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Incest : पुर्व पवन : (incest, romance, fantasy)

कहानी आपको केसी लग रही है।।


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Babulaskar

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Bohut bohut subkamnye👌👌👌

Updated plz

Bhai next update kb aaega

Waiting for next ,🧐🧐🧐

Aap ke agle update ka bahut hi besabri se intazaar rahega..... Aasha karta hu ki aaj aapka next update mil jayega...m
अपडेट आज पोस्ट होगा। उम्मीद है रात नौ बजे से पहले पोस्ट कर दूँ। साथ रहें। बने रहें। लाईक और कमेंट करना ना भूले।
 

Sanju@

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भाग 37/1

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पवन ने कुसुम की पसंद का काफी कुछ खरीदकर दिया, जिससे कुसुम का हाथ कपडों की पोटली और दूसरी चीजों से भर गया। अब वह दोनों घर की तरफ लौटने लगे।

घर के पास आकर पवन ने कहा, कुसुम मैं जरा उस पेड के नीचे जाकर बैठता हुँ। तुम यह कपड़े लेकर जाओ। बाद में आता हुँ।"

कुसुम एक नए नवेली शर्मिली दुल्हन की तरह बस सिर हिलाती है और घर के अन्दर चली जाती है।


कुसुम की माँ सुमन देवी खाना पकाने में ब्यस्त थी। कुसुम को घर में आता देखकर वह बोल पडती है, अरी कुसुम बेटी तू आ गई? पवन कहाँ है?" कुसुम ने सारा सामान वहीं बरामदे में रख दिया। और थकान के मारे माँ के पास बैठ गई और माँ से चिपक गई। सुमन देवी उसके सिर पे प्यार से हाथ फेरनी लगी।


"क्या बात है कुसुम? तू ठीक तो है ना!"


"नहीं माँ एसी कोई बात नहीं है। बस थोडी थक गई हूँ। तुम्हारे उस पागल दामाद ने पूरे मेले का चक्कर लगवाया।"


"अरे पगली, अभी से थक जायेगी तो रात को क्या करेगी? वह पवन तेरा पति कहाँ गया है?"


"माँ तुम भी ना! खुद ही जाकर देख लो। बैठा होगा खेत के पास।"


"हाए, मेरी बेटी शर्मा गई। देख अब तो तुझे ही उसका ध्यान रखना होगा। अब वह तेरा पति बन गया है। भगवान का लाख लाख शुक्र है पवन के साथ तेरा बियाह हो गया। मुझे पूरा बिश्वास था, वही तेरे से बियाह करेगा। नहीं तो मैं तुझे आज मोह मिलन नहीं ले जाती।"


"क्या माँ, तुम्हें पता था? लेकिन अगर वह लाला, मतलब वह अगर आगे बड़कर शादी का प्रस्ताव स्वीकार ना करता फिर तो लाला से ही मेरी शादी होती?" कुसुम थोडी हयरान होती है।


"भला पवन एसा होने देता क्या? मैं चार पांच दिन से पवन का ही इन्तज़ार कर रही थी पगली। इसी लिए तुझ से कह रही थी, आज मेले में अच्छे रिश्ते वाले नहीं आये। लेकिन आज सुबह जब वह हमारे घर पर आया, और देख, कितने सारे कपड़े लेकर आया है वह। भला अगर उसे तुझ से प्यार ना होता तो क्या वह एसा करता? और इसी लिए मैं ने सोचा पवन को साथ लेकर चलती हूँ। जब उसके सामने लाला जैसा दानव आकर खडा होगा, वह कैसे बरदास्त कर लेगा। और इसी लिए उसने आगे बड़कर तेरा हाथ मांगा। तुझ से प्यार करता है पगली।" सुमन देवी मुस्कुराती हुई बोली। कुसुम कुछ बोलती नहीं, बस अपनी माँ से और ज्यादा चिपक जाती है।


"बहुत भूक लगी होगी तुम दोनों को? तू जाकर उसे बुला ला। खाना बस बनने वाला है।"


"नहीं माँ, मेरा पेट अभी भरा हुआ है। तुम्हारे दामाद ने ढाबे पे खिलाया है। वह शायद अभी नहीं खायेगा।"


"फिर तू यहां बैठकर क्या कर रही है? उसके पास जाकर बैठ। उससे बातें कर। बेचारा अपना घरबार छोड़कर तेरे से बियाह किया है, क्या पता उसके मन में क्या चल रहा है।"


"हाँ, तुम्हें तो उसी की फिक्र है। मेरी तो कोई फिक्र ही नहीं।"


"अरे पगली, अब मैं तेरा ध्यान कैसे रखूँ? अब तेरा पति हो गया है। इत्ना अच्छा इत्ना जोशीला मर्द मिला है तुझे। और क्या चाहिए तुझे? जा उसके पास जाकर बैठ। और हाँ, अगर वह कुछ करने को चाहे तो मना मत करना।" सुमन देवी ने एक तरह से जोर से ही कुसुम को खडा कर दिया।


"कुछ उलटा सीधा तो नहीं करेगा ना?" मासूम कुसुम की बात पे सुमन देवी की दाँत बाहर आने लगती है।

"अरे बाबा, नहीं करेगा। और करेगा भी तो चुपचाप बर्दाश्त कर लेना। लड्की जोकर पैदा हुई है इत्नी भी समझ नहीं है। और अगर समझती भी है तो अंजान बनी फिरती है। अब जा यहां से।"

यूँ तो कुसुम को सब पता है। लेकिन अपनी माँ के पास एसी बातों से उसी शर्म महसूस होती है, शायद इसी लिए वह इस तरह अंजान बनने का नाटक करती है। कुसुम घर के बाहर आकर देखती है, पवन दूर खेत के पास नीम के पेड के नीचे उदास होकर बैठा हुआ है।

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भाग 37/2

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पवन तन्हाई में बैठकर उसके साथ हुए आज के घटनाक्रम को समझने की कोशिश करने लगा था। कुछ दूरी पर आज सुबह उसका खोदा हूआ गडडा है। किस तरह से उसका जीवन बदलता जा रहा है।

पवन एक पल के लिए सोच में पड गया, तो क्या वह खुद कुसुम का पति है? लेकिन यह कैसे हो सकता है? तो क्या उसका कोई बाप नहीं? वह खुद ही बाप और बेटा है? पवन को इस उलझन में पाकर राजकुमार चंद्रशेखर अंतर्मन में बोल उठा,

"क्यों परेशान हो रहे हो पवन! तुम्हारे मन से यह दुविधा निकाल दो। जो हो चुका है उसे स्वीकार कर लो।"

"लेकिन कैसे राजकुमार, मैं ने जो कुछ भी किया! वह बस कुसुम को उस लाला के चुंगल से बचाने के लिए किया है। मानता हूँ मैं कुसुम को पसंद करने लगा हूँ और ना चाहते हुए भी सब कुछ भूलकर उसके प्यार में पड गया। लेकिन,,,," पवन कुछ बोल नहीं पाया। पर राजकुमार पवन की दुविधा समझ रहा था।


"मैं तुम्हारी परेशानी समझ सकता हूँ पवन। तुम्हारी जगह कोई भी होता, उसके लिए यह समझ पाना मुश्किल होता। मैं तुम्हारी दुविधा दूर किए देता हूँ। तुम्हें यही संकोच है ना, कुसुम अगर तुम्हारी माँ है तो तुम्हारी बीबी कैसे बन सकती है?

देखो पवन तुम भविश्य से आये हो, आज जो भेडिया तुम ने देखा वह हमारे राज्य का था। उसे आना चाहिए था तुम्हारे समय पर। लेकिन देखो यह भेडिया यहां इस समयकाल में पहुँच गया। एसा कैसा हुआ? क्यौंकि यहां मैं मौजूद हूँ। मेरे कारन ही वह भेडिया समय चक्कर को पार करके यहां तक पहुँच पाया है। और उसके पीछे आनेवाले सिपाही उसे ढूँढ नहीं पाये।

तुम्हें याद है, कुसुम की माँ सुमन देवी ने कुसुम से क्या कह रखा था?"


"कौन सी बात?" पवन चुपचाप अंतर्मन में राजकुमार से वार्तालाप समझने में लगा था।


"वही की बेटी तेरे लिए दूर देश से,,,,,"


"कोई राजकुमार आयेगा और तुझे अपना बना लेगा।"


"हाँ पवन यही बात। वह राजकुमार कोई और नहीं मैं हूँ। तुम्हारे अन्दर शक्तियों का बढ़ना, तुम्हारे सम्भोग करने की ताकत बढ़ना, और भी जो शक्तियाँ जो शायद तुम्हें बाद में मिले, उसका स्रोत मैं हूँ। तुम जानते हो आज जो भेडिया तुम ने दफन किया है उसके अन्दर भी एक शक्ति है, जो तुम्हें मिलेगी। यह भेडिया मेरे पिताजी ने खास मेरे लिये पृथ्वी लोक से खोज निकाला था। और इसके अन्दर सोने का दिल बना हूआ है। तूम पूछ रहे थे, वह सोने की मुद्राएँ कहाँ से आई? वह मुद्राएँ इसी भेडिया से बनी हैं। मेरे पिताजी ने एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ ढालकर उस भेडिये का दिल बनाया था। समय के साथ साथ वह एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ तुम्हें मिलेगी। अब यह दुविधा और संकोच दिल से निकाल दो। सृस्टी में हर एक प्राणी का पिता होता है। तुम्हारा पिता कोई और नहीं मैं हूँ। और शायद इसी लिए मेरी आत्मा तुम्हारे साथ जुड़ पाई है!" पवन को समझते देर नहीं हुई। लेकिन अब उसका ध्यान इन सबसे हटकर उन सिक्कों पे चला गया। एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ? इत्नी दौलत तो किसी महाराज के पास भी नहीं होगी!


"तो वह मुद्राएँ सारी हमारी हैं? मतलब अब हमें जमींदार बनने से कोई नहीं रोक सकता। राजकुमार, यह सब तुम्हारे कारन हुआ है। मैं तुम्हारा एहसान कभी नहीं भूलूँगा।"


"नहीं मेरे दोस्त, मुझे शर्मिंदा न करो। तुम इस योग्य हो, इसी लिए यह तुम्हारी किस्मत थी। लेकिन मेरे से एक वादा करो पवन, समय आने पर तुम मेरी मदद करोगे। मुझे अपने राज्य में लौटने के लिए जो कुछ करना पडे वह तुम्हें करना होगा!"


"मैं तुम्हें वचन देता हूँ। समय आने पर तुम्हारा यह दोस्त तुम्हारी हर तरह से सहायता करेगा।"


"वह देखो, तुम्हारी नई नवेली दुल्हन तुम्हारे पास आ रही है।"


"अब तुम चुप रहो। तुम्हें जो कुछ करना है मेरे अंतर्मन से करते रहो। शरीर मेरा है मुझे सम्भालने दो।"

"जो आज्ञा मित्र!"
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है
 

sunoanuj

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Babulaskar

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भाग 38/1

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कुसुम बिना कुछ कहे पवन के पास आकर बैठ गई। पवन ने बस एकबार उसकी तरफ चेहरा फेरकर मुस्कुराया। और फिर उसकी नजर आगे जाकर उस गड्डे पे टिक गयी।

"क्या बात है, तुम परेशान लग रहे हो?" कुसुम ने पवन के बाजू पर अपना हाथ रखा।


"नहीं तो, मैं ठीक हुँ। तुम बताओ, तुम खुश हो ना? कहीं मेरे से नाराज तो नहीं हो?"


"आज तुम ने मुझे डराया दिया था! आज अगर तुम आगे ना आते मैं अपनी जान दे देती। उस लाला से शादी करने से अच्छा मैं मर जाती।"


"ऐसा कैसा हो सकता है? और वह भी मेरे होते हुए? मैं अपनी कुसुम को कैसे दूसरे के हवाले कर सकता था? इतना प्यार जो करता हूँ।" पवन ने दोनों हाथों से कुसुम का चेहरा थाम लिया और अपने चेहरे के सामने लाकर प्यार भरी नजरों से देखने लगा। कुसुम ने एकबार तो देखा फिर लज्जा में अपनी आंखें बंद कर ली।


"तुम कितनी खुबसूरत हो कुसुम। तुम्हारी यह आँखें कितनी नशीली है। तुम्हारा यह चांद सा चेहरा देखकर मैं भला कैसे बिन प्यार किए रह सकता हूँ। आह मेरी कुसुम!"


दोपहर ढल चुका था। सूरज पच्छिम दिशा में डूबने को जाने लगा है। अभी तक सूरज की किरनें आसपास को जगाये हुई थी। मेले का शोर शराबा चीख पुकार धीमी आवाज में यहां तक पहुँच रही है। आज मेले का आखरी दिन है , इसी लिए गावँ वाले कमर बांधकर खरीदारी करने में लगे हैं। इस तरफ कुसुम का घर गावँ के बाहर और पहाडी शृँखला के पास होने के कारन किसी भी मनुष्य का नाम ओ निशान नहीं था।

सिवाए दो इन्सान के। जो छुपकर, और पवन-कुसुम से तीस चालीस हाथ दूर एक बड़े पत्थर के पीछे बैठे उनका यह प्रेम बिलाप देख रहे थे। उन में एक लड़का था और दूसरी एक महिला।


यह मौसम भी पवन और कुसुम के प्रेम के लिए तैयारी करने में जुटा है । पवन के मीठे बोल के साथ उसके होंठ आकर कुसुम के गाल को छू गई। कुसुम के पूरे शरीर में बिजली दौड गई। कुसुम और ज्यादा असहज हो गई।


"तुम ऐसी लड्की हो कुसुम, जो एकबार तुम्हें देखे प्यार किए बिना रह ना पाये! मैं भी पहले दिन से तुम्हारे प्यार में पड गया था। मेरी कुसुम!" पवन ने कुसुम को अपनी बाहों में भर लिया। कुसुम भी एक मासूम लड्की की तरह उसके बाहों में समा गई।


"क्या तुम भी मेरे साथ वह सब करोगे?" कुसुम पवन की बाहों में पड़ी फुसफुसाकर कहने लगी।

कुसुम की इस मासूम और सीधी बात पे पवन को हंसी आ जाती है। वह कुसुम को देखते हुए कहने लगा,

"क्या? मैं क्या करूँगा? तुम्हारे साथ?"


"क्यों तुम्हें नहीं पता? जो एक पति अपनी पत्नी से करता है।"


"और वह भला कौनसा काम है? जो एक पति और पत्नी करते हैं?" कुसुम कहते हुए शर्मा रही थी और पवन मुस्कुरा रहा था।


"नहीं, तुम झूट बोल रहे हो! तुम्हें सब पता है।"


"अरे बाबा, मुझे नहीं पता। अगर तुम कहोगी नहीं फिर मुझे मालुम कैसे होगा? तुम्हें किसने बताया?"


"और कौन? वह आँचल और सुधा है ना! उन्होनें!"


"क्या कहा उन्होनें?"


"कहती हैं, इस में बहुत दर्द होता है!"


"अच्छा! तो तुम्हें दर्द होने से डर लगता है। और अगर दर्द ना हो फिर? फिर तो करोगी ना!" कुसुम चुप रही। बस पवन की बाहों में उसे सुकून और आश्रय मिल रहा था। वह अपना माथा टिकाए अपनी उंगलियों से पवन के छाती में कुरेदने लगी।


"क्या हुआ, बताओ ना! क्या तुम्हें नहीं करना? जो एक पति और पत्नी करते हैं?" पवन ने उसका चेहरा पकड़कर आंखों में आंखें डालकर कहा। कुसुम ने पलकें बंद कर ली।


"अच्छा चलो, जब तुम्हें नहीं करना, तो मैं भी,,,,"


"मैं ने एसा कहा क्या?" कुसुम ने पवन के मुहं पर हाथ रख दिया।


"मेरी मासूम कुसुम! तुम कित्नी अच्छी हो। मैं तुम्हें प्यार किए बिना कैसे रह सकता हुँ। तुम्हारा यह रूप तुम्हारा यौवन तुम्हारा यह सौंदर्य मुझे इसका स्वाद चखना है कुसुम। अब तुम मेरी बीबी हो।"

पवन ने कुसुम को प्यार से अपने से और कसकर जकड़ लिया। और बेतहाशा कुसुम को चूमने लगा। पहली बार किसी मर्द के बाहों में रहकर प्यार के इस भंवर में कुसुम पागल होने लगी। पवन उसके होंठ चूसकर सारा रस पी रहा था। कुसुम मर्द के छूने से अन्दर ही अन्दर गरम होने लगी। फिर काफी देर प्यार भरे चुंबन के बाद पवन और कुसुम की नजरें एक दूसरे से मिली। लेकिन अब कुसुम को और ज्यादा शर्म महसूस होती है और वह चेहरा को अपने हाथों में छुपा लेती है।


"कुसुम, मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था मुझे कभी किसी लड्की से इस हद तक प्यार होगा। तुम्हें देखकर मैं सबकुछ भूल जाता हुँ। आज हमारी शादी का पहला दिन है। सुना है पति अपनी पत्नी को पहली मुलाकात में कुछ उपहार देता है। अगर मुझे पहले से पता होता मैं तुम्हारे लिए बहुत कुछ लाता। लेकिन फिलहाल मैं तुम्हें कुछ देना चाहता हुँ। यह लो मेरी तरफ से हमारी शादी का उपहार।"


पवन अपनी जेब से एक सोने का सिक्का निकालकर कुसुम को देता है। कुसुम उस सिक्के को काफी देर तक देखती रही। गावँ वालों के हाथ में सोना आना मतलब उनके हाथ में सूरज चांद आना बराबर था। उनकी इतनी हैसीयत नहीं होती की वह सोने के गहने पहन सके। कुसुम काफी खुश होती है और पवन के लिए इसका दिल और ज्यादा दीवाना होने लगता है। जो लड़का उसे सोना दे सकता है वह उसके लिए सबकुछ कर सकता है।

"यह तो सचमुच सोने का है?" कुसुम उसे ही देखने लगी।


"हाँ बिलकुल खरा सोना है। लेकिन अभी मेरे पास यही है। यह मेरे प्यार की निशानी है। इसे संभालकर रखना। तुम जब भी इसे देखोगी समझ लेना मैं तुम्हारे पास हूँ। एकदिन मैं तुम्हारी झोली में एसे सिक्कों का ढेर लगा दूँगा। तुम्हारे सारे अंग पे सोने के जेवरात से भर दूँगा। देख लेना।"


"मेरे लिए तो यही काफी है।" कुसुम मुस्कुराहट के साथ बोलती है। वह बारबार सिक्के को ही देख रही थी।

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Babulaskar

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भाग 38/2

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"अब घर चलते हैं। अम्मा बुला रही थी तुम्हें!" कुसुम पवन से अलग होने की कोशिश करती है।


"रुको ना! अभी क्या करेंगे जाके! तुम्हारे साथ यहां बैठना अच्छा लगता है मुझे! अभी शाम ढलने में काफी देर है।" मजबूरी में कुसुम उठ नहीं पाई। उसी तरह पवन ने उसे पकड़े रखा।


"तुम ने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया कुसुम!"


"कौनसा? किस बात का?"


"वही, तुमने मैं ने पूछा था, तुम्हें करना है या नहीं?"


"यहां पे?"


"हाँ कुसुम, यहीं पर, देखो इस सुहाने मौसम को, यह मीठी मीठी हवाएं, यह मखमल जैसे घास, दूर तक किसी का नाम व निशान नहीं, यह संकेत है कुसुम। मेरे और तुम्हारे प्यार की। इस उज्ज्वल रोशनी में मुझे अपनी कुसुम का रूप यौवन सुधा पान करना है। अपने पति को सूख नहीं दोगी तुम?"


"हुँ।"


"तुम्हारी अम्मा ने तुम्हें कुछ सिखाया नहीं? मैं ने तो सुना है गावँ में लड़कियों को सबकुछ पहले से बताकर रखते हैं?"


"और नहीं तो क्या? अम्मा ने मेरा दिमाग खा लिया। आज से थोडी? जब से मेरी शादी की बात चलने लगी है तब से।"


"क्या कहती थी तुम्हारी अम्मा?"


"वह मैं तुम्हें कैसे बता सकती हूँ। बड़ी लज्जा की बात है।"


"बताओ ना! क्या कहती थी?"


"तुम बड़े जिद्दी हो। और क्या, कहती थी, पति अगर कुछ करे तो उसे मना मत करना। चुपचाप सह लेना।"


"अच्छा! और क्या कहती थी?"


"कहती थी, पहली बार में बहुत दर्द होता है। सुना है खून निकलता है।"


"खून? खून कहाँ से निकलेगा?"


"ऊँ, तुम बड़े गंदे हो। मैं नहीं बताती जाओ।" कुसुम को सहज करने के लिए पवन ने उसे गोदी में बिठाकर रखा है। कुसुम बारबार शर्माती और अपना चेहरा पवन के सीने में छुपा लेती।


"अब बता भी दो, देखो अब तो हम पति पत्नी बन चुके हैं। तुम मुझे नहीं बताओगी तो किसे बताओगी? बताओ ना, खून कहाँ से निकलेगा?"


"आँआँ, तुम,,, तुम,,, बड़े ओ हो, और कहाँ से? लड़कियों की बुर से निकलता है।" इतना बोलते ही कुसुम फिर से अपना चेहरा लज्जा में छुपा लेती है।


"अरे मेरी कुसुम शर्माती भी है? लेकिन मुझे यह समझ नहीं आ रहा है, आखिर वहां से खून निकलेगा क्यों? आजतक कभी निकला है क्या?"


"तुम ना जानबूझकर मुझ से यह सब पूछ रहे हो! मैं नहीं बताती।"


"सच बता रहा हुँ। मुझे नहीं पता। अब तुम नहीं बताओगी तो कौन बतायेगा? बताओ ना!!"


"तुम्हें सच में नहीं पता? कित्ने बुद्दू हो तुम। हमारे गावँ के लड़कों को सब पता रहता है। पता है, कोई कोई लड़का तो शादी से पहले ही कर लेते हैं।"


"तुम ना, बार बार यही बोले जा रही हो! आखिर यह तो बताओ वह करते क्या हैं? और कहाँ करते हैं?"


"तुम सच में सुनना चाहते हो? तो सुनो। अम्मा ने भी किस पागल के साथ मेरा बियाह करवा दिया। देखो, लड़कियों की जो बुर होती हैं ना, उसमें एक छेद होता है। उस छेद में लड़कों के पास जो ल,,,,लन,,,,,,,लिंग होता है जब वह बुर में घुसता है तब लड़कियों को दर्द होता है और वहीं से खून निकलता है। बुद्धू! अब समझे?"

मासूमियत से भरी कुसुम के हावभव से पवन मन ही मन मुस्कुराने लगा। कुसुम की जबानी यह सब सुनकर पवन को बड़ा अच्छा लगने लगा था। नीचे उसका लौड़ा बहुत पहले से गुर्रा रहा था। उसे अब किसी भी हाल में एक छेद चाहिए। जिस के अन्दर जाकर वह वीर्य त्याग दे सके।


"अच्छा यह बात है। तब तो तुम्हारे पास भी वह छेद होगा। और मेरे पास वह,,,," पवन उसके कान में गुनगुनाने लगा। इससे कुसुम अब पूरी तरह लज्जा में मरी जाने लगी।


"मुझे भी तुम्हारे उस बुर के छेद में अपना लौड़ा घुसाना है कुसुम! बताओ ना, घुसाने दोगी ना मुझे!" पवन फुसफुसाकर कहते कहते कुसुम के कान की लट को अपनी दांतों से प्यार से काट लेता है।


"मैं अब तुम्हारी हो चुकी हूँ। अपनी कुसुम से जो मर्जी आये करो। मैं तुम्हें रोकने वाली नहीं हुँ। मैं तुम्हारी बनना चाहती हूँ। मुझे अपना बना लो पवन।" कुसुम भी अब उत्तेजना में पसर गई थी। वह भी पवन के प्यार का पूरा साथ देने लगी।


"आह मेरी कुसुम!! तुम कितनी खुबसूरत हो।" पवन उसे बेतहाशा चूमने लगता है। कभी पवन तो कभी कुसुम खुद एक दूसरे के होंठ को चूस रहे थे। धीरे धीरे यह खेल बढता गया। पवन चुंबन के साथ साथ कुसुम के शरीर को महसूस करता हुआ उसके पूरे शरीर को टटोलने लगा। और फिर कुसुम कुछ लम्हें के बाद आधी नंगी हो चुकी थी। पवन ने भी अपना कमीज खोल दिया।


मुलायम घास की चादरों पे कुसुम खुद ब खुद लेट जाती है और पवन उसके ऊपर। धीरे धीरे इस प्यार में दोनों खो गए और कुछ क्षण बाद कुसुम को पवन पूरा नंगा कर देता है। कुसुम के अमरूद जैसे सफेद दूध को देखकर पवन मानो पागल सा हो गया। वह कुसुम के गोल दूध पर टूट पड़ा। और एक प्यासे भूके की तरह दोनों अमरूद को बारि बारि से चूसने लगा।


"कुसुम अपना यह पेतिकोट भी खोल दो।" पवन उसके नाडे पे हाथ रखकर रस्सी की गट को ढीला कर देता है। कुसुम एक तरफ चेहरा फेरकर बस अपनी कमर को थोडी उंची करती है। जिससे पवन उसे खींचकर कुसुम को मादरजात नंगी कर देता है।

"तुम्हारे बुर पे एक भी बाल नहीं है कुसुम। कित्नी सुन्दर लग रही है यह?" पवन उसके दोनों टांगों को खोलकर बीच में बैठा कहने लगा।


"अम्मा रखने नहीं देती। यह वाला कल ही साफ किया है।" पवन उस मुलायम स्थान पे प्यार से हाथ फेरने लगा। कुसुम कद काठी में लम्बी थी, लेकिन अभी भी उसका शरीर एक नाजुक कलि जैसा है, लेकिन उसके बुर का आकार देखकर एसा प्रतीत होता है जैसे किसी युवती शरीर की बुर हो। बुर का घिराव और आयतन अपने आप में काफी लम्बा चौडा था। कुसुम की इस औरतवाली चूत को देखकर पवन उसमें कब लौड़ा डालेगा यही सोचने लगा।


"अच्छा किया तुम ने! मुझे साफ बुर बहुत पसंद है। इससे बुर की सौंदर्य दिखती है। तुम्हारी तरह तुम्हारी बुर भी कित्नी मदहोश करनेवाली है।" पवन भी अब अपना कमीज उतारने लगा। उसके कमर में धोती बंधी हुई है। उसे भी खोलकर एक तरफ रख देता है। पवन अब पूरा नंगा होकर कुसुम के पैरों के बीच व बीच बैठा था। पर कुसुम की सांसे अटक गई। उसकी आंखें बड़ी हो गई। उसका सीना जोर जोर से धडकने लगा। क्यौंकि उसने पवन का महा मोटा और लम्बा लौड़ा देख लिया है। क्या यही लौड़ा उसकी चूत को फाडने वाला है? कुसुम यह सोचने लगी।


"मुझे तुम्हारी चूत बहुत पसंद आई है कुसुम! तुम्हें कैसा लगा मेरा लौड़ा! अच्छा है ना यह?" पवन बेझिझ्क बोलता गया। पवन ने एक हाथ से लौड़े को पकड़ रखा है। लेकिन उसका चौड़ा हाथ भी लौड़े को ले नहीं पा रहा था। पवन का लौड़ा एक अजगर सांप की तरह दिखने लगा कुसुम को। उसकी हल्क सूखने लगी।


"यह बहुत बड़ा है।" कुसुम की आवाज में घबड़ाहट थी। पवन उसे समझ गया।


"कुछ नहीं होगा तुम्हें? यह लौड़ा तुम्हारे बुर के लिए ही बना है। और तुम्हारी चूत इस लौड़े का इन्तज़ार कर रही थी इतने दिनों से। आज इन दोनों का मिलन होगा।" पवन कुसुम के ऊपर झुक गया। और उसे चोदने को तैयार होने लगा।


"मुझे बहुत दर्द होगा। यह बहुत मोटा और बड़ा है। इतना बड़ा भी होता है क्या?" पवन झुककर कुसुम को एक चुम्मा देता है। "थोड़ा आराम से घुसाना तुम।" सहमी कुसुम डरते हुए बोली।


"मैं तुम्हारा पति हूँ कुसुम। तुम्हें मैं कैसे दर्द होने दे सकता हूँ। तुम बिलकुल चीन्ता मत करो। तुम अपना यह पैर थोड़ा खोलकर रखो। देखना मैं आराम से मेरे लौड़े को तुम्हारी इस नाजुक चूत के छेद में घुसा दूँगा।" पवन की बात पे कुसुम पुतली की मानींद अपना पैर खोल देती है। उसकी चूत का मुहाना अब पवन के लौड़े के लिए पूरी तरह से तैयार था।


"आअह आअह, धीरे डालना।" कुसुम चटपटाते हुई बोली। पवन ने अपना लौड़ा उसकी चूत के दाने पर घिसना शुरु कर दिया। पवन को क्ंवारी चूत मारने का तजुर्बा है। क्यौंकि इससे पहले उसने अपनी बहन राधा को चोदा है। लेकिन वह चुदाई पागलपन से भरी थी, उसमें जल्दबाजी थी। लेकिन इस मिलन और सम्भोग में प्यार है, कुसुम के लिये हमदर्दी है, और जल्दबाजी बिलकुल नहीं। इसी लिये पवन सब काम धीरे धीरे करना चाह रहा था। उसने लौड़े का सुपारा चूत के मुहाने मारना शुरु किया। सख्त लण्ड का दबाव कुसुम के चूत पे ऊपर पडते ही कुसुम अनजाने और आगमन आनन्द और भय में खुद को तैयार करने लगी।

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