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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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Incestlala

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काफी देर तक उदयराज रजनी की मुलायम गाँड़ में जड़ तक लंड पेले झड़ता रहा, अपने सगे बाबू का गर्म गर्म लावा रजनी अपनी गाँड़ की गहराई में गिरता हुआ साफ महसूस कर रही थी, मस्ती में वो मुस्कुराने लगी और उदयराज उसके गालों को चूमने लगा।

अब आगे.......

Update- 77

उदयराज रजनी पर हाँफते हुए उसकी गाँड़ में जड़ तक लंड घुसेड़े कुछ देर ढेर होकर पड़ा रहा, फिर रजनी बोली- बाबू

उदयराज- हम्म

रजनी- उठिए न.....मैं तो अभी प्यासी ही हूँ..... प्यास बुझाइए मेरी भी.....डालिये अब मेरी बूर में।

उदयराज- बेटी मैं जरा अपने लन्ड को धो लूं।

रजनी- कहाँ धोएंगे बाबू?

उदयराज- खेत की नाली में जो पानी बह रहा है उसी में।

रजनी- अच्छा जल्दी धो के आइए, बर्दाश्त नही हो रहा मुझसे।

उदयराज ने अपनी बेटी रजनी की गाँड़ में से लंड खींचकर बाहर निकाला और खाट से उतरकर बगल में कच्ची मिट्टी की नाली में बह रहे साफ पानी में अपना काला मोटा लन्ड धोने के लिए बैठा, रजनी खाट पर लेटे लेटे पहले तो देखती रही फिर झट से बोली- बाबू रुको मैं धोऊंगी उसे।

उदयराज रुक गया, रजनी खाट से उतरकर अपने बाबू के पास बैठ गयी और नाली में बह रहा ठंडा ठंडा पानी अपनी अंजुली में लेकर अपने बाबू के लंड का सुपाड़ा खोल के अच्छे से धोने लगी, ठंडा ठंडा पानी लंड पर पड़ते ही उदयराज झनझना गया और बोला-बेटी कितना ठंडा पानी है कहीं तुम्हारे लाडले को ठंड न लग जाये।

रजनी- अभी इसे नहाने दो फिर बूर में लेकर इसको बूर की गर्मी से सिकाई कर दूंगी अपने लाडले की, नहाने के बाद बूर रूपी रजाई में घुस के बैठेगा तो अपने आप ठंड भाग जाएगी, ठंड कैसे लगेगी मेरे होते हुए, चलो उठो अब बहुत नहा लिया इसने।

उदयराज और रजनी एक दूसरे को देखकर मुस्कुराने लगे और उठ खड़े हुए, उदयराज ने रजनी को बाहों में उठा लिया तो रजनी हल्के से चिहुँक गयी- आह बाबू धीरे से.....आराम से....कहीं फिसलकर नाली में न गिर जाएं दोनों।

उदयराज ने रजनी को खाट पे लिटाया तो रजनी ने झट से अपनी साड़ी को कमर तक खींचकर अपने निचले मखमली बदन को निवस्त्र कर लिया, कच्छी उसने पहले ही उतार दी थी, उदयराज ने भी झट से अपना लंड थामा और रजनी पर चढ़ने लगा, दोनों ने सर उठाकर एक बार चारों तरफ निगरानी की फिर निश्चिन्त होकर एक दूसरे को मुस्कुरा कर देखा और होंठों से होंठ मिला कर एक जोरदार चुम्बन लिया, रजनी ने बगल से हाँथ नीचे ले जाकर अपनी कामवेग में तपती बूर की फांकों को और अच्छे से खोलकर बोला- बाबू डालो न अब जल्दी।

दोनों की आंखों में वासना के लाल डोरे तैरने लगे, उदयराज के मुँह से निकला- आह...मेरी बेटी।

और फिर जैसे ही उदयराज ने अपने लंड का मोटा सा ठंडा ठंडा सुपाड़ा अपनी बेटी की बूर के गरम छेद पर रखा रजनी की मस्ती में आँखें बंद हो गयी- आआआआआहहहहहह ...बाबू......कितना चिकना है ये आपका लंड......... कितना ठंडा ठंडा हो गया है नहा कर।

उदयराज ने लंड के सुपाड़े को बूर के रस बहा रहे छेद पर रखा और फिर हल्का सा हटा लिया बूर का चिपचिपा रस लन्ड के सुपाड़े पर लग गया, उदयराज ने फिर लन्ड को बूर के रसीले छेद से छुआया और फिर पीछे हटा लिया, रजनी मस्ती में आंखें बंद किये सिसक सिसक कर लंड की इस मस्ती भरे खेल में डूब रही थी, हाँथ की दो उंगलियों से उसने अपनी बूर फाड़ रखी थी।

उदयराज के बार बार लंड को बूर की छेद पर छुवाना और फिर हल्का सा हटा लेना, कभी थोड़ी देर दोनों फांकों के बीच सुपाड़ा रगड़ना और फिर पीछे हटा लेना रजनी को बहुत उत्तेजित कर रहा था उससे अब बिल्कुल रहा नही जा रहा था, उसने खुद ही दूसरे हाँथ को अपने बाबू की गाँड़ पर रखा और अपनी गाँड़ उचका कर हल्का सा लन्ड का सुपाड़ा बूर में गच्च से ले लिया और फिर उदयराज ने मुस्कुराते हुए गच्च से आधा लन्ड बूर में पेल दिया

रजनी- ऊऊऊऊऊईईईईईईईईई...... दैय्या.... धीरे बाबू...... आराम से.......शुरू में आराम से डालो न.....दर्द होता है........बाद में जी भरके तेज तेज चोद कर फाड़ लेना मेरी बूर.......अपनी सगी बेटी की बूर को।

उदयराज- हाय मेरी बिटिया.....क्या बूर है तेरी....चाहता तो मैं भी नही हूँ तुझे दर्द देना पर रसमलाई जैसी बूर में गच्च से ही डालने का मन करता है.....तेरी बूर कितनी नरम है.....आह मजा आ गया।

रजनी- अच्छा बाबा ठीक है....डाल लिया करो गच्च से बाबू......इस दर्द में भी कितनी मिठास है....उई... अम्मा

उदयराज ने एक बार में ही पूरा लंड रजनी की बूर में उतार दिया और उसे ताबड़तोड़ चूमने लगा, रजनी भी उसका साथ देने लगी, दोनों एक दूसरे को कस कस के चूमने लगे, रजनी ने मदहोशी में एक बार सर घुमा के चारों तरफ देखा फिर निश्चिन्त होकर अपने बाबू से लिपट गयी और बोली- अब चोदो बाबू जल्दी जल्दी अपनी बिटिया को।

उदयराज रजनी के चूतड़ के नीचे दोनों हाँथ लगा कर उसकी चूतड़ को हल्का सा ऊपर उठा कर गच्च गच्च बूर चोदने लगा, रजनी अपार मस्ती में डूबने लगी उसके मुँह से गरम गरम साँसे तेज तेज सिसकारी के साथ निकलने लगी जिसको नियंत्रण करने की वो नाकाम कोशिश भी किये जा रही थी, उसके बाबू का मोटा लन्ड उसकी बूर में किसी पिस्टन की तरह अंदर बाहर होने लगा, बूर की गहराइयों में लन्ड का मोटा सुपाड़ा तेज तेज ठोकर मारने लगा, रजनी ने अपने दोनों पैर अपने बाबू की कमर पर लपेट दिए और चुदाई की मस्ती के अथाह सागर में डूबती चली गयी।

उदयराज हुमच हुमच कर अपनी सगी बेटी को चोदने लगा, दिन में खुले में चुदाई का मजा ही अलग था, एक तो किसी के देख लेने का डर ऊपर से चुदाई की मस्ती, दोनों का मिला जुला रोमांच अलग ही अहसास करा रहा था।

उदयराज का 9 इंच का लंबा मोटा लन्ड पूरा पूरा रजनी की बूर में डूब जा रहा था खुद रजनी को भी इस बात पर अचरज होता था कि कैसे उसकी कमसिन छोटी सी बूर इतना बड़ा लंड लील लेती है, ये सोचकर वो और मस्ती में भर जा रही थी कि उसकी बूर अब उसके सगे पिता के लंड कितनी आसानी से खा लेती है।

उदयराज- मजा आ रहा है न बेटी

रजनी मदहोशी में- बहुत बाबू....बहुत ज्यादा......चोदो मुझे और तेज तेज......आआआआआआआहहहहहह

उदयराज लगातार तेज तेज धक्के लगाने लगा, तेज धक्कों की वजह से खटिया हल्का हल्का चर्रर्रर्रर चर्रर्रर्रर करने लगी, दोनों बाप बेटी की न चाहते हुए भी थोड़ी तेज तेज सिसकारियां गूंजने लगी।

करीब 15 मिनट की रसभरी तेज चुदाई के बाद रजनी अपने बाबू से तेजी से लिपट कर झड़ने लगी- ऊई....बाबू..... मैं गयी......आआआआआआआहहहहह.........हाहाहाहाययय ...….अम्मा......कितना मजा देता है आपका लंड बाबू.......मैं झड़ रही हूं बाबू........मेरे पिता जी......मेरे सैयां...... मेरे बलमा......ऐसे ही मुझे चोदा करो मेरे राजा........कितना मजा है चुदाई में.......हाय मेरी बूर......मजा आ गया

रजनी कुछ पल के लिए मदहोश होकर मस्ती में झड़ते हुए धीरे धीरे बड़बड़ाती रही, उदयराज लगातार उसे चोदे जा रहा था, अपनी सगी बेटी के मुँह से ऐसी कामुक बातें सुन वो भी ज्यादा देर टिक नही पाया और रजनी की बूर में एक तेज धक्का मारते हुए उसकी नरम नरम बूर में झड़ने लगा, रजनी का झड़ना अभी बंद नही हुआ था और उदयराज भी झड़ने लगा, अपने बाबू को झड़ता महसूस कर रजनी और मस्ती में भर गई, दोनों एक दूसरे को चूमने लगे।

उदयराज ने रजनी के गाल पे जोर से चुम्मा लिया तो रजनी शरमा गयी, फिर रजनी ने भी कई बार अपने बाबू के दोनों गाल चूमे और बोला- अब उठो मेरे राजा जी, कहीं काकी न आ जाय।

उदयराज- रुको न बेटी थोड़ी देर और लंड को तेरी बूर में डूबे रहने दे, अभी उसकी ठंड गयी नही है

रजनी- अच्छा जी......लगता है आज ये रजाई में ही रहेगा बाहर नही निकलेगा......अभी निकालो इसको रात को फिर घुसा लेना बाबू.....रात को फिर दूंगी।

उदयराज- फिर दोगी।

रजनी मस्ती में- हाँ... दूंगी।

उदयराज- क्या दोगी?

रजनी- बूर....अपनी बूर दूंगी अपने बाबू को......चोदने के लिए.......अब खुश।

उदयराज- हाय..... कितनी प्यारी है मेरी बिटिया, मेरी जान है मेरी बेटी।

ऐसा कहकर उदयराज ने रजनी को कई बार चूमा, रजनी गदगद हो गयी, फिर उदयराज ने रजनी की बूर में डूबा हुआ अपना काला लंड बाहर खींच लिया, दोनों ने नीचे झुक कर देखा, काला लन्ड सफेद वीर्य और बूर रस से पूरी तरह सना हुआ था, दोनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुराने लगे, रजनी से साये से लन्ड को अच्छे से पोछा और उदयराज खाट से उठ गया, रजनी उठी और अपनी कच्छी पहन कर साड़ी ठीक की, उदयराज ने भी अपनी धोती ठीक से पहनी और रजनी अपने बाबू के होंठों को एक बार फिर अच्छे से चूमकर अपनी बेटी के पास ये देखने चली गयी कि कहीं वो जाग तो नही गयी। उदयराज खाट पर लेट गया।
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Incestlala

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Update- 78

रजनी ने देखा की उसकी बेटी अभी भी सो ही रही थी, वो भी उसके बगल में लेट गयी, अभी उसको लेटे कुछ देर ही हुआ था कि काकी हाथ में शहद से भरी बाल्टी लेकर आती नज़र आई।

काकी- रजनी...देख कितना शहद निकला है...आधी से ज्यादा बाल्टी भर गई है।

रजनी खाट से उठ बैठी- हां काकी ये तो काफी शहद है, छत्ता भी तो काफी पुराना था, है न काकी

काकी- हाँ तभी तो

रजनी- ले चखेगी....जा उदय को भी दे दे खाने को शुद्ध शहद।

रजनी- रुको कटोरी लाती हूँ

रजनी झट से घर में गयी और एक कटोरी ले आयी, काकी ने बाल्टी टेढ़ी कर थोड़ा शहद कटोरी में डाला।

रजनी- काकी तुम ये शहद रसोई में एक नई मटकी रखी है उसमें डाल दो मैं ये कटोरी वाला शहद बाबू को खिला कर आती हूँ।

काकी- ठीक है....पर उदय है कहाँ?

रजनी- अरे वो दालान के बगल में खाट डाल के लेटे हैं वहां धूप अच्छी आ रही है।

काकी- ठीक है तू दे आ उसको शहद, मैं बाकी का शहद मटकी में जाकर रख देती हूं।

(काकी घर में गयी और रजनी अपने बाबू के पास कटोरी में शहद लेकर गयी)

रजनी- बाबू....ओ बाबू....सो गए क्या?

उदयराज- नही तो....क्या बात है मेरी रानी....मेरी जान

रजनी- धीरे बोलो काकी आ गयी हैं... सुन लेंगी....लो ये शहद चखो...ताजा ताजा.....अभी अभी काकी लेकर आई हैं.... देखो कितना मीठा है।

उदयराज- अच्छा देखूं तो जरा....

उदयराज ने उंगली से शहद उठाया और थोड़ा सा चाट कर बोला- मिठास कम है इसमें....तुमने चखा?

रजनी अपने बाबू के बगल में खाट पर बैठते हुए बोली- हाँ बाबू मैंने चखा...मुझे तो बहुत मीठा लगा।

उदयराज- पर मुझे तो फीका लग रहा है

(रजनी अपने बाबू की मंशा समझ गयी)

रजनी- फीका लग रहा है?

उदयराज- हम्म

रजनी ने अपनी एक उंगली शहद में डुबोई और अपने बाबू के मुँह में डाल दी

रजनी- अब......अब कैसा लगा?

उदयराज- हाँ... अब मीठा तो लगा पर वो बात नही आई जो एक अच्छे शहद में होनी चाहिए।

रजनी- अच्छा जी.....तो जीभ बाहर निकालो

उदयराज ने अपनी जीभ बाहर निकाली

रजनी ने एक बार पलट कर चारों तरफ देखा फिर अपनी जीभ निकाल कर जीभ से शहद को उठाया और अपने बाबू की जीभ पर चारों तरफ लगाने लगी तो मस्ती में उदयराज ने रजनी के चेहरे को पकड़कर उसकी शहद में डूबी जीभ को मुँह में भरकर चूसने लगा, थोड़ी देर बड़ी तन्मयता से चूसने के बाद छोड़ा, रजनी का चेहरा गुलाबी हो गया।

रजनी हल्का सिसकते हुए- अब मजा आया बाबू।

उदयराज- बहुत....अब जाके शहद की मिठास का मजा आया...पर

रजनी- पर क्या......मेरे सैयां जी

उदयराज ने कुछ बोला नही और अपनी एक उंगली रजनी के ब्लॉउज के ऊपर उभरे हुए निप्पल पर रख दी

रजनी- यहां पे लगा के चखाऊँ?.....दुद्दू पे

उदयराज- हाँ... चखा दो न.....शहद की मटकी तो ये है न।

रजनी- मेरे पगलू बाबू.....काकी आ गयी हैं

उदयराज- वो तो घर में हैं न....जल्दी से चखा दो।

मन तो रजनी का भी था इसलिए रजनी उठ कर खड़ी हो गयी और अपने बाबू के सामने आ गयी

रजनी- लो पकड़ो कटोरी फिर

उदयराज ने कटोरी थाम ली, रजनी ने झुककर झट से अपनी सीधी चूची को ब्लॉउज ऊपर करके निकाला और निप्पल को शहद में डूबा कर अपने बाबू के होंठों के पास करके बोली- लो पियो जल्दी से बाबू।

एक बार पुनः अपनी सगी बेटी की गोरी गोरी मोटी सी चूची देखकर उदयराज को जोश चढ़ने लगा, मोटा सा गुलाबी निप्पल शहद में डूबा हुआ था, शहद निप्पल के अलावा आधी चूची पर लगा हुआ गज़ब ही उत्तेजित कर रहा था, उदयराज ने लप्प से मोटी सी चूची का रसीला शहद लगा निप्पल मुँह में भरकर चूस लिया, रजनी की सिसकी निकल गयी, उसने एक बार पीछे पलट कर देखा और दुबारा चूची को पकड़कर कटोरी में डुबोया और अपने बाबू के मुँह में सिसकते हुए भर दिया, उदयराज आंखें बंद किये हुए बच्चों की तरह चाट चाट कर चूची पीने लगा, दबाने पर चूची से निकलता दूध और मीठा मीठा शहद का स्वाद उदयराज को उत्तेजित करने लगा, ऊपर से चूची पिलाने की अपनी बेटी की अदा ने उसके लंड को लोहे की तरह टनटना दिया, उदयराज चूची दबा दबा के अपनी बेटी का दूध शहद के साथ पीने लगा, नीलम मस्ती में फिर सिसकने लगी, अपने बाबू के सर को पकड़कर जोर जोर से सहलाते हुए अपनी चूची पर दबाने लगी, कुछ देर ऐसे ही चलता रहा फिर नीलम ने वक्त की नजाकत को समझते हुए अपने बाबू के सिर के बालों को सहलाकर उनको चेताया कि बाबू अब रहने दो, कोई देख लेगा, उदयराज ने बड़ी मुश्किल से चूची को छोड़ा और रजनी ने मुस्कुराते हुए अपने बाबू के थूक से सनी चूची को ब्लॉउज के अंदर किया और जाने लगी थोड़ी दूर जाकर पलटकर बोली "अब कैसा लगा शहद मेरे बाबू को"

उदयराज- बहुत मजा आया....पर शहद और मीठा हो सकता है, बस थोड़ी सी कसर रह गयी है।

रजनी- कैसे मैं समझी नही बाबू?

उदयराज ने अपनी उंगली से रजनी की बूर की तरफ इशारा किया, रजनी का चेहरा हल्का गुलाबी हो गया

रजनी- वहां पे

उदयराज- हां एक बार बस

रजनी- बाबू काकी आ चुकी हैं..... कभी भी आ सकती है.....वहां पर रात को लगा के चख लेना।

उदयराज- बस एक बार जल्दी से.....आओ न

रजनी से भी इस आग्रह पर रहा नही गया, उसने एक बार फिर पीछे मुड़कर देखा और झट से अपने बाबू के पास आकर खड़ी हो गयी, एक पैर उसने खाट की पाटी पर रखा, साड़ी को आगे से उठाया, गोरी गोरी जाँघों के बीच फंसी छोटी सी कच्ची को जल्दी से एक हाँथ से किनारे किया, उदयराज अभी कुछ देर पहले ही अपनी सगी बेटी की बूर को कस कस के चोद चुका था पर फिर भी अपनी बेटी की रसीली गीली बूर को देखकर मचल गया, बूर से अभी भी कुछ देर पहले हुई जबरदस्त चुदाई से निकले काम रस की मनमोहक गंध आ रही थी।
उदयराज बूर देखकर दुबारा मस्त हो गया।

रजनी ने जल्दी से एक उँगली से शहद उठाया और जिस हाँथ से कच्छी को खींच रखा था उसी हाँथ की दो उंगली से बूर की फांक को हल्का सा फाड़ कर शहद को फांकों के बीच और भग्नासे पर लगाया, उदयराज ने झट से जीभ निकाल कर बूर को चाट लिया, दो उंगली से रजनी ने बूर फाड़ रखी थी, अत्यधिक रोमांच और गुदगुदी में रजनी फिर सीत्कार उठी और उसके पैर तक थरथरा गए, एक पल उसे लगा की वो एक पैर पर खड़ी ही नही हो पाएगी पर जैसे तैसे वो अपने को संभाल रही थी, एक हाँथ से उसने अपने बाबू के सर को पकड़ा और दूसरे हाँथ की उंगली को दुबारा शहद में डुबोया और फिर से बूर की फांकों पर और पूरी बूर पर लगा कर बोली- बाबू जल्दी जल्दी और चाटो....मजा आ रहा है। उदयराज ने अपने एक हाँथ में कटोरी थाम रखी थी और दूसरे हाँथ से अपनी बेटी की कच्छी को साइड खींचे हुए था

उदयराज जी भरकर कुछ देर अपनी सगी बिटिया की बूर चाटने लगा, जोश के मारे रजनी की जांघें, नितंब, पैर सब थरथरा जा रहे थे, कटोरी का सारा शहद रजनी ने "ना ना, अब बस बाबू, अब बस करो काकी देख लेंगी" कहते और सिसकते हुए बूर पर बार बार लगा लगा के चटवा चटवा के खत्म कर दिया, बूर फूल कर लाल हो गयी, बड़ी मुश्किल से फिर रजनी ने अपनी बूर को अपने बाबू के मुँह से हटाया और कच्छी ठीक करके साड़ी सही की। दोनों ही मदहोश हो चुके थे, उदयराज बोला- अब जाके शहद का असली मजा आया, ऐसे चखते हैं शहद।

रजनी- धत्त गन्दू.....बहुत बदमाश हो गए हो बाबू आप।

उदयराज- मजा नही आया क्या मेरी बिटिया को।

रजनी- मजा नही आता तो भला चटवाती, देखो सारा शहद खत्म हो गया।

उदयराज- तो जाकर और ले आओ।

रजनी- अब बस.....अब रात को......मैं भी तो चखूंगी रात को असली शहद

उदयराज- क्यों नही......मैं तो तड़प ही रहा हूँ उस पल के लिए....एक बात बोलूं?

रजनी- ह्म्म्म

उदयराज- तेरी बूर बहुत रसीली और सुंदर है बेटी...मदहोश कर देती है


रजनी का चेहरा फिर गुलाबी हो गया- सब आपकी वजह से है......गन्दू जी......मेरे गन्दू.....शुग्गू बाबू

इतना कहकर रजनी भागकर घर में आ गयी।
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Incestlala

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Update- 79

रजनी अपनी तेज सांसों को काबू करती हुई घर में आई तो देखा काकी शहद को मटकी में पलटकर बाल्टी धो रही थी।

काकी- आ गयी खिला के शहद अपने बाबू को

रजनी- हां काकी....खिला आयी.....बाबू कह रहे थे कि बहुत ही मीठा है शहद

काकी- मीठा तो होगा ही घर का शुद्ध शहद जो है।

रजनी- काकी नीलम के यहां चलोगी?

काकी- अब आज रहने ही दे मैं भी थक गई हूं कल चलेंगे, शाम होने को आई है कुछ देर में अंधेरा होने लगेगा....चल खाना बनाने की तैयारी करते हैं।

रजनी- चलो ठीक है कल ही चलेंगे, मैं सोच रही थी कि थोड़ा शहद अपनी सहेली को दे दूंगी।

काकी- हां हां क्यों नही आखिर ये भी कोई पूछने की बात है आखिर वो तेरी बचपन की सखी है तेरा कितना ख्याल रखती है, तेरी फिक्र रहती है उसको बहुत, जरूर दे देना और देना भी चाहिये।

रजनी- हां काकी दिल की बहुत अच्छी और साफ है नीलम, चलो कल जब उसके घर चलेंगे तो ले जाउंगी शहद उसके लिए भी।

शाम होने को आई थी रजनी और काकी खाना बनाने की तैयारी करने जाने लगे तो रजनी बोली काकी खाना थोड़ी देर में बनाएंगे पहले जानवरों को शाम का चारा डाल दूँ, देखो तो गुड़िया भी उठ गई।

काकी- आखिर उठेगी ही, कब से सो रही है...जा जाके पहले उसको दूध पिला दे, फिर मुझे दे देना मैं उसको बाग में घुमा दूंगी।

रजनी ने पहले गुड़िया को दूध पिलाया और फिर काकी को दे दिया, रजनी ने जानवरों को शाम का चारा डाला और फिर उपले और कुछ लकड़ियां बाग से इकठ्ठी करके रसोई में रख आयी। बाल्टी लेकर कुएं पर पानी भरने गयी।

इधर उदयराज उठकर खेतों की तरफ काकी को ये बोलकर चला गया कि कुछ देर में आएगा, रजनी ने अपने बाबू को खेतों की तरफ जाते हुए देखा तो जोर से बोली- बाबू जल्दी आना

उदयराज- हाँ ठीक है...थोड़ी देर में आ जाऊंगा...जरा खेतों के हाल देख आऊं आज रात काफी बारिश हुई थी न

रजनी- ठीक है पर जल्दी आना

रजनी और उदयराज की ये बातें एक दिन पीछे की थी जिस रात नीलम बिरजु और उसके दामाद एक ही बिस्तर पर सोए थे, तो आज की रात बीती और अगली सुबह हुई।

उधर नीलम की आंख जल्दी खुल गयी तो वो उठकर कपड़े पहनने लगी उसने धीरे से अपने बाबू को भी उठाया, बिरजू उठकर बाहर चला गया फिर नीलम ने महेन्द्र को उठाया।

तीनो की मनःस्थिति बहुत अजीब सी हो गयी थी, महेन्द्र बिरजू से नज़रें नही मिला पा रहा था और न ही बिरजू उनके सामने आ रहा था, नीलम भी रसोई में नाश्ता तैयार करने लगी, आखिर बिरजू ही महेन्द्र के पास आया जो कि बाहर खाट पर बैठा था।

बिरजू- बेटा मुझे माफ़ कर देना, बीती रात जो कुछ हुआ वो सब बिना तुम्हारी सहमति के संभव नही था, हम सब जानते हैं कि ये बहुत गलत है पर मैं क्या करता बेटी की इच्छा पूर्ति के मोह को मैं त्याग नही पाया।

महेन्द्र ने बिरजू का हाँथ अपने हाँथ में ले लिया और बोला- बाबू जी ये आप कैसी बातें कर रहे हैं, आप खुद को दोषी क्यों मान रहे हैं, अपनो की इच्छा की पूर्ति करना तो अपनो का कर्तव्य है तभी तो मैंने भी सहमति दी थी, ये हम तीनों के बीच एक राज है और हमेशा राज ही रहेगा, मैं बहुत खुश हूं बाबू जी आप खुद को लज्जित महसूस मत कीजिये, कभी कभी फ़र्ज़ के तौर पर जीवन में वो भी करना पड़ जाता है जो गलत हो, पर इन सब चीजों पर तो हम पहले ही बात कर चुके हैं फिर आप इतना शर्मिंदा क्यों हो रहे हैं, आप शर्मिंदा होएंगे तो हम तो बच्चे हैं, इसलिए इसे सामान्य तौर पर लीजिए, अपने जो किया वो आपका फ़र्ज़ था, नीलम ने जो किया वो उसका फ़र्ज़ था और मैंने जो किया वो मेरा फ़र्ज़ था बस यही समझिए।

बिरजू- तुमने मेरे बोझ को हल्का कर दिया बेटे, ये सदा हम तीनों के बीच ही रहेगा।

महेन्द्र ने बिरजू का हाँथ हल्का सा दबाते हुए कहा-बिल्कुल बाबू जी, आप निश्चिंत रहिये

तभी नीलम नाश्ता लेकर बाहर आई और दोनों को देखकर शरमा गयी, नाश्ता रखकर जाने लगी तो महेन्द्र ने बोला- अरे तुम नाश्ता रखकर चली क्यों जा रही हो, क्या हम अकेले ही नाश्ता करेंगे तुम नही करोगी?

नीलम- आप लोग कोजिये मैं बाद में कर लूँगी।

बिरजू- नही बेटा आओ बैठो और बिना तुम्हारे हम भी नाश्ता नही करेंगे....आओ न

नीलम फिर अपने बाबू के बगल में बैठ गयी और महेन्द्र और अपने बाबू को बारी बारी से अपने हांथों से मुस्कुराते हुए खुद ही नाश्ता कराने लगी।

दोनों नीलम की सुंदरता को निहारते हुए बच्चों की तरह नाश्ता करने लगे, नीलम बार बार शरमा जा रही थी, दोनों टकटकी लगा कर जो उसे देख रहे थे, फिर बिरजू ने बड़े प्यार से नीलम को नाश्ता कराया और महेन्द्र ने भी नीलम को अपने हांथों से बड़े प्यार से खिलाया।

नीलम- आप जैसा पिता और आप जैसा पति पाकर मैं धन्य हो गयी

बिरजू और महेन्द्र ने एक साथ नीलम का हाँथ थाम लिया और बिरजू बोला- बेटी ये राज हमेशा हम तीनों के बीच ही रहेगा।

नीलम फिर शरमा गयी और सहमति में सर हाँ में हिलाया।

महेन्द्र- अच्छा बाबू जी आज मुझे जाना होगा....मैं घर पर भी बता कर नही आया था वो लोग परेशान होंगे।

बिरजू- अरे बेटा अभी कल ही तो आये हो एक दो दिन रुको तो सही।

महेन्द्र- बाबू जी रुक जाता पर घर से निकला था दूसरे काम के लिए अगर ज्यादा देर हो जाएगी तो घर पर लोग चिंतित होंगे।

नीलम- रुक जाओ न एक दो दिन

महेन्द्र- कुछ दिन बाद फिर आऊंगा....तब रुकूँगा.....अभी जाने दो

नीलम- चलो ठीक है पर दोपहर को जाना अभी नही....दोपहर का खाना बना देती हूं।

बिरजू- हां बेटा अगर नही रुकोगे तो दोपहर को चले जाना।

महेन्द्र- ठीक है

महेन्द्र दोपहर को चला गया, महेन्द्र ये बात जनता था कि नीलम एक बार में गाभिन नही हो पाएगी और जो कुछ रात को हुआ वो अब न जाने कितनी बार होगा, क्योंकि दोनों को ही बहुत मजा आया था.…..खैर उसे तो अब अपनी बहन का नशा चढ़ा हुआ था।

शाम को रजनी और काकी शहद लेकर नीलम के घर आई, नीलम रजनी को देखते ही खुशी से झूम उठी, उसकी जिंदगी में अपार खुशियां आ चुकी थी, अपनी सखी को देखकर वो और खुश हो गयी, उसे क्या पता था कि रजनी के जीवन में भी कोई कम खुशियां नही थी, ये वक्त ही अब पाप का आ चुका था।

महापाप अब जन्म ले चुका था, नियति बहुत खुश थी

नीलम और रजनी दोनों सोच रहे थे कि ऐसा केवल उन्ही की जिंदगी में हो रहा है पर हो कई जिंदगियों में रहा था।

नीलम- अरे रजनी....ओ मेरी सखी....मेरी प्यारी सहेली आ बैठ....कैसी है?.....काकी नमस्ते

काकी- नमस्ते बेटा

रजनी- मैं ठीक हूँ नीलम रानी....तू कैसी है?....मेरे लिए चूड़ियां लेकर रखी हैं न तूने....काकी बता रही थी

नीलम- हाँ रखी तो है.....मैं तो तुझे बुलाने भी गयी थी पर तू सो रही थी उस वक्त तो मैंने जगाना ठीक नही समझा और तेरे पसंद की भी चूड़ियां खरीद ली.....रुक लाती हूँ...... काकी आप बैठो....तू भी बैठ न खड़ी क्यों है?

रजनी- हां बैठ रही हूं.....मेरा ही घर है बैठ जाउंगी.....काकी बैठो

रजनी और काकी दोनों खाट पर बैठ जाती है

रजनी- बिरजू काका कहाँ गए हैं? और काकी कहाँ हैं... आयी नही क्या अभी तेरे मामा के यहां से?

नीलम- रुक अभी चूड़ी ले आऊं तब बताती हूँ।

नीलम घर में गयी और रजनी की चूड़ियां और पीने के लिए पानी और मिठाई ले आयी।

रजनी- ये लो हम कोई मेहमान हैं क्या जो इतनी खातिरदारी में जुट गई तू।

नीलम- तू....तू तो मेहमान से भी बढ़कर है मेरे लिए.....मेहमान तो आया और चला गया पर तू तो मेरी सखी है......चल ले पहले मिठाई खा और पानी पी.....काकी लो न आप भी मिठाई खाओ।

रजनी- ले तू भी खा

रजनी ने अपने हांथों से मिठाई उठा कर नीलम को खिलाया और नीलम ने रजनी को खिलाया दोनों ने पानी पिया फिर नीलम ने चूड़ियां खोलकार रजनी को दिखाया तो रजनी मारे खुशी के झूम उठी।

रजनी- काकी देखो नीलम ने कितनी सुंदर चूड़ियां मेरे लिए खरीदी हैं

काकी- मैं बोल तो रही थी कि तेरी और उसकी पसंद एक जैसी है। बहुत सुंदर हैं चूड़ियां....तेरी गोरी गोरी कलाइयों में बहुत सुंदर लगेंगी ये चूड़ियां।

रजनी को चूड़ियां बहुत पसंद आई, नीलम ने बोला- चल अभी इसे बगल में रख थोड़ी देर में तुझे पहनाऊँगी।

रजनी- अभी रहने दे अभी तो ये पहन ही रखी है चूड़ियां मैंने, इनको मैं जब यज्ञ होगा तब पहनूँगी..तब पहनाना मुझको.....अभी रख देती हूं संभाल के।

नीलम- हाँ ये भी ठीक है

रजनी- तेरी चूड़ियां कहाँ है?

नीलम- यही तो है जो मैंने पहन रखी है

रजनी- अच्छा यही है....ये भी बहुत खूबसूरत है.....तेरी पसंद लाजवाब होती है नीलम....ये बात तो है

नीलम- हां बिल्कुल....अब देखो न तुम कितनी लाजवाब हो.....आखिर हो न मेरी मनपसनद सहेली।

रजनी शरमा जाती है- हे भगवान मैं लाजवाब हूँ

नीलम- और क्या? हो ही....क्यों नही है काकी?

काकी- बिल्कुल

और तीनों हँसने लगती है

रजनी- अच्छा काका कहाँ गए हैं? और काकी

नीलम- बाबू तो अभी यहीं थे खेत की तरफ चले गए होंगे और अम्मा तो मामा के यहां गयी हैं बोल रही थी की अगले दिन ही आ जाउंगी पर आयी नही शायद कल आएं।

रजनी- अब इतने दिनों बाद गयी हैं तो रोक लिया होगा तेरे मामा मामी ने।

नीलम- हाँ क्यों नही....रोक तो लिया ही होगा।

रजनी- अच्छा देख तेरे लिए मैं और काकी क्या लाये हैं?

नीलम- क्या लायी है दिखा।

रजनी ने थैले में से छोटी शहद की मटकी निकली और बोली- ये ले शहद.....शुद्ध घर का शहद कल ही निकाला है छत्ते से।

नीलम- अरे वाह! मस्त है ये तो....कहाँ मिला इतना शहद?

रजनी- काकी के घर पे पेड़ पर जो पुराना छत्ता था न काकी ने कल उसका स्वाहा करवा दिया, उसी में से लगभग एक बाल्टी शहद निकला।

नीलम- वो जो बबूल के पेड़ पर था

रजनी- हां वही

नीलम- अच्छा किया.....मुझे तो बहुत पसंद है शहद

रजनी- तो रख ले इसको.....खुद भी खा और काका काकी को भी खिलाना।

नीलम- बता क्या बनाऊं तेरे लिए.....क्या खाएगी?

रजनी- कुछ नही....मैं यहां तेरे से मिलने आयी हूँ कि फरमाइश करने.....कुछ खाना वाना नही है मुझे....बैठ यहीं बातें करते हैं।

नीलम- बिना कुछ खिलाये पिलाये तो जाने नही दूंगी मैं....ये तो तू जानती है.....क्यों काकी?

रजनी- अच्छा अभी बैठ बाद में बना लेना.....काकी तुम लेट जाओ खाट पे।

काकी- हाँ बिटिया तुम दोनों बातें करो मैं तो लेट जाती हूँ, नींद भी आ रही है मुझे तो।

नीलम- तो काकी सो जाओ आप....रुको बिस्तर लगा देती हूं खाट पे।

काकी- अरे नही ऐसे ही ठीक है...बस एक तकिया दे दे मुझे।

नीलम ने बगल में दूरी खाट पर पड़ी तकिया उठा कर काकी को दी।

नीलम और रजनी काफी देर इधर उधर की बातें करते रहे फिर नीलम ने खाने के लिए जल्दी से महुए का हलुआ बनाया और तीनों ने खाया, शाम हो चली थी, बिरजू अभी आया नही था।

रजनी को पेशाब लगी
Nice update
 
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Incestlala

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Update- 80

रजनी तेज पेशाब लगने की वजह से उठकर जाने लगी तो नीलम बोली- क्या हुआ?

रजनी- पेशाब लगी है यार आती हूँ करके।

नीलम- जा कर ले दालान के पीछे सूरन की क्यारी है उसी में कर लेना।

रजनी दालान के पीछे गयी तो वहां पर नींबू के कई सारे पेड़ थे उनके नीचे सूरन की क्यारियां बनाई हुई थी, रजनी ने इधर उधर देखा और अपनी लाल साड़ी को हल्का सा उठा के काली कच्छी को नीचे सरका कर सूरन के छोटे पौधों की ओट में मूतने बैठ गयी।

जैसे ही रजनी ने पेशाब की गरम गरम मोटी धार अपनी रसीली बूर से छोड़ी उसकी नज़र नींबू के पेड़ पर बैठे उसी तोते पर चली गयी जो कल ही उसकी बूर को चूमकर उड़ गया था।

रजनी उस तोते को देखकर चौंक गई, तोता रजनी की बूर से निकलता पेशाब और रजनी के चेहरे को बार बार टकटकी लगा कर देख रहा था।

तोता रजनी की बूर नही देख पा रहा था क्योंकि रजनी ने दोनों हांथों से साड़ी के किनारे को पकड़कर काफी नीचे तक खींचा हुआ था और तोता ऊपर डाल पर बैठा था, रजनी के पेशाब की धार साड़ी के किनारे से लगभग एक इंच नीचे से होकर एक फुट दूर मिट्टी में तेज गिरकर गढ्ढा बना दे रही थी।

अपने छोटे आशिक को देखकर रजनी चौंक गयी और आश्चर्य और खुशी में उसका पेशाब बंद हो गया, शर्म से उसका चेहरा लाल हो चुका था, पर मन में न जाने क्यों खुशी हो रही थी। न जाने क्यों वो मन ही मन उस तोते की राह देख ही रही थी, उसे आभास था कि वो वापिस जरूर आएगा, और एक दिन बाद ही वो फिर वापिस आ गया था और उसे ऐसी जगह पर दिखा की वो चकित रह गयी।

रजनी ने धीरे से बोला- छुटकू फिर तुम आ गए, बेशर्म......बदमाश.....क्या देखने आए हो......मुझे मूतने भी नही दोगे।

तोता पेड़ से उड़कर नीचे आ गया और रजनी के सीधे पैर के पास आकर बैठ गया उसने एक चोंच हल्का सा रजनी के पैर पर मारा मानो मूतने के लिए कह रहा हो, न जाने रजनी को क्या हुआ उसने उसकी इच्छा जान ली और फिर से बूर से पेशाब की धार छोड़ दी, मानो वो उसकी गुलाम हो गयी हो।

तोते ने एक दो बार रजनी के पैर को चोंच से छुआ, रजनी "ऊई, क्या कर रहे हो बदमाश" कहते हुए मूतने लगी, तभी तोते ने रजनी के पेशाब की धार में अपना सिर अच्छे से भिगोया और चोंच खोलकर पीने लगा, रजनी ये देखकर दंग रह गयी, वो घूमकर इधर उधर देखने लगी और उसकी हंसी छूट गयी, छुटंकी की कामुक शैतानियां देखकर।

रजनी- हे भगवान क्या चाहिए तुझे मुझसे, कौन है तू? तू मुझसे प्यार करता है क्या? छुटंकी बदमाश देखो कैसे मेरा मूत पी रहा है बदमाश....गन्दू जी.....लड़की फसाना आता है तुम्हे बहुत अच्छे से?

रजनी अभी उस तोते की एक हरकत से चकित ही थी कि तभी वो तोता रजनी की साड़ी के अंदर जाने लगा पर रजनी ने दोनों हाँथ से साड़ी ज्यादा नीचे तक खींच रखी थी तो जा नही पाया और बड़ी हसरत से बड़े प्यार से रजनी को देखने लगा।

उसकी इस मासूमियत और मंशा जानकर रजनी की हंसी छूट गयी और शर्म से चेहरा गुलाबी सा हो गया, वो समझ गयी कि उसे बूर देखना है इसलिए अंदर जाना चाहता है, न जाने क्यों रजनी ने खुद ही अपनी साड़ी को हल्का सा ऊपर कर दिया और तोता साड़ी के अंदर घुस गया, रजनी ने फिर इधर उधर देखा, बूर से पेशाब की मोटी धार निकल ही रही थी, लगभग अब वो पेशाब कर चुकी थी।

तभी उसे अपनी बूर की फांकों के बीच भग्नासे पर तोते की चोंच की अद्भुत छुवन का अहसास हुआ तो वो चिहुँक गयी, तोता उसकी बूर के भग्नासे को चोंच से कुरेद रहा था मानो वो उसको चूम रहा हो, रजनी को अपार सुख की अनुभूति हुई, उसने मस्ती में साड़ी को नीचे जमीन तक छुवाते हुए तोते को साड़ी के अंदर ढक लिया मानो दुनिया की नज़र से अपने नन्हे आशिक को छुपा लेना चाहती हो।

भग्नासे पर तोते की चोंच लगने से रजनी का पूरा बदन सनसना गया और पेशाब बंद होने के बाद भी दुबारा एक बार हल्का सा पेशाब निकल गया, जिसका कुछ भाग तोता पी भी गया, रजनी जान नही पाई, तोते ने कई बार रजनी के भग्नासे को अपनी चोंच से छेड़ा और अपना मोटा सर उसकी बूर की फांकों के बीच रगड़ा तो रजनी की अनायास ही सिसकी निकल गयी, उससे रहा नही गया तो उसने अपनी साड़ी को उठा के देखा, उसकी गोरी गोरी मोटी मोटी जाँघों के बीच हरा हरा तोता उसकी बूर से खेल रहा था और उसे ये सब न जाने क्यों बहुत अच्छा लग रहा था तभी तो वो उस तोते को ये सब करने दे रही थी, जब जब तोता अपना सर उसकी बूर में रगड़ता वो सिसक जाती। कुछ देर बाद रजनी के मुँह से यही निकला "आह, अब बस करो, बाद में कर लेना फिर" और आश्चर्य देखो तोता तुरंत एक आज्ञाकारी आशिक की तरह बूर छोड़कर साड़ी से बाहर आ गया और उड़कर रजनी के घुटने पर बैठ गया, रजनी उसे और वो रजनी को देखने लगे।

रजनी- कौन हो तुम?....छुटकू जी....क्या चाहिए तुम्हे?

रजनी ने उस तोते को पकड़ा और उसे बड़े प्यार से चूम लिया, उसे चूमते ही न जाने कैसा रोमांच रजनी के पूरे बदन को गनगना गया, ऐसा अद्भुत रोमांच आज तक उसे महसूस नही हुआ था, हालांकि वो अपने बाबू के साथ सम्भोग करके तृप्त थी पर तोते की हरकत उसे अलौकिक रोमांच का अहसाह करा रही थी।

उसने तोते को पकड़कर कई बार चूमा और बोली- अब जाओ, कोई देख लेगा नही तो।

तोते ने रजनी के होंठों पर अपनी चोंच से हल्का सा मारा और उड़ गया, रजनी "अच्छा चुम्मी लेकर जा रहे हो बदमाश!" कहते हुए रजनी उसे पलटकर देखती रही, इस बार फिर अपनी चोंच में भरकर वो शैतान रजनी की बूर का रसीला अर्क ले गया था, ये बात रजनी नही समझ पा रही थी, वो तो न जाने क्यों एक खिंचाव सा महसूस कर रही थी तोते के प्रति, और उसे दुनियां की नज़रों के बचा कर अपने दिल के किसी कोने में बसा रही थी, उसे ये नही आभास था कि वो शैतान है।
Superb Updated
 

123@abc

Just chilling
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Pap to tum kerwa rahe ho dost

Mind blowing

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Batao to anushka bhabhi sahi se mut rahi hai?
 
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