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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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Aidenhunt

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Good story
 

Aryan_raj2

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Update-4

पिछला-
(रजनी ने इस वक्त अपने पति के बारे में क्या सोचा, की वह उनके बगैर कैसे रहेगी और वो आ गया तो क्या होगा, रजनी ने अपना ससुराल छोड़कर अपने मायके में अपने पिता के साथ रहने का निर्णय लेने में देरी क्यों नही की, और रजनी के ससुर ने ऐसा क्यों बोला कि "मेरा दिल कहता है कि आने वाले वक्त में तुझे भरपूर सुख मिलेगा" इसके बारे में अगले अपडेट में)

अब आगे-

रजनी ने अपने मायके जाते वक्त अपने पति के बारे में, उनके निर्णय के बारे में इंतजार नही किया और न ही कुछ सोचा क्योंकि इनके पीछे कुछ कारण थे :

1.घर में उनके पति की कोई अहमियत नही रह गयी थी, ये उसके पति की खुद की करतूतों की वजह से हुआ था। जिस इंसान ने कभी अपने घर के लोगों की कोई परवाह न कि हो, हमेशा अपने मन की किया हो, एक वक्त ऐसा आता है कि उसकी अहमियत कम हो जाती है।

2. वो खुद 8 9 महीने से बिना किसी से कुछ बताये लापता हो गया था, कुछ सूत्रों से पता लगा था कि वो इस गांव के नियम कानून, उसकी सदियों से चली आ रही प्रतिष्ठा को दरकिनार करके, अपने घरवालों को छोड़कर, अपने पत्नी और बेटी को छोड़कर सदा के लिए बाहरी सांसारिक दुनिया में जीने के लिए चला गया था, जहां हर तरह के गलत काम होते थे और उनमे उसको मजा आने लगा, कुछ पता नही था कि वो कहाँ है और आएगा भी या नही।

3. रजनी तो वैसे भी अकेली ही जीवन बिता रही थी चाहे उसका पति हो या न हो उसके जीवन में कोई रस या उमंग नही था, अब तो वो उसे छूता भी नही था, छूने की बात तो बहुत दूर थी वो रजनी को मानता ही नही था, वो तो हमेशा ही कामाग्नि में जलती रहती थी, इसलिए रजनी ने भी उसे अपने दिल से निकल दिया था पर वो अंदर से उदास रहती थी।

4. जब रजनी के सामने ये बात आई कि वह अपने बाबू जी के साथ रह सकती है तो वो अंदर ही अंदर खिल उठी। रजनी का अपने बाबू से बचपन से ही बहुत लगाव था, वो अपने पिता की लाडली थी, हमेशा से ही वो अपने पिता के लिए एक मित्र बनकर रही है। जब उसकी शादी में उसकी बिदाई हो रही थी तो उसके बाबू जी उसकी जुदाई में बेहोश हो गए थे, रजनी को भी होश नही था वो भी ससुराल में काफी दिनों तक रोती रही थी और इधर रजनी के पिता अपनी बेटी के वियोग में बीमार भी पड़ गए थे काफी झाड़ फूक के बाद जाके ठीक हुए थे।
उसके पिता भी रजनी के अंदर अपनी पत्नी की छवि देखते थे क्योंकि रजनी अपनी माँ की तरह दिखती थी पर असलियत मे वो अपनी माँ से कहीं ज्यादा सुंदर और कामुक औरत थी।

वैसे भी रजनी ससुराल में भी अकेली ही थी बिना पति के क्या ससुराल, वो मन ही मन अपने बाबू जी के पास आना चाहती थी, पर उसने कभी ये जिक्र नही किया था और जब ये प्रस्ताव उनके सामने आया तो वह मना नही कर पाई।
वैसे भी मायके में लड़कियां ज्यादा स्वछंद और खुले रूप में रह सकती है, ससुराल की तरह वहां ज्यादा कोई बंदिश नही होती, जैसे चाहो वैसे रहो, जैसा मन में आये पहनो।

रजनी को कहीं न कहीं ये अहसास था कि उसका पति वापिस नही आएगा अब, क्योंकि गांव ही उसे स्वीकार नही करेगा, वो सारे नियम क़ानून तोड़कर बाहरी दुनिया में मजे लेने गया था उसे अब कोई स्वीकार नही करेगा।

एक तरीके से वो अब विधवा सी हो गयी थी, और अगर वो आ भी गया तब भी वो ससुराल जाने वाली नही अब, अब वो ही घर जमाई बनके मायके में रहेगा अगर आएगा तो, पर ऐसा कभी होगा ही नही, इसलिए अब उसका रास्ता साफ था, वो तो अब अपने बाबू जी के ही साथ रहना चाहती थी, उसने तो शादी से पहले भी कई बार अपने बाबू से कहा था कि- मुझे नही करनी शादी वादी, मैं तो अपने बाबूजी के ही साथ रहूंगी, इस पर उसके बाबू जी हंस देते और कहते- बेटी ये तो नियम है सृष्टि का।

पर अब सब बदलने वाला था अब वो हो रहा था जो रजनी का दिल चाहता था।

इसलिए रजनी बिना ज्यादा देर किए अपने बाबू जी के पास मायके में आ गयी।

अन्य पात्र-

सुखिया काकी-
सुखिया काकी यही कोई 60 62 साल की होंगी। हालांकि वो उसकी दादी की उम्र की थी पर रजनी बचपन से ही उन्हें काकी कहती थी।
सुखिया काकी रजनी के मायके में पड़ोस में ही रहती थी हालांकि गांव में घर थोड़ा दूर दूर थे पर एक सुखिया काकी का ही घर था जो रजनी के घर के काफी नजदीक था।
सुखिया काकी के घर में केवल उसकी 2 बेटियां थी जिनकी शादी हो चुकी थी वो अब अकेली ही रहती थी, ज्यादातर वो रजनी के घर पर ही रहती थी अक्सर खाना भी उनका यहीं बन जाता था।
सुखिया काकी ने रजनी को बचपन से ही पाला पोशा था और उस वक्त जब रजनी की माँ का देहान्त हो गया था तो सुखिया काकी ने ही रजनी और उसके भाई अमन को पाल पोश के बड़ा किया था इसलिए सुखिया काकी को रजनी अपनी माँ ही मानती थी और उनसे अपने दिल की हर बात कह देती थी।

सुखिया काकी को रजनी ने ही कहा था कि -
काकी आप यहीं रहा करो न हमारे घर, आप भी अकेली ही रहती हो अपने घर में, मेरे साथ ही रहो आपका खाना पीना तो मैं यहीं बना ही देती हूं, आप इस उम्र में क्यूं इतना काम करती हो। मेरे साथ ही रह करो अब मैं आ गयी हूं न।

तो काकी बोली- बेटी तू कहती तो सही है। मेरा भी मन करता है कि मैं तेरे साथ ही रहूं, तेरे साथ मुझे भी सुकून मिलता है मन भी लगा रहता था, पर उधर भी देखभाल तो करना ही पड़ेगा न, अब अगर उधर बिल्कुल न जाऊं तो सब खराब हो जाएगा, साफ सफाई भी करना रहता है, एक गाय है उसको भी चार पानी देना पड़ता है, पर मैं सुबह शाम तेरे पास ही तो रहती हूं, देख तू खाना भी मेरा यहीं बना देती है तो खाना खाने के लिए तो आती ही हूं।

तो रजनी बोली- अरे मेरी प्यारी काकी माँ तुमने मुझे पाल पोश ले बड़ा किया है क्या मेरा इतना भी फ़र्ज़ नही की मैं अब इस उम्र में तुम्हारा काम संभाल लूं, देखो अब मैं आ गयी हूं न तो मैं अब इस घर का और उस घर का, दोनों घर का काम संभाल लूंगी, आप बस मेरे साथ ही रहा करो,
हाँ अगर घूमे फिरने और देखभाल करने या टहलने के लिए जाना हो तो उधर चली जाया करो, पर अब मेरे साथ ही रहो, मुझे तुम्हारा और बाबूजी का साथ बहुत अच्छा लगता है।

तो काकी बोली- अच्छा मेरी बिटिया ठीक है, पर तू अकेले ही कितना काम करेगी, और मैं अगर बिल्कुल बैठ गयी तो मेरे शरीर में भी तो जंग लग जाएगा न, काम करने की तो हम गांव के लोगों को आदत होती है बेटी, इसलिए मुझे काम करने से न रोक, नही तो मैं भी जल्दी ही ऊपर चली जाउंगी बीमार होके, और रही बात तेरे साथ ही रहने की तो मैं तेरे साथ ही रहूंगी, पर अपने बाबू जी से तो पूछ लेती एक बार।

इस पर रजनी बोली- बाबू जी मेरी बात कभी नही टालते, और उन्हें इस बात से क्यों परेशानी होगी? ठीक है काकी जैसा आपको ठीक लगे आप काम करो पर ज्यादा नही।

काकी- ठीक है मेरी बिटिया।


(ऐसी है सुखिया काकी)

(रजनी के ससुर ने ऐसा क्यों बोला कि "मेरा दिल कहता है कि आने वाले वक्त में तुझे भरपूर सुख मिलेगा" इसके बारे में कहानी में आपको आगे चलकर पता लग जायेगा, इसके अलावा इस गांव पर क्या ऐसा काला साया था जो इतने ईमानदार लोग अच्छे लोग, जिन्होंने कभी कुछ गलत किया ही नही फिर भी उन लोगों के साथ इतना गलत हो रहा था कि धीरे धीरे लोग कम हो रहे थे, अपनो को खो रहे थे, जन्मदर बहुत कम था और मृत्युदर ज्यादा,
जो एक बैलेंस बिगड़ गया था उसका रास्ता क्या है?
क्या होगा इसका हल?
कैसे बचेगा इस गांव का अस्तित्व?
कहानी में आगे पता चलेगा)
Wo sb to thik bhai but jaldi update dene ki kosis karo
 

S_Kumar

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Update-5

(रजनी घर के अंदर से एक लोटा पानी साथ में गुड़ लेकर बाहर आई)

रजनी- लो बाबू जी पानी।

(उदयराज खाट पर लेटा हुआ था और अंगौछा मुँह पर डाल लिया था)

उदयराज - (खाट से उठते हुए) हाँ बिटिया ला, अरे गुड़ क्यों ले आयी, ऐसे ही पानी दे देती।

रजनी- ऐसे भला क्यों दे देती पानी अपने बाबू को, खाली पानी नही देते पीने को।


(रजनी खाट पर अपने बाबू जी के बगल में बैठते हुए बोली, उसने आज लाल रंग का लहँगा चोली पहना हुआ था, जिसमे वो बहुत खुबसूरत लग रही थी)

उदयराज- ये गुड़ कुछ नया सा लग रहा है, इतना मीठा गुड़ मैंने आजतक नही खाया।

रजनी- बाबू जी ये आपकी बिटिया के हाँथ का गुड़ है जो उसने अपनी ससुराल में बनाया था, और आते वक्त अपने बाबू जी के लिए ले आयी हूं, ये एक नई किस्म के गन्ने से बना गुड़ है। जिसको मैंने बनाया है, ताकि आपके जीवन में मिठास भर सकूँ (रजनी ने बड़े ही चहकते हुए मुस्कुराकर कहा)

उदयराज- बेटी मेरे जीवन की मिठास तो तू है, तेरे आने से तो वैसे ही अब मेरे जीवन में बाहार आ गयी है। मैं बहुत अकेला हो गया था पर अब तेरा साथ पा कर मैं बहुत खुश हूं, और यह गुड़ तो वाकई में तेरा मेरे प्रति प्रेम की मिठास का अहसास करा रहा है।

रजनी- बाबू अब मैं आ गयी हूं न तो अब आप अकेले बिल्कुल नही है, और मैं अब आपके जीवन में ख़ुशियों के रंग भर दूंगी। ऐसा कहते हुए रजनी अपने बाबू जी के गले से लग गयी।

उदयराज- ओह्ह! मेरी बेटी, मेरी लाडली।


(ऐसा कहते हुए उदयराज ने भी रजनी को निष्छल भाव से कस के अपनी बाहों में भर लिया)

(परंतु रजनी की जब मोटी मोटी चूचियाँ उदयराज के सीने से टकराई और दब गई तो उदयराज थोड़ा झिझका, परंतु रजनी अपने बाबू से लिपटी रही, उसके मादक, गदराए बदन ने उदयराज को थोड़ा विचलित सा तो कर दिया पर तुरंत ही उसने मन में आये इस गंदे भाव को झिड़क दिया)

उदयराज ने जब महसूस किया कि रजनी हल्का हल्का सुबुकने सी लगी है तो उसने उसको अपने से थोड़ा अलग करते हुए उसके सुंदर और गोरे गोर चहरे को अपने हांथों में लेकर बोला-

उदयराज- अरे तू रो रही है, क्यों भला, अब मेरे पास आ गयी है फिर भी रो रही है, अभी तो बोल रही थी कि मेरी जिंदगी खुशियों से भर देगी मेरी बिटिया, क्या ऐसे रो रो के भरेगी क्या? ह्म्म्म

रजनी- बाबू ये तो खुशी के आंसू है, सच तो ये है कि मैं आपके बिना नही रह सकती अब, मैं आपको बचपन से ही बोलती आ रही थी न कि मुझे शादी नही करनी, मुझे तो बस आपके साथ रहना है, और आज ईश्वर ने मेरी सुन ली, इसलिए ये आंसू निकल आये।

उदयराज- बेटी मैं भी तेरे साथ ही रहना चाहता था, कौन पिता भला अपनी बेटी के साथ नही रहना चाहेगा पर इस दुनियां के, समाज के नियम कानून तो नही बदल सकते न, मेरा बस चलता तो मैं तेरे जीवन में किसी तरह का कोई दुख आने ही न देता।

रजनी- मैं जानती हूं बाबू, आप मुझे कितना स्नेह करते हैं। पर अब हम कभी दूर नही रहेंगे चाहे जो भी हो।

उदयराज- हां बिल्कुल मेरी बेटी।


(दोनों घर के सामने द्वार पर खुले आसमान के नीचे एक दूसरे को बाहों में लिए खाट पे बैठे थे।
गांव का कोई भी दूसरा इंसान कभी भी इस तरह अपनी जवान गदराई सगी बेटी को बाहों में नही लेता था पर उदयराज और रजनी की बचपन की ये आदत गयी नही थी। जो जवानी में भी बरकार थी। हालांकि कभी भी उनके मन में कभी कोई पाप नही था। ये बस बाप बेटी का एक निश्छल प्रेम था)

तभी सुखिया काकी सामने से आती हुई बोली-

अरे आज बहुत प्यार आ रहा है अपने बाबू पर hmmm

रजनी कुछ झेंपती हुई उदयराज से झट से अलग हो गयी और बगल में बैठते हुए बोली- क्यों न आये काकी कितने दिनों बाद अपने बाबू जी के पास आई हूं।

काकी- अरे बाबा तो करले प्यार पगली मैंने कब मना किया, तुझे तो पता ही है मेरी मजाक करने की आदत है, मैं तो ये कहने आयी थी कि तेरी गुड़िया जो अंदर कमरे में सो रही है वो अब उठ गई है जा के उसको दूध पिला दे, जैसे तुझे अपने बाबू की जरूरत है वैसे ही उसे तेरी।


इतना कहकर काकी हंसने लगी और रजनी भागी भागी घर में गयी और अपने 2 साल की बेटी जो रो रही थी उसको दूध पिलाते हुए बाहर आने लगी।

उदयराज थोड़ी देर काकी से इस बार अगली फसल कब तक बोई जाए इस पर बातचीत करने लगा फिर उठकर उसने जो बोझ फेंका था उसको उठाकर एक साइड में दालान में रखा और बैलों को चारा डालने चला गया।
 

Nasn

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बहुत ही जीवन्त अपडेट था..…...
बाप बेटी का निश्छल प्रगाढ़ प्रेम....
अद्भुत है.....

..देखते है धीरे धीरे उदयराज और
रजनी का ये प्रेम कैसे वासनात्मक रूप
में बदलता है.....
ये देखना होगा....

बहुत ही अद्भुत लेखनी है आपकी..........


अगले मेगा अपडेट का इंतजार रहेगा.....
 
Last edited:

Nasn

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DEAR
S_kumar brother....

आपकी स्टोरी का जो प्लाट है वैसी स्टोरी में बर्षों से सर्च कर रहा था.....

Same वही Taste है.......

जो मैं चाहता था......

THANKS FOR NICE THREAD.....

:kneel: :thankyou:
 

S_Kumar

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बहुत ही जीवन्त अपडेट था..…...
बाप बेटी का निश्छल प्रगाढ़ प्रेम....
अद्भुत है.....

..देखते है धीरे धीरे उदयराज और
रजनी का ये प्रेम कैसे वासनात्मक रूप
में बदलता है.....
ये देखना होगा....

बहुत ही अद्भुत लेखनी है आपकी..........


अगले मेगा अपडेट का इंतजार रहेगा.....
आपका बहुत बहुत धन्यवाद भाई, अगला अपडेट जल्दी ही आएगा।
 
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