है ऐसा न सोचा कीजिये, नीलम का जब तक मन करे यहां रहे। खेतों के काम धाम यहां पर करवा लेगी तो लिवा जाएंगे।

तभी नीलम सुबह सुबह जो नाश्ता बनाया था वो और पानी लेके आ जाती है, बरसात होने की वजह से उमस हो रही थी गर्मी तो थी ही, सुबह सुबह चूल्हे के पास बैठकर नाश्ता बनाने से नीलम थोड़ा पसीना पसीना भी हो गयी थी, पसीने से उसका ब्लॉउज काफी भीग भी गया था, उसकी दोनों कांख पसीने से भीगी हुई थी, ब्लॉउज वहां पर गीला हो गया था, इसकी कांख पर हल्के हल्के काले काले बाल थे जो कि हाँथ उठाने पर ब्लॉउज गीला होने की वजह से दिखते थे, जिसको देखकर किसी का भी लंड फुंकार मार सकता था।

नीलम की कांख से पसीने की मनमोहक गंध रिस रही थी, जैसे ही वह एक ही खाट पर बैठे ससुर और दामाद के बीच में नाश्ते की प्लेट रखने के लिए झुकी, साड़ी का पल्लू सरक कर गिर गया और हाँथ आगे की तरफ फैलने की वजह से कांख से निकली स्त्री के पसीने की भीनी भीनी गंध दो पुरुष जिसमे से एक सगा पिता और एक पति था, के नथुनों में गयी तो उनकी काम वासना जागने लगी, दोनों की नज़र एक साथ नीलम के बड़े गले के ब्लॉउज में से झांकते 34 साइज की कसी कसी दोनों चूचीयों पर पडी तो दोनों के लंड ने एक साथ हल्का सा झटका लिया, और दोनों पुरुष यही सोच रहे थे कि ये बस मेरे साथ ही हो रहा है, पर ऐसा नही था, बिरजू ने अपने दामाद की नज़र बचा कर अपनी सगी बेटी की मदमस्त चुचियों का नज़रों से रसपान किया तो नीलम का पति जो कि कुछ महीनों ने चुदाई का प्यासा था आज नीलम की अधखुली चूचीयों को देखकर मचल उठा। नीलम भी मन ही मन मुस्कुरा रही थी उसे पता था कि दोनों लोग मेरी चूचीयों को खा जाने वाली नज़रों से घूर रहे हैं।

महेन्द्र का तो समझ में आता है कि वो कुछ महीनों से प्यासा था पर बिरजू तो बीती रात ही नीलम को तीन बार जबरदस्त हर तरह से चोद चुका था पर फिर भी एक सुंदर मदमस्त स्त्री के बदन का जादू देखो, कैसे पुरुष की प्यास को कभी बुझने नही देता, न जाने ये कौन सा जादू है, ईश्वर ने भी क्या चीज़ बनाई है- स्त्री
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नीलम ने दोनों को देखकर शर्माने का दिखावा करते हुए अपना पल्लू उठाकर अपने खजाने को ढका और बगल में रखी मचिया पर बैठ गयी, बिरजू और महेन्द्र नाश्ता करने लगे तो बिरजू ने नीलम के नाश्ते की प्लेट उसको थमाते हुए बोला- बेटी तू भी नाश्ता कर न, बस हमे ही खिलाएगी।

नीलम- बाबू आपलोग कर लीजिए नाश्ता मैं थोड़ी देर बाद कर लूँगी।

बिरजू- अरे अभी कर न हमारे साथ, थोड़ी देर बाद तो दोपहर के भोजन का वक्त हो जाएगा तब क्या नाश्ता लेके बैठेगी क्या?

सब हंसने लगे, नीलम ने भी फिर नाश्ता किया और वो थकी मांदी दोपहर का खाना बनाने की तैयारी करने के लिए घर में जाने लगी तो जाते वक्त उसने पलटकर बिरजू को बोला- बाबू जरा सुनिए

बिरजू- बेटा तुम आराम से खाट पर लेटो, आराम करो मैं आता हूँ।

महेन्द्र- ठीक है बाबू जी।

बिरजू नीलम के पीछे पीछे घर में गया और जैसे ही दोनों आंगन में पहुँचे बिरजू ने नीलम को पीछे से अपनी बाहों में भर लिया, लंड तो उसका घर में प्रवेश करते वक्त ही खड़ा हो चुका था, लंड सीधा नीलम की मखमली 36 साइज की गाँड़ की दरार में साड़ी के ऊपर से जा के घुसा तो नीलम चिहुँक उठी- कितना खड़ा कर रखे हो बाबू, आपके दामाद है बाहर थोड़ा सब्र रखो, आ गए तो, अनर्थ हो जाएगा।

बिरजू- तूने पल्लू से क्यों ढक लिया था चूची को, कुछ देर तो देखने देती, मेरी रांड

नीलम- हाय...बाबू.... रांड बोलते हो तो मैं गनगना जाती हूँ, अब देखो दोनों ही लोग एक टक घूरे जा रहे थे, कुछ तो शर्म का दिखावा करना पड़ता है न, और वैसे भी रात भर दर्शन तो किया है इनका और दर्शन ही क्या जी भरकर चूसा और सहलाया, दबाया है इसको बाबू अभी मन नही भरा क्या बिटिया की चूची से........आआआआआआआहहहहहह......बाबू......धीरे धीरे.......दबाओ चूची......दर्द होता है।

(बिरजू अपने हांथों को आगे ले जाकर नीलम की दोनों चूची को ब्लॉउज के ऊपर से ही हथेली में भरकर दबाने लगता है, दोनों निप्पल को कस के मसक देता है)


बिरजू- इससे भी कोई मन भरता है क्या, क्या चूची है तेरी बिटिया, तेरे पसीने की खुश्बू ने तो मदहोश कर दिया मुझे।

नीलम- और सूँघोगे बाबू बेटी का पसीना।

बिरजू- सुंघा दे, जल्दी से

नीलम ने अपने दोनों हाँथ ऊपर करके पीछे बिरजू के गले से लपेट दिए और बिरजू मस्ती में चूर होकर अपनी बेटी की दोनों चूचीयों को मसलते हुए उसकी दोनों कांख में नाक लगा कर बारी बारी से दोनों कांख से आ रही पसीने की मदहोश कर देने वाली महक सूंघने लगा। नीलम अपनी आवाज को गले में ही दबा कर होने वाली हल्की हल्की मादक गुदगुदी से सराबोर होकर हल्का हल्का सिसकने लगी। जोश में आकर बिरजू साड़ी के ऊपर से ही नीलम की गाँड़ में जब जब गच्च से अपना लन्ड मारता तो नीलम भी गाँड़ उठा उठा के अपने बाबू के लन्ड का पूरा मजा लेती। साड़ी न होती तो न जाने कब का पूरा लन्ड नीलम की गाँड़ में समा गया होता।

नीलम- बाबू बस करो क्या पता वो घर में ही आ जाएं, अब बस, मैं जरा दोपहर का खाना बना लूं।

(नीलम ने बड़ी मुश्किल से बिरजू को रोका)

बिरजू- बेटी, अभी हम दामाद जी की बात कर ही रहे थे और वो आ भी गए।

नीलम- हाँ बाबू आ तो गए, पर आज उन्हें जाने मत देना, आज रात रोकना, फिर लेंगे हम दोनों असली मजा, एक अलग ही अनुभूति के साथ।

(ऐसा कहते हुए नीलम ने कातिल मुस्कान के साथ अपने बाबू के गाल को हाथों से सहला दिया तो बिरजू के चेहरे पर भी व्यभिचार से मिलने वाले आनंद की अनुभूति को महसूस कर मुस्कान फैल गयी)

नीलम ने बिरजू के कान में कहा- अपनी सगी शादीशुदा बेटी को एक ही बिस्तर पर अपने दामाद के सामने भोगकर पाप का अद्भुत मजा लोगे न बाबू।

बिरजू- आह.... क्यों नही मेरी रांड...जरूर.....तेरी इच्छा जरूर पूरी करूँगा, कितना मजा आएगा बगल में मेरा दामाद लेटा होगा और मैं अपनी ही सगी बेटी की बूर चोदूंगा.....हाय...बेटी के साथ....पाप का मजा

(ऐसा कहते हुए बिरजू ने एक हाँथ आगे ले जाकर साड़ी के ऊपर से ही नीलम की फूली हुई बूर को दबोच लिया, बूर पर अपने सगे बाबू का हाथ लगने से नीलम वासना से भर गई और
अपने बाबू के मुँह से '"बूर" और "पाप" शब्द सुनकर नीलम की भी सिसकी निकल गयी)

नीलम उखड़ती सांसों से बोली- पर बाबू ये होगा कैसे, कैसे ये इच्छा पूरी होगी? सोच तो लिया हमने पर....

(नीलम ने अपने एक हाँथ से अपने बाबू का वो हाँथ पकड़ा जो उसकी बूर को साड़ी के ऊपर से सहला रहा था और खुद भी अपने हाँथ से अपने बाबू के हाँथ को अपनी बूर पर दबाने लगी पर थोड़ा उदास सी हो गयी, बिरजू भी सोचने लगा, पर कुछ देर बाद)

बिरजू- एक रास्ता है।

नीलम - क्या?

बिरजू- मेरा एक मित्र है बहुत पुराना, उसका जड़ी बूटियों से बहुत लगाव है, अक्सर वो मुझे अपनी खोजी हुई जड़ी बूटियों के बारे में बताता रहता है, की ये जड़ी बूटी ये काम करती है, ये वाली इस चीज़ पर असर करती है, उस चीज़ को ठीक कर देती है वगैरह वगैरह, पर मैं ज्यादा ध्यान नही देता था, मैं सोच रहा हूँ उसके पास जाऊं, क्या पता कुछ उपाय हो उसके पास।

नीलम- पर बाबू आप उनसे कहेंगे क्या?, और वैसे भी रात भर बारिश हुई है, खेत खलिहान में पानी भरा है, वो आपका मित्र रहता कहाँ है?, घर कहाँ है उसका?

बिरजू- अरे वो मैं उससे अपने तरीके से बात कर लूंगा, वो दूसरे गांव में रहता है, उत्तर की तरफ जो गांव है न बंसीपुर उसी गांव में है उसका घर, ज्यादा दूर नही है, तीन चार घंटे में होके वापिस आ सकते हैं।

नीलम- तो जाइये न बाबू, कैसे भी करके।

बिरजू- हाँ बेटी जाता हूँ, मुझे न जाने क्यों ऐसा लग रहा है कि हो न हो उसके पास कोई ऐसी जड़ी बूटी तो जरूर होगी जो इंसान को बेसुध या नशे में कर दे।

नीलम- बाबू.....पर मेरी इच्छा हो रही है कि वो होश में रहें और सब देखें, पर कुछ कर न सकें, अगर वो सोते रहेंगे तो क्या फायदा, और अगर नशे में भी रहेंगे तो भी क्या फायदा, काश ऐसा हो जाये की हम उन्हें दिखाकर पाप करें.....बाबू उस पाप का नशा ही कुछ और होगा, एक अद्बुत अहसास एक अलग आनंद।

बिरजू नीलम को चूमते हुए- तू चिंता न कर मेरी बेटी, कुछ न कुछ हल होगा जरूर उसके पास, दामाद जी को दिखाकर ही अपनी बिटिया को चोदूंगा।

नीलम के चेहरे पर वासना भारी मुस्कान फैल गयी- ठीक है आप जाइये, तब तक मैं दोपहर का खाना बनाती हूँ।

बिरजू- मैं वहां दोपहर में जाऊंगा ताकि शाम तक आ जाऊं, अभी मैं दामाद को लेकर खेत वगैरह दिखाने जाता हूँ, तू तबतक खाना बना लेना और हां थोड़ा आराम कर लेना, सो जाना....ठीक है....मेरी बच्ची

नीलम- मेरी बच्ची नही.....मेरी रांड बोलो....रांड...... आपकी रांड हूँ न

बिरजू- हाय.... मेरी रांड

नीलम- हाँ अब ठीक.........तो ठीक है आप जाइये बाबू मैं खाना बनाती हूँ।

बिरजू नीलम के होंठों को चूमकर अपना खड़ा लंड सही करता हुआ बाहर निकल जाता है और नीलम अपने पिता को ऐसा करता देखकर हंस पड़ती है और अपनी जाँघों को आपस में दबाकर रिसती हुई अपनी बूर को हल्का सा जाँघों से भींच देती है।
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बिरजू बाहर जाकर- बेटा, अगर मन है तो चलो थोड़ा हमारे खेत की तरफ घूम फिर आओ।

(महेन्द्र का मन तो नही था वो तो नीलम के पास वक्त बिताना चाहता था, पर मायके में कहे कैसे)

दबे मन से महेन्द्र बोला- हाँ पिताजी चलिए, मैं भी यहां अकेले बैठे बैठे क्या करूँगा, वैसे पिताजी शाम तक मुझे वापिस जाना होगा, शाम तक आ जाएंगे न

(वापिस जाने की भी बात महेन्द्र ने ऊपरी मन से कही थी, अब खुद ये तो कह नही सकता कि मैं रुकूँगा)

बिरजू- अरे, वापिस जाना होगा मतलब.....नही नही, ऐसे कैसे? इस घर के दामाद हो इतने दिनों बाद आए हो और तुरंत चले भी जाओगे, नही...नही रुको एक दो दिन, और हां खेत में पूरा दिन थोड़ी लगेगा अभी दोपहर तक वापिस आ जाएंगे।

महेन्द्र- बाबू जी वैसे तो मेरे पास रुकने के लिए वक्त नही था, घर पर भी यही बोला था कि भैरवपुर जा रहा हूँ कल तक आ जाऊंगा, पर अब बीच में आपका हाल चाल पूछने के लिए इधर आ गया, घरवालों को भी नही पता है, खैर चलो कोई बात नही, आपकी आज्ञा मैं टाल नही सकता, आज रात रुक जाऊंगा पर कल मुझे जाना होगा।

बिरजू- अरे बेटा क्या ये तेरा घर नही?, बेटा ससुराल है तुम्हारी यह, हम तो अपनी ससुराल में बिना घर पर बताए मेहमान नवाजी कराने चले जाते थे और दो चार दिन रुककर ही आते थे, घरवाले भी जान जाते थे कि हो न हो अपनी ससुराल चला गया होगा।

(इतना कहकर बिरजू हंसने लगा और महेन्द्र भी मुस्कुरा दिया)

बिरजू- तो बेटा रुको एक दिन, ठीक है कल चले जाना।

महेन्द्र- ठीक है बाबू जी चलिए खेत पर, पर जरा रुकिए मैं कुछ सामान लाया था नीलम को दे दूं।

(महेंद्र का मन नीलम से मिलने का था तो वो किसी बहाने से उसके पास जाना चाहता था)

बिरजू- हां हां बेटा क्यों नही, जाओ दे आओ, घर में ही है वो, रसोई में होगी, खाना बना रही होगी दोपहर का, जाओ दे आओ मैं तब तक चलता हूं खेत की तरफ तुम आ जाना।

महेन्द्र- हाँ बाबू जी आप चलते रहिये मैं आता हूँ, कौन से खेत की तरफ जाएंगे?

बिरजू- अरे वही जो उत्तर की तरफ वाला खेत है नहर के पास वाला, इधर से उत्तर की तरफ जो चकरोट जा रहा है न बस वही पकड़ कर आ जाना, सीसम के बाग के पीछे ही है खेत।

महेन्द्र- ठीक है बाबू जी आप चलिए, आता हूँ मैं

(बिरजू खेत की तरफ अंगौछा कंधे पर रख कर चल दिया और महेन्द्र दबे पांव फल और मिठाई से भरा थैला लेकर जो उसने ससुराल आते वक्त रास्ते में बाजार से खरीदा था घर में गया)

(महेन्द्र थैला लिए लिए ही रसोंई तक पहुंचा जहां नीलम दूसरी तरफ मुँह किये चूल्हे पर भगोने में चढ़ाए हुए चावल को कलछुल से चला रही थी और कभी कभी झुककर चूल्हे की बुझती आग में और लकड़ी लगाकर फूंक फूंक कर तेज कर रही थी)

महेन्द्र ने धीरे से नीलम के गाल को सहलाया तो नीलम ने चौंक कर पीछे देखा- अरे आप, ऐसे चुपके चुपके आ गए मुझे पता भी नही चला।

महेन्द्र- खाना बना रही हो?

नीलम- हां, दोपहर का खाना।

महेन्द्र- ऐसे ही बेसुध होकर काम करती हो, कोई चुपके से आ जाये तो पता भी नही चलेगा तुम्हे।

नीलम- अरे अब तुम इतने दबे पांव आ रहे हो, क्या पता लगता मुझे, मेरे कोई पीछे आंख थोड़ी लगी है। खैर और बताओ कैसे हो, मन नही लगा क्या मेरे बगैर?

महेन्द्र- नही लगा तभी तो चला आया।

नीलम- हां बड़े आये......चला आया......तुम तो बाबू को देखने आए हो न.......मेरे लिए कहाँ आये हो?

महेन्द्र- अरे आया तो मैं अपनी जान के लिए ही हूँ, बाबू तो एक बहाना हैं, बहाना मिला तो चला आया।

नीलम- वाह! अपनी पत्नी के पास आने के लिए तुम्हे बहाना चाहिए, चलो रहने दो, सब समझती हूं मैं। आओ बैठो

(नीलम ने बगल में एक पीढ़ा रखते हुए कहा, महेन्द्र उसपर बैठ गया, थैला उसने नीलम की गोद में रख दिया )

नीलम- इसमें क्या है, इतना सारा फल और मिठाई लाने की क्या जरूरत थी।

महेन्द्र- क्यों नही जरूरत थी, अपने ससुराल आ रहा था तो क्या खाली हाँथ झुलाते हुए चला आता।

नीलम- तुम भी न, लो फिर मिठाई खाओ।

(नीलम ने मिठाई के डब्बे से मिठाई निकालकर महेन्द्र के मुंह मे डाला और महेन्द्र ने भी नीलम को मिठाई खिलाई, इतने में चावल बलकने को हुआ तो नीलम ने भगोने का ढक्कन हटा कर नीचे रख दिया)

नीलम- मेरी याद नही आती थी न

महेंद्र- आती थी तभी तो चला आया, याद तो तुम्हे नही आती तभी तो ज्यादातर मायके में ही रहती हो।

नीलम- अच्छा तुम्हे ज्यादा पता है.....याद नही आती........मेरी बात नही सुनी जाती तो क्या करूँ, मेरी अवहेलना करते हो तो क्या करूँ, न मेरी इच्छा की फिक्र है तुम्हे, जो कहती हूँ उसको मानते नही हो, सुनकर हवा में उड़ा देते हो, तो जहां इज़्ज़त मिलेगी वहीं रहूँगी न।

महेन्द्र- अब इतनी भी शिकायतें न करो, कौन सी बात मैंने तुम्हारी नही मानी, क्या अवहेलना की है तुम्हारी। बहुत प्यार करता हूँ मैं तुमसे।

(दरअसल महेन्द्र कुछ महीनों से चुदाई के लिए तड़प रहा था इसलिए वो नीलम को मस्का लगा रहा था)

नीलम- कितनी बार बोला है कि अपना इलाज करा लो, मेरी कोख कब तक सूनी रहेगी, शादी हुए चार साल हो गए, मेरी भी तो कुछ इच्छा है, पर तुम न मेरी कभी सुनते हो न उसपर अमल करते हो, और कहते हो कि मैं बहुत प्यार करता हूँ, प्यार करने का मतलब एक दूसरे की भावनाओ की कद्र करना भी होता है, तुम बस यही बोलते हो कि ईश्वर की इच्छा होगी तो सब हो जाएगा, वो बात मैं भी जानती हूं कि सब ईश्वर की कृपा से होता है पर इंसान अपनी तरफ से तो कोशिश करता ही है न, जब तुम मेरी बात नही मानते तो मुझे भी यही लगता है कि मेरी भावनाओ की किसी को मेरे ससुराल में फिक्र ही नही, खासकर जब मेरे पति को ही नही है तो और किसको होगी, तो फिर मैं अपने अम्मा बाबू के पास ही रहने आ जाती हूँ।

महेन्द्र- हे भगवान, इतना गुस्सा और नाराज़गी।

नीलम- मैं गुस्सा नही हूँ और न ही नाराज़ हूं, अगर नाराज़ होती तो मिठाई खिलाती तुम्हे, मिठाई खिलाई न अपने हाँथ से।

महेन्द्र- हाँ खिलाया तो

नीलम- तो फिर.........नाराज़ नही हूँ.........पर मेरी भावनाओं को तो समझने की कोशिश किया करो........क्या तुम्हारी इच्छा नही होती कि मेरी कोख हरी भरी हो जाये, हमारा भी एक बच्चा हो, क्या इच्छा नही होती? सच बोलो

महेन्द्र- अरे तुम फिर वही लेके बैठ गयी, इच्छा होती है पर मैं उसमे करूँ क्या, मुझे तो ऐसा कुछ नही लगता कि मुझसे कोई कमी है, तुम बार बार मेरी मर्दानगी पर सवाल उठा कर मुझे आहत करती हो, ऐसा नही है कि मेरी इच्छा नही होती पर मैं ये सब नही करना चाहता, इलाज विलाज़, जब मुझमें कोई कमी नही है तो ये सब फालतू के काम क्यों।

(महेन्द्र थोड़ा अक्खड़ मिज़ाज़ का था उसको अपनी मर्दानी पर सवाल उठना अच्छा नही लगता था, दरअसल नीलम उसकी मर्दानगी पर सवाल नही उठाती थी वो तो बस ये चाहती थी कि उसकी कोख सूनी न रहे पर महेन्द्र उसको उल्टा समझ बैठता था, पर नीलम को भी अब रास्ता तो मिल ही गया था उसको पता था कोख तो अब उसकी हरी हो ही जाएगी, उसको बच्चा अब अपने सगे पिता से चाहिए था, बच्चा भी और असली मजा भी, ये सब तो सिर्फ बातें थी बस, इसलिए उसने बात को ज्यादा नही खींचा)

नीलम- मैं तुम्हारी मर्दानगी पर सवाल थोड़ी उठा रही हूं, मैंने तो कभी कहा नही की मैं आपसे संतुष्ट नही हूँ, पर मैं अपना हक तो तुम्ही से मांगूंगी न।

(महेन्द्र ये सुनकर खुश हो गया)

महेन्द्र- सब हो जाएगा मेरी जान, तुम बेवजह परेशान होती हो, जब वक्त आएगा तो सब हो जाएगा।

नीलम- देखते हैं

महेन्द्र- तुम्हारे पसीने की गंध ने तो मुझे पागल कर दिया आज और वो तुम्हारा पल्लू का गिरना, बाबू जी न होते तो वहीं मुँह में भर लेता।

नीलम मुस्कुरा उठी- पहली बार सूंघे हो क्या मेरा पसीना,और ऐसे क्यों घूर रहे थे, वहीं बाबू जी बैठे थे और तुम हो कि घूरे जा रहे थे, बाबू जी क्या सोचेंगे, देख तो लिया ही होगा उन्होंने।

महेन्द्र- क्या...क्या देख लिया होगा......तुम्हारे ये

(महेन्द्र ने नीलम की पसीने से भीगी हुई चूचीयों कि तरफ इशारा करके बोला)

नीलम- अच्छा........सोच समझ के बोलो.....बहुत बोलने लगे हो........पिता हैं वो मेरे.....कोई पिता अपनी बेटी के प्रति ऐसी अश्लील सोच रखेगा..........महापाप है ये.......समझे.......बड़े आये.....मेरे बाबू ऐसे नही हैं........मेरा मतलब तुम्हे मुझे ऐसे घूरते हुए जरूर देख लिया होगा।

महेन्द्र- माना कि कोई पिता ऐसी सोच नही रखता पर नज़र पड़ने पर हरकत तो मन में होती है जरूर।

(महेन्द्र ने नीलम को छेडा)

नीलम- तुम्हे होती होगी हरकत बहन बेटी को देखकर...........मेरे बाबू ऐसे नही है.......तुम्हारे ही गांव में ऐसा होता होगा.....हमारे यहां तो ऐसा नही होता।

(नीलम ने जानबूझकर पहले तो ऐसे बोला फिर)

नीलम- बड़ी मस्ती सूझ रही है तुम्हें, अगर बाबू जी मुझे ऐसे देखेंगे तो तुम बर्दाश्त कर लोगे।

(नीलम ने महेंद्र का मन टटोलने की सोची)

महेंद्र- अरे क्यों कर लूंगा बर्दाश्त, मेरी पत्नी हो तुम, कोई तुम्हे आंख उठा के देखे मुझे बर्दाश्त नही।

नीलम- वो कोई थोड़े ही हैं पिता हैं मेरे, तो फिर ऐसे क्यों बोला तुमने।

महेन्द्र- अरे वो तो मैं ऐसे ही मजाक में बोल रहा था, क्या करता कितने दिनों बाद दर्शन हुए थे, मन तो मचलना ही था, तुम्हारा पसीना पहली बार तो नही सूँघा था पर काफी दिन हो गए न इसलिए मन काबू करना मुश्किल हो गया था,अच्छा एक बात बताओ क्या बाबू जी ने देखा नही होगा?

नीलम- अब देखा होगा तो क्या करूँ, जानबूझ के तो गिराया नही मैंने पल्लू, अब गिर गया तो गिर गया। देख भी लिया होगा तो क्या हुआ बेटी हूँ उनकी मैं

(ऐसा कहकर नीलम मुस्कुराने लगी और महेन्द्र भी मुस्कुरा दिया)

महेन्द्र- देख लो ऐसे ही बार बार पल्लू गिरता रहेगा उनके सामने तो कहीं मन न मचल जाए उनका।

नीलम- बहुत बोल रहे हो तुम, कहना क्या चाहते हो? उनका मन मचल गया तो फिर मैं यहीं रहूँगी, तुम तो मेरी भावनाओ की कद्र करते नही हो कम से कम वो तो करते हैं।

(नीलम ने नहले पे दहला मारा)

महेन्द्र- अरे बाबा मैं तो ऐसे ही मजाक कर रहा था, तुम तो कुछ भी बोल देती हो।

नीलम- कुछ भी तो तुम बोल रहे हो, बाप और बेटी का अश्लील रिश्ता जोड़ रहे हो, कहीं होता है ऐसा? देखा है कहीं।

महेन्द्र- अच्छा बाबा माफ करो, अब ऐसा मजाक नही करूँगा।

नीलम- अच्छा ठीक है, आज गर्मी बहुत है न इसलिए बहुत पसीना आ रहा है, ऊपर से चूल्हे के पास काम, देखो पूरा भीग ही गयी हूँ।

महेन्द्र- बारिश भी खुलकर नही हुई है न इसलिए उमस भी हो रही है, बदल भी न अच्छे से बरस नही सकते कि गर्मी कम हो जाये।

(महेंद्र ने शिकायत भरे लहजे से कहा)

नीलम ने ये बात सुनकर double meaning में चुटकी ली- तुम तो बहुत बरसते हो जैसे, जो दूसरों को बोल रहे हो, तुम कितना गर्मी शांत कर देते हो, बड़े आये।

महेन्द्र- अरे मेरी जान मौका तो दो आज खुलकर न बरसा तो कहना, सारी गर्मी निकाल दूंगा तुम्हारी।

नीलम जोर से हंसी- बस बस......मायका है ये मेरा....ससुराल नही।

महेन्द्र- तो क्या मायके में प्यार नही कर सकता मैं अपनी पत्नी को।

नीलम- प्यार तो तब करोगे न जब रात को रुकोगे, जल्दबाजी में आये हो तो जल्दबाजी में ही जाओगे।

(नीलम ने चूल्हे पर से चावल का भगोना उतारने के बाद बटुई में अरहर की दाल चढ़ाते हुए बोला)

महेन्द्र- किसने कहा कि मैं चला जाऊंगा आज ही, आज रात रुकूँगा और कल जाऊंगा।

नीलम- किसी ने कहा नही मैं बस अंदाज़े से बोल रही थी।

महेन्द्र- नही नही....आज रात रुकूँगा और कल जाऊंगा, अपनी जान की गर्मी निकालनी है न।

नीलम ने महेन्द्र की तरफ देखा और मुस्कुराने लगी फिर बोली- मायका है ये मेरा, बड़े आये गर्मी निकालने वाले, सोओगे तुम बाहर बाबू जी के साथ और मैं सोती हूँ अंदर घर में, और इतना बड़ा तो तुम्हारा है नही की तुम बाहर लेटे लेटे घर के अंदर सोई हुई पत्नी की गर्मी निकाल दोगे, बोलो पतिदेव जी, कुछ करने से पहले सोच तो लो कि वो होगा कैसे?

(और इतना कहकर नीलम हंस दी, वो ऐसे ही कभी कभी महेन्द्र की खिंचाई भी कर देती थी, नीलम बेबाक स्वभाव की थी, चंचलता उसके अंदर कूट कूट के भरी थी)

महेन्द्र ने नीलम को कस के बाहों में भरकर चूम लिया और बोला- बताऊं अभी, कैसे निकलूंगा गर्मी तुम्हारी।

नीलम थोड़ा सिसकते हुए- अच्छा बाबा नही बोलूंगी......छोड़ो न दाल गिर जाएगी चूल्हे पे से, फिर खा लेना अच्छे से दोपहर का खाना।

महेन्द्र- बहुत मन कर रहा है......दोगी न।

नीलम फिर हंसते हुए- क्या....क्या चाहिए मेरे पतिदेव को।

महेन्द्र- वाह जी वाह जैसे तुम समझ ही नही रही हो।

नीलम मुस्कुरा कर महेन्द्र की तरफ देखते हुए- क्यों नही दूंगी, मैं भी तो प्यासी हूं, पर मेरी जान ये मायका है, मैं घर में सोती हूँ और बाबू जी बाहर, और ये तो तय है कि तुम भी बाहर बाबू जी के साथ बाहर ही सोओगे, तो होगा कैसे?

महेन्द्र- वो तो तुम जानो.... मुझे नही पता।

नीलम- अच्छा जी.....चलो ठीक है मैं कुछ उपाय निकालती हूँ।

महेन्द्र ने एक बार फिर से नीलम के होंठों को चूम लिया, हालांकि नीलम ने उसका साथ दिया पर न जाने क्यों उसको वो मजा नही आ रहा था जो उसको अपने सगे पिता के साथ आता है उसको ऐसा लग रहा था जैसे मिठाई खाने के बाद किसी ने चाय पीने को दे दी हो, अब चाय तो फीकी लगेगी ही।

महेन्द्र- ठीक है मैं चलता हूँ, नही तो बाबूजी कहेंगे कि इतना वक्त कैसे लगा दिया, वो इंतज़ार कर रहे है मेरा।

नीलम- हाँ जाइये और दोपहर तक आ जाना।

इतना कहकर महेन्द्र बाहर निकल गया और खुशी खुशी खेतों की तरफ चल पड़ा।
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Naik

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महेन्द्र तेज कदमों से अपने ससुर जी के बताए रास्ते पर चलते हुए खेतों की ओर जाने लगा। बिरजू ने अपने दामाद को अपने खेत दिखाए, पास ही कुछ बागों की सैर कराई, दोनों इधर उधर की बातें करते रहे और दो तीन घंटे में घूम फिर कर घर की तरफ चल दिये। दोपहर हो चुकी थी, बादल कुछ हल्के हो गए थे, कभी कभी बादलों के बीच से तेज धूप निकलकर बारिश से हुई थोड़ी ठंड में गर्माहट पैदा कर दे रही थी। मौसम ऐसा था कि कभी छांव हो जाती तो कभी तेज धूप निकल आती, तेज धूप बदन को मानो लेस दे रही थी, दोनों ससुर दामाद घर पहुचे।

नीलम खाना तैयार करके दोपहर में रसोई के बगल वाले कमरे में पड़ी खाट पर इंतज़ार करते करते सो ही गयी थी, बेसुध होकर सोने की वजह से साड़ी उसकी अस्त व्यस्त हो गयी थी, गोरे गोरे मांसल पैर नीली साड़ी में चमक रहे थे। काले ब्लॉउज के अंदर 34 साइज की कसी कसी दोनों चूचीयाँ तनकर किसी पहाड़ की तरह खड़ी थी, पल्लू सरक कर नीचे गिर गया था, उल्टा हाँथ उसने पेट पर नाभि से थोड़ा ऊपर रखा हुआ था और सीधा हाँथ उठाकर सर के ऊपर खाट पर रखने की वजह से उसकी कांख दिख रही थी, जो कि पसीने से गीली थी, पसीने से ब्लॉउज भी कई जगह गीला हो रखा था। सांसों से उसकी चूचीयाँ हल्का हल्का ऊपर नीचे हो रही थी, और नाभि वो तो कहर ढा ही रही थी।

बिरजू को अभी अपने मित्र के यहां भी जाना था इसलिए वो अब जल्दी जल्दी घर की तरफ बढ़ रहा था।

जैसे ही बिरजु और महेंद्र घर पहुचे, महेंद्र तो बाहर ही खाट पर बैठ गया और बिरजू नीलम को आवाज लगाता हुआ घर में गया।

बिरजू- नीलम.......नीलम बेटी....आ गए हम लोग....कहाँ हो तुम.....सो गई क्या?

अब रात भर पिता से संभोग सुख पाकर थकी मांदी नीलम एक बार जब खाट पर पड़ी तो एक बार आवाज लगाने से कहाँ उठने वाली थी, बिरजू ने पहले रसोई में देखा नीलम वहां नही थी, वो समझ गया कि जरूर सो गई होगी, वो बगल वाले कमरे में गया, अपनी बेटी को अस्त व्यस्त बेसुध होकर सोते देख वासना की खुमारी उसको फिर चढ़ने लगी।

एक पल के लिए बिरजू ने पीछे पलट कर देखा कि कहीं महेन्द्र पीछे पीछे तो नही आ गया, पर महेन्द्र तो मन मानकर बाहर खाट पर लेट चुका था, बिरजू सोती हुई नीलम के ऊपर अपने दोनों हाँथ खाट के दोनों पाटी पर रखते हुए झुका और उसकी गहरी गोरी गोरी नाभी को चूम लिया, अचानक गोरे गोरे बदन पर मर्दाना चुम्बन मिलने से नीलम के बदन में गहराई तक एक कंपन का संचार हुआ और गनगना कर वो उठ गई, अपने बाबू को देख कर मुस्कुरा पड़ी, आंखें उसकी लाल थी, बिरजू को एक बार तो अच्छा नही लगा कि उसने कच्ची नींद से अपनी बेटी को जगाया पर क्या करता, मदमस्त यौवन वो भी सगी बेटी का देखकर उससे रहा नही गया।

नीलम- बाबू आ गए आप?....और ऐसे जागते हैं कोई.........सीधा नाभि पर चूमकर.......मैं तो डर ही गयी थी।

बिरजू- अकेले में तो मैं ऐसे ही जगाऊंगा अपनी बेटी को, मन तो कर रहा था कि कहीं और चूम के जगाऊँ पर वो रात के लिए छोड़ दिया, और वैसे भी उसके लिए मुँह साड़ी में डालना पड़ता।

नीलम- अच्छा जी........तो डाल लेते....बेटी की साड़ी में मुँह डालने का मजा ही कुछ और है.....है न बाबू?

बिरजू- है तो मेरी जान, पर क्या करूँ।

नीलम- पर वहां चूम लेते तब तो मैं उछल ही जाती खाट से....

बिरजू- तो लाओ अब वहीं पर चूम लेता हूँ।

नीलम- अरे नही..नही...बाबू....अभी नही....मैं तो ऐसे ही बोल रही थी, इस वक्त ठीक नही, अकेले में चूम लेना जो भी चूमना हो।

(ऐसा कहते हुए नीलम साड़ी से अपने पैरों को ढकने लगी और दोनों मुस्कुराने लगे)

बिरजू- अच्छा चल उठ खाना निकाल, असली चीज़ अब रात को ही खाऊंगा।

(नीलम ने प्यार से एक मुक्का अपने बाबू की जांघ पर मारा)

नीलम- बदमाश! असली चीज़........बहुत बदमाशी आती है आपको न, क्या है असली चीज़? जरा मैं भी तो जानू।

(नीलम कामुक बातें करते हुए आगे बढ़ी)

बिरजू ने उंगली से नीलम की बूर की तरफ इशारा करके कहा- असली चीज़ ये, ये है असली चीज़, असली भूख तो इसकी है।

नीलम ने ऊपरी शर्म दिखाते हुए "धत्त" बोलकर एक चिकोटी बिरजू के गाल पर काटी तो बिरजू ने नीलम को पकड़कर फिर से चूम लिया।

नीलम- अच्छा बाबू...आप और वो हाँथ मुँह धोकर आइए मैं खाना लगाती हूँ।

बिरजू- हाँ निकाल खाना, खाना खा के जाऊं मैं जल्दी, उस मित्र के यहां भी जाना है न, क्या पता कुछ उपाय मिल जाय।

नीलम- हाँ बाबू, जल्दी जाओ ताकि वक्त से वापिस आ जाओ।

नीलम ने सबका खाना निकाला और सबने दोपहर का खाना खाया, खाना खाने के बाद नीलम ने अपने बाबू और महेंद्र को मिठाई खाने को दी।

सबने मिठाई खाई और बिरजू तुरंत महेन्द्र को ये बोलकर की वो किसी जरूरी काम से बाहर जा रहा है शाम तक आएगा अपने मित्र से मिलने चला गया।

महेन्द्र को तो मानो मुँह मांगी मुराद मिल गयी हो, नीलम के साथ दिन में ही अकेले वक्त बिताने का वक्त जो मिल गया था।

पर जैसे ही बिरजू के जाने के बाद महेन्द्र घर के अंदर जाने लगा एक चूड़ी बेचने वाली बूढ़ी औरत सर पर टोकरी रखे तेज तेज आवाज लगाते हुए "चूड़ी लेलो चूड़ी.....अच्छी मजबूत चूड़ियां......लाल....नीली.....हरी....पीली रंग की चूड़ियां" द्वार पर आ गयी।

ये सुनकर नीलम घर से बाहर आई पर घर के दरवाजे पर ही महेन्द्र उसे घर के अंदर आता हुआ मिला तो नीलम उसका हाँथ पकड़कर बाहर ले जाते हुए बोली- चलो न मुझे चूड़ी दिलाओ, ये चुड़िहारिन कितने दिनों बाद आई है, आज का दिन ही कितना अच्छा है, इसके पास बहुत अच्छी अच्छी चूड़ियां रहती हैं।

महेन्द्र कहाँ घर के अंदर जाने वाला था उल्टा नीलम उसको घर के बाहर घसीट लायी। मरता क्या न करता, बात माननी ही पड़ी।

महेन्द्र- हाँ हाँ ले लो न चूड़ी, पहन लो जो तुम्हे पसंद हो।

नीलम- अरे आप पसंद करो न.....अम्मा रुको जरा, चूड़ी दिखाओ कैसी कैसी हैं आपके पास।

चूड़ीवाली रुक गयी, महेन्द्र वहीं खाट पर दुबारा बैठ गया, चूड़ीवाली ने चूड़ी से भरी टोकरी उतार कर जमीन पर रखी और बगल में बैठ गयी, तरह तरह की चूड़ियां उसने नीलम को दिखाई, चूड़ियां काफी अच्छी-अच्छी थी, नीलम को कई तरह की चूड़ियां पसंद आ रही थी, तभी उसके मन में आया कि वो अपनी सहेली रजनी को भी बुला ले ताकि वो भी अपनी मन पसंद की चूड़ियां ले ले, फिर न जाने कब ये चूड़ीवाली आये न आये।

नीलम- अम्मा चूड़ियां तो बहुत अच्छी अच्छी लायी हो आप, जरा रुको मैं अपनी सहेली को भी बुला लाती हूँ, उसको भी लेना है, वो भी पसंद कर लेगी।

चूड़ीवाली- हाँ बिटिया ले आ बुला के मैं यही बैठी हूँ, पर जल्दी आना।

नीलम भागते हुए रजनी के घर की तरफ ये बोलते हुए गयी- हाँ अम्मा मैं अभी आयी, बस थोड़ा रुको।
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