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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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Naik

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Update- 64

नीलम भागते हुए रजनी के घर की तरफ गयी, दोपहर के 1 बज रहे थे। रास्ते में ही उसे काकी मिल गयी

काकी- अरे अरे....नीलम, कहाँ उड़ी जा रही है पतंग जैसे? रुक जरा, सांस तो ले ले।

नीलम- अरे काकी सांस गयी भाड़ में, रजनी कहाँ है?

काकी- क्या हुआ, कुछ बताएगी भी। वो तो अभी सो रही है?

नीलम- सो रही है.....इस वक्त.....क्यों? ये भी कोई सोने का वक्त है।

काकी- हाँ वो रात भर सो नही पाई न, बच्ची उसकी काफी परेशान कर रही थी रात में, इसलिए अभी दोपहर में सो गई।

(काकी ने जानबूझ कर नीलम को नही बताया कि रात भर रजनी और उदयराज बाहर थे, दरअसल अच्छे से तो काकी को भी नही पता था कि किस वजह से रजनी और उदयराज रात भर बाहर थे और उन्होंने वहां किया क्या, पर काकी को शक तो था, लेकिन काकी रजनी के पक्ष में ही थी)

नीलम- बच्ची ठीक है न उसकी, क्या हुआ उसे?

काकी- हाँ वैसे तो ठीक है पर सर्दी जुकाम होने की वजह से रात भर न तो वो खुद सोई और न ही रजनी को सोने दी, मैं कोशिश करती उसको लेने की तो मेरे पास भी नही आ रही थी, इसी वजह से रात में ठीक से सो नही पाई दोनों माँ बेटी और अब सो रही हैं। पर तू बता आखिर क्या हुआ ऐसे भागती हुई आ रही है।

नीलम- अरे काकी कुछ नही बस वो चूड़ीवाली आयी थी न तो रजनी ने मुझसे बोला था कि जब कभी आएगी तो मुझे भी बताना, तो मैंने उसको अपने द्वार पे ही रुकवा रखा है, मैंने सोचा की रजनी को भी बुला लाती हूँ वो भी अपनी मनपसंद की चूड़ियां ले लेगी, खैर कोई बात नही अब वो सो रही है तो मैं उसको जगाऊंगी नही, मैं खुद ही उसके लिए खरीद लेती हूं चूड़ियां, मुझे पता है उसे कैसी पसंद आयेगी चूड़ियां।

काकी- हां ठीक है बेटी, तू ही खरीद ले अपनी भी और उसकी भी, दोनों की पसंद एक जैसी ही तो है, अभी उसको जगाना ठीक नही।

नीलम- ठीक है काकी मैं फिर जाती हूँ, जब वो उठेगी तो उसको बता देना की मैं आयी थी....ठीक है

काकी- हाँ मेरी प्यारी बिटिया बता दूंगी, और हो सके तो मैं और वो आएंगी शाम को घर पे तेरे।

नीलम- ठीक है काकी

(और इतना कहकर नीलम वापिस आ गयी)

नीलम ने फिर चूड़ीवाली से अपनी और रजनी के पसंद की चूड़ियां खरीदी और महेन्द्र ने पैसे दिए, चूड़ीवाली चली गयी, आवाज लगाती हुई वो रजनी के घर की तरफ से भी गुजरी पर काकी ने रजनी को जगाया ही नही।

नीलम ने चूड़ियां ली और महेंद्र से बोली- लो ये पहनाओ मुझे।

महेन्द्र- मेरे से टूट जाएगी तुम खुद पहन लो ।

नीलम- टूट कैसे जाएंगी आराम से पहनाओ.....पहनाओ न

महेन्द्र- ये हरी चूड़ियां तुमने अपने लिए ली हैं और ये नीली चूड़ियां अपनी सखी के लिए।

नीलम- हाँ मेरी सखी को नीली चूड़ियां पसंद हैं।

महेन्द्र- कौन सी सखी, कभी देखा नही मैंने।

नीलम- अरे यहीं थोड़ी दूर पर घर है उसका....रजनी नाम है मेरी सखी का।

महेन्द्र- रजनी

नीलम- हम्म.....रजनी.....क्यों कोई दिक्कत है नाम में

महेन्द्र- अरे दिक्कत नही, नाम तो बहुत प्यारा है...रजनी

नीलम- अच्छा जी और मेरा नाम प्यारा नही है।

महेन्द्र- तुम्हारा नाम तो क्या तुम खुद सबसे प्यारी हो।

नीलम- ह्म्म्म रहने दो....मस्का मत लगाओ.....पता है मुझे सब, किस लिए मस्का लगाया जा रहा है।

महेन्द्र- जब पता है तो दे दो न

नीलम- क्या दे दूं

महेन्द्र- वही जिसके लिए मैं यहां आया हूँ।

नीलम- अच्छा जी, मतलब मेरे लिए नही आये हो खाली उसके लिए आये हो।

महेन्द्र- अरे मेरा मतलब दोनों के लिए मेरी जान...दोनों के लिए।

नीलम- एक चूड़ियां तो तुमसे पहनाई नही जा रही, पहनाओगे तभी मिलेगी, पहले पहनाओ और देखना टूटनी नही चाहिए एक भी, एक भी टूटी तो वही रुक जाना, फिर देखना मैं अपने बाबू को बोलूंगी और देखना वो कैसे पहनाते हैं मजाल है कि एक भी चूड़ी टूट जाये।

(नीलम ने महेन्द्र के सामने जानबूझ के शर्त रखी, उसे पता था कि महेन्द्र पहना नही पायेगा चूड़ियां)

(महेंद्र के पुरुषार्थ पर बात आके टिक गई तो वो भी मर्दानगी दिखाते हुए चूड़ियां पहनाने लगा)

महेन्द्र- अच्छा बाबू तुम्हे चूड़ियां पहनाते हैं....कब से

नीलम- बचपन से ही.....और बहुत अच्छा पहना देते हैं....पता है ये सब कब से शुरू हुआ

महेन्द्र- कब से चल रहा है ये सब

नीलम- क्या मतलब तुम्हारा...कब से चल रहा है।

महेन्द्र- अरे मेरा मतलब की वो कब से तुम्हे चूड़ियां पहनाते आ रहे हैं.....तुम तो भड़क जाती हो यार बहुत जल्दी।

नीलम- अब तुम बात ही ऐसी बोलोगे तो भड़कूँगी नही, बाबू हैं वो मेरे।

महेन्द्र- हाँ तो मैंने कब कहा की सैयां हैं तुम्हारे।

नीलम- बार बार बोलोगे तो सैयां मैं उन्ही को बना लुंगी फिर हाँथ मलते रह जाना।

महेन्द्र- अच्छा तुम बनाओगी और वो बन जाएंगे।

नीलम- कोशिश करने लगूंगी उनको रिझाने की, आखिर कब तक रुकेंगे, आखिर वो एक पुरुष और मैं एक स्त्री हूँ।

(इतना कहकर नीलम मुस्कुराने लगी, महेन्द्र समझ गया कि नीलम खाली उसे छेड़ रही है)

महेन्द्र- अच्छा बाबा माफ कर दो और बताओ कि कब से वो तुम्हे चूड़ियां पहनाते आ रहे हैं।

नीलम- हम्म ये हुई न बात, अब ऐसा वैसा कुछ मत बोलना, वो मुझे बचपन से ही चूड़ी पहनाते आ रहे हैं, एक बार मेरे जिद करने पर अम्मा ने चूड़ी तो खरीद दी पर पहना नही रही थी उसको कोई और काम करना था, काफी व्यस्त थी, बोली कि शाम तक रुक मैं खेत से वापिस आऊंगी तो पहना दूंगी, पर मेरा मन मान नही रहा था, अम्मा के जाने के बाद मैं लगी खुद ही पहनने, आधी से ज्यादा चूड़ी तोड़ डाली, कुछ ही कलाई में रह गयी, लगी रोने की अब अम्मा आएगी और लगेगी मेरी पिटाई, पर इतने में बाबू कहीं बाहर से आये तो मुझे रोता देख और हांथों में कुछ चूड़ियां और नीचे गिरी टूटी हुई चूड़ियां देख सारा माजरा समझ गए, मेरे पास आये और बोले- बस इतनी सी बात के लिए मेरी प्यारी सी बिटिया रो रही है। मैं उस वक्त छोटी थी, आंखों में आंसू भरे बाबू की तरफ देखने लगी, बाबू ने मेरे आंसू पोछे और प्यार से मेरे गालों को चूमकर मुझे गोदी में उठा कर बाजार ले गए और दुबारा वैसी ही चूड़ियां खरीद कर ले आये और फिर......

महेन्द्र- फिर क्या?

नीलम- फिर क्या...सारी चूड़ियां पहनाई मुझे उन्होंने....बड़े प्यार से....पता है एक भी नही टूटी एक भी......इसे कहते है एक पिता का प्यार बेटी के लिए, तभी तो मैं अपने बाबू को अपनी जान से ज्यादा चाहती हूं।

महेन्द्र- अच्छा जी, ऐसे कैसे पहना लेते हैं कि एक भी चूड़ी नही टूटती, तेल लगा के पहनाते हैं क्या?

(महेन्द्र ने double meaning में चुटकी ली, और हंसने लगा, नीलम को फिर लगी गुस्सा, दिखावे के गुस्सा)

नीलम- फिर तुम बहुत बोल रहे हो.....एक भी चूड़ी अभी तक तुमसे पहनाई नही गयी....बस 5 मिनिट से मेरा हाँथ ही पकड़ के तोड़ मरोड़ रहे हो इधर उधर, अगर चूड़ी नही पहना पाए न तो मिलेगी भी नही रात को देख लेना और अगर चूड़ी टूटी तो वहीं रुक जाना फिर। बड़े आये तेल लगा के पहनाते होंगे चूड़ी बोलने वाले, अगर मैं तेल भी लगा दूँ न हाँथ में तो भी तुम नही पहना पाओगे, लगा लो शर्त।

महेन्द्र- चलो ठीक है, लगाओ तेल हाँथ में, न पहनाया तो मेरा नाम भी नही, लगाता हूं मैं शर्त।

(महेंद्र जोश जोश में बोल गया)

नीलम- वो तो ठीक है, पर शर्त हार गए तो।

महेन्द्र- पहली बात तो मैं हारूँगा नही।

नीलम- इतना भरोसा।

महेन्द्र- और क्या?

नीलम- देखते हैं, और हार गए तो।

महेन्द्र- तो जो तुम बोलोगी वही करूँगा। जो तुम चाहोगी वो होगा।

नीलम- सोच लो

महेन्द्र- सोच लिया

नीलम- ठीक है

महेन्द्र ने जो इस वक्त एक चूड़ी लेकर नीलम के नरम नरम हांथों में चढ़ाने की कोशिश कर रहा था उसको छोड़ दिया।

नीलम- अभी तक ये एक भी नही पहना पाए हो, अब जा रही हूं मैं तेल लेकर आने, तुम यहीं बैठो।

महेन्द्र- पर शर्त क्या है, ये तो बता दो।

नीलम मुस्कुराने लगी फिर बोली- शर्त

महेन्द्र- हाँ और क्या, पता तो हो शर्त क्या है?

नीलम- शर्त तो यही है न कि अगर तुम हार गए तो जो मैं चाहूंगी वही होगा, जो कहूंगी वैसा ही तुम करोगे, अभी तो तुमने खुद ही बोला और इतनी जल्दी भूल गए।

महेन्द्र- हाँ ठीक है, और जीत गया तो।

नीलम- अगर तुम जीते तो जो तुम चाहोगे वो मैं करूँगी।

(नीलम को पता था कि महेन्द्र हरगिज नही जीत सकता)

महेन्द्र ये सुनकर खिल उठता है।

नीलम- सोच लो एक बार फिर अभी वक्त है।

महेन्द्र- सोच लिया...मैं भी मर्द का बच्चा हूँ, पीछे नही हट सकता अब।

नीलम- ठीक है।

नीलम घर में गयी और कटोरे में सरसों का तेल लेकर आ गयी।
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Naik

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Update- 65

सरसों के तेल को नीलम ने अच्छे से अपने हांथों में लगाया और बोली- लो पहनाओ

महेन्द्र ने एक चूड़ी उठायी और पहनाने लगा, सरसौं का तेल लगा होने की वजह से हाँथ काफी फिसलन भरा हो चुका था, थोड़ी कोशिश से ही चूड़ी कलाई में सरक कर चली गई, महेंद्र खुश हो गया- देखा पहना दी न।

नीलम- अरे सारी पहनानी है जी, केवल एक पहना के खुश नही होना, अभी तो 23 चूड़ियां पड़ी हैं 11 इस हाँथ की और 12 दूसरे हाँथ की।

महेन्द्र- तो क्या हुआ, सारी पहना दूंगा।

नीलम- हाँ तो पहनाओ फिर, एक में ही क्यों खुश हो गए।

महेन्द्र ने एक एक करके छः चूड़ी तो पहना दी और जैसे ही सातवीं चढ़ाने लगा वो चट्ट से टूट गयी, महेंद्र को काटो तो खून नही, मुँह उतर गया उसका।

नीलम- हार गए न शर्त, मैंने कहा था पहले ही सोच समझ लो, पता है क्यों टूटी चूड़ी?

महेंद्र- क्यों?

नीलम- क्योंकि तुम खुशी के मारे उतावले हुए जा रहे थे औऱ जल्दबाजी कर बैठें, अब जब बाबू आएंगे तो मैं उन्हें बोलूंगी फिर देखना वो कैसे पहनाते हैं चूड़ियां, अब तुम शर्त हार गए, अब जो मैं चाहूंगी वो तुम्हें मानना होगा।

महेन्द्र- हाँ हाँ क्यों नही, बोलो तुम क्या चाहती हो।

(महेंद्र ने दबे मन से कहा)

नीलम- तुम इतने उदास क्यों हो गए, शर्त हार गए इसलिए?

महेन्द्र- नही तो, हार जीत तो होती रहती है इसमें उदास क्या होना।

नीलम- मुझे पता है तुम ये सोच रहे होगे की पता नही अब मुझे मिलेगी या नही...है न

महेन्द्र ये सुनकर चुप सा हो जाता है

नीलम- अरे मेरे पति जी वो तो तुम्हे मिलेगी ही, उसपर तो हक़ है तुम्हारा, पर जो मैं शर्त जीती हूँ तुम्हे उसे पूरा करना ही होगा।

(महेन्द्र ये सुनकर फिर खुश हो जाता है)

महेन्द्र- तो मैंने कब कहा कि मैं तुम्हारी शर्त नही मानूंगा, बोलो तुम क्या चाहती हो, जैसा तुम चाहोगी मैं कर दूंगा, आखिर तुम जीती हो भाई।

नीलम- बिल्कुल

महेन्द्र- तो फिर बोलो मेरी जान क्या चाहिए तुम्हे।

नीलम महेन्द्र का हाँथ पकड़ कर घर के अंदर ले जाती है और दीवार के सहारे खड़ी होकर महेन्द्र के गले में बाहें डाल देती है, महेंद्र उतावला तो हो ही रखा था नीलम को कस के बाहों में भर लेता है और दोनों एक दूसरे को चूमने लगते है, नीलम हल्का हल्का सिसकने लगती है।

महेन्द्र थोड़ा रुककर- आज तो मजा आ गया, कितने दिन हो गए तुम्हे चूमे

नीलम- अभी तो और मजा आएगा लेकिन पहले मेरी शर्त तो पूरी करो।

महेन्द्र- तो बोलो न क्या चाहती हो तुम।

नीलम- पहले एक वचन और दो की ये राज तुम्हारे और मेरे बीच ही रहेगा, और जैसा मैं चाहती हूं तुम मानोगे।

महेन्द्र काम के वेग में डूबा हुआ था, जल्दबाजी की उसकी आदत थी झट से बोल पड़ा- बोलो तो सही मेरी जान, चलो एक वचन और दिया, जो भी होगा मेरे और तुम्हारे बीच ही रहेगा।

नीलम- और अगर तुमने मेरी शर्त पूरी नही की और अपने वचन पर नही चले तो मैं पूरी जिंदगी अपने मायके में अपने बाबू के साथ ही रहूँगी.....बोलो मंजूर

(ऐसा कहते हुए नीलम ने खुद ही अपनी बूर को महेन्द्र के लन्ड से रगड़ दिया, महेन्द्र का सारा ध्यान नीलम की इस हरकत पर चला गया, बूर का प्यासा वो काफी दिनों से था सो महत्वपूर्ण वक्त और बात पर उसका ध्यान बट गया, वो बिना सोचे समझे बोल पड़ा)

महेन्द्र- अरे बोल न मेरी जान तेरी सारी शर्त पूरी करूँगा, और अगर न कर सका अपने वचन से मुकरा तो तुम यहीं मायके में रहना, और मैं एक बाप की औलाद नही, बोल मेरी जान बोल।

नीलम- अगर तुमने मेरी शर्त पूरी की तो मैं कभी भी तुम्हे ईलाज कराने के लिए नही कहूंगी, तुमपर गुस्सा भी नही करूँगी।

महेन्द्र- सच

नीलम- हां सच....बिल्कुल सच

नीलम ने महेन्द्र को पूरी तरह काबू में ले लिया।

नीलम ने फिर एक बात और बोली- और अगर तुमने मेरी शर्त मानी और अपना वचन (की ये राज सर्फ तुम्हारे और मेरे बीच रहेगा) पूरा किया तो मैं भी वचन देती हूं कि तुम्हारी एक इच्छा जो तुम्हारे मन में बचपन से है मैं खुद उसको पूरा करूँगी।

महेन्द्र ये सुनकर चौंक गया, की उसकी पत्नी उसका राज कैसे जानती है

वो एक टक लगा कर भौचक्का सा नीलम को देखता रह गया, नीलम उसकी आँखों में एक कातिल मुस्कान के साथ देखती रही।

नीलम- देखो मैं शर्त जीती हूँ तो तुम्हे मेरी शर्त तो माननी ही पड़ेगी और अब अपना वचन की ये राज सिर्फ हम दोनों के बीच रहेगा भी पूरा करना पड़ेगा, तो इसके बदले में मैं भी तुम्हे एक वचन देती हूं कि मैं भी तुम्हारी बचपन की इच्छा जरूर पूरी करूँगी, जो अभी तक तुम नही कर पाए, और तुमने कभी सोचा भी नही होगा कि तुम्हे इतना सुख मिलेगा।

महेन्द्र कुछ देर नीलम की आंखों में देखता रहा फिर बोला- तुम्हे कैसे पता मेरी इच्छा।

नीलम- हम लड़कियों को ऐसी चीज़ें सब पता होती है।

महेन्द्र- बताओ तो सही।

नीलम- तुम्हारे मित्र की पत्नी है न, उसने ही मुझसे एक बार बताई थी, उसको तुम्हारे मित्र ने बताया होगा। पर ये बात तुम कभी उससे पूछना मत, अगर मेरे अच्छे पति होगे तो।

महेन्द्र- नही पूछूंगा मेरी जान तेरी कसम।

नीलम- कसम खाने की जरूरत नही, मुझे विश्वास है तुमपर।

महेन्द्र ने ये सुनकर नीलम को दुबारा बाहों में भर लिया तो नीलम फिर से सिसकने लगी।

महेन्द्र- अच्छा वो कौन सी इच्छा है मेरी जो तुम्हे पता है।

नीलम ने महेन्द्र के कान में कहा- बताऊं

महेंद्र- बताओ

नीलम ने एक कामुक सिसकारी लेते हुए कहा- तुम अपनी सगी बहन सुनीता की बूर देखना चाहते थे न, गाँड़ तो तुमने एक बार उनकी मूतते हुए पीछे से देख ही रखी है चुपके से.....बोलो

महेन्द्र ये सुनते ही सिरह उठा, शर्म और वासना दोनों के अहसास से भर गया, उसे खुश भी हो रही थी और शर्म भी आ रही थी।

नीलम- और एक बात बताऊं

महेन्द्र शर्माते हुए- हम्म

नीलम- तुम्हारी सगी बहन सुनीता अपने पति से संतुष्ट नही है, प्यासी है वो, मुझसे तो वो कुछ छिपाती नही, बातों बातों में सब बता देती है मुझे, प्यासी है बहन तुम्हारी सोच लो।

नीलम ने ये बात बड़े ही कामुक अंदाज में महेन्द्र की पीठ को सहलाते हुए कहा और अपनी ही पत्नी के मुँह से ऐसी वासना भरी व्यभिचारिक बात अपनी सगी बहन के प्रति सुनकर महेन्द्र का लंड इतना सख्त हो गया मानो पैंट फाड़ कर बाहर आ जायेगा, ये नीलम ने भी बखूबी महसूस किया। नीलम महेन्द्र को अब पूरी तरह काबू में ले चुकी थी।
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Naik

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Update- 66

नीलम के मुँह से बहुत ही बेबाक तरीके से निकली ऐसी बात सुनकर महेन्द्र सन्न रह गया, उसकी स्थिति सांप छछून्दर जैसी हो चली थी, नीलम ने उसे ऐसी स्थिति में ला खड़ा किया था कि न तो उससे निगला जा रहा था न उगला।

वो ये जान गया था कि अगर उसने नीलम की शर्त नही मानी और अपना वचन पूरा नही किया तो नीलम यहीं मायके में रहेगी, क्योंकि वो जानता था कि नीलम जिद्दी है, और तो और नीलम कभी उसको यौनसुख भी नही देगी।

दूसरी तरफ वो नीलम की इस बात से भी हैरान था कि नीलम को ये बात लंबे समय से पता है कि उसने छुपकर अपनी सगी बहन की चौड़ी मदमस्त गाँड़ कई बार देख रखी है और शादी से पहले से ही उसके मन में अपनी बहन की बूर देखने की इच्छा है और देखना ही क्या सच तो ये था कि वो चोदना चाहता है अपनी बहन को, ये बात नीलम को पता होने के बाद भी नीलम ने कभी उससे ये सब पूछा नही और न ही कभी किसी तरह का झगड़ा इस बात को लेकर किया कि वो अपनी ही सगी बहन को लेकर ऐसी व्यभिचारिक भावनायें रखता है और आज खुद उसकी पत्नी नीलम उसे उसकी बहन चखाने का वचन दे रही है, अगर वो नीलम की बात नही मानता है तो नीलम तो उससे नाराज़ हो ही जाएगी ऊपर से बहन की बूर का मिलने वाला मजा जिसके सपने वो कब से देखता आ रहा है वो भी हाँथ से चला जायेगा और ये कितना सुरक्षित भी होगा की उसकी पत्नी को पता होने के बाबजूद भी वो अपनी सगी बहन के हुस्न में गोते लगाएगा।

एक बार तो उसने खुद को ठगा सा महसूस किया, उसे एक पल के लिए लगा कि नीलम उसकी पत्नी कितनी चालबाज़ है, ऐसा रूप उसने नीलम का कभी देखा नही था, परंतु सच ये था कि नीलम ऐसी नही थी।

नीलम महेन्द्र की मनोदशा को तुरंत भांप गयी और उसकी आँखों में देखते हुए बोली- क्या सोच रहे हो? मुझे पता है तुम मुझे गलत समझ रहे होगे, तुम्हे लग रहा होगा कि मैं कितनी शातिर और चालबाज़ हूँ, जो मैंने शर्त और वचन तुम्हारे सामने रख दिये।

महेन्द्र- नही नही मैं ऐसा कुछ भी नही सोच रहा, और मुझे पता है तुम ऐसी नही हो।

नीलम- एक बात बोलूं, मैं थोड़ी चंचल और नटखट भले ही हूँ पर दिल की साफ हूँ, मैं चालबाज़ नही हूँ और न ही कभी तुम्हारा दिल दुखाउंगी, मैं जानती हूं कि इस वक्त तुम्हारी स्थिति बहुत असमंजस भरी है। पर जरा ये तो सोचो कि किसी औरत को अगर ये पता चले कि उसका पति अपनी ही सगी बहन को भोगना चाहता है तो क्या वो बर्दाश्त करेगी, पर जब मैंने पहली बार ये बात जानी तो मुझे बस तुम्हारी खुशी का ही ख्याल था, इसलिए मेरे मन में गुस्सा नही आया मैंने इसे सहजता से लिया जानते हो क्यों?

महेन्द्र एक टक लगाए नीलम को बाहों में भरे उसकी आँखों में देखते हुए बोला- क्यों

नीलम- क्योंकि संभोग की भूख ठीक वैसे ही होती है जैसे पेट की भूख, मान लो तुम अपनी थाली में खाना खा रहे हो और बगल वाली थाली में कुछ ऐसा रखा है जो तुम्हे खाने का मन किया तो तुम उसे उठाओगे न

महेन्द्र- हाँ बिल्कुल

नीलम- तो क्या मैं तुम्हे रोकूंगी, अगर मैं वहीं बगल में बैठी हूँ तो?

महेन्द्र- नही बिल्कुल नही

नीलम- पर क्यों?

महेन्द्र ये सुनकर चुप हो गया, नीलम ने एक चपत उसके सर पे लगाया और बोला- अरे बुद्धू क्यों कि मैं तुमसे प्यार करती हूं, और प्यार करने का सबसे सही अर्थ ही यही होता है कि जिससे तुम प्यार करते हो वो भले ही तुम्हे कुछ दे या न दे पर उसे देने में तुम्हारी तरफ से कोई भी कसर न रहे, देने का अर्थ उसकी इच्छा पूरी करने से है, प्यार का अर्थ देना होता है लेना नही। तभी मुझे तुम्हारी वो इच्छा जानकर गुस्सा नही आया और मैंने मन ही मन सोच लिया था कि वक्त आने पर मैं ये बात सामने लाऊंगी और तुम्हारी इच्छा पूरी करूँगी, अब सोचो मैंने तो कब से ही बिना किसी शर्त के तुम्हारी इच्छा पूरी करने की ठान ली थी।

महेन्द्र- तुम इतनी समझदार होगी ये मैंने कभी सोचा नही था, सही में मैं कितना खुशकिस्मत हूँ जो मुझे इतना समझने वाली पत्नी मिली, आज से जो तुम बोलोगी मैं वही करूँगा, गुलाम हो गया मैं तुम्हारा।

नीलम- वो तो तुम हो ही, बच के कहाँ जाओगे।

नीलम ने आंख नाचते हुए कहा, महेन्द्र धीरे धीरे नीलम की पीठ को सहलाते हुए बोला- अच्छा तुमने बोला कि प्यार का सही अर्थ देना होता है लेना नही तो तुम भी तो मुझसे इसके बदले में कुछ न कुछ लोगी ही.....बोलो

नीलम- अरे वो तो मैं शर्त जीती हूँ न....तो अपनी शर्त का जीता हुआ इनाम नही लूं......और ये तो मेरी अच्छाई हुई पर तुम्हारी अच्छाई फिर क्या होगी......बोलो

(नीलम ने बड़ी शातिराना अंदाज़ से महेन्द्र को फिर दबा दिया)

महेन्द्र- हम्म ये तो है, मेरा भी तो फ़र्ज़ बनता है तुम्हारी इच्छा पूरी करने का।

नीलम- पहले मेरी इच्छा तो जान लो

महेन्द्र- हाँ बोलो, अब बोलो मेरे मन की सारी दुविधा दूर हो गयी, वचन देता हूँ मैं तुम्हे की ये राज सिर्फ मेरे और तुम्हारे बीच रहेगा और मैं तुम्हरी शर्त पूरी करूँगा।

नीलम ने धीरे से कान में कह दिया- मैं भी वचन देती हूं कि तुम्हे तुम्हारी सगी बहन सुनीता की लज़्ज़त भरी बूर का मजा दिलवाऊंगी।

नीलम ने ये कहकर महेन्द्र की आंखों में देखा और चिढ़ाते हुए बोली- देखो कैसे आंखों में कितनी चमक आ गयी......गंदे.....बहन के साथ करोगे.....ह्म्म्म.......बहुत पसंद करते हो न सुनीता को।

महेन्द्र अब थोड़ा खुल गया था, उसने जान लिया था कि राज तो अब खुल ही गया है और नीलम खुद ही उसका रास्ता बना देगी तो दिक्कत क्या है पर फिर भी शर्म तो आ ही रही थी आखिर भाई बहन का रिश्ता पवित्र जो होता है।

महेन्द्र- हाँ करता तो हूँ, क्या करूँ मन नही मानता।

नीलम ने जानबूझ के महेन्द्र को और बेकाबू करने के लिए धीरे से उनके कान में कामुक अंदाज़ में सिसकते हुए बोला- भैया

महेंद्र नीलम को देखता रह गया उसे अजीब सी गुदगुदी हुई, अपनी पत्नी के मुँह से उसके लिए भैया शब्द सुनकर बदन में उसके मदमस्त झनझनाहट हुई।

महेंद्र- ये क्या बोल रही हो, पति को भैया बोलोगी, भैया हूँ मैं तुम्हारा?

नीलम- अरे मेरे पति जी थोड़ी देर सुनीता को महसूस कर लो, मान लो कि मैं तुम्हारी सगी बहन हूँ, मैं भी तो देखूं मेरे पति को कितना जोश चढ़ता है अपनी बहन को सोचकर।

नीलम ने इतना कहकर एक बार फिर महेन्द्र के कान में धीरे से कहा- भैया.....मेरे भैया.......मेरे महेन्द्र भैया......आआआआआहहहहहह......और महेन्द्र के गर्दन को चूम लिया।

महेन्द्र ने कस के नीलम को अपने से चिपका लिया और उसके कान में बोला- दीदी......मेरी बहना.........ओओओओहहहहह......उउउउफ़फ़फ़फ़

नीलम अब जोर से सिसक उठी।

महेन्द्र ने पीछे से हाँथ ले जाकर नीलम की नीली साड़ी को उठाना शुरू कर दिया तो नीलम बोली- गाँड़ छुओगे भैया मेरी

महेन्द्र- हाँ दीदी बहुत मन कर रहा है, छूने दोगी?

नीलम- भैया का तो हक़ होता ही है बहना पर, छू लो न भैया, मैं भी......

नीलम के इस तरीके से महेन्द्र के बदन में तेज सनसनी होने लगी, चेहरा लाल हो गया उसका जोश के मारे, जोश नीलम को भी बहुत चढ़ गया था, महेंद्र बोला- मैं भी.... क्या बहना?

नीलम- भैया मैं भी तरस गयी हूँ आपके लिए।

दरअसल नीलम महेंद्र को खोलना चाहती थी। महेंद्र के लिए ये दोहरा मजा था, उसने कभी सोचा भी नही था कि उसकी पत्नी ही उसे बहन का मजा देगी।
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Naik

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Update- 67

महेन्द्र ने हाँथ पीछे ले जाकर नीलम की साड़ी को ऊपर उठाया और अपने दोनों हांथों को नीलम के घुटने के पीछे वाले हिस्से पर से धीरे धीरे सहलाते हुए ऊपर को आने लगा तो नीलम ने मस्ती में आंखें बंद कर ली फिर एकदम से महेंद्र के हांथों को संबोधित करते हुए बोली- ये दोनों मित्र ऊपर की तरफ कहाँ जा रहे है, सैर करने?

महेंद्र- नही, ये दोनों मित्र तो मलाई खाने के लिए निकले हैं।

नीलम- मलाई....कहाँ है मलाई?, कहाँ मिलेगी इनको मलाई?

महेन्द्र- मलाई तो दो पहाड़ों के उस पार घाटी के रास्ते से जाने पर एक जगह हैं वहां मिलेगी।उस जगह पर बहुत ही कोमल और मुलायम दो परत हैं जो आपस में एक दूसरे से लिपटी रहती हैं, उन्ही परत को रगड़ने पर वो मलाई निकलती है, बस आज ये दोनों मित्र वही मलाई लेने जा रहे हैं।

ऐसा कहकर महेंद्र ने अपने दोनों हाँथ नीलम की 36 साइज की चौड़ी सपंज जैसी गाँड़ पर पहुँचा दिए और सहलाते हुए बोला- देखो चढ़ गए न ये दोनों मित्र पहाड़ पर।

नीलम की आंखें तो मस्ती में बंद ही थी, महेंद्र के हाँथ को अपनी गाँड़ पर बहुत अच्छे से वो महसूस कर रही थी, कुछ देर महेंद्र ने नीलम की गाँड़ का अच्छे से मुआयना किया, फिर अपने हाँथ को नीलम की गाँड़ की गहरी दरार के अंदर डालते हुए महकती बूर की ओर ले जाते हुए बोला- अब देखो ये दोनों मित्र कैसे मलाई खाने के लिए उस जगह की तरफ जा रहे हैं।

नीलम- आआआआहहहह.......देखना घाटी में ही एक सुरंग भी मिलेगी रास्ते में, उसमे मत अटक जाना।

महेन्द्र ने झट से नीलम की गाँड़ के छेद को प्यार से दोनों हाँथ की उंगलियों के हल्का सा सहलाते हुए बोला- ये वाली सुरंग

नीलम- हाय......आआआआहहहह......हां यही वाली।

महेन्द्र- न.....हरगिज़ नही.....आज ये दोनों मलाई की तलाश में निकले हैं तो सीधा वहीं जायेगे।

और महेन्द्र का हाँथ धीरे धीरे बूर की तरफ बढ़ने लगा। नीलम की बूर मादक बातों से और महेंद्र की बहन सुनीता की कल्पना करके काफी पनिया गयी थी, जोश के मारे थरथरा तो खुद महेन्द्र भी रहा था।

नीलम- बहन की मलाई खाओगे।

महेंद्र- ह्म्म्म।

इतना कहकर महेंद्र ने जैसे ही अपना हाँथ नीलम की दहकती बूर पर रखा नीलम ने सिसकते हुए आगे की तरफ से साड़ी के ऊपर से ही महेंद्र का हाँथ पकड़ लिया, महेंद्र ने नीलम की आंखों में देखा और बोला- मलाई तो चाटने दो न मेरी जान, बहुत मन कर रहा है।

नीलम- ये मलाई तो शर्त मनाने पर मिलेगी।

महेंद्र- तो शर्त तुम बता कहाँ रही हो, बताओ शर्त मैंने कब मना किया कि नही मानूंगा, पर जब ये दोनों मित्र मलाई की दुकान तक पहुंच ही गए हैं तो पहरेदारों ने क्यों पकड़ लिया इनको...हम्म्म्म

नीलम- चलो ठीक है एक बार मलाई खा लो, पहरेदार छोड़ देते हैं तुम्हारे इन मित्रों को, पर एक बार मलाई खाने के बाद शर्त सुनना ठीक.....तभी और मलाई मिलेगी।

महेन्द्र- जो हुकुम मेरे आका

नीलम ने अपना हाँथ हटा लिया और अपना बायां पैर उठा कर बगल में रखी सरसों की खली की बोरी के ऊपर रख दिया जिससे उसकी मोटी मोटी सुडौल जांघें खुलने से बूर की मखमली फांके हल्का सा फैल गयी, बूर काफी पनियायी होने की वजह से महेन्द्र की उंगलियों में नीलम की बूर का प्यारा महकता रस लग चुका था, महेन्द्र ने अपना हाँथ खींचा और उस रस को पहले आंखे बंद करके हल्का सा सूँघा फिर जीभ निकाल के प्यार से चाटने लगा तो नीलम बोली- गंदे.....पहले तो कभी ऐसे मलाई नही खाई आज कैसे? बहन को याद करके, है न.....इतना तरसते हो तुम सुनीता की मलाई के लिए, हाय सगी बहन की चाहत।

महेन्द्र- हाँ तरसता तो हूँ.....पर यही सोचता था कि सगी बहन की कभी मिल नही सकती संभव ही नही........रिश्ता ही ऐसा है तो कैसे मिलेगी........पर तुमने तो सब संभव कर दिया........मैं जीवन भर तुम्हारा गुलाम मेरी जान।

नीलम- तुम भी मेरी कुछ चीज़ संभव करो, मेरी शर्त मानकर।

महेन्द्र- तो बताओ मेरे आका क्या शर्त है तुम्हारी।
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Naik

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नीलम ने शर्त कही- मैं शर्त जीतने की वजह से आपसे ये मांगती हूँ कि जब भी मेरी कोख भरे तो होने वाले बच्चे की सीरत मेरे बाबू जैसी हो, मैं चाहती हूं कि मेरा बच्चा, मेरा पुत्र बिल्कुल मेरे बाबू की सीरत का हो, सूरत भले ही उनसे न मिले पर सीरत उन्ही की हो।

महेन्द्र- क्या?...क्या बोल रही हो तुम।

महेन्द्र को एक बार तो अपने कानों पर विश्वास नही हुआ।

नीलम- हाँ, बोलो करोगे मेरी शर्त पूरी।

महेन्द्र- पर ये कैसी शर्त है जो है ही असम्भव।

नीलम- असंभव तो कुछ भी नही दुनियां में।

महेंद्र- पर तुम कह क्या रही हो, कहने से पहले सोच तो लो, तुम्हारी शर्त के अनुसार बच्चे की सीरत तुम्हारे बाबू जैसी हो, और वो भी मैं ये इच्छा कैसे पूरी कर सकता हूँ, पहली बात तो बच्चा हो ही नही रहा और मान लो हो भी तो उसकी सीरत बाबू जैसी मतलब उसका स्वभाव, बोलचाल का तरीका, उसकी सोच सब बाबू जैसी, और वो भी मैं तुम्हे दूंगा....पर कैसे....ये तो है ही असंभव।

नीलम- तुम्हारे लिए तो असंभव तुम्हारी बहन सुनीता भी थी, पर हो गया न संभव।

महेन्द्र का मुँह बंद, पर कुछ सोच कर बोला- हाँ वो बात ठीक है पर ये तो बिल्कुल हो नही सकता, मेरे और तुम्हारे सम्भोग से बाबू के जैसी सीरत वाला बच्चा कैसे हो जाएगा, और पहली बात तो मेरे और तुम्हारे प्रयास करने से तो बच्चा हो ही नही रहा, कितने सालों से तो इंतज़ार कर रहे हैं न।

नीलम- झूठ न बोलो, इंतज़ार तुम नही केवल मैं कर रही हूं, तुम्हे वाकई में इस बात की चिंता होती तो तुम अपना इलाज...... खैर इस बात को अब नही बोलूंगी वचन जो दे चुकी हूं, मैं बस इतना चाहती हूं कि भविष्य में कभी भी मेरी कोख से जो मेरा बच्चा हो उसमे मेरे बाबू की सीरत हो।

महेन्द्र- लेकिन ऐसा क्यों....क्या मैं जान सकता हूँ।

नीलम- क्योंकि मैं बाबू से बेहद प्यार करती हूं.......अब गलत मत समझना......मैं सिर्फ पिता पुत्री के प्यार की बात कर रही हूं......एक बेटी अपने पति से पहले अपने पिता की होती है, उसको इस दुनियां में वही लाता है, पलता है पोषता है, सारी दुनियां से उनकी रक्षा करता है फिर उसे ब्याह के अपने घर से बिदा कर देता है, क्या एक बेटी का मन नही हो सकता कि वो अपने प्यारे पिता की एक निशानी पुत्र के रूप में अपनी कोख से पैदा कर सके। मैं बस अपने बाबू के जैसा पुत्र चाहती हूं बस इतना कहना है मुझे, अपनी जीती हुई शर्त में मुझे यही चाहिए, और रही बात संभव असंभव की तो संभव सब कुछ है।

महेन्द्र- हे भगवान, मैंने कब मना किया कि कोई बेटी ये कल्पना नही कर सकती कि उसके बच्चे की सीरत उसके पिता जैसी हो , पर सोच के देखो ये होगा कैसे? ये तो ईश्वर के हाथ में है इसमें पति पत्नी क्या कर सकते हैं, कुछ असंभव चीजों को तुम संभव करने पर तुली हो।

नीलम- संभव है

महेन्द्र- संभव है.... (चौंकते हुए)

नीलम- हां, संभव तो सबकुछ है।

महेन्द्र- कैसे........अगर सभव है तो बताओ मैं तुम्हारी इच्छा पूरी करने को तैयार हूं।

नीलम- करोगे क्यों नही, वचन दिया है तुमने, करना तो पड़ेगा ही, जब मैं अपना वचन पूरा करूँगी तो तुम्हे भी अपना दिया वचन पूरा करना पड़ेगा।

महेन्द्र- हाँ बताओ किस तरह संभव है ये, की हम दोनों के संभोग से बाबू जी के सीरत वाला बच्चा पैदा होगा।

(नीलम ने मन में सोचा कि अगर केवल हम दोनों के संभोग से बच्चा पैदा होना होता तो अबतक हो नही जाता, ये भी न...समझ नही पाते बिल्कुल, पर नीलम ने ये बात कही नही)

नीलम- होगा....बाबू जी के सीरत वाला बच्चा जरूर होगा।

महेन्द्र- कैसे?

नीलम- इसके दो तरीके हैं।

महेन्द्र- दो तरीके।

नीलम- हाँ दो तरीके

महेन्द्र- मुझे तो ये होना ही असंभव लग रहा है और तुम्हारे पास दो तरीके भी है.....वाह

नीलम- स्त्री हूँ न...इसलिए.... जहां पुरुष की सीमा खत्म हो जाती है कभी कभी स्त्री उसके आगे से भी रास्ता निकाल लेती है....समझे जी

(नीलम ने थोड़ा गर्व से कहा)

महेन्द्र- किसी का तो पता नही पर तुम जरूर निकाल लोगी, इतना तो यकीन हो गया है अब मुझे।

नीलम मुस्कुराने लगी फिर बोली- मैंने सुना है कि पति के द्वारा संभोग में चरम पर पहुँच कर स्त्री जब स्लखित (झड़कर) होकर अपनी आंखें असीम सुख में बंद कर लेती है और कुछ पल के बाद जब वो आंखें खोलती है तो उसकी नज़रों के सामने जो पुरुष या स्त्री पड़ता है उसके गर्भ में होने वाले बच्चे की सीरत उसी की होती है, अब ज्यादातर तो उस वक्त उसका पति ही वहां होता है पर अगर उसकी जगह जो भी हो, स्त्री की नज़र खुलते ही उस पर पड़े तो ऐसा होता है, मैंने ऐसा सुना है।

महेन्द्र- क्या कह रही हो, ऐसा कैसे हो सकता है?

नीलम- होता है ऐसा, मेरी नानी के यहां एक बूढ़ी तपस्वी स्त्री है उसी ने ये बात बताई थी, पर उसने ये भी कहा था कि ये पहला तरीका है जो कि पूरी तरह कारगर हो भी सकता है और नही भी, इसमें गुंजाइश कम है।

महेन्द्र- पहली बात तो यही संभव नही की उस वक्त पति पत्नी के अलावा वहां कोई हो, ये सब काम तो एकांत में अपने कमरे में किया जाता है तो कोई और होगा ही कैसे?

नीलम- कोई कमरे में होता नही है, ये बात मुझे भी पता है, पति पत्नी अकेले में ही संभोग करते है नुमाइश करके नही, ये बात मुझे भी पता है, पर इस उपाय के लिए, उस इच्छा को परिपूर्ण करने के लिए हम अपने उस प्यारे व्यक्ति को अपने कमरे में सुला तो सकते हैं।

(महेन्द्र फिर से ये सुनकर चौंक गया)

महेन्द्र- क्या बोल रही हो तुम, मतलब बाबू जी मैं और तुम एक ही कमरे में, और मैं और तुम उनके सामने संभोग, ये हो भी पायेगा या बस जो मुँह में आया बोले जा रही हो, पहली बात तो अभी सबेरे तुमने ही बोला की तुम अंदर कमरे में सोती हो, बाबू जी बाहर सोते हैं और मैं भी बाबू जी के साथ बाहर सोऊंगा, और अब इतना सब कुछ, और दूसरी बात बाबू जी के बारे में भी सोचा है, वो सुनेंगे तो क्या सोचेंगे, और वो ऐसा करेंगे भी ये तुमने सोच भी कैसे लिया, की जैसा जैसा तुम सोचे और कहे जा रही हो वो वैसा वैसा करेंगे, उनकी अपनी भी तो कोई इज़्ज़त और मान मर्यादा है, कोई पिता अपनी पुत्री और दामाद के कमरे में सोएगा और उनको संभोग करते हुए देखेगा....हे भगवान तुम भी न। सनक गयी हो तुम पक्का।

नीलम- बस हो गया तुम्हारा अब मैं बोलूं। बैठो यहां नीचे पहले।

दोनों नीचे बैठ गए

महेंद्र- बोलो अब

नीलम- मैंने ऐसा कब कहा कि बाबू मान ही जायेंगे, पर जब हम ये बात उनके सामने रखेंगे तो वो कुछ तो सोचेंगे, वो बड़े हैं हमसे ज्यादा समझदार हैं, कुछ तो निर्णय लेंगे।

महेन्द्र- और उनसे ये बात कहेगा कौन.....मैं......न बाबा न......ये तो मुझसे नही होगा।

नीलम- तुमसे होगा क्या? वैसे तुमने वचन दिया है, सोच लो करना तो पड़ेगा ही, अब स्त्री होकर मैं तो उनसे बोलूंगी नही और एक बेटी तो कदापि अपने पिता को ऐसी बात नही बोलेगी।

महेन्द्र- तो क्या दामाद बोलेगा? की ससुर जी आओ हमारे साथ लेटो और हमे वो सब करते हुए देखो।

नीलम हंसने लगी फिर बोली- मैंने कब कहा कि हम उन्हें दिखा कर करेंगे, वो सो जाएंगे तब।

महेन्द्र- अच्छा.....और वो जग गए तब?

नीलम- यही तो संभाल के करना है, और मैं चाहूं तो बोलना तो तुम्हे पड़ सकता है पर मैं तुम्हे मजबूर नही करूँगी मेरे पास इसका भी रास्ता है।

महेन्द्र- कितने रास्ते हैं यार तुम्हारे पास, इतने रास्ते तो पूरे मिला कर हमारे गांव भर में नही है जितना तुम्हारे पास है, मेरा तो सर घूम गया है।

नीलम जोर से हंस पड़ी फिर बोली- भैया ओ भैया.....सुनीता को याद करो घुमा हुआ सर सही जगह पर आ जायेगा।

महेन्द्र- यार देखो मजाक की बात नही है, अब जो संभव नही है वो मेरे समझ में तो आ नही रहा, आखिर बाबू जी कैसे राजी होंगे, ये कितने शर्म की बात है।

नीलम- माना कि शर्म की बात है पर उपाय तो करना ही पड़ेगा, देखो बाबू जी राजी होंगे एक बेटी की इच्छापूर्ति के मोह से, कोई भी पिता अपनी बेटी की मनोकामना पूर्ण करने की पूरी कोशिश करता है बशर्ते उसमे बदनामी न हो, सब कुछ छुपाकर हो जाये तो, और मेरा दिल कहता है कि बाबू जी जरूर इस बात को समझेंगे।

महेन्द्र- और इस बात को उनसे कहेगा कौन।

नीलम- उसका रास्ता ये है कि मैं सारी बात एक कागज पर लिखकर तुम्हे दे दूंगी तुम अपने हाँथ से बाबू जी को दे देना।

महेन्द्र- मैं

नीलम- हाँ भई तुम...... और कौन? तुम अपने हाँथ से दोगे तो बाबू जी को ये पता चल जाएगा कि तुम राजी हो.......समझे बुद्धू

महेन्द्र- क्या दिमाग लगाती हो तुम...सच में। पर न जाने क्यों मुझे बहुत अटपटा सा लग रहा है। कैसे होगा ये सब?

नीलम ने धीरे से कहा- क्यों तुम्हारा खड़ा नही हो पायेगा क्या उनकी मौजूदगी में।

महेंद्र- ऐसी कोई बात नही है, अब अगर ऐसी बात है तो देख लेना मैं क्या हाल करूँगा तुम्हारा....पानी पिला दूंगा पानी।

(नीलम ने जानबूझ कर ये बात बोली ताकि महेन्द्र थोड़ा ताव में आ जाये)

महेन्द्र- पर एक बात बताओ अगर बाबू जी ने उल्टा हम दोनों को ही डांट लगाई तो, आखिर ये कितना गलत है।

नीलम- ऐसा हो नही सकता मेरा दिल कहता है, मैं अपने बाबू को बहुत अच्छे से जानती हूं, वो मेरे लिए जान भी दे देंगे पर मेरा दिल नही तोड़ेंगे और रही बात सही गलत की तो बहन के ख्वाब देखना भी तो गलत है....क्यों...बोलो?

महेन्द्र अब चुप हो गया फिर थोड़ी देर बाद बोला- अच्छा एक बात बताओ अभी तो तुमने बोला यह एक पहला तरीका है और ये पूरी तरह कारगर होगा भी या नही इसपर भी संदेह है तो दूसरा ऐसा कौन सा तरीका है जो अचूक है।

नीलम महेन्द्र को गंभीरता से देखने लगी फिर बोली- वो अचूक तो है पर वो गलत है, वो रास्ता गलत है, वैसा मैं नही कर पाऊंगी।

(नीलम ने जानबूझ कर बेमन से दूसरे रास्ते को गलत ठहराया क्योंकि वो महेन्द्र के सामने अपनी छवि को बिगड़ने नही देना चाहती थी)

महेन्द्र- है क्या वो रास्ता....बताओ तो सही...

नीलम कुछ देर चुप रही महेंद्र उसका मुँह ताकता रहा

नीलम ने एक लंबी सांस ली फिर बोली- जब कोई स्त्री अपने पति द्वारा संभोग क्रिया में चरम पर पहुंचने ही वाली हो तभी उसकी......

(नीलम बोलते बोलते चुप हो गयी)

महेन्द्र- उसकी क्या?

नीलम- तभी उसकी योनि में उस पुरुष का लिंग दाखिल हो जाये जिसकी छवि का बच्चा वह अपने गर्भ में चाहती है और फिर वो स्त्री उस नए लिंग को स्वीकारते हुए अपने दोनों हांथों से
उस पुरुष के नितंब को योनि की तरफ दबाकर उसके लिंग को स्वयं अपनी योनि में स्वागत कराते हुए उस पुरुष के अंडकोषों को प्यार से सहलाकर यह इशारा करे की उसका लिंग उसके पति के लिंग से ज्यादा आनंददायक है, यहां पर एक बात ध्यान देने की होती है कि स्त्री को अपने पति के लिंग की तुलना में उस पुरुष के लिंग में ज्यादा आनंद आना चाहिए, उसे दूसरा लिंग ज्यादा अच्छा लगना चाहिए, क्योंकि तभी उसके दिमाग में से उसके पति की छवि हटकर उस नए पुरुष की छवि बनेगी और वही बच्चे में जाएगी, इसलिए ही स्त्री की योनि में उसके मनचाहे पुरुष का लिंग दाखिल होने के बाद वो उस पुरुष के नितंब को अपनी योनि की ओर दबाकर और उसके अंडकोषों को सहलाकर ये इशारा करती है कि उसका लिंग उसके पति की तुलना में अत्यधिक आनंददायक और लज़्ज़त भरा है और फिर उसकी लज़्ज़त को महसूस करके उसे चोदने का इशारा करती है और फिर अच्छे से नए लिंग से चुदने के बाद असीम आनंद लेते हुए स्लखित होती है।

पर इसके लिए उसके पति का पहले स्लखित होना जरूरी है, स्लखित होने के बाद भी पति थोड़ी देर तक लिंग योनि में रगड़ता रहे और जैसे ही स्त्री स्लखित होने के करीब हो उसका पति लिंग बाहर निकाल ले और उसका मनचाहा पुरुष जिसकी छवि वो अपने पुत्र में चाहती है वो अपना दहकता लिंग उसकी योनि में जड़ तक डाल दे, इससे उस स्त्री के तन और मन दोनों पर नए लिंग की खुमारी चढ़ जाएगी और वो उस नए लिंग को महसूस करते हुए अपने जेहन में बसा लेगी, फिर उसके बाद वो नया लिंग योनि को चोदकर उसे तृप्त करेगा फिर उसके अंदर अपना वीर्य छोड़ देगा, इसे वीर्य पर वीर्य की क्रिया भी बोलते है, मतलब उस स्त्री के पति के वीर्य के ऊपर नए लिंग का वीर्य पड़ना, यही अचूक उपाय है।

इतना कहकर नीलम ने शर्म के मारे दोनों हांथों से अपना मुँह छुपा लिया, शर्म से उसका चेहरा सच में लाल हो गया था, इतना ही नही महेंद्र के कान भी लाल हो गए ये सुनकर।

काफी देर तक सन्नाटा रहा कमरे में फिर महेंद्र बोला- ये सब तुम्हे अम्मा ने बताया है।

नीलम- नही जी, एक दिन अम्मा किसी पड़ोसन से धीरे धीरे ये सब बता रही थी कि उनके मायके में एक बूढ़ी तपस्वी स्त्री है वही ये सब उपाय जानती है, मेरी अम्मा उस पड़ोसन को बता रही थी तो मैंने चुपके से सुना था, परंतु यह उपाय अचूक असर करता है ये साबित हो भी चुका है।

महेन्द्र- क्या मतलब कैसे? कैसे ये पता तुम्हे की ये साबित हो चुका है।

नीलम- अरे उस पड़ोसन से अपने मायके में किसी को बताया होगा फिर उसने आजमाया और वैसा ही हुआ, एक दिन वो मिठाई लेकर आई थी मुँह मीठा कराने अम्मा का, मैं समझ गयी थी कि बात वही है।

महेन्द्र- तो इसका मतलब तो यही हुआ कि अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए ऐसा उपाय न अपनाकर ऐसा उपाय ही अपनाया जाय जो अचूक हो, और तुम बाबू जी के साथ.....

नीलम- छि: छि: ये कैसी बातें कर रहे हो तुम, मैं ऐसा कभी सपने में भी नही सोच सकती, वो पिता हैं मेरे, और मैं उनकी बेटी, पहले उपाय तक तो ठीक था, उसमे तो खाली मुझे उनका चेहरा देखना था बस, सुबह आंख खुलने के बाद मैं सबसे पहले उन्ही को देख लेती बस, पर ये दूसरा उपाय, ये महापाप तो मैं कभी नही करूँगी, तुमने ये सोचा भी कैसे?

महेन्द्र - क्योंकि पहला उपाय तो कारगर है ही नही उसका कोई भरोसा है ही नही सफल हो या न हो, इसलिए सोचा, और मैंने अब तुम्हे ये वचन दे दिया है कि तुम्हारी शर्त के हिसाब से जो भी तुम्हारी इच्छा होगी उसको मैं पूरा करूँगा ही, और तुम्हारी इच्छा है कि तुम्हे बाबू जी की सीरत वाला बच्चा चाहिए, और अगर मैं अपना वचन पूरा नही करता हूँ तो पहली बात तो तुम हमेशा हमेशा के लिए अपने मायके में रहोगी और दूसरी बात तुम भी अपना दिया हुआ वचन पूरा नही करोगी, तो ये सब तो एक जंजीर की तरह, एक कड़ी की तरह बंध गया है, मैं तो अब खुद ही इस चक्रव्यूह में उलझ गया हूँ, बोलो क्या करूँ मैं....इसलिए मैंने ये बोला। या तो तुम अपनी ये इच्छा छोड़ दो।

नीलम जानबूझकर थोड़ा सुबकते हुए- मैं अपनी ये इच्छा नही छोड़ सकती। पर मैं ये पाप भी नही कर सकती। ये महापाप है, एक बेटी अपने ही पिता के सामने निवस्त्र..... सोचकर ही मैं शर्म से गड़ी जा रही हूं।

महेन्द्र- अच्छा एक बात बताओ...... क्या बाबू जी ये सब कर पाएंगे?.....करेंगे, क्या वो मान जाएंगे?

नीलम जानबूझकर काफी गंभीर बनते हुए- दुनियां के और पिताओं का तो मुझे पता नही पर मैं अपने पिता को तो अच्छे से जानती हूं, वो मुझसे बेहद प्यार करते है, वो मेरी इच्छा पूर्ति के लिए इस काम को दिल से तो नही पर फ़र्ज़ के तौर पर अंजाम जरूर देंगे, उनके लिए मैं और मेरी इच्छा सर्वोपरि हैं। पर मैं ये महापाप नही कर सकती। कभी नही।

(इतना कहकर नीलम फिर सुबकने लगी, महेंद्र नीलम को गले से लगाकर चुप कराने लगा)

महेन्द्र- और तुम अपनी इच्छा का जिसको तुमने कई सालों से मन में पाल रखा है उसका गला घोंट सकती हो, और दूसरी बात फिर मेरा वचन भी टूट जाएगा और फिर वचन के मुताबिक तुम यही मायके में रहोगी, उम्र भर....ये भी तो सोचो।


नीलम काफी देर तक चुप रही।

महेन्द्र- तुम्हे ये करना ही होगा, क्योंकि कई वचन एक दूसरे की कड़ी बन चुके हैं एक भी टूटा तो बहुत कुछ बदल जायेगा।

नीलम- चुप रहो अब.....कितना गलत है ये.....माना की मैंने उपाय बताया पर मैं अनर्थ नही कर पाऊंगी, ये पाप ही नही महापाप है।

महेन्द्र- कभी कभी हमे कुछ अच्छे के लिए और कुछ पाने के लिए मन मजबूत करके वो काम भी करने पड़ जाते हैं जिनको करने का हमारा बिल्कुल मन नही होता, और ये तो तुम्हे करना ही पड़ेगा और मुझे तुम्हारी इच्छा की पूर्ति वचन के मुताबिक पूरी करनी ही पड़ेगी। ये कहाँ ला के खड़ा कर दिया तुमने बातों बातों में मुझे।

नीलम- मैंने कुछ नही किया, शायद ये नियति यही चाहती है, तभी ये सब होता चला गया।

महेन्द्र- खैर जो भी है अब वचन तो पूरा करना ही है मुझे, पर मेरे पास एक सुझाव है।

नीलम ने बड़ी मुश्किल से नज़रें उठा कर महेन्द्र को देखा- क्या.....क्या सुझाव

महेन्द्र- तुम कमर से ऊपर अपने चेहरे और मुँह को अच्छे से ढक लेना, जब तुम ये कह ही रही हो कि पिताजी अगर ये स्वीकार करेंगे भी तो केवल फ़र्ज़ के तौर पर तो ये पाप तो नही होगा, क्योंकि पाप तो तब होगा न जब मन में जेहन में वासना का संचार हो, जब पिताजी तुम्हे उस नज़र से देखेंगे ही नही और तुम्हारे मन में भी ऐसा कुछ नही होगा तो ये पाप तो नही हुआ...मेरे ख्याल से।

(नीलम ये समझ गयी कि महेन्द्र को अब कोई दिक्कत नही है, और महेंद्र ये बोलते हुए शायद यह भूल गया था कि दूसरे उपाय में स्त्री दूसरे पुरुष की छुवन की लज़्ज़त को महसूस कर अपने जेहन में उतारेगी तभी वह उपाय सफल होगा और बिना वासना जागे ये हो ही नही सकता था, बिना वासना के जागे सफल संभोग हो ही नही सकता, उस अंग को देखकर वासना न जागे ये हो ही नही सकता)
Mahendr ko kia fasaya h neelam n kia kia chaal chaali h mahendr k saamne neelam n ki usko bhnak tak na lagi ki yeh kia khichdi paka rahi h apni aur bapu ichcha poori kerne k liye
Bahot shaandaar mazedaar lajawab update dost
 
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Naik

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Update- 69

नीलम चुप बैठी रही महेंद्र ने फिर बोला- हमे दूसरे उपाय को ही अपनाना चाहिए।

नीलम- मुझसे ये नही होगा, वो पिता हैं मेरे अभी तक मैं उनकी छुअन को एक पिता के स्नेह के रूप में ही महसूस करती आई हूं, मेरा मन उन्हें एक आनंदित पुरुष के रूप में कैसे स्वीकार कर पायेगा और जब मन इसे स्वीकार नही कर रहा तो तन उन्हें कैसे सौंप पाऊंगी। एक सगे पिता और बेटी के बीच यौनानंद तो एक व्यभिचार है।

महेंद्र- तुम इसे एक फ़र्ज़ की तरह क्यों नही ले रही हो, मुझे पूरा विश्वास है कि बाबू जी इस बात को अवश्य समझेंगे और वो पहले तुम्हारा मन जीतेंगे और फिर बाद में इसे बस एक कर्तव्य की तरह निभायेंगे। तुम्हे तुम्हारी इच्छा की सौगंध है तुम्हे ये अचूक उपाय करना ही होगा, तभी मेरा भी वचन पूरा होगा।

नीलम- तुमने मुझे सौगंध क्यों दी?

(नीलम ने एक बनावटी बेबसी दिखाते हुए कहा)

महेन्द्र- क्योंकि तुम समझ नही रही की बस यही एक रास्ता है, बस अब मुझे कुछ नही सुनना, तुम भी अब कुछ नही सोचोगी, अब सोचना नही करना है। करने लगो तो सब होने लगता है, चलो अब इस प्यारे से चेहरे पर मुस्कुराहट लाओ, ये राज सिर्फ मेरे और तुम्हारे बीच ही रहेगा हमेशा, ये वचन तो मैं दे ही चुका हूं। बस तुम अपना वचन निभाना मत भूलना।

नीलम ये सुनते ही मुस्कुरा दी, फिर महेन्द्र की आंखों में देखते हुए बोली- भैया....ओ मेरे भैया जी, लो मैं तुम्हे भैया बोल रही हूं नही भूलूंगी मैं भी अपना वचन।

महेन्द्र ये सुनते ही गनगना गया और मुस्कुराने लगा।

नीलम बोली- तुम बेफिक्र रहो तुम्हे तो मैं जन्नत की सैर कराऊँगी।

महेन्द्र- तो फिर तुम कागज पर सब कुछ लिख के रखो, शाम को बाबू की के आते ही उन्हें दे देना।

नीलम- क्यों तुम नही दोगे, मैं ही दूँ।

महेन्द्र- हाँ तुम ही किसी तरह उन्हें दे देना ये मैं नही कर पाऊंगा।

नीलम- चलो ठीक है ये भी मैं ही करूँगी।

तभी कुछ बच्चे बाहर आवाज लगाने लगते हैं- दीदी....ओ नीलम दीदी

नीलम महेन्द्र से हाँथ छुड़ा कर बाहर आई- हाँ..... कंचन, मंचन, राखी, सुलेखा क्या हुआ?

बच्चे- दीदी हम जामुन तोड़ लें!

नीलम मुस्कुराते हुए- हाँ जाओ तोड़ लो पर संभलकर तोड़ना, हल्ला मत करना ज्यादा।

बच्चे- ठीक है दीदी....नही करेंगे हल्ला......हमारी दीदी की जय हो......हमारी दीदी सबसे अच्छी........हमारी दीदी सबसे अच्छी (ऐसा नारा लगाते हुए काफी बच्चे जामुन के पेड़ के नीचे जाकर जामुन तोड़ने लगे)

नीलम मुस्कुरा उठी, महेन्द्र भी नीलम का जलवा देखकर हैरान था। महेन्द्र बाहर आकर लेट गया दोपहर के तीन बज चुके थे, क्योंकि अब बच्चे आ गए तो नीलम से इस वक्त कुछ मिलेगा इसकी उम्मीद अब उसे थी नही, नीलम भी घर में चली गयी।

उधर बिरजू शाम 4 बजे तक अपने मित्र के यहां पहुँचा तो देखा कि उसकी कुटिया में तो ताला लगा हुआ है उसने पड़ोस में पूछा तो पता लगा कि वो कुछ जड़ीबूटियों की खोज में हिमालय की यात्रा पर पिछले महीने ही चला गया है, न जाने अब कबतक आये, बिरजू को काफी निराशा हुई, उदास मन से वो घर की तरफ चल दिया, रास्ते में वो सोचे जा रहा था कि कितने उम्मीद से वो आया था सब पर पानी फिर गया, अब वो सब कैसे हो पायेगा, कैसे वो अपनी बेटी को नए रोमांच का मजा दे पाएगा, आखिर कैसे होगा वो सब जो नीलम चाहती है, उसे क्या पता था कि नीलम पहले ही सब चाल चलकर मामला सेट कर चुकी है, नीलम ने दूसरी तरफ ये सब करना इसलिए जरूरी समझा क्योंकि उसे लगा था कि अगर बाबू सफल नही हुए तो? इसलिए उसे अपनी तरफ से भी कुछ करके रख लेना चाहिये।

जैसे ही बिरजु शाम 6 बजे घर पहुंचा हल्का अंधेरा शुरू हो गया था, महेन्द्र खाट पर लेटा था, बच्चे जामुन तोड़कर जा चुके थे नीलम पशुओं को चारा डाल रही थी, अपने बाबू को दूर आता देखकर उसके चेहरे पर लालिमा छा गयी, महेन्द्र बिरजू को आता देख खाट से उठकर थोड़ा दूर हटकर अपने को छुपाता हुआ टहलने लगा, क्योंकि वो जनता था कि आज जो जो हुआ है उसकी वजह से उसके मन में बहुत बेचैनी थी और बिरजू के सामने अपने चेहरे के हावभाव वो सामान्य नही रख सकता था उसे संभलने के लिए कुछ वक्त चाहिए था।

बिरजू घर पर आ गया नीलम बिरजू के पास आई और बोली- बाबू आ गए आप, बैठो मैं पानी लाती हूँ।

बिरजू- हाँ बेटी ले आ, चल मैं घर में ही आ रहा हूँ।

नीलम ने बायीं तरफ मुड़कर देखा तो महेन्द्र टहलते टहलते पशुशाला की तरफ चला गया था, वो घर में चली गयी, बिरजू भी उसके पीछे पीछे घर में आ गया, नीलम ने देखा कि बिरजू कुछ उदास है।

नीलम- क्या हुआ बाबू? आप थोड़ा उदास हैं।

बिरजू- हाँ बेटी अब जिस काम के लिए जाओ वो न हो पाए तो मन उदास तो हो ही जाता है।

नीलम- ओहो....बस इत्ती सी बात के लिए मेरे बाबू उदास हो गए।

बिरजू- ये इत्ती सी बात नही है बेटी, बहुत बड़ी बात है, कैसे होगा वो सब जो तुम्हे सोचा था, मुझे तो लगा था कि मेरा वो मित्र कुछ जड़ीबूटियां देगा और वो दामाद जी को खिलाकर उनको सम्मोहित करके, उनके सामने प्यार कर सकेंगे, अब उनकी चेतन अवस्था में तो ये सम्भव हो नही पायेगा, और वो मित्र मिला नही, इसलिए मन उदास है।

नीलम- लेकिन मन उदास कीजिये मत बाबू, आखिर नीलम कोई चीज़ है कि नही।

बिरजू ने झट से नीलम को खींचकर बाहों में भर लिया और बोला- नीलम तो बहुत मीठी चीज़ है...बहुत मीठी और रसीली।

नीलम अपने मनपसंद पुरुष की बाहों में आकर सिरह उठी।

बिरजू ने ध्यान से अपनी बेटी को देखा, आंखें बंद करली नीलम ने, क्या सुंदरता थी नीलम की, एक पल ठहरकर बिरजू ने नीलम की सिंदूर भरी मांग को देखा, माथे पर दोनों तरफ झूलते बालों के लटों को देखा, फिर माथे पर लगी छोटी सी बिंदिया को निहारा, नही रहा गया तो एक गीला चुम्बन बेटी के माथे पर लिया, नीलम गदगद हो गयी, फिर बिरजू नीचे देखते हुए नीलम की आंखों पर पहुंचा शंखरूपी बड़ी बड़ी आंखें बंद थी, नीलम अपने बाबू की हरकत को अच्छे से महसूस कर रही थी तभी तो वो मंद मंद मुस्कुरा रही थी, पलकें उसकी हल्का हल्का हिल जा रही थी, बिरजू ने दोनों बंद आँखों को प्यार से चूमा और बोला- आंखें खोल न मेरी प्यारी बेटी।

नीलम मस्ती में- ओफ्फो....फिर बेटी.....वो बोलो न जो सिखाया था आपको और जो मुझे गनगना देता है।

बिरजू- अच्छा बाबा.....मेरी रंडी

नीलम का चेहरा शर्म से भर गया वो मस्ती में बोली- ये हुई न मेरे दिल की बात....अब दुबारा बोलो...मैं आँखें बंद करती हूं।

नीलम ने आंखें बंद कर ली

बिरजू- आंखे खोल न.....मेरी रांड

नीलम ने प्यार से मुस्कुराते हुए आंखे खोल कर बिरजू को निहारने लगी और बिरजू से रहा है नही गया उसने नीलम की कमर में हाँथ डाल के अपने से कस के चिपकाते हुए उसके रसीले होंठों को अपने होंठों में लेकर काट खाने की हद तक चूसने लगा, सिसकते हुए नीलम भी अपने बाबू से चिपक गयी, अपने होंठ तो वो खुद भी अपने मनपसंद मर्द से कटवाना चाहती थी पर थोड़ा डर रही थी कि कहीं महेन्द्र टहलता टहलता घर में न आ जाये, पर वो नही आएंगे ये भी विश्वास था फिर भी वो बोली- बाबू बस करो नही तो यहीँ सब कुछ हो जाएगा, क्या पानी नही पियोगे, बस मुझे ही खाओगे आते ही, मुझे रात में खाना अभी सब्र करो।

बिरजू- रात में बेटी का रस कैसे पियूँगा, दामाद जी जो हैं घर में।

नीलम- उसका इंतज़ाम भी मैंने कर दिया हैं, अपनी बेटी को क्या कच्चा खिलाड़ी समझा है, सब व्यवस्थित कर दिया है मैंने।

बिरजू चौंक गया- व्यवस्थित .......क्या व्यवस्थित......कैसे?......क्या किया तुमने?

नीलम - अभी बैठो पानी पियो, मैं एक कागज में सब लिखकर आपको दूंगी, आपके तकिए के नीचे रख दूंगी, सब पढ़ लेना और दिखावे के लिए उसका जवाब भी दूसरे कागज पर लिखकर मुझे देना, वो कागज पढ़ोगे तो सब पता चल जाएगा, सारी खीर पका दी है मैंने बस सिर्फ खाना खाना रह गया है। दिखावे के लिए अभी आपको मुझे चूड़ी पहनानी होगी, वो तो पहना नही पाए शर्त हार गए, और इस चूड़ी के खेल में मैंने ऐसा जाल बुना की अपने रोमांच का खेल खेलने का अखाड़ा तैयार कर दिया, समझे मेरे बाबू, अभी आप बाहर बैठो मैं खाना बनाने के साथ साथ वो सब कुछ जो आज दिन में मैंने किया एक कागज पर लिखकर आप तक पहुंचा दूंगी, आप उसे पढ़कर उत्तर देना और प्रतिउत्तर का कागज अपने दामाद जी के हांथों मुझे दिलवाना, फिर हम चूड़ी का खेल खेलेंगे और फिर खाना खाकर हम आज की इस हसीन रात को मिलकर रसीला बनाएंगे।

बिरजू ने नीलम के दोनों गालों पर बड़े प्यार से कामुक अंदाज में चुम्मा लिया और बोला- तू मुझे कितना खुश रखती है, तुझे ये अंदाज़ा था कि अगर मैं असफल हुआ तो क्या होगा, इसलिए खीर बना ही डाली।

नीलम- अपने मनपसंद मर्द से रसीला सुख पाने के लिए औरत को चाल चलना पड़े तो वो पीछे नही हटती, समझे मेरे बाबू। चलो अब बाहर बैठो।

ऐसा कहते हुए नीलम ने एक जोर का रसीला चुम्मा बिरजू के होंठों पर लिया और बिरजू तरसता हुआ बाहर आ गया, महेन्द्र अभी भी चूतियाओं की तरह दूर दूर ही घूम रहा था।

बिरजू- दामाद जी आओ इधर बैठो....क्या हुआ, ऊबन हो रही है क्या?

महेंद्र झिझकते हुए पास आ गया और दूसरी खाट पर बैठ गया फिर बोला- अरे नही बाबू जी ऊबन कैसी, अपने घर में कैसी ऊबन, आप कहीं गए थे किसी काम से? क्या हुआ हो गया वो काम?

बिरजू- नही बेटा काम तो नही हुआ जिससे मिलना था वो मिला नही।

महेन्द्र और बिरजू ऐसे ही काफी देर बातें करते रहे महेन्द्र की झिझक कुछ कम हुई पर बार बार आज जो दिन में हुआ और अब आगे आज रात क्या होगा यही उसके दिमाग में आ जा रहा था, की अगर बाबू जी मान गए तो कैसे होगा वो खुद कैसे इसको ग्रहण करेगा और नही माने तो क्या होगा। खैर ये तो अब आने वाला वक्त ही बताएगा कि क्या कैसे होगा?

वक्त बीता नीलम ने खाना बनाते बनाते दिन भर का सारा वृतांत ज्यौं का त्यौं कागज पर उतार दिया और महेंद्र और बिरजू के सामने, उस कागज को एक चाय की प्लेट में चाय के साथ लेकर बाहर आई।

बिरजू- अरे बेटी चाय ले आयी, अच्छा ही किया मैं बोलने ही वाला था।

तभी पशुशाला में बंधी भैंस आवाज करने लगी।

बिरजू- भैंस चिल्ला रही है शायद प्यासी है ऐर्क बाल्टी पानी दिखा दे उसको बिटिया, तेरी अम्मा भी न जाने कब आएगी, वो रहती है तो ये सब चिंता हम बाप बेटी को नही करनी पड़ती।

नीलम ने हंसते हुए चाय की प्लेट जिसमे घर की बनी नमकीन और वो कागज रखा था नीचे टेबल पर रखा और वो कागज उठाकर महेंद्र को दिखाते हुए अपने बाबू को देते हुए बोली- बाबू ये लो।

बिरजू- इसमें क्या है बेटी।

नीलम- बाबू इसमें मेरी इच्छा कैद है।

महेन्द्र ने सर नीचे कर लिया।

बिरजू- कैसी इच्छा बेटी।

नीलम- है एक इच्छा बाबू, पढ़ लेना और अगर आप इससे विचलित हो जाये या सहमत न हो तो माफ कर देना अपनी इस अभागन बिटिया को और अगर आपको जरा भी लगे कि मेरी खुशी में आपकी खुशी है तो इसका जवाब किसी कागज पर लिखकर दे देना।

(नीलम ने जानबूझकर महेन्द्र के सामने ये सब कहा)

बिरजू ने दिखावे का असमंजस भरा हावभाव चेहरे पर लाते हुए कहा- तू निश्चिन्त रह बेटी, मेरी बेटी की खुशी में ही मेरी खुशी है।

नीलम- नही बाबू.....पहले आप इसको पढ़ लेना......बिना सोचे समझे इंसान को भावनाओं में बहकर हमेशा निर्णय नही लेना चाहिए, पहले आप पढ़ लेना तब ही अपना जवाब देना....चाय पीजिए और मैं जाती हूँ भैंस को पानी पिला के आती हूँ और हाँ एक बात तो कहना ही भूल गयी।

बिरजू- बोल

नीलम- आप मुझे हमेशा की तरह चूड़ियां पहनाइए इन्हें भी देखना है, विश्वास नही हो रहा है इनको की आप इतनी अच्छी चूड़ियां पहना देते हो मुझे, दिन में चूड़ी वाली आयी थी तो मैंने नई चूड़ियां ली अपने लिए, कुछ अम्मा के लिए और रजनी दीदी के लिए भी ली थी।

बिरजू हंसता हुआ- अच्छा तो तुमने दामाद जी को ये बता दिया, की चूड़ियां अक्सर मैं पहना देता हूँ तुम्हे।

नीलम- हाँ तो क्या हो गया इसमें कोई बुराई है क्या।

बिरजू- अरे नही बाबा बुराई किस बात की ये तो प्यार है बाप बेटी का, चलो ठीक है ले आओ चूड़ियां पहना देता हूँ।

महेन्द्र भी बिरजू और नीलम को देखकर मुस्कुराने लगा।

नीलम पहले तो गयी कुएं से एक बाल्टी पानी निकाल कर दोनों भैंसों को पिला आयी फिर घर में गयी, रसोई में जाकर चूल्हे पर रखी परवल की सब्ज़ी को चलाकर चूल्हे में लगी आग को मद्धिम करके आंगन में खाट पर रखी अपनी चूड़ियां लेकर बाहर आ गयी।

बिरजू ने नीलम का हाँथ अपने हांथों में लिया, मन ही मन नीलम सिरह रही थी, अपनी बेटी के नरम हांथों को छूकर सब्र तो बिरजू से भी नही हो रहा था पर महेन्द्र वहीं बैठा दोनों को देख रहा था और ये सब स्वीकार करते हुए हज़म करने की कोशिश में लगा था।

बिरजू ने एक एक करके बड़े प्यार से नीलम को देखते हुए दोनों हांथों में 23 चूड़ियां पहना दी फिर बोला- अरे ये तो 23 ही हैं 24 होनी चाहिए न, 12 एक हाँथ की और 12 दूसरे हाँथ की।

नीलम- एक चूड़ी तो टूट गयी न, तो 23 ही बची।

बिरजू- फिर ये तो विषम है, सम होना चाहिए न।

नीलम ने कुछ चूड़ियां अतिरिक्त ले ली थी उनको देते हुए बोली- लो बाबू इसमें से एक पहना दो और बिरजू ने वो भी पहना कर दोनों हांथों में दोनों चूड़ियां पूरी कर दी।

नीलम ने महेन्द्र की तरफ देखते हुए बोला- देखा आपने कैसे पहनाई सारी चूड़ियां एक भी नही टूटी और तेल भी नही लगाया था हाँथ में।

महेन्द्र भी मान गया और बोला- वाकई बाबू ने कितनी सरलता से सारी चूड़ियां पहना दी, जबकि उनके हाँथ मेरे हाँथ से सख्त हैं।

नीलम, महेन्द्र और बिरजू सब हंस दिए, नीलम बोली- अच्छा चलो मैं खाना निकालती हूँ, आप लोग आओ घर में वहीं आंगन में खाना खाएंगे सब।

सबने खाना खाया, बिरजू और महेन्द्र दोबारा बाहर आ गए नीलम ने पीछे वाले कमरे में जहां से सिसकारियों की आवाज बाहर न जाये एक चौड़ी पलंग बिछा दी, जिसपर आज तीन लोग सोने वाले थे।

बिरजू बाहर आके बाहर बने एक दालान में गया जिसमें लालटेन जल रही थी, महेन्द्र बाहर ही लेटा रहा वो समझ गया कि बाबू दालान में वो कागज पढ़ने जा रहे हैं, वो दालान थोड़ी दूर पर ही था।

बिरजू ने वो कागज खोला और पढ़ने लगा, सबकुछ पढ़ने के बाद एक बार तो उसे विश्वास नही हुआ कि नीलम ने इतना कुछ कर डाला, पर उसकी सूझबूझ और रास्ता निकालने की कला पर खुश हो गया और गर्व महसूस करने लगा, उसे ये बात जानकर हैरानी हुई कि उसका दामाद अपनी सगी बहन को भोगना चाहता है पर उसने इसे सामान्य तौर पर लिया और कभी भी अपने चेहरे पर ऐसा कोई भी भाव न लाने का वचन खुद से ही लिया जिससे उसके दामाद को शर्मिंदगी न हो, सब पढ़ने के बाद वो पूरी कहानी समझ गया, नीलम ने उस कागज में यहां तक लिख दिया था कि मैं पीछे वाले कमरे में पलंग बिछाऊंगी और हम तीनो उसपर एक साथ सोएंगे, मैं और आपके दामाद जी पहले उस कमरे में चले जायेंगे और जब लालटेन बुझा देंगे तब आप आना।

बिरजू ने बगल में रखी किताबों के बीच में से एक पन्ना उठाया और उसमे अपना विचार अपना निर्णय लिख कर बाहर आ गया, उसने देखा महेन्द्र घर में जा चुका था, वह वहीं खाट पर बैठ गया, कुछ ही देर में नीलम बाहर आई और दरवाजे पर ही खड़ी होकर बिरजू को देखने लगी, बिरजू ने वो कागज नीलम को थमाया और धीरे से बोला- मैं कुछ देर बाद आता हूँ, नीलम मुस्कुराई और बोली- ज्यादा देर मत लगाना और अपने बाबू के हाँथ से वो कागज लेकर अंदर चली गयी, अंदर जाकर उसने महेन्द्र के सामने पलंग पर लेटकर वो कागज जल्दी से खोला और पढ़ने लगी।
Bahot zaberdast shaandaar lajawab mazedaar update dost
 
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Naik

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नीलम और महेन्द्र लालटेन की रोशनी में कागज में लिखा बिरजू का जवाब पढ़ने लगे, कागज मे बिरजू ने लिखा था-

" बेटी हिम्मत तो नही हो रही ऐसा कदम उठाने की, ये एक बाप और बेटी दोनों के लिए ही बहुत शर्म की बात है क्योंकि ये पाप ही नही महापाप है समाज की नज़र में गलत है, समाज इसको स्वीकार नही करेगा। परंतु जब बेटी की इच्छा की पूर्ति के बारे में सोच रहा हूँ तो न जाने क्यों सबकुछ ताक पर रखकर इसको अंजाम देने से खुद को नही रोक पा रहा हूँ, दिल बार बार यही कह रहा है कि माना कि ये गलत है, महापाप है, पर बेटी की इच्छा भी तो कुछ मायने रखती है, एक पिता का फर्ज होता है कि वो अपने बच्चों की इच्छा की पूर्ति करे, कम से कम जो उसके सामर्थ्य में है वो तो करे ही, कभी कभी कुछ इच्छाएं ऐसी होती हैं जो हमे आनेवाली जिंदगी में लगने वाले लांछन से बचाती हैं, शुरू में भले ही वो गलत लगे पर उसके दूरगामी सकारात्मक लाभ होते हैं और फिर मन ये कहता है कि चोरी तो हर कोई करता है पर चोर वही होता है जो पकड़ा जाता है, इस दुनियां में जो आया है वो कहीं न कहीं कभी न कभी जाने अनजाने में छोटा या बड़ा पाप करता ही है, तो फिर अपनी ही बेटी की इच्छा पूर्ति के लिए अगर ये पाप का कदम उठाना पड़े तो मैं इससे पीछे कैसे हटूं, आखिर मेरी बेटी मुझे इतना चाहती है कि वो मेरी सीरत को एक नई जिंदगी में पिरोकर इस दुनियां में लाना चाहती है, उसे संजो कर रखना चाहती है तो ये मेरे लिए उसका अगाढ़ प्रेम दर्शाता है वरना आजकल बेटियां कहाँ ऐसा सोचती हैं, मैं कितना भाग्यशाली हूँ जो मुझे तुम जैसी बेटी मिली, जो मेरी निशानी चाहती है, फिर सोचता हूँ कि ये पापकर्म अगर हमेशा गुप्त रहेगा तो पता ही किसको चलेगा और मेरी बेटी की इच्छा पूर्ति भी हो जाएगी, एक बार किसी अच्छे कर्म के लिए गुप्त रूप से किया गया पाप स्वीकार है मुझे, एक बार करने में कोई बुराई नही है इसलिए तुम सो जाना मैं रात को आऊंगा पलंग पर। पर ये ध्यान रखना की कभी तुम्हारी अम्मा को ये पता न लगे कि हमने एक रात मिलकर इस पाप को किया था, ये राज सिर्फ हमेशा हमारे ही बीच रहेगा, बस बेचैनी इस बात की हो रही है कि मुझे तुम्हे एक स्त्री के रूप में ग्रहण करने में अपार ग्लानि हो रही है, कैसे कर पाऊंगा मैं ये सब, जो मेरी बेटी है मेरी सगी बेटी उसके साथ वो सब जो एक पुरुष स्त्री के साथ करता है, पर मैं करूँगा, जैसे भी हो करूँगा, एक बार ही तो करना है, बेटी की खुशी के लिए करना पड़ेगा तो करूँगा और मुझे माफ कर देना दामाद जी, गुप्त रूप से तुम्हारी सहमति को मैं समझ रहा हूँ, तुम सच में घर गृहस्ती को समझने वाले इंसान हो, घरगृहस्थी को बांधकर कैसे चलाया जाता है अपनों की खुशियों के लिए उसमें कैसे कैसे समझौते करने पड़ते है ये तुम्हे अच्छे से आता है इस बात को मैं अब तुम्हारी इस मौन स्वीकृति को देखते हुए समझ गया हूँ, तुम वाकई में समझदार इंसान हो, वरना छोटी छोटी बातों को लेकर लोग बखेड़ा खड़ा कर देते है, अपनो की ही जिंदगी छीन लेते है सिर्फ छोटी छोटी बातों पर ही, उस हिसाब से तो ये बहुत बड़ा पाप है जिसको तुमने मौन स्वीकृति दी है, और मैं ये भी जनता हूँ कि तुम मेरा सामना नही कर पाओगे और न ही मैं इसलिए कमरे में अंधेरा ही रखना, मैं आऊंगा कुछ देर में। मुझे माफ़ कर देना।"

(बिरजू ने जानबूझ कर अंतिम लाइनों में अपने दामाद की बड़ाई कर दी थी ताकि उसे ये लगे कि वो एक महान इंसान है)

नीलम ने कागज को मोड़कर अपनी मुट्ठी में ले।लिया और मारे शर्म से अपना चेहरा अपने घुटनों में छुपाकर बैठ गयी, महेन्द्र ने उसे संभाला और बोला- मैं तो डर रहा था की बाबू जी कहीं गुस्से से लाल पीले होकर हमें ही न डांट लगा दें, पर सच में आज मैंने उन्हें अच्छे से जाना है कि वो कैसे इंसान हैं, सच में वो तुमसे बहुत प्यार करते हैं, मैं तुम्हारी मन स्थिति समझ सकता हूँ नीलम पर अब आगे बढ़ो, चलो लालटेन बुझा दो सोते हैं।

नीलम कुछ नही बोली कागज को उसने तकिए के नीचे घुसा दिया और लालटेन बुझा कर आई पलंग पर लेट गयी, कमरे में गुप्प अंधेरा हो गया, पलंग काफी चौड़ी थी तीन लोग अगर फासला बनाकर सोएं तो बीच में एक एक हाँथ का फासला बनता था।

महेन्द्र बायीं तरफ लेटा था नीलम ज्यादा से ज्यादा महेन्द्र की तरफ लेटी थी, आधे से लगभग थोड़ा ज्यादा पलंग खाली थी, नीलम ने ऐसा जानबूझ के किया ताकि महेन्द्र को लगे कि ओ शर्म से गड़ी जा रही है, कैसे अपने बाबू की ओर लेटे?

महेन्द्र और नीलम बहुत देर चुप करके लेटे रहे महेंद्र ने नीलम को बाहों में भर लिया नीलम चुपचाप महेन्द्र की बाहों में आ गयी, दोनों पलंग पर ऐसे गुपचुप लेटे थे मानो डर के मारे पलंग में दुबके हों, किसी जंगल में सुनसान भूतिया हवेली के किसी कमरे में पलंग पर दुबके एक दूसरे को एक दूसरे का सहारा बनते हुए ढांढस बंधा रहे हो, और मिन्नतें कर रहे हों कि वो भूत इस कमरे में न आ जाये, हे ईश्वर हमे बचा लो, उनको देखकर तो ऐसा ही लग रहा था पर वास्तव में नीलम तड़प तड़प कर अपने बाबू का अंदर से इंतज़ार कर रही थी और महेन्द्र शर्म से गड़ा जा रहा था, नीलम तो बस दिखावा कर रही थी।

महेंद्र ने नीलम के गालों पर पप्पियाँ लेनी शुरू कर दी तो नीलम थोड़ा कसमसाई और बोली- अभी रुको न, जल्दी भी क्या है, बाबू को आ जाने दो, उनको सो जाने दो तब कर लेना जो करना हो।

महेन्द्र- बाबू यहां सोने के लिए थोड़ी आएंगे।

नीलम- वो तो मैं भी जानती हूं, इसलिए तो शर्म आ रही है।

महेन्द्र- आओ तुम्हारी शर्म दूर कर देता हूँ।

ऐसा कहकर महेंद्र ने नीलम को और कस के बाहों में भर लिया और उसके गालों और होंठों को चूमने लगा, महेन्द्र का लन्ड धीरे धीरे उठने लगा, पर न जाने क्यों नीलम को महेन्द्र के साथ वो मजा नही आ रहा था, उसे तो प्यास थी अपने बाबू की, ऊपरी मन से वो बस महेन्द्र को हल्का हल्का सहला रही थी, महेन्द्र नीलम पर अपना नियंत्रण करने की कोशिश कर रहा था दरअसल जब वो नीलम को अपनी बहन सुनीता समझ कर चूमता तो उसे अत्यधिक उत्तेजना होती और जब वह बाबू के बारे में सोचता कि अभी वो कमरे में आएंगे तो थोड़ा ठंडा पड़ जाता पर उससे रहा नही गया तो उसने नीलम के कान में कहा- दीदी.....ओ मेरी दीदी

नीलम समझ गयी कि क्या चीज़ महेन्द्र को उत्तेजित कर रही है उसने भी धीरे से फुसफुसाकर कहा- भैया......मेरे भैया जी।

महेन्द्र- दीदी.......दोगी मुझे आज

नीलम- क्या भैया......

महेन्द्र ने झट से नीलम की दहकती बूर जो अपने बाबू का इंतज़ार कर रही थी उसपर हाँथ रखकर पूछ बैठा जिससे नीलम थोड़ा चिहुँक गयी- ये.......ये चाहिए मुझे दीदी

नीलम हल्का सा सिसक गयी और महेन्द्र को रिझाने के लिए बोली- बहन के साथ गलत काम करोगे, कोई भाई अपनी बहन की वो मांगता है भला, पाप है ये।

महेन्द्र- बहन हो तो क्या हुआ, मैं तुम्हे चाहता हूं, तुमसे प्यार करता हूँ, अब अपनी बहन से ही प्यार हो गया है तो क्या करूँ।

नीलम- अपनी ही सगी बहन से कोई भला वो वाला प्यार कर बैठता है, भाई बहन का प्यार तो पवित्र होता है।

महेन्द्र- मैं जानता हूँ दीदी पर बहन भी तो एक लड़की, एक स्त्री ही होती है न और भाई एक पुरुष तो अगर किसी की बहन का सम्मोहित सा करने वाला बदन उसके भाई का मन मोह ले और वो उसे उस रूप में चाहने लगे तो उसमे भाई का क्या दोष..... बोलो दीदी

नीलम ने बहन का रोल अदा करते हुए अपने पति महेन्द्र से बोला- बात तो भैया आप ठीक कह रहे हैं पर समाज इसको मानेगा नही न, समाज की नजर में ये अनैतिक कार्य है, ये पाप है, एक स्त्री और पुरुष में प्यार तब होता है जब उनका मन एक दूसरे के प्रति आसक्त हो जाता है और मन के साथ साथ जब तक तन न मिले तो प्यार पूर्ण नही होता और भाई और बहन समाज के सामने शादी तो कर नही सकते तो वो अपने प्यासे तन को मिलाएंगे कैसे? जैसे भाई अपनी बहन पर आसक्त हो सकता है वैसे बहन भी अपने भाई पर आसक्त हो सकती है पर वो दोनों समाज के डर से अपने तन बदन को नही मिला सकते, ये पाप है, मन तो चुपके चुपके मिला सकते है क्यूंकि किसी के मन में झांककर तो कोई नही देख रहा पर भाई बहन को आपस में अपना तन मिलाते हुए किसी ने देख लिया तो अनर्थ हो जाएगा भैया.....अनर्थ।

महेन्द्र ये सुनकर खुश हो गया और धीरे से बोला- दीदी एक बात पुछूं?

नीलम ने सुनीता बनकर बोला- हाँ मेरे भैया बोलो न।

महेन्द्र- तुम बस समाज के डर से इस पाप का आनंद लेने से अपने मन को दबा रही हो न, वैसे तो तुम मेरे साथ वो करना चाहती हो न, वो सुख लेना चाहती हो न?

नीलम ने महेन्द्र को खुश करने के लिए बड़े ही मादक अंदाज़ में उसको अपने ऊपर खींचते हुए बोला- हाँ मेरे भैया......मैं भी अपने सगे भैया के साथ वो करके उसका सुख लेना चाहती हूं, मेरा भी मन करता है कि मेरे भाई का वो कैसा होगा?, कितना बड़ा होगा?, दिखने में कैसा है?, वो पाप मैं भी करना चाहती हूं, पर समाज से डरती हूँ, कहीं पकड़े गए तो।

महेन्द्र नीलम के ऊपर पूरा चढ़ चुका था अत्यधिक उत्तेजना के मारे महेन्द्र का लन्ड बुरी तरह खड़ा होकर नीलम की जाँघों में चुभने लगा, कुछ पल के लिए दोनों भूल गए कि अभी बिरजू आने वाला है।

महेन्द्र नीलम को ताबड़तोड़ चूमने लगा नीलम मंद मंद हंसने लगी अपने गाल घुमा घुमा के महेन्द्र को चुम्मा देने लगी आखिर वो उसकी बहन का रोल जो प्ले कर रही थी, महेन्द्र ने फिर बोला- दीदी हम छुप छुप के मिलन कर लिया करेंगे न, जब किसी को पता ही नही चलेगा तो डर कैसा, माना की भाई और बहन शादी नही कर सकते पर एक दूसरे को छुप छुपकर भोग तो सकते हैं न, अगर बहन राजी है तो वो अपना रस भाई को छुप छुप कर पिला सकती है न, और सगे भाई के मर्दाना धक्कों का सुख अपनी गहराई में महसूस कर सकती है न.......बोलो न दीदी......हम छुप छुप के करेंगे.......बोलो दोगी न मुझे वो? मैं तुम्हे पूर्ण संतुष्टि दूंगा दीदी सच.....क्योंकि मैं तुम्हारा प्यासा हूँ, अपनी बहन का प्यासा।

महेन्द्र जोश में बहकर बोले जा रहा था, नीलम ने उसकी पीठ को सहलाया और बोली- धीरे से.....धीरे धीरे बोलो.......बाबू आते होंगे, हाँ मैं अपने भैया को अपनी वो दूंगी, चाखाउंगी तुम्हें, दिखाउंगी तुम्हें की वो कैसी होती है, देखने में वो कैसी लगती है, क्यों उसको देखने के लिए एक मर्द तड़पता है, कैसी बनावट होती है उसकी, उसका छेद कैसा होता है (ये लाइन बोलते वक्त नीलम भी सिरह गयी), और उसमे कैसे और कहां डालते हैं, सब दिखाउंगी अपने भैया को छुप छुपकर, मैं भी तड़पती हूँ भैया आपके लिए, ऐसा कहकर नीलम महेन्द्र का लन्ड पकड़ लेती है फिर बोलती है - आपके इसके लिए भैया आपकी बहन भी तड़पती है, बस कहती नही है लेकिन आज कहती हूँ, दूंगी मैं अपने भैया को, आखिर मेरा सगा भाई है वो जब उसकी बहन के पास भी है वो चीज़ तो उसका भाई आखिर उस चीज़ के लिए क्यों इतना तड़पे, मैं अपने भाई को अब नही तड़पने दूंगी, आखिर जब मैं उसको राखी बांधती हूँ तो वो मेरी रक्षा करने का वचन देता है और फिर मैं उसको मिठाई खिलाती हूँ मिठाई का मतलब मीठा ही हुआ न, तो हमारी वो चीज़ भी तो मीठी ही होती है न, क्यों न मैं अपने सगे प्यारे भाई को जो मेरी रक्षा का वचन देता है उसको अपनी असली मिठाई खिलाऊँ, क्यों मैं उसको अपनी असली मिठाई से दूर रखती हूं सिर्फ समाज के डर से, जब वो मेरा सगा भाई है और मेरी उस मिठाई के लिए तड़प रहा है तो क्या बदले में मैं कभी उसको अपनी छोटी सी ये चीज नही चखा सकती, क्या बिगड़ जाएगा इससे मेरा, छुप छुप कर तो सब किया जा ही सकता है, हम लड़कियां बेवजह डरती रहती है, अपने घर में ही अपने सगे भाई का प्यार उन्हें बहुत आसानी से मिल सकता है, इससे बहन और भाई का प्यार और मजबूत ही होगा कम नही होगा और इसीलिए अब मैं अपने भाई को तड़पता हुआ नही देख सकती।

महेन्द्र नीलम की ये बातें सुनकर इतना उत्तेजित हो गया कि मानो उसका लन्ड बहन की चाहत में फट ही जायेगा, वो कराहते हुए बोला- ओह दीदी मेरी प्यारी दीदी.....अब मैं रह नही सकता तुम्हारे बिना।

नीलम- थोड़ा आराम से जी मैं सच में सुनीता नही तुम्हारी पत्नी हूँ, और अब बस करो मजा दिया न इतनी देर, अब बस बाद में ऐसा खेल खेलेंगे, अब रुको।

महेन्द्र- अब रुका नही जाता, क्या सच में सुनीता ऐसा ही मेरे बारे में सोचती होगी जैसा तुमने अब तक बोला।

नीलम- नही भी सोचती होगी तो मैं सोचवा दूंगी, अब तुम उसकी फिक्र मत करो।


महेन्द्र खुश होते हुए नीलम को चूमने लगा फिर बोला- और बोलो न भैया, मैं तुम्हारे साथ सुनीता को सोचकर ही संभोग करूँगा।

नीलम- ठीक है जैसा तुम्हारा मन करे, पर ये मेरे बाबू जी के सामने कैसे करोगे और मैं तुम्हे भैया नही बोल पाऊंगी ये फिर किसी और दिन कर लेना।

महेन्द्र ने विनती करते हुए कहा- धीरे धीरे कान में भैया बोल देना न,अब आग लगा दी है तो सब्र नही होता।

नीलम- मैंने कहाँ आग लगाई तुमने ही शुरू किया था....मेरे कान में दीदी ओ दीदी बोलकर।

महेन्द्र को याद आया कि हां शुरू तो उसने ही किया था।

कमरे में गुप्प अंधेरा था, बिरजू के पास एक छोटी सी टॉर्च हुआ करती थी, जो कि एक छोटी sketch colour के पेंसिल जितनी ही थी, उसकी रोशनी ज्यादा नही बस दो फुट के दायरे तक ही होती थी, उसको जलाकर वो घर के अंदर दाखिल हुआ, उस कमरे तक गया जिसमें आज रात रस बरसने वाला था, टॉर्च बंद कर दी और हल्के से सटाये हुए दरवाजे को खोलकर अंदर दाखिल हो गया और सिटकनी लगा दी। बाहर का दरवाजा वो अंदर से पहले ही बंद कर आया था।
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Naik

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बिरजू जैसे ही दरवाजा खोलकर कमरे में दाखिल हुआ और पलटकर दरवाजे की सिटकनी लगाई महेन्द्र जो नीलम के ऊपर चढ़ा हुआ था धीरे से अंधेरे में नीचे उतरकर बायीं तरफ लेट गया, नीलम मंद मंद हंसने लगी। बिरजू अंदाजे से पलंग तक आया और धीरे से बिस्तर पर लेट गया पलंग पर लेटते ही हल्की चरमराहट की आवाज हुई, ये पलंग बिरजू की शादी की थी जो उसके ससुर ने दी थी उपहार में, काफी पुरानी हो गयी थी पर अब भी मजबूत थी, इसी कमरे में हमेशा रखी रहती थी, काफी लंबी चौड़ी और भारी होने की वजह से कोई इस पलंग को जल्दी अपनी जगह से इधर उधर नही करता था।

कमरे में गुप्प अंधेरा था, सब सोने की कोशिश करने लगे, नीलम बीच में थी महेंद्र बायीं तरफ और बिरजू नीलम से थोड़ा सा दूर दाईं तरफ, नींद किसको आ रही थी, बिरजू ने पैर के पास रखा हल्का चादर उठाया और सर से लेकर पैर तक ओढ़कर लेट गया, कमरे में गुप्प अंधेरा होने के बावजूद भी आंखें अभ्यस्त होने के बाद हल्का हल्का दिख ही रह था।

सब चुपचाप लेटे थे, नीलम का भी आखिरी वक्त पर वाकई में शर्म से बुरा हाल था माना कि सब उसी की इच्छा थी, सब उसने ही किया था पर अब आखिरी वक्त पर उसे भी लज़्ज़ा आ रही थी, महेन्द्र तो बकरी बनकर बायीं तरफ लेटा हुआ था हालांकि वो नीलम से लिपटा हुआ था पर अभी तक वो जितना भी उत्तेजित हुआ था सब मानो छूमंतर सा हो गया था, बिरजू तो दायीं तरफ थोड़ा दूर ही लेटा था। नीलम समझ गयी कि मुझे ही कुछ करना पड़ेगा, नीलम ने अपना सीधा हाँथ अंधेरे में सरकाकर अपने बाबू की ओर बढ़ाया और उनकी धोती को पकड़कर हल्का सा खींचकर चुपचाप अपनी तड़प का इशारा किया, बिरजु ने अपनी बेटी के हाँथ को अंधेरे में अपने हाँथ में लिया और हल्का सा दबाकर थोड़ा सा सब्र रखने का इशारा किया। नीलम ने फिर हाँथ वापिस खींच लिया और महेन्द्र के कान में धीरे से बोला- भैया

ये सुनते ही महेन्द्र को अजीब सी सनसनाहट हुई, लन्ड में उसके हल्का सा कंपन हुआ, नीलम सीधी पीठ के बल लेटी थी और महेंद्र दायीं तरफ करवट लेकर नीलम के बायीं तरफ लेटा था, नीलम ने बहुत धीरे से महेन्द्र को भैया बोला था पर फिर भी बिरजू तक आवाज गयी, बिरजू जो अब सबकुछ जान चुका था उसको ज्यादा कुछ खास अचंभा नही हुआ, वो जनता था कि नीलम शरारती है कुछ न कुछ वो करेगी ही, सब कुछ बिरजू के सामने खुल ही गया था बस दिखावे की एक लज़्ज़ा की दीवार थी पर इस दीवार को तोड़कर निर्लज्ज कोई नही होना चाहता था क्योंकि असली मजा तो शर्म में ही है।

महेन्द्र ने भी धीरे से नीलम के कान में सकुचाते हुए बोला- दीदी......मेरी प्यारी बहना

इतना कहकर महेन्द्र नीलम को चूमने लगा, धीरे धीरे वो नीलम के ऊपर चढ़ने लगा नीलम भी बड़े आराम से शर्माते हुए महेन्द्र के नीचे आने लगी, शर्म झिझक और असीम वासना का मिला जुला अहसाह देखते ही बन रहा था, जीवन में आज पहली बार महेन्द्र अपनी पत्नी के ऊपर चढ़ रहा था और बगल में उसका ससुर लेटा था जो कि जग रहा था, यही हाल नीलम का भी हो चला था किसी ने सच कहा है सोचने और वास्तविक रूप में करने में काफी फर्क होता है, कितना अजीब लग रहा था कि उसके बाबू की मौजूदगी में महेन्द्र उसके ऊपर चढ़ रहा था, और बहन भाई की कल्पना की उमंग ने अलग ही रोमांच बदन में भर दिया था, देखते ही देखते महेन्द्र का उत्तेजना के मारे बुरा हाल हो गया क्योंकि नीलम उसके कान में धीरे धीरे भैया.....मेरा भाई...बोले ही जा रही थी, वो संकोच की वजह से बहन कम ही बोल रहा था पर व्यभिचार के इस लज़्ज़त को महसूस कर अतिउत्तेजित होता जा रहा था, धीरे धीरे नीलम और महेन्द्र की झिझक कम होती गयी और वो दोनों एक दूसरे के होंठों को चूसने लगे, महेन्द्र नीलम के ऊपर पूरा चढ़ चुका था वो उसके बदन को बेतहाशा सहला रहा था, नीलम ने भी शर्माते शर्माते महेन्द्र को अपनी बाहों में भर ही लिया और प्रतिउत्तर में उसके होठों को चूसने लगी, एकाएक महेन्द्र का हाँथ नीलम की 34 साइज की सख्त हो चुकी चूची से जा टकराया तो उसने तुरंत ब्लॉउज में कैद नीलम की नरम मोटी चूची को जिसके निप्पल अब सख्त हो चुके थे अपनी हथेली में भरकर दबा दिया, नीलम हल्का सा सिसक गयी, महेन्द्र दोनों हांथों से नीलम की दोनों चुचियों को दबाने लगा, नीलम घुटी घुटी आवाज में हल्का हल्का कसमसाने लगी, उत्तेजना बदन में हिलोरें मारने लगी, नीलम को उत्तेजना इस बात से ज्यादा हो रही थी कि बाबू उसके बगल में ही लेटे अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे हैं और ये अब कितना रोमांचक होने लगा है, कमरे में गुप्प अंधेरा था अगर उजाला होता तो शायद ये सम्भव न हो पाता, लज़्ज़ा की चादर ओढ़े अब धीरे धीरे काम वासना तन और मन पर कब्ज़ा करने लगी थी, नीलम अब खुलने लगी, महेंद्र लगातार उसकी नरम नरम गुदाज चूचीयों को दोनों हांथों से मसले जा रहा था, नीलम के खड़े हो चुके निप्पल को पकड़कर वो मसलने लगा, ऐसा करने से एक सनसनी नीलम के बदन में ऊपर से नीचे तक दौड़ गयी, कराह कर वो दबी आवाज में बोली- आआआआहहहह...भैय्या.....धीरे से

बूर नीलम की गरम तो पहले से ही थी पर अब मारे जोश के पिघलने सी लगी, नीलम का आधे से ज्यादा ध्यान अपने बाबू पर था, उसने अपनी मांसल जाँघों को फैलाकर पैर को उठाया और महेन्द्र की कमर में कैंची की तरह लपेट दिया, नीलम का महेन्द्र को इस तरह स्वीकारना बहुत अच्छा लगा, महेन्द्र नीलम के चेहरे को बेताहाशा चूमते हुए गर्दन पर आ गया नीलम बड़े प्यार से अपना बदन महेन्द्र को सौंपे जा रही थी, महेन्द्र ने नीलम की गर्दन पर गीले गीले चुम्बन देना शुरू कर दिया तो मस्ती में नीलम ने भी अपनी आंखें बंद करते हुए सर को ऊपर की तरफ पीछे करते हुए अपनी गर्दन को उभारकर महेन्द्र को परोस दिया, दोनों लाख कोशिश कर रहे थे कि आवाज न हो पर फिर भी चूमने सिसकने की हल्की हल्की आवाज हो ही रही थी।

चूमते चूमते महेन्द्र नीचे आया और नीलम के ब्लॉउज का बटन खोलने लगा अब नीलम मारे उत्तेजना के सिसक उठी क्योंकि अब वो निवस्त्र होने वाली थी, बगल में उसके बाबू लेटे थे, दोनों दुग्धकलश अब उसके बेपर्दा होने वाले थे, नीलम ने खुद ही अपने दोनों हाँथ को उठाकर सर के ऊपर रख लिया जिससे ब्लाउज में कसी उसकी दोनों चूचीयाँ और ऊपर को उठ गई, महेंद्र ने पहले तो झुककर नीलम की काँख में मुँह लगाकर उसके पसीने को अच्छे से सुंघा फिर ब्लॉउज के ऊपर से ही काँख में लगे पसीने को चाटने लगा, थोड़ी गर्मी की वजह से, थोड़ा उमस की वजह से और ज्यादा वासना और उत्तेजना की वजह से तीनों पसीने से तर भी हो रहे थे, नीलम का पसीना अच्छे से चाटने के बाद महेन्द्र ने एक ही झटके में नीलम के ब्लॉउज के सारे बटन खोलकर ब्लॉउज के दोनों पल्लों को अगल बगल पलट दिया और ब्रा में कैद नीलम की उत्तेजना से ऊपर नीचे होती हुई दोनों मोटी मोटी 34 साइज की चुचियों के बीच की घाटी में सिसकते हुए मुँह डालकर ताबड़तोड़ चूमते हुए धीरे से बोला- ओह बहना.....और एक हाँथ से दायीं चूची को हथेली में भरकर मीजने लगा, नीलम ने कराहते हुए हाथ बढ़ा कर थोड़ा दूर लेटे अपने बाबू का हाँथ पकड़ लिया और जोश में उनकी उंगलियों में अपनी उंगलियां फंसा कर दबाने लगी। इधर महेंद्र मानो नीलम की चूचीयों को अपनी बहन सुनीता की चूची समझते हुए उनपर टूट ही पड़ा जिससे नीलम थोड़ा जोर जोर सिसकने लगी और अपने दोनों पैर के अंगूठों को उत्तेजना में तेज तेज आपस में रगड़ने लगी।

बिरजू सर तक पूरा चादर ओढ़े अभी तक सन्न पड़ा हुआ उत्तेजना में लाल हो चुका था उसका 8 इंच का तगड़ा काला लन्ड फुंकार मारने लगा। वो बस नीलम के नरम नरम हांथों को मारे उत्तेजना के हौले हौले दबा रहा था लेकिन अपने बाबू की केवल इतनी सी छुवन नीलम को उत्तेजना से भर दे रही थी, अंधेरे में एक तरफ उसका पति उसके ऊपर चढ़कर उसकी चूचीयाँ खोले मसल रहा था और दूसरी तरफ उसके बाबू सिर्फ उसके नरम हाथ को प्यार से सहलाकर काम चला रहे थे।

महेन्द्र ने हाथ पीछे ले जाकर नीलम की ब्रा का हुक भी खोल दिया और उसकी ब्रा को निकालकर पलंग से नीचे ही गिरा दिया, नीलम ने हल्का सा उठकर खुद ही अपना ब्लॉउज भी अंधेरे में निकाल दिया अब वो सिर्फ साड़ी में रह गयी थी कमर से ऊपर का हिस्सा उसका पूरा निवस्त्र हो चुका था, झट से वो लेट गयी और इन सभी क्रिया में उसके माध्यम आकर के खरबूजे समान उन्नत दोनों चूचीयाँ इधर उधर स्वच्छंद हिलकर महेंद्र को पागल कर गयी, जैसे ही वो लेटी उसकी दोनों चूचीयाँ किसी विशाल गुब्बारे की तरह उसकी छाती पर इधर उधर हिलने लगे, महेंद्र से अब सब्र कहाँ होने वाला था झट से वो उन सपंज जैसी उछलती मचलती चूचीयों पर टूट पड़ा और बेसब्रों की तरह चूचीयों पर पहले तो जहां तहां चूमने लगा फिर एकाएक बारी बारी से दोनों निप्पल को पीने लगा, नीलम के निप्पल तो फूलकर किसी जामुन की तरह बड़े हो गए थे और वासना में कड़क होकर खड़े हो चुके थे, कुछ देर तक वो नीलम की चूचीयाँ पीता और मसलता दबाता रहा फिर नाभी को चूमने लगा नीलम मस्ती में एक हाँथ से उसका सर सहलाने लगी और दूसरा हाँथ जो उसके बाबू के हाँथ में था उससे वो अपने बाबू के हाँथ को सहला रही थी, अब उससे रहा नही जा रहा था वो अब बस खुद को दो मर्दों के बीच मस्ती में डूबी एक औरत समझ रही थी जिसको सिर्फ और सिर्फ अब लन्ड चाहिए था, एक के बाद एक लन्ड।

उसकी शर्म और झिझक अब काफी हद तक गायब हो चुकी थी, उसने जानबूझ कर धीरे से कई बार महेन्द्र को भैया बोला ताकि महेन्द्र ज्यादा उत्तेजित होकर जल्दी अपना काम करके हटे और फिर आज की रात असली पाप हो।

इधर बिरजू भी चादर में से अपना मुँह निकालकर नीलम को देखने लगा नीलम ने सर घुमाकर अपने बाबू को देखा तो वो उसकी तरफ ही देख रहे थे नीलम ने उनके हाँथ से अपना हाथ छुड़ाकर उनके होंठों पर अपनी उंगलियां रख दी और अंधेरे में बड़े प्यार से उनके होंठों पर अपनी उंगलियां रगड़ने लगी मानो कह रही हो कि मुझे अपने बदन पर एक एक अंग पर इन होंठों से चुम्बन चाहिए।

इधर बिरजू ने चादर के अंदर ही दूसरे हाँथ से अपनी धोती खोल कर काला विशाल लन्ड बाहर ही निकाल लिया था।

महेन्द्र के सब्र का बांध अब टूट चुका था तो उसने नीलम की साड़ी को नीचे से ऊपर की ओर उठाना शुरू कर दिया शर्म और झिझक तो अब भी उसके मन में थी पर वासना भी भरपूर थी, नीलम अब और भी मचल उठी क्योंकि अब उसकी जाँघों के बीच की जन्नत उजागर होने वाली थी, महेंद्र ने साड़ी को आखिर कुछ ही पलों में उठाकर कमर तक कर दिया और अपने हांथों से नीलम की दोनों मांसल जाँघों और उसमे कसी कच्छी को ऊपर से ही सहलाने लगा जैसे ही उसने नीलम की कच्छी के ऊपर से ही उसकी बूर पर हाँथ रखा तो वह वहां भरपूर गीलापन महसूस कर मदहोश हो गया और झुककर कच्छी के ऊपर से ही बूर के रस को चाटने लगा, अंधेरे में इस अचानक हमले से नीलम सिसकते हुए चिहुँक पड़ी और ओह मेरे भैया कहते हुए उसके सर को सहलाने लगी, कुछ देर महेन्द्र झुककर ऐसे ही नीलम की जाँघों और कच्छी के ऊपर से महकती रसीली बूर को चाटता रहा जब नीलम ने नही बर्दास्त हुआ तो उसने बिरजू के होंठों के अंदर अपनी एक उंगली घुसेड़ते हुए महेंद्र से धीरे से बोला- भैया खोलो न कच्छी अपनी बहना की कब तक हम ऐसे ही शर्माते रहेंगे अब बर्दास्त नही होता।

ये सुनते ही बिरजु धीरे से पलंग से उठा और जल्दी से अंधेरे में खुली धोती दुबारा लपेटी और जानबूझकर धीरे से कमरे से बाहर जाने लगा वो जनता था कि जबतक वो यहां रहेगा महेन्द्र खुलकर नीलम को नही चोद पायेगा, बस थोड़ी देर के लिए वो बाहर जाना चाहता था हालांकि नीलम पहले तो चुपचाप उनके हाँथ को पकड़कर रोकना चाही पर फिर वो भी समझ गयी और हाँथ छोड़ दिया, बिरजू धीरे से कमरे से बाहर निकल गया और बाहर आकर खिड़की के पास खड़ा हो गया।

महेंद्र भी ये जान गया कि बाबू जी बाहर क्यों चले गए, आखिर उनके अंदर एक मर्यादा थी, महेंद्र तो मानो अब गरज उठा और नीलम को ताबड़तोड़ चूमने लगा नीलम भी उसका साथ देने लगी धीरे से बोली- भैया कच्छी खोलो न।

महेन्द्र- कच्छी खोलूं दीदी, देख लूं आपकी वो

नीलम सिसकते हुए- हाँ मेरे भाई खोल के देख न जल्दी अपनी बहन की बूर

नीलम के मुँह से बूर शब्द सुनकर महेंद्र बौरा गया

महेन्द्र- पर दीदी मेरे पास रोशनी नही है कैसे देखुंगा।

नीलम- रुक मेरे भाई रुक बाबू की छोटी टॉर्च यहीं होगी

नीलम ने थोड़ा उठकर बिस्तर पे टटोला तो टोर्च हाँथ लग गयी उसने टॉर्च को जला कर अपनी जाँघों के बीच दिखाया और बोली- लो भैया अब उतारो मेरी कच्छी, और देखी मेरी बूर

महेंद्र छोटी टॉर्च की हल्की नीली रोशनी में नीलम की मोटी मोटी जांघे और उसमे कसी छोटी सी कच्छी और उसपर बूर की जगह पर गीलापन देखकर मदहोश हो गया उसने झट से नीलम की कच्छी को पकड़ा और जाँघों से नीचे तक खींच कर उतार दिया, हल्के काले काले बालों से भरी नीलम की रस बहाती वासना में फूलकर हुई पावरोटी की तरह महकती बूर को देखकर महेन्द्र मंत्रमुग्ध सा कुछ देर बूर की आभा को देखता ही रहा।

नीलम- भैया कैसी है बहन की बूर?

महेंद्र- मत पूछ मेरी बहन तेरी बूर तो जन्नत है।
बनावट इसकी कितनी प्यारी है......कितनी मादक है तेरी बूर....दीदी।

बस फिर सिसकते हुए महेंद्र बूर पर टूट पड़ा नीलम ने झट से कच्छी को पैरों से निकाल फेंका और दोनों पैर फैलाकर मखमली बूर महेन्द्र के आगे परोस दी महेन्द्र "ओह मेरी बहना क्या बूर है तेरी" कहता हुआ नीलम की बूर पर टूट पड़ा, नीलम भी एक मादक सिसकारी लेते हुए "आह मेरे भैया चाटो न फिर अपनी बहना की बूर, बहुत प्यासी है आपके लिए", महेन्द्र के बालों को अपनी बूर चटवाते हुए सहलाने लगी।
Kia gajab update dia h aapne
Bahot shaandaar mazedaar lajawab update bhai
 

S_Kumar

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बहुत खूब बहुत खूब बहुत खूब।
जितनी भी तारीफ की जाए आपकी उतनी काम है।

क्या गजब का लिखते हैं आप।
कहानी पढ़कर तो मन करता है कि आप लिखते जाए लिखते जाए लिखते जाए।
मैं पढ़ती जाऊँ पढ़ती जाऊँ पढ़ती जाऊँ।

बहुत ही जबरदस्त कहानी है आपकी।

लिखते रहिए।
हाहाहा....सच

तुम्हारे इस wow comment को पढ़कर अब तो मेरा भी मन करने लगा है कि busy life में से कैसे भी वक्त निकल कर मैं लिखता जाऊं लिखता जाऊं लिखता जाऊं और तुम पढ़ती जाओ पढ़ती जाओ पढ़ती जाओ........

Thanks Mahi जी
 

S_Kumar

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बहुत ही गरमागरम और कामुक अपडेट है मजा आ गया धमाकेदार :adore:
अब असली चुदाई का खेल शुरु होने वाला है
अगले धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
जरूर भाई जी
 
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