• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest : पुर्व पवन : (incest, romance, fantasy)

कहानी आपको केसी लग रही है।।


  • Total voters
    102
  • Poll closed .

A.A.G.

Well-Known Member
9,638
20,146
173
भाग 30

----------


नगर की हवेली।

----------------


"तुझे अचानक से यह फैसला लेने की कोई जरुरत नहीं थी। तेरा बड़ा भाई तो भगवान को प्यारा हो गया, तेरे छोटे भाई ने भी शादी ना करने की प्रतिज्ञा ले रखी है। अब तू ने भी यही ठान लिया। अब तू ही बता, हमारा वंश आगे कैसे बढेगा? इस जमींदारी को आगे कौन लेकर जाएगा। मेरी बात मान ले, तू यह जिद छोड़ दे, और एक अच्छे लडके से शादी करके अपना घर बसा।" रानी हेमलता अपनी एकमात्र पुत्री पद्मलता को समझाते हुए बोली।


"एसा नहीं हो सकता है माँ। हमारे खानदान पर बदनामी का दाग लग जाएगा। लोग तरह तरह की बातें करेंगे, की पद्मलता ने किया हुआ वादा निभाया नहीं।" पद्मलता ने कहा।


"लोगों की छोड़। अभी हमारे राज्य की स्थिति ठीक नहीं है। इसी लिये तो हम तीन पहाडी की जमींदारी इजारे पर देने जा रहे हैं। कौन कब आकर मंगलचरन को मारेगा, तब तक तेरी जवानी भी ढल जायेगी। अभी अगर शादी कर लेगी तेरे दो तीन बच्चे हो जायेंगे। आगे चलकर वही हमारा वंश आगे बढायेगा।" हेमलता एक माँ की तरह पद्मलता को समझाती है।


"नहीं माँ, मैं जीते जी एसा नहीं कर सकती। मेरे अन्दर भी मेरे बाप का खून है। मैं अपना वचन नहीं तोडूंगी। मेरा यकीन करो, मेरे भाग्य में उसी आदमी से विवाह लिखा हुआ है जो मंगलचरन को मार पायेगा। मैं एक जमींदार की बेटी हूँ, मुझे हासिल करने के लिए इतनी हिम्मत और साहस तो दिखाना ही पड़ेगा।" पद्मलता पूरी तरह से आत्मविश्वास थी।


"भगवान करे वह दिन जल्द आये।" हेमलता मायुस हो जाती है।


"माँ, मुझे एक बात बताओ, आप लोग अभी से तीन पहाडी की जमींदारी इजारे पर देने जा रहे हैं, तो मंगलचरन को मारने के बाद उसका क्या पुरस्कार दोगे? मामाजी ने तो वचन दिया है?"


"उसका इन्तज़ाम बाद में सोचा जाएगा। यूं सपने में रहना अच्छी बात नहीं है। अभी हमें लगान चुकाना होगा। वह तेरी छोटी माँ मेनका की भी कोई खबर नहीं। पता नहीं बेचारी कहाँ होगी। अब उसके हिस्से की जमींदारी भी हमें सम्भालनी पड रही है। जब वह आयेगी उसका हिस्सा भी उसे देना पड़ेगा। फिलहाल किसी तरह बस जमींदारी बच जाये, यही प्रार्थना है।"


"तो कोई आया है उस जमींदारी के लिए?"


"हाँ, आये तो हैं। नगर के दो सौदागर और पुणे से एक अमीर आदमी का संदेसद आया है। देखते हैं क्या होता है। अभी तीन दिन बाकी है। चौथे दिन सबको बुलाकर जमींदारी के बारे में पूछा जाएगा। फिर उन में जिस के बारे में हमें अच्छा प्रतीत होगा उसे सौंपी जायेगी जमींदारी। अरे मैं ने तो ध्यान ही नहीं दिया? वह तेरा हार कहाँ गया? गले में था?" हेमलता अचानक से परेशान हो गई।


"वह माँ क्या हुआ की?,,,," पद्मलता एक अच्छा सा बहाना ढूँढने लगी।


"सच सच बता, वह तेरे पास है ना? खो तो नहीं दिया? वह हमारी खानदानी निशानी है। तेरी दादी अम्मा की हार थी वह?"


"माँ, असल में कुछ दिन पहले मैं नदी के पास गई थी। वहीं नदी में गिर गई। मैं तुम्हें,,,,,"


"हे भगवान! खो दिया! इतनी लापरवाह कैसी हो सकती है तू? पता भी है तुझे? उस हार की क्या कीमत होगी? तेरे दादाजी ने दादी अम्मा के लिए सात सौ स्वर्ण मुद्राए देकर एक सौदागर के पास से इसे खरीदा था। इस जैसा हार सिर्फ दो ही बने हैं। पारस के सुनारों ने असली मोतियों से रताश के बनाया था इसे। और तूने वही हार खो दिया? यह हमारी पारम्परिक हार थी। अब कैसे ढूंढा जायें उसे?" हेमलता गुस्सा और परेशान थी। पद्मलता अपनी माँ को जानती थी। इस लिए वह चुपचाप बैठी रही।


"सिपाहियों! सेनापति को बुलाओ।" हेमलता पद्मलता के कमरे से निकलती हुई आवाज देने लगी।

कुछ देर बाद महल के सिपाहियों में हलचल दिखने लगी। और हर तरफ कानाफुसी हो रही थी।


"मोतियों का कीमती हार नदी में कहीं गिर गया है। जो भी उसे ढूँढ कर लाएगा। उसे सौ सोने का सिक्का इनाम में दिया जाएगा।"

"भला किसी को वह मिले और वह सौ मुद्रा के लालच में थोडी ही वापिस करने आयेगा? उस हार की कीमत कहीं ज्यादा है।"
nice update..!!
hemlata ko apni beti ki shaadi ki fikr hona laajmi hai..lekin padmlata jaban de chuki hai ki jab tak mangalcharan ko koi marega nahi woh shaadi nahi karegi aur jo marega uske sath hi padmlata shaadi karegi..ab pawan teen pahadi ki jamindaari ke liye waha jayega tab shayad pawan mangalcharan ko marne ke bare me soche padmlata ke liye..!! menka bhi kaha gayab hai..woh teen pahadi me jo guruji aur guruma hai unka beta shayad mangalcharan ho sakta hai..aur yeh log bhi uss haveli ke tenkhane ke bare me janana chahte hai jo sirf menka janti hai..jarur uss tehkhane me kuchh toh hai lekin kya hosakta hai..!! padmalata ne pushtaini haar kho diya..ab hemlata kaise dhundhegi aur kya woh haar usse milega..!!
 

A.A.G.

Well-Known Member
9,638
20,146
173
भाग 31

----------


असुर नगरी, अम्रतनगर

-----------------------


हरविजय परम्परा परेशान और गुस्से की हालत में महल के एक आलिशान कक्षा में चहल पहल कर रहा था। दरवाजे पर सेना का दल डरे हुए सिर झुकाये खडे थे।

"महाराज हमने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की है। लेकिन राजकुमार और राजकुमारी का कोई सुराग नहीं मिला। यह सब कुछ राजगुरु सुकुमार का किया धरा है। उसे पता था, आप उसे ढूंढने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। इसी लिए दोनों का शरीर त्याग देकर पृथ्वी लोक भेज दिया है।" सेनापति ने हरविजय को आश्वस्त करते हुए कहा।


"लेकिन कोई तो उपाय होगा, उन दोनों को ढूँढ निकालने का?" हरविजय ने चिल्लाते हुए कहा।


"क्षमा करे महाराज, हम ने उसके लिए राज्य के सभी पण्डितों को बुलाया है। उनके पास एक अनोखा उपाय है जिस से हम राजकुमार तक पहुँच सकते हैं। आप की अनुमति हो तो उन्हें बुलाये?" " सेनापति ने कहा।


"बुलाओ उन्हें!" हरविजय एक कुर्सी पर बैठ गया।


कुछ क्षण बाद आठ पंडितों को महाराज के सामने हाजिर किया गया। यह सभी राज्य के अलग अलग पाठशालाओं में शिक्षा देते हैं। और उन्हें असुर शक्तियों के बारे में काफी ज्ञान है।


"तो बताईये पण्डित मान्यवर! जैसा की आप लोगों को पता है हमारे राज्य के राजकुमार और उनकी पत्नी राजकुमारी श्रुति अपना शरीर त्याग देकर पृथ्वी लोक भाग गए हैं। आप सब जानते हैं, हम किसी के दुश्मन नहीं है। हम अपने राज्य के लोगों को वापिस राज्य में लाना चाहते हैं। तो आप लोगों के पास कोई उपाय है? जिस से हम राजकुमार को ढूँढ सकते हैं?" सेनापति ने महाराज हरविजय की तरफ से पंडितो से कहा।


उनमें से एक पण्डित आगे आया और कहने लगा,


"महाराज, राज्य के बाहर रहने वाले असुरों को ढूँढने का एक बेहतरीन उपाय है। आप राजकुमार के किसी भी पालतू जानवर को मन्त्र बल से छोड़ दे, इससे वह जानवर मन्त्र की वजह से सीधा वहीं जाएगा जहाँ फिलहाल उसका मालिक असुर मौजूद हैं।" पंडित के कहने पर महाराज का चेहरा खिल उठा। और उत्तेजित होकर कुर्सी से खडा हो गया।


"क्या? एसा हो सकता है? लेकिन क्या वह जानवर पृथ्वी लोक जाने के बाद मर नहीं जाएगा?"


"जी महाराज, वह जानवर पृथ्वी लोक जाने के बाद मर जाएगा। लेकिन मरने से पहले ही वह अपने मालिक को ढूँढ लेगा।"


"सेनापति! राजकुमार के उस पालतू जानवर भेडिया को ले आओ।"


फिर थोडी देर बाद एक सफेद भेडिया को जंजीरों में बान्धकर कुछ सैनिक लेकर आये। वह भेडिया डरा हुआ था। आकार में वह एक शेर जैसा था। भेडिया के आगे पंडित मन्त्र पढ़ने लगे। और कुछ देर बाद पंडित ने कहा,

"महाराज अब इसे ले जाकर द्वार के बाहर छोड़ दे। यह बहुत जल्द अपने मालिक तक पहुँच जाएगा।"


"सेनापति, कान खोलकर सुनो। मुझे राजकुमार जिन्दा चाहिए। चाहे वह किसी भी शरीर में हो, चंद्रशेखर को कुछ नहीं होना चाहिए।"


"जी महाराज, मैं इसका जिम्मा उठाता हूँ।" कहकर सेनापति कुछ सिपाहियों को लेके उस भेडिये के साथ असुर राज्य के द्वार की और चल पड़ा।
nice update..!!
yeh harami harvijay toh rajkumar chandrashekhar aur rajkumari shruti ke pichhe hi pada huva hai..aur usne tarika bhi dhundh liya hai usse pakadne ke..ab isme pawan ko dhoka bhi hosakta hai lekin ab pawan ki takad badh gayi hai isliye usse pakadna itna aasan nahi hoga..pawan jarur inn logo ka samna karega aur harayega..aur apne paltu janwar ko bhi bacha le shayad..!!
 

A.A.G.

Well-Known Member
9,638
20,146
173
भाग 32

----------


पवन फिर से अतीत में

----------------------


शाम ढल चुकी थी। आसपास अंधेरा होना शुरु हो गया था। एसे में पवन अपने आप को फिर से अतीत में महसूस करता है। कुछ देर तक तो वह हयरान बैठा रहा। आखिर वह किस तरह फिर से यहां पहुँच गया? उसने समययान कमर बेल्ट को जांचा परखा, और जब उसने काम करना बन्ध कर दिया तो पवन और ज्यादा चिंता में पड गया।

अब वह किस तरह यहां से वर्तमान में लौटेगा?


कुछ देर तक पवन चुपचाप उन्हीं घास पर लेटा रहा। उसके शरीर और कपड़े पर लगे कीचड़ भी अब सूख गए थे। फिर पवन को ध्यान आया, बारिश का पानी जाने के कारन यह यंत्र खराब हो गया है। धूप मिलने से शायद फिर से चालू हो जाये।

दूर अपने घर की तरफ देखकर पवन के दिल में एक ठंडी आहें निकली। "आह कुसुम। पता नहीं तुम कैसी हो?"


कुछ देर तक पवन यही सब सोचता रहा, उसे क्या करना चाहिए! फिर अचानक से पास से एक जानवर की आवाज आने लगी। और देखते ही देखते एक सफेद रंग का भेडिया उसके पैरों के पास आकर लुड्क गया। और अपने मुहं से अपनी बेदर्दी जताने लगा।

"गौरन ! मेरा बच्चा। तुम यहां कैसे?" पवन का शरीर और राजकुमार की आत्मा दोनों उसके सिर पर हाथ फेरने लगे।

"हरविजय ने आप तक पहुँचने के लिए मुझे भेजा है। आप भाग जाईये।" भेडिया को पवन सुन पा रहा था।


"लेकिन तुम यहां जीवित नहीं रह सकोगे, फिर भी तुम्हें यहां भेजा है उस पाखंडी ने? मैं उसे छोडूंगा नहीं।" पवन दर्द के साथ उसे सहला रहा था।


"आप बस यहां से भाग जाईये।" कहकर उस भेडिया ने अपनी जान तोड दी। पवन की आंखों से आंसू झलक पडे।


"अब क्या करे राजकुमार!" पवन ने राजकुमार को सहारा देते हुए कहा।

"इसे अभी मिट्टी में दबाना पड़ेगा। नहीं तो वह लोग इसे ढूँढ लेंगे। जल्दी करो पवन!"


"हाँ हाँ करता हुँ।" पवन ने आसपास देखा, वहीं पास ही में उसका छोड़ा हुआ कुदाल और हँसिया अभी तक पड़ा था। पवन कुदाल लेकर खेत के एक कोने में गडडा खोदने लगा। और काफी तेजी से बहुत जल्द भेडिया को दफन किया जाये इत्ना बड़ा गडडा खोद डाला। फिर पवन ने उसे उठाया और गड्डे में डाल दिया।

यह सब इत्नी जल्दी जल्दी हुआ की पवन को कुछ ध्यान नहीं पड़ा। काम निपटाने के बाद जब उसने अपने आप को देखा तो बड़ी उलझन महसूस हुई। उसके पूरे शरीर पर कीचड़ के दाग पडे थे।

पवन ने पास में बहती छोटी नदी में जाकर अपना कपडा धोया, साफ किया। कमीज खोलकर जब उसने नदी के पानी में उसे धोने लगा तो उस में से "टन" की आवाज आई। देखने पर पवन को आश्चर्य हुआ। उन सिक्कों में से चार सिक्के उसके कमीज के जेब में पडे थे। अच्छा हुआ जो उसके पास कुछ पैसे हैं। नहीं तो लोगों का काम करके गुजारा चलाना पडता। पवन मन ही मन मुस्कुराने लगा। उसे काफी भूक लगी थी। खाने को कुछ इन्तज़ाम करने के लिए पवन गावँ की तरफ जाने लगा।


अपने घर के पास जाकर पवन ने एकबार सोचा वह किवाड खटखटाये। लेकिन रात उतर चुकी थी। पवन कुछ ना कहकर गावँ की तरफ चल पड़ा।

--------------------

--------------------


गावँ के बीच व बीच पहुँच कर पवन को थोड़ा आश्चर्य हुआ। तीन पहाडी गावँ में अतीत के इस क्षण में मेला लगा हुआ है। कुछ दुकाने खुली है, जो बंद होनेवाली थी। और कुछ दुकानें बंद हो चुकी थी। पवन देखते हुए आगे बढता गया। एक जगह उसे खाने का एक छोटा सा ढाबा दिखा। वह वहीं चला गया।

जाकर एक मेज पर बैठ गया। उसे देखकर एक लड़का आया।

"क्या चाहिए!"

"कुछ खाने को मिलेगा?" पवन ने कहा।

"मालिक! खाने को कुछ है?" उस लडके ने चिल्लाया।

"रोटी और सब्जी है।"

"वही दे दो।" पवन ने कहा।

"लगता है काफी भूके हो!" लड़का हँसता हुआ चला गया। कुछ देर बाद दो थाली में लड़का रोटी और सब्जी लेकर हाजिर हुआ। और उसके सामने मेज पर रख दिया। खाना सामने आने पर पवन ने देरी नहीं की।

लड़का वहीं उसके सामने बैठ गया।


"किस चीज की दुकान है तुम्हारी?" लडके के सवाल पर पवन ने चेहरा उठाकर देखा।


"मेरी? नहीं भाई मेरी कोई दुकान नहीं है। मैं यहां पर नया हुँ।"


"हाँ वह दिख रहा है। गावँ वाले रात का खाना दुकानों में नहीं खाते। दिन में खाते हैं। मेले में किसी के साथ आये हो क्या?"


"नहीं मतलब, मैं अकेला ही हुँ। इस मेले के बारे में सुना था। मैं शहर में रहता हुँ। सोचा कुछ अच्छा मिलेगा तो खरीदारी कर लूँगा। वैसे यहां पे क्या मिलता है।"


"यहां पे खास कुछ नहीं है। हाँ अगर चाहिए तो गाये भेंस बकरी खरीद सकते हो। सुना है यहां की गायें भेंस बकरियां बहुत दूध देती है। दिन में काफी किसान आ जाते हैं यहां अपनी जानवरों को लेकर। वैसे चाहो तो कपड़े भी खरीद सकते हो। काफी महँगे और कीमती कपड़े भी मिलते हैं यहां। हमारे मालिक के छोटे भाई हैं, उनकी कपड़े की दुकान है।"

पवन का खाना खत्म चुका था। उसने पानी पीकर हाथ मुहं धोया। और फिर से उस लडके के पास बैठ गया। यह लड़का उसी की उम्र का है। शायद इसी लिए इत्ने अपनापन से बातें कर रहे थे दोनों।


"तुम लोग दुकान बंद नहीं करोगे?" पवन ने पूछा।


"बंद कहाँ किया जाएगा? सुबह होते ही खाना बनना शुरु हो जाएगा। उससे पहले तैयारी करनी होगी। तुम्हें अगर कपडा खरीदना हो तो मुझे लेकर चलना मैं उचित दाम पर तुम्हें कपड़े दिलवा दूँगा।" वह लड़का काफी उत्तेजित था। शायद उसका कुछ मकसद हो।


"हाँ देख लूँगा। वैसे भी अभी रात है। कल को देखूँगा।"


"अरे कल तो मेले में भीड हो जायेगी। परसों आखरी दिन है। और कल वैसे भी मोह मिलन अवसर है। कल को मेले में ज्यादा भीड होती है। तुम कैसे खरीदारी कर सकोगे। मेरी मानो अगर तुम्हें आपत्ति ना हो तो अभी चलते हैं।"


"अभी? लेकिन दुकान बंद हो चुकी होगी?" पवन समझ नहीं पाया यह लड़का इतना जोर क्यों दे रहा है।


"अरे कोई बात नहीं। तुम आ तो जाओ।" कहकर लड़का खडा हो गया।

पवन ने जाते हुए दुकान के मालिक से पूछा, कितना पैसा हुआ मेरा!"


"एक आना!" दुकानदार ने कहा।


"माफ कीजिये, मेरे पास यही है।" पवन ने अपना एक सिक्का निकालकर उसके सामने रख दिया।


"सोना?" दुकानदार की आंखें चमक उठी। "यह काफी कीमती है बेटा। मेरे पास इतना पैसा फिलहाल नहीं है की मैं बाकी पैसा तुम्हें लौटाऊँ!"


इसी बीच वह लड़का बोल पड़ा। " मालिक, मैं इन्हें छोटे मालिक की दुकान पे लेकर जा रहा हूँ। इन्हें कपड़े खरीदने हैं।"


"फिर तो बहुत अच्छा हुआ। बेटा, तुम मेरे भाई के पास चले जाओ। इस सिक्के से तुम्हें जो चाहिए वह ले लेना। बिर्जू इन्हें ध्यान से लेकर जाना।"


"जी मालिक।" पवन ने महसूस किया, अचानक से उसकी अहमियत बढ गई है। इस एक सिक्के का इत्ना मोल? पवन को कुसुम और सुमन देवी के लिए कुछ खरीदने का दिल कर रहा है।

बिर्जू के साथ पवन एक शामियाने के पास हाजिर हुआ। सामने पर्दा गिर चुका था। मतलब दुकान बंद हो गई है। लेकिन बिर्जू के कहने पर मालिक ने पवन को अन्दर ही बुला लिया।

पवन ने शहर के इस ब्यापारी से अपने लिए, कुसुम के लिए और अपनी नानी के लिए ढेर सारे कपड़े खरीदे। और उन्हें वहीं रख दिया, यह कहकर की वह कल आकर इन्हें लेकर जाएगा।
nice update..!!
pawan ko jo sone ke sikko ka thaila mila tha usme se chaar sikke shayad uske paas aagaye galti se..yh achha huva aur usne ek sikke ka istemal bhi kiya aur khana khaya, khud ke liye, kusum ke liye aur nani ke liye kapde le liye..!! chandrashekhar ka paltu janwar usse dhundhata huva pawan ke paas past me chala aaya yeh baat bahot gajab thi..!! ab dekhte hai pawan moh milan me kya karta hai..!!
 

A.A.G.

Well-Known Member
9,638
20,146
173
भाग 33

----------


अतीत में पवन, मोह मिलन मेला

----------------------------------


सुबह परिंदों और चिडियों की चहचहाहट से पवन की आंख खुली। रात को बिर्जू ने उसे अपने पास सोने की जगह दी थी। उसने उठकर देखा बिर्जू दुकान के एक कोने में सब्जियां काट रहा है।

वह जल्दी जल्दी उठकर दुकान से बाहर आया। बिर्जू से कहकर आना पड़ा, वह फिर आयेगा।


पवन जब अपने घर के पास पहुंचा तब तक सूरज काफी ऊपर चढ़ चुका था। उसके दोनों हाथ में दो पोट्लियों में कपड़े थे। पवन ने कुसुम के घर का दरवाजा पीटा। कुछ देर में "कौन है" कहती हूई सुमन देवी ने दरवाजा खोला। और पवन को देखते ही उनकी आंखें चमक उठी।


"बेटा, कहाँ चले गए थे तुम? हम दोनों कितना परेशान हो गए थे, जानते हो? आओ अन्दर आओ।" पवन कपड़े का जत्था लेकर अन्दर घुसा।


"माजी, माफ करे, मुझे घर जाना पड गया था। यह कुछ कपड़े हैं, मैं आप लोगों के लिए लेकर आया हूँ। कुसुम कहाँ है? दिखाई नहीं दे रही है?" पवन ने पूछा।


"बेटा इसकी क्या जरुरत थी। लेकिन तुम्हें बताकर जाना चाहिए था। कुसुम अंदर है। तैयारी कर रही है।" सुमन देवी ने जवाब दिया।


"तैयारी? किस बात की?"


"वह बेटा, आज मोह मिलन अवसर है ना! कुसुम को वहीं लेकर जा रही हुँ। अब जवान लड्की को पूरी जिंदगी अपने सिर पे तो नहीं रख सकती ना! बियाह तो करवाना ही पड़ेगा। अब उसके भाग्य में जो होगा देखा जाएगा। कुसुम, अरी कुसुम बेटी! जरा बाहर तो आकर देख, कौन आया है देख।" सुमन देवी ने कुसुम को आवाज दी।


"लेकिन माजी, इतनी जल्दबाजी की क्या जरूरत है। आप एक दो साल और इन्तज़ार कर सकती थी?"


"नहीं बेटा, एसा करने से मेरी बेटी की शादी में और परेशानी खडी हो जायेगी। क्यौंकि इसकी उम्र की सारी लड़कियों का बियाह इस साल तक हो जाएगा। अगर इसका बियाह ना हुआ तो लोग तरह तरह की बातें करने लगेंगे। तुम यह सब छोड़ो। अरी कुसुम, बाहर तो आ जा!"

कुसुम बाहर आ गई। लेकिन उसके चेहरा पे उदासी छाई हुई थी। एक नजर पवन की तरफ देखा, और फिर नजरें नीची करके खडी हो गई।

पवन को सारा माजरा समझने में देर नहीं लगी।

किस तरह से कुसुम का दिल पिस्ता जा रहा है। पवन भी अपने भाग्य के हाथों मजबूर था।


"पवन बेटा, तुम जरा रुको। मैं मालती के पास से होकर आती हुँ। जरा काम है। अभी आ जाऊँगी।" कहकर सुमन देवी चली गई।

-----------------

-----------------


"कुसुम तुम्हारी आंखों में आंसू? क्या हुआ? क्या तुम दुखी हो? मुझे बताओ कुसुम! तुम्हारा यह मायूस चेहरा मुझ से देखा नहीं जाएगा। बताओ मुझे कुसुम!" कुसुम बेबस थी, लाचार थी। पवन उसका हाथ पकड़के अपने पास बिठाता है।


"तुम ने कहा था, तुम मेरे लिये कोई अच्छा लड़का ढूँढके लाओगे? कहाँ गया तुम्हारा वादा? आखिर मुझे उस लाला से ही बियाह करना होगा।" कुसुम रोने लगी थी।


"कुसुम इतनी जल्दी मायूस क्यों हो रही हो? तुम्हारे साथ कुछ बुरा नहीं हो सकता।"


"कल लाला आया था। अम्मा को कहकर गया है, तुम्हारी बेटी की शादी मुझ से करवा दो। नहीं तो मोह मिलन अवसर में मुझे ही आगे बढकर उसका हाथ माँगना पड़ेगा। अम्मा ने कहा था, मैं मर जाऊँगी लेकिन तेरे साथ मेरी फूल जैसी बेटी की शादी कभी नहीं होने दूँगी। लाला ने भी कहा है, मैं भी देखूँगा, गावँ में कौन तुम्हारी लड्की का हाथ माँगने सामने खडा होता है। मुझे बहुत डर लग रहा है। सोच रही हूँ मैं मर जाऊँ!" कुसुम फिर से रोने लगी।


"एसा नहीं कहते कुसुम। तुम्हारा भाग्य सबसे अलग है। मेरे होते हुए वह लाला तुम्हारा कुछ बिगाड़ नहीं पायेगा।" पवन ने उसके आँसूं पोंछे।


"तुम यहां क्यों आये फिर से? मर जाने देते मुझे! जब मुझ से प्यार ही नहीं करते तो क्यों बारबार मुझ से मिलने आ रहे हो? चले जाओ यहां से!" कुसुम रोते हुए बोलने लगी।


"किस ने कहा मैं तुम से प्यार नहीं करता। तुम्हारा प्यार ही मुझे तुम्हारे पास खींचकर लाता है।"


"झूट, सब झूट। अगर प्यार है तो मुझ से बियाह क्यों नहीं करते? क्या मैं इत्नी बुरी हुँ? बताओ मुझे! मुझ में क्या कमी है? मैं तुम्हें कभी शिकायत का मौका नहीं दूँगी। जो खिलाओगे उसी पे गुजारा कर लुंगी। जहाँ रखोगे वही रहूँगी। मेरा विश्वास करो।" कुसुम का रोना बंद नहीं हो रहा था।

पवन कुछ कहने जा रहा था कि सुमन देवी किवाड खोलकर घर में आ गई। कुसुम को रोता देखकर सुमन देवी समझ जाती है।


"माजी, मैं यह कपड़े, कुसुम और आप के लिए लेकर आया हुँ। आप यह लाल जोडा कुसुम को पहना दिजीये। यह साड़ी कुसुम पे अच्छी लगेगी।"


"मैं नहीं पहनूंगी तुम्हारा कपडा। ले जाओ इन्हें।" कहकर कुसुम अपने कमरे की तरफ जाने लगी।


"इसका गुस्सा अभी तक उतरा नहीं। तुम यह सब छोड़ो बेटा, मैं आखिरी बार तुम्हारे से पूछना चाहती हूँ बेटा, क्या तुम्हारा अब भी वही फैसला है? क्या तुम कुसुम से,,,,,," सुमन देवी बताने लगी।


"माजी, मैं अपनी मजबूरी आप को बता चुका हूँ। अगर मेरे दिल में एसा कुछ होता तो शायद यहां पर नहीं आता। मुझे कुसुम को लेकर चित्ना है, इसी लिए यहां पर आया हुँ। आप फिक्र ना करे, मेरे होते हुए वह लाला कुसुम की तरफ आंख्ँ उठाकर भी नहीं देख सकेगा। कुसुम के साथ सबकुछ अच्छा ही होगा।"


"उसी उम्मीद पे मैं ने भी अपने दिल को भरोसा दिया है। सुना है नगर से, शहर से काफी लोग आनेवाले हैं, उन्हें अगर कोई अच्छी लड्की मिले तो वह बियाह करके लड्की साथ ले जाते हैं। मेरे पास ना सही, अगर कुसुम को एक अच्छा पति मिलता है तो इससे बड़ी खुशी की और क्या बात होगी! मेरी लड्की जहाँ रहेगी बस खुश रहना चाहिए।"


"वह हमेशा खुश रहेगी माँ जी!"


"बेटा, तुम भी हमारे साथ चलो। तुम्हारा यह कपडा गंदा हो गया है। इन्हें बदल लो। मैं कुसुम को तैयार कर देती हुँ। थोडी देर में हम मेले में चलेंगे।"
nice update..!!
kusum ka gussa hona toh banta hai kyunki usko thodi pata hai ki pawan future se aaya hai aur uska beta hai..lekin ab pawan bhi kya kar sakta hai kyunki hai toh uski maa hi kusum aur bhala woh kusum se pyaar bhi karta ho lekin usko abhi bhi yahi lag raha hai ki uska baap aayega..lekin jald hi pawan sachhayi se awgat hojayega ki pawan khud hi uska baap hai aur kusum uski maa banane se pehle uski patni hai..!!
 

A.A.G.

Well-Known Member
9,638
20,146
173
भाग 34

---------


मेले का अवसर

---------------


सूरज अपने मध्य गगन पे विराज कर रहा था। पवन को साथ लेकर सुमन देवी मेले की तरफ चलने लगी। मेले में लोगों का आना शुरु हो गया है।

पवन ने एक नया जोडा पहन लिया। मेले के रास्ते जाते हुए कुसुम अपनी नजरों से बारबार पवन को देखे जा रही थी। पवन सब कुछ समझ रहा था। लेकिन उसे इसका अन्त देखना है।


मेले के एक तरफ बड़ा सा शामियाना लगा है। जिसके अन्दर दो तीन जगह भीड लगी हुई थी।


"हमारा चौपाल यहां है।" एक भीड की तरफ दिखाते हुए सुमन देवी ने कहा। "वहां पे उंची जात और अमीर खानदानी लोगों का रिश्ता जुड्ता है। यहां आ जाओ बेटा।" कुसुम को लेकर सुमन देवी पिंडाल में चली गई।


"अरे कुसुम तू आई। हम कब से तेरा इन्तज़ार कर रहे थे।" कुसुम की उम्र की एक लड्की जो शादी के जोड़े मे थी, उसने कहा।


"आँचल तेरा बुलावा आ गया है क्या?" सुमन देवी ने कहा।


"नहीं चाची। बस थोडी देर बाद। अभी सुधा का बुलावा आयेगा। चाची, कुसुम का दूल्हा कौन है?"


"आँचल उसका दूल्हा तो मिला नहीं। यहां कोई अच्छा लड़का आया है क्या?" सुमन देवी की बात आँचल समझ जाती है। कयोंकि कुसुम चुपचाप खडी थी।


"अरी कुसुम तू चिंता मत कर। चाची, अभी अभी शहर से दो लडके का रिश्ता पक्का हुआ है। यहां बहुत अच्छे अच्छे लडके आये हैं। तुझे भी अच्छा ही दूल्हा मिलेगा।"

इत्ने में आँचल की माँ आ गई। सुमन देवी और उनमें कुछ देर बातें चली। पवन एक तरफ खडा होकर यह सब देखने लगा। लेकिन इस हालात में भी कुसुम की निगाहें पवन पर टिकी थी। मानो, वह अपनी निगाहों से पवन से यह विनती कर रही हो, मुझे अपना बना लो।'

समय बीतता गया। धीरे धीरे सब का बुलावा आता गया, और कुसुम की एक और सहेली सुधा का बुलावा आया। फिर आँचल का। दूल्हा और दुल्हन के साथ आये रिश्तेदार और घरवालों की भीड भी धीरे धीरे कम होती गई। अब पिंडाल में सिर्फ कुछ ही लोग बचे थे।

इसी बीच पवन ने ध्यान दिया, मोह मिलन मेले के इस अवसर पर यह सारा काम उनके गुरुजी अमरनाथ जी अंजाम दे रहे हैं।

भीड जब कुछ कम हूई तो, सुमन देवी आगे बढकर गुरुजी के पास चली गई।


"गुरुजी, यह है मेरी बेटी, कुसुम। आप जरा इसके लिए कोई अच्छा सा दूल्हा ढूँढ दिजीये।"


"सुमन देवी, मैं ने तुम्हें पहले ही कहा है, इस से तुम्हारी लड्की का जीवन अनर्थ हो जाएगा। प्रस्ताव देने के बाद अगर कोई स्वीकार न करे, तब भी बदनामी है। और अगर किसी ने प्रस्ताव स्वीकार किया तो तुम्हें उसे मानना ही पड़ेगा। अब तुम खुद ही सोचकर देखो।"


"नहीं, गुरुजी, मेरी बेटी का नसीब इत्ना बुरा नहीं हो सकता। आप उसका प्रस्ताव दें। जरुर कोई अच्छा लड़का उसको स्वीकार करेगा।"


"जैसी तुम्हारी मर्जी सुमन देवी। लेकिन एकबार अगर किसी ने स्वीकार कर लिया, तो तुम्हें उसे मानना ही पड़ेगा। कुछ क्षण बाद तुम्हारा बुलावा आयेगा।"

------------

------------


पवन खडा खडा यह सब माजरा देखने में ब्यस्त था। वह जिस आदमी को ढूँढने में इत्नी दूर अतीत में आया है, उसका कोई नाम व निशान नहीं। हयरान व परेशान पवन सोचने में लग गया उसे अब क्या करना चाहिए। इसी बीच उसने लाला को देखा। एक काला और मोटा भद्दा सा आदमी। वह आकर भीड में शामिल हो गया। उसे देखकर सुमन देवी का चेहरा सुन्न पड गया।


"आ गया हरामजादा।" सुमन देवी ने बुदबुदाते हुए कहा।

और फिर गुरुजी अमरनाथ जी की घोषणा पवन के कानों में गुंजने लगी।

"यह सुमन देवी की पुत्री कुसुम देवी के विवाह का प्रस्ताव है। लड्की की माँ दूल्हे को दो गाये और दो बीघा जमीन देगी। कोई नेक दिल सज्जन है? जो इसका प्रस्ताव स्वीकार करे?" भीड कुछ कम थी। ज्यादतर देखनेवाले शामिल है। जिन्हें प्रस्ताव से कोई लेना देना नहीं था। और फिर भीड में से लाला बोल उठा,


"मैं तैयार हुँ प्रस्ताव स्वीकार करने के लिए। और मुझे कुछ नहीं चाहिए।" कहकर लाला अपने काले काले दाँत दिखाने लगा।

पास में खडी सुमन देवी के चेहरे का रंग उड गया। कुसुम भी डरी और सहमी सिर नीचा करके खडी रही।


"मैं ने तुम्हें पहले ही कहा था सुमन देवी।" गुरुजी ने कहा


"थोड़ा प्रयास करे गुरुजी। मेरी एकमात्र पुत्री है।" सुमन देवी इल्तिजा करती है।

पवन को यह सब रोकना था। लेकिन कैसे? एक दो बार कुसुम की नजरें उससे मिली और कुसुम ने मायूस और निराश होकर अपना चहरा दूसरी तरफ फेर लिया।


"कोई और सज्जन है जो इस सुन्दर लड्की का हाथ माँगना चाहेगा? आज के समारोह में यही आखरी प्रस्ताव है।"

अब पवन समझ गया कोई कहीं से आनेवाला नहीं है। उसे ही कुछ करना पड़ेगा इसको रोकने के लिए। वह जीते जी लाला जैसे आदमी को कुसुम का पति बनते नहीं देख सकता। और ना ही अपना बाप बना सकता है।


"मैं करूँगा। मैं इस लड्की का प्रस्ताव स्वीकार करता हूँ।" पवन भीड में से बोल उठा। उसकी आवाज सुमन देवी और कुसुम के कान में पडते ही दोनों का चेहरा उम्मीदों से भर उठा। वहीं लाला गुस्से में बस पवन को देखता रह गया।


"सुमन देवी क्या तुम्हें यह प्रस्ताव स्वीकार है?"


"हाँ हाँ गुरुजी, मुझे स्वीकार है। मुझे यह लड़का बड़ा पसंद है।" सुमन देवी की हंसी और मुस्कान दोबारा चेहरे पे आना शुरु हुई।


"बेटा, तुम्हारा नाम क्या है?"


"जी पवन कुमार।"


"सुमन देवी आप इन दोनों को पीछे मन्दिर में लेकर चले जायें, वहीं विवाह संपन्न होगा।"
nice update..!!
pawan kaise kusum ka vivah uss harami lala se hone deta..isliye usko yeh kadam uthana pada lekin ab pawan aage kya sochta ai dekhna padega..kyunki ab pawan ko sachhayi avgat hone me der nahi lagegi ki uski maa ka asli pati koi aur nahi woh khud hi hai..ab dekhte hai aage kya hota hai..!!
 

Babulaskar

Active Member
753
4,575
139
nice update..!!
hemlata ko apni beti ki shaadi ki fikr hona laajmi hai..lekin padmlata jaban de chuki hai ki jab tak mangalcharan ko koi marega nahi woh shaadi nahi karegi aur jo marega uske sath hi padmlata shaadi karegi..ab pawan teen pahadi ki jamindaari ke liye waha jayega tab shayad pawan mangalcharan ko marne ke bare me soche padmlata ke liye..!! menka bhi kaha gayab hai..woh teen pahadi me jo guruji aur guruma hai unka beta shayad mangalcharan ho sakta hai..aur yeh log bhi uss haveli ke tenkhane ke bare me janana chahte hai jo sirf menka janti hai..jarur uss tehkhane me kuchh toh hai lekin kya hosakta hai..!! padmalata ne pushtaini haar kho diya..ab hemlata kaise dhundhegi aur kya woh haar usse milega..!!
इतना अच्छा विवरण तो मैं भी नहीं लिख सकता! क्या लेखनी प्रतिभा है आप की।
वैसे देखा जाये तो मैं कोशिश कर रहा हुँ, कहानी में कुछ भी अटपटा सा न लगे। हर एक घटनाक्रम के पीछे मैं ने एक पहेली तैयार कर रखा है। जो शायद कहानी को पाठक के मन तक पहुँचने में कारगर साबित हो। अब एक ही अपडेट में उन सभी पहेलीयों पर रोशनी डालना मुमकिन नहीं है। इस लिए धीरे धीरे सारे राज खुलते जायेंगें।

पद्मलता का जो हार गायब हो गया है, उसका विवरण पहले आ चुका है। शायद आप ने ध्यान नहीं दिया होगा। या भूल गए हैं।
औए इसी अपडेट में हेमलता का अपनी बेटी को उस हार के बारे में बताना, यह भी एक अलग अध्याय है। सूर्यप्रकाश सिंह के पिताजी ने यह हार अपनी पत्नी के लिए संग्रह किया था। कहानी में इसका एक अच्छा रूप दिया जाएगा। अतीत की इस कड़ी को जानकर आप लोग उछल पडेंगे।
मेरी हर एक अपडेट में एक एक अध्याय या एपिसोड दर्शाया गया है। कोई भी अपडेट फाल्तू नहीं है। उसमें आप को नया कुछ बताने के लिए ही वह अपडेट प्रस्तूत किया गया है।
कहानी को इस बारीकी से पढ़ने के लिए धन्यवाद।
 

Babulaskar

Active Member
753
4,575
139
Ho sake toh kusum aur pawan agle jitne dino tak milan kare uski ek ek pal ka bristrit barnan karna.
बिलकुल सर। आप निश्चिंत रहिए। हर एक कहानी का एक क्लाईमैक्स होता है। इस कहानी का यह पहला क्लाईमैक्स है। अगले कुछ अपडेट में पवन और कुसुम की प्रेम कहानी को, उनके बीच पनपते प्यार को, दोनों के बीच दिवाँगी को, विस्तार से दिखाया जाएगा।
कयों कुसुम आज भी अपने पति पवन के लिए इन्तज़ार की रह देखती है, यह पाठक को पता होना जरुरी है। यह कहानी एक प्रेम कहानी है। बस आप लोगों के मनोरंजन के लिए ही यह प्रस्तुत किया जा रहा है। इस लिए क्रप्या हर तरह से सहयोग दें।
कहानी को लाईक और कमेंट से सम्मान करे।
 
Top