Update-4
पिछला-
(रजनी ने इस वक्त अपने पति के बारे में क्या सोचा, की वह उनके बगैर कैसे रहेगी और वो आ गया तो क्या होगा, रजनी ने अपना ससुराल छोड़कर अपने मायके में अपने पिता के साथ रहने का निर्णय लेने में देरी क्यों नही की, और रजनी के ससुर ने ऐसा क्यों बोला कि "मेरा दिल कहता है कि आने वाले वक्त में तुझे भरपूर सुख मिलेगा" इसके बारे में अगले अपडेट में)
अब आगे-
रजनी ने अपने मायके जाते वक्त अपने पति के बारे में, उनके निर्णय के बारे में इंतजार नही किया और न ही कुछ सोचा क्योंकि इनके पीछे कुछ कारण थे :
1.घर में उनके पति की कोई अहमियत नही रह गयी थी, ये उसके पति की खुद की करतूतों की वजह से हुआ था। जिस इंसान ने कभी अपने घर के लोगों की कोई परवाह न कि हो, हमेशा अपने मन की किया हो, एक वक्त ऐसा आता है कि उसकी अहमियत कम हो जाती है।
2. वो खुद 8 9 महीने से बिना किसी से कुछ बताये लापता हो गया था, कुछ सूत्रों से पता लगा था कि वो इस गांव के नियम कानून, उसकी सदियों से चली आ रही प्रतिष्ठा को दरकिनार करके, अपने घरवालों को छोड़कर, अपने पत्नी और बेटी को छोड़कर सदा के लिए बाहरी सांसारिक दुनिया में जीने के लिए चला गया था, जहां हर तरह के गलत काम होते थे और उनमे उसको मजा आने लगा, कुछ पता नही था कि वो कहाँ है और आएगा भी या नही।
3. रजनी तो वैसे भी अकेली ही जीवन बिता रही थी चाहे उसका पति हो या न हो उसके जीवन में कोई रस या उमंग नही था, अब तो वो उसे छूता भी नही था, छूने की बात तो बहुत दूर थी वो रजनी को मानता ही नही था, वो तो हमेशा ही कामाग्नि में जलती रहती थी, इसलिए रजनी ने भी उसे अपने दिल से निकल दिया था पर वो अंदर से उदास रहती थी।
4. जब रजनी के सामने ये बात आई कि वह अपने बाबू जी के साथ रह सकती है तो वो अंदर ही अंदर खिल उठी। रजनी का अपने बाबू से बचपन से ही बहुत लगाव था, वो अपने पिता की लाडली थी, हमेशा से ही वो अपने पिता के लिए एक मित्र बनकर रही है। जब उसकी शादी में उसकी बिदाई हो रही थी तो उसके बाबू जी उसकी जुदाई में बेहोश हो गए थे, रजनी को भी होश नही था वो भी ससुराल में काफी दिनों तक रोती रही थी और इधर रजनी के पिता अपनी बेटी के वियोग में बीमार भी पड़ गए थे काफी झाड़ फूक के बाद जाके ठीक हुए थे।
उसके पिता भी रजनी के अंदर अपनी पत्नी की छवि देखते थे क्योंकि रजनी अपनी माँ की तरह दिखती थी पर असलियत मे वो अपनी माँ से कहीं ज्यादा सुंदर और कामुक औरत थी।
वैसे भी रजनी ससुराल में भी अकेली ही थी बिना पति के क्या ससुराल, वो मन ही मन अपने बाबू जी के पास आना चाहती थी, पर उसने कभी ये जिक्र नही किया था और जब ये प्रस्ताव उनके सामने आया तो वह मना नही कर पाई।
वैसे भी मायके में लड़कियां ज्यादा स्वछंद और खुले रूप में रह सकती है, ससुराल की तरह वहां ज्यादा कोई बंदिश नही होती, जैसे चाहो वैसे रहो, जैसा मन में आये पहनो।
रजनी को कहीं न कहीं ये अहसास था कि उसका पति वापिस नही आएगा अब, क्योंकि गांव ही उसे स्वीकार नही करेगा, वो सारे नियम क़ानून तोड़कर बाहरी दुनिया में मजे लेने गया था उसे अब कोई स्वीकार नही करेगा।
एक तरीके से वो अब विधवा सी हो गयी थी, और अगर वो आ भी गया तब भी वो ससुराल जाने वाली नही अब, अब वो ही घर जमाई बनके मायके में रहेगा अगर आएगा तो, पर ऐसा कभी होगा ही नही, इसलिए अब उसका रास्ता साफ था, वो तो अब अपने बाबू जी के ही साथ रहना चाहती थी, उसने तो शादी से पहले भी कई बार अपने बाबू से कहा था कि- मुझे नही करनी शादी वादी, मैं तो अपने बाबूजी के ही साथ रहूंगी, इस पर उसके बाबू जी हंस देते और कहते- बेटी ये तो नियम है सृष्टि का।
पर अब सब बदलने वाला था अब वो हो रहा था जो रजनी का दिल चाहता था।
इसलिए रजनी बिना ज्यादा देर किए अपने बाबू जी के पास मायके में आ गयी।
अन्य पात्र-
सुखिया काकी- सुखिया काकी यही कोई 60 62 साल की होंगी। हालांकि वो उसकी दादी की उम्र की थी पर रजनी बचपन से ही उन्हें काकी कहती थी।
सुखिया काकी रजनी के मायके में पड़ोस में ही रहती थी हालांकि गांव में घर थोड़ा दूर दूर थे पर एक सुखिया काकी का ही घर था जो रजनी के घर के काफी नजदीक था।
सुखिया काकी के घर में केवल उसकी 2 बेटियां थी जिनकी शादी हो चुकी थी वो अब अकेली ही रहती थी, ज्यादातर वो रजनी के घर पर ही रहती थी अक्सर खाना भी उनका यहीं बन जाता था।
सुखिया काकी ने रजनी को बचपन से ही पाला पोशा था और उस वक्त जब रजनी की माँ का देहान्त हो गया था तो सुखिया काकी ने ही रजनी और उसके भाई अमन को पाल पोश के बड़ा किया था इसलिए सुखिया काकी को रजनी अपनी माँ ही मानती थी और उनसे अपने दिल की हर बात कह देती थी।
सुखिया काकी को रजनी ने ही कहा था कि -
काकी आप यहीं रहा करो न हमारे घर, आप भी अकेली ही रहती हो अपने घर में, मेरे साथ ही रहो आपका खाना पीना तो मैं यहीं बना ही देती हूं, आप इस उम्र में क्यूं इतना काम करती हो। मेरे साथ ही रह करो अब मैं आ गयी हूं न।
तो काकी बोली- बेटी तू कहती तो सही है। मेरा भी मन करता है कि मैं तेरे साथ ही रहूं, तेरे साथ मुझे भी सुकून मिलता है मन भी लगा रहता था, पर उधर भी देखभाल तो करना ही पड़ेगा न, अब अगर उधर बिल्कुल न जाऊं तो सब खराब हो जाएगा, साफ सफाई भी करना रहता है, एक गाय है उसको भी चार पानी देना पड़ता है, पर मैं सुबह शाम तेरे पास ही तो रहती हूं, देख तू खाना भी मेरा यहीं बना देती है तो खाना खाने के लिए तो आती ही हूं।
तो रजनी बोली- अरे मेरी प्यारी काकी माँ तुमने मुझे पाल पोश ले बड़ा किया है क्या मेरा इतना भी फ़र्ज़ नही की मैं अब इस उम्र में तुम्हारा काम संभाल लूं, देखो अब मैं आ गयी हूं न तो मैं अब इस घर का और उस घर का, दोनों घर का काम संभाल लूंगी, आप बस मेरे साथ ही रहा करो,
हाँ अगर घूमे फिरने और देखभाल करने या टहलने के लिए जाना हो तो उधर चली जाया करो, पर अब मेरे साथ ही रहो, मुझे तुम्हारा और बाबूजी का साथ बहुत अच्छा लगता है।
तो काकी बोली- अच्छा मेरी बिटिया ठीक है, पर तू अकेले ही कितना काम करेगी, और मैं अगर बिल्कुल बैठ गयी तो मेरे शरीर में भी तो जंग लग जाएगा न, काम करने की तो हम गांव के लोगों को आदत होती है बेटी, इसलिए मुझे काम करने से न रोक, नही तो मैं भी जल्दी ही ऊपर चली जाउंगी बीमार होके, और रही बात तेरे साथ ही रहने की तो मैं तेरे साथ ही रहूंगी, पर अपने बाबू जी से तो पूछ लेती एक बार।
इस पर रजनी बोली- बाबू जी मेरी बात कभी नही टालते, और उन्हें इस बात से क्यों परेशानी होगी? ठीक है काकी जैसा आपको ठीक लगे आप काम करो पर ज्यादा नही।
काकी- ठीक है मेरी बिटिया।
(ऐसी है सुखिया काकी)
(रजनी के ससुर ने ऐसा क्यों बोला कि "मेरा दिल कहता है कि आने वाले वक्त में तुझे भरपूर सुख मिलेगा" इसके बारे में कहानी में आपको आगे चलकर पता लग जायेगा, इसके अलावा इस गांव पर क्या ऐसा काला साया था जो इतने ईमानदार लोग अच्छे लोग, जिन्होंने कभी कुछ गलत किया ही नही फिर भी उन लोगों के साथ इतना गलत हो रहा था कि धीरे धीरे लोग कम हो रहे थे, अपनो को खो रहे थे, जन्मदर बहुत कम था और मृत्युदर ज्यादा,
जो एक बैलेंस बिगड़ गया था उसका रास्ता क्या है?
क्या होगा इसका हल?
कैसे बचेगा इस गांव का अस्तित्व?
कहानी में आगे पता चलेगा)
Wo sb to thik bhai but jaldi update dene ki kosis karo