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Incest पूरे परिवार की वधु

SEEMASINGH

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"अरे बहु , अरे बेटा यदि तू इस बार रोई तो मैं तुझे टांगो पे लिटा कर पिता की तरह तेरे चूतड़ों पर बीस थप्पड़ टिका दूंगा," मैं ससुरजी के धमकाने से लजीली हंसी हंस दी , 'पापा जी वैसे तो छोटे बच्चों को सजा देतें हैं। पापाजी एक ही दिन में आपने मेरे बारे कितनी गन्दी बातें देख लीं हैं। मैं कैसे आपसे आंखें मिलाऊँगी ?"

"सुनी देख बेटा , तू अभी मुश्किल से बीस साल की है। अभी उसमे भी दो दिन बाकीं हैं। यदि तेरे शरीर की ज़रुरत पूरी करने वाला दूर है तो उसमे तेरा क्या दोष। अच्छा चल बाहर बैठ के बात करते हैं। " ससुर जी ने बाहर आ कर मेरी ओर का दरवाज़ा खोला और इस से पहले मैं कूद पाती मुझे बाहों में उठा लिया। मैं ससुरजी के सशक्त शरीर से लिपट गयी। मैंने अपनी बाँहों का हार ससुरजी की गर्दन के ऊपर डाल दिया। ससुरजी ने मुझे फूल जैसी हलकी चीज़ की तरह उठा कर एक मोटे पेड़ के नीचे मुलायम घास पर बैठ गए और मैं उनकी गोदी में समां गयी।
"ससुरजी ने मेरा शर्म से लाल उनके सीने में गड़ा चेहरा उठा कर मेरे फड़कते होंठो को स्नेह से चूमा ," सुनी बेटा जीवन जो है वो है। उसके अविवेकी परिस्थितियों के सामने हथियार थोड़े ही डाल देंगें और समर्पण कर देंगें हम। देख बेटा मैंने तुझे जैसे बताया मैं न दकियानूसी हूँ और न ही पुरातनवाद का अँधा भक्त। मैं जो भी कहूं ध्यान और खुले दिमाग और दिल से सुनना। "
मैंने आँखें झपका कर अपना समर्थन सुझाया और उनके ज्ञान से दमकते सुंदर मोहक चेहरे को आँखों से प्रेम से निहारने लगी।
"देख बेटी , इस घर में एक नहीं पांच हृष्ट पुष्ट देवर हैं तेरे। यदि मुझे भी गिनो तो छह स्वस्थ्य और स्त्री -सुख के भूखे पुरुष तुम्हारी सेवा के लिए हाज़िर हैं। समाज बाहर जो भी सही समझे कहे पर हमारे घर के अंदर जो हमें सही लगेगा वो ही सही है। मैं तेरे ऊपर कोई दवाब नहीं डाल रहा पर तू और लड़कियों जैसी बुद्धू नहीं है। तुझ में स्पष्ट दृष्टि का बोध है। और तू अब मेरी बेटी है। तुझे तो मुझ से भी अधिक समाज के दकियानूसी नियमों के आलोचना करनी चाहिए। मैं तो तेरे सामने सूखा बूढ़ा हूँ ," मैं पापाजी के खुले विचारों के सामने नतमस्तक हो गयी , “
"सूखा बूढ़ा किसे कह रहें आप पापा जी। मेरे पापा जी तो अभी भी मस्त मुस्टंडे जवान हैं। कोई भी मेरी उम्र की लड़की तो सौभाग्य शाली होगी की मेरे पापाजी जैसा सुंदर बलवान मर्द उस पर नज़र मारे। " मैंने लचक कर कहा और मेरे चेहरे पर स्वतः वो मुस्कान छा गयी जो जब स्त्री किसी पुरुष के ऊपर न्योंछावर होने को तत्पर हो तो उसके होंठों पर आये बिना नहीं रूकती।
मेरे ससुरजी अनुभवी पुरुष थे और उनका संसर्ग का अनुभव मेरे नन्हे अनुभव से मीलों आगे था।
उन्होंने मुझे बाहों में जकड लिया और मेरे होंठो के पास अपने होंठ ला कर पूछा ," मुझे और किसी लड़की की परवाह नहीं है। मैं तो अपनी बेटी का दिल जानना चाहता हूँ। "
मैं शर्म से लाल हो गयी। ससुरजी की मीठी गरम साँसे मेरे मस्तिष्क में तूफ़ान उठने लगीं , "आपकी बेटी तो आपकी पहली मुलाकात से ही अपने पापाजी के ऊपर न्योंछावर हो गयी है। "
ससुरजी ने धीरे से मेरे होंठों के ऊपर अपने होंठ पेवस्त कर दिए। मैं सिसक उठी। मेरी बाहें उनकी गर्दन के इर्द-गिर्द कस गईं। मेरे होंठ मानों किसी और के बम थे और खुद ही खुल कर ससुरजी की जीभ का स्वागत करने लगे।
ससुरजी के हाथ मेरे पेट को सहलाते ऊपर चलने लगे और मेरा बदन ऐंठ गया जैसे ही उनके हाथों ने मेरे फड़कते उरोजों को कमीज़ के ऊपर से ढक लिया।
मैं अब सबर नहीं रख सकी। मेरी कई दिनों की हवस और ससुरजी की तरफ असीमित प्यार का बाँध टूट गया। मैंने अपने मुंह को पापाजी के मुंह से चुपके दिया। ससुरजी के हाथ अब निसंकोच मेरे स्तनों को मसल रहे थे। ससुरजी का ऊपर शरीर मेरे नन्हे शारीर के सामने दानवीय आकर का था। उनके मुंह अतः मेरे मुंह के ऊपर था। हमारा चुम्बन अब शिष्ट और सभ्य नहीं रह सका। मैं और ससुरजी बेसब्री से लार सुड़कने की आवाज़ें निकालते हुए मानों एक दुसरे के मुंह को गटक जाना चाह रहे थे। ससुरजी की मीठी गरम लार मेरे मुंह ने भरने लगी जिसे मैं प्रसाद समझ कर गटक रही थी।
उनके हाथों ने ना जाने कब मेरी कमीज़ के सारे बटन खोल दिया और मेरे नग्न चूचियों को बेदर्दी से मसल रहे थे। जैसे ही उनके तर्जनी और अंगूठे ने मेरे चूचुकों को कस कर पकड़ा और मसलना और मरोड़ना शुरू किया तो मेरी सिसकारियाँ फूट चलीं।
मैंने अपनी बाहों को और भी ताकत से उनकी गर्दन के ऊपर जकड दिया। उनके होंठों को मैंने कई बार उत्तेजना के ज्वर से जलते अंजाने में दांतों से काट लिया।
ससुरजी के अनुभवी हाथों ने मेरे उन्नीस साल के अधपके शरीर में तूफानी अग्नि प्रज्ज्वलित कर दी।
मैं अब सब सुध-बुध खो चुकी थी। मेरा योनि-मार्ग रति रस से लबालब भर गया था। मेरा भग-शिश्न थिरक रहा था। ससुरजी ने जिस चतुरता से मेरी कमीज़ खोली थी उसी दक्षता से उन्होंने मेरी जींस के बटन खोल दिए। मैंने बिजली के खिलोने की तरह अपनी टाँगे चौड़ा कर फैला दीं। उनका दायां हाथ मेरी कच्छी के अंदर घुस गया। मैं चिहुँक उठी। उनकी उँगलियों ने मेरी गीली रोती आंसू बहाती योनि की सुरंग को ढूंढने और फिर उसे कुरेदने में एक क्षण भी नहीं लगाया।
मैं वासना के ज्वर से सुलगती सुबक उठी ," पापाजी उन्न्नन्नन। " मैं ससुरजी के मुंह में फुसफुसाई।
मुझे कुछ कहने की ज़रुरत नहीं थी। ससुरजी मेरी यातना को तो मुझसे भी अच्छी तरह समझ चुके थे और उन्होंने मेरी चूत को दो उँगलियों से चोदते हुए अपने अंगूठे से मेरे संवेदनशील भग-शिश्न को रगड़ने लगे।
मैं चिहुंक कर उनकी गोद में मचल उठी। उनके दुसरे हाथ ने मेरे दोनों उरोजों और चूचुकों को निर्ममता से मसलना रगड़ना और मरोड़ना शुरू किया तो मैं बिलकुल बदहवास हो गयी।
मेरी उत्तेजना हर क्षण और तीव्र और प्रचुर हो गयी।
मैं अब अपने चूतड़ आगे पीछे करती ससुरजी के उंगलिओं और अंगूठे को अपनी चूत का ऊँगली-चोदन के लिये मदद करने लगी। मैं अब कसमसा रही थी , कुनमुना रही थी और ससुरजी की लार सटक सटक कर उनके होंठों को चूस काट रही थी।
मैं अब अपने चरम-आनंद की चोटी के ऊपर का सफर तय कर रही थी। मैं अब अपने बस में नहीं थी। मैंने अपने हाथ अपने पीछे कर ससुरजी के पजामे का नाड़ा ढून्ढ लिया और पागलों की तरह उसे खोल कर उनके पजामे का कमरबन्द ढीला करने लगी। ससुरजी का महा लण्ड खुद ब खुद मेरे हाथों में कूद के आ गया।
मेरे हाथ बड़ी मुश्किल से ससुरजी के लण्ड की मोटाई को सम्भाल पा रहे थे। मेरा हाथ मुश्किल से ससुरजी के महालंड की आधी से भी कम मोटाई को घेर पाया। मुझे उस समय अपनी वासना के ज्वर के प्रभाव से ससुरजी के महा लंड के नाप का का पूर्ण अनुभव नहीं हुआ। मैंने उनके महाकाय लण्ड को सहलाना शुरू कर दिया।
ससुरजी के हाथों की क्रिया मेरे उनके लण्ड को सहलाने से और भी प्रखर हो गयी। उन्होंने मेरी चूचियों का मर्दन और मेरी चूत का ऊँगली-चोदन और भी तेज़ी और बेदर्दी से करने लगे।
मेरे हलक से चीख उबलने लगी। मेरा काम-आनंद, मेरी रति-निष्पत्ति अब निकट और भी निकट आ चुकी थी। अचानक मेरा सारा बदन ऐंठ गया। मेरे हलक से चीख निकली पर उसे ससुरजी के भूखे मुंह ने दबा दिया।
मैं कांपती हुए झड़ने लगी। मेरा चरम-आनंद इतना तीव्र और ज़ोरदार था की मैं जब तक मेरी चूत के सुरंग से फव्वारा छूटना बंद होता मैं लगभग बेहोशी के आलम कर निश्चेत ससुरजी की गोद में ढुलक गयी।
जब मुझे होश आया ससुरजी अपने पजामे का नाड़ा बाँध कर तयार थे। उन्होंने बटन लगा कर मेरी जींस भी बंद कर दी थी। मैं अभी भी उनकी बाहों में थी।
" पापाजी आपका तो हुआ ही नहीं ," मुझे ससुरजी के मोटा महाकाय लण्ड की संतुष्टि की फ़िक्र लगी।
" बेटा मेरा पंद्रह सालों बृह्मचर्य ऐसे ही टूटेगा ? मैं सही समय और घड़ी की प्रतीक्षा करूंगा ," ससुरजी ने मुझे चूमते हुए कहा।
मैंने ना सोचते हुए ससुरजी से पूछा , " पापाजी यदि मेरी जगह आप अपनी जन्मी बेटी होती आप यही सलाह देते ? "
" बेटा बिना एक क्षण बरबाद किये , बिना हिचक ," ससुरजी ने मेरी नाक को चूमते हुए जवाब दिया।
" और साथ आप ऐसी ही शुरुआत करते जैसे मेरे साथ की है आपने ," पूछ तो लिया पर शर्म से लाल हो गयी।
" बेटी एक पल भी नहीं लगाता मैं। अपनी बेटी के सुख के लिए मेरे रस्ते में कोई परंपरा नहीं आती ," ससुरजी ने मेरे थोड़ी ऊपर उठाई और मेरे कांपते होंठों पर अपने होंठ चिपका दिए।
 

SEEMASINGH

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१६
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घर पहुँच के मैं दौड़ कर अपने कमरे में घुस गयी। मैं ससुरजी के साथ टूटी मर्यादाओं की लज्जा से एक तरफ तो घबरा रही थी पर दूरी ओर उनके मर्दाने हाथों के कमाल और उनके दानवीय आकार के मोटे लण्ड को याद कर उत्तेजना से सिहर उठती।
मैंने नहा धो कर हल्का नीला लहंगा और हलकी गुलाबी चोली पहनी। शाम के खाने का इंतज़ाम करने में मेरा ध्यान मुश्किल से लग पाया। उसके ऊपर जब मैं भंडार-घर में ससुरजी की चहेती दाल ढून्ढ रही थी तो मौका देख कर मेरा छोटा देवर राजू ने मुझे भंडार-घर में घेर लिया।
" भाभी, अब तो आप पकड़ी गईं। अब भी नहीं बचा सकता ," राजू ने मुझे पीछे से बाहों में जकड़ते हुए सस्ते फिल्मों गुंडों की आवाज़ की नक़ल करते हुए कहा।
"अरे देवर जी कौनसी भाभी बचना चाहती है देवर राजा से ," मैंने अपनी कमर राजू के उन्नत टांगों बीच में से सर उठाते मोटे अजगर को रगड़ते हुए कहा।
" तब तो दिवाली हो गयी आज ," राजू की हिम्मत और भी बढ़ गयी।
मेरे दोनों हाथों दाल का डब्बा था। राजू के दोनों हाथ मेरे उरोजों पर जमे हुए थे। राजू ने होले से मेरी गर्दन को अपने होंठो से तितली के पंख से सहराने जैसे हलके स्पर्श से चूमने लगा। मैं सिहर उठी। मेरी गर्दन की त्वचा बहुत ही संवेदनशील है। मैंने स्वतः अपने बदन को अपने देवर के भारी भरकम मर्दाने शरीर के साथ दबा दिया। राजू का महा लण्ड मेरी पीठ में गढ़ रहा था। राजू ने मेरे स्तनों को मेरी चोली के ऊपर से ही हौले हौले दबाना शुरू कर अपनी हथेली से मेरे तने चूचुकों को सहलाने लगा। मैंने अपनी पीठ से उसके तन्नाए हुए लण्ड को रगड़ने लगी।
"देवर जी , इस तरह तो पापाजी की पसंदीदा दाल कभी भी नहीं पक पाएगी ," मैं न चाहते हुए भी राजू को रुकने के लिये राजी करने का प्रयास कर रही थी।
नारी के वासनामयी मन में कभी ना में हाँ होती और कभी सिर्फ हाँ ही हाँ होती है। मेरे मन में तो हाँ हाँ के राज़ीपन का तूफ़ान उठा हुआ था।
"भाभी दाल तो पक ही जायेगी पर पापाजी की इकलौती बहु और बेटी का भी तो ख्याल रखने की ज़िम्मेदारी है आपके देवरों की ," राजी ने मेरे कान की लोलकि [ईयर लोब ] को होंठो के बीच चुभलाते हुए फुसफुसाया।
मैं सिहर उठी , " जाने दो देवर राजा। अपने मजे के लिए न जाने कैसे कैसे बहाने बनाते हो। "
" तो भाभी क्या आपको आनंद नहीं आ रहा ? "राजू ने मेरे उल्हाने का मज़ाक बनाते हुए अपना एक हाथ चालाकी से मेरे लहंगे के नाड़े के नीचे खिसका कर मेरी उबलती गीले चूत को ढून्ढ लिया। मैंने लहंगे के नीचे कच्छी नहीं पहनी थी। ग्रामीण लहंगे के परिवेश परिवेश में कच्छी की ज़रुरत ही नहीं महसूस होती। इस स्वंत्रता का लाभ अब मेरे प्यारे देवर राजू को भी मिल रहा था।
मेरे मुंह से ऊंची सिसकारी निकल पड़ी। मेरे दोनों हाथ तो भरे हुए थे दाल के डब्बे से। मैं चाहती तो भी कुछ नहीं कर पाती और मैं वैसे ही राजू को रोकने वाली नहीं थी। मेरा तीसरे नंबर का देवर है और उसे पूरा हक़ है अपनी भाभी के ऊपर।
राजू ने मेरे रस से भीगी झांटों को अपनी उँगलियों से सहलाते हुए पृथक कर मेरे रति रस से लबालब भरी चूत के द्वार को ढून्ढ अपनी उँगलियों से भगोष्ठों को फैला कर होले होले मेरी योनि की सुरंग के खुरदुरे तंग मुहाने को सहलाने लगा।
उत्तेजना से मेरे नितम्ब हिलने लगे।
मेरे आँखें आनंद से अधि मूंद गईं। राजू ने मेरे मदन-मणि को ढून्ढ लिया। उसे मेरे भगनासे को ढूंढ़ने में ज़रा सी भी मुश्किल नहीं होती। मेरा दाना है ही बड़ा मोटा और उसे तन्नाने में कुछ की क्षण लगते हैं।
"आह राजू उन्न्नन्नन अंग्ग्ग्ग्ग्ग्ग्ग्ग् ," मैं अब बेशर्मी से सिसकारियाँ मार रही थी।
राजू ने एक उँगली एक पोर तक मेरी चूत में डाल कर अपने अंगूठे से मेरे दाने को सहलाते हुए मेरी बाईं चूची को मसलते मसलते मेरी गर्दन गाल कान को चूम चूम कर मेरी हालत बेहाल कर दी।
 

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"अरे बहु , अरे बेटा यदि तू इस बार रोई तो मैं तुझे टांगो पे लिटा कर पिता की तरह तेरे चूतड़ों पर बीस थप्पड़ टिका दूंगा," मैं ससुरजी के धमकाने से लजीली हंसी हंस दी , 'पापा जी वैसे तो छोटे बच्चों को सजा देतें हैं। पापाजी एक ही दिन में आपने मेरे बारे कितनी गन्दी बातें देख लीं हैं। मैं कैसे आपसे आंखें मिलाऊँगी ?"

"सुनी देख बेटा , तू अभी मुश्किल से बीस साल की है। अभी उसमे भी दो दिन बाकीं हैं। यदि तेरे शरीर की ज़रुरत पूरी करने वाला दूर है तो उसमे तेरा क्या दोष। अच्छा चल बाहर बैठ के बात करते हैं। " ससुर जी ने बाहर आ कर मेरी ओर का दरवाज़ा खोला और इस से पहले मैं कूद पाती मुझे बाहों में उठा लिया। मैं ससुरजी के सशक्त शरीर से लिपट गयी। मैंने अपनी बाँहों का हार ससुरजी की गर्दन के ऊपर डाल दिया। ससुरजी ने मुझे फूल जैसी हलकी चीज़ की तरह उठा कर एक मोटे पेड़ के नीचे मुलायम घास पर बैठ गए और मैं उनकी गोदी में समां गयी।
"ससुरजी ने मेरा शर्म से लाल उनके सीने में गड़ा चेहरा उठा कर मेरे फड़कते होंठो को स्नेह से चूमा ," सुनी बेटा जीवन जो है वो है। उसके अविवेकी परिस्थितियों के सामने हथियार थोड़े ही डाल देंगें और समर्पण कर देंगें हम। देख बेटा मैंने तुझे जैसे बताया मैं न दकियानूसी हूँ और न ही पुरातनवाद का अँधा भक्त। मैं जो भी कहूं ध्यान और खुले दिमाग और दिल से सुनना। "
मैंने आँखें झपका कर अपना समर्थन सुझाया और उनके ज्ञान से दमकते सुंदर मोहक चेहरे को आँखों से प्रेम से निहारने लगी।
"देख बेटी , इस घर में एक नहीं पांच हृष्ट पुष्ट देवर हैं तेरे। यदि मुझे भी गिनो तो छह स्वस्थ्य और स्त्री -सुख के भूखे पुरुष तुम्हारी सेवा के लिए हाज़िर हैं। समाज बाहर जो भी सही समझे कहे पर हमारे घर के अंदर जो हमें सही लगेगा वो ही सही है। मैं तेरे ऊपर कोई दवाब नहीं डाल रहा पर तू और लड़कियों जैसी बुद्धू नहीं है। तुझ में स्पष्ट दृष्टि का बोध है। और तू अब मेरी बेटी है। तुझे तो मुझ से भी अधिक समाज के दकियानूसी नियमों के आलोचना करनी चाहिए। मैं तो तेरे सामने सूखा बूढ़ा हूँ ," मैं पापाजी के खुले विचारों के सामने नतमस्तक हो गयी , “
"सूखा बूढ़ा किसे कह रहें आप पापा जी। मेरे पापा जी तो अभी भी मस्त मुस्टंडे जवान हैं। कोई भी मेरी उम्र की लड़की तो सौभाग्य शाली होगी की मेरे पापाजी जैसा सुंदर बलवान मर्द उस पर नज़र मारे। " मैंने लचक कर कहा और मेरे चेहरे पर स्वतः वो मुस्कान छा गयी जो जब स्त्री किसी पुरुष के ऊपर न्योंछावर होने को तत्पर हो तो उसके होंठों पर आये बिना नहीं रूकती।
मेरे ससुरजी अनुभवी पुरुष थे और उनका संसर्ग का अनुभव मेरे नन्हे अनुभव से मीलों आगे था।
उन्होंने मुझे बाहों में जकड लिया और मेरे होंठो के पास अपने होंठ ला कर पूछा ," मुझे और किसी लड़की की परवाह नहीं है। मैं तो अपनी बेटी का दिल जानना चाहता हूँ। "
मैं शर्म से लाल हो गयी। ससुरजी की मीठी गरम साँसे मेरे मस्तिष्क में तूफ़ान उठने लगीं , "आपकी बेटी तो आपकी पहली मुलाकात से ही अपने पापाजी के ऊपर न्योंछावर हो गयी है। "
ससुरजी ने धीरे से मेरे होंठों के ऊपर अपने होंठ पेवस्त कर दिए। मैं सिसक उठी। मेरी बाहें उनकी गर्दन के इर्द-गिर्द कस गईं। मेरे होंठ मानों किसी और के बम थे और खुद ही खुल कर ससुरजी की जीभ का स्वागत करने लगे।
ससुरजी के हाथ मेरे पेट को सहलाते ऊपर चलने लगे और मेरा बदन ऐंठ गया जैसे ही उनके हाथों ने मेरे फड़कते उरोजों को कमीज़ के ऊपर से ढक लिया।
मैं अब सबर नहीं रख सकी। मेरी कई दिनों की हवस और ससुरजी की तरफ असीमित प्यार का बाँध टूट गया। मैंने अपने मुंह को पापाजी के मुंह से चुपके दिया। ससुरजी के हाथ अब निसंकोच मेरे स्तनों को मसल रहे थे। ससुरजी का ऊपर शरीर मेरे नन्हे शारीर के सामने दानवीय आकर का था। उनके मुंह अतः मेरे मुंह के ऊपर था। हमारा चुम्बन अब शिष्ट और सभ्य नहीं रह सका। मैं और ससुरजी बेसब्री से लार सुड़कने की आवाज़ें निकालते हुए मानों एक दुसरे के मुंह को गटक जाना चाह रहे थे। ससुरजी की मीठी गरम लार मेरे मुंह ने भरने लगी जिसे मैं प्रसाद समझ कर गटक रही थी।
उनके हाथों ने ना जाने कब मेरी कमीज़ के सारे बटन खोल दिया और मेरे नग्न चूचियों को बेदर्दी से मसल रहे थे। जैसे ही उनके तर्जनी और अंगूठे ने मेरे चूचुकों को कस कर पकड़ा और मसलना और मरोड़ना शुरू किया तो मेरी सिसकारियाँ फूट चलीं।
मैंने अपनी बाहों को और भी ताकत से उनकी गर्दन के ऊपर जकड दिया। उनके होंठों को मैंने कई बार उत्तेजना के ज्वर से जलते अंजाने में दांतों से काट लिया।
ससुरजी के अनुभवी हाथों ने मेरे उन्नीस साल के अधपके शरीर में तूफानी अग्नि प्रज्ज्वलित कर दी।
मैं अब सब सुध-बुध खो चुकी थी। मेरा योनि-मार्ग रति रस से लबालब भर गया था। मेरा भग-शिश्न थिरक रहा था। ससुरजी ने जिस चतुरता से मेरी कमीज़ खोली थी उसी दक्षता से उन्होंने मेरी जींस के बटन खोल दिए। मैंने बिजली के खिलोने की तरह अपनी टाँगे चौड़ा कर फैला दीं। उनका दायां हाथ मेरी कच्छी के अंदर घुस गया। मैं चिहुँक उठी। उनकी उँगलियों ने मेरी गीली रोती आंसू बहाती योनि की सुरंग को ढूंढने और फिर उसे कुरेदने में एक क्षण भी नहीं लगाया।
मैं वासना के ज्वर से सुलगती सुबक उठी ," पापाजी उन्न्नन्नन। " मैं ससुरजी के मुंह में फुसफुसाई।
मुझे कुछ कहने की ज़रुरत नहीं थी। ससुरजी मेरी यातना को तो मुझसे भी अच्छी तरह समझ चुके थे और उन्होंने मेरी चूत को दो उँगलियों से चोदते हुए अपने अंगूठे से मेरे संवेदनशील भग-शिश्न को रगड़ने लगे।
मैं चिहुंक कर उनकी गोद में मचल उठी। उनके दुसरे हाथ ने मेरे दोनों उरोजों और चूचुकों को निर्ममता से मसलना रगड़ना और मरोड़ना शुरू किया तो मैं बिलकुल बदहवास हो गयी।
मेरी उत्तेजना हर क्षण और तीव्र और प्रचुर हो गयी।
मैं अब अपने चूतड़ आगे पीछे करती ससुरजी के उंगलिओं और अंगूठे को अपनी चूत का ऊँगली-चोदन के लिये मदद करने लगी। मैं अब कसमसा रही थी , कुनमुना रही थी और ससुरजी की लार सटक सटक कर उनके होंठों को चूस काट रही थी।
मैं अब अपने चरम-आनंद की चोटी के ऊपर का सफर तय कर रही थी। मैं अब अपने बस में नहीं थी। मैंने अपने हाथ अपने पीछे कर ससुरजी के पजामे का नाड़ा ढून्ढ लिया और पागलों की तरह उसे खोल कर उनके पजामे का कमरबन्द ढीला करने लगी। ससुरजी का महा लण्ड खुद ब खुद मेरे हाथों में कूद के आ गया।
मेरे हाथ बड़ी मुश्किल से ससुरजी के लण्ड की मोटाई को सम्भाल पा रहे थे। मेरा हाथ मुश्किल से ससुरजी के महालंड की आधी से भी कम मोटाई को घेर पाया। मुझे उस समय अपनी वासना के ज्वर के प्रभाव से ससुरजी के महा लंड के नाप का का पूर्ण अनुभव नहीं हुआ। मैंने उनके महाकाय लण्ड को सहलाना शुरू कर दिया।
ससुरजी के हाथों की क्रिया मेरे उनके लण्ड को सहलाने से और भी प्रखर हो गयी। उन्होंने मेरी चूचियों का मर्दन और मेरी चूत का ऊँगली-चोदन और भी तेज़ी और बेदर्दी से करने लगे।
मेरे हलक से चीख उबलने लगी। मेरा काम-आनंद, मेरी रति-निष्पत्ति अब निकट और भी निकट आ चुकी थी। अचानक मेरा सारा बदन ऐंठ गया। मेरे हलक से चीख निकली पर उसे ससुरजी के भूखे मुंह ने दबा दिया।
मैं कांपती हुए झड़ने लगी। मेरा चरम-आनंद इतना तीव्र और ज़ोरदार था की मैं जब तक मेरी चूत के सुरंग से फव्वारा छूटना बंद होता मैं लगभग बेहोशी के आलम कर निश्चेत ससुरजी की गोद में ढुलक गयी।
जब मुझे होश आया ससुरजी अपने पजामे का नाड़ा बाँध कर तयार थे। उन्होंने बटन लगा कर मेरी जींस भी बंद कर दी थी। मैं अभी भी उनकी बाहों में थी।
" पापाजी आपका तो हुआ ही नहीं ," मुझे ससुरजी के मोटा महाकाय लण्ड की संतुष्टि की फ़िक्र लगी।
" बेटा मेरा पंद्रह सालों बृह्मचर्य ऐसे ही टूटेगा ? मैं सही समय और घड़ी की प्रतीक्षा करूंगा ," ससुरजी ने मुझे चूमते हुए कहा।
मैंने ना सोचते हुए ससुरजी से पूछा , " पापाजी यदि मेरी जगह आप अपनी जन्मी बेटी होती आप यही सलाह देते ? "
" बेटा बिना एक क्षण बरबाद किये , बिना हिचक ," ससुरजी ने मेरी नाक को चूमते हुए जवाब दिया।
" और साथ आप ऐसी ही शुरुआत करते जैसे मेरे साथ की है आपने ," पूछ तो लिया पर शर्म से लाल हो गयी।
" बेटी एक पल भी नहीं लगाता मैं। अपनी बेटी के सुख के लिए मेरे रस्ते में कोई परंपरा नहीं आती ," ससुरजी ने मेरे थोड़ी ऊपर उठाई और मेरे कांपते होंठों पर अपने होंठ चिपका दिए।
Wah kya episode raha
maza aa gai
sasurji ka to jo nona tha hoga par yaha sab gila ho gaya
Nice update
Bhejte rahiye hame aapke episode se niche ki pari ko maja aata hai
 

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घर पहुँच के मैं दौड़ कर अपने कमरे में घुस गयी। मैं ससुरजी के साथ टूटी मर्यादाओं की लज्जा से एक तरफ तो घबरा रही थी पर दूरी ओर उनके मर्दाने हाथों के कमाल और उनके दानवीय आकार के मोटे लण्ड को याद कर उत्तेजना से सिहर उठती।
मैंने नहा धो कर हल्का नीला लहंगा और हलकी गुलाबी चोली पहनी। शाम के खाने का इंतज़ाम करने में मेरा ध्यान मुश्किल से लग पाया। उसके ऊपर जब मैं भंडार-घर में ससुरजी की चहेती दाल ढून्ढ रही थी तो मौका देख कर मेरा छोटा देवर राजू ने मुझे भंडार-घर में घेर लिया।
" भाभी, अब तो आप पकड़ी गईं। अब भी नहीं बचा सकता ," राजू ने मुझे पीछे से बाहों में जकड़ते हुए सस्ते फिल्मों गुंडों की आवाज़ की नक़ल करते हुए कहा।
"अरे देवर जी कौनसी भाभी बचना चाहती है देवर राजा से ," मैंने अपनी कमर राजू के उन्नत टांगों बीच में से सर उठाते मोटे अजगर को रगड़ते हुए कहा।
" तब तो दिवाली हो गयी आज ," राजू की हिम्मत और भी बढ़ गयी।
मेरे दोनों हाथों दाल का डब्बा था। राजू के दोनों हाथ मेरे उरोजों पर जमे हुए थे। राजू ने होले से मेरी गर्दन को अपने होंठो से तितली के पंख से सहराने जैसे हलके स्पर्श से चूमने लगा। मैं सिहर उठी। मेरी गर्दन की त्वचा बहुत ही संवेदनशील है। मैंने स्वतः अपने बदन को अपने देवर के भारी भरकम मर्दाने शरीर के साथ दबा दिया। राजू का महा लण्ड मेरी पीठ में गढ़ रहा था। राजू ने मेरे स्तनों को मेरी चोली के ऊपर से ही हौले हौले दबाना शुरू कर अपनी हथेली से मेरे तने चूचुकों को सहलाने लगा। मैंने अपनी पीठ से उसके तन्नाए हुए लण्ड को रगड़ने लगी।
"देवर जी , इस तरह तो पापाजी की पसंदीदा दाल कभी भी नहीं पक पाएगी ," मैं न चाहते हुए भी राजू को रुकने के लिये राजी करने का प्रयास कर रही थी।
नारी के वासनामयी मन में कभी ना में हाँ होती और कभी सिर्फ हाँ ही हाँ होती है। मेरे मन में तो हाँ हाँ के राज़ीपन का तूफ़ान उठा हुआ था।
"भाभी दाल तो पक ही जायेगी पर पापाजी की इकलौती बहु और बेटी का भी तो ख्याल रखने की ज़िम्मेदारी है आपके देवरों की ," राजी ने मेरे कान की लोलकि [ईयर लोब ] को होंठो के बीच चुभलाते हुए फुसफुसाया।
मैं सिहर उठी , " जाने दो देवर राजा। अपने मजे के लिए न जाने कैसे कैसे बहाने बनाते हो। "
" तो भाभी क्या आपको आनंद नहीं आ रहा ? "राजू ने मेरे उल्हाने का मज़ाक बनाते हुए अपना एक हाथ चालाकी से मेरे लहंगे के नाड़े के नीचे खिसका कर मेरी उबलती गीले चूत को ढून्ढ लिया। मैंने लहंगे के नीचे कच्छी नहीं पहनी थी। ग्रामीण लहंगे के परिवेश परिवेश में कच्छी की ज़रुरत ही नहीं महसूस होती। इस स्वंत्रता का लाभ अब मेरे प्यारे देवर राजू को भी मिल रहा था।
मेरे मुंह से ऊंची सिसकारी निकल पड़ी। मेरे दोनों हाथ तो भरे हुए थे दाल के डब्बे से। मैं चाहती तो भी कुछ नहीं कर पाती और मैं वैसे ही राजू को रोकने वाली नहीं थी। मेरा तीसरे नंबर का देवर है और उसे पूरा हक़ है अपनी भाभी के ऊपर।
राजू ने मेरे रस से भीगी झांटों को अपनी उँगलियों से सहलाते हुए पृथक कर मेरे रति रस से लबालब भरी चूत के द्वार को ढून्ढ अपनी उँगलियों से भगोष्ठों को फैला कर होले होले मेरी योनि की सुरंग के खुरदुरे तंग मुहाने को सहलाने लगा।
उत्तेजना से मेरे नितम्ब हिलने लगे।
मेरे आँखें आनंद से अधि मूंद गईं। राजू ने मेरे मदन-मणि को ढून्ढ लिया। उसे मेरे भगनासे को ढूंढ़ने में ज़रा सी भी मुश्किल नहीं होती। मेरा दाना है ही बड़ा मोटा और उसे तन्नाने में कुछ की क्षण लगते हैं।
"आह राजू उन्न्नन्नन अंग्ग्ग्ग्ग्ग्ग्ग्ग् ," मैं अब बेशर्मी से सिसकारियाँ मार रही थी।
राजू ने एक उँगली एक पोर तक मेरी चूत में डाल कर अपने अंगूठे से मेरे दाने को सहलाते हुए मेरी बाईं चूची को मसलते मसलते मेरी गर्दन गाल कान को चूम चूम कर मेरी हालत बेहाल कर दी।
Seemaji bas aap likhte jayiye hame aap ki kahani pure end tak padhdha na hai
aap ke har ek episode muje us bahu ki jelousy feel karva rahi hai
bas aap jaldi se episode deti jaye
hamari pari bhi sukhne na de please .........
 

Raj_Singh

Banned
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घर पहुँच के मैं दौड़ कर अपने कमरे में घुस गयी। मैं ससुरजी के साथ टूटी मर्यादाओं की लज्जा से एक तरफ तो घबरा रही थी पर दूरी ओर उनके मर्दाने हाथों के कमाल और उनके दानवीय आकार के मोटे लण्ड को याद कर उत्तेजना से सिहर उठती।
मैंने नहा धो कर हल्का नीला लहंगा और हलकी गुलाबी चोली पहनी। शाम के खाने का इंतज़ाम करने में मेरा ध्यान मुश्किल से लग पाया। उसके ऊपर जब मैं भंडार-घर में ससुरजी की चहेती दाल ढून्ढ रही थी तो मौका देख कर मेरा छोटा देवर राजू ने मुझे भंडार-घर में घेर लिया।
" भाभी, अब तो आप पकड़ी गईं। अब भी नहीं बचा सकता ," राजू ने मुझे पीछे से बाहों में जकड़ते हुए सस्ते फिल्मों गुंडों की आवाज़ की नक़ल करते हुए कहा।
"अरे देवर जी कौनसी भाभी बचना चाहती है देवर राजा से ," मैंने अपनी कमर राजू के उन्नत टांगों बीच में से सर उठाते मोटे अजगर को रगड़ते हुए कहा।
" तब तो दिवाली हो गयी आज ," राजू की हिम्मत और भी बढ़ गयी।
मेरे दोनों हाथों दाल का डब्बा था। राजू के दोनों हाथ मेरे उरोजों पर जमे हुए थे। राजू ने होले से मेरी गर्दन को अपने होंठो से तितली के पंख से सहराने जैसे हलके स्पर्श से चूमने लगा। मैं सिहर उठी। मेरी गर्दन की त्वचा बहुत ही संवेदनशील है। मैंने स्वतः अपने बदन को अपने देवर के भारी भरकम मर्दाने शरीर के साथ दबा दिया। राजू का महा लण्ड मेरी पीठ में गढ़ रहा था। राजू ने मेरे स्तनों को मेरी चोली के ऊपर से ही हौले हौले दबाना शुरू कर अपनी हथेली से मेरे तने चूचुकों को सहलाने लगा। मैंने अपनी पीठ से उसके तन्नाए हुए लण्ड को रगड़ने लगी।
"देवर जी , इस तरह तो पापाजी की पसंदीदा दाल कभी भी नहीं पक पाएगी ," मैं न चाहते हुए भी राजू को रुकने के लिये राजी करने का प्रयास कर रही थी।
नारी के वासनामयी मन में कभी ना में हाँ होती और कभी सिर्फ हाँ ही हाँ होती है। मेरे मन में तो हाँ हाँ के राज़ीपन का तूफ़ान उठा हुआ था।
"भाभी दाल तो पक ही जायेगी पर पापाजी की इकलौती बहु और बेटी का भी तो ख्याल रखने की ज़िम्मेदारी है आपके देवरों की ," राजी ने मेरे कान की लोलकि [ईयर लोब ] को होंठो के बीच चुभलाते हुए फुसफुसाया।
मैं सिहर उठी , " जाने दो देवर राजा। अपने मजे के लिए न जाने कैसे कैसे बहाने बनाते हो। "
" तो भाभी क्या आपको आनंद नहीं आ रहा ? "राजू ने मेरे उल्हाने का मज़ाक बनाते हुए अपना एक हाथ चालाकी से मेरे लहंगे के नाड़े के नीचे खिसका कर मेरी उबलती गीले चूत को ढून्ढ लिया। मैंने लहंगे के नीचे कच्छी नहीं पहनी थी। ग्रामीण लहंगे के परिवेश परिवेश में कच्छी की ज़रुरत ही नहीं महसूस होती। इस स्वंत्रता का लाभ अब मेरे प्यारे देवर राजू को भी मिल रहा था।
मेरे मुंह से ऊंची सिसकारी निकल पड़ी। मेरे दोनों हाथ तो भरे हुए थे दाल के डब्बे से। मैं चाहती तो भी कुछ नहीं कर पाती और मैं वैसे ही राजू को रोकने वाली नहीं थी। मेरा तीसरे नंबर का देवर है और उसे पूरा हक़ है अपनी भाभी के ऊपर।
राजू ने मेरे रस से भीगी झांटों को अपनी उँगलियों से सहलाते हुए पृथक कर मेरे रति रस से लबालब भरी चूत के द्वार को ढून्ढ अपनी उँगलियों से भगोष्ठों को फैला कर होले होले मेरी योनि की सुरंग के खुरदुरे तंग मुहाने को सहलाने लगा।
उत्तेजना से मेरे नितम्ब हिलने लगे।
मेरे आँखें आनंद से अधि मूंद गईं। राजू ने मेरे मदन-मणि को ढून्ढ लिया। उसे मेरे भगनासे को ढूंढ़ने में ज़रा सी भी मुश्किल नहीं होती। मेरा दाना है ही बड़ा मोटा और उसे तन्नाने में कुछ की क्षण लगते हैं।
"आह राजू उन्न्नन्नन अंग्ग्ग्ग्ग्ग्ग्ग्ग् ," मैं अब बेशर्मी से सिसकारियाँ मार रही थी।
राजू ने एक उँगली एक पोर तक मेरी चूत में डाल कर अपने अंगूठे से मेरे दाने को सहलाते हुए मेरी बाईं चूची को मसलते मसलते मेरी गर्दन गाल कान को चूम चूम कर मेरी हालत बेहाल कर दी।

बहुत ही कामुक और बेहतरीन अपडेट :applause:

बस शिकायत एक ही है कि आप अपडेट बहुत देर से देते है,

सप्ताह मे कम से कम 2 अपडेट तो होने ही चाहिए।
 
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Funlover

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बहुत ही कामुक और बेहतरीन अपडेट :applause:

बस शिकायत एक ही है कि आप अपडेट बहुत देर से देते है,

सप्ताह मे कम से कम 2 अपडेट तो होने ही चाहिए।
Mai aap ke saath bilkul agreed hu
 
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123@abc

Just chilling
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Mind blowing seema ji bahot maja aya
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