Update-7
उदयराज बैलों को चारा डाल कर आया और आते ही काकी से पूछा- रजनी कहाँ गयी?
काकी- वो रात का खाना बनाने अंदर रसोई में गयी है।
(उदयराज भी सुखिया को काकी ही बुलाता था)
उदयराज- काकी आज गर्मी कितनी है न देखो मैं कितना पसीना-पसीना हो गया, बैलों को चारा डालते-डालते, ये नया बैल जो पिछले महीने खरीदा है न, इसके बड़े नखरे हैं सूखा भूसा तो खाता ही नही है बिल्कुल, जब तक उसमे हरी घास काटकर न मिलाओ, दूसरा वाला पुराना बैल बहुत सीधा है जो दे दो खा लेता है।
इसी नए के चक्कर में रोज घास को मशीन में डालकर काटना पड़ता है और इतना काम बढ़ जाता है। सोच रहा हूँ कुएं पे जा के नहा लूँ।
ऐसा कहते हुए उसने अपनी बनियान निकल दी और खाट पर बैठ गया, काकी जो पंखा बच्ची को कर रही थी वो अब उदयराज को करने लगी स्नेहपूर्वक, और उसके इस उम्र में भी गठीले शरीर को देखते हुए बोली- हां तो जा के नहा ले न कुएँ के ठंडे ठंडे पानी से राहत मिल जाएगी, रस्सी कुएँ पर ही है बाल्टी लेता जा घर के अंदर से, साबुन भी ले लेना कुएं पर होगा नही, रजनी ने दोपहर को हटा दिया था वहां से।
उदयराज खाट से उठा और अंगौछा कन्धे पे रख के घर के अंदर जाने लगा।
(उदयराज के घर का मुख्य दरवाज़ा पुर्व की तरफ था, घर पक्का बना हुआ था, घर में एक आंगन और चारों तरफ चार कमरे थे उन चार कमरों के पीछे एक छोटी सी कोठरी भी थी उस कोठरी के ऊपर घर के पीछे लगे बरगद के पेड़ की ठंडी छाया आती थी जिससे वो कोठरी गर्मियों के मौसम में दिन में भी ठंढी रहती थी, पहले जो औरतें घर में रहा करती थी वो अक्सर कोठरी में ही खाट बिछा के वही लेटती थी। अब तो खैर घर में रजनी और काकी ही थे। घर के मुख्य दरवाजे और आंगन के बीच एक बरामदा था, उन चार कमरों में जो दक्षिण की तरफ कमरा था वो रसोई थी। उसके ठीक सामने जो कमरा था उसके बगल में बाथरूम था और बाथरूम के सामने एक चौकी थी जिसपर पानी से भरी बाल्टियां या खाली बाल्टियां भी रखी रहती थी।
घर के आगे बड़ा सा द्वार था, द्वार पर कई तरह के पेड़ थे जैसे नीम, महुआ, अमरूद, सफेदा, आम, गूलर।
घर के ठीक सामने करीब 100 मीटर दूर कूआं था जो सफेद रंग से पुता हुआ चारों तरफ से क्यारियों से घिरा हुआ बहुत ही सुंदर लगता था, उन क्यारियों में अनार के पेड़ लगे हुए थे जिनपर फूल आ गए थे इसके अलावा वहां कई प्रकार की सब्जियां और फूल भी लगाए हुए थे जो कुएं के आने वाले पानी से हमेशा हरे भरे रहते थे, कुएं से आगे गांव का आम रास्ता था जिसपर इक्के दुक्के लोग आते जाते रहते थे और जब उन्हें उदयराज इधर उधर दिख जाता था तो वो "जय राम जी की मुखिया" कहना नही भूलते थे।
घर के उत्तर की तरफ पशुओं का दालान था और उसके विपरीत दिशा में आम का बाग था)
उदयराज ऊपर से निवस्त्र था बस धोती पहन रखी थी, घर में जाते हुए जब वो बरामदा पार करके आंगन तक पहुंचा तो सामने का दृश्य देखकर स्तब्ध रह गया।
सामने रजनी पीढ़े पर बैठ के सिलबट्टे पर दाल पीस रही थी, पीसने की वजह से वो काफी झुकी हुई थी जिससे उसकी बड़ी बड़ी गुदाज चुचियाँ साफ दिख रही थी, चुचियों के बीच की घाटी इतनी मादक थी कि कुछ सेकेंड के लिए उदयराज देखता रह गया, दाल पीसने की वजह से वो बार बार आगे पीछे हो रही थी जिससे मोटी मोटी चूचियाँ चोली में हिल रही थी मानो अभी उछल कर बाहर आ जाएंगी। रजनी ने गर्मी की वजह से चुन्नी बगल में रख दी थी।
उदयराज यह देखकर थोड़ा झेंप गया पर एक ही पल में उसके अंदर तक रोमांच दौड़ गया, उसे अपने मन में अपनी ही सगी बेटी की सुडौल चुचियाँ देखते हुए ग्लानि हुई और वह बनावटी खांसी करता हुआ आंगन में आ गया।
उसे देखकर रजनी भी अपनी अवस्था देखकर थोड़ा झिझक गयी और चुन्नी उठाकर चुचियों को ढकते हुए अपने बाबू के बलिष्ट ऊपरी नंगे बदन को देखकर थोड़ी शरमा सी गयी, जब से रजनी मायके आयी थी आज पहली बार उसने अपने बाबू को इस तरह नंगा देखा था, इससे पहले उसने अपने बाबू को इस तरह निवस्त्र कई साल पहले देखा था पर इस समय वो पहले से ज्यादा मजबूत और बलिष्ट दिख रहे थे। अक्सर वो बनियान ही पहने रहते थे पर आज एकदम से हल्के बालों से भरी चौड़ी छाती और मजबूत भुजाओं को देखकर वो भी अंदर तक न जाने क्यों सिरह सी गयी।
फिर मंद मंद मुस्कुराते हुए बोली- क्या हुआ बाबू, कुछ चाहिए क्या?
उदयराज- हां बेटी, वो बाल्टी लेने आया था, काफी गर्मी है न तो मन किया कि कुएं पर जा के नहा लूं।
रजनी- हाँ बाबू क्यों नही, साबुन भी लेते जाना, वहीं रखा है, और तौलिया मैं पहुँचा दूंगी आप जा के नहा लो।
उदयराज- ठीक है मेरी रानी बिटिया।
इतना कहकर वो बाल्टी उठाकर जाने लगा फिर न जाने क्यों वो रुका और पलटकर देखा तो रजनी उसे ही देख रही थी, नजरें मिलते ही रजनी मुस्कुरा दी और वो भी मुस्कुराते हुए बाहर कुएं पे चला गया।