Update- 84
थोड़ी देर बाद नरेंद्र कंचन के गालों पर एक चुम्मी लेकर उठा और धोती लपेटकर खड़ा हो गया, कंचन ने भी अपने को ढकते हुए अपने बाबू से पूछा- क्या हुआ बाबू?
नरेन्द्र- वो टॉर्च निकाल दूँ कुएं में से।
और नरेन्द्र पाइप के सहारे कुएं में उतरकर वो टॉर्च ले आया, पैरों और हाँथ में गीली मिट्टी लगने की वजह से वो दरवाजा धीरे से खोलकर बाहर गया और पानी की बड़ी टँकी में हाँथ पैर धो कर आया।
खटोला तो टूट चुका था, कंचन ने उठकर कपड़े पहन लिए थे, पर दोनों का मन अभी भरा नही था, नरेन्द्र ने टूटे खटोले पर पड़े बिस्तर को उठाया और जमीन पर पुआल बिछा के ऊपर वो बिस्तर लगा दिया फिर कंचन को बाहों में भरकर नीचे ही जमीन पर लेट गया, वासना इतनी प्रबल थी कि दोनों ने करीब तीन बार जमकर चुदायी की और फिर रात को ही थके मांदे घर आ गए।
इस तरह कंचन अपने मायके में अपने बाबू से मिलन करके तीन चार दिन बाद वापिस अपने ससुराल आ गयी, इधर नगमा भी अपने बाबू से इन तीन चार दिनों में जमकर चुदी, दोनों पूरी तरह तृप्त दिख रही थी, कंचन ने आकर अपनी ननद को सब विस्तार से बताया और नगमा ने भी अपनी रासलीला अपनी भौजी को सुनाया, अगले ही दिन नगमा अपने ससुराल आ गयी।
इधर नीलम और रजनी भी चुदायी का भरपूर आनंद अपने पिता के साथ ले ही रही थी।
कर्म के मुताबिक रजनी और उदयराज ने कुलवृक्ष के नीचे रात को फिर कई बार संभोग किया।
विक्रमपुर में और जगहों की तरह अब पाप पनपने लगा था पर धीरे धीरे।
तोता उस दिन के बाद अभी तक नही आया था रजनी के मन में न जाने क्यों उसके लिए बेचैनी थी, न जाने क्यों उस तोते की राह वो देख रही थी।
धीरे धीरे एक महीने का वक्त पूर्ण होने वाला था अमावस्या खत्म हो चुकी थी, पूर्णिमा की रात चल रही थी।
उधर जंगल में पूर्वा की, उसकी माँ द्वारा दी जा रही मंत्र दीक्षा पूर्ण होने को आ गयी थी, पूर्वा के चेहरे पर मंत्र प्राप्ति के बाद एक अलग ही तेज था, एक दिन उसने अपनी माँ से कहा- अम्मा वो भैया और मेरी सहेली रजनी अभी तक आये नही, एक महीना तो पूर्ण होने को आया है, है ना।
सुलोचना- आ जायेंगे बिटिया, अभी तो हमे उनके गांव भी चलना है यज्ञ कराने के लिए, हो सकता है दो चार दिन में आ जाएं। मुझे महात्मा ने किसी काम से कल बुलाया है तो मैं कल उनके पास जाउंगी तुम घर पर रहना, मैं उन्हें तुम्हारी मंत्र दीक्षा पूर्ण होने की जानकारी दूंगी, उनके आशीर्वाद से तुम और परिपक्व हो जाओगी।
पूर्वा- अच्छा अम्मा वो भैया किस काम के लिए महात्मा के पास गए थे, क्या वो सफल हुआ?
सुलोचना- बेटी पूरी तरह तो मुझे भी नही पता, पर था तो कोई नेक काम ही, जैसे हम लोगों की भलाई के लिए नेक काम करते हैं, वैसे वो भी अपनी जान जोखिम में डालकर कोई नेक काम को ही अंजाम देने आए थे।
पूर्वा- तो क्या वो सफल हुआ?
सुलोचना- अब ये तो मुझे नही पता, ये तो उन लोगों के आने के बाद ही पता चलेगा, और वैसे भी अभी यज्ञ कराना बाकी है, पता नही वो काम सफल हुआ या नही, ये तो अब दुबारा महात्मा के पास जा के ही पता चलेगा।
पूर्वा- लेकिन अम्मा मैं अपनी मंत्र शक्ति से ये जान सकती हूं कि वो काम सफल हो रहा है या नही?
सुलोचना- क्या बात कर रही है? (सुलोचना थोड़ा चौंक गई), अभी तो तू इतनी परिपक्व हुई नही, फिर कैसे?
पूर्वा- हां अम्मा, इतने दिन लगन से मैंने मंत्रों की सिद्धि ऐसे ही थोड़े न प्राप्त की है, आपके बताए गए मंत्रों को मैंने बहुत लगन से सिद्ध किया है और आपकी कृपा से कुछ और मंत्र का भी अभ्यास करती थी, उसी का परिणाम है। अब आपकी बिटिया इतनी तो काबिल हो गयी है कि शैतान को उसकी मनमानी करने से रोक सके। (पूर्वा ने जानबूझकर एक नई बात अपनी अम्मा के सामने रख दी)
सुलोचना- शैतान को? मनमानी? क्या बोल रही है तू?
पूर्वा- हां अम्मा, जैसे ही मेरी सिद्धि खत्म हुई सबसे पहले मैंने अपने मंत्रों की शक्ति से ये जानने की कोशिश की सिंघारो जंगल में सबसे शक्तिशाली दुष्ट आत्मा कौन सी है, तो मुझे ज्ञात हुआ कि दुष्ट आत्माएं तो बहुत हैं पर सबसे शक्तिशाली एक शैतान है जो श्रापित है, वो दुष्ट तो नही है पर कुछ दुष्ट आत्माओं के बहकावे में आकर महात्मा की आज्ञा के विरुद्ध, छुप छुपकर अपने श्राप से जल्दी मुक्त होने के लिए उन दुष्ट आत्माओं के बहकावे में आकर न जाने कैसा अर्क इकट्ठा कर रहा है, और शायद किसी स्त्री को फंसा रहा है, मैं यह नही जान पाई की वो नारी कौन है जिसको वो फंसा रहा है, और वो कैसा अर्क इकट्ठा कर रहा है, पर इतना तो जरूर है कि वो अब महात्मा का विरोध करने वाला है, वो अपनी शक्ति मजबूत कर रहा है, अपनी टोली बना रहा है दुष्ट आत्माओं के साथ मिलकर।
सुलोचना- क्या बोल रही है तू?
पूर्वा- हां अम्मा ये सच है? इसलिए मैं कह रही थी कि मैं अपनी शक्ति से यह जाने की कोशिश करती हूं कि भैया का कार्य सफल हो रहा है या नही, क्या पता इस शैतान ने उसमें भी कुछ खलल किया हो?
सुलोचना- नही नही बेटी वो इतना बुरा भी नही है, अगर ऐसा होता तो वो उनका साथ न देता।
पूर्वा- उनका साथ?
सुलोचना- हां... ये बात मैं जानती हूं कि महात्मा ने ही उसे उदयराज और रजनी की गुप्त रूप से रक्षा करने का कार्यभार सौंपा था, उसको उसने बखूबी किया है। पर अब वो ऐसा क्यों कर रहा है? महात्मा के विरुद्ध क्यों जा रहा है, उसका श्राप तो अभी दो सौ साल तक बाकी है।
पूर्वा- अपनी मुक्ति के लिए अम्मा....अपनी मुक्ति के लिए, बुरी आत्माओं के बहकावे में आकर, उसको जल्दी मुक्ति चाहिए और शायद और कुछ भी।
सुलोचना- और कुछ भी...और कुछ क्या?
पूर्वा- ये मुझे नही पता अम्मा? पर मंत्र शक्ति से इतना पता चला कि उसको दो चीज़ें चाहिए एक तो मुक्ति जिसको मैं जान गई पर दूसरी नही जान पाई और दूसरी चीज में बुरी आत्माओं का भी हिस्सा होगा, उसी के लालच में आकर वो उसे बहका रही हैं और वो बहक रहा है।
सुलोचना- क्या ये बात महात्मा जी को पता है?
पूर्वा- हां अम्मा पता है, और शायद इसी सिलसिले में उन्होंने आपको बुलाया हो।
सुलोचना- हो सकता है, पर इतनी जानकारी तुझे कैसे मेरी पुत्री।
पूर्वा- मंत्र शक्ति से अम्मा....मंत्र शक्ति से.....पर फिर भी मैं अभी कच्ची हूँ, अभी मुझे और सीखना है, क्योंकि पूरी पूरी जानकारी मुझे भी नही हो पाती कुछ ही पता लग पाता है ऊपर ऊपर, मुझे और यज्ञ करना है....और सीखना है।
सुलोचना- ठीक है मेरी बेटी सीख.... मन लगा के सीख और जनमानस की रक्षा कर।
पूर्वा- ठीक है अम्मा मैं अपने मंत्र से ये जानने की कोशिश करती हूं कि भैया की मेहनत सफल हो रही है या नही।
सुलोचना- ठीक है तू कोशिश कर।
पूर्वा ने रात को अपनी मंत्र शक्तियों को जागृत करके ये जाना कि उदयराज की मेहनत रंग लाई और उनकी समस्या धीरे धीरे ठीक हो रही है पर अभी तंत्र मंत्र की दुनियां में कच्ची होने की वजह से वो ये नही जान पायी की समस्या के हल में करना क्या था?। फिर भी उसने अपनी अम्मा को बताया तो दोंनो खुश हो गयी।
सुलोचना- सफलता तो मिल रही है न धीरे धीरे ही सही।
पूर्वा- हां अम्मा मिल रही है सफलता। मुझे लगता है यज्ञ पूर्ण होने पर समस्या बिल्कुल ठीक हो जाएगी।
सुलोचना- हम्म्म्म....अच्छा अब मैं जाती हूँ महात्मा के पास शाम तक आ जाउंगी तू अपना ख्याल रखना।
पूर्वा- हां ठीक है अम्मा
सुलोचना- तू उदास सी क्यों है थोड़ा थोड़ा?....ऐसा मुझे लग रहा है।
पूर्वा- पता नही क्यों मुझे भैया की याद आ रही है, आप और भैया मुझे एक जैसे लगते हैं।
सुलोचना- मतलब?
पूर्वा- मतलब यही की अम्मा जैसे आपने जनमानस के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया वैसे ही भैया ने भी देखो कैसे पूरे गांव के लिए इतना जोखिम भरा काम किया, हमारी और उनकी नीयत एक जैसी है न अम्मा।
सुलोचना मुस्कुरा उठी- हाँ बिटिया ये बात तो तूने सही ही कही है, जो इंसान जिस नीयत का होता है उसी नीयत के इंसान से वो एक जुड़ाव महसूस करता है, मुझे भी उन लोगों की याद आती है और अब तो वो हमारे और हम उनके परिवार के सदस्य जैसे हैं, तू चिंता मत कर कुछ दिन में तेरे भैया जरूर आ जाएंगे तुझे और मुझे लेने, फिर तू रह लेना उनके साथ उनके गांव में।
पूर्वा के चेहरे पर खुशी की चमक आ गयी ये सुनकर- आप भी रहोगी अम्मा मेरे साथ।
सुलोचना- तो यहां राहगीरों को कौन रास्ता दिखायेगा?, मैं कुछ दिन रहकर यज्ञ करवा के चली आऊंगी।
सुलोचना ने पूर्वा को बाहों में लेकर प्यार से थपथपाया, वो जानती थी कि बचपन से ही एक जगह रहते रहते पूर्वा ऊब चुकी है, उदयराज और रजनी ही अब तक के ऐसे राहगीर थे जिन्होंने सुलोचना और पूर्वा को अपना परिवार मान लिया था और अपने साथ चलने के लिए कहा था, वरना आजतक ऐसा किसी ने नही किया था, ऐसा नही था कि सुलोचना और पूर्वा किसी के घर जाना चाहते थे या वो किसी पर निर्भर होना चाहते थे, वो तो खुद इतने शक्तिशाली और काबिल थे कि दूसरों का सहारा बनते थे पर न जाने कैसा लगाव हो गया था उदयराज और रजनी से।
सुलोचना- चिंता मत कर तेरे भैय्या आ जायेंगे जल्द ही।
पूर्वा मां की दिलासा से खुश हो गयी, कहते हैं कि इंसान चाहे जितना भी परिपक्व और मजबूत हो जाये उसके सीने में जो दिल है वो उसे बच्चा बना ही देता है, वही हाल पूर्वा का था, इतनी गुणी और मंत्र विद्या में परिपूर्ण थी, ऊपर से देखने में एक गंभीर और सहनशील साहसी लड़की होते हुए भी अपने दिल के आगे हार गई थी अपने भैया का साथ पाने के लिए बेचैन थी, वो खुद भी नही समझ पा रही थी कि आखिर वो इतनी बेचैन क्यों है?
सुलोचना पूर्वा को घर की जिम्मेदारी देकर महात्मा के पास चली जाती है।