Update-3
रजनी के ससुराल वाले इतने नेक और भले इंसान थे कि जब उसके भाई की मौत हुई तो उन्होंने रजनी को अपने मायके में ही रहने को बोल दिया था ताकि रजनी के पिता को कोई दिक्कत या परेशानी न हो, उनको एक सहारे की जरूरत थी, और बाप को एक बेटी से अच्छा सहारा कौन दे सकता है, आप लोग तो जानते ही हैं कि बेटियां बाप की लाडली होती है। बेटियां बाप से ज्यादा गहराई से जुड़ी होती है अक्सर बेटे के मुकाबले।
बेटे अमन की मौत के बाद उदयराज बहुत अकेला हो गया था, उनको एक सहारे की जरूरत थी इसलिए रजनी के ससुराल वालों ने रजनी को इतनी छूट तक दे दी कि वो चाहे तो उम्र भर अपने मायके में रहकर अपने पिता की देखभाल करे।
रजनी के ससुराल में भी कम ही लोग थे, उसके सास-ससुर, (रजनी के ससुर का नाम बलराज था), देवर देवरानी और उनका एक बेटा (जो बड़ी ही मुश्किल से कई मन्नतों के बाद पैदा हुआ था)।
जब रजनी के भाई की मृत्यु हुई और उसके मायके में ससुराल में हर जगह गमहीन माहौल था, और उसके पिता उस वक्त बिल्कुल अकेले रह गए थे तो एक दिन उसके ससुर ने घर के आंगन में शाम को जब सब लोग बैठे थे, रजनी को बुलाकर ये बात कह दी-
बलराज- बहू, बड़ी बहू जरा इधर आना बेटी, तुमसे कुछ बात कहनी है।
(कुछ देर इंतजार करने के बाद भी जब बहू नही आई तो उन्होंने बगल में बैठी अपनी पत्नी से कहा)
बलराज- लगता है बहू ने सुना नही, जरा तुम जाकर आवाज लगा देना, किसी काम में व्यस्त है क्या शायद?
बलराज की पत्नी- हां लगता तो है, घर के पीछे की तरफ जानवरों को चारा तो नही डाल रही, रुको मैं बुला कर लाती हूं।
फिर रजनी की सासु उसे बुला कर लायी और बलराज ने सभी के सामने उससे ये कहा कि बेटी देखो तुम्हारे पिता मेरे समधी होने के साथ साथ एक परम मित्र भी हैं, तो मेरा ये फर्ज बनता है कि मुसीबत की घड़ी में मैं उनके काम आऊं,अब जब तुम्हारा भाई भी इस दुनियां में नही है तो वो बहुत अकेले पड़ गए हैं, उन्हें एक सहारे की बहुत जरूरत है, ये तो तुम जानती ही हो।
उन्होंने आगे कहा- देखो बेटी कोई भी पिता या माँ कभी भी अपनी बेटी के ससुराल में रहकर जीवन नही बिताना चाहेगा और न ही बिताता है वार्ना मैं उनको यहीं बुला लेता।
(रजनी सिर नीचे करके चुपचाप सुन रही थी, बगल में उसके देवर देवरानी भी बैठे थे, बस उसका पति ही वहां नही था, वो कहाँ था अभी थोड़ी देर में बताऊंगा)
बलराज आगे बोला- तो मेरी प्रिय बड़ी बहू मैने और तुम्हारी सास ने यहां तक कि तुम्हारे देवर देवरानी ने भी यही सोचा है कि अगर तुम चाहो तो उम्र भर अपने मायके में रहकर अपने पिता की सेवा कर सकती हो और उनका ख्याल रख सकती हो, क्योंकि हम लोग उनका दर्द बहुत अच्छे से महसूस कर रहे है और तुम भी कर ही रही होगी, आखिर बेटी हो तुम उनकी।
यह तुम्हारी इच्छा पर निर्भर करता है तुम यहाँ रहना चाहो तो यहां रहो और अपने पिता जी के पास रहना चाहो तो वहां रह सकती हो उम्र भर। लेकिन ऐसा अपने मन में कभी गलती से भी मत सोचना की यहां की धन दौलत, जमीन जायदाद तुम्हे नही मिलेगा, जो हिस्सा तुम्हारा है वो तुम्हारा ही है तुम चाहे यहां रहो या न रहो, क्योंकि गलत तो कभी इस गांव में सदियों से नही हुआ और आगे भी नही होगा शायद, बेटी शायद शब्द मैंने इश्लिये लगाया क्योंकि भविष्य का किसी को नही पता, पर तुम्हारे साथ कभी गलत नही होगा जब तक मैं जिंदा हूं।
अब तुम्हारे पति को ही देख लो हमे क्या पता था कि ये नालायक निकलेगा, जिसको अपने परिवार की कोई फिक्र नही, अपनी पत्नी की कोई फिक्र नही, वो कहाँ है, कब आएगा, सही सलामत है भी या नही कुछ नही पता, उसकी नालायकी और बेफिक्री के कारण ही मैंने जमीन जायदाद का जो तुम्हारे हिस्से का है वो पहले ही तुम्हारे नाम कर दिया है, मुझे उस पर विश्वास नही, उसको मैं अपना बेटा नही मानता, जब उसने मेरी फूल जैसी बहू को, हम सबको इतना दुख दिया है, तो मैं भी उसे अब अपना बेटा नही मानता। तुम खुद ही देखो पिछले 8 9 महीने से बिना किसी को कुछ बताये कहाँ चला गया पता नही, कुछ सूत्रों से सुनने में मिला कि शहर भाग गया है।
(इतना सुनते ही रजनी की आंखों से आंसू बहने लगे, वो घूंघट किये हुए थी, वो अपने आपको संभाल न सकी और जब ये सुना कि उसका पति शहर भाग गया तो आंसू बह निकले, हालांकि वो बहुत हंसमुख स्वभाव की थी, धैर्यवान थी पर ऐसी खबर सुनके इंसान रो ही पड़ेगा न)
उसकी सास ने उठकर उसे गले से लगा लिया और बोली- न बेटी न, रोना नही मेरी बेटी, और उसके सिर को सहला सहला कर चुप कराने लगी
बलराज- बेटी तू फिक्र मत कर उसको उसके किये की सजा तो ईश्वर देगा ही, ये मेरा दिल कहता है कि आने वाले वक्त में तुझे भरपूर सुख मिलेगा, तू चिंता मत कर, बस इस वक्त जो पहाड़ हम सबके सिर पे टूटा है उससे संभालना है। यह मेरा घर है और इस घर में जब तक मैं जिंदा हूँ मेरी ही चलेगी, बेटी तू पूरी तरह आजाद है अपनी मनमर्जी की जिंदगी जीने के लिए, तेरे ऊपर कोई बंधन नही है तू चाहे जहां रह सब तेरा ही है।
मैं अपने मित्र उदयराज से बात कर लेता हूँ कि तू अब उसके साथ ही मायके में रहेगी, उनकी सेवा करेगी, देखभाल करेगी, नही मानेंगे तो मैं मना लूंगा सब समझा के, क्योंकि यहां तो तेरी सास है, देवरानी है देवर है, उनके पास कौन है कोई नही, तुझे उनके पास होना चाहिए। मैं बात करता हूँ उनसे पर तु कुछ बोल तो सही बस रोये जा रही है, अपनी मन की बात तो बता बेटी।
इतना सुनते ही रजनी रोते हुए अपने ससुर के पैरों में पड़ गयी और बोली- मैं धन्य हूं जो आप जैसे पिता समान ससुर मुझे मिले, जिन्होंने मुझे इतनी छूट दे दी कि मैं उम्र भर भी अपने मायके में अपने बाबू जी के साथ रहूं तो भी उन्हें कोई परेशानी नही, मैं धन्य हूँ पिताजी।
रजनी ने आगे बोला- कौन बेटी नही चाहेगी की वो अपने बाबूजी के साथ रहे बस मुझे यही चिंता होती थी कि आप लोगों की सेवा का फल मुझे नही मिल पायेगा।
बलराज- नही बेटी ऐसा नही है इतने दिन तूने हमारी सेवा तो कर ली न अब वहां उनको तेरी जरूरत है, हम धन्य है तेरी सेवा से, और तेरी जैसी बहू किसी को सौभाग्य से ही मिलती है, बस ये मेरा बेटा ही नालायक निकला।
(इतने में रजनी की देवरानी बोली)
रजनी की देवरानी- दीदी आप फिक्र मत कीजिये हम सब है यहाँ, संभाल लेंगे, कोई परेशानी नही होगी, आप वहां देखिए और संभालिये।
बलराज- ठीक है बेटी मैं कल ही उदयराज से बात कर लेता हूँ
(और फिर रजनी की सास उसकी देवरानी भावुक होकर एक दूसरे से लिपटकर रोने लगी, और काफी देर बाद जाकर एक दूसरे को सांत्वना देकर चुप हुई, रजनी के ससुर और देवर भी भावुक होकर वहां से उठकर बाहर चले गए)
(अगले दिन बलराज ने उदयराज से अपने मन की बात कही, काफी न नुकुर के बाद उसने उदयराज को मना लिया और रजनी उसके अगले ही दिन अपनी बेटी के लेकर अपने मायके अपने बाबूजी के पास आ गयी उनके साथ रहने, उनकी सेवा करने)
(रजनी ने इस वक्त अपने पति के बारे में क्या सोचा, की वह उनके बगैर कैसे रहेगी और वो आ गया तो क्या होगा, रजनी ने अपना ससुराल छोड़कर अपने मायके में अपने पिता के साथ रहने का निर्णय लेने में देरी क्यों नही की, और रजनी के ससुर ने ऐसा क्यों बोला कि "मेरा दिल कहता है कि आने वाले वक्त में तुझे भरपूर सुख मिलेगा" इसके बारे में अगले अपडेट में)