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Romance पिँकी...

Chutphar

Mahesh Kumar
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नमस्कार दोस्तो, मै महेश कुमार एक बार फिर से अपनी एक नयी कहानी लेकर आ रहा हुँ। पर इस
कहानी के लिये आपको कुछ ज्यादा ही इन्तजार करना पङेगा..!

क्योंकि मै देख रहा हुँ की मेरी पहले की कहानियों को छोटी होने की वजह से आपने इतना ज्यादा पसंद नही किया। पर इस बार कहानी को बङा करने कि वजह से आपको अपडेट मे इन्तजार करना पङेगा..

अब कहानी शुरु करने से पहले जैसा की मैं आपको पहले भी बता चुका हूँ, वो ही एक बार फिर से दोहरा रहा की मेरी सभी स्टोरीज काल्पनिक हैं जिनका किसी से भी कोई सम्बन्ध नहीं, अगर होता भी है तो यह मात्र एक सँयोग ही होगा..."
 

Chutphar

Mahesh Kumar
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मेरी पिछली कहानियाँ (रेखा भाभी)", (एक‌ हसीन गलती)"एक हसीन गलती..!" और "कभी हमारे साथ भी सो‌ जाओ..!" मे आपने मेरे बारे मे तो जान ही लिया होगा अब यह उसके आगे का एक वाकिया है लिख रहा हुँ… उम्मीद है यह आपको पसन्द आये...!

यह कहानी है मेरी व पिंकी की है। अभ जैसा कि उसका नाम‌ हैं ‘पिंकी’ वो थी भी बिल्कुल वैसी ही।

बिल्कुल सफेद गोरा रँग जो हल्का सा हाथ लगाने से भी लाल गुलाबी हो जाये, और तो और वो अधिकतर कपड़े भी गुलाबी रंग के पहनती थी जिसके कारण वो पिंक यानि की गुलाबी, या ये कहें कि किसी ताजा खिले गुलाब की तरह लगती थी।

पिंकी का घर हमारे घर के बगल में ही है, हमारे घर व पिंकी के घर की छत आपस में मिली हुई है, बस दोनों छतों के बीच कमर तक ऊँचाई की एक पतली सी दीवार ही है इसलिए हम छत से भी एक दूसरे के घर चले जाते थे।

वैसे भी पड़ोसी होने के नाते हमारा व पिंकी के घर काफी आना जाना था मगर उस समय मेरी व पिंकी की कभी बनती नही थी। बचपन से ही हम दोनों झगड़ते रहते थे।

बचपन में मेरी नाक बहती थी इसलिये वो मुझे बहँगा कहती थी, और पिंकी को मैं छिपकली कहता था क्योंकि दुबले-पतले शरीर व बिल्कुल सफेद गोरे रँग के कारण वो लगती भी छिपकली ही थी।

वैसे उसकी हरकतें भी कुछ छिपकली के जैसी ही थी क्योंकि जब भी उसे गुस्सा आता तो वो छिपकली की तरह चिपक जाती व नाखूनों और दाँतों से काट खाती थी।

अब बड़ा होने पर मेरी नाक तो बहनी बन्द हो गई मगर पिंकी की हरकतें बाद में भी बिल्कुल वैसी ही रही, किसी से झगड़ा होने पर वो अब भी उसे नाखूनों व दाँतों से काट खाती थी।

हम दोनों में अब भी नहीं बनती थी, इसलिये अभी तक हम दोनों एक दूसरे को बचपन के नाम से ही चिढ़ाते थे। हम दोनों में से किसी को भी अगर चिढ़ाने का कोई मौका मिल जाये तो हम अब भी बाज नहीं आते थे।

जब भी पिंकी मुझे बोलती तो वो मुझे बहँगा ही कहकर बुलाती और मैं भी उसे छिपकली कहकर पुकारता था।

वैसे पिंकी भी मेरे समान कक्षा में ही पढ़ती थी मगर वो लड़कियों के स्कूल में पढ़ती थी और मैं लड़कों के स्कूल में पढ़ता था। वो भी पढ़ने में काफी होशियार थी। हम दोनों में अब यह होड़ लगी रहती थी की परीक्षा में किसके नम्बर अधिक आयें।

पहले तो मैं भी पढ़ने में काफी अच्छा था मगर फिर बाद में तो आपको पता ही है भाभी के साथ सम्बन्ध बनने के बाद मैं पढ़ाई से काफी दूर होता चला गया था।
 
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tpk

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मेरी पिछली कहानियाँ (रेखा भाभी)", (एक‌ हसीन गलती)"एक हसीन गलती..!" और "कभी हमारे साथ भी सो‌ जाओ..!" मे आपने मेरे बारे मे तो जान ही लिया होगा अब यह उसके आगे का एक वाकिया है लिख रहा हुँ… उम्मीद है यह आपको पसन्द आये...!

यह कहानी है मेरी व पिंकी की है। अभ जैसा कि उसका नाम‌ हैं ‘पिंकी’ वो थी भी बिल्कुल वैसी ही।

बिल्कुल सफेद गोरा रँग जो हल्का सा हाथ लगाने से भी लाल गुलाबी हो जाये, और तो और वो अधिकतर कपड़े भी गुलाबी रंग के पहनती थी जिसके कारण वो पिंक यानि की गुलाबी, या ये कहें कि किसी ताजा खिले गुलाब की तरह लगती थी।

पिंकी का घर हमारे घर के बगल में ही है, हमारे घर व पिंकी के घर की छत आपस में मिली हुई है, बस दोनों छतों के बीच कमर तक ऊँचाई की एक पतली सी दीवार ही है इसलिए हम छत से भी एक दूसरे के घर चले जाते थे।

वैसे भी पड़ोसी होने के नाते हमारा व पिंकी के घर काफी आना जाना था मगर उस समय मेरी व पिंकी की कभी बनती नही थी। बचपन से ही हम दोनों झगड़ते रहते थे।

बचपन में मेरी नाक बहती थी इसलिये वो मुझे बहँगा कहती थी, और पिंकी को मैं छिपकली कहता था क्योंकि दुबले-पतले शरीर व बिल्कुल सफेद गोरे रँग के कारण वो लगती भी छिपकली ही थी।

वैसे उसकी हरकतें भी कुछ छिपकली के जैसी ही थी क्योंकि जब भी उसे गुस्सा आता तो वो छिपकली की तरह चिपक जाती व नाखूनों और दाँतों से काट खाती थी।

अब बड़ा होने पर मेरी नाक तो बहनी बन्द हो गई मगर पिंकी की हरकतें बाद में भी बिल्कुल वैसी ही रही, किसी से झगड़ा होने पर वो अब भी उसे नाखूनों व दाँतों से काट खाती थी।

हम दोनों में अब भी नहीं बनती थी, इसलिये अभी तक हम दोनों एक दूसरे को बचपन के नाम से ही चिढ़ाते थे। हम दोनों में से किसी को भी अगर चिढ़ाने का कोई मौका मिल जाये तो हम अब भी बाज नहीं आते थे।

जब भी पिंकी मुझे बोलती तो वो मुझे बहँगा ही कहकर बुलाती और मैं भी उसे छिपकली कहकर पुकारता था।

वैसे पिंकी भी मेरे समान कक्षा में ही पढ़ती थी मगर वो लड़कियों के स्कूल में पढ़ती थी और मैं लड़कों के स्कूल में पढ़ता था। वो भी पढ़ने में काफी होशियार थी। हम दोनों में अब यह होड़ लगी रहती थी की परीक्षा में किसके नम्बर अधिक आयें।

पहले तो मैं भी पढ़ने में काफी अच्छा था मगर फिर बाद में तो आपको पता ही है भाभी के साथ सम्बन्ध बनने के बाद मैं पढ़ाई से काफी दूर होता चला गया था।
nice start
 

Chutphar

Mahesh Kumar
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अभी तक आपने मेरे व पिँकी के बारे मे थोङा बहुत जान‌ लिया होगा... चलो मै अब सीधा कहानी पर आता हुँ...

सुमन दीदी के चले जाने के बाद मैं अब फिर से अपनी भाभी के साथ सोने लगा था। अब सब कुछ अच्छा ही चल रहा था की एक दिन मेरी भाभी छत से सुखे कपड़े लाना भूल गयी थी।

मेरी भाभी उस समय भाभी खाना बनाने में व्यस्त थी इसलिए भाभी के कहने पर मैं ऊपर छत पर से कपड़े लेने चला गया।

मैं कपड़े उतारकर छत पर से अब वापस आ ही रहा था कि तभी मेरी नजर सामने पिंकी के घर की तरफ चली गई, उनके घर में एक कमरा व लैटरीन बाथरुम ऊपर छत पर भी बना हुआ है।

वैसे तो वो लोग उपर के कमरे को इतना इस्तेमाल नही करते मगर उस रात कमरे की लाईट जल रही थी और हमारे घर के तरफ वाली खिङकी भी खुली हुई थी जिससे मेरा ध्यान अब अनायास ही उस ओर चला गया..

मैने अब खिङकी की ओर देखा तो बस अब देखता ही रह गया, क्योंकि उस खिड़की में से बेहद ही गोरी चिकनी व नंगी पीठ दिखाई दे रही थी।

वैसे तो खिड़की से बस कमर के ऊपर का ही हिस्सा ही दिखाई दे रहा था मगर फिर भी दुबले पतले बदन और बेहद ही गोरे रंग से मुझे पहचानने में देर नहीं लगी कि वो पिंकी है।

वो नीचे झुकी और फिर हाथों में कुछ पकड़ कर सीधी हो गई. शायद उसने नीचे कुछ पहना था, फिर उसने शमीज (लड़कियों के पहनने का अन्तः वस्त्र) पहना और फिर ऊपर से उसने गुलाबी रंग की टी-शर्ट डाल ली।

अब ये नजारा देख कौन होगा जिसके लण्ड मे कोई हलचल ना हो..? मगर फिर तभी उस कमरे की लाईट बन्द हो गई। शायद वो बाहर आने वाली थी इसलिये मैं भी कपङे लेकर चुपचाप नीचे आ गया..

मगर उस नजारे को देखकर मेरे तन बदन में आग सी लग गयी थी। इसलिये कपङो को भाभी के कमरे मे पटककर मै अब ऐसे ही लेट गया और पिंकी के बारे में सोचने लगा...

वैसे मैंने पिंकी को कभी भी इस नजर से नहीं देखा था, और देखता भी तो कैसे...?वो किसी भी तरीके से लड़की लगती ही कहाँ थी..?

उसके दुबले पतले शरीर पर कही भी मांस नहीं दिखाई देता था, बस सीने पर हल्के से उभार ही दिखाई देते थे‌ और वो भी किसी छोटे निम्बू के समान ही थे।

वैसे वो अपने दुबले पतले शरीर के साथ साथ रहती भी तो लड़कों की तरह ही थी, लड़कों की तरह बाल कटवाना, लड़कों की तरह ही कपड़े पहनना, और तो और स्कूल की वर्दी भी उसने पेंट-शर्ट की ही बनवा रखी थी।

उसके स्कूल में सब लड़कियाँ शलवार कमीज पहनी थी मगर वो अकेली थी जो स्कूल में भी पेंट-शर्ट पहनती थी।

घर में भी वो हमेशा लोवर और टी-शर्ट पहने रहती, और तो और जब कभी बाहर जाती तो पैंट-शर्ट या जीन्स के साथ टी-शर्ट ही पहन कर बाहर निकलती थी।

मैंने कभी भी उसे लड़कियों के कपड़े पहने हुए नहीं देखा था, मगर आज मैंने उसकी सफेद कोरे कागज जैसी नंगी पीठ को देखा था मेरे तन बदन में आग सी लग गयी थी।

मैं उसके बेहद ही दूधिया सफेद गोरे रंग का कायल सा हो गया था, मैं सोच रहा था कि अगर उसका बदन ही इतना गोरा है तो उसके नन्हे उरोज व उसकी प्यारी सी वो "मुनिया" कैसी होगी..?अब यह बात मेरे दिमाग में आते मैं रोमांच से भर गया।

मैं अब पिंकी के ख्यालों में इतना खोया हुआ था कि पता ही नहीं चला कब मेरी भाभी कमरे में आ गयी। मेरी तन्द्रा तो तब टूटी जब भाभी ने मुझे टोकते हुए पूछा-" कहाँ खोये हुए हो, आज खाना‌ नही खाना‌ क्या..?"

मेरी भाभी के बात करने पर भी मैं बस अब हाँ ना में ही उनकी बात का जवाब दे रहा था। मेरे व्यवहार से अब वो भी समझ गयी कि कुछ ना कुछ बात है इसलिये भाभी ने फिर से मुझे पूछा- "क्या बात है आज तबीयत खराब है क्या..?"

मगर मैं सोच रहा था कि भाभी को पिंकी के बारे में कहूँ या ना कहूँ? तभी बाहर से "भाभी… भाभी… पायल भाभी…’" पुकारते हुए पिंकी की आवाज सुनाई दी।

मेरी भाभी अब उसका जवाब देती उससे पहले ही पिंकी हाथ में किताबे पकड़े कमरे में आ गयी। उसने वो ही गुलाबी टी-शर्ट पहन रखी थी जिसे अभी अभी छत पर मैं पिंकी को पहनते देखकर आ रहा था।

पिंकी ने आते ही "ओय… बहंगे पैर हटा…" ये कह कर एक हाथ से मेरे पैरों को उठा कर पीछे पटक दिया और मेरी भाभी की बगल में बैठ गयी।

दरअसल पिंकी, मेरी भाभी से मैथ का कोई सवाल समझने के लिये आई थी। पिंकी व उसके घर वालों को पता था कि मेरी भाभी ने बी.एस.सी. तक पढ़ाई की हुई है इसलिये वो बहुत सी बार भाभी के पास पढ़ने के लिये आती रहती थी।

पिंकी और उसके घरवाले तो चाहते थे कि मेरी भाभी उसे ट्यूशन ही पढ़ा दे मगर भाभी घर के कामों में ही व्यस्त रहती थी इसलिये उन्होंने मना कर दिया था।

मैंने अब पिंकी को कुछ नहीं कहा, बस अपने पैर पीछे खींच लिये, पिंकी भी भाभी को अपनी किताबे देकर सवाल समझने लगी और मैं बस उसे देखता रहा...

पिंकी का इस तरह से बोलना आज मुझे बुरा नहीं लगा था, नहीं तो अभी तक मैं भी उसे दो-चार सुना चुका होता। पता नहीं क्यों पिंकी मुझे आज बहुत अच्छी व खूबसूरत लग रही थी इसलिये मैं बस उसे देखे ही जा रहा था...

गोल व मुस्कराता चेहरा जिसे देखते ही हर किसी के चेहरे पर मुस्कान आ जाये, लड़कों की तरह कटिंग किये हुए काले बाल जिन्होंने उसके आधे से ज्यादा माथे को ढक रखा था।

नीली व बड़ी बड़ी आँखें, लम्बी पतली सी नाक, बिल्कुल सुर्ख गुलाबी व पतले पतले होंठ उसके दूधिया गोरे चेहरे पर अलग ही छटा सी बिखेर रहे थे, और मुस्कुराते होंठों के बीच उसके बिल्कुल सफेद दाँत तो जैसे मोतियों से चमक ही रहे थे।

लम्बा कद और सबसे बड़ी बात उसका बिल्कुल दूधिया सफेद रंग तो कोरे कगज के जैसे इतना सफेद था की अगर हल्का सा उसके बदन को कोई जोर से छू भी ले तो अलग ही निशान बन जाये।

भगवान ने पिंकी पर नैन-नक्श और रंग-रूप की दौलत तो दिल खोल कर लुटाई थी मगर बस एक ही जगह पर कंजूसी कर दी थी, और वो था उसका बदन, जो बिल्कुल भी भरा नहीं था।

सच कहूँ तो अगर पिंकी का बदन थोड़ा सा भी भर जाये और वो अपने बाल बढ़ा ले तो स्वर्ग की अप्सरा से कहीं ज्यादा ही खूबसूरत लगे।

पिंकी का सारा ध्यान भाभी से सवाल समझने में था मगर मैं अब भी बस उसे ही देखे जा रहा था… तभी मेरे दिमाग में एक योजना ने जन्म ले लिया..!

दरअसल मैं अब सोच रहा था की, क्यों ना पिंकी को पढ़ने के लिये रोजाना हमारे घर ही बुला लिया जाये। वैसे भी पिंकी और उसके घर वाले तो चाहते भी यही हैं, की मेरी भाभी पिंकी को ट्यूशन पढ़ा दे…

मगर मेरी यह योजना तभी कामयाब हो सकती थी जब इसमे मेरी भाभी मेरा साथ दे..! भाभी से सवाल का हल निकलवा कर अब पिंकी अपने घर चली गयी मगर मैं उसी के ख्यालों में ही खोया रहा।

अब पिंकी के जाने के बाद "आज इतने गुमसुम सा क्यों हो..?" भाभी फिर से मुझसे पूछने लगी।

मैंने जो योजना बनाई थी उसमें भाभी को शामिल किये बिना मैं कामयाब नहीं हो सकता था इसलिये मैंने भाभी को अब सारी बात बता दी।

अब एक बार तो मेरी बात सुनकर भाभी भी भड़क सी गयी और.." अच्छा अब नयी का चस्का ही लग गया..? रोजाना नयी नयी कहाँ से मिलेगी..?" भाभी ने मुझ पर भङकते हुवे कहा।

मगर मेरे बार बार विनती करने पर आखिरकर मेरी भाभी मान ही गयी और मेरा साथ देने को भी तैयार हो गयी।
 

kartik

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Super update... behnga aur chhipkali ki nok jok kamal ki hai. Bach ke rahiyo warna chhipkali kaat ke khaa na jaye apni planning sabhal ke kariyo...
Waiting next update...
 

Chutphar

Mahesh Kumar
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अभी तक आपने‌ पढा की पिँकी का गोरा रँग देखकर मै उसके‌‌ प्रति‌ आसक्त सा हो गया था। और पिँकी को पटाने के लिये मैने अपनी भाभी को भी पटा लिया था अब उसके‌ आगे..

अब मेरे कहे अनुसार मेरी भाभी ने एक दो दिन बाद ही बातों बातों में पिंकी को रोजाना पढ़ने आने का इशारा सा कर दिया था।

पिंकी और उसके घरवाले तो चाहते ही यही थे कि मेरी भाभी पिंकी को पढ़ा दिया करे इसलिये पिंकी भी अब रोजाना भाभी के पास पढ़ने के लिये आने लगी।

सुबह शाम भाभी को घर के काम करने होते थे इसलिये भाभी ने पिंकी को पढ़ाने के लिये दोपहर का समय चुना।

भाभी पिंकी‌ को अपने कमरे में ही पढ़ाती थी। अब मै वैसे तो कभी भी पढ़ सकता था मगर मेरी योजना के अनुसार मैं भी पिंकी के साथ साथ पढ़ने के लिये बैठने लगा ताकि अधिक से अधिक पिंकी के पास रह सकूँ..

मेरी भाभी भी इसमे मेरा साथ देती थी वो हमें किताब से थोड़ा बहुत पढ़ा देती और बाकी हमें खुद ही पढ़ने का बोलकर कमरे से बाहर चली जाती।

अब इसी तरह गणित विषय के भी एक दो सवाल समझा देती और बाकी का हमें हल करने का बता देती, और जब कभी हमें कुछ समझ में नहीं आता तो हम भाभी से पूछ लेते...

भाभी के कमरे से जाने के बाद मैं और पिंकी अकेले ही होते थे जिसका फायदा पिंकी मुझे चिढ़ा कर या छेड़ कर उठाती, तो मैं उसका सामिप्य पाकर उठाता..

पिंकी को जब भी मुझे चिढ़ाने का मौका मिलता वो मुझे चिढ़ाने से बाज नहीं आती थी मगर मुझे उसका चिढ़ाना व छेड़ना अब अच्छा लगता था। पिंकी के चिढ़ाने पर मैं उसे अब कुछ कहता नही...

बस किसी ना किसी बहाने से उसके कोमल बदन को छूने की कोशिश करता रहता। अधिकतर मेरी अब यही कोशिश रहती कि मैं अधिक से अधिक पिंकी के कोमल बदन को स्पर्श कर सकूँ..

मैं और पिंकी बैड पर साथ साथ ही बैठकर पढ़ाई करते थे और मैं जानबूझ कर पिंकी के बिल्कुल पास होकर बैठता ताकि पिंकी के कोमल बदन को छु सँकु..!

मैं जानबूझ कर पिंकी के कोमल हाथों को छू लेता तो कभी उसकी मखमली बदन से अपने शरीर का स्पर्श करवा देता मगर पिंकी इस पर कोई ध्यान नहीं देती थी, उसके लिये तो ये सब कुछ हँसी मजाक ही था।

ऐसा नही था की उसे इन सब बातो का ज्ञान नही था। वो‌ एक किशोरी थी, और इस उम्र मे प्यारे, मोहब्बत और सैक्स के बारे मे हर एक को पता चल ही जाता है।

मगर जैसे अभी तक मैने कभी पिँकी के बारे मे ऐसा कुछ नही सोचा था वैसे ही शायद पिँकी भी मेरे बारे मे ऐसा नही सोचती थी। इसलिये मेरी इन‌ हरकतो को बस हँशी मजाक ही समझती थी।
 
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