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१६
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घर पहुँच के मैं दौड़ कर अपने कमरे में घुस गयी। मैं ससुरजी के साथ टूटी मर्यादाओं की लज्जा से एक तरफ तो घबरा रही थी पर दूरी ओर उनके मर्दाने हाथों के कमाल और उनके दानवीय आकार के मोटे लण्ड को याद कर उत्तेजना से सिहर उठती।
मैंने नहा धो कर हल्का नीला लहंगा और हलकी गुलाबी चोली पहनी। शाम के खाने का इंतज़ाम करने में मेरा ध्यान मुश्किल से लग पाया। उसके ऊपर जब मैं भंडार-घर में ससुरजी की चहेती दाल ढून्ढ रही थी तो मौका देख कर मेरा छोटा देवर राजू ने मुझे भंडार-घर में घेर लिया।
" भाभी, अब तो आप पकड़ी गईं। अब भी नहीं बचा सकता ," राजू ने मुझे पीछे से बाहों में जकड़ते हुए सस्ते फिल्मों गुंडों की आवाज़ की नक़ल करते हुए कहा।
"अरे देवर जी कौनसी भाभी बचना चाहती है देवर राजा से ," मैंने अपनी कमर राजू के उन्नत टांगों बीच में से सर उठाते मोटे अजगर को रगड़ते हुए कहा।
" तब तो दिवाली हो गयी आज ," राजू की हिम्मत और भी बढ़ गयी।
मेरे दोनों हाथों दाल का डब्बा था। राजू के दोनों हाथ मेरे उरोजों पर जमे हुए थे। राजू ने होले से मेरी गर्दन को अपने होंठो से तितली के पंख से सहराने जैसे हलके स्पर्श से चूमने लगा। मैं सिहर उठी। मेरी गर्दन की त्वचा बहुत ही संवेदनशील है। मैंने स्वतः अपने बदन को अपने देवर के भारी भरकम मर्दाने शरीर के साथ दबा दिया। राजू का महा लण्ड मेरी पीठ में गढ़ रहा था। राजू ने मेरे स्तनों को मेरी चोली के ऊपर से ही हौले हौले दबाना शुरू कर अपनी हथेली से मेरे तने चूचुकों को सहलाने लगा। मैंने अपनी पीठ से उसके तन्नाए हुए लण्ड को रगड़ने लगी।
"देवर जी , इस तरह तो पापाजी की पसंदीदा दाल कभी भी नहीं पक पाएगी ," मैं न चाहते हुए भी राजू को रुकने के लिये राजी करने का प्रयास कर रही थी।
नारी के वासनामयी मन में कभी ना में हाँ होती और कभी सिर्फ हाँ ही हाँ होती है। मेरे मन में तो हाँ हाँ के राज़ीपन का तूफ़ान उठा हुआ था।
"भाभी दाल तो पक ही जायेगी पर पापाजी की इकलौती बहु और बेटी का भी तो ख्याल रखने की ज़िम्मेदारी है आपके देवरों की ," राजी ने मेरे कान की लोलकि [ईयर लोब ] को होंठो के बीच चुभलाते हुए फुसफुसाया।
मैं सिहर उठी , " जाने दो देवर राजा। अपने मजे के लिए न जाने कैसे कैसे बहाने बनाते हो। "
" तो भाभी क्या आपको आनंद नहीं आ रहा ? "राजू ने मेरे उल्हाने का मज़ाक बनाते हुए अपना एक हाथ चालाकी से मेरे लहंगे के नाड़े के नीचे खिसका कर मेरी उबलती गीले चूत को ढून्ढ लिया। मैंने लहंगे के नीचे कच्छी नहीं पहनी थी। ग्रामीण लहंगे के परिवेश परिवेश में कच्छी की ज़रुरत ही नहीं महसूस होती। इस स्वंत्रता का लाभ अब मेरे प्यारे देवर राजू को भी मिल रहा था।
मेरे मुंह से ऊंची सिसकारी निकल पड़ी। मेरे दोनों हाथ तो भरे हुए थे दाल के डब्बे से। मैं चाहती तो भी कुछ नहीं कर पाती और मैं वैसे ही राजू को रोकने वाली नहीं थी। मेरा तीसरे नंबर का देवर है और उसे पूरा हक़ है अपनी भाभी के ऊपर।
राजू ने मेरे रस से भीगी झांटों को अपनी उँगलियों से सहलाते हुए पृथक कर मेरे रति रस से लबालब भरी चूत के द्वार को ढून्ढ अपनी उँगलियों से भगोष्ठों को फैला कर होले होले मेरी योनि की सुरंग के खुरदुरे तंग मुहाने को सहलाने लगा।
उत्तेजना से मेरे नितम्ब हिलने लगे।
मेरे आँखें आनंद से अधि मूंद गईं। राजू ने मेरे मदन-मणि को ढून्ढ लिया। उसे मेरे भगनासे को ढूंढ़ने में ज़रा सी भी मुश्किल नहीं होती। मेरा दाना है ही बड़ा मोटा और उसे तन्नाने में कुछ की क्षण लगते हैं।
"आह राजू उन्न्नन्नन अंग्ग्ग्ग्ग्ग्ग्ग्ग् ," मैं अब बेशर्मी से सिसकारियाँ मार रही थी।
राजू ने एक उँगली एक पोर तक मेरी चूत में डाल कर अपने अंगूठे से मेरे दाने को सहलाते हुए मेरी बाईं चूची को मसलते मसलते मेरी गर्दन गाल कान को चूम चूम कर मेरी हालत बेहाल कर दी।