अब इसी तरह करीब दो हफ्ते गुजर गये मगर पिंकी ने मुझ पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया। मुझसे अब सब्र नहीं हो रहा था इसलिये एक दिन पढ़ाई करने के बाद पिंकी जब घर जाने लगी तो मैंने उसका हाथ पकङ लिया..
अब पिँकी तो यही सोच रही थी की ये मेरी कोई नयी शरारत होगी मगर उसके हाथ को पकङकर मैने अब सीधा ही...
"आई लव यू…!" कहकर उसके गाल पर जोरो से चुम लिया..
मेरी इस हरकत से पिंकी अब एक बार तो जैसे जङ ही हो गयी। उसे कुछ समझ नही आया की वो अब क्या कहे और क्या नही..?
वो कुछ देर तो अब ऐसे ही बुत सी बन खङी रही फिर एकदम से गुस्सा सी हो गयी और अपने घर में मेरी शिकायत करने की बोलकर तुरन्त अपने घर भाग गयी।
अब शिकायत की बात सुनकर तो मेरी जैसे सिट्टी-पिट्टी ही गुम हो गयी। मैने तो सोचा था सब कुछ आसानी से ही हो जायेगा मगर इस बार तो मेरी चाल ही उल्टा पङ गयी थी।
मैंने अब ये सारी बात भाभी को बताई तो भाभी भी मुझ पर गुस्सा हो गयी और..
"त्.तुम ना अपने साथ साथ मुझे भी फंसवा दोगे, तुम्हें इतनी जल्दी ये सब करने की क्या जरूरत थी पहले देखते तो सही उसके दिल मे क्या चल रहा और क्या नही..?" भाभी ने मुझे डाटते हुवे कहा।
मेरे साथ साथ भाभी को भी डर था कि इसके लिये कहीं उनका नाम ना आ जाये। डर के मारे मेरी हालत अब तो और भी खराब हो गयी।
इसके बाद अब भाभी तो घर के काम में व्यस्त हो गयी मगर मैं कमरे में ही बैठा रहा और भगवान से दुआ करने लगा कि "भगवान बस आज बचा ले, आज के बाद कभी भी ऐसा कुछ नहीं करुँगा..!"
और शायद भगवान ने मेरी सुन भी ली…! क्योंकि रात होने तक पिंकी के घर से मेरी कोई शिकायत नहीं आई। अगले दिन सुबह भी सब कुछ सामन्य ही रहा मगर दोपहर को पिंकी अब पढ़ने के लिये हमारे घर नहीं आई।
पिंकी का पढ़ने के लिये नहीं आने से मेरे दिल में अब भी डर बना रहा, इसी तरह दो दिन गुजर गये मगर पिंकी के घर से ना तो मेरी कोई शिकायत आई, और ना ही पिंकी हमारे घर पढ़ने के लिये आई।
पिंकी के घर जाने की तो मुझमें अब हिम्मत नहीं थी मगर मैं उसके घर के बाहर से ही उसे देखने की कोशिश करता रहता, मगर मुझे पिंकी कहीं भी दिखाई नहीं देती थी, पिछले दो दिन से शायद वो स्कूल भी नहीं जा रही थी।
मेरे दिल में अब भी डर बना हुआ था मगर फिर तीसरे दिन मैं भाभी के कमरे में बैठकर पढ़ाई कर रहा था..... पढ़ाई तो क्या कर रहा था, बस ऐसे ही बैठकर भाभी से बातें कर रहा था कि तभी हाथों में किताब पकड़े पिंकी भाभी के कमरे मे दाखिल हुई।
अचानक से पिंकी को देखकर मैं अब घबरा सा गया, और चुपचाप गर्दन को नीचे कर अपनी पढ़ाई करने लगा। पिंकी भी अब नजरे झुकाकर चुपचाप पढ़ने के लिये मेरे पास ही बैड पर बैठ गयी।
मेरी तो अब पिँकी से नजरे मिलाने की भी हिम्मत नही थी मगर भाभी के पूछने पर पिंकी ने बताया कि वो रिश्तेदार के यहाँ गई हुई थी इसलिये दो दिन तक पढ़ने के लिये नहीं आ सकी।
पिंकी की ये बात सुनकर तो मेरी जैसे अब जान में ही जान आ गयी। और मैने तुरन्त पिँकी की ओर देखा, मगर वो अभी भी नजरे झुकाये बैठी रही।
खैर पिंकी अब फिर से रोजाना हमारे घर पढ़ने के लिये आने लगी मगर पिंकी से दोबारा बात करने की मेरी हिम्मत नहीं हुई..
अब पिँकी तो यही सोच रही थी की ये मेरी कोई नयी शरारत होगी मगर उसके हाथ को पकङकर मैने अब सीधा ही...
"आई लव यू…!" कहकर उसके गाल पर जोरो से चुम लिया..
मेरी इस हरकत से पिंकी अब एक बार तो जैसे जङ ही हो गयी। उसे कुछ समझ नही आया की वो अब क्या कहे और क्या नही..?
वो कुछ देर तो अब ऐसे ही बुत सी बन खङी रही फिर एकदम से गुस्सा सी हो गयी और अपने घर में मेरी शिकायत करने की बोलकर तुरन्त अपने घर भाग गयी।
अब शिकायत की बात सुनकर तो मेरी जैसे सिट्टी-पिट्टी ही गुम हो गयी। मैने तो सोचा था सब कुछ आसानी से ही हो जायेगा मगर इस बार तो मेरी चाल ही उल्टा पङ गयी थी।
मैंने अब ये सारी बात भाभी को बताई तो भाभी भी मुझ पर गुस्सा हो गयी और..
"त्.तुम ना अपने साथ साथ मुझे भी फंसवा दोगे, तुम्हें इतनी जल्दी ये सब करने की क्या जरूरत थी पहले देखते तो सही उसके दिल मे क्या चल रहा और क्या नही..?" भाभी ने मुझे डाटते हुवे कहा।
मेरे साथ साथ भाभी को भी डर था कि इसके लिये कहीं उनका नाम ना आ जाये। डर के मारे मेरी हालत अब तो और भी खराब हो गयी।
इसके बाद अब भाभी तो घर के काम में व्यस्त हो गयी मगर मैं कमरे में ही बैठा रहा और भगवान से दुआ करने लगा कि "भगवान बस आज बचा ले, आज के बाद कभी भी ऐसा कुछ नहीं करुँगा..!"
और शायद भगवान ने मेरी सुन भी ली…! क्योंकि रात होने तक पिंकी के घर से मेरी कोई शिकायत नहीं आई। अगले दिन सुबह भी सब कुछ सामन्य ही रहा मगर दोपहर को पिंकी अब पढ़ने के लिये हमारे घर नहीं आई।
पिंकी का पढ़ने के लिये नहीं आने से मेरे दिल में अब भी डर बना रहा, इसी तरह दो दिन गुजर गये मगर पिंकी के घर से ना तो मेरी कोई शिकायत आई, और ना ही पिंकी हमारे घर पढ़ने के लिये आई।
पिंकी के घर जाने की तो मुझमें अब हिम्मत नहीं थी मगर मैं उसके घर के बाहर से ही उसे देखने की कोशिश करता रहता, मगर मुझे पिंकी कहीं भी दिखाई नहीं देती थी, पिछले दो दिन से शायद वो स्कूल भी नहीं जा रही थी।
मेरे दिल में अब भी डर बना हुआ था मगर फिर तीसरे दिन मैं भाभी के कमरे में बैठकर पढ़ाई कर रहा था..... पढ़ाई तो क्या कर रहा था, बस ऐसे ही बैठकर भाभी से बातें कर रहा था कि तभी हाथों में किताब पकड़े पिंकी भाभी के कमरे मे दाखिल हुई।
अचानक से पिंकी को देखकर मैं अब घबरा सा गया, और चुपचाप गर्दन को नीचे कर अपनी पढ़ाई करने लगा। पिंकी भी अब नजरे झुकाकर चुपचाप पढ़ने के लिये मेरे पास ही बैड पर बैठ गयी।
मेरी तो अब पिँकी से नजरे मिलाने की भी हिम्मत नही थी मगर भाभी के पूछने पर पिंकी ने बताया कि वो रिश्तेदार के यहाँ गई हुई थी इसलिये दो दिन तक पढ़ने के लिये नहीं आ सकी।
पिंकी की ये बात सुनकर तो मेरी जैसे अब जान में ही जान आ गयी। और मैने तुरन्त पिँकी की ओर देखा, मगर वो अभी भी नजरे झुकाये बैठी रही।
खैर पिंकी अब फिर से रोजाना हमारे घर पढ़ने के लिये आने लगी मगर पिंकी से दोबारा बात करने की मेरी हिम्मत नहीं हुई..