Update- 81
जब तोता ओझल हो गया तब रजनी मुस्कुराते हुए उठी और अपनी जाँघों को भींचकर योनि को बड़ी मादकता से दोनों जाँघों के बीच दबाया, तोते की चोंच की छुवन अब भी उसे अपनी बूर पर महसूस हो रही थी, मुस्कुराते हुए उसने कच्छी पहनी और साड़ी को नीचे गिराकर नीलम के पास आ गयी, चेहरे के बदले हुए हाव भाव को रजनी छुपाने की कोशिश कर रही थी कि नीलम भांप गयी।
नीलम- रजनी तेरा चेहरा क्यों गुलाबी गुलाबी हो गया है? है न काकी
रजनी- कहाँ गुलाबी हो गया है पागल हो गयी है क्या, कुछ भी बोलती है।
नीलम- अच्छा ये गले पे निशान कहाँ से आ गया....जैसे किसी ने काटा हो?
नीलम का ध्यान एकदम रजनी के गले पर संभोग के वक्त उसके बाबू द्वारा काटे गए निशान पर गया, जो इस वक्त तक थोड़ा हल्का तो हो गया था पर दिख रहा था। रजनी अब अनमंजस में पड़ गयी कि क्या जवाब दे, जल्दी से बोली- कौन सा निशान?
काकी- अरे हाँ... मैंने भी नही देखा....यहां गले पे हल्का लाल सा कैसे हो रखा है तेरे।
रजनी- अच्छा ये.....अरे काकी वो दोपहर में एक मक्खी न जाने कहाँ से उड़कर आयी और गले पे काट गयी, हल्का सूजन हुई थी पर निशान नही गया।
रजनी ने दोनों को बेवकूफ बनाते हुए बोला।
काकी- हाँ हो सकता है.....शहद वाली मधुमक्खी ने काट लिया हो.....तुझे बोला था बिटिया की घर में रहना.....पर तू मानती कहाँ है.....नीलम नीम का तेल है क्या तेरे घर?
नीलम- हाँ काकी लाती हूँ।
काकी- हाँ बिटिया ला के थोड़ा लगा दे....नही तो निशान न पड़ जाय।
रजनी ने काकी को तो बेवकूफ बना दिया पर नीलम के गले के नीचे बात उतरी नही, वो रजनी को देखकर मंद मंद मुस्कुराते हुए घर में गयी और नीम का तेल कटोरी में ले आयी और रजनी के गले पर मलते हुए बोली- बहुत मक्खियां काट रही हैं तेरे को आजकल हूँ।
रजनी कुछ न बोली बस नीलम को देखकर मुस्कुरा दी, नीलम भी रजनी को देखकर मुस्कुरा दी, कुछ देर तीनो ऐसे ही बातें करती रही फिर रजनी और काकी घर वापिस आ गए।
अगले दिन सुबह हुई, उधर नीलम की माँ नगमा की आंख जल्दी खुल गयी तो वह अपने बाबू चंद्रभान के गालों को हौले से चूमते हुए बोली- बाबू मैं चलती हूँ..... आप उजाला होने पर आना।
चंद्रभान की आंख खुली तो उसने नगमा को कस के बाहों में भर लिया और बोला- जा रही है बेटी.....एक बार और प्यास बुझा दे जल्दी से।
नगमा- अब नही बाबू....वरना देर हो जाएगी ज्यादा.....आज रात को कर लेना न घर पे ही.....भौजी तो आज मायके चली ही जाएंगी भैया के साथ, बचेंगे हम दोनों ही, तो आज रात खेत में क्यों? घर पर ही प्यास बुझा लेना....अभी जाने दो।
चंद्रभान- अच्छा ठीक है....पर एक बार छूने तो दे
नगमा शरमा गयी- किसकी छुओगे?.....भौजी की या मेरी
(नगमा ने मस्ती में बोल)
चंद्रभान- जिसकी तुम बोलो
नगमा- दोनों की छू लो
चंद्रभान- तुम्हारी छूता हूँ और बहू की चाट लूंगा।
नगमा का चेहरा गुलाबी हो गया और जोश के मारे उसकी बूर में हल्का सा सनसनाहट हुई- हाँ बाबू....करो ऐसे ही।
चंद्रभान ने अपनी बेटी नगमा की साड़ी में हाँथ डाला और फूली हुई बूर को धीरे धीरे छूता हुआ पूरी मुट्ठी में भरकर मीज दिया, नगमा जोर से सिसक उठी फिर चंद्रभान बूर को धीरे धीरे सहलाने लगा।
नगमा- आह.....बस बाबू.....बस करो.....मत रगड़ो
कुछ देर चंद्रभान बूर को सहलाता रहा फिर हाँथ बाहर निकाल के हाँथ को सूँघा और मदहोशी से नगमा को देखते हुए उसके होंठों को चूम लिया, नगमा सिसकते हुए शरमा गयी।
चंद्रभान- अच्छा खोल अब देखूं अपनी बहू की
नगमा मदहोशी में- देखोगे भौजी की.......कैसी होगी उनकी ये जानना है?
चंद्रभान- हाँ दिखा न
चंद्रभान उठकर नगमा के पैरों के बीच आ गया और नगमा ने झट से साड़ी ऊपर उठा के अपनी बूर अपने बाबू को दिखाई, बेटी की बूर को अपनी बहू की बूर की कल्पना करके चंद्रभान एक बार फिर वासना से ओतप्रोत हो गया और झुककर लप्प से बूर को मुँह में भरकर चूस लिया, नगमा जोर से सिसक उठी और जानबूझ कर बोली- बस पिताजी......मुझे बहुत शर्म आती है......क्या कर रहे हो अपनी बहू के साथ? बेटी जैसी हूँ मैं आपकी......आह।
चंद्रभान - मजा आ गया बहू तेरी बूर देखकर....रहा नही गया इसलिए मुँह में भर लिया.....तुझे मजा आया न?
नगमा अपनी भौजी के रूप में खुद को महसूस कर बोली- पिताजी.....मुझे बहुत लाज आती है.....
चंद्रभान- बोल न बहू..... तेरे मुँह से सुनना चाहता हूं
नगमा- हाँ पिताजी जी.......मजा आया.....बहुत अच्छा लग रहा है.....पर पिताजी जी अब बस कीजिये कोई आ जायेगा.....अब जाने दीजिए मुझे।
चंद्रभान- आज रात दोगी मुझे।
नगमा- हाँ दूंगी......अब जाने दो......आआआआआहहहह.....बस पिताजी
चंद्रभान ने अपना मुँह अपनी बेटी की गीली बूर से एक बार कस के चूम के हटा लिया और नगमा साड़ी ठीक कर मचान से नीचे उतरकर घर की तरफ आने लगी, अंधेरा अभी हटा नही था, उजाला होने में कुछ वक्त बाकी था।
जैसे ही नगमा घर पहुंची नीलम की मामी को सामने द्वार पर सुबह सुबह बर्तन धोते देख शरमा गयी।
(नीलम की मामी का नाम- कंचन)
कंचन ने जैसे ही नगमा को देखा वह मुस्कुरा उठी और बोली- आ गयी दीदी सो के पिताजी के पास
नगमा- हम्म
कंचन- मजा आया?
नगमा- धत्त....बेशर्म....
कंचन- हाय.... बता न दीदी....कैसा लगा? कितनी बार मेल हुआ पिता पुत्री का।
नगमा- हाय दैय्या.....पगला गयी है क्या तू....कोई सुन लेगा तो, ऐसे बोलेगी।
कंचन- कोई नही सुनेगा....अभी तो सब सो रहे हैं.....बताओ न दीदी।
नगमा ने शरमा कर धीरे से बोला- मैं वहां सोने गयी थी या मेल करने? कुछ भी बोलती हो भौजी।
कंचन- सोने सोने में ही तो मेल हो जाता है दीदी।
नगमा- हां जैसे तेरा हो गया था न।
कंचन- हाँ और क्या......बता न
नगमा ने धीरे से बोला- तीन बार
कंचन- ऊई अम्मा....एक ही रात में तीन बार.....इतनी प्यासी थी मेरी दीदी
नगमा शरमा गयी और बोली- तेरा भी इंतजाम कर दिया है, आज ही चली जा अपने बाबू के आगोश में, फिर मैं सुनूँगी तेरे प्यास की कहानी।
अब शरमाने की बारी कंचन की थी - पिताजी ने हाँ बोल दिया।
नगमा- बोलेंगे क्यों नही.....वो तो कह रहे थे कि बहुरानी को किसने रोका है, ये घर तो उसी का है, वह भी तो बेटी है मेरी, जब उसका दिल चाहे जाए।
कंचन- तो क्या दीदी आपने उन्हें सब बता दिया।
नगमा- अरे नही पगली.....पागल हूँ क्या मैं....बस मैंने ऐसे ही बोला...... तो वो मान गए और बोलने लगे कि वो कभी भी जा सकती है अपने मायके, इसमें इतना पूछना क्या और संकोच क्या आखिर वो भी इस घर की बहू है....आखिर वो भी मेरी बेटी ही है...बस यही है कि अगर वो ज्यादा दिन अपने मायके में रहती है तो यहां की रौनक फीकी हो जाती है।
नगमा और कंचन मुस्कुरा उठे।
नगमा- देखा बाबू तुम्हे कितना मानते हैं और तुम हो की इतना संकोच करती हो.....ला मैं बर्तन धोऊं तू जा दूसरे काम कर ले।
कंचन- अरे नही दीदी ऐसी बात नही है आखिर वो ससुर जी हैं मेरे....मनमानी तो नही कर सकती न.......मायके और ससुराल में फर्क तो होता ही है.......अभी कुछ महीने पहले ही मायके गयी थी तो इतनी जल्दी जल्दी उनसे जाने के लिए नही बोल सकती न।
नगमा- तो ले मैंने बोल दिया और वो मान भी गए अब खुश
कंचन फिर थोड़ा शरमा गयी फिर बोली- हाँ खुश.......दीदी आप जाओ थोड़ी देर आराम कर लो थक गई होगी रात की मेहनत से।
नगमा- अच्छा....बहुत मस्ती सूझ रही है तुझे सुबह सुबह......अरे अभी सुबह सुबह फिर लेट जाउंगी और भैया देखेंगे तो क्या सोचेंगे? अच्छा क्या भैया रात को मुझे पूछ रहे थे? कि मैं कहाँ हूँ।
कंचन- नही...वो तो सो गए थे.....अभी तक सो ही रहे हैं।
फिर नगमा बर्तन धोने लगी और कंचन घर के दूसरे कामों में लग गयी
दोपहर को कंचन नीलम के मामा के साथ अपने मायके चली गयी कंचन के बाबू ने जब कंचन को अचानक देखा तो उनकी बाछें खिल गयी, कंचन का मन भी अपने बाबू को देखकर मचल उठा और कुछ महीने पहले रात को अंधेरे में चुपके चुपके उनके साथ हुई चुदाई को सोचकर उसका बदन सनसना गया, उनको देखते ही उसकी प्यासी बूर में चींटियां रेंगने लगी।
नीलम के मामा उसकी मामी को उसके मायके छोड़कर अगली सुबह अपने घर आ गए, रात में इधर नगमा और चंद्रभान ने फिर घर में ही जमकर काम के सागर में खूब गोते लगाए।
(कंचन का घर)
जिस रात कंचन अपने मायके आयी उस रात को उसे अपने बाबू के पास जाने का मौका मिला नही, जब अगले दिन उसका पति उसे छोड़कर वापिस चला गया तो उसके बदन में वासना की लहरें और हिलोरे मारने लगी।
इस वक्त उसके घर में उसकी माँ, दो छोटी बहनें, उसके बाबू और बूढ़ी दादी थी, जिस दिन कंचन आयी उसके अगले दिन ही उसके बाबू ने जानबूझ के घर में बोला- अरे आज रात को 9 बजे से बगल के गांव राजापुर में नौटंकी लगी है कौन कौन चलेगा देखने?
उस वक्त घर में कंचन के अलावा दो छोटी बहनें थी उसकी मां थी और एक बूढ़ी दादी थी। कंचन की माँ ने बोला- तुम ही जाओ, रात को नौटंकी कौन देखने जाएगा, न वहां ठीक से बैठने की जगह मिलती है न खड़े रहने की, भीड़ इतनी होती है, हुड़दंग ऊपर से होता रहता है, इन लड़कियों को लेके तो बिल्कुल नही जाना है।
कंचन के बाबू ने बोला- तो तुम ही चलो।
कंचन की मां- तुम्हारी तरह इस उम्र में मुझे नौटंकी का नशा तो नही चढ़ा हुआ है तुम ही जाओ।
कंचन वहीं पास में बैठी सिर झुकाए मंद मंद मुस्कुराते हुए थाली में चावल निकाले रात का खाना बनाने के लिए बिन रही थी, वो बीच बीच में सर उठा के अपने बाबू को देखती और दोनों मुस्कुरा देते, कंचन अपने बाबू का प्लान अच्छे से समझ रही थी शरम से उसका चेहरा भी लाल हुआ जा रहा था।
कंचन की मझली बहन को पैर में थोड़ा चोट लगने की वजह से वो जाने में असमर्थ थी, सबसे छोटी बहन को ले जाना ठीक नही था क्योंकि वो सो जाती है जल्दी तो जगा कर वापिस लाना मुश्किल हो जाता है, कंचन की माँ जाएगी नही, ये सोचकर कंचन के बाबू का मन झूम उठा की रास्ता साफ है, उन्होंने मुस्कुराते हुए कंचन की तरफ देखा और बोला - कंचन बिटिया तू चल, ये सब कोई नही जाएंगे, चल तुझे ही घुमा लाऊं, एक दो दिन के लिए आई है घूम फिर ले।
कंचन ये सुनते ही चहक उठी - हाँ बाबू चलो मैं चलूंगी, बहुत दिन हो गए नौटंकी देखे, मैं बोलने ही वाली थी अपने मेरे मुंह की बात कह दी।
कंचन की माँ- अरे ये तुम्हे क्या हो गया है, शादीशुदा बेटी पराए घर की अमानत होती है, रात में उसे नौटंकी दिखाने ले जाओगे वो भी दूसरे गांव में, तुम्हें पता है न वहां कितने फूहड़ तरह के लोग भी होते हैं, लड़कियां और औरतें तो कम ही आती हैं वहां, कुछ उल्टा सीधा हो गया तो क्या मुँह दिखाएंगे समधी जी को।
कंचन के बाबू- अरे कुछ नही होगा कंचन की मां....तुम भी न....मैं तो रहूंगा साथ में..... अब बेटी है एक दो दिन के लिए आई है, थोड़ा घूम फिर लेगी तो क्या हो जाएगा, तुम तो निरह ही डरती रहती हो, इतना भी खराब माहौल नही होता जितना तुम कह रही हो, वो पहले की बात अलग थी अब वैसा नही होता, कभी कभी कुछ हुड़दंगी लोग आ जाते हैं पर ऐसा हमेशा थोड़ी होता है, कुछ एक नौटंकियों में एकाध बार ऐसा हुआ था, पर हमेशा ऐसा थोड़ी होता है, मैं जरूर अपनी बिटिया को घुमाने ले जाऊंगा, उसका मन क्यों मारूं।
कंचन एक टक अपने बाबू को देखे जा रही थी जब नजरें मिली तो हल्के से उनकी मंशा और उसको वास्तविक करने के लिए उसके द्वारा लगाए गए जोर को देखकर हल्का सा हंस पड़ी और बोली- बाबू मैं चलूंगी.....अम्मा जाने दो न....कुछ नही होगा....बाबू तो रहेंगे न साथ में।
कंचन की माँ- अच्छा जा......पर जल्दी आ जाना.....नौटंकी का क्या है वो तो चलती रहेगी रात भर।
कंचन- अब अम्मा नौटंकी खत्म होने के बाद ही तो आएंगे.....आ जाएंगे हम लोग आप चिंता मत करो
कंचन की इस बात पर उसके बाबू ने बड़े प्यार से कंचन की तरफ देखा तो वो लजा गयी। दोनों का दिल मिलने वाली खुशी को सोचकर तेज धकड़ रहा था।
कंचन की माँ- ठीक है पर साफ रास्ते से जाना, अंधेरी रात है, लाठी ले जाना और बडी वाली टॉर्च भी, ओढ़ने के लिए एक कंबल भी ले लेना, रात बारह बजे के बाद थोड़ी ठंड लगेगी तो ओढ़ लेना दोनों बाप बेटी, और हो सके तो वक्त पे घर आ जाना।
कंचन के बाबू- अरे हाँ बाबा आ जायेंगे, तुम तो ऐसे समझा रही हो जैसे गंगा नहाने जा रहे हों।
कंचन की माँ- इससे अच्छा तो गंगा ही नहा आते तो ही सही था।
कंचन के बाबू- वो भी कर आएंगे पहले नौटंकी तो देख लें।
कंचन दोनों की बहस पर हंस पड़ी, उसे देख कर आज रात मिलने वाली लज़्ज़त को सोचकर कंचन के बाबू के लंड ने धोती में हल्का सा फुंकार मारा तो वह वहाँ से उठकर अपनी बिटिया को देखता हुआ बाहर चला गया, कंचन भी उनको जाता हुआ देखकर इशारे से सब्र रखने को बोलकर मुस्कुरा दी।
फिर उसने जल्दी जल्दी अपनी मझली बहन के साथ मिलकर खाना बनाया और सबको खिला कर अपने बाबू के साथ अंधेरी रात में एक थैले में कंबल और चुपके से एक छोटी शीशी में नारियल का तेल लेकर थैले में रखा और निकल पड़ी नौटंकी देखने।