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Romance पिँकी...

Chutphar

Mahesh Kumar
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पिंकी जब पढ़ने के लिये हमारे घर आई, उस समय मेरी भाभी मुझे पढा रही थी इसलिये कमरे मे आते ही पिँकी की‌ नजर सीधा ही मुझ पर पङी.. मै तो पहले से ही पिँकी की ओर ही देख रहा था जिससे हमारी नजरे अब आपस मे टकरा गयी...

पिँकी को देखते ही मेरे चेहरे पर हँशी आ गयी थी‌ इसलिये मुझे देख अब पिँकी के चेहरे पर हल्की मुस्कान आ गयी, पर उसने अब एक‌ बार तो‌ मेरी ओर देखा फिर अपनी नजरे नीचे झुकाकर चुपचाप पढने के लिये बैड पर आकर बैठ गयी।

भाभी मुझे मैथ पढा रहा थी और पिँकी मुझसे थोङा दुर होकर बैठी थी इसलिये पिँकी को बुक्स दिखाने‌ के‌ लिये भाभी ने बुक्स को अब पिँकी की‌ ओर कर लिया..

पिँकी के करीब होने‌ का‌ मुझे ये अच्छा बहाना मिल गया था इसलिये भाभी ने‌ जैसे ही बुक्स को पिँकी की‌ तरफ किया, मै तुरन्त खिसककर अब पिँकी के करीब हो गया..‌ और करीब भी‌ इतना की‌ मेरा एक‌ हाथ अब उसके हाथ को‌ ही छु गया..

मेरे अब पिँकी के‌ करीब होते ही‌ उसने फिर से‌ मेरी ओर देखा, हम दोनो‌ की‌ नजरे अब एक‌ बार तो आपस मे‌ मिली फिर पहले के जैसे ही पिँकी‌ के चेहरे पर हल्की मुस्कान सी तैर गयी और वो वापस नीचे बुक्स मे देखने‌ लगी..

मैने भी अब मौका देखकर धीरे से पिँकी के हाथ पर अब अपना‌ हाथ रख दिया जिससे पिँकी ने अब एक बार फिर से मेरी ओर देखा.. मगर इस बार उसके चेहरे पर मुस्कान की जगह हल्की घबराहट सी थी।

पिँकी डर रही थी की कही मेरी हरकत मेरी भाभी ना देख ले इसलिये वो घबरा रही थी। वो धीरे धीरे अपने हाथ को भी मेरे हाथ से निकालने की कोशिश कर रही थी मगर मैने उसके हाथ को जोरो से दबाये रखा।

मेरी भाभी भी की नजर भी हम दोनो पर ही थी। वो भी समझ रही थी की ये क्या खिचङी पक रही है इसलिये भाभी ने हमे अब एक मैथ की एक प्रोबलम‌ तो सोल्व करके दिखाई, फिर बाकी की हमे खुद सोल्व करने की बोलकर बाहर चली गयी...

अब मेरी भाभी‌ के बाहर जाते ही..

"क्या‌ है.. सुधर जा नही तो‌ मै सच मे तेरी शिकायत कर दुँगी..!" पिँकी ने अब झुठमुठ का गुस्सा सा करते हुवे झटक कर अपना हाथ मेरे हाथ के नीचे से खीँच लिया।

मै और पिँकी कमरे मे अकेले थे इसलिये मौका देख मैने अब उसे बैठे बैठे ही अपनी बाँहो मे भर लिया..

"ऊ.ऊ.म्.म्.म्म्म.ह्ह्ह्.. क्या‌ है..छोङ‌ मुझे नही तो‌ मै सच मे तेरी शिकायात कर दुँगी..!" पिँकी ने अब कसमसाकर कर मुझसे छुङाने का प्रयास करते हुवे कहा।

"नही छोङुँगा..!,पहले ये बाता तुमने अभी तक मैने जो कहा था उसका कोई जवाब क्यो नहीं दिया..?" ये कहते हुवे मैने उसे अपनी बाँहो मे और भी कसकर जकङ लिया...

"ऊ.ऊ.म्.म्.म्म्म.ह्ह्ह्.. क्.क्.कयाआ..?" उसने अब पहले के जैसे ही कसमसाते हुवे कहा।

"मैंने जो तुमसे आई लव यू.. कहा था उसका...?" मैने उसे वैसे ही पकङे पकङे कहा।

मेरे अब ऐसे पकङे रहने से पिंकी की साँसे तेज हो गयी तो उसका चेहरा भी अब शरम से लाल होता जा रहा था इसलिये..

"म्.म् मुझे..न्.न. नहीं पता…!" उसने बस अब हकलाते हुवे इतना ही कहा था की तब तक मेरी भाभी अब फिर से कमरे में आ गयी।

भाभी के आते ही मैने उसे छोङ दिया तो पिंकी भी अब चुपचाप तुरन्त एक ओर होकर बैठ गयी। पर उसके चेहरे पर अभी शरम हया के से भाव थे।

उसने कोई जवाब नहीं दिया था मगर उसकी शरम‌ हया से मुझे मेरा जवाब मिल गया था। उसकी तरफ से ये हाँ ही थी। बस मुझे ही अब उसे धीरे धीरे पटरी पर लाना था।

इसके लिये मैं अब जानबुझकर पिंकी के बिल्कुल पास होकर बैठता और जब भी मुझे मौका मिलता मैं कभी उसके बदन को सहला देता, तो कभी उसके गोरे गोरे गालो को‌ चूम ‌लेता...

यहाँ तक ही कभी कभी तो कपड़ों के ऊपर से ही उसके छोटे छोटे उरोजों को भी मसल देता जिसका वो बनावटी गुस्से से मेरा हल्का सा विरोध तो करती मगर किसी से कुछ कहती‌ नहीं।
 

Chutphar

Mahesh Kumar
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ऐसे ही धीरे धीरे मै आगे बढता रहा और एक दिन मै पिंकी की चुत तक‌ भी जा पहुँचा। उस दिन पढाई के बाद पिँकी अपने घर जाने की तैयारी मे ही थी की मैने उसे पीछे से पकङ लिया...

उस समय मेरी भाभी कमरे मे नही थी इसलिये पिँकी को‌ पीछे से बाँहो मे भरके मैने पहले तो उसकी छोटी छोटी चुँचियो को सहलाया, फिर अपना एक हाथ सीधा ही उसके‌ पेट पर से सहलाते हुवे उसकी चुत की तरफ भी बढा दिया..

मेरा हाथ उसकी चुत के पास जाते ही पिँकी की साँसे तेज हो गयी थी इसलिये..
"उ.ऊ.ऊ..छो.ङ....!,
छो.ओ.ङ.. मुझे...! " पिँकी ने अब कसमसाते हुवे कहा।

मगर जब तक वो‌ कुछ समझती मैने अपना‌ हाथ लोवर के उपर से ही उसकी चुत पर पहुँचा दिया। अब चुत को छुते ही पिँकी ‌तो जैसे चिँहुक ही पङी और जोरो से...
"अ्.ओ्.ओ्.ओ्.य्....अ्.ओ्.ओ्.ओ्.य्..." कहकर उसने तुरन्त दोनो हाथो‌ से‌ मेरे हाथ को पकङ‌ लिया...

पिँकी कही ज्यादा सोर ना मचा दे इस बात का मुझे डर तो लग रहा था मगर फिर भी मैने एक‌ हाथ से उसकी चुँची को पकङे पकङे दुसरे हाथ से उसकी चुत को सहलाना शुरु कर दिया...

अब तो वो और भी जोरो से... "उ.ऊ.ऊ..छो.ङ.... छो.ओ.ङ.. मु्.झे...छो्.ओ्.ओ्.ङ्.अ्..." कहते हुवे मुझसे छुङाने के लिये बुरी तरह कसमसाने लगी..

वैसे मेरी भाभी‌ को तो मेरे व पिँकी के बारे मे सब कुछ मालुम‌ था मगर उस समय‌ मेरे मम्मी पापा भी घर मे ही थे। पिँकी की आवाज सुनकर कही मेरे मम्मी पापा ना आ जाये इसलिये कुछ देर उसकी चुत को‌ अच्छे से मसलने के बाद मैने उसे छोङ दिया..

मेरे अब छोङते ही पिँकी मुझसे दुर, दरवाजे के पास जाकर खङी हो गयी और..
"सुधर जा… नहीं तो‌ मैं तेरी सच मे ही शिकायत कर दूँगी..!" पिँकी ने अब बनावटी‌ सा गुस्सा दिखाते हुवे कहा।

मगर पिंकी की उखड़ती साँसें व आँखों में तैरते उत्तेजना के गुलाबी डोरे कह रहे थे कि मेरी हरकत से उसे भी मजा आ रहा था इसलिये वो ऐसा कुछ नहीं करेगी इसलिये..

"क्यो, क्या हुवा..?" मैने उसकी तरफ देखकर अब हँशते हुवे कहा।

मेरे हँशने से अब पिँकी के चेहरे पर भी हल्की मुस्कान सी आ गयी थी मगर फिर भी..
"बस मैने कहा ना सुधर जा.." पिँकी ने भी अब हँशते हुवे कहा और अपने घर भाग गयी।

पिंकी को अपनी बाँहो मे भर लेना व उसके गालों को चूमना तो मेरे लिये अब सामान्य सी ही बात हो गयी‌ थी, क्योंकि अब जब भी मुझे मौका मिलता मै उसे अपनी बाँहो मे भरकर उसके नाजुक से बदन को कभी भी सहला देता था, और उसके गालो को तो मै ऐसे ही चुम लेता था।

हालांकि मेरी हरकतों से बचने के लिये वो मुझसे दूर होकर बैठने का प्रयास भी करती थी। मगर मैं खुद जानबुझकर खिसकर उसके पास हो‌ जाता जिससे वो बस हँशकर रह जाती।
 

Sanju@

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ऐसे ही धीरे धीरे मै आगे बढता रहा और एक दिन मै पिंकी की चुत तक‌ भी जा पहुँचा। उस दिन पढाई के बाद पिँकी अपने घर जाने की तैयारी मे ही थी की मैने उसे पीछे से पकङ लिया...

उस समय मेरी भाभी कमरे मे नही थी इसलिये पिँकी को‌ पीछे से बाँहो मे भरके मैने पहले तो उसकी छोटी छोटी चुँचियो को सहलाया, फिर अपना एक हाथ सीधा ही उसके‌ पेट पर से सहलाते हुवे उसकी चुत की तरफ भी बढा दिया..

मेरा हाथ उसकी चुत के पास जाते ही पिँकी की साँसे तेज हो गयी थी इसलिये..
"उ.ऊ.ऊ..छो.ङ....!,
छो.ओ.ङ.. मुझे...! " पिँकी ने अब कसमसाते हुवे कहा।

मगर जब तक वो‌ कुछ समझती मैने अपना‌ हाथ लोवर के उपर से ही उसकी चुत पर पहुँचा दिया। अब चुत को छुते ही पिँकी ‌तो जैसे चिँहुक ही पङी और जोरो से...
"अ्.ओ्.ओ्.ओ्.य्....अ्.ओ्.ओ्.ओ्.य्..." कहकर उसने तुरन्त दोनो हाथो‌ से‌ मेरे हाथ को पकङ‌ लिया...

पिँकी कही ज्यादा सोर ना मचा दे इस बात का मुझे डर तो लग रहा था मगर फिर भी मैने एक‌ हाथ से उसकी चुँची को पकङे पकङे दुसरे हाथ से उसकी चुत को सहलाना शुरु कर दिया...

अब तो वो और भी जोरो से... "उ.ऊ.ऊ..छो.ङ.... छो.ओ.ङ.. मु्.झे...छो्.ओ्.ओ्.ङ्.अ्..." कहते हुवे मुझसे छुङाने के लिये बुरी तरह कसमसाने लगी..

वैसे मेरी भाभी‌ को तो मेरे व पिँकी के बारे मे सब कुछ मालुम‌ था मगर उस समय‌ मेरे मम्मी पापा भी घर मे ही थे। पिँकी की आवाज सुनकर कही मेरे मम्मी पापा ना आ जाये इसलिये कुछ देर उसकी चुत को‌ अच्छे से मसलने के बाद मैने उसे छोङ दिया..

मेरे अब छोङते ही पिँकी मुझसे दुर, दरवाजे के पास जाकर खङी हो गयी और..
"सुधर जा… नहीं तो‌ मैं तेरी सच मे ही शिकायत कर दूँगी..!" पिँकी ने अब बनावटी‌ सा गुस्सा दिखाते हुवे कहा।

मगर पिंकी की उखड़ती साँसें व आँखों में तैरते उत्तेजना के गुलाबी डोरे कह रहे थे कि मेरी हरकत से उसे भी मजा आ रहा था इसलिये वो ऐसा कुछ नहीं करेगी इसलिये..

"क्यो, क्या हुवा..?" मैने उसकी तरफ देखकर अब हँशते हुवे कहा।

मेरे हँशने से अब पिँकी के चेहरे पर भी हल्की मुस्कान सी आ गयी थी मगर फिर भी..
"बस मैने कहा ना सुधर जा.." पिँकी ने भी अब हँशते हुवे कहा और अपने घर भाग गयी।

पिंकी को अपनी बाँहो मे भर लेना व उसके गालों को चूमना तो मेरे लिये अब सामान्य सी ही बात हो गयी‌ थी, क्योंकि अब जब भी मुझे मौका मिलता मै उसे अपनी बाँहो मे भरकर उसके नाजुक से बदन को कभी भी सहला देता था, और उसके गालो को तो मै ऐसे ही चुम लेता था।


हालांकि मेरी हरकतों से बचने के लिये वो मुझसे दूर होकर बैठने का प्रयास भी करती थी। मगर मैं खुद जानबुझकर खिसकर उसके पास हो‌ जाता जिससे वो बस हँशकर रह जाती।
बहुत ही शानदार अपडेट है
मजा आ गया
 

SKYESH

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पिँकी को लगभग मेरा उसे हाथ लगाना पसन्द आने लगा था इसलिये एक दिन पढ़ाई के बाद पिंकी जब अपने घर जाने लगी‌ तो मौका देखकर मैने उसका हाथ पकङ लिया..

अचानक मेरे अब ऐसा करने से पिंकी घबरा सी गयी और.."क्.क्. क्.य.आ ह्ह्..?" उसने हकलाते हुवे कहा।

"वो तुमने मेरी उस दिन वाली बात का कोई जवाब नही दिया..?" मैने उसका हाथ पकङे पकङे ही कहा।

घबराहट के कारण पिँकी अब कुछ बोल तो नहीं पा रही थी मगर मुझसे अपना हाथ छुड़ाने के लिये वो अपना दुसरा हाथ चलाने लगी जिससे उसके हाथ से किताबे छुट कर अब फर्श पर गिर गयी...

अब इससे पहले की वो मुझसे छुड़ाकर भाग जाये, मैंने उसको पकड़कर अपनी बांहों में भर लिया और उसके नर्म मुलायम गोरे गालों को चूमना शुरू कर दिया...

अब तो डर व घबराहट से पिंकी का पूरा बदन ही कंपकपाने लगा। डर व घबराहट के मारे वो ठीक से कुछ बोल तो नहीं पा रही‌ थी...

मगर फिर भी धीमी सी आवाज में कराह‌ते हुवे...
"इश्श… च.छ.ओ.ड़..अ…
ईईश्श्श्..च.छ.ओ.ड़..अ… म…उ..झ…ऐ…"बस ऐसे ही बङबङाने सा लगी...

वो डर व घबराहट मे ऐसे ही अपने हाथ पैर भी चला रही थी मगर तब तक पिंकी के बदन को‌ सहलाते हुए मैंने उसे दीवार से सटा लिया‌ और धीरे धीरे उसकी गर्दन व गालो को चुमते हुए अपने होठो को उसके नर्म‌ मुलायम होठो से ही जोङ दिया...

पिंकी के दिल की धड़कन अब तेज हो गई तो साँसे भी जैसे फुल सी गयी… उसके होठो को अपने मुँह मे भरकर चुश रहा था इसलिये वो अब कुछ बोल तो नही पा रही थी मगर फिर भी..
"उ्.ऊ्.ऊ्ऊ्...हुहुहु...ऊऊ... उ्.ऊ्.ऊ्ऊ्ऊ्...हुहुहुहु...ऊऊऊ...
उ्.ऊ्.ऊ्ऊ्ऊ्...हुहुहुहु...ऊऊऊऊ..." किये जा रही थी।

पिँकी के रशीले होठो को चुशने की ख्वाहिश दिल मे ना जाने मै कब से लिये बैठा था। अब सच कहु तो जैसा मैने सोचा था उससे कही ज्यादा सोफ्ट और नर्म मुलायम होठ थे पिँकी के।

उसके नर्म मुलायम होठो का अहसास इतना सोफ्ट सोफ्ट था की मुझे तो ऐसा लग रहा था जैसे मेरे चुशने सी उसके होठ बतासे के जैसे मेरे मुँह मे ही घुल जायेँगे, और उनका स्वाद...?
पिँकी के होठो का स्वाद तो ऐसा था की बस पुछो ही मत..!

पिँकी का मुँह बन्द था मगर उसके नाको से गर्म गर्म साँसो के साथ सौँधी सौँधी महक आ रही थी इसलिये मै तो जैसे बावरा ही हो गया और पिँकी के विरोध के बावजूद भी उसके होठो को चुशता चला गया..

पर मै अब आगे कुछ करता, तभी बाहर किसी की आहट सुनाई दी, शायद वो मेरी भाभी थी, जिससे मेरा ध्यान अब बँट गया, और तभी पिंकी ने अपनी पूरी ताकत से मुझे धकेलकर अपने से अलग कर दिया...

पिंकी बहुत ज्यादा घबरा गई थी इसलिये कुछ देर तो वो वही खङे खङे हाँफती सी रही फिर अपनी किताबे उठाने के लिये नीचे बैठ गयी। मैंने भी पिंकी को दोबारा पकड़ने की कोशिश नहीं की, बस चुपचाप उसे देखता रहा...

पिँकी ने भी अब पहले तो अपनी किताबे समेटी, फिर उनको एक हाथ मे पकङकर खङी हो गयी। किताबें उठाने तक वो कुछ सामान्य हो गयी थी इसलिये...

"य्.य्...म्म्.म्म्.भ्.भाभी को बता रही हुँ..!" उसने थोङा हकलाते हुवे से कहा। मगर पिँकी की उखङती साँसे व उसके चेहरे की रँगत बता रही थी की वो ऐसा कुछ नही करेगी इसलिये..

"क्या..?" मैने अब शरारत से हँशते हुवे पुछा।

"त्.त्.त्उ..तु..न्.न् ये.." वो अब पुरा ही हकला गयी।

"हाँ.हाँ बताओ.., बताओ क्या किया मैने..?" मैने अब शरारत से हँशते हुवे कहा जिससे पिँकी के चेहरे पर भी हल्की हँशी के से भाव आ गये और वो तुरन्त वहाँ से भाग गयी।


अब जैसा मैंने सोचा था हुवा भी वैसा ही, पिंकी ने ये बात किसी को नही बताई और अगले दिन रोजाना की तरह ही वो हमारे घर पढने के लिये भी समय पर ही आ गयी।

GREEN signal mil gaya ....sarkar .....:wink:
 

Chutphar

Mahesh Kumar
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अभी तक आपने पढा की मै धीरे धीरे करके पिँकी की चुत तक भी जा पहुँचा था जिसका पिँकी ने भी इतना विरोध नही किया था।

पिँकी अब लगभग पुरी तरह से तैयार थी मगर मुझे ही कोई अच्छा सा मौका नही‌ मिल‌ रहा था। और फिर ऐसे ही एक दिन मुझे अच्छा सा मौका मिल भी गया..

उस दिन मेरे पापा गाँव गये हुए थे और मम्मी‌ के बारे में तो आपको पता ही है जो कि बीमार होने के कारण अधिकतर अपने कमरे में ही रहती है।

मेरी भाभी को भी उस दिन मैने‌ पहले से ही बता दिया था की वो हमे खुद ही पढाई करने को बोलकर कमरे से चली जाये और जब तक मै ना कहु वो कमरे मे ही ना आये..

वैसे भी उस दिन मेरी भाभी को घर के काम देरी हो‌ गई थी। इसलिये दोपहर को पिंकी जब पढ़ने के लिये आई तो भाभी ने हमें कुछ देर तक तो पढ़ाया, फिर बाकी की पढ़ाई हमे अपने आप करने को बोलकर वो कपड़े धुलाई करने के लिये चली गयी...

भाभी के जाते ही मैंने पिंकी को पकड़कर अब अपनी बांहों में भर लिया और धीरे धीरे उसके गोरे गालों‌ को चूमना शुर कर दिया..

पिंकी ने भी अब झूठमूठ का गुस्सा करते हुए..
"छोड़… छोड़ मुझे…
मैं घर जा रही हूँ…
मुझे नहीं पढ़ना है तेरे साथ…!" इस तरह ना-नुकर करते हुए मुझसे छुड़ाने का प्रयास तो‌ किया मगर तब तक मैंने उसे पकड़ कर बैड पर गिरा लिया..

पिंकी मुझे धकेलकर अब उठने की कोशिश तो की मगर मैं उसे अपने शरीर के भार से ऐसे ही दबाये रहा और अपना एक हाथ कपड़ों के ऊपर से ही उसके छोटे छोटे उभारों पर रख दिया...

पिंकी के उभार इतने छोटे थे की वो मुश्किल से ही नीम्बू के समान होंगे। इसलिये मैने उन्हे कस के रगड़ने, मसलने के बजाय उसकी ज़वानी के दोनों छोटे छोटे फूलों को हल्के हल्के से सहलाना शुरू किया..

जैसे कोई भौंरा कभी एक फूल पे बैठे तो कभी दूसरे पर…मेरे हाथ भी यही कर रहा था, साथ ही मैं पिंकी की गर्दन व गालों को भी चूम रहा था जिसका पिंकी अपने सिर को इधर उधर हिलाकर बचने का प्रयास कर रही थी।

पिंकी एक किशोरी थी जो पहली बार यौवन सुख का स्वाद चख रही थी इसलिये उसका शर्माना, झिझकना जायज भी था, मगर मेरा भी काम उसे पटाना, तैयार करना और वो लाख ना ना करे उसे कच्ची कली से फूल बनाना था।

पिंकी के गालों को चूमते हुए धीरे धीरे मैं अब उसके गुलाबी रसीले होंठों पर भी आ गया और हल्के, बहुत ही हल्के से उसके रसीले होंठ चूसने लगा। जिससे
पिंकी की साँसें भी अब गहरी होने लगी और उसका‌‌ विरोध हल्का पड़ गया...

मैंने अपनी जीभ को भी अब पिंकी के मुँह में डाल दिया जिसका पहले तो वो अपनी गर्दन को इधर उधर हिलाकर बचने का प्रयास करती रही मगर मैंने भी एक हाथ से उसके सिर को कस के पकड़ लिया और उसके मुंह में अपनी जीभ को ठेले रखा...

और फिर कुछ देर की ना नुकुर के बाद ..पिंकी की जीभ ने भी हरकत करना शुरू कर दिया, वो अब हल्के से मेरे जीभ के साथ खिलवाड़ करने लगी‌ तो उसके रसीले होंठ भी अब मेरे होंठों को धीरे धीरे कभी कभी चूमने लगे...

मगर मैं ऐसे छोड़ने वाला थोड़े ही था, मैं आज पहले से कुछ आगे बढ़ना चाहता था इसलिये मेरा हाथ जो अब तक उसके छोटे छोटे उभारों से खेल रहा था वो पिंकी के बदन पर से रेंगता हुआ उसकी दोनों जाँघों के बीच आ गया...

मगर तभी पिंकी ने मेरे हाथ को पकड़ लिया और मेरे होंठों पर से अपना मुँह हटा कर...
"नहीं नहीं…
छोड़… ना…
भाभी आ जायेगी.. प्लीईज ये सब नही.."

पिँकी को अपने बदन के साथ हो रही छेङछाङ से ज्यादा ये फिक्र थी की‌ मेरी भाभी कमरे मे ना आ जाये इसलिये वो मुझे मना कर रही थी। मगर उसे क्या पता मेरी भाभी तो खुद ही इस खेल मे शामिल थी...

मैंने भी अब उसको छोड़ा नहीं बल्कि हल्के हल्के उसके गाल पर फिर से चूमने लगा, साथ ही मेरा हाथ पकड़े जाने के बावजूद भी मैने थोड़ी सी‌ जबरदस्ती करके धीरे धीरे उसकी चुत को‌ भी सहलाना शुर कर दिया..

"अआआ…ह्ह्हह… बस्स्स…
अ..ओओ..य..
हो.. गय..आ…
अआआ…ह्ह्हह… ..
प्लीज..अअआ… ह्ह्हहहहह..." वो बुदबुदा रही थी। उसकी आवाज में घबराहट और डर तो था ही लेकिन साथ ही कही ना कही मुझे उसकी थोड़ी बहुत इच्छा भी लग रही थी।

मैंने उसके गालों को छोड़ा नहीं बल्की हल्के से उसी जगह पे एक हल्का सा चुम्बन किया, फिर एक झटके से मैंने अपना हाथ छुड़वाकर पिंकी के लोवर व पेंटी में डाल‌ दिया...

पिंकी ने अब...
"अ्.अ्..ओ…य… न..नहीं..
इई.. इ…इईई…श्शशश.. क्क्क…क्या… कर रहा है…" कहकर मेरा हाथ को पकड़ने की कोशिश भी की मगर तब तक मेरा हाथ उसके लोवर व पेंटी को भेद गया...

मेरा हाथ पिंकी की पेँटी मे घुसते ही उसने पहले तो अब अपने घुटनो को मोड़ना चाहा मगर उसके दोनों पैरों को मैंने अपने पैर से दबा रखा था...

पिंकी ने अब दोनों जाँघों को भींच कर भी अपनी‌ 'मुनिया' को छुपाने की‌ कोशिश की… मगर उसकी जांघें इतनी मांसल भरी हुई‌ नहीं थी कि उसकी मुनिया को‌ छुपा सके...

उसकी जाँघों को बन्द करने के बाद भी दोनों जाँघों के बीच इतनी जगह रह गयी कि मेरी दो उंगलियां उसकी छोटी सी चुत को छू ही गई जो की कामरस से भीगरकर अब हल्की सी गीली हो आई थी।

पिंकी की चुत बिल्कुल सपाट व चिकनी लग रही थी जिस पर ना तो कोई उभार था और ना ही कोई बाल महसूस हो रहे थे...

पर मेरी जो दो उंगलियाँ पिंकी कि चुत को‌ जितना छू‌ रही थी उन्हीं से मैं चुत को छेड़ने लगा, साथ में ही चुत को उंगलियों से हल्के हल्के दबा भी रहा था, जिससे पिंकी शरम से दोहरी हो‌ गई और..
"इईईई…श्शशश…
नहीं..इई.. अ..
ओ.ओय.. वहां से हाथ हटा…
प्लीज… बात… मान..
वहां नहीं… छोड़ ना…
अब बहुत हो गया…
बस्सस…अब हो तो गया " करके मेरे हाथ को बाहर निकालने की कोशिश करने लगी...

मगर मैं कहाँ मानने वाला था, मैं धीरे धीरे ऐसे ही पिंकी की चुत को उंगलियों से दबाता सहलाता रहा जिसका कुछ ही देर में पिंकी पर भी असर हो गया और मेरी‌ उंगलियाँ कामरस से तर हो आई..

पिंकी के मुँह से भी अब हल्की हल्की सिसकियाँ फुटना शुरु हो‌ गयी थी। उसने दोनो हाथो से मेरा हाथ पकड़ तो रखा था मगर वो अब उसे निकालने की इतनी कोशिश नहीं कर रही थी।

बस मेरा हाथ पकड़े पकङे......
"अ..अ.. ओ…य… न..नहीं..इई.. ना..
इ…इईई… श्शशश… क्क्क…क्या… कर रहा है… इईईई…श्शशश… नहीं..इई.. छोड़ ना… प्लीज.. बस्सस… अब बहुत हो तो गया… बस्सस…" ये बुदबुदा सी रही‌ थी।

पिंकी की जांघों की पकड़ भी अब हल्की होती जा रही थी जिससे धीरे धीरे मेरी‌ उंगलियाँ उसकी जाँघों के बीच जगह बना‌कर अब नीचे की ‌तरफ भी बढ़ने लगी...

पिंकी की चुत भी काम रस से अब लबालब हो आई थी इसलिये मैंने अब फिर से उसके होंठों को मुँह में भर लिया और हल्के हल्के उन्हें चूसना शुरू कर दिया...

अब इस दो‌ तरफा हमले को पिंकी ज्यादा देर तक सहन‌ नहीं कर सकी‌ और उसके बदन‌ ने उसका‌ साथ छोड़ दिया... क्योंकि पिंकी की‌ जांघें अब अपने आप ही फैलने लगी तो वो अब कभी कभी मेरे होंठों को हल्का हल्का चुशने लगी...

तब तक‌ मेरी उंगलियाँ भी चुत के अनार दाने तक‌ पहुँच गई थी। मैंने उसे अब हल्का सा मसल दिया जिससे पिंकी जोरो से....
"इईई…श्शशश… अ..अआआ…ह्ह्हहहह…" करके चिहुंक सी पड़ी और अपने‌ दोनो‌ हाथ नीचे ले जाकर मेरे हाथ को अपनी चुत के पास से पकङ...

मगर मैं रुका नहीं, धीरे धीरे मेरी उंगलियाँ चुत के प्रवेश द्वार तक पहुँच गई जो‌ की अभी तक कामरस से भीगकर बिल्कुल तर हो गया था।

पिंकी ने भी अब अपनी जांघें फैलाकर पुरा समर्पण कर दिया जिससे मेरे हाथ का अब पूरी चुत पर ही अधिकार हो गया और मै खुलकर उसकी चुत को ‌रगड़ने मसलने लगा..

पिंकी के मुँह से अब सिसकारियाँ निकलनी शुरु‌ हो गयी थी इसलिये उसकी मुनिया को रगड़ते मसलते मैने अब अपनी एक उँगली को धीरे धीरे उसके प्रवेशद्वार पर भी दबाना शुरु कर दिया..

अब मै तो बस पिँकी की चुत मे अपनी उंगली का एक पौरा भर ही अन्दर कर रहा था.. मगर पिंकी ने खुद ही मेरे हाथ को पकड़ कर जोर जोर से दबाते हुए...
"इईई…श्शशश… अआआ…ह्ह्ह…
इईई…श्शश… अआआ…ह्ह्हहह…" करना शुरु कर दिया ताकि मेरी उंगली‌ उसकी गुफा में समा जाये...

अभी तक मुझे कुँवारी चुत का अनुभव हो गया था इसलिये मैं अपनी उंगली को चुत के प्रवेशद्वार में ज्यादा अन्दर तक नहीं डाल‌ रहा था, क्योंकि अन्दर चुत की गुफा काफी संकरी थी।

पिंकी बहुत ज्यादा उत्तेजित हो गई थी इसलिये उत्तेजना के वश वो नहीं जान पा रही थी कि वो क्या कर रही है। मगर इस बात की‌ मुझे अब समझ थी।

मैं जितनी‌ मेरी उंगली चुत में जा रही थी बस उसे ही उसके प्रवेशद्वार के अन्दर बाहर करने लगा, मगर मैने अब उसकी थोड़ी गति‌ बढ़ा दी थी जिससे‌ पिंकी की सिसकारियाँ अब और भी तेज हो‌ गयी...

वो जोर जोर से...
"इईई… श्शशश… अआआ… ह्ह्हह…
इईईई…श्शश… अआआ…ह्ह्ह…
इईईई…श्शश… अआआ…ह्ह्ह…"करते हुए मेरे हाथ को अपनी‌ चुत पर अब जोरो से दबाने लगी‌ तो साथ ही अपनी दोनों जाँघों को भी अब कभी खोलने तो‌ कभी जोर से भींचने लगी...

पिंकी ने मेरे होंठों को भी अब जोरो से काटना शुरू कर दिया था और फिर अचानक से पिंकी का बदन थरथरा गया..

अब इसी‌ के साथ उसने जोर से मेरे हाथ को भी अपनी चुत पर जोरो से दबा लिया और अपनी जाँघो को कैँची की‌ तरह कस कर..
"इईईई…श्शशश… अआआ…ह्ह्हहहहह… ईई…श्शश… अआआ… ह्ह्ह…" की किलकारियाँ सी मारते हुवे अपनी चुत से मेरे हाथ पर ही खौलता लावा सा उगलना शुरू कर दिया..

पिँकी की उस नन्ही मुनिया ने अपने‌ ज्वार की बस चार- पाँच किश्ते ही मेरे हाथ पर उगली होँगी की पिँकी अब बेसुध सी हो गई।

मैं भी कुछ देर तक ऐसे ही बिना कोई हरकत किये खामोशी से पिंकी को देखता रहा मगर मेरा हाथ अब भी पिंकी की पेंटी में ही रखे रहा।

पिंकी आँखें बन्द करके लम्बी लम्बी सांसें ले रही थी, चेहरे पर सन्तुष्टि के भाव साफ नजर आ रहे थे जैसे की‌ कोई बहुत लम्बी दौड़ को जीतने की खुशी के बाद आराम कर रही हो।

पिंकी का ज्वार तो मैंने शांत कर दिया था मगर मैं अब भी प्यासा ही था इसलिये मैंने धीरे से पिंकी के गाल को फिर से चूम‌ लिया...

मेरे इस चुम्बन से पिंकी अब चौंक‌ सी ‌गई, जैसे‌ अभी अभी‌ गहरी नींद से जागी हो, उसने मेरा हाथ पकड़कर अब अपने लोवर से तुरन्त बाहर निकाल दिया और मुझे धकेल कर जल्दी से उठकर बैड पर बैठ गई।

"क्या हुआ..?" मैंने उससे पूछा।

पिंकी ने अब अपने कपड़े ठीक करते हुए हल्की सी मुस्कान के साथ बस एक बार मेरी तरफ देखा, फिर शरमाकर गर्दन नीचे झुका ली।

"क्यों… मजा नहीं आया क्या..?" मैंने अब फिर से पूछा जिससे पिंकी ने हल्का सा मुस्कुराकर अब एक बार फिर से मेरी तरफ देखा। उसके चेहरे पर शरम‌ के भाव अब साफ नजर आ रहे थे।

"तू बहुत गन्दा है..!" पिँकी ने बस इतना ही‌ कहा और शरमाकर फिर से अपनी गर्दन नीचे झुका ली।

मैं फिर से‌ पिंकी को पकड़कर‌ चूमना चाहता‌ था मगर तभी‌ बाहर से मेरी भाभी ने आवाज देकर मुझे छत पर जाकर कपड़े सुखाने को कहा...!

तब तक पिंकी भी घर जाने के लिये जल्दी जल्दी अपनी किताबें समेटने लगी। जाते समय मैंने फिर से पिंकी का हाथ पकड़ लिया और... "आज रात को छत पर मिलेगी क्या..?"

"क्यो…?" पिंकी ने अब अपना हाथ छुङाने की कोशिश करते हुवे कहा।

पर मैने भी उसका हाथ छोङा नही और..
"बस अभी जो किया इसी के लिये..!" मैने शरारत से हँशते हुवे कहा जिससे पिँकी का चेहरा अब शरम से लाल हो गया और उसके चेहरे पर भी हल्की मुस्कान तैर गयी।

"नही मुझे नही आना.." पिँकी ने अब कँधे उचकाते हुवे कहा और जल्दी से अपना हाथ छुड़वा कर वहाँ से भाग गयी...

इतना सब कुछ करने के बाद मैंने भी पिंकी को दोबारा पकड़ने की कोशिश नहीं की, क्योंकि लगभग मेरा काम‌ अब बन ही गया था, और मैं जल्दबाजी में उसे बिगाड़ना नहीं चाहता था‌, इसलिये मैं भी कपड़े सुखाने के लिये भाभी‌ के पास चला गया...
 
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