अभी तक आपने मेरे व पिँकी के बारे मे थोङा बहुत जान लिया होगा... चलो मै अब सीधा कहानी पर आता हुँ...
सुमन दीदी के चले जाने के बाद मैं अब फिर से अपनी भाभी के साथ सोने लगा था। अब सब कुछ अच्छा ही चल रहा था की एक दिन मेरी भाभी छत से सुखे कपड़े लाना भूल गयी थी।
मेरी भाभी उस समय भाभी खाना बनाने में व्यस्त थी इसलिए भाभी के कहने पर मैं ऊपर छत पर से कपड़े लेने चला गया।
मैं कपड़े उतारकर छत पर से अब वापस आ ही रहा था कि तभी मेरी नजर सामने पिंकी के घर की तरफ चली गई, उनके घर में एक कमरा व लैटरीन बाथरुम ऊपर छत पर भी बना हुआ है।
वैसे तो वो लोग उपर के कमरे को इतना इस्तेमाल नही करते मगर उस रात कमरे की लाईट जल रही थी और हमारे घर के तरफ वाली खिङकी भी खुली हुई थी जिससे मेरा ध्यान अब अनायास ही उस ओर चला गया..
मैने अब खिङकी की ओर देखा तो बस अब देखता ही रह गया, क्योंकि उस खिड़की में से बेहद ही गोरी चिकनी व नंगी पीठ दिखाई दे रही थी।
वैसे तो खिड़की से बस कमर के ऊपर का ही हिस्सा ही दिखाई दे रहा था मगर फिर भी दुबले पतले बदन और बेहद ही गोरे रंग से मुझे पहचानने में देर नहीं लगी कि वो पिंकी है।
वो नीचे झुकी और फिर हाथों में कुछ पकड़ कर सीधी हो गई. शायद उसने नीचे कुछ पहना था, फिर उसने शमीज (लड़कियों के पहनने का अन्तः वस्त्र) पहना और फिर ऊपर से उसने गुलाबी रंग की टी-शर्ट डाल ली।
अब ये नजारा देख कौन होगा जिसके लण्ड मे कोई हलचल ना हो..? मगर फिर तभी उस कमरे की लाईट बन्द हो गई। शायद वो बाहर आने वाली थी इसलिये मैं भी कपङे लेकर चुपचाप नीचे आ गया..
मगर उस नजारे को देखकर मेरे तन बदन में आग सी लग गयी थी। इसलिये कपङो को भाभी के कमरे मे पटककर मै अब ऐसे ही लेट गया और पिंकी के बारे में सोचने लगा...
वैसे मैंने पिंकी को कभी भी इस नजर से नहीं देखा था, और देखता भी तो कैसे...?वो किसी भी तरीके से लड़की लगती ही कहाँ थी..?
उसके दुबले पतले शरीर पर कही भी मांस नहीं दिखाई देता था, बस सीने पर हल्के से उभार ही दिखाई देते थे और वो भी किसी छोटे निम्बू के समान ही थे।
वैसे वो अपने दुबले पतले शरीर के साथ साथ रहती भी तो लड़कों की तरह ही थी, लड़कों की तरह बाल कटवाना, लड़कों की तरह ही कपड़े पहनना, और तो और स्कूल की वर्दी भी उसने पेंट-शर्ट की ही बनवा रखी थी।
उसके स्कूल में सब लड़कियाँ शलवार कमीज पहनी थी मगर वो अकेली थी जो स्कूल में भी पेंट-शर्ट पहनती थी।
घर में भी वो हमेशा लोवर और टी-शर्ट पहने रहती, और तो और जब कभी बाहर जाती तो पैंट-शर्ट या जीन्स के साथ टी-शर्ट ही पहन कर बाहर निकलती थी।
मैंने कभी भी उसे लड़कियों के कपड़े पहने हुए नहीं देखा था, मगर आज मैंने उसकी सफेद कोरे कागज जैसी नंगी पीठ को देखा था मेरे तन बदन में आग सी लग गयी थी।
मैं उसके बेहद ही दूधिया सफेद गोरे रंग का कायल सा हो गया था, मैं सोच रहा था कि अगर उसका बदन ही इतना गोरा है तो उसके नन्हे उरोज व उसकी प्यारी सी वो "मुनिया" कैसी होगी..?अब यह बात मेरे दिमाग में आते मैं रोमांच से भर गया।
मैं अब पिंकी के ख्यालों में इतना खोया हुआ था कि पता ही नहीं चला कब मेरी भाभी कमरे में आ गयी। मेरी तन्द्रा तो तब टूटी जब भाभी ने मुझे टोकते हुए पूछा-" कहाँ खोये हुए हो, आज खाना नही खाना क्या..?"
मेरी भाभी के बात करने पर भी मैं बस अब हाँ ना में ही उनकी बात का जवाब दे रहा था। मेरे व्यवहार से अब वो भी समझ गयी कि कुछ ना कुछ बात है इसलिये भाभी ने फिर से मुझे पूछा- "क्या बात है आज तबीयत खराब है क्या..?"
मगर मैं सोच रहा था कि भाभी को पिंकी के बारे में कहूँ या ना कहूँ? तभी बाहर से "भाभी… भाभी… पायल भाभी…’" पुकारते हुए पिंकी की आवाज सुनाई दी।
मेरी भाभी अब उसका जवाब देती उससे पहले ही पिंकी हाथ में किताबे पकड़े कमरे में आ गयी। उसने वो ही गुलाबी टी-शर्ट पहन रखी थी जिसे अभी अभी छत पर मैं पिंकी को पहनते देखकर आ रहा था।
पिंकी ने आते ही "ओय… बहंगे पैर हटा…" ये कह कर एक हाथ से मेरे पैरों को उठा कर पीछे पटक दिया और मेरी भाभी की बगल में बैठ गयी।
दरअसल पिंकी, मेरी भाभी से मैथ का कोई सवाल समझने के लिये आई थी। पिंकी व उसके घर वालों को पता था कि मेरी भाभी ने बी.एस.सी. तक पढ़ाई की हुई है इसलिये वो बहुत सी बार भाभी के पास पढ़ने के लिये आती रहती थी।
पिंकी और उसके घरवाले तो चाहते थे कि मेरी भाभी उसे ट्यूशन ही पढ़ा दे मगर भाभी घर के कामों में ही व्यस्त रहती थी इसलिये उन्होंने मना कर दिया था।
मैंने अब पिंकी को कुछ नहीं कहा, बस अपने पैर पीछे खींच लिये, पिंकी भी भाभी को अपनी किताबे देकर सवाल समझने लगी और मैं बस उसे देखता रहा...
पिंकी का इस तरह से बोलना आज मुझे बुरा नहीं लगा था, नहीं तो अभी तक मैं भी उसे दो-चार सुना चुका होता। पता नहीं क्यों पिंकी मुझे आज बहुत अच्छी व खूबसूरत लग रही थी इसलिये मैं बस उसे देखे ही जा रहा था...
गोल व मुस्कराता चेहरा जिसे देखते ही हर किसी के चेहरे पर मुस्कान आ जाये, लड़कों की तरह कटिंग किये हुए काले बाल जिन्होंने उसके आधे से ज्यादा माथे को ढक रखा था।
नीली व बड़ी बड़ी आँखें, लम्बी पतली सी नाक, बिल्कुल सुर्ख गुलाबी व पतले पतले होंठ उसके दूधिया गोरे चेहरे पर अलग ही छटा सी बिखेर रहे थे, और मुस्कुराते होंठों के बीच उसके बिल्कुल सफेद दाँत तो जैसे मोतियों से चमक ही रहे थे।
लम्बा कद और सबसे बड़ी बात उसका बिल्कुल दूधिया सफेद रंग तो कोरे कगज के जैसे इतना सफेद था की अगर हल्का सा उसके बदन को कोई जोर से छू भी ले तो अलग ही निशान बन जाये।
भगवान ने पिंकी पर नैन-नक्श और रंग-रूप की दौलत तो दिल खोल कर लुटाई थी मगर बस एक ही जगह पर कंजूसी कर दी थी, और वो था उसका बदन, जो बिल्कुल भी भरा नहीं था।
सच कहूँ तो अगर पिंकी का बदन थोड़ा सा भी भर जाये और वो अपने बाल बढ़ा ले तो स्वर्ग की अप्सरा से कहीं ज्यादा ही खूबसूरत लगे।
पिंकी का सारा ध्यान भाभी से सवाल समझने में था मगर मैं अब भी बस उसे ही देखे जा रहा था… तभी मेरे दिमाग में एक योजना ने जन्म ले लिया..!
दरअसल मैं अब सोच रहा था की, क्यों ना पिंकी को पढ़ने के लिये रोजाना हमारे घर ही बुला लिया जाये। वैसे भी पिंकी और उसके घर वाले तो चाहते भी यही हैं, की मेरी भाभी पिंकी को ट्यूशन पढ़ा दे…
मगर मेरी यह योजना तभी कामयाब हो सकती थी जब इसमे मेरी भाभी मेरा साथ दे..! भाभी से सवाल का हल निकलवा कर अब पिंकी अपने घर चली गयी मगर मैं उसी के ख्यालों में ही खोया रहा।
अब पिंकी के जाने के बाद "आज इतने गुमसुम सा क्यों हो..?" भाभी फिर से मुझसे पूछने लगी।
मैंने जो योजना बनाई थी उसमें भाभी को शामिल किये बिना मैं कामयाब नहीं हो सकता था इसलिये मैंने भाभी को अब सारी बात बता दी।
अब एक बार तो मेरी बात सुनकर भाभी भी भड़क सी गयी और.." अच्छा अब नयी का चस्का ही लग गया..? रोजाना नयी नयी कहाँ से मिलेगी..?" भाभी ने मुझ पर भङकते हुवे कहा।
मगर मेरे बार बार विनती करने पर आखिरकर मेरी भाभी मान ही गयी और मेरा साथ देने को भी तैयार हो गयी।