Update- 79
रजनी अपनी तेज सांसों को काबू करती हुई घर में आई तो देखा काकी शहद को मटकी में पलटकर बाल्टी धो रही थी।
काकी- आ गयी खिला के शहद अपने बाबू को
रजनी- हां काकी....खिला आयी.....बाबू कह रहे थे कि बहुत ही मीठा है शहद
काकी- मीठा तो होगा ही घर का शुद्ध शहद जो है।
रजनी- काकी नीलम के यहां चलोगी?
काकी- अब आज रहने ही दे मैं भी थक गई हूं कल चलेंगे, शाम होने को आई है कुछ देर में अंधेरा होने लगेगा....चल खाना बनाने की तैयारी करते हैं।
रजनी- चलो ठीक है कल ही चलेंगे, मैं सोच रही थी कि थोड़ा शहद अपनी सहेली को दे दूंगी।
काकी- हां हां क्यों नही आखिर ये भी कोई पूछने की बात है आखिर वो तेरी बचपन की सखी है तेरा कितना ख्याल रखती है, तेरी फिक्र रहती है उसको बहुत, जरूर दे देना और देना भी चाहिये।
रजनी- हां काकी दिल की बहुत अच्छी और साफ है नीलम, चलो कल जब उसके घर चलेंगे तो ले जाउंगी शहद उसके लिए भी।
शाम होने को आई थी रजनी और काकी खाना बनाने की तैयारी करने जाने लगे तो रजनी बोली काकी खाना थोड़ी देर में बनाएंगे पहले जानवरों को शाम का चारा डाल दूँ, देखो तो गुड़िया भी उठ गई।
काकी- आखिर उठेगी ही, कब से सो रही है...जा जाके पहले उसको दूध पिला दे, फिर मुझे दे देना मैं उसको बाग में घुमा दूंगी।
रजनी ने पहले गुड़िया को दूध पिलाया और फिर काकी को दे दिया, रजनी ने जानवरों को शाम का चारा डाला और फिर उपले और कुछ लकड़ियां बाग से इकठ्ठी करके रसोई में रख आयी। बाल्टी लेकर कुएं पर पानी भरने गयी।
इधर उदयराज उठकर खेतों की तरफ काकी को ये बोलकर चला गया कि कुछ देर में आएगा, रजनी ने अपने बाबू को खेतों की तरफ जाते हुए देखा तो जोर से बोली- बाबू जल्दी आना
उदयराज- हाँ ठीक है...थोड़ी देर में आ जाऊंगा...जरा खेतों के हाल देख आऊं आज रात काफी बारिश हुई थी न
रजनी- ठीक है पर जल्दी आना
रजनी और उदयराज की ये बातें एक दिन पीछे की थी जिस रात नीलम बिरजु और उसके दामाद एक ही बिस्तर पर सोए थे, तो आज की रात बीती और अगली सुबह हुई।
उधर नीलम की आंख जल्दी खुल गयी तो वो उठकर कपड़े पहनने लगी उसने धीरे से अपने बाबू को भी उठाया, बिरजू उठकर बाहर चला गया फिर नीलम ने महेन्द्र को उठाया।
तीनो की मनःस्थिति बहुत अजीब सी हो गयी थी, महेन्द्र बिरजू से नज़रें नही मिला पा रहा था और न ही बिरजू उनके सामने आ रहा था, नीलम भी रसोई में नाश्ता तैयार करने लगी, आखिर बिरजू ही महेन्द्र के पास आया जो कि बाहर खाट पर बैठा था।
बिरजू- बेटा मुझे माफ़ कर देना, बीती रात जो कुछ हुआ वो सब बिना तुम्हारी सहमति के संभव नही था, हम सब जानते हैं कि ये बहुत गलत है पर मैं क्या करता बेटी की इच्छा पूर्ति के मोह को मैं त्याग नही पाया।
महेन्द्र ने बिरजू का हाँथ अपने हाँथ में ले लिया और बोला- बाबू जी ये आप कैसी बातें कर रहे हैं, आप खुद को दोषी क्यों मान रहे हैं, अपनो की इच्छा की पूर्ति करना तो अपनो का कर्तव्य है तभी तो मैंने भी सहमति दी थी, ये हम तीनों के बीच एक राज है और हमेशा राज ही रहेगा, मैं बहुत खुश हूं बाबू जी आप खुद को लज्जित महसूस मत कीजिये, कभी कभी फ़र्ज़ के तौर पर जीवन में वो भी करना पड़ जाता है जो गलत हो, पर इन सब चीजों पर तो हम पहले ही बात कर चुके हैं फिर आप इतना शर्मिंदा क्यों हो रहे हैं, आप शर्मिंदा होएंगे तो हम तो बच्चे हैं, इसलिए इसे सामान्य तौर पर लीजिए, अपने जो किया वो आपका फ़र्ज़ था, नीलम ने जो किया वो उसका फ़र्ज़ था और मैंने जो किया वो मेरा फ़र्ज़ था बस यही समझिए।
बिरजू- तुमने मेरे बोझ को हल्का कर दिया बेटे, ये सदा हम तीनों के बीच ही रहेगा।
महेन्द्र ने बिरजू का हाँथ हल्का सा दबाते हुए कहा-बिल्कुल बाबू जी, आप निश्चिंत रहिये
तभी नीलम नाश्ता लेकर बाहर आई और दोनों को देखकर शरमा गयी, नाश्ता रखकर जाने लगी तो महेन्द्र ने बोला- अरे तुम नाश्ता रखकर चली क्यों जा रही हो, क्या हम अकेले ही नाश्ता करेंगे तुम नही करोगी?
नीलम- आप लोग कोजिये मैं बाद में कर लूँगी।
बिरजू- नही बेटा आओ बैठो और बिना तुम्हारे हम भी नाश्ता नही करेंगे....आओ न
नीलम फिर अपने बाबू के बगल में बैठ गयी और महेन्द्र और अपने बाबू को बारी बारी से अपने हांथों से मुस्कुराते हुए खुद ही नाश्ता कराने लगी।
दोनों नीलम की सुंदरता को निहारते हुए बच्चों की तरह नाश्ता करने लगे, नीलम बार बार शरमा जा रही थी, दोनों टकटकी लगा कर जो उसे देख रहे थे, फिर बिरजू ने बड़े प्यार से नीलम को नाश्ता कराया और महेन्द्र ने भी नीलम को अपने हांथों से बड़े प्यार से खिलाया।
नीलम- आप जैसा पिता और आप जैसा पति पाकर मैं धन्य हो गयी
बिरजू और महेन्द्र ने एक साथ नीलम का हाँथ थाम लिया और बिरजू बोला- बेटी ये राज हमेशा हम तीनों के बीच ही रहेगा।
नीलम फिर शरमा गयी और सहमति में सर हाँ में हिलाया।
महेन्द्र- अच्छा बाबू जी आज मुझे जाना होगा....मैं घर पर भी बता कर नही आया था वो लोग परेशान होंगे।
बिरजू- अरे बेटा अभी कल ही तो आये हो एक दो दिन रुको तो सही।
महेन्द्र- बाबू जी रुक जाता पर घर से निकला था दूसरे काम के लिए अगर ज्यादा देर हो जाएगी तो घर पर लोग चिंतित होंगे।
नीलम- रुक जाओ न एक दो दिन
महेन्द्र- कुछ दिन बाद फिर आऊंगा....तब रुकूँगा.....अभी जाने दो
नीलम- चलो ठीक है पर दोपहर को जाना अभी नही....दोपहर का खाना बना देती हूं।
बिरजू- हां बेटा अगर नही रुकोगे तो दोपहर को चले जाना।
महेन्द्र- ठीक है
महेन्द्र दोपहर को चला गया, महेन्द्र ये बात जनता था कि नीलम एक बार में गाभिन नही हो पाएगी और जो कुछ रात को हुआ वो अब न जाने कितनी बार होगा, क्योंकि दोनों को ही बहुत मजा आया था.…..खैर उसे तो अब अपनी बहन का नशा चढ़ा हुआ था।
शाम को रजनी और काकी शहद लेकर नीलम के घर आई, नीलम रजनी को देखते ही खुशी से झूम उठी, उसकी जिंदगी में अपार खुशियां आ चुकी थी, अपनी सखी को देखकर वो और खुश हो गयी, उसे क्या पता था कि रजनी के जीवन में भी कोई कम खुशियां नही थी, ये वक्त ही अब पाप का आ चुका था।
महापाप अब जन्म ले चुका था, नियति बहुत खुश थी
नीलम और रजनी दोनों सोच रहे थे कि ऐसा केवल उन्ही की जिंदगी में हो रहा है पर हो कई जिंदगियों में रहा था।
नीलम- अरे रजनी....ओ मेरी सखी....मेरी प्यारी सहेली आ बैठ....कैसी है?.....काकी नमस्ते
काकी- नमस्ते बेटा
रजनी- मैं ठीक हूँ नीलम रानी....तू कैसी है?....मेरे लिए चूड़ियां लेकर रखी हैं न तूने....काकी बता रही थी
नीलम- हाँ रखी तो है.....मैं तो तुझे बुलाने भी गयी थी पर तू सो रही थी उस वक्त तो मैंने जगाना ठीक नही समझा और तेरे पसंद की भी चूड़ियां खरीद ली.....रुक लाती हूँ...... काकी आप बैठो....तू भी बैठ न खड़ी क्यों है?
रजनी- हां बैठ रही हूं.....मेरा ही घर है बैठ जाउंगी.....काकी बैठो
रजनी और काकी दोनों खाट पर बैठ जाती है
रजनी- बिरजू काका कहाँ गए हैं? और काकी कहाँ हैं... आयी नही क्या अभी तेरे मामा के यहां से?
नीलम- रुक अभी चूड़ी ले आऊं तब बताती हूँ।
नीलम घर में गयी और रजनी की चूड़ियां और पीने के लिए पानी और मिठाई ले आयी।
रजनी- ये लो हम कोई मेहमान हैं क्या जो इतनी खातिरदारी में जुट गई तू।
नीलम- तू....तू तो मेहमान से भी बढ़कर है मेरे लिए.....मेहमान तो आया और चला गया पर तू तो मेरी सखी है......चल ले पहले मिठाई खा और पानी पी.....काकी लो न आप भी मिठाई खाओ।
रजनी- ले तू भी खा
रजनी ने अपने हांथों से मिठाई उठा कर नीलम को खिलाया और नीलम ने रजनी को खिलाया दोनों ने पानी पिया फिर नीलम ने चूड़ियां खोलकार रजनी को दिखाया तो रजनी मारे खुशी के झूम उठी।
रजनी- काकी देखो नीलम ने कितनी सुंदर चूड़ियां मेरे लिए खरीदी हैं
काकी- मैं बोल तो रही थी कि तेरी और उसकी पसंद एक जैसी है। बहुत सुंदर हैं चूड़ियां....तेरी गोरी गोरी कलाइयों में बहुत सुंदर लगेंगी ये चूड़ियां।
रजनी को चूड़ियां बहुत पसंद आई, नीलम ने बोला- चल अभी इसे बगल में रख थोड़ी देर में तुझे पहनाऊँगी।
रजनी- अभी रहने दे अभी तो ये पहन ही रखी है चूड़ियां मैंने, इनको मैं जब यज्ञ होगा तब पहनूँगी..तब पहनाना मुझको.....अभी रख देती हूं संभाल के।
नीलम- हाँ ये भी ठीक है
रजनी- तेरी चूड़ियां कहाँ है?
नीलम- यही तो है जो मैंने पहन रखी है
रजनी- अच्छा यही है....ये भी बहुत खूबसूरत है.....तेरी पसंद लाजवाब होती है नीलम....ये बात तो है
नीलम- हां बिल्कुल....अब देखो न तुम कितनी लाजवाब हो.....आखिर हो न मेरी मनपसनद सहेली।
रजनी शरमा जाती है- हे भगवान मैं लाजवाब हूँ
नीलम- और क्या? हो ही....क्यों नही है काकी?
काकी- बिल्कुल
और तीनों हँसने लगती है
रजनी- अच्छा काका कहाँ गए हैं? और काकी
नीलम- बाबू तो अभी यहीं थे खेत की तरफ चले गए होंगे और अम्मा तो मामा के यहां गयी हैं बोल रही थी की अगले दिन ही आ जाउंगी पर आयी नही शायद कल आएं।
रजनी- अब इतने दिनों बाद गयी हैं तो रोक लिया होगा तेरे मामा मामी ने।
नीलम- हाँ क्यों नही....रोक तो लिया ही होगा।
रजनी- अच्छा देख तेरे लिए मैं और काकी क्या लाये हैं?
नीलम- क्या लायी है दिखा।
रजनी ने थैले में से छोटी शहद की मटकी निकली और बोली- ये ले शहद.....शुद्ध घर का शहद कल ही निकाला है छत्ते से।
नीलम- अरे वाह! मस्त है ये तो....कहाँ मिला इतना शहद?
रजनी- काकी के घर पे पेड़ पर जो पुराना छत्ता था न काकी ने कल उसका स्वाहा करवा दिया, उसी में से लगभग एक बाल्टी शहद निकला।
नीलम- वो जो बबूल के पेड़ पर था
रजनी- हां वही
नीलम- अच्छा किया.....मुझे तो बहुत पसंद है शहद
रजनी- तो रख ले इसको.....खुद भी खा और काका काकी को भी खिलाना।
नीलम- बता क्या बनाऊं तेरे लिए.....क्या खाएगी?
रजनी- कुछ नही....मैं यहां तेरे से मिलने आयी हूँ कि फरमाइश करने.....कुछ खाना वाना नही है मुझे....बैठ यहीं बातें करते हैं।
नीलम- बिना कुछ खिलाये पिलाये तो जाने नही दूंगी मैं....ये तो तू जानती है.....क्यों काकी?
रजनी- अच्छा अभी बैठ बाद में बना लेना.....काकी तुम लेट जाओ खाट पे।
काकी- हाँ बिटिया तुम दोनों बातें करो मैं तो लेट जाती हूँ, नींद भी आ रही है मुझे तो।
नीलम- तो काकी सो जाओ आप....रुको बिस्तर लगा देती हूं खाट पे।
काकी- अरे नही ऐसे ही ठीक है...बस एक तकिया दे दे मुझे।
नीलम ने बगल में दूरी खाट पर पड़ी तकिया उठा कर काकी को दी।
नीलम और रजनी काफी देर इधर उधर की बातें करते रहे फिर नीलम ने खाने के लिए जल्दी से महुए का हलुआ बनाया और तीनों ने खाया, शाम हो चली थी, बिरजू अभी आया नही था।
रजनी को पेशाब लगी