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Romance पिँकी...

Chutphar

Mahesh Kumar
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अब इसी तरह करीब दो हफ्ते गुजर गये मगर पिंकी ने मुझ पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया। मुझसे अब सब्र नहीं हो रहा था इसलिये एक दिन पढ़ाई करने के बाद पिंकी जब घर जाने लगी तो मैंने उसका हाथ पकङ लिया..

अब पिँकी तो यही सोच रही थी‌ की ये मेरी कोई नयी शरारत होगी मगर उसके हाथ को‌ पकङकर मैने अब सीधा ही...
"आई लव यू…!" कहकर उसके गाल‌ पर जोरो‌ से चुम‌ लिया..

मेरी इस हरकत से पिंकी अब एक बार तो जैसे जङ ही‌ हो गयी। उसे कुछ समझ‌ नही आया‌‌ की वो अब क्या कहे और क्या नही..?

वो‌ कुछ देर तो अब ऐसे ही बुत सी बन खङी रही फिर एकदम से गुस्सा सी हो गयी और अपने घर में मेरी शिकायत करने की बोलकर तुरन्त अपने घर भाग गयी।

अब शिकायत की बात सुनकर तो मेरी जैसे सिट्टी-पिट्टी ही गुम हो गयी। मैने तो सोचा था सब कुछ आसानी से ही हो जायेगा मगर इस बार तो मेरी चाल ही उल्टा पङ गयी थी।

मैंने अब ये सारी बात भाभी को बताई तो भाभी भी मुझ पर गुस्सा हो गयी और..

"त्.तुम ना अपने साथ साथ मुझे भी फंसवा दोगे, तुम्हें इतनी जल्दी ये सब करने की क्या जरूरत थी पहले देखते तो सही उसके दिल‌ मे‌ क्या चल रहा और क्या नही..?" भाभी ने मुझे डाटते हुवे कहा।

मेरे साथ साथ भाभी को भी डर था कि इसके लिये कहीं उनका नाम ना आ जाये। डर के मारे मेरी हालत अब तो और भी खराब हो गयी।

इसके बाद अब भाभी तो घर के काम में व्यस्त हो गयी मगर मैं कमरे में ही बैठा रहा और भगवान से दुआ करने लगा कि "भगवान बस आज बचा ले, आज के बाद कभी भी ऐसा कुछ नहीं करुँगा..!"

और शायद भगवान ने मेरी सुन भी ली…! क्योंकि रात होने तक पिंकी के घर से मेरी कोई शिकायत नहीं आई। अगले दिन सुबह भी सब कुछ सामन्य ही रहा मगर दोपहर को पिंकी अब पढ़ने के लिये हमारे घर नहीं आई।

पिंकी का पढ़ने के लिये नहीं आने से मेरे दिल में अब भी डर बना रहा, इसी तरह दो दिन गुजर गये मगर पिंकी के घर से ना तो मेरी कोई शिकायत आई, और ना ही पिंकी हमारे घर पढ़ने के लिये आई।

पिंकी के घर जाने की तो मुझमें अब हिम्मत नहीं थी मगर मैं उसके घर के बाहर से ही उसे देखने की कोशिश करता रहता, मगर मुझे पिंकी कहीं भी दिखाई नहीं देती थी, पिछले दो दिन से शायद वो स्कूल भी नहीं जा रही थी।

मेरे दिल में अब भी डर बना हुआ था मगर फिर तीसरे दिन मैं भाभी के कमरे में बैठकर पढ़ाई कर रहा था..... पढ़ाई तो क्या कर रहा था, बस ऐसे ही बैठकर भाभी से बातें कर रहा था कि तभी हाथों में किताब पकड़े पिंकी भाभी के कमरे मे दाखिल हुई।

अचानक से पिंकी को देखकर मैं अब घबरा सा गया, और चुपचाप गर्दन को नीचे कर अपनी पढ़ाई करने लगा। पिंकी भी अब नजरे झुकाकर चुपचाप पढ़ने के लिये मेरे पास ही बैड पर बैठ गयी।

मेरी तो अब पिँकी से नजरे मिलाने की भी हिम्मत नही थी मगर भाभी के पूछने पर पिंकी ने बताया कि वो रिश्तेदार के यहाँ गई हुई थी इसलिये दो दिन तक पढ़ने के लिये नहीं आ सकी।

पिंकी की ये बात सुनकर ‌तो मेरी जैसे अब जान में ही जान आ गयी। और मैने तुरन्त पिँकी की ओर देखा, मगर वो अभी भी नजरे झुकाये बैठी रही।

खैर पिंकी अब फिर से रोजाना हमारे घर पढ़ने के लिये आने लगी मगर पिंकी से दोबारा बात करने की मेरी हिम्मत नहीं हुई..
 

Chutphar

Mahesh Kumar
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पिंकी ने भी मुझसे बात करना बन्द कर दिया था, भाभी के सामने तो वो फिर भी जरूरत होने पर कभी कभी मुझसे बात कर लेती मगर अकेले में हमारी कोई बात नहीं होती थी।

इसी तरह हफ्ता भर गुजर गया, मेरी पिंकी से बात करने की हिम्मत तो नहीं हुई मगर इस हफ्ते भर में मैंने देखा कि पिंकी के व्यवहार में अब काफी बदलाव आ गया था।

पहले तो वो बात बात पर मुझसे झगड़ा करती रहती थी मगर अब जब कभी हमारा सामना होता तो वो अपनी नजर झुका लेती।

उसने मुझे चिढ़ाना भी बन्द कर दिया था और जब कभी मेरा हाथ या पैर गलती से पिंकी को छू जाता था तो वो मुझसे दूर हट जाती मगर मुझे कुछ कहती नहीं थी।

मुझे पिंकी से डर तो लगता था मगर फिर भी मेरे दिल में उसके लिये नये नये ख्याल आते रहते थे। एक दिन बातों बातों में ऐसे ही मैंने यह बात जब भाभी को बताई तो वो हंसने लग गयी और.. "लगता है अब तेरा काम बन जायेगा..! भाभी ने अब हँशते हुवे कहा।

भाभी‌ की बात सुनकर मै असमंजस मे पङ गया था इसलिये.."क्.क्.कैसे…?" मैंने उत्सुकता से पूछा।

"बुद्धू… उसको अगर तेरी शिकायत ही करनी होती तो कब की कर देती…!" भाभी‌ ने मेरे सिर को हिलाते हुवे कहा।

वैसे ये बात तो भाभी सही ही कह रही‌ थी, क्योंकि उसे मेरी शिकायत ही करनी होती तो कब का कर देती। जरुर शायद अब उसके दिल‌ मे कुछ ना कुछ तो चल ही रहा था, तभी तो उसके व्यवहार मे भी अब इतना बदलाव आ गया था..

भाभी की बात सुनकर मुझमें अब फिर से एक नयी जान सी‌ आ गयी थी, मगर इस बार मैं जल्बाजी में कोई गलती नहीं करना चाहता था, इसलिये मुझे धीरे धीरे आगे बढ़ना ही सही लगा।

अब आगे बढने के लिये सबसे पहले तो मैंने पिंकी से फिर से बाते करने की‌ कोशिश की। मैं जानबूझ कर पढ़ाई के बारे में या किसी और के बारे में पिंकी से कुछ ना कुछ पूछता ही रहता...

अब पहले पहल तो पिंकी मेरी बातों पर कम ही ध्यान दिया मगर फिर धीरे धीरे वो भी मेरी बातों का जवाब देने लगी।

वैसे अब‌ ये बात पिंकी को भी पता था कि मैं जानबूझ कर उससे बात करने की कोशिश करता हूँ इसलिये जवाब देते समय उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान सी आ जाती जिससे मेरी भी हिम्मत बढ़ने लगी..

इसी तरह हफ्ता भर गुजर गया, पिंकी अब मेरी बातों का जवाब तो देने लगी, मगर वो खुद पहल करके मुझसे कभी बात नहीं करती थी।

धीरे धीरे मैं अब फिर से पिंकी के पास होकर भी बैठने लगा और कभी कभी तो जानबूझ कर उसके हाथ पैरों को भी छू लेता जिससे पिंकी अब शरमा कर बस हल्का सा मुस्कुरा देती और अपने हाथ पैरो को समेट कर बैठ जाती।

पहले तो एक दूसरे को छूना पिंकी के लिये बस हंसी मजाक ही था मगर उस दिन के बाद से पिंकी भी समझ गई थी कि मेरे दिल में क्या चल रहा है इसलिये मेरे छूने पर वो शरमा जाती थी।

शायद पिंकी की जो भावनाएँ सोई हुई थी, जिनके बारे में उसने कभी सोचा भी नहीं था, उनको मैंने अब जगा दिया था‌। इसलिये मेरे छुने से भी उसे अब शरम आने लगी थी।

मेरी हिम्मत भी अब बढ़ती जा रही थी इसलिये बातों बातों में मै अब जानबूझ कर पिंकी का हाथ भी पकड़ लेता जिससे‌ पिंकी बुरी तरह घबरा सी जाती। वो मुझे कुछ कहती तो नही मगर अपना हाथ मुझसे छुड़वाकर शरम से सिकुड़ जाती थी।

इसी तरह एक हफ्ता और बीत गया। मेरी हिम्मत अब बढ़ती जा रही थी इसलिये एक दिन पढ़ाई के बाद पिंकी जब अपने घर जाने लगी‌ तो मौका देखकर मैने उसका हाथ पकङ लिया..
 
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सबसे पहले तो नई कहानी शुरू करने के लिए बधाई। कहानी की शुरुआत तो अच्छी हुई है । आगे देखना है क्या क्या होता है
 
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Guffy

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Hello Everyone :hello:



We are Happy to present to you The annual story contest of Xforum "The Ultimate Story Contest" (USC).



Jaisa ki aap sabko maalum hai abhi pichle hafte he humne USC ki announcement ki hai or abhi kuch time Pehle Rules and Queries thread bhi open kiya hai or Chit chat thread toh pehle se he Hind section mein khulla hai.



Iske baare Mein thoda aapko btaadun ye ek short story contest hai jisme aap kissi bhi prefix ki short story post kar shaktey ho jo minimum 700 words and maximum 7000 words takk ho shakti hai. Isliye main aapko invitation deta hun ki aap Iss contest Mein apne khayaalon ko shabdon kaa Rupp dekar isme apni stories daalein jisko pura Xforum dekhega ye ek bahot acha kadam hoga aapke or aapki stories k liye kyunki USC Ki stories ko pure Xforum k readers read kartey hain.. Or jo readers likhna nahi caahtey woh bhi Iss contest Mein participate kar shaktey hain "Best Readers Award" k liye aapko bus karna ye hoga ki contest Mein posted stories ko read karke unke Uppar apne views dene honge.



Winning Writer's ko well deserved Awards milenge, uske aalwa aapko apna thread apne section mein sticky karne kaa mouka bhi milega Taaki aapka thread top par rahe uss dauraan. Isliye aapsab k liye ye ek behtareen mouka hai Xforum k sabhi readers k Uppar apni chaap chhodne ka or apni reach badhaane kaa.



Entry thread 7th February ko open hoga matlab aap 7 February se story daalna suru kar shaktey hain or woh thread 21st February takk open rahega Iss dauraan aap apni story daal shaktey hain. Isliye aap abhi se apni Kahaani likhna suru kardein toh aapke liye better rahega.



Koi bhi issue ho toh aap kissi bhi staff member ko Message kar shaktey hain..



Rules Check karne k liye Iss thread kaa use karein :- Rules And Queries Thread.


Contest k regarding Chit chat karne k liye Iss thread kaa use karein :- Chit Chat Thread.




Regards : XForum Staff.
 

Sanju@

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पिंकी ने भी मुझसे बात करना बन्द कर दिया था, भाभी के सामने तो वो फिर भी जरूरत होने पर कभी कभी मुझसे बात कर लेती मगर अकेले में हमारी कोई बात नहीं होती थी।

इसी तरह हफ्ता भर गुजर गया, मेरी पिंकी से बात करने की हिम्मत तो नहीं हुई मगर इस हफ्ते भर में मैंने देखा कि पिंकी के व्यवहार में अब काफी बदलाव आ गया था।

पहले तो वो बात बात पर मुझसे झगड़ा करती रहती थी मगर अब जब कभी हमारा सामना होता तो वो अपनी नजर झुका लेती।

उसने मुझे चिढ़ाना भी बन्द कर दिया था और जब कभी मेरा हाथ या पैर गलती से पिंकी को छू जाता था तो वो मुझसे दूर हट जाती मगर मुझे कुछ कहती नहीं थी।

मुझे पिंकी से डर तो लगता था मगर फिर भी मेरे दिल में उसके लिये नये नये ख्याल आते रहते थे। एक दिन बातों बातों में ऐसे ही मैंने यह बात जब भाभी को बताई तो वो हंसने लग गयी और.. "लगता है अब तेरा काम बन जायेगा..! भाभी ने अब हँशते हुवे कहा।

भाभी‌ की बात सुनकर मै असमंजस मे पङ गया था इसलिये.."क्.क्.कैसे…?" मैंने उत्सुकता से पूछा।

"बुद्धू… उसको अगर तेरी शिकायत ही करनी होती तो कब की कर देती…!" भाभी‌ ने मेरे सिर को हिलाते हुवे कहा।

वैसे ये बात तो भाभी सही ही कह रही‌ थी, क्योंकि उसे मेरी शिकायत ही करनी होती तो कब का कर देती। जरुर शायद अब उसके दिल‌ मे कुछ ना कुछ तो चल ही रहा था, तभी तो उसके व्यवहार मे भी अब इतना बदलाव आ गया था..

भाभी की बात सुनकर मुझमें अब फिर से एक नयी जान सी‌ आ गयी थी, मगर इस बार मैं जल्बाजी में कोई गलती नहीं करना चाहता था, इसलिये मुझे धीरे धीरे आगे बढ़ना ही सही लगा।

अब आगे बढने के लिये सबसे पहले तो मैंने पिंकी से फिर से बाते करने की‌ कोशिश की। मैं जानबूझ कर पढ़ाई के बारे में या किसी और के बारे में पिंकी से कुछ ना कुछ पूछता ही रहता...

अब पहले पहल तो पिंकी मेरी बातों पर कम ही ध्यान दिया मगर फिर धीरे धीरे वो भी मेरी बातों का जवाब देने लगी।

वैसे अब‌ ये बात पिंकी को भी पता था कि मैं जानबूझ कर उससे बात करने की कोशिश करता हूँ इसलिये जवाब देते समय उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान सी आ जाती जिससे मेरी भी हिम्मत बढ़ने लगी..

इसी तरह हफ्ता भर गुजर गया, पिंकी अब मेरी बातों का जवाब तो देने लगी, मगर वो खुद पहल करके मुझसे कभी बात नहीं करती थी।

धीरे धीरे मैं अब फिर से पिंकी के पास होकर भी बैठने लगा और कभी कभी तो जानबूझ कर उसके हाथ पैरों को भी छू लेता जिससे पिंकी अब शरमा कर बस हल्का सा मुस्कुरा देती और अपने हाथ पैरो को समेट कर बैठ जाती।

पहले तो एक दूसरे को छूना पिंकी के लिये बस हंसी मजाक ही था मगर उस दिन के बाद से पिंकी भी समझ गई थी कि मेरे दिल में क्या चल रहा है इसलिये मेरे छूने पर वो शरमा जाती थी।

शायद पिंकी की जो भावनाएँ सोई हुई थी, जिनके बारे में उसने कभी सोचा भी नहीं था, उनको मैंने अब जगा दिया था‌। इसलिये मेरे छुने से भी उसे अब शरम आने लगी थी।

मेरी हिम्मत भी अब बढ़ती जा रही थी इसलिये बातों बातों में मै अब जानबूझ कर पिंकी का हाथ भी पकड़ लेता जिससे‌ पिंकी बुरी तरह घबरा सी जाती। वो मुझे कुछ कहती तो नही मगर अपना हाथ मुझसे छुड़वाकर शरम से सिकुड़ जाती थी।


इसी तरह एक हफ्ता और बीत गया। मेरी हिम्मत अब बढ़ती जा रही थी इसलिये एक दिन पढ़ाई के बाद पिंकी जब अपने घर जाने लगी‌ तो मौका देखकर मैने उसका हाथ पकङ लिया..
Lovely update
Amazing update
Excellent update

Waiting next update ❤️❤️❤️❤️❤️
 

Chutphar

Mahesh Kumar
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पिँकी को लगभग मेरा उसे हाथ लगाना पसन्द आने लगा था इसलिये एक दिन पढ़ाई के बाद पिंकी जब अपने घर जाने लगी‌ तो मौका देखकर मैने उसका हाथ पकङ लिया..

अचानक मेरे अब ऐसा करने से पिंकी घबरा सी गयी और.."क्.क्. क्.य.आ ह्ह्..?" उसने हकलाते हुवे कहा।

"वो तुमने मेरी उस दिन वाली बात का कोई जवाब नही दिया..?" मैने उसका हाथ पकङे पकङे ही कहा।

घबराहट के कारण पिँकी अब कुछ बोल तो नहीं पा रही थी मगर मुझसे अपना हाथ छुड़ाने के लिये वो अपना दुसरा हाथ चलाने लगी जिससे उसके हाथ से किताबे छुट कर अब फर्श पर गिर गयी...

अब इससे पहले की वो मुझसे छुड़ाकर भाग जाये, मैंने उसको पकड़कर अपनी बांहों में भर लिया और उसके नर्म मुलायम गोरे गालों को चूमना शुरू कर दिया...

अब तो डर व घबराहट से पिंकी का पूरा बदन ही कंपकपाने लगा। डर व घबराहट के मारे वो ठीक से कुछ बोल तो नहीं पा रही‌ थी...

मगर फिर भी धीमी सी आवाज में कराह‌ते हुवे...
"इश्श… च.छ.ओ.ड़..अ…
ईईश्श्श्..च.छ.ओ.ड़..अ… म…उ..झ…ऐ…"बस ऐसे ही बङबङाने सा लगी...

वो डर व घबराहट मे ऐसे ही अपने हाथ पैर भी चला रही थी मगर तब तक पिंकी के बदन को‌ सहलाते हुए मैंने उसे दीवार से सटा लिया‌ और धीरे धीरे उसकी गर्दन व गालो को चुमते हुए अपने होठो को उसके नर्म‌ मुलायम होठो से ही जोङ दिया...

पिंकी के दिल की धड़कन अब तेज हो गई तो साँसे भी जैसे फुल सी गयी… उसके होठो को अपने मुँह मे भरकर चुश रहा था इसलिये वो अब कुछ बोल तो नही पा रही थी मगर फिर भी..
"उ्.ऊ्.ऊ्ऊ्...हुहुहु...ऊऊ... उ्.ऊ्.ऊ्ऊ्ऊ्...हुहुहुहु...ऊऊऊ...
उ्.ऊ्.ऊ्ऊ्ऊ्...हुहुहुहु...ऊऊऊऊ..." किये जा रही थी।

पिँकी के रशीले होठो को चुशने की ख्वाहिश दिल मे ना जाने मै कब से लिये बैठा था। अब सच कहु तो जैसा मैने सोचा था उससे कही ज्यादा सोफ्ट और नर्म मुलायम होठ थे पिँकी के।

उसके नर्म मुलायम होठो का अहसास इतना सोफ्ट सोफ्ट था की मुझे तो ऐसा लग रहा था जैसे मेरे चुशने सी उसके होठ बतासे के जैसे मेरे मुँह मे ही घुल जायेँगे, और उनका स्वाद...?
पिँकी के होठो का स्वाद तो ऐसा था की बस पुछो ही मत..!

पिँकी का मुँह बन्द था मगर उसके नाको से गर्म गर्म साँसो के साथ सौँधी सौँधी महक आ रही थी इसलिये मै तो जैसे बावरा ही हो गया और पिँकी के विरोध के बावजूद भी उसके होठो को चुशता चला गया..

पर मै अब आगे कुछ करता, तभी बाहर किसी की आहट सुनाई दी, शायद वो मेरी भाभी थी, जिससे मेरा ध्यान अब बँट गया, और तभी पिंकी ने अपनी पूरी ताकत से मुझे धकेलकर अपने से अलग कर दिया...

पिंकी बहुत ज्यादा घबरा गई थी इसलिये कुछ देर तो वो वही खङे खङे हाँफती सी रही फिर अपनी किताबे उठाने के लिये नीचे बैठ गयी। मैंने भी पिंकी को दोबारा पकड़ने की कोशिश नहीं की, बस चुपचाप उसे देखता रहा...

पिँकी ने भी अब पहले तो अपनी किताबे समेटी, फिर उनको एक हाथ मे पकङकर खङी हो गयी। किताबें उठाने तक वो कुछ सामान्य हो गयी थी इसलिये...

"य्.य्...म्म्.म्म्.भ्.भाभी को बता रही हुँ..!" उसने थोङा हकलाते हुवे से कहा। मगर पिँकी की उखङती साँसे व उसके चेहरे की रँगत बता रही थी की वो ऐसा कुछ नही करेगी इसलिये..

"क्या..?" मैने अब शरारत से हँशते हुवे पुछा।

"त्.त्.त्उ..तु..न्.न् ये.." वो अब पुरा ही हकला गयी।

"हाँ.हाँ बताओ.., बताओ क्या किया मैने..?" मैने अब शरारत से हँशते हुवे कहा जिससे पिँकी के चेहरे पर भी हल्की हँशी के से भाव आ गये और वो तुरन्त वहाँ से भाग गयी।

अब जैसा मैंने सोचा था हुवा भी वैसा ही, पिंकी ने ये बात किसी को नही बताई और अगले दिन रोजाना की तरह ही वो हमारे घर पढने के लिये भी समय पर ही आ गयी।
 
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