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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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Jangali

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Update- 43

(तो चलिए उदयराज और रजनी को सोने देते हैं और चलते हैं नीलम के घर, यहां कहानी में थोड़ा पीछे आना पड़ेगा, आइए थोड़ा पीछे जाकर नीलम की जिंदगी में देखें क्या क्या घटित हुआ।)

उस दिन अपनी माँ को वचन देने के बाद, कि कभी भी बाबू को ऐसा कुछ हुआ तो मैं वही करूँगी जो आपने सपने में देखा था, नीलम बहुत खुश थी, एक तो वो इस बात से खुश थी कि उसकी माँ ने ऐसा सपना देखा और सपने में जैसा हुआ था उसे समस्या का समाधान मानके अपनी बेटी से वैसा ही करने का वचन लिया, दूसरा उसकी माँ इस तरह की बातें आज जीवन में पहली बार करके उसके मन के और नजदीक आ गयी थी, परंतु उसने फिर सोचा कि नही वो अपने बाबू बिरजू को खुद ही अपना रसीला यौवन दिखा दिखा के रिझाएगी, आखिर कभी तो उसके बाबू उसपर टूट पड़ेंगे तब आएगा मजा, आखिर एक प्यासा मर्द कब तक अपने आप को रोकेगा। अपने बाबू की मन की हल्की हल्की मंशा को नीलम जान चुकी थी और वो ये भी जानती थी कि उसकी अम्मा अब बाबू को अपना मक्ख़न नही दे पाती हैं खाने को और बिना मक्ख़न के मर्द कैसे और कब तक रहेगा।

उस दिन छत पर गेहूं फैलाते वक्त जब से उसने अपने बाबू बिरजू का काला खुला हुआ लन्ड देखा था, तभी से वो बहुत विचलित थी और कामाग्नि में जल रही थी, बिरजू को तो ये बात पता भी नही थी कि उसकी बेटी उसका क्या देख चुकी है, पर जब छुप छुप के बाहर काम करते हुए वो अपने बाबू को निहारती और बिरजू द्वारा देख लिए जाने पर जान बूझ कर मुस्कुराते हुए इधर उधर देखने लगती तो बिरजू को भी कुछ कुछ होता था।

नीलम रंग में रजनी से बस हल्का सा कम थी पर शरीर में थोड़ा सा भारी थी, नीलम की मस्त चूचीयाँ कयामत ला देने वाली चूचीयों की श्रेणी में आती थी और नैन नक्श में वो रजनी को बराबर का टक्कर दे देती थी, उसकी लंबाई रजनी से थोड़ी कम थी जिस वजह से वो रजनी से थोड़ा ज्यादा भारी दिखती थी, जब वो चलती थी तो उसकी भारी गांड देख के उसके बाबू का मन डोल ही जाता था, अपनी सगी शादीशुदा बेटी पर उसका मन आसक्त होता था और नीलम यही तो चाहती थी।

नीलम की शादी हुए चार साल हो चुके थे पर अभी तक उसको बच्चा नही हुआ था, बच्चे के लिए मन ही मन वो बहुत तरसती थी, इस वजह से उसने नियमित रूप से पूजा पाठ भी शुरू कर दिया था, जैसा भी जो लोग करने के लिए बोलते थे वो उसको नियम से करती थी, अपने पति से उसका इस बात को लेकर कभी कभी मनमुटाव और हल्का फुल्का झगड़ा भी हो जाता था, और जब उसका दिमाग ज्यादा खराब होता तो वो ससुराल से मायके आ जाती थी और तीन चार महीने रहकर ही जाती थी। नीलम का अपने पति से बच्चे को लेकर इसलिए झगड़ा होता था क्योंकि नीलम को बहुत अच्छे से पता था कि उसके पति का वीर्य बहुत पतला था और वो इसी को इसका कारण मानती थी, अपने पति को वो इसका इलाज कराने के लिए बोलती तो उसका पति अपनी मर्दानगी पर लांछन समझकर चिढ़ जाता था और अक्सर झगड़ा कर लेता था हालांकि नीलम से वो डरता था, नीलम उसपर भारी पड़ती थी, उसपर ही क्या वो अपने ससुराल में दबदबा बना कर रहती थी, पर दिल की बहुत अच्छी थी, ससुराल में जब भी रहती सारा घर संभाल कर रखती थी, उसकी सास भी उससे ज्यादा बहस नही करती थी, पर वो ये मानने को तैयार नही होती थी कि उसके बेटे में कमी है, खैर नीलम भी अपनी सास के सामने कभी इस बात का जिक्र नही करती थी और न ही करना ठीक समझती थी, पर चिंता तो सबको ही थी, नीलम की सास को भी और नीलम की माँ को भी, बस चिंता नही थी तो उसके पति को, वो बोलता था कि जब जो होना होगा हो जाएगा, मैं क्या करूँ और नीलम इस बात से चिढ़ भी जाती थी और अक्सर वो अपने मायके आ जाती थी उसके ससुराल में भी काम धाम संभालने वाली उसकी देवरानी और उससे बड़ी जेठानी थी तो उसकी वजह से वहां काम रुकता नही था, जिस वजह से वो अक्सर अपने मायके में रह लेती थी।

एक दिन नीलम की माँ ने नीलम से कहा- बेटी तेरे नानी के यहां एक बुढ़िया है जो ओझाई का काम करती है छोटा मोटा, लोग कहते हैं कि वो कुछ जड़ी बूटियां देती है जिससे बच्चे न होने की समस्या हल हो जाती है, पता नही कितना सच है कितना झूट, मेरा तो मन कर रहा है कि किसी दिन तेरे नानी के घर जा के मिल कर आऊं उस बुढ़िया से, तू ठीक लगे तो बोल मैं जाती हूँ किसी दिन।

नीलम- अम्मा, जो भी जैसा भी लोग बोलते हैं मैं सब करती हूं, अगर आपको ऐसा लगता है तो किसी दिन चली जाओ और मेरी जरूरत पड़े तो मैं भी चलूंगी।

नीलम को माँ- अभी नही पहले मैं जाउंगी अकेले फिर देखो वो क्या बताती है, क्या कहती है, काफी पहले मैंने सुना था उसके बारे में, पता नही अब वो बुढ़िया जिंदा भी है या नही।

नीलम- अम्मा मेरा मन तो नही मानता की मेरे अंदर कोई कमी है, वैसे भी हमारे गांव में बच्चे जल्दी होते कहाँ हैं ये बात तो आप भी जानती हो न, क्या पता वही असर हो, इसी समस्या का हल ढूंढने के लिए तो रजनी दीदी और बड़े बाबू देखो तीन चार दिन कितना डरावना सफर करके महात्मा से मिलकर उस समस्या का हल लेकर आये हैं अब वो जैसे ही यज्ञ करेंगे सब ठीक हो जाएगा और एक बात और भी है जो मैं तुम्हे बता चुकी हूं, मैं उन्हें बहुत बोलती हूँ इलाज़ कराने के लिए पर वो मेरी सुनते ही कहाँ हैं, उन्हें तो जैसे कोई चिंता ही नही है।

नीलम की माँ- देख बेटी वजह चाहे जो भी हो पर कहीं कुछ पता चलता है जो जाकर कर लेने में क्या हर्ज है, तू चिंता न किया कर, तेरी कोख भी ईश्वर जल्द ही भरेंगे मेरा दिल कहता है, तू खुश रहा कर, ईश्वर सबकी सुनता है। मैं जाती हूँ किसी दिन तेरे नानी के घर। वो नही ध्यान देता तो छोड़ तू उसको, तेरी सास तो तेरे को लांछन नही देती न।

नीलम- नही अम्मा लांछन तो नही देती पर वो मुझे कम मानती है, देवरानी और जेठानी को ज्यादा मानती हैं, हालांकि कभी वो सीधा मुझसे नही कहती पर उनके हाव भाव से मुझे लग जाता है।

नीलम की माँ- तू चिंता न कर सब ठीक हो जाएगा मेरी बच्ची।

ऐसा कहकर नीलम की माँ उसको गले लगा लेती है।

नीलम के घर के आगे द्वार पर एक बहुत बड़ा जामुन का पेड़ था और जामुन था भी मीठा वाला, बड़े बड़े और काले काले जामुन लगते थे उनमे, गांव के बच्चे अक्सर जामुन के चक्कर में वहीं डेरा जमाए रहते थे, ज्यादातर बच्चे पेड़ पर चढ़ने की कोशिश करते कि पेड़ पर चढ़कर अच्छे अच्छे जामुन तोड़ेंगे, नीचे गिरकर जामुन बेकार हो जाते हैं, मीठे जामुन होने की वजह से ततैया भी उन्हें खाने ले लिए पेड़ पर मंडराती रहती थी, बच्चे नीलम की मां से डरते थे क्योंकि वह पेड़ पर चढ़ने से डांटती थी, जब भी वो देखती की बच्चे पेड़ पर चढ़ रहे है और ज्यादा शरारत कर रहे है या शोर मचा रहे हैं तो डंडा लेकर उन्हें खदेड़ लेती थी, हालांकि वह ज्यादा फुर्ती से भाग नही पाती थी पर जामुन के पेड़ पर नजर रखती थी कहीं बच्चे उसपर चढ़े न और अपने हाँथ पांव न तुड़वा बैठें।

नीलम ये सब देखकर खूब हंसती थी, अपने घर पे बच्चों के इस तरह आकर खेलना, जामुन खाना और उनका जेब में भर भर के अपने घर ले जाना नीलम को बहुत अच्छा लगता था। बच्चे अक्सर नीलम से ही जामुन खाने और तोड़ने की आज्ञा मांगते थे और जब नीलम बोल देती थी कि जाओ खा लो, तोड़ लो, तो सीना चौड़ा करके जमीन पर पेड़ के नीचे गिरे सारे जामुन बिन लेते थे, कुछ बच्चे बड़ी सी लग्गी लेके आते और अच्छे अच्छे जामुन तोड़कर नीलम को भी देते खुद भी खाते और घर भी ले जाते, नीलम को ये सब देखकर बहुत सुकून मिलता था, इन प्यारे प्यारे मासूम बच्चों और बच्चियों को देखकर। नीलम खुद छोटी छोटी बच्चियों को लग्गी से अच्छे अच्छे जामुन तोड़कर देती थी और जब वो बच्चियां घर से कुछ लेकर नही आई होती थी तो उनकी फ्रॉक के आगे के हिस्से को उठाकर जामुन उसमे भर देती थी, वो छोटी छोटी बच्चियां अपने फ्रॉक को आगे से उठाए उसमे जामुन भरे हुए नन्हे नन्हे कदमों से चलकर अपने घर जाती तो देखकर बहुत अच्छा लगता, नीलम तो उन्हें देखकर बहुत खुश होती थी। नीलम की मां भी बच्चों के मामले में खड़ूस नही थी पर वो उन्हें इसलिए डांटती थी कि कहीं पेड़ से गिर कर चोट न लगा लें।

तो जब तक नीलम के घर के आगे जामुन के पेड़ पर जामुन लगे रहते तब तक उसके घर पेड़ के नीचे गांव के बच्चों का जमावड़ा अक्सर शाम को या दोपहर को लगा रहता था। नीलम भी उनके साथ खाली वक्त में अपना मन बहलाने के लिए या जामुन तोड़ने में उनकी मदद करने के लिए हँसती खिलखिलाती लगी रहती थी, हर उम्र के छोटे बडे बच्चे वहां आते थे जामुन खाने। सब बच्चे नीलम को दीदी कहकर बुलाते थे।

एक दिन नीलम की माँ ने नीलम से और उसके बाबू बिरजू से अगले दिन शाम को नीलम की नानी के घर जाने के लिए कहा तो बिरजू बोला- हाँ ठीक है चली जाओ पर जल्दी आ जाना एक दो दिन में।

नीलम की माँ- अरे नीलम के बाबू मैं कल शाम को जाउंगी और उसके अगले दिन ही आ जाउंगी, मुझे रुकना थोड़ी है वहां। वो तो मैं किसी काम से जा रही हूँ।

बिरजू- कैसा काम?

नीलम की माँ- है कुछ काम, जरूरी है तुम्हे पहले से ही सब बताऊं, जब सफल हो जाएगा तो बता दूंगी, कुछ काम औरतों वाले भी होते हैं मर्दों को नही बताये जाते पहले।

बिरजू हंसता हुआ नीलम को देखकर- अच्छा बाबा ठीक है, जाओ।

अपने बाबू को अपनी तरफ देखते हुए देखकर नीलम शर्मा गयी।

रात को खाना खाने के बाद जब बिरजू बाहर सोने चला गया तो नीलम ने अपनी माँ से कहा- अम्मा अपने जामुन के पेड़ में बहुत जामुन लगे हैं तो तुम कल जामुन भी लेते जाना नाना नानी और मामा मामी के लिए, मैं तोड़ दूंगी।

नीलम की माँ ने पहले तो मना किया फिर नीलम की जिद पर मान गयी।

अगली सुबह नीलम ने अपने बाबू बिरजू को अपना मदमस्त यौवन दिखाने की सोचकर उनके किसी काम से निकलने से पहले ही उसने बोली- बाबू आप जा रहे है काम से।

बिरजू- हाँ बिटिया, क्या हुआ, मेरी बेटी को कुछ काम है क्या मुझसे?

नीलम- हां है तो

बिरजू- तो बोल न शर्माती क्यों है।

नीलम की मां उस वक्त सुबह सुबह लायी हुई घास मशीन के पास बैठकर पीट रही थी। (गांव में क्या होता है कि खेत से घास छीलकर लाने के बाद उसको किसी छोटे डंडे से पीटते हैं ताकि उसकी मिट्टी निकल जाए, फिर उसको मशीन में लगाकर छोटा छोटा काटते हैं और फिर उस घास में भूसा मिलाकर जानवर को खाने को देते हैं तो नीलम की माँ उस वक्त घास को डंडे से पीट रही थी)

नीलम ने आज नहा कर जानबूझ कर घाघरा चोली पहना हुआ था और नीचे काली रंग की पैंटी पहनी हुई थी।

बिरजू अपनी बेटी को आज घाघरा चोली में देखकर निहारे जा रहा था, नीलम मंद मंद अपने बाबू को चोर नज़रों से घूरते हुए देखकर सिरह सिरह जा रही थी और उसे बड़ा मजा आ रहा था।

नीलम- बाबू मेरी जामुन तोड़ने में मदद करो न, अकेले कैसे तोडूं, अम्मा आज नाना के घर जाएंगी तो मैंने सोचा था कि अपने यहां के अच्छे पके हुए जामुन तोड़कर भेजूंगी पर बिना आपके कैसे होगा?

बिरजू- हां तो बेटी चल न तोड़ देता हूँ, इतना कहने में तुझे संकोच क्यों हो रहा है वो भी अपने बाबू से।

नीलम- मुझे लगा क्या पता आप मना कर दो।

बिरजू- मना क्यों कर दूंगा, अपनी प्यारी बेटी की हर इच्छा पूरा करना बाप का फर्ज होता है, चाहे छोटी चीज़ हो या बड़ी।

नीलम- अच्छा तो फिर ठीक है, अब नही शरमाउंगी बोल दूंगी जो भी इच्छा होगी, पूरा करोगे न। (नीलम ने डबल मीनिंग में बोला पर बिरजू अभी समझ न पाया)

बिरजू- क्यों नही करूँगा, मेरी तू ही तो प्यारी सी बेटी है, ऐसा कभी मत सोचना अब ठीक है, चल।

सवेरे की खिली खिली धूप निकल आयी थी, नीलम एक खाट लेके आयी और उसको जामुन के पेड़ के नीचे बिछा दिया और उसपर एक पुराना चादर डाल दिया फिर अपने बाबू से बोली- बाबू आप न इस खाट के बगल में खड़े रहो, मैं पेड़ पर चढ़ती हूँ।

ये सुनकर बिरजू बोला- अरे नही बेटी तू यहीं खाट के पास रह मैं पेड़ पर चढ़कर तोड़ देता हूँ पर नीलम मानी नही क्योंकि उसको पेड़ पे चढ़कर अपने बाबू को कुछ दिखाना था, घाघरा उसने इसी लिये पहना था आज।

नीलम नही मानी, बिरजू ने एक बार नीलम की माँ को देखा जो बैठकर घास पीटने में व्यस्त थी, उसको तो पता भी नही था कि नीलम और बिरजू कर क्या रहे हैं, वो बस डंडे से पट्ट पट्ट की आवाज करते हुए घास पीटे जा रही थी पीछे क्या हो रहा था उसे पता नही और लगातार डंडे ही आवाज से उसे कुछ सुनाई भी नही दे रहा था।

नीलम जामुन के पेड़ पर चढ़ने के लिए अपनी चुन्नी को कमर पर बांधने लगी, बिरजू अपनी बेटी की सुंदरता को मंत्रमुग्द होकर देखे जा रहा था, उसके भीगे बालों की लटें, माथे पे छोटी सी बिंदिया, मांग में सिंदूर, कान की हिलती हुई झुमकियाँ, लाली लगे रसीले होंठ और वो गज़ब के मस्त मोटे मोटे तने हुए, चोली में कसे हुए दोनों जोबन और अपनी कमर में चुन्नी बांधते हुए वो कितनी खूबसूरत लग रही थी, कमर में कस कर चुन्नी बांधने से उसकी दोनों उन्नत चूचीयाँ और भी उभरकर बाहर आ गयी थी।

नीलम ने जैसे ही कमर में चुन्नी बांधकर अपने बाबू की तरफ देखा तो वो उसे ही मंत्रमुग्ध सा देख रहा था, एक पल के लिए नीलम मुस्कुरा उठी अपने बेटी से नज़र मिलते ही बिरजू भी मुस्कुरा दिया तो नीलम धीरे से बोली- ऐसे क्या देख रहे हो बाबू,।

बिरजू- अपनी बेटी की सुंदरता, आज क्या बला की खूबसूरत लग रही है मेरी बेटी इस घाघरा चोली में।

नीलम का चेहरा शर्म से लाल हो गया क्योंकि बिरजू ने आज से पहले कभी ऐसा नही कहा था, नीलम के छोड़े गए तीर सही जगह पर जा जा के लग रहे थे।

नीलम- अच्छा जी, बाबू आज से पहले तो आपने कभी ऐसा नही कहा, क्या मैं तब सुंदर नही थी।

बिरजू- सुंदर तो तू मेरी बेटी हमेशा से ही है पर मैंने आज तुझे ध्यान से और.........

बिरजू रुककर नीलम की माँ की तरफ देखने लगता है नीलम भी एक नज़र अपनी माँ पर डालती है जो मस्त मौला बेखबर होकर घास पीटे जा रही थी।

नीलम- बोलो न बाबू आज अपने मुझे ध्यान से और.....और क्या? बोलो न.... अम्मा तो घास पीट रही है नही सुनेगी, बोलो न धीरे से।

बिरजू- और...... दिल से देखा है, पता नही क्यों, तू सच में बहुत खूबसूरत है

नीलम- सच बाबू, आपको मैं इतनी अच्छी लगने लगी हूँ, ऐसा क्या है मुझमें, मैं तो आपकी बेटी हूँ न, सगी बेटी।

बिरजू- हाँ है तो मेरी बेटी, मेरी सगी बेटी, पर तू मुझे अच्छी लगती है तो क्या करूँ, तू सच में बहुत......

नीलम- बहुत क्या बाबू.....बोलो न

बिरजू ने एक बार फिर नीलम की माँ की तरफ देखा तो नीलम भी फिर अपनी माँ को देखने लगी।

बिरजू- बाद में बताऊंगा और कहकर नीलम की आंखों में देखने लगा।

नीलम- जब अम्मा नानी के यहां चली जायेगी।

बिरजू- हाँ

नीलम- तो आप जल्दी घर आ जाना आज, मैं आपका इंतजार करूँगी, आपकी बेटी आपका इंतजार करेगी आज रात।

इतना कहकर नीलम का चेहरा वासना में लाल हो गया और वो अपने बाबू की आंखों में देखकर मुस्कुराने लगी।

बिरजू को भी आज इतना अच्छा लग रहा था की वो आसमान में उड़ने लगा, अपनी ही सगी बेटी से उसे मोहब्बत होती जा रही थी और उसकी बेटी के मन में भी यही था अब ये उसे थोड़ा थोड़ा आभास हो गया था।

दोनों मंत्रमुग्द से एक दूसरे को देखते रहे कि तभी नीलम बोली- बाबू चलो मुझे पीछे से सहारा देकर पेड़ पर चढ़ाओ नही तो मैं चढ़ नही पाऊंगी, देखो कितना मोटा है इसका तना।

बिरजू- हाँ चल, तू चढ़ मैं तुझे पीछे से तुझे उठाता हूँ।

नीलम ने अपने दोनों हांथों से जामुन के पेड़ के तने को पकड़ा और अपना सीधा पैर उठा कर तने पर चढ़ने के लिए लगाया जिससे उसकी भारी विशाल गांड की चौड़ी चौड़ी गोलाइयाँ बिरजू को पागल कर गयी और नीलम ये बात जानती थी उसने ये सब प्लान जानबूझकर बनाया ही था इसलिए उसने जानबूझकर भी अपनी गांड को और भी पीछे को निकाल लिया, बिरजू अपनी बेटी की गांड बहुत नजदीक से देखता रह गया, नीलम समझ गयी कि उसके बाबू की नज़र कहाँ है, वो मंद मंद मुस्कुराते हुए बोली- बाबू हाँथ लगाओ न, ऐसे ही देखते रहोगे क्या, जो भी देखना है बाद में देख लेना, अभी मुझे चढ़ाओ पेड़ पर।

नीलम ने ये लाइन "जो भी देखना है बाद में देख लेना" जानबूझकर धीरे से बोली और उदयराज अपनी सगी बेटी के इस निमंत्रण पर अचंभित सा रह गया और धीरे से बोला- बाद में कब?

नीलम मुस्कुराते हुए- जब अम्मा चली जायेगी नानी के घर तब रात में।

बिरजू की सांसें ये सुनकर अब तेज चलने लगी नीलम की भी सांसे ये सोचकर काफी तेज चलने लगी कि आज वो ये क्या क्या कर और बोल रही है, उसके अंदर इतनी हिम्मत कहाँ से आ गई है, बोलते बोलते उसका चेहरा भी शर्म से लाल हो गया था, पर नीलम ने सोचा था कि वो पहल जरूर करेगी ताकि उसके बाबू को आगे बढ़ने के लिए सिग्नल मिल सके, पर वो इस द्विअर्थी बातों से खुद भी बहुत उत्तेजित होती जा रही थी।

एकाएक बिरजू ने नीलम की पतली मखमली कमर को अपने दोनों हाँथ से पकड़ा और ऊपर को उठाने लगा, कमर को पकड़ते ही बिरजू को जैसे बिजली का झटका सा लगा, अपनी जवान सगी शादीशुदा बेटी के मखमली बदन को वो आज पहली बार उसकी जवानी में छू रहा था, बेटी के जवान हो जाने के बाद वो केवल बेटी नही रहती वो एक स्त्री भी हो जाती है और जवान होने के बाद पिता अपनी बेटी के बदन से इसलिए दूर भी रहता है क्योंकि कामभावना जागने का डर रहता है फिर चाहे वो सगी बेटी ही क्यों न हो, यही हाल इस वक्त बिरजू का था आज पहली बार उसने जब अपनी सगी बेटी नीलम के बदन को छुवा तो उसकी कामवासना जाग गयी।

बिरजू ने नीलम को कमर से पकड़कर ऊपर को उठाने की कोशिश की पर नीलम भारी बदन की मलिका थी, सिर्फ कमर पर हाँथ लगाने से आसानी से उठ जाती ये तो मुमकिन ही नही था, नीलम ने भी पेड़ पर चढ़ने की कोशिश की पर फिसलकर फिर नीचे आ गयी।
ओए होऐ रे नीलम कातील एक दम
पर लेखक महोदय आप से निवेदन

इन पिता पुतृी का संवाद लम्बा रखे
तथा सम्भोग के समय भी संवाद जारी रहने दे
आप की लेखन शैली मे संवाद सबसे उच्च कोटी का है

Jangali
 
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(तो चलिए उदयराज और रजनी को सोने देते हैं और चलते हैं नीलम के घर, यहां कहानी में थोड़ा पीछे आना पड़ेगा, आइए थोड़ा पीछे जाकर नीलम की जिंदगी में देखें क्या क्या घटित हुआ।)

उस दिन अपनी माँ को वचन देने के बाद, कि कभी भी बाबू को ऐसा कुछ हुआ तो मैं वही करूँगी जो आपने सपने में देखा था, नीलम बहुत खुश थी, एक तो वो इस बात से खुश थी कि उसकी माँ ने ऐसा सपना देखा और सपने में जैसा हुआ था उसे समस्या का समाधान मानके अपनी बेटी से वैसा ही करने का वचन लिया, दूसरा उसकी माँ इस तरह की बातें आज जीवन में पहली बार करके उसके मन के और नजदीक आ गयी थी, परंतु उसने फिर सोचा कि नही वो अपने बाबू बिरजू को खुद ही अपना रसीला यौवन दिखा दिखा के रिझाएगी, आखिर कभी तो उसके बाबू उसपर टूट पड़ेंगे तब आएगा मजा, आखिर एक प्यासा मर्द कब तक अपने आप को रोकेगा। अपने बाबू की मन की हल्की हल्की मंशा को नीलम जान चुकी थी और वो ये भी जानती थी कि उसकी अम्मा अब बाबू को अपना मक्ख़न नही दे पाती हैं खाने को और बिना मक्ख़न के मर्द कैसे और कब तक रहेगा।

उस दिन छत पर गेहूं फैलाते वक्त जब से उसने अपने बाबू बिरजू का काला खुला हुआ लन्ड देखा था, तभी से वो बहुत विचलित थी और कामाग्नि में जल रही थी, बिरजू को तो ये बात पता भी नही थी कि उसकी बेटी उसका क्या देख चुकी है, पर जब छुप छुप के बाहर काम करते हुए वो अपने बाबू को निहारती और बिरजू द्वारा देख लिए जाने पर जान बूझ कर मुस्कुराते हुए इधर उधर देखने लगती तो बिरजू को भी कुछ कुछ होता था।

नीलम रंग में रजनी से बस हल्का सा कम थी पर शरीर में थोड़ा सा भारी थी, नीलम की मस्त चूचीयाँ कयामत ला देने वाली चूचीयों की श्रेणी में आती थी और नैन नक्श में वो रजनी को बराबर का टक्कर दे देती थी, उसकी लंबाई रजनी से थोड़ी कम थी जिस वजह से वो रजनी से थोड़ा ज्यादा भारी दिखती थी, जब वो चलती थी तो उसकी भारी गांड देख के उसके बाबू का मन डोल ही जाता था, अपनी सगी शादीशुदा बेटी पर उसका मन आसक्त होता था और नीलम यही तो चाहती थी।

नीलम की शादी हुए चार साल हो चुके थे पर अभी तक उसको बच्चा नही हुआ था, बच्चे के लिए मन ही मन वो बहुत तरसती थी, इस वजह से उसने नियमित रूप से पूजा पाठ भी शुरू कर दिया था, जैसा भी जो लोग करने के लिए बोलते थे वो उसको नियम से करती थी, अपने पति से उसका इस बात को लेकर कभी कभी मनमुटाव और हल्का फुल्का झगड़ा भी हो जाता था, और जब उसका दिमाग ज्यादा खराब होता तो वो ससुराल से मायके आ जाती थी और तीन चार महीने रहकर ही जाती थी। नीलम का अपने पति से बच्चे को लेकर इसलिए झगड़ा होता था क्योंकि नीलम को बहुत अच्छे से पता था कि उसके पति का वीर्य बहुत पतला था और वो इसी को इसका कारण मानती थी, अपने पति को वो इसका इलाज कराने के लिए बोलती तो उसका पति अपनी मर्दानगी पर लांछन समझकर चिढ़ जाता था और अक्सर झगड़ा कर लेता था हालांकि नीलम से वो डरता था, नीलम उसपर भारी पड़ती थी, उसपर ही क्या वो अपने ससुराल में दबदबा बना कर रहती थी, पर दिल की बहुत अच्छी थी, ससुराल में जब भी रहती सारा घर संभाल कर रखती थी, उसकी सास भी उससे ज्यादा बहस नही करती थी, पर वो ये मानने को तैयार नही होती थी कि उसके बेटे में कमी है, खैर नीलम भी अपनी सास के सामने कभी इस बात का जिक्र नही करती थी और न ही करना ठीक समझती थी, पर चिंता तो सबको ही थी, नीलम की सास को भी और नीलम की माँ को भी, बस चिंता नही थी तो उसके पति को, वो बोलता था कि जब जो होना होगा हो जाएगा, मैं क्या करूँ और नीलम इस बात से चिढ़ भी जाती थी और अक्सर वो अपने मायके आ जाती थी उसके ससुराल में भी काम धाम संभालने वाली उसकी देवरानी और उससे बड़ी जेठानी थी तो उसकी वजह से वहां काम रुकता नही था, जिस वजह से वो अक्सर अपने मायके में रह लेती थी।

एक दिन नीलम की माँ ने नीलम से कहा- बेटी तेरे नानी के यहां एक बुढ़िया है जो ओझाई का काम करती है छोटा मोटा, लोग कहते हैं कि वो कुछ जड़ी बूटियां देती है जिससे बच्चे न होने की समस्या हल हो जाती है, पता नही कितना सच है कितना झूट, मेरा तो मन कर रहा है कि किसी दिन तेरे नानी के घर जा के मिल कर आऊं उस बुढ़िया से, तू ठीक लगे तो बोल मैं जाती हूँ किसी दिन।

नीलम- अम्मा, जो भी जैसा भी लोग बोलते हैं मैं सब करती हूं, अगर आपको ऐसा लगता है तो किसी दिन चली जाओ और मेरी जरूरत पड़े तो मैं भी चलूंगी।

नीलम को माँ- अभी नही पहले मैं जाउंगी अकेले फिर देखो वो क्या बताती है, क्या कहती है, काफी पहले मैंने सुना था उसके बारे में, पता नही अब वो बुढ़िया जिंदा भी है या नही।

नीलम- अम्मा मेरा मन तो नही मानता की मेरे अंदर कोई कमी है, वैसे भी हमारे गांव में बच्चे जल्दी होते कहाँ हैं ये बात तो आप भी जानती हो न, क्या पता वही असर हो, इसी समस्या का हल ढूंढने के लिए तो रजनी दीदी और बड़े बाबू देखो तीन चार दिन कितना डरावना सफर करके महात्मा से मिलकर उस समस्या का हल लेकर आये हैं अब वो जैसे ही यज्ञ करेंगे सब ठीक हो जाएगा और एक बात और भी है जो मैं तुम्हे बता चुकी हूं, मैं उन्हें बहुत बोलती हूँ इलाज़ कराने के लिए पर वो मेरी सुनते ही कहाँ हैं, उन्हें तो जैसे कोई चिंता ही नही है।

नीलम की माँ- देख बेटी वजह चाहे जो भी हो पर कहीं कुछ पता चलता है जो जाकर कर लेने में क्या हर्ज है, तू चिंता न किया कर, तेरी कोख भी ईश्वर जल्द ही भरेंगे मेरा दिल कहता है, तू खुश रहा कर, ईश्वर सबकी सुनता है। मैं जाती हूँ किसी दिन तेरे नानी के घर। वो नही ध्यान देता तो छोड़ तू उसको, तेरी सास तो तेरे को लांछन नही देती न।

नीलम- नही अम्मा लांछन तो नही देती पर वो मुझे कम मानती है, देवरानी और जेठानी को ज्यादा मानती हैं, हालांकि कभी वो सीधा मुझसे नही कहती पर उनके हाव भाव से मुझे लग जाता है।

नीलम की माँ- तू चिंता न कर सब ठीक हो जाएगा मेरी बच्ची।

ऐसा कहकर नीलम की माँ उसको गले लगा लेती है।

नीलम के घर के आगे द्वार पर एक बहुत बड़ा जामुन का पेड़ था और जामुन था भी मीठा वाला, बड़े बड़े और काले काले जामुन लगते थे उनमे, गांव के बच्चे अक्सर जामुन के चक्कर में वहीं डेरा जमाए रहते थे, ज्यादातर बच्चे पेड़ पर चढ़ने की कोशिश करते कि पेड़ पर चढ़कर अच्छे अच्छे जामुन तोड़ेंगे, नीचे गिरकर जामुन बेकार हो जाते हैं, मीठे जामुन होने की वजह से ततैया भी उन्हें खाने ले लिए पेड़ पर मंडराती रहती थी, बच्चे नीलम की मां से डरते थे क्योंकि वह पेड़ पर चढ़ने से डांटती थी, जब भी वो देखती की बच्चे पेड़ पर चढ़ रहे है और ज्यादा शरारत कर रहे है या शोर मचा रहे हैं तो डंडा लेकर उन्हें खदेड़ लेती थी, हालांकि वह ज्यादा फुर्ती से भाग नही पाती थी पर जामुन के पेड़ पर नजर रखती थी कहीं बच्चे उसपर चढ़े न और अपने हाँथ पांव न तुड़वा बैठें।

नीलम ये सब देखकर खूब हंसती थी, अपने घर पे बच्चों के इस तरह आकर खेलना, जामुन खाना और उनका जेब में भर भर के अपने घर ले जाना नीलम को बहुत अच्छा लगता था। बच्चे अक्सर नीलम से ही जामुन खाने और तोड़ने की आज्ञा मांगते थे और जब नीलम बोल देती थी कि जाओ खा लो, तोड़ लो, तो सीना चौड़ा करके जमीन पर पेड़ के नीचे गिरे सारे जामुन बिन लेते थे, कुछ बच्चे बड़ी सी लग्गी लेके आते और अच्छे अच्छे जामुन तोड़कर नीलम को भी देते खुद भी खाते और घर भी ले जाते, नीलम को ये सब देखकर बहुत सुकून मिलता था, इन प्यारे प्यारे मासूम बच्चों और बच्चियों को देखकर। नीलम खुद छोटी छोटी बच्चियों को लग्गी से अच्छे अच्छे जामुन तोड़कर देती थी और जब वो बच्चियां घर से कुछ लेकर नही आई होती थी तो उनकी फ्रॉक के आगे के हिस्से को उठाकर जामुन उसमे भर देती थी, वो छोटी छोटी बच्चियां अपने फ्रॉक को आगे से उठाए उसमे जामुन भरे हुए नन्हे नन्हे कदमों से चलकर अपने घर जाती तो देखकर बहुत अच्छा लगता, नीलम तो उन्हें देखकर बहुत खुश होती थी। नीलम की मां भी बच्चों के मामले में खड़ूस नही थी पर वो उन्हें इसलिए डांटती थी कि कहीं पेड़ से गिर कर चोट न लगा लें।

तो जब तक नीलम के घर के आगे जामुन के पेड़ पर जामुन लगे रहते तब तक उसके घर पेड़ के नीचे गांव के बच्चों का जमावड़ा अक्सर शाम को या दोपहर को लगा रहता था। नीलम भी उनके साथ खाली वक्त में अपना मन बहलाने के लिए या जामुन तोड़ने में उनकी मदद करने के लिए हँसती खिलखिलाती लगी रहती थी, हर उम्र के छोटे बडे बच्चे वहां आते थे जामुन खाने। सब बच्चे नीलम को दीदी कहकर बुलाते थे।

एक दिन नीलम की माँ ने नीलम से और उसके बाबू बिरजू से अगले दिन शाम को नीलम की नानी के घर जाने के लिए कहा तो बिरजू बोला- हाँ ठीक है चली जाओ पर जल्दी आ जाना एक दो दिन में।

नीलम की माँ- अरे नीलम के बाबू मैं कल शाम को जाउंगी और उसके अगले दिन ही आ जाउंगी, मुझे रुकना थोड़ी है वहां। वो तो मैं किसी काम से जा रही हूँ।

बिरजू- कैसा काम?

नीलम की माँ- है कुछ काम, जरूरी है तुम्हे पहले से ही सब बताऊं, जब सफल हो जाएगा तो बता दूंगी, कुछ काम औरतों वाले भी होते हैं मर्दों को नही बताये जाते पहले।

बिरजू हंसता हुआ नीलम को देखकर- अच्छा बाबा ठीक है, जाओ।

अपने बाबू को अपनी तरफ देखते हुए देखकर नीलम शर्मा गयी।

रात को खाना खाने के बाद जब बिरजू बाहर सोने चला गया तो नीलम ने अपनी माँ से कहा- अम्मा अपने जामुन के पेड़ में बहुत जामुन लगे हैं तो तुम कल जामुन भी लेते जाना नाना नानी और मामा मामी के लिए, मैं तोड़ दूंगी।

नीलम की माँ ने पहले तो मना किया फिर नीलम की जिद पर मान गयी।

अगली सुबह नीलम ने अपने बाबू बिरजू को अपना मदमस्त यौवन दिखाने की सोचकर उनके किसी काम से निकलने से पहले ही उसने बोली- बाबू आप जा रहे है काम से।

बिरजू- हाँ बिटिया, क्या हुआ, मेरी बेटी को कुछ काम है क्या मुझसे?

नीलम- हां है तो

बिरजू- तो बोल न शर्माती क्यों है।

नीलम की मां उस वक्त सुबह सुबह लायी हुई घास मशीन के पास बैठकर पीट रही थी। (गांव में क्या होता है कि खेत से घास छीलकर लाने के बाद उसको किसी छोटे डंडे से पीटते हैं ताकि उसकी मिट्टी निकल जाए, फिर उसको मशीन में लगाकर छोटा छोटा काटते हैं और फिर उस घास में भूसा मिलाकर जानवर को खाने को देते हैं तो नीलम की माँ उस वक्त घास को डंडे से पीट रही थी)

नीलम ने आज नहा कर जानबूझ कर घाघरा चोली पहना हुआ था और नीचे काली रंग की पैंटी पहनी हुई थी।

बिरजू अपनी बेटी को आज घाघरा चोली में देखकर निहारे जा रहा था, नीलम मंद मंद अपने बाबू को चोर नज़रों से घूरते हुए देखकर सिरह सिरह जा रही थी और उसे बड़ा मजा आ रहा था।

नीलम- बाबू मेरी जामुन तोड़ने में मदद करो न, अकेले कैसे तोडूं, अम्मा आज नाना के घर जाएंगी तो मैंने सोचा था कि अपने यहां के अच्छे पके हुए जामुन तोड़कर भेजूंगी पर बिना आपके कैसे होगा?

बिरजू- हां तो बेटी चल न तोड़ देता हूँ, इतना कहने में तुझे संकोच क्यों हो रहा है वो भी अपने बाबू से।

नीलम- मुझे लगा क्या पता आप मना कर दो।

बिरजू- मना क्यों कर दूंगा, अपनी प्यारी बेटी की हर इच्छा पूरा करना बाप का फर्ज होता है, चाहे छोटी चीज़ हो या बड़ी।

नीलम- अच्छा तो फिर ठीक है, अब नही शरमाउंगी बोल दूंगी जो भी इच्छा होगी, पूरा करोगे न। (नीलम ने डबल मीनिंग में बोला पर बिरजू अभी समझ न पाया)

बिरजू- क्यों नही करूँगा, मेरी तू ही तो प्यारी सी बेटी है, ऐसा कभी मत सोचना अब ठीक है, चल।

सवेरे की खिली खिली धूप निकल आयी थी, नीलम एक खाट लेके आयी और उसको जामुन के पेड़ के नीचे बिछा दिया और उसपर एक पुराना चादर डाल दिया फिर अपने बाबू से बोली- बाबू आप न इस खाट के बगल में खड़े रहो, मैं पेड़ पर चढ़ती हूँ।

ये सुनकर बिरजू बोला- अरे नही बेटी तू यहीं खाट के पास रह मैं पेड़ पर चढ़कर तोड़ देता हूँ पर नीलम मानी नही क्योंकि उसको पेड़ पे चढ़कर अपने बाबू को कुछ दिखाना था, घाघरा उसने इसी लिये पहना था आज।

नीलम नही मानी, बिरजू ने एक बार नीलम की माँ को देखा जो बैठकर घास पीटने में व्यस्त थी, उसको तो पता भी नही था कि नीलम और बिरजू कर क्या रहे हैं, वो बस डंडे से पट्ट पट्ट की आवाज करते हुए घास पीटे जा रही थी पीछे क्या हो रहा था उसे पता नही और लगातार डंडे ही आवाज से उसे कुछ सुनाई भी नही दे रहा था।

नीलम जामुन के पेड़ पर चढ़ने के लिए अपनी चुन्नी को कमर पर बांधने लगी, बिरजू अपनी बेटी की सुंदरता को मंत्रमुग्द होकर देखे जा रहा था, उसके भीगे बालों की लटें, माथे पे छोटी सी बिंदिया, मांग में सिंदूर, कान की हिलती हुई झुमकियाँ, लाली लगे रसीले होंठ और वो गज़ब के मस्त मोटे मोटे तने हुए, चोली में कसे हुए दोनों जोबन और अपनी कमर में चुन्नी बांधते हुए वो कितनी खूबसूरत लग रही थी, कमर में कस कर चुन्नी बांधने से उसकी दोनों उन्नत चूचीयाँ और भी उभरकर बाहर आ गयी थी।

नीलम ने जैसे ही कमर में चुन्नी बांधकर अपने बाबू की तरफ देखा तो वो उसे ही मंत्रमुग्ध सा देख रहा था, एक पल के लिए नीलम मुस्कुरा उठी अपने बेटी से नज़र मिलते ही बिरजू भी मुस्कुरा दिया तो नीलम धीरे से बोली- ऐसे क्या देख रहे हो बाबू,।

बिरजू- अपनी बेटी की सुंदरता, आज क्या बला की खूबसूरत लग रही है मेरी बेटी इस घाघरा चोली में।

नीलम का चेहरा शर्म से लाल हो गया क्योंकि बिरजू ने आज से पहले कभी ऐसा नही कहा था, नीलम के छोड़े गए तीर सही जगह पर जा जा के लग रहे थे।

नीलम- अच्छा जी, बाबू आज से पहले तो आपने कभी ऐसा नही कहा, क्या मैं तब सुंदर नही थी।

बिरजू- सुंदर तो तू मेरी बेटी हमेशा से ही है पर मैंने आज तुझे ध्यान से और.........

बिरजू रुककर नीलम की माँ की तरफ देखने लगता है नीलम भी एक नज़र अपनी माँ पर डालती है जो मस्त मौला बेखबर होकर घास पीटे जा रही थी।

नीलम- बोलो न बाबू आज अपने मुझे ध्यान से और.....और क्या? बोलो न.... अम्मा तो घास पीट रही है नही सुनेगी, बोलो न धीरे से।

बिरजू- और...... दिल से देखा है, पता नही क्यों, तू सच में बहुत खूबसूरत है

नीलम- सच बाबू, आपको मैं इतनी अच्छी लगने लगी हूँ, ऐसा क्या है मुझमें, मैं तो आपकी बेटी हूँ न, सगी बेटी।

बिरजू- हाँ है तो मेरी बेटी, मेरी सगी बेटी, पर तू मुझे अच्छी लगती है तो क्या करूँ, तू सच में बहुत......

नीलम- बहुत क्या बाबू.....बोलो न

बिरजू ने एक बार फिर नीलम की माँ की तरफ देखा तो नीलम भी फिर अपनी माँ को देखने लगी।

बिरजू- बाद में बताऊंगा और कहकर नीलम की आंखों में देखने लगा।

नीलम- जब अम्मा नानी के यहां चली जायेगी।

बिरजू- हाँ

नीलम- तो आप जल्दी घर आ जाना आज, मैं आपका इंतजार करूँगी, आपकी बेटी आपका इंतजार करेगी आज रात।

इतना कहकर नीलम का चेहरा वासना में लाल हो गया और वो अपने बाबू की आंखों में देखकर मुस्कुराने लगी।

बिरजू को भी आज इतना अच्छा लग रहा था की वो आसमान में उड़ने लगा, अपनी ही सगी बेटी से उसे मोहब्बत होती जा रही थी और उसकी बेटी के मन में भी यही था अब ये उसे थोड़ा थोड़ा आभास हो गया था।

दोनों मंत्रमुग्द से एक दूसरे को देखते रहे कि तभी नीलम बोली- बाबू चलो मुझे पीछे से सहारा देकर पेड़ पर चढ़ाओ नही तो मैं चढ़ नही पाऊंगी, देखो कितना मोटा है इसका तना।

बिरजू- हाँ चल, तू चढ़ मैं तुझे पीछे से तुझे उठाता हूँ।

नीलम ने अपने दोनों हांथों से जामुन के पेड़ के तने को पकड़ा और अपना सीधा पैर उठा कर तने पर चढ़ने के लिए लगाया जिससे उसकी भारी विशाल गांड की चौड़ी चौड़ी गोलाइयाँ बिरजू को पागल कर गयी और नीलम ये बात जानती थी उसने ये सब प्लान जानबूझकर बनाया ही था इसलिए उसने जानबूझकर भी अपनी गांड को और भी पीछे को निकाल लिया, बिरजू अपनी बेटी की गांड बहुत नजदीक से देखता रह गया, नीलम समझ गयी कि उसके बाबू की नज़र कहाँ है, वो मंद मंद मुस्कुराते हुए बोली- बाबू हाँथ लगाओ न, ऐसे ही देखते रहोगे क्या, जो भी देखना है बाद में देख लेना, अभी मुझे चढ़ाओ पेड़ पर।

नीलम ने ये लाइन "जो भी देखना है बाद में देख लेना" जानबूझकर धीरे से बोली और उदयराज अपनी सगी बेटी के इस निमंत्रण पर अचंभित सा रह गया और धीरे से बोला- बाद में कब?

नीलम मुस्कुराते हुए- जब अम्मा चली जायेगी नानी के घर तब रात में।

बिरजू की सांसें ये सुनकर अब तेज चलने लगी नीलम की भी सांसे ये सोचकर काफी तेज चलने लगी कि आज वो ये क्या क्या कर और बोल रही है, उसके अंदर इतनी हिम्मत कहाँ से आ गई है, बोलते बोलते उसका चेहरा भी शर्म से लाल हो गया था, पर नीलम ने सोचा था कि वो पहल जरूर करेगी ताकि उसके बाबू को आगे बढ़ने के लिए सिग्नल मिल सके, पर वो इस द्विअर्थी बातों से खुद भी बहुत उत्तेजित होती जा रही थी।

एकाएक बिरजू ने नीलम की पतली मखमली कमर को अपने दोनों हाँथ से पकड़ा और ऊपर को उठाने लगा, कमर को पकड़ते ही बिरजू को जैसे बिजली का झटका सा लगा, अपनी जवान सगी शादीशुदा बेटी के मखमली बदन को वो आज पहली बार उसकी जवानी में छू रहा था, बेटी के जवान हो जाने के बाद वो केवल बेटी नही रहती वो एक स्त्री भी हो जाती है और जवान होने के बाद पिता अपनी बेटी के बदन से इसलिए दूर भी रहता है क्योंकि कामभावना जागने का डर रहता है फिर चाहे वो सगी बेटी ही क्यों न हो, यही हाल इस वक्त बिरजू का था आज पहली बार उसने जब अपनी सगी बेटी नीलम के बदन को छुवा तो उसकी कामवासना जाग गयी।

बिरजू ने नीलम को कमर से पकड़कर ऊपर को उठाने की कोशिश की पर नीलम भारी बदन की मलिका थी, सिर्फ कमर पर हाँथ लगाने से आसानी से उठ जाती ये तो मुमकिन ही नही था, नीलम ने भी पेड़ पर चढ़ने की कोशिश की पर फिसलकर फिर नीचे आ गयी।
ओए होऐ रे नीलम कातील एक दम
पर लेखक महोदय आप से निवेदन

इन पिता पुतृी का संवाद लम्बा रखे
तथा सम्भोग के समय भी संवाद जारी रहने दे
आप की लेखन शैली मे संवाद सबसे उच्च कोटी का है

Jangali
 

19raj81

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महोदय जी नीलम और बिरजू का संबाद ज्यादा लम्बा और ज्यादाअश्लील रखना बैसे आप सब समझते है..
मस्त मस्त अपडेट
 

S_Kumar

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महोदय जी नीलम और बिरजू का संबाद ज्यादा लम्बा और ज्यादाअश्लील रखना बैसे आप सब समझते है..
मस्त मस्त अपडेट
जी बिल्कुल धीरे धीरे संवाद लंबा और अश्लील होने लगेगा, एकदम से शुरुवात में बहुत ज्यादा अश्लीलता नही दिखा सकता ये काफी फूहड़ लगने लगता है, क्योंकि बाप बेटी के बीच जो एक मर्यादा और शर्म, झिझक होती है उसको टूटने में वक्त लगता है अगर वो अच्छे और सभ्य खानदान से हैं तो, नही तो छिछोरापन भरना है तो कैसे भी भर दो।

धीरे धीरे अश्लील और लंबा संवाद पेश करता जाऊंगा।

आपका बहुत बहुत शुक्रिया
 

S_Kumar

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Update- 44

नीलम ने पलटकर अपने बाबू को देखा और फिर अपनी माँ की तरफ देखा फिर बोली- बाबू ठीक से पकड़कर उठाओ न, दम लगा के ऐसे तो मैं चढ़ ही नही पाऊंगी, उस डाल तक उठा दो बस वो पकड़ में आ जाये फिर तो मैं चढ़ जाउंगी।

बिरजू ने भी एक बार पलटकर नीलम की माँ को देखा, वो अपने काम में मस्त थी, बिरजू ने नीलम को बोला थोड़ा इधर आ इस तरफ से चढ़, बिरजू और नीलम पेड़ के तने के दायीं ओर आ गए और पेड़ के मोटे तने के पीछे छुप से गये, वहां से नीलम की माँ दिख नही रही थी, पेड़ से ओट हो गया था।

नीलम ने फिर कोशिश की, बिरजू ने जैसे ही कमर को हाँथ लगाया नीलम ने अपने बाबू का हाँथ खुद ही पकड़कर अपने विशाल चूतड़ पर रख दिया और बोली- बाबू कमर पर नही यहां हाँथ लगा के उठाना, और अपने बाबू को देखकर हंस दी फिर बोली- अब तो अम्मा भी नही दिख रही यहां से, अब मुझे सहारा दो अच्छे से।

बिरजू भी हंस दिया और बोला- ठीक है चल, जल्दी कर।

नीलम ने एक पैर पेड़ के तने पर रखा और दोनों हांथों से तने को पकड़ा, बिरजू ने जैसे ही अपना एक हाँथ नीलम की कमर पर लगाया और दूसरा हाँथ उसकी चौड़ी मांसल गांड पर लगाया, नीलम और बिरजू दोनों एक साथ सिरह उठे, क्या मस्त गुदाज गांड थी नीलम की, बिरजू बावला सा हो गया, बिरजू के हाँथ की उंगलियाँ मानो नीलम की गुदाज फूली हुई गांड में धंस सी गयी।

नीलम- ऊऊऊऊईईईईईई.....बाबू.....हाँ ऐसे ही उठाओ, जोर लगाओ, पकड़े रहना, बस वो डाली पकड़ लूं मैं।

नीलम ने थोड़ा ऊपर चढ़कर अपने हाँथ से उस डाली को पकड़ने की कोशिश की, वो डाली उसकी पहुंच से सिर्फ एक फुट ऊपर थी।

बिरजू तो मस्त हो चुका था अपनी सगी बेटी के मांसल बदन को छूकर और उसकी मदमस्त चौड़ी गांड को दबोचकर।

बिरजू- हाँ चढ़ बेटी, मैंने पकड़ा है नीचे से, गिरेगी नही।

ऐसा कहते हुए बिरजू ने अपना दूसरा हाँथ भी कमर से हटा कर नीलम के दूसरे चूतड़ पर रख दिया और अब दोनों हांथों से उसके चूतड़ के दोनों उभार थाम लिए, अपनी बेटी के मादक गरम गुदाज गांड की लज़्ज़त और नरमी का अहसास मिलते ही बिरजू के लंड में हलचल होने लगी। उसने एक पल के लिए आंखें बंद कर ली। नीलम भी सिरहते और शर्माते हुए डाली को पकड़ने की नाकाम कोशिश कर रही थी।

बिरजू का मन कर रहा था कि अपना हाँथ अपनी बेटी की गांड की महकती दरार पर रख दे पर संकोच उसे रोक ले रहा था, तभी नीलम बोली- बाबू और जोर लगाओ न, और उठाओ मुझे, इसलिए बोलती हूँ दूध पिया करो ताकत रहेगी, पीते तो हो नही, उठाओ और जोर से मुझे। (नीलम ने double meaning में कहा)

बिरजू अपनी बेटी की बात का अर्थ समझ गया और बोला- दूध है ही कहाँ जो पियूँ बेटी, तुझे तो पता है गाय बूढ़ी हो गयी है अब कहाँ दूध होता है उसको।

नीलम- अच्छा, बहाना मत करो, जिसको दूध पीने की इच्छा होती है न वो कैसे न कैसे करके घर में या बाहर से दूध की व्यवस्था कर ही लेता है, गाय बूढ़ी हो गयी तो क्या हुआ उसकी जवान बछिया तो है न। (नीलम ने double meaning में खुला निमंत्रण सा दिया अपने बाबू को और ये बोलकर वो खुद सिरह गयी, शर्म से उसका चेहरा लाल हो गया, हालांकि उसका चेहरा ऊपर की तरफ था)

(नीलम के घर में सच में एक गाय थी जो बूढ़ी हो चुकी थी और इत्तेफ़ाक़ से उसकी एक जवान बछिया भी थी पर अभी उसकी मैचिंग किसी बैल से नही हुई थी तो उसको कोई बच्चा नही हुआ था और जब बच्चा ही नही हुआ था तो उसको दूध कैसे होता, इसी गाय और बछिया को लेकर नीलम और बिरजू डबल मीनिंग में कामुक बातें करने लगे)

बिरजू- पर बछिया को दूध आता ही कहाँ है बेटी, जब तक उसको बच्चा नही होगा वो दूध नही देगी और बाहर का दूध मैं पियूँगा नही।

नीलम- सच, आप बाहर का दूध नही पियोगे।

बिरजू- नही, बिल्कुल नही।

नीलम- तब तो फिर बछिया को जल्दी बच्चा देना होगा, पर वो बेचारी अकेली तो बच्चा कर नही सकती न, अब तो किसी बैल को बुलाना होगा न बाबू।

(और इतना कहती हुई नीलम खिलखिलाकर अपने बाबू को नीचे की तरफ देखती हुई हंस दी, बिरजू भी नीलम की गुदाज गांड को अपने दोनों हांथों से पकड़े पकड़े हंस दिया, दोनों के चहरे और कान वासना की गर्माहट से लाल हो चुके थे, दोनों ने एक बार फिर पेड़ की ओट से झांककर नीलम की माँ को देखा तो वो बस घास ही पीटने में लगी थी)

बिरजू- हाँ अगर दूध पीना है तो उसको बैल के पास तो ले जाना ही पड़ेगा।

नीलम- इस पर हम बाद में बात करेंगे, क्योंकि आपकी सेहत की बात है और मैं अपने बाबू की सेहत से समझौता नही कर सकती।

बिरजू- कब बात करेगी मेरी बेटी इस विषय में।

नीलम- जब अम्मा नही रहेंगी तब, रात को....ठीक, रुक क्यों गए ऊपर को ठेलों न मुझे बाबू, लटकी हुई हूँ बीच में मैं, उठाओ जोर से।

जैसे ही बिरजू ने तेज जोर लगाने के लिए दम लगाया, न जाने कहाँ से एक लाल ततैया आ के बिरजू के हाँथ पर बैठ गयी और बिरजू ने हाँथ तेज से झटका, ततैया तो फुर्र से उड़ गई पर ऊपर को चढ़ने की कोशिश कर रही नीलम का बैलेंस बिगड़ा और वो सीधे नीचे सरक कर अपने बाबू पर इस तरह गिरी की उसकी भारी गुदाज गांड बिरजू के चहरे पर बैठ गयी, बिरजू की नाक सीधे नीलम की मक्ख़न जैसी मुलायम गांड की दरार में जा घुसी।

नीलम- अरेरेरेरेरे.......ऊऊऊऊऊईईईईईईईई.......... बाबू........अरे मैं गिरी.....पकड़ो मुझे........बाबू........आआआआआआआआह हहहहहहहहहहहह......बाबू आपको लगी तो नही।

लगने की बात तो दूर, बिरजू ने ये सोचा भी नही था कि अचानक ऐसा हो जाएगा आज जीवन में पहली बार ये क्या हो रहा था, पर जो हो रहा था उसमें वो खो गया, आखिर इस लज़्ज़त को भला वो कैसे जाने देता जिसके लिए वो मन ही मन तरसता था। ये समझ लो की नीलम अपने बाबू के चेहरे पर अपनी भारी गांड रखकर बैठ चुकी थी, अपनी ही जवान सगी शादीशुदा बेटी की इतनी गुदाज गांड की दरार में एक दिन अचानक उसका मुँह घुस जाएगा ये बिरजू ने कभी सोचा नही था और न ही नीलम ये सोचा था।

नीलम की रसभरी चौड़ी गांड की मदहोश कर देने वाली भीनी भीनी महक को बिरजू सूंघने लगा, उसने जानबूझ के अपनी नाक को और नीलम की गांड की दरार में घुसेड़ दिया और अच्छे से अपनी सगी शादीशुदा बेटी की गांड की महक को जी भरकर सूंघने लगा, नीलम धीरे से शर्माते हुए अपनी मोटी गांड और मांसल जांघे आपस में भींचते हुए चिहुँक उठी, एकाएक अपने बाबू की नाक और मुँह अपनी गांड की गहराई और बूर के पास महसूस करके नीलम चौंक सी गयी और चिहुँकते, शर्माते हुए
ऊऊऊऊईईईईईई.......माँ की कामुक आवाज निकलते हुए सिरह उठी और कुछ देर तो वो खुद ही मदहोशी में अपने बाबू के मुँह पर अपनी गांड और बूर रखे बैठी सिसकती रही उसे काफी गुदगुदी भी हो रही थी।

फिर वो समझ गयी कि उसके बाबू दीवाने हो चुके है और उसकी गांड और बूर के छेद को कपड़ों के ऊपर से ही सूंघने में लगे हुए हैं, बिरजू ने दोनों हाँथों से नीलम की कमर को पकड़ रखा था, नीलम के दोनों पैर पेड़ के तने पर ही थे और हांथों से नीलम ने तने को घेरा बना के कस कर पकड़ा हुआ था, नीलम अब शर्म से गड़ी जा रही थी, अपनी गांड की मखमली दरार में और बूर पर उसे अपने बाबू की नाक और दहकते होंठ महसूस हुए तो वो फिर से चिहुँक उठी और उसके मुँह से भी जोर से मादक सिकारियाँ निकल गयी, ये सब इतनी जल्दी हुआ कि न तो नीलम ही संभाल पाई और न ही बिरजू और जो होना था वो हो चुका था, अपनी सगी बेटी की गांड और बूर की खुशबू और उसका अच्छे से अहसास करके बिरजू बेकाबू सा होने लगा।

नीलम ने समय की नजाकत को समझते हुए, शर्माते हुए, अपने को बेकाबू होने से संभालते हुए अपनी अम्मा की तरफ एक नज़र घुमा के पेड़ की ओट से देखा और अपने चौड़े चूतड़ और बूर की खुशबू लेकर मदहोश हो चुके अपने बाबू से उखड़ती सांसों से बोला- बाबू.....अम्मा देख लेगी...बस करो न...बाद में कर लेना ऐसा.....बस करो न बाबू।

बिरजू ने जब ये सुना तो उसकी बांछे खिल गयी और फिर उसने नीलम के दोनों चूतड़ पर अपने हाँथ लगा के ऊपर को उठा दिया और तेज चल रही सांसों को संभालते हुए बोला- बाद में कब बेटी? मुझे तेरे बदन से आ रही ये मदहोश कर देने वाली खुशबू लेना है, कितनी अच्छी है ये, खुशबू लेने देगी मुझे?

नीलम- रात को जब अम्मा चली जायेगी, तब कर लेना जो भी करना हो (नीलम ने ये बात बहुत उत्तेजना से धीरे से बोली)

बिरजू- सच, करने दोगी।

नीलम- हाँ बाबू, बिल्कुल, क्यों नही, पर अभी अम्मा देख सकती है जब वो चली जायेगी तब।

ये कहकर नीलम शर्म से लाल भी होती चली गयी।

बिरजू की तो ये सुनकर मानो लॉटरी लग गयी थी, दिल में हज़ारों घंटियाँ एक साथ बजने लगी, अपनी ही सगी शादीशुदा बेटी के यौवन का रसपान उसे अपने ही घर में चुपके चुपके करने को मिल जाएगा, इस बात को सोचकर ही वो फूला नही समाया और जोश में आकर उसने नीलम को कस के उसकी दोनों गांड पकड़के इतनी तेज उठाया की नीलम ऊऊऊऊईईईईईई करते हुए ऊपर को उचकी और उसने अब वो डाल पकड़ ली, और फिर पैर ऊपर रखते हुए दूसरे हाँथ से दूसरी डाल पकड़ते हुए जामुन के पेड़ पर चढ़ गई। बिरजू वासना भारी नजरों से अपनी सगी बेटी के मादक गदराए बदन को पेड़ पर चढ़ते हुए निहारता रहा।

नीलम पेड़ पर डाल पकड़ पकड़ कर ऊपर चढ़ने लगी, पैर फैला कर जब नीलम ने आगे बढ़ने और ऊपर चढ़ने के लिए एक डाल पर रखा तो नीचे खड़े बिरजू को अब जाकर फैले घाघरे के अंदर वो दिखा जिसको देखने के लिए उसकी आंखें तरस रही थी, घाघरे के अंदर नीलम को गोरी गोरी टांगें जाँघों तक दिख गयी, बिरजू अवाक सा रह गया, कितनी मांसल जाँघे थी नीलम की, लार ही टपक पड़ी उसकी अपनी ही बेटी की जाँघे देखकर, तभी नीलम ने अपना दूसरा पैर उठा कर दूसरी डाल पर रखा और एक मोटी डाल पर वहीं बैठ गयी, घाघरा नीचे लटका हुआ था, दोनों गोरे गोरे पैर और जाँघों का निचला हिस्सा देखकर बिरजू सनसना गया, एकटक लगाए वो अपनी बेटी के घाघरे में ही झांकने की कोशिश कर रहा था, नीलम ने नीचे अपने बाबू को देखा तो उसने पाया कि उसके बाबू की प्यासी नज़रें कहाँ है, समझते उसे देर नही लगी और वो मुस्कुरा दी, उसने एक जामुन तोड़ा और खींच कर अपने बाबू के ऊपर फेंका, जामुन सीधा बिरजू के सर पर लगा और फूटकर फैल गया, बिरजू की तन्द्रा भंग हुई तो नीलम खिलखिलाकर हंसने लगी और बोली- बाबू खाट को खींचकर मेरी सीध में लाओ ताकि मैं जामुन तोड़कर उसपर फेंकती रहूँ।

बिरजू को होश आया तो वो झेंप सा गया फिर जल्दी से उसने खाट को खींचकर नीलम की सीध में नीचे किया, और ऊपर देखने लगा, नीलम की नजरें अपने बाबू से मिली तो दोनों मुस्कुरा दिए, नीलम अभी डाली पर घाघरे को समेटकर जानबूझ कर बैठी थी वो जानती थी खड़े होने पर बाबू को घाघरे के अंदर का नज़ारा अच्छे से दिख जाएगा पर वो अपने बाबू को कुछ देर तड़पाकर उनकी हालत देखना चाहती थी, बिरजू भी बार बार सर उठाये अपनी बेटी के घाघरे के अंदर झांकने की कोशिश करता और जो भी थोड़ा बहुत दिख रहा था उसे ही बड़ी वासना भरी नजरों से देखता।

नीलम ने बिरजू से इशारे से पूछा कि अम्मा क्या कर रही है क्योंकि ऊपर पत्तियों की आड़ से नीचे दूर साफ दिख नही रहा था, बिरजू ने एक नजर नीलम की माँ पर डाली तो देखा कि वो घास को बड़ी टोकरी में भरकर बगल में कुएं पर ही बने बड़े से हौदे में धोने के लिए डाल रही थी, उसने नीलम को ग्रीन सिग्नल का इशारा किया, नीलम और बिरजू दोनों मुस्कुराने लगे।

नीलम ने नीचे अपने बाबू को देखते हुए एक हाँथ से डाल पकड़े, डाल पर बैठे बैठे ही आस पास लगे जामुनों के गुच्छों में से अच्छे पके पके जामुन तोड़कर नीचे खाट पर फेंकना तो दूर पहले तोड़कर खुद ही खाने लगी, ऊपर जामुनों की भरमार थी, पूरा पेड़ जामुन से लदा हुआ था, आस पास पके पके बड़े बड़े काले काले जामुनों को देखकर नीलम से रहा न गया और वो खिलखिलाकर हंसते हुए अपने बाबू को नीचे देख देखकर रिझाकर जामुन तोड़कर खाने लगी।

अब बिरजू ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए अपनी कमर पर दोनों हाँथ रखकर खड़ा हो गया और बोला- तू वहां जामुन तोड़ने गयी है कि खाने गयी है।

नीलम- अरे बाबू यहां पर आ के कितना अच्छा लग रहा है देखो न कितने बड़े बड़े मीठे मीठे काले काले जामुन है ऊपर, नीचे से तो ये दिखते ही नही है, अच्छा लो आप मुँह खोलो, आ करो आपके मुँह में मैं यहीं से फेंककर मरती हूँ जामुन, देखना सीधे मुँह में जायेगा।

बिरजू- तेरी मां ने देख लिया न तो हम दोनों का जामुन निकाल देगी (बिरजू ने बनावटी गुस्से से कहा, पर वो चाहता था कि उसकी बेटी अच्छे से अपने मन की कर ले)

नीलम- अरे बाबू आप अम्मा से कितना डरते हो, उनको मैं देख लुंगी आप मुँह खोलो, खोलो तो सही, एक बार बाबू......बस एक बार....खोलो न मुँह अपना...जोर से आ करो, खूब जोर से, यहीं से डालूंगी आपके मुँह में सीधा जामुन।

बिरजू को भी नीलम की शरारते बहुत भा रही थी, उसने बड़ा सा मुँह खोला, नीलम ने एक अच्छा सा जामुन तोड़कर तीन चार बार अच्छे से निशाना लगाया और खींचकर अपने बाबू के मुँह की तरफ फेंका, जामुन सीधा बिरजू के गाल पर जा के पट्ट से लगा, फुट गया, जामुन का जमुनी रस गाल पर फैल गया।

बिरजू- लो! यही निशाना है तेरा, बस अब रहने दे तू, खिला चुकी तू जामुन अपने बाबू को (बिरजू ने double meaning में कहा)

नीलम- जामुन तो मैं खिला के रहूँगी अपने बाबू को, देख लेना, बाबू एक बार और, एक बार और न बाबू, देखो एक दो बार तो इधर उधर हो ही जाता है, फिर आ करो न, करो न बाबू, इस बार ठीक से फेंकूँगी, देखो मैं कितनी ऊपर भी तो हूँ, पर इस बार पक्का सीधा मुँह में डालूंगी।

बिरजू अपनी बेटी की इस बचपने और जिद पर निहाल होता जा रहा था आज नीलम उसे जवानी और बचपन हर तरह का प्यार दे रही थी, उसने फिर से आ किया, बड़ा सा मुँह खोला।

नीलम ने अपने आस पास सर उठा के एक अच्छा सा बड़ा सा जामुन देखा और तोड़कर पांच छः बार निशाना लगाया फिर खींच कर अपने बाबू के मुँह में फेंका, इस बार जामुन सीधा बिरजू के मुँह में गप्प से चला गया और बिरजू उस रसभरे मीठे जामुन को खाने लगा।

नीलम- देखा बाबू! है न मेरा निशाना अच्छा, खिलाया न आपको जामुन, मीठा है न बहुत, बोलो ना।

बिरजू- नही तो ज्यादा मीठा तो नही था, बाकी निशाना तो तेरा बहुत अच्छा है। (बिरजू ने जानबूझकर ये बोला कि जामुन मीठा नही है वो देखना चाहता था कि नीलम अब क्या करेगी, क्योंकि वो सबसे ज्यादा पका हुआ अच्छा जामुन था)

नीलम- क्या बाबू, कितना अच्छा मीठा जामुन खिलाया आपको मैंने और आप कह रहे हैं कि मीठा ही नही था, तो और कैसे मीठा होगा? (तभी नीलम को ये बात click कर गयी, वो समझ गयी उनके बाबू ने ऐसा क्यों बोला), अच्छा रुको अब मैं तुम्हे सच में बहुत मीठा जामुन खिलाती हूँ, एक बार फिर से मुँह खोलो।

बिरजू ने फिर मुँह खोला- नीलम में एक और बड़ा सा जामुन तोड़ा और अपने बाबू को दिखाते हुए उसे थोड़ा सा काटकर जूठा किया, ये देखते ही बिरजू की आंखें खुशी से चमक गयी, वो अपनी बेटी की समझ को समझ गया, नीलम ने जामुन जूठा करके निशाना लगा के सीधा अपने बाबू के मुँह में फेंका, इस बार भी जामुन सीधा मुँह में गया और वाकई में इस बार के जामुन में बेटी के होंठों की मदहोश कर देने वाली खुशबू थी, बिरजू उसे आंखें बंद करके नशे में खाने लगा तो ऊपर से नीलम उन्हें देखकर हंस दी, नीलम और बिरजू दोनों के ही बदन में अजीब सी सुरसुरी दौड़ गयी। बिरजू ने वो जामुन खा लिया फिर आंखें खोलकर ऊपर देखा तो नीलम उसे ही बड़े प्यार से देख रही थी।

नीलम ने पूछा- ये वाला मीठा था?

बिरजू- बहुत, बहुत मीठा, तेरा प्यार जो था इसमें, ये दुनिया का सबसे मीठा जामुन था।

नीलम- मेरे छूने से इतना मीठा हो गया बाबू।

बिरजू- हाँ और क्या, तू है ही इतनी मीठी।

नीलम- मैं मीठी हूँ?

बिरजू- बहुत

नीलम- सिर्फ इतने से पता लग गया आपको?

बिरजू- थोड़ा थोड़ा तो पता लग ही गया, बाकी का..........

नीलम- बाकी का क्या?.....बाबू बोलो न रुक क्यों गए।

बिरजू- बोल दूँ।

नीलम धीरे से-हम्म्म्म

बिरजू- बाकी का तो तुझे पूरा चख के पता लगेगा, होंठों का तो पता लग गया बहुत मीठे होंगे।

नीलम- हाय दैय्या, धत्त बाबू, बेशर्म.... कोई सुन लेगा तो क्या सोचेगा, धीरे बोलो, अम्मा भी घर पर ही हैं (नीलम अपने बाबू के इस खुले बेबाक जवाब से बेताहाशा शर्मा गयी, बदन उसका गनगना गया, पूरे बदन में झुरझुरी सी दौड़ गयी, वासना की तरंगें उठने लगी, क्योंकि वो ऊपर पेड़ पर थी तो उसने झट से बात को बदला), अच्छा बाबू और खाओगे जामुन?

बिरजू- मन तो बहुत है मेरी बेटी पर अब अभी नही।

नीलम- तब कब?

बिरजू- वही, तेरी अम्मा के जाने के बाद।

नीलम मुस्कुरा दी- रात को खिलाऊंगी फिर।

बिरजू- हाँ बिल्कुल, और बचा के रख लेना जामुन सारा मत भेजना नाना के यहां।

नीलम- ठीक है बाबू।

नीलम और बिरजू दोनों एक दूसरे को कातिल मुस्कान से देखने लगे दोनों की आंखों में वासना भर चुकी थी।
 

Nasn

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Update- 44

नीलम ने पलटकर अपने बाबू को देखा और फिर अपनी माँ की तरफ देखा फिर बोली- बाबू ठीक से पकड़कर उठाओ न, दम लगा के ऐसे तो मैं चढ़ ही नही पाऊंगी, उस डाल तक उठा दो बस वो पकड़ में आ जाये फिर तो मैं चढ़ जाउंगी।

बिरजू ने भी एक बार पलटकर नीलम की माँ को देखा, वो अपने काम में मस्त थी, बिरजू ने नीलम को बोला थोड़ा इधर आ इस तरफ से चढ़, बिरजू और नीलम पेड़ के तने के दायीं ओर आ गए और पेड़ के मोटे तने के पीछे छुप से गये, वहां से नीलम की माँ दिख नही रही थी, पेड़ से ओट हो गया था।

नीलम ने फिर कोशिश की, बिरजू ने जैसे ही कमर को हाँथ लगाया नीलम ने अपने बाबू का हाँथ खुद ही पकड़कर अपने विशाल चूतड़ पर रख दिया और बोली- बाबू कमर पर नही यहां हाँथ लगा के उठाना, और अपने बाबू को देखकर हंस दी फिर बोली- अब तो अम्मा भी नही दिख रही यहां से, अब मुझे सहारा दो अच्छे से।

बिरजू भी हंस दिया और बोला- ठीक है चल, जल्दी कर।

नीलम ने एक पैर पेड़ के तने पर रखा और दोनों हांथों से तने को पकड़ा, बिरजू ने जैसे ही अपना एक हाँथ नीलम की कमर पर लगाया और दूसरा हाँथ उसकी चौड़ी मांसल गांड पर लगाया, नीलम और बिरजू दोनों एक साथ सिरह उठे, क्या मस्त गुदाज गांड थी नीलम की, बिरजू बावला सा हो गया, बिरजू के हाँथ की उंगलियाँ मानो नीलम की गुदाज फूली हुई गांड में धंस सी गयी।

नीलम- ऊऊऊऊईईईईईई.....बाबू.....हाँ ऐसे ही उठाओ, जोर लगाओ, पकड़े रहना, बस वो डाली पकड़ लूं मैं।

नीलम ने थोड़ा ऊपर चढ़कर अपने हाँथ से उस डाली को पकड़ने की कोशिश की, वो डाली उसकी पहुंच से सिर्फ एक फुट ऊपर थी।

बिरजू तो मस्त हो चुका था अपनी सगी बेटी के मांसल बदन को छूकर और उसकी मदमस्त चौड़ी गांड को दबोचकर।

बिरजू- हाँ चढ़ बेटी, मैंने पकड़ा है नीचे से, गिरेगी नही।

ऐसा कहते हुए बिरजू ने अपना दूसरा हाँथ भी कमर से हटा कर नीलम के दूसरे चूतड़ पर रख दिया और अब दोनों हांथों से उसके चूतड़ के दोनों उभार थाम लिए, अपनी बेटी के मादक गरम गुदाज गांड की लज़्ज़त और नरमी का अहसास मिलते ही बिरजू के लंड में हलचल होने लगी। उसने एक पल के लिए आंखें बंद कर ली। नीलम भी सिरहते और शर्माते हुए डाली को पकड़ने की नाकाम कोशिश कर रही थी।

बिरजू का मन कर रहा था कि अपना हाँथ अपनी बेटी की गांड की महकती दरार पर रख दे पर संकोच उसे रोक ले रहा था, तभी नीलम बोली- बाबू और जोर लगाओ न, और उठाओ मुझे, इसलिए बोलती हूँ दूध पिया करो ताकत रहेगी, पीते तो हो नही, उठाओ और जोर से मुझे। (नीलम ने double meaning में कहा)

बिरजू अपनी बेटी की बात का अर्थ समझ गया और बोला- दूध है ही कहाँ जो पियूँ बेटी, तुझे तो पता है गाय बूढ़ी हो गयी है अब कहाँ दूध होता है उसको।

नीलम- अच्छा, बहाना मत करो, जिसको दूध पीने की इच्छा होती है न वो कैसे न कैसे करके घर में या बाहर से दूध की व्यवस्था कर ही लेता है, गाय बूढ़ी हो गयी तो क्या हुआ उसकी जवान बछिया तो है न। (नीलम ने double meaning में खुला निमंत्रण सा दिया अपने बाबू को और ये बोलकर वो खुद सिरह गयी, शर्म से उसका चेहरा लाल हो गया, हालांकि उसका चेहरा ऊपर की तरफ था)

(नीलम के घर में सच में एक गाय थी जो बूढ़ी हो चुकी थी और इत्तेफ़ाक़ से उसकी एक जवान बछिया भी थी पर अभी उसकी मैचिंग किसी बैल से नही हुई थी तो उसको कोई बच्चा नही हुआ था और जब बच्चा ही नही हुआ था तो उसको दूध कैसे होता, इसी गाय और बछिया को लेकर नीलम और बिरजू डबल मीनिंग में कामुक बातें करने लगे)

बिरजू- पर बछिया को दूध आता ही कहाँ है बेटी, जब तक उसको बच्चा नही होगा वो दूध नही देगी और बाहर का दूध मैं पियूँगा नही।

नीलम- सच, आप बाहर का दूध नही पियोगे।

बिरजू- नही, बिल्कुल नही।

नीलम- तब तो फिर बछिया को जल्दी बच्चा देना होगा, पर वो बेचारी अकेली तो बच्चा कर नही सकती न, अब तो किसी बैल को बुलाना होगा न बाबू।

(और इतना कहती हुई नीलम खिलखिलाकर अपने बाबू को नीचे की तरफ देखती हुई हंस दी, बिरजू भी नीलम की गुदाज गांड को अपने दोनों हांथों से पकड़े पकड़े हंस दिया, दोनों के चहरे और कान वासना की गर्माहट से लाल हो चुके थे, दोनों ने एक बार फिर पेड़ की ओट से झांककर नीलम की माँ को देखा तो वो बस घास ही पीटने में लगी थी)

बिरजू- हाँ अगर दूध पीना है तो उसको बैल के पास तो ले जाना ही पड़ेगा।

नीलम- इस पर हम बाद में बात करेंगे, क्योंकि आपकी सेहत की बात है और मैं अपने बाबू की सेहत से समझौता नही कर सकती।

बिरजू- कब बात करेगी मेरी बेटी इस विषय में।

नीलम- जब अम्मा नही रहेंगी तब, रात को....ठीक, रुक क्यों गए ऊपर को ठेलों न मुझे बाबू, लटकी हुई हूँ बीच में मैं, उठाओ जोर से।

जैसे ही बिरजू ने तेज जोर लगाने के लिए दम लगाया, न जाने कहाँ से एक लाल ततैया आ के बिरजू के हाँथ पर बैठ गयी और बिरजू ने हाँथ तेज से झटका, ततैया तो फुर्र से उड़ गई पर ऊपर को चढ़ने की कोशिश कर रही नीलम का बैलेंस बिगड़ा और वो सीधे नीचे सरक कर अपने बाबू पर इस तरह गिरी की उसकी भारी गुदाज गांड बिरजू के चहरे पर बैठ गयी, बिरजू की नाक सीधे नीलम की मक्ख़न जैसी मुलायम गांड की दरार में जा घुसी।

नीलम- अरेरेरेरेरे.......ऊऊऊऊऊईईईईईईईई.......... बाबू........अरे मैं गिरी.....पकड़ो मुझे........बाबू........आआआआआआआआह हहहहहहहहहहहह......बाबू आपको लगी तो नही।

लगने की बात तो दूर, बिरजू ने ये सोचा भी नही था कि अचानक ऐसा हो जाएगा आज जीवन में पहली बार ये क्या हो रहा था, पर जो हो रहा था उसमें वो खो गया, आखिर इस लज़्ज़त को भला वो कैसे जाने देता जिसके लिए वो मन ही मन तरसता था। ये समझ लो की नीलम अपने बाबू के चेहरे पर अपनी भारी गांड रखकर बैठ चुकी थी, अपनी ही जवान सगी शादीशुदा बेटी की इतनी गुदाज गांड की दरार में एक दिन अचानक उसका मुँह घुस जाएगा ये बिरजू ने कभी सोचा नही था और न ही नीलम ये सोचा था।

नीलम की रसभरी चौड़ी गांड की मदहोश कर देने वाली भीनी भीनी महक को बिरजू सूंघने लगा, उसने जानबूझ के अपनी नाक को और नीलम की गांड की दरार में घुसेड़ दिया और अच्छे से अपनी सगी शादीशुदा बेटी की गांड की महक को जी भरकर सूंघने लगा, नीलम धीरे से शर्माते हुए अपनी मोटी गांड और मांसल जांघे आपस में भींचते हुए चिहुँक उठी, एकाएक अपने बाबू की नाक और मुँह अपनी गांड की गहराई और बूर के पास महसूस करके नीलम चौंक सी गयी और चिहुँकते, शर्माते हुए
ऊऊऊऊईईईईईई.......माँ की कामुक आवाज निकलते हुए सिरह उठी और कुछ देर तो वो खुद ही मदहोशी में अपने बाबू के मुँह पर अपनी गांड और बूर रखे बैठी सिसकती रही उसे काफी गुदगुदी भी हो रही थी।

फिर वो समझ गयी कि उसके बाबू दीवाने हो चुके है और उसकी गांड और बूर के छेद को कपड़ों के ऊपर से ही सूंघने में लगे हुए हैं, बिरजू ने दोनों हाँथों से नीलम की कमर को पकड़ रखा था, नीलम के दोनों पैर पेड़ के तने पर ही थे और हांथों से नीलम ने तने को घेरा बना के कस कर पकड़ा हुआ था, नीलम अब शर्म से गड़ी जा रही थी, अपनी गांड की मखमली दरार में और बूर पर उसे अपने बाबू की नाक और दहकते होंठ महसूस हुए तो वो फिर से चिहुँक उठी और उसके मुँह से भी जोर से मादक सिकारियाँ निकल गयी, ये सब इतनी जल्दी हुआ कि न तो नीलम ही संभाल पाई और न ही बिरजू और जो होना था वो हो चुका था, अपनी सगी बेटी की गांड और बूर की खुशबू और उसका अच्छे से अहसास करके बिरजू बेकाबू सा होने लगा।

नीलम ने समय की नजाकत को समझते हुए, शर्माते हुए, अपने को बेकाबू होने से संभालते हुए अपनी अम्मा की तरफ एक नज़र घुमा के पेड़ की ओट से देखा और अपने चौड़े चूतड़ और बूर की खुशबू लेकर मदहोश हो चुके अपने बाबू से उखड़ती सांसों से बोला- बाबू.....अम्मा देख लेगी...बस करो न...बाद में कर लेना ऐसा.....बस करो न बाबू।

बिरजू ने जब ये सुना तो उसकी बांछे खिल गयी और फिर उसने नीलम के दोनों चूतड़ पर अपने हाँथ लगा के ऊपर को उठा दिया और तेज चल रही सांसों को संभालते हुए बोला- बाद में कब बेटी? मुझे तेरे बदन से आ रही ये मदहोश कर देने वाली खुशबू लेना है, कितनी अच्छी है ये, खुशबू लेने देगी मुझे?

नीलम- रात को जब अम्मा चली जायेगी, तब कर लेना जो भी करना हो (नीलम ने ये बात बहुत उत्तेजना से धीरे से बोली)

बिरजू- सच, करने दोगी।

नीलम- हाँ बाबू, बिल्कुल, क्यों नही, पर अभी अम्मा देख सकती है जब वो चली जायेगी तब।

ये कहकर नीलम शर्म से लाल भी होती चली गयी।

बिरजू की तो ये सुनकर मानो लॉटरी लग गयी थी, दिल में हज़ारों घंटियाँ एक साथ बजने लगी, अपनी ही सगी शादीशुदा बेटी के यौवन का रसपान उसे अपने ही घर में चुपके चुपके करने को मिल जाएगा, इस बात को सोचकर ही वो फूला नही समाया और जोश में आकर उसने नीलम को कस के उसकी दोनों गांड पकड़के इतनी तेज उठाया की नीलम ऊऊऊऊईईईईईई करते हुए ऊपर को उचकी और उसने अब वो डाल पकड़ ली, और फिर पैर ऊपर रखते हुए दूसरे हाँथ से दूसरी डाल पकड़ते हुए जामुन के पेड़ पर चढ़ गई। बिरजू वासना भारी नजरों से अपनी सगी बेटी के मादक गदराए बदन को पेड़ पर चढ़ते हुए निहारता रहा।

नीलम पेड़ पर डाल पकड़ पकड़ कर ऊपर चढ़ने लगी, पैर फैला कर जब नीलम ने आगे बढ़ने और ऊपर चढ़ने के लिए एक डाल पर रखा तो नीचे खड़े बिरजू को अब जाकर फैले घाघरे के अंदर वो दिखा जिसको देखने के लिए उसकी आंखें तरस रही थी, घाघरे के अंदर नीलम को गोरी गोरी टांगें जाँघों तक दिख गयी, बिरजू अवाक सा रह गया, कितनी मांसल जाँघे थी नीलम की, लार ही टपक पड़ी उसकी अपनी ही बेटी की जाँघे देखकर, तभी नीलम ने अपना दूसरा पैर उठा कर दूसरी डाल पर रखा और एक मोटी डाल पर वहीं बैठ गयी, घाघरा नीचे लटका हुआ था, दोनों गोरे गोरे पैर और जाँघों का निचला हिस्सा देखकर बिरजू सनसना गया, एकटक लगाए वो अपनी बेटी के घाघरे में ही झांकने की कोशिश कर रहा था, नीलम ने नीचे अपने बाबू को देखा तो उसने पाया कि उसके बाबू की प्यासी नज़रें कहाँ है, समझते उसे देर नही लगी और वो मुस्कुरा दी, उसने एक जामुन तोड़ा और खींच कर अपने बाबू के ऊपर फेंका, जामुन सीधा बिरजू के सर पर लगा और फूटकर फैल गया, बिरजू की तन्द्रा भंग हुई तो नीलम खिलखिलाकर हंसने लगी और बोली- बाबू खाट को खींचकर मेरी सीध में लाओ ताकि मैं जामुन तोड़कर उसपर फेंकती रहूँ।

बिरजू को होश आया तो वो झेंप सा गया फिर जल्दी से उसने खाट को खींचकर नीलम की सीध में नीचे किया, और ऊपर देखने लगा, नीलम की नजरें अपने बाबू से मिली तो दोनों मुस्कुरा दिए, नीलम अभी डाली पर घाघरे को समेटकर जानबूझ कर बैठी थी वो जानती थी खड़े होने पर बाबू को घाघरे के अंदर का नज़ारा अच्छे से दिख जाएगा पर वो अपने बाबू को कुछ देर तड़पाकर उनकी हालत देखना चाहती थी, बिरजू भी बार बार सर उठाये अपनी बेटी के घाघरे के अंदर झांकने की कोशिश करता और जो भी थोड़ा बहुत दिख रहा था उसे ही बड़ी वासना भरी नजरों से देखता।

नीलम ने बिरजू से इशारे से पूछा कि अम्मा क्या कर रही है क्योंकि ऊपर पत्तियों की आड़ से नीचे दूर साफ दिख नही रहा था, बिरजू ने एक नजर नीलम की माँ पर डाली तो देखा कि वो घास को बड़ी टोकरी में भरकर बगल में कुएं पर ही बने बड़े से हौदे में धोने के लिए डाल रही थी, उसने नीलम को ग्रीन सिग्नल का इशारा किया, नीलम और बिरजू दोनों मुस्कुराने लगे।

नीलम ने नीचे अपने बाबू को देखते हुए एक हाँथ से डाल पकड़े, डाल पर बैठे बैठे ही आस पास लगे जामुनों के गुच्छों में से अच्छे पके पके जामुन तोड़कर नीचे खाट पर फेंकना तो दूर पहले तोड़कर खुद ही खाने लगी, ऊपर जामुनों की भरमार थी, पूरा पेड़ जामुन से लदा हुआ था, आस पास पके पके बड़े बड़े काले काले जामुनों को देखकर नीलम से रहा न गया और वो खिलखिलाकर हंसते हुए अपने बाबू को नीचे देख देखकर रिझाकर जामुन तोड़कर खाने लगी।

अब बिरजू ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए अपनी कमर पर दोनों हाँथ रखकर खड़ा हो गया और बोला- तू वहां जामुन तोड़ने गयी है कि खाने गयी है।

नीलम- अरे बाबू यहां पर आ के कितना अच्छा लग रहा है देखो न कितने बड़े बड़े मीठे मीठे काले काले जामुन है ऊपर, नीचे से तो ये दिखते ही नही है, अच्छा लो आप मुँह खोलो, आ करो आपके मुँह में मैं यहीं से फेंककर मरती हूँ जामुन, देखना सीधे मुँह में जायेगा।

बिरजू- तेरी मां ने देख लिया न तो हम दोनों का जामुन निकाल देगी (बिरजू ने बनावटी गुस्से से कहा, पर वो चाहता था कि उसकी बेटी अच्छे से अपने मन की कर ले)

नीलम- अरे बाबू आप अम्मा से कितना डरते हो, उनको मैं देख लुंगी आप मुँह खोलो, खोलो तो सही, एक बार बाबू......बस एक बार....खोलो न मुँह अपना...जोर से आ करो, खूब जोर से, यहीं से डालूंगी आपके मुँह में सीधा जामुन।

बिरजू को भी नीलम की शरारते बहुत भा रही थी, उसने बड़ा सा मुँह खोला, नीलम ने एक अच्छा सा जामुन तोड़कर तीन चार बार अच्छे से निशाना लगाया और खींचकर अपने बाबू के मुँह की तरफ फेंका, जामुन सीधा बिरजू के गाल पर जा के पट्ट से लगा, फुट गया, जामुन का जमुनी रस गाल पर फैल गया।

बिरजू- लो! यही निशाना है तेरा, बस अब रहने दे तू, खिला चुकी तू जामुन अपने बाबू को (बिरजू ने double meaning में कहा)

नीलम- जामुन तो मैं खिला के रहूँगी अपने बाबू को, देख लेना, बाबू एक बार और, एक बार और न बाबू, देखो एक दो बार तो इधर उधर हो ही जाता है, फिर आ करो न, करो न बाबू, इस बार ठीक से फेंकूँगी, देखो मैं कितनी ऊपर भी तो हूँ, पर इस बार पक्का सीधा मुँह में डालूंगी।

बिरजू अपनी बेटी की इस बचपने और जिद पर निहाल होता जा रहा था आज नीलम उसे जवानी और बचपन हर तरह का प्यार दे रही थी, उसने फिर से आ किया, बड़ा सा मुँह खोला।

नीलम ने अपने आस पास सर उठा के एक अच्छा सा बड़ा सा जामुन देखा और तोड़कर पांच छः बार निशाना लगाया फिर खींच कर अपने बाबू के मुँह में फेंका, इस बार जामुन सीधा बिरजू के मुँह में गप्प से चला गया और बिरजू उस रसभरे मीठे जामुन को खाने लगा।

नीलम- देखा बाबू! है न मेरा निशाना अच्छा, खिलाया न आपको जामुन, मीठा है न बहुत, बोलो ना।

बिरजू- नही तो ज्यादा मीठा तो नही था, बाकी निशाना तो तेरा बहुत अच्छा है। (बिरजू ने जानबूझकर ये बोला कि जामुन मीठा नही है वो देखना चाहता था कि नीलम अब क्या करेगी, क्योंकि वो सबसे ज्यादा पका हुआ अच्छा जामुन था)

नीलम- क्या बाबू, कितना अच्छा मीठा जामुन खिलाया आपको मैंने और आप कह रहे हैं कि मीठा ही नही था, तो और कैसे मीठा होगा? (तभी नीलम को ये बात click कर गयी, वो समझ गयी उनके बाबू ने ऐसा क्यों बोला), अच्छा रुको अब मैं तुम्हे सच में बहुत मीठा जामुन खिलाती हूँ, एक बार फिर से मुँह खोलो।

बिरजू ने फिर मुँह खोला- नीलम में एक और बड़ा सा जामुन तोड़ा और अपने बाबू को दिखाते हुए उसे थोड़ा सा काटकर जूठा किया, ये देखते ही बिरजू की आंखें खुशी से चमक गयी, वो अपनी बेटी की समझ को समझ गया, नीलम ने जामुन जूठा करके निशाना लगा के सीधा अपने बाबू के मुँह में फेंका, इस बार भी जामुन सीधा मुँह में गया और वाकई में इस बार के जामुन में बेटी के होंठों की मदहोश कर देने वाली खुशबू थी, बिरजू उसे आंखें बंद करके नशे में खाने लगा तो ऊपर से नीलम उन्हें देखकर हंस दी, नीलम और बिरजू दोनों के ही बदन में अजीब सी सुरसुरी दौड़ गयी। बिरजू ने वो जामुन खा लिया फिर आंखें खोलकर ऊपर देखा तो नीलम उसे ही बड़े प्यार से देख रही थी।

नीलम ने पूछा- ये वाला मीठा था?

बिरजू- बहुत, बहुत मीठा, तेरा प्यार जो था इसमें, ये दुनिया का सबसे मीठा जामुन था।

नीलम- मेरे छूने से इतना मीठा हो गया बाबू।

बिरजू- हाँ और क्या, तू है ही इतनी मीठी।

नीलम- मैं मीठी हूँ?

बिरजू- बहुत

नीलम- सिर्फ इतने से पता लग गया आपको?

बिरजू- थोड़ा थोड़ा तो पता लग ही गया, बाकी का..........

नीलम- बाकी का क्या?.....बाबू बोलो न रुक क्यों गए।

बिरजू- बोल दूँ।

नीलम धीरे से-हम्म्म्म

बिरजू- बाकी का तो तुझे पूरा चख के पता लगेगा, होंठों का तो पता लग गया बहुत मीठे होंगे।

नीलम- हाय दैय्या, धत्त बाबू, बेशर्म.... कोई सुन लेगा तो क्या सोचेगा, धीरे बोलो, अम्मा भी घर पर ही हैं (नीलम अपने बाबू के इस खुले बेबाक जवाब से बेताहाशा शर्मा गयी, बदन उसका गनगना गया, पूरे बदन में झुरझुरी सी दौड़ गयी, वासना की तरंगें उठने लगी, क्योंकि वो ऊपर पेड़ पर थी तो उसने झट से बात को बदला), अच्छा बाबू और खाओगे जामुन?

बिरजू- मन तो बहुत है मेरी बेटी पर अब अभी नही।

नीलम- तब कब?

बिरजू- वही, तेरी अम्मा के जाने के बाद।

नीलम मुस्कुरा दी- रात को खिलाऊंगी फिर।

बिरजू- हाँ बिल्कुल, और बचा के रख लेना जामुन सारा मत भेजना नाना के यहां।

नीलम- ठीक है बाबू।

नीलम और बिरजू दोनों एक दूसरे को कातिल मुस्कान से देखने लगे दोनों की आंखों में वासना भर चुकी थी।
एक ओर रोकिंग फोकिंग झक्कास अपडेट
 
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