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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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S_Kumar

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DEAR
S_kumar brother....

आपकी स्टोरी का जो प्लाट है वैसी स्टोरी में बर्षों से सर्च कर रहा था.....

Same वही Taste है.......

जो मैं चाहता था......

THANKS FOR NICE THREAD.....

:kneel: :thankyou:
सबसे पहले तो आपका और अन्य साथियों का बहुत बहुत धन्यवाद भाई। यह मेरी लाइफ की पहली स्टोरी है और मुझे नही पता था कि इसको इतना पसंद किया जाएगा,
आप लोग मेरी स्टोरी को इतना पसंद कर रहे है इस बात ने मेरे हौसले को उचाईयों तक पहुचा दिया है। मैं पूरी कोशिश करूंगा कि जल्दी जल्दी updates दूँ।
आप लोगों को मेरी लेखनी पसंद आई इसके लिए आप लोगों को पुनः धन्यवाद।
 

rajeev13

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विश्वास नहीं होता की आपकी पहली कहानी है। :derisive:
अगली कड़ी की प्रतीक्षा में . . . . . :bounce:
 

S_Kumar

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Update-6

रजनी अपनी बेटी को दूध पिलाती हुई बाहर आ गई और खाट पर बैठ गयी। काकी वहीं नीचे खाट पर बगल में पटरे पर बैठी थी।

रजनी बोली- काकी आज क्या बनाऊं खाने में शाम के 6 तो बज गए उसकी भी तैयारी करनी है न।

काकी- अरे बेटी कुछ भी बना ले जो तेरा मन कहे।


रजनी की बायीं चूची में दूध खत्म हो गया तो उसने अपनी बेटी को दायीं चूची का दूध पिलाने के लिए बड़ी लापरवाही से दूसरी तरह गुमाया और जिस चूची का दूध खत्म हो गया था उसको चोली के अंदर कर लिया फिर दायीं चूची को काकी के सामने ही बड़ी लापरवाही से चोली को ऊपर सरका के बाहर निकाला, चूची बड़ी और कसी होने की वजह से उछलकर बाहर उजागर हो गयी, उसकी चूची काफी बड़ी, मोटी और गोरी गोरी थी, इतनी गोरी चूची पर बड़ा सा गुलाबी निप्पल किसी को भी पागल कर देता, निप्पल बहुत मनमोहक था अलग ही कहर ढा रहा था, चूची उसकी इतनी सख्त और बड़ी थी कि वो रजनी के एक हाँथ में नही समा रही थी। दूध उतरने की वजह से उन दिनों रजनी की चूचियाँ काफी बड़ी, सख्त और गदराई सी हो गयी थी जो उसके सीने को अलग ही उभार देती थी।

रजनी ने हथेली में अपनी चूची लेकर आगे वाली तर्जनी और मध्यमा उंगली को गुलाबी- गुलाबी निप्पल के दोनों तरफ रखा और निप्पल को बेटी के मुंह में डाल दिया, उंगली से निप्पल के आस पास पकड़ने और दबाव बनने पर निप्पल से एक-दो बूंद दूध की टपक गयी।

यह सब काम वह बिना काकी की तरफ देखे कर रही थी, उसे आभास भी नही था कि काकी उसको देख रही है। वैसे भी वहां कोई पुरुष तो था नही, तो वो बेधकड होके ये कर रही थी।

एकाएक उसने काकी की तरफ देखा जो उसे ही देख रही थी।

रजनी- क्या हुआ काकी (और मुस्कुरा दी)

काकी भी मुस्कुराते हुए- कुछ नही अपनी बेटी का मनमोहक यौवन देखकर अपने दिन याद आ गए, बहुत खूबसूरत और मादक हैं ये।

रजनी- धत्त....काकी आप भी न । (रजनी थोड़ी झेंप गयी)

काकी- सच में तेरी चूची बहुत खूबसूरत है।

(काकी के मुँह से "चूची" शब्द सुनकर रजनी गनगना सी गयी)

रजनी- काकी...अब बस भी करो। अपनी ही बेटी को छेडोगी अब आप। वो तो यहां पर बस मैं और आप ही थे तो मैं थोड़ा बेपरवाह सी हो गयी।

काकी- अरे तो क्या हुआ, तेरी काकी हूं मैं, तेरी माँ समान। पर सुन मेरी बेटी कभी भी खुले में या खुले आसमान के नीचे बच्चे को दूध पिलाना हो तो हमेशा चूची को ढककर ही पिलाया कर, चूची को कभी भी बच्चे को दूध पिलाते वक्त ऐसे उजागर नही करते।

(बार बार काकी के मुंह से "चूची" शब्द सुनकर उसे सिरहन सी हुई)

रजनी- पर क्यों काकी।

काकी- क्यूंकि इससे दूध में नज़र लग सकती है और बच्चे की तबियत पर असर पड़ सकता है।

रजनी- हां काकी ये बात तो आपने बिल्कुल सही कही, अब मैं आगे से ख्याल रखूंगी।


और फिर काकी उठकर अंदर से रजनी की चुनरी ले आयी जो रजनी अपनी बेटी को अंदर से लाते वक्त वहीं भूल आयी थी, और उसे रजनी ने अपने ऊपर डालकर ढक लिया।

काकी- पर बिटिया जो भी हो दामाद जी को तो जन्नत का मजा मिलता होगा (काकी ने फिर छेड़ते हुए बोला)

रजनी- मजा तो तब मिलेगा न जब उन्हें इसकी कद्र होती। आपको तो मैंने सबकुछ बता ही रखा है। (ये कहते हुए वो थोड़ा उदास हो गयी) अब मुझे उनसे कोई मतलब नही है। जब उन्हें नही तो मुझे भी नही उनकी परवाह।

काकी- ओह्ह मेरी बेटी मुझे माफ़ कर देना, मुझे ध्यान ही नही रहा, उस नासमझ की बुद्धि में न जाने क्या घुस गया है जो इतनी सुंदर, मदमस्त पत्नी की कोई परवाह नही। तूने सही किया बेटी। परंतु तू दुखी मत हो बेटी समय हमेशा एक जैसा नही रहता।

हम स्त्रियों की किस्मत में तड़पना ही लिखा है। अब मुझे ही देख तेरे काका के जाने के बाद मैंने कैसे अपनी जिंदगी काटी है मुझे ही पता है।

रजनी- हां काकी वो तो मैं जानती ही हूँ। पर अब हम साथ मिलकर रहेंगे। इसलिए ही तो मैं यहां आ गयी हूँ। अच्छा काकी मैंने जो पूछा वो तो तुमने बताया नही।


(रजनी ने बात पलटते हुए कहा, दरअसल वो काकी से अभी इस टॉपिक पर बात करने से शरमा रही थी क्योंकि वो जानती थी कि काकी मजाकिया स्वभाव की है और धीरे धीरे वो गंदी बातें छेड़ देंगी, तो वो भी उसमें रम जाएगी फिर खाना बनाने में देरी होगी, हालांकि उसे भी ये सब बहुत पसंद था पर अभी वो थोड़ा झिझक रही थी)

काकी- क्या पूछा तूने मैं तो भूल ही गयी।

रजनी- अरे बड़ी भुलक्कड़ हो गयी है मेरी काकी भी (रजनी ने दूध पी चुकी बेटी को खाट पे लिटाते हुए कहा), मैन पूछा था न कि खाने में क्या बनाऊं?

काकी- अच्छा हां, तो तू बना ले न जो तुझे पसंद हो।

रजनी- जब से आई हूं 3 4 दिन से मैं अपनी पसंद का ही बना रही हूँ।

काकी- अच्छा तो एक काम कर आज अपने बाबू जी के पसंद का कुछ बना और उन्हें बताना नही, खुश हो जाएंगे।

रजनी- हां काकी ये सही है, उनको दाल पकवान पसंद है बहुत तो मैं वही बनाती हूँ।


इतना कहकर रजनी काकी को खाट पर लेटी बेटी को पंखा करने को बोलकर रसोई में रात का खाना बनाने चली जाती है। काकी बोलती है कि मैं भी आती हूं मदद करने तो वो उनको मना कर देती है और फिर काकी बच्ची को पंखा करने लगती है।
 
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बहुत बहुत बढ़िया लिख रहे हो भाई । कहानी भी शानदार लग रही है । और लिखने का अंदाज भी जबरदस्त है । ये एक बाप बेटी के अवैध सम्बन्धों पर आधारित स्टोरी प्रतित हो रही है ।

सच में नये नये राइटर्स ने नामी गिरामी पुराने राइटरों का सिंहासन डांवाडोल सा कर दिया है । कांग्रेचुलेशन फार योर स्टोरी ।
 

S_Kumar

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यह मेरी पहली कहानी है भाई, सच मे
 
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S_Kumar

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बहुत बहुत बढ़िया लिख रहे हो भाई । कहानी भी शानदार लग रही है । और लिखने का अंदाज भी जबरदस्त है । ये एक बाप बेटी के अवैध सम्बन्धों पर आधारित स्टोरी प्रतित हो रही है ।

सच में नये नये राइटर्स ने नामी गिरामी पुराने राइटरों का सिंहासन डांवाडोल सा कर दिया है । कांग्रेचुलेशन फार योर स्टोरी ।
बहुत बहुत शुक्रिया आपका
 
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S_Kumar

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यह
Story interesting hoti ja rhi h brother....lagta h kaki hi kuch kand krwa ke manegi... waiting for next update.. brother..
पढ़ते रहिये सब पता लग जायेगा।
 
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S_Kumar

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Update-7

उदयराज बैलों को चारा डाल कर आया और आते ही काकी से पूछा- रजनी कहाँ गयी?

काकी- वो रात का खाना बनाने अंदर रसोई में गयी है।


(उदयराज भी सुखिया को काकी ही बुलाता था)

उदयराज- काकी आज गर्मी कितनी है न देखो मैं कितना पसीना-पसीना हो गया, बैलों को चारा डालते-डालते, ये नया बैल जो पिछले महीने खरीदा है न, इसके बड़े नखरे हैं सूखा भूसा तो खाता ही नही है बिल्कुल, जब तक उसमे हरी घास काटकर न मिलाओ, दूसरा वाला पुराना बैल बहुत सीधा है जो दे दो खा लेता है।
इसी नए के चक्कर में रोज घास को मशीन में डालकर काटना पड़ता है और इतना काम बढ़ जाता है। सोच रहा हूँ कुएं पे जा के नहा लूँ।


ऐसा कहते हुए उसने अपनी बनियान निकल दी और खाट पर बैठ गया, काकी जो पंखा बच्ची को कर रही थी वो अब उदयराज को करने लगी स्नेहपूर्वक, और उसके इस उम्र में भी गठीले शरीर को देखते हुए बोली- हां तो जा के नहा ले न कुएँ के ठंडे ठंडे पानी से राहत मिल जाएगी, रस्सी कुएँ पर ही है बाल्टी लेता जा घर के अंदर से, साबुन भी ले लेना कुएं पर होगा नही, रजनी ने दोपहर को हटा दिया था वहां से।

उदयराज खाट से उठा और अंगौछा कन्धे पे रख के घर के अंदर जाने लगा।

(उदयराज के घर का मुख्य दरवाज़ा पुर्व की तरफ था, घर पक्का बना हुआ था, घर में एक आंगन और चारों तरफ चार कमरे थे उन चार कमरों के पीछे एक छोटी सी कोठरी भी थी उस कोठरी के ऊपर घर के पीछे लगे बरगद के पेड़ की ठंडी छाया आती थी जिससे वो कोठरी गर्मियों के मौसम में दिन में भी ठंढी रहती थी, पहले जो औरतें घर में रहा करती थी वो अक्सर कोठरी में ही खाट बिछा के वही लेटती थी। अब तो खैर घर में रजनी और काकी ही थे। घर के मुख्य दरवाजे और आंगन के बीच एक बरामदा था, उन चार कमरों में जो दक्षिण की तरफ कमरा था वो रसोई थी। उसके ठीक सामने जो कमरा था उसके बगल में बाथरूम था और बाथरूम के सामने एक चौकी थी जिसपर पानी से भरी बाल्टियां या खाली बाल्टियां भी रखी रहती थी।

घर के आगे बड़ा सा द्वार था, द्वार पर कई तरह के पेड़ थे जैसे नीम, महुआ, अमरूद, सफेदा, आम, गूलर।

घर के ठीक सामने करीब 100 मीटर दूर कूआं था जो सफेद रंग से पुता हुआ चारों तरफ से क्यारियों से घिरा हुआ बहुत ही सुंदर लगता था, उन क्यारियों में अनार के पेड़ लगे हुए थे जिनपर फूल आ गए थे इसके अलावा वहां कई प्रकार की सब्जियां और फूल भी लगाए हुए थे जो कुएं के आने वाले पानी से हमेशा हरे भरे रहते थे, कुएं से आगे गांव का आम रास्ता था जिसपर इक्के दुक्के लोग आते जाते रहते थे और जब उन्हें उदयराज इधर उधर दिख जाता था तो वो "जय राम जी की मुखिया" कहना नही भूलते थे।

घर के उत्तर की तरफ पशुओं का दालान था और उसके विपरीत दिशा में आम का बाग था)

उदयराज ऊपर से निवस्त्र था बस धोती पहन रखी थी, घर में जाते हुए जब वो बरामदा पार करके आंगन तक पहुंचा तो सामने का दृश्य देखकर स्तब्ध रह गया।

सामने रजनी पीढ़े पर बैठ के सिलबट्टे पर दाल पीस रही थी, पीसने की वजह से वो काफी झुकी हुई थी जिससे उसकी बड़ी बड़ी गुदाज चुचियाँ साफ दिख रही थी, चुचियों के बीच की घाटी इतनी मादक थी कि कुछ सेकेंड के लिए उदयराज देखता रह गया, दाल पीसने की वजह से वो बार बार आगे पीछे हो रही थी जिससे मोटी मोटी चूचियाँ चोली में हिल रही थी मानो अभी उछल कर बाहर आ जाएंगी। रजनी ने गर्मी की वजह से चुन्नी बगल में रख दी थी।

उदयराज यह देखकर थोड़ा झेंप गया पर एक ही पल में उसके अंदर तक रोमांच दौड़ गया, उसे अपने मन में अपनी ही सगी बेटी की सुडौल चुचियाँ देखते हुए ग्लानि हुई और वह बनावटी खांसी करता हुआ आंगन में आ गया।

उसे देखकर रजनी भी अपनी अवस्था देखकर थोड़ा झिझक गयी और चुन्नी उठाकर चुचियों को ढकते हुए अपने बाबू के बलिष्ट ऊपरी नंगे बदन को देखकर थोड़ी शरमा सी गयी, जब से रजनी मायके आयी थी आज पहली बार उसने अपने बाबू को इस तरह नंगा देखा था, इससे पहले उसने अपने बाबू को इस तरह निवस्त्र कई साल पहले देखा था पर इस समय वो पहले से ज्यादा मजबूत और बलिष्ट दिख रहे थे। अक्सर वो बनियान ही पहने रहते थे पर आज एकदम से हल्के बालों से भरी चौड़ी छाती और मजबूत भुजाओं को देखकर वो भी अंदर तक न जाने क्यों सिरह सी गयी।

फिर मंद मंद मुस्कुराते हुए बोली- क्या हुआ बाबू, कुछ चाहिए क्या?

उदयराज- हां बेटी, वो बाल्टी लेने आया था, काफी गर्मी है न तो मन किया कि कुएं पर जा के नहा लूं।

रजनी- हाँ बाबू क्यों नही, साबुन भी लेते जाना, वहीं रखा है, और तौलिया मैं पहुँचा दूंगी आप जा के नहा लो।

उदयराज- ठीक है मेरी रानी बिटिया।


इतना कहकर वो बाल्टी उठाकर जाने लगा फिर न जाने क्यों वो रुका और पलटकर देखा तो रजनी उसे ही देख रही थी, नजरें मिलते ही रजनी मुस्कुरा दी और वो भी मुस्कुराते हुए बाहर कुएं पे चला गया।
 
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