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Incest : पुर्व पवन : (incest, romance, fantasy)

कहानी आपको केसी लग रही है।।


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Babulaskar

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भाग 38/3

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लौड़े का मुदा चूत के अन्दर घुसते ही कुसुम के मुहं से कराहने की दबी आवाज निकलने लगी। पवन समझ गया उसे अब क्या करना है। राधा का दर्द भी इसी तरह ठीक हुआ था। उसने कुसुम को दर्द से मुक्ति देने का सोचा, लेकिन उसका अंतर्मन बोल पड़ा, पवन अभी नहीं, रुको।


"अजी मुझे बहुत दर्द हो रहा है। यह,,,,यह लौड़ा बहुत मोटा है। मेरी बुररर,,, फट जायेगी।" गोरी चमडी के ऊपर पड़ा पवन, कुसुम को कराहते देखकर दिल में पिस रहा था।


"अब पूरा घुसा दो पवन, यही समय है। उसे इस दर्द को महसूस करने दो। जब चूत में पूरा लौड़ा घुस जाये और खून निकल आये तब दर्द से मुक्ति देने के लिए तुम उस कार्य का उपयोग करना। यह दर्द एक लड्की होने का एहसास दिलाता है पवन। इस दर्द के कारण कुसुम तुम्हें और ज्यादा चाहने लगेगी।"

यह बातें पवन का अंतर्मन कहने लगा। पवन इसी पर काम करते हुए अपने लौड़े को एक तेज तर्रार धक्के से पूरा का पूरा कुसुम की चूत में घुसा देता है। सख्त चूत की छेद को पवन का मोटा लण्ड चीरता हुआ बिल्कुल अन्त तक पहुँच गया। थोड़ा बहुत जित्नी भी दूरी थी, वह दूरी भी पवन ने दूसरी ठ्पकी से कर डाला। एक और तेज धक्का, पवन ने कमर को पीछे किया और अपनी जान लगाकर एक और मारनतोड धक्का लगाया, लौड़े का सिरा जाकर अब कुसुम की चूत के अन्तिम सीमा तक पहुँच गया।


"हीं हीं हीं, मर गई मैं। आह्ँ आह्ँ,,,, मेरी बुर फट गई। उई उई माँ,,,,,, अम्मा बचा लो, बचा लो मुझे,,,,," कुसुम दर्द में चीखने लगी, चिल्लाने लगी, और एक लम्हें के लिए उसकी आंखों से दर्द से आंसू छलक पडे।


"चिंता न करो कुसुम, मैं हुँ ना यहां, अभी देखो, पूरा घुस चुका है। तुम्हारे बुर में मेरा लण्ड चला गया।"


"हँह हँह हँह, मेरी चूत में बहुत दर्द हो रहा है। निकाल लो इसे।" पवन उसकी बात पे ज्यादा ध्यान नहीं दिया, उसने अपना हाथ कुसुम के पेट पर, उसकी चूत के ऊपर और नाभि के आसपास फेरने लगा। कुछ ही क्षण लगा, कुसुम अन्दर ही अन्दर अपने आप आराम महसूस करने लगी।


"अब ठीक है? अब तो दर्द नहीं हो रहा है ना! देखो, मैं ने तुम्हारा दर्द ठीक कर दिया।"


"मेरी चूत से खून निकल रहा है ना!" पवन ने उसकी चूत पे नजर डाली, तो वह सचमुच खून से लथ-पथ थी। खून की धारा बहकर नीचे घास पर गिरने लगी।


"हाँ, कुसुम खून निकला है। बहुत निकला है। यह तुम्हारी पहली चुदाई है, इसी लिए खून निकला है। अब दोबारा इससे खून नहीं निकलेगा। अब से तुम्हारी चूत क्ंवारी नहीं रही। वह मैं ने भोग कर लिया है कुसुम। तुम्हारी चूत का पर्दा मैं ने फाड़ दिया है। अब से तुम्हें बस आनन्द मिला करेगा। तुम्हारा पति तुम्हें दिन रात चोद चोद कर वह आनन्द देगा जिससे तुम इतने दिनों से वंचित थी।" पवन ने धीरे धीरे अपनी कमर चलानी शुरु कर दी।


"तुम ने कितने जोर से धक्का लगाया था! मेरी चूत के अन्दर तक चला गया था वह। आह आअह कितना दर्द हुआ पता है तुम्हें?"


"तुम इतनी जोर से चिल्लाई, तुम्हारी चीख पुकार सुनकर कहीं तुम्हारी अम्मा ना आ जातीं यहां पर।" पवन का लौड़ा धीरे धीरे अब अन्दर बाहर होने लगा।


"धीरे से नहीं कर सकते थे? तुम्हें क्या पता लड़कियों का दर्द क्या होता है। तुम्हें तो बस घुसाने से मतलब है। सब लडके एक जैसे होते हैं।" पवन के धक्के के कारन कुसुम भी अब चुदाई करवाने में हिलने लगी थी।


"अच्छा बाबा, गलती हो गई। अब से नहीं करूँगा। लेकिन अब मजा आ रहा है ना!"


"मुझे नहीं पता,"


"बताओ ना, कुसुम, मेरा लौड़ा देखो, तुम्हारी चूत को चीरता हुआ अन्दर बाहर हो रहा है। मुझे कितना मजा आ रहा है कुसुम। काश तुम मुझे पहले मिल जाती, मैं तुम्हें पहले ही चोद लेता।"

दोनों पति पत्नी का यह प्यार से भरा सम्भोग पूरी मात्रा में शुरु चुका था। पवन और कुसुम दोनों एक दूसरे से प्यार करते हुए, प्यारी प्यारी बनवटी बात करते हुए चुदाई करने लगे। और इसी बीच वहीं दूर बड़े पत्थर के ओट में जो एक लड़का और महिला उन्हें देखने लगे थे, पवन कुसुम की चुदाई देखकर वह भी अपने आप को रोक नहीं पाये। उनके बीच भी यह प्यार का सम्भोग शुरु हो गया।

एक ही जगह पर दो जोड़े चुदाई कर रहे थे। लेकिन इस बात से अतीत का पवन और कुसुम बेखबर था।
 

Babulaskar

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भाग 38/4

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"अब बताओ, अब तो मजा आ रहा है ना तुम्हें? देखो तुम्हारी चूत ने मेरे इत्ने बड़े लौड़े को पूरा निगल लिया। काफी गहराई है तुम्हारी चूत में। यह चूत तो मैं ही मारने वाला था। तुम्हारी यह चूत मेरे हिस्से में आनेवाली थी। देखो ना कुसुम,!" मजे और आनन्द में पवन पागल होने लगा। एकाएक धक्के से वह अपने लण्ड को कुसुम की सख्त चूत में घुसाते जाने लगा। अपनापन की चुदाई में जो मजा मिलता है वह मजा दूसरी चुदाई में कहाँ मिलता पवन को।


"हाँ हाँ हाँ, मुझे,,,झे,,,, भी बहुतततत,,,, मजा आ रहा है,,,,एएएए,,, और मारो जी, और तेज तेज धक्का मारो। मेरी चूत के अन्दर तक घुसाके चोदो मुझे। अजी अजी, तुम कितने,,,एएएए,,,, अच्छे हो, आह आह आह ,,, इत्ना मजा मिलता है चुदाई में कभी,,,,ईईईई ,,,,,, सोचा नहीं था,,,, चोदो मुझे ,,,,, और तेज तेज चोदो मुझे,,,, आह अह्ह्ह ,,, अम्मा कहती थी, चुदाई करवाने में बहुत मजा आता है। आह आह आह ,,,,,, उई,, उई माँ,,,,,,आअँ आँ,,, आज पता चला, क्यों गावँ की लड़कियाँ चुपचपाकर चुदवाया करती है। आह आह पवन, मेरे प्यारे पति, अजी अपनी कुसुम को और तेज तेज ठ्पकी मारो ना!!" कुसुम पहली चुदाई का आनन्द लेती हुई बेख्याली में बडबडाने लगी।


"मार तो रहा हूँ, मेरी रानी! आह आह तुम्हें चोद्के कितना आनन्द आ रहा है। मुझे बस तुम्हें ही चोद्ना है कुसुम। तुम्हारी चूत में जादू है। देखो ना किस तरह मेरे मोटे लण्ड को भी पूरा अपने अन्दर तक ले रही है यह? मैं ने कहा था ना! तुम्हें बहुत मजा आयेगा! देखा, अब तो रोजाना चोदने दोगी ना! मना तो करोगी? मैं तुम्हें रात दिन चोद्ना चाहता हूँ कुसुम। तुम्हारी चूत मार मार के तुम्हारी इस बुर का भोसडा बनाना चाहता हूँ। तुम्हें अपनी रानी बनाऊँगा कुसुम।" पवन पागलों की तरह चुदाई को अंजाम देने लगा। कुसुम की चूत से टपका हुआ खून पवन के धक्कों के कारन बाहर निकल चुका था। अब तो कुसुम की चूत इतना रस टपका रही थी की उसी की आवाज से आसपास में परिंदो की किलकारियां जैसी सुन्दर मधुर शब्द गूँजने लगी। चूत लण्ड के इस मिलन में "खच खच पच पच, पुइं पुइँ,,, हिच हिच छीक छीक" की मधुर संगीत बजने लगी थी।


"मेरी चूत तुम्हें बहुत पसंद आई क्या? इत्नी अच्छी है यह? आह आह,,, कितने बेदर्दी से धक्का मार रहे हो। कोई गावँवाला अगर इस तरफ आ जाये, पता भी क्या होगा? पूरे गावँ में इसी बारे में बातें चालू हो जायेगी।" पवन के जानदार ठ्पकी के कारन कुसुम का शरीर बुरी तरह से हिल रहा था। पवन कभी उसे चूमने लगता तो कभी उसके दूध को चूसता। और फिर उसी रफतार से दोबारा चूत के अन्दर लण्ड पेलना शुरु कर देता।


"तो क्या हुआ! मैं अपनी नई नवेली दुल्हन को चोद रहा हूँ। किसी की लुगाई को थोडी चोद रहा हूँ?"


"बड़े आये अपनी बीबी को चोदने? एसे भी चोद्ता है क्या? अम्मा ने रात के लिए अलग इन्तज़ाम कर रखा होगा। और यहां उनका दामाद चोदने में लगा है। और क्या? चोद लो फिर। आह आह आह मारो ना, और तेज मारो, और जोर जोर से ठ्पकी मारो मेरी चूत में,, हिँ हिँ हिँ,,,,, उई हुई,,,, कितना मजा आ रहा है,,,, अजी ,,,,,, अजी,,,, मार डालो मुझे,,,,,, चोद चोद के खत्म कर दो मुझे,,,,,,आह आह आअह्ह्ह,,,,, अम्मा,, आके देख लो तुम्हारे दामाद ने क्या हालत कर दी है मेरी। चोद चोद के मेरी क्ंवारी चूत पे अपना मोटा लण्ड पेल रहा है। आ हा हा हा आअह आह्ह,,,,," कुसुम को बहुत मजा आ रहा था। जिसे वह भरपुर महसूस करती है। काफी समय हो चला दोनों चुदाई करते हुए। दिन का उजाला भी अब अंधेरे में छाने लग गया था।


"आह आअह आह कुसुम, तुम्हारी चूत ने मुझे पागल सा बना दिया है। आह आह ,,,, तुम सोच भी नहीं सकती तुम्हें चोद्कर मुझे कितना आनन्द आ रहा है। मैं तुम से बहुत प्यार करता हूँ कुसुम।" पवन का प्यार वहशीपन का रूप ले चुका था। यह बात उसने राधा को चोद्ते समय भी महसूस किया था। चुदाई के एक समय पर वह मानो दानव सा बन जाता है। और तब वह बस जानवर जैसा मारनरोग ठ्पकी मारने लग जाता है। कुसुम को चोद्ते हुए भी पवन के अन्दर का वह वहशीपन अब बाहर आ गया। जिस के चलते पवन का लण्ड बेदर्दी के साथ उस छोटी सी छेद में घुसता और फिर बाहर आकर दोबारा उस छेद को चीरता हूआ चूत के अन्त में जाकर ठोकर मारता।


"हिँ हिँ हिँ,,,,, आह आअह आअह, पवन, और चोदो अपनी कुसुम को। आह आह मुझे कुछ हो रहा है। आह ही इह इह,,,,, एह एह,,एह एह,,," पवन समझ गया कुसुम झड़ने के करीब आ चुकी है। इस लिए उसने कमर चलाना बंद नहीं किया, उसी रफतार को जारी रखते हुए उसने कुसुम को अपने से मिला लिया। और एक दानव के मानींद कुसुम की नाजुक चूत को रौंदने लगा। चुदाई की आवाज बड़े बेशर्मी से आसपास फैलने लगी थी। लेकिन उसका होश दोंनों को नहीं था।


"हाँ हाँ हाँ कुसुम,,, मैं भी,,,, तुम्हारा पानी गिरने वाला है। मैं भी झड़ने वाला हूँ, कुसुम। तुम्हारी चूत में मर मिटने को तैयार हूँ। आअह आअह कुसुममममम,,,,,,,,,," एक लम्बी छलांग और पवन ने अपने लण्ड को पूरा का पूरा कुसुम की तंग चूत की छेद में आखरी सीमा तक पहुंचा दिया। लौड़ा किसी मजबूत लाठी की तरह झटका मारने लगा। इत्तर दक्षीण दिशा को मौज मारता हुआ लौड़ा एक के बाद एक बड़े बड़े झटके के साथ फव्वारा चलाने लगा। और जब वह फव्वारा कुसुम की चूत पे गिरने लगा तो कुसुम एक बिन पानी मछली की तरह तडपने लगी, उसकी आंखें उलट गई, पूरी जान की शक्ति मानो चूत की छेद में आकर सिमट गई है। पवन का लण्ड बीर्य छोड़ने के साथ साथ कुसुम भी बीर्यरस में बर्बाद होने लगी।

पवन का लण्ड झटका मारता हुआ ज्यादतर बीर्य को कुसुम के बच्चेदानी ने अपने अन्दर ठहरा लिया बाकी बीर्य बच्चेदानी भरकर कुसुम के रस के साथ मिलावट के साथ चूत के बाहर टपकने लगा।

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Babulaskar

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भाग 38/5

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काफी देर तक दोनों को कोई सुद्बूध नहीं रही। पवन अपने बलशाली नंगे शरीर के साथ मुलायम नाजुक कलि नंगी कुसुम के ऊपर पड़ा रहा।

फिर काफी समय बाद कुसुम ने आंखें खोली। मानो एक लम्बी नींद के बाद उसकी आंख्ँ खुली हो। पवन उसके पास लेट गया। बीर्य रस अब भी कुसुम की चूत की छेद से लगातार टपकता जा रहा था। कुसुम का पूरा शरीर सुन्न पड गया। उसने आंख्ँ खोलकर देखा, उसका सपने का राजकुमार उसके बाजू में लेटा उसके शरीर को सहला रहा है।


"क्या हुआ ? थक गई हो?" पवन के चेहरे पर एक अपनापन महसूस हुआ कुसुम को।


"हुँ," कुसुम ज्यादा कुछ बोल नहीं पाई।


"तुम्हारा पहली बार है ना! धीरे धीरे तुम्हारी आदत हो जायेगी। अब हमें इस तरह हर समय करना है। अभी से थक जाओगी तो कैसे चलेगा।" पवन के मजाक पर कुसुम ने एक फीकी मुस्कान दी।


"मेरे शरीर में बिलकुल भी जान नहीं है। आह आह उई माँ,, मेरी टाँगे,,,, आह कितना दर्द कर रहा है यह।" कुसुम की आह व पुकार पे पवन उसके शरीर पर हाथ फेरने लगा। शाम ढल चुकी थी। आसपास अब अंधेरा सा होने लगा है।


"चलो कुसुम, घर चलते हैं। काफी समय हो चला है। तुम अपना कपडा पहन लो।" पवन ने कुसुम को सहारा देने की कोशिश की। कुसुम को पकडते हुए पवन ने उसकी पेतिकोट बांधी, उसकी साड़ी जैसे तैसे लगाया और फिर उसने अपना कपडा पहना। कुसुम को उठाने की कोशिश की, लेकिन उसके शरीर में कोई जान बाकी नहीं थी। वह पहली चुदाई में बुरी तरह से थक चुकी थी।


"मेरे से चला नहीं जाएगा। आह आह,, मैं,,,,,मैं चल नहीं पाऊँगी। आऊ मेरी बुर में कितना दर्द है।" कुसुम कराह रही थी।


"कोई बात नहीं, मैं तुम्हें उठाता हूँ। चलो।" पवन ने उसे अपने गोद में ले लिया। किसी बच्चे की मानींद हल्की फुल्की थी कुसुम। लेकिन उसका शरीर किसी मुलायम मखमल की तरह था। गांड में हाथ रखकर वह हाथ भी कुसुम के कूल्हों में समा जाता।

पवन कुसुम को गोदी में उठाकर घर तक ले आया।

सुमन देवी काफी देर से दोनों का इन्तज़ार कर रही थी। उन्होने कुसुम की सुहागरात के लिए कमरे के अन्दर अच्छे से बिछौना बिछा रखा था। अच्छा खाना पकाया। लेकिन काफी समय बीत जाने के बाद भी जब कुसुम आई नहीं तो वह खुद जाकर दोनों को बुलाने चली गई थी। खेत के कुछ पास आकर जब उन के कान में कुसुम की कराहने की आवाजें आई, तब वह समझ गई, उनके दामाद ने कुसुम की चूत की सील तोड दी है। दोनों जिंदगी की पहली चुदाई का आनन्द लेने में खोये हुए हैं। सुमन देवी चुपचाप घर पे पवन कुसुम का इन्तज़ार करने लगी।


पवन की गोद में कुसुम को सुन्न पड़ा हूआ देखकर एक लम्हे के लिए सुमन देवी घबरा गई।


"बेटा, क्या हुआ कुसुम को?" सुमन देवी दौड़ी उसके पास चली आई। पवन कुछ बोलने जा रहा था लेकिन कुसुम पहले ही बोल पड़ी,


"कुछ नहीं माँ, मैं थोडी थक गई हूँ।" कुसुम ने धीमी आवाज में कहा।


"बेटा पवन, इसे कमरे में जाकर लिटा दो।" सुमन देवी के कहने पर पवन कमरे में जाकर कुसुम को लिटा देता है। कुछ पल के लिए वह कुसुम के पास बैठा रहा। फिर देखा सुमन देवी अपने हाथ एक बर्तन में कुछ लाई है।


"ले कुसुम, इसे पी ले। गरम दूध है, हल्दी मिलाकर लाई हुँ, तुझे आराम मिल जाएगा।" सुमन देवी कुसुम को सहारा देकर दूध पिलाने लगी। पवन माँ बेटी में इस प्यार को देखकर सोचने लगा, उसकी नानी वाकई बहुत अच्छी है। लेकिन यह बेचारी अब कुछ ही दिन की मेहमान है। राधा के जनम लेने के दो महीने बाद बेचारी मर जायेगी। यह पवन को भले पता हो लेकिन इस बेचारी को इसका कोई अंदाजा नहीं है।


"माँ जी, मैं आता हुँ। थोड़ा बाहर जा रहा हुँ। आप दोनों बातें करो।" पवन ने कहा।


"कहाँ बेटा? तुम ने खाना भी नहीं खाया?" सुमन देवी अभी भी कुसुम को दूध पिला रही थी।


"नहीं, एसी कोई बात नहीं है। मैं अभी आ रहा हूँ।" पवन ने मुस्कुराकर कहा। पवन कमरे से निकल गया। उसे असल में शौच करने जाना था। काफी देर से उसने रोककर रखा था। वह घर के पीछे आ गया जहाँ शौच करने की जगह थी। और इधर सुमन देवी कुसुम का हाल पूछने लगती है।


"पति से बड़ा प्यार हो गया है तुझे? मेरे पास तो बड़ी शर्मा रही थी। और खुद उसके पास जाकर नीचे लेट गई। क्यों?" सुमन देवी अपनी बेटी से मजाक में छेड़खानी करती है।


"मैं कहाँ लेटी? उसने खुद करा!" कुसुम दूध पीकर लेट गई।


"और तूने मना भी नहीं किया? क्यों?" सुमन देवी के चहरे पर मुस्कान थी।


"आह माँ मुझे मत छेड़ो। तुम नहीं जानती उसे, मुझे बहला फुसलाकर चोद लिया उसने। कहिँ मैं मना कर सकती थी क्या? तुम ही कहती थी, पति के आगे चुपचाप रहना। जो करे करने देना।" कुसुम धीरे धीरे बोलने लगी।


"अच्छा? और तू जो इतनी जोर जोर से चीख रही थी? चिल्ला रही थी। उसका क्या?"


"माँ? तुम भी ना! कितनी गंदी हो, भला एसा कोई करता है क्या? अपने दामाद बेटी की चुदाई कौन देखता है?" कुसुम ने शर्म के मारे अपना चेहरा छुपा लिया।


"अरे बाबा, मैं ने नहीं देखा, मैं तो बैठे बैठे परेशान हो रही थी। सोचा पता नहीं पवन को और तुझे भूक लगी होगी, इसी लिए बुलाने गई थी तुम दोनों को। लेकिन कुछ ही दूर जाने पर तेरी आवाज मेरे कान पड़ी। मुझे जो समझना था मैं समझ गई, इसी लिए वहां से चली आई। अब बता, तुझे अच्छा लगा ना! दर्द तो नहीं हुआ रे?" सुमन देवी कुसुम के माथे पर ममता का हाथ फेरने लगी।


"नहीं माँ, मुझे दर्द नहीं हुआ। शुरु में एकबार हुआ था। लेकिन फिर पता नहीं क्या हुआ, उसने एसा कुछ किया, दर्द बिलकुल गायब हो गया। चूत से कितना खून निकला मेरा। मैं तो बहुत डर गई थी माँ। पर उसने कितने प्यार से मुझे समझाया। कितना अच्छा है वह माँ। वह सिर्फ मेरा है माँ। मैं भी उससे बहुत प्यार करने लगी हूँ माँ।" कुसुम अपनी माँ से लिपट गई।


"भगवान करे तुझे वह सारी खुशी मिले जो एक औरत को चाहिए। अच्छा यह तो बता उसका वह कितना बड़ा है? ठीक ठाक तो है ना?" सुमन देवी को हर चीज जननी थी।


"ठीक ठाक क्या होता है माँ। तुमने जिस तरह मुझे सिखाया था, मर्द का लौड़ा इत्ना बड़ा होता है। उसका तो उससे भी काफी बड़ा और मोटा है। जानती हो माँ, एकबार तो डर हि गई थी। आखिर यह कैसे मेरे इतनी सी छेद में जा सकता है। कितना दानव है बिलकुल। कलाई जितना मोटा और लम्बा है उसका लौड़ा। कितना बेदर्दी से चोदा है मुझे। पूरी जान निकाल दी है मेरी। आह मेरी टाँगों में बिलकुल भी हिम्मत नहीं है। हिला हिला के पेला है मुझे।"


"चल, अब तेरा सहारा हो गया है। पवन जैसा इतना अच्छा लड़का तुझे पति मिला है। मैं बहुत खुश हूँ कुसुम। तेरा घर बस गया। अब अपने प्यार से पवन को बान्धने की कोशिश करना। नहीं तो वह फिर से एक दो महीने के बाद चला जाएगा।"


"नहीं माँ, मैं उसे कहिँ जाने नहीं दूँगी। मैं उसे कहुँगी हमारे खेत पर खेती करने के लिए। उसे अपने से अलग नहीं होने दूँगी माँ। मैं उससे प्यार करने लगी हूँ माँ। मैं उसके बिना नहीं जी सकती। वह बहुत अच्छा है।" कुसुम अपनी माँ से लिपटी रोने लगी।


"वह कहिँ नहीं जाएगा पागल। वह भी तेरे से प्यार करता है। यह सब छोड़, और यह बता तूने उसका पानी कहाँ गिरवाया? उसने अपना बीर्य तेरी चूत में गिराया है? या बाहर?"


"उसने तो सारा पानी अन्दर ही डाला है। उसी की वजह से मैं इत्नी थक गई हूँ माँ। कितना सारा बीर्य गिराया उसने। अभी तक वहीं घास पर लगा होगा। मेरे से अभी भी टपक रही है।"


"अरे पगली, इसे कामरस बोलते हैं। तेरा भी पानी गिरा है, इसी लिए थक गई है। तूने मेरा दिल खुश कर दिया मेरी प्यारी बेटी। अभी तुझे और लेना है। जितना हो सके उसका पानी अन्दर चूत में ही गिरवाना। इससे तू जल्दी से माँ बन सकती है। मेरी प्यारी बेटी।"


"तो क्या इसी तरह से बच्चा होता है माँ? चूत में पति का बीर्य गिरवाने से?"


"हाँ री पगली हाँ, और तूने गिरवा दिया है। भगवान करे, इसी मिलन से तेरे पेट में बच्चा ठहर जाये, पहले सम्भोग का बच्चा सबसे अच्छा और सौभाग्यशाली होता है। अब मेरे घर पर भी बच्चे की किलकारियां सुनने को मिलेगी। भगवान करे तेरी कोख से चांद सा लड़का पैदा हो। अब तू आराम कर ले। पवन को आने दे, तुम दोनों को एक साथ खाना देती हुँ। रात को वह तुझे छोड़ेगा नहीं। उस के लिए थोडी देर आराम कर ले।" सुमन देवी प्यार से अपनी बेटी का माथा चूमती है और उसे आराम करने के लिए कमरे में छोड़ देती है।

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इधर पवन और कुसुम के चले जाने के बाद उसी नीम पेड के नीचे वह जोड़े आ चुके थे, जो इतनी देर से पवन और कुसुम को मिलन में ब्यस्त देखने का मजा ले रहे थे। वह दोनों उस पेड के नीचे आये, और अपनी प्रेमगाथा को याद करने लगे। दोनों उसी अवस्था में प्यार में खोये अपने अतीत वर्तमान भविश्य के सपनें देखने लगे। और फिर उनके बीच दोबारा मिलन का प्रक्रिया शुरु हो जाता है और फिर उसी चीख व पुकार के बीच सम्भोग क्रिया जारी रहता है।
 

Babulaskar

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भाग 39/1

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नगर की हवेली

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पिछ्ले कुछ दिनों से हेमलता बड़ी परेशान हैं। उसके मन में बड़ी उलझनें हैं। कई दिनों से उसे बुरे बुरे सपने आ रहे हैं। हेमलता अगर एक क्ंवारी लड्की होती, तब शायद यह सपने उसके लिए आनन्दपुर्ण होते। लेकिन एक बिधवा और तीन बच्चों की माँ, जमींदारनी की बीबी के लिए यह सपने किसी बुरे हादसे से कम नहीं हैं।

आज उसने अपनी दासी के जरिये तीन पहाडी की गुरु माँ को बुलाया है। उसका मकसद है इन बुरे सपनों से छुटकारा पाना।

हेमलता ने संगक्षेप में गुरु माँ को अपना हाल बताया। गुरु माँ ने सबकुछ सुनने के बाद कहा,


"रानी माँ, एक औरत के लिए गर्भवती होने का सपना देखना अच्छा श्गुन होता है। लेकिन आप एक बिधवा नारी हैं, इसी लिए आप परेशान हो रही हैं।"


"आप ने सही सोचा गुरु माँ, मैं एक बिधवा के साथ साथ जमींदार सूर्यप्रकाश सिंह जी की पत्नी हुँ। अब वह तो दुनिया से चले गए, एसे में अगर यह सपना सिर्फ सपना होता फिर चिंता की कोई बात नहीं थी। लेकिन एक जैसा सपना कई दिनों तक बार-बार देखना, मुझे बड़ी चिंता हो रही है। आप जरा सोचें लोग क्या कहेंगे? और भला इस उम्र में आकर किसी पराये मर्द के साथ शारीरिक संबंध बनाना, मैं सोच भी नहीं सकती।" हेमलता की बातों से उसकी परेशानी साफ झलक रही थी।


"रानी माँ, क्या आप का माहवारी अभी भी चालू है? शरीर में कोई दिक्कत तो नहीं है?"


"नहीं एसी कोई बात नहीं है। मेरी माहवारी अभी भी चालू है।"


"आप बुरा ना मानें तो क्या मैं एकबार आप का हाथ देख सकती हूँ?" गुरु माँ ने कहा।


"हाँ देख लीजिये! इसमें पूछने की क्या आवश्यकता है?" हेमलता हाथ आगे बढा देती है। रानी हेमलता जानती हैं, इस क्षेत्र में गुरु माँ से बेहतर कोई हाथों की रेखा पढ़नेवाला नहीं है। औरतें अपना हाथ गुरु माँ को दिखाती है और मर्द गुरु जी को।

गुरु माँ कुछ देर तक हाथों की लकीरों को परखती रही और फिर चेहरा उठाकर रानी हेमलता को देखने लगी।


"क्या लगा आप को? कुछ नया दिखा आप को? काफी साल पहले आप ने मेरा हाथ देखा था। जब पद्मलता पैदा हुई थी, उस से पहले आप ने हाथ देखकर कहा था, आप के भाग्य में दो लडके और एक लड्की पैदा होगो। और वही हुआ था।"


"हाँ रानी माँ, मुझे भी याद है। यह हाथों की लकीरें और रेखायें ग्रहों नक्षत्रों से जुड़े हुए होते हैं। ग्रह नक्षत्रों का उलट फेर कभी कभी हाथों की रेखाएं बदल देती हैं रानी माँ। आप की रेखाएं भी बदल चुकी हैं। रेखाएं बता रही हैं, आप की कोख से तीन सन्तान और पैदा होंगी। आप फिर माँ बनोगी।"


"क्या?"


"हाँ रानी माँ, यही संजोग है। मुझे नहीं पता आगे क्या होनेवाला है, लेकिन फिलहाल यही आपकी किस्मत है।" कुछ देर तक हेमलता और गुरु माँ दोनों खामोश बैठे रहे। फिर हेमलता ने गम्भीर होकर कहा,


"इस बात की खबर किसी को नहीं होनी चाहिए। यह बात मेरे और आप तक सीमित रहनी चाहिए। आप समझ रहे हैं ना?"


"आप चिंता न करे रानी माँ। जमींदार घराने का मान सम्मान बचाए रखने की जिम्मेदारी हमारी भी है। रानी माँ आप से एक और विषय पे बात करना चाहती हूँ, अगर आज्ञा हो तो?"


"कहिए! क्या बात है?"


"बात दर असल यह है, हम बरसों तक आप की हवेली के पास रहते आये हैं, लेकिन आगे पता नहीं क्या होगा! क्या मालुम नया जमींदार कैसा होगा? अगर आप नए जमींदार को कह देती तो हमारा आश्रय पक्का हो जाता?" गुरु माँ इल्तिजा करती है।


"हाँ यह एक समस्या है। अब नया जमींदार कौन होगा कैसा होगा हमें अभी तक उसका अनुमान नहीं है। और ना ही हम उनके आगे एसी छोटी बात की अर्जी रख सकते हैं। एसे में अगर नया जमींदार नहीं चाहता की आप वहां रहें तो आप हमारे यहां नगर में आ जायें, हम उसका इन्तज़ाम कर देंगे।"


"यह तो और अच्छी बात है। इश्वर आप का भला करे। मैं चलती हूँ।" गुरु माँ अपनी समस्या समाधान पुर्वक चली गई।

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Babulaskar

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भाग 39/2

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दो दिन बीत गया लेकिन अभी तक पद्मलता का हार मिल नहीं पाया। नगर का हर एक आदमी अब यह जान चुका है हार लौटाने वाले को सौ सोने की मुद्राएँ पुरस्कार में दी जायेगी। इसी लिये नगर की नदी के आसपास आजकल हर समय लोगों की भीड लगी हुई है।

कुछ गोताखोर डुबकी लगाकर पानी के नीचे तक चला जाता और अपने साथ कीचड़ पत्थर और कंकर उठाकर लाता। ज्यादा लोगों की भीड एसे आदमियो की हैं जिन्हें बस यह माजरा देखने में मजा आ रहा था। उसी भीड में कुछ सिपाही भेस बदलकर मौजूद थे। यह रानी हेमलता का हुकम था, हार मिलने वाले से तुरन्त हार कब्जे में ले लिया जाये।

राजकुमारी पद्मलता आजकल अपनी माँ से डरी डरी रहने लगी थी, क्यौंकि उसे पता है उसने एक एसी गलती की है जिसकी कोई माफी नहीं हो सकती। लेकिन अभी भी उसे लगता है वह अंजान नौजबान युवक उसका हार लेकर जरुर वापिस आयेगा।

एक रात पद्मलता की दासी उसके सिर पर तेल लगा रही थी। एसे में रानी हेमलता उसके कक्ष में आती हैं।


"क्या बात पद्मा, आजकल तुम बाहर नहीं दिखती? और ना ही मेरे से बात करती हो?" हेमलता अपनी बेटी के पास बैठती है। दासी पास में हट जाती है।


"नहीं माँ एसी तो कोई बात नहीं है। बस शरीर थोड़ा,,,,,"


"मैं तुम्हारी माँ हुँ। तुम्हें अच्छी समझती हूँ। लाओ मुझे दो, मैं लगा देती हूँ। दासी, तुम जाओ।" हेमलता दासी को बाहर भेज देती हैं और खुद पद्मलता के बालों में तेल लगाने बैठ जाती हैं।


"तेरे बाल काफी बड़े हो गए हैं। इनका ख्याल रखा कर। और इतनी उदास मत रहा कर। एक ही तो बेटी है मेरी, तू भी अगर उदास रहेगी तो माँ होकर मैं कैसे बर्दाश्त कर सकती हूँ? अभी तक उस हार के लिए परेशान है ना! वह सब छोड़, हार मिल जाएगा।" हेमलता बड़े प्यार से तेल लगा रही थी। पद्मलता के बाल उसकी कमर के नीचे तक चला जाता था। पद्मलता की यह एक अलग खुबसूरती थी। जिसे वह चाहकर भी छुपा नहीं पाती।


"वह हार मिल जाएगा? पर कैसे माँ!"


"अरे मैं ने सिपाहियों को जासूस के भेस में शहर में लगा रखा है। इतना कीमती हार जिस किसी को मिलेगा वह हार को बेचने के लिए जरुर किसी सुनार के पास जाएगा। हार तो जरुर मिल जाएगा। लेकिन तुझे और ज्यादा सतर्क रहना चाहिए था। वह हमारी पुर्खों की हार है। तेरे दादाजी की निशानी है। तेरी दादी ने मरने से पहले मेरे से वादा लिया था, घर की बड़ी बहु को वह हार दूँ। अब तेरी कोई भाभी तो है नहीं कि मैं उसे यह हार पहनाऊँ, इस लिए तुझे मैं ने पहनने के लिए दिया था।"


"एसा क्या? मुझे यह बात नहीं पता थी माँ। नहीं तो मैं उसे और ज्यादा संभालकर रखती। उस दिन आप ने बताया था, इस तरह के दो ही हार बने है। वह दूसरा हार कहाँ है फिर?" पद्मलता मजे में अपनी माँ से माथे पर तेल लगवा रही थी।


"वह मुझे नहीं पता। यह बात तेरे पिताजी ने कही थी। लेकिन यह हार तेरे दादाजी ने तेरी दादी के लिए खरीदा था। बड़े प्यार करते थे अपनी बीबी को। तुझे अपने दादाजी के बारे में पता है ना!"


"नहीं तो? क्यों?"


"अरे, तुझे नहीं पता! राज्य के सब को पता है। और तू? मैं भी किस से पूछ रही हूँ। भला उस वक्त तो तू पैदा भी नहीं हुई थी। मुझे भी कहाँ पता था। तेरे पिताजी ने बताया था। यह एक लम्बी कहानी है।

तेरे दादाजी सुर्यबर्मण सिंह अपने पिता के एक एकलौता पुत्र थे। बहुत कम उम्र में उनके पिता की मृत्यु हो गई। एसे में जमींदारी देखभाल करने की जिम्मेदारी उनके कंधे पे आ गई। लेकिन जमींदारी की देखभाली उनकी माँ रानी शान्तीलता करती थी। सुना है रानी शान्तीलता बहुत ही सुन्दर थी। तू भी अपनी दादी पे गई है। उनके भी बड़े बड़े बाल थे। शादी के काफी सालों तक उनकी कोख में बच्चा नहीं आ रहा था। फिर एक बड़े साधू के आशीर्वाद से रानी शान्तीलता पच्चीस साल की उम्र में गर्भवती हुई। और तेरे दादाजी सुर्यबर्मण पैदा हुए। धीरे धीरे समय बीतता गया।

और फिर जब सुर्यबर्मण की शादी की उम्र हुई तो रानी ने काफी लोगों से तेरे दादाजी की कुंडली बनाने को कहा। कुंडली तो बन गई, लेकिन उसके अनुसार राज्य या राज्य के बाहर किसी भी लड्की के साथ तेरे दादाजी की कुंडली मिल नहीं पा रही थी।

और देखते ही देखते तेरे दादाजी की उम्र पच्चीस साल हो गई। रानी शान्तीलता ने इस बीच काफी कोशिश की एक सुन्दर और सुशील लड्की ढूँढ निकालने की, लेकिन वह हो नहीं सका। आखिर जमींदार घराने में कुंडली देखकर ही बियाह कराया जाता है। और एकबार एक बड़े साधू आए, उनके आगे रानी ने अपनी परेशानी बताई। साधू ने कहा, इस पृथ्वी में एक ही एसी नारी है जिसके साथ तुम्हारे बेटे की कुंडली मिलती है। उसी से तुम्हारे बेटे की शादी हो सकेगी। रानी शान्तीलता ने जब पूछा, वह औरत कौन है? तो साधू ने वह और कोई नहीं खुद तुम हो। जो उसकी माँ है।

रानी शान्तीलता के पैर से जमीन खिसक गई। आखिर वह माँ थी। कैसे अपने ही बेटे से बियाह करती? लेकिन काफी सोच विचार के बाद शान्तीलता ने बियाह के राजी हुई। तब उनकी उम्र पचास के ऊपर थी। लेकिन देखने वालों ने कहा है, उस वक्त भी उनका रूप उनका यौवन किसी जवान लड्की की ईर्षा के कारन बन जाता। सुना है तेरे दादाजी और उनकी माँ ने एक पति पत्नी की तरह जीवन बिताया था। उनका प्यार एक माँ बेटा होते हुए भी एक सच्चे प्यार करने वाले प्रेमी प्रेमिका की तरह था। और उनके कोख से तेरे पिताजी ने जनम लिया। यह थी उनकी कहानी।" रानी हेमलता अपनी बेटी सुनाते सुनाते उसके बाल बान्ध चुकी थी।


"यह तो बहुत बड़िया प्रेम कहानी है माँ। और वह हार!" पद्मलता उत्तेजना में अपनी माँ की आमने सामने बैठ गई।


"वही तो, तेरे दादाजी अपनी माँ बनी बीबी से बहुत प्रेम करने लगे थे। और उन्होने इसी प्रेम को जताने के लिए वह हार पारस के सौदागरों से खरीदा था।"


"और इसी वजह से वह हार इतना महत्वपूर्ण है। माँ, तो क्या एक बेटा अपनी माँ से बियाह कर सकता है? दादाजी ने किया था।"


"बियाह तो दो प्यार करने वालों का मिलन है। साधारण लोग इस बात से डरते हैं लोग क्या कहेंगे? लेकिन एक जमींदार के ऊपर कौन सवाल उठायेगा? उस के बारे में कहने से पहले लोग दस बार सोचते हैं। और शायद इसी लिए उन्होने यह शादी की थी। एक जमींदार चाहे तो अपनी माँ से बियाह कर सकता है। क्यौंकि शादी करने से वह औरत दोबारा सुहागन बनती है। उसकी गरिमा और सम्मान दोबारा रानी के रूप में प्रतिष्ठा होती है। और वह फिर से बिधवा जीवन को त्याग देकर दोबारा बच्चों की माँ बन सकती है।"


"हाँ माँ यह सही कहा तुम ने। मुझे भी कभी कभी इच्छा होती मैं दोबारा तुम्हारी शादी करवाऊँ। तुम फिर से अपने पेट में बच्चा लो। मेरे और दो तीन भाई बहन हो जाये।" पद्मलता अपनी माँ को छेड़ती है।


"हट बदमाश, तेरा दिमाग भी क्या क्या सोचने लगा है! इस उम्र में मेरे पेट में कहाँ से बच्चा आयेगा?" हेमलता ने कह तो दिया, लेकिन उसका मन उसे यकीन दिला रहा था, नहीं हेमलता तुम अब भी गर्भवती हो सकती हो।।

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