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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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aamirhydkhan

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एक ऐसा index डाल दे कहानी की शुरुआत में थोड़ी सुविधा हो जायेगी अपडेट ढूंढने में



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Update- 84

थोड़ी देर बाद नरेंद्र कंचन के गालों पर एक चुम्मी लेकर उठा और धोती लपेटकर खड़ा हो गया, कंचन ने भी अपने को ढकते हुए अपने बाबू से पूछा- क्या हुआ बाबू?

नरेन्द्र- वो टॉर्च निकाल दूँ कुएं में से।

और नरेन्द्र पाइप के सहारे कुएं में उतरकर वो टॉर्च ले आया, पैरों और हाँथ में गीली मिट्टी लगने की वजह से वो दरवाजा धीरे से खोलकर बाहर गया और पानी की बड़ी टँकी में हाँथ पैर धो कर आया।

खटोला तो टूट चुका था, कंचन ने उठकर कपड़े पहन लिए थे, पर दोनों का मन अभी भरा नही था, नरेन्द्र ने टूटे खटोले पर पड़े बिस्तर को उठाया और जमीन पर पुआल बिछा के ऊपर वो बिस्तर लगा दिया फिर कंचन को बाहों में भरकर नीचे ही जमीन पर लेट गया, वासना इतनी प्रबल थी कि दोनों ने करीब तीन बार जमकर चुदायी की और फिर रात को ही थके मांदे घर आ गए।

इस तरह कंचन अपने मायके में अपने बाबू से मिलन करके तीन चार दिन बाद वापिस अपने ससुराल आ गयी, इधर नगमा भी अपने बाबू से इन तीन चार दिनों में जमकर चुदी, दोनों पूरी तरह तृप्त दिख रही थी, कंचन ने आकर अपनी ननद को सब विस्तार से बताया और नगमा ने भी अपनी रासलीला अपनी भौजी को सुनाया, अगले ही दिन नगमा अपने ससुराल आ गयी।

इधर नीलम और रजनी भी चुदायी का भरपूर आनंद अपने पिता के साथ ले ही रही थी।

कर्म के मुताबिक रजनी और उदयराज ने कुलवृक्ष के नीचे रात को फिर कई बार संभोग किया।

विक्रमपुर में और जगहों की तरह अब पाप पनपने लगा था पर धीरे धीरे।

तोता उस दिन के बाद अभी तक नही आया था रजनी के मन में न जाने क्यों उसके लिए बेचैनी थी, न जाने क्यों उस तोते की राह वो देख रही थी।

धीरे धीरे एक महीने का वक्त पूर्ण होने वाला था अमावस्या खत्म हो चुकी थी, पूर्णिमा की रात चल रही थी।

उधर जंगल में पूर्वा की, उसकी माँ द्वारा दी जा रही मंत्र दीक्षा पूर्ण होने को आ गयी थी, पूर्वा के चेहरे पर मंत्र प्राप्ति के बाद एक अलग ही तेज था, एक दिन उसने अपनी माँ से कहा- अम्मा वो भैया और मेरी सहेली रजनी अभी तक आये नही, एक महीना तो पूर्ण होने को आया है, है ना।

सुलोचना- आ जायेंगे बिटिया, अभी तो हमे उनके गांव भी चलना है यज्ञ कराने के लिए, हो सकता है दो चार दिन में आ जाएं। मुझे महात्मा ने किसी काम से कल बुलाया है तो मैं कल उनके पास जाउंगी तुम घर पर रहना, मैं उन्हें तुम्हारी मंत्र दीक्षा पूर्ण होने की जानकारी दूंगी, उनके आशीर्वाद से तुम और परिपक्व हो जाओगी।

पूर्वा- अच्छा अम्मा वो भैया किस काम के लिए महात्मा के पास गए थे, क्या वो सफल हुआ?

सुलोचना- बेटी पूरी तरह तो मुझे भी नही पता, पर था तो कोई नेक काम ही, जैसे हम लोगों की भलाई के लिए नेक काम करते हैं, वैसे वो भी अपनी जान जोखिम में डालकर कोई नेक काम को ही अंजाम देने आए थे।

पूर्वा- तो क्या वो सफल हुआ?

सुलोचना- अब ये तो मुझे नही पता, ये तो उन लोगों के आने के बाद ही पता चलेगा, और वैसे भी अभी यज्ञ कराना बाकी है, पता नही वो काम सफल हुआ या नही, ये तो अब दुबारा महात्मा के पास जा के ही पता चलेगा।

पूर्वा- लेकिन अम्मा मैं अपनी मंत्र शक्ति से ये जान सकती हूं कि वो काम सफल हो रहा है या नही?

सुलोचना- क्या बात कर रही है? (सुलोचना थोड़ा चौंक गई), अभी तो तू इतनी परिपक्व हुई नही, फिर कैसे?

पूर्वा- हां अम्मा, इतने दिन लगन से मैंने मंत्रों की सिद्धि ऐसे ही थोड़े न प्राप्त की है, आपके बताए गए मंत्रों को मैंने बहुत लगन से सिद्ध किया है और आपकी कृपा से कुछ और मंत्र का भी अभ्यास करती थी, उसी का परिणाम है। अब आपकी बिटिया इतनी तो काबिल हो गयी है कि शैतान को उसकी मनमानी करने से रोक सके। (पूर्वा ने जानबूझकर एक नई बात अपनी अम्मा के सामने रख दी)


सुलोचना- शैतान को? मनमानी? क्या बोल रही है तू?

पूर्वा- हां अम्मा, जैसे ही मेरी सिद्धि खत्म हुई सबसे पहले मैंने अपने मंत्रों की शक्ति से ये जानने की कोशिश की सिंघारो जंगल में सबसे शक्तिशाली दुष्ट आत्मा कौन सी है, तो मुझे ज्ञात हुआ कि दुष्ट आत्माएं तो बहुत हैं पर सबसे शक्तिशाली एक शैतान है जो श्रापित है, वो दुष्ट तो नही है पर कुछ दुष्ट आत्माओं के बहकावे में आकर महात्मा की आज्ञा के विरुद्ध, छुप छुपकर अपने श्राप से जल्दी मुक्त होने के लिए उन दुष्ट आत्माओं के बहकावे में आकर न जाने कैसा अर्क इकट्ठा कर रहा है, और शायद किसी स्त्री को फंसा रहा है, मैं यह नही जान पाई की वो नारी कौन है जिसको वो फंसा रहा है, और वो कैसा अर्क इकट्ठा कर रहा है, पर इतना तो जरूर है कि वो अब महात्मा का विरोध करने वाला है, वो अपनी शक्ति मजबूत कर रहा है, अपनी टोली बना रहा है दुष्ट आत्माओं के साथ मिलकर।

सुलोचना- क्या बोल रही है तू?

पूर्वा- हां अम्मा ये सच है? इसलिए मैं कह रही थी कि मैं अपनी शक्ति से यह जाने की कोशिश करती हूं कि भैया का कार्य सफल हो रहा है या नही, क्या पता इस शैतान ने उसमें भी कुछ खलल किया हो?

सुलोचना- नही नही बेटी वो इतना बुरा भी नही है, अगर ऐसा होता तो वो उनका साथ न देता।

पूर्वा- उनका साथ?

सुलोचना- हां... ये बात मैं जानती हूं कि महात्मा ने ही उसे उदयराज और रजनी की गुप्त रूप से रक्षा करने का कार्यभार सौंपा था, उसको उसने बखूबी किया है। पर अब वो ऐसा क्यों कर रहा है? महात्मा के विरुद्ध क्यों जा रहा है, उसका श्राप तो अभी दो सौ साल तक बाकी है।

पूर्वा- अपनी मुक्ति के लिए अम्मा....अपनी मुक्ति के लिए, बुरी आत्माओं के बहकावे में आकर, उसको जल्दी मुक्ति चाहिए और शायद और कुछ भी।

सुलोचना- और कुछ भी...और कुछ क्या?

पूर्वा- ये मुझे नही पता अम्मा? पर मंत्र शक्ति से इतना पता चला कि उसको दो चीज़ें चाहिए एक तो मुक्ति जिसको मैं जान गई पर दूसरी नही जान पाई और दूसरी चीज में बुरी आत्माओं का भी हिस्सा होगा, उसी के लालच में आकर वो उसे बहका रही हैं और वो बहक रहा है।

सुलोचना- क्या ये बात महात्मा जी को पता है?

पूर्वा- हां अम्मा पता है, और शायद इसी सिलसिले में उन्होंने आपको बुलाया हो।

सुलोचना- हो सकता है, पर इतनी जानकारी तुझे कैसे मेरी पुत्री।

पूर्वा- मंत्र शक्ति से अम्मा....मंत्र शक्ति से.....पर फिर भी मैं अभी कच्ची हूँ, अभी मुझे और सीखना है, क्योंकि पूरी पूरी जानकारी मुझे भी नही हो पाती कुछ ही पता लग पाता है ऊपर ऊपर, मुझे और यज्ञ करना है....और सीखना है।

सुलोचना- ठीक है मेरी बेटी सीख.... मन लगा के सीख और जनमानस की रक्षा कर।

पूर्वा- ठीक है अम्मा मैं अपने मंत्र से ये जानने की कोशिश करती हूं कि भैया की मेहनत सफल हो रही है या नही।

सुलोचना- ठीक है तू कोशिश कर।

पूर्वा ने रात को अपनी मंत्र शक्तियों को जागृत करके ये जाना कि उदयराज की मेहनत रंग लाई और उनकी समस्या धीरे धीरे ठीक हो रही है पर अभी तंत्र मंत्र की दुनियां में कच्ची होने की वजह से वो ये नही जान पायी की समस्या के हल में करना क्या था?। फिर भी उसने अपनी अम्मा को बताया तो दोंनो खुश हो गयी।

सुलोचना- सफलता तो मिल रही है न धीरे धीरे ही सही।

पूर्वा- हां अम्मा मिल रही है सफलता। मुझे लगता है यज्ञ पूर्ण होने पर समस्या बिल्कुल ठीक हो जाएगी।

सुलोचना- हम्म्म्म....अच्छा अब मैं जाती हूँ महात्मा के पास शाम तक आ जाउंगी तू अपना ख्याल रखना।

पूर्वा- हां ठीक है अम्मा

सुलोचना- तू उदास सी क्यों है थोड़ा थोड़ा?....ऐसा मुझे लग रहा है।

पूर्वा- पता नही क्यों मुझे भैया की याद आ रही है, आप और भैया मुझे एक जैसे लगते हैं।

सुलोचना- मतलब?

पूर्वा- मतलब यही की अम्मा जैसे आपने जनमानस के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया वैसे ही भैया ने भी देखो कैसे पूरे गांव के लिए इतना जोखिम भरा काम किया, हमारी और उनकी नीयत एक जैसी है न अम्मा।


सुलोचना मुस्कुरा उठी- हाँ बिटिया ये बात तो तूने सही ही कही है, जो इंसान जिस नीयत का होता है उसी नीयत के इंसान से वो एक जुड़ाव महसूस करता है, मुझे भी उन लोगों की याद आती है और अब तो वो हमारे और हम उनके परिवार के सदस्य जैसे हैं, तू चिंता मत कर कुछ दिन में तेरे भैया जरूर आ जाएंगे तुझे और मुझे लेने, फिर तू रह लेना उनके साथ उनके गांव में।

पूर्वा के चेहरे पर खुशी की चमक आ गयी ये सुनकर- आप भी रहोगी अम्मा मेरे साथ।

सुलोचना- तो यहां राहगीरों को कौन रास्ता दिखायेगा?, मैं कुछ दिन रहकर यज्ञ करवा के चली आऊंगी।

सुलोचना ने पूर्वा को बाहों में लेकर प्यार से थपथपाया, वो जानती थी कि बचपन से ही एक जगह रहते रहते पूर्वा ऊब चुकी है, उदयराज और रजनी ही अब तक के ऐसे राहगीर थे जिन्होंने सुलोचना और पूर्वा को अपना परिवार मान लिया था और अपने साथ चलने के लिए कहा था, वरना आजतक ऐसा किसी ने नही किया था, ऐसा नही था कि सुलोचना और पूर्वा किसी के घर जाना चाहते थे या वो किसी पर निर्भर होना चाहते थे, वो तो खुद इतने शक्तिशाली और काबिल थे कि दूसरों का सहारा बनते थे पर न जाने कैसा लगाव हो गया था उदयराज और रजनी से।

सुलोचना- चिंता मत कर तेरे भैय्या आ जायेंगे जल्द ही।

पूर्वा मां की दिलासा से खुश हो गयी, कहते हैं कि इंसान चाहे जितना भी परिपक्व और मजबूत हो जाये उसके सीने में जो दिल है वो उसे बच्चा बना ही देता है, वही हाल पूर्वा का था, इतनी गुणी और मंत्र विद्या में परिपूर्ण थी, ऊपर से देखने में एक गंभीर और सहनशील साहसी लड़की होते हुए भी अपने दिल के आगे हार गई थी अपने भैया का साथ पाने के लिए बेचैन थी, वो खुद भी नही समझ पा रही थी कि आखिर वो इतनी बेचैन क्यों है?


सुलोचना पूर्वा को घर की जिम्मेदारी देकर महात्मा के पास चली जाती है।
बहुत बढ़िया अप्डेट दिया है, आख़िर तोते का रहस्य भी पता लग जाएगा, पर क्या ये जान्ने को भी मिलेगा की उसे श्राप क्यू मिला, और किसके रहते मिला।
लगता है कहानी ने आख़री पड़ाव की तरफ़ उड़ान भर ली है।
आगे के लिए उत्सुकता है जल्दी ही अगला अप्डेट दीजिएगा
 
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और दूसरा की आप से विनती है की अगर index बना देते या admin को बोल कर उनकी मदद से index बन जाता तो कहानी पढ़ने में नए पाठकों और पुराने पाठकों को आसानी होती,
क्यू की कहानी २२०० पृष्ठों से ज़्यादा हो चुकी है, अप्डेट पता करने में लोगों को सहूलियत हो जाती
 
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Update-9

काकी घर में आवाज़ लगाती हुई गई- रजनी! ओ रजनी बिटिया! खाना बन गया?

रजनी- हाँ काकी, लगता है आज आपको जल्दी ही भूख लग गयी। बस दाल में तड़का लगा दूँ, हो गया बस।

काकी- अरे मुझे नही री पगली! मैं तो तेरे बाबू के लिए पूछ रही थी, वो नहा के आया और बाहर खाट पे लेटे-लेटे सो गया, लगता है आज ज्यादा ही थक गया है खेतों में काम करके।

रजनी- क्या! बाबू सो गए, हे भगवान! मैं भी न, वैसे खाना बन गया है मैं उन्हें बुला कर लाती हूँ, आज मैंने उनकी पसंद का खाना बनाया तो वो सो गए जल्दी।
इतना कहते हुए वो बाहर गयी, और काकी बोली- हाँ तू बुला ला मैं दाल में तड़का लगा के निकलती हूँ खाना सबका।

रजनी- हाँ ठीक है।


रजनी बाहर आई एक नज़र अपनी बेटी पर डाला वो पालने में खेल रही थी, ठंढी हवा चल रही थी। बरामदे में लालटेन जल रही थी जिसकी हल्की रोशनी बाहर आ रही थी। अमावश्या की रात होने के कारण घाना अंधेरा था चारों तरह, एक लालटेन पशुओं के दालान के दरवाजे पर जल रही थी लेकिन उसकी रोशनी दूर तक नही थी।

रजनी अपने पिता की खाट पर बैठ गयी और उनके ऊपर झुकते हुए उनके माथे और बालों को सहलाते हुए बड़े प्यार से बोली- बाबू, ओ बाबू, तुम तो सो ही गए, चलो उठो खाना खा लो, बन गया है।

रजनी का इस तरह आधा उसके ऊपर लेटने से उसका मखमली बदन उदयराज को अंदर तक झकझोर गया, रजनी की मोटी मोटी चूचियाँ अपने पिता के सीने से दब गई, जिससे उदयराज जग गया, उसने ये सोचा भी नही था कि आज का दिन इतना खास होगा कि रजनी उसे इस तरह कामुक तरीके से उठाएगी, उदयराज इसके लिए तैयार नही था, उसका मन मयूर झूम उठा, अपनी ही सगी बेटी की भारी उन्नत चुचियाँ उसके चौड़े सीने से दबी हुई थी और उसके सख्त निप्पल उदयराज को बखूबी महसूस हुए, रजनी लगभग आधी अपने पिता पर चढ़ी हुई थी जिससे उसे न चाहते हुए भी नारी बदन से बहुत ही लज़्ज़त का अहसास हुआ और इस हरकत ने एक बार फिर बरसों से दबी हुई उसकी कामेक्छा के तार को हिला दिया, परंतु दूसरे ही छड़ उसने इस गंदे ख्याल को अपने दिमाग से झटक सा दिया और
जैसे ही उसने रजनी को स्नेहपूर्वक अपनी बाहों में भरने की कोशिश की रजनी की बेटी रोने लगी, रजनी ने झट उठकर उसे गोद में उठा लिया और उदयराज बोला- हाँ बेटी चलो, मैं हाथ मुँह धो के आता हूँ, अरे वो ठंडी हवा चल रही थी तो मेरी आँख लग गयी थी ऐसे ही, और इस गुड़िया को यहां किसने अकेले लिटा दिया।

रजनी मुस्कुराते हुए बोली- अरे वो काकी लिटा कर गयी थी पालने में। चलो आप आओ।


इतना कहकर रजनी बेटी को गोद में लेकर घर में चली गयी।

उदयराज घर में आया तो आंगन में काकी ने सबका खाना परोस दिया था, उदयराज ने देखा कि आज उसकी बेटी ने उसकी मनपसंद चीज़ बनाई है तो वो बहुत खुश हुआ और बोला- अरे वाह! आज तो मेरी बिटिया ने ये सब बना डाला।

रजनी बोली- हाँ बाबू, रोज तो मेरे ही मन का बन रहा है, तो आज मैंने सोचा कि आज वो बनाउंगी जो मेरे बाबू को पसंद है। रजनी उदयराज के बगल में बैठ गयी खाना खाने।

फिर सब खाना खाने लगे, उदयराज उंगलियां चाट चाट के खाना खा रहा था,

काकी बोली- आज तू बड़ा उंगलिया चाट चाट के खा रहा है हम्म और हंसने लगी।

रजनी भी हंसने लगी उसके चेहरे पर अलग ही चमक थी।

उदयराज- क्या करूँ काकी खाना ही इतना स्वादिस्ट बनाया है मेरी रानी बिटिया ने।

काकी- अच्छा क्या रोज स्वादिष्ट नही बनता क्या? (काकी ने छेड़ते हुए बोला, रजनी ने काकी की तरफ गोल गोल आंखें घुमाते हुए बड़ी अदा से देखा)

उदयराज- अरे बनता है बाबा, पर आज न जाने क्यों बहुत ही मन को भा रहा है।

रजनी- बाबू अब आपके लिए हर रोज़ मैं ऐसे ही खाना बनाउंगी।

काकी- अरे अपनी उंगलिया कम चाट, चाटना है तो उसकी उंगलियां चाट जिसने ये बनाया है (काकी ने फिर छेड़ते हुए कहा)

उदयराज- अरे हाँ काकी तूने सही कहा।

और इतना कहकर उदयराज ने बगल में बैठी रजनी का हाँथ पकड़कर चूम लिया और रजनी अपने बाबू की इस हरकत से जोर से हंस पड़ी, उसे अजीब सी गुदगुदी हुई।

रजनी- अरे मेरे बाबू, आपको इतना प्यार आ रहा है मेरे ऊपर, आपने मुझे गदगद कर दिया, लाओ अब मैं ही आपको अपने हाँथ से खिला देती हूं खाना। (रजनी ने मन में सोचा की देखो मेरे बाबू जी का अकेलापन दूर होने से वो अब कितना खुश हैं, मैं इनका साथ कभी नही छोडूंगी, ऐसे ही प्यार दूंगी)

उदयराज- (हंसते हुए) नही नही बेटी फिर कभी खिलाना अपने हाँथ से अभी तू खाना खा।


काकी भी बाप बेटी का ऐसा प्यार और उदयराज की बचकानी हरकत को देखकर हंसने लगी।

उदयराज बहुत खुश था उसकी जिंदगी में मानो जैसे बाहर सी आ गयी थी, इतना खुश काकी ने उसे काफी सालों बाद देखा था।

सबने मिलके खाना खाया और फिर बाहर आ गए, रजनी बर्तन धोने लगी और काकी ने गुड़िया को पालने में लिटा दिया।

उदयराज अपना बिस्तर उठा के कुएं के पास ले गया वहां सीधी ठंडी हवा आ रही थी।

रोज की तरह काकी ने अपना और रजनी का बिस्तर द्वार पे ही नीम के पेड़ के नीचे लगा दिया बिस्तर अक्सर रजनी ही लगती थी पर आज काकी ने लगाया।

इतने में रजनी बर्तन धो के बाहर आ गयी और अपने बिस्तर पर आके बैठ गयी और बोली- अरे बाबू अपना बिस्तर वहां कुएं के पास ले गए आज।

काकी- हां उधर सीधी ठण्डी हवा आती है न इसलिए।

रजनी ने गुड़िया को गोद में लिया और अपने बिस्तर पर लेटते हुए बोली- काकी

काकी- हम्म

रजनी- मुझे अपना शेरू नही दिखाई दिया जब से मैं आयी हूँ। कहाँ गया वो? (शेरू उदयराज के कुत्ते का नाम था जब रजनी की शादी नही हुई थी उस समय उदयराज उसे नदी के पास से ले आया था उस वक्त शेरु छोटा था जिसे रजनी ने पाला था)

काकी- क्या बताऊँ बेटी जब से तेरे बापू अकेले हुए, शेरु भी अकेला सा हो गया था फिर उसकी आदत बिगड़ गयी और वो घुमक्कड़ किस्म का हो गया है, 3-4 दिन में एक बार ही अपने घर आता है 1, 2 दिन रहेगा फिर इधर उधर घूमना चालू कर देगा। देखो क्या पता कल सुबह घूमता फिरता आये अपने घर।

रजनी- शेरु अपना कुत्ता कितना अच्छा था न, मेरे न रहने से देखो सब जैसे बेसहारा हो गए थे इतना कहके रजनी थोड़ी भावुक सी हो गयी फिर बोली अच्छा काकी उसकी कुतिया भी होगी न जो हमेशा उसके साथ रहती थी, जिससे उसके कई बच्चे हुए थे, वो सब कहाँ है?

काकी- वो तो मर गयी बेटी, कई बच्चे भी मर गए, कुछ को दूसरे गांव वाले उठा ले गए पालने के लिए, अभी इस वक्त तो उसकी एक बेटी है।जिसका नाम मैंने बीना रखा है।

रजनी- अच्छा, तो वो कहाँ है, कितनी बड़ी है।

काकी- अरे वो भी तेरी तरह अपने बाप से बहुत प्यार करती है, जहां जहां शेरु जाएगा बीना भी उसके पीछे पीछे जाएगी, बीना भी अब काफी बड़ी हो गयी है, लगभग शेरु के बराबर ही हो गयी है, सफेद रंग की है।

रजनी- अच्छा, इतना प्यार है बाप-बेटी में

काकी- हम्म, और क्या, अगर शेरु को खाना दो, तो जबतक बीना आ नही जाएगी तबतक वो अकेले खाना छूता भी नही है।

रजनी को बड़ा आश्चर्य हुआ और वो उनको देखने के लिए उतावली हो गयी और काकी से बोली- देखो न काकी मेरे न होने की वजह से मेरे शेरु को भी दर-दर भटकना पड़ रहा है, सब कितना बिखर-बिखर सा गया था न, लेकिन अब मैं सब सही करूँगी।

काकी- हाँ बेटी बिल्कुल, (काकी आगे बोली) आजकल तो शेरु कुछ अलग ही शरारत करता है बीना के साथ, एक दो दिन देखा था मैंने।

रजनी- क्या? क्या शरारत करता है शेरु, कोई बाप अपनी बेटी से शरारत करेगा क्या?

काकी- अरे हाँ करता है वो।

रजनी- ऐसा क्या करता है वो (उत्सुकता से)

काकी- अरे वो बीना का पिशाब का रास्ता सूंघता है (काकी थोड़ा फुसफुसाते हुए सही शब्द का प्रयोग न करके कुछ इस तरह बोली)

रजनी- ईईईशशशशश.....क्या काकी! सच में, हे भगवान!, बेटी है वो उसकी, ऐसा क्यों करता है वो।

काकी- मुझे लगता है कि बीना अब बड़ी हो गयी है, वो यौनाग्नि में गरम हो रही है धीरे धीरे, अब ये तो जानवर हैं बेटी, इनके लिए क्या रिश्ता नाता, पर देखने में मजा आ जाता है, कैसे सूंघता है वो बीना की.....बू

रजनी जानती थी कि काकी क्या बोलने वाली है वो भी थोड़ी गरम हो गयी थी ये सुनकर तो वो बात काटते हुए बोली- कब देखा था काकी अपने?

काकी- अरे यही कोई 4 दिन पहले।
रजनी- पर काकी मुझे बड़ी हैरानी हो रही है सुनके, वो बेटी है उसकी, सगी बेटी।

काकी- बेटी ये नशा ही ऐसा होता है, जब चढ़ जाता है तो कुछ नही देखता, और फिर वो तो जानवर हैं उन्हें इस बात से कोई फर्क नही पड़ता। तुझे दिखाउंगी किसी दिन।


रजनी काफी गर्म हो जाती है ये सोचकर कि एक बाप अपनी ही सगी बेटी की बूर कैसे सूंघ सकता है, कैसा लगता होगा उस वक्त, उसकी सांसें उखड़ने सी लगती है, कितना गलत है ये, फिर भी इसमें मजा क्यों है? सोचकर ही कैसा लग रहा है। बड़ी मुश्किल से अपने को संभाल कर काकी को सोने को बोलकर खुद भी सोने लगती है और कुछ ही पल में नींद के आगोश में चली जाती है।
hot badhiya update hai
 
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